कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत हास

(DEPRECIATION UNDER THE COMPANIES ACT)

कम्पनी अधिनियम, 2013 की तालिका III के भाग II के खण्ड 4(vii) के अनुसार सीमित दायित्व वाली कम्पनी के लाभ-हानि खाते में स्थायी सम्पत्तियों के मूल्य में ह्रास, नवीनीकरण अथवा घटोतरी (depreciation, renewals or diminutions) की राशि का उल्लेख होना चाहिए। यदि ह्रास के द्वारा ऐसा आयोजन नहीं किया गया है तो ऐसे आयोजन करने के लिए अपनाई गयी पद्धति का वर्णन किया जाना । चाहिए।

यदि ह्रास के लिए आयोजन नहीं किया गया है तो यह तथ्य स्पष्ट लिखा जायेगा और टिप्पणी के द्वारा। ह्रास की अवशिष्ट राशि (arrears) का योग दिया जायेगा। कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 123(1)(a) के अन्तर्गत प्रत्येक सम्पत्ति के ह्रास के सम्बन्ध में अपलिखित की गयी या आयोजित सम्पूर्ण राशि लिखी जाना। चाहिए।

इस धारा के अन्तर्गत यह स्पष्ट कर दिया गया है कि अंशधारियों को कोई भी लाभांश तब तक न। घोषित होगा और न भुगतान किया जायेगा जब तक कि ह्रास का आयोजन न कर दिया जाये। यह प्रत्येक । कम्पनी के लिए वैधानिक दृष्टि से अनिवार्य है।

धारा 123(1)(a) ने एक बात और स्पष्ट की है कि प्रत्येक कम्पनी को हास के लिए आयोजन ही नहीं। करना है, वरन इसके संचयों (reserves) के लिए लाभांश घोषित करने या भुगतान करने के पूर्व वर्ष का लाभ में से 10% तक राशि हस्तान्तरित करनी होगी। कम्पनी 10% से अधिक राशि भी हस्तान्तरित कर सकता। के जो केन्द्रीय सरकार द्वारा निर्गमित Companies (Transfer of Profits to Reserve Rules), 1972 के अन्तर्गत किया जा सकेगा।

(2) में हास के सम्बन्ध में निम्न प्रावधान किया गया है : (अ) धारा 123(2)(a) में निर्धारित सीमा तक वह राशि जिसकी गणना कम्पनी अधिनियम की तालिका (schedule II) मानधारत दर (Specified rate of depreciation) पर कम्पनी की पुस्तकों में दिखायी। गयी सम्पत्तियों की क्रमागत ह्रास पर निकाली गयी राशि के सन्दर्भ में की गयी हो;

(ब) हासन्याग्य (depreciable) सम्पत्ति के प्रत्येक मद के लिए ऐसी राशि जो कम्पनी के लिए प्राराम्भक मूल्य के 95% को ऐसी सम्पत्ति के लिए निर्धारित अवधि के द्वारा विभाजित करने से निकाली गयी हो

(स) केन्द्रीय सरकार के द्वारा स्वीकत किसी अन्य आधार पर जो निर्धारित अवधि की समाप्ति पर ऐसी प्रत्यक हासबाग्य सम्पात्त क कम्पनी के लिए प्रारम्भिक मल्य के 95% हास द्वारा अपलिखित करने का प्रभाव रखता हो;

(द) यदि कभी कोई सम्पत्ति पूर्ण ह्रास का प्रावधान होने से पूर्व बेच दी जाए या खराब हो जाए अथवा नष्ट हो जाए तो ऐसी दशा में उस वित्तीय वर्ष में जिसमें यह घटना घटी है, सम्पत्ति के शेष मूल्य का बिक्री मूल्य पर आधिक्य उसी वित्तीय वर्ष में पूर्ण हास के रूप में अपलिखित किया जाएगा।

(य) किसी अन्य सम्पत्ति के सम्बन्ध में जिसके लिए हास की कोई भी दर कम्पनी अधिनियम के Schedule II या इसके अन्तर्गत बनाये गये नियमों में निर्धारित न की गयी हो, ऐसे आधार (basis) जो केन्द्रीय सरकार द्वारा स्वीकृत की गयी हो जिसका प्रकाशन सरकारी गजट में अथवा किसी विशेष परिस्थिति में विशेष आदेश (special order) के माध्यम से किया गया हो।

अनुसूची II की विशेष बातें (Special Features of Schedule II) धारा 123(2) के अन्तर्गत वह दर। जिस पर कि ह्रास का प्रावधान करना है अनुसूची II में वर्णित है। अनुसूची II की विशेष बातें निम्न हैं :

(i) सम्पत्तियों को पंद्रह श्रेणी में विभाजित किया गया है।

(ii) ह्रास के लिए दो वैकल्पिक विधियों का प्रस्ताव है :

(iii) स्थायी ह्रास पद्धति या सीधी रेखा पद्धति,

(iv) क्रमागत ह्रास पद्धति या घटती मूल्य पद्धति।

इन दोनों विधियों के लिए ह्रास की दर अलग-अलग वर्णित की गयी है।

(iii) केवल प्लाण्ट व मशीनरी के सम्बन्ध में ह्रास की दर दोहरी पाली (double shift) या तीन पाली (triple shift) में कार्य करने के लिए अलग से वर्णित है। ऐसा प्रावधान किसी अन्य सम्पत्ति के लिए नहीं किया गया है।

(iv) वर्ष के दौरान सम्पत्ति की वृद्धि पर या उसके विक्रय पर हास की गणना आनुपातिक आधार (pro-rata basis) पर सम्पत्ति के क्रय की तिथि पर या विक्रय की दशा में बिक्री की तिथि पर की जाएगी।

(v)  संस्था को अपनी लेखा पुस्तकों में प्रयोग की गई ह्रास की विधि का प्रकटीकरण करना होगा। इसी पकार यदि हास की दर व सम्पत्ति का जीवनकाल जो संस्था द्वारा अपनायी गयी है, यदि वह अनसची II में वर्णित दर से भिन्न है तो यह तथ्य लेखा पुस्तकों में वर्णित किया जाना चाहिए।

लाभाशं घोषणा से पर्व ह्रास एवं बकाया ह्रास के लिए प्रावधान

(Provision for Depreciation as well as Arrears of Depreciation necessary before Declaring Dividinds)

कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 123(1)(a) में संस्थाओं के लिए अनिवार्य रूप से यह प्रावधान किया गया है कि वे अपने चालू वर्ष के लाभ से लाभांश की घोषणा करने से पूर्व चालू वित्तीय वर्ष का हास एवं कोई बकाया हास का प्रावधान करे। परन्तु केन्द्रीय सरकार जनहित के लिए किसी कम्पनी को लाभांश की घोषणा या भुगतान चालू वित्तीय वर्ष के लाभ में से बिना हास के प्रावधान किए या घटी हई दर से हास। का प्रावधान करने के पश्चात् आज्ञा दे सकता है।

हास के साबन्ध में अन्य स्पष्टीकरण (Some Clarification as regard to Depreciation)

