BCom 3rd Year Consumer Dispute Redressal Agencies Study Material Notes in Hindi

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BCom 3rd Year Consumer Dispute Redressal Agencies Study Material Notes in Hindi

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BCom 3rd Year Consumer Dispute Redressal Agencies Study Material Notes in Hindi: District Forum State commission Jurisdiction of State Commission National Commission Jurisdiction of the National Commission  Procedure of Disposal of Complaints by National Commission Administrative Control Examination Question Long Answer Questions Short Answer Questions :

Dispute Redressal Agencies
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BCom 1st Year Regulatory Framework Consumer protection Councils Study Material Notes in Hindi

उपभोक्ता विवाद निवारण एजेन्सीज

(Consumer Disputes Redressal Agencies)

कर्म खर्च पर उपभोक्ता विवादों के सरलता एवं शीघ्रतापूर्वक निपटारे के लिए इस अधिनियम के अन्तर्गत तीन-स्तरीय अर्द्ध-न्यायिक व्यवस्था (three level Quasi-Judicial-machinery) की स्थापना की गई है। यह अर्द्ध-न्यायिक (Quasi-judicial body) निकाय नैसर्गिक न्याय के सिद्धान्तों (Law of natural Justice) का अध्ययन करेगा एवं इस प्रकार से स्थापित अर्द्ध न्यायकि निकाय को यह अधिकार भी होगा कि वह पीड़ित-उपभोक्ता से सम्बन्धित आरोप को ध्यान में रखते हए नैसर्गिक-न्याय के। सिद्धान्तों के अनुसार उसे (पीड़ित उपभोक्ता को) विशिष्ट सहायता दिलवाने से सम्बन्धित आदेश जारी करे एवं यदि आवश्यक हो तो उसे क्षतिपूर्ति दिलवाने से सम्बन्धी आदेश जारी करे। यदि सम्बन्धित दोषी पक्षकार (defaulter party) अर्द्ध-न्यायिक निकाय द्वारा जारी किए आदेश का पालन नहीं करता तो ऐसी स्थिति में सम्बन्धित निकाय को यह अधिकार भी प्रदान किया गया है कि वह दोषी पक्षकार के विरुद्ध जुर्माना सम्बन्धी आदेश जारी करे।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 9 के अन्तर्गत उपभोक्ताओं के विवादों के निवारण के लिए निम्नलिखित अर्द्ध-न्यायिक त्रिस्तरीय व्यवस्था की गई है

1 जिला मंच (District Forum)

2. राज्य आयोग (State Commission)

III. राष्ट्रीय आयोग (National Commission)

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जिला मंच

(District Forum)

जिला मंच की स्थापना-राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा प्रत्येक जिले में एक उपभोक्ता विवाद निवारण मंच स्थापित करेगी जिसे ‘जिला मंच’ (District Forum) के नाम से जाना जाएगा।

राज्य सरकार उचित समझे तो एक जिले में एक से अधिक जिला मंच भी स्थापित कर सकती है।

जिला मंच का गठन-जिला मंच का गठन तीन सदस्यों से मिलकर होगा जिनमें से एक अध्यक्ष (सभापति) तथा दो सदस्य होंगे। अध्यक्ष के अतिरिक्त अन्य दो व्यक्ति जो सदस्य होंगे, इन दो सदस्यों में से एक का महिला होना आवश्यक है।

योग्यताएँजिला मंच का अध्यक्ष ऐसा व्यक्ति होगा जो वर्तमान में जिला न्यायाधीश हो या इस पद पर रह चुका हो अथवा जिला न्यायाधीश बनने की योग्यताएँ रखता हो। अन्य सदस्यों की योग्यताएँ निम्नानुसार होगी-(i) कम-से-कम 35 वर्ष की आयु होनी चाहिए। (ii) किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधिधारक होना चाहिए। (iii) योग्य, सत्यनिष्ठा और प्रतिष्ठा वाले व्यक्ति होने चाहिए और जिनको अर्थशास्त्र, विधि, वाणिज्य, लेखाकर्म, उद्योग, जनसम्पर्क या प्रशासन का पर्याप्त ज्ञान और उससे सम्बन्धित कार्य करने का कम-से-कम दस वर्ष का अनुभव हो।

