BCom 1st Year Business Statistics Census Sample Investigation Study Material Notes in Hindi

///

BCom 1st Year Business Statistics Census Sample Investigation Study Material Notes in Hindi

Table of Contents

BCom 1st Year Business  Statistics Census Sample Investigation Study Material Notes in Hindi: Universe Consus Inquiry Sample Inquiry Problems of Sampling Method Essential of Sampling Objective of Sampling Method of Sampling Random Sampling Test of Reliability of Sample Bias in Sampling Theory of Probability Examinations Questions Short Answer Questions Long Questions :

Census Sample Investigation
Census Sample Investigation

BCom 1st Year Business Collection Statistical Data Study Material Notes in Hindi

संगणना तथा न्यादर्श अनुसंधान

(Census and Sample Investigation)

सांख्यिकीय अनुसंधान का आयोजन करते समय अनुसंधानकर्ता को यह भी निर्णय करना पड़ता है कि प्रस्तुत समस्या के लिए अनुसंधान क्षेत्र की प्रत्येक इकाई के बारे में सांख्यिकीय सूचना उपलब्ध करेगा या क्षेत्र की सभी इकाइयों के समग्र में से कुछ प्रतिनिधि इकाइयाँ छाँटकर केवल उनके बारे में ही आवश्यक समंक एकत्रित करेगा। यह पहले ही निश्चय कर लिया जाता है कि समंकों का संकलन समग्र अनुसंधान के अनुसार किया जायेगा या न्यादर्श अनुसंधान के आधार पर।

समग्र या समष्टि

(Universe)

सांख्यिकीय समग्र का तात्पर्य किसी अनुसंधान क्षेत्र की सभी इकाइयों के समुदाय से है जिनमें कुछ समान विशेषतायें हों । विचाराधीन विषय-वस्तु के सम्पूर्ण समूह को ही समग्र कहते हैं। जैसे-यदि किसी विश्वविद्यालय के 10,000 छात्रों की आयु, लम्बाई व मासिक व्यय के सम्बन्ध में अनुसंधान करना हो तो सभी छात्रों का समूह समग्र या समष्टि कहलायेगा। भारत के सूती वस्त्र मिलों में काम करने वाले सभी मजदूर, तत्सम्बन्धी आर्थिक व सामाजिक सर्वेक्षण के लिए सम्रग के तत्व या एकक होंगे। देश में चीनी मिलों की कुल संख्या,एक पुस्तकालय के पुस्तकों की कुल संख्या आदि समग्र या समष्टि के उदाहरण हैं।

समग्र के प्रकार (Types of Universe):- समग्र कई प्रकार के होते हैं। अधिकतर समयों का वर्गीकरण निम्न आधार पर किया जाता है

परिमित एवं अपरिमित समग्र :-परिमित समग्र ऐसे समग्र को कहते हैं जिसमें इकाइयों की संख्या निश्चित है। जैसे-1 April 1991 को भारत की जनसंख्या, देश में 1995 में छपी पुस्तकों की संख्या आदि । अपरिमित समंक में इकाइयों की संख्या अनन्त या अनिश्चित होती है । नवजात शिशु की संख्या, बोले हुये शब्दों की संख्या आदि अपरिमित समग्र है। कभी-कभी समग्र के इकाइयों की संख्या इतनी अधिक होती है कि उसे व्यवहार में अपरिमित मानना ही अधिक उचित होता है । जैसे-आकाश में तारों की संख्या,पेड़ों पर पत्तों की संख्या आदि ।

वास्तविक एवं परिकाल्पनिक समग्र :- वास्तविक समग्र में सभी इकाइयाँ मूल रूप में या यथार्थ रूप में विद्यमान होती हैं। जैसे-भारत में आयकर दाताओं की संख्या। परिकाल्पनिक या सैद्वान्तिक समग्र, वह समग्र हैं। जो मूर्त रूप में विद्यमान नहीं होता और जिसकी इकाइयों की केवल कल्पना ही की जा सकती है। जैसे-सिक्के के उछालने के आधार पर चित्त व पट्ट के प्रत्याशित परिणामों की संख्या लिखकर बना समग्री  सांख्यिकीय सर्वेक्षणों के प्रतिरूप या मॉडल के रूप में इनका प्रयोग होता है।

Business Statistics Census Sample

संगणना अनुसंधान

(Census Inquiry)

जब किसी संख्या से सम्बन्धित पूरे समूह या समग्र की प्रत्येक व्यक्तिगत इकाई का अध्ययन किया जाता है तो इस प्रकार का अनुसंधान सम्पूर्ण गणना या संगणना अनुसंधान कहलायेगा। उदाहरणार्थ-यदि किसी कॉलेज के 4000 विद्यार्थियों में से प्रत्येक विद्यार्थी के मासिक व्यय के बारे में आँकड़े एकत्रित किये जायें तो यह संगण्ना अनुसंधान कहलायेगा। जनगणना तथा उत्पादन संगणना का आयोजन संगणना अनुसंधान के आधार पर ही किया जाता है।

उपयुक्ततासंगणना प्रणाली उन अनुसंधानों के लिए उपयुक्त है जिनका क्षेत्र सीमित हो, जिनमें विविध गुणों वाली इकाइयाँ हों,प्रत्येक इकाई का गहन अध्ययन करना हो तथा जहाँ शुद्धता की अत्यधिक मात्रा अपाक्षत

हो।

गुण (Merits)-संगणना अनुसंधान में निम्न गुण हैं।

(i) अधिक विश्वसनीयता – संगणना विधि द्वारा प्राप्त समंकों में अत्यधिक शुद्धता और विश्वसनीयता वाह,क्योंकि इस रीति में समग्र के प्रत्येक भाग का व्यक्तिगत रूप से गहन निरीक्षण किया जाता है।

(ii) विस्तृत सचना:- संगणना अनसंधान में समय की प्रत्येक इकाई के बारे में अनेक बातों का पता चला जाता है। उदाहरणार्थ-जनगणना में केवल व्यक्तियों की कुल संख्या ही नहीं ज्ञात होती बल्कि उनकी आय । वैवाहिक स्थिति,व्यवसाय,आय इत्यादि के सम्बन्ध में भी जानकारी प्राप्त हो जाती है।

(iii) उपयुक्तता:- यह रीति सीमित क्षेत्र में तथा विविध विशेषताओं वाले समग्र के लिए उपयुक्त है। दोष (Demerits) – इस प्रणाली के निम्न दोष हैं

(i) अधिक व्यय:- संगणना प्रणाली में बहुत खर्च होता है। इसका प्रयोग अधिकतर जनगणना, उत्पादन संगणना आदि के लिए किया जाता है और इन कार्यों के लिए अलग विभाग स्थापित करने पड़ते हैं।

(ii) अधिक समय और परिश्रम :- इस प्रकार के अनुसंधान में समय भी अधिक लग जाता है और परिश्रम भी बहुत करना पड़ता है।

(iii) अनेक परिस्थितियों में असम्भव :- अनेक परिस्थितियों में संगणना अनुसंधान सम्भव ही नहीं होता। उदाहरणार्थ-यदि समग्र अनन्त हों, क्षेत्र की प्रत्येक इकाई से सम्पर्क न किया जा सके या सभी इकाइयों की जाँच करने से वे समाप्त ही हो जायें तो संगणना सम्पूर्ण नहीं की जा सकती।

Business Statistics Census Sample

निदर्शन अनुसंधान

(Sample Inquiry)

निदर्शन अनुसंधान उस अनुसंधान को कहते हैं जिनके अनुसार समग्र में से किसी आधार पर कुछ प्रतिनिधि इकाइयाँ चुन ली जाती हैं और उन चुनी हुई इकाइयों के गहन अध्ययन से निष्कर्ष निकाले जाते हैं। समंक में छाँटी हुई इकाइयों को प्रतिनिधि समंक या निदर्शन कहा जाता है। वास्तव में न्यादर्श समग्र की इकाइयों का वह अंश है जो पूर्ण समग्र के अध्ययन हेतु चुना जाता है। यदि किसी महाविद्यालय के 4000 विधार्थियों में से 400 विद्यार्थी छाँट लिये जाये और उनके मासिक व्यय का अध्ययन किया जाय तो वह निदर्शन अनुसंधान होगा। उन 400 विद्यार्थियों के व्यय के न्यादर्श अध्ययन के आधार पर 4000 विद्यार्थियों के व्यय के बारे में निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। यदि न्यादर्श यथेष्ठ है और समुचित रीति से छाँटा गया है तो उसके परिणाम पर्याप्त मात्रा में समग्र पर लागू होंगे।

