BCom 2nd Year Entrepreneur Concept Legal Requirement Establishment Unit Study Material Notes In Hindi

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BCom 2nd Year Entrepreneur Concept Legal Requirement Establishment Unit Study Material Notes In Hindi

Table of Contents

BCom 2nd Year Entrepreneur Concept Legal Requirement Establishment Unit Study Material Notes In Hindi: Meaning and Definition of a Project Characteristics of a Project Objectives of a Project Importance of the Project Different stages or Phases of Project Preparation Selection of the project Formulation  Various Aspects and areas of Project Evaluation Break Even Analysis Legal Requirement for Establishment Useful Question Long Answer Questions Short Answer Questions Following statement Correct Option True False  :

Concept Legal Requirement Establishment
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BCom 3rd Year Corporate Accounting Underwriting Study Material Notes in hindi

परियोजना की अवधारणा एवं नवीन इकाई की स्थापना के लिए वैधानिक आवश्यकताएँ

(Concept of a Project and Legal Requirements for Establishment of a New Unit)

“परियोजना वैज्ञानिक आधार पर विकसित की गई कार्य परियोजना है जिसे विशिष्ट अवधि में एवं विशिष्ट उद्देश्य अथवा उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए बनाया जाता है।” “एक नवीन इकाई की स्थापना करना एक प्रकार से एक नये शिशु को जन्म देने के समान है।” “व्यवसाय चातुर्य का खेल है जिसे प्रत्येक व्यक्ति नहीं खेल सकता।”

  • परियोजना का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of a Project)
  • परियोजना की विशेषताएँ (Characteristics of a Project)
  • परियोजना के उद्देश्य (Objectives of a Project)
  • परियोजना का महत्त्व (Importance of the Project)
  • परियोजना निर्माण के विभिन्न चरण अथवा अवस्थाएँ (Different Stages or Phases of Project Preparation)
  • परियोजना पहचान—अर्थ एवं आवश्यकताएँ (Project Identification-Meaning and Necessities)
  • परियोजना की पहचान करने में स्वोट का आयोग (Use of SWOT in Project Identification)
  • परियोजना का सूत्रीकरण (Project Formulation)
  • उत्पाद का चुनाव तथा परियोजना का सूत्रीकरण (Selection of the Project and Project Formulation)
  • परियोजना प्रतिवेदन (Project Report)
  • परियोजना का मूल्यांकन अथवा आंकलन (Project Appraisal)
  • परियोजना मूल्यांकन के विभिन्न पहलू एवं क्षेत्र (Various Aspects and areas of Project Evartation)
  • समविच्छेद विश्लेषण (Break-even Analysis)
  • नवीन इकाई की स्थापना के लिए वैधानिक आवश्यकताएँ (Legal Requirement for Establishment of a New Unit)

Concept Legal Requirement Establishment

परियोजना का अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning and Definition of a Project)

परियोजना का अर्थ (Meaning of a Project)

एक संगठन एक परियोजना पर आधारित होता है। संगठन का भविष्य सफलता या असफलता परियोजना पर निर्भर करती। है। सरल शब्दों में परियोजना निश्चित उद्देश्यों, अनुसूचियों, बजट एवं समय के अधीन कार्य पूरा करने की योजना है। परियोजना को तैयार करना उद्यमी का मूलभूत कार्य है। उद्यमी अपनी तकनीकी योग्यता. कल्पना शक्ति, दूरदर्शिता, अवबोधन अवलोकन सृजनात्मक शक्ति तथा उपलब्ध संसाधनों के आधार पर किसी नवीन परियोजना की कल्पना करता है तथा उसके विभिन्न पहलुओं पर विचार-विनिमय करते हुए निश्चित उद्देश्यों को निश्चित समय में प्राप्त करने के लिए एक निर्धारित परियोजना तैयार करता है। सभी परियोजनाएँ समान नहीं होती हैं अपितु आकार, प्रकृति, उद्देश्यों एवं जटिलताओं के आधार पर अलग-अलग होती हैं।

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परियोजना की परिभाषाएँ (Definitions of Project)

शब्दकोश के अनुसार परियोजना का अर्थ है एक योजना, नमना अथवा किसी चीज की प्राप्ति के लिए बनाया गया प्रस्ताव। नवीकरण तथा दृष्टि किसी परियोजना कार्यक्रम का सम्पूर्ण रूप है। न्यूमेन, समर एवं वारन के अनुसार, “एक परियोजना का आमतौर पर एक स्पष्ट लक्ष्य होता है तथा इसे उस लक्ष्य के अन्तिम बिन्द को प्राप्त करने के लिए बनाया जाता है।” जबकि गिलिंगर के अनुसार, “परियोजना उन समस्त गतिविधियों का मिश्रण है जो संसाधनों का प्रयोग करके लाभ प्राप्त करने में प्रयोग की जाती है।” परियोजना की कुछ प्रमुख परिभाषाएँ इस प्रकार हैं

1 वेब्सटर शब्दकोश के अनुसार (According to Webster’s Dictionary), “परियोजना किसी कार्य की व्यवस्था, योजना, युक्ति, अभिकल्पना अथवा प्रस्ताव है।”

2. डेविड क्लिफटन एवं फिफे (David Clifton and Fyffe) के अनुसार, “परियोजना का तात्पर्य किसी नवीन उद्यम की स्थापना करना अथवा वर्तमान उत्पाद-मिश्रण में किसी नवीन वस्तु को जोड़ना होता है। एक परियोजना एक मशीन अथवा एक पूर्ण संयन्त्र से सम्बन्धित हो सकती है।

3.लिटिल एवं मिररली (Little and Mirrlee) के अनुसार, “परियोजना संसाधनों के विनियोजन के लिए बनायी गयी योजना है जिसका एक महत्त्वपूर्ण इकाई के रूप में उचित रूप में विश्लेषण एवं मूल्यांकन किया जा सकता है।2।

4. प्रबन्ध निर्देशिका (Directory of Management) के अनुसार, “परियोजना पूँजी विनियोजन योजना है जिसका संचालन निर्धारित अवधि में निश्चित उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए किया जाता है तथा उद्देश्य प्राप्ति के पश्चात् परियोजना समाप्त हो जाती है।”

5. प्रबन्ध एनसाइक्लोपीडिया (Management Encyclopaedia) के अनुसार, “परियोजना एक संगठित इकाई है जो लक्ष्य की प्राप्ति हेतु समर्पित है। एक विकासशील परियोजना को समय में, बजट के अन्दर तथा पूर्व निर्धारित कार्यक्रम की विशेषताओं के अनुरूप सफलतापूर्वक सम्पूर्ण किया जाता है।”

सरल शब्दों में, “परियोजना से आशय पूँजी विनियोजन के किसी भी ऐसे अवसर से है जिसका लाभ पाने के लिए दोहन किया जा सकता है।’

अतः परियोजना को एक निश्चित लक्ष्य की निश्चित समय में प्राप्ति के लिए बनाई गई योजना के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इस प्रकार एक परियोजना में निम्न तीन प्रमुख गुण होते हैं-(1) कार्य करने का वैज्ञानिक ढंग; (2) कार्य को पूरा करने का विशेष लक्ष्य; एवं (3) कार्य को पूरा करने का निश्चित समय। वास्तव में परियोजना नींव के पत्थर की तरह होती है जिसे संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए बनाया जाता है एवं प्रभावशाली परियोजना प्रबन्ध, परियोजना प्रबन्ध, परियोजना को सही समय पर सीमित संसाधनों में पूरा करने के लिए बनाया जाता है। एक प्रभावशाली एवं सक्षम परियोजना को संगठन की सफलता की कुंजी (Key) माना जाता है।

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परियोजना की विशेषताएँ

(Characteristics of Project),

परियोजना की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(1) एक निश्चित उद्देश्य (Definite Objectives)-प्रत्येक परियोजना के निर्धारित उद्देश्य होते हैं। जैसे ही उद्देश्य अथवा उद्देश्यों की प्राप्ति होती है, तुरन्त परियोजना समाप्त हो जाती है।

(2) एकाकी अस्तित्व (Single Entity)—प्रत्येक परियोजना का एकाकी अस्तित्व होता है जिसे किसी उत्तरदायी सत्ता को सौंप दिया जाता है।

(3) अद्वितीयता (Uniqueness)—प्रत्येक परियोजना में अद्वितीयता होती है। कभी दो परियोजनाएँ एकसमान नहीं हो सकती हैं यद्यपि दोनों के संयन्त्र समान हों।

(4) जीवन काल (Life Span)—प्रत्येक परियोजना का एक निश्चित जीवन काल होता है। निर्धारित कार्य पूरा हो जाने पर परियोजना का भी समापन हो जाता है।

(5) दलीय कार्य (Team Work) किसी भी परियोजना को सफलतापूर्वक पूरा करने के लिए एक दलीय भावना की आवश्यकता होती है।

(6) अनिश्चितता (Uncertainity) परियोजना में अनिश्चितता का पर्यावरण होता है। एक परियोजना के जीवन काल में कब और कोई-सी अनिश्चितता विद्यमान हो जाय, इसका किसी भी स्तर पर पता नहीं लगता।

(7) जोखिम तत्व (Element of Risk)—प्रत्येक परियोजना में जोखिम का तत्व विद्यमान होता है। यह जोखिम का तत्व अलग-अलग होता है। उदाहरण के लिए, यदि परियोजना के उद्देश्यों को स्पष्ट रूप में परिभाषित नहीं किया गया है तो जोखिम का तत्व अधिक होगा।

(8) परिवर्तन (Change)-परिवर्तन जीवन का नियम है। यह बात परियोजना पर शत-प्रतिशत लागू होती है। एक परियोजना को अपने जीवन काल में विभिन्न परिवर्तनों में से होकर गुजरना पड़ता है।

(9) आदेशानुसार तैयार किया जाना (Made to Order)—प्रत्येक परियोजना को ग्राहकों की आवश्यकताओं के अनुसार तैयार किया जाता है।

(10) विभिन्नता में एकता (Unity in Diversity)—परियोजना में विभिन्नता में एकता पायी जाती है। इसका कारण यह है कि इसमें जटिलताओं की भरमार होती है, जैसे—टेक्नोलॉजी, यन्त्र सामग्री, श्रम, कार्य संस्कृति की जटिलताएँ।

एक पूर्ण नियोजित परियोजना में विकल्पों, सही विचार, सही नियन्त्रण, महत्त्वपूर्ण मुद्दों की पहचान एवं विस्तृत योगदान होता है। अत: स्पष्ट है परियोजना एक पूर्ण परिभाषित उद्देश्यों वाली आर्थिक क्रिया है जिसका एक विशेष शुरूआत एवं अन्त होता है।

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परियोजना के उद्देश्य

(Objectives of a Project).

