BCom 2nd year Corporate Laws Company Meetings Study Material Notes in Hindi

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BCom 2nd year Corporate Laws Company Meetings Study Material Notes in Hindi

Table of Contents

BCom 2nd year Corporate Laws Company Meetings Study Material Notes in Hindi: Meaning of Company Meetings Requisites of a wild meeting Kinds of Company Meetings Shareholders meetings Directors of Board meetings of Debenture Holders Creditors Meetings Detailed Discussion of Shareholder Meetings Who Can Call Extraordinary General meetings Extra Ordinary Meetings Statutory Provisions Regarding Proxy One Man Meeting Important Examination Questions Long Answer Questions Short Answer Questions :

Company Meetings Study Material
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BCom 2nd year Corporate Laws Prospectus Study Material notes in Hindi

कम्पनी की सभायें

(Company Meetings)

कम्पनी सभा का अर्थ

(Meaning of Company Meeting)

सभा का आशय दो या दो से अधिक व्यक्तियों का किसी पूर्व निर्धारित समय एवं स्थान पर किसी निश्चित विषय पर विचार-विमर्श करने हेतु एकत्र होने एवं विचार-विमर्श कर निर्णय लेने से है। दूसरे शब्दों में, सभा पूर्व सूचना के आधार पर एकत्रित दो या अधिक व्यक्तियों का समूह है जो किसी वैध व्यावसायिक कार्य को करने के लिए प्रस्ताव पारित कर निर्णय करता है।

शार्प बनाम डेविस विवाद में ‘सभा’ को निम्नलिखित प्रकार परिभाषित किया गया है“विधि संगत उद्देश्यों के लिए दो या दो से अधिक व्यक्तियों का एकत्रित होना ही सभा है।”

A meeting is “an assembly of people for a lawful purpose.”

सभा के सामान्य अर्थ की उपर्युक्त विवेचना के उपरान्त ‘कम्पनी सभा’ को सरलतापूर्वक समझा जा सकता है। जब कम्पनी द्वारा अपने संचालकों, अंशधारियों, ऋणपत्रधारियों आदि को पूर्व सूचना द्वारा कम्पनी से सम्बन्धित विभिन्न मामलों पर विचार-विमर्श करने हेतु किसी एक स्थान पर एकत्र किया जाता है तो उसे कम्पनी की सभा कहते हैं। एक कम्पनी के प्रबन्ध एवं संचालन में इन सभाओं का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। इन सभाओं के सम्बन्ध में कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 96 से 122 में आवश्यक प्रावधान दिये गये हैं।

Corporate Laws Company Meetings

वैध सभा के आवश्यक तत्त्व

(Requisites of A Valid Meeting)

1. सभा उचित प्राधिकारी या अधिकृत व्यक्ति द्वारा बुलाई जानी चाहिए।

2. कम्पनी की सभा बुलाने के लिए सभा में उपस्थित होने का अधिकार रखने वाले सभी व्यक्तियों को उचित एवं र्याप्त सूचना देना आवश्यक है।

3. सभा में कार्यवाहक संख्या (Quorum) की उपस्थिति होनी चाहिए।

4. सभा का अध्यक्ष उचित तरीके से नियुक्त किया गया हो।

5. सभा की निश्चित कार्यसूची होनी चाहिए।

6.सभा अधिनियम व अन्तर्नियमों में दिये गये प्रावधानों के अनुसार संचालित हो।

7.सभा में प्रस्तुत मामलों में विचार-विमर्श नियमानुसार हो।

8. उचित मतदान द्वारा निर्णय लिया गया हो। नियमानुसार प्रस्ताव पारित हो।

9. सभा की कार्यवाही का ‘सूक्ष्म’ अथवा ‘कार्यवृत’ (Minutes) लिखा जाना चाहिए।

यहाँ पर यह विशेष रुप से उल्लेखनीय है कि कम्पनी के अंशधारी सभा में लिये गये निर्णयों से पूर्णतया बाध्य होते हैं, भले ही वे उस सभा में उपस्थित थे या नहीं बशर्ते वह सभा वैध (valid) थी।

कम्पनी में अलग-अलग स्तर पर सभायें होती हैं चूँकि प्रत्येक सभा का अलग-अलग उद्देश्य व कार्य होता है। अध्ययन की सुविधा के दृष्टिकोण से कम्पनी की सभाओं को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है

(I)  अंशधारियों की सभायें (Shareholders Meetings)-(i) वार्षिक साधारण सभा, (i) असाधारण सभा, (iii) वर्ग सभायें।

(II) संचालकों की सभायें (Directors Meetings)

(III) ऋणपत्रधारियों की सभायें (Debentureholders Meetings)

(IV) ऋणदाताओं की सभायें (Creditors Meetings)

कम्पनी की विभिन्न सभाओं की संक्षिप्त विवेचना नीचे की जा रही है

Corporate Laws Company Meetings

(1) अंशधारियों की सभायें

(Shareholders Meetings)

कम्पनी द्वारा अंशधारियों की निम्नलिखित तीन प्रकार की सभायें बुलाई जाती हैं

(1) वार्षिक साधारण सभा (Annual General Meeting)-वार्षिक साधारण सभा से आशय सदस्यों की ऐसी सभा से है जो कम्पनी अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार प्रतिवर्ष बुलाई जाती है। कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 96 के अनुसार, प्रत्येक कम्पनी को वर्ष में एक बार वार्षिक साधारण सभा बुलाना आवश्यक है। लेकिन दो वार्षिक सभाओं में 15 माह से अधिक का अन्तर नहीं होना चाहिये। पहली वार्षिक सभा पहला वित्तीय वर्ष बन्द होने के 9 महीने के अन्दर की जाएगी एवं अन्य किसी दशा में 6 महीने के अन्दर की जाएगी। विशेष कारणों से कम्पनी रजिस्ट्रार इस सभा के करने की अवधि को 3 महीने तक बढ़ा सकता है, परन्तु कम्पनी की प्रथम वार्षिक साधारण सभा की अवधि बढ़ाने का उसे अधिकार नहीं है। इस सभा में कम्पनी के अन्तिम खाते प्रस्तुत करना, संचालक मण्डल व अंकेक्षक की रिपोर्ट पर विचार करना, लाभांश घोषित करना आदि निर्णय लिये जाते हैं।

(2) असामान्य साधारण सभा (Extra-Ordinary Meeting) [धारा 100]—यह सभा अन्तर्नियमों की व्यवस्था के अधीन संचालकों द्वारा स्वयं अपनी इच्छा से या अंशधारियों की माँग पर बुलाई जाती है। ये सभायें उस समय बुलाई जाती हैं जबकि कम्पनी के समक्ष कोई ऐसा आवश्यक कार्य आ जाये जिसके लिए वार्षिक सभा तक प्रतीक्षा नहीं की जा सकती जैसे पार्षद सीमानियम में परिवर्तन, पार्षद अन्तर्नियम में परिवर्तन, ऋणपत्रों का निर्गमन, निर्धारित अवधि से पूर्व किसी संचालक को उसके पद से हटाना आदि।

(3) वर्ग सभायें (Class Meetings)-यदि कम्पनी की अंश पूँजी विभिन्न प्रकार के अंशों में विभक्त है तो प्रत्येक प्रकार के अंशधारियों का समूह एक वर्ग कहलाता है। वर्ग सभा से आशय किसी एक विशेष प्रकार के अंशधारियों की सभा से है। ऐसी सभाओं का आयोजन कम्पनी द्वारा एक विशेष वर्ग के अंशधारियों के लिए किया जाता है। वर्ग सभाएँ प्राय: निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए बुलाई जाती हैं

(i) किसी विशेष वर्ग के अंशधारियों के अधिकारों में परिवर्तन करना।

(ii) कम्पनी व सदस्यों के बीच प्रस्तावित किसी समझौता या प्रबन्ध योजना के सम्बन्ध में विचार-विमर्श करने हेतु।

(iii) कम्पनी द्वारा ऐच्छिक समापन के समय।

(iv) न्यायालय द्वारा अनिवार्य समापन के समय।

वर्ग सभा में उसी वर्ग के अंशधारी भाग ले सकते हैं जिस वर्ग के लिए ऐसी सभा बुलाई जाती है, जैसे यदि शोध्य पूर्वाधिकार अंशों की शोधन अवधि बढ़ाने हेतु सभा बुलाई है तो इसमें शोध्य पूर्वाधिकार अंशों के धारक सदस्य ही सभा में भाग लेंगे।

यह उल्लेखनीय है कि यदि अन्तर्नियमों में कोई अलग व्यवस्था न हो तो वर्ग सभाओं के सम्बन्ध में सूचना देने, कार्यवाहक संख्या, प्रति पुरुष, मतदान आदि के लिए वे ही सभी नियम लागू होते हैं, जो वार्षिक साधारण सभा के लिए लागू होते हैं।

नोट-कम्पनी अधिनियम, 2013 के अन्तर्गत वैधानिक सभा (Statutory Meeting) का प्रावधान समाप्त कर दिया गया है।

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(II) निदेशक या मण्डल की सभाएँ [धारा 173]

(Directors or Board Meetings)

निदेशकों (संचालकों) के लिए आवश्यक है कि वे मण्डल की सभाओं के माध्यम से कार्य करें। एक अकेला निदेशक स्वयं कम्पनी की ओर से कोई कार्य करने का अधिकार नहीं रखता, परन्तु निदेशक मण्डल अपनी कुछ शक्तियों को निदेशकों की एक उप समिति को सौंप सकते हैं।

निदेशक मण्डल की सभाओं के नियम

(Rules Regarding Board’s Meetings)

1.मण्डल की सभाएँ (Meetings of Boards)[धारा 173]–प्रत्येक कम्पनी निदेशक मण्डल की पहली सभा अपने समामेलन के 30 दिन के अन्दर करेगी।

2./सभाओं की संख्या (Number of Meetings) (धारा 173)—प्रत्येक कम्पनी के लिए इसके निदेशक मण्डल का प्रस्ताव की प्रतिवर्ष कम-से-कम चार सभाएँ इस ढंग से की जाएँगी कि दो लगातार निदेशक वाओं के बीच 182 दिन से अधिक का अन्तर नहीं होगा।

छूट (Exemption) केन्द्र सरकार, अधिसूचना के द्वारा यह निर्देश दे सकती है कि इस उप-धारा के प्रावधान किसी वर्ग या वर्गों की कम्पनियों पर कुछ अपवाद, संशोधनों एवं शर्तों के साथ लागू होंगे जैसाकि अधिसूचना में निर्दिष्ट किया जाए।

3. निदेशकों द्वारा सभा में व्यक्तिगत रूप से या वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग (Video-Confrencing) के द्वारा भाग लिया जा सकता है (Directors can participate in person or through video Confrencing) [धारा 173(2)] निदेशक, सभा में व्यक्तिगत रूप से या वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग या अन्य श्रवण दृश्य (Audio Video) माध्यम से शामिल हो सकते हैं जैसाकि निर्दिष्ट हो जो निदेशकों द्वारा भाग लेने को रिकॉर्ड करने, मान्यता देने एवं सभा की कार्यवाही तिथि तथा समय सहित भण्डारित (Storing) करने में सक्षम हो। परन्तु केन्द्र सरकार, अधिसूचना द्वारा उन विषयों को निर्दिष्ट कर सकती है जो वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग या अन्य श्रवण दृश्य माध्यम के द्वारा सभा में विचारार्थ नहीं किए जाएंगे।

4. सभा की सूचना (Notice of Meeting) मण्डल को प्रत्येक सभा की उचित सूचना अनिवार्य रूप से दी जानी चाहिए। मण्डल की सभा के लिए कम-से-कम 7 दिन की लिखित सूचना प्रत्येक निदेशक के पंजीकृत पते पर दी जाएगी और ऐसी सूचना हस्त सुपुर्दगी (hand delivery) या डाक से या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से दी जा सकती है।

5. मण्डल की सभा, अल्प सूचना द्वारा बुलाना (Meeting of the Board by Shorter Notice) आवश्यक कार्य को करने के लिए निदेशक मण्डल की सभा अल्प सूचना के द्वारा बुलाई जा सकती है, इस शर्त के साथ कि उस सभा में कम-से-कम एक स्वतन्त्र निदेशक, यदि कोई है, उपस्थित होगा।

6. स्वतन्त्र निदेशक के होने पर सभा के निर्णय को सभी सदस्यों के बीच में परिचारित chat (In the absence of Independent Director circulation of decision taken at the Board Meeting) [धारा 173 (3)] स्वतन्त्र निदेशक के मण्डल की सभा में न होने पर ऐसी सभा के लिए गए निर्णय सभी निदेशकों के बीच परिचालित किये (Circulate) जाएंगे और कम-से-कम एक व्यक्ति वाली, लघु कम्पनी और निष्क्रिय कम्पनी की दशा में यह माना जाएगा कि कम्पनी ने इस धारा के प्रावधान का अनुपालन कर लिया है, यदि निदेशक मण्डल की कम-से-कम एक सभा एक केलेण्डर वर्ष के प्रत्येक आधे भाग में कर ली गई है और दो सभाओं के बीच 90 दिन से अधिक का अन्तर नहीं है। परन्तु शर्त यह है कि इस उप-धारा एवं धारा 174 का कुछ भी ऐसी एक व्यक्ति वाली कम्पनी पर लागू नहीं होगा जहाँ इसके निदेशक मण्डल में केवल एक ही निदेशक है।

उपरोक्त निर्णय स्वतन्त्र निदेशक द्वारा, यदि कोई है, पुष्टिकरण किए जाने पर अन्तिम (final) माने जाएँगे।

दण्ड (Peanlty) [धारा 173 (4)]–कम्पनी का प्रत्येक अधिकारी जिसका कर्तव्य इस धारा के अन्तर्गत सभा की सूचना देना है यदि वह सूचना देने में असफल हो जाता है तो वह पच्चीस हजार रुपये का जुर्माना देने का दायी होगा।

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(III) ऋणपत्रधारियों की सभायें

(Meetings of Debenture Holders)

ऋणपत्रधारियों की सभा से सम्बन्धित नियम या तो इनके ट्रस्ट पत्र (Trust-deed) में या ऋण-पत्र में दिये हुय होते हैं। इनकी सभा उस समय बुलाई जाती है जबकि ऋणपत्रधारियों के हित प्रभावित होते हैं। ऋणपत्रधारियों की सभा प्राय: निम्नलिखित परिस्थितियों में बलाई जाती है

(i) ऋणपत्रों की शर्तों को परिवर्तित करने के लिए,

(ii) समझौता योजनाओं पर विचार करने के लिए.