वर्तमान युग में निदर्शन सांख्यिकीय अनुसंधान की बहुत महत्वपूर्ण व लोकप्रिय रीति है। अधिकांश क्षेत्रों में इस पद्धति का ही प्रयोग किया जाता है । यहाँ तक की हम अपने दैनिक जीवन में भी किसी वस्तु को खरीदने से पहले थोड़ा सा नमूना देखकर पूरी मात्रा की किस्म का सही-सही अनुमान लगा लेते हैं। उदाहरणार्थ-गेहू, घी कपड़ा आदि वस्तुएँ अधिक मात्रा में खरीदने से पहले उसका नमूना देखकर उसकी किस्म की जांच कर ली जाती है। स्नेडेकार के अनुसार-“केवल कुछ ही पौण्ड कोयले की जांच करने से प्राप्त साक्ष्य के आधार पर एक गाड़ी कोयला स्वीकृत या अस्वीकृत कर दिया जाता है । केवल एक बूंद रक्त की जाँच करके चिकित्सक रोगी के रक्त के बारे में निष्कर्ष निकाल लेता है। न्यादर्श कुछ ही इकाइयों के निरीक्षण द्वारा बड़ी मात्राओं के बारे में जानकारी प्राप्त करने की युक्तियाँ हैं।” वस्तुतः एक छोटे न्यादर्श के आधार पर हम पूरे क्षेत्र के बारे में निर्णय कर सकते हैं। यही नहीं निदर्शन सिद्धान्त के द्वारा अनुमानों में शुद्धता की परख की जा सकती है।

गुण (Merits)-न्यादर्श अनुसंधान का महत्व उसके निम्न गुण के कारण है

(i) बचत:-निदर्शन रीति में धन, समय वह श्रम की बचत होती है क्योकि इसमें समग्र की कुछ छाँटी हुई। इकाइयों का ही प्रयोग किया जाता है।

(ii) विस्तत जांच:- समंकों की संख्या कम होने के कारण उसकी अधिक विस्तृत जाँच की जा सकती है।

(iii) विश्वसनीयता:- यदि न्यादर्श समुचित आधार पर यथेष्ठ मात्रा में छाँटा जाये तो न्यादर्श अनसंधान के परिणाम लगभग वहीं होंगे जो संगणना अनुसंधान के द्वारा प्राप्त होते हैं।

(iv) उपयुक्तता:-सामाजिक, आर्थिक व व्यापारिक समस्याओं के अध्ययन के लिए प्रतिचयन प्रणाली ही उपयक्त है. क्योंकि इसमें समय कम लगता है । इसके अतिरिक्त यदि समंक अनन्त या अति विशाल हो या उसमें सभी इकाइयों को परखने से उसका विनाश हो जाये तो निदर्शन अनुसंधान ही उपयुक्त विधि होती है।।

दोष (Demerits) :- निदर्शन प्रणाली में अधिक शुद्धता काअभाव रहता है । जहाँ इकाइयाँ सजातीय न हों वहां न्यादर्श रीति उपयुक्त नहीं होगी। यदि न्यादर्श निकालने की रीति निष्पक्ष न हो तो परिणाम भ्रमात्मक निकलते हैं। इसके अतिरिक्त प्रतिनिधि न्यादर्श निकालने के लिए विशिष्ट ज्ञान की आवश्यकता होती है ।

उपयुक्ततानिम्न परिस्थितियों में संगणना रीति की तुलना में प्रतिचयन प्रणाली का प्रयोग उपयुक्त है।

विशाल क्षेत्र तथा कम शुद्धता -जब अनुसंधान का क्षेत्र बहुत विस्तृत हो और उच्च स्तर की शुद्धता अपेक्षित न हो तो प्रतिदर्श का प्रयोग उचित होता है। उदाहरणार्थ-यदि उपभोक्ता की रुचि ज्ञात करनी हो और वे विशाल क्षेत्र में दूर-दूर तक फैले हों तो प्रत्येक उपभोक्ता से सम्पर्क स्थापित करके संगणना जांच करना असम्भत है। ऐसी स्थिति में प्रतिदर्श विधि ही उपयुक्त है।

(d) अनन्त समग्रः यदि समग्र की इकाइयाँ अनन्त हों तो प्रतिदर्श रीति वांछनीय है। उदाहरणार्थ-नवजात शिशु का औसत भार ज्ञात करने में प्रतिचयन विधि ही अपनानी पड़ेगी क्योंकि शिशुओं का जन्म तो अनन्तकाल तक चलता रहेगा औरसभी शिशुओं के बारे में सूचना प्राप्त करना असम्भव होगा।

(iii) समग्र की समाप्ति या विनाश-कुछ क्षेत्रों में यदि समग्र की प्रत्येक इकाई की जाँच की जाये तो सभी इकाइयाँ नष्ट हो जाती हैं। उदाहरणार्थ-यदि किसी खाद्य वस्तु को चखकर उसके स्वाद का पता लगाना हो तो यह कार्य केवल उसके एक भाग की परख करके ही किया जाता है, क्योंकि पूरी वस्तु को चखने से वह समाप्त हो जायेगी। कपड़े की तनाव शक्ति व दृढ़ता की जांच करने के लिए उसके थोड़े से अंश को ही फाड़ कर देखा जाता है। दियासलाई या बल्ब आदि की किस्म की जांच करने के लिए यदि सभी इकाइयों की परख की जाये तो वे सभी नष्ट हो जायेंगी,अत: उनमें से कुछ को चुनकर जाँच की जाती है।

(iv) संगणना जाँच का असम्भव होना-कुछ क्षेत्रों में संगणना द्वारा जाँच असम्भव होती है। उदाहरणार्थ-यदि यह ज्ञात करना हो कि भारत की कोयलों की खोनों में कुल कितना और किस श्रेणी का कोयला है तो संगना रीति द्वारा सभी खानों को खोदकर ही यह पता लगाया जा सकता है जो कि असम्भव तथा अवांछनीय है। यहाँ न्यादर्श अनुसंधान ही उपयुक्त होगा।

(v) एकरूपता:-न्यादर्श प्रणाली तभी अपनानी चाहिए जब समग्र की सभी इकाइयों में एकरूपता या सजातीयता का तत्व पाया जाता हो

संगणना तथा न्यादर्श प्रणालियों में अन्तर :- संगणना तथा निदर्शन अनुसंधान में बहुत अन्तर है। प्रथम संगणना रीति में समग्र की प्रत्येक इकाई के बारे में सूचना प्राप्त की जाती है जबकि न्यादर्श रीति में समग्र की कुछ चुनी हुयी प्रतिनिधि इकाइयों के विषय में आँकड़े उपलब्ध किये जाते हैं। दूसरे,संगणना अनुसंधान में धन, समय और श्रम का अधिक व्यय होता है, जबकि न्यादर्श अनुसंधान में इन सबकी बचत होती है। तीसरे, संगणना रीति सीमित क्षेत्र में अधिक यथार्थ समंक प्राप्त करने के लिए प्रयोग की जाती है। इसके विपरीत, विशाल क्षेत्र में समग्र उपलब्ध करने के लिए न्यादर्श विधि उपयुक्त है। चौथे, विविध गुणों वाली विजातीय इकाइयों के समग्र की जांच सम्पूर्ण गणना द्वारा की जाती है जबकि सजातीय व एक-सी इकाइयों वाले समग्र का अध्ययन अधिकतर न्यादर्श निकालकर ही किया जाता है। पाँचवे, ऐसे क्षेत्रों में जहाँ प्रत्येक इकाई का विस्तृत अध्ययन करना आवश्यक हो संगणना रीति ही उपयुक्त है, जैसे-जनगणना। इसके विपरीत, यदि समग्र अनन्त या अत्यन्त विशाल हो या जब सम्पूर्ण गणना रीति अपनाने से समग्र की सभी इकाइयाँ नष्ट हो जायें तब संगणना रीति नहीं अपनायी जा सकती। आजकल न्यादर्श रीति अत्यन्त लोकप्रिय है। यहाँ तक की जनगणना के परिणामों की शुद्धता की परख करने के लिए भी न्यादर्श जाँच की जाती है।

Business Statistics Census Sample

न्यादर्श प्रणाली की समस्यायें

(Problems of Sampling Method)

न्यादर्श के आधार पर निकाले गये निष्कर्ष सही शुद्ध और विश्वसनीय होने के लिये यह आवश्यक है कि न्यादर्श से सम्बन्धित समस्याओं पर विचार कर लिया जाये,जो निम्नलिखित हैं

A आकार (Size of Sample)-निदर्शन अनुसंधान में न्यादर्श के आकार का निर्धारण एक महत्वपूर्ण समस्या है क्योंकि इसके आकार का सीधा सम्बन्ध अनुसंधान की शुद्धता, प्रशासन व लागत से है ।

अतः एक श्रेष्ठ न्यादर्श के लिये उसका पर्याप्त आकार आवश्यक है। आकार की समस्या पर व्यक्तियों के भिन्न-भिन्न विचार हैं । कुछ व्यक्तियों के मतानुसार न्यादर्श जितना बड़ा होगा वह उतना ही अधिक विश्वसनीय एवं उपयुक्त होगा। परन्तु यह आवश्यक नहीं कि प्रत्येक दशा में यह विचार सही हो बल्कि न्यादर्श बड़ा होने के साथ-साथ उसमें अन्य बातों का होना भी आवश्यक है जैसे न्यादर्श में समग्र का उचित प्रतिनिधित्व हो, पर्याप्त मात्रा में हो और न्यादर्श लेने की उचित रीति अपनाई गई हो। इस सम्बन्ध में क्राक्सटन तथा काउडेन का मत सही। प्रतीत होता है-“वास्तव में एक न्यादर्श में केवल आकार से ही प्रतिनिधित्व का आश्वासन नहीं होता। एक बड़े परन्तु दूषित रीति द्वारा चुने हुए न्यादर्श की तुलना में एक दैव या स्तरित न्यादर्श के कहीं अधिक उत्तम होने की सम्भावना होती है।”

