BCom 2nd year Corporate Laws Classification Companies Study Material notes in Hindi

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BCom 2nd year Corporate Laws Classification Companies Study Material notes in Hindi

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BCom 2nd year Corporate Laws Classification Companies Study Material notes in Hindi: Classification on the Basis of Incorporation Classification on the Basis of Liability Classification on the Basis of Number of Members Classification on the Basis of Ownership Special Provisions For Government Companies Classification Basis Nationality Important Examination Questions Long Answer Questions Short Answer Question :

Classification Companies Study Material
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BCom 2nd Year Corporate Company Legislation India An Introduction Study material Notes in hindi

कम्पनियों का वर्गीकरण

(Classification of Companies)

कम्पनियों का वर्गीकरण मुख्य रूप से निम्नलिखित छ: आधारों पर किया जा सकता है। समामेलन का आधार, (II) दायित्व का आधार, (III) सदस्यों की संख्या का आधार, (IV) स्वामिल आधार. (V) इकाई की स्वतन्त्रता का आधार एवं (VI) राष्ट्रीयता का आधार। इनका वर्णन निम्नलिखित

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(1) समामेलन के आधार पर वर्गीकरण

(Classification on The Basis of Incorporation)

समामेलन के आधार पर कम्पनियाँ दो प्रकार की होती हैं-(1) समामेलित कम्पनियाँ, एवं (2) असमामेलित कम्पनियाँ।

(1) समामेलित कम्पनियाँ (Incorporated Companies) समामेलित कम्पनियाँ निम्नलिखित तीन प्रकार की होती हैं

(i) राज्य आज्ञापत्र द्वारा समामेलित कम्पनी/ चार्टर्ड कम्पनी (Company Incorporated By Royal Charter or Chartered Company)—इस प्रकार की कम्पनी का निर्माण शाही आदेश अथवा राज्य आज्ञा-पत्र द्वारा होता है। ईस्ट इण्डिया कम्पनी (1600) तथा बैंक ऑफ इंग्लैण्ड (1694) राजाज्ञा द्वारा स्थापित कम्पनी के दो प्रमुख उदाहरण हैं। चार्टर्ड कम्पनियों की शक्तियों एवं इनके व्यवसाय की प्रकृति का निर्धारण राजाज्ञा द्वारा ही किया जाता है क्योंकि इनके नियमन का अधिकार भी राजा के ही हाथ में सुरक्षित होता है।

इस प्रकार की कम्पनियाँ प्राचीन काल में स्थापित होती थीं, जैसे-ईस्ट इण्डिया कम्पनी। वर्तमान समय में इस प्रकार की कम्पनियाँ स्थापित नहीं की जाती हैं।

(ii) संसद के विशेष अधिनियम द्वारा समामेलित कम्पनी (Company Incorporated by Special Act of Parliament) कुछ कम्पनियाँ संसद के द्वारा पारित किसी विशेष अधिनियम के अन्तर्गत समामेलित की जाती हैं। इन कम्पनियों के अधिकार, कार्यक्षेत्र एवं सीमाएँ उन विशेष अधिनियमों द्वारा निर्धारित होती हैं जिनके अधीन इनका निर्माण या समामेलन हुआ है। ऐसी कम्पनियों को वैधानिक कम्पनियाँ (Statutory Companies) या निगम (Corporation) कहते हैं। भारत में इस प्रकार की कम्पनियों के बहुत से उदाहरण हैं, जैसे भारत का स्टेट बैंक एवं रिजर्व बैंक, जीवन बीमा निगम, औद्योगिक वित्त निगम एवं भारत का यूनिट ट्रस्ट, आदि। इन कम्पनियों के नाम के अन्त में लिमिटेड शब्द नहीं लिखा जाता है। ये कम्पनियाँ कोई ऐसा कार्य करने के लिए स्थापित की जाती हैं जो राष्ट्र के लाभ के लिए हो तथा जिसे पूर्णतया निजी क्षेत्र में किये जाने से अहित होने की सम्भावना हो। ऐसी कम्पनियों पर कम्पनी अधिनियम, 2013 के प्रावधान उस दशा में तथा उन बिन्दुओं पर लागू होंगे, जहाँ उक्त कम्पनी की स्थापना से सम्बन्धित विशेष अधिनियम एवं कम्पनी अधिनियम के प्रावधानों में कोई विरोधाभास न हो।

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(iii) कम्पनी अधिनियम द्वारा समामेलित कम्पनी (Company Incorproated Under | Companies Act)-कम्पनी अधिनियम, 2013 या इससे पूर्व पारित कम्पनी अधिनियमों के अन्तर्गत निर्मित एवं रजिस्टर्ड या समामेलित कम्पनियाँ, कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत समामेलित कम्पनियाँ कही जाती हैं।’

वैधानिक कम्पनियों को छोड़कर शेष सभी कम्पनियों का निर्माण कम्पनी अधिनियम के द्वारा होता है। यद्यपि कुछ विशेष प्रकार की कम्पनियों के लिए अलग से अधिनियम हैं, परन्तु फिर भी उनका । पंजीयन अधिनियम के अन्तर्गत ही होता है, जैसे-बैंकिंग कम्पनियों के लिए बैंकिंग कम्पनीज अधिनियम, 1949, बीमा कम्पनियों के लिए बीमा अधिनियम 1938 और विद्युत कम्पनियों के लिए विद्युत (पूर्ति) अधिनियम, 1948 है, किन्तु इनका पंजीयन कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत ही होता है।

2. असमामेलित कम्पनियाँ (Un-incorporated Companies)-बड़ी-बड़ी साझेदारी संस्थाओ। को असमामेलित कम्पनियाँ कहते हैं। इन कम्पनियों के सदस्यों का दायित्व असीमित होता है तथा इनकी अन्य कम्पनियों कम्पनियों की भाँति पृथक् अस्तित्व आदि प्राप्त नहीं होता। अब इस प्रकार की कम्पनियाँ स्थापित की जा सकती हैं क्योंकि भारतीय कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 464 में इस प्रकार की दो पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है। असमामेलित कम्पनी, अवैधानिक संस्था मानी जायेगी यदि। सदस्यों की संख्या ऐसी संख्या से अधिक है जो अधिनियम द्वारा निर्दिष्ट की जाए, परन्तु सदस्यों अधिकतम संख्या 100 सदस्यों से अधिक नहीं हो सकती। इस धारा के अनुसार, कोई भी संस्था या जिसमें 100 से अधिक सदस्य/साझेदार हैं बिना कम्पनी के रूप में समामेलित हुए कार्य नहीं कर सकती।

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(II) दायित्व के आधार पर वर्गीकरण

(Classification on The Basis of Liability)

दायित्व के आधार पर कम्पनियाँ दो प्रकार की होती हैं-(1) सीमित दायित्व वाली कम्पनियाँ एवं असीमित दायित्व वाली कम्पनियाँ। इनका वर्णन निम्नलिखित है

(1) सीमित दायित्व वाली कम्पनियाँ (Limited Liability Companies)—इस प्रकार की कम्पनियों में अंशधारियों का दायित्व सीमित होता है। इन कम्पनियों के नाम के आगे लिमिटेड Limited) शब्द अनिवार्य रूप से लगाया जाता है। ये कम्पनियाँ निम्नलिखित दो प्रकार की होती हैं

(i)  गारण्टी द्वारा सीमित दायित्व वाली कम्पनियाँ (Companies Limited by Guarantee)कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2(21) के अनुसार, प्रत्याभूति या गारण्टी द्वारा सीमित दायित्व वाली कम्पनी वह है जिसमें कम्पनी के सदस्य कम्पनी को इस बात की गारन्टी देते हैं कि यदि कम्पनी का उनकी सदस्यता के समय अथवा सदस्यता के समाप्त होने से एक वर्ष के भीतर समापन हो जाये तो वे कम्पनी के कोष में एक निश्चित राशि जमा कर देंगे। इस प्रकार सदस्यों का दायित्व उस निश्चित राशि तक सीमित रहता है जिसके लिए वे गारण्टी देते हैं। यह उल्लेखनीय हैं कि सदस्यों का दायित्व कम्पनी के समापन के समय ही उत्पन्न होता है, कम्पनी के जीवन-काल में नहीं।

