BCom 2nd Year Corporate Environment Analysis Strategy Formulation Study Material Notes in hindi

//

BCom 2nd Year Corporate Environment Analysis Strategy Formulation Study Material Notes in Hindi

Table of Contents

BCom 2nd Year Corporate Environment Analysis Strategy Formulation Study Material Notes in Hindi:  Meaning and Definition of Corporate Planning  Characteristics of Corporate Planning Objectives of Corporate Planning Meaning and Definition of Business Environment  Components and Types of environment Need and Importance of Environment Analysis :

Analysis Strategy Formulation
Analysis Strategy Formulation

BCom 2nd Year Principles Business Management Objectives Study Material Notes in Hindi

नियमीय नियोजन वातावरणम विश्लेषण एवं निदान; व्यूह-रचना प्रतिपादन

(Corporate Planning; Environment Analysis and Diagnosis; Strategy Formulation]

यूरोपीयन देशों, जापान एवं अमेरिका आदि देशों में कम्पनियों द्वारा विगत चार दशकों से निगमीय नियोजन का अनुसरण किया जा रहा है। हमारे देश में पहले निगमीय नियोजन को कोई महत्व नहीं दिया जाता था, परन्तु वर्तमान समय में भारतीय कम्पनियाँ भी निगमीय नियोजन का अनुसरण कर रही हैं। देश के औद्योगिक विकास हेतु सरकार अनेक समयबद्ध कार्यक्रम निर्धारित करती है, जिन्हें सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के उद्योगों को एक निश्चित समय में पूरा करना आवश्यक होता है। वर्तमान बदली हुई परिस्थितियों में दिन-प्रतिदिन निगमीय नियोजन का महत्व बढ़ता जा रहा है

Corporate Environment Analysis Strategy

निगमीय नियोजन का अर्थ एवं परिभाषा

MEANING AND DEFINITION OF CORPORATE PLANNING)

सरल शब्दों में, निगमीय नियोजन से आशय ऐसी योजनाओं से है जो किसी कम्पनी के विकास एवं विस्तार के लिए स्वयं उद्योगपतियों अथवा उच्च प्रबन्ध द्वारा दीर्घकालीन रणनीति के

आधार पर बनाई जाती हैं। वस्तुत: निगमीय नियोजन दीर्घकालीन समयावधि का होता है। निगमीय नियोजन की मुख्य परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं

1 पीटर ड्रकर के अनुसार, “निगम नियोजन सर्वोत्तम सम्भव भावी ज्ञान के आधार पर क्रमबद्ध रूप में साहसिक निर्णय करने, उन निर्णयों को लागू करने के लिए आवश्यक प्रयासों को क्रमबद्ध रूप में संगठित करने तथा संगठित क्रमबद्ध फीडबैक द्वारा लक्ष्यों के विरुद्ध परिणामों को मापने की एक सतत् प्रक्रिया है।”

2. स्टेनर के अनुसार, “निगमीय नियोजन एक संगठन के मुख्य लक्ष्यों तथा उन नीतियों एवं व्यूह रचनाओं का निर्धारण करने की प्रक्रिया है जो उन लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु संसाधनों की प्राप्ति, उपयोग तथा निस्तारण को नियन्त्रित करती है।”2 |

3. एन्डरसन के अनुसार, “निगम नियोजन का आशय ऐसी अग्रोन्मुखी रणनीतिक योजनाओं के निर्माण से लगाया जाता है जो सम्पूर्ण व्यवसाय के लिए संचालक मण्डल द्वारा स्थापित निगमित-नीति संरचना के अन्तर्गत दीर्घकालीन, मध्यम कालीन तथा अल्पकालीन उद्देश्यों को परिभाषित करती हैं।

Corporate Environment Analysis Strategy

निगमीय नियोजन के लक्षण/विशषताए

(CHARACTERISTICS OF CORPORATE PLANNING)

1 व्यवस्थित प्रक्रिया-निगमीय नियोजन कम्पनी के दीर्घकालीन लक्ष्यों का प्राप्त हतु, संसाधनों की प्राप्ति, उपयोग तथा निस्तारण की व्यवस्थित प्रक्रिया है।

2. सतत् प्रक्रिया-बाह्य एवं आन्तरिक परिवर्तनों के अनुरूप निगमीय नियोजन में सुधार एव संशोधन का कार्य सदैव चलता रहता है।

3. विस्तृत कार्य-योजना-यह कम्पनी की मास्टर योजना होती है। समस्त कार्यात्मक योजनाएँ इसी से तैयार की जाती हैं।

4. दीर्घकालीन दृष्टि-निगमीय नियोजन दीर्घकालीन दृष्टि का अनुसरण करता है।

5. उच्च प्रबन्ध अथवा उद्योगपति द्वारा निर्माण निगमीय नियोजन का निर्माण स्वयं उद्योगपतियों द्वारा अथवा उच्च प्रबन्ध द्वारा किया जाता है। ।

6. दूरगामी प्रभावों एवं चुनौतियों का पूर्वानुमान-निगमीय नियोजन के अन्तर्गत दूरगामी प्रभावों एवं चुनौतियों का पूर्वानुमान करके कम्पनी की क्षमताओं एवं संसाधनों के प्रभावी उपयोग पर बल दिया जाता है।

7. रणनीतिक नियोजन एवं परिचालन नियोजन दोनों का समावेश—यह उपक्रम की रणनीतिक योजना को अल्पकालीन परिचालन योजनाओं से एकीकृत करती है। रणनीतिक नियोजन का लक्ष्य अपनी विलक्षण आन्तरिक क्षमताओं व बाह्य अवसरों का उपयोग करते हुए अपनी ‘प्रतियोगी शक्ति’ को मजबूत करना है, जबकि संचालकीय योजनाएँ; जैसे-उत्पादन योजना, विपणन योजना, वित्त योजना आदि रणनीतिक नियोजन को कार्यान्वित करने के लिए तैयार की जाती है ।

Corporate Environment Analysis Strategy

निगमीय नियोजन के प्राचल (Parameters of Corporate Planning)-निगमीय नियोजन के निर्माण में निम्नलिखित प्राचलों का प्रयोग किया जाता है

1 पर्याप्त विकास की सम्भावना वाले क्षेत्रों का निर्धारण।

2. वर्तमान समय में जिन क्षेत्रों में कार्य किया जा रहा है उनके विकास की सम्भावनाओं को निर्धारित करना।

3. तकनीकी ज्ञान के सहयोग वाले क्षेत्रों का निर्धारण।

4. संस्था के उज्जवल भविष्य के लिए किए जाने वाले कार्य अर्थात् पृथक्-पृथक विभागों के लिए पृथक्-पृथक् योजनाएँ बनाना।

निगमीय नियोजन के लाभ (Advantages of Corporate Planning)-निगमीय नियोजन के निम्नलिखित प्रमुख लाभ हैं

1 निगमीय नियोजन कम्पनी को एक दिशा एवं लक्ष्य-बोध प्रदान करता है।

2. निगमीय नियोजन दीर्घकालीन समस्याओं पर गहनता से ध्यान केन्द्रित करता है।

3. निगमीय नियोजन के माध्यम से जिस पर्यावरण में सम्बन्धित कम्पनी संचालित होगी, उक्त पर्यावरण की पूर्व जानकारी प्राप्त हो जाती है।

4. निगमीय नियोजन के द्वारा जोखिम व परिवर्तनों का प्रभावपूर्ण प्रबन्ध करके गम्भीर संकटों से बचा जा सकता है।

5.पूर्व निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति एवं अपने बचाव के लिए मोर्चाबन्दी करने में सहायता मिलती है।

6. बाह्य चुनौतियों, खतरों एव अनिश्चितताओं के विरुद्ध सुरक्षा प्राप्त की जा सकती है।

7.निगमीय नियोजन के द्वारा भौतिक एवं मानवीय संसाधनों का प्रभावी उपयोग सम्भव होता

8. संस्था के कार्य-कलापों की गति में वृद्धि होती है।

9. निगमीय नियोजन के माध्यम से कम्पनी की नीतियाँ अधिक अर्थपूर्ण बन जाती हैं एवं उचित प्रबन्धकीय नियन्त्रण सुनिश्चित हो जाता है।

Corporate Environment Analysis Strategy

निगमीय नियोजन के दोष व बाधाएँ

(OBSTACLES OF CORPORATE PLANNING)