अयोग्यताएँकोई व्यक्ति सदस्य के रूप में नियुक्त किए जाने के योग्य नहीं होगा-(i) यदि उसे किसी अपराध के लिए सजा मिली हो तथा जेल भेजा गया हो तथा वह अपराध राज्य सरकार की राय में नैतिक दुराचरण से सम्बन्धित हो। (ii) यदि वह अमुक्त दिवालिया हो। (iii) यदि वह सक्षम न्यायालय द्वारा घोषित अवस्थ मस्तिष्क का व्यक्ति हो। (iv) यदि वह सरकारी सेवा या सरकारी स्वामित्व या नियन्त्रण वाली समामेलित संस्था को सेवा से हटाया या पदच्युत किया गया हो। (v) यदि राज्यvकार की राय में. उसका ऐसा वित्तीय या अन्य हित हो जो सदस्य के रूप में उसके कर्तव्यों के निष्पक्ष निर्वाह को प्रतिकल रूप से प्रभावित कर सकता हो। (vi) यदि उसमें राज्य सरकार द्वारा निर्धारित की जाने वाली अन्य कोई अयोग्यताएँ हों।

जब राज्य आयोग का अध्यक्ष अनुपस्थिति या किसी अन्य कारण से चयन समिति के अध्यक्ष के प में कार्य करने में असमर्थ हो तो राज्य सरकार उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को उच्च व्यायालय के किसी वर्तमान न्यायाधीश को अध्यक्ष के रूप में कार्य करने के लिए नामित करने के लिए कह सकती हैं।

जिला मंच के सदस्यों का कार्यकाल [धारा 10 (2)-जिला मंच के प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल पाँच वर्ष या 65 वर्ष की उम्र पूरी करने तक जो भी पहले हो, वह होगा।

ऐसा सदस्य पाँच साल या 65 वर्ष की उम्र पूरी करने तक जो भी पहले हो के लिए पुनः नियुक्ति के योग्य होगा बशर्ते कि वह नियुक्ति सम्बन्धी सभी योग्यताओं एवं शर्तों को पूरी करता है परन्तु ऐसी पनर्नियुक्ति चयन समिति की सिफारिश पर ही होगी।

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यदि जिला मंच का कोई सदस्य अपने पद से इस्तीफा दे देता है तो राज्य सरकार द्वारा इस्तीफे के स्वीकार करने पर यह पद रिक्त माना जाएगा और इस पद को उसी वर्ग से भरा जाएगा जिस वर्ग के व्यक्ति ने इस्तीफा दिया है।

उपभोक्ता संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2002 के प्रभावी होने के पूर्व नियुक्त अध्यक्ष या सदस्य तब तक कार्य करते रहेंगे जब तक कि उनका कार्यकाल पूरा हो। ।

वेतन, भत्ते तथा सेवा की शर्ते-जिला फोरम के सदस्यों को देय वेतन, समेकित मानदेय (Honorarium), अन्य भत्ते व सेवा की शर्ते वही होंगी जो राज्य सरकार द्वारा नियत की जाएगी।

जिला मंच का अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction of District Forum) [धारा 11-जिला मंच को निम्नलिखित शर्तों के पूरा करने वाली अपने क्षेत्र की शिकायतों को स्वीकार करने का अधिकार होगा

1 जब दावे के माल या सेवा या मुआवजे का मूल्य बीस लाख रुपए से अधिक न हो अर्थात् बीस लाख रुपए से अधिक की राशि के दावे जिला मंच में नहीं किए जा सकेंगे।

