BCom 3rd Year Different Audits Study Material Notes in Hindi

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Different Audits Study Material notes in hindi BCom 3rd Year
Different Audits Study Material Notes in Hindi BCom 3rd Year

BCom 3rd Year Auditing Alteration Share Capital Study material notes in hindi

विभिन्न अंकेक्षण

[DIFFERENT AUDITS]

1 शिक्षा संस्थाएं

(EDUCATIONAL INSTITUTIONS)

शिक्षा-संस्थाओं, जैसे स्कूल, कॉलेज आदि के लिए यह अनिवार्य नहीं है कि वे अपने खातों का अंकेक्षण करवाएं, परन्तु अंकेक्षण की उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए एवं राजकीय शिक्षा विभाग के सुझाव से आज सभी शिक्षा संस्थाएं अपने खातों का अंकेक्षण अनुभवी अंकेक्षकों से करवाती हैं। एक शिक्षा संस्था के खातों के अंकेक्षण के लिए निम्न बातों को विचाराधीन करना चाहिए :

सामान्य सूचनाएं (General Informations)

(1) शिक्षा-संस्था के प्रबन्ध में प्रन्यास प्रपत्र (Trust Deed) अथवा संस्था के नियमों एवं अधिनियमों की जांच करनी चाहिए जिससे खातों से सम्बन्धित नियमों का ज्ञान हो सके। इस सम्बन्ध में इस बात का भी ध्यान रखा जाए कि खातों को किस प्रणाली पर रखा गया है।

(2) शिक्षा संस्था की प्रबन्ध समिति (Managing Committee) की कार्यवाहियों में यह देखना चाहिए कि खातों से सम्बन्धित कोई विशेष प्रस्ताव तो पास नहीं किये गये हैं। अगर किये गये हैं तो उनका किस हद तक पालन किया जा रहा है।

(3) अंकेक्षक को उस संस्था में अपनायी जाने वाली आन्तरिक निरीक्षण प्रणाली की पूर्णतः जांच करनी चाहिए एवं इस बात का निश्चय कर लेना चाहिए कि वह प्रणाली सन्तोषजनक है, या नहीं। आय (Income) एक शिक्षा-संस्था की आय के मुख्य साधनछात्रों से फीस, सरकारी सहायता, चन्दे व दान, विनियोगों से आय, आदि हैं। इस सम्बन्ध में ऐसे अंकेक्षक को निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए :

(4) जहां तक छात्रों से प्राप्त फीस का सम्बन्ध है, इस प्राप्ति की छात्रों को दी जाने वाली रसीदों की प्रतिलिपि (Counterfoil of receipts) को रोकड़ पुस्तक के लेखों से मिलाना चाहिए। उन प्रतिलिपियों का छात्रों के रजिस्टर से भी मिलान करना चाहिए। पेशगी प्राप्त फीस को उचित रूप से आगे ले जाया गया है या नहीं। अगर किसी छात्र की फीस पूरी या आधी माफ है तो अंकेक्षक को इस बात का पता लगा लेना चाहिए कि इसके लिए उचित अधिकारी की स्वीकृति प्राप्त है या नहीं।

(5) अंकेक्षक को परीक्षा फीस अथवा अन्य किसी प्रकार की फीस, जैसे प्रवेश-फीस, लैबोरेटरी-फीस, आदि के बारे में जो वर्ष में एक बार ही ली जाती है, देखना चाहिए कि उसका उचित रूप से लेखा किया। गया है या नहीं।

(6) अगर किसी छात्र को बाकी फीस से मुक्ति दे दी गयी है तो अंकेक्षक को देखना चाहिए कि उसकी स्वीकृति एक उचित अधिकारी से ली गयी है।

अगर फीस के सम्बन्ध में अंकेक्षक को किसी अनुचित बात का ज्ञान होता है तो अंकेक्षक को उसे प्रबन्ध-समिति को अवश्य बता देना चाहिए।

(7) यदि फीस अप्राप्य होने के कारण अपलिखित कर दी गयी है तो यह देखना चाहिए कि वह प्रबन्ध-समिति से अधिकृत है या नहीं।

(8) याद फास पेशगी प्राप्त हो गयी है तो यह देखना चाहिए कि वह आगे ले जायी गयी है या नहीं।

(9) अगर उस सस्था को सरकार से किसी प्रकार की सहायता प्राप्त हुई है तो उसका लेखा उचित रूप से किया जाना चाहिए।

(10) चन्दों एवं दान से प्राप्त रकम का मिलान वार्षिक रिपोर्ट में की गयी घोषणाओं से करना चाहिए। इसके अतिरिक्त, उन रकमों के लिए दी गयी रसीदों की प्रतिलिपियों को उस रजिस्टर से मिलाना चाहिए जो इस रकम के लिए रखा जाता है। इस सम्बन्ध में रोकड-पुस्तक से भी मिलान करना चाहिए। अंकेक्षक को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि चन्दे एवं दान से प्राप्त रकम उसी काम के लिए प्रयोग की जा रही है जिसके लिए दानी ने उसे दिया है।

(11) यदि संस्था के पास कोई निजी सम्पत्ति है या संस्था के निजी विनियोग हैं तो इनसे प्राप्त होने वाली आय को उचित प्रमाणकों से मिलाना चाहिए। विनियोगों को बैंक के प्रमाण-पत्र से मिलाना चाहिए।

(12) अन्य किसी प्रकार की आय, जैसे जाने की वसूली, किराये की प्राप्ति, प्रतिभूतियों से ब्याज की आय, आदि का भी उचित प्रमाणकों से मिलान करना चाहिए।

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व्यय (Expenditure)

(13) यह भी जांच करनी चाहिए कि फीस की प्राप्ति नियमित रूप से बैंक में जमा की जाती है अथवा नहीं।

(14) सब पूंजी-व्यय, स्थापना-व्यय, आदि को उचित रूप से जांचना चाहिए और यह देखना चाहिए कि इस सम्बन्ध में प्रबन्धकों से उचित अधिकार प्राप्त कर लिये गये हैं या नहीं। अगर किसी शीर्षक में आवश्यकता से अधिक व्यय किया गया है तो उसकी जांच सावधानी से करनी चाहिए। पूंजीगत एवं लाभगत व्ययों में उचित रूप से अन्तर स्पष्ट कर देना चाहिए।

(15) शिक्षक व शिक्षणेत्तर कर्मचारियों को दिये जाने वाले वेतन का प्रमाणन वेतन-रजिस्टर से किया जाना चाहिए।

(16) यदि किसी कर्मचारी के वेतन में वृद्धि कर दी गयी है तो इस बढ़े हुए वेतन की जांच प्रबन्ध-समिति की कार्यवाही-पुस्तक से करनी चाहिए और देखना चाहिए कि उसके लिए उचित स्वीकृति दे दी गयी है या नहीं।

(17) छात्रावास में रहने वाले विद्यार्थियों के लिए भोजन-सामग्री. वस्त्र या अन्य सामान की खरीद करने की प्रणाली के नियन्त्रण की जांच करनी चाहिए और यह देखना चाहिए कि इस सम्बन्ध में प्राप्त बिलों के भुगतान उचित नियन्त्रण के अन्तर्गत किये जाते हैं।

(18) अंकेक्षक को देखना चाहिए कि फीचर, स्टेशनरी, खेल के सामान, आदि पर व्यय की गयी रकम उचित है एवं यह उत्तरदायी अधिकारियो से अधिकृत है। इनकी जांच रसीदों, केशमीमो व अन्य प्रमाणकों की सहायता से की जानी चाहिए।

(19) सम्भाव्य व्यय के लिए उचित संचय किये गए हैं या नहीं। यह भी

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अन्य (Other)

ऊपर कही गयी बातों के अतिरिक्त अकेक्षक को कुछ अन्य बातों का भी ध्यान रखना चाहिए :

(20) अंकेक्षक को देखना चाहिए कि स्टाफ का प्रॉविडेण्ट फण्ड उचित रूप से विनियोग किया गया है या नहीं।

(21) अंकेक्षक को यह भी देखना चाहिए कि अप्राप्य सम्पत्तियां और प्रदत्त दायित्व उचित रूप से चिट्टे में लिखे गये हैं या नहीं।

(22) बैंक तथा रोकड़ शेष का सत्यापन अवश्य किया जाना चाहिए ।

(23) चूकिं मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं का प्राप्य लाभांश तथा प्रतिभूतियों पर ब्याज आय-का मुक्त होता है, अतः अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि उद्गम स्थान पर काटे गये आय-कर की रकम संस्था। द्वारा आय-कर अधिकारियों से वापस ले ली गयी है अथवा नहीं।

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2. क्लब

(CLUB)

क्लब कोई ऐसी संस्था नहीं है जिसका उद्देश्य लाभ कमाना हो। इसमें सदस्यों से चन्दा एकत्रित करके उनको मनोरंजन एवं अन्य कई प्रकार की सुविधाएं दी जाती हैं। एक क्लब के खाते का अंकेक्षण करते समय अंकेक्षक को निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए।

सामान्य सूचनाएं (General Informations)

 (1) अंकेक्षक को क्लब के सब नियमों का अध्ययन करना चाहिए और उसे यह देखना चाहिए कि वे। नियम क्लब के खातों को किस प्रकार प्रभावित करते है। क्लब के संविधान (Constitution) का अध्ययन करना चाहिए।

(2) अंकेक्षक को उस क्लब की प्रबन्ध समिति की कार्यवाही-पुस्तिका (Minute Book) का भी अध्ययन करना चाहिए।

(3) उसे यह भी देखना चाहिए कि आन्तरिक निरीक्षण की प्रणाली उचित है या नहीं।

(4) सदस्यों के वर्गीकरण (Classification) की जांच करनी चाहिए और यह देखना चाहिए कि उनसे। फीस लेने का क्या आधार है।

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आय (Income)

(5) जैसा कि ऊपर लिखा गया है, एक क्लब की आय का मुख्य साधन उसे सदस्यों से प्राप्त चन्दा है। अतः अंकेक्षक को सदस्यों द्वारा दिए गये चन्दे एवं प्रवेश शुल्क की जांच उनको दी गयी रसीदों की प्रतिलिपियों और सदस्यों के रजिस्टर से करनी चाहिए। अंकेक्षक को अवशिष्ट चन्दों की सूची बना लेनी चाहिए और इस बात का पता लगा लेना चाहिए कि वे प्रबन्ध समिति द्वारा प्रमाणित हैं या नहीं।

(6) इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पेशगी प्राप्त चन्दों का उचित रूप से लेखा कर दिया गया है एवं अदत्त रकमों का लेखा कर दिया गया है या नहीं।

