BCom 3rd Year Corporate Accounting  Holding Companies Study Material Notes in hindi

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Holding Companies Study Material
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BCom 3rd Year Internal Reconstruction Reorganisation Long Answer Questions Study Material notes in hindi

सूत्रधारी कम्पनियों के खाते 

Accounts of Holding Companies

प्रतिस्पर्धा समाप्त करने तथा व्यापारिक साम्राज्य बढ़ाने के लिये व्यापारिक गृहों में, विशेषकर अमेरिका में, संयोजन की सूत्रधारी कम्पनी प्रणाली काफी प्रचलित रही है। इस प्रणाली के अन्तर्गत एक कम्पनी दुसरी कम्पनी में नियंत्रण हित (controlling interest) प्राप्त करती है। एक ऐसी कम्पनी जो दूसरी कम्पनी या कम्पनियों में नियंत्रण हित प्राप्त कर लेती है उसे सूत्रधारी कम्पनी (Holding | Company) या जनक कम्पनी (Parent Company) कहते हैं तथा जिस कम्पनी को नियंत्रित किया जाता है, वह सहायक कम्पनी (Subsidiary Company) कहलाती है। संयोजन के इस रूप में सहायक कम्पनी का पृथक अस्तित्व बना रहता है किन्तु सूत्रधारी कम्पनी के उसमें नियंत्रण हित के कारण सहायक कम्पनी की नीतियों और प्रबन्ध पर सूत्रधारी कम्पनी का नियंत्रण रहता है।

कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 129(3) के अनुसार जब किसी कम्पनी की एक या अधिक सहायक कम्पनियाँ हों तो वह वित्तीय विवरण-पत्रों के अतिरिक्त अपनी ही तरह का स्वयं कम्पनी और इसकी सभी सहायक कम्पनियों का एक मिश्रित वित्तीय विवरण-पत्र तैयार करेगी और उसे अपने वित्तीय विवरण-पत्र के साथ ही कम्पनी की वार्षिक व्यापक सभा के समक्ष रखेगी। कम्पनी अपने वित्तीय विवरण-पत्र के साथ ही निर्धारित प्रारूप में अपनी सहायक कम्पनी या कम्पनियों के वित्तीय विवरण-पत्र की प्रमुख विशेषतायें दिखलाते हुए पृथक से एक विवरण-पत्र भी संलग्न करेगी। ध्यान रहे कि ‘सहायक’ शब्द के अन्तर्गत एसोसिएट कम्पनी और संयुक्त साहस भी सम्मिलित हैं।

इस अधिनियम की धारा 129(6) के अनुसार केन्द्रीय सरकार जनहित में किसी वर्ग या वर्गों की कम्पनियों को इस धारा अथवा इसके अन्तर्गत वने नियमों की अपेक्षाओं के परिचालन से छूट दे सकती है।

सूत्रधारी कम्पनी की परिभाषा

(Definition of Holding Company)

कम्पनी अधिनियम 2013 में सूत्रधारी कम्पनी को सहायक कम्पनी की सहायता से परिभाषित किया गया है। इस अधिनियम की धारा 2 (46) के अनुसार, “एक या अधिक अन्य कम्पनियों के सम्बन्ध में सूत्रधारी कम्पनी का आशय एक कम्पनी से है जिसकी ऐसी कम्पनियाँ सहायक कम्पनियाँ हैं।

अतः स्पष्ट है कि किसी कम्पनी को सूत्रधारी कम्पनी कहलाने के लिये यह आवश्यक है कि उसकी कोई एक या अधिक सहायक कम्पनियाँ हों। इस प्रकार सुत्रधारी कम्पनी की परिभाषा को टीक से समझने के लिये सहायक कम्पनी के अर्थ को भी स्पष्ट रूप से समझना होगा।

सहायक कम्पनी की परिभाषा

(Definition of Subsidiary Company)

कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 2 (87) के अनुसार, “एक सूत्रधारी कम्पनी के सम्बन्ध में सहायक कम्पनी का आशय एक कम्पनी से है जिसमें सूत्रधारी कम्पनी

(i) इसके संचालक मण्डल के गठन (composition) पर नियंत्रण रखती है, अथवा

(ii) इसकी कुल अंश पूंजी के आधे से अधिक पर या तो स्वयं अथवा एक या अधिक अपनी सहायक कम्पनियों के साथ नियंत्रण रखती है।

Corporate Accounting Holding Companies

व्याख्या (Explanation):

(i) एक कम्पनी सूत्रधारी कम्पनी की सहायक कम्पनी तब भी मानी जायेगी जबकि नियंत्रण सूत्रधारी कम्पनी की किसी अन्य सहायक कम्पनी का है। उदाहरण के लिये यदि B लि0A लि० की सहायक है और C लि0 B लि० की सहायक है तो C लि0A लि० की भी सहायक मानी जायेगी।

(ii) एक कम्पनी के संचालक मण्डल का गठन किसी अन्य कम्पनी द्वारा नियंत्रित माना जायेगा यदि वह अन्य कम्पनी अपने विवेक पर कुछ शक्ति का प्रयोग करके सभी अथवा अधिकांश संचालकों को नियुक्त या निकाल सकती है।

ICAT द्वारा निर्गत लेखांकन मानदण्ड 21 के अन्तर्गत सूत्रधारी कम्पनी के लिये ‘जनक कम्पनी’ (parent company) नाम । दिया है। इस मानदण्ड के अनसार एक जनक कम्पनी वह उपक्रम है जिसकी एक या अधिक सहायक कम्पनिया है और सहायक कम्पनी वह उपक्रम है जो कि दूसरे उपक्रम, जिसे जनक कहा जाता है, द्वारा नियन्त्रित है।

सूत्रधारी कम्पनी के चिठे के साथ नत्थी किये जाने वाले प्रलेख 

(Documents to be attached to the Balance Sheet of the Holding Company)

कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 129 (3) के अनुसार जहाँ एक कम्पनी की एक या अधिक सहायक कम्पनियाँ हैं, वह अपने वित्तीय विवरणों के अतिरिक्त कम्पनी और सभी सहायक कम्पनियों का एक समूहित वित्तीय विवरण भी तैयार करेगी और उसे अपने वित्तीय विवरण के साथ ही कम्पनी की वार्षिक व्यापक सभा के सम्मुख प्रस्तुत करेगी। इसके साथ ही सहायक कम्पनी (या कम्पनियों के वित्तीय विवरण की प्रमुख विशेषताओं के साथ एक निर्धारित प्रारूप में पृथक से एक विवरण-पत्र भी प्रस्तुत करना होगा।

सूत्रधारी कम्पनी के चिठे के साथ इसकी प्रत्येक सहायक कम्पनी के सम्बन्ध में निम्नलिखित प्रलेख नत्थी करने होते हैं :

(1) सहायक कम्पनी के चिट्टे की एक प्रतिलिपि,

(2) सहायक कम्पनी के लाभ-हानि खाते की एक प्रतिलिपि,

(3) सहायक कम्पनी के संचालक मण्डल के प्रतिवेदन की एक प्रतिलिपि,

(4) सहायक कम्पनी के अंकेक्षकों के प्रतिवेदन की एक प्रतिलिपि,

(5) सहायक कम्पनी में सूत्रधारी कम्पनी के हित का विवरण,

(6) यदि सूत्रधारी कम्पनी और सहायक कम्पनी का लेखा-वर्ष एक ही तिथि पर समाप्त न होता हो तो निम्न सूचनायें दर्शाता

हुआ एक विवरण :

(i) सहायक कम्पनी के लेखा-वर्ष की समाप्ति की तिथि से सूत्रधारी कम्पनी के लेखा-वर्ष की समाप्ति की तिथि के बीच सूत्रधारी कम्पनी के सहायक कम्पनी में हित की मात्रा (अर्थात् अंशधारण की मात्रा) में परिवर्तन।

(ii) उक्त अन्तराल में सहायक कम्पनी की स्थायी सम्पत्तियों, विनियोगों, उधार दिये धन और उधार लिये धन में परिवर्तन।

(7) यदि किसी कारणवश सूत्रधारी कम्पनी का संचालक मण्डल सहायक कम्पनी के आगम लाभ-हानि के निर्धारित करने में असमर्थ है तो इस आशय की एक लिखित सूचना।

सहायक कम्पनी का वित्तीय वर्ष : सहायक कम्पनी का वित्तीय वर्ष सूत्रधारी कम्पनी के वित्तीय वर्ष की तिथि पर समाप्त हो भी सकता है और नहीं भी किन्तु यह सूत्रधारी कम्पनी के वित्तीय वर्ष की समाप्ति की तिथि से 6 माह से अधिक पूर्व नहीं होना चाहिये।

सत्रधारी कम्पनी के हित का विवरण

(Statement of Holding Company’s Interest)

इस विवरण में प्रत्येक सहायक कम्पनी के सम्बन्ध में निम्न विवरण दिये जाने होंगे:

(अ) सहायक कम्पनी के वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर उसमें सत्रधारी कम्पनी के हित की मात्राः

(ब) सहायक कम्पनी के शुद्ध लाभों (हानियों को घटाने के बाद) की वह राशि जो कि सूत्रधारी कम्पनी से सम्बन्धित हो, और जिसका लेखा सूत्रधारी कम्पनी की पुस्तकों में न किया गया हो :

(i) सहायक कम्पनी के इस वित्तीय वर्ष के लिये; और

(ii) जब से यह सूत्रधारी कम्पनी की सहायक कम्पनी बनी है तब से गत वित्तीय वर्षों के लिये।

(स) सहायक कम्पनी के शुद्ध लाभों (हानियों को घटाने के बाद) की राशि जो कि सूत्रधारी कम्पनी के खातों में लिखी जा चुकी है।।

(i) सहायक कम्पनी के इस वित्तीय वर्ष के लिये, और

(ii) जब से यह सूत्रधारी कम्पनी की सहायक कम्पनी बनी है तब से गत वित्तीय वर्षों के लिये।

उदाहरण 1. 1 जनवरी 2011 को एस लिमिटेड की अंश पूँजी ₹100 वाले 10,000 अंशों में विभक्त थी। 1 जुलाई 2011 को एच लिमिटेड ने एस लिमिटेड के 7,500 अंश ₹ 8,40,000 में क्रय किये। एस लिमिटेड के लाभ इस प्रकार थे :

31 दिसम्बर 2011 को समाप्त वर्ष के लिये                                           ₹1,60,000

31 दिसम्बर 2012 को समाप्त वर्ष के लिये                                           ₹2,00,000

31 दिसम्बर 2013 को समाप्त वर्ष के लिये                                           ₹1,60,000

31 दिसम्बर 2014 को समाप्त वर्ष के लिये                                           ₹1,20,000

प्रत्येक वर्ष 10% लाभांश घोषित किया गया। सूत्रधारी कम्पनी के सहायक कम्पनी में हित का विवरण तैयार करो। एच लिमिटड। के खाते प्रत्येक वर्ष 31 मार्च को बंद होते हैं।

The share capital of S Ltd. on 1st January 2011 was 10,000 shares of 100 each. On 1st July 2011. H Ltd. acquired 7,500 shares at ₹ 8,40,000. The profits of SLtd. were as under :

For the year ending 31st December 2011                                   ₹1,60,000

For the year ending 31st December 2012                                   ₹2,00,000

For the year ending 31st December 2013                                   ₹1,60,000

For the year ending 31st December 2014                                   ₹1,20,000

Dividend was declared at 10% each year. Prepare a Statement of Holding Company’s Interest in Subsidiary. H Ltd. closes its accounts on 31st March each year.

Corporate Accounting Holding Companies

Solution :

Statement of Holding Companies Interest in Subsidiary

(a) As on 31st December 2014, this company holds 7.500 shares out of 10,000 shares of ₹ 100 each in SLtd.