(iii) कम्पनी के पुनसँगठन, पुनर्निमाण एवं एकीकरण के समय,

(iv) कम्पनी के समापन के समय।

(IV) ऋणदा

(Creditors Meetings)

ऋणदाताओं के हितों को प्रभावित करने वाले मामलों पर निर्णय लेने के लिए ऋणदाताओं की सभाएँ बुलाई जाती हैं। ऐसी सभाएँ कम्पनी द्वारा अथवा ऋणदाताओं की माँग पर न्यायालय द्वारा बुलाई जा सकती हैं। सामान्यत: ऋणदाताओं की सभायें निम्नलिखित परिस्थितियों में बलाई जाती हैं

(i) कम्पनी की पूँजी के पुनर्गठन अथवा पूँजी में परिवर्तन करने की दशा में।

(ii) कम्पनी द्वारा किसी समझोता योजना को स्वीकार करने की दशा में।

(iii)ऋणदाताओं द्वारा ऐच्छिक समापन का प्रस्ताव पारित करने के लिए।

(iv) ऋणदाताओं द्वारा ऐच्छिक समापन की अवधि में निस्तारक द्वारा ऋणदाताओं की वार्षिक सभा बुलाना यदि समापन की कार्यवाही एक वर्ष से अधिक की अवधि के लिए जारी रहती है।

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(धारा 316) अंशधारियों की सभाओं की विस्तृत विवेचना

(Detailed Discussion of Shareholders Meetings)

1 वार्षिक साधारण सभा का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning And Definition Of Annual General Meeting)-वार्षिक साधारण सभा से आशय सदस्यों की ऐसी सभा से है जो कम्पनी अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार प्रतिवर्ष बुलाई जाती है। धारा 96 के अनुसार प्रत्येक कम्पनी को प्रतिवर्ष अन्य सभाओं के अतिरिक्त सदस्यों की एक साधारण सभा का आयोजन करना आवश्यक है। जिसे वार्षिक साधारण सभा कहा जाता है। ऐसी सभा की सूचना में इस बात का उल्लेख किया जाता है कि यह कम्पनी की वार्षिक साधारण सभा है।

वार्षिक साधारण सभा के उद्देश्य  (Objects Of Annual General Meeting)

कम्पनी की वार्षिक साधारण सभा बलाये जाने के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं

1 कम्पनी के सदस्यों का कम्पनी के कार्य एवं प्रबन्ध पर अन्तिम नियन्त्रण बनाये रखना।

2. कम्पनी के सदस्यों को कम्पनी के गत वर्ष के कार्यों एवं प्रगति से अवगत कराना।

3. वार्षिक खातों की अन्तिम स्वीकृति प्राप्त करना।

4. लाभांश घोषित करना।

5. सेवानिवृत्त अथवा अन्य कारणों से रिक्त होने वाले संचालकों के पदों पर नवीन संचालकों की नियुक्ति करना अंकेक्षकों की नियुक्ति करना।

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वार्षिक साधारण सभा से सम्बन्धित वैधानिक प्रावधान

(Statutory Provisions Regarding Annual General Meeting)

(1) प्रतिवर्ष सभा बुलाना (To Call Every Year)—प्रत्येक कम्पनी के लिए प्रतिवर्ष वार्षिक साधारण सभा बुलाना आवश्यक है। ऐसी सभा की सूचना में इस बात का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाता है कि यह कम्पनी की वार्षिक साधारण सभा है।

(2) दो वार्षिक साधारण सभाओं के मध्य समयान्तर (Gap between Two AGMs)-कम्पनी की दो वार्षिक साधारण सभाओं के मध्य 15 माह से अधिक अवधि का अन्तराल नहीं होना चाहिए।

(3) प्रथम वार्षिक साधारण सभा का समय (Time of First AGM)-कम्पनी द्वारा प्रथम वार्षिक व्यापक सभा प्रथम वित्तीय वर्ष बन्द होने के 9 महीने के अन्दर की जाएगी एवं अन्य किसी मामले में 6 महीने के अन्दर।

(4) सभाओं की अवधि बढ़ाना (Extention of Time)-यद्यपि दो वार्षिक साधारण सभाओं के बीच की अवधि 15 महीनों से अधिक की नहीं होनी चाहिए किन्तु, यदि रजिस्ट्रार चाहे तो विशेष कारणों के आधार पर इस अवधि को तीन महीने के लिए बढ़ा सकता है। परन्तु यह ध्यान रहे कि वह रजिस्ट्रार प्रथम वार्षिक साधारण सभा की अवधि को नहीं बढ़ा सकता है।

(5) वार्षिक साधारण सभा का समय, दिन एवं स्थान (Time, Date and Day of AGM)-प्रत्येक वार्षिक साधारण सभा व्यावसायिक घण्टों में किसी भी समय ऐसे दिन, जो कि सार्वजनिक छुट्टी का न हो, बुलायी जायेगी तथा व्यापार के रजिस्टर्ड कार्यालय पर की जायेगी या ऐसे स्थान पर की जायेगी, जो उस शहर, गाँव या कस्बे में हो, जहाँ कम्पनी का रजिस्टर्ड कार्यालय है।

(6) केन्द्रीय सरकार द्वारा छूट (Exemption)-केन्द्रीय सरकार को यह अधिकार है कि यदि वह चाहे तो किसी भी कम्पनी को उन शर्तों के अन्तर्गत जिन्हें वह उपयुक्त समझे, सभा के समय, स्थान तथा दिन सम्बन्धी व्यवस्थाओं से मुक्त कर सकती है।

(7) अधिकरण द्वारा वार्षिक साधारण सभा बुलाने की शक्ति (Power of Tribunal to call Annual General Meeting) (धारा 97) (1)–यदि कम्पनी द्वारा धारा 96 के अन्तर्गत वार्षिक साधारण सभा करने में चूक की जाती है तो अधिकरण इस अधिनियम या कम्पनी के अन्तर्नियम में दिए।

पावधान की अनदेखी करके किसी सदस्य के आवेदन पर कम्पनी की वार्षिक साधारण सभा बुला। साईया बलाने का निर्देश दे सकता है और उसके सम्बन्ध में ऐसे निर्देश दे सकता है जो आवश्यक हों।

(8) एक व्यक्ति की व्यक्तिगत रूप से या प्रतिपुरुष के रूप में उपस्थिति को सभा माना जाना (Presence of one member of company in person or by proxy shall be deemed to constitute a meeting)-केन्द्र सरकार द्वारा दिए गए निर्देश में यह निर्देश भी सम्मिलित हो सकता है कि कम्पनी का एक सदस्य जो व्यक्तिगत रूप से या प्रतिपुरुष के द्वारा उपस्थित है, इस अधिनियम के अन्तर्गत कम्पनी की सभा माना जाएगा।

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(9) सभा का सभापति (Chairman of Meeting) (धारा 104)

(i) जब तक कि कम्पनी के अन्तर्नियमों में कोई अन्य प्रावधान न हो, सभा में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित सदस्य हाथ उठाकर अपने में से किसी एक को सभापति चुनेंगे।

(ii) यदि सभापति के चुनाव के लिए मतदान की माँग की जाती है तो इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार मतदान तुरन्त कराया जाएगा और उपरोक्त तरीके से हाथ उठाकर चुना गया सभापति उस समय तक सभापति बना रहेगा जब तक मतदान के परिणाम के अनुसार नया सभापति न चुन लिया जाए। शेष सभा के लिए ऐसा चुना गया व्यक्ति सभापति होगा।

(10) सभापति के उपस्थित होने पर (Absence of the Chairman)–यदि सभा के निर्धारित समय के 15 मिनट के भीतर सभापति उपस्थित नहीं होता या उपस्थित होने के बावजूद सभापति पद स्वीकार नहीं करना चाहता है तो सदस्यों द्वारा सभा में किसी को भी सभापति चुना जायेगा। यदि सभा में उपस्थित कोई भी संचालक सभापति बनने को तैयार नहीं है तो उपस्थित सदस्यों द्वारा अपने में से किसी सदस्य को सभापति चुना जा सकता है।

(11) सभा की सूचना (Notice of the Meeting)-वार्षिक साधारण सभा की सूचना सभा से कम से कम 21 दिन पूर्व दिया जाना आवश्यक है किन्तु यदि सभा में भाग लेने वाले एवं मत देने का अधिकार रखने वाले कम-से-कम 95 प्रतिशत सदस्य कम अवधि की सूचना पर लिखित अथवा इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से सहमति दे देते हैं तो कम अवधि की सूचना देकर भी यह सभा बुलायी जा सकती

(12) सभा की सूचना की विषयवस्तु (Contents of Notice)-वार्षिक साधारण सभा की सूचना में सामान्यत: निम्नलिखित बातों का समावेश होना आवश्यक है

(i) इस आशय का उल्लेख कि वार्षिक साधारण सभा का आयोजन किया जा रहा है।

(ii) सभा का समय, स्थान तथा तिथि।

(iii) सभा में किये जाने वाले कार्यों का विवरण।

(iv) वित्तीय खातों तथा चिट्टे की प्रतिलिपि।

(v) संचालकों का प्रतिवेदन।

(vi) अंकेक्षकों का प्रतिवेदन।

(vii) सभा में किये जाने वाले विशिष्ट कार्यों (यदि हो तो) का व्याख्यात्मक विवरण। [धारा 102]

(13) सभा की सूचना प्राप्त करने के अधिकारी (Persons Entitled to get Notice of the Meeting)-वार्षिक साधारण सभा की सूचना सामान्यत: निम्नलिखित को दी जानी चाहिए

(j) कम्पनी का प्रत्येक सदस्य।

(ii) किसी मृतक सदस्य के उत्तराधिकारी।

(iii) दिवालिया सदस्य के राजकीय प्रापक या निस्तारक।

(iv) कम्पनी के अंकेक्षक।

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(14) कार्यवाहक संख्या (Quorum) सामान्यत: प्रत्येक कम्पनी के अन्तर्नियमों में कार्यवाहक संख्या का उल्लेख रहता है। यह संख्या अधिनियम द्वारा निर्धारित न्यूनतम संख्या से कम नहीं होनी चाहिए। यदि कम्पनी के अन्तर्नियमों में कार्यवाहक संख्या का उल्लेख नहीं है तो (अ) सार्वजनिक कम्पनी की दशा में- (i) 5 सदस्य व्यक्तिगत रूप से उपस्थित यदि सभा की तिथि को सदस्यों की संख्या एक हजार से अधिक नहीं है; (ii) 15 सदस्य व्यक्तिगत रूप से उपस्थित यदि सभा की तिथि को सदस्यों की संख्या एक हजार से अधिक और पाँच हजार तक है; (iii) 30 सदस्य व्यक्तिगत रूप से उपस्थित यदि सभा की तिथि को सदस्यों की संख्या पाँच हजार से अधिक है। (ब) निजी कम्पनी की दशा में-व्यक्तिगत रूप से उपस्थित 2 सदस्य कम्पनी की सभा की गणपूर्ति संख्या में गिने जायेंगे।

(15) स्थगित सभा (Adjournment of the Meeting)-यदि कम्पनी की किसी वार्षिक सभा को स्थगित किया जाता है तो ऐसी स्थगित सभा में केवल उन्हीं विषयों पर विचार किया जा सकता है जिन पर पिछली सभा में विचार नहा ।

(16) स्थागित सभा की सूचना (Notice of Adjourned Meeting)-यदि वार्षिक साधारण सभा स्थगन 20 दिन या इससे अधिक अवधि के लिए किया जाता है तो ऐसी स्थगित सभा की सूचना