(1) अनुसूची II में दर्शाई गई ह्रास की दरें न्यूनतम दरें हैं। तकनीकी मूल्यांकन के आधार पर ऊंची (1) अनुसूची II में दर्शाई गई ह्रास की दरें ह्रास दर चार्ज की जाती है तो इसका उल्लेख लेखों में किया जाना चाहिए।

(2) हास गतिहीन सम्पत्तियों पर भी लगाया जाना चाहिए जो आय में वृद्धि करने के लिए क्रय गयी है। यदि किसी सम्पत्ति को विनियोग के उद्देश्य से क्रय किया गया है तो उस सम्पत्ति पर ह्रास लगा की आवश्यकता नहीं है।

(3) एक कम्पनी विभिन्न सम्पत्तियों पर विभिन्न हास की विधियों से ह्रास लगा सकती है।

(4) धारा 123(1)(a) के लिए सम्पत्ति पर हास लगाया जाना चाहिए चाहे उस सम्पत्ति का प्रयोग किया जा रहा है अथवा नहीं।

(5) यदि किसी सम्पत्ति का पुस्तक मूल्य (क्रय की लागत – कुल हास) मूल लागत के 5% से कम तो एक कम्पनी को उस सम्पत्ति पर हास लगाने की आवश्यकता नहीं है।

लेखांकन प्रमाप-6 : ह्रास लेखांकन 

(ACCOUNTING STANDARD-6: DEPRECIATION ACCOUNTING) 

लेखांकन प्रमाप-6 के अनुसार निम्न सूचनाओं का प्रकटीकरण वित्तीय विवरण में किया जाना चाहिए।

(1) प्रत्येक हासित सम्पत्ति के वर्ग के लिए ऐतिहासिक लागत या कोई अन्य राशि जो ऐतिहासिक लागत के लिए विचार की गयी है।

(2) प्रत्येक वर्ग की सम्पत्ति के लिए सम्बन्धित अवधि का कुल हास। (3) सम्बन्धित संचित हास के लिए लेखांकन नीतियों के प्रकटीकरण के अतिरिक्त निम्न सूचनाओं का भी वर्णन वित्तीय विवरणों में किया जाना आवश्यक है :

(i) ह्रास के लिए अपनाई गयी पद्धति, व

(ii) ह्रास की दर या सम्पत्ति का उपयोगी जीवनकाल, यदि यह दर उस संस्था के लिए कानूनी रूप से बनाई गई दरों से भिन्न है।

हास के लिए आयोजन और अंकेक्षक के कर्तव्य

(DEPRECIATION AND AUDITOR’S DUTY)

यह स्पष्ट है कि अंकेक्षक मूल्यांकन करने वाला विशेषज्ञ नहीं होता है। यह उसके लिए अत्यन्त कठिन कार्य हो जाता है कि वह किसी सम्पत्ति के हास की व्यवस्था का अनुमान लगा सके। यह तो संस्था के उन विशेषज्ञों तथा प्रबन्धकों का कर्तव्य होता है जो ह्रास की पर्याप्तता की जांच ईमानदारी तथा सच्चाई के साथ करते हैं। अंकेक्षक को यह देखना होता है कि :

(1) ह्रास की पूर्ण व्यवस्था की गयी है;

(2) हास की व्यवस्था करने में सही सिद्धान्तों का पालन किया गया है:

(3) संस्था के अधिकारियों ने ह्रास का आयोजन ईमानदारी से किया है:

(4) वर्ष प्रति वर्ष हास की व्यवस्था करने के लिए अपनाये गये सिद्धान्तों में समानता रखी गयी है।

(5) संस्था की व्यापारिक परम्पराओं एवं व्यावसायिक नियमों का पालन किया गया है;

(6) ह्रास के सम्बन्ध में बनाये गये वैधानिक नियमों का पूर्णतया पालन किया गया है; और

(7) अन्त में, उसे यह विश्वास करना है कि सम्पत्तियों में लगायी गयी पूंजी सुरक्षित (intact) है।

परन्तु यदि वह देखता है कि 

(1) प्रबन्धकों ने ईमानदारी से ह्रास की व्यवस्था पर विचार नहीं किया है.

(2) हास की सलाह देने वाले विशेषज्ञों ने ध्यानपूर्वक कार्य नहीं किया है.

(3) ह्रास का आयोजन पर्याप्त नहीं है: अथवा ।

(4) अधिक लाभ दिखाने के उद्देश्य से ह्रास का आयोजन सही सिद्धान्त के आधार पर न करके वस। ही कर दिया है,

तो अंकेक्षक को संस्था के मालिकों का ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहिए और हास की अपर्याप्तता तथा हास के आयोजन के लिए अपनाये गये गलत आधारों तथा सिद्धान्तों का उल्लेख अपनी रिपोर्ट में स्पष्टतया कर देना चाहिए।

उपर्युक्त के अतिरिक्त अंकेक्षक के ह्रास के सम्बन्ध में निम्न कर्तव्य हैं : .

(1) अंकेक्षक को स्थायी सम्पत्तियों के सम्बन्ध में स्थायी सम्पत्ति की अनुसूची प्राप्त करनी चाहिए और उसमें संस्था के द्वारा क्रय व बेची गयी सम्पत्ति का प्रमाणन करना चाहिए।

(2) हास की मात्रा व ह्रास की विधि का चुनाव प्रबन्धकों द्वारा किया गया है।

(3) अंकेक्षक को इस बात की जांच करनी चाहिए कि हास की जो विधि अपनायी गयी है उसे सस्था या लगातार अपनाया जा रहा है। यदि ह्रास की विधि में कोई परिवर्तन किया गया है तो इस परिवर्तन की आवश्यकता की जांच करनी चाहिए।

(4) इस बात की जांच करे कि कम्पनी की सही वित्तीय स्थिति को दर्शाने हेतु सम्पत्तियों को सही प्रकार दिखाया गया है। इस सम्बन्ध में निम्न बातों की जांच करना अंकेक्षक का कर्तव्य है :

(i) सम्पत्ति की ऐतिहासिक लागत;

(ii) प्रत्येक वर्ग की सम्पत्ति के लिए कल हास:

(iii) सम्बन्धित संकलित ह्रास।

कम्पनी के सम्बन्ध में, उसे देखना चाहिए कि कम्पनी अधिनियम की सभी धाराओं का पूर्ण पालन किया। गया है तथा काटा गया है ।

ह्रास लाभ-हानि खाते और चिट्ठे में दिखाया गया है।

हास के सम्बन्ध में कुछ तर्क और उनके उत्तर कभी-कभी कम्पनी के संचालक ह्रास का प्रबन्ध न करने के लिए चार तर्क उपस्थित करते हैं :

(1) सम्पत्ति-मूल्य में यकायक वृद्धि हो जाने से सम्पत्ति का पुस्तकांकित मूल्य उसके बाजार-मूल्य से काफी कम है, अतएव ह्रास के आयोजन की कोई आवश्यकता नहीं है।

(2) वर्ष में सम्पत्ति के ऊपर मरम्मत तथा नवीनीकरण (repairs and renewals) के लिए इतना अधिक व्यय हो चुका है कि सम्पत्ति ठीक हालत में है और प्रायः नयी के समान है। इस कारण सम्पत्ति के लिए ह्रास के आयोजन की कोई आवश्यकता नहीं है।