(b) The net aggregate amount of profits of S Ltd., so far as it concerns to the members of this company, which have not been dealt with in this company’s accounts, is as follows:

For the year ended 31st December 2014                             ₹ 15,000

For the previous years since 1st July 2011                          ₹ 1,42,500

                               Total                                            1,57,500 

(c) The net aggregate amount of profits of S Ltd. so far as it concerns to the members of this company, which have been dealt with in this company’s accounts is as follows:

For the year ended 31st December 2014                             ₹ 75,000

For the previous years since 1st July 2011                         ₹ 1,87,500

                                   Total                                        2,62,500  

(d) There has been no change in the interest of H Ltd. in S Ltd. during time-lag (i.e. between 31st December 2014 and 31st March 2015)

(e) There has ben no material change during time-lag in respect of the subsidiary’s fixed assets, investments, moneys lent buy it and moneys borrowed by it for any purpose other than that of meeting current liabilities.

सहायक कम्पनियों के लाभ और हानियाँ (Profits and Losses of Subsidiary Companies)

सहायक कम्पनी के लाभों पर सूत्रधारी कम्पनी का तब तक अधिकार नहीं बनता है जब तक कि वे उचित रूप से लाभांश की तरह न घोषित कर दिये जायें। सहायक कम्पनी द्वारा घोषित लाभांश का लेखा सूत्रधारी कम्पनी की पुस्तकों में उस वित्तीय वर्ष में किया जाता है जिसमें यह घोषित किया गया है। किन्तु सूत्रधारी कम्पनी के चिट्टे की तिथि के बाद एक सहायक कम्पनी द्वारा घोषित लाभांश उसके चिट्ठे में तब तक नहीं दिखाया जा सकता है जब तक कि यह उस पर समाप्त अवधि का न हो जो उसके चिट्टे की तिथि पर अथवा उससे पूर्व समाप्त होती है।

सहायक कम्पनी से प्राप्त लाभांश के लेखे (Accounting for Dividend from Subsidiaries)

सूत्रधारी कम्पनी द्वारा अपनी सहायक कम्पनी से प्राप्त लाभांश (चाहे अन्तरिम हो और चाहे अन्तिम) का लेखा करते समय देखना होगा कि सहायक कम्पनी द्वारा यह लाभांश किन लाभों से बाँटा गया है। इस दृष्टि से लाभों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है :

(i) अंश क्रय से पूर्व के लाभ (Pre-acquisition Profits)- सूत्रधारी कम्पनी द्वारा सहायक कम्पनी में इसके अंश क्रय करने की तिथि पर विद्यमान लाभों को ‘अंश क्रय से पूर्व के लाभ’ कहा जाता है। सूत्रधारी कम्पनी की दृष्टि से यह पूँजीगत (Capital) प्रकृति का माना जाता है, अतः ऐसे लाभों से प्राप्त लाभांश से विनियोग की लागत को कम किया जाता है। इसके लिये निम्न प्रविष्टि का जायेगी:

Bank Account                                                   Dr

To Investment Account

(ii) अंश क्रय के बाद के लाभ (Post-acquisition Profits)- सूत्रधारी कम्पनी द्वारा सहायक कम्पनी में इसके अंश क्रय की तिथि बाद सहायक कम्पनी द्वारा अर्जित लाभों को ‘अंश क्रय के बाद के लाभ’ कहा जाता है। सूत्रधारी कम्पनी की दष्टि से लाभ आयगत (Revenue) होते हैं। अतः इन लाभों से प्राप्त लाभांश को लाभ-हानि खाते में ले जाया जाता है। इसके लिये निम्न प्रविष्टियाँ की जायेंगी :

(a) Bank Account                              Dr.

To Dividend Account

(b) Dividend Account                     Dr.

To Profit & Loss Account

नोट-1) जब सूत्रधारी कम्पनी द्वारा अंश वर्ष के बीच किसी दिन क्रय किये गये हैं तो किसी अन्य सूचना के अभाव में उस वर्ष के लाभ दिन-प्रति-दिन एक समान अर्जित किये हए माने जायेंगे। अतः ‘क्रय से पूर्व’ और ‘क्रय के बाद’ के लाभों के बीच इनका विभाजन समय के आधार पर किया जायेगा।

(ii) किसी अन्य सूचना के अभाव में यह माना जायेगा कि लाभांश उस वर्ष के लाभों से दिया जा रहा है जिसके लिये यह घोषित किया गया है।

उदाहरण 2.1 जनवरी 2015 को H Ltd. ने S Ltd. के ₹ 10 वाले पूर्णदत्त 18,000 अंश ₹22.50 प्रति अंश की दर से क्रय किये। 31 दिसम्बर 2015 को SLtd. ने 75% का लाभांश धारित तीन अंशों के लिये एक बोनस लाभांश सहित दिया। S Ltd. के। लाभ-हानि खाते का क्रेडिट शेष निम्न प्रकार था:

On 1st January 2015, H Ltd. purchased 18,000 shares of 10 each fully paid in S Ltd. at 22.50 per share. On 31st December 2015, the latter company paid a dividend of 75% together with a bonus dividend of one for three shares held. The profit and loss account of S Ltd. was in credit as follows:

January 1, 2015            Balance b/d                                                       ₹2,40,000

December  31, 2015       Profit for the year                                      ₹1,20,000

                                                                    Total                3,60,000 

S Ltd. की निर्गमित अंश पूंजी ₹ 10 वाले पूर्णदत्त 20,000 अंश थी। H Ltd. की पुस्तकों में उपर्युक्त लाभांश की जर्नल प्रविष्टियाँ यह मानते हुए कीजिये कि

(i) लाभांश पूर्व के लाभों में से दिया गया।

(ii) अधिकतम लाभांश बाद के लाभों में से और शेष पूर्व के लाभों में से दिया गया।

(iii) लाभांश का भुगतान दोनों लाभों में से आनुपातिक किया गया।

The issued share capital of S Ltd. was 20,000 shares of 10 each fully paid. Show journal entries in respect of the above dividend in the books of H Ltd. assuming that —

(i) The dividend is paid out of past profits.