2. जिला मंच में उसके क्षेत्राधिकार की स्थानीय सीमाओं के अन्तर्गत शिकायत प्रस्तुत (दर्ज) की जा सकती है अर्थात् जिला मंच में कोई शिकायत तभी प्रस्तुत की जा सकेगी जबकि-6) विरोधी पक्षकार अथवा एक से अधिक विरोधी पक्षकारों की दशा में प्रत्येक विरोधी पक्षकार शिकायत करते समय उस जिले के क्षेत्र में वास्तव में एवं स्वेच्छा से रहता हो अथवा व्यवसाय का संचालन करता हो या उसका शाखा कार्यालय हो अथवा व्यक्तिगत रूप से लाभ के लिए कार्य करता हो; अथवा (ii) विरोधी पक्षकारों में से कोई भी (जब शिकायत के समय एक से अधिक पक्षकार हों) पक्षकार वास्तव में तथा स्वेच्छार्पूक उस जिले की सीमा में रहता हो अथवा किसी व्यवसाय का संचालन करता हो या उसका शाखा कार्यालय हो अथवा व्यक्तिगत लाभ के लिए कोई कार्य करता हो तथा ऐसी दशा में या तो जिला मंच ने इसकी अनुमति दे दी हो अथवा वे विरोधी पक्षकार जो इस जिले की सीमा में नहीं रहते हैं या किसी व्यवसय का संचालन नहीं करते हैं अथवा अपने निजी लाभ के लिए कार्य नहीं करते हैं, ने ऐसी शिकायत प्रस्तुत करने की अपनी मौन रूप से स्वीकृति दे दी हो, अथवा (iii) आंशिक या पूर्ण रूप से वाद प्रस्तुत करने का कारण उत्पन्न हुआ हो।

जिला मंच को शिकायत प्रस्तुत करने का ढंग अथवा प्रक्रिया (धारा 12) (Procedure of Making a Complaint with District Forum)-विक्रय किए गए माल अथवा प्रदान की गई सेवा या इसके ठहराव के सम्बन्ध में कोई भी शिकायत निम्नलिखित में से किसी के भी द्वारा जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत की जा सकती है-(i) ऐसे उपभोक्ता द्वारा जिसे कोई माल बेचा तथा सुपुर्द किया गया है अथवा कोई माल बेचने या सुपूर्द करने का ठहराव किया गया है अथवा जिसे कोई सेवा प्रदान की गई है अथवा सेवा प्रदान करने का ठहराव किया गया है। (i) किसी भी मान्यता प्राप्त उपभोक्ता संघ द्वारा चाहे वह उपभोक्ता उसका सदस्य हो अथवा नहीं। (iii) जिला मंच की अनुमति से एक या अधिक उपभोक्ताओं द्वारा उन सब उपभोक्ताओं की ओर से जिनका समान प्रकार का हित हो। (iv) केन्द्रीय सरकार अथवा राज्य सरकार द्वारा व्यक्तिगत हैसियत से अथवा सामान्य उपभोक्ताओं के हितों के प्रतिनिधि की हैसियत से शिकायत प्रस्तुत की जा सकती है।

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जिला मंच को प्रस्तुत की जाने वाली प्रत्येक शिकायत लिखित में होगी। शिकायत प्रस्तुत करने के ए काई निर्धारित प्रारूप नहीं है। यह सादे कागज पर भी की जा सकती है। शिकायत डाक द्वारा या जिला मंच के कार्यालय में स्वयं जाकर भी प्रस्तुत की जा सकती है, परन्तु शिकायत म-1 (ii) विरोधी पक्षकार या पक्षकारों के नाम तथा पते, (iii) शिकायत के मा का वर्णन, (iv) शिकायत को पष्ट करने वाले प्रमाण-पत्र या नमूने, (v) शिकायत कानवारण क लए अपक्षित राहत, (vi) शिकायकर्ता के हस्ताक्षर का उल्लेख होना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक शिकायत निर्धारित शुल्क के साथ प्रस्तुत करनी चाहिए। शुल्क की राशि तथा शुल्क जमा कराने की विधि राज्य सरकार द्वारा निर्धारित की जाएगी।

शिकायत की प्राप्ति पर जिला मंच उसकी स्वीकृति या अस्वीकृति के आदेश दे सकेगा, परन्तु शिकायतकर्ता को सुनने का अवसर दिए बिना इसे अस्वीकार नहीं किया जाएगा। शिकायत प्राप्त होने के 21 दिन के भीतर सामान्यतया शिकायत की ग्राह्यता (Admissibility) का निपटारा कर दिया जाएगा। शिकायत को स्वीकार करने पर अधिनियम में निर्धारित विधि से उसका निपटारा किया जाएगा, लेकिन एक बार जिला मंच द्वारा स्वीकार की गई शिकायत का अन्यत्र स्थानान्तरण नहीं होगा।