(7) अगर क्लब ने किसी प्रकार की कैण्टीन खोल रखी है तो उसकी प्राप्तियों का उचित लेखा किया गया है या नहीं। इसी भांति अगर क्लब का कोई सामान या हॉल आदि किराये पर दिए जाते हैं तो उनसे प्राप्त रकमों की जांच करनी चाहिए। इस सम्बन्ध में प्रसंविदों की जांच करनी चाहिए।

(8) अगर क्लब को कहीं से कोई दान आदि मिला है, तो उसकी जांच करनी चाहिए और देखना चाहिए कि यह उसी उद्देश्य में लगाया गया है जिसके लिए प्राप्त किया था।

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व्यय (Expenditure)

(9) क्लब का मुख्य उद्देश्य अपने सदस्यों को हर प्रकार की सुविधाएं देना है। अतः उसकी अधिकांशतः रकम खेल का सामान खरीदने शराब, सिगरेट, आदि खरीदने में व्यय होती है। अंकेक्षक को उन सबकी जांच करनी चाहिए और यह देखना चाहिए कि वे अधिकृत हैं अथवा नहीं।

(10) इसके साथ-साथ उसे पूंजीगत एवं आयगत व्यय में भी अन्तर स्पष्ट कर लेना चाहिए। अगर क्लब की इमारत, आदि को सजाने का प्रबन्ध किया गया है तो उसका भी उचित रूप से लेखा किया जाना चाहिए।।

(11) खेलों पर किए गये व्ययों का सत्यापन करना चाहिए।

(12) वेतन जो कर्मचारियों को दिया जाता है का प्रमाणन किया जाना चाहिए। अन्य (Other)

(13) क्लब की सम्पत्तियों एवं दायित्वों की जांच उचित रूप से करनी चाहिए। अंकेक्षक को यह भा दखना चाहिए कि क्लब की सम्पत्तियों, जैसेफर्नीचर, इमारत, आदि पर उचित रूप से ह्रास काटा जा रहा है या नहीं। अन्तिम रहतिये के मूल्यांकन में विशेष सावधानी रखी जानी चाहिए।

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3.बैंकिंग कम्पनी

(BANKING COMPANIES)

भारत में बैंकिंग कम्पनियां बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट, 1949 (Banking Regulation Act, 1949) अनसार स्थापित का जाता है। इस संविधान के अनसार ही एक बैंकिंग कम्पनी अपने खाते तयार करता हा एक बैंकिंग कम्पनी की पुस्तकों का अंकेक्षण एक चार्टर्ड एकाउण्टैण्ट के द्वारा किया जाना चाहिए। बैंकिंग कम्पनी का चिट्ठा तथा लाभ-हानि इस अधिनियम की धारा 29 के अन्तर्गत तैयार किये जाते हैं। ये धारा 30 के अनुसार अंकेक्षकों के द्वारा तैयार किये जायेंगे। अंकेक्षक की नियुक्ति, उसके कर्तव्य, दायित्व एवं अधिकार कम्पनी अधिनियम, 2013 के अनुसार निर्धारित होते हैं।

बाकग कम्पना (Acquisition and Transfer of Undertaking) Act, 1970 के लाग हा जान क पश्चात जिसके अन्तर्गत 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था. अब बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट, 1949 केवल । अराष्ट्रीयकृत बैंकों (Non-Nationalised Banks) के काम-काज को नियन्त्रित करता है।

इस सम्बन्ध में दो बातें महत्वपूर्ण हैं :

1 कम्पनी अधिनियम, 2013 के प्रावधान जो बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट, 1949 ने अमान्य नहीं किये हैं, अब भी अराष्ट्रीयकृत बैंकों के लिए लागू होते हैं।

2 बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट, 1949 के कुछ प्रावधान राष्ट्रीयकृत बैंकों के लिए भी लागू होते हैं। कुछ अन्य अधिनियम भारत में बैंकों के कार्यों के लिए लागू होते हैं :

(अ) State Bank of India Act, 1955

(ब) State Bank of India (Subsidiary Banks) Act, 1959

(स) Regional Rural Banks Act, 1976

अंकेक्षक को बैंक का अंकेक्षण करते समय निम्नांकित बातों को ध्यान में रखना चाहिए :

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सामान्य सूचनाएं (General Informations)

(1) सर्वप्रथम अंकेक्षक को देखना चाहिए कि उस कम्पनी के चिट्ठा एवं लाभ-हानि खाते बैंकिंग रेगुलेशन्स एक्ट, 1949 के अनुसार बनाये गये हैं या नहीं।

(2) अंकेक्षक को इस बात का भी निश्चय कर लेना चाहिए कि उसकी नियुक्ति कम्पनी अधिनियम, 1956 के अनुसार हुई है या नहीं।

(3) अंकेक्षक को उस कम्पनी में प्रचलित आन्तरिक निरीक्षण की प्रणाली की जांच अत्यन्त सावधानी से करनी चाहिए। बैंक का अंकेक्षण एक प्रकार का विवरण-अंकेक्षण (Statement Audit) है और अंकेक्षक के लिए सभी लेनदेनों की विस्तृत जांच समान भी नहीं है।

आय (Income)

(4) अंकेक्षक को देखना चाहिए कि कितनी राशि बैंक ने विनियोग के रूप में लगा रखी है और उनसे कितनी आय प्राप्त होती है। उनकी कीमतों की बाजार मूल्य से तुलना करना भी आवश्यक है। मगर उनकी कीमत बाजार-मल्य से अधिक है, तो उचित संचय की व्यवस्था की जानी चाहिए। प्राप्त आय का प्रमाणन करना चाहिए।

(5) अंकेक्षक को वर्ष के पहले दिन रोकड़ को गिनने के लिए स्वयं बैंक में जाना चाहिए। अन्य बैंकों में जमा रोकड़ के प्रमाण-पत्र उसे प्राप्त करने चाहिए।

(6) जो रोकड बैंक में वर्ष के अन्तिम दिन प्राप्त हुई है मगर उसका लेखा नहीं किया गया है, उसकी जांच करनी चाहिए।

(7) दिये गये ऋण पर प्राप्त ब्याज की रकम का प्रमाणन करना चाहिए।

(8) बैंक में भुनाये गये बिलों का सत्यापन करना चाहिए।

(9) कभी-कभी बैंक अपने ग्राहका का कुछ सवाएं प्रदान करता है और उसे उन पर कुछ कमीशन मिलता है। अंकेक्षक को उस कमीशन की जांच उचित रूप से करनी चाहिए। इसी प्रकार अगर बैंक ग्राहक की वस्तएं अपने पास सुरक्षित रखता है तो उससे प्राप्त आय का उचित लेखा होना चाहिए।

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व्यय (Expenditure)

(10) अंकेक्षक को कम्पनी के पूंजीगत व्ययों एवं लाभगत व्ययों की जांच उचित रीति से करनी चाहिए। अगर कोई सम्पत्तियां खरीदी गयी हैं तो उनका लेखा उचित विवरण पस्तकों में अवश्य मिलना चाहिए।

मुद्दता जमाओ (fixed deposits) पर दिये गये व्याज का उचित लेखा पुस्तकों में होना चाहिए जिसका प्रमाणन किया जाना चाहिए।

अन्य (Other)

(12) सब सम्पत्तियों एवं दायित्वों का मिलान उचित प्रमाणकों से करना चाहिए। बिलों के सम्बन्ध में कैसी व्यवस्था ह यह दखना चाहिए। अधिविकर्ष की राशि का परीक्षण भी सावधानी से करना चाहिए।

(13) अंकेक्षक को शाखाओं से प्राप्त विवरणों की जांच भी भली-भांति करनी चाहिए। उन पुस्तकों का मिलान मुख्य कार्यालय की पुस्तकों से करना चाहिए।

(14) गुप्त संचय भली-भांति सोच-विचार कर रखा गया है या नहीं।

(15) अंकेक्षक को विदेशी मुद्रा से सम्बन्धित लेन देनों की भली प्रकार जांच करनी चाहिए तथा यह भी देखना चाहिए कि इन व्यवहारों पर लाभ-हानि का ठीक-ठाक लेखा किया गया है अथवा नहीं।

(16) अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि पूंजीगत खर्चों के अपलिखित किये बिना लाभांशों का भुगतान तो नहीं कर दिया गया है।

(17) अंकेक्षक को इस बात की जांच करनी चाहिए कि निम्न धाराओं के प्रावधानों की पूर्ति की गयी है अथवा नहीं:

(क) न्यूनतम चुकता पूंजी तथा संचयों के सम्बन्ध में।

(ख) पूंजी की संरचना तथा अंशधारियों के मताधिकारों के सम्बन्ध में।

(ग) अंशों की बिक्री पर दिये जाने वाले कमीशन, दलाली तथा बट्टे आदि पर प्रतिबन्ध के सम्बन्ध में।

(घ) वैधानिक संचय कोष के निर्माण के सम्बन्ध में।

(ङ) नकद कोष के सम्बन्ध में।

(च) सहायक कम्पनियों के सम्बन्ध में।

(छ) ऋणों तथा अग्रिम के सम्बन्ध में। इस सब बातों के अतिरिक्त निम्न सूचना अंकेक्षक को और देनी चाहिए :

(i) अंकेक्षक को जिन स्पष्टीकरणों की जरूरत थी वे सब उसे दे दिये गये थे।

(ii) कम्पनी के सब व्यवहार उसके अधिकारों के अन्तर्गत थे।

(iii) उसका चिट्ठा एवं लाभ-हानि खाता खातों की सत्यता प्रकट करता है।

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अंकेक्षक की रिपोर्ट का नमूना

(अराष्ट्रीयकृत बैंकों के लिए)

सदस्यगण,

हिन्द बैंक लिमिटेड।

हमने हिन्द बैंक लिमिटेड के 31 मार्च, 2014 को समाप्त होने वाले वर्ष के चिट्ठे एवं संलग्न लाभ-हानि खाने का जिसमें बैंक की 20 शाखाओं के विवरण जो हमने अंकित किये हैं और 20 अन्य शाखाओं के विवरण जो अन्य अंकेक्षकों के द्वारा अंकेक्षित किये गये हैं, अंकेक्षण किया है। हम रिपोर्ट करते हैं कि :

(1) हमें अपने कार्य के लिए सभी आवश्यक सूचना तथा स्पष्टीकरण प्राप्त हो गये हैं और वे सन्तोषजनक

(2) बैंक के कार्य जो हमारी जानकारी में आये हैं, बैंक के अधिकारों के अन्तर्गत हुए हैं।

(3) हमारी राय में अधिनियम के अनुसार सभी आवश्यक पुस्तकें बैंक में रखी हैं और सभी शाखाओं से आवश्यक विवरण हमारे सम्मुख प्रस्तुत किये गये हैं। ।

