BCom 2nd Year Cost Accounting Cost Audit Study Material notes in Hindi

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BCom 2nd Year Cost Accounting Cost Audit Study Material notes in Hindi

Table of Contents

BCom 2nd Year Cost Accounting Cost Audit Study Material Objects of Cost Audit. Types of Cost AuditCriticisms of Cost Audit, Advantages of Cost Audit, Cost Audit Report Programm of Cost Audit This post is Very Important for B com 2nd Students in Hindi and English :

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Cost Audit Study Material

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लागत (परिव्यय) अंकेक्षण (Cost Audit)

                        लागत अंकेक्षण का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Cost Audit) Study Material Notes

   सरल शब्दों में, लागत अंकेक्षण का आशय लागत लेखों की सत्यता की जाँच करके यह पता लगाना है कि लागत का निर्धारण सही किया गया है या नहीं। विस्तृत अर्थ में, लागत अंकेक्षण के अन्तर्गत लागत लेखों के साथ-साथ लागत निवरण-पत्रों (Cost Statements),लागत रिपोर्ट (Cost Reports), लागत समंकों (Cost Data) एवं लागत प्रविधियों (Cost Techniques) की भी जांच की जाती है। लागत अंकेक्षण से सम्बन्धित मुख्य परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं

   इन्स्टीट्यूट ऑफ कॉस्ट एण्ड वर्क्स एकाउण्टेण्ट्स ऑफ इण्डिया के अनुसार, “लागत अंकेक्षण को लागत लेखों की शद्धता के सत्यापन तथा लागत लेखांकन के सिद्धान्त, योजनाओं एवं प्रक्रियाओं के अनुसरण के रूप में परिभाषित किया जा सकता है । ;

            स्मिथ एवं डे के अनुसार, “लागत अंकेक्षण’ का आशय लागत निर्धारण पद्धति, तकनीक एवं लेखों की विस्तृत जॉच है। जिससे उनकी शुद्धता को सत्यापित किया जा सके एवं लागत लेखांकन के उद्देश्यों की पूर्ति को सुनिश्चित किया जा सके। च:

      इन्स्टीट्यूट ऑफ कॉस्ट एवं वर्क्स एकाउण्टेण्ट्स ऑफ लन्दन के अनुसार, “लागत अंकेक्षण लागत लेखों के सही होने एवं लागत लेखा योजना के अनुसरण का सत्यापन है।”

      उपरोक्त परिभाषाओं का विश्लेषण करने से परिव्यय/लागत अंकेक्षण के निम्नलिखित दो अंग       प्रकट होते हैं1. परिव्यय/लागत अंकेक्षण लागत लेखों की सत्यता की जाँच है। 2. परिव्यय/लागत अंकेक्षण लागत लेखा योजना के अनुसरण की जाँच है।

      1. लागत लेखों की सत्यता की जाँच-लागत अंकेक्षण तभी सम्भव है, जबकि पहले उस संस्थान में लागत लेखे रखे जाये। यही कारण है कि भारत सरकार को जिस उद्योग में लागत अंकेक्षण लागू करना होता है, उसमें पहले लागत लेखों का रखा जाना अनिवार्य करने के लिए वह आदेश जारी करती है। लागत अंकेक्षण के अन्तर्गत यह जांच की जाती है कि लागत से सम्बन्धित लेखे सही हैं अथवा नहीं।

      व्यवहार में लागत अंकेक्षण का क्षेत्र व्यापक है। इनके अन्तर्गत प्रमाणकों की सहायता से केवल इतना ही नहीं देखा जाता कि लागत लेखे सही हैं बल्कि यह भी ज्ञात किया जाता है कि लागत का निर्धारण (Ascertainment of Cost) सही है अथवा किसी वस्तु की लागत क्या होनी चाहिए थी।

      2. लागत लेखा योजना के अनुसरण की जाँच-परिभाषा के दूसरे अंग के रूप में इसके अन्तर्गत यह जाँच की जाती है कि लागत लेखा योजना का अनुसरण किया गया है अथवा नहीं। अत: लागत अंकेक्षण लागू करने के लिए यह आवश्यक है कि संस्थान में लागत लेखों को योजनाबद्ध ढंग से लागू किया जाये। इसके अन्तर्गत योजना के अनसरण की जाँच मात्र ही नहीं की जाती बल्कि यह भी जांच की जाती है कि योजना स्वयं सही और उपयुक्त है और इससे अपेक्षित परिणाम उपलब्ध हो रहे हैं। दस दष्टिकोण से लागत अंकेक्षण के अन्तर्गत लागत लेखों के साथ-साथ लागत विवरण-पत्रों (Cost Statement), लागत रिपोर्ट (Cost Reports), लागत समंकों (Cost Data) तथा लागत प्रविधियों (Cost Techniques) की भी जांच की जाती है।

    निष्कर्ष-उपर्यक्त परिभाषाओं के विवेचन से स्पष्ट है कि लागत अंकेक्षण के अन्तर्गत न केवल लागत लेखों की शुद्धता का सत्यापन किया जाता है वरन् यह भी पता लगाया जाता है कि लागत लेखों को लागत लेखा योजना के अनुसार ही रखा गया है या नहीं अर्थात् लागत लेखों को लागत लेखांकन के सिद्धान्तों, नियमों एवं ICWAI द्वारा निर्गमित लागत लेखांकन प्रमापों (CostAccounting Standards) के अनुसार रखा गया है या नहीं।

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background has-medium-font-size has-very-dark-gray-color has-very-light-gray-background-color”>लागत अंकेक्षण के उद्देश्य(Objects of Cost Audit)

 लागत अंकेक्षण के उद्देश्यों को निम्नलिखित दो दृष्टिकोणों से व्यक्त किया जा सकता है-1. संस्था के दृष्टिकोण से तथा 2. सरकार के दृष्टिकोण से।

 1. संस्था के दृष्टिकोण से लागत अंकेक्षण के उद्देश्य-संस्था के दृष्टिकोण से लागत अंकेक्षण के निम्नलिखित उद्देश्य हैं

(1)लागत लेखों को गणितीय शुद्धता को जाँचना

(ii) लागत लेखों को तैयार करने में सरकारी अधिनियमों एवं आदेशों के अनुपालन से सम्बन्धित जानकारी प्राप्त करना,

(ii) सम्बन्धित संस्था में लागत लेखे लागत लेखांकन के सिद्धान्तों एवं प्रमापों के अनुसार रखे जा रहे हैं या नहीं.

(iv) लागत लेखांकन पद्धति प्रबन्धकों को पर्याप्त सूचनाएँ दे रही है या नहीं

(v) लागत लेखों में किये गये छल-कपट एवं गबन की जानकारी प्राप्त करना।

2. सरकार के दृष्टिकोण से लागत अंकेक्षण के उद्देश्य ¾

(i) क्या लागत लेखे सही हैं तथा इनके सन्दर्भ में उद्योग अपनी वस्तु का उचित विक्रय मूल्य वसूल कर रहा है?

(ii) क्या उद्योग को संरक्षण देने की आवश्यकता है?