जिला मंच द्वारा उपभोक्ता शिकायतों के निवारण हेतु अपनाई जाने वाली प्रक्रिया-उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 13 के अनुसार शिकायत प्राप्ति पर जिला मंच द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया को निम्नांकित दो वर्गों में विभाजित कर अध्ययन किया जा सकता है

1  माल सम्बन्धी शिकायतों की निपटान प्रक्रिया [धारा 13 (1)]-जिला मंच द्वारा माल के सम्बन्ध में शिकायत ग्राह्य (स्वीकार) करने के पश्चात् वह शिकायत की एक प्रति 21 दिन के भीतर उल्लिखित प्रतिपक्ष को प्रदान करेगा एवं उसे 30 दिन के भीतर या बढ़ाई गई अवधि, जो 15 दिन से अधिक नहीं हो सकेगी, के भीतर अपना जवाब देने का निर्देश देगा। इस प्रकार प्रतिपक्ष को अपना पक्ष प्रस्तुत करने के लिए अधिक से अधिक 45 दिन का समय दिया जा सकता है। यदि प्रतिपक्ष शिकायत की प्रति प्राप्त होने पर उल्लिखित आरोपों को अस्वीकार करता है या विरोध करता है अथवा जिला मंच द्वारा दिए गए समय में अपना पक्ष प्रस्तुत करने में त्रुटि करता है या असमर्थ रहता है तो ऐसी स्थिति में जिला मंच उपभोक्ता विवाद का निम्नलिखित प्रकार निपटारा करेगा

(i) वस्तु (माल) का नमूना प्राप्त करना–यदि शिकायत में किसी माल में खराबी होने का आरोप लगाया गया है तथा उस माल के विश्लेषण या जाँच के बिना किसी खराबी का पता नहीं लगाया जा सकता है तो जिला मंच शिकायतकर्ता से उस माल का एक नमूना प्राप्त करेगा। तत्पश्चात् उसे सील करके प्रमाणित कर देगा।

(ii) जाँच हेतु शुल्क जमा करवाना-माल की जाँच हेतु उचित प्रयोगशाला के पास माल का नमूना भेजने से पहले शिकायतकर्ता को जिला मंच द्वारा निर्देशित शुल्क जिला मंच के पास जमा कराना होगा, ताकि माल का विश्लेषण या जाँच करने के लिए प्रयोगशाला को भुगतान किया जा सके।

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(iii) नमूने को जाँच के लिए प्रयोगशाला में भेजना-शुल्क प्राप्त हो जाने के बाद मंच अब उस सील एवं प्रमाणित किए नमूने को उपयुक्त प्रयोगशाला के पास निम्नलिखित निर्देशों के साथ भेजेगा-(अ) माल पर आरोपित दोषों को ज्ञात करने के लिए आवश्यक जाँच या विश्लेषण करें; (ब) माल में अन्य कोई दोष हों तो उनको ज्ञात करने के लिए आवश्यक जाँच या विश्लेषण करें; तथा (स) इसे प्राप्त होने के 45 दिन या बढ़ाई गई अवधि के भीतर अपनी रिपोर्ट मंच के पास भेज दें। जिला मंच शिकायतकर्ता से प्राप्त शुल्क भी प्रयोगशाला के पास भेज देता है।

(iv) प्रयोगशाला से प्राप्त जाँच रिपोर्ट की प्रति प्रतिपक्ष को भेजना-रिपोर्ट मिलने के पश्चात् जिला मंच उसकी एक प्रति अपने नोट सहित (यदि आवश्यक हो तो) प्रतिपक्ष को भेज देता है।

(v) रिपोर्ट पर लिखित विरोध प्रकट करना–यदि विवाद का कोई भी पक्षकार प्रयोगशाला के निष्कर्षों की सत्यता पर अथवा जाँच या विश्लेषण के लिए सम्बन्धित प्रयोगशाला द्वारा अपनाई गई विधि। का विरोध करता है तो ऐसी स्थिति में जिला मंच प्रतिपक्ष या शिकायतकर्ता को अपनी आपत्तियों को लिखित रूप में प्रस्तुत करने के लिए कहेगा।