इस तथ्य को इस रूप में कहा जा सकता है। कि, “एक न्यादर्श बड़ा होते हुए भी व्यर्थ हो सकता है क्योंकि वह दैव निदर्शन पर आधारित नहीं है, अथवा दैव निदर्शन पर आधारित होते हुए भी वह अविश्वसनीय हो सकता है क्योंकि वह छोटा है।” इस प्रकार एक आदर्श न्यादर्श का आकार न तो बहुत छोटा और न ही बहुत बड़ा होना चाहिये वरन् इसे अनुसंधान के उद्देश्य एवं प्रकृति के अनुसार होना चाहिये।

यह भी उल्लेखनीय है कि न्यादर्श के आकार व निदर्शन विभ्रम में विपरीत सम्बन्ध होता है। करलिंजर के मतानुसार, “न्यादर्श का आकार जितना अधिक होगा विभ्रम की मात्रा उतनी ही कम होगी तथा न्यादर्श का आकार जितना कम होगा विभ्रम की मात्रा उतनी ही अधिक होगी।”

न्यादर्श के आकार पर निम्न बातों का प्रभाव पड़ता है

1 अध्ययन की प्रकृति-यदि अनुसंधान की प्रकृति गहन अध्ययन करने की है तो न्यादर्श का आकार बड़ा होना चाहिये।

2. शुद्धता का स्तरयदि अनुसंधान में उच्च कोटि की शुद्धता अपेक्षित है तो न्यादर्श का आकार बड़ा होना चाहिये।

3. समग्री का सजातीय व विजातीय होना-सजातीय इकाइयों वाले समग्र में छोटे आकार का न्यादर्श और विजातीय इकाइयों वाले समग्र में बड़े आकार का न्यादर्श ही उपयुक्त होता है।

4. निदर्शन विधिनिदर्शन विधि भी न्यादर्श के आकार को निर्धारित करने के लिये आवश्यक होती है। दैव निदर्शन रीति में न्यादर्श का आकार बड़ा होना चाहिये जबकि मिश्रित या स्तरित विधि में छोटे आकार के न्यादर्श से भी विश्वसनीय परिणाम निकाले जा सकते हैं।

(B) निदर्शन में आभिनाति (Bias of Sampling)-न्यादी को लेने में किसी न किसी रूप म आमनात अवश्य प्रभावित करती है। अभिनति अनजाने में हो सकती हैं या जानबझकर । इसके प्रभाव से निष्कर्ष निष्पक्ष नहीं कहे जा सकते । इसलिये इससे सतर्क रहने की आवश्यकता है।

(C) न्यादर्श की विश्वसनीयता की जाँच-निष्कर्ष निकालने से पहले न्यादर्श की विश्वसनीयता की जाँच अवश्य कर लेनी चाहिये । न्यादर्श कैसा भी हो अर्थात् बड़ा या छोटा नियमित या अनियमित प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त किया गया हो या देव निदर्शन विधि द्वारा, परन्तु उसका विश्वसनीय होना बहत आवश्यक है। न्यादर्श विश्वसनीय न होने पर समय,धन व श्रम का अपव्यय तो होगा ही,निष्कर्ष भी भ्रमात्मक होंगे। अत:न्यादर्श की। शुद्धता एवं सत्यता की जांच अवश्य करनी चाहिये।

Business Statistics Census Sample

न्यादर्श के आवश्यक तत्व

(Essentials of Sampling)

निष्पक्ष व यथार्थ निष्कर्ष निकालने के लिए निदर्शन में निम्न बातों का होना आवश्यक है-

() प्रतिनिधित्व (Representativeness)-निदर्शन ऐसा होना चाहिए जो समग्र की सभी विशेषताओं का पूर्ण प्रतिनिधित्व करे। यह तभी सम्भव हो सकता है जब समग्र की प्रत्येक इकाई को निदर्शन में शामिल होने का समान अवसर प्राप्त हो।

() स्वतन्त्रता (Independence)- समग्र की सभी इकाइयाँ आपस में स्वतन्त्र होनी चाहियें अर्थात किसी इकाई या पद का निदर्शन में शामिल होना समग्र की किसी अन्य इकाई के सम्मिलित होने पर निर्भर नहीं होना चाहिए।

() सजातीयता (Homogeneity)- यदि एक ही समय में से दो या अधिक निदर्शन छाँटे जायें तो उनमें परस्पर सजातीयता होनी चाहिए। उनमें होने वाले विचरण निर्धारित सीमाओं में होने चाहिये।

() पर्याप्तता (Adequacy)-निदर्शन पर्याप्त होना चाहिए। उसमें जितनी अधिक इकाइयों का समावेश होगा उतनी ही अधिक शुद्धता होगी।

Business Statistics Census Sample

निदर्शन का उद्देश्य

(Objects of Sampling)

निदर्शन का अध्ययन निम्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाता है

(i) समग्र के सम्बन्ध में सूचना प्राप्त करना :-निदर्शन का अध्ययन करके पूरे समग्र के बारे में कम से कम समय में और कम खर्च से अधिकाधिक यथार्थ सूचना उपलब्ध करना निदर्शन का प्रमुख उद्देश्य है। समग्र की मूलभूत विशेषताओं का पता लगाने के लिए न्यादर्श अनुसंधान किये जाते हैं।

(ii) समग्र स्थिरांकों का पता लगाना-न्यादर्श इकाइयों की सांख्यिकीय माप जैसे-न्यादर्श माध्य, न्यादर्श प्रमाप विचलन आदि की सहायता से पूरे समष्टि के अभिलक्षणों को ज्ञात किया जा सकता है। समग्र के साख्यिकीय माप स्थिरांक या प्राचल कहलाते हैं। प्रतिदर्शन की सहायता से प्राचल का सर्वोतकृष्ट अनुमान लगाना प्रतिचयन का महत्वपूर्ण उद्देश्य है।

(iii) विश्वसनीयता की जाँच करना :- एक ही समग्र से चुने गये अनेक दैव प्रतिदर्शों के सांख्यिकीय माप आपस में भिन्न होते हैं और उनका समष्टि के सांख्यिकीय माप से भी अन्तर होता है । इन अन्तरों की जांच करना निदर्शन का उद्देश्य है । ये अन्तर या तो केवल निदर्शन के उच्चावचनों के कारण हो सकते हैं या अन्य कारणों से हो सकते हैं निदर्शन सिद्धान्त के अर्न्तगत अन्तरों की सार्थकता की परख की जाती है।

(iv) संगणना अनुसंधान की सत्यता की जाँच करना:-संगणना अनुसंधान से उपलब्ध परिणामों की सत्यता की जाँच करने के उद्देश्य से भी न्यादर्श अनुसंधान किये जाते हैं । लगभग सभी देशों में जनगणना के परिणामों का परीक्षण करने के लिए जनगणना के पश्चात् न्यादर्श आधार पर अध्ययनआयोजित किये जाते हैं।

निदर्शन अथवा प्रतिचयन की रीतियाँ

(Methods of Sampling)

निदर्शन की विभिन्न रीतियों को दो मुख्य वर्गों में बाँटा जा सकता है (1) दैव निदर्शन तथा (II) अदैव निदर्शन । इनके अन्तर्गत आने वाली विभिन्न रीतियों को अग्र चार्ट में दर्शाया गया है

 (A) दैव निदर्शन

(Randam Sampling)

दैव निदर्शन को अवसर निदर्शन‘ (Chance Sampling) अथवा सम्भावित निदर्शन (Probability Sampling) भी कहा जाता है। निदर्शन की इस रीति में न्यादर्श (Sample) में आने वाली सभी इकाइयाँ संयोगवश चुनी जाती हैं क्योंकि समग्र की प्रत्येक इकाई को न्यादर्श में आने का समान अवसर होता है। दैव निदर्शन की विभिन्न रीतियाँ निम्न प्रकार हैं

(1) सरल देव निदर्शन (Simple or Unrestricted Randam Sampling)-न्यादर्श निकालने की यह सबसे अच्छी विधि है क्योंकि इसमें पक्षपात का प्रभाव नहीं होता वरन् इकाइयाँ अवसर या सम्भावना के आधार पर छाँटी जाती हैं। इस रीति के अनुसार समग्र में से इकाइयाँ इस प्रकार छाँटी जाती हैं कि प्रत्येक इकाई के न्यादर्श में सम्मिलित होने की बराबर सम्भावना होती हैं। न्यादर्श में कौन-सी इकाई शामिल की जायेगी और कौन-सी नहीं, इस बात का निर्णय अनुसंधानकर्ता स्वेच्छानुसार नहीं करता बल्कि न्यादर्श इकाइयाँ चुनने की क्रिया पूर्णरूप से दैव पर छोड़ दी जाती है । इकाइयों का चयन सम-सम्भावित होता है।

सरल दैव निदर्शन के अनुसार न्यादर्श चुनने की निम्न रीतियां हैं:

() लॉटरी रीति (Lottery Method)- इस रीति के अनुसार समग्र के सभी इकाइयों की पर्चियाँ या गोलियाँ बनाकर उनमें से किसी निष्पक्ष व्यक्ति द्वारा या स्वंय आंखें बन्द करके उतनी पर्चियाँ उठा ली जाती हैं जितनी इकाइयाँ न्यादर्श में शामिल करनी हों। यह आवश्यक है कि सभी पर्चियाँ या गोलियाँ बिल्कुल एक सी बनाई जायें। छाँटने से पहले उन्हें अच्छी तरह से हिलाकर मिला लेना चाहिए और निष्पक्ष व्यक्ति से पर्चियाँ निकलवानी चाहिये।

() ढोल घुमाकर (By Rotating the Drum):- इस रीति के अनुसार एक ढोल में समान आकार के लोहे या लकड़ी के गोल टुकड़े होते हैं, जिन पर 0, 1, 2,9 आदि अंक लिखे रहते हैं। ढोल को हाथ से या बिजली से घुमाकर उन अंकों को अच्छी तरह मिला-जुला लिया जाता है । फिर किसी निष्पक्ष व्यक्ति द्वारा एक-एक निकाल लिया जाता है और उसके अंक को अलग लिख लिया जाता है । इकाई.दहाई सैकडा आदि के लिए अलग-अलग टुकड़े प्रयोग किये जाते हैं।

(स) टिपेट की देव संख्यायें (Tippett’s Random Numbers)-टिप्पेट ने अनेक देशों की जसव्या रिपोर्ट के आधार पर चार-चार अंकों वाली 10,400 संख्याओं की सारिणी तैयार की है। इनमें से प्रथम 24 संख्यायें इस प्रकार हैं

यदि समय की इकाइयाँ 100 से कम हो तो चार अंकों वाले दैव अंकों को दो-दो अंकों में लिख दिया जाएगा। फिर इन दो-दो अंकों की क्रम संख्या वाली इकाइयाँ चुन ली जायेंगी। उदाहरणार्थ-60 इकाइयों में से चिनने के लिए 29, 52, 39,31.41 और 15 क्रम संख्याओं वाली इकाइयाँ न्यादर्श में शामिल कर ली जायेंगी।

फिशर एवं येट्स (Fisher and Yates) तथा कैण्डाल एवं स्मिथ (Kendall and Smith) ने भी अलग-अलग दैव-संख्याओं की सारिणियों की रचना की है।

लाभ-सरल दैव निदर्शन के निम्नलिखित लाभ हैं

(i) पक्षपात रहित रीति:-दैव न्यादर्श छाँटने में व्यक्तिगत पूर्वधारणाओं या पक्षपात का कोई प्रभाव नहीं पडता क्योंकि इकाइयाँ अवसर या सम्भावना के आधार पर चुनी जाती हैं । सभी इकाइयों के चने जाने का समान अवसर होता है।

(ii) बचत:- इस रीति में समय,धन व श्रम की बचत होती है।

(iii) समग्री का वास्तविक दिग्दर्शन:-इस रीति का एक विशेष लाभ यह है कि इसमें प्रतिदर्श इकाइयों द्वारा समग्र की वास्तविक स्थिति का समुचित और स्पष्ट दिग्दर्शन हो जाता है । यही कारण है कि दैव न्यादर्श समग्र का यथोचित प्रतिनिधि माना जाता है । वास्तव में यह समग्र का एक संक्षिप्त चित्र है।

(iv) निदर्शन विभ्रम का माप :- इस प्रणाली में निदर्शन विभ्रमों का माप किया जा सकता है । सुनिश्चित सीमाओं के अन्तर्गत आने वाले न्यादर्श परिणामों को यथार्थ माना जाता है। इसके अतिरिक्त विभिन्न दैव न्यादर्शों की शुद्धता परखी जा सकती है।

सीमायें -दैव निदर्शन प्रणाली की निम्नलिखित परिसीमायें हैं:

(i) यदि न्यादर्श का आकार छोटा है या समग्र में विविध प्रकार की इकाइयाँ हैं तो दैव न्यादर्श समग्र का यथोचित रूप से प्रतिनिधित्व नहीं करता।

(ii) जब समग्र बहुत छोटा हो या कुछ इकाइयाँ इतनी महत्वपूर्ण हों कि उनको न्यादर्श में शामिल करना अनिवार्य हो तो यह रीति उपयुक्त नहीं होती।

(iii) समग्र की इकाइयाँ एक दूसरे से स्वतन्त्र होनी चाहिये।

मान्यतायें :- दैव निदर्शन प्रणाली की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि इकाइयों का चयन निष्पक्षता से हो, प्रत्येक इकाई के न्यादर्श में शामिल होने का बराबर अवसर हो, विभिन्न इकाइयों का चयन परस्पर स्वतन्त्र हो, तथा चुनाव के बाद न्यादर्श इकाइयों में परिवर्तन न किया जायें।

सविचार निदर्शन और दैव निदर्शन में बहुत अन्तर है। प्रथम, सविचार निदर्शन में जानबूझकर स्वेच्छा से इकाइयाँ छाँटी जाती हैं, जबकि दैव निदर्शन में इकाइयाँ दैव के आधार परचुनी जाती हैं । दूसरे,सविचार निदर्शन पक्षपात से अत्यधिक प्रभावित है. जबकि दैव निदर्शन पक्षपात रहित है। तीसरे. सविचार निदर्शन में एक ही। दिशाकी संचयी विभ्रम होती है । इसके विपरीत दैव निदर्शन की विभ्रम सम और विषम होने के कारण क्षतिपूरक प्रकृति की होती है और प्राथमिकता सिद्धान्त के आधार पर उनका अनुमान लगाया जा सकता है । चौथे, सविचार निदर्शन ऐसे अनुसंधान के लिए उपयुक्त है जहाँ समग्री की एक ही प्रकार की इकाइयाँ हों तथा कुछ इकाइयाँ इतनी महत्वपूर्ण हों कि उनको न्यादर्श में शामिल करना आवश्यक हो। इसके विपरीत दैव-निदर्शन प्रणाली अधिकांश क्षेत्रों में उपयुक्त है । यह रीति आजकल बहुत लोकप्रिय है।

(II) प्रतिबाधित या सीमित दैव निदर्शन (Restricted Random Sampling) यदि देव निदशन का। कुछ प्रतिबन्धों या सीमाओं के साथ अपनाया जाये तो उसे प्रतिबाधित दैव निदर्शन कहा जाता है । इस वर्ग के अन्तर्गत अग्र रीतियों को रखा जाता है

(1) स्तारत या मिश्रित निदर्शन (Stratified or Mixed Sampling)- यह रीति उपर्युक्त दोनों रीतियों। “मण ह तथा विविध गणों वाले समग्र से न्यादर्श छाँटने के लिए उपयुक्त है। इस रीति के अनसार पहले समग्र को उसकी विविध विशेषता के आधार पर सविचार निदर्शन द्वारा अनेक सजातीय खण्डों या स्तरों में बाँट दिया जाता है। तत्पश्चात उन स्तरों में से अलग-अलग दैव निदर्शन रीति द्वारा इकाइयाँ छाँट ली जाती हैं। उदाहरणार्थ-किसी कारखाने में 5000 मजदर कार्यरत है तो पहले उन्हें निश्चित विशेषताओं के आधार पर विभिन्न वर्गों में बाँटा जायेगा और फिर प्रत्येक वर्ग में आनुपातिक रूप से दैव न्यादर्श छाँट लिया जायेगा। माना। चार वर्गों में 1000, 500, 3200 और 300 मजदूर हैं और 20% न्यादर्श निकालना है तो चारों वर्गों में से दैव आधार पर क्रमश : 200, 100, 640 और 60 मजदूर चुन लिये जायेंगे। यह आनुपातिक स्तरित चयन होगा।

उक्त उदाहरण में यदि चारों वर्गों में से बराबर संख्या में न्यादर्श इकाइयाँ चुनी जायें तो वह गैर आनुपातिक चयन कहलायेगा।

इस रीति में सविचार चयन और दैव चयन दोनों ही के गुणों का समावेश है। विविध विशेषताओं वाले समग्र में से न्यादर्श छाँटने के लिए यह रीति अधिक प्रतिनिधित्व करने वाली और अधिक परिशुद्ध है।

(2) व्यवस्थित दैव निदर्शन (Systmatic Random Sampling)-इस रीति के अनुसार सर्वप्रथम समग्र की सभी इकाइयों को एक व्यवस्थित क्रम जैसे वर्णात्मक (alphabatical), संख्यात्मक (Numerical), समय क्रम (chronological) अथवा भौगोलिक (geographical) आधार पर क्रमबद्ध करके उनमें से सुविधानुसार आवश्यक संख्या में न्यादर्श पद चुन लिए जाते हैं। उदाहरणार्थ-यदि 50 विद्यार्थियों में से 10 चुनने हों तो संख्यात्मक आधार पर क्रमबद्ध करके प्रत्येक पाँचवें विद्यार्थी को न्यादर्श में शामिल कर लिया जाता है। प्रथम संख्या या तो 5 हो सकती है या इससे कम जैसे 4,यदि 5 है तो 5, 10, 15, 20, … 50 क्रम संख्या वाले विद्यार्थी को शामिल किया जायेगा। यदि 4 है तो 4,9, 14, 19,… 49 आदि क्रम संख्या वाले विद्यार्थी न्यादर्श में सम्मिलित होंगे। इस रीति को व्यवस्थित दैव निदर्शन कहते हैं।