(ii) The dividend is paid out of current year’s profit to the maximum extent and the balance out of past profits.

(iii) The dividend is paid out of both the profits proportionately,

Solution :

(A) Cash Dividend –

Total dividend paid by S Ltd.                                                                                        =₹1,50,000

Total dividend received by H Ltd.             (90% of 1,50,000)                              = ₹1,35,000

Case i: When dividend is paid out of past profits –

In this case whole dividend received is out of pre-acquisition profits.

Journal Entry in the books of H Ltd.

Bank Account                                                         Dr.         1,35,000

To Investment Account                                       Dr         1,35,000

(Being dividend received from S Ltd. out of pre-acquisition profits)

Case ii : When dividend is paid to the maximum extent out of current year’s profits – 

Dividend paid out of current year’s (post-acquisition) profits          1,20,000

Dividend paid out of past (pre-acquisition) profits                                 30.000

Total dividend paid                                                                                            1,50,000

Corporate Accounting Holding Companies

चिट्ठा और लाभहानि खाता का समाहरण

(Consolidation of Balance Sheet and Profit & Loss Account)

चिट्ठा और लाभ-हानि खाते के समाहरण का आशय सूत्रधारी कम्पनी और इसकी सहायक कम्पनी या कम्पनियों को कवर करते हए एक अकेला चिट्ठा और लाभ-हानि विवरण-पत्र तैयार करना है। कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 129(3) के अनुसार एक सत्रधारी कम्पनी को अपनी वार्षिक व्यापक सभा में समूहित चिट्टा और लाभ-हानि विवरण-पत्र प्रस्तुत करना अनिवार्य हो गया है तथा ये अधिनियम की अनुसूची 111 में निर्दिष्ट प्रारूप में ही तैयार किये जायेंगे। ये विवरण-पत्र जनक कम्पनी और इसकी सहायक कम्पनी (या कम्पनियाँ) के बारे में एक अकेली आर्थिक सत्ता के रूप में वित्तीय सूचना प्रस्तुत के उद्देश्य से तैयार किये जाते हैं। ये समूह द्वारा नियंत्रित आर्थिक संसाधनों, समूह की बाध्यताओं (obligations) और अपने संसाधनों से समूह द्वारा प्राप्त परिणाम दर्शाते हैं।

भारतीय चार्टर्ड लेखाकार संस्थान द्वारा निर्गत लेखांकन मानदण्ड 21 में वित्तीय विवरणों के समूहीकरण की कार्यविधि स्पष्ट की गई है।

मिश्रित चिट्ठा तैयार करना (Preparing Consolidated Balance Sheet)

मिश्रित चिट्रे में सत्रधारी कम्पनी और उसकी सहायक कम्पनी के चिट्ठों की विभिन्न सम्पत्ति और दायित्व की मदों को जोडकर लिखा जाता है किन्तु इसमें निम्न समायोजन किये जाते हैं :

1 सहायक कम्पनी के अंशों में विनियोग खाते की समाप्ति (Elimination of Investment in Shares Account of Subsidiary): सहायक कम्पनी के चिने के सम्पत्ति पक्ष में प्रदर्शित “Investment in Shares of Subsidiary AIC” सूत्रधारा । फापना का सहायक कम्पनी में समता (Equity) से निरस्त हो जाता है। सत्रधारी कम्पनी की सहायक कम्पनी में समता का आशय । जश क्रय का ताथ पर सहायक कम्पनी की अंश पूँजी, संचितियों और अवितरित लाभों में सूत्रधारी कम्पनी के भाग के योग से होता। है।

2. सहायक कम्पनी के पुँजीगत लाभ और आयगत लाभ की गणना (Calculation of Capital Profits and Revenue Profits of Subsidiary): सहायक कम्पनी के लाभों को पँजीगत लाभ (अंश क्रय से पूर्व के लाभ) और आयगत लाभ (अंश क्रया से बाद के लाभ) में विभाजित करना आवश्यक होता है क्योंकि सहायक कम्पनी के पूँजीगत लाभों में सूत्रधारी कम्पनी के भाग को सहायक कम्पनी में विनियोग की लागत से समायोजित किया जाता है जबकि उसके आयगत लाभों में भाग को मिश्रित चिट्ठे में सूत्रधारी कम्पनी के अपने लाभों में जोड़कर दिखलाया जाता है। इस विभाजन के लिये अंश क्रय की तिथि निर्धारक कारक होती है। सूत्रधारी कम्पनी द्वारा सहायक कम्पनी में विनियोग की तिथि पर सहायक कम्पनी के चिट्ठे में प्रदर्शित संचित लाभ और संचितियों को पूजीगत लाभ या क्रय से पूर्व का लाभ कहते हैं तथा अंश क्रय की तिथि के बाद अर्जित लाभ और बनायी गई संचितियों को आयगत लाभ या क्रय के बाद के लाभ कहते हैं।

अंश क्रय की तिथि पर यदि सहायक कम्पनी के चिट्ठे में हानियाँ दर्शायी गयी हैं तो ये पूँजीगत हानियाँ होंगी तथा इन हानियों में सूत्रधारी कम्पनी के भाग को या तो सहायक कम्पनी में अंशों की लागत में जोड़ देना चाहिये या सूत्रधारी कम्पनी की सहायक कम्पनी की समता में से घटा देना चाहिये। अंश क्रय की तिथि के बाद सहायक कम्पनी की हानियाँ आयगत होती हैं और इनमें सूत्रधारी कम्पनी के भाग को मिश्रित चिट्ठे में सूत्रधारी कम्पनी के अपने लाभों में से घटा दिया जाता है।

जहाँ तक अल्पमत अंशधारियों का सम्बन्ध है, उनके लिये पूँजीगत और आयगत लाभ-हानि का अन्तर निरर्थक है। सहायक कम्पनी के कुल लाभ और संचितियों में अल्पमत अंशधारियों के भाग को ‘अल्पमत अंशधारी हित’ की गणना में सम्मिलित किया जायेगा। नोट : यदि नियंत्रणकारी हित वर्ष के दौरान प्राप्त किया है, किसी विपरीत संकेत के अभाव में, वर्ष के क्रय की तिथि तक के लाभ

