BCom 1st Year Business Regulatory Framework Unpaid Seller Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Regulatory Framework Unpaid Seller Study Material Notes in  Hindi

Table of Contents

BCom 1st Year Business Regulatory Framework Unpaid Seller Study Material Notes in  Hindi: Meaning of Unpaid Seller Characteristics of Unpaid Seller Rights of Lien Difference Between Lien and Stoppage of Goods in Transit Duration of Goods in Transit How Stoppage of Goods in Transit is Affected Effect of sub-sale of Pledge by the buyer Cessation of Rights of Stoppage of Goods in Transit Rights of Re-Sale Unpaid Seller Buyer Personality Where the Property in Goods Has Been Not Passed Examination Questions Long Answer Question Short Answer Questions Objectives Questions )

Unpaid Seller Study Material
Unpaid Seller Study Material

BCom 1st Year Regulatory Framework Performance Contract Sale Study Material Notes in Hindi

अदत्त विक्रेता

(Unpaid Seller)

अदत्त विक्रेता का अर्थ

(Meaning of Unpaid Seller)

वस्तु विक्रय अधिनियम, 1930 की धारा 45 (1) के अनुसार, अदत्त विक्रेता से तात्पर्य ऐसे। विक्रेता से है जिसे (i) सम्पर्ण मल्य का भुगतान (या उसके भुगतान का प्रस्ताव) प्राप्त नहीं हआ है। अथवा (ii) भुगतान के रूप में जो बिल या विनिमय साध्य विलेख प्राप्त हुआ था,वह अनादृत हो गया है।

धारा 45 (2) के अनुसार विक्रेता से आशय किसी भी ऐसे व्यक्ति से है, जो विक्रेता की स्थिति में  हो। उदाहरणार्थ, विक्रेता का एजेन्ट, जिसे जहाजी बिल्टी का बेचान किया गया है, या प्रेषी (Consignee) अथवा एजेन्ट, जिसने स्वयं मूल्य का भुगतान किया है या जो मूल्य के लिए प्रत्यक्ष रूप से उत्तरदायी है।

स्पष्ट है कि एक विक्रेता उन दशाओं में अदत्त विक्रेता कहलाता है, जब उसे माल का सम्पूर्ण मूल्य नहीं चुकाया गया हो अथवा प्रस्तुत (Tendered) नहीं किया गया हो, अथवा अनुबन्ध करते समय मूल्य के भुगतान के रूप में, जो विनिमय साध्य विलेख (Negotiable Instrument) प्राप्त हुआ था या मिला था या दिया गया हो और जब ऐसे विनिमय साध्य विलेख, जैसे-चैक, हुण्डी, प्रतिज्ञा-पत्र या अन्य विलेख, जिसे भुगतान के लिए प्रस्तुत किया गया और उस समय वह अप्रतिष्ठित (Dishonour) हो गया हो तो ऐसी दशा में ऐसा विक्रेता. अदत्त विक्रेता (Unpaid Seller ) कहलाता है। ऐसा विक्रेता. जिसे माल के मूल्य के रूप में कुछ मूल्य या आंशिक मूल्य ही प्राप्त हुआ हो, वह भी अदत्त विक्रेता ही कहलाएगा।

उदाहरणार्थ :X द्वारा Y को 160 जेनरेटर सेट 30 लाख ₹ मल्य के 20 फरवरी को बेचे गए। | Y ने मूल्य के भुगतान के रूप में एक चैक स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया, मेरठ, के नाम 30 लाख ₹ के भुगतान हेतु 10 मार्च दिनांक का दिया। X ने जब चैक का भुगतान प्राप्त करने के लिए 10 मार्च को स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया, मेरठ को प्रस्तुत किया तो बैंक द्वारा इस चैक को खाते में कम जमा राशि होने के कारण अनादृत (Dishonour) कर दिया गया तो ऐसी दशा में माल का मूल्य न मिलने के कारण X अदत्त विक्रेता कहलाएगा।

इसी प्रकार यदि A ने B को 2 लाख ₹ मूल्य का गेहूँ विक्रय किया। B ने गेहूँ के मूल्य भुगतान के रूप में सुपुर्दगी लेते समय केवल 1.5 लाख ₹ का भुगतान किया, अर्थात् B द्वारा, A को माल के मूल्य का केवल कुछ भुगतान या आंशिक भुगतान ही किया गया है, तो ऐसी दशा में A आंशिक भुगतान प्राप्त करने के बाद भी अदत्त विक्रेता ही कहलाएगा।

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अदत्त विक्रेता के लक्षण

(Characteristics of Unpaid Seller)

अदत्त विक्रेता के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं

1 ऐसा व्यक्ति जिसने, दूसरे व्यक्ति (क्रेता) को माल बेच दिया है और माल के स्वामित्व का। हस्तांतरण हो चुका है। यह महत्त्वहीन है कि उसने माल की सुपर्दगी क्रेता को दी हो अथवा नहीं दी हो।।

2. यदि विक्रय किए गए माल का पूर्ण भुगतान प्राप्त न हुआ हो।

3. यदि विक्रेता को विक्रय किए गए माल का केवल आंशिक भुगतान प्राप्त हुआ हो।

4. यदि विक्रय किए गए माल के मूल्य के बदले विक्रेता को चैक, विनिमय-पत्र अथवा प्रतिज्ञा-पत्र प्राप्त हुआ हो किन्तु वह अप्रतिष्ठित हो गया हो।

5. एक बार का दत्त विक्रेता पुनः अदत्त विक्रेता बन सकता है यदि उस विक्रेता को दिया गया विनिमयसाध्य विलेख (प्रतिज्ञा-पत्र, चैक अथवा विनिमय-पत्र) माल की सुपुर्दगी से पूर्व ही अप्रतिष्ठित हो गया हो।

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अदत्त विक्रेता के अधिकार

(Rights of Unpaid Seller)

वस्तु विक्रय अधिनियम के अन्तर्गत एक अदत्त विक्रेता को कुछ विशेष अधिकार प्राप्त होते हैं। इन अधिकारों को मुख्यतः दो श्रेणियों में बाँटा जा सकता है-1. माल के प्रति अधिकार, तथा 2. क्रेता के विरुद्ध अधिकार।

1.अदत्त विक्रेता के माल के प्रति अधिकार (Rights against the Goods)-अदत्त विक्रेता के माल सम्बन्धी अधिकारों को दो भागों में बाँटा जा सकता है

(क) जब माल के स्वामित्व का हस्तान्तरण हो चुका है, तथा

(ख) जब माल के स्वामित्व का हस्तान्तरण नहीं हुआ है।

() जब माल के स्वामित्व का हस्तान्तरण क्रेता को हो चुका है (Where the property in goods has been passed) इस स्थिति में, अदत्त विक्रेता को निम्नलिखित अधिकार प्राप्त होते हैं

(1) ग्रहणाधिकार,

(II) माल को मार्ग में रोकने का अधिकार.