(iii) क्या उद्योग जनहित के विरुद्ध है तथा उपभोक्ता-वर्ग को क्षति पहुँच रही है?

(iv) क्या उद्योग के विस्तार के लिए विशेष सहायता की आवश्यकता है?

 (v) उपक्रम का प्रबन्ध कैसा है?

 (vi) क्या उद्योग को बन्द करना हितकर होगा?

 (vii) ग्राहकों के हितों के अनुरूप विक्रय मूल्य तय करना,

(viii) क्या उद्योग ने सरकारी आदेशों का समुचित पालन किया है?

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                  वित्तीय तथा लागत अंकेक्षण में अन्तर(Difference Between Financial and Cost Audit)

       1. वित्तीय अंकेक्षण किसी संस्था के वित्तीय लेखों से सम्बन्धित होता है, जबकि लागत अंकेक्षण संस्था के केवल लागत लेखों से ही सम्बन्धित होता है।

      2. वित्तीय अंकेक्षण ऐसी किसी भी संस्था के लेखों का किया जा सकता है जहाँ वित्तीय लेखे रखे जाते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि वह व्यावसायिक संस्थान ही हो, उदाहरणार्थ, क्लब, विश्वविद्यालय आदि संस्थाओं में भी वित्तीय अंकेक्षण किया जाता है। इसके विपरीत परिव्यय (लागत) अंकेक्षण ऐसी संस्थाओं में ही किया जाता है जहाँ निर्माण, उत्पादन, खनन, प्रविधि या सेवा-पूर्ति से सम्बन्धित कोई कार्य हो।

      3. वित्तीय लेखों का अंकेक्षण कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत अनिवार्य है, जबकि लागत अंकेक्षण केवल उन्हीं उद्योगों से सम्बन्धित कम्पनियों के लिए अनिवार्य है जिनका वर्णन कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 148 में किया गया हो तथा केन्द्रीय सरकार का स्पष्ट आदेश हो।

      4. वित्तीय अंकेक्षण का उद्देश्य यह ज्ञात करना होता है कि संस्था का लाभ-हानि खाता एवं आर्थिक चिट्ठा संस्था के सही लाभ-हानि एवं आर्थिक स्थिति को प्रदर्शित करते हैं या नहीं, जबकि लागत अंकेक्षण का उद्देश्य संस्था की क्रियाओं की कुशलता एवं लाभदायकता जानना होता है। दूसरे शब्दों में, लागत अंकेक्षण में लागतों की सत्यता एवं औचित्यता जाँचने के साथ यह भी देखा जाता है कि क्या लागतों को और कम किया जा सकता था।

      5. वित्तीय अंकेक्षक की नियुक्ति सामान्यतः अंशधारियों द्वारा अपनी वार्षिक साधारण सभा में की जाती है, जबकि लागत अंकेक्षक की नियुक्ति कम्पनी के संचालक मण्डल द्वारा कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 148(3) के प्रावधानों के अन्तर्गत की जाती है। लागत अंकेक्षक की नियुक्ति के नियम ‘लागत अंकेक्षण (रिपोर्ट) नियम, 2014 के अन्तर्गत दिये गये हैं।

      6. वित्तीय अंकेक्षण में भूतकालीन आर्थिक व्यवहारों की जाँच की जाती है, जबकि लागत अंकेक्षण में इन व्यवहारों के आधार पर भविष्य के लिए सलाह भी दी जाती है।

      7. वित्तीय अंकेक्षण में अंकेक्षण रिपोर्ट की भाषा निर्धारित है, जबकि लागत अंकेक्षण के अन्तर्गत अंकेक्षण रिपोर्ट की भाषा पूर्व-निर्धारित न होकर अंकेक्षण के उद्देश्य पर निर्भर है।

      8. वित्तीय अंकेक्षण के अन्तर्गत वास्तविक व्यवहारों की जाँच होती है जबकि लागत अंकेक्षण के अन्तर्गत पूर्वानुमानों तथा योजनाओं की भी जाँच की जाती है।

      9. वित्तीय लेखों का अंकेक्षण उतना विस्तृत नहीं होता, जितना कि लागत लेखों का। वैधानिक लागत अंकेक्षण की दशा में लागत अंकेक्षक को लागत अंकेक्षण की रिपोर्ट के साथ परिशिष्टों में काफी विवरण देने होते हैं।

      10. वित्तीय अंकेक्षण सामान्यतया संस्था के स्वामियों द्वारा कराया जाता है, जबकि लागत अंकेक्षण सरकार, व्यापारिक संघ एवं औद्योगिक ट्रिब्यूनल आदि बाहरी संस्थाओं द्वारा कराया जाता है।

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                  लागत अंकेक्षण के पहलू अथवा क्षेत्र  (Aspects or Scope of Cost Audit

       1. कुशलता अंकेक्षण (Efficiency Audit)-लागत अंकेक्षण का दूसरा नाम कुशलता अंकेक्षण भी है क्योंकि इसके द्वारा प्रशासकों एवं प्रबन्धकों की कुशलता का माप किया जा सकता है। इसे ‘कार्य निष्पादन अंकेक्षण’ (Performance Audit) भी कहते हैं। इससे यह ज्ञात हो जाता है कि संस्था के संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग हो रहा है या नहीं। कम्पनी की पूँजी की प्रत्येक इकाई का सर्वोत्तम लाभ उठाया गया है या नहीं। विभिन्न विनियोगों की क्या स्थिति है। कुशलता का उत्पादन लागत पर यथेष्ठ प्रभाव पड़ता है। स्पष्ट है कि कुशलता अंकेक्षण अत्यन्त आवश्यक है।

      2. औचित्य अंकेक्षण (Propriety Audit)-जब लागत अंकेक्षक यह जाँच करता है कि कम्पनी के वित्त एवं व्यय से सम्बन्धित इनकी क्रियाएँ एवं योजनाएँ सही हैं या नहीं तो ऐसी जाँच औचित्य अंकेक्षण कहलाती है। दूसरे शब्दों में, इस अंकेक्षण में यह जाँच की जाती है कि क्या विद्यमान परिस्थितियों में किया गया व्यय उचित था एवं इससे अच्छा विकल्प उपलब्ध नहीं था अर्थात् यह अंकेक्षण किये गये व्ययों के उचित एवं सही होने से सम्बन्ध रखता है। ऐसा अंकेक्षण ग्राहक, सरकार या उत्पादक संघ की ओर से कराया जा सकता है। ग्राहकों की दृष्टि से इससे सही मूल्य का निर्धारण सम्भव होता है। सरकार अत्याधिक लाभार्जन को रोकने के लिए अथवा आर्थिक प्रेरणा देने की दृष्टि से लागत अंकेक्षण करा सकती है। उत्पादक संघ अपने सदस्यों की लाभार्जन क्षमता का पता लगाने के लिए लागत अंकेक्षण करा सकते हैं। इससे विषम प्रतिस्पर्धा को भी निर्धारित किया जा सकता है।