(3) बहुस्तरीय दैव निदर्शन (Multi-stage Random Sampling)-इस रीति में न्यादर्श चुनने का कार्य अनेक स्तरों में किया जाता है। प्रत्येक स्तर के दैव-चयन न्यादर्श द्वारा इकाइयाँ छाँटी जाती हैं। उदाहरणार्थ-उत्तर प्रदेश में गेहूँ की प्रति एकड़ उपज ज्ञात करने के लिए यदि इस रीति द्वारा न्यादर्श चुनकर सर्वेक्षण किया जाये तो पहले दैव आधार पर कुछ (मान लिया 5)जिले छाँट लिये जायेंगे फिर उन पाँच जिलों में से दस-दस गाँव छाँट लिये जायेंगे। फिर 50 गाँवों में से दो-दो खेत चुन लिये जायेंगे। इस प्रकार कुल 100 छाँटे हुए खेतों के गेहूँ की प्रति एकड़ उपज का यथोचित अनुमान लगाया जा सकता है।

(4) समूह निदर्शन (Cluster Sampling)-इस रीति में समग्र को विभिन्न समूहों में बाँट लिया जाता है और प्रत्येक समूह में से दैव निदर्शन रीति से इकाइयों का चुनाव करके न्यादर्श बनाया जाता है। औद्योगिक उत्पादनों में इस विधि का प्रयोग काफी उपयोगी रहता है । उदाहरण के लिए, एक कारखाने में प्रतिदिन 1,000 ताले बनते हैं और हम उनमें से 10 तालों की विस्तृत जाँच करना चाहते हैं तो बने हुये तालों में से 100-100 तालों के ढेर बना देंगे और प्रत्येक ढेर में से दैव निदर्शन द्वारा एक-एक ताला निकालकर न्यादर्श बना लेंगे।

(II) अदैव निदर्शन या गेरदैव निदर्शन (Non-Ramdom Sampling)

() सविचार निदर्शन या सोद्देश्य निदर्शन (Deliberate or Purposive Sampling)- इस रीति के अनुसार अनुसंधानकर्ता सम्पूर्ण क्षेत्र में से अपनी इच्छानुसार ऐसी इकाइयाँ चुन लेते हैं जो उनके विचार में समग्र का प्रतिनिधित्व करती हैं । न्यादर्श में किन पदों को शामिल करना है यह पूर्णतया छाँटने वाले की स्वेच्छा पर निर्भर होता है । इस प्रकार छाँटी हुई न्यादर्श इकाइयों के गहन अध्ययन से प्राप्त परिणामों के आधार पर पूरे समग्र के बारे में निष्कर्ष निकाल लेते हैं। उदाहरणार्थ-यदि औद्योगिक मजदूरों के रहन-सहन की स्थिति के बारे में न्यादर्श । अनसंधान करना हो तो सविचार निदर्शन रीति के अनुसार अनसंधानकर्ता ऐसे मजदरों को न्यादर्श में शामिल करेगा जो उसके विचार में सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व करते हों।

गुणदोषसविचार निदर्शन रीति अत्यन्त सरल है और ऐसे क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है जिनमें लगभग एक-सी। इकाइयाँ हो या जहाँ कुछ इकाइयाँ इतनी महत्वपूर्ण हों कि उनको शामिल करना आवश्यक हो  इस प्रणाली का। प्रमुख दोष यह है कि इसके अनुसार न्यादर्श छाँटने में अनुसंधानकर्ता की व्यक्तिगत धारणाओं और पक्षपात का परा प्रभाव पड़ जाता है। जिससे परिणाम एकांगी और अशुद्ध हो जाते हैं। यदि अनुसंधानकर्ता पहले से ही यह धारणा रखता है कि मजदूरों की स्थिति अच्छी है तो वह जानबूझकर ऐसे परिवारों को ही न्यादर्श में शामिल करेगा जिनकी आर्थिक स्थिति उत्तम होगी,अतः इस प्रणाली की सफलता (पूर्णरूप) से न्यादर्श छाँटने वाले की इमानदारी, ज्ञान अनुभव और निष्पक्षता पर निर्भर है।

() अभ्यश निदर्शन (Quota Sampling)-इसके अनुसार समग्र को कई भागों में बाँटा जाता है और पाणकों को यह निर्देश दिया जाता है कि उन्हें किस भाग में से कितनी इकाइयों का चुनाव करना है। अन्त में प्रत्येक भाग में से प्रगणकों द्वारा अभ्यंश इकाइयों का चुनाव अपनी इच्छानुसार कर लिया जाता है। यह प्रणाली प्रगणकों की ईमानदारी, योग्यता व निष्पक्षता पर निर्भर है।

() सुविधानुसार निदर्शन (Converniene Sampling)-इस रीति में सांख्यिक अपनी सविधा के अनसार न्यादर्श इकाइयाँ चुन लेता है, जैसे-टेलीफोन निर्देशिका में से नाम छाँट लेना, विश्वविद्यालय विवरण-पत्रिका में प्रकाशित अध्यापकों की सूची में से न्यादर्श लेना, आदि । यह रीति सरल है किन्तु अत्यन्त अवैज्ञानिक और अविश्वसनीय है।

उपयुक्त चयन रीति का चुनाव समग्र की प्रकृति,इकाइयों की विशेषता,समग्र का आकार,शुद्धता की मात्रा आदि पर निर्भर करता है। अधिकांश परिस्थितियों में दैव चयन तथा स्तरित निदर्शन प्रणालियाँ ही प्रयोग की जाती हैं।

() विस्तृत चयन (Extencive Sampling)-यह रीति संगणना पद्धति के समान है। इसमें अधिकाधिक इकाइयाँ छाँट ली जाती हैं। केवल उन्हीं इकाइयों को छोड़ा जाता है जिनके बारे में समंक एकत्रित करना कठिन या असम्भव हो । इस प्रकार समग्र के बहुत बड़े भाग का अध्ययन हो जाता है।

Business Statistics Census Sample

न्यादर्श का आकार

(Size of Sample)

न्यादर्श की यथार्थता अधिकतर उसके आकार पर निर्भर होती है। सामान्यतः न्यादर्श जितना बड़ा होगा उतनी ही अधिक मात्रा में वह समग्र का प्रतिनिधित्व करेगा। किन्तु बहुत बड़े न्यादर्श का अभियोजन करना अत्यन्त कठिन और खर्चीला होता है । इसके विपरीत यदि समंक बहुत छोटा है तो वह पूर्णरूप से समग्र की सभी विशेषताओं का प्रतिनिधित्व नहीं करेगा, अत: न्यादर्श यथोचित आकार का होना चाहिए। न्यादर्श का उचित

आकार समग्र के आकार, उसकी प्रकृति (सजातीय या विजातीय), इकाइयों की प्रकृति, शुद्धता के अपेक्षित स्तर, चयन विधि आदि पर निर्भर होता है । यदि समग्र बड़े आकार का हो या उसमें विभिन्न विशेषताओं वाली इकाइयाँ पाई जाती हों या उच्च स्तर की शुद्धता अपेक्षित हो, तो न्यादर्श भी बड़े आकार का ही होना चाहिए। इसके विपरीत,छोटे और समान इकाइयों वाले समग्र का प्रतिनिधित्व एक छोटे आकार के न्यादर्श द्वारा भली-भाँति हो सकता है । अतः न्यादर्श की शुद्धता का उसके आकार से निश्चित सम्बन्ध है । एक दैव न्यादर्श की शुद्धता उसके आकार की वृद्धि के वर्गमूल के अनुपात में बढ़ती है।

न्यादर्श की शद्धता उसके आकार और चयन-रीति दोनों पर निर्भर होती है। क्राक्सटन तथा काउडेन ने ठीक कहा है, वास्तव में,एक न्यादर्श में केवल आकार से ही प्रतिनिधित्व का आश्वासन नहीं हो जाता। एक बड़े किन्तु दूषित रीति द्वारा चुने गये न्यादर्श की तुलना में एक छोटे दैविक या स्तरित न्यादर्श के उत्तम होने की सम्भावना अधिक होती हैं। दूसरे शब्दों में एक न्यादर्श बड़ा होते हुए भी व्यर्थ हो सकता है यदि वह दैव चयन पर आधारित नहीं है अथवा दैव चयन पर आधारित होते हए भी वह अविश्वसनीय हो सकता है यदि वह छोटा है।

Business Statistics Census Sample

न्यादर्श में विश्वसनीयता की जाँच

(Test of Reliability of Sample)

न्यादों की विश्वसनीयता की जाँच दो रीतियों से की जा सकती है। प्रथम रीति के अनुसार समप्र में से पहले न्यादर्शों के आकार के बराबर अन्य न्यादर्श निकाले जाते हैं तथा उनके परिणामों की आपस में तुलना की जाती है । यदि परिणामों में समानता होती है तो न्यादर्श विश्वसनीय है अन्यथा नहीं। दूसरे रीति के अन्तर्गत चुने हुए न्यादशों को दो बराबर भागों में बाँटकर उनकी अलग-अलग विशेषताओं का अध्ययन किया जाता है। यदि दोनों भागों की विशेषताओं में समानता पाई जाये तो न्यादर्श निश्चित रूप से विश्वसनीय माना जाता है । प्रतिदर्श की इस प्रकार जाँच को स्थायित्व परिक्षण (Stability Test) भी कहते हैं।

