BCom3rd Year Corporate Accounting Issue Forfeiture Share Study Material notes in Hindi

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BCom3rd Year Corporate Accounting Issue Forfeiture Share Study Material notes in Hindi: Meaning and Definition of Company Companies with Charitable Objects classes of Shares  Journal Entries  Issue of Shares  Calles In Arrears Under Subscription of Shares Calculation Table :

Issue Forfeiture Share
Issue Forfeiture Share

BCom 2nd Year Cost Accounting Study Material Notes in Hindi

अंशों का निर्गमन, हरण व पुनर्निर्गमन

(Issue, Forfeiture, and Reissue of Shares)

कम्पनी अधिनियम 2013 (Companies Act 2013)

कम्पना अधिनियम 2013 को भारत के राष्ट्रपति की मंजूरी 20 अगस्त 2013 को प्राप्त हुई और यह 1 अप्रैल 2014 स प्रभावी हुआ है। इस अधिनियम में कुल 470 धारायें हैं और सात अनुसूचियाँ हैं।

कम्पनी का आशय और परिभाषा (Meaning and Definition of Company)

कम्पनी व्यक्तियों का एक स्वैच्छिक संघ होता है जिसकी रचना किसी राजनियम के अन्तर्गत लाभ के लिये व्यवसाय चलाने का लिये की जाती है।

हैने के शब्दों में, “कम्पनी राजनियम द्वारा निर्मित एक कृत्रिम व्यक्ति है जिसका एक पृथक अस्तित्व होता है, जिसका अविच्छिन्न उत्तराधिकार चलता रहता है और जिसकी एक सार्वमुद्रा होती है।” ___

भारतीय कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 2 (20) के अनुसार, “कम्पनी से आशय इस अधिनियम के अन्तर्गत समामेलित अथवा किसी पूर्व कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत समामेलित एक कम्पनी से है। किन्तु यह परिभाषा एक कम्पनी की सभी अपिरिहार्य विशेषताओं को स्पष्ट नहीं कर पाती है।

इस सम्बन्ध में अमरीका के मुख्य न्यायाधीश श्री मार्शल की परिभाषा एक कम्पनी की विशेषताओं को अधिक प्रकाशवान करती है। उनके शब्दों में, “एक कम्पनी कृत्रिम, अदृश्य, अमूर्त व्यक्ति है और केवल कानून की आँखों में विद्यमान होती है; इसमें केवल वही गुण पाये जाते हैं जो कि इसके सृजन का चार्टर इसे प्रदान करता है, चाहे स्पष्ट रूप से और चाहे इसके स्वयं के अस्तित्व के लिये ही प्रासंगिक हो। इसका कोई भौतिक अस्तित्व नहीं होता है किन्तु केवल कानून के ध्यान में विद्यमान होती है।

इस प्रकार एक कम्पनी की प्रमुख विशेषतायें निम्नलिखित हैं :

(1) स्वैच्छिक संघ (Voluntary Association) : कम्पनी सामान्यतया लाभ के लिये निर्मित व्यक्तियों का एक स्वैच्छिक संघ । होती है।

(2) राजनिमय द्वारा निर्मित (Created by Law): कम्पनी का जन्म किसी राजनियम के अन्तर्गत होता है।

(3) कत्रिम व्यक्ति (Artificial Person) : कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत कम्पनी को एक कृत्रिम व्यक्तित्व प्राप्त होता है तथा यह अपने संचालकों के माध्यम से कार्य करती है।

(4) पृथक अस्तित्व (Separate Entity) : कम्पनी का अपने मालिकों (अंशधारियों) से पृथक अस्तित्व होता है और वह अपने नाम से वाद प्रस्तुत कर सकती है तथा दूसरे लोग उस पर वाद प्रस्तुत कर सकते हैं।

(5) अविच्छिन्न उत्तराधिकार (Perpetual Succession) : कम्पनी का जीवन उसके सदस्यों के जीवन से प्रभावित नहीं होता है। किसी सदस्य (या सदस्यों) की मृत्यु पर मृतक का उत्तराधिकारी कम्पनी का सदस्य बन जाता है और कम्पनी बिना किसी रुकावट के चलती रहती है।

(6) सर्वमान्य सार्वमुद्रा (Common Seal) : कम्पनी की अपनी एक सार्वमुद्रा या मोहर होती है जिसके लगाये जाने पर ही कोई प्रलेख कम्पनी का माना जाता है।

 (7) सीमित दायित्व (Limited Liability) : सामान्यतया कम्पनी के सदस्यों का दायित्व उनके धारणों पर अदत्त राशि तक ही सीमित होता है।

(8) अंशों की हस्तान्तरणीयता (Transferability of Shares) – एक कम्पनी के अंशधारियों को अपने अंशों के हस्तान्तरण का अधिकार होता है किन्तु एक निजी कम्पनी की दशा में सदस्यों के अपने अंशों के हस्तान्तरण के अधिकारों पर कुछ प्रतिबन्ध लगे होते हैं।

Corporate Accounting Issue Forfeiture

कम्पनियों के प्रकार (Kinds of Companies)

कम्पनी अधिनियम 2013 इसके अन्तर्गत बनने और पंजीकृत होने वाली अनेक प्रकार की कम्पनियों की व्यवस्था करता है। कुछ महत्वपूर्ण प्रकार की कम्पनियाँ नीचे दी गयी हैं।

पंजीकत कम्पनियाँ (Registered Companies)

कम्पनी अधिनियम 2013 के अधीन बनी और पंजीकत कम्पनियाँ तथा विद्यमान कम्पनियाँ पंजीकृत कम्पनियाँ कहलाती हैं। इस प्रकार की कम्पनियाँ निम्न प्रकार की होती हैं :

(अ) गारंटी द्वारा सीमित कम्पनियाँ (Companies Limited by Guarantee) :

कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 2 (21) के अनुसार गारंटी द्वारा सीमित दायित्व वाली कम्पनी का आशय एक ऐसी कम्पनी से है जिसके सदस्यों का दायित्व पार्षद सीमानियम द्वारा उस राशि तक सीमित होता है जिसे वे इसके समापन के समय कम्पनी की सम्पत्तियों में अंशदान के लिये गांरटी देते हैं।

(ब) अंशों द्वारा सीमित कम्पनियाँ (Companies Limited by Shares) : कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 2 (22) के अनुसार अंशी द्वारा सीमित दायित्व वाली कम्पनी का आशय एक ऐसी कम्पनी से है जिसके सदस्यों का दायित्व पार्षद सीमानियम द्वारा उनके द्वारा धारित अंशों की चुकता न की गयी राशि तक ही सीमित होता है।

(स) असीमित दायित्व वाली कम्पनियाँ (Unlimited Companies) : कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 2 (92) के अनुसार असीमित दायित्व वाली कम्पनी का आशय एक ऐसी कम्पनी से है जिसके सदस्यों के दायित्व की कोई सीमा नहीं होती है। किन्तु इनका दायित्व इनकी सदस्यता के दौरान लिये गये ऋणों तक ही सीमित होता है।

एक व्यक्ति कम्पनी (One Person Company)

कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 2 (62) के अनुसार एक व्यक्ति कम्पनी का आशय एक ऐसी कम्पनी से है जिसमें केवल एक व्यक्ति ही सदस्य होता है। कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 3 (1) (c) के अनुसार एक व्यक्ति द्वारा पार्षद सीमानियम में अपना हस्ताक्षरित नाम देकर और पंजीकरण के सम्बन्ध में इस अधिनियम की आवश्यकताओं का परिपालन करके किसी भी वैध उद्देश्य के लिये एक कम्पनी की रचना की जा सकती है।

एक व्यक्ति कम्पनी के सीमानियम में एक अन्य व्यक्ति का नाम, नियत फार्म में उसकी पूर्व लिखित सहमति के साथ, भी दिया जायेगा जो कि हस्ताक्षरकर्ता की मृत्यु अथवा प्रसंविदा के लिये उसकी अक्षमता की स्थिति में कम्पनी का सदस्य बन जायेगा और एक ‘क्ति कम्पनी के समामेलन के समय इसके पार्षद सीमानियम और अन्तर्नियमों के साथ ही ऐसे व्यक्ति की लिखित सहमति कम्पनी मा ों के रजिस्ट्रार के पास फाइल की जायेगी।

निजी कम्पनी (Private Company) कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 2 (68) के अनुसार एक निजी कम्पनी वह कम्पनी है जिसकी न्यूनतम प्रदत्त अंश पूँजी ₹ 1 लाख अथवा नियत की गई ऐसी ऊँची प्रदत्त अंश पूँजी हो और जो अपने अन्तर्नियमों द्वारा :

1. अपने अंशों के हस्तान्तरण के अधिकार पर रोक लगाती है;

2. एक व्यक्ति कम्पनी के सिवाय इसमें सदस्यों की संख्या 200 तक सीमित करती है। और

3. कम्पनी की प्रतिभूतियों के अभिदान के लिये जनता को आमन्त्रित करने पर प्रतिबन्ध लगाती है।

धारा 3(1)(b) के अनुसार एक निजी कम्पनी में न्यूनतम 2 सदस्य होने चाहिये और निजी कम्पनी का नाम “प्राइवेट लिमिटेड”। शब्दों के साथ समाप्त होना चाहिये।

सार्वजनिक कम्पनी (Public Company)

कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 2(71) के अनुसार सार्वजनिक कम्पनी का आशय एक ऐसी कम्पनी से है :

अंशों का निर्गमन, हरण एवं पुनर्निर्गमन

(अ) जोकि एक निजी कम्पनी नहीं है:

(ब) जिसका न्यूनतम प्रदत्त अंश पूँजी ₹5 लाख अथवा उससे उतनी ऊँची प्रदत्त अंश पँजी है जैसा इसके लिये नियत किया गया है।

एक सावजनिक कम्पनी की सहायक कम्पनी भी इस अधिनियम के अन्तर्गत सार्वजनिक कम्पनी ही मानी जायेगी चाहे यह सहायक कम्पनी अपने अन्तर्नियमों के अन्तर्गत एक निजी कम्पनी क्यों न चल रही हो।।

कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 3(1)(a) के अनुसार एक सार्वजनिक कम्पनी के अन्तगत न्यूनतम सार्वजनिक कम्पनी के नाम का अन्त “लिमिटेड” शब्द से होना चाहिये। ऐसी कम्पनी के अंश स्वतंत्रतापूर्वक हस्तान्तरणीय होते है।

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सरकारी कम्पनी (Government Company)

कम्पनि आधिनियम 2013 का धारा 2 (45) के अनसार सरकारी कम्पनी का आशय एक ऐसी कम्पनी से है जिसका प्रदत्त। अंशपूँजी का न्यूनतम 51 प्रतिशत केन्द्र सरकार अथवा किसी भी राज्य सरकार अथवा सरकारों अथवा अंशतः केन्द्रीय सरकार और अंशतः किसी एक या अधिक राज्य सरकारों के पास हो। इसमें एक ऐसी भी कम्पनी सम्मिलित है जो कि एक सरकारी कम्पनी को। सहायक है।

विदेशी कम्पनी (Foreign Company)

कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 2(42) के अनुसार विदेशी कम्पनी का आशय भारत के बाहर समामेलित किसी भी कम्पनी अथवा निगमीय मण्डल से है :