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               लागत अंकेक्षण के प्रकार  (Types of Cost Audit)

 लागत अंकेक्षण निम्नलिखित प्रकार का हो सकता है

      (1) वैधानिक लागत अंकेक्षण (Statutory Cost Audit)-जब लागत अंकेक्षण कम्पनी अधिनियम की व्यवस्थाओं के अधीन किया जाता है, तो उसे वैधानिक लागत अंकेक्षण कहते हैं। कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 148 के अन्तर्गत केन्द्रीय सरकार को यह अधिकार है कि वह जहाँ आवश्यक समझे ऐसी कम्पनियों को, जिन्हें धारा 128 के अन्तर्गत लागत लेखे रखना आवश्यक है, योग्य अंकेक्षक से लागत लेखों के अंकेक्षण कराने का आदेश दे सकती है। योग्य अंकेक्षक से आशय ऐसे व्यक्ति से है जो कॉस्ट एण्ड वर्क्स एकाउण्टेण्ट अधिनियम, 1959 के अन्तर्गत लागत लेखापाल हो।

      (2) सरकार द्वारा लागत अंकेक्षण-वैधानिक अंकेक्षण के अतिरिक्त सरकार द्वारा निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु लागत अंकेक्षण कराया जा सकता है

      (अ) जिन उद्योगों में उपादान, अनुदान या कम दर से कर निर्धारण द्वारा वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है, उन उद्योगों में उत्पादन एवं विपणन की लागत का निर्धारण करना,

      (ब) उत्पाद के अधिकतम मूल्य निर्धारण हेतु लागत का निर्धारण करना,

      (स) लागत योग पद्धति (Cost-plus method) के आधार पर ठेका कार्य दिए जाने की दशा में ठेके    की लागत का निर्धारण करना,

      (द) उत्पादन लागत के आधार पर ऋण प्रदान करने की सीमा का निर्धारण करना।

      (3) ठेकादाता द्वारा लागत अंकेक्षण-जहाँ कोई ठेका इस आधार पर दिया जाता है कि लागत में कुछ प्रतिशत जोड़कर भुगतान किया जाएगा, वहाँ लागत की उचित गणना के दृष्टिकोण से ठेकादाता द्वारा लागत अंकेक्षण कराया जा सकता है।

      (4) ट्रिब्यूनल द्वारा लागत अंकेक्षण-मजदूरी, बोनस, लाभ-भागिता आदि के सम्बन्ध में श्रम विवादों को तय करने की दृष्टि से ट्रिब्यूनल द्वारा लागत अंकेक्षण कराया जा सकता है।

      (5) व्यापार संघों द्वारा लागत अंकेक्षणविभिन्न फर्मों की लागत की तुलना के दृष्टिकोण से उनसे सम्बन्धित व्यापार संघ (Trade Association) भी लागत अंकेक्षण करा सकते हैं।

      (6) प्रबन्ध द्वारा लागत अंकेक्षण-इस प्रकार के अंकेक्षण में लागत अंकेक्षक की नियुक्ति प्रबन्ध द्वारा की जाती है इस अंकेक्षण का उद्देश्य-(i) प्रबन्धकीय निर्णय हेतु सही एवं विश्वसनीय लागत सूचनाएँ उपलब्ध कराना, एवं (ii) लाग विभाग के कार्य का संचालन योजनानुसार सुनिश्चित करना है।

 

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      1. आन्तरिक लागत अंकेक्षण (Internal Cost Audit)-आन्तरिक लागत अंकेक्षण सम्बन्धित संस्था/उपक्रम की नियमित सेवा में लगे हए स्थायी कर्मचारियों द्वारा किया जाता है। इसका मुख्यकिया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि लागत लखा याजना के अनुसार ही रखा जा रहा है एवं त्रुटियों को ढूंढकर उसकी कमियों को स्पष्ट करना है तो प्रबन्धका का दैनिक कार्यप्रणाली के सम्बन्ध में परामर्श देना है। इस प्रकार के अंकेक्षण की निम्नलिखित सामाए/मर्यादाए है

(1) सम्भव है, संस्था में लागत अंकेक्षण के विशेषज्ञ कर्मचारी न हों,

(11) सस्था के कर्मचारी पूर्वाग्रहों से ग्रसित हो सकते हैं और इस प्रकार उनमें वस्तुनिष्ठता की कमी हो सकती है,

 (iii) कर्मचारियों के लिए इस अतिरिक्त कार्य के लिए अपने स्वयं के कार्य के अलावा समय निकालना कठिन होता है।

(iv) अपने स्वयं के कर्मचारियों द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट का महत्त्व शीर्ष प्रबन्धकों की दृष्टि में कम हो सकता है,

(v) संस्था के कर्मचारी अपने अन्य साथी कर्मचारी के लिए उदारता धारण कर सकते हैं और इस प्रकार उनकी रिपो वास्तविकता से दूर हो सकती है,

‘ (vi) अंकेक्षण में किसी-न-किसी पहलू की कमजोरी अवश्य उजागर (प्रकट) होती है, ऐसी स्थिति में कर्मचारियों से परस्पर मन-मुटाव होने का खतरा रहता है,

(vii) अंकेक्षण कार्य में लगे कर्मचारी स्वयं को अन्य कर्मचारियों से अधिक योग्य समझने लगते हैं, इससे संस्था में। कर्मचारियों का मनोबल गिरता है।

      2. बाह्य लागत अंकेक्षण (External Cost Audit)-यदि अंकेक्षण संस्था के बाहर से कर्मचारियों को नियुक्त करके उनसे कराया जाता है तो इसे बाह्य लागत अंकेक्षण कहते हैं। इस कार्य के लिए प्रायः लागत लेखापालों की नियुक्ति की जाती है जो अपने कार्य में विशेषज्ञ होते हैं। बाह्य अंकेक्षण एक विशिष्ट उद्देश्य से बाह्य अंकेक्षक द्वारा किया जाता है, अत: इसका क्षेत्र सीमित होता है। यह अंकेक्षण टिब्यनल. सरकार. ठेकादाता या व्यापार संघ द्वारा कराया जा सकता है, लेकिन प्रत्येक दशा में उद्देश्य विशिष्ट एवं सीमित होता है। बाह्य अंकेक्षक कम्पनी का कर्मचारी नहीं होता वरन् एक बाहरी पक्षकार होता है। अतः वह कम्पनी के प्रति नहीं वरन् नियुक्ति करने वाले उस पक्ष के प्रति उत्तरदायी होता है, जिसको उसे रिपोर्ट प्रस्तुत करनी है। इस प्रकार का अंकेक्षण उन मर्यादाओं से प्रभावित नहीं होता जो आन्तरिक अंकेक्षण में पाई जाती हैं तथा ऐसा अंकेक्षण तीव्र गति से भी किया जा सकता है। बाह्य अंकेक्षण निम्नलिखित परिस्थितियों में कराया जाता है¾

1. सार्वजनिक हित में जबकि सरकार लागत-योग लाभ (Cost-plus) ठेका के अन्तर्गत कार्य करती है,

