BCom 2nd Year Canons Classification Public Expenditure Study Material Notes In Hindi

//

BCom 2nd Year Canons Classification Public Expenditure Study Material Notes In Hindi

BCom 2nd Year Canons Classification Public Expenditure Study Material Notes In Hindi: Main Criterion of Public Expenditure Canous of Public Expenditure Important Examinations Questions Long Answer Questions Short Answer Questions ( Most Important Notes For BCom 2nd year Students )

Canons Classification Public Expenditure
Canons Classification Public Expenditure

BCom 2nd Year Public Expenditure Meaning Nature Study Material Notes In Hindi

लोक/सार्वजनिक व्यय : सिद्धान्त एवं वर्गीकरण

[Canons and Classification of Public Expenditure]

“विभिन्न देशों और विभिन्न समय की व्यापक तुलना दिखाती है कि प्रगतिशील लोगों के बीच में जिनसे हम सम्बन्धित हैं, केन्द्रीय और स्थानीय दोनों सरकारों की कार्यविधियों में नियमित रूप से वद्धि होती है। यह वृद्धि व्यापक एवं गहन दोनों तरह की होती है, केन्द्रीय और स्थानीय सरकारें निरन्तर नये कार्य करती  हैं और नये और पुराने कार्यों को अधिक पूर्णता और कुशलता से करती हैं।” –           वैगनर

लोक व्यय के बढ़ते महत्व के कारण इसका आकार बढ़ता जा रहा है तथा यहाँ पर प्रमुख प्रश्न यह उठता है कि लोक व्यय का आदर्श आधार क्या होना चाहिए? इसके लिए विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने अपने सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया, लेकिन इन सिद्धान्तों को जानने से पहले लोक व्यय की कसौटियों को जानना आवश्यक है।

Canons Classification Public Expenditure

लोक/सार्वजनिक व्यय की प्रमुख कसौटी

(Main Criterion of Public Expenditure)

सिद्धान्त का आधार क्या होना चाहिए जिससे उसकी उपयुक्तता की जाँच हो सके, उस सिद्धान्त की कसौटी कहलाता है तथा इसी के आधार पर सिद्धान्त का निर्माण होता है।

लोक व्यय की कसौटी भी सिद्धान्त की उपयुक्तता की जाँच करके सिद्धान्त के निर्माण में सहायता प्रदान करती है।  सैद्धान्तिक दृष्टि से लोक व्यय के सिद्धान्तों के दो प्रमुख आधार हैं

प्रथम आधारयह निर्धारित करता है कि लोक व्यय की क्या सीमा होनी चाहिए अर्थात् सरकार को किस मात्रा तक व्यय करना चाहिए ? साधारणतः सार्वजनिक व्यय उस सीमा तक किया जाना चाहिए कि व्यय की इकाई से लोगों को जो अतिरिक्त लाभ होता है, वह उस अतिरिक्त त्याग के बराबर होना चाहिए जो करारोपण द्वारा लोगों को करना पड़ता है। इसके परिणामस्वरूप अधिकतम सामाजिक लाभ का उद्देश्य प्राप्त किया जा सकता है।

दूसरा आधारयह निर्धारित करता है कि विभिन्न प्रयोगों में सार्वजनिक व्यय का आबंटन किस प्रकार किया जाय? इस सम्बन्ध में अर्थशास्त्रियों का विचार है कि प्रत्येक दिशा में लोक व्यय उस सीमा तक किया जाना चाहिए कि व्यय की सीमान्त इकाई से प्राप्त होने वाला लाभ प्रत्येक दिशा में समान हो।

ये आधार सैद्धान्तिक दृष्टि से उपयुक्त है, परन्तु व्यावहारिक दृष्टि से नहीं क्योंकि व्यय के लाभों को ज्ञात करना तथा करारोपण के त्याग का मापन कठिन कार्य है

Canons Classification Public Expenditure

 सार्वजनिक व्यय के सिद्धान्त (Canons of Public Expenditure)

सार्वजनिक व्यय के सिद्धान्त का आधार अधिकतम सामाजिक लाभ का सिद्धान्त होना चाहिए, क्योंकि सार्वजनिक गतिविधियों का उद्देश्य सामाजिक कल्याण करना है। सार्वजनिक व्यय के सिद्धान्तों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है।

(A) फिण्डले शिराज द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तकुछ अर्थशास्त्रियों ने लोक व्यय के मार्गदर्शक सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है। इनमें प्रो० फिण्डले शिराज मुख्य हैं जिन्होंने अपनी पुस्तक “The Science of Public Finance” में सार्वजनिक व्यय के चार सिद्धान्त प्रस्तुत किये।

फिण्डले शिराज के सिद्धान्त

(1) मितव्ययिता का सिद्धान्त   (2) आधिक्य का सिद्धान्त  (3) लाभ का सिद्धान्त  (4) स्वाकृति का  सिद्धान्त

1 मितव्ययिता का सिद्धान्त (Canon of Economy)-सरकार द्वारा जा व्यय देश के नागरिकों का धन होता है, जो करारोपण के माध्यम से प्राप्त किया जाता है। अतः इस धन को बहुत सावधानी एवं मितव्ययिता से व्यय किया जाना चाहिए। सरकार पर अक्सर यह आरोप लगाये जाते हैं कि वह फिजूलखर्ची करती है। सरकारी अधिकारी बिना दूरदर्शिता के तथा गैर-जिम्मेदार ढंग से व्यय करते हैं, क्योंकि यह सार्वजनिक धन है। सार्वजनिक व्यय का दिशा निर्धारक सिद्धान्त यह होना चाहिए कि सरकारी धन को काफी सोच समझकर एवं मितव्ययितापूर्वक ढंग से व्यय किया जाना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि (1) वित्तीय प्रशासन कुशल एवं चस्त होना चाहिए। (2) किसी भी मद पर आवश्यकता से अधिक व्यय नहीं करना चाहिए। (3) व्यय से उत्पादन शक्ति में वृद्धि होनी चाहिए।