(अ) जिसका स्वयं का अथवा एक अभिकर्ता के माध्यम से, भौतिक रूप से अथवा इलैक्ट्रोनिक मोड से भारत में एक व्यवसाय स्थल है; और

(ब) जोकि भारत में किसी भी अन्य प्रकार से किसी भी प्रकार का व्यवसाय चलाती है।

लघु कम्पनी (Small Company)

कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 2 (85) के अनुसार लघु कम्पनी का आशय एक सार्वजनिक कम्पनी के अतिरिक्त किसी एक ऐसी कम्पनी से है :

(अ) जिसकी प्रदत्त अंश पूँजी ₹ 50 लाख अथवा निर्धारित ऐसी ऊँची राशि जो कि ₹ 5 करोड़ से अधिक नहीं होगी, से अधिक न हो; अथवा

(ब) विगत लाभ-हानि खाते के अनुसार जिसकी बिक्री ₹ 2 करोड़ अथवा निर्धारित ऐसी ऊँची राशि जोकि ₹ 20 करोड़ से अधिक नहीं होगी, से अधिक नहीं है।

इस धारा की व्यवस्थाएँ किसी सूत्रधारी कम्पनी, सहायक कम्पनी, धारा 8 के अन्तर्गत पंजीकत कम्पनी अथवा किसी भी विशिष्ट अधिनियम द्वारा प्रशासित कम्पनी पर लागू नहीं होंगी।

 

वैधानिक कम्पनियाँ (Statutory Companies)

एक कम्पनी जिसकी रचना किसी विशेष विधान जैसे लोकसभा के विशेष अधिनियम द्वारा की गई हो. वैधानिक कम्पनी कहलाती है; उदाहरण के लिये भारतीय रिजर्व बैंक, भारतीय जीवन बीमा निगम आदि।

पुण्यार्थ उद्देश्य वाली कम्पनियाँ (Companies with Charitable Objects)

एक व्यक्ति या व्यक्तियों के संघ को केन्द्रीय सरकार द्वारा पूण्यार्थ उद्देश्यों के लिये सीमित दायित्व वाली कम्पनी के रूप में अनुमति दी जा सकती है –

(i) यदि इसके उद्देश्यों में वाणिज्य, कला, विज्ञान, खेलकूद, शिक्षा, शोध, सामाजिक कल्याण, धर्म, पुण्य, पर्यावरण सुरक्षा अथवा ऐसे कोई अन्य उद्देश्य हैं;

(ii) इसका इरादा अपने लाभों और अन्य आय को इसके उद्देश्यों के अभिवर्द्धन में प्रयोग में लाने का है: और

(iii) यह अपने सदस्यों को कोई भी लाभांश के भुगतान पर प्रतिबन्ध लगाती है।

इन कम्पनियों के नाम के अन्त में लिमिटेड या प्राइवेट लिमिटेड लगाना आवश्यक नहीं है।

अंश पूँजी के प्रकार (Kinds of Share Capital) :

कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 43 में निम्नलिखित दो प्रकार की अंश पूँजी का उल्लेख किया गया है

(1) समता अंश पूँजी (Equity Share Capital) : (i) मताधिकार सहित अथवा (ii) लाभांश, मताधिकार या अन्य मामलों में भिन्नात्मक अधिकार के साथ।

निगमित लेखा-विधि कम्पनी अधिनियम की धारा 43 (i) के अनुसार अंशों द्वारा सीमित किसी भी कम्पनी के संदर्भ में समता अंश पूँजी का आशय उस सभी अंश पूँजी से जो पूर्वाधिकार अंश पूँजी नहीं है। (2) पूर्वाधिकार अंश पूँजी (Preference Share Capital) : धारा 43 (ii) के अनुसार अंशों द्वारा सीमित किसी भी कम्पनी के संदर्भ में पूर्वाधिकार अंश पूँजी का आशय कम्पनी की निर्गमित अंश पूँजी के उस भाग से है जिसके पास निम्नलिखित के सम्बन्ध में पूर्वाधिकारी अधिकार है या होगा :

(अ) एक निश्चित राशि अथवा एक निश्चित प्रतिशत से आगणित राशि के लाभांश का भुगतान, जो कि आय-कर मुक्त हो सकता है अथवा आय-कर काटकर ; और

(ब) कम्पनी के समापन अथवा पूँजी के पुनर्भुगतान की दशा में प्रदत्त अथवा प्रदत्त हुई मानी गई अंश पूँजी की राशि का पुनर्भुगतान, चाहे कम्पनी के सीमानियम अथवा अन्तर्नियमों में किसी भी निश्चित प्रीमियम अथवा किसी भी निश्चित स्केल से प्रीमियम के भुगतान का पूर्वाधिकारी अधिकार निर्दिष्ट है अथवा नहीं।

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कम्पनी की अंश पूँजी (Share capital of a Company)

कम्पनी की पूँजी छोटे मूल्य की इकाइयों में विभक्त होती है। प्रत्येक इकाई को अंश कहते हैं। अंशों को जनता में बेचकर ही एक कम्पनी अपनी पूँजी इकट्ठा करती है। अंश लेने वाले व्यक्ति को कम्पनी का सदस्य या अंशधारी कहते हैं। अंशधारी ही किसी कम्पनी के वास्तविक स्वामी होते हैं। अतः कम्पनी के स्वामियों द्वारा इसमें विनियोजित धन ही अंश पूँजी कहलाता है।

अंश पूँजी की लेखांकन अभिव्यक्तियाँ (Accounting Expressions of Share Capital)

कम्पनी अधिनियम 2013 की अनुसूची III के अनुसार लेखांकन के उद्देश्यों से अंश पूँजी शब्द की विभिन्न अभिव्यक्तियाँ हैं जो नीचे दी गई हैं :

1 अधिकृत पूँजी (Authorised Capital) : यह वह राशि है जिससे कम्पनी की रजिस्ट्री हुई होती है। इसे पंजीकृत या नामीय पूँजी भी कहते हैं। इस राशि के आधार पर ही कम्पनी को रजिस्ट्री की फीस देनी होती है। यह राशि कम्पनी के पार्षद सीमानियम में लिखी होती है। यह वह राशि होती है जिससे अधिक कोई कम्पनी अपने अंश नहीं निर्गमित कर सकती है। यह राशि योग में नहीं सम्मिलित की जाती है। अतः चिट्ठे में इस राशि के नीचे एक लाइन खींच दी जाती है।

2 निर्गमित पूँजी (Issued Capital) : अधिकृत पूँजी के उस भाग का अंकित मूल्य जिसे निर्गमित करने के लिये जनता से आवेदन माँगे जाते हैं, निर्गमित पूँजी कहलाती है। यह अंश निर्गमन से प्राप्त हो सकने वाली राशि की सीमा अभिव्यक्त करती है। अधिकृत पूँजी की भांति इसे भी योग में नहीं सम्मिलित किया जाता है। अतः चिट्ठे में इस राशि के नीचे भी एक लाइन खींच दी जाती है।

3 प्रार्थित पूँजी (Subscribed Capital): जनता द्वारा नकद या किसी अन्य प्रतिफल में लिये अंशों का अंकित मूल्य प्रार्थित या अभिदत्त पूँजी कहलाता है। यदि जनता निर्गमित सभी अंशों को ले लेती है तो निर्गमित व प्रार्थित पूँजी एक समान होंगी। अंशों के हरण पर प्रार्थित पूँजी अपहरित अंशों से कम करके दिखलाई जायेगी।

4 याचित या माँगी गयी पूँजी (Called-up Capital) : अंशधारियों को आवंटित अंशों पर याचित राशि याचित पूँजी कहलाती

5 प्रदत्त या चुकता पूँजी (Paid-up Capital) : याचित पूँजी का वह भाग जो अंशधारियों ने भुगतान कर दिया है, प्रदत्त पूँजी कहलाता है। इसके लिये याचित पूँजी से अवशिष्ट याचनाओं की राशि, यदि कोई है, को घटाना होता है। पूँजी की यह राशि चिठे के समें सम्मिलित की जाती है। यहाँ यह ध्यान रहे कि कम्पनी अधिनियम की अनुसूची III के भाग | के अनुसार चिठे में अंश पँजी को अधिकत, निर्गमित व प्रार्थित पूंजी में वर्गीकृत करके दिखलाना ही पर्याप्त है।

नोट:

(i) नकद के अतिरिक्त किसी अन्य प्रतिफल में निर्गमित अंश अथवा बोनस अंशों को इस शीर्षक के अन्तर्गत पृथक से दिखलाना चाहिये।

(ii) जब निर्गमित अंश पूरी राशि माँग ली जाय तो कम्पनी की निर्गमित और प्रार्थित पूँजी को एक सम्मिलित शीर्षक में “Issued and Subscribed Capital” में भी दिखलाया जा सकता है।

6 संचित या सुरक्षित पूजी (Reserve Capital) : यह अयाचित पूजी का वह भाग है जिसे एक सीमित दायित्व वाली से अपने जीवनकाल में न मांगने का निश्चय कर लिया है। यह राशि कम्पनी के समापन पर ही माँगी जा सकती है। अयाचित दी में डालने के लिये कम्पनी को एक विशेष प्रस्ताव पास करना होता है। कुछ विशेष परिस्थितियों में न्यायालय के पुँजी को संचित पूँजी में डालने के लिये कम्पनी को एक विशेष प्रस्ताव पास क आटेपा पर इसे साधारण पूँजी में बदला जा सकता है।

कम्पनी अधिनियम 1956 की धारा 99 के अन्तर्गत ‘reserve capital’ शब्द के अन्तर्गत ‘reserve capital’ शब्द को अधिक उपयुक्त वाक्यांश “reserve liability of limited company” से प्रतिस्थापित किया था। किन्त ये दोनों शब्दावलियाँ कम्पनी अधिनियम 2013 में छोड़ दी गयी हैं।

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कम्पनी अधिनियम 2013 की अनुसूची III (Schedule III of Companies Act 2013)

कम्पनी अधिनियम 2013 की अनुसूची III के अनसार एक कम्पनी का चिद्रा केवल लम्बवत रूप में तैयार किया जाता है तथा अंश पूँजी को “अंशधारियों के कोष” (Shareholders’ Funds) शीर्षक के अन्तर्गत दिखलाया जाता है जैसा कि नीचे दिया गया है।

अंश पूँजी के विवरण चिट्ठे के बाद ‘Notes to Accounts’ में दिये जाते हैं।

उदाहरण 1. एक कम्पनी 100 ₹ वाले अंशों में विभाजित 20,00,000 ₹ की पूँजी से पंजीकृत हुई। कम्पनी ने 12,000 अंश निर्गमित किये जिन पर 80 ₹ प्रति अंश याचित किया गया था। 1,000 अंशों पर 20 ₹ प्रति अंश की याचना के सिवाय सभी अंशधारियों ने याचित राशि का भुगतान कर दिया। इसके अतिरिक्त कम्पनी ने 3,000 पूर्ण चुकता अंश मशीनरी के बदले में विक्रेता को निर्गमित किये। कम्पनी के चिठे में आप इस सूचना को कैसे दिखलाओगे ?

A company was registered with a capital of ₹ 20,00,000, divided into shares of ₹100 each. The company issued 12,000 shares, on which 80 per share had been called up. All shareholders paid the amount with the exception of a cell of 20 on 1,000  shares besides the company issued 3,000 shares as fully Paid to the ventor in exchange of machinery. How will you show this information in the Balance Sheet of the Company ?

