BCom 2nd Year Entrepreneur Development Programmees Study Material Notes In Hindi

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BCom 2nd Year Entrepreneur Development Programmees Study Material Notes In Hindi

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BCom 2nd Year Entrepreneur Development Programmes Study Material Notes In Hindi: Introduction Need of Importance Objectives Achievements Phases of Entrepreneur Development Programme in Hindi Role of Government and Institute ( Important notes For 2nd Year Student :

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BCom 3rd Year Corporate Accounting Underwriting Study Material Notes in Hindi

उद्यमिता विकास कार्यक्रम

(Entrepreneur Development Programmes)

“प्रत्येक मनुष्य जन्म से ही उद्यमी होता है आवश्यकता केवल इतनी है कि उसे सही पटरी पर लाया जाए।”

शीर्षक

  • परिचय (Introduction)
  • आवश्यकता एवं महत्त्व (Need and Importance)
  • उद्देश्य (Objectives)
  • उपलब्धियाँ (Achievements)
  • उद्यम विकास कार्यक्रमों की अवस्थाएँ (Phases of Enterpreneur Development Programmes)
  • भारत में उद्यमिता विकास कार्यक्रम (Enterpreneur Development Programmes in India)
  • सरकार वे संस्थाओं की भूमिका (Role of Governments and Institutions)

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उद्यमिता विकासएक परिचय

(Entrepreneur Development-An Introduction)

उद्यमी किसी भी देश की आर्थिक व औद्योगिक उन्नति का आधार है। एक देश की आर्थिक व सामाजिक उन्नति काफी हद तक सफल उद्यम पर निर्भर करती है। सफल उद्यम के लिए एक सफल उद्यमी का होना आवश्यक है क्योंकि उद्यमी एक धुरी है जिसके इर्द-गिर्द सारा उद्योग घूमता है। वह संगठन के लिए विचार करता है, आरम्भ करता है उसे संगठित व उसका प्रबन्धन करता है। किसी भी व्यापार की सफलता उसकी सूझबूझ तथा प्रभावशाली प्रबन्धन पर निर्भर करती है। एक सफल उद्यमी में कुछ गुण तो पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण स्वयं ही आ जाते हैं। जैसे किसी सफल औद्योगिक घराने में पैदा होने वाले व्यक्ति में एक उद्यमी के गुण बचपन से ही विकसित होने लगते हैं तथा कुछ वातावरण, शिक्षा, प्रशिक्षण आदि द्वारा विकसित किए जा सकते हैं। एक उद्यम का विकास बहुत से आर्थिक व सामाजिक तथ्यों पर निर्भर करता है। आर्थिक तथ्यों में स्थान, पूँजी, श्रम, कच्चा माल व मण्डीकरण आदि शामिल हैं; जबकि सामाजिक तथ्यों में सामाजिक वातावरण, गतिशीलता तथा सरकार व गैर-सरकारी संगठनों का योगदान शामिल है।

एक उद्यम का विकास उद्यम विकास योजनाओं (EDP’s) द्वारा किया जा सकता है। उद्यम विकास योजनाएँ इस सोच पर आधारित हैं कि व्यक्तियों (उद्यमियों) का विकास करके उनके दृष्टिकोण को बदला जा सकता है। ताकि वह अपने विचारों को एक संगठन की शक्ल दे सके। उद्यम विकास कार्यक्रम मात्र प्रशिक्षण कार्यक्रम नहीं है अपितु यह एक तकनीक है, जो भावी उद्यमियों को प्रेरणा, कार्यक्षमता तथा ज्ञान को बढ़ाने में मदद करती है। इसके साथ ही उद्यमियों के रोजमर्रा के कार्यों में उनके। व्यवहार व कार्य प्रणाली के सुधार में मददगार साबित होती है।

अतः हम कह सकते हैं कि एक उद्यम विकास कार्यक्रम शिक्षण व प्रशिक्षण देकर, भौतिक साधनों की उपलब्धता क में जानकारी देकर, क्षेत्रीय विकास आदि की नीति बनाकर, एक सफल औद्योगिक वातावरण बनाने में मदद करते हैं ताकि। जामियों को आगे बढ़ने में मदद मिल सके।

परिभाषा (Definition)-उद्यमिता विकास कार्यक्रम एक व्यापक कार्यक्रम है जो उद्यमियों के विकास पर बल देता। अनाकि उद्योग का विकास हो सके। यह मानवीय संसाधन विकास (Human Resource Development) का ही एक हिस्सा है।

उद्यमिता विकास कार्यक्रम को निम्नलिखित ढंग से परिभाषित किया जा सकता है।

1. “एक ऐसी योजना जो एक उद्यमी की भूमिका को प्रभावशाली बनाने के लिए जो आवश्यक गुण चाहिए, उन्हें हासिल करने में सहयोग करती है।”

2 .“एक व्यक्ति को उद्यम बनाने व उद्यमी क्षमताओं को तेज करने के लिए जरूरी ज्ञान व सूचना प्रदान करना, उद्यम विकास कार्यक्रम कहलाता है।

3.”उद्यमिता विकास कार्यक्रम औद्योगीकरण का एक अस्त्र है तथा उद्यमिता के विकास में आने वाली बाधाओं व समस्याओं का समाधान करता है।”

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उद्यमिता विकास कार्यक्रम क्यों ? आवश्यकता एवं महत्त्व

(Why EDP’s? -Need and Importance)

किसी भी राष्ट्र, चाहे विकसित हो या विकासशील के आर्थिक व औद्योगिक विकास में उद्यमिता विकास कार्यक्रमों एक एक महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य उद्यमियों को विकसित करके, उन्हें उद्योग अपनाने के लिए प्रेरित करके; एक संगठन स्थापित करने के लिए काबिल बनाना है ताकि वे दूसरों के सामने उदाहरण प्रस्तुत करके उन्हें भी प्रेरित कर सके। आर्थिक उन्नति सफल उद्योग पर निर्भर करती है और सफल उद्योग के लिए अच्छे, संगठित व नियमबद्ध उद्यम विकास कार्यक्रम एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह योजनाएं प्रतिभगियों में आत्मविश्वास पैदा करती हैं ताकि वो व्यापार में नित नई चुनौतियों व समस्याओं का मुकाबला कर सकें।

आर्थिक उन्नति विकसित तथा नई तकनीक पर निर्भर करती है। परन्तु नई तकनीक अपने आप में आर्थिक विकास नहीं कर सकती जब तक इन तकनीकों का उद्यमियों द्वारा आर्थिक उपयोग नहीं किया जाए। सफल उद्यमी श्रम, पूँजी व तकनीक को बेहतर ढंग से प्रयोग करता है जिसके लिए उद्यम विकास योजनाएं एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

उद्यमिता विकास योजनाएं निम्नलिखित ढंग से आर्थिक प्रगति में सहायता करती हैं

1 रोजगार (Employment)-लगातार बढ़ती बेरोजगारी खासतौर से अविकसित देशों में, एक बहुत गम्भीर समस्या है। उद्यम विकास योजनाएं लोगों को अपने उद्योग स्थापित करने के लिए प्रेरित करती हैं तथा उन्हें स्वरोजगार स्थापित करने के लिए सक्षम बनाती हैं। इससे न केवल नए उद्यमियों को रोजगार मिलता है अपितु वे दूसरों के लिए भी रोजगार के अवसर पैदा. करते हैं। भारत में भी गरीब अन्मूलन व बेरोजगारी दूर करने के उद्देश्य से कई कार्यक्रम चलाए गये हैं। इनमें प्रमुख हैं