(III) माल के पुनर्विक्रय का अधिकार

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ग्रहणाधिकार

(Right of Lien)

धारा 47 के अनुसार, यदि माल अभी अदत्त विक्रेता के ही कब्जे में है, तो वह उसे उस समय तक अपने पास रोके रख सकता है जब तक सम्पूर्ण मूल्य का भुगतान न हो जाए अथवा भुगतान का वैध प्रस्ताव न किया जाए। अदत्त विक्रेता के इस अधिकार को ग्रहणाधिकार कहते हैं। यह अधिकार निम्नलिखित परिस्थितियों में ही उपयोग में लाया जा सकता है

(i) जब माल उधार नहीं बेचा गया हो; .

(ii) माल उधार बेचा गया है लेकिन उधार की अवधि समाप्त हो चुकी हो; अथवा

(iii) जब क्रेता दिवालिया हो गया हो।

ग्रहणाधिकार का सम्बन्ध माल के कब्जे से है, स्वामित्व से नहीं। अगर विक्रेता ने माल के स्वामित्व हस्तान्तरण सम्बन्धी अधिकार-पत्र क्रेता को सौंप दिए हैं, तब भी उसके ग्रहणाधिकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता बशर्ते कि माल विक्रेता के कब्जे में हो। धारा 47 (2) के अनुसार, यदि विक्रेता के पास माल एजेन्ट या निक्षेपिती के नाते रखा हआ है. तब भी वह ग्रहणाधिकार का उपयोग कर सकता है।

यदि विक्रेता ने माल की आंशिक सपर्दगी (part delivery) दे दी है, तो वह शेष माल पर ग्रहणाधिकार का उपयोग कर सकता है. लेकिन अगर आंशिक सुपुर्दगी ऐसी परिस्थितियों में दी गई है। जिससे विक्रेता द्वारा अपने ग्रहणाधिकार का परित्याग करने का आभास मिलता है, तो वह शेष माल पर ग्रहणाधिकार का उपयोग नहीं कर सकता।

ग्रहणाधिकार व्यक्तिगत अधिकार है (Lien is an Individual Right)-यहाँ पर यह स्पष्ट कर देना महत्त्वपूर्ण एवं उचित है कि वस्तू विक्रय अधिनियम के अन्तर्गत ग्रहणाधिकार एक व्यक्तिगत अधिकार है, जिसका उपयोग स्वयं अदत्त विक्रेता द्वारा या उसके अधिकृत एजेन्ट द्वारा, जो कि विक्रेता की ओर से माल पर वैधानिक अधिकार रखता है, किया जा सकता है।

इस अधिकार का हस्तान्तरण नहीं किया जा सकता है। यदि अदत्त विक्रेता का कोई ऋणदाता इस अधिकार का प्रयोग कर अपना ऋण वसूल करना चाहे, तो वह ऐसा नहीं कर सकेगा।

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ग्रहणाधिकार अविभाजित होता है (Lien is Non-divisible)-वस्तु विक्रय अधिनियम म यह स्पष्ट किया गया है कि ग्रहणाधिकार का विभाजन नहीं किया जा सकता है। यदि किसी क्रेता ने माल क कुछ भाग के लिए भुगतान नहीं किया है तो वह भुगतान किए गए भाग की सपुर्दगी देने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है। विक्रेता को सम्पूर्ण माल पर ग्रहणाधिकार प्राप्त होता है। अत: विक्रेता, सम्पूण मूल्य प्राप्त होने तक माल को अपने पास रोके रख सकता है।

माल के मल्य की वसली के सम्बन्ध में ही ग्रहणाधिकार का उपयोग किया जा सकता है। किसी अन्य रकम की वसली के लिए नहीं। सोम्स बनाम ब्रिटिश एम्पायर शिपिंग क० के केस में निर्णय दिया गया कि जब मूल्य के भुगतान का प्रस्ताव कर दिया गया है तो विक्रेता यह कह कर माल को रोके नहीं रख सकता है कि अभी उसे उन खर्चों का भुगतान प्राप्त नहीं हुआ है जो उसने ग्रहणाधिकार की अवधि में माल के संग्रहण पर किए हैं।

विक्रेता के ग्रहणाधिकार की समाप्तिधारा 49 के अनुसार, निम्नलिखित परिस्थितियों में विक्रेता का ग्रहणाधिकार समाप्त हो जाता है

1 वाहक को सुपुर्दगी (Delivery to Carrier)-जब विक्रेता, माल पर अपना अधिकार सुरक्षित किए बिना, क्रेता तक माल पहुँचाने के उद्देश्य से उसे किसी वाहक या निक्षेपिती को सौंप देता है, तो उसका माल पर ग्रहणाधिकार समाप्त हो जाता है। लेकिन कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में वह माल को मार्ग में रोक सकता है, और अगर इस अधिकार का उपयोग करने पर माल पुनः उसके कब्जे में आ जाता है, तो वह फिर से ग्रहणाधिकार का उपयोग कर सकता है।

उदाहरण-रमेश, सुरेश से माल क्रय करता है तथा सरेश उसे रमेश के पास पहुँचाने के लिए जयपुर गोल्डन ट्रांसपोर्ट कम्पनी को सौंप देता है, जिसकी बिल्टी रमेश के नाम बनवाता है। यहाँ सुरेश का माल पर ग्रहणाधिकार समाप्त हो जाता है क्योकि माल पर अधिकार रखे बिना ही माल ट्रान्सपोर्ट कम्पनी को सौंपा गया है। इस उदाहरण में यदि सुरेश ट्रान्सपोर्ट कम्पनी को माल सौंपते समय बिल्टी अपने स्वयं के नाम से बनवाता है तो यहाँ माल पर अदत्त विक्रेता का ग्रहणाधिकार बना रहता है।