और क्रय की तिथि के बाद के लाभ दिन-प्रति-दिन समान रूप से अर्जित माने जायेंगे अर्थात् वर्ष के लाभों का पूँजीगत और आयगत लाभ में विभाजन समय के आधार पर किया जायेगा।

3. ख्याति अथवा पूँजीगत संचिति की गणना (Calculation of Goodwill of Capital Reserve) : इसकी गणना के लिये अंश क्रय की लागत (Cost of Shares Acquired) की तुलना सूत्रधारी कम्पनी की सहायक कम्पनी में समता के मूल्य (Value of Holding Company’s Equity in Subsidiary) से की जाती है। उदाहरणार्थ –

Cost of Shares acquired    ……………………………………………………

Less Value of Equity in Subsidiary:

Face Value of Shares acquired  …………………………………

Holding Co.’s share in Capital Profits   …………………………

Goodwill/Capital Reserve   ………………………………………………………

यदि अंश क्रय की लागत समता के मूल्य से अधिक है तो अन्तर ख्याति (Goodwill) या नियंत्रण की लागत (Cost of control) कहलाता है और यदि समता का मूल्य अंश क्रय की लागत से अधिक है तो अन्तर पूँजीगत संचिति (Capital Reserve) कहलायेगा। मिश्रित चिट्टे में ख्याति को सम्पत्ति पक्ष में दर्शाया जाता है तथा पूँजीगत संचिति को दायित्व पक्ष में दर्शाया जाता है।

उदाहरण 3.X Ltd. ने Y Ltd. के सभी अंश 1 अक्टूबर 2014 को क्रय किये। 31 दिसम्बर 2014 को दोनों कम्पनियों के चिट्टे निम्न प्रकार थे:

X Ltd. acquired all the shares in Y Ltd. on 1st Oct. 2014 and the Balance Sheet of the two companies on 31st Dec. 2014 were as follows:

1 जनवरी 2014 को Y Ltd. के लाभ-हानि खाते की क्रेडिट बाकी ₹3.000 थी। YLtd. का 2014 का लाभ वर्ष भर बराबर रहा है। 31 दिसम्बर 2014 को मिश्रित चिट्ठा बनाओ।

The Profit and Loss Account ofY Ltd. had a credit balance of₹3.000 on 1st January 2014. The profits | of Y Ltd. accrued evenly through out the year 2014. Prepare consolidated Balance Sheet as on 31st December 2014.

Solution : Y Ltd. के कुल लाभ ₹ 10.000 के हैं। इनमें 2014 वर्ष के आरम्भ के ₹3.000 के लाभ सम्मिलित हैं. अत: 2014 के चालू वर्ष के लाभ 10,000-3,000 ₹7,000 हैं। X Ltd. ने 1 अक्टूबर 2014 को अंश क्रय किए हैं, अतः समय के आधार पर₹7,000 का 9/12 क्रय करने से पूर्व का लाभ (Pre-acquisition Profit) हुआ व₹7,000 का 3/12 क्रय करने के बाद का लाभ (Post-acquisition Profit) होगा। क्रय करने से पूर्व के लाभ पूँजीगत लाभ (Capital Profit) माने जायेंगे और क्रय करने के बाद के लाभ आयगत लाभ (Revenue Profit) माने जायेंगे। आयगत लाभ को मिश्रित चिट्ठ में X Ltd. के लाभ के साथ जोड़, कर दिखाया जाएगा।

संचय (Reserve) वर्ष के प्रारम्भ में दिया जाता है, अतः इसे पूँजीगत लाभ में सम्मिलित किया गया है।

Corporate Accounting Holding Companies

4. अल्पमत अंशधारी हित की गणना (Calculation of Minority Interest): यदि सूत्रधारी कम्पनी ने सहायक कम्पनी के समस्त अंश क्रय कर लिये हैं तो ‘अल्पमत अंशधारी हित’ की गणना का प्रश्न ही नहीं उठता। किन्तु यदि सूत्रधारी कम्पनी ने सहायक कम्पनी के समस्त अंश क्रय नहीं किये हैं तो शेष अंशधारियों का सहायक कम्पनी में दावे की राशि को ‘अल्पमत अंशधारी हित’ कहते। है और इसे मिश्रित चिटठे के ‘समता और दायित्व’ भाग में ‘अंशधारी कोषों’ (Shareholders’ Funds) के पश्चात दिखलाया जायेगा। इसकी गणना के लिये बाहरी अंशधारियों द्वारा धारित अंशों के चुकता मूल्य में सहायक कम्पनी के पूंजीगत व आयगत लाभों वा संचितियों में उनके भाग को जोड़ा जाता है तथा हानियों में भाग को घटाया जाता है। यदि किसी स्थिति में अल्पमतधारियों का सहायक कम्पनी की हानियों में भाग सहायक कम्पनी की समता में उनके हित से अधिक है तो आधिक्य हानियाँ बहुमत हित (अर्थात सूत्रधारी कम्पनी) से चार्ज की जायेंगी। हाँ, भविष्य में सूत्रधारी कम्पनी को अल्पमतधारियों के गत हानियों में भाग को पूरा करने का अधिकार। होगा। यदि सहायक कम्पनी ने पूर्वाधिकारी अंश भी निर्गमित किये हैं तो बाहरी पूर्वाधिकारी अंशधारियों द्वारा धारित अंशों के अंकित मूल्य और उन पर बकाया लाभांश (यदि सहायक कम्पनी में लाभ हैं) को भी ‘अल्पमत अंशधारियों के हित में ही सम्मिलित किया जाता है। अल्पमत अंशधारियों के हित की राशि को मिश्रित चिट्ठे में एक दायित्व के रूप में दिखाया जाता है।

उदाहरण 4. नीचे दिये चिट्ठों से एक्स लिमिटेड और इसकी सहायक वाई लिमिटेड का संयुक्त चिट्ठा तैयार करो।

From the balance sheets given, prepare a consolidated balance sheet of X Ltd. and its subsidiary Y Ltd.