प्रधानमंत्री रोजगार योजना, जवाहर रोजगार योजना, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम, 20 सूत्री आर्थिक कार्यक्रम आदि।

2. पंजी विकास (Formation of Capital) उद्यम विकास कार्यक्रम पूँजी के विकास में सहायता करते हैं जो किसी भी राष्ट्र की आर्थिक उन्नति के लिए आवश्यक है। पूँजी किसी भी संगठन के विकास व स्थापना के लिए आधार है। एक उद्यमी उत्पादन के तत्त्वों का प्रबन्ध करके अपने वित्तीय संसाधनों का प्रयोग संगठन की स्थापना व विकास के लिए करता है। वह लोगों का बचत को गतिशील बनाता है। इसके लिए विभिन्न संस्थएं जैसे ICICI.IDBI,SIDBI,SIDC आदि भी उद्यमियों को वित्तीय सहायताएं प्रदान करती हैं। जिससे पूँजी विकास की और मदद मिलती है।

3. परियोजना में सहायक (Formulation of Projects) एक परियोजना के चयन के पश्चात् उसका तकनीकी ववित्तीय विश्लेषण करना आवश्यक होता है जिसके वित्तीय स्रोत, बिना आर्थिक हानि होने की सम्भावना रहती है। उद्यमिता विकास कार्यक्रम परियोजना के प्रारूप बनाने में सहायता करते हैं। यह कार्यक्रम परियोजना से सम्बन्धित यन्त्र एवं सामग्री, कच्चा माल, रचनात्मक सुविधाओं, भूमि का चयन, श्रम स्रोत, वित्तीय स्रोत, मण्डीकरण आदि के बारे में आवश्यक सूचना प्रदान करते हैं।

4. सन्तुलित क्षेत्रीय विकास (Balanced Regional Growth) विकासशील देशों में अन्य समस्याओं के अतिरिक्त मालत क्षेत्रीय विकास एक प्रमुख समस्या है। एक तरफ तो कुछ राज्य जैसे, पंजाब, महाराष्ट्र, गुजरात आदि हैं: ‘बहुत तार से विकास हो रहा हैं दूसरा और बिहार, राजस्थान, उड़ीसा जैसे राज्य हैं, जो विकास की दृष्टि से काफी पीछे हैं। उद्यमिता विकास पिछड क्षत्रों में लघु इकाइयां स्थापित करने में सहायता करते हैं व पूँजी के केन्द्रीयकरण को रोकते हैं। इस तरह के उधामियाँ का विभिन्न सरकारें तरह-तरह की रियायते व सब्सिडी भी देती हैं जिससे औद्योगीकरण की गति को तेजी मिलती। है व राष्ट्र को समान क्षेत्रीय विकास की तरफ ले जाती है।

5. स्थानीय साधनों का उपयोग (Use of Local Resources) उद्यमिता विकास योजनाएं अपने विभिन्न कार्यक्रमों कमाध्यम से, शिक्षण व प्रशिक्षण देकर सहायता देकर. उद्यमियों को स्थनीय संसाधनों के सही उपयोग के सही उपयोग में मदद। करता है। इन संसाधनों का सही उपयोग होने से उस क्षेत्र का विकास कम खर्च में हो सकता है।

6. औद्योगिक गन्दी बस्तियों को हटाने में सहायक (Helpful in preventing slums)-औद्योगिक रूप से विकासत क्षेत्रों की सबसे बड़ी समस्या औद्योगिक गन्दी बस्तियों का लगातार पनपना है। इस वजह से कई और समस्याएँ जैसे प्रदूषण, स्वास्थ्य, नैतिक पतन, अपराध आदि का जन्म होता है। इस समस्या का मुख्य कारण असंतुलित औद्योगिक विकास ह क्योकि पिछड़े क्षेत्रों से लोगों का रोजगार की तलाश में औद्योगिक क्षेत्रों की तरफ बढ़ना है। इस समस्या के निवारण के लिए उद्यमिता विकास कार्यक्रम एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उद्यमियों को इससे संबंधित विभिन्न प्रेरणा-स्रोत सब्सिडियों व आधरभूत सुविधाएं प्रदान करके व उन्हें अपने उद्योग पिछड़े क्षेत्रों में लगाने के लिए प्रेरित करके ये योजनाएं इन समस्या के निवारण के लिए मदद करती हैं।

7. उद्यमिता के गुणों का विकास (Development of Entrepreneurship Qualities) उद्यमिता के सभी गुण स्वतः ही नहीं पाये जाते। कुछ गुण तो एक व्यक्ति (उद्यमी) को विरासत में ही मिल जाते हैं। जैसे-निष्ठा. ईमानदारी, परिश्रम करना आदि, दूसरी ओर कुछ गुण वह समाज में रहकर सीखता है। इन गुणें के विकसित होने में उद्यम विकास कार्यक्रमों का बहुत योगदान होता है। यह गुण शिक्षण, प्रशिक्षण, प्रेरणा अथवा अनुभव द्वारा प्राप्त किए जा सकते हैं।

8. परियोजना उत्पाद के चयन में सहायक (Helpful in Selection of Project & Product) उद्यमिता विकास कार्यक्रम विभिन्न परियोजनाओं व उत्पादों के मूल्यांकन करने में भावी उद्यमियों को सहायता करते हैं ताकि वे सर्वश्रठ व लाभकारी योजना को चुन सकें । इसी तरह यह कार्यक्रम उत्पाद सम्बन्धी निर्णय जैसे बदलाव,संशोधन आदि करने में मदद करते हैं ताकि समय व मांग के अनुरूप उत्पाद का निर्णय लिया जा सके।

9. सूचना प्रदान करना (Providing Information)– उद्यमिता विकास कार्यक्रम उद्यमियों को समय-समय पर तकनीक,बाजार, वित्त, सरकारी कार्यक्रमों आदि की सूचनाएं उपलब्ध कराते हैं ताकि वे उन सूचनाओं से लाभ उठा सकें।

10. नए बाजारों की खोज (Discovering new markets)- उद्यमिता विकास कार्यक्रम देश व विदेश में नए-नए बाजारों की खोज करने में सहायता करते हैं व उद्यमियों को बाजार माँग के अनुरूप उत्पादन करने में मदद करते हैं।

11. उपक्रम की स्थापना में सहायक (Helpful in setting of an Enterprise) एक नए उपक्रम की स्थापना में विभिन्न क्रियाएं करनी पड़ती हैं और यह एक कठिन और जोखिम पूर्ण कार्य है। ऐसी स्थिति में उद्यमिता विकास कार्यक्रम ही सहयोग करते हैं और वित्तीय सहायता, कच्चे माल, आधारभूत सुविधाएं, तकनीक, नये बाजार की खोज, श्रम आदि के बारे में आवश्यक सूचनाएं उपलब्ध करवाते हैं।

12. जीवन स्तर में सुधार (Improvement in standard of living)-उद्यमिता विकास कार्यक्रम नये संगठन स्थापित करने में सहायता करता है जिससे अधिक उत्पादन सेवाओं, मदों व रोजगार का विकास होता है जिससे अधिक पुँजी उत्पादन होता है। पूँजी उत्पादन के फलस्वरूप उत्पादकता में वृद्धि होती है जिससे प्रति व्यक्ति आय में भी वृद्धि होती है। इस प्रकार विस्तृत प्रकार की सेवाएं व वस्तुएं उत्पादित होती हैं, जो उद्यमियों में प्रतिस्पर्धा बढ़ाती हैं। बढती प्रतिस्पर्धा में उत्पादकता के गुणों का विकास होता है व कीमतें कम होती है। ग्राहक को कम कीमत पर बेहतर सामान उपलब्ध होता है, जिसके फस्वरूप लोगों के जीवन स्तर में सुधार होता है।