या का उसी प्रकार दी जायेगी जैसे मुल वार्षिक साधारण सभा की दी जाती है। अन्य शब्दों में, 20 7 चा आधक अवधि के लिए स्थगित करने पर सभा की सूचना 21 दिन पूर्व दी जायेगी।

(17) दण्ड (Penalty) (धारा 99)-यदि कम्पनी की सभा बुलाने अथवा करने में कोई चूक की जाता है तो कम्पनी और इसका प्रत्येक दोषी अधिकारी जर्माना देने का भागी होगा जो एक लाख रुपये तुक हो सकता है एवं लगातार चूक के सम्बन्ध में इसके अतिरिक्त जुर्माने के साथ प्रत्येक दिन के लिए पाच हजार रुपये का जुर्माना देने का दायी होगा जिस अवधि के दौरान चूक जारी रहती है।

वार्षिक साधारण सभा के कार्य (Business Of The Annual General Meeting)

वार्षिक साधारण सभा में किये जाने वाले कार्यों को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा जा सकता है

(1) साधारण कार्य (General Business)-‘साधारण कार्य’ नैत्यिक प्रकृति (Routine nature) के होते हैं। ये कार्य प्रति वर्ष ही साधारण सभा में किये जाते हैं। इन कार्यों में प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं

(i) कम्पनी के वार्षिक खातों. चिद्रे, संचालकों तथा अंकेक्षकों की रिपोर्ट पर विचार-विमर्श करना तथा उन्हें स्वीकार करना।

(ii) वार्षिक लाभांश की घोषणा करना।

(iii) पारी से रियाटर होने वाले संचालकों के स्थान पर संचालक नियुक्त करना।

(iv) आगामी वित्तीय वर्ष के लिए अंकेक्षकों की नियुक्ति करना तथा उनका पारिश्रमिक निर्धारित करना।

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(2) विशेष कार्य (Special Business)-वार्षिक साधारण सभा में साधारण कार्यों के अतिरिक्त किये जाने वाले सभी कार्य विशेष कार्य कहलाते हैं। इन कार्यों के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं

(i) कम्पनी के पार्षद अन्तर्नियमों में परिवर्तन करना।

(ii) कम्पनी की अधिकृत पूँजी को बढ़ाना।

(iii) प्रबन्धक अथवा प्रबन्ध संचालक की नियुक्ति करना।

(iv) कम्पनी के पार्षद सीमानियम में परिवर्तन करना।

(v) नये संचालकों की नियुक्ति करना।

साधारण एवं विशेष कार्य में अन्तर  (Difference Between General Business And Special Business)- साधारण एवं विशेष कार्यों में सबसे बड़ा अन्तर यह है कि सामान्य कार्यों को करने के लिए साधारण प्रस्ताव ही पारित करना पड़ता है, जबकि विशेष कार्यों को करने के लिए साधारण या विशेष किसी प्रकार का प्रस्ताव पारित करना पड़ सकता है। इसके अतिरिक्त, सभा की सूचना के साथ विशेष कार्यों से सम्बन्धित व्याख्यात्मक विवरण भी भेजना पड़ता है।

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2. असामान्य साधारण सभा

(Extra-ordinary Meeting)

असाधारण सभा उस समय आयोजित की जाती हैं जबकि कम्पनी के समक्ष कोई ऐसा आवश्यक कार्य आ जाये जिसके लिए आगामी वार्षिक सभा तक प्रतीक्षा नहीं की जा सकती. जैसे—पार्षद सीमानियम एवं अन्तर्नियमों में परिवर्तन करना, निर्धारित अवधि से पूर्व किसी संचालक को उसके पद से हटाना आदि।

असामान्य साधारण सभा कब बुलाई जा सकती है ?

(When An Extra-Ordinary General Meeting May Be Called ?)

अथवा

असामान्य साधारण सभा के कार्य अथवा उद्देश्य

(Functions Or Objectives Of Extra-Ordinary General Meeting)

जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट हे असामान्य साधारण सभा असाधारण एवं अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कायों के लिए ही बुलाया जाता है। आवश्यकता पड़ने पर यह एक वर्ष में कई बार तथा कभी भी बलाई। परन्तु इस सभा में केवल वे ही कार्य किये जा सकते हैं जिन्हें करने के लिए यह सभा बुलाई जाती है। असामान्य साधारण सभा सामान्यत: निम्नलिखित कार्यों को करने के लिए बुलाई जा सकती है

(i) कम्पनी के सीमानियम के विभिन्न वाक्यों में परिवर्तन करने के लिए, जैसे—कार्यालय को एक राज्य से दूसरे राज्य में स्थानान्तरित करने के लिए, उद्देश्यों में परिवर्तन करने के लिए, अधिकृत पूँजी में परिवर्तन करने एवं पूँजी के पुनर्गठन करने, सदस्यों के दायित्व में परिवर्तन करने आदि के लिए।

(ii) अन्तर्नियमों में परिवर्तन, संशोधन एवं विस्तार करने के लिए, जैसे-अंशों को बट्टे पर निर्गमित करने, संचालकों के ऋण लेने की अधिकार सीमा बढ़ाने, संचालकों के पारिश्रमिक में वृद्धि करने, संचालकों को ऋण प्रदान करने, एकाकी विक्रय प्रतिनिधि नियुक्त करने, अंकेक्षक नियुक्त करने आदि के लिए।

(iii) अन्य किसी मामले पर प्रस्ताव पारित करने के लिए, जिसके लिए अधिनियम द्वारा अनिवार्य रूप से व्यवस्था की हुई हो। उदाहरण के लिए, संचालक मण्डल का पुनर्गठन करने के लिए असाधारण सभा बुलाई जा सकती है। 1986 में भारत के उच्चतम न्यायालय ने जीवन बीमा निगम को यह अधिकार प्रदान किया था कि वह एस्कोर्ट कम्पनी के संचालक मण्डल का पुनर्गठन करने के लिए असामान्य साधारण सभा बुला सकता है।

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असामान्य साधारण सभा कौन बुला सकता है ?

(Who Can Call Extraordinary General Meeting ?).

असामान्य साधारण सभा निम्नलिखित में से किसी के भी द्वारा बुलायी जा सकती है

1.संचालक मण्डल द्वारा स्वेच्छा से.

2. सदस्यों की माँग पर संचालक मण्डल द्वारा,

3. माँगकर्ता सदस्यों द्वारा, तथा

4. अधिकरण द्वारा।

(1) संचालक मण्डल द्वारा स्वेच्छा से (By the Board of Directors at its Own)-सामान्यत: कम्पनी के अन्तर्नियमों के अन्तर्गत संचालक मण्डल को यह अधिकार होता है कि वह आवश्यक प्रस्ताव पारित करके जब कभी चाहे असामान्य साधारण सभा बुला सकता है। इस प्रकार संचालकों द्वारा असामान्य साधारण सभा बुलाने के लिए यह आवश्यक है कि इस आशय का संचालक मण्डल द्वारा अपनी सभा में प्रस्ताव पारित किया जाय।

(2) सदस्यों के माँग करने पर संचालकों द्वारा (By the Directors on Requisition of Members)-कम्पनी के सदस्यों को असामान्य साधारण सभा बुलाने की माँग करने का अधिकार है। सदस्यों द्वारा माँग करने पर संचालकों को ऐसी सभा बुलाना आवश्यक होता है। असामान्य साधारण सभा बुलाने की माँग निम्नलिखित सदस्यों द्वारा की जा सकती है

(i) यदि कम्पनी अंश पूँजी वाली है तो कम्पनी की कुल प्रदत्त पूँजी (Paid-up capital) के कम से कम 1/10 भाग पर अधिकार रखने वाले सदस्य जिन्हें मत देने का अधिकार है, या __ii) यदि कम्पनी में अंश पूंजी नहीं है तो कम्पनी के मताधिकार के कम से कम 1/10 भाग पर अधिकार रखने वाले सदस्य।

सदस्यों द्वारा की जाने वाली ऐसी मॉग लिखित में होनी चाहिए और इसमें सभा बुलाने के उद्देश्य का उल्लेख किया जाना चाहिए। ऐसी माँग पर सभा बुलाने की माँग करने वाले सदस्यों के हस्ताक्षर होने चाहिए और इसे कम्पनी के रजिस्टर्ड कार्यालय में जमा कराया जाना चाहिए। संचालक को माँग पत्र प्राप्ति के 21 दिन के भीतर सभा बुलाने की कार्यवाही शुरू कर देनी चाहिए और 45 दिन के भीतर ऐसी असामान्य साधारण सभा बुला लेनी चाहिए।

(3) माँग करने वाले सदस्यों द्वारा (By the Requisitioning Shareholders)- यदि कम्पनी के संचालक माँग पत्र जमा होने के 21 दिन के अन्तर्गत असाधारण सभा बुलाने की कार्यवाही प्रारम्भ नहीं करते तथा माँग पत्र जमा होने की तिथि से 45 दिन के अन्तर्गत सभा बुलाने की सूचना नहीं भेजते हैं तो सभा की माँग करने वाले सदस्यों द्वारा स्वयं कम्पनी के खर्चों पर यह सभा बुलाई जाती है। इस सभा का समस्त खर्चा कम्पनी वहन करेगी जिसे कम्पनी संचालकों के पारिश्रमिक में से काटकर अपनी क्षतिपूर्ति करेगी। माँग करने वाले अंशधारियों द्वारा भी यह सभा माँग पत्र जमा करने के बाद 3 माह के अन्तर्गत आयोजित कर लेनी चाहिए। माँग करने वाले सदस्यों द्वारा कम्पनी की सभा को उसी प्रकार बुलाया जायेगा।

यदि माँग करने वालों द्वारा सभा का आयोजन किया जाता है तो उस सभा में केवल वे ही कार्य किए जा सकते हैं जिनका उल्लेख माँग-पत्र में किया गया है भले ही सभा बुलाने की सूचना में अन्य कार्य दिये गये हों। यदि सदस्यों को यह सभा बुलाने के लिए पंजीकृत कार्यालय उपलब्ध नहीं कराया जाता तो यह सभा सदस्यों द्वारा किसी भी उचित स्थान पर आयोजित की जा सकती है।

(4) अधिकरण के आदेश द्वारा (By the Order of Tribunal)-जब कोई कम्पनी इस अधिनियम अथवा अपने अन्तर्नियमों की व्यवस्थाओं के अनुसार वार्षिक सभा के अतिरिक्त किसी भी प्रकार की सभा बुला नहीं सकती है अथवा आयोजित अथवा संचालित नहीं कर सकती है तो धारा 98 के अन्तर्गत अधिकरण कम्पनी की असामान्य साधारण सभा बुलाने का आदेश दे सकता है। अधिकरण ऐसी सभा बुलाने का आदेश निम्नलिखित दशाओं में देता है- (i) जब अधिकरण स्वयं उपयुक्त समझता है; (ii) जब कम्पनी का कोई संचालक अधिकरण से प्रार्थना करता है; अथवा (iii) जब कम्पनी की सभा में मतदान का अधिकार रखने वाला कोई सदस्य प्रार्थना करता है।

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एक व्यक्ति की सभा

(One Man Meeting)

एक सभा के लिए दो या दो से अधिक व्यक्तियों की उपस्थिति आवश्यक है। स्पष्ट है कि कोई भी एक व्यक्ति सभा नहीं कर सकता। परन्तु कुछ दशाओं में एक व्यक्ति भी वैधानिक सभा कर सकता है। ऐसी सभा को ‘एक व्यक्ति की सभा’ (One man meeting) कहा जाता है। निम्नलिखित दशाओं में एक व्यक्ति की उपस्थिति में सभा हो सकती है

(i) यदि किसी सदस्य के आवेदन पर केन्द्रीय सरकार कम्पनी की वार्षिक साधारण सभा बुलाती हे या बुलाने के लिए कम्पनी को आदेश देती है तो केन्द्रीय सरकार यह निर्देश दे सकती है कि इस प्रकार की सभा एक व्यक्ति की उपस्थिति में भी की जा सकेगी।

(ii) यदि कम्पनी को सभा बुलाने के लिए अधिकरण या न्यायालय आदेश देता है तो वह इस आदेश में यह निर्देश दे सकता है कि सभा में एक व्यक्ति की उपस्थिति से भी सभा का गठन हो जायेगा तथा इसके द्वारा लिये गये निर्णय नियमित सभा की तरह कम्पनी तथा अन्य सम्बन्धित व्यक्तियों के लिए मान्य होंगे।

(iii) कभी-कभी ऐसा हो सकता है कि कम्पनी की विभिन्न प्रकार की अंश पूँजी में से किसी एक वर्ग के समस्त अंश किसी एक ही व्यक्ति के पास हों। ऐसी स्थिति में उस एक व्यक्ति की उपस्थिति से भी सभा का गठन हो जायेगा। ऐसा ऋणपत्रधारियों के सम्बन्ध में भी हो सकता है। एक व्यक्ति ही कम्पनी द्वारा निर्गमित समस्त ऋणपत्रों को खरीद सकता है। ऐसा होने पर वह अकेला व्यक्ति ही ऋणपत्रधारियों की सभा का गठन कर सकता है।

(iv) यदि कम्पनी की किसी सभा में निश्चित समय पर न्यूनतम कार्यवाहक संख्या के बराबर सदस्य उपस्थित नहीं होते हैं तो आधे घण्टे तक प्रतीक्षा की जा सकती है। यदि आधे घण्टे में न्यूनतम कार्यवाहक संख्या में सदस्य उपस्थित नहीं होते हैं तो वह सभा अगले सप्ताह के लिए उसी समय, उसी दिन तथा उसी स्थान के लिए स्थगित हो जाती है। इस स्थगित सभा के समय से आधे घण्टे तक प्रतीक्षा करने के बाद भी सभा में कार्यवाहक संख्या उपस्थित नहीं होती है, तथा इस सभा में एक भी सदस्य उपस्थित है तो उस एक सदस्य को ही सभा मान लिया जाता है। यह सदस्य सभा के कार्यक्रम के सम्बन्ध में वैध निर्णय ले सकता है, जो वैधानिक रूप से मान्य होते हैं।

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प्रतिपुरुष (Proxy) [धारा 105]

कम्पनी के अंशधारी प्रायः बिखरे हुए होते हैं। उनके लिए सदैव यह सम्भव नहीं होता कि वे स्वयं कम्पनी की सभाओं में भाग ले सकें। अत: कम्पनी अधिनियम में यह व्यवस्था की गई है कि यदि कोई सदस्य स्वयं उपस्थित होने में असमर्थ है तो वह अपने किसी प्रतिनिधि को सभा में उपस्थित होने व पटान में भाग लेने का अधिकार दे सकता है। धारा 105 के अन्तर्गत किसी भी सदस्य को प्रतिपरुष नियुक्त करने का अधिकार है।

प्रतिपुरुष या प्रॉक्सी का अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning And Definition of Proxy).