2. आधिक्य का सिद्धान्त (Canon of Surplus)-इस सिद्धान्त के अनुसार सरकार का व्यय उसकी आय से अधिक नहीं होना चाहिए। इसके लिए सरकार को सन्तुलित बजट की नीति अपनानी चाहिए। जिस प्रकार एक व्यक्ति अपनी आय से अधिक व्यय नहीं करता उसी प्रकार सरकार को यही नीति अपनानी चाहिए। फिण्डले शिराज के अनुसार, “सार्वजनिक अधिकारियों को अपनी आय की प्राप्ति तथा व्यय सामान्य नागरिकों की भाँति करना चाहिए। व्यक्तिगत व्यय के समान ही सन्तुलित बजट को दैनिक आदेश मानना चाहिए। परन्तु वास्तव में बजट की यह धारणा प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों की है, किन्तु आज की परिस्थितियों में जब सरकार का कार्यक्षेत्र बहुत बढ़ गया है, बजट का सदैव आधिक्य में या सन्तुलन में रखना उचित नहीं है। मुद्रास्फीति की दशा में बेशी का बजट (Surplus Budget) को अच्छा माना जाता है, लेकिन मन्दी के दिनों में घाटे का बजट (Deficit Budget) को अच्छा माना जाता है।

3. लाभ का सिद्धान्त (Canon of Benefits)-अधिकतम सामाजिक लाभ का सिद्धान्त राजस्व का सर्वाधिक महत्वपूर्ण नियम है। जिस प्रकार व्यक्ति विशेष अपनी आय का बँटवारा अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त करने के उद्देश्य से करता है, उसी प्रकार राज्य को भी अपना व्यय अधिकतम सामाजिक लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से करना चाहिए। सार्वजनिक व्यय के समय बैन्थम के सिद्धान्तअधिकतम व्यक्तियों को अधिकतम सुखका पालन करना चाहिए। डाल्टन के अनुसार, “सार्वजनिक व्यय प्रत्येक दिशा में इस प्रकार होना चाहिए कि किसी एक दिशा में तनिकसी वृद्धि होने से समाज को प्राप्त होने वाला लाभ उस हानि के बराबर हो जाये।पीगू अनुसार, “सभी दिशाओं में व्यय को उस बिन्दु तक बढ़ाया जाय जिस पर कि व्यय की गयी मुद्रा की अन्तिम इकाई से प्राप्त सन्तुष्टियाँ उन अन्तिम इकाइयों की सन्तुष्टियों के बराबर हो जो सरकार सेवा प्रदान करने पर व्यय करती है। इस सम्बन्ध में विद्वानों ने कुछ कसौटियाँ निर्धारित की हैं जिनके द्वारा यह पता लगाया जा सकता है कि राजकीय व्यय से समाज कल्याण में वृद्धि हो रही है या नहीं। ये कसौटियाँ निम्न प्रकार हैं

(i) बाह्य एवं आन्तरिक सुरक्षा की पर्याप्त व्यवस्था करना।

(ii) देश में उत्पादन तथा राष्ट्रीय आय के आकार में वृद्धि करना।

(iii) देश में आय का न्यायपूर्ण एवं समान वितरण होना।

(iv) देश में आर्थिक स्थिरता व पूर्ण रोजगार की स्थिति बनाए रखना।

(v) सार्वजनिक व्यय भावी पीढ़ियों के हित को ध्यान में रखकर करना।

4. स्वीकृति का सिद्धान्त (Canon of Sanction)-इस नियम के अनुसार बिना स्वीकृति के कोई भी व्यय नहीं किया जाना चाहिए। यदि स्वीकृति के नियम का पालन किया जाता है तो इससे अनुशासन बहता है तथा व्ययों का संचालन सुचारु रूप से होता है तथा इस बात का आसानी से पता लगाया जा सकता है कि किस मद के व्यय का उत्तरदायित्व किस अधिकारी पर है। सरकार को भी व्यय करने के

मट की स्वीकृति लेनी पड़ती है। इस सम्बन्ध में निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए

(i) व्यय स्वीकृत राशि से अधिक नहीं होना चाहिए।

(ii) व्यय राशि का उचित अंकन करना चाहिए।

(iii) व्यय स्वीकृत मदों पर ही किया जाना चाहिए।

(iv) ऋणों को चुकाने हेतु एक परिशोधन कोष (Sinking Fund) बनाया जाना चाहिए।

इस प्रकार स्वीकृति का सिद्धान्त सार्वजनिक व्यय की अपव्ययिता के ऊपर एक कड़ा नियन्त्रण है। तथा वित्तीय नियमन तथा नियन्त्रण का यन्त्र है।

(B) अन्य सिद्धान्त या सहायक सिद्धान्त (Other Principles)-सार्वजनिक व्यय के उपरोक्त सिद्धान्तों के अतिरिक्त कुछ अर्थशास्त्रियों ने निम्नलिखित सिद्धान्तों का भी प्रतिपादन किया जाता है

Canons Classification Public Expenditure

अन्य सिद्धान्त

(1) समान वितरण सिद्धान्त  (2) लोच का सिद्धान्त   (3) उत्पादकता का सिद्धान्त (4) समन्वय का का सिद्धान्त