13.सामाजिकतनाव में कमी (Reducing Social Tension) सामाजिक तनाव का मुख्य कारण बढ़ती बेरोजगारी है।जब शिक्षित व्यक्तियों को उचित रोजगार नहीं मिलता तो उनके मन में तनाव उठना स्वाभाविक है। यह तनाव समाज में कई करीतियों को जन्म देता है। उद्यमिता विकास योजनाएं उन्हें सही मार्गदर्शन, प्रशिक्षण तथा नया संगठन स्थापित करने में सहायता । देकर सही दिशा में लगा सकती हैं। इससे उनको तो स्वरोजगार मिलता ही है, औरों के लिए भी रोजगार के अवसर पैदा होते हैं, जिसके फलस्वरूप सामाजिक तनाव को खत्म किया जा सकता है।

14. आथिक स्वतन्त्रता (Ecomomic Independence)-उद्यमिता विकास कार्यक्रमों के फलस्वरूप नए व प्रतिस्पर्धात्मक उद्यमों का विकास होता है, तथा देश को बेहतर गुणों वाले उत्पादों व सेवाएं प्रदान करने में सक्षम बनाते हैं। सफल उद्यमी विदेशों से आयात की जाने वाली वस्तुओं के विकल्प विकसित कर लेते हैं, इस तरह विदेशों पर निर्भरता समाप्त हाता है और विदेशी पूँजी की बचत होती है। अपने उत्पादों को विदेशी बाजारों में बेचकर वे देश के लिए विदेशी मुद्रा लात ह, जा एक अर्थव्यवस्था के विकास के लिए अनिवार्य है। यह निर्यात को बढ़ावा (Export-promotion) व आयात का विकल्प (Import-substitution) एवं आर्थिक स्वतन्त्रता को बढ़ावा देता है।

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उद्यमिता विकास कार्यक्रम की प्रासंगिकता

(Relevance of EDP’s)

कोई भी अर्थव्यवस्था, चाहे विकसित हो या विकासशील, सभी में उद्यमिता विकास कार्यक्रमों का अपना ही महत्त्व है। इस कारण से सभी देशे में इन कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जा रहा है। यह कार्यक्रम औद्योगीकरण के आधार हैं तथा। बेरोजगारी हटाने के यन्त्र। यह कार्यक्रम शिक्षण, प्रशिक्षण एवं उद्योग के लिए एक स्वस्थ पर्यावरण तैयार करने पर बल देते हैं। और उद्यमियों को आगे बढ़ने में मदद करते है। उद्यम विकास कार्यक्रम उद्यमियों के कौशल में वृद्वि करते हैं, उनकी गतिशीलता में वृद्धि करते हैं और उनमें सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना का विकास करते हैं। इस तरह देश में लघुत्तर व लघु उद्योगों की स्थापना होती है जिससे गरीबी का उन्मूलन हो सकता है। यह कार्यक्रम सम्भाव्य (Potential) उद्यमियों की खोज करता है। तथा पिछड़े क्षेत्रों मे उद्यमों की स्थापना करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं जिससे समान क्षेत्रीय विकास ही सके। उद्यमिता विकास कार्यक्रमों से विकास एवं अनुसंधान को बल मिलता है, जिससे देश-विदेश में नये-नये व्यवसाय स्थापित करने में सहायता मिलती है।

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उद्यमिता विकास कार्यक्रम के उद्देश्य

(Objectives of EDP’s)

इस अध्याय में अब तक की गई चर्चा व विभिन्न संस्थाओं द्वारा सुझाए गये उद्देश्य के अध्ययन करने के पश्चात् यह निष्कर्ष निकलता है कि उद्यमिता विकास कार्यक्रमों के निम्नलिखित उद्देश्य हैं

(1) भावी उद्यमियों की पहचान करके उन्हें प्रशिक्षण देना।

(2) कार्यक्रमों में भाग लेने वालों में जरूरी ज्ञान तथा योग्यताओं का विकास करना।

(3) आधारभूत प्रबन्धकीय सूझबूझ देना।

(4) प्रशिक्षण के बाद सहायता देना।

(5) परियोजना से सम्बन्धित पर्यावरण का विश्लेष्ण करना।

(6) इन कार्यक्रमों को लागू करने के लिए नियोजन करना।

(7) सही परियोजना व उत्पाद का चयन करना।

(8) सरकार से मिलने वाली सहायता, सब्सिडी और प्रेरणाओं का पता लगाना।

(9) स्वरोजगार की भावना जाग्रत करना।

(10)ये उद्यमिता अवसरों का विकास करना।

(11) उद्यमियों में सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना जाग्रत करना।

(12) ग्रामीण तथा पिछड़े क्षेत्रों में उद्योग विकसित करना।

(13) समान आर्थिक विकास में सहायता करना।

(14) उद्यमियों की प्रबन्धकीय क्षमताओं को सुधारना।

अतः हम कह सकते हैं कि एक उद्यम विकास योजना इस सोच के साथ बनती है कि व्यक्तियों का विकास किया जा सकता है। उनका दृष्टिकोण बदला जा सकता है तथा उनके विचारों को सकारात्मक रूप में संगठित करके एक सफल व्यावसायिक संगठन की शक्ल दी जा सकती है। पुराने समय की यह सोच कि वही लोग सफल उद्यमी बन सकते हैं जिनकी व्यापारिक पृष्ठभूमि हो, आजकल नई सोच ने ले ली है कि वही व्यक्ति सफल उद्यमी बन सकता है, जिसने सही ज्ञान व अनुभव से क्षमता हासिल का हो। सही ज्ञान व अनुभव सफल उद्यमिता विकास कार्यक्रमों से हासिल किया जा सकता है।

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उद्यमिता विकास कार्यक्रमों की उपलब्धियाँ

(Achievements of EDP’s),

जिस गति से पिछले कुछ वर्षों में औद्योगीकरण हुआ है, उसमें उद्यमिता विकास कार्यक्रमों ने एक बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आज दुनिया के सबसे विकसित देश अमेरिका, जापान, ब्रिटेन आदि, जिस तरह से औद्योगीकरण के माध्यम से आर्थिक विकास की तरफ बढ़े हैं, उनमें इन कार्यक्रमों का बहुत हाथ है, दूसरी ओर तेजी से विकासत हात दा भारत प्रमुख है, उद्यमिता विकास कार्यक्रमों के योगदान से आर्थिक विकास की ओर अग्रसर हो रहे हैं

(1) उद्यमिता विकास कार्यक्रमों ने न केवल औद्योगीकरण की पृष्ठभूमि तैयार की है अपितु उसमें तीव्रता भी प्रदान की है।

(2) ये कार्यक्रम बेरोजगारी की समस्या को दूर करने में काफी हद तक सहायक हुए हैं। आल्पविकसित व विकासशील दशो में इन कार्यक्रम में ने स्वरोजगार योजनाएं लाग करके व औद्योगीकरण को गति देकर इस गम्भीर समस्या को सुलझाने में मदद की है।