1 बन्द कमरों में तैयार किया गया निगमीय नियोजन व्यावहारिक परिस्थितियों के अनुकूल नहीं होता।

2. तीव्र परिवर्तनों एवं गतिशील वातावरण के साथ निगमीय नियोजन को समायोजित करना। कठिन होता है।

3. बदलती हुई सरकारी नीतियाँ व कानून भी निगमीय नियोजन में बाधा उत्पन्न करते हैं।। 4. भावी प्रतिस्पर्धा का पूर्वानुमान कठिन होता है।

भारत में निगमीय योजनाओं का क्रियान्वयन हमारे देश में निगमीय योजनाओं को क्रियान्वित करने में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन समस्याओं को मुख्य रूप से दो। भागों में विभक्त किया जा सकता है-(1) योजना की कमियाँ, एवं (2) संस्था के बाहरी वातावरण में समय-समय पर होने वाले तीव्र परिवर्तन। इस सन्दर्भ में डी० एम० कोहली का यह कथन उल्लेखनीय है कि भारत में निगमीय योजनाएँ प्रथम तो इसलिए असफल होती हैं कि उन्हें आधुनिक विधियों से प्रारम्भ न किया जाकर परम्परागत विधियों से प्रारम्भ किया जाता है और दूसरे उनके उद्देश्य वास्तविकता से कहीं ऊँचे निर्धारित किए जाते हैं। दीर्घकालीन योजना तैयार करते समय इस बात का ध्यान नहीं रखा जाता कि अल्पकालीन योजनाएँ जो दीर्घकालीन योजनाओं का ही अंग हैं, किस प्रकार लागू की जा सकती हैं।

Corporate Environment Analysis Strategy

व्यावसायिक वातावरण/पर्यावरण का अर्थ एवं परिभाषा

(MEANING AND DEFINITION OF BUSINESS ENVIRONMENT)

व्यवसाय किसी रिक्तता (vacuum) में संचालित नहीं किया जाता, वरन् समाज के अन्तर्गत कार्यशील विभिन्न शक्तियों, दशाओं एवं तत्त्वों की अनुक्रिया (in response to) में किया जाता है। ये वातावरण की वास्तविकताएँ (environmental realities) व्यवसाय के संचालन एवं प्रगति को प्रभावित करती रहती हैं। अत: व्यावसायिक निर्णय-कर्ताओं को सदैव वातावरण के प्रभावों को स्वीकार करके अपनी योजनाएं बनानी चाहिएँ।

विलियम ग्लूक एवं जॉक के अनुसार, “पर्यावरण में फर्म के बाहर के घटक सम्मिलित किए जाते हैं, जो फर्म के लिए लगातार अवसर तथा खतरे उत्पन्न करते हैं। इनमें सामाजिक, आर्थिक, तकनीकी एवं राजनीतिक दशाएँ प्रमुख हैं।”।

रेनचे और सोहेल के अनुसार, “व्यावसायिक पर्यावरण में उन सभी तत्त्वों को शामिल किया जाता है जो परिवर्तनशील हैं तथा जो व्यवसाय को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं।”

रिचमैन एवं कोपेन के अनुसार, “वातावरण में दबाव एवं नियन्त्रण होते हैं जो अधिकांशतः वैयक्तिक फर्म एवं इसके प्रबन्धकों के नियन्त्रण के बाहर होते हैं।”

Corporate Environment Analysis Strategy

वातावरण के घटक एवं प्रकार

(COMPONENTS AND TYPES OF ENVIRONMENT)

व्यवसाय-परिवेश अत्यन्त विशाल एवं जटिल है। यह न केवल विभिन्न घटकों का जाल सूत्र है, बल्कि व्यावसायिक वातावरण प्रतिक्षण परिवर्तित भी होता रहता है। इसकी शक्तियाँ (forces), दशाएँ एवं प्रभाव निरन्तर गतिशील हैं। व्यावसायिक वातावरण को मुख्य रूप से दो भागों में बाँटा जा सकता है

(अ) आन्तरिक वातावरण (Internal Environment), एव

(ब) बाह्य वातावरण (External Environment)

(अ) व्यवसाय का आन्तरिक वातावरण (Internal Environment of Business) आन्तरिक वातावरण, व्यवसाय (संस्था) की ताकत (Strength) व कमजोरियों (Weaknesses) को प्रकट करते है। उदाहरण के लिए यदि संस्था के कर्मचारी कुशल व योग्य हैं तो ये कमचारा संस्था को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकते हैं। इसके विपरीत यदि वे सन्तुष्ट नहीं हैं तो उनका मनाबल कम होता है जिसका संगठन के निष्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। यद्यपि व्यवसाय का आन्तारका वातावरण नियन्त्रण योग्य होता है, परन्तु इसमें भी निरन्तर जटिलताएँ एवं बाधाएँ उत्पन्न होती रहता। है। इसलिए नियोजन करते समय व्यवसाय के आन्तरिक वातावरण की पहचान करना एवं इसे पूर्ण रूप से समझना आवश्यक है।

(ब) बाह्य वातावरण (External Environment)-बाह्य वातावरण से आशय बाहरी तत्त्वों ऐसे समह से है जो व्यवसाय की कार्यप्रणाली को सशक्त रूप से प्रभावित करता है। यह तत्व व्यवसाय के चारों ओर आस-पास पाये जाते हैं एवं व्यवसाय की क्रियाओं को प्रभावित करते हैं। बाह्य वातावरण व्यवसाय के अवसरों (Opportunities) एवं चुनौतियों (Threats) को प्रकट करता है, जिनका विश्लेषण करके प्रबन्धक विभिन्न रणनीतियों में से सर्वोत्तम रणनीति का चयन करता है। बाह्य वातावरण पर सगठन/उपक्रम का कोई नियन्त्रण नहीं होता है।

यद्यपि आन्तरिक एवं बाहरी तत्त्व दोनों व्यावसायिक वातावरण के हिस्से हैं, लेकिन यहाँ पर केवल बाहरी तत्त्वों का अध्ययन किया गया है, क्योंकि बाहरी तत्त्वों पर नियन्त्रण नहीं किया जा सकता एवं आन्तरिक तत्त्वों पर आसानी से नियन्त्रण किया जा सकता है।

बाह्य वातावरण के घटक (Components of External Environment)-बाह्य वातावरण से सम्बन्धित महत्वपूर्ण घटक निम्नलिखित हैं

Corporate Environment Analysis Strategy

1 आर्थिक वातावरण (Economic Environment)-जो क्रियायें धनोपार्जन के उद्देश्य से की जाती हैं, उनको आर्थिक क्रियायें कहा जाता है। इन आर्थिक क्रियाओं को प्रभावित करने वाले पर्यावरण को आर्थिक पर्यावरण/वातावरण कहते है।

स्टर्डीवेन्ट के अनुसार, “आर्थिक पर्यावरण से आशय सामान्यत: उन बाह्य शक्तियों से है जिनका किसी व्यवसाय पर प्रत्यक्ष आर्थिक प्रभाव होता है।’

व्यवसाय के आर्थिक पर्यावरण को प्रभावित करने वाले प्रमुख घटक निम्नलिखित हैं

(i) आर्थिक दशायें (Economic Conditions)-आर्थिक पर्यावरण पर किसी देश की आर्थिक दशाओं का बहुत प्रभाव पड़ता है। किसी देश की आर्थिक दशा कैसी है? इसी से उस देश के आर्थिक पर्यावरण का निर्धारण होता है। आर्थिक दशा यदि अच्छी है तो यह कहा जा सकता है कि आर्थिक पर्यावरण अच्छा है, इसके विपरीत यदि आर्थिक दशा दयनीय है तो यह कहा जायेगा कि उस दश में आर्थिक पर्यावरण खराब स्थिति में है। आर्थिक दशा के ये मापक हैं-राष्ट्रीय एवं प्रति व्यक्ति आय, रोजगार की स्थिति, आधारभूत सुविधाओं की उपलब्धि, देश के निवासियों का पावन स्तर, पूजी निर्माण की दर, व्यापार संतलन एवं भुगतान संतुलन की स्थिति, विदेशी ऋण भार, शा मुद्रा भण्डार, एवं विनिमय दर आदि। ये मापदण्ड यदि अनुकूल हैं तो उस देश में आर्थिक विकास के अनुकूल होगा। इसके विपरीत यदि ये मापदण्ड प्रतिकूल हैं तो आर्थिक बावरण भी विकास के प्रतिकूल होगा। व्यवसाय के लिए आर्थिक दशाओं का महत्त्व व्यावसायिक सम्भावनाओं व अवसरों की पूर्ति से जुड़ा हुआ है।