(3) कम्पनी के लाभ इस वर्ष इतने कम हैं कि ह्रास का आयोजन नहीं किया जा सकता है। ह्रास का आयोजन करने से लाभांश नहीं बांटा जा सकता है। यदि लाभांश नहीं बांटा गया तो अंशधारी असन्तुष्ट हो जायेंगे और बाजार में अंशों का मूल्य घट जायगा जिससे कम्पनी के मान-सम्मान को धक्का लगेगा।

(4) पिछले वर्षों में जो हास की रकम लिखी गयी है, वह अत्यधिक (excessive) है। अतएव इस वर्ष में हास के आयोजन की आवश्यकता नहीं है।

उत्तर-(1) जहां तक पहले तर्क का प्रश्न है, यह स्पष्ट है कि एक स्थायी सम्पत्ति बाजार में बेचने के। लिए नहीं खरीदी जाती है, वरन लाभ कमाने के उद्देश्य से प्राप्त की जाती है। अतएव बाजार मूल्य को ध्यान दिये बिना उनके हास का आयोजन अवश्य किया जाना चाहिए।

साथ ही बाजार-मल्य बढ जाने से सम्पत्ति के जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, अतएव ह्रास का आयोजन अवश्य करना चाहिए।

(2) मरम्मत तथा नवीवीकरण पर अधिक व्यय करने से सम्पत्ति बिल्कुल नयी नहीं हो सकती है। हां. अच्छी हालत में अवश्य रखी जा सकती है। सम्पत्ति प्रयोग में आने से उसमें घिसावट अवश्य आती है अतएव ह्रास का आयोजन अवश्य करना चाहिए।

(3) लाभ कम है अतः हास का आयोजन करना न्यायसंगत नहीं होता। यह तर्क भी गलत है। हास पर एक प्रभार है न कि लाभ में से कोई आयोजन (Depreciation is a charge against profits and not an appropriation of profits)। अतः चाहे लाभ कम हो या अधिक, लाभांश बांटा जाये या नहीं अंशधारी प्रसन्न हा या न हा, ह्रास का आयोजन अत्यन्त आवश्यक है। हर हालत में हास की व्यवस्था करनी चाहिए। इसी प्रकार किसी वर्ष में हानि होने की अवस्था में भी ह्रास का आयोजन आवश्यक है।

(4) चालू वर्ष (current year) में सम्पत्तियों का ह्रास इसी वर्ष के लाभ-हानि खाते में लिखना चाहिए । ताकि शुद्ध लाभ (net profit) की रकम मालूम की जा सके और संस्था के खाते उसकी वास्तविक आर्थिक स्थिति प्रकट कर सकें।

यदि पिछले वर्षों में हास के लिए आवश्यकता से अधिक आयोजन किया जा चुका है, तो वह अधिक। कम संचय खाते में हस्तान्तरित कर देनी चाहिए। सम्पत्ति के ह्रास का सम्बन्ध प्रत्येक वर्ष में होता है और । उसी वर्ष में उसके लिए व्यवस्था करना सैद्धान्तिक दृष्टि से सर्वथा उचित है।
संचय व आयोजन

Table of Contents

(RESERVES AND PROVISIONS)

संचय (Reserves)

संचय लाभ में से किया गया एक आयोजन है (Reserve is an appropriation of profits। साधारण तौर से भविष्य की आवश्यकताओं या सम्भावनाओं के लिए किया गया आयोजन संचय कहलाता है। लेखांकन के दष्टिकोण से पंजी का वह भाग जो भविष्य की सम्भाव्य हानियों या ज्ञात व्ययों के लि अलग से रख दिया जाता है, संचय कहलाता है।

आयोजन (Provision) __(

(i) आयोजन करने का प्रश्न तब उठता है जबकि हानि की सम्भावना है, लेकिन यह निश्चित नहीं। होती। यह हानि किन्हीं (अ) सम्पत्तियों से प्राप्ति पर या (ब) दायित्व के बन जाने पर हो जाया करती है। जिसकी राशि निश्चित नहीं हो सकती है।

(ii) सम्पत्तियों से प्राप्ति के सम्बन्ध में कछ उदाहरण डूबत ऋण के लिए आयोजन, कटौती आदि है।

और उनके सम्बन्ध में अंकेक्षक का यह कर्तव्य हो जाता है कि वह यह देखे कि व्यवस्था ठीक कर दी गयी। है। डूबत ऋण का सम्बन्ध देनदारों से है तथा उसी प्रकार देनदारों से प्राप्ति के समय ही नकद-बट्टा देने का प्रश्न उठता है।

(iii) अनिश्चित दायित्व के लिए उदाहरण निम्न हैं :

(1) बीमा से न प्राप्त होने वाली हानि जो आग लग जाने के कारण हुई है।

(2) भुनाये गये बिलों के सम्बन्ध में दायित्व जिनके अनादृत होने की सम्भावना है।

(3) किसी मामले में जो न्यायालय के विचाराधीन है, निर्णय न होने पर जो दायित्व बन सकता है. आदि।

इस प्रकार हम आयोजन को विशेष संचय (Specific Reserve) की संज्ञा दे सकते हैं। ये लाभ-हानि खाते की आवश्यक एवं अनिवार्य मदें हैं। चाहे लाभ हो या हानि, आयोजन अवश्य किये जायेंगे।

संचय आयोजन
1 संचय किसी अनिश्चित दायित्व के लिए बनाया जाता है । आयोजन एक निश्चित दायित्व के लिए बनाया जाता जाता है।
2 संचय व्यापार की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने के लिए बनाया जाता है । आयोजन का उद्देश्य सम्पत्तियों से प्राप्ति में हानि दायित्व के होने पर व्यवस्था करना होता है।
3 संचय बनाना संस्था की आर्थिक नीति पर निर्भर होता है । आयोजन संस्था की आर्थिक एवं वित्तीय आवश्यकता पर आधारित है।
4 संचय से कार्यशील पूंजी की वृद्धि होती है। आयोजन से सम्भाव्य हानि की पूर्ति होती है।
5  

संचय की राशि प्रबन्ध की नीति पर निर्भर होती है

आयोजन की राशि निर्धारित नहीं हो सकती है। हाँ, दायित्व का ज्ञान अवश्य हो जाता है।
6 संचय लाभों में से किया जाता है। लाभ हो या न हो, आयोजन अवश्य ही किया जायगा।।

 

 

7 संचय का उपयोग लाभांश बांटने के लिए किया जा सकता है । आयोजन लाभांश बांटने के लिए उपलब्ध नहीं होता है।

 

 

संचय तथा आयोजन में अन्तर

(DIFFERENCE BETWEEN RESERVES AND PROVISIONS)

अंकेक्षक के कर्तव्य-अंकेक्षक को सावधानी के साथ आयोजनों की व्यवस्था की जांच करनी चाहिए। उसको कम्पनी के पार्षद सीमानियम तथा संचालकों की बैठकों की मिनट-बुक का अध्ययन करना चाहिए। यह जानकारी करनी चाहिए कि संचालकों ने आयोजनों के लिए कब-कब तथा कौन-कौन से महत्वपूर्ण निर्णय किये हैं। उसको यह देखना चाहिए कि आयोजन पर्याप्त मात्रा में किये गये हैं और वह इस सम्बन्ध में अपना उचित राय प्रकट करने के लिए स्वतन्त्र है. यदि प्रबन्धकों की ओर से उससे ऐसी राय मांगी जाती है। याद वह अपर्याप्त आयोजन पाता है, तो इस बात का उल्लेख वह अपनी रिपोर्ट में कर सकता है। इससे अधिक उसका कुछ अन्य कर्तव्य नहीं है।