गारण्टी द्वारा सीमित दायित्व वाली कम्पनियों की स्थापना का उद्देश्य व्यवसाय करना या लाभ कमाना नहीं होता। ऐसी कम्पनियाँ प्राय: खेलकूद, कला-कौशल, विज्ञान, धर्म, वाणिज्य अथवा धर्मार्थ क्रियाओं को प्रोत्साहन देने हेतु स्थापित की जाती हैं।

(ii) अंशों द्वारा सीमित कम्पनी (Company Limited by Shares) कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2 (22) के अनुसार इन कम्पनियों में सदस्यों का दायित्व उनके द्वारा क्रय किये गये अंशों के अंकित मूल्य तक ही सीमित रहता है। अत: यदि अंशों पर अंकित मूल्य का एक भाग कम्पनी को चुका दिया गया है तो अंशधारी का दायित्व अंशों पर देय अदत्त राशि तक ही सीमित होगा और यदि अंशधारी कम्पनी को समस्त अंकित मूल्य का भुगतान कर चुका है तो उसका कम्पनी के प्रति कोई उत्तरदायित्व नहीं रहता। भारत में ऐसी कम्पनियाँ ही सर्वाधिक लोकप्रिय हैं।

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अंशों द्वारा सीमित कम्पनी तथा गारण्टी द्वारा सीमित कम्पनी में कुछ समानताएँ हैं तो कुछ अन्तर भी हैं। इन दोनों में प्रमुख समानताएँ निम्नानुसार हैं :

() दोनों ही कम्पनियों के सदस्यों का दायित्व सीमित होता है।

() दोनों ही प्रकार की कम्पनियाँ निजी एवं सार्वजनिक किसी भी प्रकार की हो सकती हैं।

() दोनों ही कम्पनियों में यदि आरक्षित पूँजी (Reserve capital) है तो वे इसे अपने समापन के समय ही माँग सकती हैं।

इन दोनों प्रकार की कम्पनियों में प्रमुख अन्तर निम्नानुसार है :

() अंशों द्वारा सीमित कम्पनी में अंश पूँजी का होना अनिवार्य है जबकि गारण्टी द्वारा सीमित कम्पनी में अंश पूँजी हो भी सकती है और नहीं भी।

() अंशों द्वारा सीमित कम्पनी अपने जीवन काल में कभी भी अपने सदस्यों से उनके द्वारा धारित अंशों पर अदत्त राशि (आरक्षित पूँजी को छोड़कर) की माँग कर सकती है, जबकि गारण्टी द्वारा सीमित कम्पनी अपने सदस्यों से गारण्टी की राशि केवल समापन के समय ही माँग सकती है।

() अंशों द्वारा सीमित कम्पनी के सदस्यों का दायित्व तब तक ही होता है जब तक वे कम्पनी के पंजीकृत सदस्य होते हैं जबकि गारण्टी द्वारा सीमित कम्पनी के सदस्यों का दायित्व उनके सदस्यता छाड़न के आगामी एक वर्ष तक भी बना रह सकता है, यदि उस एक वर्ष में कम्पनी का समापन प्रारम्भ हो जाए।

() अंशों द्वारा सीमित कम्पनियाँ प्रायः व्यापारिक एवं लाभ उद्देश्यों के लिये बनायी जाती है जबकि गारण्टी द्वारा सीमित कम्पनियाँ प्राय: कला, वाणिज्य, धर्म, विज्ञान आदि के विकास कार्यों के लिये तथा गैर-लाभकारी (Non-profit) उद्देश्यों के लिये बनायी जाती हैं।

(2) असीमित दायित्व वाली कम्पनियाँ (Unlimited Liability Companies) [धारा 2 (92)] -ऐसी कम्पनियों में कम्पनी के ऋणों का भुगतान करने के लिए साझेदारी फर्म की भाँति कम्पनी के सदस्यों का दायित्व असीमित होता है। परन्तु इस सम्बन्ध में यह ध्यान रखने योग्य है कि ऐसा दायित्व साझेदारी फर्म के साझेदारों के समान सामहिक एवं व्यक्तिगत रूप से असीमित न होकर केवल सामूहिक रूप से असीमित होता है। कम्पनी के सदस्यों पर व्यक्तिगत रूप से वाद प्रस्तुत नहीं किया जा सकता, दूसरे कम्पनी के सदस्यों का दायित्व कम्पनी में उनके हित के अनुपात में असीमित और संयुक्त होता है। यह भी ध्यान रखने योग्य है कि कम्पनी के सदस्यों का दायित्व तभी उत्पन्न होता है जब कम्पनी समापन में चली जाये। असीमित दायित्व वाली कम्पनी, अंश पूँजी सहित भी हो सकती है तथा अंश पूँजी रहित भी। यदि यह अंश पूँजी सहित है तो पुन: यह दो प्रकार की हो सकती है सार्वजनिक या निजी। वर्तमान में ऐसी कम्पनियों प्रचलन में नहीं है।

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(III) सदस्यों की संख्या के आधार पर वर्गीकरण

(Classification on The Basis of Number of Members)

सदस्यों की संख्या के आधार पर कम्पनियाँ दो प्रकार की होती हैं-

(1) निजी कम्पनी, एवं

(2) सार्वजनिक कम्पनी। इनका वर्णन निम्नलिखित है

(1) निजी कम्पनी (Private Company)—इनको अलोक या व्यक्तिगत कम्पनी भी कहते हैं। कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2 (68) के अनुसार, निजी कम्पनी का आशय एक ऐसी कम्पनी से है जिसकी प्रदत्त पूँजी कम से कम एक लाख रुपये या इससे अधिक निर्धारित की गई राशि की है। कम्पनी (संशोधन) अधिनियम, 2015 की अधिसूचना संख्या 1/6/2015-CL(V) के अनुसार दिनांक 29.5.2015 से ‘प्रदत्त पूँजी एक लाख रुपये या इससे अधिक’ शब्द को हटा दिया गया है। तथा जो अपने अन्तर्नियमों द्वारा—(अ) अपने अंशों, यदि कोई हों, के हस्तान्तरण पर प्रतिबन्ध लगाती है। (ब) निम्नलिखित को छोड़कर, अपने सदस्यों की अधिकतम संख्या 200 तक सीमित करती है-(i) ऐसे व्यक्ति जो कि कम्पनी के कर्मचारी हैं, तथा (ii) ऐसे व्यक्ति जो कि पहले कम्पनी के कर्मचारी रहते हये कम्पनी के सदस्य थे और अब कर्मचारी नहीं हैं लेकिन सदस्य बने हुये हैं, तथा (iii) 200 सदस्यों की अधिकतम संख्या की गिनती करने हेतु संयुक्त अंशधारियों (2 या 2 से अधिक व्यक्तियों द्वारा संयुक्त रूप से अंश धारित करने वाले अंशधारी) को एक सदस्य माना जाता है। (iv) निजी कम्पनी की स्थापना केवल दो सदस्यों से हो सकती है, यद्यपि कम्पनी अधिनियम, 2013 के अनुसार निजी कम्पनी एक व्यक्ति कम्पनी (One Person Company) के रूप में भी समामेलित करायी जा सकती है। (स) अपने अंशों तथा ऋण-पत्रों को खरीदने के लिये सार्वजनिक निमन्त्रण नहीं देती।

(2) सार्वजनिक कम्पनी (Public Company)—इनको लोक कम्पनी भी कहते हैं। भारतीय कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2 (71) के अनुसार, “सार्वजनिक कम्पनी का आशय एक ऐसी कम्पनी से है जो कि निजी कम्पनी नहीं है तथा जिसकी प्रदत्त पूँजी कम से कम पाँच लाख रुपये अथवा इससे अधिक निर्धारित की गई राशि की है।” इस परिभाषा से सार्वजनिक कम्पनी का अर्थ पूर्णतया स्पष्ट नहीं होता। अधिनियम की विभिन्न व्यवस्थाओं के अन्तर्गत एक सार्वजनिक कम्पनी उसे माना जाता है। जिसमें निम्नलिखित विशेषताएँ विद्यमान हों

(i) जिसकी प्रदत्त पूँजी कम से कम 5 लाख रुपये अथवा इससे अधिक निर्धारित की गई राशि की है। कम्पनी (संशोधन) अधिनियम 2015 की अधिसूचना संख्या 1/6/2015-CL (V) के अनुसार 29.5.2015 से इस प्रतिबन्ध को हटा दिया गया है।

(i) सदस्य संख्या न्यूनतम 7 हो, अधिकतम की कोई सीमा नहीं..