परियोजना एक निश्चित कार्य में वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन में वृद्धि करने के लिए कुछ विशेष सुविधाओं को उपलब्ध करना उन्हें विस्तत करने तथा/या विकसित करने के लिए निवेश (Investment) करने का एक प्रस्ताव होता है, जिसक। निम्नलिखित उद्देश्य हो सकते हैं

(i) वस्तुओं तथा/सेवाओं के उत्पादन (Pruduction) में वृद्धि करना;

(ii) वस्तुओं तथा/सेवाओं की उत्पादकता (Productivity) में वृद्धि करनाः

(iii) पूर्व में स्थापित परियोजनाओं की क्षमता (Capacity) को बढ़ाना;

(iv) लाभ की दर (Rate of Profit) को कम जोखिम (Less Ricपर बदाना तथा उन्हें संगठनात्मक योजनाओं, नीतियों एवं तरीकों के अनुरूप करना;

(v) समय-समय पर उनका परीक्षण (Test) तथा उनके सम्बन्ध में आवश्यक जाँच का करत रहना; एव

(vi) परियोजना के उद्देश्यों को वर्तमान संसाधनों (Resoured अनकल बनाने के लिए प्रयासरत रहना  है ।

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परियोजना का महत्त्व

(Importance of the Project)

परियोजनाओं का महत्त्व निम्नलिखित से हैंपरियोजनायें

(i) विकास प्रक्रिया का प्रारम्भ करती हैं;

(ii) आर्थिक विकास तथा उन्नति में तेजी लाने वाले कारकों के रूप में कार्य करती हैं;

(iii) वातावरण तथा मूल-ढाँचे के विकास में अपना योगदान देती हैं।

(iv) संगठन के भविष्य की गतिविधियों का खाका प्रस्तुत करती हैं;

(v) समय के अनुसार आवश्यक बदलाव लाने का प्रयास करती हैं।

(vi) सामाजिक तथा सांस्कृतिक विकास की गति को तेज करने में सहायता करती हैं; एवं

(vii) सेवाओं की प्रकृति के भविष्य को निर्धारित करती हैं।

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परियोजना निर्माण के विभिन्न चरण अथवा अवस्थाएँ

(Different Stages or Phases of Project Preparation)

किसी भी नवीन परियोजना निर्माण में विभिन्न चरणों अथवा अवस्थाओं का समावेश होता है। परियोजना को इन चरणों अथवा अवस्थाओं में से होकर गुजरना पड़ता है। पर्याप्त जाँच-पड़ताल करने के पश्चात् ही यह निर्णय लिया जाता है कि परियोजना पर पूँजी-विनियोजन किया जाये अथवा नहीं। मूल रूप में किसी भी परियोजना के निर्माण की निम्नलिखित अवस्थाएँ होती हैं

  • विनियोजन पूर्व की अवस्था (Pre-investment Phase);
  • क्रियान्वयन अवस्था (Implementation Phase); एवं
  • परिचालन अवस्था (Operational Phase)|

(I) विनियोजन पूर्व की अवस्था (Pre-investment Phase)

यह अवस्था विनियोग के लाभप्रद अवसरों की खोज, मूल्यांकन एवं तैयारी से सम्बन्धित होती है। यह चरण परियोजना के अभिज्ञान (Identification) से प्रारम्भ होकर निरूपण (Formulation) एवं मूल्यांकन (Apparaisal) के क्रमों से । गुजरता हुआ परियोजना के चयन के निर्णय (Selection Decision) पर जाकर समाप्त होता है। इस चरण का प्रमुख उद्देश्य व्यावसायिक विचारों की खोज एवं मूल्यांकन करके यह निर्धारण करना होता है कि क्रियान्वित होने पर ऐसी परियोजना

आर्थिक-जीव्यता (Economic Viability) की दृष्टि से व्यावसायिक स्तर पर सक्षम हो सकेगी अथवा नहीं। इस अवस्था में परियोजना की व्यवहार्यता का अध्ययन करके चयन के बारे में अन्तिम निर्णय लिया जाता है। इसमें समूचे व्यावसायिक वातावरण का अध्ययन किया जाता है। इस अवस्था में निम्नलिखित उपचरण सम्मिलित होते हैं

1 विनियोग अवसरों का अभिज्ञान (Identification of Investment Opportunities), 2. प्रारम्भिक परियोजना विश्लेषण (Preliminary Project analysis), 3. व्यवहार्यता अध्ययन (Feasibility Study), एवं 4. निर्णयन (Decision Making)।

(II) क्रियान्वयन अवस्था (Implementation States or Phase)

पर्याप्त छानबीन एवं विनियोग निर्णय लेने के बाद परियोजना के क्रियान्वयन के लिए एक विस्तृत कार्य-योजना (Worknan) तैयार की जाती है। आवश्यक वित्तीय एवं अन्य साधनों का आबंटन उच्च स्तर पर प्रबन्धकों द्वारा कर दिया जाता है। परियोजना के क्रियान्वयन हेतु आवश्यक उपकरण,साज-सज्जा आदि की पूर्ति एवं व्यवस्था करने हेत परियोजना नियन्त्रण प्रणाली एवं सचना प्रणाली की स्थापना की जाती है, ताकि उपलब्ध साधनों से परियोजना का यथासमय क्रियान्वयन एवं प्रारम्भ किया जा सके। इस अवस्था में उत्पादन सविधाओं की स्थापना की जाती है। क्रियान्वयन अवस्था में निम्नलिखित कियाओं को सम्पन्न किया जाता है

(i)  परियोजना एवं इंजीनियरिंग डिजायन तैयार किया जाना।

(ii) परियोजना का कार्य सम्पन्न कराने के लिए विभिन्न पक्षकारों से समद्यौते एवं अनबन्ध करना।

(iii) पारयाजना क अनुरूप भवन, सयन्त्र, यन्त्रो, कार्यालय आदि की स्थापना करना। ताकि निर्माणी प्रक्रिया प्रारम्भ की जा सके। (iv) परियोजना की आवश्यकता के अनुसार श्रमिकों, तकनीशियानों, इंजीनियरों एवं प्रबन्ध वर्ग की भर्ती एवं चयन करना तथा उन्हें आवश्यक प्रशिक्षण प्रदान करना। (v) परियोजना के क्रियान्वयन के अन्त में संयन्त्र की स्थापना करना एवं उत्पादन प्रारम्भ करने की तैयारी करना। ID

परिचालन अवस्था (Operation Stage or Phase)

परिचालन अवस्था परियोजना का सबसे अन्तिमं एवं सबसे लम्बा चरण है। यह चरण वस्तु के उत्पादन के प्रारम्भ से लेकर परियोजना के समापन होने तक निरन्तर चलता रहता है। यह चरण संयन्त्र के निर्बाध गति से चलते रहने से सम्बन्धित है। इसमें प्रमुख रूप से निम्नलिखित क्रियाएँ सम्मिलित हैं

(i) उत्पादन का निर्बाध संचालन (Uninterrupted Operation of the Production); (ii) उत्पाद की गुणवत्ता प्रमाप बनाये रखना (Maintenance of the Quality Standard of the Product); (iii) उत्पादकता प्रमाप बनाये रखना (Maintenance of Productivity Norm); (iv) विशिष्ट उद्देश्य की प्राप्ति (Realisation of Specific Objective or Objectives) करना; (v) उत्पाद की बाजार द्वारा स्वीकृति (Market Acceptance of the Product); एवं (vi) उपभोक्ता सन्तुष्टि बनाये रखना (Maintenance of Consumer Satisfaction)।

Concept Legal Requirement Establishment

परियोजना पहचान-अर्थ एवं आवश्यकता

(Project Identification-Meaning and Necessity)

अथवा

अवसरों की पहचान-अर्थ एवं आवश्यकता

(Identification of Opportunities-Meaning and Necessity)

 

परियोजना की पहचान एवं अर्थ (Meaning of Project Identification)

सही परियोजना का चुनाव एक बहुत महत्त्वपूर्ण निर्णय होता है क्योंकि संगठन की किस्मत पूरी तरह से सही तरह की परियोजना के चुनाव पर ही निर्भर करती है। परियोजना की पहचान आर्थिक आँकड़ों को इकट्ठा करने, जोड़ने तथा विश्लेषण करके निवेश के सम्भावित अवसरों को ढूँढने से जुड़ी हुई है। परियोजना के विचार विभिन्न स्रोतों या विभिन्न कारणों जैसेमित्रों, रिश्तेदारों की सफलता की कहानियों, दूसरों के उत्पादन एवं बिक्री से सम्बन्धित अनुभव, विशेष उत्पादों की माँग, किसी आयात किये जाने वाले उत्पाद का विकल्प (Option) बनाने का अवसर या फिर वह उत्पाद जिसकी माँग अधिक हो तथा अधिक प्रेरणा, पृष्ठभूमि एवं उद्यमी तथा उसके सहयोगियों की क्षमता से उत्पन्न होते हैं। निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि परियोजना पहचान विनियोजन के सम्भावित अवसरों को ज्ञात करने के उद्देश्य से किया गया आर्थिक आँकड़ों का संग्रह, संकलन एवं विश्लेषण हैं। विख्यात प्रबन्ध विशेषज्ञ पीटर एफ. डूकर (Peter F. Drucker) ने विनियोजन के निम्नलिखित तीन अवसरों का पता लगाया है

(1) योगज अवसर (Additive Opportunities)—योगज अवसर निर्णय लेने वाले को विद्यमान संसाधनों का, व्यवसाय के चरित्र को बिना प्रभावित किये, प्रभावी उपयोग करने में सहायता प्रदान करते हैं।

(2) पूरक अवसर (Complementary Opportunities)—पूरक अवसरों से आशय नवीन विचारों के लागू करने से है जिनके कारण विद्यमान संरचना में परिवर्तन आता है एवं ।

(3) भंग अवसर (Break through Opportunities)-भंग अवसरों में व्यवसाय के चरित्र एवं संरचना में मूलभूत परिवर्तन निहित होते हैं। इन तीनों के सहयोग से परियोजना का प्रवाह निरन्तर चलता रहता है। योगज अवसरों में जोखिम का । तत्त्व सबसे कम होता है। इसका कारण यह है कि योगज अवसरों में व्यवसाय की विद्यमान दशा में सबसे कम बाधाएँ उत्पन्न होती हैं। फिर भी यदि जोखिम का तत्त्व अधिक हो जाये तो परियोजना विचार के क्षेत्र एवं प्रकति की पनः व्याख्या का जाना । चाहिए और परियोजना के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए वैकल्पिक समाधान विकसित किये जाने चाहिए।

परियोजना पहचान की आवश्यकता (Necessity of Project Identification)