2. क्रेता को माल की सुपुर्दगी (Delivery to Buyer)-जब विक्रय अनुबन्ध के अन्तर्गत स्वयं क्रेता या उसके अधिकृत एजेन्ट वैधानिक रूप से या नियमानुसार माल को प्राप्त कर लेते हैं तो ऐसी दशा में अदत्त विक्रेता का माल पर ग्रहणाधिकार स्वत: ही वैधानिक रूप से समाप्त हो जाता है।

3. आंशिक सुपुर्दगी (Partial Delivery)-वस्तु विक्रय अधिनियम की धारा 48 के अन्तर्गत यह स्पष्ट किया गया है कि जब विक्रेता द्वारा क्रेता को माल की आंशिक सुपुर्दगी उन दशाओं या परिस्थितियों में दी गई हो, जिसके द्वारा ऐसा प्रतीत हो या लगता हो कि स्वयं विक्रेता ने अपने ग्रहणाधिकार का त्याग कर दिया है तो विक्रेता का ग्रहणाधिकार का अधिकार समाप्त हो जाता है।

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4. विक्रेता द्वारा अधिकार का परित्याग करना (When seller Waive the right)-जब माल का अदत्त विक्रेता स्वयं ही स्पष्ट या गर्भित रूप से माल पर ग्रहणाधिकार का परित्याग कर देता है, तो ऐसी दशा में उसका यह अधिकार समाप्त हुआ माना जाएगा। जैसे-अदत्त विक्रेता द्वारा क्रेता को माल सौंप देना, क्रेता द्वारा माल को प्रयोग कर लेना तथा क्रेता की ओर से मूल्य के भुगतान के लिए किसी से जमानत प्राप्त कर लेना आदि।

5. मूल्य का भुगतान प्राप्त हो जाने पर (On Received the Payment)-जब अदत्त विक्रेता, क्रेता से माल के मूल्य का भुगतान उचित रूप से प्राप्त कर लेता है तो ऐसा भुगतान स्वीकार करते ही माल पर ग्रहणाधिकार समाप्त हो जाता है।

6. अवरोध द्वारा (By Estoppel)-यदि अदत्त विक्रेता ने अपने आचरण या शब्दों से ऐसा प्रदर्शन किया है जिससे तीसरे पक्षकार को यह विश्वास हो जाता है कि माल पर अदत्त विक्रेता का ग्रहणाधिकार नहीं है तो अवरोध द्वारा ग्रहणाधिकार समाप्त हो जाता है।

7. सपर्दगी देने से अनुचित रूप से इन्कार करने पर (On denying the Delivery)-जब विक्रेता क्रेता को माल की सुपुर्दगी देने से अनुचित रूप से इन्कार कर देता है तो उसके इस इन्कार से विक्रय अनुबन्ध का खण्डन हो जाता है। ऐसी स्थिति में विक्रय अनुबन्ध समाप्त हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप उस माल पर विक्रेता का ग्रहणाधिकार भी समाप्त हो जाता है।

8. भुगतान अस्वीकार कर देने पर (On Non-acceptance of the Payment)-यदि क्रेता अदत्त विक्रेता को उचित समय एवं उचित माध्यम व उचित रूप से मूल्य का भुगतान करता है या भावान करने का प्रस्ताव करता है, जबकि अदत्त विक्रेता लापरवाही या कपटमय आचरण से उसको वीकार नहीं करता तो ऐसी दशा में अदत्त विक्रेता का ग्रहणाधिकार का अधिकार समाप्त हो जाता है।

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माल को मार्ग में रोकने का अधिकार

(Right of Stoppage of Goods in Transit)

वस्तु विक्रय अधिनियम की धारा 50 के अनुसार, “जब माल का क्रेता दिवालिया हो गया हो तो रना जिसके अधिकार से माल निकल गया हो, माल को मार्ग में रोक सकता है अर्थात जब है वह माल को पुन: अपने अधिकार में ले सकता है और जब तक अदत्त विक्रेता को माल का मूल्य न चुराया जाए अथवा प्रस्तुत न किया जाए

माल को मार्ग में रोकने के अधिकार को प्रयोग करने की शर्ते

(Conditions under which right of stoppage of Goods in transit can be Exercised)

माल को मार्ग में रोकने के अधिकार को प्रयोग करने के लिए निम्नलिखित शर्तों का पूरा होना आवश्यक है

(i) जब क्रेता दिवालिया हो चुका हो;

(ii) जब माल अदत्त विक्रेता के अधिकार में न हो;

(iii) जब माल मार्ग में हो अर्थात् क्रेता अथवा उसके प्रतिनिधि के पास नहीं पहुँचा हो;

(iv) क्रेता के दिवालिया होने की सूचना अदत्त विक्रेता को प्राप्त हो गई हो;

(v) अदत्त विक्रेता ने माल पृथक् कर दिया हो अर्थात् माल क्रेता को पहुँचाने के लिए भेज दिया गया हो;

(vi) जब विक्रेता से माल का स्वामित्व क्रेता को हस्तान्तरित हो चुका हो;

(vii) जब विक्रेता को माल का सम्पूर्ण या आंशिक मूल्य न मिला हो;

(viii) जब अदत्त विक्रेता का माल को मार्ग में रोकने का अधिकार इस अधिनियम अथवा किसी अन्य अधिनियम द्वारा समाप्त न हुआ हो।

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ग्रहणाधिकार एवं माल को मार्ग में रोकने के अधिकार में अन्तर

(Difference between Lien and Stoppage of Goods in Transit)

मार्ग में माल रहने की अवधि

(Duration of Goods in Transit)

माल को रास्ते में रोकने के अधिकार का उसी समय प्रयोग किया जा सकता है, जबकि माल वास्तव में रास्ते में ही हो। इसलिए एक बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि माल रास्ते में कब समझा जाएगा, इसका उत्तर धारा 51 में दिया गया है जो इस प्रकार है