(vi) प्रतिपक्ष तथा शिकायकर्ता को सुनवाई का अवसर देना-तत्पश्चात जिला मंच प्रतिपक्ष । तथा शिकायतकर्ता को सम्बन्धित प्रयोगशाला द्वारा दी गई रिपोर्ट के सम्बन्ध में प्रस्तत की गई आपत्तिया। की सनवाई का पर्याप्त अवसर प्रदान करेगा। इससे वे प्रयोगशाला के निष्कर्षों एवं उठाई गई आपत्तियों के सम्बन्ध में अपना तर्क प्रस्तुत कर सकेंगे।

(vii) आदेश निर्गमित करनाअन्त में, धारा 14 के अधीन जिला मंच उपयुक्त आदेश निर्गमित कर देता है। है।

(B) सेवा सम्बन्धी शिकायतों की निपटान प्रक्रिया [धारा 13 (2)]-जब जिला मंच को किसी सेवा के सम्बन्ध में लिखित शिकायत प्राप्त होती है या किसी ऐसे माल के सम्बन्ध में शिकायत प्राप्त होती है जिसमें उपर्युक्त वर्णित प्रक्रिया का पालन नहीं किया जा सकता है, तो उस शिकायत के निवारण के लिए निम्नलिखित प्रक्रिया का पालन किया जाता है-(i) प्रतिपक्ष के पास शिकायत की प्रति भेजना–शिकायत के प्राप्त होने पर जिला मंच उसकी एक प्रति प्रतिपक्ष के पास इस बात का उल्लेख करते हुए भेजेगा कि वह इस मामले में अपना पक्ष 30 दिन के अन्दर या जिला मंच द्वारा बढ़ाई गई अवधि, जो 15 दिन से अधिक की नहीं हो सकती, के अन्दर प्रस्तुत करे। इस प्रकार प्रतिपक्ष को अपना पक्ष प्रस्तुत करने के लिए अधिक से अधिक 45 दिन का समय दिया जा सकता है। (ii) आरोपों को अस्वीकार करने या पक्ष प्रस्तुत नहीं करने पर जिला मंच द्वारा निपटारा करना—शिकायत की प्रति प्राप्त करने के बाद यदि प्रतिपक्ष शिकायत में लगाए गए आरोप को अस्वीकार करता है अथवा वह मंच द्वारा दिए गए समय में अपना पक्ष प्रस्तुत करने की कार्यवाही करने में असमर्थ रहता है तो मंच उस शिकायत का निम्नलिखित में किसी भी आधार पर निपटारा कर सकता है-(अ) शिकायकर्ता द्वारा शिकायत करने तथा विरोधी पक्षकार द्वारा शिकायत में वर्णित आरोपों को अस्वीकार करने के समय दिए गए प्रमाणों के आधार पर निपटारा कर सकता है। (ब) यदि विरोधी पक्षकार अपना पक्ष प्रस्तुत करने की कार्यवाही नहीं करता है तो शिकायतकर्ता द्वारा मंच की जानकारी में लाए गए प्रमाणों के आधार पर मंच एक पक्षीय (Ex parte) फैसला कर देता है।

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शिकायतकर्ता के उपस्थित नहीं होने पर जिला मंच द्वारा निपटारा करना-यदि शिकायतकर्ता सुनवाई की तिथि को जिला मंच के समक्ष उपस्थित नहीं होता है तो जिला मंच उस शिकायत को निरस्त कर सकता है अथवा उसके प्रमाणों के आधार पर निर्णय कर सकता है।

प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्तों की अवहेलना के आधार पर अन्य किसी न्यायालय में चुनौती नहीं-उपर्युक्त उप-धारा (1) तथा (2) में अपनाई गई कार्यविधि को किसी अन्य न्यायालय में इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकेगी कि उसमें प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्तों का पालन नहीं किया गया

(3)] जिला मंच को नागरिक न्याय के समान अधिकार अथवा शक्तियाँ (Powers of District Forum)-प्रस्तुत धारा 13 के लिए जिला मंच को निम्न मामलों में वही अधिकार प्राप्त हैं जोकि नागरिक कार्यविधि संहिता, 1908 के अधीन एक नागरिक न्यायालय को प्राप्त हैं

(i) प्रतिवादी अथवा साक्षी को सम्मन जारी करना, उपस्थित होने के बाध्य करना तथा शपथ दिलाना,

(ii) साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत करने योग्य किसी प्रलेख या अन्य सामग्री का पता लगाना एवं प्रस्तुत करना,