एक्स लि. द्वारा इसके अंश क्रय की तिथि पर वाई लि0 के अवितरित लाभ और संचितियाँ क्रमशःर 1,000 और ₹3,000 के थे, जिसमें से क्रय की तारीख से कुछ भी नहीं वितरित किया गया है।

At the date of acquisition by X Ltd. of its shares, Y Ltd. had undistributed profits and reserves amounting to 3 1,000 and 3 3,000 respectively, none of which had been distributed since the date of acquisition.

Solution :

सहायक कम्पनी के चिट्ठे में ख्याति (Goodwill in the Balance Sheet of Subsidiary Company)

यदि सहायक कम्पनी के चिट्ठे में ख्याति पहले से विद्यमान है तो उसे नियन्त्रण की लागत या पूँजीगत संचय से समायोजित करने की सामान्य पृथा है। तथापि कुछ लेखापालों का मत है कि अल्पमत अंशधारियों की भी इस हानि में हिस्सेदारी होनी चाहिये। यदि यह मत लिया जाता है तो सहायक कम्पनी के चिट्टे में विद्यमान ख्याति की राशि को पूँजीगत लाभों से घटाना होगा और घटाकर प्राप्त पूंजीगत लाभ की शुद्ध राशि ही सूत्रधारी कम्पनी और अल्पमत हित के बीच विभाजित की जायेगी।

उदाहरण 5. H लि० ने 30 जून 2015 को 62,000 रुपये की लागत पर S लि0 के 90% अंश प्राप्त किये। इन अंशों की प्राप्ति का ताय पर काई चिट्ठा नहीं बनाया गया था।

H Ltd acquire 90% of  the shares in S Ltd. On 30th june 2015 at a cost  of 60,000 No Balance Sheet was Preared at the date of acquisition . The Balance Sheet of S Ltd as on 31st December 2014 and 2015 was as Follows :-

31 दिसम्बर 2014 तथा 2015 को S लि0 के चिट्ठ निम्न प्रकार थे :

The Balance Sheet of S Ltd. as on 31st December 2014 and 2015 was as follows:

यह मानते हुये कि S लि0 का लाभ 2015 के लिये समान रूप से उपार्जित हुआ तथा 5 लि. की ख्याति की राशि को समाप्त करना है। H लि0 का 31 दिसम्बर 2015 को संयुक्त चिट्ठा तैयार कीजिये।

Assuming that the profit of Ltd. has accrued evenly throughout the year 2015 and that the goodwill appearing in the books of S Ltd. is to be written off, prepare the consolidated Balance Sheet of H Ltd. as on 31st Dec. 2015

Note : Goodwill in the balance sheet of subsidiary may, alternatively be subtracted from capital profits in working note no. 1 above and only the net amount allocated between holding company and minority interest.

असाधारण हानि (Abnormal Loss) : यदि कोई असाधारण हानि है, जैसे आग से हानि, तो इसे उस अवधि के लाभों से अपलिखित करना चाहिये जिस अवधि में हानि हुई है। इसके लिये सर्वप्रथम असाधारण हानि की राशि को उस वर्ष के शुद्ध लाभ में जोड देना चाहिये और फिर इस बनावटी शुद्ध लाभ की राशि को ‘क्रय से पूर्व’ और ‘क्रय के बाद’ की अवधियों में समयानसार विभाजित कर देना चाहिये। तत्पश्चात् असाधारण हानि की राशि को उस अवधि के लाभ से घटाना चाहिये जिसमें यह घटना घटित

उदाहरण 6.1 जुलाई 2015 को एच लि0 ने एस लि0 के 80% अंश ₹40,000 में क्रय किये। वर्ष के अन्त में दोनों कम्पनियों के चिट्ठे इस प्रकार थे:

Lad acquired 80% shares of S Ltd. on 1st July 2015 for 40,000. The Balance Sheets of both the companies at the end of the year were as follows:

28 मई 2015 को एस लि0 में आग लग गई जिसने 2,000 मूल्य का स्टाँक नष्ट कर दिया । एस लि0 के चिट्ठे में 6,000 लाभ का अंक इस हानि को अपलिखित करने के पश्चात् है ।

आवश्यक गणनायें दिखलाते हुए एक संयुक्त चिट्ठा तैयार करो।

A fire broke out in S Ltd. on 28th May 2015, which destroyed stock worth 2,000. The profit figure of 36,000 in the balance sheet of S Ltd. is after writing off this loss.

Prepare a Consolidated Balance Sheet, showing necessary calculations.

5. आस्थगित आगम व्यय (Deferred Revenue Expenditure): यदि सूत्रधारी कम्पनी के चिट्टे में कोई आस्थगित आगम व्यय, जैसे प्रारम्भिक व्यय (preliminary expenses), अंशों के निर्गमन के व्यय अथवा कटौती आदि दिये हों तो मिश्रित चिट्टे में इन्हें इसी तरह ही दिखलाया जायेगा। किन्तु यदि सहायक कम्पनी के चिढ़े में प्रारम्भिक व्यय या अन्य कोई आस्थगित आगम व्यय दिया हो तो लाभों के विश्लेषण में इसे पूँजीगत हानि माना जाना चाहिये और नियन्त्रण की लागत तथा अल्पमत हित की गणना में इसका ध्यान रखना चाहिये। इन हानियों में सूत्रधारी कम्पनियों का आनुपातिक भाग नियन्त्रण की लागत में जोड़ा जाय अथवा पूँजीगत संचय से घटाया जाय, जैसी भी स्थिति हो। इसी तरह अल्पमत अंशधारियों का इन हानियों में आनुपातिक भाग स्वयं अल्पमत हित से घटाया जायेगा। वैकल्पिक रूप से पूँजीगत लाभों की गणना में ही इन हानियों को घटाकर दिखाया जा सकता है।