प्रतिपुरुष से आशय ऐसे व्यक्ति से है जिसे कम्पनी के किसी सदस्य द्वारा अपनी ओर से कम्पनी की सभा में उपस्थित होने तथा मतदान करने के लिए अधिकृत किया जाता है। इस शब्द का प्रयोग उस की सभा में उपस्थित होने तथा मतदान करने के प्रपत्र (Instrument) के लिए भी किया जाता है जिसके द्वारा किसी सदस्य द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को अपनी ओर से मतदान करने के लिए नियुक्त किया जाता है। इस प्रकार प्रतिपुरुष शब्द का प्रयोग न केवल नामांकित व्यक्ति के लिए बल्कि एक प्रलेख के लिए भी किया जाता है।

अतः प्रतिपुरुष शब्द के दो अर्थ है। मतदाता द्वारा अपने स्थान पर मत देने के लिए नियुक्त व्यक्ति को प्रतिपुरुष कहते हैं एवं जिस प्रपत्र के द्वारा प्रतिपुरुष की नियुक्ति की जाती है, उसे भी प्रतिपुरूष (Proxy) कहते हैं।

कम्पनी अधिनियम की धारा 105 के अनुसार, “प्रतिपुरुष से आशय ऐसे व्यक्ति से है जो कम्पनी के सदस्य की ओर से उसकी अनुपस्थिति में सभा में उपस्थित होने एवं मत देने के लिए नियुक्त किया जाता है, किन्तु ऐसे व्यक्ति को सभा में बोलने का अधिकार नहीं होता।”

ली एण्ड बार (Lee & Barr) के अनुसार, “प्रतिपुरुष एक ऐसा व्यक्ति है जो अन्य व्यक्ति की ओर से सभा में उपस्थित होने अथवा मत देने के लिए अधिकृत किया जाता है, यद्यपि सामान्य रूप से इस शब्द का प्रयोग उस प्रपत्र के लिए भी किया जाता है जिसके द्वारा प्रतिपुरुष को नियुक्त किया जाता हैं ।

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प्रतिपुरुष से सम्बन्धित वैधानिक प्रावधान

(Statutory Provisions Regarding Proxy)

धारा 176 के अन्तर्गत प्रतिपुरुष से सम्बन्धित वैधानिक प्रावधान निम्नलिखित हैं

(1) प्रतिपुरुष कौन नियुक्त कर सकता है ? (Who can Appoint Proxy?)- कम्पनी का कोई भी सदस्य जो कम्पनी की सभा में उपस्थित होने तथा मतदान करने का अधिकारी है वह किसी भी अन्य व्यक्ति को अपने स्थान पर सभा में उपस्थित होने तथा मतदान करने के लिए नियुक्त कर सकता है। किन्तु, यह ध्यान रहे कि ऐसे व्यक्ति को सदस्य की ओर से सभा में कुछ भी बोलने का अधिकार नहीं होगा।

इस प्रकार स्पष्ट है कि कम्पनी का सदस्य ही प्रतिपुरुष नियुक्त कर सकता है। किन्तु यदि अन्तर्नियमों में व्यवस्था न हो तो बिना अंश पूँजी वाली कम्पनी (Company having no share capital) का सदस्य प्रतिपुरुष नियुक्त नहीं कर सकता है। निजी कम्पनी का प्रत्येक सदस्य एक से अधिक प्रतिपुरुष नियुक्त नहीं कर सकता है, जबकि सार्वजनिक कम्पनी का सदस्य उतने ही प्रतिपुरुष नियुक्त कर सकता है, जितने उसे मत देने का अधिकार है।

कम्पनी अधिनियम, 2013 के अधीन एक व्यक्ति अधिकतम 50 सदस्यों के प्रॉक्सी (Proxv) के रूप में कार्य कर सकता है परन्तु शर्त यह है कि इन 50 सदस्यों के पास कम्पनी की सम्पूर्ण अंश पूँजी का 10% से अधिक हिस्सा नहीं होना चाहिये। इस प्रकार का कोई भी प्रतिबन्ध कम्पनी अधिनियम, 1956 में नहीं था।

भारत का राष्ट्रपति तथा राज्यपाल भी यदि किन्हीं कम्पनियों के सदस्य हैं, तो वे किसी भी अन्य व्यक्ति को प्रतिपुरुष नियुक्त कर सकते हैं। इनके द्वारा नियुक्त प्रतिपुरुष को वे सभी अधिकार होते हैं जो कम्पनी के एक सदस्य को प्राप्त होते हैं। यहाँ तक कि, ऐसा प्रतिपुरुष पुन: किसी अन्य व्यक्ति को भी प्रतिपुरुष नियुक्त कर सकता है।

(2) प्रतिपुरुष किसे नियुक्त किया जा सकता है ? (Who can be Appointed as a Proxy ?)-किसी भी व्यक्ति को प्रतिपुरुष के रूप में नियुक्त किया जा सकता है। जो व्यक्ति कम्पनी का सदस्य नहीं है, उसे भी प्रतिपुरुष नियुक्त किया जा सकता है।

यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि कम्पनी किसी विशेष व्यक्ति को कम्पनी के खर्चे पर प्रतिपुरुष नियुक्त करने के लिए नहीं कह सकती। यदि कम्पनी का कोई अधिकारी ऐसा निमन्त्रण देता है तो उस पर एक लाख ₹ तक का जुर्माना किया जा सकता है।

(3) सभा की सूचना में प्रतिपुरुष की नियुक्ति का उल्लेख-प्रतिपुरुष की नियुक्ति के बारे में सभा की प्रत्येक सूचना में निर्देश दिया जाना आवश्यक है। प्रत्येक नोटिस में स्पष्टतया यह लिखा जाता है कि सभा में उपस्थित होने एवं मताधिकार प्रयोग करने का अधिकार रखने वाला प्रत्येक सदस्य प्रतिपुरुष की नियुक्ति कर सकता है तथा प्रतिपुरुष को कम्पनी का सदस्य होना आवश्यक नहीं है। इस प्रावधान का पालन न करने वाले अधिकारी को 5,000 ₹ तक के अर्थदण्ड से दण्डित किया जा सकता है।

(4) प्रतिपुरुष नियुक्ति करने की विधि (Procedure for Appointing a Proxy)-प्रतिपुरुष की नियुक्ति करने वाला प्रपत्र लिखित होना चाहिए। इसीलिए व्यवहार में प्रतिपुरुष नियुक्त करने के लिए एक प्रतिपुरुष फार्म (Proxy Form) भरा जाता है। इस फार्म पर प्रतिपुरुष नियुक्त करने वाले सदस्य अथवा। उसके अधिकृत व्यक्ति का नाम, पता तथा हस्ताक्षर होते हैं। संयुक्त अंशधारियों की दशा में इस पर सभी संयुक्त अंशधारियों के हस्ताक्षर होते हैं जब तक कि अन्तर्नियमों में ही इसके विपरीत कोई व्यवस्था न की गई हो। इस फार्म में प्रतिपुरुष के रूप में नियुक्त किये गये व्यक्ति का नाम लिखा जाता है। इस पर एक निर्धारित राशि का राजस्व टिकट भी लगाना पड़ता है। प्रॉक्सी फार्म कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 105 (नियम 57 सारणी F) के अनुसार अथवा इसके यथासम्भव समरुप होना चाहिए।

(5) प्रॉक्सी फार्म जमा कराने की अवधि (Time of Lodging the Proxy Form)-प्रत्येक सदस्य सभा के 48 घण्टे पूर्व किसी व्यक्ति को प्रतिपुरुष नियुक्त करके उसका फार्म कम्पनी के पास जमा करवा सकता है। प्रॉक्सी जमा करने के लिए 48 घण्टे से कम समय का प्रावधान किया जा सकता है। परन्तु 48 घण्टे से अधिक पूर्व का प्रावधान नहीं किया जा सकता।

(6) प्रतिपुरुष फार्मों का निरीक्षण (Inspection of Lodged Proxies)-सभा में मत देने का अधिकार रखने वाले प्रत्येक सदस्य को, सभा प्रारम्भ होने के 24 घण्टे पूर्व की अवधि से लेकर सभा समाप्त होने तक की समयावधि में कभी भी सामान्य व्यापारिक घण्टों में कम्पनी में जमा किए गए प्रतिपुरुषों (Proxies) का निरीक्षण कर सकता है। परन्तु निरीक्षण करने के आशय की सूचना कम से कम 3 दिन पूर्व लिखित रूप में दी जानी चाहिए।

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(7) प्रतिपुरुष खण्डनीय (Revocable) होता है। प्रतिपुरुष द्वारा मताधिकार प्रयोग करने से पूर्व इसे कभी भी समाप्त किया जा सकता है। यदि कोई सदस्य प्रतिपुरुष नियुक्त करने के बाद भी स्वयं सभा में उपस्थित हो जाता है और मताधिकार का प्रयोग करता है तो प्रतिपुरुष स्वत: ही समाप्त हो जाता है।

(8) प्रतिपुरुष नियुक्त करने वाले सदस्य की मृत्यु हो जाने पर भी प्रतिपुरुष का अधिकार समाप्त हो जाता है बशर्ते कम्पनी को इस तथ्य की सूचना प्राप्त हो जाय।

(9) प्रतिपुरुष एवं सदस्य में नियोक्ता एवं एजेण्ट का सम्बन्ध होता है। प्रतिपुरुष सदस्य के निर्देश पर ही मतदान करने को बाध्य है।

(10) प्रतिपुरुष फार्म का रद्द होना (Rejection of Proxy)-किसी भी प्रतिपुरुष फार्म को निम्नलिखित आधारों पर रद्द किया जा सकता है

(i) यदि उस पर उचित राजस्व टिकिट नहीं लगा है।

(ii) यदि वह अपूर्ण है।

(iii) यदि सदस्य के हस्ताक्षर नमूने के हस्ताक्षरों से मेल नहीं खाते हैं।

(iv) यदि सदस्य ने प्रतिपुरुष के अधिकारों का खण्डन कर दिया हो।

(v) यदि प्रतिपुरुष फार्म में कोई ऐसी गलती रह गई हो जिसका मताधिकार पर विपरीत प्रभाव पड़ता हो। यदि किसी गलती का मताधिकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है तो. तथा उससे किसी भी प्रकार का भिन्न अर्थ नहीं लगाया जा सकता हो तो वह प्रतिपुरुष फार्म रद्द नहीं किया जा सकता है।

(vi) यदि प्रतिपुरुष नियुक्त करने वाले सदस्य की मृत्यु हो जाती है अथवा वह पागल हो जाता है तो प्रतिपुरुष फार्म रद्द हो जाता है। किन्तु, यदि कम्पनी को उस सदस्य की मृत्यु अथवा पागलपन की सूचना नहीं है और प्रतिपुरुष मतदान कर देता है तो उसका मत वैध ही माना जायेगा।

(vii) यदि किसी अंशधारी ने अपने किन्हीं समान अंशों के लिए (for the same shares) दा। प्रतिपुरुष नियुक्त कर दिये हैं तो जिस प्रतिपुरुष फार्म पर बाद की तिथि अंकित है वही प्रतिपुरुष वैध माना जाता है। किन्तु यदि, दोनों ही प्रतिपुरुष फार्मों पर कोई तिथि अंकित नहीं है अथवा दोनों पर एक हा तिथि अंकित है तो दोनों ही प्रभावहीन होंगे तथा निरस्त माने जायेंगे।

(11) प्रतिपुरुष फार्मों की जाँच तथा रजिस्टर में प्रविष्टि (Scrutiny of Proxy and EDU the Register)-सभा से पूर्व निर्धारित समय में (सामान्यतः सभा के 48 घण्टे पहले) जितनमा प्रतिपरुष फाम प्राप्त हात ह, कम्पनी सचिव उनकी जाँच करता है। उनकी जाँच करते समय साप प्रारूप. सदस्य क हस्ताक्षर, राजस्व टिकट, जमा कराने की तिशिल विशेष ध्यान दता हा साप जिन-जिन प्रतिपरुष फामों को सही पाता है, उन्हें कमान

में लिख लेता है। इस राजस्टर। को प्रतिपुरुष रजिस्टर के नाम से जाना जाता है। इसमें प्रतिपरुष का नाम, सदस्य का नाम, सदस्य पर संख्या. मताधिकार आदि से सम्बन्धित बातों का उल्लेख होता है।इसका प्रारूप निम्न प्रकार हो सकता है

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प्रॉक्सी फार्म का नमूना (Specimen of Proxy Form)

अनमोल लिमिटेड

गाजियाबाद __ मैं/हम…… उपर्युक्त कम्पनी के सदस्य हैं/हैं और श्री . . . . . . . . . . . . . ‘ को अपनी ओर से 15 मार्च, 2017 को आयोजित होने वाली वार्षिक साधारण सभा में उपस्थित होने तथा मत देने के लिए अपने प्रतिपुरुष के रूप में नियुक्त करता हँ/करते हैं।

आज दिनांक 1 मार्च, 2017 को मैंने/हमने हस्ताक्षर किए।

हस्ताक्षर                                                                                                       टिकट

पता .. …. . . . . .