1 समान वितरण का सिद्धान्त (Canon of Equal Distribution)-इस सिद्धान्त के अनुसार सार्वजनिक व्यय का उद्देश्य वितरण में समानता स्थापित करना होना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि सरकार निर्धन जनता पर तुलनात्मक रूप से अधिक व्यय करे जिससे उन्हें अधिकाधिक लाभ प्राप्त हो सके। ये लाभ शिक्षा, चिकित्सा, गृह निर्माण, वृद्धावस्था पेंशन, मनोरंजन आदि के रूप में पहुँचाये जा सकते हैं। यह सिद्धान्त उन देशों के लिए अधिक उपयुक्त हैं जहाँ आय के वितरण में भारी असमानताएँ पाई जाती हैं।

2. लोच का सिद्धान्त (Canon of Elasticity)-इस सिद्धान्त के अनुसार राज्य की व्यय नीति ऐसी होनी चाहिए जिससे कि देश की आवश्यकताओं और परिस्थितियों के अनुसार सार्वजनिक व्यय में कमी या अधिकता की जा सके। संक्षेप में, सार्वजनिक व्यय ढाँचा लचीला होना चाहिए। साथ ही सार्वजनिक व्यय की वृद्धि के कारण राजकीय आय में जो वृद्धि करनी आवश्यक होगी उसके अच्छे तथा बुरे परिणामों को भी ध्यान में रखना चाहिए। ब्यूहलर के अनुसार, “सार्वजनिक व्यय के परिणामों का अनुमान लगाते समय हमें उन परिणामों की ओर ध्यान देना होगा जो कि उस व्यय की पूर्ति करने के सम्बन्ध में करारोपण या आय के अन्य स्रोतों के परिणामस्वरूप सामने सकें।

3. उत्पादकता का सिद्धान्त (Canon of Productivity)-इस सिद्धान्त का अर्थ यह है कि सार्वजनिक व्यय ऐसा होना चाहिए जिससे उत्पादन में वृद्धि हो। यह सिद्धान्त विकासशील देशों के लिए विशेष महत्व रखता है क्योंकि विकासशील देशों में आर्थिक विकास को बढ़ाने के लिए उत्पादकता को बढ़ाने का प्रयत्न किया जाता है। डॉ० बलजीत सिंह के अनुसार, “विकासशील देशों में सामाजिक एवं सार्वजनिक सेवाओं की मात्रा में वृद्धि करने तथा सामुदायिक उपभोग की वस्तुओं में वृद्धि करने हेतु सार्वजनिक व्यय में भारी वृद्धि की आवश्यकता है।हेन्सन के मतानुसार, “कोई भी राष्ट्र सामाजिक तथा सार्वजनिक सेवाओं पर व्यय किये बिना जीवन स्तर को ऊँचा नहीं कर सकता।यदि सार्वजनिक व्यय से उत्पादन में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में वृद्धि हो तो उसे देश के विकास के लिए अच्छा माना जाता है, परन्तु सार्वजनिक व्यय की प्रत्येक मद से उत्पादकता में वृद्धि नहीं हो सकती; जैसेसुरक्षा व्यय उत्पादक नहीं होता, परन्तु राष्ट्र हित के लिए आवश्यक होता है।

4. समन्वय का सिद्धान्त (Canon of Co-ordination)-इस सिद्धान्त का अर्थ है कि विभिन्न सरकारों जैसे—केन्द्रीय, प्रादेशिक तथा स्थानीय संस्थाएँ एवं सरकार की विभिन्न एजेन्सियों द्वारा जो व्यय किया जाता है उसमें समन्वय होना चाहिए एवं प्रत्येक संस्था का व्यय क्षेत्र स्पष्ट रूप से परिभाषिता होना चाहिए ताकि इनमें कोई दुविधा, दोहराव तथा टकराव की स्थिति ना आए।

निष्कर्षतः उपरोक्त सिद्धान्तों का पालन करके सरकार सार्वजनिक व्यय द्वारा आधिकतम सामाजिक लाभ प्राप्त कर सकती है। व्यूहलर के मतानुसार, “यद्यपि सार्वजनिक व्यय के सिद्धान्त प्रमाणिक नहीं हैं, क्योंकि करारोपण के सिद्धान्तों के समान व्यय के सिद्धान्तों का विकास नहीं हुआ है, तथापि कुछ स्पष्ट एवं मौलिक सिद्धान्तों का वर्णन किया जा सकता है, जो संसद के सदस्या तथा। जनता का तब तक पथप्रदर्शन कर सकते हैं जब तक कि अधिक अच्छे सिद्धान्तों का विकास किया जा सके।

सार्वजनिक व्यय का वर्गीकरण (Classification of Public Expenditure)-राज्य के विभिन्न प्रकार के व्ययों का किसी वैज्ञानिक आधार पर ऐसा व्यवस्थित प्रबन्ध किया जाना चाहिए, जिससे कि हम प्रत्येक प्रकार के व्यय की प्रकृति तथा उसके प्रभावों की जानकारी प्राप्त कर सकें और एक व्यय के प्रभावों का दूसरे व्यय के प्रभावों से तुलनात्मक अध्ययन कर सकें। सरकारी व्यय के वर्गीकरण की आवश्यकता निम्न तथ्यों से स्पष्ट होती है

(i) विभिन्न प्रकार के सरकारी व्ययों की प्रकृति एवं उनके प्रभावों को स्पष्ट रूप से समझने के लिए:

(ii) विभिन्न समयों में सरकारी व्ययों की प्रत्येक मद का सापेक्षिक महत्त्व जानने के लिए;

(iii) उन विभिन्न मदों की, जिनमें धन का बँटवारा किया गया है, क्षमता एवं प्रभावों का मूल्याँकन करने के लिए।