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अंशों के प्रकार (Classes of Shares)

कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 2(84) के अनुसार, “एक कम्पनी की अंश पूँजी में एक भाग ही अंश कहलाता है और इसमें स्कन्ध (Stock) सम्मिलित होता है।” ‘स्कन्ध’ शब्द का आशय एक बंडल में पूर्ण दत्त अंशों के एक सैट से होता है। इस प्रकार स्कन्ध एक कोष के रूप में पूँजी है जो कि किसी भी इच्छुक राशि में विभाजित किया जा सकता है।

कम्पनी अधिनियम 2013 में अंशों के प्रकार नहीं बताये गये हैं किन्तु इसे कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 43 से जाना जा सकता है जिसमें दो प्रकार की अंश पूँजी का उल्लेख किया गया है – पूर्वाधिकार अंश पूँजी और समता अंश पूँजी। इस प्रकार अंशों द्वारा सीमित कम्पनी दो प्रकार के अंश निर्गमित कर सकती है – (1) पूर्वाधिकार अंश और (2) समता अंश। कम्पनी अधिनियम 1956 के पारित होने के पश्चात आस्थगित अंशों (Deferred Shares) का निर्गमन बंद कर दिया गया है।

(1) पूर्वाधिकार या अधिमान अंश (Preference Shares)

ये वे अंश होते हैं जिन्हें निम्न दोनों प्रकार के पूर्वाधिकार प्राप्त होते हैं :

(i) समता अंशों पर लाभांश दिये जाने से पूर्व इस अंश के मुख पर उल्लिखित एक निश्चित दर से अथवा एक निश्चित राशि का लाभांश प्राप्त करने का अधिकार; ।

(ii) कम्पनी के समापन पर समता अंश पूँजी से पूर्व पूँजी की वापसी का अधिकार।

पूर्वाधिकार अंशों के प्रकार (Types of Preference Shares)

(I) संचयी तथा असंचयी पूर्वाधिकार अंश (Cumulative and Non-Cumulative Preference Shares) : संचयी पशिकार अंश वे हैं जिन पर एक स्थिर दर से दिये जाने वाला लाभांश यदि किसी वर्ष न दिया जा सके तो इस प्रकार बकाया। Prior को आगे वर्षों के लाभों से समता अंशधारियों को लाभांश भुगतान से पूर्व चुकाना आवश्यक होता है। जब तक कम्पनी के। अन्तर्नियमों में अन्यथा न कहा गया हो, एक पूर्वाधिकार अंश संचयी ही माना जायेगा। संचयी पूर्वाधिकार अंशों पर बकाया लाभांश की राशि चिटे के पश्चात् Notes to Accounts में ‘Contingent Liabilities’ शीर्षक के अन्तर्गत दर्शाया जाता है।

असंचयी पर्वाधिकार अंश वे हैं जिन पर अवशिष्ट लाभांश संचित (accumulate) नहीं होता। अतः यदि किसी वर्ष लाभांश नहीं दिया जाता है तो इन अंशधारियों को अगले वर्ष के लाभों से गत वर्षों के अवशिष्ट लाभांश को प्राप्त करने का अधिकार नहीं होता

(ii) शोध्य तथा अशोध्य पूर्वाधिकार अंश (Redeemable and Irredeemable Preference Shares) : शोध्य पूर्वाधिकार शर्ते हैं जिनका धन निर्गमन की शर्तों के अनुसार एक निश्चित अवधि के पश्चात् इनके धारकों को लौटा दिया जायेगा।

अशोध्य पूर्वाधिकार अंश व होते हैं ।जिनका धन कम्पनी के समापन के अतिरिक्त अन्य किसी स्थिति में नहीं लौटाया जाता है। कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 55 के अनसार अंशों द्वारा सीमित कोई कम्पनी अशोध्य अथवा 20 के अनुसार अंशों द्वारा सीमित कोई कम्पनी अशोध्य अथवा 20 वर्ष से अधिक अवधि में शोध्य पर्वाधिकार अंश नहीं निर्गमित कर सकती। किन्त ढाँचागत परियोजनाओं (infra-structure projects) पारियोजनाओं (infra-structure projects) के लिये 30 वर्ष तक की अवाधक पूर्वाधिकार अश निगमित किये जा सकते हैं। किन्त 20 वर्ष बीत जाने पर कम्पनी को प्रति वर्ष एस अशा का कमत 10% शोधन करना होगा।

(iii) परिवर्तनीय तथा अपरिवर्तनीय अंश (Convertible and Non-Convertible Preference shares पूर्वाधिकार अंश वे होते हैं जिनके धारकों को इन्हें एक निश्चित अवधि के अन्तर्गत अथवा एक निश्चित तिथि के बाद इनके निगेमन अंशों मे पारिवर्तन कराने का अधिकार होता है। जिन अंशों पर ऐसा अधिकार नहीं होता, वे अपरिवर्तनीय पूर्वाधिकार अश कहलात है। जब तक स्पष्टतया अन्यथा नहीं बतलाया गया हो, एक पूर्वाधिकार अंश अपरिवर्तनीय माना जायेगा।

(iv) भागयुक्त तथा अभागयुक्त पूर्वाधिकार अंश (Participating and Non-Participating Preference Shares) : भागयुक्त पूर्वाधिकार अंश वे होते हैं जिन्हें एक निश्चित दर से लाभांश प्राप्त करने के अतिरिक्त (1) एक निर्धारित दर से समता लाभाश देने के पश्चात् बचे अतिरिक्त लाभ (यदि कोई है) में और/अथवा (2) कम्पनी के समापन पर समस्त पूँजी के लौटाने के पश्चात बची अतिरिक्त सम्पत्तियों में समता अंशधारियों के साथ पर्व-निर्धारित अनुपात में हिस्सा पाने का अधिकार होता है। जिन अंशों पर यह अधिकार प्राप्त नहीं होता वे अभागयक्त पूर्वाधिकार अंश कहलाते हैं। जब तक स्पष्ट रूप से अन्यथा नहीं बतलाया गया हो, एक पूर्वाधिकार अंश अभागयुक्त माना जायेगा।

(2) समता या साधारण अंश (Equity or ordinary Shares)

कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 43(1) के अनुसार एक समता अंश वह अंश है जो कि पूर्वाधिकार अंश नहीं है। दूसरे शब्दों में, जिन अंशों पर लाभांश भुगतान या पूँजी वापसी का पूर्वाधिकार नहीं होता, वे समता अंश कहलाते हैं। पूर्वाधिकार अंशों पर लाभांश देने के पश्चात् समता अंशों पर संचालक मण्डल द्वारा तय की गई दर से लाभांश दिया जाता है। एक समता अंश के साथ ही मताधिकार रहता है। समता अंश दो प्रकार के होते हैं – –

(अ) अंशों द्वारा सीमित एक कम्पनी द्वारा जनता को अथवा अपने सदस्यों को धारा 43 के अन्तर्गत निर्गमित समता अंश ।

(ब) स्वैट समता अंश

Corporate Accounting Issue Forfeitur

स्वैट समता अंश (Sweat Equity Shares) : कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 2 (88) के अनुसार स्वैट समता अंशों का | आशय ऐसे समता अंशों से होता है जो एक कम्पनी द्वारा अपने संचालकों अथवा कर्मचारियों को कटौती पर अथवा नकदी के अतिरिक्त अन्य प्रतिफल के लिये अपना तकनीकी ज्ञान प्रदान करने अथवा बौद्धिक सम्पदा अधिकारों की प्रकति में अधिकारों अथवा मूल्य वृद्धियों, जिस नाम से भी जानी जाती हों, को अपलब्ध कराने के लिये निर्गमित किये जाते हैं।

स्वैट समता अंशों के निर्गमन की शर्ते (Conditions for Issue of Sweat Equity Shares)

कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 54 द्वारा निर्धारित निम्नलिखित शर्तों के पूरा करने पर ही ऐसे अंश निर्गमित किये जा सकते हैं :

(अ) निर्गम कम्पनी द्वारा पारित एक विशेष प्रस्ताव द्वारा अधिकृत हो ;

(ब) प्रस्ताव में अंशों की संख्या, चालू बाजार मूल्य, भुगतान किया जा रहा प्रतिफल, यदि कोई है और संचालकों अथवा कर्मचारियों के वर्ग जिन्हें ऐसे समता अंश निर्गमित किये जाने हैं, निर्दिष्ट होने चाहिये:

(स) ऐसे निर्गम की तिथि पर कम्पनी द्वारा अपना व्यवसाय प्रारम्भ की गई तिथि से एक वर्ष से कम समय न बीता हो, और

(द)जहाँ कम्पनी के समता अशं मान्यताप्राप्त स्कन्ध विपणि पर सूचीबद्ध हैं, स्वैट समता अंश सेबी द्वारा इसके सम्बन्ध में बनाये गये विनियमों के अनुरूप निर्गमित किये जाने चाहिये और यदि ये अंश सूचीबद्ध नहीं हैं तो स्वैट समता अंश सेबी द्वारा इसके लिये निर्धारित ऐसे नियमों के अनुरूप निर्गमित किये जाने चाहिये।

(3) आस्थगित अंश (Deferred Shares) : यह एक ऐसा अंश होता है जिस पर लाभांश समता अंशों पर किसी निर्धारित अधिकतम दर से लाभांश देने के पश्चात् ही दिया जा सकता है। ये कम मूल्य के अंश होते हैं किन्तु इन्हें कम्पनी के आधिक्य लाभों में बड़ा हिस्सा पाने का अधिकार होता है। इस प्रकार के अंश कम्पनी के प्रवर्तकों को दिये जाते हैं। कम्पनी अधिनियम 1956 के लाग | होने के पश्चात् स्वतंत्र निजी कम्पनियों के अतिरिक्त किसी अन्य कम्पनी को इस प्रकार के अंश निर्गमन का अधिकार नहीं है।

अंशों का निर्गमन (Issue of Shares)

एक कम्पनी अपने अंशों को (i) नकद के लिये और (ii) नकद के अतिरिक्त किसी अन्य प्रतिफल के लिये निर्गमित कर सकती हैं ।

नकद के लिये अंशों का निर्गमन (Issue of Shares for Cash)

नकद के लिये अंश मित्रों, रिश्तेदारों, महत्वपूर्ण वित्तीय संगठनों और जनता को निर्गमित किये जा सकते हैं। एक निजी कम्पनी अपने अंश सामान्यतया अनौपचारिक रूप से संचालकों और सम्भावी अंशधारियों के बीच व्यक्तिगत सम्पर्क द्वारा निर्गमित करती है। ऐसी कम्पनियों द्वारा कोई नोटिस या सर्कुलर नहीं जारी किया जाता है। कम्पनी और अंशधारियों के बीच एक अनबन्ध किया जाता है, प्रतिफल कम्पनी को दिया जाता है, अंशधारियों को अंश प्रमाणपत्र दिये जाते हैं और इन्हें कम्पनी की पुस्तकों में रिकार्ड किया जाता है। अंश आबंटन के बाद 30 दिन के अन्तर्गत आबंटन की प्रत्याय फाइल करके रजिस्ट्रार ऑफ कम्पनीज को सूचित कर दिया जाता