प्रतिपुरुष के अधिकार (Rights of Proxy)-प्रतिपुरुषों को प्राय: निम्नलिखित अधिकार प्राप्त होते हैं

(i) प्रत्येक प्रतिपुरुष सभा में उपस्थित हो सकता है।

(ii) वह सभा में केवल मतांकन (Poll) के समय ही मतदान कर सकता है, किन्तु यदि अन्तर्नियमों में व्यवस्था हो तो वह अन्य विधियों से (हाथ खड़े करके भी) मतदान में भाग ले सकता है।

(iii) एक सदस्य एक ही समय, एक ही सभा के लिए, एक से अधिक प्रतिपुरुष नियुक्त कर सकता है। किन्तु, निजी कम्पनी का सदस्य एक समय में केवल एक ही प्रतिपुरुष नियुक्त कर सकता है, जब तक कि उस कम्पनी के अन्तर्नियम उसे एक से अधिक प्रतिपुरुष नियुक्त करने का अधिकार प्रदान नहीं करते हैं।

(iv) किसी एकाकी (Individual) सदस्य के प्रतिपुरुष को सभा में बोलने का अधिकार नहीं होता है। किन्तु उसे अध्यक्ष द्वारा बोलने की अनुमति प्रदान की जा सकती है। इसके अतिरिक्त, उसके द्वारा लिखित में प्रश्न पूछने पर अधिनियम में कोई प्रतिबन्ध नहीं है।

(v) एक सार्वजनिक कम्पनी या किसी भी समामेलित संस्था का प्रतिपुरुष सभा में बोल सकता है, प्रश्न पूछ सकता है तथा विचार-विमर्श में भाग ले सकता है, क्योंकि समामेलित संस्था स्वयं बोल नहीं सकती है।

(vi) राष्ट्रपति तथा राज्यपाल द्वारा नियुक्त प्रतिपुरुष भी कम्पनी की सभाओं में बोलने का अधिकार रखते हैं।

(vii) कोई भी प्रतिपुरुष स्वयं अथवा किसी के साथ मिलकर मतदान की माँग कर सकता है।

(viii) विशेष प्रतिपुरुष (Special Proxy) को केवल उसी प्रस्ताव पर मत देने का अधिकार होता है, जिसके लिए उसे नियुक्त किया गया है तथा साधारण प्रतिपुरुष (General Proxy) को सभी प्रस्तावों पर मतदान करने का अधिकार होता है।

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सभा का स्थगन

(Adjournment of Meeting)

जब निर्धारित तिथि पर किन्हीं कारणों से सभा की कार्यवाही नहीं की जा सकती है तो इसी सभा को किसी अन्य तिथि पर करना, सभा का स्थगन कहा जाता है और यह सभा स्थगित (adjourned meeting) कही जाती है। जब तक कानून द्वारा स्पष्टतया सभा पर रोक न हो, स्थगन किया जा सकता है। स्थगन की कुछ दशाएँ निम्नांकित हैं

(i) कार्यवाहक संख्या पूरी न होने पर, (ii) सभा में गड़बड़ी होने पर, (iii) मतगणना के सम्बन्ध में, (iv) किसी बहस वाले विषय पर अधिक सूचना पाने के लिए, (v) अन्य किसी कारण से, जिसे सदस्य उचित समझें।

स्थगन के बाद जो सभा की जाती है, उसमें वही काम किया जाता है जो उस समय नहीं किया जा सका था, जब इस सभा को मूलरूप में बुलाया गया था।

सभा के स्थगन सम्बन्धी वैधानिक प्रावधान

(Legal Provisions As To Adjournment Of Meeting)

1. यदि अन्तर्नियमों के अन्तर्गत सभापति को सभा के स्थगन का अधिकार प्राप्त है तो सभा द्वारा स्थगन प्रस्ताव पारित करने पर सभापति सभा के स्थगन के लिए बाध्य है।

2. सभा में अव्यवस्था होने पर और सभापते की बार-बार दी गई चेतावनी का भी सदस्यों पर। प्रभाव न पड़ने पर सभापति द्वारा सभा की कार्यवाही को कुछ समय के लिए स्थगित किया जा सकता है।

3. यदि कम्पनी की किसी सभा के निर्धारित समय के आधे घण्टे के भीतर भी कार्यवाहक संख्या (Quorum) उपस्थित नहीं होती तो सभा अगले सप्ताह के लिए उसी दिन, उसी स्थान एवं उसी समय तक के लिए स्थगित मानी जाती है। यदि ऐसा दिन सार्वजनिक अवकाश का दिन है तो सभा उसके अगले दिन के लिए स्थगित हो जाती है।

4. कार्यवाहक संख्या के अभाव में स्थगित सभा में कार्यवाहक संख्या उपस्थित न होने पर ऐसी। सभा को पुनः स्थगित नहीं किया जायेगा। ऐसी सभा में उपस्थित सदस्यों की संख्या ही कार्यवाहक संख्या मान ली जायेगी भले ही सभा में एक सदस्य या प्रतिपुरुष ही उपस्थित क्यों न हो।

प्रायः कम्पनी के अन्तर्नियमों में सभा के स्थगन सम्बन्धी नियम दिये हुए होते हैं। कम्पनी के अन्तर्नियमों में कोई व्यवस्था न होने पर स्थगन सम्बन्धी तालिका ‘अ’ के निम्नलिखित नियम लागू होते हैं

(i) सभापति द्वारा सभा की सहमति से सभा को स्थगित किया जा सकता है।

(ii) सथगित सभा में उन्हीं कार्यों को पूरा किया जायेगा जो मूल सभा में पूरे नहीं किये जा सके थे।

(iii) स्थगित सभा के लिए सदस्यों को सूचना देने की आवश्यकता नहीं होती।

(iv) यदि सभा का स्थगन 30 दिन या इससे अधिक अवधि के लिए किया जा रहा है तो ऐसी स्थगित सभा की सूचना सदस्यों को मूल सभा की तरह देनी होगी।

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कार्यवाहक संख्या (गणपूरक संख्या या कोरम) का अर्थ

(Meaning Of Quorum)

कार्यवाहक संख्या से आशय सभा में उपस्थित सदस्यों की उस न्यूनतम संख्या से है जो सभा की कार्यवाही को वैध बनाने के लिए आवश्यक होती है। कार्यवाहक संख्या के बिना सभा की कार्यवाही प्रारम्भ नहीं की जा सकती। यह कार्यवाहक संख्या सभा की कार्यवाही के दौरान हमेशा बनी रहनी चाहिए। कम्पनी के अन्तर्नियम प्रत्येक प्रकार की सभा के लिए कार्यवाहक संख्या निर्धारित कर सकते हैं।

कोरम के सम्बन्ध में भारतीय कम्पनी अधिनियम, 2013 के प्रावधान

(Provisions of Indian Companies Act, 2013 Regarding Quorum)

जब तक कि कम्पनी के अन्तर्नियम निम्नलिखित वर्णित कोरम से अधिक का प्रावधान न करें तो कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 103 के अनुसार कोरम के सम्बन्ध में निम्नलिखित नियम लागू होंगे

() सार्वजनिक कम्पनी की दशा में-(i) यदि सभा की तिथि को सदस्यों की संख्या 1,000 से अधिक नहीं है तो कम-से-कम 5 सदस्य व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने चाहियें:, (ii) यदि सभा की तिथि को सदस्यों की संख्या 1,000 से अधिक परन्तु 5,000 तक है तो कम-से-कम 15 सदस्य व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने चाहियें; (iii) यदि सभा की तिथि को सदस्यों की संख्या 5,000 से अधिक है तो कम-से-कम 30 सदस्य व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने चाहिये।

() निजी कम्पनी की दशा में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित दो सदस्य कोरम की पूर्ति मानेंगे।

नोट-कम्पनी के अन्तर्नियम उक्त संख्या से अधिक संख्या को कार्यवाहक संख्या निर्धारित कर सकते हैं, किन्तु किसी भी दशा में अन्तर्नियम उक्त संख्या से कम संख्या को कार्यवाहक संख्या निर्धारित नहीं करेंगे। कार्यवाहक संख्या की गणना में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित सदस्य ही गिने जायेंगे. ‘प्रॉक्सी (Proxy) के रूप में उपस्थित सदस्य नहीं।

2. कार्यवाहक संख्या के होने पर सभा का स्थगित होना (Meeting to be postponed if  morum is not present)-कम्पनी की सभा करने के लिए नियुक्त समय के आधे घण्टे में यदि सदस्यों की कार्यवाही संख्या उपस्थित नहीं है तो

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(अ) सभा अगले सप्ताह उसी दिन, उसी स्थान या ऐसी अन्य तिथि समय और स्थान जो निदेशक मण्डल निर्धारित करे, के लिए स्थगित हो जाएगी: या (ब) यदि सभा धारा 100 के अन्तर्गत माँ

सभा धारा 100 के अन्तर्गत मॉगकर्ताओं के द्वारा बुलाई गई थी तो सभा रद्द समझी। गित सभा का दिन, समय या स्थान बदलने पर कम्पनी सभा की कम-से-कम 3′ को व्यक्तिगत रूप से या समाचार-पत्रों में विज्ञापन से (एक अंग्रेजी में और एक जाएगी। बशर्ते कि, स्थगित सभा का दिन, समय दिन की सूचना सदस्यों को व्यक्तिगत रूप से या समान स्थानीय भाषा में) देगी जो उस स्थान पर परिचालन में है जहाँ कम्पनी का पंजीकृत कार्यालय स्थापित है।

3. यदि स्थगित सभा में भी सभा के नियुक्त समय के आधे घण्टे में सदस्यों की कार्यवाही संख्या उपस्थित नहीं है तो सदस्यों की उपस्थित संख्या कार्यवाहक संख्या मानी जाएगी।

सभा का सभापति (Chairman of Meeting) (धारा 104)

(1) जब तक कि कम्पनी के अन्तर्नियमों में कोई अन्य प्रावधान न हो सभा में व्यक्तिगत रुप से उपस्थित सदस्य हाथ उठाकर अपने में से किसी एक को सभापति चुनेंगे।

(2) यदि सभापति के चुनाव के लिए मतदान की माँग की जाती है तो इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार मतदान तुरन्त कराया जाएगा और उपरोक्त तरीके से हाथ उठाकर चुना गया सभापति उस समय तक सभापति बना रहेगा जब तक मतदान के परिणाम के अनुसार नया सभापति न चुन लिया जाए। शेष सभा के लिए ऐसा चुना गया व्यक्ति सभापति होगा।

प्रस्ताव (संकल्प) |Resolution]

अंग्रेजी में Motion तथा Resolution दो शब्द हैं। कुछ व्यक्ति Motion को हिन्दी में “सुझाव’ तथा Resolution को ‘प्रस्ताव’ कहते हैं। इसके विपरीत कुछ व्यक्ति Motion को ‘प्रस्ताव’ तथा __ Resolution को ‘संकल्प’ कहते हैं। हम Motion के लिए ‘सुझाव’ तथा Resolution के लिए ‘प्रस्ताव’ शब्द का प्रयोग कर रहे हैं।