वसाय के लिए लोगों का उपभोग स्तर व प्रारूप, जीवन-स्तर तथा जन सामान्य की आर्थिक अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। व्यवसाय इनके आधार पर अपने विस्तार एवं विकास, की खोज, नये उत्पादों की शुरुआत, विज्ञापन रणनीति, व्यावसायिक उपक्रमों का करण, सौ-प्रतिशत निर्यात उपक्रमों की स्थापना, विभिन्न उत्पादों का सम्मिश्रण, नयी उत्पादक कल्पनाए, नये मॉडल आदि के बारे में योजनाएँ एवं कार्यक्रम तैयार करता है।

(ii) “आर्थिक नातियाँ (Economic Policies)-किसी भी देश के आर्थिक पर्यावरण पर उस दश की आर्थिक नीतियों का व्यापक एवं गहरा प्रभाव पड़ता है। आर्थिक नीतियों के माध्यम से सरकार आर्थिक विकास की गति एवं दिशा निर्धारित करती है। आर्थिक नीतियाँ विकास के अनुकूल होने से आर्थिक विकास तीव्र गति से होता है और नीतियाँ प्रतिकल होने से आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न होती है। आर्थिक नीतियों में मौद्रिक, प्रशल्क, औद्योगिक, कृषि, व्यापार, कामत एव राण आदि नीतियाँ सम्मिलित हैं।

मौद्रिक नीति किसी देश के आर्थिक पर्यावरण के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हा माद्रक नीति का निर्धारण देश के केन्द्रीय बैंक द्वारा किया जाता है। मद्रा संकचन या मुद्रा स्फाति पर माद्रिक नीति के माध्यम से ही नियन्त्रण लगाया जाता है। प्रशल्क नीति या राजकोषीय नाति के माध्यम स ही सरकारी आय-व्यय, ऋण एवं करारोपण आदि का निर्धारण किया जाता है। सरकार राजकोषीय नीति के माध्यम से आर्थिक पर्यावरण को प्रभावित करती है। औद्योगिक नीति के द्वारा सरकार औद्योगिक विकास की प्रकृति एवं दिशा को नियन्त्रित करती है। कृषि नीति कृषि क्षेत्र की गतिविधियों को नियन्त्रित करती है। जनसंख्या नीति आर्थिक पर्यावरण को प्रभावित करने वाली एक प्रमुख नीति है। भारत में जनसंख्या की विस्फोटक स्थिति एक बहुत बड़ी समस्या है। सरकार अपनी जनसंख्या नीति के माध्यम से संख्यात्मक प्रतिबन्ध लगाना चाहती है और गुणात्मक विकास करने का प्रयास करती है। रोजगार नीति के माध्यम से कोई भी राष्ट्र अपनी बेरोजगारी की समस्या का समाधान करना चाहता है।

यदि आर्थिक नीतियाँ सुदृढ़ एवं विकासोन्मुखी हों तो आर्थिक विकास को गति मिलती है। इसके विपरीत दोषपूर्ण आर्थिक नीतियाँ आर्थिक पर्यावरण को भी दूषित बना देती हैं।

Corporate Environment Analysis Strategy

(iii) आर्थिक प्रणाली (Economic System)-किसी भी देश के आर्थिक पर्यावरण पर उस देश की आर्थिक प्रणाली का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। विश्व में तीन प्रकार की आर्थिक प्रणालियाँ प्रचलन में है; जैसे-पूँजीवादी, समाजवादी एवं मिश्रित अर्थव्यवस्था। पूँजीवादी आर्थिक प्रणाली में पूँजी को ज्यादा महत्व दिया जाता है, सरकार का हस्तक्षेप न्यूनतम होता है तथा निजी क्षेत्र को आर्थिक क्रियाओं में अधिक स्वतन्त्रता होती है। अमेरिका, जापान, जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस आदि देशों ने पूँजीवादी प्रणाली द्वारा ही तीव्र गति से आर्थिक विकास किया है। समाजवादी/साम्यवादी अर्थव्यवस्था में उत्पादन, वितरण एवं विनिमय आदि पर सरकार का नियन्त्रण होता है। सभी को विकास का समान अवसर देना इसका उद्देश्य होता है। इस प्रणाली से मुख्य रूप से रूस, चीन आदि राष्ट्रों ने अपना विकास किया है। साम्यवादी प्रणाली सोवियत रूस के विखण्डन के पश्चात् समाप्त हो गयी है। वर्तमान में केवल चीन एवं क्यूबा इस प्रणाली को अपनाये हुए हैं।

मिश्रित अर्थव्यवस्था पूँजीवाद एवं साम्यवाद का एक उदार रूप है। भारत ने आजादी के पश्चात् इस प्रणाली को अपनाया। 1991 के पश्चात उदारीकरण की नीतियाँ अपनाने के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था का मिश्रित रूप भी बदलने लग गया है। वर्तमान में लगभग सभी राष्ट्र उदारीकृत आर्थिक नीतियों को अपना रहे हैं। आज विश्व अर्थव्यवस्था ने एक नया रूप ले लिया है। विश्व व्यापार संगठन के कारण अब कोई भी राष्ट्र अपनी स्वयं की नीतियाँ अपनाकर विकास के पथ पर आगे नहीं बढ़ सकता।

व्यवसाय की दृष्टि से किसी देश में पहुँच व प्रवेश के लिए तथा वहाँ के आर्थिक वातावरण को समझने के लिए उस देश में प्रचलित आर्थिक प्रणाली को जानना व समझना बहुत जरूरी है। किसी भी देश की आर्थिक प्रणाली उस देश की आर्थिक विचारधारा, आर्थिक संरचना तथा आर्थिक खुलेपन को प्रदर्शित करती है। इसके अध्ययन से व्यवसाय को यह समझने में आसानी हो जाती है। कि आखिर वह देश कहाँ खड़ा है, वह किस ओर है तथा उसका झुकाव किस तरफ है। इन बातों की जानकारी क्षेत्रीय एवं बहुराष्ट्रीय निगमित व्यूह-रचनाएँ तैयार करने में काफी उपयोगी रहती है।

2. राजनीतिक पर्यावरण (Political Environment)-देश का राजनैतिक व प्रशासनिक पर्यावरण भी व्यावसायिक इकाइयों को काफी प्रभावित करता है। राजनैतिक पर्यावरण में हम निम्नलिखित घटकों को शामिल कर सकते हैं

(i) देश में राजनैतिक स्थिरता;

(ii) देश में शान्ति तथा माझा

(iii) सरकार की आर्थिक नीतियाँ;

(iv) सरकार का राजनैतिक दृष्टिकोण

(v) अन्य राष्ट्रों के साथ सरकार का सम्बन्ध

(vi) केन्द्र व राज्य के मध्य सम्बन्ध

(vii) सरकार की कल्याणकारी क्रियाएँ

राजनीतिक निर्णय अनेक कारणों से प्रभावित व शासित होते हैं। इनमें विचारधाराएँ, चिन्तन, जन-कल्याण, जन सेवा, राजनीतिक दबाव, अन्तर्राष्ट्रीय प्रभाव व दबाव, स्वार्थ भावना, समूह विशेष का दबाव-जो सामाजिक व असामाजिक तत्त्वों के हो सकते हैं, राष्ट्रीय सुरक्षा, एकता तथा राष्ट्रहित आदि महत्वपूर्ण हैं।

राजनीतिक निर्णयों को व्यवसाय द्वारा एक व्यापक परिवेश में स्वीकार किया जाता है तथा इनके अनुसार अपनी कार्य विधि में समायोजन के प्रयास किये जाते हैं। कई बार ऐसे राजनीतिक निर्णय होते हैं जो व्यवसाय की अभिवृद्धि में सहायक होते हैं, लेकिन कई बार विपरीत प्रभाव डालने वाले राजनीतिक निर्णय भी होते हैं। कुछ ऐसे राजनीतिक निर्णय भी होते हैं जो व्यवसाय की पूरी दिशा ही बदल देते हैं।