(iii) कम्पनी अपने अंशों के हस्तान्तरण पर किसी प्रकार का कोई प्रतिबन्ध न लगाये.

(iv) कम्पनी अपने अंशों व ऋणपत्रों के क्रय के लिए जनसाधारण को आमन्त्रित करे।

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(IV) आकार के आधार पर वर्गीकरण

(Classification on the basis of Size)

(1) लघु कम्पनी (Small Company)-कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2(85) के अनुसार

कम्पनी से आशय, सार्वजनिक कम्पनी से भिन्न, एक ऐसी कम्पनी से है

(i) जिसकी चुकता पूंजी 50 लाख ₹ या ऐसी अधिक राशि (जो निर्धारित की जाये) से अधिक नहीं होगी लेकिन जो 5 करोड़ ₹ से अधिक नहीं होगी।

(ii) जिसका टर्नओवर विगत लाभ-हानि खाते के अनसार 2 करोड ₹ या ऐसी ऊंची राशि से अधिक न हो जो निर्धारित की जाए लेकिन यह 20 करोड़ से अधिक नहीं होगा।

इस धारा की व्यवस्थाएं किसी सूत्रधारी कम्पनी, सहायक कम्पनी, धारा 8 के अन्तर्गत पंजीकृत कम्पनी या किसी विशिष्ट अधिनियम द्वारा प्रशासित कम्पनी पर लागू नहीं होंगी।

(2) वृहद् कम्पनी (Large Company) वृहद् कम्पनी से आशय ऐसी कम्पनी से है, जो लघु कम्पनी न हो।

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(V) स्वामित्व के आधार पर वर्गीकरण

(Classification on The Basis of Ownership)

(1) सरकारी कम्पनी (Government Company) कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2 (45) के अनुसार, सरकारी कम्पनियों से तात्पर्य उन कम्पनियों से है जिनमें कम से कम 51% अंश पूँजी केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार अथवा सरकारें या दोनों मिलकर (केन्द्रीय या राज्य सरकार) ले लेती हैं। उन कम्पनियों को भी सरकारी कम्पनी माना जायेगा जो कि उपर्युक्त सरकारी कम्पनियों की सहायक कम्पनियाँ हैं।

सरकारी कम्पनियों के सम्बन्ध में विशेष प्रावधान

(Special Provisions for Government Companies)

अंकेक्षक की नियुक्ति (धारा 139, 394-395) (Appointment of Auditor) [धारा 139 (7)] सरकारी कम्पनी के सम्बन्ध में पहले अंकेक्षक की नियुक्ति भारत के नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General of India) द्वारा कम्पनी के पंजीकरण के 60 दिनों के अन्दर की जायेगी। यदि नियन्त्रक तथा महालेखा परीक्षक पहले अंकेक्षक की नियुक्ति उक्त अवधि में नहीं करता है, तो कम्पनी का निदेशक मण्डल अगले 30 दिनों में अंकेक्षक की नियुक्ति करेगा एवं चूक होने पर यह कम्पनी के सदस्यों को सूचित करेगा जो 60 दिनों के भीतर विशेष साधारण सभा में अंकेक्षक की नियुक्ति करेंगे जो कम्पनी की प्रथम वार्षिक साधारण सभा की समाप्ति तक अपने पद पर बना रहेगा।

अंकेक्षक की आकस्मिक रिक्तता (Casual Vacancy) धारा 139 (8) __ भारत के नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक 30 दिनों के भीतर अंकेक्षक के पद की आकस्मिक रिक्तता को भरेगा। परन्तु यदि भारत के नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक आकस्मिक रिक्तता नहीं भरते हैं, तो कम्पनी के निदेशक मण्डल द्वारा 30 दिनों के भीतर आकस्मिक रिक्तता भरी जायेगी।

सरकारी कम्पनी का अंकेक्षक यदि त्याग-पत्र देता है तो वह त्याग-पत्र की तिथि के भीतर निर्धारित प्रारुप में एक विवरण कम्पनी रजिस्ट्रार को और भारत के नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक को त्याग-पत्र देने के कारणों और अन्य उपयुक्त तथ्यों के साथ भेजेगा। चूक होने की दशा में उस पर एवं कम्पनी पर जुर्माना किया जायेगा जो ₹50,000 से कम नहीं होगा और जो ₹5 लाख तक बढ़ सकता है।

सरकारी कम्पनियों की वार्षिक रिपोर्ट (Annual Report of Governmment Companies) (धारा 394 व 395)-1. जहाँ केन्द्र सरकार, सरकारी कम्पनी की सदस्य है, केन्द्र सरकार कम्पनी की वार्षिक रिपोर्ट हैं ।

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() धारा 143, उपधारा 6 के परन्तुक के अन्तर्गत वार्षिक साधारण सभा के तीन माह के भीतर तैयार करायेगी, जिसमें भारत के नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक की टिप्पणियाँ तथा अंकेक्षण रिपोर्ट प्रस्तुत की जायेगी।

() वार्षिक रिपोर्ट तैयार होने के तुरन्त बाद, अंकेक्षक रिपोर्ट की प्रतिलिपि तथा भारत के नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक की टिप्पणियों के साथ, संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत की जायेगी।

2. जहाँ केन्द्र सरकार के अतिरिक्त राज्य सरकार भी सरकारी कम्पनी की सदस्य है, या केवल राज्य सरकार (सरकारें) इसके सदस्य हैं, उपरोक्त रिपोर्ट राज्य विधान सभा के सदन, या दोनों सदनों में, जैसी भी स्थिति हो, रखी जायेगी।

3. कम्पनी अधिनियम में परिवर्तन (Modification in Companies Act) केन्द्र सरकार, संसद के दोनों सदनों के अनुमोदन द्वारा सरकारी कम्पनियों के सम्बन्ध में कम्पनी अधिनियम में परिवर्तन कर सकती है।

अन्य प्रावधान

(1) सरकारी कम्पनियों के लिए बने स्पष्ट नियमों के अतिरिक्त शेष सभी परिस्थितियों में सरकारी कम्पनी पर भी कम्पनी अधिनियम, 2013 के प्रावधान ही लागू होंगे।

(ii) एक सरकारी कम्पनी किसी अन्य कम्पनी की भाँति अपने सदस्यों से पृथक् अस्तित्व रखती है, इसलिए सरकारी कम्पनी को राज्य (State) नहीं माना जा सकता।

(iii) सरकारी कम्पनी तथा सरकार भिन्न-भिन्न होते हैं, अत: सरकारी कम्पनी के कर्मचारी राजकीय या सरकारी कर्मचारी नहीं होते हैं।

(2) गैरसरकारी कम्पनी (Non-Government Company)-गैर-सरकारी कम्पनी से आशय उस कम्पनी से है जो सरकारी न हो। भारत में गैर-सरकारी कम्पनियाँ हीं अधिक पाई जाती हैं।

(VI) इकाई की स्वतन्त्रता के आधार पर वर्गीकरण

(Classification on The Basis of Independence of An Unit)

इकाई की स्वतन्त्रता के आधार पर कम्पनियों का वर्गीकरण निम्नलिखित तीन भागों में किया जा सकता है

(1) स्वतन्त्र कम्पनी (Independent Company) स्वतन्त्र कम्पनी से आशय उस कम्पनी से है। जो अपना कार्य स्वतन्त्रतापूर्वक अकेले ही करती है और किसी अन्य कम्पनी के द्वारा नियन्त्रित नहीं होती

(2) सहायक कम्पनी (Subsidiary Company) कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2(87) के अनुसार, किसी अन्य कम्पनी के सम्बन्ध में (जिसे सूत्रधारी कम्पनी कहा जाता है, सहायक कम्पनी से आशय ऐसी कम्पनी से है, जिसमें सूत्रधारी कम्पनी

() इसके (सहायक कम्पनी के) संचालक मण्डल के गठन पर नियन्त्रण रखती है, या।

() इसकी स्वयं की या इसकी एक से अधिक सहायक कम्पनियों को मिलाकर कुल अंश पूँजी के आधे से अधिक भाग पर नियन्त्रण रखती हो।