लुट्ज के अनुसार, “वर्गीकरण की एक अच्छी विधि का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य विभिन्न हितों और कार्यों के बीच में एक उचित सन्तलन स्थापित करना है, जिन वित्तीय त्तरदायित्व सरकार ने अपने ऊपर लिया है।”

विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने सार्वजनिक व्यय का वर्गीरण विभिन्न आधारों पर किया है। मुख्य वर्गीकरण निम्न प्रकार हैं

1 लाभ के आधार पर वर्गीकरण (Classification on the Basis of Benefit)-प्रो० कॉन तथा प्लेहन ने सार्वजनिक व्यय का वर्गीकरण लाभ के आधार पर किया है। उन्होंने सार्वजनिक व्यय को निम्नलिखित चार भागों में विभाजित किया है

(i) सम्पूर्ण समाज को लाभ पहुंचाने वाले सरकारी व्यय-इस वर्ग में वे सार्वजनिक व्यय आते हैं जिनका लाभ सामान्य रूप से सम्पूर्ण समाज को प्राप्त होता है। जैसे-सुरक्षा, चिकित्सा, शिक्षा आदि पर किया गया व्यय।

(ii) कुछ व्यक्तियों को लाभ पहुंचाने वाला व्यय-इस वर्ग में वे सार्वजनिक व्यय आतें हैं जिनका प्रत्यक्ष रूप से कुछ विशेष व्यक्तियों को लाभ प्राप्त होता है; परन्तु जिसे सामान्य लाभ ही माना जा सकता है; जैसे-बेरोजगारी, बीमा, वृद्धावस्था पेंशन आदि के रूप में किया गया व्यय।

(iii) कुछ लोगों को तथा साथ ही सम्पूर्ण समाज को लाभ पहुंचाने वाला सरकारी व्यय-इस वर्ग में वे सार्वजनिक व्यय आते हैं जिनसे कुछ व्यक्ति तो विशेष रूप से लाभान्वित होते हैं, परन्तु साथ ही अन्य सभी को सामान्य लाभ भी पहुंचाता है। जैसे-पुलिस, जेल व न्यायालय पर किया गया व्यय।

(iv) कुछ विशिष्ट वर्गों को लाभ पहुंचाने वाला व्यय-इस वर्ग में वे सार्वजनिक व्यय आते हैं जिनसे केवल कुछ विशिष्ट वर्ग के व्यक्तियों को ही लाभ मिलता है।

आलोचना-(i) सुरक्षा व्यय को प्रथम वर्ग में रखना इसलिए उचित नहीं है, क्योंकि कभी-कभी युद्ध कुछ विशिष्ट स्थानों, व्यक्तियों अथवा वर्गों की रक्षा के लिए लड़े जाते हैं।

(ii) चूँकि सभी प्रकार के सरकारी व्ययों को लोकहित में ही व्यय किया हुआ माना जाता है अतः सार्वजनिक व्यय की विभिन्न मदों को इन चार भागों में विभाजित करना उचित नहीं है।

(iii) उपरोक्त वर्गीकरण में अतिव्यापन (Overlapping) तथा पुनरावृत्ति (Repetition) का दोष पाया जाता है।

(iv) उपरोक्त वर्गीकरण वैज्ञानिक तथा तर्कसंगत नहीं है।

(v) निर्धन व्यक्तियों पर किए जाने वाले व्यय से व्यक्तिगत तथा सामूहिक दोनों ही लाभ प्राप्त होते हैं।

Canons Classification Public Expenditure

प्रो० निकलसन का वर्गीकरण (Prof. Nicholson’s Classification)-प्रो० निकलसन ने सार्वजनिक व्यय के वर्गीकरण का आधार “आय” को माना है। यह वर्गीकरण निम्न प्रकार है।

(i) अतिरिक्त आय की प्राप्ति-इस व्यय से सरकार का व्यय पूर्ण होने के साथ-साथ अतिरिक्त आय भी प्राप्त होती है। जैसे—रेल, डाकखाना आदि। ।

(ii) अप्रत्यक्ष लाभ–सार्वजनिक व्यय के उस भाग को इस वर्ग में रखा जाता है जिससे सरकार को अप्रत्यक्ष रूप से व्यक्तियों की कार्यक्षमता एवं उत्पादन में वृद्धि से आय में वृद्धि होती है।

(iii) आंशिक प्रत्यक्ष लाभ-इस व्यय से सरकार को आंशिक प्रत्यक्ष लाभ प्राप्त होता है। जैसे-न्यायालय पर किया गया व्यय आदि।

(iv) अलाभकर व्यय-इस प्रकार के व्यय से सरकार को किसी भी प्रकार का कोई भी लाभ प्राप्त नहीं होता; जैसे-निर्धनों की दी गयी सहायता तथा युद्ध व्यय आदि।

आलोचना-यह वर्गीकरण वैज्ञानिक नहीं है और इसकी मुख्य आलोचनाएँ निम्न हैं

(i) सार्वजनिक व्यय की कोई भी मद ऐसी नहीं होती जिससे सरकार की आय में प्रत्यक्ष रूप से वृद्धि नहीं हो।

(ii) यह सार्वजनिक व्यय की प्रकृति और उसकी विशेषताओं को स्पष्ट नहीं करता।

(iii) सार्वजनिक व्यय की सभी मदें एक दूसरे से अलग न होकर मिली-जुली हैं।

(iv) इसमें अतिव्यापन (Over-lapping) का दोष पाया जाता है।

Canons Classification Public Expenditure

3. प्रो० एडम्स का वर्गीकरण (Prof. Adam’s Classification)-प्रो० एडम्स ने सार्वजनिक व्यय का वर्गीकरण सरकार के कार्यों के आधार पर किया है। उन्होंने सार्वजनिक व्यय को तीन भागों में विभक्त किया जो कि निम्न प्रकार है