(4) बैंक का चिट्ठा तथा लाभ-हानि खाता जिनका हमने अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया है बैंक की पुस्तकों एवं विवरण-पत्रों के अनुरूप हैं।

(5) शाखाआ के खातों के सम्बन्ध में जिनका अंकेक्षण अन्य अंकेक्षकों ने किया है, हमन सभा विवरण प्राप्त कर लिये हैं और अपनी रिपोर्ट में विचार हेतु सम्मिलित कर लिया है।

(6) हमारा जानकारी में बैंक के खाते कम्पनी अधिनियम 2013 के अनुसार सभी आवश्यक सूचना। प्रकट करते हैं और बैंक का चिट्ठा उसके आर्थिक कार्यों का ठीक एवं उचित चित्र प्रस्तुत करता है तथा लाभ-हानि खाता इस तारीख को समाप्त होने वाले वर्ष के लाभ की सही स्थिति को प्रकट करता है।

कोलकाता,

15 सितम्बर, 2014                                                        ……………………

चार्टर्ड एकाउण्टैण्ट

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अंकेक्षक की रिपोर्ट का नमूना

(राष्ट्रीयकृत बैंक के लिए) प्रति, भारत के राष्ट्रपति,

(1) हमने 31 मार्च, 2014 को समाप्त होने वाले वर्ष के चिट्टे तथा उसी तारीख को समाप्त होने वाले वर्ष के लाभ-हानि खाते का जिनमें हमारे द्वारा अंकेक्षित 14 शाखाओं के विवरण-पत्र, अन्य अंकेक्षकों के द्वारा 10 शाखाओं तथा 8 शाखाओं के अंकेक्षित न किये गये व हमारे निरीक्षण न किये गये विवरण-पत्र भी समामेलित हैं अंकेक्षण किया है जिनके सम्मिलित करने के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया से स्वीकृति ले ली गयी है।

(2) चिट्ठा तथा लाभ-हानि खाता बैंकिंग रेगुलेशन्स एक्ट, 1949 के Third Schedule के क्रमशः ‘A’ तथा ‘B’ फॉर्मों में बनाये गये हैं। तदनुसार वे उपर्युक्त एक्ट के सन्दर्भ में राष्ट्रीयकरण से पूर्व व कम्पनी अधिनियम, 1956 के सम्बन्धित प्रावधानों के अन्तर्गत बैंकिंग कम्पनियों के सभी आवश्यक मुद्दों को प्रकट करते हैं। हम रिपोर्ट करते हैं कि:

(अ) हमारी राय में तथा हमारी सभी सूचना और स्पष्टीकरणों के अनुसार तथा जैसा कि बैंक की पुस्तकों से प्रकट होता है:

(i) बैंक का चिट्ठा 31 मार्च, 2014 को समाप्त होने वाले वर्ष का ठीक एवं उचित चित्र प्रस्तुत करता हा

(ii) लाभ-हानि खाता हिसाब से सम्बन्धित अवधि के लाभ का सही शेष प्रकट करता है।

(ब) हमें अपने कार्य के लिए सभी आवश्यक सूचना तथा स्पष्टीकरण प्राप्त हो गये हैं तथा वे सन्तोषजनक

(स) बैंक के लेन-देन जो हमारी जानकारी में आये हैं, बैंक के अधिकारों के अन्तर्गत हुए हैं।

(द) हमारे अंकेक्षण के लिए बैंक की शाखाओं से प्राप्त विवरण पर्याप्त हैं। कोलकाता,

वास्ते रामा एण्ड सन्स 16 सितम्बर, 2014

XYZ

चार्टर्ड एकाउण्टैण्ट

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4. बीमा कम्पनी

(Insurance Companies)

(जो जीवन-बीमा नहीं करती)

भारत में दो प्रकार की बीमा कम्पनियां है। एक वे जो केवल जीवन-बीमा करती हैं और बीमा अधिनियम, 1956 के अन्तर्गत आती हैं। जीवन बीमा निगम अधिनियम, 1956 (Life Insuranea Corne 1956) के प्रावधानों के अन्तर्गत स्थापित जीवन बीमा-निगम को 1 सितम्बर, 1956 से जीवन-बीमा व्यवसाय हस्तानति दो गया है। अतः अब बीमा कम्पनी अधिनियम, 1938 के प्रावधान जीवन बीमा के लिए लाग नहीं होते हैं। दूसरी वे हैं जो सामान्य बीमा जैसे अग्नि बीमा, सामुद्रिक बीमा, आदि करती हैं और जो बीमा कम्पनी अधिनियम, 1938 के अन्तर्गत आती हैं। सामान्य बीमा व्यवसायी राष्ट्रीयकरण अधिनियम, 1972 के प्रावधानों के अन्तर्गत स्थापित सामान्य बीमा निगम नवम्बर, 1972 से सामान्य बीमा के कार्यकलाप को नियन्त्रित करता है। इस व्यवसाय के हिसाब-किताब बीमा अधिनियम, 1938 के अन्तर्गत रखे जाते है। बीमा कम्पनी आधानयम, 1938 की धारा 10-29 के अनसार इसके वार्षिक खाते तैयार किये जाते हैं, लाकन कम्पनी आधनियम,1956 इस पर लाग होता है। बीमा कम्पनी के अंकेक्षण में अंकेक्षक को नितान्त सावधाना बरतना चाहिए क्योकि बीमा कम्पनियों के खातों में काफी बटियां पायी जाती हैं। इनके खातों के अंकेक्षण में निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए:

सामान्य सूचनाएं (General Informations)

(1) एक बीमा कम्पनी में बहत अधिक मात्रा में व्यवहार होते हैं एवं अंकेक्षक के लिए यह सम्भव नहीं हाक वह उसके खातों की विस्तृत जांच कर सके। अतः उसे कम्पनी की आन्तरिक निरीक्षण प्रणाली पर निर्भर रहना पड़ता है, उसे देखना चाहिए कि यह प्रणाली उचित है या नहीं।

(2) अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि भिन्न-भिन्न कोषों के लिए पृथक्-पृथक् खाते बनाये गये हैं।

(3) अंकेक्षक को देखना चाहिए कि बीमा कम्पनी के वार्षिक खाते बीमा कम्पनी अधिनियम, 1938 एवं कम्पनी अधिनियम, 1956 के अनुसार तैयार किये गये हैं या नहीं। आय (Income)

(4) एक बीमा कम्पनी की आय का मुख्य साधन पॉलिसियों से प्राप्त प्रीमियम है। अंकेक्षक को देखना चाहिए कि वह राशि पॉलिसी रजिस्टर से मिलती है या नहीं। यह बात हमेशा ध्यान में रखनी चाहिए कि इस कम्पनी की आय का अधिकांश भाग उसकी शाखाओं से प्राप्त होता है। इसके लिए अंकेक्षक को अत्यन्त सावधानी से खातों का अंकेक्षण करना चाहिए।

(5) अदत्त पेशगी प्राप्त प्रीमियम की राशि का प्रमाणन किया जाना चाहिए। ।

(6) अंकेक्षक को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि प्रत्येक बीमे के लिए अलग-अलग आय खाते बनाये गये हैं या नहीं।

(7) इसके अतिरिक्त एक बीमा कम्पनी को विनियोगों पर ब्याज, लाभांश एवं किराये से जो आय प्राप्त होती है, उसका अंकेक्षण उचित प्रमाणकों की सहायता से करना चाहिए।

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व्यय (Expenditure)

(8) एक बीमा कम्पनी पॉलिसी परिपक्व होने पर उसका भुगतान करती है। अतः अंकेक्षक को दावों की राशि को दावा रजिस्टर (Claims Register) से मिलाना चाहिए। उस रकम को अन्य प्रमाण-पत्रों से भी मिलाना चाहिए। दावों में केवल भुगतान की हुई राशि नहीं वरन् अदत्त दावों की राशि भी सम्मिलित होनी चाहिए।

(9) एजेण्टों को दिये पारिश्रमिक की जांच इनके ठहराव एवं उनकी दी गयी रसीदों से करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त, इस बात का भी ध्यान रखा जाए कि वह राशि बीमा अधिनियम, 1938 के अनुसार ठीक है।।

यह राशि अग्नि बीमा में प्राप्त प्रीमियम की राशि के 15% तथा समुद्री बीमा में प्राप्त प्रीमियम की राशि के 10% से अधिक नहीं होनी चाहिए। कमीशन की राशि का भुगतान चैक द्वारा किया जाना चाहिए। (केवल बहुत थोड़ी रकम को छोड़कर)।

(10) दिये गये बोनस की जांच कैश रजिस्टर एवं बोनस रजिस्टर से की जानी चाहिए।

(11) सभी खर्चे जैसे वैधानिक व्यय (legal expenses) आदि भिन्न-भिन्न विभागों में उचित रीति से बांटे गये हैं या नहीं, यह भी देखना चाहिए। ।

(12) उसको वार्षिकियों (annuities) के सभी भगतानों की जांच करनी चाहिए और यह भी देखना चाहिए कि सभी वार्षिकियों (annuities) के लिए जो चुकता (due) हो गयी हैं पर अदत्त है, भुगतान का आयोजन कर लिया गया है।

अन्य (Other)

(13) अगर कोई पुनर्बीमा किया गया है तो उस प्रसंविदे को देखकर प्रीमियम, आदि अन्य सभी बातों। का पता लगाना चाहिए।

(14) कम्पनी की सभी सम्पत्तियों एवं दायित्वों को उचित प्रमाणकों से मिलाना चाहिए एवं देखना चाहिए कि उन पर उचित ह्रास लगा दिया गया है या नहीं। रोकड की जांच भी अत्यन्त सावधानी से करना चाहिए।

(15) अन्य जोखिम जो अभी समाप्त नहीं हुए हैं, उनका उचित रूप से प्रबन्ध होना चाहिए। सामान्यतया 40 प्रतिशत आयोजन पर्याप्त समझा जाता है जो बीमा अधिनियम के अन्तर्गत न्यूनतम माना गया है।

(16) अंकेक्षक को यह मालूम करना चाहिए कि प्रशासन के खर्चे धारा 40C के अन्तर्गत निर्धारित सीमाओं से अधिक तो नहीं हैं।

(17) शाखाओं के हिसाब-किताब की जांच किसी योग्य अंकेक्षक के द्वारा की गयी है अथवा नहीं। यदि नहीं की गयी हो तो अंकेक्षक द्वारा जांच की जानी चाहिए।

(18) यह भी देखना चाहिए कि बीमा कम्पनी आचार संहिता (Code of Conduct) का पूर्णरूपेण । पालन करती है।

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अंकेक्षक की रिपोर्ट का नमूना