(iii) गवाह का शपथ-पत्र स्वीकार करना,

(iv) उपयुक्त प्रयोगशाला या अन्य सम्बन्धित स्रोत से किसी माल का विश्लेषण या जाँच कराना एवं प्रतिवेदन लेना,

(v) गवाहों की जाँच करने हेतु आदेश निर्गमित करना तथा (v) अन्य कोई मामला जोकि निर्देशित किया गया हो।

जिला मंच को प्रस्तुत की गई कार्यवाही को न्यायिक कार्यविधि माना जाना—जिल मंच के समक्ष प्रस्तुत की गई सम्पूर्ण कार्यविधि को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 193 व 228 के अधीन न्यायिक कार्यविधि माना जाएगा तथा दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 195 तथा अध्याय XXVI के उद्देश्य के लिए नागरिक न्यायालय माना जाएगा।

समान हित रखने वाले उपभोक्ताओं में से एक या एक से अधिक शिकायतकर्ताओं की दशा में दीवानी प्रक्रिया संहिता (Code of Civil Procedure, 1908) के कुछ नियम लागू होंगे। [धारा 13 (6)]

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जिला मंच के निष्कर्ष अथवा आदेश (Findings or Orders of the District Forum)-याद धारा 13 के अन्तर्गत की गई कार्यवाही के पश्चात जिला मंच इस बात से सन्तुष्ट हो जाता है कि जिस माल के दोषों के विरुद्ध शिकायत की गई है, उसमें उनमें से कोई भी दोष विद्यमान है अथवा शिकायत में सेवाओं के विरुद्ध लगाए गए कोई भी आरोप सिद्ध होते हैं तो वह प्रति पक्षकार को निम्नलिखित में से एक या अधिक बातों का पालन करने का आदेश निर्गमित करेगा

(i) उपयुक्त प्रयोगशाला द्वारा बताए गए माल के सम्बन्ध में दोष को दूर करना,

(ii) माल को समान विवरण के दोष रहित माल से बदलना,

(ii) शिकायतकर्ता को माल की कीमत (Price) अथवा प्रतिपक्ष को दी गई राशि, जैसी भी स्थिति हो, लौटाना,

(iv) प्रतिपक्ष की लापरवाही से उपभोक्ता को होने वाली कोई हानि या क्षति के लिए उपभोक्ता को निर्णय में उल्लिखित क्षतिपूर्ति की राशि का भुगतान करना,

(v) सम्बन्धित सेवाओं के दोषों या कमियों को दूर करने के लिए,

(vi) अनुचित व्यवहार अथवा प्रतिबन्धात्मक व्यापार-व्यवहार को बन्द करने या उसकी पुनरावृत्ति को रोकने के लिए,

(vii) खतरनाक माल बेचने का प्रस्ताव नहीं करने के लिए,

(viii) खतरनाक माल को बेचने के लिए किए जा रहे प्रस्ताव को वापस लेने के लिए।

(ix) पक्षकारों की उचित व्यवस्था करने के लिए।

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कार्यवाही का संचालन-उपधारा (1) में दी गई कार्यवाही का संचालन जिला मंच के अध्यक्ष द्वारा कम से कम एक सदस्य के साथ बैठकर किया जाएगा। यदि किसी कारणवश ऐसा सदस्य सम्पूर्ण कार्यवाही के संचालन में भाग नहीं ले पाता है तो सभापति द्वारा अन्य सदस्य के साथ मिलकर कार्यवाही का संचालन नए सिरे से किया जाएगा।

जिला मंच के आदेश पर हस्ताक्षर–जिला मंच द्वारा दिए गए प्रत्येक आदेश पर कम से कम दो सदस्यों के हस्ताक्षर होने चाहिए। यदि सदस्यों के मतों में भिन्नता हो तो जिला मंच के सदस्यों के बहुमत के आधार पर दिया गया आदेश जिला मंच का आदेश माना जाएगा।

यदि किसी कार्यवाही का संचालन सभापति तथा किसी एक सदस्य द्वारा किया गया हो और वे किसी बिन्दु या बिन्दुओं पर एकमत न हों तो वे अपने मतभेद के बिन्दु को किसी अन्य सदस्य के समक्ष सुनवाई हेतु प्रस्तुत करेंगे तथा बहुमत की सम्मति को ही जिला मंच का आदेश माना जाएगा।