(3) सूत्रधारी कम्पनी (Holding Company) कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2 (46) के अनुसार, “किसी कम्पनी को एक या अधिक कम्पनियों की सूत्रधारी कम्पनी तभी माना जाता है, जबकि ऐसी कम्पनियाँ उसकी सहायक कम्पनियाँ हों।”

परन्तु यदि किसी कम्पनी के अंश किसी अन्य कम्पनी के पास प्रतिभूति के रूप में रखे हुए हैं, तो वह अन्य कम्पनी सूत्रधारी कम्पनी नहीं कहलायेगी।

संक्षेप में, जब कोई कम्पनी किसी दूसरी कम्पनी के संचालक मण्डल के गठन पर नियन्त्रण रखती है अथवा वह कम्पनी दूसरी कम्पनी के आधे से अधिक मताधिकार या अंशों पर अधिकार रखती है तो पहली कम्पनी सूत्रधारी तथा दूसरी सहायक कम्पनी कहलाती है।

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सूत्रधारी एवं सहायक कम्पनियों के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण नियम

(Important Rules Regarding Holding and Subsidiary Companies)

1 एक सहायक कम्पनी अपनी सूत्रधारी कम्पनी के अंश नहीं खरीद सकती।

2. कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 19(1) के अनुसार कोई भी सूत्रधारी कम्पनी अपने अंश अपनी किसी सहायक कम्पनी को आबण्टित या हस्तान्तरित नहीं करेगी। ऐसा आवण्टन या हस्तान्तरण अवैध होगा। परन्तु इस उप-धारा का कोई प्रावधान उस दशा में लागू नहीं होगा

() जहाँ सहायक कम्पनी ऐसे अंश किसी मृत अंशधारी के कानूनी प्रतिनिधि के रुप में धारित किये हुए है; या . () जहाँ सहायक कम्पनी ऐसे अंश ट्रस्टी के रुप में धारित किये हुए हैं; या

() जहाँ सहायक कम्पनी उससे भी पहल से एक अंशधारी है जब यह सूत्रधारी कम्पनी की सहायक कम्पनी बनी।

3. इस धारा में सन्दर्भित एक सूत्रधारी कम्पनी के अंशों को जो गारण्टी द्वारा सीमित कम्पनी या असीमित कम्पनी है, जिसकी अंश पूँजी नहीं है, सदस्यों के हित का सन्दर्भ माना जायेगा चाहे हित का प्रारुप कोई भी हो। [धारा 19 (2)]।

4. एक निजी कम्पनी जो विदेशी कम्पनी की सहायक कम्पनी है इस अधिनियम के उद्देश्य के लिए विदेशी कम्पनी की सहायक या सूत्रधारी कम्पनी मानी जायेगी, चाहे धारा 19 के प्रावधान उस पर लागू हों या न हों।

5. एक सूत्रधारी कम्पनी के लिए अपने स्थिति विवरण के साथ सहायक कम्पनी या कम्पनियों के स्थिति विवरण, (ii) लाभ-हानि खाता, (iii) निदेशकों की रिपोर्ट. (iv) अंकेक्षक की रिपोर्ट संलग्न करना आवश्यक है।

सूत्रधारी कम्पनी को अपनी सहायक कम्पनी में अपने हित के सम्बन्ध में एक विवरण भी संलग्न ना होगा। यदि उपरोक्त विषयों में से किसी भी विषय पर सूचना उपलब्ध नहीं है तो सूत्रधारा कम्पना का निदेशक मण्डल, सूत्रधारी कम्पनी के स्थिति विवरण के साथ उपरोक्त विषयों के सम्बन्ध में विवरण संलग्न करेगा।

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(VII) राष्ट्रीयता के आधार पर वर्गीकरण

(Classification of The Basis of Nationality)

राष्ट्रीयता के आधार पर कम्पनियाँ निम्न दो प्रकार की होती हैं

(1) देशी अथवा राष्ट्रीय कम्पनी (National or Domestic Company)-जो कम्पनी केवल उसी देश में व्यवसाय करती है जिसमें इसकी स्थापना. अथवा पंजीकरण हुआ है, उसे राष्ट्रीय अथवा देशी कम्पनी कहा जाता है। उदाहरण के लिए. भारत में भारतीय कम्पनी अधिनियम, 2013 के अन्तर्गत रजिस्टर्ड कम्पनी देशी कम्पनी कही जायेंगी।

(2) बहराष्ट्रीय अथवा विदेशी कम्पनी (Multinational or Foreign Company)-कम्पना अधिनियम, 2013 की धारा 2 (42) के अनुसार, “विदेशी कम्पनी का आशय भारत के बाहर समामेलित किसी कम्पनी अथवा निगमित निकाय (Body Corporate) से है जो (i) चाहे स्वयं या एजेण्ट के माध्यम से, भौतिक या इलैक्ट्रोनिक रूप में जिसके व्यापार का स्थान भारत में है; एवं कोई व्यापारिक क्रिया किसी अन्य तरीके से भारत में निष्पादित करती है।”

विदेशी कम्पनियों के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण नियम

(Important Rules Applicable to Foreign Companies)

1 कम्पनी अधिनियम का लागू होना (Application of the Company Act) (धारा 379)-एक विदेशी कम्पनी जिसकी चुकता अंश पूँजी (समता या पूर्वाधिकार या दोनों) का 50% या उससे अधिक भाग भारतीय नागरिकों एवं भारत में निगमित कम्पनियों द्वारा धारित है, उसे ऐसे प्रावधानों का अनुपालन करना होगा जैसा केन्द्र सरकार द्वारा अधिसूचित किया जाए।

2. रजिस्ट्रार के पास प्रपत्र फाइल करना (Document etc. to be Filed with Registrar) [धारा 380]–प्रत्येक विदेशी कम्पनी अपना व्यापारिक स्थान भारत में स्थापित करने के 30 दिनों के अन्दर रजिस्ट्रार को निम्नलिखित प्रपत्र पंजीकरण (समामेलन) के लिए सुपुर्द करेगी

(i) कम्पनी का चार्टर, अधिनियम या पार्षद सीमा नियम एवं अन्तर्नियम या अन्य प्रपत्र जो कम्पनी के विधान को परिभाषित करे। यदि प्रपत्र अंग्रेजी भाषा में नहीं है तो उसका अंग्रेजी में प्रमाणित अनुवादः

(ii) कम्पनी के पंजीकृत या प्रधान कार्यालय का पूरा पता:

(iii) निदेशकों एवं कम्पनी के सचिव की सूची जिसमें ऐसा विवरण होगा जो निदिष्ट किया जाये:

(iv) भारत में निवासी एक या अधिक व्यक्तियों के नाम एवं पते जो कम्पनी की ओर से कम्पनी को भेजे गए प्रक्रम (Process) या सूचना (Notice) प्राप्त करने के लिए अधिकृत हैं:

(v) भारत में कम्पनी के कार्यालय का पूरा पता जो भारत में व्यवसाय का मुख्य स्थान माना जाए:

(vi) पिछली बार भारत में व्यापार का स्थान खोलने एवं बन्द करने का विवरणः ।

यह घोषणा कि कम्पनी का कोई भी निदेशक या भारत में अधिकत प्रतिनिधि कभी भी दण्डित नहीं किया गया है या कम्पनी का निर्माण या प्रबन्ध करने पर उस पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाया गया था।

प्रत्येक विदेशी कम्पनी जिसने कम्पनी अधिनियम, 2013 के आरम्भ होने से पहले कम्पनी अधिनियम, 1956 की धारा 592 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट प्रपत्र और विवरण दाखिल नहीं किया था तो उसका इस अधिनियम के अन्तर्गत वह दायित्व अभी चालू माना जायेगा।

उपरोक्त प्रपत्रों या विवरण में किये गये किसा परिवर्तन की सूचना, परिवर्तन की तिथि से 20 दिन के अन्दर रजिस्ट्रार को भेजना अनिवार्य है।

(1) विदेशी कम्पनी के लेखे (Accounts of Foreign Companyाधारा प्रत्येक विदेशी कम्पनी के द्वारा प्रत्येक कलेण्डर वर्ष में

() स्थिति विवरण तथा लाभ एवं हानि खाता निर्दिष्ट प्रारूप में तैयार करना एसावर साथ और ऐसे प्रपत्र संलग्न करना जैसे निर्दिष्ट हो; तथा।।