एक सार्वजनिक कम्पनी के लिये पूँजी की एक वृहत् राशि की आवश्यकता होती है, अतः ऐसी कम्पनियों के लिये अपनी अंश पूँजी के लिये सार्वजनिक निर्गम आवश्यक हो जाता है। एक सार्वजनिक सीमित दायित्व वाली कम्पनी द्वारा जनता में अपने अंश निर्गमित करने के लिये निम्न प्रक्रिया अपनानी होती है :

(1) गमन (Issue of Prospectus) : सर्वप्रथम कम्पनी एक प्रविवरण निर्गमित करती है जिसमें सामान्य जनता से कम्पनी के अंशों के आवेदन के लिये निमंत्रण दिया जाता है। कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 26(1) में इसकी विषय-वस्तु के विवरणों का उल्लेख किया जाता है जिन्हें प्रविवरण में अवश्य सम्मिलित किया जाना चाहिये। प्रविवरण में अन्य वैधानिक बातों के अतिरिक्त निर्गम के लिये प्रस्तावित अंशों की संख्या और प्रकार, निर्गम की शर्ते, न्यूनतम अभिदान, अभिदान प्रारम्भ व बंद की तिथि और भुगतान का तरीका दिया जाता है। प्रविवरण की प्रमुख बातों से जनता को पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो व टेलीविजन आदि में विज्ञापन के माध्यम से अवगत कराया जाता है।

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(2) आवेदन पत्रों की प्राप्ति (Receipt of Applications): कम्पनी के अंशधारी बनने के इच्छुक व्यक्ति निर्धारित आवेदन पत्र सही प्रकार भरकर आवेदन राशि सहित निर्देशित अनुसूचित बैंक में जमा करते हैं।

कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 39(2) के अनुसार आवेदन राशि अंश के नामीय मूल्य के 5% अथवा सेबी द्वारा इस में बनाये गये विनियमों में प्रतिशत या राशि से कम नहीं हो सकती। सेबी के 6-3-1995 के दिशानिर्देशों के अनुसार यह अंश के निर्गम मूल्य (Issue Price) के 25% से कम नहीं हो सकती है। इन दिशानिर्देशों के अनुसार यदि आवेदन और आबंटन पर 250 करोड़ रुपये से अधिक की राशि उगाही गयी है तो आवेदन/आबंटन और विभिन्न याचनाओं पर निर्गम की कुल राशि के 25% से अधिक राशि नहीं याचित की जा सकती है। इससे स्पष्ट है कि 250 करोड़ रुपये से कम के निर्गम के निर्गतकर्ता को निर्गम की सम्पूर्ण राशि आवेदन पर ही माँगी जाने की छूट है। 500 करोड़ रुपये के कम के निर्गमों की दशा में कम्पनी को आबंटन की तिथि के 12 माह के अन्तर्गत सभी याचनायें याचित कर लेनी चाहिये। 500 करोड़ रुपये से अधिक के निर्गमों की दशा में इसके लिये वित्तीय संस्थाओं की सहमति आवश्यक है।

अभिदान सूची बंद होने (जो कि अभिदान सूची खुलने के बाद 3 कार्य दिवस से कम नहीं हो सकती तथा अभिदान सूची प्रविवरण के प्रथम प्रकाशन की तिथि के पश्चात् पांचवें दिन के प्रारम्भ से पूर्व खुली नहीं मानी जा सकती) के पश्चात् बैंकर समस्त आवेदनपत्रों को आवेदन राशि सहित कम्पनी के पास भेज देते हैं। कम्पनी इन आवेदनों का लेखा ‘आवेदन और आबंटन पुस्तक’ में करती है।

न्यनतम अभिदान (Minimum Subscription) : कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 40(3) के अनसार अंशों के आवेदकों से प्राप्त धनराशि तब तक किसी अनुसूचित बैंक में जमा रहेगी जब तक कि कम्पनी व्यापार प्रारम्भ का प्रमाणपत्र प्राप्त न कर ले अथवा यदि यह प्रमाणपत्र पहले से प्राप्त कर रखा है तो जब तक कि आवेदन पर प्रविवरण में उल्लिखित न्यूनतम अभिदान (जोकि अंश निर्गम का 90% होता है) की राशि प्राप्त न हो जाये। इस धारा के प्रावधानों के परिपालन में चूक करने पर (i) कम्पनी पर अर्थदण्ड लगेगा जोकि 5 लाख रुपये से कम नहीं होगा और जो 50 लाख रुपये तक बढ़ाया जा सकता है। (ii) चूक के लिए उत्तरदायी कम्पनी के प्रत्येक अफसर को एक वर्ष तक का कारावास और कम से कम 50,000 ₹ का जुर्माना जो बढ़ाकर 3.00,000 ₹ तक किया जा सकता है अथवा दोनों।

कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 39 (3) के अनुसार यदि प्रविवरण निर्गम की तिथि से अभिदान सची खलने के 30 दिन के अन्तर्गत अथवा सेबी द्वारा निर्धारित अन्य किसी अवधि के अन्तर्गत, जनता और अभिगोपकों दोनों को मिलाकर न्यनतम अभिदान न पाप्त किया जा सके तो कम्पनी को अगले 10 दिनों के अन्तर्गत समस्त आवेदन राशि आवेदकों को बिना किसी ब्याज के वापस कर देनी चाहिये। ऐसा न किये जाने पर कम्पनी और उसके दोषी अफसर प्रत्येक चूक के लिये चूक की अवधि का 1.000₹ प्रति दिन के हिसाब से अथवा 1,00,000 ₹, जो भी कम हो, अर्थदण्ड के लिये दायी होंगे। (धारा 3950

(3) अंशों का आबंटन (Allotment of Shares): कम्पनी आधानयम 2013 की धारा 39 और 40 की शतों को परा करने के पश्चात संचालक मण्डल की सभा बुलाई जाती है और उसमें आबटन के आधार तय किये जाते हैं। यदि अभिदान कम्पनी द्वारा अंशों का मगमन, हरण एव पुननिर्गमन अंशों के लिये दिये आफर से कम रहता है किन्त यह न्यनतम अभिदान के बराबर या उससे अधिक है तो संचालक सामान्यतया समा आवेदकों को आवेदित अंशों का आबंटन कर देते हैं किन्त यदि अभिदान कम्पनी के आफर से आधक हता स्टॉक एक्सचेन्ज के अधिकारियों की राय से आबंटन का आधार तय करके विभिन्न आवेदकों को अशा का आबंदन किन्तु यदि अभिदान कम्पनी के आफर से अधिक है तो संचालक मण्डल सम्बन्धित आबटन का कार्य पूरा हो जाने के पश्चात कम्पनी प्रत्येक आवंटकी को एक पत्र भेजती है जिसे ‘आबंटन का पत्र’ (Letter of Allotment) कहते हैं। इस पत्र में उन्हें आबंटित अंशों की संख्या तथा एक निश्चित तिथि तक आबंटन राशि के भुगतान करने के लिये कहा जाता है। कम्पनी द्वारा आवंटकी को आबंटन का पत्र भेजते ही एक आवेदक कम्पनी का अशधारा बन जाता है। आवेदकों को एक भी अंश आवंटित नहीं किया जाता उन्हें एक ‘खेद पत्र’ (Letter of Regret) उनके द्वारा आद राशि के साथ भेज दिया जाता है।

(4) अंशों पर याचनायें (Calls on Shares): अंश की कुल राशि एक मुश्त आवेदन पर देय हो सकती है अथवा किश्तों में दय हो सकती है। यदि राशि किश्तों में ली जाती है तो आवेदन पर देय राशि आवेदन राशि कहलाती है, आबंटन पर देय राशि आबंटन राशि और बकाया याचना राशि कहलाती है। यदि आबंटन के पश्चात अवशेष एक से अधिक किश्तों पर लिया जाता है तो किश्तों को प्रथम याचना, द्वितीय याचना, तृतीय याचना तथा अन्त में देय किश्त को अन्तिम याचना कहते हैं। तालिका F (Table F) के अनुसार याचनाओं के सम्बन्ध में निम्नांकित प्रतिबन्ध हैं :

(i) याचना की राशि अंश के अंकित मूल्य के 25% से अधिक नहीं होनी चाहिये;

(ii) दो याचनाओं के बीच कम से कम एक माह का अन्तर होना चाहिये;

(iii) याचना की राशि के भुगतान के लिये अंशधारी को कम से कम 14 दिन का समय दिया जाना चाहिये।

याचनाओं का लेखा ‘अंश याचना पुस्तक’ में किया जाता है।

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अंशों के निर्गमन सम्बन्धी प्रविष्टियाँ (Accounting Entries)

उदाहरण 2 रिलाइंस कम्पनी लि0 का सम्मेलन 10 रु वाले 20,000 अंशों में विभाजित 20,00,000 रु का अधिक्रत पूँजी से हुआ है  कम्पनी ने जनता में 12,000 अंश निर्गमित जिन पर 25 रु प्रति अंश आवेदन पर 20 रु प्रति अंश आबंटना 30 रु प्रति अंश प्रथम याचना पर तथा शेष अन्तिम याचना पर देय था।

यह मानते हुए कि सभी धन समय पर प्राप्त हो गया, जर्नल के लेखे करो।

Reliance Company Ltd. has been incorporated with an authorised capital of 20,00,000 divided into 20,000 shares of 100 each. The company issued 12,000 shares to the public payable 25 per share on application, 20 per share on allotment, * 30 per share on first call and the balance on final call.

Give journal entries, assuming all the money was duly received

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आवेदन और आबंटन खाता (Application and Allotment Account) : चूँकि आवेदन और आबंटन दोनों मांगे अंश आबंटन की तिथि पर ही जाती है, अतः कुछ लेखापाल आवेदन खाता और आबंटन खाता पृथक-पृथक न बनाकर दाना का लख ही खाते (Application and Allotment Account) में करते हैं। यदि यह विधि अपनायी जाती है तो उदाहरण 2 में आवेदन आर। आबंटन के लिये निम्नलिखित जर्नल प्रविष्टियाँ की जायेंगी.

रोकड़ बही तैयार करना (Preparation of Cash Book)- यदि रोकड बही तैयार की जाती है तो अंश निर्गमन पर रोकड़ लेनदेन के लेखे रोकड़ बही में ही किये जायेंगे। जर्नल में केवल गैर-रोकड लेनदेनों का ही लेखा किया जायेगा। उदाहरण 2 में यदि रोकड़ बही बनवाई गई है तो इसका हल निम्नांकित होगा :

दो प्रकार के अंशों का निर्गमन (Issue of two classes of shares)

यदि पर्वाधिकार और समता दोनों प्रकार के अंशों का एक साथ निर्गमन किया जाता है तो आवेदन, आबंटन और याचनाओं के अभिलेखन के लिये पथक-पृथक पूर्वाधिकार और समता अंश खाते खोले जाते हैं। इसी प्रकार अंश पूँजी खाता भी ‘पर्वाधिकार अंश पूँजी खाता’ और ‘समता अंश पूँजी खाता’ दो भागों में बाँट दिया जाता है।

उदाहरण 3 1 जनवरी 2015 को कलकत्ता टैक्सटाइल्स लि० समामेलित हुई। कम्पनी की अधिकृत पूँजी 5.00.00.000 ₹ थी जो कि 10 ₹ वाले 3000.000 समता अंशों और 100 ₹ वाले 2,00,000 12% पूर्वाधिकार अंशों में विभक्त थी। कम्पनी ने 12.00,000 समता अंश और आधे पूर्वाधिकार अंश निर्गमित किये जो कि निम्न प्रकार देय थे.