उपयुक्त परियोजना की पहचान करना सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है क्योंकि उद्यम की अन्तिम सफलता सही प्रकार के उत्पादन के चयन पर निर्भर करती है। यद्यपि परियोजना की पहचान करने के लिए कोई स्पाप नियम व नियमन नहीं है तथापि अधिकाश उद्यमी परियोजना की पहचान करने में अपने अनुभव एवं मस्तिष्क का उपयोग करते हैं। यदि कुछ उद्यमा किसी विशिष्ट क्षेत्र में प्रवेश कर गये हैं और उसमें सफल रहे हैं तो सामान्य उद्यमी भी उसी का अनुकरण करते हो धीरे धीरे उक्त परियोजना में प्रवेश करने वाले उद्यमियों की संख्या इतनी अधिक हो जाती है कि वह लाभ देने वाली परियोजना शीघ्र ही। हानि देने वाली परियोजना में परिणित हो जाती है। यह कोई स्वस्थ प्रवृत्ति नहीं है। यदि एक परियोजना किसी विशिष्ट उद्यमी के लिए सफल रही है तो यह इस बात की गारण्टी नहीं है कि अन्य उद्यमियों के लिए भी वह सफल होगी। इसका ज्वलन्त उदाहरण। फिरोजाबाद का जेनरेटर सेट निर्मित करने का उद्योग है। कुछ वर्ष पूर्व यह उद्योग उन्नति के उच्चतम शिखर पर था आर इसमें । संलग्न उद्यमी खूब लाभ कमा रहे थे एवं सम्पन्नता की ओर निरन्तर अग्रसर हो रहे थे। इसमें कार्यरत अधिकांश उद्यमी तकनीकी । दृष्टि से परिपक्व थे। इसकी चकाचौंध से प्रभावित होकर धीरे-धीरे अनेक ऐसे उद्यमी इस उद्योग में प्रवेश कर गये जिन्हें इस उद्योग का तकनीकी ज्ञान लगभग शून्य था। परिणाम यह हुआ कि शीघ्र ही लाभप्रद परियोजना (उद्योग) हानिप्रद परियोजना (उद्योग)। में परिणित हो गया। कई उद्यमी तो दिवालिया तक हो गये। अतएव भावी उद्यमियों के लिए परियोजना की पहचान होना परम आवश्यक है।

परियोजना की पहचान का महत्त्व (Importance of Project Identification)

परियोजना की पहचान का महत्त्व निम्नलिखित कारणों से है

(i) पूर्व में पहचानी हुई परियोजना आर्थिक विकास में गति लाने वाले कारकों का कार्य करती है; (ii) पहचानी हुई परियोजना पूर्ण विकास जैसे रोजगार एवं आय बढ़ाने की प्रक्रिया को आरम्भ करती है; (iii) पहचानी हुई परियोजना संगठन द्वारा भविष्य में की जाने वाली प्रक्रियाओं तथा सेवाओं के निर्देश परियोजना उपलब्ध कराती है; (iv) पहचानी हुई परियोजना के दीर्घकालीन लाभ प्रदान करने वाले परिणाम निकलते हैं: (v) परियोजना सामाजिक तथा सांस्कृतिक विकास को गति प्रदान करती है। (vi) परियोजना पहचान का परिणाम मूलभूत सुविधाओं तथा वातावरण का विकास करना होता है; एवं (vii) परियोजनासाधारणतया बार-बार संशोधन नहीं किया जाता है।

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परियोजना पहचान करने में स्वोट का उपयोग

(Use of Swot in Project Identification)

परियोजना की पहचान करने में स्वोट (SWOT) का उपयोग करना बड़ा लाभप्रद सिद्ध हआ है। उद्यमी द्वारा किसी नवीन परियोजना में विनियोजन के अवसरों का अभिज्ञान करने के लिए आपनी शक्तियों, दुर्बलताओं, विद्यमान अवसरों तथा चुनौतियों का विश्लेषण (Analysis of Strengths,Weaknesses,Opportunities and Threats) करना ही स्वोट (SWOT) का उपयोग है।

स्वोट की विशेषताएँ (Characteristics of SWOT) स्वोट की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(i) यह एक प्रबन्धकीय तकनीक है।

(ii) स्वोट नवीन परियोजनाओं से सम्बन्धित है।

(iii) स्वोट का उपयोग नई परियोजनाओं की पहचान करने के लिए किया जाता है।

(iv) इससे उद्यमी को उद्यम की शक्तियों एवं दुर्बलताओं का विश्लेषण करने की प्रेरणा मिलती है।

(v) स्वोट के अन्तर्गत विद्यमान अवसरों एवं चुनौतियों का विश्लेषण किया जाता है।

परियोजना का सूत्रीकरण

(Project Formulation)

परियोजना के सूत्रीकरण से हमारा तात्पर्य परियोजना के विचार की कदम-कदम पर जाँच पड़ताल से है। परियोजना के सत्रीकरण को परिभाषित करते समय हम कह सकते हैं कि यह एक उद्यमी की परियोजना के विचार पर ध्यानपूर्वक दी गई। नजर है जिससे वह विभिन्न चीज़ों को माप कर एक पूर्ण रूप से लाभप्रद परियोजना बना सके। परियोजना का सत्रीकरण उद्यमी। को पत्यक्ष तथ्यों पर आधारित पक्का निश्चय लेने में सहायक होता है। परियोजना के सूत्रीकरण का प्रमुख उद्देश्य पर्याप्त संसाधनों। तथा मितव्ययितापूर्वक परियोजना के लक्ष्यों को प्राप्त करना है।

परियोजना सत्रीकरण के तत्त्व (Elements of Project Formulation)

परियोजना का सत्रीकरण एक महत्त्वपूर्ण प्रबन्धकीय सहायक है, जो उद्यमी को निवेश पूर्व अवस्था में पहचाने गये लाभप्रद परियोजना विचारों का निर्णय लेने में सक्षम बनाता है। परियोजना के सूत्रीकरण अवस्था में विभिन्न तत्त्व होते। तथा प्रभावशाली परियोजना विचारों का निर्णय लेने में सक्षम बनाता है। परियो हैं जो परियोजना के निर्णय लेने में अत्यन्त उपयोगी होते हैं। ये विभिन्न तत्त्व अनलिखित हैं।

  • साध्यता विश्लेषण (Feasibility Analysis)
  • संसाधन विश्लेषण (Input Analysis)
  • वित्तीय विश्लेषण (Financial Analysis)
  • टैक्नो आर्थिक विश्लेषण (Techno Economic Analysis)
  • परियोजना का नमूना एवं नेटवर्क विश्लेषण (Project Design and Network Analysis)
  • परियोजना का मूल्य निर्धारण (Project Appraisal)
  • स्वामित्व के स्वरूप का चुनाव (Selection of Ownership Form) सामाजिक मूल्य लाभ पिरलेषण (Social Values Profit Analysis)
  • इकाई का स्थान एवं बनावट (Location and Layout of the Unit)
  • Concept Legal Requirement Establishment

उत्पाद का चुनाव तथा परियोजना का सूत्रीकरण

(Selection of the Product and Project Formulation)

एक उद्यमी ने बाजर की खोज प आधारित उत्पाद की पहचान या चुनाव करना होता है। उसे उत्पाद के लघु एवं दीर्घकालीन प्रभावों को पहचानना होता है। हमारे देश में तकनीकी एवं पूँजी बाजार के अधिक प्रभावशाली न होने के कारण नवीकरण करने वाले उद्यमियों की कमी है। एक अविकसित अर्थव्यवस्था की कमियाँ ही उद्यमियों के नकल करने का कारण हैं। अविकसित अर्थव्यवस्था में प्रशिक्षण सुविधाओं की कमी तथा उनका उचित न होना एवं खोज व अनुसंधान पर कम ध्यान होता है। एक उद्यमी अपने ज्ञान, अनुभव, क्षमता तथा प्रेरणा के आधार पर उत्पाद का चनाव करने में अपने आपको सक्षम पाता है क्योंकि एक नवीकरण करने वाले उद्यमी में कुछ नया करने की तमन्ना होती है और यही तमन्ना उसे उत्पाद करने व उसका नया बाजार बनाने की प्रेरणा देती है वहीं एक नकल करने वाला उद्यमी एक स्थापित बाजार में सुधार करता है। एक उद्यमी को उत्पाद के बारे में निर्णय लेने से पहले निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर खोजने चाहिए।

(i) उत्पाद के खरीददार कौन होंगे?

(ii) वे उत्पाद को किस कीमत पर खरीदेंगे ?

(iii) वे उत्पाद को कब एवं कितना खरीदेंगे?

(iv) वे उत्पाद को कहाँ से खरीदेंगे ?

(v) उन्हें हमारे उत्पाद से क्या आशाएँ हैं ?

(vi) हमारे प्रतिस्पर्धी कौन हैं तथा उनके कार्य करने का क्या तरीका है ?

(vii) उत्पाद की विपणन व्यवस्था केसे की जायेगी ? इत्यादि।

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परियोजना प्रतिवेदन

(Project Report)

अर्थ (Meaning) परियोजना प्रतिवेदन प्रारम्भ की जाने वाली प्रस्तावित परियोजना के सम्बन्ध में विभिन्न तथ्या, सूचनाओं एवं विश्लेषणों का सारांश है। यह किसी परियोजना के सम्बन्ध में विनियोग अवसरों के निर्धारण मल्यांकन एवानयाजना के पश्चात् तैयार किया गया एक प्रलेख है जो प्रस्तावित योजना के बारे में विविध जानकारी जैसे—परियोजना के उद्देश्य, साक्षप्त। विवरण, वित्तीय संरचना, संयन्त्र, उपकरण, कच्चे माल, तकनीकी श्रम विभिन्न भौतिक संसाधन प्रबन्धकीय व्यवस्था, बाजार, विपणन व्यवस्था, निर्यात, लागत, लाभदायकता, रोकड़ प्रवाह आदि प्रदान करता है। संक्षेप में “परियोजना प्रतिवदनाकसान अथवा उद्यमी के द्वारा प्रारम्भ की जाने वाली परियोजना की विभिन्न क्रियाओं तथा उनकी तकनीकी, वित्तीय, पा सामाजिक व्यवहार्यताओं (Feasibilities) का एक लिखित लेखा है। इसके अन्तर्गत वे सभी सूचनाए एवार । हात है, जिनके आधार पर प्रस्तावित परियोजना का मूल्यांकन किया जाता है। परियोजना प्रतिवेदन उच्च प्रवन्धका प प्रषित किया जाता है जो सन्तष्ट होने पर परियोजना के चयन हेतु अपनी स्वीकति प्रदान करते हैं ।

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विशेषताएँ (Characteristics)

1. परियोजना प्रतिवेदन परियोजना में आने वाली प्रारम्भिक बाधाओं को पार करने के बाद किया जाता है।

2. यह परियोजना का एक विस्तृत प्रलेख होता है जिसमें परियोजना का सम्पूर्ण विवरण दिया गया होता है।

3. यह प्रतिवेदन परियोजना क्रियाओं का मार्गदर्शन होता है। ।

4. यह परियोजना क्रियाओं के अनुक्रम (Sequence) को दर्शाता है।

परियोजना प्रतिवेदन के उद्देश्य (Objectives of Project Report)

1. वित्तीय सहायता प्राप्त करने के लिए प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जाना आवश्यक होता है।

2. विनियोग अवसरों का मूल्यांकन करना।

3. विभिन्न दशाओं में परियोजना सरकारी विभाग व जिला उद्योग केन्द्र को भेजना आवश्यक होता है।

4. इससे परियोजना के उद्देश्यों तथा उपलब्ध साधनों का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।