() उन प्रपत्रों की प्रतिलिपि रजिस्ट्रार को सपुर्द करना;परन्तु केन्द्र सरकार आ यह निर्देश दे सकती है कि किसी विदेशी कम्पनी की दशा में या विदेशी कम्पानया क वर्ग

(अ) के प्रावधान लागू नहीं होंगे या परिवर्तित रुप से लागू होंगे जैसा कि उस अधिसूचना में निर्दिष्ट हो।

(2) यदि ऐसा कोई प्रपत्र अंग्रेजी भाषा में नहीं है तो उसका अंग्रेजी में प्रमाणित अनुवाद उसके साथ संलग्न किया जाए।

(3) प्रत्येक विदेशी कम्पनी रजिस्टार को उप-धारा () में सपर्द किये जाने वाले आवश्यक प्रपत्रों कसाथ, निधारित प्रारूप में कम्पनी द्वारा भारत में स्थापित सभी व्यापारिक स्थानों की सची की एक प्रतिलिपि उस तिथि को जिस सन्दर्भ में उप-धारा (1) में सन्दर्भित स्थिति विवरण तैयार किया गया था, प्रस्तुत करेगी।

4. विदेशी कम्पनी के नाम आदि को दर्शाना (Display of Name, etc. of Foreign Company) [धारा 382]-प्रत्येक विदेशी कम्पनी

() स्पष्ट रुप से, प्रत्येक कार्यालय के बाहर जहाँ यह भारत में व्यापार करती है, कम्पनी का एवं देश का नाम, जिसमें यह कम्पनी निगमित हुई है. अंग्रेजी भाषा में सरलता से पढ़े जाने वाले अक्षरों में और उस स्थान पर सामान्य रुप से प्रयुक्त भाषा या भाषाओं में प्रदर्शित करेगी।

() कम्पनी का एवं देश का नाम, जिसमें कम्पनी निगमित है, अंग्रेजी भाषा में सभी व्यापारिक पत्रों, बिल और कागज-पत्रों एवं सभी सूचना-पत्रों तथा कम्पनी के अन्य अधिकारिक प्रकाशनों पर, छापा जाये।

() यदि कम्पनी के सदस्यों का दायित्व सीमित है तो इस तथ्य की सूचना

(i) ऐसे जारी प्रत्येक प्रविवरण में और सभी व्यापारिक पत्रों, बिल शीर्षों एवं कागज पत्रों, सूचना पत्रों, विज्ञापनों तथा कम्पनी के कार्यालय के अन्य प्रकाशनों में पढ़ने योग्य अंग्रेजी अक्षरों में वर्णित किया जाये; एवं

(ii) स्पष्ट रुप से प्रत्येक कार्यालय के बाहर जहाँ यह भारत में व्यापार कर रही है, अंग्रेजी भाषा में सरलता से पढ़े जाने वाले अक्षरों में और उस स्थान पर सामान्य रुप से प्रयुक्त भाषा या भाषाओं में प्रदर्शित करेगी।

5.विदेशी कम्पनी को सूचना देना (Service on Foreign Company) [धारा 383]

(i) धारा 71 के प्रावधान विदेशी कम्पनी पर यथा आवश्यक परिवर्तन के साथ लागू होंगे;

(ii) धारा 92 के प्रावधान, अपवाद, संशोधन, और अनुकूलन सहित, जो इस अधिनियम के नियमों के अन्तर्गत किये जायें भारत में विदेशी कम्पनी पर भी लागू होंगे।

(iii) धारा 128 के प्रावधान विदेशी कम्पनी पर लेखा पुस्तकों को भारत में व्यापार के मुख्य स्थान पर रखने की आवश्यकता की सीमा तक भारत में व्यापार के दौरान प्राप्त और व्यय की गई मुद्रा, की गई बिक्री व खरीद एवं सम्पत्तियाँ और दायित्व के सम्बन्ध में लागू होंगे।

(iv) अध्याय

(vi) के प्रावधान यथा आवश्यक परिवर्तनों के साथ विदेशी कम्पनियों द्वारा सम्पत्तियों पर उत्पन्न या प्राप्त प्रभारों पर लागू होंगे।

(v) अध्याय (xiv) के प्रावधान यथा आवश्यक परिवर्तनों के साथ विदेशी कम्पनियों पर भारत में निगमित कम्पनियों की तरह लाग होंगे।

6. प्रपत्रों के पंजीकरण के लिए फीस (Fee for Registration of Documents) [धारा 3851-विदेशी कम्पनी प्रपत्रों के पंजीकरण पर उतनी फीस का भुगतान करेगी जो निर्धारित हो।

7.प्रविवरण की तिथि एवं उसमें सम्मलित विवरण (Dating of Prospectus and Particulars to be Contained Therein) [धारा 387] -कोई भी व्यक्ति भारत में, भारत के बाहर निगमित या निगमित होने वाली किसी कम्पनी की प्रतिभूतियों को प्रस्तावित करते हुए प्रविवरण जारी, परिचालित Circulate) या वितरित नहीं करेगा चाहे कम्पनी ने भारत में व्यापार का स्थान स्थापित किया है या नहीं। किया है या जब निर्मित हो जाएगी भारत में व्यापार का स्थान स्थापित किया है, या नहीं किया है. करेगी।

() निम्नलिखित के सम्बन्ध में विवरण सम्मलित हैं, अर्थात्(त) प्रपत्र, जो कम्पनी के विधान को गठित या परिभाषित करता है;

(ii) अधिनियम या प्रावधान जिसके अन्तर्गत कम्पनी का समामेलन किया गया था;

(iii) भारत में पता जहाँ भारत में कथित प्रपत्र, अधिनियमन या प्रावधानों या उनकी प्रतिलिपि और यदि वे अंग्रेजी भाषा में नहीं है तो, उनका अंग्रेजी में अनुवाद देखा जा सकता है।

(iv) तिथि जिस दिन और देश जिसमें कम्पनी का समामेलन किया जायेगा या किया गया था ।

(v) यह कम्पनी ने भारत में व्यापार का स्थान स्थापित किया है और यदि ऐसा है तो व्यापार के मुख्य स्थान का पता; और

() धारा 26 में निर्दिष्ट विषयों का वर्णन

यह धारा कम्पनी के वर्तमान अंशधारियों या ऋणपत्रधारियों को प्रविवरण या फार्म जारी करने पर लागू नहीं होगी।

8. विशेषज्ञ की सहमति एवं आबंटन के सम्बन्ध में प्रावधान (Provisions as to Expert’s Consent and Allotment) [धारा 388] विदेशी कम्पनी अपना प्रविवरण तब तक जारी नहीं करेगी जब तक कि विशेषज्ञ ने अपनी सहमति नहीं दे दी हो।

इस धारा के उद्देश्यों के लिए एक कथन को प्रविवरण में सम्मिलित माना जायेगा यदि यह किसी रिपोर्ट या स्मरण-पत्र के मुख्य पृष्ठ पर उससे सन्दर्भित हो या उसके साथ जारी किया गया था।

9. प्रविवरण का पंजीकरण (Registration of Prospectus) [धारा 389]-कोई भी व्यक्ति भारत में, भारत के बाहर निगमित या निगमित होने वाले किसी कम्पनी की प्रतिभूतियों को प्रस्तावित करते हुए प्रविवरण जारी, परिचालित (Circulate) या वितरित नहीं करेगा चाहे कम्पनी ने भारत में व्यापार का स्थान स्थापित किया है या नहीं, करेगी या नहीं करेगी, जब तक कि ऐसा करने से पहले इसकी एक प्रति, कम्पनी के अध्यक्ष एवं 2 निदेशकों द्वारा यह प्रमाणित करते हुए कि प्रविवरण का अनुमोदन प्रबन्धकीय समिति द्वारा प्रस्ताव के द्वारा कर दिया गया है, पंजीकरण के लिए रजिस्ट्रार को न दे दी गई हो और प्रविवरण के मुख पृष्ठ पर यह वर्णित है कि इस प्रविवरण की प्रति इस प्रकार से दे दी गई है।

और धारा 388 के अन्तर्गत प्रविवरण जारी करने के लिए वांछित कोई सहमति एवं निर्धारित प्रपत्र उस प्रति पर बेचान कर दिया है अथवा उसके साथ संलग्न कर दिया है।