उदाहरण 7. 31 मार्च 2015 को H लि० और इसकी सहायक S लि० का चिट्टे निम्नलिखित हैं:

The following is the balance sheet of H Ltd. and its subsidiary S Ltd. as on 31st March 2015 :

H लि0 ने 5 लि. के अंश 30 जून 2014 को क्रय किये। 1 अप्रैल 2014 को, S लि० की सामान्य संचिति और लाभ-हानि खाता क्रमशः ₹60.000 और ₹ 20,000 थे। 31 मार्च 2015 को समाप्त वर्ष के दौरान प्रारम्भिक व्ययों का कोई भी भाग । अपलिखित नहीं किया गया। 31 मार्च 2015 को एक संयुक्त चिट्ठा तैयार करो।

H Ltd. acquired the shares of S Ltd. on 30th June 2014. On 1st April 2014, S Ltd.’s general reserve and profit and loss account stood at 60,000 and 20,000 respectively. No part of preliminary expenses was! written off during the year ended 31st March 2015. Prepare a consolidated balance sheet as at 31st March 2015.

6. सहायक कम्पनी की सम्पत्तियों और दायित्वों का पुनर्मूल्यांकन (Revaluation of Assets and Liabilities of Subsidiary): सूत्रधारी कम्पनी द्वारा सहायक कम्पनी के अंश क्रय करने के समय अंश का मूल्य निर्धारित करने के लिये यदि सहायक कम्पनी की सम्पत्तियों और दायित्वों का पुनर्मूल्यांकन किया गया था तो संयुक्त चिट्ठे में इन सम्पत्तियों व दायित्वों को उनके संशोधित मूल्य पर दिखलाया जाता है तथा पुनर्मूल्यांकन पर लाभ अथवा हानि को पूँजीगत लाभ या पूँजीगत हानि, जैसी भी स्थिति हो, माना जाता है। यह भी ध्यान रहे कि क्रय की तिथि के पश्चात् सहायक कम्पनी की स्थायी सम्पत्तियों के मूल्य में वृद्धि भी पूजीगत लाभ मानी जायेगी किन्तु क्रय की तिथि के पश्चात् सहायक कम्पनी की स्थायी सम्पत्तियों के मूल्य में कमी को साधारण आयगत हानि माना जाता है।

यहाँ यह ध्यान रहे कि यदि सूत्रधारी कम्पनी की स्थायी सम्पत्तियाँ पुनर्मूल्यांकित की गयीं हैं तो पुनर्मूल्यांकन पर लाभ को पूँजीगत संचिति में हस्तान्तरित किया जायेगा जिसका प्रयोग ख्याति, यदि कोई है, के अपलेखन के लिये किया जा सकता है। दूसरी ओर, पुनर्मूल्यांकन पर हानि एक पूँजीगत हानि होगी जिसे पूँजीगत संचिति से अपलिखित किया जायेगा। किन्तु यदि पूँजीगत संचिति उपलब्ध नहीं है तो इस हानि की सामान्य संचिति या आयगत लाभ से समायोजित (set ofm) किया जा सकता है। चिट्ठे में सम्पत्ति को उसके। पुनर्मूल्यांकित अंक पर दिखलाया जायेगा।

हासयोग्य स्थायी सम्पत्तियों के मूल्यांकन अन्तर पर हास (Depreciation on Valuation Difference of Depreciable Fixed Assets) :

यदि पुनर्मूल्यांकन पर सहायक कम्पनी की स्थायी सम्पत्तियाँ संयुक्त चिट्ठे में अपने पुनर्मूल्यांकित मूल्य पर दिखलायी जाती हैं तो सहायक कम्पनी के कुल आयगत लाभों को ह्रास योग्य स्थायी सम्पत्तियों के मूल्यांकन अन्तर पर पुनर्मूल्यांकन की तिथि से चिट्ठे की तिथि तक की अवधि के कम या अधिक आयोजित हास की राशि से समायेजित करना चाहिये, अर्थात् यदि पुनर्मूल्यांकन पर सम्पत्ति के मूल्य में वृद्धि हुई है तो वृद्धि हुई राशि पर अतिरिक्त हास को आयगत लाभों से घटाया जायेगा तथा कमी की गई राशि पर फालत हास को आयगत लाभों में जोड़ा जायेगा। यहाँ यह ध्यान रहे कि आयगत लाभों में सूत्रधारी कम्पनी और अल्पमत अंशधारियों का निर्धारण इन लाभों को ह्रास आयोजन में अन्तर के समायोजन के पश्चात ही किया जायेगा।

उदाहरण 8. 31 मार्च 2015 पर बनाये गये एच लिo और इसकी सहायक एस लि0 के निम्नलिखित चिट्ठों से निम्नलिखित को ध्यान देते हुए उस तिथि पर एक संयुक्त चिट्ठा तैयार करो:

1 एच० लिक द्वारा एस लि० के 80% अंश क्रय करने की तारीख को इस की संचितियों और लाभ-हानि खाता (क्रेडिट) क्रमशः ₹25,000 और ₹15,000 हैं।

2. इसके अंशों का मूल्य निश्चित करने के उद्देश्य से एस लि० की मशीनरी (पुस्तक मूल्य ₹ 1.00,000), फर्नीचर (पुस्तक मूल्य र 20,000) और भूमि (पुस्तक मूल्य र 18,000) क्रमशः ₹ 1,50,000, ₹ 15,000 और ₹ 28.000 पर पुनर्मूल्यांकित की गयीं, अन्य सम्पत्तियों के पुस्तक मूल्य अपरिवर्तित रहा।

From the following Balance Sheets of H Ltd. and its subsidiary S Ltd. drawn up at 31st March 2015. prepare a Consolidated Balance Sheet as at that date having regard to the following:

1 Reserves and Profit & Loss Account (Cr.) of S Ltd. stood at ₹ 25,000 and ₹15.000 respectively on the date of acquisition of its 80% shares by H Ltd.