1 माल क्रेता को मिलने पर किन्तु वाहक को दे चुकने पर (Non-Receipt of goods by the buyer)-माल उस समय से ही रास्ते में कहा जाएगा, जिस समय कि माल किसी वाहक या निक्षेपग्रहीता को दे दिया गया है और जब तक यह माल क्रेता या उसके किसी अधिकृत एजेन्ट को न मिल गया हो।

उदाहरणA ने मेरठ से सहारनपुर को रेलवे द्वारा माल B को भेजा। माल सहारनपुर स्टेशन पर पहुँच गया लेकिन B ने माल की सुपुर्दगी नहीं ली है तो माल को मार्ग में ही माना जाएगा।

2. नियत स्थान से पूर्व सुपुर्दगी (Delivery before the appointed destination)-जब माल की सुपुर्दगी किसी निश्चित स्थान पर होनी हो, किन्तु माल के उस निश्चित स्थान पर पहुँचने से पहले ही, यदि क्रेता या उसका एजेन्ट माल की सुपुर्दगी ले ले, तो ऐसी दशा में माल रास्ते की स्थिति में नहीं कहा जाएगा।

 (2) उदाहरण–x ने Y को माल जय ट्रान्सपोर्ट कम्पनी के माध्यम से जयपुर से अहमदाबाद के लिए रवाना किया। Y के एजेन्ट ने माल को अजमेर में ही ट्रान्सपोर्ट कम्पनी से वैधानिक रूप से प्राप्त कर लिया, तो ऐसी दशा में माल को मार्ग में नहीं माना जाएगा।

3. वाहक द्वारा क्रेता की तरफ से माल रखना (Holding the goods by the Carrier on behalf of buyer)-यदि वस्तु निश्चित स्थान पर पहुँच गई हो और वाहक या निक्षेपग्रहीता क्रेता को या उसके एजेन्ट को यह कह दे कि अब माल उसके (वाहक या निक्षेपग्रहीता के) पास क्रेता की ओर से रहेगा, तो ऐसी स्थिति में माल रास्ते में नहीं कहा जाएगा। बेथेल बनाम क्लार्क के विवाद में लॉर्ड ईशर ने बताया कि यदि अनुबन्ध की किसी शर्त के अनुसार अथवा क्रेता के विक्रेता को निर्देश देने के कारण माल वाहक के हाथ में न हो, बल्कि क्रेता के नवीन निर्देश के फलस्वरूप किसी नए मार्ग में हो, तो यह नवीन मार्ग मूल मार्ग का कोई हिस्सा नहीं होता है तथा माल को रोकने के अधिकार का अन्त हो जाता

4. यदि क्रेता माल लेना अस्वीकार कर दे (When the goods are rejected by the buyer)-यदि क्रेता माल को अस्वीकार कर देता है और ऐसे माल का अधिकार वाहक या निक्षेपग्रहीता के पास ही रहता है तो ऐसी दशा में माल अभी भी रास्ते में ही कहा जाएगा, यद्यपि विक्रेता ने ऐसे माल को वापस लेने से इन्कार कर दिया हो।

उदाहरणमारुति कार कम्पनी ने दिल्ली से रोहन मोटर्स के लिए 25 मारुति एल्टो कार संजय ट्रान्सपोर्ट कम्पनी के द्वारा जयपुर भेजी। रोहन मोटर्स कारों को छुड़ाने से मना कर देता है तथा दूसरी ओर मारुति कार कम्पनी भी माल को वापस लेने से मना या इन्कार कर देती है। माल संजय ट्रान्सपोर्ट कम्पनी के पास ही रहता है। ऐसी दशा में यहाँ पर माल को मार्ग में ही माना जाएगा।

5. जब माल क्रेता द्वारा भाड़े पर नियुक्त जहाज को सुपुर्द किया जाता है (When goods are delivered to a ship chartered by the buyer)-जब माल ऐसे जहाज को दे दिया गया हो जो कि स्वयं क्रेता ने ही किराए पर लिया हो तो ऐसी दशा में क्या जहाज का मालिक एक वाहक की हैसियत से कार्य करेगा या क्रेता के एजेन्ट की हैसियत से? इस प्रश्न का उत्तर हर एक स्थिति में उसके वातावरण। के अनसार निश्चित किया जाएगा और इसलिए यदि स्थिति यह बताती है कि जहाज का मालिक एक वाहक के रूप में कार्य कर रहा है, तो ऐसी दशा में माल रास्ते में ही माना जाएगा और यदि स्थिति यह ‘दर्शाती है कि जहाज का मालिक एक क्रेता के एजेन्ट की हैसियत से कार्य कर रहा है तो ऐसी दशा में माल रास्ते में नहीं माना जाएगा।

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चोरमन्स बनाम एल० वाई० आर० कम्पनी के मामले के अनसार यदि क्रेता भाटक पत्र arter narty) की शर्तों के अन्तर्गत जहाज का अस्थाई स्वामी है तथा विक्रेता व्यवस्थापन के अधिकार को अपने पास सरक्षित नहीं रखता है तो जहाज के कप्तान को सुपुर्दगी क्रेता के एजेन्ट को सपर्टगी मानी जाएगी तथा माल मार्ग में नहीं माना जाएगा।

6. वाहक द्वारा सुपुर्दगी देने से इन्कार (Refusal by the carrier or other bailee to liver the goods)-यदि वाहक या निक्षेपग्रहीता किसी दोषपूर्ण आशय से क्रेता को या उसके एजेन्ट मेमाल की सपुर्दगी देने से इन्कार कर देता है तो ऐसी दशा में भी माल रास्ते में नहीं माना जाएगा।

7.माल की आंशिक सुपुर्दगी क्रेता को करने पर यदि माल की आंशिक सुपुर्दगी क्रेता को या उसके एजेन्ट को पहले से कर दी गई हो और बाकी माल अभी रास्ते में ही हो और आंशिक सपर्दगी ऐसी इच्छा से की गई थी कि इसका प्रभाव पूरी सुपुर्दगी का नहीं होगा, तो ऐसी दशा में बाकी माल को . रास्ते में ही माना जाएगा, क्योंकि अभी सम्पूर्ण माल की सुपुर्दगी क्रेता को नहीं हुई है।

माल रास्ते में किस प्रकार रोका जा सकता है?