(3) इन कार्यक्रमों ने नवीन उपक्रमों की स्थापना व विकास करके एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। वर्तमान प्रतिस्पर्धा के युग में नए उपक्रमों की स्थापना व विकास एक जटिल कार्य है। उद्यमिता विकास कार्यक्रमों ने उद्यमी में विभिन्न गुणों-दूरदर्शिता, कल्पनाशक्ति, धैर्य, तकनीकी ज्ञान आदि का विकास करके व नवीन उपक्रमों की स्थापना हेतु आवश्यक संसाधन जुटाये हैं।

(4) उद्यमिता विकास कार्यक्रम के माध्यम से उद्यमिता शिक्षण एवं प्रशिक्षण का विकास हुआ है, जिसके फलस्वरूप उद्यमी के ज्ञान, कल्पनाशक्ति, दूरदर्शिता, निर्णय लेने की क्षमता व जोखिम वहन करने की क्षमता में वृद्धि हुई है व उसके व्यक्तित्त्व का विकास हुआ है।

(5) उद्यमिता विकास कार्यक्रमों की एक और उपलब्धि परियोजना निरूपण (Project formulation) है। सीमित संसाधनों के चलते एक परियोजना का चुनाव करना कठिन कार्य और इसके लिए परियोजना का तकनीकी व वित्तीय दृष्टिकोण से विश्लेषण किया जाना आवश्यक है। विकास कार्यक्रम इस तरह की स्थितियों में काफी लाभकारी सिद्ध हुए हैं।

(6) उद्यमिता विकास कार्यक्रमों के कारण देश-विदेश में बहुत से उद्यमिता विकास संस्थानों की स्थापना हुई है। उदाहरण के तौर पर भारत में उद्यमिता विकास के विभिन्न संस्थान हैं—(1) प्रबन्धकीय विकास संस्थान; (ii) राष्ट्रीय उद्यमिता एवं लघु व्यवसाय विकास संस्थान: (iii) भारतीय उद्यमिता विकास संस्थान: (iv) लघु उद्यमिता विकास मण्डल एवं (v) लघु उद्योग सेवा संस्थान आदि।

(7) जब उद्योगों का विकास कुछ शहरों तक सीमित रहता है तो समूचे देश का विकास रुक जाता है। उद्यमिता विकास कार्यक्रमों के माध्यम से पिछड़े एवं ग्रामीण क्षेत्रों में लघु उद्योगों की स्थापना को प्रोत्साहन मिला है जिससे राष्ट्र का सन्तुलित क्षेत्रीय विकास हुआ है।

(8) उद्यमिता कार्यक्रम की एक बड़ी उपलब्धि लोगों को अच्छा व सस्ता उत्पाद उपलब्ध होना है। इन विकास कार्यक्रमों के फलस्वरूप नये-नये उद्योग स्थापित हुए जिससे प्रतिस्पर्धा बढ़ी है, जिससे खुले बाजार की प्रवृत्ति को बल मिला है। इसी कारण से जो उत्पाद कुछ वर्ष पहले तक आम व्यक्ति की पहुँच से बाहर थे वो अब उसे आसानी से खरीद सकता है वो भी सस्ते मूल्य पर। लोगों के जीवन स्तर में सुधार हुआ है, राष्ट्रीय आय में वृद्धि हुई है और आर्थिक सत्ता का विकेन्द्रीकरण हुआ है।

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उद्यम विकास कार्यक्रम की अवस्थाएं

(Phases of Conduct of EDP’s)

उद्यम विकास कार्यक्रम तीन चरणों से होकर गुजरते हैं।

प्रथम चरण (Ist Stage)-उद्यम विकास योजनाओं में प्रथम अवस्था प्रशिक्षण से पूर्व की अवस्था है। किसी भी विकास कार्यक्रम को करने से पहले, उसके लिए की गई तैयारी ही उसकी सफलता या असफलता निर्धारित करती है।

इस चरण में निम्नलिखित क्रियाएं आती हैं

1 प्रशिक्षण के लिए पठनपाठन सामग्री तैयार करनाकिसी भी उद्यम विकास योजना के लिए आवश्यक है कि पठन-पाठन की जो सामग्री जुटाई जाए वो योजना की जरूरतों को पूरा करती हो। इसके अन्तर्गत मुख्य लक्ष्य निम्नलिखित हैं

(i) भावी उद्यमियों को उद्यमीकरण, उद्यमी की आर्थिक उन्नति में भूमिका व उद्यम स्थापित करने के लिए उपलब्ध सुविधाओं के बारे में जानकारी देना।

(ii) व्यापार के प्रति सही नजरिया व व्यवहार विकसित करने के लिए प्रेरणा प्रशिक्षण (Motivation training) उपलब्ध कराना।

(iii) व्यापार चलाने के लिए जरूरी प्रबन्धकीय व तकनीकी जानकारी हेतु आवश्यक सामग्री जुटाना।

(iv) उद्यमियों को संगठन स्थापित करने तथा चलाने में सहायता देने वाली विभिन्न एजेन्सियों एवं संगठनों के बार में जानकारी एकत्रित करना।

(v) विभिन्न परियोजना रिपोर्टों को उपलब्ध करवाना ताकि प्रतिभागी उनके बारे में जान सकें।

2. योग्य व्यक्तियों का चुनाव किसी भी उद्यमिता विकास कार्यक्रम की सफलता योग्य व्यक्तियों (faculty) पर निर्भर । करती है। अत: योग्य व्यक्तियों का चुनाव प्रशिक्षण पूर्व अवस्था का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है। इसके लिए विभिन्न व्यावसायिक शिक्षण संस्थानों, विश्वविद्यालयों, तकनीकी संस्थानों, बैंकों, अनुसंधान व विकास संस्थाओं (R&D) से अनुभवी व योग्य अध्यापकों/ व्यक्तियों को आमन्त्रित किया जा सकता है।

3.विज्ञापनपहली अवस्था में अगला मुख्य कार्य उद्यमिता विकास कार्यक्रम के बारे में विज्ञापन देना है ताकि अधिकसे-अधिक प्रतिभागी भाग लें। इसके लिए स्थानीय अखबार, हैंडबिल, जिला उद्योग केन्द्रों, रोजगार कार्यालयों तथा शिक्षण संस्थानों की सहायता ली जा सकती है।

4 भावी उद्यमियों का चुनावविकास कार्यक्रम की सफलता के लिए आवश्यक है कि उनमें वही व्यक्ति भाग लें जिनमें भावी उद्यमियों के गुण हों। अतः सही उम्मीदवारों का चुनाव व पहचान अति आवश्यक है। यह चुनाव इस तरह किया जाना चाहिए कि एक उद्यमिता विकास कार्यक्रम में 20 या 30 से ज्यादा प्रतिभागी न हों। उम्मीदवारों का चुनाव निम्नलिखित आधार पर किया जा सकता है

(i) प्रार्थना-पत्र में उपलब्ध जानकारी के आधार पत्र;

(ii) लिखित परीक्षा के माध्यम से;

(iii) उम्मीदवारों के साक्षात्कार से, जिससे उसकी पृष्ठभूमि , उद्देश्य , जोखिम उठाने की इच्छा आदि के बारे में पता चल सके।

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II द्वितीय चरण (2nd Stage)-उद्यमिता विकास कार्यक्रम में दूसरी महत्त्वपूर्ण अवस्था प्रशिक्षण अवस्था है। प्रशिक्षण कार्यक्रम में उम्मीदवारों को लिखित व प्रयोगात्मक ज्ञान दिया जाता है तकि उनमें प्रेरणा तथ उद्यमी गुणों का विकास हो सके। इसके अन्तर्गत बाजार सर्वेक्षण, अनुसंधान की प्रक्रिया, विपणन आदि के बारे में जानकारी दी जाती है।