5. परियोजना प्रतिवेदन से अनुमानित ला..व सम्भावित आय की तुलनात्मक समीक्षा की जा सकती है। 6. यह परियोजना के सम्बन्ध में विभिन्न शंकाओं एवं जिज्ञासाओं का समाधान प्रस्तुत करता है।

7. परियोजना प्रतिवेदन विनियोग निर्णयों के लिए एक व्यवस्थित दृष्टिकोण होता है।

8. यह सरकार व अन्य संस्थाओं द्वारा करों में व्ट, सहायता, सुविधाएँ व प्रेरणाएँ प्रदान करने में एक उपयुक्त आधार प्रदान करता है।

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परियोजना मूल्यांकन अथवा आंकलन

(Project Appraisal)

किसी भी परियोजना में विनियोजित किये जाने वाले संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग होना परम आवश्यक है। यह तभी सम्भव है, जबकि उद्यमी की परियोजना सुदृढ़ एवं लाभपद हो । सुदृढ़ परियोजना जहाँ एक ओर उद्यमी को निर्धारित लक्ष्य अथवा लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायता प्रदान करती है, वहीं दूसरी ओर, उसे अपने विनियोजन पर सुस्थिर आय प्रदान करती है। अतएव किसी भी प्रस्तावित परियोजना का आंकलन (मूल्यांकन) होना परम आवश्यक है।

परियोजना मूल्यांकन (आंकलन) का अर्थ (Meaning of Project Evaluation)

सरल अर्थ में परियोजना मूल्यांकन किसी प्रस्तावित परियोजना की लागत एवं लाभ का विश्लेषण है। इसका उद्देश्य सीमित कोषों का विभिन्न वैकल्पिक विनियोजन अवसरों में विवेकपूर्ण आबंटन करना है ताकि विशिष्ट निर्धारित लक्ष्य अथवा लक्ष्यों की प्राप्ति हो सके। उद्यमी के वित्तीय कोष सीमित होते हैं, जबकि उसके समक्ष अनेक वैकल्पिक प्रस्तावित परियोजनाएँ होती हैं और उसे उनमें से सर्वश्रेष्ठ परियोजना का चयन करना होता है। इस कार्य के लिए वह परियोजना मूल्यांकन का सहारा लेता है। विस्तृत अर्थ में, परियोजना मूल्यांकन से आशय, “किसी परियोजना की तकनीकी व्यवहार्यता (Feasibility), आर्थिक क्षमता, वित्तीय जीव्यता (Viability) तथा उसके सफल संचालन के लिए आवश्यक प्रबन्धकीय योग्यता का निर्धारण करने। के लिए किये जाने वाले विस्तृत मूल्यांकन से है। यह उद्यमी द्वारा प्रस्तावित उद्यम योजना की सुदृढ़ता एवं सम्भाव्य सफलता के सम्बन्ध में निर्णय लेने की प्रक्रिया है यह परियोजना के विभिन्न तकनीकी, वित्तीय आर्थिक एवं वाणिज्यिक तथा प्रबन्धकीय पहलुओं पर विचार करते हुए उसकी भावी लाभदायकता, सक्षमता एवं वांछनीयता (Desirability) को जाँचने का। विधि है।

परियोजना मूल्यांकन (आंकलन) के उद्देश्य (Objectives of Project Appraisal)

परियोजना मूल्यांकन प्रस्तावित परियोजना का सही विश्लेषण करने का औजार (Tool) है यह प्रस्तावित परियोजना की। अनुमानित लागतों एवं लाभों की पहचान करता है परियोजना मूल्यांकन के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं

1. प्रस्तावित परियोजना के विशिष्ट एवं पूर्व निर्धारित परिणाम तक पहुँचना।

2. प्रस्तावित परियोजना की सफलता अथवा असफलता की दर को ज्ञात करने के लिए प्रमापित माप को लागू करना।

3. प्रस्तावित परियोजना की सफलता अथवा असफलता का पता लगाने के लिए आवश्यक सूचनाएँ एकत्रित एवं संकलित करना।

4. प्रस्तावित परियोजना की व्यवहार्यता (Feasibility) की जाँच करना एवं उसका तकनीकी दृष्टिकोण का मूल्यांकन करना।

5. प्रस्तावित परियोजना की अनुमानित लागतों एवं लाभों की पहचान करना।

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परियोजना मूल्यांकन के विभिन्न पहलू एवं क्षेत्र

(Various Aspects and Areas of Project Evaluation)

अथवा

प्रस्तावित परियोजना की व्यवहार्यता के मापदण्ड अथवा घटक

(Measurements of Feasibility or Factors of Proposed Project)

प्रस्तावित परियोजना की व्यवहार्यता का मूल्यांकन विभिन्न घटकों के विश्लेषण के आधार पर किया जाता है। इनमें से किसी भी घटक की कमो अथवा कमज़ोरी समूची प्रस्तावित परियोजना को प्रभावित करती है। उदाहरण के लिए, बैंक एवं अन्य वित्तीय संस्थाएँ किसी भी प्रस्तावित परियोजना के लिए वित्तीय सहायता दी जाये अथवा नहीं, इस बात का निर्णय करने के लिए उसकी व्यवहार्यता का परीक्षण करती है। वित्तीय संस्थाएँ इस बात की ओर सर्वाधिक ध्यान केन्द्रित करती हैं कि प्रस्तावित परियोजना पर विनियोजित किये गये धन पर पर्याप्त प्रत्याय (Return) मिल सकेगा या नहीं। उद्यमी पर्याप्त प्रत्याय प्राप्त होने पर ही परियोजना पर विनियोजित राशि पर ब्याज अथवा उचित अवधि में उधार ली गई धनराशि का भुगतान करने में समर्थ हो सकेगा। अतएव प्रस्तावित परियोजना को क्रियान्वित करने से पूर्व उसका व्यापक मूल्यांकन किया जाना नितान्त आवश्यक है, ताकि ऐच्छिक परिणाम प्राप्त किये जा सकें। इस दृष्टि से किसी प्रस्तावित परियोजना में निम्नलिखित पहलुओं का मूल्यांकन किया जाना परम आवश्यक है

  • तकनीकी मूल्यांकन (Technical Appraisal)
  • वित्तीय मूल्यांकन (Financial Evaluation)
  • प्रबन्धकीय मूल्यांकन (Managerial Evaluation
  • वाणिज्यिक मूल्यांकन (Commercial Evaluation)
  • आर्थिक-सामाजिक मूल्यांकन (Economic-social Evaluation)
  • क्रियात्मक मूल्यांकन (Operational Evaluation)
  • पर्यावरणीय मूल्यांकन (Environmental Evaluation)

प्रत्येक का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है

(I) तकनीकी मूल्यांकन (Technical Appraisal)—किसी भी नवीन परियोजना के मूल्यांकन में तकनीकी मूल्यांकन का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह कार्य योग्य एवं अनुभवी विशेषज्ञों द्वारा सम्पन्न किया जाता है। यदि प्रस्तावित परियोजना का आकार बड़ा एवं तकनीकी है तो इस कार्य के लिए बाहरी विशेषज्ञों का भी सहारा लिया जा सकता है। तकनीकी मूल्यांकन के अन्तर्गत निम्नलिखित घटकों के आधार पर किया जाता है—(i) स्थान एवं स्थिति (Location and Site); (ii) संयन्त्र का आकार एवं क्षमता (Size and Capacity of the Plant); (iii) प्रौद्योगिकी एवं उपकरण (Technology and Equipment); (iv) उत्पाद मिश्रण (Product Mix); (v) कच्चे एवं उपभोग योग्य माल के स्रोत (Sources of Raw Materials and Consumables); (vi) भवन एवं अभिन्यास (Building and Layout); (vii) श्रम-शक्ति (Manpower); (viii) पानी एवं स्टीम गैस (Water and Steam Gas): (ix) ईधन एवं बिजली (Fuel and Electricity); (X) विदेशी सहयोग (Foreign Collaboration); (xi) व्यर्थ पदार्थ व्यवस्था (Effluent Treatment); (xii) अनुसन्धान की सुविधाएँ (Reserch and Development Facilities: ii) उपयोग में आने वाली आधुनिकतम प्रौद्योगिकी Awarest Technology to be Adopted); (xiv) अवस्थापनात्मक सविधाएँ, जैसे—सड़के, ब्रिज, रेलवे, वायुयान आदि

Infrastructural Facilities like Roads, Bridges, Railways, Airways); एवं (xv) परियोजना नियोजन एवं अनुसूचियन आदि (Product-Planning and Scheduling, etc.)

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(ID वित्तीय मूल्यांकन (Financial Evaluation) प्रस्तावित परियोजना के क्रियान्वित में होने वाला भारी वित्तीय व्यय एक महत्त्वपूर्ण निर्णय है। इसके लिए दीर्घकालीन तथा अल्पकालीन दोनों प्रकार की पूँजी की आवश्यकता होती है। वित्तीय मूल्यांकन का मूलभूत उद्देश्य यह देखना है कि प्रस्तावित परियोजना पर्याप्त लाभ देने में सक्षम है, ताकि उद्यमी नियमित रूप में ब्याज का भुगतान कर सके और निर्धारित अवधि तक उधार ली गई पूँजी का भुगतान कर सके। वित्तीय मूल्यांकन का व्यापक क्षेत्र होता है, जैसे—(i) लागत अनुमान; (ii) उत्पादन लागत; (iii) वित्त की प्राप्ति के विभिन्न संसाधनों का निर्धारण; (iv) उद्यमी की पुनर्भुगतान क्षमता के सम्बन्ध में उचित सुरक्षा सीमा (Margin of Safety) की विद्यमानता; (v) ऋण-पूँजी अनुपात (DebtEquity Ratio); (vi) कार्यशील पूँजी के लिए मार्जिन धन (Margin Money for Working Capital); एवं (vii) लाभदेयता विश्लेषण (Profitability Analysis) आदि। उपर्युक्त सभी का व्यापक रूप में परीक्षण एवं मूल्यांकन किया। जाना आवश्यक है।

(III) प्रबन्धकीय मुल्यांकन (Managerial Evaluation) किसी भी प्रस्तावित परियोजना की सफलता में प्रबन्धकीय कुशलता की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। प्रबन्धकों एवं प्रवर्तकों के कुशल एवं अनुभवी न होने पर अच्छी से अच्छी। परियोजनाओं को भी असफलताओं का सामना करना पड़ सकता है, दूसरी ओर प्रबन्धकों एवं प्रवर्तकों की व्यावसायिकता दक्षता. प्रबन्धकीय कौशल, पूर्व अनुभव एवं संगठनात्मक क्षमता से कमजोर-से-कमजोर परियोजना की भी सफलता सुनिश्चित हो जाती है। प्रबन्धकों एवं प्रवर्तकों की प्रबन्धकीय योग्यता का मूल्यांकन करते समय उनके संसाधनों, समझ एवं वचनबद्धता का मूल्यांकन किया जाना आवश्यक है। उनके संसाधनों का मूल्यांकन उनके गत अनुभव परिवार की पृष्ठभूमि, परियोजना के विभिन्न पहलुओं को संगठित करने में की गई प्रगति एवं परियोजना की पृष्ठभूमि, परियोजना को प्रस्तुत करने में उनके चार्तुय के आधार पर किया जाता है। उनकी वचनबद्धता का मूल्यांकन परियोजना को लागू करने में उपयोग लाये गये वित्तीय एवं प्रबन्धकीय संसाधन एवं उनका जोश और लगन जिनके आधार पर वे परियोजना के अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन उद्देश्यों को प्राप्त करने में सक्षम हैं। प्रबन्धकों एवं प्रवर्तकों की समझ का मूल्यांकन परियोजना की साख, संगठन संरचना, अनुमानित लागत, वित्तीयन का ढंग, विपणन कार्यक्रम तथा वित्तीय संस्थानों को प्रदान किये विवरणों के आधार पर किया जा सकता है।