(How Stoppage of Goods in Transit is Affected?)

जब माल रास्ते में हो और अदत्त विक्रेता उस माल को रोकना चाहता हो तो वह इसको निम्नांकित प्रकार से रोक सकता है

(i) वाहक को उचित समय में सूचना देकरएक अदत्त विक्रेता अपने अधिकार (माल को रास्ते में रोकने का अधिकार) को या तो माल का वास्तविक अधिकार अर्थात् माल को कब्जे में लेकर प्रयोग में ला सकता है, या वह ऐसे वाहक अथवा निक्षेपग्रहीता जिसके अधिकार में माल हो, को नोटिस देकर अपने अधिकार को प्रयोग में ला सकता है। यदि विक्रेता अपने अधिकार को सूचना द्वारा प्रयोग में लाना चाहता है, तो उसे यह सूचना उस व्यक्ति को जिसका वस्तु पर वास्तविक अधिकार है या उस व्यक्ति के स्वामी को दी जानी चाहिए। जैसे यदि वाहक एक ठेला ड्राइवर है तो ऐसी दशा में सूचना ठेला कम्पनी को अर्थात् ठेले के स्वामी को दी जानी चाहिए। यदि अदत्त विक्रेता वाहक के मालिक को सूचना देता है तो यह सूचना ऐसे समय और स्थिति में दी जानी चाहिए, जिससे कि वाहक का मालिक उस सूचना को अपने नौकर (वाहक) को उचित समय के अन्दर-अन्दर पहुँचा सके और माल की सुपुर्दगी क्रेता को न दी जा सके। यदि अदत्त विक्रेता सूचना उचित समय पर नहीं भेजता, अर्थात् वाहक के मालिक को इतना समय नहीं मिलता कि वह अपने नौकर को यह सूचना भेज सके, तो ऐसी दशा में अदत्त विक्रेता अपने अधिकार को प्रयोग में नहीं ला सकता, क्योंकि सूचना के मिलने से पहले वाहक माल को क्रेता को सुपुर्द कर सकता है और माल की रास्ते में होने की स्थिति समाप्त हो जाएगी।

(ii) माल को वापस करने के खर्चों के लिए विक्रेता उत्तरदायी-जब माल को रास्ते में रोकने की सूचना वाहक या किसी दूसरे निक्षेपग्रहीता को जिसके अधिकार में माल हो, दे दी जाए तो ऐसी दशा में वाहक या निक्षेपग्रहीता का यह कर्त्तव्य होगा कि वह माल को अदत्त विक्रेता को वापिस कर दे या अदत्त विक्रेता के आदेशानुसार माल का निपटारा कर दे। माल को वापस करने में जो खर्च होगा, उसके लिए अदत्त विक्रेता स्वयं उत्तरदायी होगा।

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क्रेता द्वारा उपविक्रय या गिरवी का प्रभाव

(Effect of Sub-sale or Pledge by the Buyer)

कभी-कभी ऐसा हो सकता है कि क्रेता उस माल को जो कि उसने अदत्त विक्रेता से खरीदा है उसको किसी तीसरे व्यक्ति को बेच देता है या किसी तीसरे व्यक्ति के पास गिरवी रख देता है, यद्यपि माल अभी अदत्त विक्रेता के ही पास हो या रास्ते की स्थिति में हो। ऐसी दशा में एक बहुत महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि अदत्त-विक्रेता के ग्रहाणाधिकार एवं रास्ते में माल को रोकने के अधिकार पर ऐसी उप-बिक्री या गिरवी का प्रभाव क्या होगा? इसका उत्तर धारा 53 में दिया गया है, जो इस प्रकार है

(i) मूल्य चुकाने से पहले गिरवी या उपविक्रय प्रभावहीन होना (Ineffectiveness of Sub-sale or Pledge)-साधारणतया यदि क्रेता माल का मूल्य चुकाने से पहले खरीदे हुए माल का उप-विक्रय कर दे या उसको गिरवी रख दे. तो इसका अदत्त विक्रेता के ग्रहणाधिकार या रास्ते में माल रोकने के अधिकार पर कोई प्रभाव नहीं होगा. जब तक कि ऐसा उप-विक्रय या गिरवी अदत्त विक्रेता द्वारा स्वीकार न कर लिया जाए। यह बात वास्तव में इस नियम पर आधारित है जिसके अनुसार एक क्रेता, विक्रेता से श्रेष्ठ अधिकार प्राप्त नहीं करता। यहाँ क्रेता ने जब माल तीसरे व्यक्ति को बेचा है या गिरवी रखा है, उस समय क्रेता ने माल का मूल्य नहीं चुकाया था इसलिए यहाँ अदत्त विक्रेता के अधिकार पर कोई प्रभाव नहीं होगा।

 (1) ग्रहणाधिकार अथवा माल को मार्ग में रोकने का अधिकार असफल होना (Richtal Lien or Stoppage of goods in Transit Defeated)-जब माल के अधिकार सम्बन्धी प्रपत्र । किसी व्यक्ति को माल के स्वामी या क्रेता के रूप में जारी किए जा चुके हों और ऐसा व्यक्ति उन प्रपत्रों को किसी तीसरे व्यक्ति को हस्तान्तरित (बेचान) कर दे और ऐसा तीसरा व्यक्ति इन प्रपत्रों को। सद्भावना से ले ले, तो अदत्त-विक्रेता का ग्रहणाधिकार तथा रास्ते में माल को रोकने के अधिकार समाप्त हो जाते हैं। (ii) ऐसा हस्तान्तरण केवल गिरवी के ही रूप में किया गया हो, तो अदत्त विक्रेता का ग्रहणाधिकार और रास्ते में माल को रोकने का अधिकार गिरवी रख लेने वाले के विरुद्ध केवल तभी प्रयोग में लाए जा सकते हैं जबकि गिरवी रख लेने वाले के अधिकार पहले पूरे कर दिए जाएँ।