समता अंश – आवेदन पर 3 ₹, आबटन पर 3 ₹, प्रथम याचना पर 2₹ और अन्तिम याचना पर । पर्वाधिकार अंश – आवेदन पर 30 ₹, आबटन पर 30२, प्रथम याचना पर 20 ₹ और अन्तिम याचना पर

ये सभी अंश अभिदत्त हुए। यह मानते हुए कि सभी धन समय पर प्राप्त हो गया, रोकड़ बही और जर्नल तैयार करो।

Calcutta Textiles Ltd. was incorporated on January 1, 2015. The authorised capital of the company was * 5,00,00,000 divided into 30,00,000 equity shares of 10 each and 2,00,000 12% preference shares of 100 each. The company issued 12,00,000 equity shares and half of the preference shares payable as follows: Equity Shares – 3 on application, *3 on allotment, 2 on first call and 2 on final call. Preference Shares – 30 on application, 30 on allotment, 20 on first call and 20 on final call.

All these shares were subscribed. Prepare Cash Book and Journal assuming that all money was duly received

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अंश निर्गमन की शर्ते (Terms of Issue of Shares)

एक कम्पनी के अंश निम्नांकित तीन शर्तों में से किसी भी शर्त पर निर्गमित किये जा सकते हैं :

(1) अंशों का सम मूल्य पर निर्गमन (Issue of  Shares at Par ) जब आवेदक द्धारा देय कुल राशि अंश के अंकित मूल्य के बराबर हो तो इसे अंशों का सम-मूल्य पर निर्गमन कहते हैं। इस स्थिति में की जाने वाली लेखा प्रविष्टियाँ उदाहरण 2 और 3 में बतलाई जा चुकी हैं।

(2) अंशों का प्रीमियम पर निर्गमन (Issue of Shares at Premium): जब आवेदक द्वारा देय कल राशि अंश के अंकित मूल्य से अधिक हो तो इसे अंशों का प्रीमियम पर निर्गमन कहते हैं। अंश के निर्गम मूल्य का उसके अंकित मूल्य पर आधिक्य प्रीमियम होता है । उदाहरण के लिए यदि 10 ₹ अंकित मूल्य के अंश 15 ₹ प्रति अंश की दर से निर्गमित किये जाते हैं तो यह अंशों का प्रीमियम पर निर्गमन कहलायेगा तथा यहाँ 15 ₹- 10 ₹ = 5 ₹ प्रति अंश प्रीमियम हा कक अन्तर्गत अनुमत कम्पनियाँ ही अपने अंश प्रीमियम पर निर्गमित कर सकती हैं। अंश प्रीमियम की राशि का निर्धारण निर्गतको कम्पनी के स्व विवेक पर निर्भर करता है।

कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 52(1) के अनुसार प्रीमियम की राशि को एक पृथक खाते ‘Securities Premium Account’ में क्रेडिट किया जायेगा। ‘प्रतिभूति प्रीमियम खाते’ में हस्तान्तरित राशि को चिट्टे के “Equity and Liabilities” भाग में “Reserves and Surplus” उप-शीर्षक के अन्तर्गत ‘Notes to Accounts’ में दर्शाया जाता है। इस राशि का प्रयोग कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 52(2) के अनुसार ही किया जा सकता है। इसका किसी अन्य उद्देश्य के लिये प्रयोग अंश पूंजी की कटौती माना जायेगा।

धारा 52(2) के अनुसार ‘प्रतिभूति प्रीमियम खाते’ की राशि केवल निम्नलिखित कार्य के लिये ही प्रयोग की जा सकती है :

1 कम्पनी के अनिर्गमित अंशों के अंशधारियों को पूर्णदत्त बोनस अंश निर्गमित करने के लिये।

2. प्रारम्भिक व्ययों (Preliminary Expenses) के अपलेखन के लिये।

3. कम्पनी के अंशों अथवा ऋणपत्रों के निर्गमन के व्यय, उन पर दिये गये (अभिगोपन) कमीशन अथवा दी गई छूट के अपलेखन के लिये।

4. पूर्वाधिकार अंशों अथवा ऋणपत्रों के शोधन पर देय कमीशन की व्यवस्था करने के लिये।

5. कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 68 के अनुसार एक कम्पनी प्रतिभूति प्रीमियम खाते से अपने ही अंश या अन्य निर्दिष्ट प्रतिभूतियाँ क्रय कर सकती है।

लेखा प्रविष्टियाँ (Accounting Entries) : एक कम्पनी किसी भी किश्त के साथ प्रीमियम वसूल कर सकती है किन्तु किसी अन्य सूचना के अभाव में इसे आबंटन के साथ देय माना जाता है। अतः अंश पूँजी की राशि के साथ ही प्रीमियम की राशि को भी ‘अंश आबंटन खाते’ में डेबिट किया जाता है। उदाहरण के लिये यदि 100 ₹ वाला अंश 20 ₹ प्रति अंश प्रीमियम पर निर्गमित किया जाता है तथा आबंटन पर प्रीमियम सहित 45 ₹ देय हैं तो निम्न लेखा प्रविष्टि की जायेगी :

Share Allotment Account        Dr.                45

To Share Capital Account                                                 25

To Securities Premium Account                                    20

‘प्रतिभूति प्रीमियम खाता’ की राशि कम्पनी के चिठे में दायित्व पक्ष की ओर Shareholders’ Funds के उप-शीर्षक ‘संचय और आधिक्य’ (Reserve and Surplus) शीर्षक के अन्तर्गत Notes to Accounts में दिखलाते हैं।

जब आबंटन राशि प्राप्त होती है तो निम्न प्रविष्टि पारित की जायेगी :

Bank Account                                        Dr

To Share Allotment Account

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उदाहरण 4. दीनारपुर पेपर मिल्स लि० ने 100 ₹ वाले 25,000 समता अंश निर्गमित किये जिन पर आवेदन पर 20 ₹, आबंटन पर (10 ₹ प्रीमियम सहित) 30 ₹ और याचना पर 60 ₹ देय थे। सभी अंशों के लिये आवेदन प्राप्त हए तथा आवंटित किये गये। सभी धन प्राप्त हुआ। कम्पनी की पुस्तकों में जर्नल की प्रविष्टयाँ कीजिये।

Dinarpur Paper Mills Ltd. issued 25,000 Equity shares of 100 each, payable as to * 20 on application, ₹30 on allotment (including ₹10 premium) and ₹ 60 on call. All shares were applied for and allotted. All money was received. Make journal entries in the books of the company

(3) अंशों का कटौती या बटूटे पर निर्गमन (Issue of Shares at Discount) : यदि आवेदक द्वारा देय कुल राशि अंश के अंकित मूल्य से कम है तो यह अंशों का कटौती पर निर्गमन कहलाता है तथा अंश के अंकित मूल्य का आवेदकों द्वारा देय कुल राशि पर आधिक्य कटौती होगा। उदाहरण के लिये यदि 10 ₹ वाले अंश को 9 ₹पर निर्गमित किया जाता है तो 10-9=1 ₹कटौती होगा। कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 53 ने स्वैट समता अंशों के अतिरिक्त अंशों के कटौती पर निर्गम को प्रतिबन्धित कर दिया है। एक कम्पनी द्वारा अंशों का कटौती पर निर्गमन व्यर्थ माना जायेगा।

धारा 53(3) के अनुसार जहाँ कोई कम्पनी इस धारा के प्रावधानों का उल्लंघन करती है तो कम्पनी पर न्यूनतम 1 लाख रूपये से अधिकतम 5 लाख रुपये तक जुर्माना लगाया जा सकता है और कम्पनी के प्रत्येक दोषी अधिकारी को 6 माह तक की कारावास की सजा अथवा 1 लाख से 5 लाख रुपये तक का जुर्माना अथवा दोनों दिये जा सकते हैं।

अंशों के निर्गमन पर बट्टा एक पूँजीगत हानि है और इसे “Discount on Issue of Shares Account” नाम के एक पृथक | खाते में डेबिट किया जाता है। जब तक यह खाता अपलिखित नहीं कर दिया जाता है, इसे चिठे के सम्पत्ति पक्ष में “Other Current Asssets” उप-शीर्षक के अन्तर्गत Notes to Accounts में पृथक से दिखलायेंगे। इसे दायित्व पक्ष में Reserves and Surplus से समायोजित करके भी दिखलाया जा सकता है।

लेखा-प्रविष्टियाँ (Accounting Entries) : अंशों पर बट्टा का लेखा सामान्यतया अंशों के आबंटन के समय ही किया जाता है। ‘अंश आबंटन खाता’ शुद्ध देय राशि से डेबिट किया जाता है, दिया गया बट्टा ‘अंश निर्गमन पर बट्टा खाता’ में डेबिट किया जाता है तथा दोनों खातों की कुल राशि से ‘अंश पूँजी खाता’ क्रेडित किया जाता है। उदाहरण के लिये यदि 100 ₹ वाला एक अंश 90 ₹पर निर्गमित किया जाता है जिसमें से 25 ₹ आबंटन पर देय है तो आबंटन की तिथि पर निम्नलिखित प्रविष्टि की जायेगी :

Share Allotment Account                                 Dr.                  25

Discount on Issue of Shares Account           Dr.                 10

To Share Capital Account                                                                           35

आबंटन की राशि प्राप्त होने पर निम्न प्रविष्टि की जायेगी :

Bank Account                                                         Dr.                25

To Share Allotment Account                                                                    25

यदि संचालकों और कर्मचारियों को स्वैट समता अंश कटौती पर निर्गमित किये जाते हैं तो निम्नलिखित लेखा-प्रविष्टि पारित की जायेगी:

Bank Account                                                    Dr. (with the amount of cash received)

Discount on Issue of Shares Account     Dr. (with the amount of discount)

To Equity Share Capital Account (Sweat Equity Account)

यदि स्वैट समता अंश किसी तकनीकी ज्ञान (technical know-how) या बौद्धिक सम्पदा अधिकार (intellectual property rights) के लिये कटौती पर निर्गमित किये जाते हैं तो निम्नलिखित लेखा-प्रविष्टि पारित की जायेगी।

Technical Know-how or Intellectual Property Rights Account          Dr.

To Equity Share Capital Account (Sweat Equity Account)

यहाँ पर ध्यान रहे कि अंशों पर बट्टा कम्पनी की ‘याचित अंश पूँजी’ का भाग होता है किन्तु अंशों पर प्रीमियम याचित अंश । पूँजी का भाग नहीं होता है।

Note. Schedule III of Companies Act 2013 does not contain any specific disclosure requirement for the unamortaised penses. Hence, such expenses should be disclosed under the head ‘Other Current/Non-current Assets the period of their write off. Alternatively, such expenses may be set off against reserves and surplus in depending upon the period of their write off. Alter Fauity and Liabilities part.

दाहरण 5. एक सीमित दायित्व वाली कम्पनी आवश्यक वैधानिक औपचारिकताओं को पूरा करने के पश्चात् 100 ₹ वाले 1,00,000 समता अों का निर्गमन 12.5% बटटा पर स्वैट समता अंश की भाँति निर्गमित करता हो नाम के आपचारिकताओं को पूरा करने के पश्चात अपने कर्मचारियों को अभिलेखन के लिये आवश्यक जर्नल की प्रविष्टियाँ कीजिये।

A limited company, having complied with the necessary legal formalities, makes an issuelegal formalities, makes an issue of 1,00,000 2.0 per cent discount, as sweat equity shares to its employees. Make journal entry necessary to record these transactions.