सभा के समक्ष विचार एवं निर्णय के लिए प्रस्तुत किसी विषय या मामले को ही सुझाव (Motion) कहते हैं। सुझाव का उद्देश्य कार्यसूची के किसी विषय को सभा में विचार-विमर्श एवं निर्णय के लिए प्रस्तुत करना होता है। सभा में कोई भी सदस्य सुझाव प्रस्तुत कर सकता है, किन्तु यदि उस सुझाव का किसी अन्य सदस्य द्वारा समर्थन (Second) नहीं किया जाता है तो वह गिरा हुआ सुझाव (Dropped motion) माना जाता है। सभापति द्वारा प्रस्तुत सुझाव के लिए अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होती है। कोई सुझाव जब अंशधारियों के आवश्यक बहुमत द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है, तो उसे प्रस्ताव (Resolution) कहते हैं।

प्रस्ताव का अर्थ (Meaning of Resolution)-एक ‘प्रस्तावित प्रस्ताव’ (Proposed Resolution) या ‘सुझाव’ (Motion) जब अंशधारियों के आवश्यक बहुमत द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है तो उसे प्रस्ताव (Resolution) कहते हैं अर्थात् स्वीकृत ‘सुझाव’ को ही प्रस्ताव कहते हैं। ऐसा ‘सुझाव’ उसी रूप में या कुछ संशोधनों के साथ स्वीकार किया जा सकता है।

प्रस्ताव के भेद या प्रकार (Kinds of Resolutions)-कम्पनी अधिनियम के अनुसार प्रस्ताव चार प्रकार के होते हैं-(1) साधारण प्रस्ताव, (2) विशेष प्रस्ताव तथा (3) विशेष सूचना वाले प्रस्ताव (4) स्थगित सभा में पारित किए गए प्रस्ताव।

(1) साधारण प्रस्ताव (Ordinary Resolution)-साधारण प्रस्ताव से आशय ऐसे प्रस्ताव से है जो कम्पनी की साधारण सभा में साधारण बहुमत से पारित किया जाता है। यदि प्रस्ताव के पक्ष में आये हुए मत विपक्ष में आये हुए मतों की तुलना में अधिक होते हैं तो प्रस्ताव पारित हो जाता है। इसके विपरीत, यदि विपक्ष में आये हुए मत, पक्ष में आये हुए मतों से अधिक होते हैं तो प्रस्ताव अस्वीकृत माना जाता है। साधारण प्रस्ताव के लिए यह आवश्यक है कि सभा उचित ढंग से आयोजित की जाये। इसके लिए उचित सूचना दी जानी आवश्यक है। साधारण सभा के लिए 21 दिन का नोटिस आवश्यक है। इस नोटिस में सभा का स्थान, सभा की तारीख तथा समय एवं सभा में की जाने वाली कार्यवाही का विवरण भी दिया जाना चाहिए।

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कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 114(1) के अनुसार, एक प्रस्ताव साधारण प्रस्ताव होगा यदि इस अधिनियम के अन्तर्गत आवश्यक सूचना दे दी गई है एवं इसको पारित किए जाने के लिए डाले गए मत, हाथ उठाकर के, विद्युतीय माध्यम (Electronically) या मतदान में, जैसी भी स्थिति हो प्रस्ताव के पक्ष में सभापति के निर्णायक मत (Casting Vote) सहित यदि कोई है, सदस्यों द्वारा जो मत देने के अधिकारी हैं या उन्हें प्रतिपुरुष के द्वारा मत देने की आज्ञा है वहाँ प्रतिपुरुष के द्वारा या डाक द्वारा डाले गये मत, यदि कोई है प्रस्ताव के विरुद्ध डाले गए मतों से अधिक हैं। सरल शब्दों में, साधारण प्रस्ताव कुल वैध मतों के 50 प्रतिशत से अधिक मतों से पारित किया जाता है।

साधारण प्रस्ताव पारित करते समय सभा का अध्यक्ष स्वतन्त्र मत दे सकता है यदि अन्तर्नियमों में ऐसी व्यवस्था है। इसी प्रकार किसी प्रस्ताव के पक्ष और विपक्ष में बराबर मत आने पर अध्यक्ष को निर्णायक मत (Casting Vote) देने का अधिकार भी अन्तर्नियमों द्वारा प्रदान किया जा सकता है।

साधारण प्रस्ताव द्वारा सम्पन्न किये जाने वाले कार्य (Business Transactions with Ordinary Resolution)-ऐसे सभी कार्य जिनके सम्बन्ध में निर्णय करने के लिए विशेष प्रस्ताव पारित करने की आवश्यकता नहीं होती है वे साधारण प्रस्ताव पारित करके ही सम्पन्न किये जाते हैं। साधारण प्रस्ताव द्वारा किये जाने वाले प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं

(1) साधारण कार्य (Ordinary Business)

(i) कम्पनी के अन्तिम खातों एवं उनसे सम्बन्धित संचालकों व अंकेक्षकों के प्रतिवेदन को स्वीकार करना।

(ii) लाभांश घोषित करना।

(iii) रिटायर हुए संचालकों के स्थान पर संचालकों की नियुक्ति करना।

(iv) अंकेक्षकों की नियुक्ति करना एवं उनका पारिश्रमिक निश्चित करना।

(2) विशेष कार्य (Special Business)-कुछ विशेष कार्य भी साधारण प्रस्ताव पारित करके किये जा सकते हैं, परन्तु ऐसे विशेष कार्यों के लिए पूर्व सूचना देना आवश्यक होता है। साधारण प्रस्ताव पारित करके किये जाने वाले कुछ विशेष कार्य निम्नलिखित हैं

(i) वैधानिक रिपोर्ट स्वीकार करना।

(ii) बट्टे पर अंशों का निर्गमन करना।

(iii) अंश पूँजी में परिवर्तन (Alteration) करना।

(iv) अन्तर्नियमों द्वारा निर्धारित सीमा के अन्तर्गत संचालकों की संख्या में कमी या वृद्धि करना।

(v) किसी संचालक को उसके पद से हटाना।

(vi) एकाकी विक्रय एजेण्टों की नियुक्ति करना।

(vii) संचालकों को कम्पनी के कारोबार को बेचने के लिए अधिकृत करना।

(viii) विशिष्ट दशाओं में कम्पनी का ऐच्छिक समापन करना।

(ix) अन्तर्नियमों के अनुसार अन्य कोई कार्य करना।

यह उल्लेखनीय है कि ऐसे सभी कार्यों के लिए साधारण प्रस्ताव पारित करना ही पर्याप्त है जब तक कि कम्पनी अधिनियम या अन्तर्नियमों के अन्तर्गत कोई विपरीत बात न दी गई हो।

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साधारण प्रस्ताव के उदाहरण (Examples of Ordinary Resolution)

1 “प्रस्ताव स्वीकार किया गया कि श्री संजीव गोयल की कम्पनी के संचालक पद पर नियुक्ति की जाये और इस प्रकार नियुक्ति की जाती है।”

2. “प्रस्ताव स्वीकार किया गया कि कम्पनी के समता अंशों पर 8 प्रतिशत की दर से लाभांश घोषित किया जाय और इस प्रकार लाभांश घोषित किया जाता है।”

3. प्रस्ताव स्वीकार किया गया कि श्री आशीष गर्ग की 22,000 ₹ प्रतिमाह के वेतन व कम्पनी के नियमानुसार अन्य भत्तों पर कम्पनी के सचिव के रूप में नियुक्ति की जाये जो दोनों ही पक्षकारों की ओर से तीन माह की पूर्व सूचना देकर समाप्त की जा सकती है, और इस प्रकार नियुक्ति की जाती है।”

4. “प्रस्ताव पारित किया गया कि वर्ष 2016-17 की संचालकों की रिपोर्ट और अंकेक्षित वार्षिक खाते, जिन्हें कम्पनी के अंकेक्षकों द्वारा प्रमाणित किया जा चुका है, को स्वीकार किया जाय।”

5. प्रस्ताव स्वीकार किया गया कि श्री अरूण बंसल, चार्टर्ड एकाउण्टेण्ट्स को 50,000 ₹ वार्षिक पारिश्रमिक पर वर्ष 2016-17 के लिए कम्पनी का अंकेक्षक नियुक्त किया गया।

(2) विशेष प्रस्ताव (Special Resolution)-कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 114 (2) के अनुसार कोई प्रस्ताव विशेष प्रस्ताव कहलाता है, जबकि

() प्रस्ताव को विशेष प्रस्ताव के रुप में प्रस्तावित करने का इरादा, सभा को बुलाने वाली सूचना या प्रस्ताव के बारे में सदस्यों को दी गई अन्य सूचना में विधिवत् रुप से निर्दिष्ट कर दिया गया है।

() इस अधिनियम के अन्तर्गत आवश्यक सूचना विधिवत् रुप से दे दी गई है; एवं

() प्रस्ताव के पक्ष में डाले गए मत चाहे हाथ उठाकर के, विद्युतीय तरीके से या मतदान के द्वारा जैसी भी स्थिति हो, सदस्यों द्वारा जो ऐसा करने के अधिकारी हैं व्यक्तिगत रुप से, प्रतिपुरुष द्वारा अथवा डाक द्वारा मतदान द्वारा प्रस्ताव के विरुद्ध मत देने वाले सदस्यों के द्वारा दिए गए मत से तीन गुना अधिक हैं। सरल शब्दों में, विशेष प्रस्ताव 3/4 बुहमत या 75% या इससे अधिक मतों से पारित किया जाता है। मतों की गणना करते समय केवल उन सदस्यों की गणना की जाती है जो वहाँ उपस्थित हैं एवं ऐसे सदस्य जो मत नहीं देते हैं उन पर विचार नहीं किया जाता अर्थात् ऐसे सदस्य जो तथा प्रस्ताव के विरुद्ध मत नहीं देते हैं उनकी गणना नहीं की जाती।

जब तक कि अन्तर्नियम अथवा कानून एक प्रस्ताव को अन्यथा आवश्यक न माने (उदाहरण के लिए विशेष प्रस्ताव) यह हमेशा साधारण प्रस्ताव होगा। जब तक अन्तर्नियमों में कोई अन्य प्रावधान न हो मण्डल के प्रस्ताव हमेशा साधारण बहुमत से पास किए जाते हैं। अन्तर्नियम या कानून में प्रावधान हो सकता है कि मण्डल का प्रस्ताव कुछ विशिष्ट दशाओं में सर्वसम्मति से (Unanimously) पारित किया जाना चाहिए। एक साधारण प्रस्ताव सभी प्रकार की साधारण सभाओं अर्थात् वार्षिक, विशेष साधारण सभा, मण्डल या मण्डल की समतियों की सभाओं के समय पारित किया जा सकता है।

अतः स्पष्ट है कि विशेष प्रस्ताव कम से कम तीन-चौथाई या 75 प्रतिशत बहुमत से पारित किया जाता है। ऐसे प्रस्ताव को प्रस्तुत करने की सूचना कम से कम 21 दिन पूर्व दे दी जानी चाहिए और ऐसी सूचना में विशेष प्रस्ताव किये जाने का इरादा भी स्पष्ट कर देना चाहिए।

यह उल्लेखनीय है कि विशेष प्रस्ताव के लिए मतदान हस्तप्रदर्शन द्वारा अथवा मतगणना द्वारा किया जा सकता है। इसके अन्तर्गत केवल वैध मतों को ही गिना जाता है। विशेष प्रस्ताव हेतु अध्यक्ष के स्वतन्त्र मत की भी व्यवस्था नहीं होती। प्रस्ताव पारित करने के 30 दिन के भीतर विशेष प्रस्ताव की एक प्रतिलिपि रजिस्ट्रार के पास भेजना आवश्यक होता है।

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विशेष प्रस्ताव द्वारा किये जाने वाले कार्य (Business Transactions with Special Resolution)-कम्पनियों द्वारा सभी महत्त्वपूर्ण कार्य विशेष प्रस्ताव पारित करके ही किये जाते हैं। मुख्यत: निम्नलिखित कार्यों के लिए विशेष प्रस्ताव पारित करने की आवश्यकता होती है

(i) कम्पनी के पार्षद सीमानियम में परिवर्तन करने के लिए।

(ii) कम्पनी के पार्षद अन्तर्नियमों में परिवर्तन करने के लिए।

(iii) अंश पूँजी में कमी करने के लिए।

(iv) पूँजी में से ब्याज का भुगतान करने के लिए।

(v) संचालकों व कम्पनी के अन्य अधिकारियों के दायित्व को असीमित करने के लिए।

(vi) अन्वेषण (Investigation) की माँग करने के लिए।

(vii) किसी संचालक को लाभ का स्थान ग्रहण करने के लिए।

(viii) कम्पनी की प्रार्थित अंश पूँजी (Subscribed Share Capital) का 25 प्रतिशत या अधिक भाग पर सरकार या सार्वजनिक वित्तीय संस्थाओं आदि का अधिकार होने की दशा में अंकेक्षकों की नियुक्ति या पुनर्नियुक्ति करने के लिए।

(ix) कम्पनी के अनिवार्य समापन हेतु न्यायालय को प्रार्थना-पत्र देने के लिए।

(x) संचालकों के पारिश्रमिक निर्धारण के लिए (यदि अन्तर्नियमों द्वारा आवश्यक हो)।

(xi) कम्पनी का ऐच्छिक समापन करने के लिए।

(xii) ऐच्छिक समापन की अवस्था में निस्तारक को कम्पनी की सम्पत्तियों के विक्रय के प्रतिफल में अन्य कम्पनियों के अंश स्वीकार करने का अधिकार देने के लिए।