उपर्युक्त के अतिरिक्त प्रबन्धकीय मूल्यांकन में प्रवर्तकों तथा प्रबन्धकों के गत अनुभव, तकनीकी एवं प्रबन्धकीय शिक्षण एवं प्रशिक्षण, विश्वसनीयता, चरित्र एवं क्षमता को भी सम्मिलित किया जाता है।

(IV) वाणिज्यिक मूल्यांकन (Commercial Evaluation)—प्रस्तावित परियोजना वाणिज्यिक दृष्टि से पूर्णतः स्वस्थ एवं सुदृढ़ होनी चाहिए। वाणिज्यिक मूल्यांकन करने के लिए निम्न बिन्दुओं पर विचार करना एवं परीक्षण करना आवश्यक है— (i) उत्पाद की बाजार माँग; (ii) प्रतियोगी उत्पादों की बाजार में उपलब्धता; (iii) बाजार का चयन; (iv) बाजार का आकार एवं भावी विकास; (v) राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में उत्पाद की माँग एवं पूर्ति की स्थिति; (vi) प्रतिस्पर्द्धा की प्रकृति; (vii) मूल्य नीति तथा उत्पाद की किस्म की तुलना में भावी कीमतें; (viii) विपणन व्यूहरचना, विक्रय व्यवस्था व विक्रय कर्मचारियों की योग्यता; (ix) निर्यात सम्भावनाएँ; (x) यदि उत्पाद आयात-स्थानापन्न (Import-Substitute) हो तो देश में आयातों की स्थिति तथा मूल्य।

उपर्युक्त बिन्दुओं के विश्लेषण के साथ-साथ भावी माँग का पूर्वानुमान करने के लिए बाजार सर्वेक्षण किये जा सकते हैं। किसी भी औद्योगिक इकाई की वाणिज्यिक व्यवहा॑यता का मूल्यांकन करने के लिए उद्यमियों अथवा वित्तीय संस्थाओं के द्वारा विभिन्न बाजार अनुसन्धान तकनीकों का प्रयोग किया जा सकता है।

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(V) आर्थिक-सामाजिक मूल्यांकन (Economic-social Evaluation) किसी भी प्रस्तावित परियोजना का। आर्थिक-सामाजिक दृष्टि से मूल्यांकन किया जाना आवश्यक है। कोई भी परियोजना; चाहे व्यावसायिक हो अथवा गैर-व्यावसायिक समाज के हितों की उपेक्षा करने का साहस नहीं जुटा सकती। इस दृष्टि से प्रत्येक परियोजना के लिए परम आवश्यक है कि वह राष् के आर्थिक-सामाजिक लक्ष्यों की पूर्ति में सहभागी बनें। यह कार्य व्यापक दृष्टिकोण से किया जाना चाहिए। किसी। परियोजना का आर्थिक-सामाजिक दृष्टि का मूल्यांकन राष्ट्र के प्रति उसके निम्न योगदान के आधार पर किया जा सकता है

रोजगार का सजन: राष्ट्र की आर्थिक प्रगति में योगदान; (iii) आय एवं धन के समान वितरण में योगदान: (iv) आत्म-निर्भरता को प्रोत्साहनः (v) विदेशी मुद्रा का अर्जन एवं बचत; (vi) पिछड़े क्षेत्रों का विकास; (vii) कुटीर, लघु उद्योगों व सहायक उद्योगों का विकासः (viii) दूसरे उद्योगों व क्षेत्रों को सहायता तथा अग्रगामी व पृष्ठगामी संयोजन; (ix) आधारभूत सुविधाओं व औद्योगिक संरचना के निर्माण में योगदान; (x) प्रोद्योगिकी के उन्नयन एवं हस्तान्तरण में सहायताः (xi) किस्म एवं उत्पादकता में सधारः (xii) राष्ट्रीय कल्याण, जीवन-स्तर व जीवन की गुणवत्ता में सुधार; (xiii) ग्रामीण क्षेत्रों व समाज के पिछड़े। वर्गों में उत्थान में सहायक; (xiv) दुर्लभ संसाधनों के सदुपयोग व ऊर्जा तथा शक्ति का संरक्षण; (xv) राष्ट्र के आर्थिक ढाँचे में परियोजना की प्राथमिकता; (xvi) सामाजिक स्तर ऊँचा उठाने में योगदान; एवं (xvii) समाज की सम्पत्ति के दुरुपयोग पर रोक।

(VI) क्रियात्मक मूल्यांकन (Operational Evaluation)-किसी परियोजना का क्रियात्मक मूल्यांकन परियोजना की क्षमता का अध्ययन करने में सहायक होता है परियोजना की क्षमता सम्पूर्ण संयन्त्र उत्पाद मिश्रण की माँग पूरा करने में सक्षम होनी चाहिए। क्रियात्मक मूल्यांकन इस बात की भविष्यवाणी करता है परियोजना अपनी प्रारम्भिक 4-5 वर्ष की अवधि में अपनी अन्तिम क्षमता को प्राप्त करने में सक्षम है। आवश्यकता पड़ने पर कार्य पालियों (Shifts) की संख्या में भी वद्धि की जा सकती है। इसी आधार पर लक्ष्य अथवा लक्ष्यों की प्राप्ति का भी अनुमान लगाया जा सकता है। क्षमता उपयोग के विभिन्न स्तरों पर कितनी मानव-शक्ति की आवश्यकता होगी, इसका भी मोटे रूप में अनुमान लगाया जा सकता है। समुचित क्रियात्मक मूल्यांकन के अभाव में यह देखा गया है कि अनेक प्रस्तावित परियोजनाएँ केवल फाइलों में ही बन्द होकर रह जाती हैं, वे कभी भी खली हवा का मुँह नहीं देख पाती हैं। तब तक व्यय किया गया समूचा धन डूब जाता है और प्रवर्तक या तो दिवालिया घोषित हो जाते हैं अथवा पलायन करने पर मजबूर जाते हैं।

(VII) पर्यावरणीय मूल्यांकन (Environmental Evaluation) मनुष्य जिस देश, काल तथा परिस्थिति में जन्म लेता है और जीवनयापन करता है, वही उसका पर्यावरण कहलाता है। व्यापक रूप में, निम्न दो प्रकार की परियोजनाएँ होती हैं—(1) उत्पादन-उन्मुखी परियोजनाएँ, तथा (ii) सेवा-उन्मुखी परियोजनाएँ। उत्पादन-मुखी परियोजनाएँ भौतिक वस्तुओं, जैसेसीमेण्ट, कागज, स्टील, रासायनिक, साबुन, तेल, उर्वरक आदि का निर्माण करती हैं। इसके विपरीत, सेवा-उन्मुखी परियोजनाएँ विभिन्न प्रकार की सेवाओं से सम्बन्धित हैं, जैसे—स्वास्थ्य, शिक्षा, परिवर्तन, सुरक्षा, कानून की व्यवस्था आदि। पर्यावरण मूल रूप से उत्पादन-उन्मुखी सेवाओं से सम्बन्धित है। किसी भी उत्पादन-उन्मुखी परियोजना को क्रियान्वित करने से पूर्व राज्य सरकार के लिए इस बात का प्रमाण लेना परम आवश्यक है कि निर्माणी परियोजना से पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा तथा परियोजना सर्वथा प्रदूषणमुक्त होगी। निर्माणी उद्योग बोनस के रूप में हमें प्रदूषण देते हैं। इसी आधार पर किसी परियोजना की स्थापना करने से पूर्व राज्य सरकार के लिए पर्यावरण व प्रदूषणमुक्त प्रमाण-पत्र लेना अनिवार्य है।

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सम-विच्छेद बिन्दु या सम-विच्छेद विश्लेषण

(Break-even Point or Break-even Analysis)

सम-विच्छेद सीमान्त विश्लेषण लागत का एक महत्त्वपूर्ण उपकरण या अंग है, इसके अन्तर्गत क्रिया का वह स्तर निर्धारित किया जाता है जहाँ कुल लागत तथा कुल आगम दोनों एक-दूसरे के बराबर हों। वस्तुतः सम-विच्छेद विश्लेषण लागत लाभ-मात्रा सम्बन्धों पर आधारित है। इसकी सहायता से वस्तु की लागत-मात्रा तथा कीमत में होने वाले परिवर्तनों का लाभ पर पड़ने वाला प्रभाव ज्ञात किया जा सकता है।

– सम-विच्छेद बिन्दु उत्पादन या विक्रय की स्थिति को प्रदर्शित करता है, जहाँ व्यवसायी या उत्पादक को न लाभ होता है और न ही हानि अर्थात् सम-विच्छेद बिन्दु पर होने वाले विक्रय से केवल वस्तु की परिवर्तनशील तथा स्थायी लागतों की पूर्ति होती है। यदि व्यवसायी लाभ कमाना चाहता है, तो उसे सम-विच्छेद बिन्दु से अधिक बिक्री करनी होगी। इसी प्रकार, यदि वास्तविक विक्रय राशि सम-विच्छेद बिन्दु से कम रहती है तो ऐसी स्थिति में व्यवसायी को हानि का सामना करना होता है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि “सम-विच्छेद बिन्द क्रियाशीलता स्तर का वह बिन्दु है, जहाँ कुल आगम तथा कल व्यय बराबर हो और। लाभ शून्य हो।”

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परियोजना साध्यता रिपोर्ट के लिए योजना आयोग के दिशा-निर्देश

(Planning Commission Guidelines for Project Feasibility Reports)

परियोजना रिपोर्ट को अधिक अर्थपूर्ण बनाने के लिए योजना आयोग ने विभिन्न दिशा-निर्देश दिये हैं, जो इस प्रकार  से हैं ।

1 साधारण जानकारी (General Information) परियोजना की साध्यता रिपोर्ट में इकाई से सम्बन्धित उद्योग परम पूर्ण विश्लेषण होना चाहिए। इसमें उद्योग के कार्यों की पिछले वर्षों की जानकारी होनी चाहिए। इसमें धन के निवेश तथा उत्पादन के लिए उपयोग की जाने वाली तकनीक का भी वर्णन किया जाना चाहिए।