प्रशिक्षण देने के बहुत-से तरीके हैं जिनमें मुख्य हैं

(i) भाषण विधिभाषण विधि में सिखाने वाला उम्मीदवारों से सीधा बातचीत करता है। इसका यह लाभ है कि उम्मीदवारों के मन में उठने वाले प्रश्नों व संदेह का स्पष्टीकरण वहीं हो जाता है।

(ii) लिखित निर्देश विधिइसके अन्तर्गत एक उद्यम स्थापित करने के लिए जो आवश्यक तत्त्व होते हैं उसकी सूचना लिखित निर्देशों के माध्यम से उम्मीदवारों को दी जाती है।

(iii) प्रदर्शन विधि या प्रयोगात्मक विधि–उम्मीदवार को बेहतर ढंग से सिखाने के लिए, सिखने वाला हर चीज को प्रयोगात्मक ढंग से समझाता है व उसकी व्याख्या करता है।

(iv) सम्मेलन मुलाकातेंइसके अन्तर्गत विभिन्न क्षेत्रों से अनुभवी व्यक्ति अपने अनुभवों व विचारों को बांटते हैं जिससे प्रशिक्षुओं के गुणों को सुधारने में बल मिलता है।

(v) व्यक्तिगत प्रशिक्षणउन परिस्थितियों में जब किसी एक व्यक्ति को किसी खास चीज की जानकारी देनी होती है तब व्यक्तिगत प्रशिक्षण दिया जाता है।

(vi) सामूहिक प्रशिक्षणजब एक समूह को एक जैसा काम या एक जैसे निर्देश देने हों, प्रशिक्षण की यह विधि सबसे बेहतर होती है।

III तृतीय चरण (3rd Stage) उद्यमिता विकास कार्यक्रम का तीसरा चरण-प्रशिक्षण के बाद की अवस्था है। किसी विकास कार्यक्रम की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उसने अपने उद्देश्यों में कितनी सफलता प्राप्त की है अर्थात् कितने। प्रशिक्षु अपने संगठन स्थापित करने में सफल हो पाये। इसे नियन्त्रण (Control) या Follow up अवस्था भी कहते हैं। इसमें । मुख्यता निम्निलिखित बातें आती हैं

(i) क्या कार्य नियोजन के अनुसार हुआ या नहीं ?

(ii) यदि नहीं, तो नियोजन से कितना हटकर हुआ ? और

(iii) अपनी कमजोरियों का पता लगाकर, भविष्य में उन्हें सुधरने के लिए कदम उठाना।

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भारत में उद्यमिता विकास कार्यक्रम

(Entrepreneur Development Programmes in India)

स्वतन्त्रता प्राप्ति से पहले भारत में औद्योगिक विकास बहुत सीमित था। हालांकि प्राचीनकाल से ही भारतीय उद्यमी अपने कला-कौशल और व्यावसायिक दक्षता के लिए विश्वविख्यात रहे हैं। भारत के कुछ उत्पाद जैसे ढाका की मलमल, कश्मीरी शॉल, बनारसी साड़ियाँ, मुम्बई, पूना व हैदराबाद के बर्तन आदि शुरू से ही विश्व बाजार में अपना एक स्थान बनाए हुए हैं। 1850 से पूर्व भारत में सुदृढ़ औद्योगिक ढांचा न होने के कारण उद्यमशीलता का उदय नहीं हुआ था। हालांकि कुछ क्षेत्रों जैसे वाराणसी, इलाहाबाद, मिर्जापुर, गया आदि में दस्तकारों द्वारा कुछ कलात्मक वस्तुएँ बनायी जाती थीं। विभिन्न संरचनात्मक समस्याओं व विदेशी शासकों द्वारा पहल न होने के कारण औद्योगिक विकास नहीं हुआ। भारत के कई व्यापारी दूसरे देशों में बसते जा रहे थे क्योंकि पूँजी की कमी, राजनीतिक अनेकता, असंख्य मुद्राएं, क्षेत्रीय बाजार व कर नीतियाँ उन्हें अपने देश में उद्यम लगाने के लिए प्रेरित नहीं कर पा रही थीं।

कहा जा सकता है कि भारत में औद्योगीकरण की प्रक्रिया मख्यता ईस्ट इण्डिया कम्पनी के आगमन से प्रारम्भ हुई। सूरत में पारसियों द्वारा 1673 में प्रथम जहाज कारखाना स्थापित किया गया। इसी तरह 1677 में बम्बई (मुम्बई) में एक ‘गन पाउडर मिल’ की स्थापना हुई। 1852 में एक पारसी पोरमैन ने बम्बई (मुम्बई) में एक स्टील कम्पनी भी प्रारम्भ की बीसवीं शताब्दी के प्रथम दशक आते-आते भारत में कुछ प्रमुख औद्योगिक घरानों का जन्म हो चुका था, जिनमें जमशेद जी टाटा प्रमुख हैं। जिसके फलस्वरूप देश में स्टील. इन्जीनियरी, विद्युत् व जहाजरानी उद्योगों का विकास हुआ। परन्तु स्वतन्त्रता प्राप्ति से पहले यह विकास बहुत सीमित क्षेत्रों (मूलत: मुम्बई तथा कोलकाता बन्दरगाहों के आसपास) में हुआ और वो भी कुछ समुदायों के व्यक्तियों में। विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि 1911 से 1951 के बीच की अवधि में अधिकांश औद्योगिक कम्पनियों का संचालन एवं नियन्त्रण ब्रिटिश कम्पनियों के बाद पारसी, गुजराती, मारवाड़ी व बंगालियों के हाथ में था।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद (Post Independence) स्वतन्त्रता के बाद एक नए सिरे से व्यवस्थित व योजनाबद्ध तरीके से उद्यमिता विकास कार्यक्रमों का विकास किया गया। इसी के मद्देनजर 1948 में प्रथम आद्यौगिक नीति (Industrial Policy) बनाई गई जिसमें औद्योगिक विकास के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण घोषणाएँ की गईं।

प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951) में निजी तथा सार्वजनिक दोनों ही क्षेत्रों में उद्यमियों के विकास की योजनाएँ प्रस्तुत की गईं और दोनों के लिए उद्योगों का स्पष्ट क्षेत्र निर्धारित किया गया। आधारभूत उद्योग सार्वजनिक क्षेत्र के लिए सुरक्षित रखे गये जबकि अन्य जैसे इन्जीनियरी, वस्त्र, सीमेन्ट, दवा, चीनी आदि निजी क्षेत्र के लिए छोड़े गए। उद्यमियों को आर्थिक सहायता के लिए कुछ वित्तीय संस्थानों की भी स्थापना की गई।

द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956) में मूलतः औद्योगिक विकास पर बल दिया गया। इसमें निजी व सार्वजनिक क्षेत्रों के उद्यमियों के विकास को महत्त्व दिया गया व निजी क्षेत्र के उद्यमियों को विशेष छूटें प्रदान की गई।

इसके पश्चात् सभी पंचवर्षीय योजनाओं में उद्यमिता विकास के लिए अनेक प्रयास किए गये। पंचवर्षीय योजनाओं के फलस्वरूप औद्योगिक विकास में तेजी आयी है। इस अवधि में भारत में उद्यमिता विकास के लिए अनेक प्रयास किए गये व अनेक संस्थानों की स्थापना हुई जिसका उल्लेख हम आगे करने जा रहे हैं।