() सुरक्षात्मक कार्य इस वर्ग में वह सार्वजनिक व्यय आता है जो देश तथा जनता की सुरक्षा के लिए किया जाता है। जैसे-पुलिस, सेना, जेल, न्यायालय के व्यय ।

(ii) वाणिज्यिक कार्य-इस वर्ग में वह सार्वजनिक व्यय सम्मिलित होता है जो वाणिज्य एवं व्यापार की उन्नति हेतु किया जाता हैं। जैसे-रेल, डाक, संचार व सार्वजनिक उद्योगों पर किया गया व्यय।

(i) विकास कार्य-इस वर्ग में वह सार्वजनिक व्यय सम्मिलित होता है जो राज्य द्वारा देश के विकास व नागरिकों के कल्याण में वृद्धि के लिए किया जाता है; जैसे-शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक बीमा आदि पर किया गया व्यया

आलोचना-(i) इस वर्गीकरण के विभिन्न वर्ग एक दूसरे से पृथक न होकर मिले हुए हैं।

(ii) एक प्रकार के सार्वजनिक व्यय को किसी वर्ग-विशेष में नहीं रखा जा सकता, क्योंकि एक ही प्रकार का व्यय वाणिज्यिक, रक्षात्मक व विकासात्मक हो सकता है।

4. मिल का वर्गीकरण (Mill’s Classification)-प्रो० जे० एस० मिल ने सार्वजनिक व्यय को दो भागों में विभाजित किया है

(i) आवश्यक या अनिवार्य व्यय-यह वह व्यय हैं जो राज्य को अनिवार्य रूप से करने पड़ते हैं। इसमें सरकार को यह चयन करने की स्वतन्त्रता नहीं होती कि वह कार्य करे या न करे; जैसे-रक्षा, न्याय आदि पर किया गया व्यय।

(ii) वैकल्पिक या ऐच्छिक व्यय-यह व्यय राज्य की इच्छा पर निर्भर करता है और सरकार उसमें परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तन कर सकती है; जैसे-सार्वजनिक उपक्रमों पर व्यय।

आलोचना-(i) अवैज्ञानिक-व्यय के वर्गीकरण का यह आधार अवैज्ञानिक है. क्योंकि व्यया का आवश्यक एवं ऐच्छिक वर्ग में विभाजित करना आसान नहीं है।

(ii) अनिश्चितता-किस व्यय को आवश्यक माना जाए और किस को वैकल्पिक इस सम्बन्धमा कोई निश्चित आधार एवं नियम नहीं बनाए गए।

Canons Classification Public Expenditure

5. श्रीमती हिक्स का वर्गीकरण (Mrs. Hick’s Classification –श्रीमती उर्सला हिक्सनम स्मिथ द्वारा बताए गए राज्य के तीन कार्यों के आधार पर ही राजकीय व्यय का वर्गीकरण किया जा का निम्न चार भागों में विभक्त है

(i) प्रतिरक्षा व्यय-सार्वजनिक व्यय की प्रमुख मद, सुरक्षा सम्बन्धी व्यय है जिसमें पूँजी, शस्त्र, फैक्ट्रियाँ, शस्त्रागार तथा सैनिकों का वेतन सम्मिलित होता है।

(ii) नागरिक प्रशासन-व्यय की दूसरी प्रमुख मद नागरिक प्रशासन है, जिसमें कानून, शान्ति-व्यवस्था तथा न्याय सम्बन्धी व्यय आते हैं। ।

(iii) आर्थिक व्यय-सार्वजनिक व्ययों को आर्थिक कार्यों पर भी व्यय किया जाना चाहिए: जैसे-आर्थिक सहायता, अनुदान तथा उपक्रमों के संचालन करने का व्यय आदि।

(iv) सामाजिक व्यय-इस वर्ग में सामाजिक सुरक्षा के लिए किया गया व्यय सम्मिलित होता है; जैसे-शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य तथा सामाजिक बीमा आदि।

आलोचना-(1) अनुचित क्रम-सार्वजनिक व्यय को विभाजित करने का जो क्रम रखा गया है वह उचित नहीं है।

(ii) अवैज्ञानिक-इस वर्गीकरण का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है जिस कारण यह अवैज्ञानिक है।

6. प्रो० पीगू का वर्गीकरण (Prof. Pigou’s Classification)-प्रो० पीगू के अनुसार, “सार्वजनिक सत्ताओं के व्यय को बड़ी सरलता से दो वर्गों में रखा जा सकता है-प्रथम, वे खर्चे जिनके द्वारा सरकार के प्रयोग के लिए उत्पादकीय साधनों की चालू सेवाएँ क्रय की जाती हैं और दूसरे वे खर्चे जो या तो निःशुल्क अदायगियों के रूप में किये जाते हैं या निजी व्यक्तियों के सम्पत्ति के अधिकारों की खरीद की अदायगियों के रूप में।” प्रो० पीग ने सार्वजनिक व्यय को निम्न दो भागों में बाँटा है

(i) हस्तान्तरण व्यय (Transferable Expenditure)-हस्तान्तरणीय व्यय वह है कि जो नागरिकों के लिए या तो निःशुल्क किया जाता है या उपलब्ध सम्पत्ति अधिकारों के क्रय के लिए किया जाता है। जैसे-ऋण पर दिया गया ब्याज, बेरोजगारी भत्ता, वृद्धावस्था पेंशन, बीमारी लाभ आदि।