अत: व्यवसाय के लिए राजनीतिक, शासकीय तथा प्रशासकीय वातावरण से परिचित होना तथा समयानुसार इस वातावरण से व्यावसायिक हितों की पूर्ति करना आवश्यक होता है।

3. वैधानिक वातावरण (Legal Environment)-किसी राष्ट्र में वैधानिक व्यवस्था एवं उसके घटक वैधानिक वातावरण का निर्माण करते हैं। वैधानिक वातावरण व्यवसाय को बहुत अधिक प्रभावित करता है। इसका कारण यह है कि यदि व्यवसायी एवं व्यवसाय से जुड़े अन्य पक्षकारों के हितों एवं अधिकारों की रक्षा के लिए समुचित वैधानिक व्यवस्था नहीं है, तो कोई भी व्यक्ति व्यवसाय करना नहीं चाहेगा। व्यवसाय के वैधानिक वातावरण का निर्माण करने वाले प्रमुख घटक निम्नलिखित हैं

(1) संवैधानिक प्रावधान-देश का संविधान व्यवसाय करने की स्वतन्त्रता प्रदान कर सकता है तथा कुछ व्यवसायों पर प्रतिबन्ध भी लगा सकता है। अत: संविधान के प्रावधान देश के व्यावसायिक वातावरण को प्रभावित करते हैं।

(ii) व्यापारिक सन्निमय-इनमें अनुबन्ध अधिनियम, वस्तु विक्रय, साझेदारी, कम्पनी बैंक, बीमा आदि से सम्बन्धित सन्निमय सम्मिलित हैं।

(iii) आर्थिक सन्नियम-इनमें एम० आर० टी० पी० अधिनियम (MRTP Act), फेमा (FEMA), सेबी अधिनियम (SEBI), प्रतिभूति (नियमन) अधिनियम, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, आवश्यक वस्तु अधिनियम, काला बाजार निरोधक अधिनियम, बाट एवं माप-तौल अधिनियम आदि प्रमुख हैं। ये सभी व्यावसायिक वातावरण को प्रभावित करते हैं।

(iv) औद्योगिक एवं श्रम सन्नियम-कारखाना अधिनियम, दुकान एवं संस्थान अधिनियम मजदूरी भुगतान अधिनियम, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, श्रमजीवी क्षतिपूर्ति अधिनियम, औद्योगिक विवाद अधिनियम, कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, भविष्य निधि अधिनियम, ग्रेच्युइटी (Gratuity) भुगतान अधिनियम, भविष्य निधि एवं विविध प्रावधान अधिनियम आदि से व्यवसाय का वातावरण निश्चित रूप से प्रभावित होता है।

(v) प्रदूषण नियन्त्रण अधिनियम-इसमें पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, जल प्रदूषण नियन्त्रण अधिनियम, वायु प्रदूषण नियन्त्रण अधिनियम आदि सम्मिलित किये जा सकते हैं।

(vi) आर्थिक नीतियाँ सरकार की आर्थिक नीतियाँ; जैसे-औद्योगिक नीति, मौद्रिक नीति । आयात-निर्यात नीति, राजकीय क्रय नीति, आर्थिक अनुदान नीति, सार्वजनिक वितरण नीति, श्रम। नाति, कृषि नीति आदि भी व्यावसायिक वातावरण को प्रभावित करती हैं।

(vii) कर नीति एवं व्यवस्था-इसमें प्रत्यक्ष एवं परोक्ष कर एवं उसकी दरें तथा इसमें व्याप्त शिष्टाचार या भ्रष्टाचार की स्थिति को सम्मिलित किया जा सकता है।

उपयुक्त सभी घटक समान रूप से वैधानिक वातावरण का निर्माण करते हैं। वैधानिक प्रावधानों के विरुद्ध कोई भी व्यावसायिक निर्णय नहीं लिया जा सकता। वास्तविकता यह ह कि व्यवसाय को वैधानिक वातावरण के अनुरूप ही कार्य करना पड़ता है।

Corporate Environment Analysis Strategy

4. सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण (Socio-cultural Environment)-व्यवसाय का। सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण समाज की प्रवृत्तियों, इच्छाओं, आकांक्षाओं, शिक्षा एवं बौद्धिक स्तर, मूल्य, विश्वास (beliefs), रीति-रिवाज एवं परम्पराओं आदि घटकों से निर्मित होता है।।

व्यवसाय की रणनीति निर्माण करते समय सामाजिक-सांस्कृतिक पर्यावरण का विश्लेषण करना आवश्यक होता है। रीति-रिवाजों, परम्पराओं, मान्यताओं, रुचियों तथा प्राथमिकताओं जैसे सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारकों की उपेक्षा करने के भयंकर दुष्परिणाम होते हैं और उसकी ऊँची लागत सहन करनी पड़ती है। लोगों की व्यय तथा उपभोग की आदतें, भाषा, विश्वास, शिक्षा तथा अन्य मान्यताएँ व्यवसाय पर व्यापक प्रभाव डालते हैं। अतः एक सफल व्यवसाय की रणनीति ऐसी हो जो इस सामाजिक-सांस्कृतिक पर्यावरण से मेल खाये। बाजार के पर्यावरण के अनुसार विपणन मिश्रण (Marketing Mix) की रचना करनी होगी।

5. जनांकिकीय पर्यावरण (Demographic Environment)-व्यावसायिक क्रियाओं द्वारा जनित सेवाएँ मनुष्यों के लिए ही लक्षित की जाती हैं। जनांकिकीय तत्त्वों में निम्नलिखित बातें शामिल

(i) जनसंख्या का आकार (Size of Population), वृद्धि दर (Growth Rate), आयु संरचना (Age-composition), लिग संरचना (Sex-composition);

(ii) परिवार का आकार (Family Size);

(iii) जनसंख्या का आर्थिक स्तरीकरण (Economic Stratification of Population);

(iv) शिक्षा का स्तर (Education Level);

(v) जाति, धर्म इत्यादि (Caste, Religion etc.)

उपरोक्त सभी जनांकिकीय तत्त्व व्यापार से सम्बन्धित हैं एवं सेवाओं तथा वस्तुओं की आपूर्ति को प्रभावित करते हैं। बढ़ती हुई जनसंख्या और आय के कारण बाजार में बहुत-सी वस्तुओं के लिए माँग भी बढ़ जाती है। ऊँची जनसंख्या वृद्धि दर से श्रम आपूर्ति में वृद्धि का भी पता लगता है। सस्ती श्रम शक्ति एवं विकसित होते बाजारों ने बहुत-सी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को विकासशील देशों में धन निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया है।

6. तकनीकी अथवा प्रौद्योगिक वातावरण (Technological Environment)-देश का तकनीकी एवं प्रौद्योगिकी विकास उत्पादन की प्रणालियों, नई वस्तुओं, नये बाजार, नये कच्चे माल के। स्रोत, नये यन्त्र व उपकरण, नयी सेवाओं आदि को प्रभावित करता है। तकनीकी प्रगति के कारण ही उद्योगों में क्रान्ति सम्भव हुई है। प्रौद्योगिकीय परिवर्तनों ने व्यवसाय की प्रणाली एवं ढाँचे को पूर्ण रूप से बदल दिया है। तेजी से होने वाले तकनीकी वातावरण के परिवर्तनों को व्यवसाय के द्वारा अच्छी तरह समझे जाने, इन्हें आवश्यकतानुसार अपनाने तथा व्यवसाय को बदलते परिवेश में गतिशील रखने की आवश्यकता है।

7. अन्तर्राष्ट्रीय पर्यावरण (International Environment)-उदारीकरण एवं वैश्वीकरण की नीतियों के कारण आज लगभग पूरा विश्व एक बाजार हो गया है। कुछ विशिष्ट प्रकार के व्यवसायों: जैसे-आयात-निर्यात गृहों, आयात-प्रतिस्पी उद्योगों, प्रतिस्थापन उद्योगों, कच्चे माल व कल पों का आयात करने वाले उद्योगों आदि के लिए अन्तराष्ट्रीय वातावरण को ध्यान में रखना अत्यन्त आवश्यक है। उदाहरण के लिए, निर्यात पर निर्भर रहने वाले उद्योगों के लिए विदेशी बाजार उत्पन्न मंदी अथवा विदेशी सरकारों की संरक्षणवादी नीतियों से कई समस्याएँ उत्पन्न हो जाती दसी प्रकार आयातों के उदारीकरण से उन उद्योगों को सहायता मिलती है जो बाहर से कच्चे माल व उपकरण का आयात करते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती हुई तेल का कीमतों (OID कारण कई व्यवसायों पर बुरा प्रभाव पड़ा है। इसलिए कहा जाता है कि एक राष्ट में उत्पन