संचय के प्रकार

(KINDS OF RESERVE)

संचय को निम्न प्रकार वर्गीकत किया जा सकता है :

(1) आयगत संचय,

(II) पूंजीगतं संचय।

(I) आयगत संचय

(REVENUE RESERVES)

आयगत संचय उन लाभों को प्रदर्शित करते हैं जो अंशधारियों को लाभांश बांटने हेतु उपलब्ध होते है । या किसी समय तक के लिए किसी विशेष उद्देश्य के लिए रोके गए हैं या व्यवसाय की वित्तीय स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए रखे गए हैं। आयगत संचय निम्न प्रकार के होते हैं :

(1) सामान्य संचय,

(2) विशेष संचय.

(3) संचय कोष,

(4) शोधन कोष,

(5) गुप्त संचय।।

  1. सामान्य संचय (General Reserve) जो संचय किसी विशेष कार्य के लिए नहीं बनाये जाते हैं। वरन जिनका उद्देश्य व्यापार के सामान्य कार्यों की पूर्ति करना होता है, वे साधारण संचय कहलाते हैं। ।

सामान्य संचय के प्रमुख उद्देश्य (1) प्रायः सामान्य संचय किसी व्यापारिक संस्था की आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए बनाये जाते हैं। जितनी अधिक सामान्य संचय की रकम होती है, उतनी अधिक उस संस्था की बाजार में साख होती है। साख की वृद्धि से अधिक लाभ प्राप्त हो सकते हैं।

(2) व्यापार में प्रगति के साथ-साथ धन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सामान्य संचय रखने से पर्याप्त धन संस्था के पास बना रहता है। कार्यशील पंजी के लिए बाहर से धन उधार लेने के स्थान पर अपने लाभ में से सामान्य संचय बनाना एक अत्यन्त ही उत्तम तथा सुगम रास्ता है।

(3) यही नहीं, यदि यकायक कोई विशेष हानि हो जाती है, तो सामान्य संचय से उस हानि का सामना सुविधापूर्वक किया जा सकता है। सामान्य संचय के न होने से ऐसी दशा में संस्था को संकटों का सामना करना पड़ता है।

(4) फिर प्रति वर्ष एक-से लाभ भी नहीं होते हैं। लाभांश की दर स्थायी रखने का सदैव प्रयत्न करना चाहिए। यदि इस दर में अन्तर पड़ता है तो उससे संस्था के हितों को धक्का लगता है। सामान्य संचय का प्रयोग लाभांश की दरों को प्रति वर्ष समान रखने के लिए भी किया जा सकता है।

(5) कभी-कभी विशेष परिस्थितियों में अत्यधिक लाभों को छिपाने के लिए भी सामान्य संचय बनाने की व्यवस्था लाभदायक सिद्ध होती है। उन्नतिशील संस्था के लिए यह व्यवस्था अधिक हितकर मानी जाती है।

अंकेक्षक के कर्तव्यसामान्य संचय बनाने का प्रश्न पूर्णतया किसी संस्था की आर्थिक नीति का मामला है और यह उसके प्रबन्धकों के निर्णय पर निर्भर होता है। अंकेक्षक न तो सामान्य संचय की सिफारिश ही कर सकता है और न वह उसके बनाने के सम्बन्ध में कोई प्रतिबन्ध ही लगा सकता है। परन्तु यदि सामान्य संचय बनाया गया है, तो अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि यह संस्था के वास्तविक लाभ में से बनाया गया है और चिट्टे में ठीक प्रकार से दिखाया गया है। सामान्य संचय के लिए अंकेक्षक को निम्न बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए:

 (1) उसे संस्था के नियमों की ओर ध्यान देना चाहिए। कम्पनी के सम्बन्ध में अन्तर्नियमों का अध्ययन करना उसके लिए आवश्यक होगा।

(2) संचय का निर्माण उचित लाभों में से किया गया है।

(3) यदि नियमों में सामान्य संचय बनाने के लिए कोई दर निर्धारित कर दी गयी है, तो यह देखना होगा कि इसी दर के आधार पर संचय का आयोजन किया गया है।

(4) साथ ही अंकेक्षक को सम्पत्तियों के मल्यांकन, ह्रास तथा अप्राप्य ऋण के लिए किये गये आयोजन की ओर अपना ध्यान आकर्षित करना चाहिए। नियमानुसार सामान्य संचय शुद्ध सम्पत्ति (Assets – Liabilities i.e., Net Assets) का प्रतीक होता है।

(5) सामान्य संचय में वद्धि की गयी राशि व उसमें से निकाली गयी राशि की जांच करनी चाहिए कि वे वित्तीय विवरणों में सही रूप से दर्शायी गयी हैं।

यदि इन बातों के आधार पर सामान्य संचय का निर्माण किया गया है तो ठीक है, अन्यथा अंकेश को अपनी रिपोर्ट में इन आपत्तियों का उल्लेख अवश्य कर देना चाहिए।

यदि अंकेक्षक से सामान्य संचय बनाने के सम्बन्ध में राय मांगी जाती है, तो उसे काफी लाभ होने के हालत में ही संचय बनाने की सलाह देनी चाहिए।

  1. विशष सचय (Specific Reserve) किसी विशेष कार्य के लिए किया गया संचय विशेष होता है। विशेष संचय का आयोजन :

(1) अदत्त व्यय (outstanding expenses) के भुगतान के लिए,

(2) सम्पत्तियों के ह्रास, मरम्मत तथा नवीनीकरण के खर्च के लिए, और

(3) अप्राप्य एवं संदिग्ध ऋणों तथा कटौती (discount), आदि के पूर्वोपाय के लिए किया जाता है।।

इस प्रकार विशेष संचय अनिवार्य रूप से बनाया जाता है, चाहे लाभ हो या न हो। विशेष संचय को पूर्वोपाय के नाम से कहना अधिक अच्छा होगा। यह संस्था के लाभ-हानि खाते पर प्रभारस्वरूप होता है।

सामान्य तथा विशेष संचय में अन्तर

(DIFFERENCE BETWEEN GENERAL AND SPECIFIC RESERVES)

सामान्य संचय विशेष संचय
1 साधारण कार्यों के लिए बनाया जाता है। विशेष कार्यों के लिए बनाया जाता है।
2 सामान्य संचय का बनाना लाभों के कम या अधिक होने पर निर्भर होता है। विशेष संचय अनिवार्य रूप से बनाया जाता है, चाहे होने पर निर्भर होता है।

 

3 सामान्य संचय चिट्ठे के दायित्व पक्ष में अलग से दिया जाता हैं । यह प्रायः सम्बन्धित सम्पत्ति या मद के साथ-साथ चिट्टे जाता है।
4 विशेष संचय का उद्देश्य उस सम्भाव्य हानि की पूर्ति के लिए बनाया जाता है।