(ii) अहस्तान्तरण व्यय (Non-transferable Expenditure)-अहस्तान्तरणीय व्यय वह है जो राष्ट्र के साधनों की वर्तमान सेवाओं को खरीदने के लिए किया जाता है। जैसे-नागरिक प्रशासन पर किया गया व्यय, सेना, वायु-शक्ति, शिक्षा सम्बन्धी सेवाएँ व न्यायालय आदि।

दोनों प्रकार के व्ययों के बीच भेद करने के सम्बन्ध में पीगू का कहना है, कि जबकि हस्तान्तरण व्यय का एकदम प्रभाव नहीं होता कि साधन व्यक्तिगत उपयोगों में से एकदम बाहर आ जाए, अहस्तान्तरण व्यय का कुछ-कुछ ऐसा ही प्रभाव पड़ता है। यद्यपि हस्तान्तरण व्यय व्यक्तिगत और सरकारी उपयोगों में साधनों का पुनर्वितरण तो नहीं करता, तथापि वह विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में वृद्धि अवश्य करता है।

सार्वजनिक व्यय का यह वर्गीकरण सन्तोषजनक माना जाता है।

7. प्रो० रोशर का वर्गीकरण (Prof. Roscher’s Classification)-जर्मन अर्थशास्त्री प्रो० रोशर ने “अविलम्बता के अंश” (Degree of Urgency) के आधार पर सार्वजनिक व्यय को तीन भागों में विभाजित किया है

(i) आवश्यक व्यय-इस वर्ग में उन व्ययों को सम्मिलित किया जाता है जिन्हें सरकार द्वारा करना आवश्यक होता है। जैसे-सुरक्षा व्यय आदि।

(ii) लाभदायक व्यय-यह व्यय जनता के लिए लाभदायक होते हैं. लेकिन इन्हें परिस्थितियों के अनुसार स्थगित या परिवर्तित भी किया जा सकता है। जैसे-स्वास्थ्य व्यय, पेंशन, शिक्षा पर व्यय आदि।

(iii) अनावश्यक व्यय-इस वर्ग में वह व्यय रखे जाते हैं जो कि अनावश्यक होते हैं तथा जिन्हें लम्बे समय के लिए भी टाला जा सकता है। जैसे-सजावट व्यय।

आलोचना-(1) कठिन विभाजन-उपरोक्त वर्गीकरण के आधार पर यह ज्ञात करना कठिन है कि कौन-सा व्यय आवश्यक, अनावश्यक या लाभकारी है और कौन-सा नहीं।

(ii) अनिश्चित आधार-यह वर्गीकरण वैज्ञानिक नहीं है, क्योंकि विभिन्न वर्ग एक दूसरे से अलग न होकर आपस में मिले-जुले होते हैं।

8. प्रो० शिराज का वर्गीकरण (Prof. Shirras’s Classification)-प्रो० फिण्डले शिराज ने सरकारी व्यय का वर्गीकरण मुख्य और गौण कार्यों के आधार पर किया है। उनके अनुसार, “आदर्श लोक/सार्वजनिक व्यय : सिद्धान्त एवं वर्गीकरण वह है कि जिसमें सरकारी व्यय को मुख्यतः दो वर्गों में बाँटा जाए अर्थात् मुख्य व्यय तथा गौण व्यय।

(i) मुख्य या प्राथमिक व्यय (Primary Expenditure)-मुख्य व्यय में वे सब व्यय सम्मिलित किए जाते हैं जो सरकार के लिए अत्यन्त आवश्यक होते हैं। इसमें व्यय की चार महत्वपूर्ण मदें सम्मिलित की जाती हैं

(i) प्रतिरक्षा

(ii) कानून व व्यवस्था की स्थापना,

(iii) नागरिक प्रशासन, तथा

(iv) ऋणों की अदायगी।

(ii) गौण व्यय (Secondary Expenditure)-गौण व्यय में सामाजिक व्यय, सार्वजनिक उद्यमों पर व्यय व अन्य विभिन्न प्रकार के व्यय सम्मिलित किए जाते हैं।

(I) सामाजिक व्यय के अन्तर्गत शिक्षा, जनस्वास्थ्य, निर्धन सहायता, बेरोजगारी बीमा, अकाल सहायता आदि व्यय आते हैं।

(II) सरकारी उद्यमों पर व्यय के अन्तर्गत रेल, सिंचाई, नहरें, सड़कें व अन्य प्रकार के सार्वजनिक निर्माण कार्य आते हैं।

(III) अन्य व्यय के अन्तर्गत पेंशन व्यय, चुंगी वापसियाँ तथा अन्य वापसियाँ शामिल की जाती

आलोचना-(i) असन्तोषप्रद-व्यय का यह वर्गीकरण सन्तोषप्रद नहीं है, क्योंकि व्ययों को स्पष्ट रूप से विभाजित करना कठिन है।

 (ii) सापेक्षिक अर्थ-मुख्य तथा गौण शब्द सापेक्षिक शब्द हैं अर्थात् जो व्यय मुख्य होता है वह पूर्णतया मुख्य ही नहीं होता, थोड़ा-सा गौण भी होता है।

उपरोक्त आलोचनाओं के बावजूद प्रो० शिराज का वर्गीकरण एक अच्छा वर्गीकरण माना जाता है।

9. डाल्टन का वर्गीकरण (Dalton’s Classification)-डाल्टन ने सार्वजनिक व्यय को निम्न प्रकार वर्गीकृत किया है

(i) प्रशासन व्यय-इसमें नागरिक प्रशासन सम्बन्धी व्ययों को सम्मिलित किया जाता है। जैसे-न्याय पर किया गया व्यय।