(xiii) किसी भी वर्ग के अंशधारियों के अधिकारों में परिवर्तन करने के लिए।

(xiv) अन्य कोई भी ऐसा कार्य करने के लिए जिसके लिए अन्तर्नियमों में विशेष प्रस्ताव पारित करने की आवश्यकता हो।

विशेष प्रस्तावों के उदाहरण (Examples of Special Resolutions)

  1. “प्रस्ताव स्वीकार किया गया कि कम्पनी का नाम अनमोल लिमिटेड से ‘आयुष लिमिटेड’ में परिवर्तित किया जाये और इस हेतु केन्द्रीय सरकार से अनुमति प्राप्त करने के लिए आवश्यक कार्यवाही की जाये।”
  2. “प्रस्ताव स्वीकार किया गया कि श्री अनुप कुमार, प्रबन्ध संचालक के दायित्व को असीमित किया जाये और उन्हें इस आशय की लिखित सूचना दी जाये।”
  3. “प्रस्ताव स्वीकार किया गया कि कम्पनी के रजिस्टर्ड कार्यालय को पानीपत (हरियाणा) से मेरठ (उत्तर प्रदेश) में लाया जाये तथा इस परिवर्तन की सूचना सम्बन्धित पक्षकारों को दी जाये।”
  4. “प्रस्ताव स्वीकार किया गया कि कम्पनी का अनिवार्य समापन न्यायालय द्वारा किया गया और इस हेतु न्यायालय में आवेदन पत्र प्रस्तुत किया जाये।”
  5. “प्रस्ताव स्वीकार किया गया कि कम्पनी को निजी कम्पनी से सार्वजनिक कम्पनी में परिवर्तित किया जाये और संचालकों को इस हेतु आवश्यक कार्यवाही करने के लिए अधिकत किया जाये।”।

(3) विशेष सूचना वाले प्रस्ताव (Resolutons Requiring Special Notice)- कुछ प्रस्ताव ऐसे होते हैं जिनको सभा में रखने से पूर्व उनकी सूचना कम्पनी के पास भेजनी अनिवार्य होती है। अतः जिन संकल्पों/प्रस्तावों को सभा में प्रस्तुत करने से पूर्व कम्पनी को सूचित किया जाना अनिवार्य होता है. उन्हीं प्रस्तावों को ‘विशेष सुचना वाले प्रस्ताव’ (Resolutions requiring special notice) कहते हैं। ऐसे प्रस्तावों का उद्देश्य कम्पनी के सदस्यों को विस्तृत विचार विमर्श हेतु पर्याप्त समय व अवसर प्रदान करता

कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 115 के अनुसार इस अधिनियम में दिए गए किसी प्रावधान या कम्पनी के अन्तर्नियम द्वारा ऐसे प्रस्ताव को प्रस्तुत करने के इरादे के लिए किसी विशेष सूचना की आवश्यकता है तो इसकी सूचना ऐसी संख्या वाले सदस्यों द्वारा जो कुल मताधिकार शक्ति का 1% धारण करते हों या उनके पास ऐसे अंश हैं जिन पर अधिकतम 5 लाख रुपये चुकता कर दिए गए हैं और कम्पनी अपने सदस्यों को निर्दिष्ट तरीके से प्रस्ताव की सूचना देगी। अन्तर्नियम प्राय: इस बात का प्रावधान करते हैं कि कहाँ पर विशेष सूचना वाले प्रस्ताव की आवश्यकता है।

विशेष सूचना वाले प्रस्ताव को सभा में प्रस्तुत करने के लिए सदस्य सभा के कम से कम 14 दिन पूर्व कम्पनी के पास भेजता है। इन 14 दिनों में सूचना भेजने के दिन तथा सभा के दिन को शामिल नहीं किया जाता है। जब कम्पनी किसी सदस्य से कोई प्रस्ताव 14 दिन पूर्व प्राप्त कर लेती है तो वह उस प्रस्ताव को सदस्यों को प्रेषित करने की व्यवस्था करती है। कम्पनी को इस प्रस्ताव की सूचना सभा के कम से कम सात दिन पूर्व सभी सदस्यों के पास पहुँचानी पड़ती है। कम्पनी को यह सूचना सामान्यत: लीक उसी रूप में भेजनी पड़ती है जिस रूप में वह सभा की सूचना भेजती है। यदि ऐसा करना सम्भव न हो तो कम्पनी को सभा के कम से कम सात दिन पूर्व उस प्रस्ताव की सूचना किसी ऐसे समाचार-पत्र में प्रकाशित करवानी पड़ती है जिसका उस क्षेत्र में उचित प्रसार (Circulation) हो अथवा सूचना किसी ऐसी रीति से देनी पड़ती है, जिसकी अन्तर्नियमों में व्यवस्था हो।

विशेष सूचना वाले प्रस्तावों को कम्पनी की सभा में साधारण अथवा विशेष प्रस्ताव (जैसी भी आवश्यकता हो) के द्वारा पारित किया जा सकता है।

विशेष सूचना की आवश्यकता वाले प्रस्ताव अथवा कार्य-निम्नलिखित प्रस्ताव विशेष सूचना दिये जाने पर ही पारित किये जा सकते हैं

(i) किसी निवर्तमान अंकेक्षक (retiring auditor) की पुनर्नियुक्ति नहीं होने देने सम्बन्धी प्रस्ताव। [धारा 140]

(ii) किसी निवर्तमान अंकेक्षक के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति की अंकेक्षक के रूप में नियुक्ति का प्रस्ताव। [धारा 140]

(iii) किसी निवर्तमान संचालक के स्थान पर किसी नये व्यक्ति की संचालक के रूप में नियुक्ति का प्रस्ताव। [धारा 160]

(iv) किसी संचालक को उसके कार्यकाल की समाप्ति के पूर्व ही हटाने का प्रस्ताव। [धारा 169]

(v) किसी हटाये गये संचालक के स्थान पर किसी दूसरे व्यक्ति की नियुक्ति का प्रस्ताव। [धारा 169]

साधारण प्रस्ताव तथा विशेष प्रस्ताव में अन्तर

(Difference Between Ordinary And Special Resolution)

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4. स्थगित सभा में पारित किए गए प्रस्ताव (Resolutions passed at Adjourned Meeting) [धारा 116]–जहाँ निम्नलिखित की स्थगित सभाओं में प्रस्ताव पारित किया जाता है

() एक कम्पनी; या

() कम्पनी में किसी वर्ग के अंशों के धारक; या

() कम्पनी के निदेशक मण्डल,

सभी उद्देश्यों के लिए उस तिथि को पारित किया माना जाएगा जिस तिथि को वास्तव में यह पारित किया गया था और किसी अन्य पूर्व (earlier) तिथि को पारित किया हुआ नहीं माना जाएगा।

सभा के सूक्ष्म या सभा का कार्यवृत्त

(Minutes of Meeting)

सूक्ष्म का शाब्दिक अर्थ ऐसी टिप्पणी से है जो किसी बात को याद रखने के लिए लिख ली जाती है। सभा के सूक्ष्म से अभिप्राय सभा में किये गये कार्यों, लिए गए निर्णयों एवं पारित प्रस्तावों के लिखित अभिलेख से है। कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 118 के अनुसार प्रत्येक कम्पनी लेनदारों अथवा अंशधारियों के किसी भी वर्ग की साधारण सभा एवं डाकमत (Postal Ballot) द्वारा पारित प्रत्येक प्रस्ताव तथा निदेशक मण्डल अथवा मण्डल की प्रत्येक समिति की प्रत्येक सभा के सूक्ष्म तैयार करेगी एवं निर्दिष्ट तरीके से हस्ताक्षर कराएगी एवं प्रत्येक ऐसी सम्बन्धित सभा के पूरा होने पर 30 दिन के अन्दर सभा की कार्यवाही का उल्लेख कार्यवाही पुस्तक में साक्ष्य के रूप में करना होगा। कार्यवाही पुस्तक के प्रत्येक पृष्ठ पर पृष्ठ संख्या अंकित होनी चाहिए। सभापति द्वारा प्रमाणित एवं हस्ताक्षरित सूक्ष्म उस सभा की कार्यवाही का प्राथमिक साक्ष्य होते हैं।

सूक्ष्म लिखने के लिए एक पृथक् पुस्तिका होती है जिसे सूक्ष्म-पुस्तिका (Minute Book) कहते हैं। अंशधारियों की सभाओं व संचालक मण्डल की सभाओं के लिए पृथक्-पृथक् सूक्ष्म पुस्तिकाएँ होनी चाहिये।

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सूक्ष्म की परिभाषाएँ (Definitions)

ली एण्ड बार (Lee and Barr) के अनुसार, “सूक्ष्म एक ऐसा लिखित अभिलेख है जिसमें अंशधारियों की सभा अथवा संचालक मण्डल की सभा में की गई कार्यवाहियों, विचार किये गये विषयों तथा सभा द्वारा उन पर किये गये निर्णयों का सही एवं ठीक विवेचन होता है।”

पामर के अनुसार, “सूक्ष्म, सभा में किये गये कार्यों का लिखित अभिलेख है।” (Minutes are the written record of the business done in a meeting-Palmer)

घोष के अनुसार, “सूक्ष्म किसी सभा की कार्यवाहियों एवं निर्णयों के अधिकृत अभिलेख हैं।” (Minutes are the official record of the proceedings and decisions of a meeting-Ghosh)

सूक्ष्म, सभा की कार्यवाही का प्रतिबिम्ब होता है, अत: सचिव को सूक्ष्म लिखते समय पर्याप्त सावधानी बरतनी चाहिए। उनमें प्रयोग किये जाने वाले शब्दों का चुनाव पर्याप्त सावधानी से करना चाहिए। सक्ष्म लिखने में ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए जिनका दुहरा अर्थ हो। सभा का सूक्ष्म संक्षिप्त एवं सही-सही लिखा जाना चाहिए।

विशेषताएँ (Characteristics)

एक अच्छे सूक्ष्म की निम्नलिखित विशेषतायें होती हैं

(i) सूक्ष्म नाम के ही अनुरूप संक्षिप्त व स्पष्ट होनी चाहिए।

(ii) सूक्ष्म सभा की कार्यवाही का पूर्ण विवरण प्रस्तुत करे।

(iii) सूक्ष्म निष्पक्ष रूप से लिखी एवं वर्णित हो।

(iv) सूक्ष्म की भाषा सरल व स्पष्ट होनी चाहिए।

(v) सुक्ष्म में सभा का नाम, समय, स्थान व दिनांक आदि का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए।

(vi) सभा के सभापति व उपस्थित सदस्यों के नाम भी सूक्ष्म में होने चाहिए।

(vii) सूक्ष्म में सभा में पारित प्रस्तावों, किए गए वाद-विवादों तथा लिए गए निर्णयों का निष्पक्ष स्पष्ट किन्तु संक्षिप्त वर्णन होना चाहिए।

सूक्ष्म के प्रकार (Types of Minutes)

सूक्ष्म निम्नलिखित दो प्रकार से लिखे जा सकते हैं

(1) सारांश सूक्ष्म (Summary Minutes) सारांश सूक्ष्म में केवल सभा में पारित प्रस्तावों का ही संक्षिप्त उल्लेख किया जाता है। इस प्रकार के सूक्ष्म में सभा में हुए विचार-विनिमय के विवरण के स्थान पर केवल प्रस्ताव के निर्णय लिखे जाते हैं। इस प्रकार के सूक्ष्म अपेक्षाकृत संक्षिप्त होते हैं।

(2) विवरणात्मक सूक्ष्म (Descriptive Minutes) विवरणात्मक सूक्ष्म में सभा की सम्पूर्ण कार्यवाही का उल्लेख किया जाता है। इन सूक्ष्मों में प्रत्येक सदस्य द्वारा किया गया वाद-विवाद, सभा में प्रस्तुत प्रस्तावों पर हुए विचार विमर्श एवं मतदान आदि का पूर्ण उल्लेख किया जाता है। इस प्रकार के सूक्ष्म में पारित न होने वाले प्रस्तावों का विवरण भी दिया जाता है।

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सूक्ष्म की विषयवस्तु अथवा सूक्ष्म की विषयसामग्री

(Contents of The Minutes)