उल्लंघन के लिए दण्ड (Punishment for Contravention) [धारा 392]-धारा 391 के प्रावधानों के पूर्वाग्रह के बिना यदि एक विदेशी कम्पनी इस अध्याय के प्रावधानों का उल्लंघन करती है तो यह जुर्माना देने के लिए दायी होगी जो ₹ एक लाख से कम नहीं होगा और जो ₹ तीन लाख तक हो सकता है और यदि उल्लंघन जारी रहता है तो इस पर पहले दिन के बाद ₹ 50,000 प्रतिदिन की दर से अतिरिक्त जुर्माना किया जायेगा जिस अवधि में उल्लंघन जारी रहता है और विदेशी कम्पनी का प्रत्येक दोषी अधिकारी सजा का दायी होगा जो 6 माह तक हो सकती है या जुर्माने के लिए दायी होगा जो ₹ 25,000 से कम नहीं होगा और ₹ 5 लाख तक हो सकता है अथवा दोनों।

10. कम्पनी द्वारा उल्लंघन कम्पनी के अनुबन्धों को प्रभावित नहीं करेगा (Company’s Failure to Comply with the provisions of this Chapter not to Affect Validity of Contracts etc.) [धारा 393]-विदेशी कम्पनी द्वारा इस अधिनियम के या इसके किसी प्रावधान के अनुपालन न करने से कम्पनी के अनुबन्ध, व्यवहार एवं लेन-देन प्रभावित नहीं होंगे परन्तु विदेशी कम्पनी किसी अधिकार को लाग कराने के लिए दावा या मुकदमा नहीं कर सकेगी जब तक कि यह इस पर लाग प्रावधान का अनुपालन नहीं करती।

11. समापन (Winding up) [धारा 376] -एक विदेशी कम्पनी का समापन एक अपंजीकत कम्पनी की तरह किया जायेगा बावजूद इसके कि उस देश के कानून के अनुसार जहाँ पर वह निगमित हुई थी, ऐसी कम्पनी का विघटन हो गया हो या अन्यथा अस्तित्व में न हो।

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निजी कम्पनी या अलोक कम्पनी या प्राइवेट कम्पनी की विस्तत विवेचना

(Detailed Discussion of Private Company)

निजी कम्पनी (Private Company) इनको अलोक या व्यक्तिगत कम्पनी भी कहते है। कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 2 (68) के अनुसार, निजा कम्पना का आशय एक ऐसी कम्पनी है जिसकी प्रदत्त पूँजी कम से कम एक लाख रुपये या इससे अधिक निर्धारित की गई राशि की है। कम्पनी (संशोधन) अधिनियम, 2015 की अधिसूचना संख्या 1/6/2015-CL(V) के अनुसार दिनांक 29.5.2015 से प्रदत्त पंजी एक लाख रुपये या इससे अधिक शब्द को हटा दिया गया है। तथा जो अपने अन्तर्नियमों द्वारा-(अ) अपने अंशों, यदि कोई हो, के हस्तान्तरण पर प्रतिबन्ध लगाती है। (ब) निम्नलिखित को छोड़कर, अपने सदस्यों की अधिकतम संख्या 200 तक सीमित करती है-6) ऐसे व्यक्ति जो कि कम्पनी के कर्मचारी है, तथा (ii) ऐसे व्यक्ति जो कि पहले कम्पनी के कर्मचारी रहते हये कम्पनी के सदस्य थे और अब कर्मचारी नहीं है लेकिन सदस्य बने हुये हैं, तथा (iii) 200 सदस्यों की अधिकतम संख्या की गिनती करने हेत संयक्त अंशधारियों (2 या 2 से अधिक व्यक्तियों द्वारा संयुक्त रूप से अंश धारित करने वाले अंशधारी) को एक सदस्य माना जाता है। (iv) निजी कम्पनी की स्थापना केवल दो सदस्यों से हो सकती है, यद्यपि कम्पनी अधिनियम, 2013 के अनुसार निजी कम्पनी एक व्यक्ति कम्पनी (One Person Company) के रूप में भी समामेलित करायी जा सकती है। (स) अपने। अंशों तथा ऋण-पत्रों को खरीदने के लिये सार्वजनिक निमन्त्रण नहीं देती।

निजी कम्पनी की विशेषतायें या लक्षण

(Characteristics of Private Company)

निजी कम्पनी की प्रमुख विशेषतायें निम्न प्रकार हैं

(1) न्यूनतम प्रदत्त पूँजीभारतीय कम्पनी (संशोधन) अधिनियम, 2013 के अनुसार एक निजी कम्पनी की कम से कम एक लाख रुपये की प्रदत्त पँजी होनी चाहिए। कम्पनी (संशोधन) अधिनियम, 2015 की अधिसूचना संख्या 1/6/2015-CL(V) के अनुसार दिनांक 29.5.2015 से ‘प्रदत्त पूँजी एक लाख रुपये या इससे अधिक’ शब्द को हटा दिया गया है।

(2) अंशों के हस्तान्तरण पर प्रतिबन्ध-एक निजी कम्पनी के अंशों को हस्तान्तरित नहीं किया जा सकता। निजी कम्पनी अपने अन्तर्नियमों द्वारा अंशों के हस्तान्तरण पर रोक लगा देती है।

यहाँ यह बात भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है कि यदि कुछ व्यक्ति संयुक्त अंशधारी हैं और सभी संयुक्त अंशधारी मिल कर अपने में से किसी एक अंशधारी को अंशों का हस्तान्तरण करते हैं तो यह हस्तान्तरण अन्तर्नियमों में लगाये गये प्रतिबन्धों के विरुद्ध नहीं है। जर्नेल सिंह बनाम बक्षीसिंह [Jarnail Singh Vs. Bakshi Singh, AIR (1960) Punj.455] के विवाद में इसी तथ्य को स्वीकार किया गया था।

(3) सदस्यों की संख्या पर प्रतिबन्धएक निजी कम्पनी में कम से कम दो सदस्य होने चाहिए लेकिन सदस्यों की अधिकतम संख्या 200 तक हो सकती है। इस अधिकतम संख्या में कम्पनियों के कर्मचारी शामिल नहीं किये जाते। यहाँ यह बात महत्त्वपूर्ण है कि यदि दो या अधिक व्यक्तियों ने मिलकर किसी कम्पनी के अंश खरीदे हैं तो यहाँ सदस्यों की गणना करते समय उन संयुक्त अंशधारियों को एक ही सदस्य माना जाएगा। उदाहरण के लिये, यदि रमेश, महेश तथा सुरेश मिलकर किसी निजी कम्पनी के 200 अंश संयुक्त रुप से खरीदते हैं तो इन्हें निजी कम्पनी के एक सदस्य के रूप में ही माना जायेगा यद्यपि ये तीन अलग-अलग व्यक्ति है।

(4) अंशों ऋणपत्रों के क्रय के लिए जनता को आमन्त्रित न करना-एक निजी कम्पनी सार्वजनिक कम्पनी की भाँति अपने अंशों व ऋणपत्रों को क्रय करने के लिए जनता को आमन्त्रित नहीं कर सकती। उसके अंशों व ऋणपत्रों का क्रय स्वयं के सदस्यों द्वारा ही किया जाता है। अत: कम्पनी के संचालक किसी सम्बन्धी को तो अंशों के क्रय के लिये निमन्त्रण दे सकते हैं किन्तु सामान्य जनता को विज्ञापन अथवा खुले प्रविवरण द्वारा अंशों के क्रय के लिये आमन्त्रित नहीं कर सकते हैं।

(5) सीमित दायित्वसार्वजनिक कम्पनी की भाँति निजी कम्पनी के सदस्यों का दायित्व भी सामान्यतया सीमित होता है।

(6) प्राइवेट लिमिटेड शब्द का प्रयोग-निजी कम्पनी के लिए अपने नाम के बाद ‘प्राइवेट लिमिटेड’ शब्द का प्रयोग करना अनिवार्य है।

(7) सार्वजनिक जमाओं पर निषेध-एक निजी कम्पनी अपने सदस्यों, संचालकों एवं उनके रिश्तेदारों के अतिरिक्त अन्य व्यक्तियों से जमाएँ आमन्त्रित या स्वीकार नहीं कर सकती।