जिला मंच के आदेश के विरुद्ध अपील (Appeal against the Order of the District Forum)-कोई भी व्यक्ति जो जिला मंच के आदेश से पीड़ित है, वह राज्य आयोग के समक्ष जिला मंच के आदेश के विरुद्ध आदेश की तिथि से 30 दिन के अन्दर निर्धारित प्रारूप एवं विधि से अपील कर सकता है।

राज्य आयोग उपर्युक्त अवधि (30 दिन) के समाप्त हो जाने के पश्चात् भी अपील विचारार्थ स्वीकार कर सकता है, बशर्ते कि वह इस बात से सन्तुष्ट हो जाए कि निर्धारित अवधि में अपील न करने के पर्याप्त कारण थे।

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राज्य आयोग

(State Commission)

स्थापनाराज्य सरकार ‘अधिसूचना द्वारा राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग’ की स्थापना कर सकेगी जिसे राज्य आयोग के नाम से जाना जाएगा।

राज्य आयोग का गठनराज्य आयोग का गठन निम्नांकित प्रकार से किया जाएगा-(i) एक ऐसा व्यक्ति जो उच्च न्यायालय का न्यायाधीश हो या रह चुका हो और जिसकी नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की जाए, वह इस आयोग का अध्यक्ष होगा। यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि उच्च न्यायालय के मख्य न्यायाधीश की सलाह के बिना राज्य सरकार ऐसी नियुक्ति नहीं कर सकती है। (ii) कम से कम दो सदस्य होंगे किन्तु राज्य सरकार द्वारा निर्धारित संख्या से अधिक सदस्य नहीं होंगे। इन सदस्यों में से एक महिला सदस्य भी होगी। इन सदस्यों की योग्यताएँ निम्नलिखित हैं-(अ) आय 35 वर्ष से कम न हो. (ब) मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि रखता हो, (स) योग्य, सत्यनिष्ठा और प्रतिष्ठा वाले व्यक्ति हों जिनको अर्थशास्त्र, कानून, वाणिज्य, लेखाकर्म, उद्योग, लोककार्य या प्रशासन से सम्बन्धित समस्याओं का पर्याप्त ज्ञान और कम-से-कम दस वर्ष का अनुभव हो।

यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि राज्य आयोग के कुल सदस्यों में से न्यायिक पृष्ठभूमि वाले सदस्यों की संख्या आधे से अधिक नहीं होगी।

यहाँ न्यायिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों का आशय ऐसे व्यक्तियों से है जिन्हें जिला स्तर या ट्रिब्यूनल के समान स्तर पर पीठासीन अधिकारी के रूप में कार्य करने का कम से कम 10 वर्ष का जान एवं अनुभव हो।

अयोग्यताएँ (Disqualifications)-निम्नांकित में से किसी भी अयोग्यता वाले व्यक्ति को राज्य आयोग का सदस्य नियुक्त नहीं किया जा सकता है—(1) यदि उसे किसी अपराध के लिए सजा मिली हो तथा जेल भेजा गया हो तथा वह अपराध राज्य सरकार की राय में नैतिक दुराचरण से सम्बन्धित हो। (ii) यदि वह अमुक्त दिवालिया हो। (ii) यदि वह सक्षम न्यायालय द्वारा घोषित अस्वस्थ मस्तिष्क का व्यक्ति हो। (iv) यदि वह सरकारी सेवा या सरकारी स्वामित्व या नियन्त्रण वाली समामेलित संस्था की सेवा से हटाया या पदच्युत किया गया हो। (v) यदि राज्य सरकार की राय में, उसका ऐसा वित्तीय या अन्य हित हो जो सदस्य के रूप में उसके कर्त्तव्यों के निष्पक्ष निर्वाह को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकता हो। (vi) यदि उसमें राज्य सरकार द्वारा निर्धारित की जाने वाली अन्य कोई अयोग्यताएँ हों।