 

विशेष संचय का उद्देश्य उस सम्भाव्य हानि की पूर्ति से होता है जिसके लिए बनाया जाता है।

 

5 सामान्य संचय एक प्रकार से पुराना लाभ होता है जो बांटा नहीं गया है। यह आवश्यकतानुसार लाभ की तरह बांटा जा सकता है।

 

विशेष संचय कभी भी बांटा नहीं जा सकता।

 

अंकेक्षक के कर्तव्य अंकेक्षक को यह देखना है कि (i) जिस किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए विशेष संचय बनाया गया है, उसके लिए वह रकम पर्याप्त है। विशेष संचय कितना होगा, यह संस्था के स्वभाव तथा विशिष्ट कार्य की प्रकृति पर निर्भर होगा। (ii) अंकेक्षक को पार्षद अन्तर्नियमों की जांच विशिष्ट संचय के प्रावधानों के लिए करनी चाहिए। इस बात की जांच करनी चाहिए कि संचय का प्रयोग निश्चित उद्देश्य के  लिए किया गया है। (iii) विशिष्ट संचय के लिए वैधानिक प्रावधानों की अनुपालना की जांच करनी चाहिए।

  1. संचय कोष (Reserve Fund)—संचय कोष वास्तव में कोई अलग संचय नहीं है। इन्स्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउण्टैण्टस’ के अनुसार ‘कोष’ शब्द का प्रयोग उसी हालत में करना चाहिए जब कोई रकम व्यापार। से बाहर विनियोजित की जाय, जिससे आवश्यकतानुसार प्रतिभूतियों को बेचकर तुरन्त ही धन प्राप्त किया जा सके।

अतः संचय कोष कोई नया संचय नहीं है। यह तो संचय या किसी पूर्वोपाय को सरक्षित रखने का। एक साधन मात्र है। विनियोग करने के लिए एक संचय कोष विनियोग खाता (Reserve Fund Tavestment A/c) खोला जाता है और रोकड़ के विनियोजित करने पर इस खाते को डेबिट कर दिया जाता है तथा रोकड़ खाते को क्रेडिट कर दिया जाता है

अंकेक्षक को यह देखना होगा कि (i) संचय कोष की रकम चिट्टे में स्पष्ट रूप से अलग लिखी हुई है। या नहीं। (ii) यह भी चिट्टे में साफ लिखा जाना चाहिए कि यह कोष संचय की रकम का है अथवा विशेष पूर्वोपाय की रकम का है। (iii) अंकेक्षक को विनियोगों की तरलता एवं सुरक्षा की भी जांच करनी चाहिए।

  1. शोधन कोष (Sinking Fund) शोधन कोष’ एक प्रकार का विशेष संचय होता है जो किसी सम्पत्ति के प्रतिस्थापन के लिए या किसी विशेष दायित्व के भुगतान के लिए बनाया जाता है। शोधन कोष बनाने के चार प्रमुख उद्देश्य होते हैं :

(1) किसी दायित्व को कम करने के लिए (किसी ऋण या ऋणपत्रों का भुगतान करने के लिए),

(2) किसी क्षयी सम्पत्ति (जैसे खान) का प्रतिस्थापन करने के लिए,

(3) किसी ह्रास होने वाली सम्पत्ति के पुनर्स्थापन करने के लिए, तथा

(4) पट्टे के नवीनीकरण के लिए।

उद्देश्य कुछ भी हो, शोधन को बनाने के विधि प्रायः एकसी है। प्रति वर्ष लाभ-हानि खाते से एक निश्चित रकम अलग निकालकर तत्सम्बन्धी कोष खाते में रख दी जाती है, और उतनी ही रकम से प्रतिभूतियां खरीद ली जाती हैं जिसके लिए शोधन कोष खाते के अलावा शोधन कोष विनियोग खाता खोल दिया जाता है। प्रतिभूतियों से प्राप्त वार्षिक आय कोष खाते में क्रेडिट कर दी जाती है और उसकी प्रतिभूतियां खरीद ली जाती हैं। इस प्रकार यह प्रक्रिया वर्ष-प्रति वर्ष चलती रहती है।

जब किसी ऋण के भुगतान या सम्पत्ति के प्रतिस्थापन का समय आता है तो विनियोजित धनराशि की आवश्यकता होती है। प्रतिभूतियां बेच दी जाती हैं और प्राप्त मूल्य से विनियोग खाते को क्रेडिट कर दिया जाता है। यदि इसके बाद भी विनियोग खाते में कुछ शेष रह जाता है तो उसे कोष खाते में हस्तान्तरित कर दिया जाता है। यदि विनियोगों की बिक्री से लाभ होता है तो उसे सामान्य संचय में लिख दिया जाता है और यदि कुछ हानि होती है तो लाभ-हानि खाते में लिख दिया जाता है।।

सम्पत्ति के प्रतिस्थापन के उद्देश्य से शोधन कोष में जितनी रकम लाभ-हानि खाते से हस्तान्तरित की जाती है, वह एक प्रकार से लाभ-हानि खाते पर प्रभार स्वरूप है। लाभ हो या हानि, उतनी रकम शोधन कोष में अवश्य ही हस्तान्तरित कर दी जानी चाहिए। वैसे ही जब खाते बन्द किये जाते हैं, तो इस हालत में शोधन कोष खाते को सम्पत्ति खाते में हस्तान्तरित कर दिया जाता है और इसमें सम्पत्ति खाता बन्द हो जाता है।

परन्तु किसी दायित्व के भुगतान के लिए बनाये गये शोधन कोष के लिए यह आवश्यक नहीं है कि किसी वर्ष लाभ न होने पर भी आवश्यक रकम कोष खाते में हस्तान्तरित की जाय। दायित्व के भुगतान करने के पश्चात् शोधन कोष की आवश्यकता नहीं रहती है और यह खाता सामान्य संचय खाते में हस्तान्तरित कर दिया जाता है। दायित्व के भुगतान के बाद शोधन कोष एक अवितरित लाभ होता है और उसे अंशधारियों में बांटा जा सकता है।

अंकेक्षक के कर्तव्य (1) अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि संस्था के नियमों के आधार पर शोधन कोष बनाया गया है।

(2) अंकेक्षक को यह भी देखना चाहिए कि प्रति वर्ष किया गया आयोजन शोधन कोष के उद्देश्य की दृष्टि से पर्याप्त है।

(3) शोधन कोष बनाने के सभी सम्बन्धित खाते निर्धारित सिद्धान्तों के आधार पर रखे गये हैं। अंकेक्षक को सम्बन्धित लेखों का प्रमाणन करना चाहिए तथा यह देखना चाहिए कि इस कोष से सम्बन्धित विनियोग चिट्ठे में स्पष्ट रूप में दिखलाये गये हैं।

5. गुप्त संचय (Secret Reserve) —गूप्त संचय सदैव गुप्त रखा जाता है। उसका उल्लेख आर्थिक चिटे में नहीं होता है। हां, गुप्त संचय खाताबही से अवश्य प्रकट होता है। गुप्त संचय होने से किसी संस्था का चिट्ठा उसकी सही आर्थिक स्थिति को प्रकट नहीं कर सकता है। वास्तव में, संस्था की आर्थिक स्थिति चिट्टे से प्रकट स्थिति की अपेक्षा काफी अच्छी होती है।