(8) कम से कम दो संचालकनिजी कम्पनी में कम से कम दो संचालक होने आवश्यक है। अधिकतम संख्या अन्तर्नियमों में दी जा सकती है।

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निजी कम्पनी के विशेषाधिकार एवं छूटें

(Special Privileges And Exemptions of A Private Company

भारतीय कम्पनी अधिनियम निजी और सार्वजनिक कम्पनियों पर सामान्यतः समानर हाता ह, परन्तु फिर भा निजा कम्पानया के सम्बन्ध में कछ उदारता बरती गई है। कम्पनी आधानयम, 2013 के अन्तर्गत एक निजी कम्पनी को सार्वजनिक कम्पनी की तलना में कुछ विशेषाधिकार एवं छूट प्राप्त है, जिनकी संक्षिप्त विवेचना इस प्रकार है

(1) न्यूनतम सदस्य संख्यानिजी कम्पनी के समामेलन हेत केवल दो सदस्यों की ही आवश्यकता होती है जबकि सार्वजनिक कम्पनी की स्थापना हेतु कम से कम 7 सदस्य आवश्यक है।

(2) प्रविवरण या प्रविवरण का स्थानापन्न प्रविवरण-निजी कम्पनी को प्रविवरण या प्रविवरण का स्थानापन्न विवरण तैयार करने और उसे रजिस्ट्रार के पास जमा कराने की आवश्यकता नहीं होता।

(3) अंशों का आबंटननिजी कम्पनी समामेलन के तरन्त बाद अंशों का आबंटन कर सकती है। इसके लिए न्यूनतम अभिदान (Minimum Subscription) की कोई शर्त नहीं है।

(4) नये अंशों का निर्गमनसार्वजनिक कम्पनी की भाँति निजी कम्पनी नये अंशों को विद्यमान अंशधारियों को निर्गमित करने के लिए बाध्य नहीं है।

(5) अंशों के हस्तान्तरण पर प्रतिबन्ध-यदि निजी कम्पनी के संचालकों ने किसी अंशधारी के अंशों का हस्तान्तरण अस्वीकार कर दिया है तो वह अंशधारी उसके लिए केन्द्रीय सरकार से भी अपील नहीं कर सकता।

(6) प्रबन्धकीय पारिश्रमिक-निजी कम्पनी अपने प्रबन्धकों को किसी भी सीमा तक पारिश्रमिक दे सकती है। अधिकतम 11% सीमा का प्रावधान निजी कम्पनी की दशा में लागू नहीं होता है।

(7) कोरम की पर्याप्ततायदि कम्पनी के अन्तर्नियमों में विपरीत व्यवस्था नहीं है तो एक निजी कम्पनी में अंशधारियों की साधारण सभा में दो सदस्यों की उपस्थिति ही सभा चलाने के लिये पर्याप्त कोरम मानी जाती है। एक सार्वजनिक कम्पनी में इसके लिए 5 सदस्यों की आवश्यकता पड़ती है।

(8) लाभहानि खाता चिट्ठा-निजी कम्पनी को अपने लाभ-हानि खाते व आर्थिक चिट्टे की 3 प्रतियाँ रजिस्ट्रार को भेजना आवश्यक है परन्तु इनकी प्रतिलिपि लेने का अधिकार केवल सदस्यों को ही है। सदस्य के अतिरिक्त अन्य किसी व्यक्ति को इन्हें देखने का अधिकार नहीं होता।

(9) संचालक सम्बन्धी छूटेंसंचालकों के सम्बन्ध में निजी कम्पनी को निम्नलिखित छूटें प्राप्त

(i) निजी कम्पनी के लिए न्यूनतम संचालकों की संख्या दो है।

(ii) निजी कम्पनी के संचालकों की संख्या तथा पारिश्रमिक बढ़ाने के लिए केन्द्रीय सरकार की अनुमति आवश्यक नहीं होती।

(iii) प्रबन्ध संचालक या पूर्णकालिक संचालक की नियुक्ति के लिए तथा उसकी पुनः नियुक्ति की शर्तों में परिवर्तन आदि करने के लिए केन्द्रीय सरकार की अनुमति नहीं लेनी पड़ती।

(iv) निजी कम्पनी के संचालकों पर योग्यता अंश (Qualification Shares) लेने सम्बन्धी नियम लागू नहीं होते।

(v) निजी कम्पनी के संचालक किसी भी ऐसे अनुबन्ध पर जिसमें उनका व्यक्तिगत हित है, स्वतन्त्रतापूर्वक विचार-विमर्श कर सकते हैं तथा उस पर होने वाले मतदान में भाग ले सकते हैं।

(vi) प्रथम संचालकों की नियुक्ति करते समय किसी भी प्रकार के विज्ञापन की आवश्यकता नहीं

(vii) क्रम से अवकाश ग्रहण (Retirement by Rotation) का सिद्धान्त निजी कम्पनी में लाग नहीं होता।

(viii) इसके सभी संचालक एक साथ एक ही प्रस्ताव द्वारा नियुक्त किए जा सकते हैं।

(ix) इसके संचालकों को अपनी प्रथम नियुक्ति के 30 दिन के अन्दर अपने संचालक बनने की लिखित स्वीकृति रजिस्ट्रार के यहाँ दाखिल नहीं करनी पड़ती।

(x) हित रखने वाला संचालक, संचालक मण्डल की सभा में बैठ सकता है, उसकी कार्यवाहियों में भाग ले सकता है तथा अपने हित वाले प्रस्तावों पर मतदान भी कर सकता है।

स्वाति प्रकाशन निजी कम्पनी एवं सार्वजनिक कम्पनी में अन्तर

(Distinction Between Private Company And Public Company)

कम्पनियों का परिवर्तन

(Conversion of Companies)

1 कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 18 के अनुसार इस अधिनियम के अन्तर्गत पंजीकृत किसी भी प्रकार की कम्पनी अपने पार्षद सीमा नियम एवं अन्तर्नियमों में परिवर्तन करके अन्य कम्पनी में परिवर्तित हो सकती है।

2. जब इस अध्याय के अन्तर्गत किसी कम्पनी में परिवर्तन करना है, तो रजिस्टार कम्पनी द्वारा आवेदन करने पर, अपने आपको सन्तुष्ट करने के पश्चात् कि कम्पनी ने इस अध्याय के प्रावधानों का अनुपालन किया है, पहली कम्पनी का पंजीकरण बन्द (निरस्त) कर देगा और उप धारा में वर्णित प्रपत्रों का पंजीकरण करने के बाद, पहले पंजीकरण प्रमाण-पत्र की तरह एक नया पंजीकरण प्रमाण-पत्र जारी करेगा।

3. इस धारा के अन्तर्गत पंजीकरण से पहले कम्पनी द्वारा या कम्पनी के वास्ते लिये गये ऋण उठाये गये दायित्व, बाध्यता या किये गये अनुबन्ध प्रभावित नहीं होंगे और ऐसे ऋण, दायिल बाधाता और अनबन्ध उसी ढंग से लागू करवाये जा सकते हैं जैसे कि ऐसा पंजीकरण हुआ ही नहीं था।

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विविध प्रकार की कम्पनियाँ

– (Miscellaneous Types of Companies)

उपरोक्त प्रकार की कम्पनियों के अतिरिक्त निम्न प्रकार की कम्पनियाँ हो सकती है।

1 धर्मार्थ कम्पनी (Charitable Company) [धारा ४]-इन्ह गैर-लाभ वाली कम्पनी (Company not for Profit) एव पुण्यार्थ या धर्मार्थ कम्पनी भी कहते है।

() जहाँ केन्द्र सरकार की सन्तुष्टि के लिए यह सिद्ध कर दिया जाये कि एक व्यक्ति या व्याक्तयों की संस्था इस अधिनियम के अन्तर्गत सीमित कम्पनी के रूप में पंजीकृत होना चाहता (चाहती) है

(i) जिसका उद्देश्य वाणिज्य, कला, विज्ञान, खेल, शिक्षा, अनुसन्धान, सामाजिक कल्याण, धर्मार्थ कार्य, पर्यावरण की रक्षा या अन्य ऐसा कार्य करना है;

(ii) इसके लाभों को, यदि कोई है, या अन्य आय को अपने उद्देश्यों के प्रवर्तन पर उपयोग करना चाहती है; एवं