अवशिष्ट याचनायें (Calls-in-Arrears)

जब कोई अंशधारी कम्पनी द्वारा माँगी गई किसी किश्त का निर्धारित अवधि में भुगतान नहीं करता तो इस प्रकार भुगतान न की गई मांग को अवशिष्ट या अदत्त याचना कहते हैं। इस समस्या के हल के लिये निम्नलिखित दो वैकल्पिक रीतियाँ हैं :

(अ) पृथक से एक खाता खोलना (Opening a Separate Account) : याचना की न चुकाई राशि से ‘अवशिष्ट याचना खाता’ (Calls-in-Arrears Account) डेबिट किया जाता है तथा सम्बन्धित याचना खाता क्रेडिट किया जाता है। इस रीति में आबंटन और अन्य याचना खाते कोई शेष नहीं दिखलायेंगे किन्तु अवशिष्ट याचना खाता डेबिट शेष दिखलायेगा जो कि विभिन्न किश्तों पर कुल न चुकाई राशि के योग के बराबर होगा। अवशिष्ट याचना खाता का शेष कम्पनी के चिट्टे के दायित्व पक्ष में याचित अंश पूँजी (Called up Share Capital) से घटा दिया जाता है। भविष्य में अवशिष्ट याचना की राशि के प्राप्त होने पर ‘बैंक खाता’ डेबिट तथा ‘अवशिष्ट याचना खाता’ क्रेडिट किया जायेगा।

(ब) पृथक से खाता न खोलना (Not Opening a Separate Account) : कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत अवशिष्ट याचना खाता खोलने की कोई व्यवस्था नहीं दी गई है। अतः अधिकतर कम्पनियाँ याचना खाते को वास्तविक प्राप्त राशि से क्रेडिट करती हैं और प्रत्येक याचना खाता उस याचना पर बकाया राशि के बराबर डेबिट शेष दर्शाता है। भविष्य में याचना राशि के प्राप्त होने पर बैंक खाता डेबिट तथा सम्बद्ध याचना खाता क्रेडिट किया जायेगा। वर्ष की समाप्ति पर विभिन्न याचना खातों का शेष या तो ‘अवशिष्ट याचना खाता’ में हस्तान्तरित कर सकते हैं अथवा चिठे में। दोनों ही स्थितियों में अवशिष्ट याचनाओं की कुल राशि याचित अंश पूँजी में से घटायी जायेगी।

अवशिष्ट याचना पर ब्याज (Interest on Calls-in-Arrear) : सामान्यतया कम्पनी के अन्तर्नियम संचालकों को अवशिष्ट याचना पर इसकी देय तिथि से भुगतान तिथि की अवधि का अन्तनियमों में निर्दिष्ट दर अथवा निर्गम की शतों में दी गई दर (दोनों में जो भी कम हो) से ब्याज वसूलने के लिये अधिकृत करते हैं किन्तु यदि अन्तर्नियम इस सम्बन्ध में मौन हैं तो कम्पनी अधिनियम 2013 की अनसची [ की तालिका F लागू होती है जिसमें संचालकों को अवशिष्ट याचना राशि पर अधिकतम 10% प्रतिवर्ष की दर से ब्याज वसलने का अधिकार दिया गया है। इसके साथ ही इसमें संचालकों को इस ब्याज को पूर्णतया या अंशतः छोड़ने का अधिकार भी दिया गया है। ब्याज के सम्बन्ध में लेखा-प्रविष्टियाँ निम्न प्रकार से की जाती हैं :

(i) ब्याज के प्राप्त होने पर :

Bank Account                              Dr.

To Interest on Calls-in-Arrear Account

(ii) यदि वर्ष की समाप्ति तक ब्याज प्राप्त न हो :

Outstanding Interest Account                  Dr.

To Interest on Calls-in-Arrear Account

नोट : यदि अवशिष्ट याचनाओं पर अदत्त ब्याज प्राप्त नहीं हुआ है तो इसे चिट्ठे में ‘Other Current Assets’ उप-शीर्षक के अन्तर्गत Notes to Acounts में दिखलाया जायेगा।

(iii) बाद में अदत्त ब्याज प्राप्त होने पर : Bank Account         Dr.

To Outstanding Interest Account

वर्ष की समाप्ति पर अवशिष्ट याचनाओं पर ब्याज खाता का शेष लाभ-हानि खाता में हस्तान्तरित कर दिया जाता है।

उदाहरण 6. वर्तमान स्टील्स लि ने 10 वाले 25,000 समता अंश निर्गमित कियें . जिन पर 3 रु प्रति प्रति अंश आबंटन पर, 2.50 प्रति अंश प्रथम याचना पर और शेष अन्तिम याचना पर देय है। सभी अंशों के लिये आवेदन प्राप्त हुए और अंश आवंटित किये गये। उचित प्रकार से याचनायें की गयीं। 1,000 अंशों के धारक एक अंशधारी ने दोनों याचनाओं की राशि नहीं भुगतान की और 200 अंश धारण किये हुए एक दूसरे अंशधारी ने अन्तिम याचना राशि नहीं भुगता | कम्पनी की पुस्तकों में जर्नल की प्रविष्टियाँ दीजिये और चिट्ठा तैयार करो।

Burdwan Steels Ltd. issued 25,000 equity shares of 10 each payable 3 per share on application, 2.50 per share on allotment, 2.50 per share on first call and the balance on final call. Application for all shares were received and shares were allotted. The calls were duly made. One shareholder holding 1,000 shares did not pay the two call moneys and another shareholder holding 200 shares did not pay the final call money.

Give journal entries in the books of the company and prepare the Balance Sheet.

याचना का अग्रिम में प्राप्त होना (Calls-in-Advance)

यदि कोई अंशधारी उसके द्वारा धारित अंशों पर याचित राशि से अधिक भुगतान कर दे तो कम्पनी द्वारा प्राप्त की गई यह अधिक राशि अग्रिम प्राप्त याचना कहलाती है। कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 50 के अनुसार अन्तर्नियमों द्वारा अधिकृत होने पर ही कोई कम्पनी अग्रिम याचना स्वीकार कर सकती है। इस प्रकार की राशि को निम्नलिखित प्रविष्टि द्वारा एक पृथक खाते ‘Call sign-Advance Account’ में क्रेडिट कर देना चाहिये :

Bank Account                                                              Dr.

To Calls-in-Advance Account

यहाँ पर ध्यान रहे कि अग्रिम प्राप्त याचना की राशि कम्पनी की अंश पूँजी में नहीं सम्मिलित की जाती है। कम्पनी अधिनियम | 2013 की धारा 50(2) के अनुसार याचना का अग्रिम भुगतान करने वाला अंशधारी इस धन के लिये न तो कोई मताधिकार प्राप्त करता है और न ही इस राशि पर लाभांश प्राप्ति का अधिकार। जब तक याचनायें नहीं की जाती हैं तब तक अंशधारियों पर वास्तव में कोई राशि देय नहीं है। अतः अग्रिम याचना पर प्राप्त राशि कम्पनी पर एक ऋण की तरह है। इस खाते के शेष को चिट्ठे के दायित्व पक्ष की ओर ‘Other Current Liabilities’ उप-शीर्षक के अन्तर्गत Notes to Accounts में एक पृथक मद के रूप में दिखलाया जाता है।

जब कभी आगे ये याचनायें की जाती हैं तो निम्नलिखित प्रविष्टि पारित करके उचित राशि अग्रिम प्राप्त याचना खाता से सम्बद्ध याचना खाता में हस्तान्तरित कर दी जाती है :

Calis-in-Advance Account                                 Dr.

To Relevant Call Account

अग्रिम प्राप्त याचना पर ब्याज (Interest on Calls-in-Advance) : सामान्यतया कम्पनी के अन्तर्नियमों में अग्रिम प्राप्त याचना की राशि पर ब्याज की दर निर्दिष्ट रहती है किन्तु यदि कम्पनी ने कम्पनी अधिनियम 2013 की अनुसूची I की सारणी F को अपनाया है तो कम्पनी इस प्रकार की अग्रिम प्राप्त राशि पर प्राप्ति की तिथि से याचना के माँगे जाने की तिथि तक का अधिकतम 12% प्रतिवर्ष की दर से ब्याज दे सकती है। वर्ष के अन्त में ब्याज की राशि कम्पनी के लाभों पर एक चार्ज होता है। अतः कम्पनी ने चाहे कोई लाभ न अर्जित किया हो. यह ब्याज दिया जायेगा।

लेखा-प्रविष्टियाँ (Accounting Entries):

1 यदि ब्याज का रोकडी भगतान कर दिया गया है :

Interest on Calls-in-Advance Account                    To

Bank Account

2. यदि ब्याज का भुगतान नहीं किया गया है :

Interest on Calls-in-Advance Account                  To

Sundry Shareholders Account

3. ब्याज की राशि के अपलेखन पर :

Profit & Loss Account                                                   To

Interest on Calls-in-Advance Account

नोट : अग्रिम याचना पर अदत्त ब्याज को चिट्टे में ‘Other Current Liabilities’ उप-शीषेक के अन्तर्गत Notes to Accounts में दिखलाया जाता है।

उदाहरण 7.1 जनवरी 2015 को एक्स लि० 10 ₹ वाले 10,000 समता अंशों का निर्गमन करती है जो कि निम्न प्रकार देय है :

आवेदन पर           2 रु

आबंटन पर           3 रु

प्रथम व अन्तिम माँग पर 6 ₹ (आबंटन के 3 माह बाद)

निर्गम पूर्ण प्रार्थित हुआ और अंश आवंटित किये गये। 20 अंश धारण किये एक अंशधारी ने आबंटन राशि के साथ प्रथम वा अन्तिम याचना का भुगतान कर दिया और एक दूसरे अंशधारी ने अपने 30 अंशों पर आबंटन राशि का भुगतान नहीं किया किन्तु उसने इसे प्रथम व अन्तिम याचना के साथ भुगतान कर दिया। संचालकों ने अवशिष्ट याचनाओं और अग्रिम याचनाओं पर तालिका – के प्रावधानों के अनुसार अधिकतम दर से क्रमशः ब्याज लेने और देने, जैसे भी स्थिति हो, का निश्चय किया। रोकड़ लेनदेनों सहित सभी लेनदेनों की जर्नल की प्रविष्टियाँ कीजिये।

On 1st January 2015,X Ltd. makes an issue of 10,000 equity shares of₹ 10 each payable as below :

On application         2

On allotment            3

On first and final call  ₹6 (Three month after allotment)

The issue was subscribed for in full and the shares were allotted. A shareholder holding 20 shares paid first and final call with allotment money and another shareholder did not pay allotment money on his 30 shares but which he paid with first and final call. Directors have decided to charge and allow interest, as the case may be, on calls-in-arrears and calls-in-advance respectively at the maximum rate according to the provisions of Table F. Journalise the transactions including cash transactions.