(ii) सामाजिक सुरक्षा-जो व्यय शिक्षा, जनहित एवं सामाजिक सुरक्षा पर किए जाएँ, उन्हें इस वर्ग में जोड़ते हैं।

(iii) विकास व्यय-जो व्यय कृषि, उद्योग एवं वाणिज्य के विकास के लिए किए जाते हैं, उन्हें विकास सम्बन्धी व्यय में सम्मिलित करते हैं।

(iv) ऋण सम्बन्धी-राजकीय ऋण प्राप्त करने में जो व्यय किए जाते हैं उन्हें इस मद में शामिल करते हैं।

(v) न्याय व्यय-न्याय से सम्बन्धित व्यय इस वर्ग में रखे जाते हैं।

(vi) शान्ति व्यवस्था सम्बन्धी व्यय-विदेशी आक्रमणों के विरूद्ध देश की रक्षा तथा देश में आन्तरिक शान्ति व्यवस्था सम्बन्धित व्यय इस मद में आते हैं।

(vii) दूतावास व्यय-विदेशों में दूतावास सम्बन्धी तथा अन्य प्रतिनिधियों को बनाए रखने सम्बन्धी व्ययों को इस वर्ग में शामिल किया जाता है। इसमें व्यापारिक प्रतिनिधियों पर किए गए व्यय भी शामिल रहते हैं।

डाल्टन के अनुसार, “एक व्यक्ति जो धन या धन के बराबर लाभ प्राप्त करता है, सार्वजनिक अधिकारी को उसके बराबर उतना ही प्रतिदान दे भी सकता है और नहीं भी।”

आलोचना-(i) स्पष्ट रूप से यह निर्धारित करना कठिन है कि किसी व्यय का कितना भाग अनुदान की श्रेणी में आता है और कितना क्रय-मूल्य की श्रेणी में।

(ii) सरकार द्वारा किसी वस्तु या सेवा की प्राप्ति तथा उसके मूल्य की अदायगी के बीच हमेशा थोड़ा बहुत समयान्तर पाया जाता है।

उपरोक्त आलोचना के बावजूद, तर्क की दृष्टि से सरकारी व्यय के इस वर्गीकरण को सम्पूर्ण रूप से सन्तोषजनक माना जाता है।

10.जे० के० मेहता का वर्गीकरण (Mehta’s Classification)-प्रो० जे० के० मेहता का वर्गीकरण मूल तथा सहायक लागत की धारणा पर आधारित है। प्रो० मेहता ने सार्वजनिक व्यय को दो भागों में विभाजित किया जो कि निम्नलिखित है

(i) स्थिर व्यय (Constant Expenditure)-प्रो० मेहता के अनुसार, “स्थिर व्यय उस व्यय को कहते हैं जिसकी मात्रा इस बात पर निर्भर नहीं होती कि उस व्यय द्वारा जो सेवाएँ प्रदान की जा रही हैं, उनका उपयोग लोगों द्वारा किस सीमा तक किया जा रहा है।” जैसे-प्रतिरक्षा पर किया जाने वाला व्यय।

(ii) अस्थिर व्यय (Variable Expenditure)-“अस्थिर व्यय या परिवर्तनशील व्यय उस व्यय को कहते हैं जो उन लोगों द्वारा, जिनके लाभ के लिए वह ख उपयोग में होने वाली वृद्धि के साथ ही बढ़ता है।” जैसे-डाक सेवाओं पर किया जाने वाला व्यय।

प्रो० मेहता के अनुसार, “वर्गीकरण का आधार सार्वजनिक व्यय की प्रकृति है, यह व्यक्तियों के समूह या व्यक्तियों के लिए है तथा यह नागरिकों द्वारा नियन्त्रित हो सकता है और नहीं भी।”2

अपने वर्गीकरण की विशिष्टता का उल्लेख करते हुए प्रो० मेहता ने कहा है “सरकार के दृष्टिकोण से सरकारी व्यय लागत है, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार कि सरकारी राजस्व आय है।”

अतः अन्य लागतों के समान इस लागत को भी मूल लागत तथा अनुपूरक लागत के बीच बाँटा जाना चाहिए।

आलोचनाअपने इस वर्गीकरण की आलोचना करते हुए स्वयं प्रो० मेहता ने स्पष्ट किया है, “सरकारी व्यय की प्रत्येक मद को पूर्णतया किसी एक या दूसरे वर्ग में श्रेणीबद्ध नहीं किया जा सकता अर्थात् व्यवहार में ऐसा सर्वांगपूर्ण तथा स्पष्ट अन्तर करने वाला वर्गीकरण प्राप्त कर सकना सम्भव नहीं है।” अतः इस वर्गीकरण में भी परस्पर व्यापन का दोष पाया जाता है।

11.कार्यमूलक वर्गीकरण (Fuctional Classification)-संयुक्त राज्य अमेरिका में संघ सरकार में के व्यय के सम्बन्ध में कार्यमूलक वर्गीकरण अपनाया गया है। इसके अनुसार सार्वजनिक व्यय को निम्नलिखित मदों में बाँटा गया है

(i) राष्ट्रीय सुरक्षा, (ii) अन्तर्राष्ट्रीय मामले तथा वित्त, (iii) आवश्यक सेवाएँ तथा लाभ, (iv) श्रम तथा कल्याण, (v) कृषि, (vi) प्राकृतिक साधन, (vii) वाणिज्य तथा गृह सम्बन्धी, (viii) सामान्य प्रशासन, और (ix) ब्याज। इनमें से प्रत्येक मद के अन्तर्गत बहत से सहायक कार्य सम्मिलित है।

आलोचनाउपरोक्त वर्गीकरण को व्यवहार में लाना बहुत कठिन होता है, क्योंकि एक मदम सम्मिलित होने वाला व्यय अन्य मदों में सम्मिलित हो सकता है।