2. परियोजना विवरण (Project Details) परियोजना साध्यता रिपोर्ट में प्रौद्योगिकी का विवरण अथवा परियोजना। लिए सम्बद्ध प्रक्रिया भी सम्मिलित होनी चाहिए। प्लांट के स्थान के विषय में निर्णय लेने के लिए ध्यान में रखे जाने वाले। घटकाक सन्दर्भ की जानकारी तथा पर्यावरण सम्बन्धी प्रभाव भी निर्दिष्ट किया जाना चाहिए। परियोजना रिपोर्ट में बिजली कर्मचारी । वर्ग, यातायात तथा प्लांट की अन्य आवश्यकताओं के बारे में भी जानकारी होनी चाहिए।

3. पूँजी की आवश्यकता (Capital Requirement)-पूँजी की आवश्यकताएँ तथा लागत के अनुमान पूर्ण रूप से प्रस्तुत किये जाने चाहिए।

4.विकल्पों की प्राथमिक जाँच (Preliminary Investigation of Alternatives) परियोजना साध्यता रिपोर्ट में उत्पादन की जाने वाली वस्त का माँग-पर्ति में अन्तर को शामिल होना चाहिए। सभी विकल्प जो कि तकनीकी रूप से साध्य (Feasible) है उन्हें ध्यान में रखना चाहिए। विभिन्न विकल्पों की अनुमानित लाभदायिकता को ध्यान में रखा जाना चाहिए। परियोजना रिपोर्ट में अनुमानित प्रत्याय दर भी निर्दिष्ट की जानी चाहिए।

5. विपणन (Marketing)–विपणन योजना में विभिन्न क्षेत्रों में वस्तु की माँग तथा सम्भावित पूर्ति की स्थिति को उजागर किया जाना चाहिए। घरेलू पूर्ति का अनुमान लगाने तथा बाजार क्षेत्रों का चयन करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली तकनीकें तथा आंकड़े दर्शाए जाने चाहिए।

6.वित्तीय विश्लेषण (Financial Analysis) यहाँ पर परियोजना की वित्तीय व्यवहार्यता (Viability) का आंकलन करने पर अधिक जोर दिया जाता है। रिपोर्ट में प्राथमिकता प्राप्त इकाइयों के लिए आय कर में रियायतें तथा पिछड़े क्षेत्रों के लिए उत्प्रेरक आदि शामिल होने चाहिए।

7. परिचालन आवश्यकता (Operating Requirment) कच्चे माल की लागत ईंधन, श्रमिक, मरम्मत तथा रख-रखाव एवं अन्य लागतें उचित प्रकार से संकलित (Con:piled) की जानी चाहिए एवं सम्बन्धित जानकारी प्रस्तुत की जानी चाहिए।

8. आर्थिक विश्लेषण (Economic Analysis)-उपक्रमों को विदेशी व्यापार, अप्रत्यक्ष लागत तथा लाभों पर अपने कार्यों के प्रभावों का आकलन करने का प्रयत्न करना चाहिए।

9. विविध पहलू (Miscellaneous Aspects)–विभिन्न अन्य पहलू जैसे कम्प्यूटरों का इस्तेमाल, Data Processing Services, रोकड़ बहाव विवरण (Cash Flow Statement) तथा लेखांकन की विधि आदि को दर्शाया जाना चाहिए।

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नवीन इकाई की स्थापना के लिए वैधानिक आवश्यकताएँ

(Legal Requirement for Establishment of a New Unit)

प्रतिदिन अनेक नवीन इकाइयों की स्थापना की जाती है, परन्तु स्थापित की जाने वाली प्रत्येक इकाई सफलता प्राप्त कर लेगी, यह आवश्यक नहीं है। यह ठीक है कि उनमें से अनेक इकाइयों को असफलता का सामना करना पड़े। इसके अनेक कारण हो सकते हैं। इन कारणों में से एक प्रमुख कारण उनकी स्थापना के लिए समस्त वैधानिक औपचारिकताओं में से कुछ का पूरा न करना हो। इन आधारभूत भूलों एवं त्रुटियों का पता लगाने के स्थान पर उद्यमी उसकी असफलता को मात्र संयोग ही समझते हैं। ऐसे उद्यमी केवल मात्र भाग्य के भरोसे से ही किसी नवीन इकाई की स्थापना करते हैं और असफलता हाथ लगने पर भाग्य को कोसते रहते हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि आधुनिक व्यवसाय विभिन्न वैधानिक औपचारिकताओं से भरा पड़ा। है, जिसकी स्थापना करने से पूर्व अत्यन्त सोच-विचार करने की आवश्यकता है। “एक नवीन इकाई का स्थापना करना एक प्रकार से एक नये शिशु को जन्म देने के समान है।” तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार एक नये शिशु का जन्म देने से पूर्व माता को कई सावधानियाँ बरतनी पड़ती हैं, ठीक उसी प्रकार एक उद्यमी को नवीन इकाई की स्थापना करने से पूर्व अनेक वैधानिक औपचारिकताओं एवं विधियों का पालन करना पड़ता है। तनिक-सी लापरवाही बरतने पर असफलता हमारे समाने मह बाय। खडी रहती है। इस सन्दर्भ में हमें इमरसन (Emerson) की निम्न पंक्तियाँ अनायास ही याद आ जाती हैं, “व्यवसाय चातुर्य का खेल है जिसे प्रत्येक व्यक्ति नहीं खेल सकता। अतएव किसी नवीन इकाई की स्थापना करने से पर्व केन्द्रीय सरकार तथा । राज्य सरकार द्वारा लगाई गई शतों एवं नियमों का पालन करना आवश्यक है।

एक नवीन डकार्ड की स्थापना के लिए उद्यमी को विभिन्न वैधानिक आवश्यकताओं का पालन करना पड़ता है इस सम्बन्ध में भारत सरकार बधाई की पात्र है जिसने 24 जुलाई, 1991 को घोषित नवीन औद्योगिक नीति की घोषणा की जिसके अन्तर्गत जहाँ एक और नवीन औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के सम्बन्ध में अनेक वैधानिक आवश्यकताओं को या तो समाप्त कर दिया है अथवा कम कर दिया है, वहीं दूसरी ओर, उदारीकरण (Liberalisation), निजीकरण (Privatisation) तथा विश्वव्यापीकरण IGlobalisation) को नवीन औद्योगिक नीति में स्थान दिया गया है। एक नवीन इकाई की स्थापना के लिए निम्नलिखित वैधानिक, आवश्यकताओं का पालन किया जाना आवश्यक है

(1) लाइसेन्स प्राप्त करना (To Receive Licence)—किसी भी नवीन इकाई की स्थापना के लिए सबसे पहली धंधानिक आवश्यकता केन्द्रीय सरकार अथवा राज्य सरकार (जैसा भी प्रावधान हो) से लाइसेन्स प्राप्त किया जाना आवश्यक है। 24 जलाई. 1991 को घोपित नवीन औद्योगिक नीति एवं उसके पश्चात् किये गये संशोधनों के अनुसार लाइसेन्सिंग नीति के अन्तर्गत कई महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये गये हैं। लाइसेन्सिंग नीति के प्रमुख तत्त्व निम्नलिखित हैं

(i) नवीन लाइसेन्सिंग नीति के अन्तर्गत केवल 15 उद्योगों (अनुसूची द्वितीय और वर्तमान में 15 उद्योगों को छोड़कर शेष सभी उद्योगों की स्थापना करने के लिए लाइसेन्स लेने की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया गया है, चाहे उनमें पूँजी विनियोग की मात्रा कितनी भी क्यों न हो) को लाइसेन्स लेना आवश्यक है।

(ii) लघु उद्योगों के लिए लाइसेन्स लेने की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया गया है। अतएव वर्तमान में अब किसी भी नये लघु उद्योग की स्थापना के लिए लाइसेन्स लेने की आवश्यकता नहीं है।

(iii) विदेशी प्रौद्योगिकी के आयात में रियायतें दी गयी है ताकि वे अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में टिक सकें। उच्च प्राथमिकता पाप्त उद्योगों के लिए विदेशी प्रौद्योगिकी एक करोड़ रुपये या घरेल बिक्री के 5% अथवा निर्यात के 8% तक आयात करने की छट होगी तथा इसके लिए लाइसेन्स लेना आवश्यक नहीं होगा।

(iv) नवीन लाइसेन्सिंग नीति में उदारीकरण, विश्वव्यापीकरण तथा निजीकरण को उपयुक्त स्थान दिया गया है, ताकि हमारे उद्योगों के लिए औद्योगिक इकाइयों का विस्तार, प्रतिस्पर्द्धा तथा निर्यात करने का सुअवसर मिले।

(v) एकाधिकारी तथा वृहत् औद्योगिक घरानों पर सामान्य व्यावसायिक इकाइयों की भाँति ही नियम लागू होंगे।

(vi) सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के लिए शुरू से ही आरक्षण नीति अपनायी है। सन् 1991 की नवीन लाइसेन्सिंग नीति के अन्तर्गत सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित उद्योगों की संख्या घटाकर 8 (आठ) कर दी गई है। वर्तमान में इनकी संख्या मात्र 6 (छ:) रह गयी है। ये उद्योग हैं-(1) सुरक्षा की वस्तुएँ,(2) आण्विक ऊर्जा, (3) कोयला एवं लिग्नाइट,(4) खनिज तेल, (5) रेल-परिवहन, तथा (6) आण्विक ऊर्जा आर्डर, 1953 की अनुसूची में वर्णित खनिज पदार्थ इस प्रकार सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को आधार-ढाँचे की वस्तुओं व सेवाओं, तेल व कुछ खनिज पदार्थों तथा सुरक्षा उपकरण तक सीमित कर दिया गया है।

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(2) प्रदूषण नियन्त्रण मण्डल से निकासी (Clearance from Pollution Control Board) सम्पूर्ण विश्व में प्रदूषण समस्या एक विकट रूप धारण कर चुकी है। यह प्रदूषण विभिन्न प्रकार का होता है, जैसे—वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, भूमि प्रदूषण, मानव प्रदूषण, रासायनिक प्रदूषण, रेडियोधर्मी प्रदूषण, मिट्टी प्रदूषण, वन प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, विकास प्रदूषण तथा औद्योगिक प्रदूषण आदि। यदि देखा जाये तो उद्योग पर्यावरण प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत है। इसके कारण ही (i) वायु प्रदूषण, (ii) जल प्रदूषण, (iii) ध्वनि प्रदूषण, एवं (iv) रासायनिक प्रदूषण आदि होते हैं। भारत के केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण मण्डल के अनुसार भारत की राजधानी दिल्ली आज विश्व की सबसे अधिक प्रदूषित नगरी बन चुकी है जहाँ की आबो-हवा में प्रत्येक दिन दो हज़ार टन प्रदूषण सम्मिलित होता है।