Business Statistics Census Sample

प्रतिचयन में अभिनति

(Blas in Sampling)

प्रतिचयन की किसी रीति द्वारा चुना गया न्यादर्श अभिनति (bias) से प्रभावित हो सकता है। एक अभिनति-पूर्ण न्यादर्श समग्र का वास्तविक प्रतिनिधि नहीं हो सकता। अभिनति व्यवहार में न्यादर्श की उपयोगिता को ही समाप्त कर देती है। इसलिये न्यादर्श सर्वेक्षणों में अभिनति के स्रोतों को स्पष्ट रूप से जानना तथा उन्हें दूर करना अनुसंधान की परिशद्धता के लिये आवश्यक है।

वेतन तथा अवचेतन अभिनति (Conscious and Sub-Conscious Bias)- अभिनति, अवलोकन की उन त्रुटियों का समूह है जो न्यादर्श-इकाइयों के चयन को प्रभावित करती है तथा संचयी प्रकृति की होती है। अभिनति चेतन और अवचेतन दो प्रकार की हो सकती है। चेतन अभिनति पूर्व आयोजित होती है और अनुसंधानकर्ता की व्यक्तिगत पूर्व-धारणाओं के कारण उत्पन्न होती है। उदाहरणार्थ, गाजियाबाद के औद्योगिक मजदूरों की रहन सहन की स्थिति के बारे में सर्वेक्षण करने के लिये अन्वेषक ऐसे मजदूरों की भी न्यादर्श में छांट सकता है जिनकी आर्थिक स्थिति कुछ अच्छी है,इसके विपरीत ऐसे मजदूरों को भी छांट सकता है जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। इस प्रकार अलग-2 आर्थिक स्थिति वाले मजदूरों के आधार पर एकत्रित सूचनायें सर्वथा विपरीत परिणाम प्रदर्शित करेंगी। अत: अपनी-2 मानसिक प्रवृत्ति और पूर्वाग्रहों के अनुसार अन्वेषक न्यादर्श को विकृत कर देता है।

कभी-2 अन्वेषक द्वारा पूर्ण रूप से निष्पक्ष दृष्टिकोण अपनाने पर भी न्यादर्श-चयन की प्रक्रिया में अनजाने में अभिनति का समावेश हो जाता है जिसे अवचेतन अभिनति (Sub-Conscious or Unconscious bias) कहते हैं। अवचेतन अभिनति उतनी हानिकारक नहीं होती जितनी चेतन अभिनति । उक्त अभिनति की रोकथाम का प्रमुख उपाय यह है कि चयन प्रक्रिया में मानव अंश को हटाकर यन्त्रों की सहायता लेनी चाहिए।

अभिनति के स्रोत (Sources of Bias)-न्यादर्श अनुसंधान में अभिनति के अनेक स्रोत होते हैं जो निम्न प्रकार है

1 न्यादर्श का दोषपूर्ण चयन (Faulty Selection of Sample)-न्यादर्श के चयन में जाने-अनजाने अनेक त्रुटियाँ हो सकती हैं जिनसे न्यादर्श समग्र का वास्तविक प्रतिनिधि नहीं रह पाता। अभिनतिपूर्ण चयन के तीन प्रमुख स्रोत हैं

() सविचार प्रतिचयन में अन्वेषक इकाइयों का चयन स्वेच्छा से करता है। अतः न्यादर्श पर उसकी व्यक्तिगत धारणाओं का निश्चित प्रभाव पड़ता है। स्पष्ट है कि इस प्रकार व्यक्तिगत अभिनति से प्रभावित न्यादर्श समग्र का ठीक-2 प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता।

() दैवप्रतिचयन में चेतन मानव अभिनति की सम्भावना हालांकि कम रहती है, परन्तु पूर्णतः एक दैविक न्यादर्श का चयन अत्यन्त कठिन है । मानवीय कारकों से उसमें अवचेतन अभिनति हो सकती है।

() न्यादर्श इकाइयों का प्रतिस्थापन (Subsitution) भी दोषपूर्ण चयन एक रूप है। कभी- 2 किसी कारण से दैव-रूप से चयनित न्यादर्श इकाई के स्थान पर कोई दूसरी इकाई सम्मिलित कर ली जाती है जिससे अभिनति उत्पन्न हो जाती है।

2. दोषपूर्ण सूचनासंकलन (Faulty Collection of Information)- समंको के संकलन में जो त्रुटियाँ रह जाती हैं उनसे संगण्ना और न्यादर्श-दोनों प्रकार के सर्वेक्षण प्रभावित होते हैं, परन्तु आकार अपेक्षाकृत छोटा होने के कारण इन त्रुटियों का न्यादर्श-अनुसंधानों पर बहुत प्रभाव पड़ता है । न्यादर्श अन्वेषण द्वारा समंक संकलन में अभिनति सामान्यतः निम्न कारणों से उत्पन्न होती है

() अपूर्ण अन्वेषण एवं उत्तरों की अप्राप्ति-यदि न्यादर्श में शामिल सभी इकाइयों के बारे में सचना उपलब्ध नहीं की जाती तो अभिनति का अंश आ जाता है। सामान्यतः डाक द्वारा अनुसूचियाँ भेजने पर उनमें से अधिकांश वापिस ही नही आती और जो आती है वे अपूर्ण रहती हैं। उत्तरों की अप्राप्ति अथवा अपर्ण प्राप्ति अभिनति का महत्वपूर्ण स्रोत है।

() दोषपर्ण प्रश्नावलीप्रश्नावली में दिये गये प्रश्न यदि सरल व स्पष्ट न हो तो भी सही उत्तर प्राप्त होना कठिन हो जाता है । यह प्रतिचयन भी अभिनति का एक स्रोत है।

() अन्वेषक की पूर्व धारणाएंअन्वेषक का एकांगी तथा पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण वास्तविक एवं शुद्ध उत्तर प्राप्त करने में सबसे बड़ा बाधक तत्व होता है । वह अपने मतानुसार समंको को अभिनत और विकृत करके एकत्र कर सकता है।

() संसूचको मैं अभिनति-अन्वेषक की सावधानी के पश्चात् भी सूचना देने वाले भी कभी-2 पक्षपातपूर्ण और अवास्तविक समंक देते हैं। जैसे-महिलाओं द्वारा अपनी आयु सामान्यतः कम ही बतायी जाती है।

3. दोषपूर्ण विश्लेषण निर्वचन (Faulty Analysis and Interpretation)- संकलित समंकों के विश्लेषण और निर्वचन की प्रक्रिया में सांख्यिकीय रीतियों के गलत प्रयोग तथा व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों के कारण भी प्रतिचयन अनुसंधानों में अभिनति का समावेश हो जाता है।

() अनुपयुक्त सांख्यिकीय रीतिसमंकों के विश्लेषण एवं निर्वचन हेतु उददेश्य पूर्ण सांख्यिकीय रीति का प्रयोग करना अनिवार्य होता है। प्रत्येक सांख्यिकीय रीति की कुछ मान्यताएँ और सीमाएं होती हैं जिनकी उपेक्षा करने से अभिनति का समावेश हो जाता है। भारित समान्तर माध्य के स्थान पर यदि सरल समान्तर माध्य का प्रयोग किया जाये तो परिणाम अभिनति पूर्ण होंगे।

() अन्वेषक के पर्वाग्रह समंको का निर्वचन मनुष्य द्वारा किया जाता है अत: उसकी मनोवत्ति. अभिरुचियों तथा पूर्वधारणाओं का परिणामों के निर्वचन पर पूरा प्रभाव पड़ता है जिसके कारण निष्कर्ष वास्तविकता से दूर तथा अभिनति पूर्ण हो जाते हैं।

अभिनति की रोकथाम (Avoidance of Bias)-अभिनीति की रोकथाम के लिये निम्न उपाये किये जाने चाहिएँ-प्रथम,न्यादर्श का चयन पूर्णतः दैविक आधार पर किया जाना चाहिए अर्थात् यन्त्रों या दैनिक समंको की राहायता से न्यादर्श इकाइयों का चयन इस प्रकार से किया जाना चाहिए कि समग्र की प्रत्येक इकाई के न्यादर्श में शामिल होने की बराबर सम्भावना हो। दूसरे, एक बार चयनित न्यादर्श की इकाइयों में कोई परिवर्तन या प्रतिस्थापन नहीं करना चाहिए। तीसरे,न्यादर्श की किसी इकाई को यथा सम्भव कभी छोडना नहीं चाहिए । चौथे, प्रश्नावली सरल, स्पष्ट एवं उत्तम होनी चाहिए ताकि ठीक-ठीक उत्तर प्राप्त हो सकें। पांचवे, अन्वेषक पूर्णत: निष्पक्ष,योग्य और अनुभवी होने चाहिएँ। अन्त में, विश्लेषण की उपर्युक्त विधि प्रयोग की जानी चाहिए और निष्पक्ष रूप से समंकों का निर्वचन होना चाहिए। इस प्रकार सावधानी रखने पर अभिनति के स्रोत नियन्त्रित किये जा सकते हैं तथा न्यादर्श चयन,सर्वेक्षण एवं निर्वचन की क्रियाओं से अभिनति को दूर किया जा सकता है।