गुप्त संचय बनाने की विधि

(1) विनियोग, स्टॉक, इत्यादि सम्पत्तियों को उसके लागत मूल्य या बाजार-मूल्य से बहुत कम मूल्य पर लिखना।।

(2) किसी स्थायी सम्पत्ति के मूल्य में अत्यधिक स्थायी वद्धि होने पर भी मूल्य की बढ़ोतरी को न दिखाना।

(3) स्थायी सम्पत्तियों पर अधिक हास काटना।

(4) अप्राप्य तथा संदिग्ध ऋणों के लिए आवश्यकता से अधिक समायोजन करना।

(5) ख्याति को बहुत कम दिखाना।

(6) चिट्ठे में कुछ सम्पत्तियों को बिल्कुल न दिखाना।

(7) पूंजीगत व्ययों को आयगत व्यय मानना तथा इस प्रकार सम्पत्तियों का मूल्य उनके वास्तविक मूल्य  से कम दिखाना।

(8) दायित्वों को बढ़ाकर दिखाना।

(9) झूठे दायित्व दिखाना।

(10) सम्भाव्य दायित्वों को असली दायित्व दिखाना।

(11) चिट्ठे के दायित्व पक्ष में असमान मदों (dissimilar items) को एक ही वर्ग में दिखाना-उदाहरण के लिए, लेनदारों में संचय तथा अन्य आयोजनों को मिलाकर “लेनदार और अन्य बाकियां” (Creditors and other credit balances) एक साथ दिखाना।

गुप्त संचय के उद्देश्य व्यापार के हित में—(1) किसी आकस्मिक हानि की पूर्ति के लिए गुप्त संचय का प्रयोग हो सकता है।

(2) व्यापार के प्रतिद्वन्द्वी से संस्था की प्रगति छिपाने के लिए गुप्त संचय बनाये जाते हैं। यदि ऐसा न किया जाय और संस्था की अच्छी स्थिति जनता के सामने आ जाय तो प्रतिद्वन्द्वी संस्थाएं बड़ी संख्या में क्षेत्र में आ जायेंगी और प्रतिस्पर्धा का क्षेत्र विस्तृत हो जायगा।

(3) किसी वर्ष के असाधारण लाभ को न दिखाकर गुप्त संचय बनाया जाता है और गुप्त संचय का उपयोग उस वर्ष में किया जा सकता है जिस वर्ष में पर्याप्त लाभ नहीं होते हैं।

(4) लाभ जो एक संस्था के द्वारा कमाये गये हैं गुप्त संचय बनाने से संस्था के पास रखे जा सकते हैं। फलस्वरूप कार्यशील पूंजी पर्याप्त मात्रा में मिल सकती है और संस्था की आर्थिक स्थिति सुदृढ रखी जा सकती है।

(5) गुप्त संचय से लाभांश की दर समान रखने में भी सहायता मिलती है।

व्यापार के अहित में (1) व्यापार की अच्छी स्थिति को छिपाकर उसके अंशों का मूल्य बढ़ने से रोका जा सकता है और ये अंश बाजार में कम मूल्य पर खरीदे जा सकते हैं।

(2) कम्पनी के संचालक अपने द्वारा की गयी गोलमाल से हुई हानि छिपाने के लिए भी कभी-कभी गुप्त संचय बना लेते हैं। गुप्त संचय बनाने से उन्हें छल-कपट का अवसर मिल सकता है।

कभी-कभी संचालक अंशधारियों से वास्तविक लाभ छिपाकर कुछ रकम को हड़पने के लिए गुप्त संचय बनाया करते हैं।

गुप्प संचय बनाने में आपत्तियां

(1) संस्था का चिट्ठा उसकी सही आर्थिक स्थिति को प्रकट नहीं कर। सकता है।

(2) यदि गप्त संचय बनाया जाता है तो अंशधारियों को लाभ का उचित हिस्सा नहीं मिल पाता है।

(3) बाजार में अंश का मूल्य कम हो जाता है।

(4) कम्पनी की साख बाजार में कम हो जाती है।

(5) गुप्त संचय का उपयोग व्यापार के प्रबन्धको के दोष छिपाने के लिए किया जा सकता है। उदाहरण – यदि उस वर्ष हानि हुई है, तो उस हानि को छिपाने के लिए किसी सम्पत्ति को जिसे पहले गुप्त जग बनाने के लिए कम मूल्य पर लिखा गया है, चिठ्ठ म अधिक मूल्य पर दिखाया जा सकता है।।

(6) यदि स्थायी सम्पत्तियों के मूल्य चिट्ठे में वास्तविक मूल्य से कम दिखाये जाते हैं और यदि दर्भािग्यवश आग लग जाती है, तो बीमा कम्पनी चिट्रे में अंकित मंल्यो के आधार पर क्षी क्षतिपूर्ति है और इस प्रकार संस्था की हानि हो जाती है।

(7) संचालकगण गुप्त संचयों का दुरुपयोग कर सकते हैं। बेईमानी करके कम्पनी से अनुचित लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

(8) यदि गुप्त संचय बनाने के लिए चिट्ठे में किसी सम्पत्ति को बिल्कल ही नहीं लिखा जाता है, तो अंकेक्षक इस सम्पत्ति का सत्यापन करना भूल सकता है और इस प्रकार इस सम्पत्ति का गबन सुविधा के साथ हो सकता है।

(9) कम्पनी अधिनियम, 1956 व 1960 के अनुसार बैंक, बीमा तथा बिजली कम्पनियों के अतिरिक्त अन्य कम्पनियों के लिए गुप्त संचय बनाने पर आपत्ति की गयी है, क्योंकि ।

(क) इस अधिनियम के अनुसार यह आवश्यक है कि संचय तथा अन्य आयोजन खातों में स्पष्ट रूप से लिखे जायें, और

(ख) एक कम्पनी के लाभ-हानि खाते तथा चिट्टे से उसकी आर्थिक स्थिति सही तथा ठीक रूप से प्रस्तुत होनी चाहिए। यह तभी सम्भव है जब सम्पत्तियों तथा दायित्वों को सही मूल्य पर दिखाया गया हो।

अंकेक्षक के कर्तव्य-उपर्युक्त कथन से अंकेक्षक की स्थिति स्पष्ट हो जाती है। यदि बैंक, बीमा व बिजली कम्पनियों के अतिरिक्त अन्य कम्पनियां गुप्त संचय बनाती हैं तो अंकेक्षक इस बात का उल्लेख अपनी रिपोर्ट में कर सकता है। उसे ऐसी परिस्थिति में कभी भी लाभ-हानि खाते तथा चिट्ठे को ठीक प्रमाणित नहीं करना चाहिए

(1) अंकेक्षक को गुप्त संचय रखने के औचित्य का पता लगाना चाहिए।

(2) कम्पनी के अन्तर्नियमों का अध्ययन करना चाहिए और जिन कम्पनियों में गुप्त संचय बनाने के लिए व्यवस्था की गयी है उनमें गुप्त संचय रखने की वैधता की जांच करनी चाहिए। यह देखना चाहिए कि गुप्त संचय बनाने के पीछे प्रबन्धकों का इरादा ठीक है और पूर्ण ईमानदारी के साथ यह कार्य किया गया है।