(iii) अपने सदस्यों को काई लाभांश वितरित करने पर रोक लगाती है।

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( अ )केन्द्र सरकार निर्धारित ढंग से लाइसेन्स जारी करके उस व्यक्ति या संस्था को इस धारा के अन्तर्गत बिना सीमितया निजी सीमित‘ (Private Limited) शब्द अपने नाम के पीछे लगाये पंजीकरण का आदेश दे सकती है।

() इस धारा के अन्तर्गत पंजीकृत कम्पनी, अन्य कम्पनियों के समान विशेषाधिकारों का लाभ उठा सकती है और बाध्यता के लिए दायी हो सकती है।

() एक फर्म ऐसी कम्पनी की सदस्य बन सकती है।

() (i) ऐसी कम्पनी अपने पार्षद सीमा नियम एवं अन्तर्नियमों में परिवर्तन केवल केन्द्र सरकार की अनुमति से ही कर सकती है।

(ii) ऐसी कम्पनी अपने आपको अधिनियम के अन्तर्गत किसी भी प्रकार की कम्पनी में परिवर्तित कर सकती है।

() कम्पनी द्वारा इस धारा का या किसी शर्त का उल्लंधन करने पर केन्द्र सरकार इस कम्पनी का लाइसेन्स रद्द कर सकती है और इसे अपने नाम के साथ ‘सीमित’ या ‘निजी सीमित’ जोड़ने का निर्देश दे सकती है। कम्पनी का समापन या अन्य ऐसी कम्पनी के साथ एकीकरण (Amalgamation) कर सकती है।

2. बैंकिंग कम्पनी (Banking Company) [धारा 2(9)] बैंकिंग कम्पनी का आशय एक कम्पनी से है जो बैंकिंग कम्पनी नियमन अधिनयिम, 1949 की धारा 5, वाक्यांश (c) द्वारा परिभाषित है अर्थात् जो बैंकिंग का कारोबार करती है। एक बैंकिंग कम्पनी, कम्पनी अधिनियम, 2013 के अन्तर्गत पंजीकृत होती है, परन्तु इस पर कम्पनी अधिनियम, 2013 के वे ही प्रावधान लाग होते हैं जो बैंकिंग नियमन अधिनियम, 1949 के विरुद्ध नहीं है। सामान्यतया इस पर बैंकिंग नियमन अधिनियम के प्रावधान लागू होते

3. गैरबैंकिंग वित्त संस्था (Non-Banking Financial Company : NBFC)—यह एक ऐसी कम्पनी है जो बैंकिग का कार्य नहीं करती परन्तु वित्त प्रदान करने का कार्य करती है। इस पर भारतीय रिजर्व बैंक (R.B.I.) का नियन्त्रण एवं नियमन होता है।

4. बीमा कम्पनी (Insurance Company) [धारा 2 (62)]-एक बीमा कम्पनी बीमा का कार्य करती है। यह कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत पंजीकृत होती है, परन्तु इस पर बीमा अधिनियम, 1938 के प्रावधान लागू होते हैं। कम्पनी अधिनियम के वे प्रावधान भी इस पर लागू होते हैं जो बीमा अधिनियम के प्रावधानों के विरुद्ध नहीं हैं।

5. विद्युत कम्पनी (Electricity Company) [धारा 2 (62)]—यह कम्पनी विद्युत उत्पादन एवं वितरण का कार्य करती है। इसका पंजीकरण भी कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत होता है, परन्तु इस पर भारतीय विद्युत अधिनियम के प्रावधान लागू होते हैं। कम्पनी अधिनियम के वे प्रावधान इस पर लागू होते हैं जो विद्युत अधिनियम के प्रावधानों के विरुद्ध नहीं हैं।

6. एक व्यक्ति वाली कम्पनी (One Person Company) एक व्यक्ति वाली कम्पनी में जैसा कि इसके नाम से विदित होता है एक ही सदस्य होता है। ऐसी कम्पनी के सीमा पार्षद नियम द्वारा कम्पनी का पंजीकरण कराते समय एक व्यक्ति को उसकी लिखित सहमति के साथ मनोनीत करना अनिवार्य है जो उस सदस्य की मृत्यु या अयोग्यता होने पर एक व्यक्ति वाली कम्पनी का सदस्य होगा।

कम्पनी का अकेला सदस्य अपने द्वारा मनोनीत किये व्यक्ति का नाम हटाकर दूसरे व्यक्ति का नाम सम्मलित कर सकता है। कम्पनी का पंजीकरण कराते समय कम्पनी के पार्षद सीमा नियम एवं अन्तर्नियमों के साथ ऐसे व्यक्ति की लिखित सहमति रजिस्ट्रार के पास पंजीकत कराई जायेगी।

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परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions)

1 कम्पनी अधिनियम, 2013 अनुसार कितने प्रकार की कम्पनियाँ बनाई जा सकती है?

Give definition of a company according to Companies Act, companies can be formed under Indian Companies Act?

2. कम्पनी अधिनियम, 2013 के अन्तर्गत पंजीकृत होने वाली विभिन्न प्रकार की कम्पन्नियों को संक्षेप में बताइये।

State in brief the various kinds of companies which can be registered Companies Act, 2013..

3. “कानून निजी कम्पनी को केवल मान्यता ही नहीं देता अपितु इस पर वरदहस्त भा रखत कथन का स्पष्टीकरण कीजिये।

The law not only recognises a private company but also bestow its benedic on the same.” Comment.

4. एक सार्वजनिक कम्पनी किसे कहते हैं? क्या इसे निजी कम्पनी में परिवर्तित कर सकते हैं हाँ, तो कैसे?

What is a Public Company ? Can it be converted into a private company? If so, how?

5. एक सरकारी कम्पनी की परिभाषा दीजिये। कम्पनी अधिनियम, 2013 में सरकारी कम्पनियों के सम्बन्ध में दिये गये प्रावधानों का वर्णन कीजिये।

Define a Government Company. Describe the provisions of the Companies Act, 2013 relating to government companies.

6. एक निजी कम्पनी को परिभाषित कीजिये। एक निजी कम्पनी को क्या छुटे व विशेषाधिकार प्रदान किये गये हैं ?

Define a Private Company. Describe the legal privileges and concessions enjoyed by a private company.

7. लोक कम्पनी तथा निजी कम्पनी के बीच अन्तर बताइये। एक निजी कम्पनी को लोक कम्पनी में कैसे परिवर्तित किया जा सकता है?

Distinguish between public company and private company. How can a private company be converted into a public company ?

8. भारत में व्यापार कर रही विदेशी कम्पनियों द्वारा कौन-कौन से प्रपत्र एवं विवरण रजिस्ट्रार के पास फाइल किये जाने चाहिएँ ? विदेशी कम्पनियों के खातों के सम्बन्ध में कम्पनी अधिनियम में क्या व्यवस्थाएँ हैं?

What documents and particulars must be filed with the Registrar by foreign companies carrying on business in India ? What are the provisions of the Companies Act in regard to the accounts of foreign companies ?

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लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions)

1 सार्वजनिक कम्पनी तथा निजी कम्पनी में अन्तर बताइये।

Distinguish between Public and Private Company.

2. निजी कम्पनी की विशेषताएँ बताइये।

Explain characteristics of private company.

3. निजी कम्पनी को प्राप्त कानूनी अधिकारों और छूटों को बताइये।

Describe the legal privileges and concessions enjoyed by a private company

4. निजी कम्पनी को सार्वजनिक कम्पनी में परिवर्तित करने की विधि को समझाइये।

Explain the method of conversion of a private company into a public company.

5. देशी तथा विदेशी कम्पनी में अन्तर कीजिये।

Distinguish between Domestic and Foreign Company.

6. सरकारी कम्पनी से क्या आशय है ?

What is meant by a Government Company?

7. अंशों द्वारा सीमित कम्पनी तथा गारण्टी द्वारा सीमित दायित्व वाली कम्पनी में अन्तर कीजिये।

Distinguish between Company Limited by Shares and Companies Limited by Guarantee.

8. एक व्यक्ति वाली कम्पनी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।

Write a short note on one person company.

9. सार्वजनिक कम्पनी की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।

Describe the main characteristics of Public company.

10. सहायक तथा सूत्रधारी कम्पनी में अन्तर कीजिये।

Distinguish between Subsidiary and Holding Company.

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