सूक्ष्म में सभा की सभी बातों का ज्यों का त्यों विवरण लिखना सम्भव नहीं होता है, किन्तु इनमें उन समस्त महत्त्वपूर्ण बातों का उल्लेख होता है, जो सभा की मूल बातों, निर्णयों तथा प्रस्तावों से सम्बन्धित होती हैं। सभा के सूक्ष्म में सामान्यतया निम्नलिखित बातों का उल्लेख होता है-(i) सभा का नाम तथा प्रकृति; (ii) सभा की तिथि, समय एवं स्थान; (iii) सभा के अध्यक्ष का नाम; (iv) सभा में उपस्थित संचालक एवं अन्य सदस्यों के नाम तथा संख्याः (v) सभा में पारित प्रस्तावों का विवरणः (vi) सभा में लिये गये निर्णयों का विवरण तथा निर्णय लेने की परिस्थितियाँ; (vii) अधिकारियों की नियुक्ति, उनके पारिश्रमिक, सेवा की शर्तों आदि से सम्बन्धित विवरण; (viii) ऐसे प्रस्तावों का विवरण जो सभा में पारित नहीं किये जा सके; (ix) प्रस्ताव के पक्ष और विपक्ष में प्राप्त मतों की संख्या; (x) सभा की कार्यवाही में आने वाली बाधाओं का विवरण; (xi) विरोध स्वरूप सभा छोड़कर जाने वाले सदस्यों के नाम; (xii) उन सदस्यों के नाम जिन्हें सभापति द्वारा सभा के बाहर जाने की आज्ञा दी गई, आज्ञा न मानने पर जिन्हें जबरदस्ती बाहर निकाला गया; (xiii) सदस्यों द्वारा प्रस्तावों के सम्बन्ध में उठाई गई आपत्तियों का विवरण और उनके सम्बन्ध में अध्यक्ष का निर्णय; (xiv) अध्यक्ष के हस्ताक्षर तथा तिथि।

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सूक्ष्म सम्बन्धी वैधानिक प्रावधान

(Statutory Provisions Regarding Minutes)

कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 118 से धारा 120 तक के विभिन्न प्रावधानों के अन्तर्गत सभाओं के सूक्ष्म निम्नांकित प्रकार से लिखे एवं सुरक्षित रखे जाने चाहियें

(1) सूक्ष्म पुस्तिका के प्रत्येक पृष्ठ पर क्रम संख्या एवं हस्ताक्षर-अलग-अलग सभाओं की अलग-अलग सूक्ष्म पुस्तक होनी चाहिये तथा इन सूक्ष्म पुस्तकों के सभी पृष्ठों पर क्रमांक तथा हस्ताक्षर होने चाहिये।

(2) सूक्ष्म लिखने की अवधिसूक्ष्म, सभा समाप्ति के 30 दिन के भीतर ऐसी पस्तिकाओं में अनिवार्यतः लिखे जाने चाहिये जो इसी उद्देश्य के लिए रखी गई हों।

(3) सूक्ष्म के चिपकाने या संलग्न करने पर प्रतिबन्धकिसी भी दशा में सभा की कार्यवाही के सूक्ष्म को सूक्ष्म-पुस्तिका में चिपकाना या संलग्न नहीं किया जाना चाहिए। ।

(4) सही उचित सारांशसूक्ष्म में सभी की कार्यवाही का सही एवं उचित सारांश लिखा जाना चाहिए।

(5) अधिकारियों की नियुक्ति का उल्लेखकिसी भी सभा में की गई अधिकारियों की नियुक्ति का उल्लेख उस सभा की कार्यवाही के सूक्ष्म में अवश्य किया जाना चाहिए।

(6) संचालक मण्डल या संचालक समिति की सभा के सक्ष्म की दशा में संचालक मण्डल बालक मण्डल की समिति की सभा के सूक्ष्म में निम्नलिखित बातों का भी उल्लेख किया जाना। चाहिए

में पारित प्रस्तावों के सम्बन्ध में असहमत संचालकों के नाम।

(i) सभा में उपस्थित संचालकों के नाम, और

(ii) सभा में पारित प्रस्तावों के सम्म

(7) अनुचित विवरण को सूक्ष्म में सम्मिलित न करना-सभापति को यह अधिकार है कि वह। किसी भी ऐसे विवरण को सुक्ष्म में सम्मिलित करने से इन्कार कर सकता है जो किसी व्यक्ति के लिए। अपमानजनक, व्यर्थ या महत्त्वहीन है या कम्पनी के हितों के विरुद्ध है।

(8) दण्डसभा की कार्यवाही के सूक्ष्म से सम्बन्धित उपयुक्त व्यवस्थाओं का पालन न करने पर कम्पनी तथा कम्पनी के प्रत्येक दोषी अधिकारी पर 5,000 ₹ तक का आर्थिक दण्ड किया जा सकता है।

(9) सूक्ष्म, कार्यवाही का एक अधिकृत प्रमाण है-यदि सभा की कार्यवाही के सूक्ष्म उपर्युक्त व्यवस्थाओं के अनुसार ठीक प्रकार से रखे जाते हैं तो जब तक कोई अन्य बात सिद्ध न हो जाय तो यह माना जायेगा कि सभा उचित प्रकार से बुलाई गई और आयोजित की गई थी और सूक्ष्म में वर्णित कार्यवाही वास्तव में हुई थी।

(10) सूक्ष्म पुस्तिका का निरीक्षणकम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 119 के अनुसार सूक्ष्म पुस्तिका के निरीक्षण के सम्बन्ध में निम्नलिखित नियम महत्त्वपूर्ण हैं

(i) सूक्ष्म-पुस्तिका कम्पनी के रजिस्टर्ड कार्यालय में रखी जायेगी।

(i) यह सूक्ष्म-पुस्तिका सदस्यों के नि:शुल्क निरीक्षण के लिए प्रतिदिन कम से कम 2 घण्टे के लिए खुली रहेगी।

(iii) कोई भी सदस्य कम्पनी से सूक्ष्म पुस्तिका के किसी भी भाग की प्रतिलिपि प्राप्त कर सकता है। प्रतिलिपि प्राप्त करने के लिए निर्धारित शुल्क का भुगतान करना पड़ता है। प्रतिलिपि की माँग करने के सात दिन के भीतर कम्पनी को सूक्ष्म की प्रतिलिपि उपलब्ध करानी पड़ती है।

(iv) यदि कोई कम्पनी अपने सदस्य को सूक्ष्म पुस्तिका निरीक्षण हेतु उपलब्ध नहीं कराती है अथवा प्रतिलिपि की प्रार्थना पर सात दिनों में प्रतिलिपि उपलब्ध नहीं कराती है तो कम्पनी तथा कम्पनी के प्रत्येक दोषी अधिकारी पर पाँच हजार रुपये तक का जुर्माना किया जा सकता है। ऐसी दशा में न्यायालय, कम्पनी को सूक्ष्म पुस्तिका के निरीक्षण की व्यवस्था करने अथवा सूक्ष्म की प्रतिलिपि उपलब्ध कराने के लिए बाध्य भी कर सकता है।

(11) सूक्ष्म का प्रकाशनकम्पनी अपने खर्चे पर अपनी सभाओं की कार्यवाही रिपोर्ट का तब तक प्रकाशन अथवा विज्ञापन नहीं कर सकती है जब तक कि उन्हें सूक्ष्म पुस्तिका में धारा 118 के अनुसार लिख नहीं लिया जाता है तथा उन पर सभापति द्वारा हस्ताक्षर नहीं किये जाते हैं। यदि कोई कम्पनी इस धारा के पालन में त्रुटि करती है तो उस कम्पनी तथा उसके प्रत्येक दोषी अधिकारी पर प्रत्येक अपराध के लिए पाँच हजार रुपये तक का जुर्माना किया जा सकता है।

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परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions)

1 एक कम्पनी की सभाओं के सम्बन्ध में ‘साधारण व्यवसाय’ एवं विशेष व्यवसाय का क्या अर्थ है ? उन सभाओं को भी बताइये जिसमें कि ये व्यवसाय पत्र (transacted) किये जाते हैं।

Explain clearly the meaning of ‘Ordinary Business’ and ‘Special Business’ which may be transacted at the general meeting of the company. State also the meetings in which these businesses may be transacted.

2. वार्षिक साधारण सभा सम्पन्न होने के सम्बन्ध में वैधानिक नियम क्या हैं ? इस सभा से पूर्व, सभा के समय तथा सभा के पश्चात् सचिव के कर्त्तव्य बताइए।

What are the statutory provisions regarding the holding of the Annual General Meeting ? Describe the secretarial duties before, at the time, and after this meeting.

3. कम्पनी की विभिन्न सभाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिये। एक वैध सभा के लिये आवश्यक तत्व क्या हैं?

Explain in brief various type of meetings of a company. What are the essential elements of a valid meeting?

4. एक कम्पनी की वार्षिक व्यापक सभा बुलाने के लिये वैधानिक व्यवस्थाएँ क्या हैं ?ऐसी सभा में क्या कार्य किये जाते हैं?

What are the legal provisions for holding of annual general meeting ? What business is transacted at such meeting?

5. प्रतिपुरुष की परिभाषा दीजिये। प्रतिपुरुष के प्रयोग सम्बन्धी नियम क्या हैं ? प्रतिपुरुष प्रपत्र का नमूना दीजिये।

Define Proxy. What are the rules governing the use of proxies? Give specimen of a proxy form.

6. प्रस्ताव का आशय और भेद लिखिये। किन विषयों के लिये विशेष प्रस्ताव की आवश्यकता पड़ती।

Give the meaning and types of resolution. For what purposes special resolutions are required ?

7. कार्यवाहक संख्या (कोरम) से आप क्या समझते हैं ? कोरम के सम्बन्ध में भारतीय कम्पनी अधिनियम, 2013 के प्रावधानों का वर्णन कीजिये।

What do you mean by Quorum ? State the provisions of Indian Companies Act, 1956 regarding quorum.

8. संकल्प (प्रस्ताव) से क्या आशय है ? कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के संकल्पों (प्रस्तावों) की व्याख्या कीजिये। उदाहरण भी दीजिये।

What is meant by Resolution ? Explain the types of Resolutions under Indian Companies Act. Give illustration.

9. कम्पनी सभाओं में स्वीकार किये जाने वाले विभिन्न प्रकार के प्रस्तावों की व्याख्या कीजिये। प्रत्येक प्रस्ताव से सम्बन्धित कुछ उदाहरण दीजिये। एक प्रस्ताव के लिये विशेष सूचना कब आवश्यक होती है ?

Explain the different types of resolution that can be passed in company meetings. Give few examples in each case. When is special notice of a resolution necessary ?

10. सभा के सूक्ष्म से क्या अभिप्राय है ? यह कितने प्रकार से लिखा जाता है ? इसमें किन-किन विषयों का समावेश होना चाहिये? सूक्ष्म के सम्बन्ध में वैधानिक प्रावधानों का वर्णन कीजिये।

What is meant by minutes of a meeting ? What are the different ways of writing minutes ? What should be included in the minutes ? State the legal provisions regarding minutes.

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लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions)

1 माँग पर की जाने वाली सभा क्या है ? इसे कौन बुला सकता है?

What is a Requisitioned Meeting ? Who can call it ?

2. वार्षिक साधारण बैठक से आप क्या समझते हैं ? दो वार्षिक साधारण बैठकों में कितने समय का अन्तराल हो सकता है?

What do you mean by an Annual General Meeting? How much gap can be there between two annual general meetings.

3. वार्षिक साधारण बैठक तथा असाधारण सामान्य बैठक में अन्तर कीजिये।

Distinguish between Annual General Meeting and Extra-ordinary General Meeting.

4. कम्पनी की कार्यवाही प्रस्तावों द्वारा संचालित होती है, न कि सभाओं द्वारा। विवेचना कीजिये।

The proceeding of a company is conducted by the resolution not by meeting. Discuss.

5. एक व्यक्ति की सभा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।

Write a short note on ‘Meeting of One Man’.

6. प्रतिपुरुष के अधिकारों का वर्णन कीजिये।

Describe the rights of Proxy.

7. वर्ग सभाओं पर टिप्पणी लिखिये।

Write a note on class meetings.

8. असामान्य साधारण सभा के कार्यों का वर्णन कीजिये।

Describe in brief the functions of extra-ordinary general meeting.

9. कम्पनी की वार्षिक सभा से क्या आशय है ?इसके उद्देश्य बताइये।

What is meant by Annual Meeting of a Company ? State its objectives.

10. कम्पनी की वार्षिक साधारण सभा में किये जाने वाले साधारण एवं विशेष कार्यों को संक्षेप में समझाइये।

Explain in brief the general and special business of the company in annual general meeting.

11. सभा के स्थगन से क्या आशय है ? इसके सम्बन्ध में क्या वैधानिक प्रावधान हैं ?

What is meant by the Adjournment of a meeting ? What are the legal provisions of that ?

12. कोरम के सम्बन्ध में भारतीय कम्पनी अधिनियम, 2013 के प्रावधानों का वर्णन कीजिये।

Describe the provisions of Indian Companies Act, 2013 regarding Quorum.

13. सभा के सूक्ष्म से क्या आशय है ? यह कितने प्रकार का होता है ?

What is meant by the minutes of a meeting? What are its types?

14. किन विषयों के लिये विशेष प्रस्ताव की आवश्यकता पड़ती है ?

For what purposes special resolutions are required?

15. विशेष सूचना वाले प्रस्ताव पर एक टिप्पणी लिखिये।

Write a note on Resolution requiring special notice.

16. साधारण तथा विशेष प्रस्ताव में अन्तर बतलाइए।

Distinguish between ordinary and special resolution.

17. सूक्ष्म की विषय सामग्री का वर्णन कीजिये।

Explain the subject matter of minutes.

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