उदाहरणरोहित 1,200 ₹ मूल्य की वस्तु मोहन को बेचता है और वस्तु सम्बन्धी प्रपत्र मोहन के नाम भेज दिए जाते हैं। मोहन इन प्रपत्रों को सोहन को उस ऋण के भुगतान में जो कि मोहन ने सोहन से ले रखा है बेचान कर देता है। यह ऋण 500 ₹ का है और अब सोहन के पास वस्तु-अधिकार सम्बन्धी प्रपत्र इस ऋण की जमानत के रूप में हैं। इससे पहले कि माल मोहन के पास तक पहुँचता, मोहन दिवालिया हो जाता है जबकि वह सोहन का 900 ₹ से, जिसमें कि उपर्युक्त 500 ₹ भी सम्मिलित हैं, ऋणी है। ऐसी दशा में रोहित वस्तु को उस समय रोक सकता है जबकि वह सोहन के उन 500 ₹ का भुगतान कर दे जिसके भुगतान में मोहन ने वस्तु-अधिकार सम्बन्धी प्रपत्र गिरवी रखे हुए हैं। हाँ, रोहित यहाँ मोहन के शेष 400 ₹ के लिए बाध्य नहीं है क्योंकि यह 400 ₹ वस्तु अधिकार प्रपत्र भुगतान में नहीं हैं।

(ii) अन्य सम्पत्ति का प्रतिभूति के रूप में होना (Security of other assets)-यदि हस्तान्तरण गिरवी रखने के रूप में किया गया है, तो अदत्त विक्रेता को यह अधिकार होगा कि गिरवी रख लेने वाले को बाध्य करे कि वह गिरवी द्वारा रक्षित राशि को जहाँ तक सम्भव हो, पहले क्रेता के किसी ऐसे अन्य माल या प्रतिभूतियों से वसूल करे, जो कि गिरवी रख लेने वाले के अधिकार में हों तथा क्रेता के विरुद्ध प्राप्त हों।

माल को मार्ग में रोकने के अधिकार की समाप्ति

(Cessation of Right of Stoppage of Goods in Transit)

वस्तु विक्रय अधिनियम के अन्तर्गत निम्नलिखित परिस्थितियों में माल के अदत्त विक्रेता का माल को मार्ग में रोकने के अधिकार का प्रयोग नहीं किया जा सकता है या अधिकार समाप्त हुआ माना जाता है

1.क्रेता द्वारा माल की सुपुर्दगी लेने पर (When Buyer obtains Delivery)-जब माल के क्रेता या उसके प्रतिनिधि अथवा उसके अधिकृत एजेन्ट ने मालवाहक या निक्षेपग्रहीता से माल की सुपुर्दगी वास्तविक रूप से अथवा रचनात्मक रूप से प्राप्त कर ली हो या माल पर अधिकार प्राप्त कर लिया गया हो तो ऐसी दशा में अदत्त विक्रेता के मार्ग में माल रोकने के अधिकार की समाप्ति हो जाती है।

2. वाहक या निक्षेपग्रहीता द्वारा क्रेता के एजेन्ट के रूप में कार्य करने पर (The Carrier or any other Bailee act as an agent of Buyer)-यदि माल के वाहक या निक्षेपग्रहीता ने माल को क्रेता की ओर से अपने पास रखना स्वीकार कर लिया हो तो ऐसी दशा में भी अदत्त विक्रेता के माल को मार्ग में रोकने के अधिकार की समाप्ति हो जाती है।

3. सुपुर्दगी देने से इन्कार (Refuses to Deliver the Goods)-यदि माल के वाहक या निक्षेपग्रहीता द्वारा गलत ढंग से या अनाधिकृत रूप से माल की सुपुर्दगी देने से क्रेता को इन्कार या मना कर दिया गया है तो ऐसी दशा में अदत्त विक्रेता का माल को मार्ग में रोकने का अधिकार वैधानिक रूप से स्वत: ही समाप्त माना जाएगा।

4. गन्तव्य स्थान से पूर्व सुपुर्दगी (Taking Delivery before Destination)-यदि माल। गन्तव्य स्थान पर पहुंचने से पूर्व अर्थात् मार्ग में अन्य किसी स्थान पर स्वयं क्रेता या उसके अधिकृत एजेन्ट या प्रतिनिधि द्वारा माल की सुपुर्दगी प्राप्त कर ली जाती है तो ऐसी दशा में अदत्त विक्रेता का मार्ग में माल रोकने का अधिकार नियमानुसार समाप्त माना जाता है।

5. आंशिक सपर्दगी लेना (Obtains Part Delivery)-यदि माल के क्रेता. या उसके एजेन्ट या प्रतिनिधि द्वारा माल वाहक से माल का आशिक सुपुर्दगा ऐसी दशा में प्राप्त की गई है. जो सम्पर्ण माल की सपर्दगी प्रतीत होती है या सम्पूर्ण माल को सुपुर्दगी मानी जाए तो ऐसी दशा में बाकी बचे हए माल या शेष माल को मार्ग में नहीं रोका जा सकता है, अर्थात् अदत्त विक्रेता का माल को मार्ग में रोकने का अधिकार समाप्त माना जाएगा।

6. मूल्य का भगतान (Payment of Price)-यदि माल के नेता द्वारा माल के मूल्य का भुगतान विकेता को कर दिया जाता है तो ऐसी दशा में स्वतः हा अदत्त विक्रेता के माल को मार्ग में रोकने अधिकार की समाप्ति हो जाती है।

 माल के पुनः विक्रय का अधिकार

(Right of Re-Sale)

ग्रहणाधिकार तथा मार्ग में माल रोकने के अधिकार के अतिरिक्त अदत्त विक्रेता को माल को पुन: बेचने का भी अधिकार प्राप्त है। माल के पुन: विक्रय का अधिकार धारा 54 के अन्तर्गत सीमित रूप से प्रदान किया गया है। इस अधिकार का प्रयोग निम्नलिखित दशाओं में किया जा सकता है

(i) यदि माल शीघ्र नष्ट होने वाली प्रकृति का हो-जहाँ माल शीघ्र नष्ट होने वाली प्रकृति (Perishable nature) का है अथवा अदत्त विक्रेता जिसने ग्रहणाधिकार अथवा मार्ग में माल रोकने के अधिकार का प्रयोग कर लिया है, क्रेता को माल के पुन: बेचने के विचार (Intention) की सूचना दे देता है, तो अदत्त विक्रेता, यदि क्रेता उचित समय के अन्दर माल का मूल्य नहीं चुकाता है अथवा प्रस्तुत नहीं करता है तो माल को पुन: बेच सकता है और मूल क्रेता (Original buyer) से उसके द्वारा अनुबन्ध भंग किए जाने के कारण हुई हानि की क्षतिपूर्ति वसूल कर सकता है। किन्तु पुनः विक्रय पर यदि विक्रेता को लाभ हुआ हो तो क्रेता उसे पाने का अधिकारी नहीं होता।