 2. सरकार द्वारा उद्योग को संरक्षण प्रदान करने की स्थिति में,

 3. सरकार द्वारा वस्तुओं का उचित मूल्य या न्यूनतम मूल्य निर्धारित करने हेतु,

4. मजदूरी, बोनस, लाभ-भागिता आदि के सम्बन्ध में श्रम विवादों का निपटारा करने हेतु,

 5. उत्पादन लागत के आधार पर कर लगने की दशा में करों के सही निर्धारण हेतु

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                        लागत अंकेक्षण के लाभ  (Advantages of Cost Audit

       लागत अंकेक्षण द्वारा लागत लेखों की सत्यता एवं औचित्यता का ज्ञान होता है जिसके फलस्वरूप विभिन्न व्यक्तियों को लाभ पहुँचता है। संक्षेप में, लागत अंकेक्षण के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं

      1. संस्था को लाभ (Advantages to the Institution)-लागत अंकेक्षण से संस्था को निम्नलिखित लाभ होते हैं

      (i) उत्पादन क्षमता एवं कुशलता में वृद्धि (Increase in Production Capacity and Efficiency)-लागत अंकेक्षण के द्वारा यह ज्ञात किया जा सकता है कि उत्पादन में अकुशलताएँ कहाँ तक हैं तथा कितनी मात्रा में हैं। इस प्रकार लागत अंकेक्षण से संस्था की उत्पादन क्षमता एवं कुशलता में वृद्धि सम्भव हो जाती है।

      (ii) उत्पादन लागत घटाने में सहायता (Help in Reducing Cost of Production)-लागत अंकेक्षण से श्रम, सामग्री, उपरिव्यय, आदि पर पर्याप्त नियन्त्रण रखकर उनके दुरुपयोग को रोका जा सकता है अर्थात् लागत अंकेक्षण उत्पादन लागत को घटाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है।

      (iii) अनुत्पादक विभागों पर नियन्त्रण (Control Over Unproductive Departments)-लागत अंकेक्षण से अनुत्पादक विभाग की जानकारी हो जाती है। परिणामस्वरूप उस विभाग की कमियों को दूर करके उसे उत्पादक विभाग के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है।

      2. उपभोक्ताओं को लाभ (Advantages to Consumers)-लागत अंकेक्षण के कारण उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर वस्तुएँ उपलब्ध होती हैं, परिणामस्वरूप उपभोक्ताओं के रहन-सहन का स्तर ऊँचा हो जाता है।

      3. श्रमिकों को लाभ (Advantages to Workers)-अंकेक्षित लागत लेखों से श्रमिकों को यह विश्वास हो जाता है कि लागत लेखे सत्य हैं। उन्हें यह भी जानकारी हो जाती है कि उन्हें जो पारिश्रमिक दिया जा रहा है वह ठीक है या नहीं अर्थात् श्रमिकों को अपनी माँग प्रस्तुत करने के लिए उचित आधार मिल जाता है।

      4. विनियोक्ताओं को लाभ (Advantages to Investors)-लागत अंकेक्षण के माध्यम से संस्था की भविष्य में लाभ की प्रवृत्ति का ज्ञान हो जाता है। इससे विनियोक्ताओं को विनियोग करने या न करने का निर्णय लेने में सरलता रहती है।

      5. वित्तीय अंकेक्षक को लाभ (Advantages to Financial Auditor)-वित्तीय अंकेक्षक को ऐसी बहुत-सी मदा का जाँच करनी होती है जिनका सम्बन्ध लागत लेखों से है, जैसे-स्कन्ध का मूल्यांकन, श्रम लागत, ह्रास आदि। लागत अंकेक्षण में इन मदों की विस्तृत जांच हो जाती है, अत: वित्तीय अंकेक्षक को इन मदों की जाँच करने की आवश्यकता नहीं होती। इस प्रकार उसके समय की बचत होती है।

      6. सरकार को लाभ (Advantages to Government)-लागत अंकेक्षण से सरकार को यह विश्वास हो जाता है कि प्रदर्शित लागतें सही हैं तथा इनके सन्दर्भ में उचित विक्रय मूल्य निर्धारित किया गया है। श्रमिकों तथा उपभोक्ताओं का शोषण नहीं किया जा रहा है तथा सरकार को पूरा कर (tax) प्राप्त हो रहा है।

                  लागत/परिव्यय अंकेक्षण की आलोचना (Criticisms of Cost Audit)

       लागत अंकेक्षण को अनिवार्य करने के सम्बन्ध में उद्योगपतियों द्वारा निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण तथ्यों के आधार पर कड़ा विरोध किया गया है

     1. प्रायः प्रत्येक निर्माणी संस्था में आन्तरिक अंकेक्षक की भी नियुक्ति की जाती है एवं वह लागत लेखों की भी विस्तृत जाँच करता है, इसलिए लागत अंकेक्षक की अलग से कोई आवश्यकता नहीं है।

      2. प्राय: सम्पूर्ण वित्तीय लेखों का अंकेक्षण (निर्माण खाते सहित) स्वतन्त्र रूप से वैधानिक या आन्तरिक अंकेक्षक द्वारा किया जाता है, इसलिए लागत अंकेक्षण की अलग से कोई आवश्यकता नहीं है।

      3. लागत अंकेक्षण, प्रबन्ध कार्यों में व्यर्थ ही बाधा उत्पन्न करता है जबकि सम्पूर्ण लागत कार्य को प्रबन्धक मण्डल स्वयं ही सही ढंग से करता है।

      4. जब संस्था में वित्तीय अंकेक्षण व वैधानिक अंकेक्षण हो रहा है तो लागत अंकेक्षण की अलग से कोई आवश्यकता नहीं है।

      5. जब लागत लेखों को लागत लेखापाल (Cost Accountant) द्वारा ही तैयार किया जाता है तब लागत अंकेक्षण की अलग से कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि लागत अंकेक्षक के रूप में लागत लेखापाल को ही नियुक्त किया जायेगा। लागत अंकेक्षण की उपरोक्त वर्णित आलोचनाओं के बावजूद भी दिन-प्रतिदिन इसकी लोकप्रियता में वृद्धि हो रही है।

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                  लागत अंकेक्षण की तकनीक एवं कार्यप्रणाली  (Technique and Procedure of Cost Audit)

       लागत अंकेक्षण प्रारम्भ करने से पूर्व व्यवसाय में अपनायी गयी लागत लेखा प्रणाली का अध्ययन करना चाहिए। लागत लेखांकन के अन्तर्गत प्रयोग किये गये प्रपत्र, प्रतिवेदन, विवरण-पत्र, सूचियों के अतिरिक्त लेखांकन हेतु रखी गयी सभी पुस्तकों की सूची प्राप्त कर लेनी चाहिए। यह भी देखना चाहिए कि आन्तरिक निरीक्षण का कार्य सुचारु रूप से लागू है या नहीं। यह भी पता करना चाहिए कि अंकेक्षण कराने का उद्देश्य क्या है, अंकेक्षण का क्षेत्र क्या है तथा व्यवसाय का आकार क्या है ? व्यवसाय का आकार बड़ा होने पर लेन-देन अधिक संख्या में होते हैं और ऐसी दशा में लेखांकन का कार्य एवं आन्तरिक निरीक्षण का कार्य सुसंगठित होना चाहिए।