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सरकार संस्थाओं की भूमिका

(Role of Government and Institutions)

जैसा कि ऊपर वर्णन किया जा चुका है कि स्वतन्त्रता प्राप्ति से पहले औद्योगिक विकास कुछ शहरों व कुछ घरानों तक सीमित था। अत: सरकार ने समान क्षेत्रीय विकास के उद्देश्य से औद्योगिक रूप से पिछड़े तथा ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न सहलतें देकर उद्यम के विकास को बढ़ाना देने का निर्णय किया। इन योजनाओं का मुख्य लक्षण उन भावी उद्यमियों को, जो परिवर्तन में गति लाने का कार्य कर सकते हैं, तकनीकी, वित्तीय, बाजारी व साहसी सहयोग देना था। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए केन्द्र व राज्य सरकारों ने विभिन्न संस्थानों का गठन किया। ।

केन्द्र सरकार द्वारा स्थापित संस्थान केन्द्र सरकार ने उद्यमिता विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत निम्नलिखित संस्थान स्थापित किए हैं

(1) लघ उद्योग विकाससंगठन (Small Industries Development Organisation) इस संगठन की स्थापना 1954 में की गयी। इसके अन्तर्गत 27 लघु उद्योग सेवा संस्थान, 31 शाखा संस्थान, 38 विस्तार केन्द्र, 4 क्षेत्रीय प्रशिक्षण केन्द्र, 20 स्थानीय प्रशिक्षण केन्द्र, 4 उत्पादन प्रक्रिया केन्द्र एवं 4 उत्पादन केन्द्र सम्पूर्ण राष्ट्र में अपनी सेवाएँ देते हैं।

(2) प्रबन्धकीय विकास संस्थान (Management Development Institute)-इसकी स्थापना 1975 म गडगाँव में की गई। इसका उद्देश्य दिन-प्रतिदिन के प्रबन्धकीय कार्यों में गणवत्ता लाना है। इसके अन्तर्गत मुख्यत: औद्योगिक व बैंकिंग क्षेत्र आते हैं। यह विभिन्न संस्थाओं जैसे IES. IAS.ONGC. BHEL आदि के पदाधिकारियों के लिए कार्यक्रम आयोजित करता है।

(3) लघु उद्योग सेवा संस्थान (Small Industries Service Institute) हर राज्य में औद्योगिक विस्तार सेवा। के उद्देश्य से यह संस्थान कार्यरत है। यह संस्थान लघु उद्योग सेवा के क्षेत्र में प्रबन्धकीय प्रशिक्षण के अतिरिक्त लघु उद्योगों की तकनीकों, आर्थिक व प्रबन्धकीय विधियों के बारे में जानकारी व परामर्श देता है।

(4) भारतीय उद्यमिता विकास संस्थान (Entrepreneur Development Institute)-उद्यमिता विकास कार्यक्रमों में यह संस्थान एक विशिष्ट स्थान रखता है। यह संस्थान भावी उद्यमियों को प्रशिक्षण प्रदान करता है। यह संस्थान विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों की प्रगति व स्त्रियों में उद्यमिता विकास के लिए कार्यरत है।

(5) अखिल भारतीय लघु उद्योग बोर्ड (All India Small Scale Industries Beard)-इस संस्थान की स्थापना 1954 में हुई। यह बोर्ड लघु उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए नीतियों व कार्यक्रमों के बारे में फैसले लेता है। एक प्रकार से यह एक सलाहकार समिति के रूप में कार्य करता है जिसका अध्यक्ष केन्द्रीय मन्त्री होता है। इसके अतिरिक्त केन्द्र व राज्य सरकारों के प्रतिनिधि, रिजर्व बैंक व स्टेट बैंक के प्रतिनिधि विभिन्न संस्थाओं जैसे राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम या राज्य वित्त निगम के प्रतिनिधि, लोक सेवा सदस्य, व्यापार व उद्योग के प्रतिनिधि भी इसके सदस्य होते हैं।

(6) राष्ट्रीय लघु उद्योग विस्तार प्रशिक्षण संस्थान (National Institute of Small Industries Extension Training)—इसकी स्थापना 1960 में की गई। इसका प्रधान कार्यालय हैदराबाद में स्थित है। इसके मुख्य उद्देश्य है

  • लघु उद्यमियों हेतु प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों का संचालन करना,
  • प्रबन्ध सहायता एवं तकनीकी परामर्श देना,
  • लघु उद्यमियों व कामगारों के लिए सेमिनार आयोजित करना, व
  • अनुसंधान तथा प्रलेख सम्बन्धी सेवाएं प्रदान करना।

(7) राष्ट्रीय उद्यमिता एवं लघु व्यवसाय संस्थान (National Institute for Entrepreneurship an Small Business Development) उद्योग मन्त्रालय के अन्तर्गत गठित इस संस्थान की स्थापना 1983 में हुई। इस संस्थान के मुख्य कार्य हैं

  • विभिन्न एजेन्सियों के कार्यक्रमों में समन्वय बनाना व उनका निरीक्षण करना.
  • अनुसंधान करवाना, • उद्यमिता विकास के लिए पाठ्यक्रम तैयार करना व परीक्षाएं करवाना.
  • प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजना करना, •सम्मेलन व विचार गोष्ठियाँ आयोजित करना,
  • उद्यमिता विकास के लिए कार्यरत संस्थाओं को मार्गदर्शन देना।

(8) राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम लिमिटेड (National Small Industries Corporation Ltd.)-इसकी स्थापना 1955 में की गयी थी। इस संस्था का मुख्य उद्देश्य लघु उद्योगों का सरकारी खरीद के कार्यक्रम में भाग लेना है। इसके अतिरिक्त यह संस्थान विपणन सहायता कार्यक्रम के अन्तर्गत लघु उद्योगों के लिए बाजार की व्यवस्था करता है, लघु इकाइयों द्वारा उत्पादित मशीनों का विपणन एवं उनके उत्पादों को निर्यात करने में भी सहायता करता है।

(9) भारतीय उद्यमिता विकास संस्थान, अहमदाबाद (Entrepreneurship Development Institute of | India, Ahemdabad) उद्यमिता विकास हेतु संस्थागत मूलभूत ढांचा विकसित करने के लिए विकास बैंक ने अन्य संस्थानों के सहयोग से इसकी स्थापना की। यह भारत के अतिरिक्त घाना और नाइजीरिया सहित कई देशों में अपनी सेवाएं प्रदान करता। है। इसके मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं

  • पिछड़े व कम विकसित राज्यों में विकास कार्यक्रम चलाना,
  • पारस्परिक विनिमय एवं नवीन ज्ञान को प्रोत्साहित करने के लिए गोष्ठियाँ आयोजित करना,
  • उद्यम विकास सम्बन्धित व्यावसायिक अध्ययन संस्थानों के लिए पाठ्यक्रम तैयार करना,
  • कार्य योजनाएं तैयार करना, एवं
  • उद्यमिता विकास कार्यक्रम चलाने के लिए पाठ्य सामग्री तैयार करना।

(10) राष्ट्रीय उद्यमिता विकास मण्डल (National Entrepreneur Development Board) यह मण्डल उधामिता विकास के लिए नीति निर्धारित करती है। इसका मुख्य कार्य नीति निर्देशन एवं मार्गदर्शन करना है। यह उद्यम विकास हेतु सिफारिश एवं सुझाव देता है और इनको “राष्ट्रीय सहायक एवं लघु व्यापार संस्थान” कार्यान्वित करता है।