इसके विपरीत, यदि माल के पुन: विक्रय की सूचना क्रेता को नहीं दी जाती है, तो विक्रेता हानि की पूर्ति कराने का अधिकारी नहीं होगा। यही नहीं यदि, पुन: विक्रय पर कोई लाभ हुआ हो तो क्रेता उस लाभ को पाने का भी अधिकारी होगा।

 (ii) नए क्रेता को मूल क्रेता के विरुद्ध अच्छा अधिकार-जहाँ अदत्त विक्रेता, जिसने ग्रहणाधिकार अथवा मार्ग में माल रोकने के अधिकार का प्रयोग कर लिया हो, माल को पुन: बेचता है तथा मूल क्रेता को इसकी सूचना न दी गई हो तो नए क्रेता को मूल क्रेता (Original buyer) के विरुद्ध अच्छा अधिकार मिलेगा।

 (iii) मूल अनुबन्ध का परित्यागजहाँ अदत्त विक्रेता, क्रेता द्वारा त्रुटि किए जाने पर स्पष्ट रूप से माल के पुन: विक्रय का अधिकार अपने हाथों में सुरक्षित रखता है और क्रेता के द्वारा त्रुटि किए जाने पर माल का विक्रय करता है, तो विक्रय के मूल अनुबन्ध का परित्याग हो जाता है; किन्तु इससे विक्रेता के क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के अधिकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

 (iv) माल का स्वामित्व हस्तान्तरित न होने पर माल को रोकने का अधिकार-जहाँ माल का स्वामित्व क्रेता के पास हस्तान्तरित न हुआ हो, तो अदत्त विक्रेता को उपरोक्त अधिकारों के अतिरिक्त माल की सुपुर्दगी रोक लेने का अधिकार भी प्राप्त हो जाता है जो कि स्वामित्व क्रेता के पास चले जाने की दशा में उसके ग्रहणाधिकार तथा मार्ग में माल रोके रखने के अधिकार के समान एवं सहविस्तृत (Co-extensive) होता है।

अदत्त विक्रेता के क्रेता के विरुद्ध व्यक्तिगत अधिकार

(Unpaid Seller’s Right Against Buyer Personally)

ये ऐसे अधिकार जो अदत्त विक्रेता द्वारा माल के विरुद्ध अधिकार के अतिरिक्त क्रेता के विरुद्ध उसे व्यक्तिगत रूप से प्राप्त होते हैं, इन अधिकारों का विवरण निम्नलिखित है

(i) मूल्य के लिए वाद का अधिकार (Right to Sue for Price)-() जब विक्रय अनुबन्ध के अन्तर्गत माल का स्वामित्व क्रेता को हस्तान्तरित हो चुका है तथा क्रेता भुगतान करने में लापरवाही करता है या इन्कार करता है तो अनुबन्ध की शर्तों के अनुसार विक्रेता को मूल्य के लिए वाद प्रस्तुत करने का अधिकार है।

() जब विक्रय अनुबन्ध के अन्तर्गत सुपुर्दगी से बिना सम्बन्ध रखे हुए मूल्य के भुगतान के लिए दिन निर्धारित होता है तथा क्रेता लापरवाही करता है तथा मूल्य का भुगतान नहीं करता तो विक्रेता को यह अधिकार है कि वह मूल्य के लिए क्रेता के विरुद्ध वाद प्रस्तुत करे चाहे माल की सुपुर्दगी की गई हो अथवा नहीं।

(ii) माल की अस्वीकृति के कारण क्षतिपूर्ति के लिए वाद (Right to Sue for Damages for non-Acceptance)-वस्तु विक्रय अधिनियम की धारा 56 के अनुसार जब क्रेता माल की स्वीकृति एवं मूल्य के भुगतान में लापरवाही करता है तो माल की ऐसी अस्वीकृति के कारण हर्ड क्षति के लिए अदत्त विक्रेता को वाद प्रस्तुत करने का अधिकार है। ऐसी क्षतियों का अनुमान लगाने के लिए भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 73 के प्रावधानों का प्रयोग किया जाएगा।

(iii) अनुबन्ध भंग पर क्षतिपूर्ति का अधिकार (Right to receive damages on the Repudiation of Contract)-जब क्रेता सुपुर्दगी के पहल अनुबन्ध पूर्ण करने से इन्कार कर देता है। तो अदत्त विक्रेता को यह अधिकार हैं कि वह अनुबन्ध को समाप्त समझे एवं अनुबन्ध भंग होने से हुई क्षतिपूर्ति के लिए वाद प्रस्तुत करे।

(iv) ब्याज के लिए वाद प्रस्तुत करने का अधिकार (Right to Sue for Interest)-अदत्त विक्रता का यह अधिकार है कि मुल्य का भुगतान न होने पर अदत्त राशि पर ब्याज एवं विशेष क्षति के लिए वाद प्रस्तुत करे। ब्याज की गणना माल की सपर्दगी अथवा मल्य के देय होने की तिथि से की जाती है। यदि विक्रेता ने क्रेता से मूल्य प्राप्त कर लिया है तो वह केवल हर्जाने के लिए वाद प्रस्तुत कर सकता है तथा ब्याज के लिए कोई वाद प्रस्तुत नहीं कर सकता।

() जब माल का स्वामित्व हस्तान्तरित नहीं हुआ है

(Where the property in goods has been not passed)

इस स्थिति में अदत्त विक्रेता को, अन्य अधिकारों के अलावा, माल की सुपुर्दगी रोक देने का अधिकार (right to withhold the delivery) प्राप्त है। विक्रेता का यह अधिकार उसके पूर्वाधिकार व माल को मार्ग में रोकने के अधिकार से मिलता-जुलता है तथा उनके साथ सह-विस्तृत है।

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परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 अदत्त विक्रेता कौन होता है? माल के विरुद्ध उसका क्या अधिकार होता है?