व्यावसायिक संकटों की लहरें सरी अर्थव्यवस्थाओं को भी प्रभावित करती हैं निम्नालिखित अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की घटनाएँ व्यवसाय को प्रभावित करती हैं

(i) बहु-राष्ट्रीय कम्पनियों की व्यावसायिक क्रियाएँ।

(ii) अन्तर्राष्ट्रीय व्यावसायिक समझौते एवं सहयोग।

(iii) विदेशी व्यापार सम्बन्धी नियम एवं नीतियाँ।

(iv) राष्ट्रों के मध्य युद्ध कलह एवं टकराव की स्थिति।

(v) अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक दबाव, गुप्त समझौते आदि।

(vi) राष्ट्रों के मध्य तकनीकी, वित्तीय एवं प्रबन्धकीय सेवाओं का विनिमय।।

(vii) कच्चे माल, उपकरण, तकनीक एवं श्रम के आयात-निर्यात की स्थिति।

(viii) विभिन्न देशों की उत्पादन एवं विपणन व्यूह रचना।।

वातावरणीय विश्लेषण (Environmental Analysis)-वातावरणीय विश्लेषण से आशय ऐसी प्रक्रिया से है जिसके द्वारा कोई संगठन/उपक्रम अपने से सम्बन्धित वातावरण का अध्ययन अवसरों एवं चुनौतियों का पता लगाने के लिए करते हैं। वातावरणीय विश्लेषण के लिए वातावरण को आन्तरिक एवं बाह्य वातावरण में वर्गीकृत किया जा सकता है। इनकी विस्तृत विवेचना पीछे की जा चुकी है।

गुलिक के अनुसार, “वातावरणीय मूल्यांकन एवं विश्लेषण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यूहरचनात्मक नियोजक (Strategic planners) अपने उपक्रम के लिए अवसरों एवं चुनौतियों को निर्धारित करने हेतु आर्थिक, सामाजिक, राजकीय, पूर्तिकर्ता, प्रौद्योगिकी तथा बाजार दशाओं का मूल्यांकन (Monitoring) करते हैं।”

वातावरणीय विश्लेषण में वातावरणीय तत्त्वों/मुद्दों के प्रति प्रतिक्रिया, उपेक्षा या अनुमान का निर्णय सम्मिलित है।

कोटलर ने बाह्य वातावरणीय विश्लेषण को ‘अवसर एवं चुनौती विश्लेषण’ (Opportunity and Threats Analysis) की संज्ञा दी है। एक फर्म या निगम के लिए वातावरणीय विश्लेषण रडॉर’ की भाँति महत्वपूर्ण है जिसके द्वारा एक फर्म को खतरों एवं चुनौतियों की समय पर एवं सतत् जानकारी मिलती रहती है। इसी के अनुरूप वह अपनी व्यूहरचनाओं तथा उद्देश्यों का समायोजन कर सकती है।

वातावरणीय छानबीन एवं विश्लेषण प्रक्रिया की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1 वातावरणीय विश्लेषण एक व्यापक प्रक्रिया (Holistic exercise) है जिसमें समग्र रूप में वातावरण का अध्ययन एवं विश्लेषण सम्मिलित है, न कि कुछ वातावरणीय घटकों या उनकी प्रवृत्तियों का विश्लेषण।

2. यह एक सतत् जारी रहने वाली प्रक्रिया है, न कि यदा-कदा सूक्ष्म परीक्षण व्यवस्था (Intermittent scanning system) है। रडॉर की तरह वातावरण में हो रहे परिवर्तनों पर सतत नजर रखती है। आवधिक विश्लेषण (periodic analysis) वातावरणीय घटकों की पूर्ण एवं सही जानकारी प्रदान नहीं कर सकते हैं।

3. वातावरणीय विश्लेषण एक अन्तर्ज्ञानयुक्त एवं विदोहक प्रक्रिया (heuristic and exploratory process) है। जहाँ इसके द्वारा वर्तमान वातावरणीय दशाओं का ज्ञान होता है, वहीं इसके द्वारा भावी सम्भावनाओं एवं छुपे हुए अवसरों का ज्ञान होता है।

वातावरणीय विश्लेषण की आवश्यकता एवं महत्व

(NEED AND IMPORTANCE OF ENVIRONMENTAL ANALYSIS)

एक निगम प्रबन्ध या व्यवसायी के लिए वातावरण का सतत् अध्ययन एवं विश्लेषण आवश्यक होता है। बदलते हुए वातावरण का मूल्यांकन, पूर्वानुमान एवं उसके प्रभावों का निर्धारण करने के बाद ही व्यवसाय सफलतापूर्वक अपनी व्यूहरचनाओं, नीतियों एवं योजनाओं का निर्माण कर सकता है तथा ठोस व्यूहरचनात्मक निर्णय ले सकता है। अन्य शब्दों में वातावरण के समग्र घटकों का अध्ययन एवं विश्लेषण करके एक फर्म अपनी दीर्घकालीन व्यूहरचनाएँ एवं नीतियाँ तैयार कर सकता है। सफल व्यहरचना के लिए आर्थिक-सामाजिक दशाओं के दूरगामी प्रभावों तथा दुष्प्रभावा का पूर्व मूल्यांकन कर लेना आवश्यक होता है।

योजनाओं को व्यावहारिक एवं कार्यात्मक बनाने के लिए बदलते हुए व्यावसायिक परिवेश का मावा आकलन एवं विश्लेषण करना आवश्यक होता है। तकनीकी प्रगति, नये सामाजिक मूल्या सामुदायिक समस्याओं. विनियोग संरचना आदि का अध्ययन करके ही व्यवसाय को व्यूहरचना तथा क्रिया योजनाओं का निर्माण किया जा सकता है।

प्रतिस्पर्धात्मक वातावरण भी सम्पूर्ण परिवेश का एक अंग होता है। प्रतिस्पर्धियों की व्यूहरचनाओं के विरुद्ध सुदृढ़ उपायों का निर्माण करने तथा प्रति व्यूहरचनाओं (Counter strategy) को अपनाने के लिए वातावरण का अध्ययन एवं विश्लेषण आवश्यक होता है। प्रतिद्वन्द्वियों के उत्पादों, तकनीकों, लागत संरचना, बाजार व्यूहरचना, वितरण श्रृंखला तथा विक्रय विधियों का अध्ययन करके अपने उत्पादन की बिक्री सम्भावनाओं को स्थायी रखा जा सकता है।

नये उत्पाद, तकनीक, डिजाइन आदि की जानकारी के लिए टेक्नोलोजीकल एवं वैधानिक प्रगति की जानकारी रखना आवश्यक होता है, तभी व्यवसायी बाजार में अपना नेतृत्व रख सकता है। इतना ही नहीं, व्यवसाय में लाभ के अवसरों का उपयोग वातावरण के प्रति सजग रहकर ही किया जा सकता है। सरकारी नीतियों, विदेशी सहयोग, आर्थिक घटनाओं तथा सामाजिक परिवर्तनों के अन्तर्गत अनेक अवसरों का अनुकूलतम लाभ उठाया जा सकता है। साथ ही, भावी खतरों एवं चुनौतियों के प्रति सतर्क रहा जा सकता है।

वातावरणीय छानबीन एवं विश्लेषण में टेक्नोलोजीकल तथा बाजार दशाओं के अलावा सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक तथा अन्तर्राष्ट्रीय दशाओं का सूचना प्रोसेसिंग एवं पूर्वानुमान सम्मिलित है। यह निगम व्यूहरचनाकर्ताओं को योजनाओं एवं व्यूहरचनाओं के निर्माण में व्यापक सहायता प्रदान करता है, जबकि बाजार शोध एवं आर्थिक पूर्वानुमान सीमित रूप में सहायक होते हैं। यह विश्लेषण एवं छानबीन व्यूहरचनात्मक निर्णयकर्ताओं को भावी अवसरों के मद्देनजर उपलब्ध विकल्पों की मात्रा को सीमित करने तथा असंगत विकल्पों को हटाने में सहायता करता है। जॉन ए० पियर्स का मत है कि ‘सर्वोत्तम व्यूहरचना को सरलता से नहीं पहचाना जा सकता है, लेकिन वातावरणीय विश्लेषण के द्वारा अनावश्यक विकल्पों को काफी सीमा तक समाप्त किया जा सकता है तथा उपलब्ध सर्वोत्तम विकल्प का चयन किया जा सकता है। संक्षेप में, वातावरणीय विश्लेषण के महत्त्व को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है