(11) जोखिम पूँजी प्रौद्योगिकी वित्त निगम लिमिटेड (Risk Capital and Technology Finance Corporation Ltd)-15 करोड़ रुपए की अधिकृत अंशपूँजी (Authorised Capital) के साथ इसकी स्थापना 1988 मका गयी। इसके मुख्य उद्देश्य में-उद्यमिता विकास आधार के विस्तार हेतु जोखिम पूंजी प्रदान करना एवं प्रौद्योगिकी संवर्द्धन एव विकास के लिए उच्च तकनीक वाली परियोजनाओं को उद्यम पूँजी (Venture Capital) प्रदान करना है।

(12) राष्ट्रीय अनुसंधान एवं विकास निगम (National Research and Development Corporation) इस निगम की स्थापना भारत सरकार के विज्ञान एवं औद्योगिक अनसंधान विभाग (Science and Industrial Research Department) के अन्तर्गत 1953 में की। इसके मुख्य कार्य हैं

  • प्रौद्योगिक विकास में सहायता प्रदान करना,
  • प्रौद्योगिक हस्तान्तरण करना, एवं
  • विभिन्न प्रौद्योगिकी संस्थानों से सम्बन्ध स्थापित करके उनके द्वारा उत्पादित स्वदेशी प्रौद्योगिकी का भण्डार तैयार करना। वर्तमान में सम्पूर्ण देश में इस निगम के 29 ग्रामीण प्रौद्योगिकी प्रदर्शन एवं प्रशिक्षण केन्द्र हैं।

(13) भारतीय विनियोग केन्द्र (Indian Investment Centre) यह केन्द्र सरकार द्वारा स्थापित एक स्वायत्तशासी (Autonomus) संस्था है। इसका मुख्य कार्य भारतीय उद्यमियों को विदेशी सहयोग बढ़ाने में सहायता करना है व दूसरी तरफ विदेशी उद्यमियों को आवश्यक सूचनाएं प्रदान करना है। भारतीय विनियोग केन्द्र ने उद्यमिता परामर्श संस्थान (Eentrepreneurship Consultancy Institute) की भी स्थापना की है जिसका उद्देश्य उपयोगी परियोजनाओं का पता लगाना है। इसके अतिरिक्त यह उद्यमियों को परियोजना तैयार करने, उपयुक्त स्थान का चयन करने तथा आवश्यक वित्तीय सहायता उपलब्ध करवाने में भी सहायता करता है।

(14) राष्ट्रीयकृत वाणिज्यिक एवं सहकारी बैंक (Commercial and Cooperative Banks)-उद्यमिता विकास हेतु राष्ट्रीयकृत वाणिज्यिक एवं सहकारी बैंकों की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। यह बैंक उद्यमियों को भूमि खरीद, भवन व कार्यशाला निर्माण, आधुनिकीकरण, मशीनरी व उपकरणों की खरीद, विद्यमान संसाधनों के विकास हेतु हर तरह के ऋण उपलब्ध करवाते हैं।

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1 राज्य स्तर पर संस्थापित संस्थान

उद्यमिता विकास कार्यक्रमों को संगठित, सहायता व सफल बनाने के लिए राज्य स्तर पर भी कई संस्थान हैं जिनके मुख्य उद्देश्य राज्य स्तर पर उद्यमियों के विकास व औद्योगीकरण को बल देना है।

इनमें मुख्य संस्थान निम्नलिखित हैं

1 लघु उद्योग सेवा संस्थान (Small Industries Service Institute)

2. राज्य वित्त निगम (State Financial Corporation)

3. जिला उद्योग केन्द्र (District Industries Centre)

4 तकनीकी परामर्श संगठन (Technical Counsultancy Organisation)

5. राज्य लघु उद्योग निगम (State Small Industries Corporation)

6.राज्य उद्योग निगम (State Industries Corporation)

7. उद्योग निदेशालय (Industries Directorate) .

8. औद्योगिक बस्तियों का निर्माण (Estalishment of Industrial Estate)

उपर्युक्त केन्द्रीय एवं राज्य स्तर पर स्थापित संस्थानों ने भारत में उद्यमिता विकास के कार्य को बढ़ाने के लिए अनेक रियायतें एवं सुविधाएं दी हैं। इन संस्थानों ने सन्तुलित औद्योगिक विकास करने में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है।

निष्कर्ष निष्कर्ष के तौर पर हम कह सकते हैं कि एक उद्यमिता विकास योजना इस बात पर प्रकाश डालती। है कि उद्यमियों का विकास करके उनका दृष्टिकोण बदला जा सकता है। उद्यम विकास योजना मात्र प्रशिक्षण कार्यक्रम न होकर उद्यमियों की प्रेरणा, ज्ञान तथा क्षमता बढ़ाने की तकनीक है। उद्यम विकास योजना एक व्यक्ति को उद्यम बनाने तथा अपनी उद्यमी क्षमताओं को तेज करने के लिए जरूरी सूचना प्रदान करती है।

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उपयोगी प्रश्न (Useful Questions)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

1 उद्यमिता विकास कार्यक्रमों से आप क्या समझते हैं ? उद्यमिता विकास कार्यक्रमों के मुख्य उद्देश्यों का वर्णन करें।

What do you understand by Entrepreneur Development Programmes? Discuss the main objects of EDPs.

2. उद्यमिता विकास कार्यक्रम की परिभाषा दीजिए व इसकी भूमिका की विवेचना कीजिए।

Define Entrepreneurial Development Programme and discuss its role.

3. उद्यमिता विकास कार्यक्रमों की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन करो।

Discuss different stage of EDP’s.

4. भारत में उद्यमिता विकास कार्यक्रमों पर एक टिप्पणी लिखें। ।

Write a note on EDP’s in India.

5. उद्यमिता विकास में सरकार व विभिन्न संस्थाओं की भूमिका की चर्चा करें।

Discuss role of Government and other institutions in Entrepreneur Development.

6. “उद्यमी बनाए जाते हैं न कि पैदा होते हैं”वर्णन करें।

“Entrepreneurs are made not born.” Discuss.

7. उद्यमिता विकास कार्यक्रमों से आप क्या समझते हैं ? उद्यमिता विकास कार्यक्रमों की भूमिका अथवा प्रासंगिकता का वर्णन कीजिए।

What do you mean by EDP’s ? Discuss the role as relevance of EDP’s.

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लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

1 उद्यमिता विकास कार्यक्रम क्या है ?

What is Entrepreneurial Development Programme?

2. उद्यमिता विकास कार्यक्रम के प्रमुख उद्देश्य संक्षेप में बताइए। (कोई पाँच)

State in brief the main objectives of entrepreneurial development programme (any five).

3. उद्यमिता विकास कार्यक्रम की भूमिका को संक्षेप में (अधिक-से-अधिक अपनी उत्तर पुस्तिकों के दो पृष्ठों में) समझाइए।

Explain in brief (in not more than two pages of your answer book) the role of entrepreneurial development.

4. उद्यमिता विकास कार्यक्रम की प्रासंगिकता को संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।

Explain in brief the relevance of entrepreneurial development programme.

5. उद्यमिता विकास कार्यक्रम के आलोचनात्मक मूल्यांकन के कोई दो बिन्दुओं को स्पष्ट कीजिए।

Explain any two points of the critical evaluation of the entrepreneurial development programme.