Who is unpaid seller? What are his rights against the goods?

2. वस्तु विक्रय अधिनियम के अन्तर्गत कब विक्रेता को अदत्त विक्रेता माना गया है? अदत्त विक्रेता के माल पर ग्रहणाधिकार को समझाइए। यह अधिकार कब समाप्त हो जाता है?

When seller becomes an unpaid seller in the Sale of Goods Act? Discuss seller’s right of lien. When this right ends.

3. अदत्त विक्रेता के मार्ग में माल रोकने के अधिकार का क्या तात्पर्य है? यह अधिकार अदत्त विक्रेता के ग्रहणाधिकार से किस प्रकार भिन्न है?

What do you mean by the stoppage of goods in transit by the unpaid seller? How this right is different from the right of lien?

4. अदत्त विक्रेता के ग्रहणाधिकार एवं मार्ग में माल रोकने के अधिकारों में क्या अन्तर है? अदत्त विक्रेता वस्तुओं का पुनः विक्रय कब कर सकता है?

Distinguish between seller’s lien and his right of stoppage of goods in transit. When can the unpaid seller re-sell the goods?

5. अदत्त विक्रेता कौन होता है? उसके द्वारा विक्रय किए गए माल के सम्बन्ध में उसके क्या अधिकार हैं?

What is meant by the unpaid seller? What are his rights in respect of goods sold by him?

6. माल को मार्ग में रोकने के अधिकार से क्या समझते हैं? विक्रेता के विशेषाधिकार एवं माल को मार्ग में रोकने के अधिकार में अन्तर बताइए। माल को मार्ग में किस प्रकार रोका जा सकता है?

What do you understand by the stoppage of goods in transit? Distinguish a seller’s right of lien from his right of stoppage in transit. How stoppage of goods in transit is affected?

7. अदत्त विक्रेता से क्या आशय है? क्या अदत्त विक्रेता उस माल को जोकि उसके अधिकार में है। रोक सकता है? यदि हाँ, तो किन परिस्थितियों में? वह अपना विशेषाधिकार कब खो देता है?

What is meant by the unpaid seller? Can the unpaid seller detain those goods which are in his possession? If so, under what circumstances? When his right of lien is terminated?

8. अदत्त विक्रेता कौन होता है? क्रेता के प्रति व्यक्तिगत रूप से और माल के प्रति उसके क्या अधिकार हैं?

Who is an unpaid seller? What are his rights against the buyer personally and against the goods?

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 अदत्त विक्रेता का अर्थ स्पष्ट कीजिए।

Explain the meaning of unpaid seller.

2. ग्रहणाधिकार क्या है? यह कब समाप्त हो जाता है?

What is a lien? When it is terminated?

3. किन दशाओं में माल को मार्ग में रोकने के अधिकार का उपयोग किया जा सकता है? स्पष्ट कीजिए।

Under what circumstances the right of stoppage of goods in transit can be exercised? Explain.

4. माल को पुन: बेचने के अधिकार को स्पष्ट कीजिए।

Explain the right of resale of goods.

5. अदत्त विक्रेता के माल के विरुद्ध अधिकार को स्पष्ट कीजिए।

Explain the rights of unpaid seller against goods.

6. माल को मार्ग में रोकने से आप क्या समझते हैं?

What do you understand by the stoppage of Goods in Transit?

7. ग्रहणाधिकार तथा माल को मार्ग में रोकने के अधिकार में अन्तर बताइए।

Distinguish between Right of Lien and Stoppage of goods in Transit.

8. माल को मार्ग में किस प्रकार रोका जा सकता है?

How can be they stoppage of Goods in Transit?

9. क्रेता द्वारा उप-विक्रय या गिरवी का अदत्त विक्रेता के अधिकारों पर क्या प्रभाव पड़ता है?

What is the effect of sub-sale or pledge by the buyer of the goods on the rights of the unpaid seller?

Business Regulatory Framework Unpaid

सही उत्तर चुनिए

(Select the Correct Answer):

1 किन परिस्थितियों में एक विक्रेता अदत्त विक्रेता होगा?

(Under what circumstances a seller becomes an unpaid seller):

(अ) विक्रेता को भुगतान न हुआ हो और मूल्य देय हो (Seller is not paid and the price is due)

(ब) उसे तुरन्त कार्यवाही करने का अधिकार हो (He has the right to take immediate action)

(स) विनिमय साध्य विलेख प्राप्त हुआ लेकिन अनादृत हो गया (Receive the negotiable instrument but dishonoured)

(द) उपरोक्त सभी (All of the above)

2. जब क्रेता को माल का स्वत्व हस्तान्तरित हो जाए तो अदत्त विक्रेता को माल के विरुद्ध क्या अधिकार प्राप्त हैं?

(What are the rights of unpaid seller against the goods when the right of property in goods has been transferred to the buyer):

(अ) माल पर ग्रहणाधिकार (lien against goods)

(ब) मार्ग में माल रोकने का अधिकार (right to stoppage of goods in transit)

(स) पुनर्विक्रय का अधिकार (right to re-sell)

(द) उपरोक्त सभी (All of the above) (1)

3. अनुबन्ध भंग होने पर अदत्त विक्रेता को क्रेता के विरुद्ध क्या अधिकार प्राप्त हैं?

(What are the rights of the unpaid seller against the buyer in case of breach of contract):

(अ) मूल्य के लिए वाद (File suit for payment)

(ब) माल स्वीकार न करने के लिए हजान का वाद (Suit for damages for non-acceptance of goods)

(स) ब्याज के लिए वाद (Suit for interest)

(द) उपरोक्त सभी (All of the above) (1)

4. उचित समय में यदि क्रेता मूल्य का भुगतान नहीं करता तो अदत्त विक्रेता माल का पुन: विक्रय कर सकता है जब-

(If the buyer does not pay the price within a reasonable time then the unpaid seller can re-sell the goods when):

(अ) माल नाशवान प्रकृति का हो (Goods are of perishable nature)

(ब) विक्रेता ने यह अधिकार सुरक्षित रखा हो (Seller has reserved such right)

(स) उपरोक्त दोनों (Both of the above) (/)

(द) उपरोक्त कोई नहीं (None of the above)

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chetansati

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