      उपर्युक्त बिन्दुओं/पहलुओं का अध्ययन करने के पश्चात् अंकेक्षक अपना लागत अंकेक्षण कार्यक्रम तय करता है। लागत अंकेक्षण का कार्यक्रम ठीक वैसा ही होता है जैसा कि वित्तीय लेखों के अंकेक्षण के लिए तैयार किया जाता है। लागत अंकेक्षण के अन्तर्गत प्रमाणन (vouching), परीक्षण/जाँचना (checking), सही अंकन (ticking), आदि एवं अंकेक्षण सम्बन्धी टिप्पणी रखने का कार्य वित्तीय अंकेक्षण के समान ही किया जाता है।

 

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                  लागत अंकेक्षण की प्रक्रिया/कार्यक्रम(Procedure/Programme of Cost Audit)

       कम्पनी अधिनियम में लागत अंकेक्षण कार्यक्रम के बारे में कोई विशेष योजना या नियम नहीं दिये गये हैं, परन्तु लागत अंकेक्षण की योजना बनाते समय अंकेक्षक को अंकेक्षण के उद्देश्य को ध्यान में रखना चाहिए। इस कार्यक्रम के द्वारा अंकेक्षण कार्य को अंकेक्षक के विभिन्न सदस्यों में इस प्रकार वितरित किया जाता है कि लागत अंकेक्षण का कार्य सुचारु रूप से सम्पन्न हो सके। सर्वप्रथम, उसे सम्बन्धित उद्योग की पूर्ण जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए, जिसका वर्णन कॉस्ट एकाउन्टिंग रिकार्डस नियमावली में किया गया है। लागत अंकेक्षण कार्यक्रम इस प्रकार बनाना चाहिए कि अंकेक्षण का सम्पूर्ण कार्य न्यूनतम समय में तथा न्यूनतम लागत में हो सके तथा अन्य कर्मचारियों के कार्य में कम से कम बाधा पड़े। लागत अंकेक्षण की विस्तृत

रूपरेखा विभिन्न संगठनों में विभिन्न प्रकार की होगी और वह इस बात पर निर्भर करेगी कि उद्योग किस प्रकार का है, उसका प्रबन्ध किस प्रकार का है तथा लागत पर नियन्त्रण कैसा है। लागत के प्रमुख तत्त्व-सामग्री, श्रम तथा उपरिव्यय का अंकेक्षण निम्नलिखित प्रकार किया जाता है¾

      (1) सामग्री का अंकेक्षण (Audit of Materials)-सामग्री का अंकेक्षण करते समय निम्नलिखित बातें ध्यान में रखनी चाहियें

      (1) सामग्री-प्राप्ति पत्र (Material Received Note), सामग्री माँग-पत्र (Material Requisition Slip), सामग्री वापसा-पत्र (Material Returned Note) तथा सामग्री निर्गमन-पत्र (Material Issued Note) की सहायता से स्टोर खाता-बहा (Store Ledger) में की गई प्रविष्टियों की जाँच करनी चाहिये तथा बिन कार्डो (Bin Cards) से इनका मिलान करना चाहिए।

      (ii) सामग्री सम्बन्धी सभी भुगतानों तथा शेष राशियों का प्रमाणन, सामग्री प्राप्ति-पत्र (Material Received Note) से

करना चाहिए।

      (iii) निर्गमित सामग्री की मूल्यांकन की विधि का अध्ययन करके देखना चाहिए कि वह संस्था के अनुरूप है या नहीं तथा संस्था में सदैव मूल्यांकन की एक ही विधि अपनाई गई है या नहीं।

      (iv) उसे क्रय की गई सामग्री की दरों की जाँच करनी चाहिये कि वह प्रचलित बाजार दरों से मेल खाती है या नहीं।

      (v) उसे यह देखना चाहिए कि सामग्री के क्रय, प्राप्ति, खराब सामग्री की वापसी आदि पर उचित नियन्त्रण रखा जाता है या नहीं।

      (vi) जो सामग्री अप्रचलित हो गई है अथवा खराब हो गई है, उसका लेखा किस प्रकार किया जा रहा है। (vii) उत्पादन विभाग में माल के गबन, चोरी, हानि, आदि की कोई सम्भावना तो नहीं है।

      (viii) पूर्व निर्धारित न्यूनतम स्टॉक (Minimum Stock). अधिकतम स्टॉक (Maximum Stock), आदश स्तर (Ordering Level) तथा आदेश मात्रा (Order Quantity) का पालन किया गया है अथवा नहीं? यदि कभा पूर्व निधारत मात्राओं का उल्लंघन हुआ है तो क्या उसके लिए समुचित कारण थे?

      (ix) स्टॉक को गिनकर अथवा तौलकर भौतिक सत्यापन (Physical Verification) करना चाहिए।

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(II) श्रम का अंकेक्षण (Audit of Labour)-श्रम का अंकेक्षण करते समय अंकेक्षक को निम्नलिखित बातें ध्यान में रखनी चाहियें

      (i) उसे श्रमिकों की भर्ती प्रणाली के औचित्य पर विचार करना चाहिए।

      (ii) कार्यरत कर्मचारियों की सूची तथा उपस्थिति रजिस्टर प्राप्त करना।     

       (iii) कर्मचारियों की उपस्थिति की जाँच उपस्थिति रजिस्टर, फोरमैन रजिस्टर तथा अवकाश रजिस्टर से करना।

      (iv) कार्यानुसार मजदूरी पद्धति को अपनाये जाने की दशा में उसे यह देखना चाहिए कि श्रमिकों द्वारा किये गये कार्य के सम्बन्ध में पर्याप्त रिकार्ड रखा गया है या नहीं तथा जॉब कार्ड से तैयार माल का मिलान करके देखना चाहिए।

      (v) समयानुसार मजदूरी भुगतान पद्धति की दशा में यह देखिए कि ओवरटाइम की क्या व्यवस्था की गई है तथा ओवरटाइम की स्वीकृति उच्चाधिकारियों से प्राप्त कर ली गई है या नहीं।

      (vi) प्रीमियम बोनस प्लान की दशा में उसके औचित्य का निर्धारण करना चाहिए। (vii) यह देखना चाहिए कि प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष श्रम के वितरण की व्यवस्था उचित है अथवा नहीं। (viii) मजदूरी के लेखों तथा भुगतानों के सन्दर्भ में प्रचलित आन्तरिक निरीक्षण प्रणाली की भी जाँच करनी चाहिए।

      (ix) यह देखना चाहिए कि श्रमिकों की मजदूरी तालिका उन व्यक्तियों द्वारा तो नहीं तैयार की जाती जो उपस्थिति का लेखा करते हैं।

      (x) प्रत्येक श्रमिक की मजदूरी दर, उसके नियुक्ति-पत्र के अनुसार है।

(III) उपरिव्ययों का अंकेक्षण (Audit of Overheads)-लागत अंकेक्षण में उपरिव्ययों के बारे में निम्नलिखित जाँच करनी चाहिए

      (i) संस्था के व्यवसाय के अनुरूप विभिन्न प्रकार के उपरिव्ययों का ज्ञान प्राप्त करना चाहिये।

      (ii) उत्पादन एवं विक्रय की दृष्टि से उपरिव्यय औचित्यपूर्ण हैं या नहीं।

      (iii) क्या उपरिव्यय के अवशोषण की अपनायी गई विधि उपयुक्त है?