(3) उसे गुप्त संचय के सम्बन्ध में प्रत्येक सूचना प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए। उसे संस्था के मालिकों के प्रति अपना दायित्व निभाने के लिए गुप्त संचय की आवश्यकता तथा इसे बनाने की विधि की पूर्ण जानकारी करनी चाहिए।

(4) यदि अंकेक्षण करते समय उसे यह पता चलता है कि सम्पत्तियों का कम मूल्य पर मूल्यांकन करने या दायित्वों की अधिक रकम दिखाने से गुप्त संचय बनाया गया है तो उसे यह सभी बातें प्रबन्धकों से करनी चाहिए और गुप्त संचय बनाने की नीति तथा कारण का पता लगाना चाहिए।

(5) जब तक किसी संस्था में गुप्त संचय बनाने की आवश्यकता न हो तब तक अंकेक्षक को साधारणतया गुप्त संचय बनाने की बात स्वीकार नहीं करनी चाहिए और फिर संशोधित चिट्ठा बनाने के लिए बाध्य करना चाहिए।

परन्तु यदि प्रबन्धक अंकेक्षक के इन विचारों को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होते हैं तो उसे अपनी रिपोर्ट में सभी बातें बिना किसी हिचकिचाहट के स्पष्ट रूप से लिख देनी चाहिए।

सीधी-सी बात यह है कि यह गुप्त संचय का बनाना अंकेक्षक की दृष्टि में पूर्णतया उचित, आवश्यक तथा वैध है और उसका प्रयोग उचित रीति से किया गया है, तो वह गुप्त संचय की विद्यमानता को प्रकट करता हुआ खातों को स्वीकार कर सकता है। यदि नहीं, तो उसे इन आपत्तियों को अपनी रिपोर्ट में लिखने का पूर्ण अधिकार है।

गुप्त संचय के सम्बन्ध में न्यायालय के कुछ महत्वपूर्ण निर्णय

(SOME IMPORTANT COURT CASES IN RESPECT OF SECRET RESERVE)

Newton vs. Birmingham Small Arms Co. Ltd., 1906

मुकदमे का आधार कम्पनी के अन्तर्नियम को विशेष प्रस्ताव से बदल दिया गया था और संचालकों को यह अधिकार दे दिया गया था कि वे गुप्त संचय बिना चिट्टे में दिखाये हुए अपनी इच्छानुसार बना सकते थे, गुप्त संचय की रकम को स्वतन्त्रता के साथ रख सकते थे, नियोजित कर सकते थे और कम्पनी के हित की रक्षा के लिए उसका उपयोग कर सकते थे। ।

साथ ही अंकेक्षक को यह भी अधिकार दिया गया कि वह गुप्त संचय की रकम का सत्यापन कर सकता था और यह भी देख सकता था कि गप्त संचय का उपयोग अन्तर्नियमों की धाराओं के अनुसार किया गया था, पर यह अंशधारियों को गुप्त संचय बनाने तथा उसके उपयोग करने की सूचना नहीं दे सकता था। उस पर इस बात का प्रतिबन्ध लगा दिया गया था।

निर्णय-अन्तर्नियमों की कोई भी धारा अंकेक्षक को गुप्त संचय के सम्बन्ध में अंशधारियों के पर कोई भी प्रतिबन्ध नहीं लगा सकती। ऐसी धारा गैर-कानूनी समझी जानी चाहिए।

Royal Mail Steam Packet Ltd., 1931

मुकदमे का आधार कई वर्षों तक यह कम्पनी हानि पर काम करती रही लेकिन उसके हिसाब किताब लाभांश बांटने के लिए पर्याप्त लाभ दिखाते रहे। हिसाब-किताब की इस व्यवस्था से अन्तिम खातों में गात संचय का संकेत नहीं मिलता था और इस प्रकार अंशधारियों को सही व्यापारिक स्थिति के विषय में कुछ भी नहीं बताया गया। हानि होते हए भी कम्पनी गुप्त संचय में से लाभांश बांटती रही।

निर्णय न्यायालय ने निर्णय दिया कि अंकेक्षक को साधारण तौर से इस कार्य में ढिलाई से नहीं चलना चाहिए और गुप्त संचय में से लाभांश बांटने की इजाजत नहीं होनी चाहिए। उसे ऐसी आपत्तियों का उल्लेख अपनी रिपोर्ट में अवश्य कर देना चाहिए।

उक्त निर्णय के अनुसार अंकेक्षक अपने दायित्व से मुक्त कर दिया गया था।

Shamdasani vs. Pochanwala, 1927

इस मकदमे में यह निर्णय दिया गया था कि यदि गुप्त संचय के किसी भाग को अप्राप्य तथा संदिग्ध ऋण के भुगतान के लिए उपयोग किया गया हो, तो यह बात चिट्ठे में साफ-साफ लिखनी चाहिए और कभी। भी छिपानी नहीं चाहिए।

(II) पूंजीगत संचय

(CAPITAL RESERVE)

पूंजीगत संचय केवल पूंजीगत लाभों में से ही बनाये जाते हैं। अंशों पर प्रीमियम, कम्पनी बनाने से पूर्व कमाया हुआ लाभ, ऋणपत्रों के परिवर्तन करने या शोधन पर प्राप्त लाभ, पूंजी शोध्य संचय का शेष, आहरित अंशों के पुनर्निर्गमन पर उनका जमा, शेष, चालू व्यवसाय के खरीदने पर प्राप्त लाभ, आदि विशेष प्रकार के लाभ जो संस्था के साधारण व्यापार में नहीं होते हैं, पूंजीगत संचय बनाने के काम आ सकते हैं। सम्पत्तियों के बेचने से प्राप्त लाभ या सम्पत्ति के मूल्य में वृद्धि (Appreciation in the value of assets) आदि भी पूंजीगत संचय बनाने के स्रोत होते हैं।

अंकेक्षक के कर्तव्य

(1) अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि पूंजीगत संचय वास्तव में पूंजीगत लाभ में से बनाये गये हैं।

(2) यह भी देखना चाहिए कि पूंजीगत संचय का उपयोग केवल पूंजी हानियों के अपलिखित करने के लिए ही किया गया है। ख्याति, पूंजी-हानि, प्रारम्भिक व्यय (Preliminary expenses), इत्यादि के अपलिखित करने के लिए पूंजीगत संचय का प्रयोग किया जाता है।

(3) यदि लाभांश बांटने के लिए विशेष संचयों का उपयोग किया गया है तो उन परिस्थितियों तथा विशेष नियमों का अध्ययन करना चाहिए जिनमें ऐसा करने की अनुमति दी गयी है।

(इसका विशेष विवरण ‘विभाज्य लाभ एवं लाभांश’ शीर्षक अध्याय में दिया गया है।) ।

(4) विशेष संचय चिट्ठ में अलग से दिखाना चाहिए और यदि पिछले वर्ष के चिट्टे से पूंजीगत संचय। की रकम में कोई कमी या वृद्धि हो गयी हो तो वह भी स्पष्टतया लिखना चाहिए।

प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1 हास’ से आप क्या समझते हैं ? एक कम्पनी के संचालक इस तर्क के आधार पर कि लाभ की रकम लाभांश । बांटने के लिए अपर्याप्त है, हास की व्यवस्था करने पर आपत्ति करते हैं। आपकी इस सम्बन्ध में क्या राय है।

What do you mean by Depreciation? The board of directors of a company claims that profit are inadequate for distribution of dividend, and thus objects for making provision for depreciation. What are your views in this regard?