(1) वातावरणीय विश्लेषण के द्वारा उद्योग के विकास के लिए विस्तृत योजना तथा दीर्घकालीन नीतियाँ बनाने में सहायता मिलती है।

(ii) वातावरणीय विश्लेषण के द्वारा तकनीकी आधुनिकीकरण के सम्बन्ध में कार्य-योजना विकसित करने में सहायता मिलती है।

(iii) वातावरणीय विश्लेषण के द्वारा प्रबन्धन को उद्योग की स्थिरता को प्रभावित करने वाले राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय, सामाजिक आर्थिक कारणों की जानकारी प्राप्त करने में सहायता मिलती है।

(iv) वातावरणीय विश्लेषण के द्वारा प्रबन्धन को प्रतिद्वन्द्वियों की योजनाओं का विश्लेषण करने तथा उनका सामना करने के लिए प्रभावशाली योजना बनाने में सहायता मिलती है।

(v) वातावरणीय विश्लेषण के माध्यम से उद्योगपति गतिशील तथा विकासशील बने रहते हैं।

वातावरणीय विश्लेषण हेतु सूचनाओं को एकत्रित करने एवं मूल्यांकन के तरीके

(METHODS FOR COLLECTING AND EVALUATION OF INFORMATION FOR ENVIRONMENTAL ANALYSIS)

विलियम गुलेक (William E. Glueck) ने वातावरण विश्लेषण हेतु वांछित सूचनाओं को एकत्रित करने एवं मूल्यांकन करने के लिए अनलिखित तरीकों का वर्णन किया है

(i) मौखिक व लिखित सूचनाएँ (Verbal and Written Information)-इसके अन्तर्गत व्यवसाय को प्रभावित करने वाले आंकड़ों को प्रकाशित साधनों; जैसे-समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ व सरकारी प्रकाशन आदि या अप्रकाशित साधनों से एकत्रित किया जाता है।

(ii) खोजना व ढूढना (Search and Scanning)—सूचनाओं के स्रोतों का पता लगाने के बाद आवश्यक सूचनाओं को उक्त स्रोतों से ढूँढना पड़ता है। सूचनाएँ तो कई स्रोतो सामल सकता लेकिन किसी सूचना को उचित समय पर उपलब्ध करवाना सबसे महत्वपूर्ण कार्य हा सगठन इस कार्य के लिए प्रबन्ध सूचना विभाग के नाम से एक अलग विभाग बनाते हैं जो निरन्तर सूचना एकत्रित करने, उसका विश्लेषण करने तथा समय अनुसार उसे उपलब्ध करवाने का काम करता रहता है।

(iii) जासूसी (Spying)-कुछ व्यावसायिक संगठन अपनी प्रतियोगी इकाइयों की रणनीति को शीघ्रता से जानने के लिए गुप्त रूप से सूचनाएँ एकत्रित करते हैं इसे जासूसी (Spying) कहा। जात है। यह कार्य अनैतिक होते हुए भी व्यवसाय में प्रचलित है और मख्यत: दसरे देशों का सुरक्षा कार्यक्रम व अन्तरिक्ष खोज के कार्यक्रमों को जानने के लिए प्रयोग में लाया जाता है।

(iv) पूर्वानुमान (Forecasting)-सूचनाओं को एकत्रित करने का एक अन्य महत्वपूर्ण तरीका पूर्वानुमान लगाना है। अनेक संस्थाएँ कम्पनी एवं उद्योग से सम्बन्धित भावी बातों के बारे में

औपचारिक पूर्वानुमान तैयार करती है। यह पूर्वानुमान कम्पनी को प्रभावित करने वाले किसी विशेष मुहे पर केन्द्रित हो सकता है या सामान्य बातों के सन्दर्भ में हो सकता है।

उद्योग जगत में प्रायः निम्नलिखित तीन प्रकार की औपचारिक पूर्वानुमान विधियों का प्रयोग विया जाता है

(1) गुणात्मक तकनीकें, (ii) ऐतिहासिक तुलना एवं अनुमान, (iii) आकस्मिक मॉडल्स। प्रथम तकनीक में भविष्य का बेहतर अनुमान लगाने के लिए विशेषज्ञों का प्रयोग किया जाता है। अनेक शेिषज्ञ मिलकर भविष्य का अनुमान लगाने हेतु अपने विशिष्ट ज्ञान का प्रयोग करते हैं। द्वितीय विधि में ऐतिहासिक तुलना करते हुए भविष्य का अनुमान लगाने का प्रयास किया जाता है। तीसरी विधि में बम्पनी के घटकों को ध्यान में रखते हुए वातावरणीय मॉडल तैयार किया जाता है। इस श्रेणी में युक्त प्रमुख तकनीकें हैं—प्रतीपगमन मॉडल, इकोनोमैट्रिक मॉडल, आदा-प्रदा मॉडल आदि।

वातावरणीय विश्लेषण की तकनीकें

(TECHNIQUES OF ENVIRONMENTAL ANALYSIS)

1 स्वोट विश्लेषण तकनीक (SWOT Analysis Technique)-स्वोट-विश्लेषण का प्रयोग कसी व्यवसाय के आन्तरिक एवं बाह्य वातावरण को समझने के लिए किया जाता है। इससे संस्था को अपनी संगठनात्मक रणनीति तैयार करने में सहायता मिलती है। SWOT अंग्रेजी भाषा के चार

ब्दों से मिलकर बना है जिनका अर्थ है-S (Strength) शक्ति तथा क्षमता, W (Weaknesses) दुर्बलता, कमजोरी, O (Opportunities) अवसर, T (Threats) समस्याएँ, चुनौतियाँ।

इससे संस्था को ऐसी रणनीति तैयार करने में मदद मिलती है जिससे वह अपनी शक्तियों का पयोग करके व्यावसायिक अवसरों का अधिकतम लाभ उठा सकती है तथा व्यवसाय की दुर्बलताओं को न्यूनतम करके चुनौतियों का सामना कर सकती है। वस्तुत: आधुनिक युग में व्यवसायी को प्रतिस्पर्धा के वातावरण में कार्य करना पड़ता है। व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा में टिके रहने तथा अपनी संस्था को प्रगति की तरफ ले जाने के लिये प्रबन्धकों को व्यावसायिक वातावरण की जानकारी होना। अत्यन्त आवश्यक है। SWOT विश्लेषण की सहायता से संस्था ऐसी सूचनाएँ प्राप्त करती है जो उसे संस्था के संसाधन एवं क्षमताओं की जानकारी प्रदान करती है।

स्वोट विश्लेषण के अंग

(COMPONENTS OF SWOT ANALYSIS)

स्वोट विश्लेषण के प्रमुख अंग निम्नांकित प्रकार हैं

1.क्षमताएँ (Strength)-किसी भी व्यावसायिक संस्था की शक्ति उसके संसाधन, क्षमताओं तथा उसकी गुणवत्ता पर निर्भर करती है। ये तत्त्व उसे प्रतिद्वन्द्वी व्यवसाय से अधिक लाभ प्रदान करते है। उदाहरण के लिये, श्रेष्ठ अनसंधान सविधाएँ तथा विकास की अधिकतम संभावनाएं उस व्यवसाय की क्षमताएँ कहलाती हैं। इन क्षमताओं के आधार पर अन्य व्यवसायों से प्रतिस्पर्धा की जा सकती है। तथा अधिक लाभ कमाया जा सकता है।

2. दुर्बलताएँ (Weaknesses)-व्यावसायिक उपक्रम में संसाधनों एवं क्षमताओं की कमी ही उसका कमजोरी बन जाती है। प्रत्येक व्यवसाय की कुछ सीमाएँ होती हैं जो उसकी दुर्बलता का कारण बनती हैं। जैसे-कच्चे माल के लिये दसरे व्यापारियों पर निर्भर रहना आदि। ये दुर्बलताए। व्यवसाया के कार्य की सीमा निश्चित कर देती हैं तथा कभी-कभी इनके कारण व्यवसाय का हाना भी उठानी पड़ती है।