      (iv) प्रत्येक उपक्रम, आदेश या विधि पर उपरिव्ययों का विभाजन स्वीकृत सिद्धान्तों के आधार पर किया गया है तथा इन सिद्धान्तों में अपनी इच्छानुसार परिवर्तन नहीं किया गया है।

      (v) अंकेक्षक को यह भी देखना चाहिए कि व्यय सम्बन्धित अवधि के हैं तथा मशीनरी पर उचित ह्रास लगाया गया है।

      (vi) उपरिव्ययों की वास्तविक राशि का मिलान बजट में अनुमानित राशि से किया जाना चाहिए तथा यदि अन्तर हो तो कारणों को जानना चाहिए।

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      कम्पनी अधिनियम, 2013 के अन्तर्गत लागत अंकेक्षण से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण प्रावधान (Important Provisions Related to Cost Audit Under Companies Act, 2013)

 कम्पनी अधिनियम, 2013 के अन्तर्गत लागत अंकेक्षण से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण प्रावधान निम्नलिखित हैं

      1. वैधानिक लागत अंकेक्षण का प्रावधान-भारत में वैधानिक लागत अंकेक्षण सर्वप्रथम सन 1965 में कम्पनी अधिनियम, 1956 में संशोधन करके धारा 233(B) Insert करके लागू किया गया था, वर्तमान में कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 148 के अन्तर्गत केन्द्रीय सरकार द्वारा निर्देशित कम्पनियों को लागत अंकेक्षण कराना अनिवार्य कर दिया गया है। (

      2. लागत अंकेक्षण से सम्बन्धित उद्योगों का चार क्षेत्रों में विभाजन-कम्पनीज (लागत अभिलेख एवं नियम), 2014 के अनुसार लागत अंकेक्षण से सम्बन्धित उद्योगों को निम्नलिखित चार क्षेत्रों में विभाजित किया गया है

      (अ) सामरिक क्षेत्र (Strategic Sectors)-इस क्षेत्र में सुरक्षा, अणु शक्ति आदि में प्रयुक्त मशीनों एवं मशीनीकृत उपकरणों से सम्बन्धित 6 उद्योग समूहों को सम्मिलित किया गया है, इस क्षेत्र की कम्पनियों में लागत अंकेक्षण तभी अनिवार्य होगा जबकि कम्पनी का शुद्ध मूल्य या विक्रय 500 करोड़ ₹ या अधिक हो।

      (ब) क्षेत्रीय नियामक द्वारा नियमित उद्योग (Industry Regulated by Sectoral Regulator)-इस क्षेत्र में बन्दरगाह, वायु-परिवहन सेवाएं, दूर-संचार सेवाएं, विद्युत, सड़क, स्टील एवं अवसंरचना आदि से सम्बन्धित 11 उद्योग समूहों को सम्मिलित किया गया है।

      (स) सार्वजनिक हित के क्षेत्र में कार्यरत कम्पनियां (Companies Operating in Areas Involving Public Interest)-इस क्षेत्र में रेलवे, खनिज उत्पाद, रसायन, जट उत्पाद, स्वास्थ्य एवं शिक्षा सेवाओं आदि में संलग्न 11 उद्योग समूहों को शामिल किया गया है।

      (द) चिकित्सा साधनों (Medical) में संलग्न कम्पनियां-इस क्षेत्र में 20 महत्त्वपूर्ण चिकित्सा साधनों/सामानों की सूची शामिल की गई है।

      यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि उपरोक्त वर्णित प्रत्येक क्षेत्र में उत्पादन या विक्रय की राशि की न्यूनतम सीमा निर्धारित की गयी है, जिससे अधिक उत्पादन या विक्रय की राशि होने पर अनिवार्य रूप से लागत अंकेक्षण कराना होगा।

 

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      3. लागत लेखांकन अभिलेख नियम (Cost Accounting Records Rules)-कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 469 की उपधारा (1) और (2) तथा धारा 148 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए कम्पनी अधिनियम, 1956 की धारा 209(1) (d) के अधीन जारी किये गये लागत लेखांकन, लागत विवरण एवं लागत अंकेक्षण से सम्बन्धित समस्त नियमों को रद्द कर उनके स्थान पर कम्पनी (लागत अभिलेख और अंकेक्षण) नियम, 2014 [Companies (Cost Records and Audit) Rules, 2014] लागू करने की अधिसूचना भारत के राजपत्र (The Gazette of India) दिनांक 1 जुलाई, 2014 में प्रकाशित कर दी गई है तथा इन नियमों को तुरन्त प्रभाव से लागू कर दिया गया है। वस्तुत: ये नियम सम्बन्धित कम्पनियों को अपने लागत अभिलेखों को रखने के सम्बन्ध में दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं। उद्योगों की प्रकृति के अनुसार विभिन्न उद्योगों में ये नियम अलग-अलग हो सकते हैं।

4. लागत अंकेक्षक की नियुक्ति (Appointment of Cost Auditor)-लागत अंकेक्षक की नियुक्ति कम्पनी के संचालक मण्डल द्वारा कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 148(3) के प्रावधानों के अन्तर्गत की जाती है। उसका पारिश्रमिक भी संचालक मण्डल द्वारा निर्धारित किया जाता है। लागत अंकेक्षक के रूप में लागत लेखापालों की एक फर्म को भी नियुक्त किया जा सकता है। यदि उस फर्म के सभी लागत लेखापाल इस कार्य को पेशे के रूप में अपना रहे हैं एवं उस फर्म की संरचना कॉस्ट एण्ड वर्क्स एकाउण्टेण्ट्स अधिनियम, 1959 के नियम के अन्तर्गत केन्द्र सरकार की पूर्व अनुमति से की गई है। ऐसी दशा में लागत अंकेक्षक की रिपोर्ट किसी भी साझेदार द्वारा फर्म की ओर से दी जा सकती है।

      लागत अंकेक्षक की नियुक्ति के नियम लागत अंकेक्षण (रिपोर्ट) नियम, 2014 के अन्तर्गत दिये गये हैं। इन नियमों के अनुसार

      (अ) ऐसी कम्पनियों की दशा में जिन्हें अंकेक्षण समिति का गठन करना होता है

       (i) अंकेक्षण समिति की सिफारिश पर, बोर्ड द्वारा, एक पेशेवर लागत लेखापाल व्यक्ति या एक पेशेवर लागत लेखापालों की फर्म, को परिव्यय/लागत अंकेक्षक के रूप में नियुक्त किया जायेगा, जो ऐसे लागत अंकेक्षक के पारिश्रमिक की भी सिफारिश करेगें ।