सदस्यगण,

‘Z’ जनरल बीमा कम्पनी लिमिटेड।

हमने ‘Z’ जनरल बीमा कम्पनी लिमिटेड के 31 मार्च, 2014 को बनाये गये संलग्न चिट्ठे का और अग्नि, सामुद्रिक एवं अन्य बीमा. रेवेन्यू खातों, लाभ-हानि खाता तथा लाभ-हानि समायोजन खाते का अंकेक्षण कर लिया है। इन खातों में भारतीय एवं विदेशी शाखाओं के हिसाब-किताब तथा खाते संलग्न हैं।

कम्पनी को Companies (Branch Audit Exemptions) Rules, 1961 के Rule 4 के अनुसार शाखाओं के अनिवार्य अंकेक्षण से छूट मिल गयी है।

कम्पनी के खाते बीमा अधिनियम, 1938 के First Schedule के Part II के Form A, Second | Schedule के Part II के Form B और C तथा Third Schedule के Part II के Form F के अनुसार बनाये गये हैं।

उपर्युक्त के अनुरूप, हम रिपोर्ट करते हैं कि :

(1) हमें हमारे अंकेक्षण के सम्बन्ध में सभी सूचना तथा स्पष्टीकरण प्राप्त हो गये हैं।

(2) हमारी राय में विधान के अनुसार सभी आवश्यक पुस्तकें कम्पनी ने रखी हैं।

(3) कम्पनी का चिट्ठा, रेवेन्यू खाता, लाभ-हानि खाता तथा लाभ-हानि समायोजन खाता हिसाब-किताब की पुस्तकों के अनुरूप है।

(4) हमारी राय में तथा हमारी पूर्ण जानकारी में सूचना तथा स्पष्टीकरण हमें प्राप्त हुए हैं. उनके अनसार उपर्यक्त खाते कम्पनी अधिनियम, 2013 के अनुसार वांछित सूचना देते हैं और कम्पनी का चिट्ठा 31 मार्च, 2014 उसकी आर्थिक स्थिति को तथा लाभ-हानि खाता उसी तारीख को लाभ का सच्चा तथा उचित चित्र प्रस्तुत करता है।

(5) हमने रोकड के शेष तथा विनियोगों का स्वयं के निरीक्षण या प्रमाण-पत्र के द्वारा या प्रमाणकों से । सत्यापन कर लिया है।

सम्पर्ण व्यय जो अग्नि, सामुद्रिक अथवा अन्य बीमा के व्यापार के सम्बन्ध में किये गये हैं. सम्बन्धित रेवेन्यू खातों में डेबिट कर दिये गये हैं।

1 सितम्बर, 2014                                                        …………………..

चार्टर्ड एकाउण्टैण्ट

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5. बिजली कम्पनी

(ELECTRICITY COMPANIES)

बिजली कम्पनियां बिजली (पूर्ति) अधिनियम, 1948 [Electricity (Supply) Act. 1948)] के अनुसार। स्थापित की जाती हैं। रेलों की भांति ये जनता को एक सेवा प्रदान करती है। हमारे सम्बन्ध में अंकेक्षक को अग्र बातें ध्यान में रखनी चाहिए :

सामान्य सूचनाएं (General Informations)

(1) सर्वप्रथम उसे इस बात का निश्चय कर लेना चाहिए कि इसकी नियक्ति बिजली अधिनियम, 1948 के अनुसार हुई है या नहीं। उसे यह भी देखना चाहिए कि उसकी नियक्ति की स्वीकृति राज्य सरकार से ली। गयी है या नहीं।

(2) अकक्षक को कम्पनी के खातों के सम्बन्ध में बिजली अधिनियम, 1948 तथा भारतीय बिजली आधानयम, 1910 (Indian Electricity Act, 1910) के प्रावधानों का अध्ययन करना चाहिए।

(3) अंकेक्षक को उस संस्था में प्रचलित आन्तरिक निरीक्षण की प्रणाली को भली-भांति देखना चाहिए।

(4) अंकेक्षक को उस कम्पनी के स्मारक पत्र एवं अन्तर्नियम का अध्ययन करना चाहिए और देखना चाहिए कि वे खातों से कहां तक सम्बन्धित हैं। अगर लोकसभा (Parliament) ने कोई और कानून पास किया है तो उसका भी अध्ययन करना चाहिए।

(5) उसको ग्राहकों की खाताबही (Consumers’ Ledger) का मिलान प्रारम्भिक लेखों से करना चाहिए। आय (Income)

(6) बिजली कम्पनियां अपने ग्राहकों को बिजली एवं शक्ति प्रदान करती हैं जिनके बदले में उन्हें कुछ धनराशि प्राप्त होती है। अंकेक्षक को इस राशि का अंकेक्षण करते समय यह देखना चाहिए कि वह राशि कम्पनी और ग्राहक के ठहराव से कितनी मिलती है। इसके अलावा उस राशि को रोकड़ बही एवं ग्राहकों को दी गयी रसीदों की प्रतिलिपियों (counterfoils) से मिलाना चाहिए।

(7) अंकेक्षक को देखना चाहिए कि जो रुपया ग्राहकों से लेना है उसका उचित लेखा किया गया है या नहीं। यदि ग्राहकों से प्राप्त रकम में से कुछ को अपलिखित किया गया है तो इसके लिए जिम्मेदार अधिकारी की स्वीकृति जरूरी है तथा ऐसे ग्राहकों के कनेक्शन काट दिये गये हैं अथवा नहीं, इसकी जांच की जानी चाहिए। व्यय (Expenditure)

(8) अंकेक्षक को देखना चाहिए कि मजदूरी आयगत एवं पूंजीगत व्ययों में ठीक-ठीक बांटी गयी है या नहीं। इसके लिए उचित अधिकारी से प्रमाण-पत्र प्राप्त करना चाहिए।

(9) अंकेक्षक को देखना चाहिए कि वर्तमान सम्पत्तियों की मरम्मत के खर्चे लाभगत व्यय में शामिल किये गये हैं या नहीं।

(10) कर्मचारियों के वेतन के बारे में उनके साथ किये गये ठहराव को देखना चाहिए। इसके अतिरिक्त, यह देखना चाहिए कि इनके वेतन और कम्पनी के प्रत्यक्ष व्ययों में कहां तक सम्बन्ध है। वेतन के भुगतान का प्रमाणन करना चाहिए।

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अन्य (Other)

(11) बिजली के उपभोक्ताओं को छूट दी गयी है वह उचित है एवं उचित अधिकारी द्वारा स्वीकृत है।

(12) पॉवर हाउस, प्लाण्ट, मीटर, आदि पर उचित दर से ह्रास लगाया गया है या नहीं। स्टोर में रखे हए माल का मिलान करना चाहिए तथा उसे प्रमाणित स्टॉक से मिलाना चाहिए। ।

13) जो खाते कम्पनी प्रकाशित करती है वह बिजली अधिनियम, 1948 के अनुसार प्रकाशित होने चाहिए।

(14) सम्पत्तियों का प्रतिस्थापन करने पर, प्रतिस्थापन लागत का पूंजीगत व आर्यगत शीर्षकों के अन्तर्गत उचित विभाजन हुआ है अथवा नहीं।

(15) इंजीनियरों, लेखापालों तथा प्रबन्धकों के वेतन की रकम का उत्पादन, वितरण तथा प्रशासन विभागों में ठीक-ठीक आबंटन हुआ है अथवा नहीं।

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अंकेक्षक की रिपोर्ट का नमूना

सदस्यगण, ‘X’

इलेक्ट्रिक सप्लाई कम्पनी।

हमने ‘X’ इलेक्ट्रिक सप्लाई कम्पनी लिमिटेड के 31 मार्च, 2014 को बनाये गये चिट्ठ तथा उसी तारीख को समाप्त होने वाले वर्ष के लिए बनाये गये संलग्न लाभ-हानि खाते का अंकेक्षण कर लिया है।

कापना Electricity (Supply) Act. 1948 से वहां तक नियन्त्रित होती है जहां तक व कम्पना अधिनियम,2013 के अनुरूप नहीं हैं।

इस व्यवस्था के अन्तर्गत हम रिपोर्ट करते हैं कि :

(1) हमें अपने अंकेक्षक कार्य के लिए सभी आवश्यक सूचना तथा स्पष्टीकरण प्राप्त हो गये हैं।

(2) हमारी राय में विधान द्वारा सभी अनिवार्य पुस्तकें कम्पनी के पास हैं।

(3) चिट्ठा तथा लाभ-हानि खाता जिनका हमने अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया है, हिसाब-किताब की पुस्तकों के अनुरूप हैं।

(4) हमारी राय में तथा हमारी जानकारी में जैसा कि प्रस्तुत सूचना एवं स्पष्टीकरण से प्रकट है, कम्पनी का चिट्ठा कम्पनी की 31 मार्च, 2014 की स्थिति को तथा लाभ-हानि खाता उसके लाभ की सच्ची तथा उचित स्थिति को प्रकट करता है।

1 अगस्त, 2014                                                …………………………….

चार्टर्ड एकाउण्टैण्ट

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6. सिनेमा

(CINEMA)

जिस प्रकार शिक्षा-संस्थाओं के खातों की जांच अनिवार्य नहीं है, उसी प्रकार किसी सिनेमा के खातों की जांच भी आवश्यक नहीं है, मगर अधिकांशतः सब सिनेमाघर अपने खातों का अंकेक्षण करवाते हैं। उनके खातों के अंकेक्षण में अंकेक्षक को निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए :

सामान्य सूचनाएं (General Informations)

सर्वप्रथम कार्य जो अंकेक्षक को एक सिनेमा के खातों की जांच के समय ध्यान में रखना चाहिए, यह है कि उस संस्था में अपनायी जाने वाली आन्तरिक निरीक्षण की प्रणाली की जांच करनी चाहिए।

आय (Income)

(1) एक सिनेमाघर की आय वहां के टिकटों की बिक्री से होती है, अतः अंकेक्षक को वहां के प्रतिदिन के टिकटों की बिक्री का मिलान टिकटों की किताब के प्रतिपर्ण (counterfoils) से करना चाहिए। इस सम्बन्ध में अंकेक्षक को यह भी देखना चाहिए कि वह रकम बैंक, आदि में उचित रूप से जमा कर दी गयी है या नहीं। इस सम्बन्ध में उसे वहां की रोकड़ बही को देखना चाहिए।

(2) अंकेक्षक को इस बात की भली-भांति जांच करनी चाहिए कि पेशगी बेचे गए टिकटों की राशि उचित रूप से आगे ले जायी गयी है या नहीं।

(3) विज्ञापन की आय का भी उचित रूप से लेखा किया जाना चाहिए।

व्यय (Expenditure)