प्रदूषण की रोकथाम के लिए प्रत्येक उद्यमी को नवीन उद्यम की स्थापना करने से पूर्व केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण मण्डल से प्रदूषण निकासी प्रमाण-पत्र लेना अनिवार्य है। यहाँ (i) प्रथम प्रमाण-पत्र वायु (प्रदूषण रोकथाम एवं नियन्त्रण) अधिनियम, 1981 के अन्तर्गत निर्गमित किया जाता है। (ii) दूसरा प्रमाण-पत्र जल (प्रदूषण रोकथाम एवं नियन्त्रण) अधिनियम, 1974 के अन्तर्गत निर्गमित किया जाता है। ये दोनों प्रमाण-पत्र यह प्रमाणित करते हैं कि प्रस्तावित उद्यम अथवा उद्योग वायु प्रदूषण तथा जल प्रदूषण से सर्वथा मुक्त हैं। इन दोनों की निकासी के लिए उपयुक्त यन्त्र कर दिये जाते हैं।

(3) अस्थायी पंजीयन प्रमाण-पत्र (Provisional Registration Certificate)-नवीन उद्यम की स्थापना करने वाले उद्यमी के लिए इस सम्बन्ध में उठाया जाने वाला तीसरा कदम राज्य के जिला उद्योग केन्द्र से उद्यम की स्थापना के लिए। अस्थायी पंजीयन प्रमाण-पत्र लेना आवश्यक है। प्रारम्भ में यह प्रमाण-पत्र एक वर्ष की अवधि के लिए निर्गमित किया जाता। है। याद एक वर्ष के अन्दर उद्यम की स्थापना करना सम्भव नहीं हो पाता है तो बाद में इसे दो बार छ:-छ: महीने की अवधि के लिए बढ़ाया जा सकता है। इस प्रमाण-पत्र के आधार पर ही उद्यमी अग्रलिखित की प्राप्ति का अधिकारी हो जाता है।

के लिए आवेदन करना; (iii) स्थानीय चुगा अथवा

(i) औद्योगिक बस्ती में शेड (Shed) अथवा प्लाट (Pशड (Shed) अथवा प्लाट (Plot) के लिए आवेदन करना; (ii) शक्ति (Power) अर्थात् बिजली पाने an) स्थानीय चंगी अथवा निगम से लाइसेन्स प्राप्त करना; एवं (iv) बैंक अथवा अन्य किसा वतीय संस्थान से आर्थिक (वित्तीय) सहायता प्राप्त करना।

(4) पूँजी निर्गमन प्रमाण-पत्र (Canital Issue Certificate) किसी भी नवीन औद्योगिक इकाई के लिए पर्याप्त पूँजी का आवश्यकता होती है। अतएव स्थायी पंजीयन प्रमाण-पत्र प्राप्त होने के पश्चात् उद्यमी को पूजी निर्गमन नियंत्रण का स्वाकृति प्राप्त होना आवश्यक है। यह स्वीकृति पूँजी निर्गमन (नियंत्रण) अधिनियम, 1947 के अन्तर्गत ली जाती है। इस आधानयम का मूलभूत उद्देश्य देश में उपलब्ध पूँजी को इस प्रकार से नियन्त्रित करना है, ताकि पूँजी विनियोग की दिशा को नियन्त्रित करके उसे उस क्षेत्र की ओर ले जाया जा सके जहाँ उसकी अधिक आवश्यकता हा

(5) स्थायी पंजीयन प्रमाण-पत्र (Permanent Registration Certificate)-एक नवीन औद्योगिक इकाई, जिसन अस्थायी पंजीयन प्रमाण-पत्र के आधार पर उत्पादन कार्य या तो प्रारम्भ कर दिया है अथवा प्रारम्भ करने वाला है, को तत्पश्चात् स्थायी पंजीयन प्रमाण-पत्र प्राप्त करना होता है।

(6) कारखाना अधिनियम के अन्तर्गत पंजीयन (Registration under the Factories Act) यदि उद्यमी निर्माण प्रक्रिया प्रारम्भ करना चाहता है तो कारखाने में शक्ति का प्रयोग करते हए 10 या इससे अधिक तथा बिना शक्ति का प्रयोग किये हुए 20 या इससे अधिक श्रमिकों की नियुक्ति की दशा में उद्यमी को कारखाना अधिनियम, 1948 के अन्तर्गत उद्यम का पंजीयन कराना होगा एवं उसका प्रमाण-पत्र प्राप्त करना होगा।

(7) लघ इकाई पंजीयन प्रमाण-पत्र (Small Unit (SSD Registration Certificate) यदि उद्यमी नवीन लघु औद्योगिक इकाई की स्थापना करना चाहता है तो उसे लघु उद्योग निर्देशालय से लघु उद्योग की स्थापना के लिए प्रमाण-पत्र लेना होगा। भारत सरकार एवं राज्य सरकारें देश में लघु औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के लिए विभिन्न प्रकार की छूटे एवं रियायतें देती हैं। इनका उद्देश्य देश में लघु औद्योगिक इकाइयों की स्थापना को प्रोत्साहित करना है।

(8) आयात लाइसेन्स (Import Licence) यदि उद्यमी नवीन औद्योगिक इकाई में आयातित कच्चा माल एवं अन्य सामग्री का उपयोग करना चाहता है तो उसे आयात-निर्यात नियन्त्रक से आयात करने का प्रमाण-पत्र प्राप्त करना होगा।

(9) आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के अन्तर्गत प्रमाण-पत्र (Certificate under Essential Commodities Act, 1955) उद्यमी द्वारा स्थापित नवीन औद्योगिक इकाई आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन करना चाहती है तो उसे आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के अन्तर्गत प्रमाण-पत्र प्राप्त करना होगा। इस अधिनियम के अन्तर्गत अनुचित लाभ, अनुचित संग्रह, कालाबाजारी आदि असामाजिक प्रवृत्तियों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही किये जाने का प्रावधान है। इस अधिनियम के अनुसार वस्तुओं की कीमत निर्धारित करने, स्टॉक का प्रदर्शन करने, अनुचित माल का सरकार द्वारा अधिग्रहण करने सम्बन्धी प्रावधान भी सम्मिलित हैं।

(10) परिभोगी द्वारा सूचना (Notice by the Occupier) यदि उद्यमी कारखाने करने का निर्णय लेता है तो उसे कारखाना अधिनियम के अन्तर्गत लाइसेन्स प्राप्त करने के पश्चात् उसे किसी भवन को कारखाने के रूप में प्रयोग करने। अथवा अधिकार में लेने के कम-से-कम 15 दिन पूर्व निर्धारित प्रपत्र पर निम्न बातों की सूचना मुख्य कारखाना निरीक्षण को देना अनिवार्य है (1) कारखाने का नाम और उसकी स्थिति; (ii) परिभोगी का नाम और पता: (iii) भगृहादि (Premises) या (जिसमें उसका अहाता भी शामिल है) स्वामी का नाम और पता; (iv) वह पता जिस पर कारखाने से सम्बन्धित पत्र-व्यवहार किया जा सके; (v) उपभोग की जाने वाली शक्ति की प्रकृति एवं मात्रा: (vi) कारखाने में नियक्त किये जाने वाले श्रमिकों को। सम्भावित संख्या; (vii) कारखाने के प्रबन्धक का नाम: (viii) विद्यमान कारखाने की दशा में पिछले 12 महीनों की अवधि। में नियुक्त श्रमिकों की औसत दैनिक संख्या; (ix) ऐसी अन्य बातें जो निर्धारित की जायें;(x) कारखाने में स्थापित अथवा स्थापित की जाने वाली कुछ शक्ति का योग भी सूचना में देना होगा; एवं (xi) निर्माण प्रक्रिया की प्रकति जोकि (अ) इस अधिनियम के प्रारम्भ होने की तिथि पर विद्यमान कारखानों की अवस्था में पिछले 12 महीनों की अवधि में की गयी है; तथा (ब) अन्य। समग्र कारखानों की अवस्था में आगामी 12 महीनों की अवधि में कारखाने में चलाई जाने वाली है।

(11) बिक्री कर सत्ता के अन्तर्गत पंजीयन (Registration Sales Tax Authorities) तत्पश्चात् उद्यमी का राज्य सरकार के बिक्री कर विभाग तथा यदि आवश्यक हो तो केन्द्रीय सरकार के बिक्री कर विभाग में भी उद्यम का पजायन। कराना तथा प्रमाण-पत्र लेना होगा।

(12) आयकर सत्ता के अन्तर्गत पंजीयन (Registration with Income Tax Authorities) उपयुक्त औपचारिकताएँ पूरी करने के पश्चात् उद्यमी को आयकर सत्ता के अन्तर्गत औद्योगिक इकाई का पंजीयन कराना होगा।।

(13) जल संयोजन के लिए आवेदन (Application for Water Connection) प्रत्येक औद्योगिक नवीन इकाई के लिए पर्याप्त मात्रा में जल के आवश्यकता होती है। अतएव उद्यमी को स्थानीय सत्ता अर्थात् म्युनिसिपल जल विभाग अथवा जल निगम के समक्ष जल संयोजन के लिए आवेदन करना होता है। इसका उद्देश्य पर्याप्त मात्रा में जल की उपलब्धि कराना है।

(14) उत्पाद शल्क विभाग में पंजीयन (Registration under Trade Mark Act) यदि नया स्थापित उद्यम निर्मित उत्पाद का उत्पादन करता है तो उसे अपने निर्मित उत्पाद का ट्रेडमार्क अधिनियम के अन्तर्गत पंजीयन करा लेना चाहिए. जैसे कोकाकोला, पेप्सी, बजाज, लक्स साबुन, हरक्यूलस साइकिल, रिलायन्स, कोलगेट, बाटा, टाटा, 346 सफेदा, 4444 सफेदा, 555 साबुन, हमाम साबुन, रैक्सोना साबुन, डाबर आंवला तेल, पद्मनी स्कूटर, ओ. के. साबुन आदि। ट्रेडमार्क का पंजीयन कराने से दूसरा निर्माता उसकी नकल नहीं कर पाता है। इसके अतिरिक्त जल ट्रेडमार्क पंजीकृत उत्पाद बाजार में ख्याति अर्जित कर लेता है तो उसकी बिक्री में तेजी से वृद्धि होती है। ट्रेडमार्क के पंजीयन हेतु आवेदन निर्धारित शुल्क के साथ सम्बन्धित राज्य ट्रेडमार्क रजिस्टर कार्यालय में देना चाहिए। ध्यान रहे कि आप जिस ट्रेडमार्क के पंजीयन के लिए आवेदन करें, वह किसी दूसरे निर्माता के पंजीकृत ट्रेडमार्क के समान अथवा उससे मिलता-जुलता नहीं होना चाहिए।

(15) शक्ति के संयोजन के लिए आवेदन(Application for Power Connection)-भारतीय विद्युत् अधिनियम, 1910 के अन्तर्गत प्रत्येक उद्यमी के लिए नवीन औद्योगिक इकाई में प्रयुक्त शक्ति के लिए निर्धारित फार्म में आवेदन करना आवश्यक है। आवेदन राज्य विद्यत मण्डल के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। आवश्यक जाँच-पड़ताल करने के पश्चात् प्रारम्भ में यह अस्थायी विद्युत् संयोजन मिलता है। बाद में इसे नियमित कर दिया जाता है।

Concept Legal Requirement Establishment

उपयोगी प्रश्न (Useful Questions)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

1 परियोजना से क्या आशय है ? परियोजना निर्माण के विभिन्न चरणों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।

What is meant by Project ? Describe in brief the different stages of project preparation.