       (ii) उक्त (i) के अधीन अंकेक्षण समिति द्वारा सिफारिश किये गये पारिश्रमिक की राशि पर संचालक मण्डल द्वारा विचार कर अनुमोदन किया जायेगा एवं तत्पश्चात् अंशधारियों द्वारा उसकी अभिपुष्टी की जायेगी।

      (ब) अन्य ऐसी कम्पनियों की स्थिति में जिनके द्वारा अंकेक्षण समिति का गठन नहीं किया जाना है, लागत लेखा की नियुक्ति एवं पारिश्रमिक का निर्धारण संचालक मण्डल द्वारा किया जायेगा तथा बाद में उसकी अभिपुष्टी अंशधारियों की जायेगी।

 

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      5. लागत अंकेक्षक की योग्यताएँ (Qualification of Cost Auditor)-लागत अंकेक्षक का कार्य वही व्यक्ति सकता है जो कॉस्ट एण्ड वर्क्स एकाउण्टेण्ट अधिनियम, 1959 के अन्तर्गत The Institute of Cost and Worl Accountants of India (I.C.W.A.I.) का सदस्य हो अर्थात् लागत लेखापाल हो।

      6. लागत अंकेक्षक की अयोग्यताएँ (Disqualifications of Cost Auditor) [धारा 148(5)]-लागत अंकेक्षक वहा अयोग्यताएं हैं जो कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 141(3) के अन्तर्गत कम्पनी अंकेक्षक की बताई गई है। 141(3) के अन्तर्गत निम्नलिखित व्यक्ति एक कम्पनी का अंकेक्षक नियुक्त होने की पात्रता/योग्यता नहीं रखते हैं

      (a) सीमित दायित्व वाली साझेदारी फर्म जिसका पंजीयन सीमित दायित्व साझेदारी अधिनियम, 2008 [धारा 6(2000 के अन्तर्गत हुआ है, के अतिरिक्त समामेलित संस्था (Body Corporate),

      (b) कम्पनी का अधिकारी अथवा कर्मचारी,

      (c) एक व्यक्ति जो कम्पनी के अधिकारी या कर्मचारी का साझेदार अथवा कर्मचारी हो,

      (i) कम्पनी में या उसकी सहायक या नियन्त्रक या सम्बन्धित कम्पनी या ऐसी नियन्त्रक की सहायक कम्पनी में कोई प्रतिभूति या हित रखता हो, बशर्ते कि उस रिश्तेदार के पास कम्पनी की प्रतिभति या हित 1,000₹ तक का अथवा ऐसा कोई निर्धारित राशि तक का ही हो, अथवा

      (11) उस कम्पनी का या उसकी सहायक या नियन्त्रक या सम्बद्ध कम्पनी या ऐसी नियन्त्रक की सहायक कम्पनी का निर्धारित राशि से अधिक का ऋणी हो,

      (iii) जिसने गारन्टी दी हो अथवा किसी तीसरे पक्ष को कम्पनी के ऋणभार हेत कोई प्रतिभूति एक निर्धारित राशि के लिए दी हो अथवा ऐसी कम्पनी के लिए जो उस कम्पनी की सहायक या नियन्त्रक या सम्बद्ध कम्पना या एसा नियन्त्रक कम्पनी की सहायक हो,

      (e) एक व्यक्ति या फर्म जिसका प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कम्पनी या उसकी सहायक या नियन्त्रक या सम्बद्ध निर्धारित प्रकृति की कम्पनी के साथ व्यावसायिक सम्बन्ध हो,

      (f) एक व्यक्ति जो किसी संचालक अथवा कम्पनी के कर्मचारी का रिश्तेदार हो, अथवा

      (g) एक व्यक्ति जो अन्यत्र पूर्णकालिक कर्मचारी हो या एक व्यक्ति या किसी फर्म का साझेदार जो अंकेक्षक के रूप में कम्पनी में नियुक्ति रखता हो, यदि ऐसा व्यक्ति या साझेदार नियुक्ति या पुनर्नियुक्ति की तिथि से 20 से अधिक कम्पनियों में अंकेक्षक के रूप में नियुक्ति रखता हो।

      (h) एक व्यक्ति जो न्यायालय से किसी कपटपूर्ण अपराध के लिए दोषी सिद्ध हुआ हो तथा दोष सिद्ध होने की तिथि से 10 वर्षों की अवधि समाप्त नहीं हुई हो।

      (i) ऐसा व्यक्ति जिसकी सहायक या सम्बद्ध कम्पनी अथवा किसी भी प्रकार की सत्ता (entity) जो नियुक्ति की तिथि पर परामर्श एवं धारा 144 में वर्णित विशिष्ट सेवाओं में लगी हुई हो।

      यदि कोई लागत अंकेक्षक नियुक्ति के पश्चात् उपरोक्त वर्णित अयोग्यता प्राप्त कर लेता है तो अयोग्यता प्राप्त करने की तिथि से लागत अंकेक्षक के रूप में उसका पद रिक्त माना जायेगा।

      7. लागत अंकेक्षक के अधिकार एवं कर्त्तव्य (Rights and Duties of Cost Auditor)-लागत अंकेक्षक के वही अधिकार एवं कर्त्तव्य हैं, जो कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 143(1) में एक अंकेक्षक के बताये गये हैं। लागत अंकेक्षक को अपनी रिपोर्ट निर्धारित समय एवं निर्धारित प्रारूप में कम्पनी के संचालक मण्डल को देनी होती है।

      8. लागत अंकेक्षक को समस्त सुविधाएँ एवं सहयोग प्रदान करना (Provide all Facilities and Co-operation to Cost Auditor)-कम्पनी का यह कर्त्तव्य है कि वह नियुक्त किये गये लागत अंकेक्षक को वे सभी सुविधाएँ एवं सहयोग प्रदान करे, जो सुविधाएँ एवं सहयोग वह लागत अंकेक्षण के सम्बन्ध में कम्पनी से प्राप्त करना चाहता है। [धारा 148 (5)]

      9. मर्यादित लागत अंकेक्षण रिपोर्ट के सम्बन्ध में समस्त सूचना व स्पष्टीकरण केन्द्रीय सरकार को भेजना (Full Information and Explanation on Every Qualification Contained in Qualified Cost Audit Report, Furnish to Central Government)-कम्पनी को लागत अंकेक्षक से प्राप्त रिपोर्ट यदि मर्यादित है तो रिपोर्ट प्राप्ति के 30 दिन के अन्दर कमानी ऐसी प्रत्येक मर्यादा के सम्बन्ध में समस्त सूचना व स्पष्टीकरण केन्द्रीय सरकार को भेजेगी।