(4) अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि पूंजीगत एवं लाभगत व्ययों में अन्तर किया गया है या नहीं। जितने भी पूंजीगत व्यय हैं उनकी अच्छी तरह जांच करनी चाहिए।

(5) कर्मचारियों को दिए गए वेतन के भुगतान का प्रमाणन किया जाना चाहिए।

(6) अंकेशक को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि मनोरंजन कर सरकार को दिया गया है या में कल बिके हए टिकटो के लेखों की सहायता से मनोरंजन-कर के लेखों की जांच करनी चाहिए।

(7) मरम्मत एवं नवीनीकरण के खर्चों का भी उचित प्रमाणसे मिलान करना चाहिए।

(8) इसके अतिरिक्त, अंकेक्षक को सिनेमाघर के अन्य खर्चे, जैसे विज्ञापन, बिजली, आदि के खचा । की भी उचित रूप से जांच करनी चाहिए।

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अन्य (Other)

(9) अंकेक्षक को सिनेमाघर की सम्पत्तियों का अंकेक्षण अत्यधिक सावधानी के साथ करना चाहिए। उसे देखना चाहिए कि उन सम्पत्तियों पर उचित रूप से हास लगा दिया गया है या नहीं।।

(10) अकक्षक को सिनेमा में रखी फिल्मों के मल्य का अंकेक्षण उचित रूप से करना चाहिए।

(11) अंकेक्षक को सिनेमाघर के बिक्री सम्बन्धी सौदों और फिल्मों को किराए पर लेने के सौदों का अंकेक्षण सावधानीपूर्वक करना चाहिए।

(12) यदि कैण्टीन मालिकों के द्वारा चलायी जा रही है, तो उसकी आय व व्यय का सत्यापन करना चाहिए। यदि कैण्टीन किराए अथवा ठेके के आधार पर दे दी गयी है तो उससे सम्बन्धित प्रसंविदों का सत्यापन करना चाहिए तथा यह देखना चाहिए कि प्राप्तियों के उचित लेखे कर दिए गए हैं।

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7. होटल

(HOTEL)

एक होटल का अंकेक्षण करते समय अंकेक्षक को निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए :

सामान्य सूचनाएं (General Informations)

(1) होटल के संविधान का निरीक्षण करना चाहिए और प्रबन्ध की सूची तथा कर्मचारियों को दिए गए अधिकार की जांच की जानी चाहिए। होटल का स्वामी अकेला व्यक्ति या फर्म या कम्पनी कोई भी हो सकता है।

(2) अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि होटल में अपनायी गयी आन्तरिक निरीक्षण प्रणाली कहां तक उचित है। इस प्रणाली की उपयोगिता का पता लगाने के लिए अंकेक्षक को निम्न मदों की जांच करनी चाहिए:

(अ) भोजन, शराब व अन्य आवश्यक वस्तुओं के लिए दिए गए ऑर्डर व उनकी प्राप्ति की प्रणाली उचित है या नहीं। उनका भुगतान उचित ढंग से किया जाता है या नहीं।

(ब) खजांची और होटल के नौकरों द्वारा प्राप्त रकम का लेखा किस प्रकार किया गया है।

(स) उपर्युक्त सब वस्तुओं के बारे में उचित लेखे।

(द) यात्रियों से आय का लेखा रखने की व्यवस्था।

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आय (Income)

एक होटल की आय का मुख्य साधन यात्रियों से प्राप्त राशि के रूप में है। इस सम्बन्ध में अंकेक्षक को निम्न बातें ध्यान में रखनी चाहिए:

(3) यात्रियों से जो रकमें प्राप्त हुई हैं उनकी सत्यता का पता लगाने के लिए रोकड़ बही एवं खिड़की पर रखी जाने वाली खाता-बही का मिलान करना चाहिए। खिड़की पर रखी जाने वाली खाता-बही का मिलान अव्यक्तिगत (impersonal) खातों में किए गए लेखों से करना चाहिए।

(4) अगर कोई अदत्त बाकियां हैं तो उनका मिलान सामान्य खाता-बही के खातों की बाकियों से करना चाहिए।

(5) अन्य विविध प्राप्तियों की जांच अत्यन्त सावधानी से करनी चाहिए। व्यय (Expenditure)

(6) अंकेक्षक को देखना चाहिए कि पूंजीगत व्यय और आयगत व्यय में अन्तर किया गया है या नहीं। इसके साथ-साथ यह भी देखना चाहिए कि क्रय, बीजक, आदि ठीक से लिखे गए हैं या नहीं। साथ ही इस बात को भी देखना चाहिए कि खरीदी गयी वस्तुओं के लिए कहीं अधिक कीमतें तो नहीं दी गयी हैं। अंकेक्षक को उन वस्तुओं का स्टॉक गिनकर खाते से मिलान करना चाहिए।

(7) अंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि मजदूरों एवं कर्मचारियों को दी गयी मजदूरी एवं वेतन का ठीक-ठीक लेखा किया गया है या नहीं।

(8) खुदरा रोकड़ के खातों की जांच भली-भांति करनी चाहिए।

(9) सजावट और पैकिंग आदि के व्यय अगले दो-तीन वर्षों में बांटे गए हैं या नहीं।

(10) उपयुक्त बातों के अतिरिक्त अंकेक्षक को यह भी देखना चाहिए कि होटल की सम्पत्तिया एव दायित्व ठीक-ठीक चिट्टे में दिखाए गए हैं या नहीं।

(11) होटल के द्वारा दिए गए करों के भुगतान का प्रमाणन किया जाना चाहिए।

(12) फर्नीचर व साजसज्जा के क्रय का प्रमाणन किया जाना चाहिए।

अन्य (Other)

(13) स्टोर्स, शराब, क्रॉकरी, आदि के स्टॉक का सत्यापन करना चाहिए।

(14) इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि फर्नीचर, बर्तन, शीशे के सामान, स्टोर्स, आदि पर ठीक-ठीक ह्रास लगाया गया है और यह उचित है।

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8. अस्पताल

(HOSPITAL)

सामान्य सूचनाएं (General Informations)

(1) एक अस्पताल से सम्बन्धित खातों की जांच करते समय अंकेक्षक को सर्वप्रथम उस अस्पताल के प्रन्यास प्रपत्र (Trust Deed) का अध्ययन करना चाहिए और यह देखना चाहिए कि उसमें कितनी बातें। खातों से सम्बन्धित हैं। सम्बन्धित प्रन्यास अधिनियम (Trust Act) का अध्ययन करना चाहिए।

(2) इसके अतिरिक्त, अंकेक्षक को यह भी देखना चाहिए कि प्रतिभूतियां एवं उनके अधिकार-पत्रं (Title Deeds) प्रन्यासियों के सामूहिक नाम में रखे जाते हैं।

(3) अंकेक्षक को उस अस्पताल की आन्तरिक निरीक्षण प्रणाली का अध्ययन करना चाहिए। आय (Income)

(4) रोकड़ प्राप्तियों का रसीदों के प्रतिपर्णों से मिलान करना चाहिए। उनका मिलान रोकड़ बही से किया जाना चाहिए।

(5) इसके अतिरिक्त, अंकेक्षक को यह भी देखना चाहिए कि सब प्रकार के किरायों की आय, लाभांशों और विनियोग पर ब्याज, आदि का उचित लेखा किया गया है या नहीं।

(6) चन्दे एवं दान के रूप में प्राप्त हुई रकमों की रोकड़-बही में की गयी प्रविष्टियों का मिलान रसीदों । के बचे हुए भागों से करना चाहिए। यह भी देखना चाहिए कि उसी काम के लिए प्रयोग की जा रही हैं. जिनके लिए वे ली गयी हैं।

(7) सरकार या म्युनिसिपल कमेटी से प्राप्त रकमों (Grants) का उचित लेखा होना चाहिए।

(8) मरीजों को दिए गए बिलों की जांच, बिल रजिस्टर, बिलों की कार्बन प्रतिलिपि तथा मरीजों के उपस्थिति रजिस्टर से की जानी चाहिए।

(9) (यदि अस्पताल आय-कर से मुक्त हो) लाभांशों तथा प्रतिभूतियों पर ब्याज के सम्बन्ध में उद्गम स्थान पर काटे गए आय-कर की रकम वापस ले ली गयी है अथवा नहीं, इसकी जांच की जानी चाहिए।

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व्यय (Expenditure)

(10) व्यय के सम्बन्ध में अंकेक्षक को देखना चाहिए कि दवाइयां एवं अन्य सामान की खरीद अधिकृत है और उसका उचित लेखा पुस्तकों में कर दिया गया है।

(11) स्टोर सामग्री , जैसे दवाइयां, कपड़े, औजारों, आदि की प्राप्ति तथा विभिन्न विभागों को निर्गमन के सम्बन्ध में उचित लेखे रखे गए हैं अथवा नहीं, इसकी जांच की जानी चाहिए।

(12) अस्पताल के स्टाँफ डॉक्टर, प्रशासकीय स्टाफ नर्से व निम्न स्टाफ को दिए गए वेतन का प्रमाणन करना चाहिए।

(13) व्ययों के सम्बन्ध में यह देखना चाहिए कि आयगत व पूंजीगत व्ययों में अन्तर किया गया है अथवा नहीं।

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अन्य (Other)

(14) अन्तिम स्टॉक तथा उसके मूल्यांकन का सत्यापन किया जाना चाहिए।

(15) आय-व्यय के लिए तैयार किए गए बजट का निरीक्षण करना चाहिए और बजट किए गए तथा वास्तविक आय व व्ययों का मिलान करना चाहिए।

(16) स्थायी सम्पत्तियों, जैसे फर्नीचर एवं औजारों पर उचित ह्रास की व्यवस्था हुई है अथवा नहीं, यह देखना चाहिए।

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9 .धर्मार्थ संस्थाएं

(CHARITABLE INSTITUTIONS)

धर्मार्थ संस्थाओं के अंकेक्षण में निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए

सामान्य सूचनाएं (General Informations)

(1) सर्वप्रथम अंकेक्षक को इस संस्था के विधान की जांच सावधानी से करनी चाहिए।

(2) उसे प्रबन्ध समिति की कार्यवाही-विवरण पुस्तिका की जांच करनी चाहिए और देखना चाहिए कि उसके प्रस्ताव कहां तक संस्था में लागू किए जा रहे हैं।

अन्य (Other)

एक धर्मार्थ संस्था की आय के मुख्य साधन दान एवं चन्दे, सरकारी सहायता, आदि की राशि है। इस सम्बन्ध में अंकेक्षक को निम्न बातें ध्यान में रखनी चाहिए:

(3) जो चन्दा एवं दान प्राप्त किया गया है, उसे दी हुई रसीदों के प्रतिपर्णों का पुस्तकों में की गयी प्रविष्टियों से मिलान करना चाहिए। प्रतिपर्णों पर एक उचित अधिकारी के हस्ताक्षर होने चाहिए एवं वे क्रमानुसार होने चाहिए। उन प्राप्तियों को दान एवं चन्दे के रजिस्टर से भी मिलाना चाहिए। चन्दे एवं दानों की छपी हुई सूचियों की जांच सावधानीपूर्वक करनी चाहिए।

(4) यदि उस संस्था की कोई सम्पत्ति किराए पर उठी हुई है, अथवा उस संस्था के कुछ विनियोग हैं तो इस सम्पत्ति एवं विनियोगों से प्राप्त आय का उचित रूप से लेखा होना चाहिए। इसके लिए अंकेक्षक को उचित प्रमाणकों की जांच करनी चाहिए। इनसे सम्बन्धित पुस्तकें भी उचित रूप से रखी जानी चाहिए।

(5) पेशगी प्राप्त चन्दों एवं दान का भी उचित रूप से लेखा करना चाहिए। इसी प्रकार अगर उत्तरदान (Legacies) से कुछ रकम बाकी है, तो उचित प्रपत्र की जांच करनी चाहिए। बाकी चन्दों की एक सूची प्राप्त करनी चाहिए।

(6) अगर उस संस्था को कोई सरकारी सहायता प्राप्त हुई है, तो उसकी जांच सावधानीपूर्वक करनी चाहिए। व्यय (Expenditure) धर्मार्थ संस्था के व्ययों की जांच करते समय अंकेक्षक को निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए:

(7) सर्वप्रथम उसे पूंजीगत व्यय एवं लाभगत व्ययों का अन्तर स्पष्ट कर लेना चाहिए। अगर कोई विनियोग अथवा सम्पत्तियां क्रय की गयी हैं, तो उनकी जांच उचित प्रमाणकों से करनी चाहिए।

(8) अंकेक्षक को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जो व्यय किए जा रहे हैं वे वास्तव में संस्था से सम्बन्धित हैं। उसे व्ययों के लेखों का प्रमाणन करने के लिए प्रपत्रों की जांच सावधानी से करनी चाहिए।

(9) कर्मचारियों को दिए गए वेतन का प्रमाणन करना चाहिए।

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(10) वर्ष के अन्त में विनियोगों से सम्बन्धित एक बैंक का प्रमाण-पत्र प्राप्त करना चाहिए। अन्य सम्पत्तियों एवं दायित्वों की जांच भी उचित रूप से करनी चाहिए।

(11) जो संचय किसी विशेष उद्देश्य के लिए रखे गए हैं उनका प्रयोग उचित रीति से होता है या नहीं।

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10. रेलवे कम्पनी

(RAILWAY COMPANY)

प्रायः अपने विभागों की विस्तृत जांच सम्भव करने के लिए और अब विभागों पर उचित नियन्त्रण । रखने के लिए सभी रेलवे कम्पनियां आन्तरिक अंकेक्षण विभाग (Internal Audit Department) रखती है। जिससे कि अंकेक्षक का काम बहुत सरल हो जाता है। अंकेक्षक को अग्र बातों का ध्यान रखना चाहिए:

सामान्य सूचनाएं (General Informations)

(1) अगर लोकसभा (Parliament) ने रेलवे कम्पनी के सम्बन्ध में कोई कानून पास किया हो तो उसका अध्ययन भली-भाति कर लेना चाहिए एवं खातों से सम्बन्धित बातों को नोट कर लेना चाहिए।

(2) उस कम्पनी की आन्तरिक निरीक्षण प्रणाली की भली-भांति जांच करनी चाहिए।

(3) अंकेक्षक को उस कम्पनी के स्मारक-पत्र एवं अन्तर्नियमों का अध्ययन करना चाहिए।

आय  (Income)

(4) एक रेलवे कम्पनी की मुख्य आय के साधन यात्रियों से प्राप्त किराया, माल का भाड़ा, आदि है। अतः अकक्षक का Money Traffic Summary Book से रोजाना प्राप्त रकम के लेखो का मिलान करना चाहिए। इस सम्बन्ध में प्रत्येक स्टेशन से प्राप्त स्टेशन मास्टर के विवरण-पत्र को देखना चाहिए। स्टेशन द्वारा भेजे गए रोकड़ के विवरण की रोकड़ पुस्तक के लेखों से जांच करनी चाहिए। अगर कुछ राशि बैंक में जमा की गयी है तो उसका मिलान पास-बुक से करना चाहिए।

(5) माल एवं खनिज पदार्थों के सम्बन्ध में मासिक विवरण की जांच करनी चाहिए।

(6) अगर कोई मौसमी टिकट या अन्य ऐसे ही टिकट जारी किए गए हैं, तो उनसे प्राप्त रकमों की जांच भी उचित ढंग से करनी चाहिए। _

(7) रेल की अन्य आय, जैसे होटल, जलपान-गृह से आय, मोटर-लारी से आय, आदि का समुचित रीति से अंकेक्षण किया जाना चाहिए।

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व्यय (Expenditure)

(8) सर्वप्रथम अंकेक्षक को पूंजीगत व्यय एवं लाभगत व्ययों में अन्तर स्पष्ट कर लेना चाहिए। साधारण खर्चे, किराया और ब्याज सम्बन्धी खर्चे लाभगत रूप में दिखाए जाने चाहिए।

(9) जमीन के क्रय के लिए तत्सम्बन्धित समझौते का अंकेक्षण सावधानी से करना चाहिए।

(10) प्रत्येक वर्ष के खर्चों को पिछले वर्षों के खर्चों से मिलाना चाहिए। अगर उनमें कोई बढ़ोत्तरी हुई। है तो उचित जानकारी प्राप्त करनी चाहिए।

(11) कर्मचारियों को दिए गए वेतन, कोयला, तेल, आदि के व्यय की जांच भी सावधानी से करनी चाहिए।

अन्य (Other)

(12) कम्पनी की सम्पत्तियों एवं दायित्वों का मूल्यांकन उचित है या नहीं। स्टॉक एवं स्टोर से सम्बन्धित उचित प्रमाण-पत्र उत्तरदायी अधिकारी से प्राप्त करने चाहिए।

(13) प्रतिभूतियों तथा अधिकार-पत्र (Title Deeds) की सहायता से विनियोगों का सत्यापन करना चाहिए।

(14) अन्तिम खातों से सम्बन्धित प्रपत्र उचित रूप से विधान के अनुसार भरे गए हैं या नहीं. यह भी देखना चाहिए।

(15) स्टेशनों से प्रमाणित विवरण-पत्रों की सहायता से सभी दायित्वों का सत्यापन करना चाहिए।

(16) मुख्य इन्जीनियर से उस प्रमाण-पत्र को प्राप्त करना चाहिए जो प्रमाणित करे कि सब इमारतें. पुल, आदि अच्छी दशा में हैं।

(17) ह्रास तथा अन्य आपदाओं के लिए किए गए आयोजन (Provision) की जांच की जानी चाहिए।

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11.जहाजी कम्पनी

(SHIPPING COMPANIES)

जहाजी कम्पनी के अंकेक्षण में निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए

सामान्य सूचनाएं (General Informations)

(1) अंकेशक को उस कम्पनी के स्मारक-पत्र एवं अन्तर्नियम का सावधानीपर्वक अध्ययन करना चाहिए।

(2) उस में अपनायी जाने वाली आन्तरिक निरीक्षण प्रणाली की परी जांच करनी चाहिए।

(3) अंकेक्षक को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सभी वैधानिक बातों को पूरा किया गया है या नहीं।

(4) उस कम्पनी के पास जितने जहाज हों, उतने ही खाते अलग-अलग रखे जाने चाहिए। इसके अतिरिक्त, प्रत्येक यात्रा के लिए अलग-अलग खाता रखा जाना चाहिए।

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आय  (Income)

(5) एक जहाजी कम्पनी की आय यात्रियों के किराए एवं माल-भाड़े से प्राप्त रकम के रूप में होती है। इसका जाच सम्बन्धित प्रपत्रों से करनी चाहिए। प्रत्येक यात्रा की आय का अलग-अलग हिसाब होना चाहिए। यात्रियों से किराए और माल-भाडे के लिए उचित खातों की जांच करनी चाहिए और देखना चाहिए कि कितना रुपया अभी अप्राप्य है और उसके लिए उचित संचय रखे गए हैं या नहीं।

(6) जो रकम पूर्व प्राप्त हो गयी है उसे आगे की आय के रूप में दिखाना चाहिए।

(7) नकद प्राप्ति को रखने के लिए क्या तरीका अपनाया जाता है। क्या वह राशि बैंक में जमा की जाती है? अगर ऐसा है तो उचित प्रमाण-पत्र प्राप्त करने चाहिए।

व्यय (Expenditure)

(8) अंकेक्षक को देखना चाहिए कि पूंजीगत एवं लाभगत व्ययों का विभाजन ठीक रूप से किया गया है या नहीं।

(9) हर यात्रा पर कितना धन खर्च हुआ है, इन सबका मिलान उचित प्रमाणकों से करना चाहिए।

(10) कर्मचारियों के वेतन एवं प्रबन्धकों के कमीशन एवं खर्चों के बारे में उचित व्यवस्था की गयी है या नहीं। इन्हें भी उचित प्रमाणकों की सहायता से जांचना चाहिए। इसी प्रकार यदि कम्पनी ने कोई लाभांश वितरित किया है तो उसकी भी जांच करनी चाहिए।

(11) अगर किसी को कोई क्षतिपूर्ति दी गयी है तो कैप्टेन द्वारा रखे गए हिसाब से उनकी जांच करनी चाहिए।

(12) अगर जहाज का बीमा कराया गया है तो बीमे की किस्त का उचित लेखा पुस्तकों में किया जाना चाहिए।

अन्य (Other)

(13) उस कम्पनी के सम्पत्ति एवं दायित्वों का उचित मूल्यांकन किया जाना चाहिए। अंकेक्षक को देखना चाहिए कि सम्पत्तियों पर पर्याप्त ह्रास लगाया जाता है।

(14) इसी प्रकार विनियोग का सत्यापन करना चाहिए और देखना चाहिए कि वे वास्तव में विद्यमान हैं या नहीं।

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12.प्रकाशक

(PUBLISHERS)

एक प्रकाशक के खातों की जांच करते समय अंकेक्षक को निम्न बातें ध्यान में रखनी चाहिए :

सामान्य सूचनाएं (General Informations)

(1) अंकेक्षक को संस्था की स्थापना से सम्बन्धित संलेखों, जैसे साझेदारी संलेख, पार्षद सीमानियम, पार्षद अन्तर्नियम, आदि की जांच करनी चाहिए तथा लेखों से सम्बन्धित व्यवस्थाओं को नोट कर लेना चाहिए।