6. उद्यमिता विकास कार्यक्रम को अधिक प्रभावी बनाने के लिए कोई पाँच सुझाव संक्षेप में दीजिए।

Give any five suggestions for make entrepreneurial development programme more effective.

7. भारत में उद्यमिता विकास की धीमी गति के कोई पांच कारण बताइए।

Explain any five reasons for slow progress of entrepreneurial development in India.

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III. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

1 उद्यमिता विकास कार्यक्रम की आवश्यकता के दो कारण बताइए।

State two reasons for the need of EDPs.

2. उद्यमिता विकास कार्यक्रम की क्या प्रासंगिकता है ?

What is the relevance of EDPs?

3. उद्यम विकास कार्यक्रम की पहली दो अवस्थाएं बताइए।

State first two stages of conduct of EDP’s.

4. उद्यमिता विकास कार्यक्रम की एक परिभाषा दें।

Give one definition of EDP.

5. उद्यमिता विकास क्यों ?

Why entrepreneurial development?

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

सही उत्तर चुनिये (Select the Correct Answer)

(i) भारत में उद्यमिता विकास कार्यक्रम  है

(अ) आवश्यक

(ब) अनावश्यक

(स) समय की बर्बादी

(द) धन की बर्बादी।

In India entrepreneurial development programme is

(a) Necessary

(b) Unnecessary

(c) Wastage of time

(d) Wastage of Money.

(ii) उद्यमिता विकास कार्यक्रम प्रदान करता है

(अ) स्वरोजगार

(ब) उद्यमी कौशल में वद्धि

(स) शिक्षण एवं प्रशिक्षण

(द) ये सभी

Entrepreneurial development programme provides

(a) Self-employment

(b) Increase in skill of the entrepreneur

(c) Education and training

(d) All these.

(iii) उद्यमिता विकास कार्यक्रम के आलोचनात्मक मूल्यांकन बिन्दु हैं

(अ) संगठनात्मक नीतियाँ

(ब) उपयुक्त चयन प्रक्रिया का अभाव

(स) निम्न श्रेणी की तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण

(द) ये सभी।

Critical evaluation points of the entrepreneurial development programme are

(a) Organisation policies

(b) Lack of suitable selection procedure

(c) Low quality of technical and vocational education and training

(d) All these.

(iv) उद्यमिता विकास कार्यक्रम प्रदान करता है—

(अ) बेरोजगारी

(ब) रोजगार

(स) बेईमानी

(द) भ्रष्टाचार।

Entrepreneurial development programme provides

(a) Unemployment

(b) Employment

(c) Dishonesty

(d) Corruption.

(v) भारत में उद्यमिता विकास कार्यक्रम रहा है

(अ) सफल

(ब) असफल

(स) सुधार की आवश्यकता

(द) इनमें से कोई नहीं।

In India, an entrepreneurial development programme has been

(a) Successful

(b) Unsuccessful

(c) Need for improvement

(d) None of these.
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(vi) उद्यमी

(अ) जन्म लेता है।

(ब) बनाया जाता है।

(ब) जन्म लेता है एवं बनाया जाता है।

(द) इनमें से कोई नहीं।

An entrepreneur is

(a) Born

(b) Made

(c) Born and made both

(d) None of these.

(vii) भारतीय उद्यमिता विकास संस्थान स्थित है

(अ) अहमदाबाद

(ब) मुम्बई

(स) नई दिल्ली

(द) चेन्नई।

Entrepreneurial Development Institute of India is situated in

(a) Ahemadabad

(b) Mumbai

(c) New Delhi (d) Chennai.

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(viii) भारतीय उद्यमिता विकास संस्थान की स्थापना की गई थी ।

(अ) महाराष्ट्र सरकार

(ब) गुजरात सरकार

(स) मध्य प्रदेश सरकार

(द) तमिलनाडु सरकार।

Entrepreneurial Development Institute of India was established by

(a) Maharashtra Government

(b) Gujarat Government

(c) Madhya Pradesh Government

(d) Tamil Nadu Government.

(ix) भारतीय विनियोग केन्द्र की स्थापना की गई थी

(अ) भारत सरकार

(ब) मध्य प्रदेश सरकार

(स) महाराष्ट्र सरकार

(द) गुजरात सरकार।

Indian Investment Centre was established by

(a) Government of India

(b) Madhya Pradesh Government

(c) Maharastra Government

(d) Gujarat Government.

(x) भारत में उद्यमिता का भविष्य है

(अ) अन्धकार में

(ब) उज्ज्वल

(स) कठिनाई में

The future of entrepreneurial in India is

(द) इनमें से कोई नहीं।

(a) In dark

(b) Bright

(c) In difficulty

(d) None of these.

(xi) उद्यमिता विकास कार्यक्रम के प्रति भारत के सरकारी तन्त्र का दृष्टिकोण है ।

(अ) विनाशात्मक

(ब) नकारात्मक

(स) रचनात्मक

(द) असहयोगात्मक।

The attitude of Indian Government Machinery towards entrepreneurial development programme is

(a) Destructive

(b) Negative

(c) Constructive

(d) Non-cooperative.

उत्तर-() (अ), (ii) (द), (iii) (द), (iv) (ब), (v) (स), (vi) (स), (vii) (अ), (viii) (ब), (ix) (ब), (x) (ब), (xi) (द)]

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2. इंगित करे कि निम्नलिखित वक्तव्य ‘सही हैं या ‘गलत’

(Indicate Whether the Following Satements are True’ or ‘False’)

(i) उद्यमिता विकास कार्यक्रम पर किया गया समय एवं धन का व्यय राष्ट्रीय बर्बादी है।

Time and money spent on entrepreneurial development programme is a national waste.

(ii) भारत में उद्यमिता विकास कार्यक्रम की कोई प्रासांगिता नहीं है।

There is no relevence of entrepreneurial development programme in India.

(iii) भारत में उद्यमिता विकास कार्यक्रम की आवश्यकता है।

There is a necessity for an entrepreneurial development programme in India.

(iv) भारत सरकार का उद्यमिता विकास कार्यक्रम के प्रति रचनात्मक दृष्टिकोण है।

The government of India has a constructive outlook on entrepreneurial development programmes.

(v) भारत में उद्यमिता विकास कार्यक्रम के लिए उपलब्ध प्रशिक्षण सुविधाएं अपर्याप्त हैं।

In India, the available training facilities for entrepreneurial development programmes are inadequate.

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(vi) उद्यमी पैदा होते हैं और बनाये भी जाते हैं।

Entrepreneurs are born and also made.

(vii) आर्थिक विकास उद्यमिता के विकास पर निर्भर है।।

Economic development is dependent upon entrepreneurial development.

(viii) भारत में उद्यमिता विकास की गति तेज है।

The speed of entrepreneurial development in India is fast.

(ix) भारतीय उद्यमिता विकास संस्थान अहमदाबाद में स्थित है।

Entrepreneurial Development Institute of India is situated in Ahemadabad.

(x) भारत में उद्यमिता विकास कार्यक्रम की प्रगति में सबसे प्रमुख बाधा सरकारी तन्त्र का नकारात्मक दृष्टिकोण और लालफीताशाही

The main obstacle in the development of entrepreneurial development programmes in India is the negative outlook and red-tapism of official machinery.

(उत्तर-(i) गलत, (ii) गलत, (iii) सही, (iv) सहा, (v) सही, (vi) सही, (vii) सही, (viii) गलत, (ix) सही, (x) सही।

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