अंशों का न्यून अभिदान (Under Subscription of Shares)

यदि आवेदको द्वारा आवेदित अंशों की संख्या कम्पनी द्वारा निर्गम के लिये प्रस्तावित अंशों का सख्या स कम हता पर पूजा अल्प अभिदान कहलाता है। यदि अभिदान न्यूनतम अभिदान से अधिक है तो कम्पनी अंशों के आबंटन की कार्यवाही कर सकता है किन्तु सभी लेखे आवेदित अंश संख्या के आधार पर ही किये जायेंगे।

उदाहरण 8. जनवरी 1, 2015 को इण्डियन एक्सप्लोसिव्स लि० ने एक प्रविवरण निर्गमित किया जिसमें जनता को 10 ₹ वाले 2,00,000 अंशों के क्रय के लिये प्रस्ताव दिया। अंश निम्न प्रकार से देय थे :

आवेदन पर 3₹, आबंटन पर 2₹, प्रथम याचना पर 3₹ (1 जुन 2015) और द्वितीय याचना पर 2₹ (अक्टूबर 1, 2015)। 20 फरवरी तक 1,80,000 अंशों के लिये आवेदन प्राप्त हए और मार्च 1. 2015 को इन अंशों का आबंटन कर दिया गया। सभी आबंटन राशि और प्रथम याचना राशि क्रमशः अप्रैल 15 और जन 20 को प्राप्त हो गयीं। 31 दिसम्बर को लेखा-वर्ष की समाप्ति पर। यह पाया गया कि 1,000 अंशों पर द्वितीय याचना अदत्त थी।

इन लेनदेनों का जर्नल में लेखा करो।

On 1st January 2015, Indian Explosives Ltd. issued a prospectus offering 2.00,000 shares of 10 each | to the public. The shares were payable as follows : .

On application 3, allotment 2, first call 3 (June 1, 2015) and second call 2 (Oct. 1, 2015).

Applications for 1,80,000 shares were received upto February 20 and these shares were allotted on | March 1, 2015. All allotment money and first call money were received on April 15 and June 20 respectively. At the close of accounting year on Dec. 31, it was known that second call on 1,000 shares was in arrear.

Journalise these transactions

अंशों का अधिक अभिदान (Over-Subscription of Shares)

अच्छी कम्पनियों के निर्गमों का अधिकतर अधिक अभिदान रहता है। अधिक अभिदान का आशय उस स्थिति से है जिसमें आवेदकों से प्राप्त आवेदित अंशों की संख्या कम्पनी द्वारा विक्रय के लिये प्रस्तावित अंशों की संख्या से अधिक हो। चूंकि एक कम्पनी प्रविवरण में प्रस्तावित अंश संख्या से अधिक अंशों का आबंटन नहीं कर सकती है, अतः ऐसी स्थिति में संचालक मण्डल को अंशों के। आबंटन का आधार तय करना होगा। इस स्थिति में संचालक मण्डल के समक्ष निम्नांकित तीन विकल्प रहते हैं :

(i) दोषपूर्ण एवं फालतू आवेदनों को अस्वीकार कर देना (Rejecting defective and excess applications): संचालक | अतिरिक्त आवेदनों एवं तकनीकी रूप से दोषपूर्ण आवेदनों को अस्वीकर करते हुए इन पर प्राप्त आवेदन की पूरी राशि इनके | आवेदकों को वापस कर सकते हैं। इस स्थिति में आवेदन राशि की वापसी के लिये निम्नलिखित प्रविष्टि पारित की जायेगी :

Share Application Account                       Dr.

To Bank Account

(ii) आवेदनों को आंशिक रूप से स्वीकार करना (Accepting applications partially) : संचालक आवेदकों को अंशों का आबंटन आनुपातिक (Pro rata) या किसी अन्य आधार पर करते हुए उन्हें उनके द्वारा आवेदित अंशों से कम अंश दे सकते हैं। इस | स्थिति में अतिरिक्त आवेदन राशि या तो सम्बन्धित आवेदकों को लौटायी जा सकती है या इसे आवंटित अंशों पर देय आबंटन और

याचनाओं पर देय राशियों से समायोजित करने के लिये कम्पनी में ही रोका जा सकता है। अतिरिक्त आवेदन राशि के लौटाने पर निम्न प्रविष्टि की जायेगी :

Share Application Account                     Dr.

To Bank Account

अतिरिक्त आवेदन राशि के आबंटन पर समायोजन के लिये निम्न प्रविष्टि की जायेगी :

Share Application Account                             Dr.

To Share Allotment Account

यदि अतिरिक्त आवेदन राशि आबंटन पर देय राशि के साथ समायोजन के बाद भी बच जाती है तो या तो इसे आवेदकों को लौटा दिया जाता है और या, यदि कम्पनी के अन्तर्नियम अधिकृत करें तो इसे आगे की याचनाओं से समायोजित करने के लिये निम्न प्रविष्टि पारित करके ‘अग्रिम प्राप्त याचना खाते’ में हस्तान्तरित करके कम्पनी में ही रोक लिया जाता है :

Share Application Account                          Dr.

To Calls-in-Advance Account

भविष्य में, जब कभी अग्रिम में याचनाओं का धन किसी देय याचना को समायोजित किया जाता है तो निम्नलिखित प्रविष्टि की जाती है :

Calls-in – Advance Account

To Share Call Account (put the name of call)

यदि किसी आवेदक की अतिरेक आवेदन राशि उसको आवंटित अंशों पर देय सभी याचनाओं की राशि से अधिक है तो इस अतिरेक को आबंटन के समय ही लौटा दिया जाता है।

(iii) कुछ आवेदकों को पूर्ण आवंटन, कुछ को आंशिक आबंटन और शेष को कोई आबंटन नहीं

(Full allotment to some applicants, a partial allotment to others and no allotment to the rest) :

इस स्थिति में असफल आवेदकों की आवेदन राशि लौटा दी जाती है तथा आंशिक रूप से आवंटित अंशों पर अतिरेक धन को इन पर देय आबंटन और भावी याचनाओं की राशियों से समायोजित करने के लिये कम्पनी में ही रोक लिया जाता है।

उदाहरण 9. भाटिया लि० ने 10 ₹ वाले 10,000 अंशों के लिये जनता से आवेदन आमन्त्रित करते हुए एक प्रविवरण निर्गमित किया। अंशों पर 5 ₹ आवेदन पर, 4 ₹ आबंटन पर और 3 ₹ अन्तिम याचना पर देय था। 20,000 अंशों के लिये आवेदन प्राप्त हए। 2000 अंशों के आवेदन पूर्णतया अस्वीकार कर दिये गये, 3,000 अंशों के लिये आवेदन पूर्णतया स्वीकार किये गये और बकाया आवेदकों को आनुपातिक आबंटन किया गया।

यह मानते हुए कि एक आवेदक जिसे आनुपातिक आधार पर 70 अंश आवंटित किये थे, ने अन्तिम याचना राशि का भुगतान नहीं किया। जर्नल की प्रविष्टियाँ दीजिये।

Bhatia Ltd. issued a prospectus inviting applications from the public for 10,000 shares of₹ 10 each, pavable as to ₹ 5 on application, ₹4 on allotment and ₹ 3 on final call. Applications were received for 20,000 shares. Applications for 2,000 shares were totally rejected, applications for 3,000 shares were accepted in full and the remaining applicants were allotted pro-rata.

Journalise the above transactions.

उदाहरण 10. राहल कन्सट्रक्शन्स लि० ने 10 ₹ वाले 30.000 अंशों का निर्गमन किया जो कि 3₹आवेदन पर 5₹आबंटन पर और 2 ₹ याचना पर देय था। 93,200 अंशों के लिये आवेदन आये तथा इस भारी अति-अभिदान के कारण निम्न प्रकार आबंटन किया गया :

(i) 21.500 अंशों के आवेदकों (2,000 या अधिक के आवेदन वाले) ने 10,200 अंश प्राप्त किये।

(ii) 50.600 अंशों के आवेदकों (1,000 या अधिक किन्तु 2,000 अंशों से कम के आवेदन वाले) ने 12,600 अंश प्राप्त किये।

(iii) 21.100 अंशों के आवेदकों (1,000 से कम अंशों के आवेदन वाले) ने 7,200 अंश प्राप्त किये।

आवेदनों पर देय राशि को पूरा करने के पश्चात् प्राप्त रोकड़ का प्रयोग आबंटन और याचना धन के लिये किया गया तथा अवशेष राशि लौटा दी गई। आबंटन और याचना पर देय सभी धन वसूल कर लिये गये।

कम्पनी की पस्तकों में अंशों के निर्गमन से सम्बन्धित जर्नल की प्रविष्टियाँ दीजिये।

Rahul Constructions Ltd. made an issue of 30,000 shares of 10 each payable < 3 on application. 5 on allotment and 2 on call. 93,200 shares were applied for and owing to this heavy over-subscription allotments were made as follows:

(1) Applicants for 21,500 shares (in respect applications for 2,000 or more) received 10.200 shares.

उदाहरण 11. पाइनियर लि० जिसकी अधिकृत पूँजी 100 ₹ वाले 70,000 अंशों में विभक्त है और जिनमें से 50,000 अंश निर्गमित एवं पर्णदत्त हैं, ने शेष 20,000 अंशों के लिए सम-मूल्य पर जनता से प्रार्थना-पत्र आमन्त्रित किए। भुगतान इस प्रकार होना था –

प्रार्थना-पत्र पर 12.50 ₹; आवन्टन पर 12.50 ₹; प्रथम याचना पर 25 ₹ और शेष द्वितीय याचना पर।

प्रार्थना-पत्र अधिक आए और जिन प्रार्थियों को एक भी अंश नहीं दिया गया उन्हें 20,000 ₹वापस किए गए। आबंटन पर देय पूर्ण राशि प्राप्त हो गई परन्तु प्रथम याचना पर 240 अंशों के अंशधारी और द्वितीय याचना पर 400 अंशों के अंशधारी भुगतान करने में असमर्थ रहे।

निर्गमन का व्यय 40,000 ₹ था और इसे अंश निर्गमन व्यय खाते (Share Issue Expenses a/c) में डेबिट किया गया। इस खाते का पुराना शेष 76,000 ₹ था। निर्गमन से प्राप्त धन में से 8,00,000 ₹ एक दूसरी कम्पनी के 40,000 अंश क्रय करने में लगाया गया जिससे उस कम्पनी में आधिपत्य प्राप्त हो जाए।

उपयुक्त व्यवहारों से कम्पनी के यहाँ आवश्यक खाताबही के खाते तथा कैश बुक बनाओ और चिट्ठा तैयार करो।

Pioneer Ltd. whose authorised capital is divided into 70,000 shares of 100 each and 50,000 shares are issued and fully paid, invited applications for the remaining 20,000 shares al pal, Pay! as follows:

On application 12.50; on allotment 12.50: on first call * 25 and remaining on second and final call. Applications were received in excess and the applicants to whom no share was allotted were returned 20,000. All allotment money was received but shareholders of 240 shares failed to pay first call and of 400 shares failed to pay the second call.

Expenses of issue were 40,000. This was debited to share issue expenses account. The old balance in this account was 76,000. Out of the money received from the issue. * 8,00,000 were invested in the purchase of 40,000 shares of another company to have a controlling hand in that company.

From the above transactions, prepare necessary ledger accounts, Cash Book and Balance Sheet in the books of the company.