उदाहरण सुरक्षा व्यय में अन्तर्राष्ट्रीय मामले सम्बन्धी मदें भी शामिल हो जाती हैं अथवा विदेशी पहायता को प्रथम शीर्षक के अन्तर्गत रखा जा सकता है।

12. प्रशासनिक इकाई के आधार पर वर्गीकरण (Classification on the Basis of Administrative Units प्रशासनिक इकाई के आधार पर सार्वजनिक व्यय को निम्न तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है

(i) केन्द्रीय व्यय (Central Expenditure)-वे सभी व्यय जो केन्द्रीय सरकार द्वारा किए जाते हैं. केन्दीय व्यय के वर्ग में आते हैं। जैसे-सुरक्षा, नागरिक कल्याण आदि पर किया गया व्यय

(ii) प्रान्तीय व्यय (Regional Expenditure)-वे सभी व्यय जो प्रान्तीय (राज्य) सरकार द्वारा किए जाते हैं, प्रान्तीय व्यय के अन्तर्गत आते हैं। जैसे-पुलिस, शिक्षा, कृषि आदि पर किए गए व्यय।

(iii) स्थानीय व्यय (Local Expenditure)-वे सभी व्यय जो स्थानीय संस्थाओं द्वारा किए जाते हैं, स्थानीय व्यय कहलाते हैं।

उपरोक्त वर्गीकरण एक अच्छा वर्गीकरण माना जाता है।

आर्थिक वर्गीकरण (Economic Classification)-इस वर्गीकरण के अनुसार सार्वजनिक आय तथा सार्वजनिक व्यय दोनों में प्रत्येक को दो वर्गों में विभाजित किया जाता है

(i) राजस्व या आयगत व्यय (Revenue Expenditure)-राजस्व व्यय में सरकार के प्रशासन पर किया जाने वाला समस्त चालू व्यय सम्मिलित किया जाता है। जिसमें प्रतिरक्षा, सार्वजनिक उद्यम व राज्यों को दिए जाने वाले सहायक अनुदान सम्मिलित हैं। इस व्यय को राजस्व चालू खाता (Revenue of Current Account) में रखा जाता है।

(ii) पूँजीगत व्यय (Capital Expenditure)-पूँजीगत व्यय में सरकारी प्रशासन से सम्बन्धित समस्त पूँजीगत सौदों का व्यय सम्मिलित होता है। पूँजीगत व्यय पूँजीगत खाता (Capital Account) के अन्तर्गत लिखा जाता है। पूँजीगत व्यय को पुनः दो उपभागों में विभाजित किया जा सकता है

(1) कुल अचल पूँजी (Gross Fixed Capital)-इस वर्ग के अन्तर्गत ऐसे व्यय शामिल होते हैं जो कि भवन तथा अन्य निर्माण कार्यों पर तथा मशीनरी व अन्य साज-सज्जा पर होते हैं। इन्हें कुल अचल पूँजी खाते के अन्तर्गत रखा जाता है।

(II) वस्तु सूचियों तथा पूँजीगत सौदों में वृद्धि (Inventories)-इस वर्ग में खाद्यान्न के भण्डार तथा स्टाक पर होने वाले व्यय सम्मिलित किए जाते हैं।

भारत में बजट की मदों का वर्गीकरण सर्वप्रथम सन 1957-58 में किया गया था। सन 1957-58 । से केन्द्रीय बजट इसी आधार पर प्रस्तुत किया जा रहा है।

उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि सभी वर्गीकरण किसी न किसी दृष्टि से दोषपूर्ण हैं। सच तो यह | है कि राज्य का स्थान व्यय की दृष्टि से इतना अधिक महत्वपूर्ण हो गया है, उसके कार्यों में इतनी अधिक | वृद्धि हो गई है और विभिन्न कार्यों का क्षेत्र इतना अस्पष्ट है कि व्यय को स्पष्ट रूप से अलग-अलग वर्गों में नहीं बाँटा जा सकता।

Canons Classification Public Expenditure

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions)

प्रश्न 1. सार्वजनिक व्यय के प्रमुख सिद्धान्त क्या हैं ? समझाकर लिखिये।

What are the canons of Public Expenditure ? Explain clearly.

प्रश्न 2. लोक व्यय के वर्गीकरण के विभिन्न आधारों को समझाइये।

Explain the different bases of classification of Public Expenditure.

प्रश्न 3. सार्वजनिक व्यय के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये। व्यवहार में इनका कहाँ तक पालन किया जाता है?

Describe the canons of Public Expenditure. How far are they being observed in practice?

Canons Classification Public Expenditure

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions)

प्रश्न 1. सार्वजनिक व्यय के मितव्ययिता सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिये। Explain the canon of economy of public expenditure.

प्रश्न 2. सार्वजनिक व्यय के उत्पादकता सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिये। Explain the canon of productivity of public expenditure.

प्रश्न 3. प्रो० फिण्डले शिराज ने सार्वजनिक व्यय का वर्गीकरण किस प्रकार किया है ? How Prof. Findley Shirras classified the public Expenditure.

प्रश्न 4. डाल्टन ने सार्वजनिक व्यय का वर्गीकरण किस प्रकार किया है ? How does Dalton classify the public expenditure?

Canons Classification Public Expenditure

chetansati

Admin

https://gurujionlinestudy.com

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Previous Story

BCom 2nd Year Public Expenditure Meaning Nature Study Material Notes In Hindi

Next Story

BCom 2nd Year Economic Effects Public Expenditure Study Material Notes in Hindi

Latest from BCom 2nd year Public Finance