(2) ह्रास से आप क्या समझते हैं? ह्रास व्यवस्था की विभिन्न पद्धतियों का वर्णन कीजिए। अंकेक्षक के इस सम्बन्ध में क्या कर्तव्य है?

What Do mean by Depreciation? Explain the various methods of providing depreciation What are the duties of an auditor in this regard?

  1. स्थायी’, ‘नष्ट होने वाली’, ‘अस्थायी’ तथा ‘बनावटी’ सम्पत्तियों पर कटौती का आयोजन करने के सम्बन्ध में वैधानिक स्थिति तथा वाणिज्य नीति की विवेचना कीजिए। इस सम्बन्ध में अंकेक्षक के क्या दायित्व है ?

Discuss the statutory provisions and commercial policies in respect to provision for depreciation in respect to Fixed’, ‘Wasting’, ‘Floating’ and Fictitious assets. What are the liabilities of auditor in this regard?

  1. क्या यह एक कम्पनी के लिए कानूनन अनिवार्य है कि विभाजन-योग्य लाभ की राशि पर आने के लिए उसकी अस्थायी सम्पत्तियों पर ह्रास आयोजित किया जाय? पूर्ण रूप से समझाइए।

Is it legally compulsory for a company to make provision for depreciation in order to arrive at divisible profits? Expain in detail.

  1. संचय से आप क्या समझते हैं? संचय कितने प्रकार के होते हैं? इसके सम्बन्ध में अंकेक्षक के क्या कर्तव्य हैं ? |

What do you mean by Reserves? What are various types of Reserves? Explain the duties of an auditor in this regard.

  1. ‘संचय’ तथा ‘आयोजन’ में क्या अन्तर है? इसके सम्बन्ध में अंकेक्षक के कर्तव्य बताइए।

Differentiate between Reserve and Provisions. Describe the duties of an auditor in this regard.

  1. सामान्य संचय और विशेष संचय में क्या अन्तर है? इसके सम्बन्ध में अंकेक्षक के क्या कर्तव्य हैं?

What is the differnece between General Reserve and Specific Reserve? What are the duties of an auditor in this regard?

  1. आगम-कोष व पूंजी-कोष से आप क्या समझते हैं? इनके सम्बन्ध में अंकेक्षक के क्या कर्तव्य है ? |

What do you mean by Revenue Reserve and Capital Reserve? What are the duties of an auditor in this regard?

  1. ‘शोधन कोष’ क्या है ? ऋण चुकाने के लिए व क्षय होने वाली सम्पत्ति के परिवर्तन हेतु स्थापित किये गये शोधन कोष में क्या अन्तर है? इस सम्बन्ध में अंकेक्षक के क्या कर्तव्य हैं ?

What is Sinking Fund? What is the difference between sinking fund created for redemption of loan and for replacement of assets. What are the duties of an auditor in this regard?

  1. 10. गुप्त संचय क्या है ? उनका किस प्रकार निर्माण किया जाता है ? इस प्रकार के संचय की उपयुक्तता पर अपने विचार प्रकट कीजिए। एक अंकेक्षक के कर्तव्य बताइए जबकि उसे खातों में गुप्त संचय मिलते हैं।

What is Secret Reserve? How is it createad? Give your view in respect of need of this reserve. Explain the duties of an auditor when he finds secret reserve created in the account.

  1. 11. गुप्त संचय क्या है ? कैसे बनाये जाते हैं ? गुप्त कोषों की कम्पनी अधिनियम, 2013 के अन्तर्गत क्या स्थिति

What is Secret Reserve? How is it made? What is the status of secret reserve under Companies Act, 2013.

  1. गुप्त संचय क्या है? इसके उद्देश्यों को बताइए। गुप्त संचय बनाने के पक्ष तथा विपक्ष में तर्क दीजिए और इन्हें निर्मित करने की विधियों को बताइए।

What is Secret Reserve? Explain its objects. Give your comments in favour and against creation of this reserve and explain the method of its creation.

  1. ह्रास और गुप्त संचय के सम्बन्ध में अंकेक्षक के क्या कर्तव्य हैं?

What are the duties of an auditor in respect of depreciation and secret reserve?

लघु उत्तरीय प्रश्न

  1. साधारण संचय व विशेष संचय में अन्तर बताइए।
  2. ह्रास के सम्बन्ध में कम्पनी अधिनियम के आयोजन समझाइए।
  3. ह्रास के लिए आयोजन तथा अंकेक्षक’ पर टिप्पणी दीजिए।
  4. “संचय लाभ में से किया गया एक आयोजन है।” समीक्षा कीजिए।
  5. विशेष संचय बनाने के लिए विशेष कारण होते हैं। वे क्या हैं? समझाइए।
  6. गुप्त संचय क्या हैं?
  7. पूंजी संचय क्या है? समझाइए।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

  1. संचय क्या है?
  2. पूंजी संचय क्या है?
  3. गुप्त संचय से क्या समझते हैं ?
  4. 4. आयोजन क्या है?
  5. ह्रास को परिभाषित कीजिए।
  6. ह्रास की पुनर्मूल्ययन पद्धति क्या है ?
  7. ह्रास के क्या कारण हैं?
  8. ह्रास की पद्धतियों में से किसी एक को समझाइए।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

  1. ह्रास से आशय है :

(अ) मूल्य में कमी

(ब) चोरी से कमी

(स) खराबी होने से कमी

(द) इनमें से कोई नहीं

  1. ह्रास का प्रमुख कारण होता है :

(अ) सम्पत्ति का प्रयोग

(ब) सम्पत्ति का विक्रय

(स) सम्पत्ति की चोरी

(द) इनमें से कोई नहीं

  1. 3. निम्न में से कौन-सा ह्रास का प्रमुख आधार बनता है ?

(अ) सम्पत्ति की आयु

(ब) सम्पत्ति का मूल्य

(स) सम्पत्ति की क्षमता

(द) इनमें से कोई नहीं

  1. व्यवसाय की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने के लिए कौन-सा संचय उपयोगी होता है?

(अ) विशेष संचय

(ब) गुप्त संचय

(स) साधारण संचय

(द) शोधन कोष

  1. सम्पत्तियों के प्रतिस्थापन के लिए कौन-सा कोष बनाया जाता है?

(अ) संचय कोष

(ब) शोधन कोष

(स) विनियोजन कोष

(द) इनमें से कोई नहीं

 

 

 

chetansati

Admin

https://gurujionlinestudy.com

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Previous Story

BCom 3rd Year Assets Purchased Under Hire System Study material Notes in hindi

Next Story

BCom 3rd Year Auditing Divisible Profits and Dividends Study material notes in hindi

Latest from Auditing notes in hindi