2. Machinery (Book value 1,00,000), Furniture (Book value < 20,000) and Land (Book value <18,000) of S Ltd. were revalued at * 1,50.000, 15,000 and 328,000 respectively for the purpose of fixing the price of its shares: book values of other assets remaining unchanged.

7. अन्तर्कम्पनी शेषों की समाप्ति (Elimination of Inter-Company Balances) : सूत्रधारी कम्पनी और उसकी सहायक कम्पनी का संयुक्त चिट्ठा बनाते समय एक-दूसरे के साथ लेन-देन से उत्पन्न दायित्वों को समाप्त कर देना चाहिये। इन मदों के उदाहरण निम्नलिखित हैं :

() आपसी कर्जदारी (Mutual Indebtedness) : माल के विक्रय अथवा कोष उधार देने से समूह की एक कम्पनी की दूसरी कम्पनी पर बकाया ऋण की राशि विक्रेता (या उधार देने वाली) कम्पनी के चिट्टे के सम्पत्ति पक्ष में देनदार के रूप में दिखायी गयी। होगी तथा क्रेता (या उधार लेने वाली कम्पनी के चिट्ठ के दायित्व पक्ष में लेनदार के रूप दिखायी गयी होगी। संयक्त चिट्रे में ऐसी आपसी कर्जदारी को समाप्त कर दिया जाता है। किन्तु कभी-कभी मार्ग में रोकड़ (Cash-in-transit) के फलस्वरूप दोनों कम्पनियों की पुस्तकों में एक-दूसरे पर बकाया शेष में अन्तर आ जाता है। ऐसी स्थिति में मार्ग में रोकड़ की राशि को संयक्त चिट्रे में सम्पत्ति पक्ष में दिखाया जायेगा।

() आपसी स्वीकृतियाँ (Mutual Acceptances) : समूह की एक कम्पनी द्वारा लिखे व दसरी द्वारा स्वीकार किये गये विनिमय-विपत्र लेखक कम्पनी के चिट्टे में प्राप्य बिल (Bills Receivable) तथा स्वीकारकर्ता कम्पनी के चिढ़े में देय बिल (Bills Pavable) के नाम से दिखलाये जाते हैं और संयुक्त चिट्ठ में ये एक दूसरे से रद्द हो जाते हैं। किन्तु यदि लेखक कम्पनी के इन बिलों में से किसी मिल को बैंक से कटौती कर लिया है अथवा इस किसी अन्य पक्ष को बेचान कर दिया है तो उपर्यक्त प्रकार से रह करना सम्भव नहीं होगा क्योंकि इस कम्पनी के चिट्ठ में प्राप्य बिल की जगह रोकड़ या बैंक शेष होगा तथा सम्भाव्य दायित्व के रूप। में इसके लिये लिये टिप्पणी दी गई होगी किन्तु स्वाकारकता कम्पनी के चिट्ठे में तो यह देय बिल के रूप में ही होगा। संयुक्त चिट्रे में। ऐसे देय बिल दिखलाये जायेंगे क्योंकि अब यह दायित्व तृतीय पक्ष के प्रति हो गया है। परन्तु सम्भावित दायित्व के रूप में टिप्पणी नहीं दी जायेगी क्योंकि अब सम्भावित दायित्व को वास्तविक दायित्व मान लिया गया है ।

 () समह की एक कम्पनी के ऋणपत्रों का एक दूसरी कम्पनी द्वारा धारण (Debentures of one company held by another in the group): ऋणपत्र निर्गमकर्ता कम्पनी के चिट्ठे में दायित्व पक्ष में उनके चुकता मूल्य पर दिखाये जाते हैं तथा क्रेता कम्पनी के चिट्टे में सम्पत्ति पक्ष में क्रय की लागत पर दिखाये जाते हैं। संयुक्त चिट्ठ में समूह की एक कम्पनी द्वारा धारित ऐसे ऋणपत्र निर्गमित ऋणपत्रों से रद्द हो जाते हैं। किन्तु यदि क्रय मूल्य ऋणपत्रों के चुकता मूल्य से भिन्न है तो अन्तर को ख्याति अथवा पँजीगत संचिति (जैसी भी स्थिति हो) से समायोजित किया जायेगा। समूह के बाहर धारित ऋणपत्रों को संयुक्त चिट्ठे में अल्पमत हित में न सम्मिलित करके पृथक से ऋणपत्र के नाम से दायित्व के रूप में दिखाना चाहिये। ।

उपार्जित ऋणपत्र व्याज (Debenture Interest Accrued): ऋणपत्रा पर उपाजित व्याज ऋणपत्र निर्गमकर्ता कम्पनी के चिटे। में ‘उपार्जित ऋणपत्र ब्याज के लिये आयोजन’ के नाम से दिखाया जाता है। किन्तु ऋणपत्रधारक ऐसे उपार्जित व्याज को अपनी पस्तकों में दिखा भी सकता है अथवा न भी दिखाये। यदि ऋणपत्र धारण की हुई समूह की एक कम्पनी ने इसे दिखाया है तो संयक्त चिट्टे में प्राप्य उपार्जित व्याज’ (interest accrued receivable) की राशि को ‘उपार्जित व्याज के लिये आयोजन’ से रह कर दिया जायेगा। किन्तु यदि ऋणपत्र धारक कम्पनी ने इसे अपनी पुस्तकों में नहीं दिखाया है तो ऐसी स्थिति में। धारक कम्पनी के चाल वर्ष के लाभ शेष में प्राप्य उपार्जित ब्याज का जोड़ा जायेगा तथा संयुक्त चिट्रे में इसे उपार्जित ब्याज के आयोजन की राशि से घटाया जायेगा। दोनों ही स्थितियों में समूह के बाहर ऋणपत्रों पर उपार्जित व्याज के लिये आयोजन को ही संयुक्त चिट्ठे में दिखाया जायेगा। यही स्थिति आपसी कर्जदारी पर उपार्जित ब्याज के सम्बन्ध में होगी।

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