3. अवसर (Opportunities)-व्यवसाय में अनकल परिस्थितियों की विद्यमानता ही अवसर कहलाता है। संस्था का बाहरी वातावरण उसके लिए लाभ एवं विकास के नए-नए अवसर प्रदान करता रहता है। इन अवसरों का लाभ उठाकर व्यवसाय अपने लाभ में वृद्धि कर सकता है। उदाहरण के लिए बाजार में नवीन माँग का विकसित हो जाना, निर्यात बाजार उपलब्ध होना, व्यापारिक प्रतिबन्धों में दील आदि व्यवसाय को लाभ एवं विकास के नए अवसर प्रदान करते हैं। ।

4. चुनौतियाँ (Threats)-बाहरी वातावरण जहाँ व्यवसाय को विकास के अवसर प्रदान करता है, वहीं उसके कारण उसे बहुत-सी चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है। बाह्य वातावरण में विद्यमान विपरीत परिस्थितियाँ व्यवसाय के सामने अनेक समस्याएँ एवं चुनौतियाँ खड़ी कर देती हैं। नए प्रतिद्वन्द्वियों का प्रवेश, सरकारी नीतियों में प्रतिकूल परिवर्तन, मूल्य युद्ध, उपभोक्ताओं की रुचि में परिवर्तन, व्यापारिक प्रतिबन्ध आदि ऐसी चुनौतियाँ हैं जिनका व्यवसाय को सामना करना पड़ता है।

अतः स्पष्ट है कि स्वोट विश्लेषण व्यवसाय के वातावरण को समझने तथा नीतिगत निर्णय लेने के लिये बहुत ही महत्वपूर्ण है। यदि SWOT विश्लेषण के विभिन्न तत्वों का सही तरीके से नियोजन किया जाए तथा एक उचित बाजार रणनीति तय की जाए तो निश्चित रूप से संस्था को अच्छी सफलता प्राप्त हो सकती है।

2. वातावरणीय चुनौती एवं अवसर परिदृश्य विधि (Environmental Threats and Opportunity Profile (ETOP) Method)-वातावरणीय छानबीन एवं विश्लेषण हेतु ‘वातावरणीय चुनोती एवं अवसर परिदृश्य’ (Environmental Threats and Opportunity Profile or ETOP) विधि का व्यापक प्रयोग किया जाता है। इस तकनीक में वातावरण को विभिन्न घटकों या वर्गों में विभाजित किया जाता है तथा संगठन पर प्रत्येक घटक के प्रभाव का विश्लेषण एवं मूल्यांकन किया जाता है। निम्नलिखित साइकिल उद्योग के सम्बन्ध में वातावरणीय चुनौती एवं अवसर परिदृश्य (ETOP) प्रस्तुत करता है।

पर्यावरण निदान

(ENVIRONMENTAL DIAGNOSIS)

सरल शब्दों में, किसी भी समस्या/परेशानी से निपटने के लिए जो उपचार/समाधान करने का तरीका अपनाया जाता है उसे ‘निदान’ (Diagnosis) कहते है। इस प्रकार वातावरण विश्लेषण का पश्चात् किसा व्यवसाय/संगठन अथवा उपक्रम के सम्बन्ध में अवसरों एवं चनौतियों की प्राप्त हुइ जानकारी को ध्यान में रखते हुए उचित व्यूह रचना का निर्माण करना ‘पर्यावरण निदान’ कहा जाता है। निदान निर्धारित करते समय वातावरण विश्लेषण से प्राप्त सचनाओं एवं तथ्यों का गहन अध्ययन किया जाता है और विभिन्न व्यूहरचनात्मक विकल्पों में से सर्वश्रेष्ठ विकल्प का चयन किया जाता है। पर्यावरण निदान व्यूहरचनात्मक प्रबन्ध (Strategic Management) का ही एक हिस्सा है जिसमें अवसरों तथा खतरों की पहचान की जाती है। पर्यावरण निदान के द्वारा वातावरण के धनात्मक तथा ऋणात्मक प्रभावों का अध्ययन किया जाता है। जब एक बार पर्यावरण से सम्बन्धित तत्त्वों के बारे में आँकड़ों को एकत्रित करके उनका विश्लेषण कर लिया जाता है उसके बाद इन तत्त्वों के प्रभावों के आँकलन की प्रक्रिया प्रारम्भ की जाती है चाहे वह धनात्मक हो अथवा ऋणात्मक तथा इन प्रभावों की मात्रा को आँका जाता है। इस प्रक्रिया में विभिन्न विचारधाराओं का स्पष्टीकरण किया जाता है जो संगठन को अवसरों तथा खतरों को खोजने, उनका पूर्वानुमान लगाने, उनको स्वीकार अथवा अस्वीकार करने तथा उनके ऊपर प्रतिक्रिया करने में सहायता प्रदान करते है।

संक्षेप में, पर्यावरण निदान का तात्पर्य वातावरण में व्याप्त अवसरों एवं खतरों का आँकलन एवं उनके प्रभाव को जानने से है। (Environmental Diagnosis is the assessment of environmental factors in terms of opportunities and threats and the significance of their impact)

वातावरण विश्लेषण एवं उपयुक्त निदान के माध्यम से जो संगठन/उपक्रम अपने लिए उपलब्ध लाभ के अवसर एवं वातावरण में उपस्थित चुनौतियों की पहचान कर लेते है वे संगठन/उपक्रम ही उपयुक्त व्यूहरचना के निर्धारण द्वारा न केवल अपने दीर्घ जीवन को सुनिश्चित करते हैं, बल्कि निरन्तर प्रगति एवं विकास की ओर अग्रसर रहते हैं।

व्यूह-रचना का अर्थ एवं परिभाषा

(MEANING AND DEFINITION OF STRATEGY)

व्यूहरचना की अवधारणा काफी प्राचीन है। मूलत: यह ग्रीक भाषा के शब्द ‘Strategia’ से आया है जिसका सम्बन्ध सेना के जनरल द्वारा अपनायी गयी रणनीति रूपी कला (Generalshipthe actual direction of military force) से है।

इस प्रकार कार्यनीति/मोर्चाबन्दी/व्यूह रचना अथवा दाँवपेंच (Strategy) शब्द प्रारम्भ में युद्ध के क्षेत्र में शत्रु की सेना को पराजित करने के लिए अपनी रणनीति निर्धारित करने के लिए प्रयोग किया जाता था। समय के बदलाव तथा व्यावसायिक जटिलताओं में वृद्धि के साथ व्यावसायिक जगत में भी प्रतिद्वन्द्वी व्यावसायियों की कार्यनीतियों व क्रियाओं का अध्ययन करके उन्हें बाजार में हरकर अपने उत्पाद बेचने तथा बाजार में जमने के लिए ‘व्यूहरचना’ (strategy) शब्द का प्रयोग किया जाने लगा। आधुनिक व्यवसाय में ‘व्यूहरचना’ एक लोकप्रिय शब्द बन चुका है जो नियोजन का एक महत्वपूर्ण भाग है। सरल शब्दों में, व्यूह-रचना का आशय यह है कि अपनी योजना बनाते समय प्रतियोगियों की योजनाओं को भी ध्यान में रखना चाहिए। उदाहरण के लिए वस्तुओं का मृत्य-निर्धारण करते समय व्यवसायी को देखना चाहिए कि उसके प्रतिद्वन्द्वी व्यवसायी उसी प्रकार के समान गुण की वस्तु का कितना मूल्य ले रहे हैं।

जाँच तथा गुलिक (Jauch and Glueck) के अनुसार, “व्यूहरचना एक व्यापक, एकीकृत एवं समन्वित योजना है जो फर्म के व्यूहरचनात्मक लाभों को वातावरण की चुनौतियों से जोड़ती है तथा

यह सुनिश्चित करने के लिए बनायी जाती है कि उचित क्रियान्वयन के द्वारा उपक्रम के आधारभूत की लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है।”

मेलविन जे० स्टानफोर्ड (Melivin J. Stanford) के अनुसार, “व्यूहरचना एक ऐसा तरीका है जिसमें प्रबन्ध फर्म के संसाधनों को उसके वातावरण के भीतर उसके उद्देश्यों तक पहुँचने के लिए प्रयोग हेतु चुनता है। इस प्रकार, व्यूहरचना में फर्म, इसके उद्देश्यों तथा वातावरण के मध्य बहुआयामी । सम्बन्ध सम्मिलित हैं।”