(2) संस्था में हिसाब-किताब लिखने की पद्धति का पता करना चाहिए और यह देख लेना चाहिए कि आय या व्यय की कोई मद लिखने से छूट तो नहीं गयी है।

(3) प्रकाशक को प्रत्येक छपने वाली पुस्तक के लिए अलग से एक प्रकाशन खाता (Production Account) खोलना चाहिए जिसके नाम पक्ष में विविध खर्चे, जैसे कागज, छपाई, कॉपीराइट, ब्लॉक, बंधाई। (binding), आदि लिखे जाने चाहिए।

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आय

(Income)

(4) प्रकाशक का आय पुस्तकों को बेचने से होती है। अतः जो पस्तकें बेची जाती हैं उनसे प्राप्त हान वाली राशि का उचित लेखा किया जाना चाहिए। उस राशि को दी गयी रसीदों की प्रतिलिपियों से मिलाना। चाहिए।

(5) अगर कोई पुरानी किताबें बेची गयी हों, तो उनका भी लेखा ठीक तौर से करना चाहिए। [इस बात का ध्यान रखा जाए कि प्रकाशक पुस्तकें पुस्तक-विक्रेता (book-sellers) को बेचते है, न कि साधारण ग्राहकों को

व्यय (Expenditure)

(6) प्रत्येक लेखक के साथ हुए अनुबन्ध (Agreement) को देखकर इस बात का पता लगा लेना चाहिए। कि कितना अधिकार-शुल्क (royalty) उसे मिल गया है और कितना अभी दिया जाना है। अगर उसको कुछ रकमें पेशगी दे दी गयी हैं तो उनके लिए पर्याप्त खाते रखे जाने चाहिए।

(7) अगर कोई पुस्तक या पत्रिका लेखकों के लिए छापी जाती है, तो उसका उचित लेखा पुस्तकों में होना चाहिए।

अन्य (Other)

(8) अगर पुस्तक लेखक की जोखिम पर छापी गयी है तो लेखक एवं प्रकाशक के अनुबन्ध को देखना चाहिए।

(9) अगर प्रकाशक ने किताब बेचने वालों को कोई कटौती दी है, तो उसका उचित लेखा पुस्तकों में होना चाहिए।

(10) प्लाण्ट, मशीन, टाइप, ब्लॉक, आदि पर उचित ह्रास काटना चाहिए। अगर किसी पुस्तक की बिक्री नहीं हो पा रही है तो उसके मूल्य में पर्याप्त रूप से ह्रास लगा देना चाहिए।

(11) कभी-कभी प्रकाशक पुस्तक का कॉपीराइट खरीद लेते हैं। ऐसी अवस्था में प्रकाशन खाते का डेबिट करके अपलिखित कर दिया जाता है। अंकेक्षक को इन खातों की जांच करनी चाहिए।

(12) यदि किसी पुस्तक के प्रकाशन का कॉपीराइट न खरीदा गया हो तो ऐसी किताबों के स्टॉक को साधारण स्टॉक से अलग रखना चाहिए। अंकेक्षक को इन खातों की जांच करनी चाहिए।

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13. रबर कम्पनी

(RUBBER COMPANIES)

रबर कम्पनी के खातों के अंकेक्षण में अंकेक्षक को निम्न बातें ध्यान में रखनी चाहिए :

सामान्य सूचनाएं (General Informations)

(1) उस कम्पनी में प्रचलित आन्तरिक निरीक्षण प्रणाली की जांच करनी चाहिए।

(2) ऐसे प्रपत्रों एवं आधार-लेखों की जांच करनी चाहिए जिनके आधार पर सम्पत्ति ली गयी है।

(3) सम्पदा-प्रबन्धक (Estate Manager) द्वारा भेजे हुए मासिक विवरण की भली-भांति जांच करनी चाहिए और उनका खातों से मिलान करना चाहिए।

व्यय (Income)

(4) सनी को अपने रबर की बिक्री से जो भी आय प्राप्त हो उसका उचित लेखा किया जाना चाहिए। अगर वह कम्पनी रबर के आतारक्त काफा, चावल, आदि भी उत्पन्न करती है तो उनके लिए अलग अलग खोले जाने चाहिए और उनकी आय के भी उचित लेखे किए जाने चाहिए।

व्यय (Expenditure)

(5) पंजीगत और आयगत व्ययो में अन्तर स्पष्ट कर लेना चाहिए। साधारण व्यय और प्रबन्ध का भी उचित रूप में लेखा किया जाना चाहिए। मजदों को दी गयी मजदूरी का उचित लखा किया जाना चाहिए और उसको उचित अधिकारी के दिया गया है तो उसका भी उचित लेखा किया जाना चाहिए।

अन्य (Other)

(7) ऐसे माल का मूल्यांकन जो बिका नहीं है. उचित रूप से किया जाना चाहिए। स्टाक को प्रायः चिट्ठमावक्रय-मूल्य पर लिखना चाहिए। अन्य सम्पत्तियों को चिटठे में उचित हास काटकर दिखाना चाहिए।

(8) अगर कम्पनी की कोई सम्पत्ति विदेशों में है, तो देखना चाहिए कि उस देश की मुद्रा में आवश्यक परिवर्तन उचित रूप से किया गया है या नहीं।

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14.चाय कम्पनी

(TEA MANUFACTURING COMPANIES)

सामान्य सूचनाएं (General Informations)

(1) चाय के बगीचे में काम करने के लिए क्या-क्या अनुबन्ध हुए हैं, उन सबका अध्ययन करना। चाहिए।

(2) उस कम्पनी में आन्तरिक निरीक्षण प्रणाली सन्तोषजनक है या नहीं।

(3) अंकेक्षक को देखना चाहिए कि कम्पनी के खाते कहां रखे जाते हैं। अगर वे जहां बगीचा है, वहां न रखे जाकर किसी अन्य स्थान पर रखे जाते हैं तो लेखों को बगीचों के प्रबन्धक द्वारा दिए गए लेखों से मिलाना चाहिए।

(4) उसे बगीचे के प्रबन्धक द्वारा दिए गए लेखों को जांचना चाहिए और देखना चाहिए कि उनका लेखा ठीक से किया गया है या नहीं।

(5) कम्पनी की आय का साधन चाय की बिक्री है। इस बिक्री के मिलान के लिए एजेण्टों एवं दलालों के विवरणों को मिलाना चाहिए। इस सम्बन्ध में रोकड़ बही की भी पूर्ण जांच करनी चाहिए। चाय के उत्पादन की जांच भी ठीक तरीके से करनी चाहिए।

व्यय (Expenditure)

(6) खर्चों के सम्बन्ध में अंकेक्षक को सर्वप्रथम देखना चाहिए कि पूंजीगत एवं आयगत व्ययों में अन्तर किया गया है या नहीं।

(7) मजदूरों को भुगतान किस प्रकार किया जाता है। मजदूरी का लेखा उचित रूप से करना चाहिए। अगर उन्हें कुछ मजदूरी पेशगी दे दी गयी है, तो उसका भी उचित लेखा होना चाहिए।

(8) अगर कोई आबकारी-कर (Excise duty) या अन्य कर दिया गया है, तो उसे आबकारी रजिस्टर में किए गए लेखों से मिलाना चाहिए। अन्य (Other)

(9) कम्पनी की सम्पत्तियों एवं दायित्वों का मूल्यांकन ठीक प्रकार होना चाहिए। चिट्टे में दिए गए स्टॉक की जांच प्रबन्धक के विवरण से करनी चाहिए। सम्पत्तियों पर उचित ह्रास का प्रबन्ध करना चाहिए।

15. शक्कर कम्पनी

(SUGAR COMPANIES)

सामान्य सूचनाएं (General Informations)

(1) अंकेक्षक को उस कम्पनी में पायी जाने वाली आन्तरिक निरीक्षण प्रणाली का अध्ययन करना चाहिए।

(2) इसके बाद उसे शक्कर की जांच उत्पादन रजिस्टर से करनी चाहिए और उससे सम्बन्धित अन्य खातो को भी जांचना चाहिए। इनके स्टॉक को प्रतिदिन के विवरण और राज्य नियमों के अनुसार रखे गए रजिस्टरी। से मिलाना चाहिए। अगर किसी वर्ष शक्कर के उत्पादन में कमी हो गयी है तो उसकी जांच करनी चाहिए।

आय (Income)

(3) शक्कर कम्पनी की आय का साधन शक्कर की बिक्री है। अतः उस बिक्री का रोकड़ पुस्तक से। मिलान करना चाहिए।

(4) अगर उस कम्पनी को अन्य पदार्थों से भी कोई आय होती है, तो उसका भी उचित लेखा किया। जाना चाहिए।

व्यय (Expenditure)

(5) पंजी-व्यय और आय-व्यय में अन्तर स्पष्ट कर लेना चाहिए।

(6) शक्कर पर दिया गया आबकारी-कर एवं गन्ना-कर (Cane Cess) का भी उचित लेखा होना चाहिए।

(7) मजदूरों को कितना मजदूरी दी जाती है और उसका लेखा किस प्रकार किया जाता है और यदि । कुछ पेशगी दी गयी है तो उसका भी लेखा उचित ढंग से किया जाना चाहिए।

(8) गन्ना किस भाव पर क्रय किया गया है। यदि वह कम्पनी के स्वयं के फार्म पर पैदा किया जाता है तो उसके खचे का उचित लेखा होना चाहिए। अगर कम्पनी परे वर्ष काम नहीं करती तो उसके खों का समायोजन ठीक-ठीक होना चाहिए।

(9) गन्ने को पेरने के खर्चों का भी उचित लेखा किया जाना चाहिए।

अन्य (Other)

(10) कम्पनी की मशीनों एवं इमारतों पर उचित हास का प्रबन्ध किया जाना चाहिए। मोटर, ट्रक एव। ठेलों पर जो गन्ने को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हैं, उचित दर से हास काटना चाहिए।

16. समाचार-पत्र, पत्रिकाएं एवं दैनिक

(NEWSPAPERS, MAGAZINES AND DAILIES)

सामान्य सूचनाएं (General Informations)

(1) ऐसी संस्था में अंकेक्षक को देखना चाहिए कि आन्तरिक निरीक्षण प्रणाली सन्तोषजनक है, अथवा नहीं।

आय  (Income)

(2) समाचार-पत्र, पत्रिकाओं एवं दैनिक, आदि से प्राप्त होने वाले साधारण शुल्क एवं विज्ञापन शुल्क का सत्यापन उचित प्रमाणकों की सहायता से करना चाहिए।