उदाहरण 12. नीलम कम्पनी लि० ने 10 ₹ प्रति अंश के 50,000 अंश निर्गमित किये जो निम्नांकित प्रकार से देय थे:

आवेदन पर 2 ₹, आबंटन पर 2.50 ₹, प्रथम माँग पर 3 ₹ और अन्तिम माँग पर 2.501 90,000 अंशों के लिये आवेदन प्राप्त हुए। 1 अगस्त 2014 को निम्नांकित आबंटन किया गया :

45,000 अंशों के आवेदकों को             सम्पूर्ण आबंटन

20,000 अंशों के आवेदकों को              25 प्रतिशत

शेष को                                कुछ नहीं

1 नवम्बर 2014 को प्रथम माँग की गई और 1 फरवरी 2015 को द्वितीय माँग की गई। निर्गम की शतों के अनुसार आवेदन पर प्राप्त अतिरिक्त धन को संचालक आबंटन तथा शेष माँग पर देय राशि के लिये रख सकते थे। एक अंशधारक ने, जिसको कि 5,000 अंश आवंटित थे, आबंटन पर पूरी धनराशि का भुगतान कर दिया। 1 फरवरी 2015 को 12 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से अग्रिम माँगों पर ब्याज का भुगतान कर दिया।

यह मानते हुए कि कम्पनी को पूरी देयराशि प्राप्त हो गई, जर्नल और रोकड़ बही की प्रविष्टियाँ दीजिये। अग्रिम माँग खाता भी तैयार कीजिये।

Neelam Co. Ltd. issued 50,000 shares of₹ 10 each payable as under :

2 on application, 2.50 on allotment, 3 on first call and *2.50 on final call. The subscriptions were received from the public for 90,000 shares. The allotment was made as follows on 1st Aug. 2014:

To applicants of 45,000 shares               Full

” ” ” 20,000 ”                               25%

” ” ” remaining”                              Nil

The first call was made on 1st November 2014 and the second call on 1st Feb. 2015. According to the terms of issue, the surplus application money could be kept by directors against money due on allotment and against subsequent calls. One shareholder to whom 5,000 shares were allotted paid on all full amount due on shares. On 1st Feb. 2015, interest on calls-in-advance was paid @ 12% per annum

Give entries in the Journal and Cash Book, assuming that all moneys were duly received company. Prepare Calls-in-Advance account also.

उदाहरण 13. जेड कम्पनी लि० ने जनता को 25 ₹ वाले 20.000 समता अंश अभिदान के लिये प्रस्तावित किये जो कि 57 आवेदन पर, 5₹ आबंटन पर तथा शेष प्रत्येक 7.50 ₹ की दो समान किश्तों में देय था। प्रत्येक किश्त आबंटन के पश्चात् 3 माह के मध्यान्तरों पर की गई। निर्गमन की एक शर्त यह थी कि आंशिक रूप से स्वीकृत आवेदनों की दशा में अतिरेक आवेदन धन को अग्रिम याचनायें माना जायेगा। कम्पनी के पार्षद अन्तर्नियमों में अग्रिम याचनाओं पर 12% प्रति वर्ष की दर से ब्याज देने की व्यवस्था है। इसमें अवशिष्ट याचनाओं पर 10% प्रतिवर्ष की दर से ब्याज वसलने का भी एक प्रावधान है।

कुल 53,000 अंशों के आवेदन आये। संचालक मण्डल ने 3,000 अंशों के आवेदनों को अस्वीकार कर दिया और बचे हए आवेदनों पर आनुपातिक आबंटन कर दिया। आबंटन की तिथि के एक माह बाद 200 अंशों के धारक एक अंशधारी ने 2,500₹ अग्रिम याचनाओं के रूप में भेजे। एक दूसरे अंशधारी ने उसके द्वारा धारित 800 अंशों पर द्वितीय व अन्तिम याचना 3 माह देरी से भुगतान में देरी के लिये ब्याज सहित भुगतान किया। अन्य सभी धन समय पर प्राप्त हुआ था।

रोकड़ बही और जर्नल की प्रविष्टियाँ कीजिये।

Zed Co. Ltd. offered to the public for subscription 20,000 equity shares of₹25 each, payable as to₹5 on application, ₹5 on allotment and the balance in two equal calls of₹7.50 each, payable after allotment at intervals of three months each. One of the terms of issue was that in case of partially accepted applications, the surplus application money would be treated as Calls-in-Advance. The Articles of Association of the company provided for payment of interest on calls-in-advance @ 12% per annum. Also, it contained a provision for charging of interest on calls-in-arrear @ 10% per annum.

Applications totalled 53,000 shares. The Board of Directors rejected applications for 3,000 shares and made pro rata allotment on the remaining applications. One month after the date of allotment, one shareholder holding 200 shares remitted 2,500 on calls-in-advance. Another shareholder paid second and final call on 800 shares held by him three months late along with interest for late payment. All other moneys were received in time. Show Cash Book and Journal entries.

नकद के अतिरिक्त अन्य प्रतिफल में अंशों का निर्गमन

(Issue of shares for consideration other than cash)

कम्पनी अधिनियम के अनुसार कम्पनी के चिट्ठे में नकद के अतिरिक्त अन्य प्रतिफल में निर्गमित अंशों को नकद में निर्गमित अंशों से पृथक दिखाना होगा। इस प्रकार का निर्गमन निम्न प्रकार का हो सकता है :

Corporate Accounting Issue Forfeiture

(A) विक्रेताओं को अंशों का निर्गमन (Issue of Shares to Vendors) : 5547711 54 Tot का भगतान विक्रेताओं को अपने पूर्णदत्त अंश निर्गमित करके कर सकती है। कम्पनी ये अंश सम-मूल्य पर निर्गमित कर सकती है अथवा प्रीमियम पर। कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 53 ने विक्रेताओं को अंशों के कटौती पर निर्गमन को प्रतिबन्धित का। है। इस स्थिति में लेखा-प्रविष्टियाँ निम्न प्रकार से की जायेंगी :

उदाहरण 14. ब्राइट लि० ने चटर्जी एण्ड ब्रदर्स का व्यवसाय 3,60,000 ₹ में क्रय किया जो कि 100 ₹ वाले पूर्णदत्त अंशों में देय था। ब्राइट लि० की पुस्तकों में क्या लेखे किये जायेंगे यदि यह निर्गमन : (i) सम-मूल्य पर और (ii) 20% प्रीमियम पर हो।

Bright Ltd. purchased the business of Chaterjee & Bros. for ₹3,60,000 payable in fully paid shares of * 100 each. What entries will be made in the books of Bright Ltd. if such issue is : (i) at par and (ii) at a premium of 20%.

उदाहरण 15. 10 ₹ वाले 50,000 समता अंशों की अधिकृत पूँजी वाली प्रीमियर आटोमोबाइल्स लि० ने 3,75,000 ₹ के सामान्य संचय के क्रेडिट शेष का 10 ₹ वाले 5₹ दत्त 25,000 समता अंशों की प्रार्थित पूँजी को पूर्णदत्त में परिवर्तन द्वारा और 2,50,000 ₹ के बोनस अंश निर्गमन द्वारा पूँजीकरण का निश्चय किया। जर्नल की प्रविष्टियाँ कीजिये।

Premier Automobiles Ltd. with authorised capital of 50,000 equity shares of ₹ 10 each decided to capitalise * 3,75,000 standing to the credit of General Reserve by converting the subscribed capital of 25,000 equity shares of₹ 10 each, ₹5 called into fully paid shares and also by issue of₹2,50,000 as bonus shares. Draft Journal entries.

अंशों का हरण (Forfeiture of Shares)

जब कोई अंशधारी अपने अंशों पर आबंटन या किसी याचना या उसके एक भाग के भुगतान के लिये निर्दिष्ट अन्तिम तिथि तक भुगतान करने में असफल रहता है तो कम्पनी दोषी अंशधारी के विरुद्ध अदालती कार्यवाही करके अवशिष्ट राशि की वसूली कर सकती है। किन्त एक कम्पनी के लिये यह विकल्प अधिक समय लगाने वाला तथा मँहगा होता है। अतः सामान्यतया कम्पनियाँ अवशिष्ट राशि की वसूली के लिये दावा करने के स्थान पर ऐसे अंशों का हरण करना पसंद करती हैं। अंशों के हरण का आशय अंशधारी द्वारा किसी याचना राशि का भुगतान न करने पर दंड स्वरूप उसकी सदस्यता बलात् समाप्त कर देने से है। इस सम्बन्ध में यह ध्यान रहे कि कम्पनी के संचालक अंशों के हरण की कार्यवाही तभी कर सकते हैं जबकि या तो कम्पनी के अन्तर्नियमों में उन्हें ऐसा करने का अधिकार दिया है अथवा कम्पनी ने तालिका F अपना ली है। किन्तु यदि कम्पनी के अन्तर्नियमों में इसकी कोई व्यवस्था नहीं है और इस सम्बन्ध में तालिका F के प्रयोग को प्रतिबन्धित कर दिया गया है तो कम्पनी के अंशों का हरण नहीं किया जा सकता है।

हरण की कार्यविधि (Procedure of Forfeiture): हरण को वैधानिक बनाने के लिये यह आवश्यक है कि संचालक अन्तर्नियमों और तालिका F में बतलायी गयी कार्यविधि (Procedure) का अनुपालन करें। इसकी सामान्य विधि यह है कि सर्वप्रथम कम्पनी सचिव संचालक मण्डल की सभा में अवशिष्ट याचना वाले अंशधारियों की एक सूची प्रस्तुत करता है। सभा में लिये गये निर्णय के आधार पर प्रत्येक दोषी अंशधारी को एक नोटिस दिया जाता है जिसमें उससे एक निर्धारित तिथि तक (जो कि नोटिस देने की तिथि से 14 दिन से पहले समाप्त नहीं होनी चाहिये) उसके अंशों पर बकाया याचना राशि निर्दिष्ट ब्याज सहित भुगतान करने के लिये कहा जाता है। इस नोटिस में यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि निर्दिष्ट अवधि के अन्तर्गत भुगतान न करने की स्थिति में उसके अंश हरण कर लिये जायेंगे। यदि दोषी अंशधारी इस नोटिस के अनुसार भुगतान नहीं करता है तो संचालक मण्डल अपनी सभा में ऐसे अंशों के हरण का प्रस्ताव पारित करता है जिसकी सूचना दोषी अंशधारी को भेज दी जाती है। इसके साथ ही कम्पनी एक सार्वजनिक घोषणा भी करती है जिसमें अपहरित अंशों का पूर्ण विवरण दिया जाता है।

अंशों के हरण का प्रभाव (Effect of Forfeiture of Shares) : हरण अंशधारी को अपहरित अंशों में उसके सभी अधिकार और हित से वंचित कर देता है। सदस्यों के रजिस्टर से उसका नाम हटा दिया जाता है और उसके द्वारा इन अंशों पर भुगतान की गई राशि कम्पनी द्वारा जब्त कर ली जाती है। यहाँ यह ध्यान रहे कि हरण के पश्चात् भी इन अंशधारियों का इन अंशों पर भुगतान न की गई याचनाओं के प्रति तब तक दायित्व बना रहता है जब तक कि ये अंश पूर्णदत्त नहीं हो जाते। इन अंशों के पुनर्निर्गमन से पहले दोषी अंशधारियों द्वारा प्रायश्चित फीस (remission fees) सहित कम्पनी को देय सभी राशि के भुगतान कर देने पर संचालकों को हरण की कार्यवाही को निरस्त करने का अधिकार होता है।

Corporate Accounting Issue Forfeiture

chetansati

Admin

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