      10. केन्द्रीय सरकार द्वारा अतिरिक्त सूचना एवं स्पष्टीकरण माँगना (Central Government may call for Further [धारा 148(6)] Information and Explanation)-उपर्युक्त धारा 148(6) के अन्तर्गत भेजी गयी सूचना पर विचार करने के पश्चात् केन्द्रीयसरकार अन्य सूचना आर स्पष्टीकरण की आवश्यकता समझती है तो वह ऐसी अतिरिक्त सचना एवं स्पष्टीकरण आर माग सकती है। कम्पना का यह कत्तव्य है कि सरकार द्वारा निर्धारित समय के भीतर ऐसी सचना या स्पष्टीकरण सरकार के पास भिजवा दें।

      11. कन्द्रीय सरकार द्वारा कार्यवाही (Action by Central Government)-उपर्यक्त सचना एवं स्पष्टीकरण प्राप्त हा जाने के पश्चात् केन्द्रीय सरकार लागत अंकेक्षक की रिपोर्ट पर कम्पनी अधिनियम या अन्य किसी अधिनियम के अनुरूप एसा कार्यवाही कर सकती है, जिसे वह आवश्यक समझे।

      12. कम्पनी द्वारा धारा 148 के प्रावधानों का उल्लंघन किये जाने पर दण्डनीय प्रावधान (Penal Provision in Case of Contravention of Section 148 Provisions by the Company) धारा 148(8)1-यदि कम्पनी उपराक्त वाणत धारा 148 के विभिन्न प्रावधानों के पालन करने में किसी प्रकार का उल्लंघन करती है तो उस पर 25,000 ₹ से लेकर 5.00,000 ₹ तक का आर्थिक दण्ड लगाया जा सकता है एवं कम्पनी के प्रत्येक अपराधी अफसर को भी एक वर्ष तक के कारावास की सजा अथवा 10,000₹से 1,00,000₹ तक का जुर्माना अथवा दोनों दण्ड दिये जा सकते हैं।

 

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                  लागत/परिव्यय अंकेक्षण प्रतिवेदन/रिपोर्ट

(Cost Audit Report)

       जब सभी लागत लेखांकन अभिलेखों की लागत अंकेक्षण रिपोर्ट नियम, 2014 के अन्तर्गत समीक्षा तथा सत्यापन का कार्य पूरा हो जाता है, तो लागत अंकेक्षक अपनी लागत अंकेक्षण रिपोर्ट तैयार करता है। कम्पनी अधिनियम, 2013 के अन्तर्गत लागत अकेक्षण रिपोर्ट सम्बन्धित कम्पनी के संचालक मण्डल को प्रस्तुत की जाती है। लागत अंकेक्षण रिपोर्ट एक निश्चित प्रारूप में एवं एक निश्चित अवधि में देनी होती है।

लागत अंकेक्षण रिपोर्ट नियम,2014 (CostAudit Report Rule:2014) के महत्त्वपूर्ण बिन्दु निम्नलिखित हैं

      1. जिन कम्पनियों पर यह नियम लाग होता है. उन कम्पनियों को वित्तीय वर्ष प्रारम्भ होने के 180 दिनों के अन्दर लागत अंकेक्षक की नियुक्ति करनी होगी।

      2. नियुक्त किये गये लागत अंकेक्षक को कम्पनी द्वारा उसकी नियुक्ति की सूचना प्रेषित की जायेगी एवं ऐसी नियुक्ति की सूचना को निर्धारित अवधि एवं निर्धारित प्रारूप में केन्द्रीय सरकार को भी प्रेषित किया जाता है।

      3. इस प्रकार नियुक्त किया गया लागत अंकेक्षक वित्तीय वर्ष की समाप्ति से 180 दिन तक अथवा नियुक्ति वाले वित्तीय वर्ष की लागत अंकेक्षण रिपोर्ट जमा करने तक लागत अंकेक्षक के रूप में कार्यरत रहेगा।

      4. लागत अंकेक्षक को अपनी लागत अंकेक्षण रिपोर्ट अपनी मर्यादाओं/अवलोकनों/सुझावों के साथ (यदि कोई हो तो) फार्म CRA-3 में प्रस्तुत करनी होती है।

      5. प्रत्येक लागत अंकेक्षक को अपनी लागत अंकेक्षण रिपोर्ट वित्तीय वर्ष समाप्त होने के 120 दिन के अन्दर अनिवार्य रूप से कम्पनी के संचालक मण्डल को प्रस्तुत करनी होती है।

      6. कम्पनी लागत अंकेक्षण रिपोर्ट की प्रति प्राप्त हो जाने के पश्चात् उसमें वर्णित मर्यादाओं के सम्बन्ध में उक्त रिपोर्ट के प्राप्त होने के 30 दिन के अन्दर समस्त सूचना एवं स्पष्टीकरण केन्द्रीय सरकार को भेजेगी।

                        लागत अंकेक्षण रिपोर्ट के संलग्नक 

(Anexture to Cost Audit Report

       लागत अंकेक्षण रिपोर्ट नियम (Cost Audit Report Rules) में लागत अंकेक्षण रिपोर्ट के संलग्नक की भी विवेचना की गई है। यह संलग्नक लागत अंकेक्षण रिपोर्ट का ही भाग होता है। संलग्नक में निम्नलिखित 24 बिन्दुओं के बारे में सूचना दी जाती है

1. कम्पनी के सम्बन्ध में सामान्य सूचना,

2. कम्पनी द्वारा अपनाई गई लागत लेखांकन नीति का संक्षिप्त विवरण,

3. वस्तुओं के निर्माण/सेवाओं की वितरण प्रणाली से सम्बन्धित संक्षिप्त टिप्पणी,

4. उत्पाद समूह का ब्यौरा (समग्र कम्पनी के लिए),

5. प्रत्येक वस्तु (वस्तुओं)/सेवा (सेवाओं) के लिए अलग-अलग मात्रात्मक सूचना,

6. निर्मित वस्तुओं अथवा प्रदत्त सेवाओं में प्रयुक्त सामग्रियों/सेवाओं का विवरण,

7. उपयोगिता,

8. वेतन एवं मजदूरी का विवरण

9. मरम्मत एवं रख-रखाव व्यय का विवरण,

10. सकल स्थायी सम्पत्तियाँ एवं ह्रास,

11. निवल (शुद्ध) ब्लाक. ह्रास एवं पट्टे का किराया,

12. उपरिव्यय,

13. अनुसन्धान एवं विकास व्यय,

14. रॉयल्टी एवं तकनीकी जानकारी प्रभार,

15. असामान्य/अनावर्ती लागत,

16. अचल स्टॉक सामान,

17. अपलिखित स्टॉक/जब्त सेवाएँ,

18. स्टॉक मूल्यांकन,

19. वस्तुओं/सेवाओं से आगम,

20. प्रति इकाई उत्पाद का मार्जिन,

21. सम्बन्धित पार्टी संव्यवहार,

22. निर्दिष्ट वस्तुओं/सेवाओं के लिए केन्द्रीय उत्पाद/सेवा कर,

23. लाभ समाधान,

24. प्रत्येक वस्तु/सेवा हेतु लागत विवरण।

 

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