2. परियोजना की परिभाषा दीजिए। इसकी प्रमुख विशेषताएँ बताइए।

Define Project. Explain its main characteristics.

3. परियोजना पहचान से क्या आशय है ? परियोजना निर्माण की परिचालन अवस्था को संक्षेप में बताइए।

What is meant by Identification of a Project? Explain in brief the operation stage of a project.

4. परियोजना के उद्देश्य क्या हैं ? इसके महत्त्व पर प्रकाश डालिए।

What are the Objectives of a Project? Throw light on its importance.

5. परियोजना पहचान की आवश्यकता एवं महत्त्व का वर्णन कीजिए।

Describe the necessity and importance of Project Identification.

6. नवीन औद्योगिक इकाई की स्थापना के लिए उद्यमी द्वारा उठायी जाने वाली वैधानिक औपचारिकताओं का संक्षेप में क्रमानुसार वर्णन कीजिए।

Describe in brief in serial order the legal formalities taken by an entrepreneur for the establishment of a new unit ?

7. किसी नयी इकाई की स्थापना के लिए उद्यमी को कौन-कौन सी वैधानिक औपचारिकताएं पूरी करनी पड़ती हैं ? संक्षेप में वर्णन कीजिए।

What legal formalities are to be complied by an entrepreneur for establishment of a new unit? Explain in brief.

8. “व्यवसाय चातुर्य का खेल है जिसे प्रत्येक व्यक्ति नहीं खेल सकता।” स्पष्ट कीजिए।

“Business is a game of skill which everybody can not play.” Explain..

9. एक नई औद्योगिक इकाई की स्थापना के लिए उद्यमी कौन-कौन से वैधानिक कदम उठाता है ? उनमें किन्हीं दो वैधानिक कदमों का वर्णन कीजिए।

What legal steps are taken for establishing a new industrial unit by an Entrepreneur ? Describe any two such legal steps.

10. नवीन इकाई की स्थापना के लिए उठाये जोने वाले प्रमुख वैधानिक कदमों के नाम बताइए।

Name the main legal steps taken for establishing a new enterprise.

11. एक लघु उद्योग शुरू करने के लिए विभिन्न कदमों की आवश्यकता होती है ? विवेचना कीजिए।

Discuss the various steps to be taken to start a small scale industry.

12.परियाजना पहचान से क्या आशय है ? परियोजना पहचान में स्वोट के उपयोग को स्पष्ट कीजिए।

What is meant by Identification of a Project ? Explain the use of SWT in project Identification

13. पारयाजना मूल्यांकन क्या है ? परियोजना मूल्यांकन के विभिन्न पहलुओं का संक्षेप में वप कीजिए।

What is Project Appraisal ? Describe in brief the different aspects of project evaluation.

14. परियोजना प्रतिवेदन क्या है ? परियोजना प्रतिवेदन की विशेषताएँ बताइए।

What is Project Report? Explain the characteristics of the project report

15. निम्न को समझाएँ

Explain the following

(अ) लाइसेन्सिंग नीति

Licensing Policy

(ब) प्रदूषण नियन्त्रण मण्डल से निकासी

Clearence from Pollution Control Board

(स) सम-विच्छेद विश्लेषण

Break-even Analysis

Concept Legal Requirement Establishment

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions

1 परियोजना की परिभाषा दीजिए।

Define project.

2. परियोजना की विशेषताएँ बताइए।

Explain the charactc.istics of project.

3. परियोजना निर्माण के कौन-कौन-से मुख्य चरण

What are the main stages of project preparation ?

4.परियोजना निर्माण की परिचालन अवस्था को संक्षेप में बताइए।

Explain in brief the operation stage of a project.

5. परियोजना प्रतिवेदन क्या है ? स्पष्ट कीजिए।

What is project report ? Explain.

6. परियोजना प्रतिवेदन की विषय-सामग्री को संक्षेप में दीजिए।

Give in brief the subject matter of project report.

7. परियोजना पहचान से क्या आशय है?

What is meant by project identification?

8. परियोजना प्रतिवेदन की विशेषताएँ बताइए।

Explain the characteristics of project report.

9. परियोजना मूल्यांकन से क्या आशय है ?

What is meant by Project Appraisal?

10. परियोजना मूल्यांकन के प्रमुख उद्देश्य क्या हैं?

What are the main objectives of project appraisal?

11. परियोजना मूल्यांकन के क्या-क्या पहलू हैं ? केवल उनके नाम बताइए।

What are the aspects of project evaluation ? Only give their names.

12. सम-विच्छेद विश्लेषण क्या है ?

What is Break-even Analysis?

13. नवीन इकाई की स्थापना के लिए वैधानिक आवश्यकताएँ क्या हैं ?

What are the legal requirements for the establishment of a new unit?

14. नवीन इकाई की स्थापना से आप क्या समझते हैं ?

What do you understand by the establishment of a new unit?

Concept Legal Requirement Establishment

III. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

1 परियोजना प्रतिवेदन क्या है?

What is a project report?

2. परियोजना पहचान की क्या आवश्यकता है?

What is the need for project identification?

3. परियोजना की पहचान का क्या महत्व है?

What is the Importance of project identification?

4. परियोजना का सूत्रीकरण क्या है ?

What is project formulation?

5. परियोजना आकलन क्या है ?

What is project appraisal?

Concept Legal Requirement Establishment

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

1. सही उत्तर चुनिए (Select the Correct Answer)

(i) परियोजना तैयार की जाती है

(अ) प्रवांको हात

(ब) प्रबन्धकों द्वारा

(स) उद्यमी द्वारा

(द) इन सभी के द्वारा।

(i) Project is preparea

(a) By Promoters

(b) By Managers –

Entrepreneur

(d) Ry all these

(ii) परियोजना के तैयार करने पर व्यय किया गया धन है

(अ) विनियोजन

(ब) व्यय

(स) अपव्यय

(द) इनमें से कोई नहीं

Money spent on the preparation of project is

(a) Investment

(b) Expenditure

(c) Wastage

(d) None of these

(iii) पारयोजना मूल्यांकन के पहल हैं

(अ) तकनीक मूल्यांकन

(ब) वित्तीय मूल्यांकन

(स) प्रवन्धकीय मूल्यांकन

(द) ये सभी।

Aspects of project evaluation is

(a) Technical Evaluation

(b) Financial Evaluation

(c) Managerial Evaluation

(d) All these.

(iv) परियोजना पहचान में आवश्यकता होती है –

(अ) अनुभव

(ब) मस्तिष्क का उपयोग

(स) अनुभव एवं मस्तिष्क का उपयोग दोनों

(द) इनमें से कोई नहीं।

In project identification is needed

(a) Experience

(b) Use of Mind

(c) Both experience and Use of Mind

(d) None of these.

(v) परियोजना प्रतिवेदन सारांश है

(अ) तयों का

(ब) सूचनाओं का

(स) विश्लेषण का

(द) ये सभी।

Project report is a summary of

(a) Facts

(b) Information

(c) Analysis

(d) All these.

[उत्तर-(i) (द), (ii) (अ), (iii) (द), (iv) (स), (v) (द)]

Concept Legal Requirement Establishment

2. इंगित करें कि निम्नलिखित वक्तव्य ‘सही’ हैं या ‘गलत’

(Indicate Whether the Following Statements are “True’ or ‘False”)

(i) परियोजना प्रवर्तकों द्वारा तैयार की जाती है।

Project is prepared by promoters.

(ii) सभी परियोजनाएँ एकसमान होती हैं।

All projects are the same.

(iii) परियोजना संसाधनों के विनियोजन के लिए बनायी योजना है।

Project is a scheme for investing resources.

(iv) परियोजना के तैयार करने पर किया गया व्यय अपव्यय है।

Money spent on preparation of a project is a waste.

(v) परियोजना के तैयार करने पर किया गया व्यय विनियोजन है।

Money spent on preparation of a project is an investment.

(vi) प्रत्येक परियोजना का एक जीवन-काल होता है।

Every project has a life span.

(vii) परियोजना पहचान आवश्यक है।

Project identification is essential.

(viii) परियोजना प्रतिवेदन प्रस्तावित परियोजना का विस्तृत विवरण है।

The project report is a detailed description of a proposed project.

[उत्तर-(1) सही, (ii) गलत, (ii) सही, (iv) गलत. (v) सही. (vi) सही. (vii) सही. (viii) सही।]

Concept Legal Requirement Establishment

3. रिक्त स्थान भरें (Fill in the Blanks)

(i) परियोजना”…….”द्वारा तैयार की जाती है ___ Project is prepared by…………… [प्रवर्तकों (Promoters)/मालिकों (Owners)/प्रबन्धों (Managers)

(ii) परियोजना संसाधनों के……….”के लिए बनाई जाती है। Projcet is a schemebes……………resources… परिवर्तन (Changing)/विनियोजन (Investing)/बदलाव (Change)]

(iii) परियोजना प्रस्तावित परियोजना का विस्तृत विवरण है। Project……………is a detailed description of a proposed project. प्रतिवेदन (Report)/पहचान (Identification)/कार्य (Work)]

(iv) परियोजना……….”तैयार की जाती है। Project is prepared by…….. उद्यमी (Entrepreneur)/कर्मचारियों (Employers)/अधिकारियों (Officers)]

(v) परियोजना के तैयार करने पर व्यय किया गया धन है। __Money spent on the preparation of project is…………. व्यय (Expenditure)/विनियोजन (Investment)/अपव्यय (Wastage)] [उत्तर-(i) प्रवर्तकों (Promoters), (ii) विनियोजन (Investing), (iii) प्रतिवेदन (Report), (iv) उद्यमी (Entrepreneur), (v) विनियोजन (Investment)]

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4. मिलान सम्बन्धी प्रश्न (Matching Questions)

भाग-अ को भाग-ब से मिलाये (Match Part A with Part B)

भाग-अ (Part-A)

 

भाग-ब (Part-B)
1. परियोजना प्रतिवेदन (Project report)

 

(a) जीवन काल (Life span
2. परियोजना पहचान में (In project Identification) (b) विनियोजन है (Investment)
3. परियोजना तैयार करने पर व्यय (Money spent on (c) प्रवर्तकों द्वारा (By Promoters) the preparation of projects)
. परियोजना तैयार की जाती है। (Project is prepared (d) तथ्यों का सारांश है (Summary of facts)

by)

5. प्रत्येक परियोजना का एक । (Every project has a)

(e) अनुभव एवं मस्तिष्क का उपयोग आवश्यक है (Both experience and use of mind is needed)

 

 [उत्तर-1. (d), 2. (e), 3. (b), 4. (c), 5. (a)]

 

chetansati

Admin

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