कुण्ट्ज एवं ओडोनेल के अनुसार, “व्यूह रचना का सम्बन्ध उन दिशा-निर्देशों से है जिनमें मानव एवं भौतिक संसाधनों को, कठिनाइयों के संदर्भ में, एक चयनित उद्देश्य को प्राप्त करने की सम्भावना को अधिकतम करने के लिए लगाया एवं प्रयोग किया जाएगा।’

निष्कर्ष-उपरोक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने के उपरान्त यह कहा जा सकता है कि व्यूह रचना एक ऐसी योजना है जो विशेष कठिन परिस्थितियों में कुछ चुने हुए उद्देश्यों को अपेक्षाकृत अधिक कुशलता के साथ प्राप्त करने के लिए संस्था की समस्त कार्यवाहियों को एक दिशा देने के लिए बनाई जाती है। अन्य शब्दों में, व्यूहरचना एक व्यापक एवं समग्र योजना है जो प्रतिद्वन्द्वी व्यावसायियों की कार्यनीतियों एवं क्रियाओं को ध्यान में रखकर इस प्रकार बनायी जाती है, ताकि संगठनात्मक लक्ष्यों को सुगमता एवं प्रभावी ढंग से उपक्रम के हित में प्राप्त किया जा सके।

Corporate Environment Analysis Strategy

व्यूह-रचना का प्रतिपादन

(FORMULATION OF STRATEGY)

व्यूह-रचना का प्रतिपादन विशिष्ट परिस्थितियों का लाभ उठाने अथवा विपरीत परिस्थितियों को अनुकूल बनाने के लिए किया जाता है। सामान्यतया कम्पनी की व्यूह-रचना के प्रतिपादन हेतु निम्नलिखित कदम उठाये जाते हैं

1  व्यूहरचनात्मक उद्देश्यों का निर्धारण (Determination of Strategic Objectives)व्यूह-रचना प्रतिपादन हेतु सर्वप्रथम हमें व्यूहरचनात्मक उद्देश्यों को निर्धारित करना होगा। हमें यह पता होना चाहिए कि व्यूह-रचना का प्रतिपादन किस लक्ष्य या लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए किया जाना है, क्योंकि जब तक हमें निश्चित लक्ष्य की ही जानकारी नहीं होगी, तब तक हम व्यूह-रचना का प्रतिपादन कैसे करेंगे।

2. बाह्य वातावरण का विश्लेषण (Analysis of External Environment)-बाह्य वातावरण में संगठन के बाहर के उन सब घटकों को सम्मिलित किया जाता है जो संगठन के लिए, तथा चुनातिया (Opportunities and threats) प्रस्तुत करते हैं। व्यूह-रचना का प्रतिपादन करने हेतु इन चुनौतियों एवं अवसरों का विश्लेषण अत्यन्त आवश्यक है।

3. फर्म की कमजोरियों एवं शक्ति का विश्लेषण (Analysis of the Weaknesses and Strengths of the Firm)-व्यूह-रचना प्रतिपादन के लिए सम्बन्धित फर्म की कमजोरियों एवं शक्ति

निगमीय नियाजन; वातावरण विश्लेषण एवानदान, प्यूहएगा का विश्लेषण करना भी जरूरी है। हमारे संगठन में जो कमजोरियाँ हैं, उन्हें दूर करन क लिए आप प्रयास करने होंगे।

4. व्यूह-रचना का प्रतिपादन (Formulation of Strategy)-जब प्रबन्धका परिस्थितियों, आन्तरिक शक्तियों एवं कमजोरियों तथा उद्देश्यों एवं लक्ष्यों की स्पष्ट एवं पूर्ण रूप स जानकारी हो जाती हैं तभी व्यूह-रचना का प्रतिपादन करना चाहिए। व्यह-रचना प्रतिपादित करनस पहले हमें वैकल्पिक कार्य-नीति का विकास करना चाहिए और उनका मूल्यांकन करने के बाद जा उनमें से अधिक ठीक एवं लाभदायक होती हैं, उनको अपनाने का निर्णय करना चाहिए।

Corporate Environment Analysis Strategy

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

प्रश्न 1. निगमीय नियोजन को परिभाषित कीजिये। इसकी विशेषताओं एवं लाभ-दोषों का वर्णन कीजिये। क्या भारत में निगमीय नियोजन सफल हो रहा है ?

Define corporate planning. Describe its characteristics, merits and demerits. Is corporate planning successful in India ?

प्रश्न 2. पर्यावरण विश्लेषण का अर्थ बताइये। पर्यावरण घटकों का विश्लेषणात्मक वर्गीकरण दीजिये। इसके निदान की भी विवेचना कीजिये।

Explain the meaning of environment analysis. Give the analytical classification of environmental factors. Also explain its diagnosis.

प्रश्न 3. रणनीति या व्यूह रचना से आप क्या समझते हैं ? व्यूह रचना में उठाये जाने वाले कदमों को समझाइये।

What do you mean by strategy formulation ? Explain the steps to be taken in strategy fomulation.

प्रश्न 4. पर्यावरण विश्लेषण से आप क्या समझते हैं ? रणनीति निर्माण में यह किस प्रकार सहायक होता है?

What do you understand by the term Environmental Analysis ? How does it help in strategy formulation ?

Corporate Environment Analysis Strategy

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

प्रश्न 1. ‘व्यूह रचना’ नियोजन क्या है ? समझाइये। What is strategic planning ? Discuss.

प्रश्न 2. निगमीय नियोजन की विशेषताएँ बताइये।

State the characteristics of corporate planning.

प्रश्न 3. निगमीय नियोजन के लाभ तथा दोष बताइये।

State the merits and demerits of corporate planning.

प्रश्न 4. स्वोट विश्लेषण के प्रमुख अंग क्या है ?

What are the main components of SWOT Analysis?

प्रश्न 5. पर्यावरण विश्लेषण की आवश्यकता एवं महत्त्व बताइये।

Discuss the need and importance of environmental analysis.

Corporate Environment Analysis Strategy

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

(Objective Type Questions)

1 बताइये कि निम्नलिखित वक्तव्य ‘सही हैं’ या ‘गलत’

State whether the following statements are ‘True’ or ‘False –

(i) समामेलित नियोजन अल्पकालीन नियोजन है।

Corporate planning is short-term planning.

(ii) बाह्य वातावरण व्यवसाय की ताकत व कमजोरियों को प्रकट करता हैं।

External environment reflects strengths and weaknesses of a business.

(iii) वातावरणीय विश्लेषण एक निरन्तर जारी रहने वाली प्रक्रिया है।

Environmental analysis is a continuous process.

(iv) स्वोट विश्लेषण तकनीक का प्रयोग संगठनात्मक रणनीति तैयार करने में किया जाता है।

SWOT analysis technique is used to prepare structural strategies.

(v) व्यूहरचना का उपयोग फोज में होता है, व्यवसाय में नहीं ?

Strategy is used in military, not in business.

उत्तर-(i) गलत (ii) गलत (iii) सही (iv) सही (v) गलत सही उत्तर चुनिये

(Select the correct answer)

(i) निगमित नियोजन होता है

Corporate planning is :

(अ) अल्पकालीन (Short-term)

(ब) मध्यकालीन (Middle-term)

(स) दीर्घकालीन (Long-term)

(द) इनमें से कोई नहीं (None of the above)

(ii) स्वोट का उपयोग होता है

SWOT is used :

(अ) पर्यावरण विश्लेषण में (In environment Analysis)

(ब) कार्यनीति निर्धारण में (In Strategy Formulation)

(स) पर्यावरण विश्लेषण तथा कार्यनीति निर्धारण दोनों में (In Envrionment Analysis and Strategy Formulation both)

(द) इनमें से कोई नहीं (None of the above)

उत्तर-(i) (स) (ii) (स)

Corporate Environment Analysis Strategy

chetansati

Admin

https://gurujionlinestudy.com

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Previous Story

BCom 2nd Year Principles Business Management Objectives Study Material Notes in Hindi

Next Story

BCom 2nd Year Principles Organization Concepts Nature Process Significance Study Material notes in Hindi

Latest from BCom 2nd year Principles Business Management Notes