प्रायिकतासिद्धान्त

(Theory of Probability)

न्यादर्श अनुसंधान प्रायिकता या सम्भावना सिद्धान्त पर आधारित है । प्रायिकता एक गणितीय अवधारणा हैं। कौनर के अनुसार ‘प्रायिकता हमारी इस प्रत्याशी का माप है कि एक घटना होगी या नहीं होगी।’ प्रायिकता सिद्धान्त किसी अनिश्चित घटना के होने या न होने पर प्रकाश डालता है। यदि किसी घटना के होने के m ढंग है, न होने के n ढंग हैं तो उस घटना के होने या न होने की प्रायिकता निम्न प्रकार ज्ञात की जा सकती है

उदाहरण के लिए यदि किसी सिक्के को उछाला जाये तो वह या तो चित्त गिरेगा या पट्ट चित्त गिरने की सम्भावाना 1/2 है और इसी प्रकार उसके पट्ट गिरने की सम्भावना 1/2 है। यदि सिक्कों को 1000 बार उछाला जाये तो लगभग 500 बार वह चित्त तथा 500 बार पट्ट गिरेगा। इसी प्रकार ताश की पूरी गड्डी में से कोई पत्ता खींचने पर उसमें पान की बेगम निकलने की सम्भावना 1/52 है। हुकुम का बादशाह निकाले जाने की सम्भावना 1/52 है। किसी एक इक्के के निकाले जाने की सम्भावना 4/52 या 1/13 है। इस प्रकार निम्न सूत्रानुसार प्रायिकता ज्ञात की जा सकती है।

प्रायिकता सिद्धान्त से यह स्पष्ट हो जाता है कि यदि किसी समग्र में से विभिन्न इकाइयों के चुने जाने की समान सम्भावना हो, उसमें से यादृच्छिक आधार पर कुछ इकाइयाँ छाँटी जायें तो चुने हुए न्यादर्श में विभिन्न विशेषता वाली इकाइयाँ उसी अनुपात में होंगी जिसमें वे पूरे समग्र में पायी जाती हैं। इस सिद्धान्त के आधार पर यह कहा जा सकता है कि दैव-न्यादर्श पर्याप्त रूप में समग्र की विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करता है । बीमा। व्यवसाय तथा स्कन्ध व उपज विपणी के व्यवहार अधिकतर प्रायिकता सिद्धान्त के आधार पर ही किये जाते हैं। इसी सिद्धान्त से सांख्यिकीय नियमितता नियम तथा महांक जड़ता नियम निरूपित किये गये हैं।

Business Statistics Census Sample

सांख्यिकीय नियमितता नियम

(Law of Statistical Regularity)

सांख्यिकीय नियमितता नियम प्रायिकता सिद्धान्त पर आधारित है। किंग ने इस नियम की व्याख्या इन शब्दों में की है-“यदि किसी बहुत बड़े समूह में से दैव-निदर्शन द्वारा यथोचित रूप से बड़ी संख्या में, पदों या इकाइयों को चुन लिया जाये तो यह लगभग निश्चित है कि इन इकाइयों में,औसत रूप से उस बड़े समूह के गुण आ जायेंगे। यह प्रवृत्ति ही सांख्यिकीय नियमितता नियम कहलाती है। उदाहरणार्थ-किसी काँलेज के 4000 विद्यार्थियों में से दैव आधार पर 400 विद्यार्थी चुन लिए जायें और उनकी ऊँचाई का अध्ययन किया जाये तो न्यादर्श में सम्मिलित विद्यार्थियों की औसत ऊंचाई लगभग वही होगी जो पूरे समग्र में विद्यार्थियों की है।”

नियम की सीमायें-इस नियम की निम्नलिखित सीमायें हैं

(i) दैवनिदर्शन :- यह नियम तभी लागू होता है जब इकाइयाँ दैव प्रणाली के अनुसार चुनी जायें जिससे समग्र की प्रत्येक इकाई को न्यादर्श में शामिल होने का समान अवसर प्राप्त हो जाये । सविचार चयन पर यह नियम लागू नहीं होगा।

(ii) यथोचित आकार :- न्यादर्श पर्याप्त रूप में बड़ा होना चाहिए। बहुत छोटा न्यादर्श समग्र का प्रतिनिधित्व नहीं करता। न्यादर्श का यथोचित आकार समग्र के आकार, उसकी इकाइयों की प्रकृति आदि पर निर्भर करता है। (iii) औसत रूप से सत्य- यह नियम एक प्रवृत्ति की ओर संकेत करता है जो औसत रूप से ही सत्य है । दैव निदर्शन के परिणाम पूर्णरूप से समग्र पर लागू नहीं होते । न्यादर्श और समग्र के परिणामों में कुछ अन्तर हो सकता

उपयोगितासांख्यिकीय के क्षेत्र में यह नियम बहुत उपयोगी है । वास्तव में यह नियम यादृच्छिक निदर्शन का आधार है। इस नियम से ही यह सम्भव हुआ है कि पूरे समग्र का अध्ययन न करके उनमें से निकाले गये एक बड़े दैव निदर्शन का विश्लेषण करके समग्र के बारे में निष्कर्ष निकाले जायें तथा आन्तरगणन व बाह्यगणन द्वारा समुचित सांख्यिकीय अनुमान लगायें जायें। दैव पर आधारित घटनाओं जैसे जुएँ के खेल, बीमा व्यवसाय, अपराधों ,आत्महत्याओं,दुर्घटनाओं आदि पर यह नियम लागू होता है । इस प्रकार यह नियम व्यावहारिक जगत् में बहुत उपयोगी है।

Business Statistics Census Sample

महांक जड़ता नियम

(Law of Inertia of Large Numbers)

मंहाक जड़ता नियम सांख्यिकीय नियमितता का नियम का उपप्रमेय है। इस नियम के अनुसार बड़ी संख्यायें छोटी संख्याओं की अपेक्षा अधिक स्थिर होती हैं अर्थात् बड़ी संख्याओं में अपेक्षाकृत बहुत कम परिवर्तन होता है। छोटी संख्याओं में अनेक कारणों से दोनों दिशाओं में परिवर्तन होते रहते हैं, जिनकी आपस में एक दूसरे से क्षतिपूर्ति हो जाती है। परिणाम यह होता है कि अनेक छोटी संख्याओं को मिलाकर जब बड़ी संख्या प्राप्त हो जाती । है तो उसमें कुल परिवर्तन की मात्रा बहुत कम हो जाती है और एक प्रकार की स्थिरता दृष्टिगोचर होने लगती है। उदाहरण के लिये उत्तरप्रदेश के विभिन्न जिलों में गन्ने या गेहूँ के उत्पादन में गत वर्ष की तुलना में अत्यधिक परिवर्तन होते रहते हैं परन्तु वे परिवर्तन सम और विषम दोनों प्रकार के होते हैं। कुछ जिलों में बाढ़ या सूखे के कारण फसल बहुत कम हो सकती है। साथ ही साथ कुछ जिलों में अनकल परिस्थितियों के कारण उपज अधिक हो सकती है । दोनों प्रकार के परिवर्तन एक दूसरे से कट जाते हैं और समस्त उत्तरप्रदेश की उपज पर उनका अधिक प्रभाव नहीं पड़ता। वह लगभग स्थिर रहती है। इसी प्रकार भारत के विभिन्न प्रदेशों में मृत्युदर में कमी या वृद्धि हो सकती है परन्तु पूरे देश की मृत्यु दर में अधिकतर स्थिरता रहती है।

महांकों में स्थिरता की प्रवृत्ति से यह अनुमान नहीं लगा लेना चाहिए कि बडी संख्याओं में कभी परिवर्तन नहीं होते वास्तव में अति दीर्घ काल में बड़ी मात्रा के समंकों में एक निश्चित दिशा में परिवर्तन हो सकते हैं। परन्तु वे परिवर्तन छोटी संख्याओं की अपेक्षा बहुत कम होते हैं।

सांख्यिकी में महांक जड़ता नियम एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। मुख्यतः दैव-निर्देशन में यह नियम अत्यन्त उपयोगी है । इस सिद्धान्त के कारण ही बड़ी मात्रा के दैव-न्यादर्शों में अत्यधिक शुद्धता होती है । दैव न्यादर्शों में जितनी अधिक इकाइयाँ होगी उसमें उतनी ही अधिक शुद्धता होगी क्योंकि विपरीत गुणों वाली इकाइयों की परस्पर सम्पूर्ति हो जायेगी और इस प्रकार समग्र का वास्तविक चित्र स्पष्ट हो जायेगा। अत: महांक जड़ता नियम का सांख्यिकी में बहुत महत्व है। वास्तव में जैसा कि डा. बाउले ने कहा है,बड़ी संख्याओं में अत्यधिक जड़ता होती है, इस स्थिरता के कारण ही सांख्यिकीय माप सम्भव होता है। यदि बड़ी संख्याओं में स्थिरता न हो तो भावी अनुमान विश्वसनीय नहीं हो सकते।

अपने शहर में मध्यम श्रेणी के परिवारों के व्यय वितरण से सम्बन्धित आँकड़ों को एकत्र करने हेतु एक प्रतिचयन सर्वेक्षण योजना का प्रारूप तैयार करना (Drafting of a sample survey plan for collecting data relating to expenditure pattern of the middle class families of your city)