सदस्यों की नियुक्तिराज्य आयोग के सदस्यों की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा एक चयन समिति की सिफारिश के आधार पर की जाती है। ऐसी चयन समिति का गठन निम्नानुसार होगा-(i) राज्य आयोग का सभापति इसका अध्यक्ष होगा; (i) राज्य की विधि विभाग का सचिव इसका सदस्य होगा; (iii) उपभोक्ता मामलों के विभाग का प्रभारी सचिव भी सदस्य होगा।

जब राज्य आयोग का अध्यक्ष अनुपस्थिति या किसी अन्य कारण से चयन समिति के अध्यक्ष के रूप में कार्य न कर पाए तो राज्य सरकार उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को, उच्च न्यायालय के किसी वर्तमान न्यायाधीश को नामित करने के लिए मामले को भेजेगी।

वेतन या मानदेय, अन्य भत्ते तथा सेवा की शर्ते-राज्य आयोग के सदस्यों का वेतन या मानदेय (Honorarium) तथा अन्य भत्ते एवं उनकी सेवा की शर्ते वही होंगी जो राज्य सरकार द्वारा निर्धारित कर दी जाएंगी।

राज्य आयोग के सदस्यों का कार्यकाल-राज्य आयोग के सदस्य का कार्यकाल, 5 वर्ष तक अथवा सदस्य की 67 वर्ष की आयु तक जो भी पहले हो, माना जाता है। परन्तु उपभोक्ता संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2002 के लागू होने के पूर्व नियुक्त अध्यक्ष या सदस्य अपने कार्यकाल पूरा होने तक इन पदों पर बने रह सकेंगे।

पुनर्नियुक्ति-आयोग का प्रत्येक सदस्य पाँच वर्ष की एक और अवधि के लिए या 67 वर्ष की आयु तक जो भी पहले हो, पुनः नियुक्ति के योग्य होगा बशर्ते कि वह नियुक्ति की योग्यताओं एवं अन्य शर्तों को पूरी करता हो।

राज्य आयोग का अधिकार क्षेत्र

(Jurisdiction of State Commission)

राज्य आयोग का अधिकार क्षेत्र निम्नलिखित है

1 जहाँ माल या सेवा का मूल्य और मुआवजा जिसका दावा किया गया है उसका मूल्य बीस लाख से अधिक लेकिन एक करोड़ से अधिक न हो।

2. जिला मंचों के आदेशों के विरुद्ध अपील की सुनवाई करना।

3. जब राज्य आयोग को लगे कि जिला मंच ने अपने क्षेत्राधिकार का उल्लंघन किया है या कोई अनियमितता की है तो जिला मंच से सम्बन्धित पत्रावली मंगवाकर उस पर उपयुक्त आदेश निर्गमित करना।

4. किसी शिकायत पर विचार करना यदि विरोधी पक्षकार शिकायत के समय राज्य आयोग के क्षेत्राधिकार में वास्तव में स्वेच्छा से रहता है या अपना कारोबार करता है या उस कारोबार की शाखा है या अपने निजी लाभ के लिए कोई कार्य करता है।

5. किसी ऐसी शिकायत पर विचार करना जिस पर कार्यवाही का कारण आयोग के क्षेत्राधिकार में उत्पन्न हुआ है।

राज्य आयोग द्वारा उपभोक्ता शिकायतों के निवारण हेत अपनाई जाने वाली प्रक्रिया-राज्य आयोग द्वारा शिकायतों की प्राप्ति एवं निवारण के लिए वही प्रक्रिया अपनाई जाएगी जोकि जिला मंच द्वारा अपनाई जाती है। यदि जिला मंच की कार्यविधि में कोई संशोधन किया जाता है तो वे संशोधन ज्यों के त्यों राज्य आयोग की कार्यविधि पर भी लागू होंगे।

राज्य आयोग के आदेश के विरुद्ध अपीलराज्य आयोग के आदेश से पीड़ित कोई भी व्यक्ति उक्त आदेश के विरुद्ध आदेश की तिथि से 30 दिन के अन्दर राष्ट्रीय आयोग के समक्ष अपील कर सकता है। किन्तु राष्ट्रीय आयोग उपर्युक्त 30 दिन की अवधि समाप्त हो जाने के पश्चात् भी अपील विचारार्थ स्वीकार कर सकता है बशर्ते कि वह इस बात से सन्तुष्ट हो जाए कि निर्धारित अवधि में

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