(3) एजेण्टों, फेरी वालों, बुक स्टॉल एवं ग्राहकों से प्राप्त रकम का उपयुक्त लेखा किया जाना चाहिए। इस सम्बन्ध में एजेण्टों को भेजी गयी और वापसी आयी प्रतियों का भी हिसाब करना चाहिए।

(4) जो पत्र बिकने से बच जाते हैं, उनकी बिक्री का क्या साधन अपनाया जाता है, और उससे प्राप्त राशि का लेखा किस प्रकार होता है।

व्यय (Expenditure)

(5) जो व्यक्ति समाचार-पत्रों में लेख लिखते हैं उन्हें कुछ पारिश्रमिक दिया जाता है। इसकी जांच उनसे प्राप्त रसीदों से करनी चाहिए।

(6) समाचार-पत्रों को प्रसिद्ध बनाने के लिए जो भी खर्च किया जाता है, उसका उचित लेखा होना चाहिए।

(7) फेरी वालों को दिए गए पारिश्रमिक का भी उचित लेखा होना चाहिए।

अन्य (Other) _

(8) मशीन, ब्लॉक, टाइप पर उचित दर से ह्रास लगाना चाहिए। इसके अतिरिक्त संदिग्ध ऋण के लिए भी संचय करना चाहिए।

(9) मान-हानि, आदि के दावों के लिए उचित संचय रखना चाहिए।

17. सूत्रधारी कम्पनी

(HOLDING COMPANIES)

एक सूत्रधारी कम्पनी वह है जो किसी दूसरी कम्पनी की या तो 50% से अधिक पंजी रखती है या उसके अतिरिक्त प्रबन्ध में उसका आधे से अधिक भाग होता है। इसका अंकेक्षण करते समय अंकेक्षक को निम्न बातें ध्यान में रखनी चाहिए :

(1) एक कम्पनी के स्मारक-पत्र और अन्तनियमो का अध्ययन करना चाहिए।

(2) इसके साथ-साथ इस बात का भी ध्यान रखा जाए कि वैधानिक आयोजनों का पूर्णरूपेण पालन किया गया है या नहीं।

(3) आन्तरिक निरीक्षण प्रणाली सन्तोषजनक है या नहीं।

(4) इस कम्पनी ने सहायक कम्पनी के कितने अंश रखे हैं एवं उनको किस प्रकार पस्तकों में दिखाया। गया है।

(5) सहायक कम्पनी को दिए गए ऋण का भी उचित लेखा पस्तकों में किया जाना चाहिए।।

(6) सूत्रधारी कम्पनी को एक संघनित चिट्ठा (Consolidated Balance Sheet) बनाना चाहिए। इसम। सम्पूर्ण नियमों का पालन किया जाना चाहिए। चिठे में सब समायोजनाएं हो जानी चाहिए

(7) सहायक कम्पनी की हानि के लिए संचय की व्यवस्था कर ली गयी है या नहीं, यह भी देखना चाहिए।

सूत्रधारी कम्पनी और अंकेक्षक

(HOLDING COMPANY AND AUDITOR DUTY)

भारतीय कम्पनी अधिनियम के अन्दर कम्पनी के अंकेक्षक पर कोई भी अतिरिक्त कार्य नहीं सौपा गया है, फिर भी अंकेक्षक को निम्न बातों का पूर्ण ध्यान रखना आवश्यक है

(1) सूत्रधारी व सहायक कम्पनियों के आपसी लेन-देन का पर्ण सत्यापन–अंकेक्षक का यह दायित्व बनता है कि दोनों कम्पनियों के बीच हुए सभी लेन-देनों की पूर्ण जांच करे तथा उन्हें सत्यापित भी करे।।

(2) नियमों का पूर्ण पालन कम्पनी के अंकेक्षक को अंकेक्षण के समय कम्पनी अधिनियम, पार्षद सीमा नियम व पार्षद अन्तर्नियमों का पालन पूर्ण रूप से करना चाहिए।

(3) अंशों का मूल्यांकनजो भी अंश सहायक कम्पनी के द्वारा सूत्रधारी कम्पनी को दिये जा रहे हों, उसका उचित मूल्यांकन करना तथा सत्यापित करना।

(4) लाभांश का बंटवारे का सत्यापन सूत्रधारी कम्पनी ने अगर कोई भी लाभांश कभी भी प्राप्त किया हो, तो उसको देखना तथा सत्यापित करना अंकेक्षक का कर्तव्य है। ।

(5) मिश्रित चिठे का सत्यापन वैसे तो कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत मिश्रित चिट्ठा बनना आवश्यक नहीं है, फिर भी अगर चिट्ठा बनाया जाता है तो नियमों के आधार पर उसको सत्यापित करना आवश्यक है।

(6) रिपोर्ट बननाअंत में अंकेक्षक को अपनी रिपोर्ट बनानी चाहिए और यदि उसको खातों में कोई भी कमी या शंका हो तो उसका उल्लेख करना चाहिए।

सूत्रधारी कम्पनी की स्थापना के प्रमुख उद्देश्य

(MAIN OBJECTS OF ESTABLISHMENT OF HOLDING COMPANY)

(1) आर्थिक संकट से ग्रसित कम्पनियों को आर्थिक सहायता प्रदान करना।

(2) आपसी प्रतियोगिता को समाप्त करना तथा व्यापारिक समन्वय स्थापित करना।

(3) एकीकरण एवं संविलयन की विशेषताओं को दूर करने के लिए।

(4) सरकारी सहायता हेतु।

सूत्रधारी कम्पनी के लाभ

(ADVANTAGES OF HOLDING COMPANY)

सूत्रधारी कम्पनी के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं

(1) सूत्रधारी कम्पनी का अस्तित्व स्थायी होता है, क्योंकि यह कम्पनी अधिनियम के अंतर्गत बनती है।

(2) सूत्रधारी कम्पनी सहायक कम्पनी का ही भाग होती है, अतः इसका लाभ दोनों को बराबर होता है। (3) सूत्रधारी कम्पनी के निर्माण से कम्पनी की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।

(4) सूत्रधारी कम्पनी द्वारा किसी भी समय अंशों का विक्रय कर सहायक कम्पनी के दायित्व समाप्त कर सकती है।

(5) सूत्रधारी कम्पनी का अस्तित्व व सहायक कम्पनी का अस्तित्व एकदम अलग होता है। इसका प्रभाव एक-दूसरे पर नहीं पड़ता है।

सूत्रधारी कम्पनी के दोष

(DISADVANTAGES OF HOLDING COMPANY)

(1) सत्रधारी कम्पनी के निर्माण से पूंजी का केन्द्रीयकरण हो जाता है। इससे औद्योगिक विकास कुछ। ही लोगों के हाथ में आ जाता है।

(2) सुत्रधारी कम्पनी के निर्माण से संस्था के व्यय काफी मात्रा में बढ़ जाते हैं।

(3) सत्रधारी व सहायक कम्पनी का अस्तित्व अलग होने से इसका प्रभाव साख पर पड़ता है।

(4) सहायक कम्पनी के लाभ पर 69% तक प्रबन्धकों के हाथ में आता है। शेष 31% ही सहायक कम्पनियों को मिलता है। इस प्रकार पूंजी का शोषण किया जाता है।

प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1 प्रन्यास किसे कहते हैं?

What do you mean by Trust?

2. एक शिक्षा संस्था के प्रॉविडेण्ट फण्ड के खातों का अंकेक्षण किस प्रकार किया जाएगा?

How accounts of provident fund of Educational Institute shall be audited?

3. आप अपने कॉलेज के खातों का अंकेक्षण करने के लिए अंकेक्षक नियुक्त किए गए है। आप किस प्रकार अपना कार्य करेंगे?

You have been appointed to audit accounts of your College. How will you proceed?!

4. एक बिजली-पूर्ति कम्पनी के खातों के अंकेक्षण करने में प्रयुक्त प्रक्रिया का उल्लेख कीजिए।

Describe procedure involved in audit of an Electricity Supply Company.

5. एक विश्वविद्यालय के खातों का अंकेक्षण करते समय आप जिन विशेष बातों की ओर ध्यान देंगे, उनका विवेचना कीजिए।

What points are to be considered to audit amounts of a University.

6. एक सिनेमा कम्पनी के खातों के अंकेक्षण में आने वाली मुख्य बातों की विवेचना कीजिए।

Explain major points involved in audit of accounts of a Cinema Company.

7. एक बीमा कम्पनी अथवा कोयला खान कम्पनी के खातों का अंकेक्षण करते समय आप जिन मुख्य बातों पर विशेष ध्यान देंगे, उनकी विवेचना कीजिए।

Describe various points which you will keep into consideration while auditing accounts of an Insurance Company or Coal Mining Company.

8. एक क्लब अथवा होटल के खातों का अंकेक्षण करते समय ध्यान रखने वाली विशेष बातों की विवेचना कीजिए।

Describe various issues involved during audit of accounts in case of a Club or Hotel.

9. ऐसी पांच बातों को समझाइए जिन पर आप एक धर्मार्थ ट्रस्ट द्वारा संचालित अस्पताल का अंकेक्षण करते समय विशेष ध्यान देंगे।

Explain five major points that you will keep in mind while conducting audit of a hospital run by a Charitable Trust?

10. यदि आप एक साधारण साझेदारी अंकेक्षक नियुक्त किए गए हैं तो बताइए कि वह कौन-सी बातें हैं जिन पर आप अपना ध्यान देंगे।

If you have been appointed auditor by a general partnership, what shall be key issues to be considered?

11. सरकारी समितियों अथवा चाय कम्पनी के अंकेक्षण में जिन मुख्य बातों पर अपना ध्यान देंगे. उनकी सविस्तार विवेचना कीजिए।

Explain in details the issues which shall be kept into consideration while auditing accounts of Co-operative Societies and Tea Company.

लघु उत्तरीय प्रश्न

1 प्रन्यास किसे कहते हैं?

2. एक शिक्षा संस्था के प्रॉवीडेण्ट फण्ड खातों का अंकेक्षण किस प्रकार किया जाएगा?

3. एक विद्युत प्रदाय प्रमण्डल अथवा अधिकोष प्रमण्डल के अंकेक्षण में आने वाली माय

4. मण्डल के खातों का अंकेक्षण करते समय आप किन मुख्य बातों पर ध्यान देंगे?

5. होटल का अंकेक्षण किस प्रकार होगा?

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

1 चाय कम्पनी के खातों का अंकेक्षण कैसे होगा?

2. शिक्षा-संस्था में खातों का अंकेक्षण ऐच्छिक है या अनिवार्य ?

3. कोयले की खान में अंकेक्षण की नियुक्ति कैसे होगी?

4. बीमा कम्पनी के अंकेक्षण की व्यवस्था क्या होती है?

 

 

 

 

 

chetansati

Admin

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