प्रतिचयन सर्वेक्षण योजना के मुख्य तत्व निम्नलिखित हैं

1 जाँच का उद्देश्य (Objective of the study)-शहर विशेष में मध्यवर्गीय परिवारों के व्यय वितरण से सम्बन्धित आँकड़ों का संकलन।

2 विचार एवं परिभाषा (Concept and Definition)-मध्यवर्गीय परिवार को उनके आय-स्तर के  अनुरूप परिभाषित करना चाहिए अर्थात् कौन से परिवार मध्यवर्गीय कहलायेंगे।

3. जाँच का क्षेत्र (Area to be covered)-शहर विशेष के मध्यवर्गीय परिवार।

4. प्रतिचयन सूची (Sampling List)-सूचीकरण (listing) की प्रक्रिया द्वारा पूरे शहर की मध्यवर्गीय परिवारों का सूचीकरण करके समग्र का आकार पता किया जाए। इस प्रकार के समस्त परिवार समग्र का एक भाग कहलायेंगे।

5. प्रतिदर्श का आकार (Size of the Sample)-सर्वेक्षण के बजट एवं वांछनीय शुद्धता को ध्यान में रखते हए प्रतिदर्श का आकार निश्चित किया जाएगा। एक बार समग्र का आकार (शहर में मध्यवर्गीय परिवारों की संख्या) ज्ञात होने पर प्रतिदर्श के आकार का निर्धारण हो सकेगा।

6. प्रतिदर्श किस प्रकार चुना जाए (How to select a sample)-एक बार समग्र में उपस्थित सभी इकाइयों की प्रतिचयन सूची उपलब्ध होने के पश्चात् एक वांछनीय आकार का प्रतिदर्श का चयन सरल यादृच्छिक प्रतिचयन (Simple random sampling) या किसी अन्य रीति द्वारा किया जाएगा। मान लीजिए कि शहर में 10,000 मध्यवर्गीय परिवार है और उनमें से 800 के आकार का एक प्रतिदर्श सरल यादृच्छिक प्रतिचयन विधि द्वारा चुना जाता है। तब प्रगणक इन चयनित परिवारों के घर के मुखियाओं से व्यक्तिगत रूप से सम्पर्क इस सर्वेक्षण हेतु पहले से निर्मित प्रश्नावली में सूचीबद्ध प्रश्नों को पूछकर सूचना एकत्र करेगा। उसके पास प्रश्नावलियों को डाक से भेजने का विकल्प भी है यदि वह इसे उचित समझता है तो।

मध्यवर्गीय परिवारों द्वारा व्यय वितरण से सम्बन्धित आँकड़ों हेतु प्रश्नावली

(Questionnaire relating to the expenditure pattern of middle class families)

Business Statistics Census Sample

1 नाम (Name)

2. पता (Address)

3. आयु (Age)

4. लिंग(Gender) पुरुष (Mail)  स्त्री (Female)

5. व्यवसाय (Occupation) नौकरी (Service) व्यापार (Business)

Business Statistics Census Sample

प्रश्न

1 संगणना व न्यादर्श अनुसंधानों का अन्तर बताइए और संक्षेप में उनके तुलनात्मक लाभों का वर्णन ।कीजिए।

Distinguish between a census and sample inquiry and discuss briefly their comparative advantages. Explain the condition under which each of this method may be used with an advantage.

2. संगणना सर्वेक्षण तथा न्यादर्श सर्वेक्षण के बीच अन्तर स्पष्ट कीजिए। दोनों के गुण एवं दोषों का । तुलनात्मक विवरण दीजिए।

Distinguish between a census survey and a sample survey. What are their relative merits and demerits?

3. न्यादर्श चुनने की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए। उदाहरण देते हुए प्रत्येक के गुण व दोषों कोबताइए।

Describe the various methods of selecting a sample. State the merits and demerits of each, giving examples.

4. सम्पूर्ण गणना तथा दैव न्यादर्शों के गुणों की तुलना कीजिए। क्या संगणना का परीक्षण निदर्शन द्वारा किया जा सकता है? यदि हाँ तो क्या आप भारत में प्रयुक्त ऐसी किसी योजना का विवेचन कर सकते हैं?

Compare the merits of a census enumeration and random sample survey. Can a census count be verified through sampling? If so, can you discuss any such plan used in India?

5. दैव निदर्शन से क्या अभिप्राय है ? दैव निदर्शन की विभिन्न रीतियों का वर्णन कीजिये।

What do you mean by Random Sampling? Discuss various methods of Random Sampling.

6. निदर्शन को परिभाषित कीजिये । एक अच्छे न्यादर्श के क्या गुण होते हैं? अनुसंधान की संगणना एवं निदर्शन प्रणाली की तुलना कीजिए तथा निदर्शन अनुसंधान की विभिन्न रीतियाँ समझाइये।

Define sampling. What are the essentials of a good sample? Compare census and sample method of investigation. Also explain the various methods of sampling investigation.

7. एक अच्छा न्यादर्श दैव चयन पर आधारित होता है’ विवेचन कीजिए।

A good sample must be based on random selection.’ Discuss.

8. सांख्यिकीय अनुसंधान में निदर्शन क्यों आवश्यक है ? निदर्शन की अधिक प्रचलित महत्वपूर्ण रीति को समझाइए।

Why is sampling necessary in statistical investigation ? Explain the important method of sampling commonly used.

9. प्रतिचयन किसे कहते हैं और उसके कौन-कौन से उद्देश्य होते हैं? प्रतिदर्शों के चयन की विभिन्न रीतियों का वर्णन कीजिए।

What is samping and whai are its objectives? Discuss the various methods of selecting samples.

10. एक आर्थिक अनुसन्धान को सम्पन्न करने हेतु प्रतिचयन विधियों की तकनीक एवं उपयोगिता पर प्रकाश डालिये।

Discuss the utility and the techniques of sampling methods is conduting an economic investigation.

11. अपने नगर के मध्यम श्रेणी के परिवारों के व्यय वितरण से सम्बन्धित आंकड़ों को एकत्र करने के लिए एक प्रतिचयन सर्वेक्षण योजना बनाइये । इस अवसर पर प्रयुक्त की जाने वाली एक प्रश्न सारणी भी दीजिये।

Draft a sample survey plan for collecting data relating to expenditure pattern of the middle class families of your city. Give also a short questionnaire to be used on the occasion.

Business Statistics Census Sample

12. उपयुक्त उदाहरण देते हुए निम्न नियमों को समझाइये

Explain with the help of suitable example:

(अ) सांख्यिकीय नियमितता नियम,

(a) The Law of Statistical Regularity

(ब) महांक जड़ता नियम।

(b) The Law of Inertia of Large Numbers

13. निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए(क) प्रायिकता सिद्धान्त

(ब) प्रतिनिधि समंक

(ग) बहुस्तरीय देव चयन

(घ) टिप्पेट के दैव अंक

(ड) निदर्शन के उद्देश्य।

Write short notes on the following:

(a) Theory of Probability

(b) Representative Data

(C) Multi-Stage Area Random Sampling

(d) Tippett’s Random Numbers

(e) Objects of Sampling.

Business Statistics Census Sample

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answered Questions)

(i) समग्र से क्या आशय है ? समग्र के विभिन्न प्रकार बताइये।

What do you mean by universe? Explain its various kinds.

(ii) निदर्शन या प्रतिदर्श अनुसन्धान के गुण दोष बताइये।

Explain the merits and demerits of sample investigations.

(iii) निदर्शन की विभिन्न रीतियाँ समझाइये।

Explain the different methods of sampling.

(iv) निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए

Write short notes on the following:

(a) प्रायिकता सिद्धान्त (Theory of Probability)

(b) सांख्यिकीय नियमितता नियम (Law of Statistical Regularity)

(C) महांक जडता नियम (Law of Inertia of Large Numbers)

(d) संगणना तथा न्यादर्श प्रणालियों में अन्तर बताइये।

(Distinguish between census and sampling methods.)

Business Statistics Census Sample

अतिलघु उत्तरीय प्रश्न

(Very Short Answered Questions)()

निम्न कथनों में से कौन-सा कथन सत्य या असत्य है

State whether the following statements are TRUE or FALSE:

(i) जब किसी समूह का समग्र की प्रत्येक व्यक्तिगत इकाई का अध्ययन किया जाता है तो उसे संगणना अनुसन्धान कहते हैं।

When every unit of a group or universe is studied for the collection of data, then this kind of inquiry is called census inquiry.

(ii) निदर्शन प्रणाली में शुद्धता का अभाव रहता है ।

The level of accuracy is law in the sampling method.

(iii) प्रायिकता सिद्धान्त किसी अनिश्चित घटना के होने या न होने पर प्रकाश डालता है।

The theory of probability states the chances of happening or not happening of an uncertain event.

Business Statistics Census Sample

chetansati

Admin

https://gurujionlinestudy.com

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Previous Story

BCom 1st Year Business Collection Statistical Data Study Material Notes in Hindi

Next Story

BCom 1st Year Statistics Editing Collected Data Study Material Notes in Hindi

Latest from BCom 1st Year Business Statistics