BCom 2nd Year Economic Effects Public Expenditure Study Material Notes in Hindi

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BCom 2nd Year Economic Effects Public Expenditure Study Material Notes in Hindi

BCom 2nd Year Economic Effects Public Expenditure Study Material Notes in Hindi: Effects of Public Expenditure Important Questions  Examinations Long Answer Question Short Answer Questions ( Most Important Notes For BCom 2nd year Examination )

Economic Effects Public Expenditure
Economic Effects Public Expenditure

BCom 2nd Year Canons Classification Public Expenditure Study Material Notes In Hindi

लोक/सार्वजनिक व्यय के आर्थिक प्रभाव

Economic Effects of Public Expenditure]

“महत्त्वपूर्ण सरकारी व्यय बढ़ती हुई आवश्यकताओं से अवश्य ही तीव्रता से प्रभावित हुए हैं। यद्यपि कुछ यायों में तेजी से वृद्धि हुई हैं, जबकि कुछ अन्य व्ययों को कठिनता से ही पर्याप्त कहा जा सकता है। अर्द्धशहरी क्षेत्रों में राज्य तथा स्थानीय स्तर पर शिक्षा, राजमार्ग, पानी तथा सफाई सविधाओं के विस्तार तथा संघ सरकार द्वारा सुरक्षा, लोक ऋणों पर ब्याज तथा कृषि समर्थन मूल्यों पर होने वाला व्यय सरकार के कल परिव्यय का एक बड़ा हिस्सा होता है। कठोर बजटीय अनुशासन के बावजूद इन मदों के व्यय में महत्त्वपूर्ण वृद्धि हुई हैं जिससे ये कार्यक्रम अपेक्षाकृत मुक्त रहे हैं।            टेलर

परम्परागत अर्थशास्त्री अहस्तक्षेप की नीति में विश्वास करते थे तथा सार्वजनिक व्यय को अनुत्पादक मानते थे। इसलिए एडम स्मिथ राज्य की क्रियाओं को केवल न्याय, पुलिस तथा सेना तक ही सीमित रखना चाहते थे। उनका विचार था कि सार्वजनिक व्यय अनुत्पादक श्रम के लिए किए गए भुगतान होते हैं और इसलिए उनसे राष्ट्रीय उत्पादन में किसी प्रकार की कोई वृद्धि नहीं होती।

किन्तु आधुनिक अर्थशास्त्रियों का दृष्टिकोण इनसे सर्वथा भिन्न है। आधुनिक अर्थशास्त्रियों का विचार है कि सार्वजनिक व्यय से सार्वजनिक हित प्रभावित होता है। वर्तमान में सार्वजनिक व्यय का महत्त्व बढ़ता जा रहा है। शिक्षा, चिकित्सा, मनोरंजन आदि पर किया गया व्यय प्रत्यक्ष रूप से समाज की उत्पादन शक्ति को प्रभावित करता है। सार्वजनिक व्यय रोजगार, धन के वितरण एवं उत्पादन को प्रभावित करके अर्थव्यवस्था में वांछित परिवर्तन ला सकता है। सार्वजनिक व्यय द्वारा प्रभावोत्पादक माँग में वृद्धि होती है जिससे विनियोग व रोजगार में वृद्धि होती रहती है।

सार्वजनिक व्यय के आर्थिक प्रभावों का अध्ययन मुख्यतया तीन भागों में किया जा सकता है

(i) उत्पादन पर प्रभाव,

(ii) वितरण पर प्रभाव,

(iii) अन्य प्रभाव।

Economic Effects Public Expenditure

सार्वजनिक व्यय के प्रभाव

(Effects of Public Expenditure)

(A) उत्पादन पर प्रभाव (Effect on Production)-रकार का प्रत्येक व्यय उत्पादक होता है चाहे वह प्रत्यक्ष हो या परोक्ष। इसलिए सार्वजनिक व्यय का उत्पादन पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग उत्पादन तथा राष्ट्रीय आय में प्रत्यक्ष रूप से अंशदान करते हैं, परन्तु जो व्यय सामाजिक सेवाओं पर किए जाते हैं वह जनता की कार्यकुशलता बढ़ा कर अप्रत्यक्ष रूप से उत्पादन बढ़ाता है। सार्वजनिक व्ययों के उत्पादन पर पड़ने वाले प्रभावों को निम्न शीर्षकों में रखा जा सकता है

(i) कार्य, बचत विनियोग करने की क्षमता पर प्रभाव (Effects on Ability to Work, Save and Invest)-राज्य द्वारा किया गया व्यय व्यक्तियों के कार्य करने की शक्ति को प्रभावित करता है जिसे निम्न तीन वर्गों के अन्तर्गत रखा जा सकता है

 (1) क्रय शक्ति में वृद्धि करकेराजकीय व्यय से अनेक व्यक्तियों को आय प्राप्त होती है और उनकी क्रय-शक्ति बढ़ती है। पेंशन भत्ते, बेकारी व बीमा लाभ, वस्तुओं और सेवाओं पर किया गया व्यय सभी व्यक्तियों की क्रय-शक्ति में वृद्धि करते हैं। इससे इनमें अधिक वस्तुओं को खरीदने और उपभोग स्तर को ऊँचा करने की क्षमता बढ़ती है, उनकी कार्यक्षमता में वृद्धि होती है और दीर्घकाल में उत्पादन में वृद्धि होती है। इस प्रकार राजकीय व्यय देश में उत्पादन को परोक्ष रूप से प्रभावित करता है।

(2) वस्तुओं एवं सेवाओं की सुविधा-सरकार अपने व्यय द्वारा व्यक्तियों, विशेषकर निर्धन व्यक्तियों को, वस्तुएँ एवं सेवाएँ प्रदान करके उनकी कार्यक्षमता को बढ़ा सकती है। उदाहरण के लिए, निःशुल्क शिक्षा, सस्ती चिकित्सा सुविधाएँ, सस्ते व कम किराये वाले मकान आदि से व्यक्तियों की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन में भी वृद्धि होती है।

(3) विशेष सुविधाएँराज्य अपने व्यय द्वारा कुछ ऐसी सुविधाएँ प्रदान कर सकता है कि जिनसे व्यक्तियों को अपनी उत्पादक क्रियाओं को सम्पन्न करने में सहायता मिले और अधिकाधिक व्यक्तियों में पादन बढ़ाने में रुचि उत्पन्न हो। उदाहरणतः परिवहन व संचार के साधनों के विकास द्वारा, सिंचाई विधाओं में विस्तार से तथा जल विद्युत शक्ति के विकास से लोगों की उत्पादन शक्ति में कई गुना वृद्धि होती है।

Economic Effects Public Expenditure

प्रो० डाल्टन के अनुसार, “इसमें थोड़ा-सा भी सन्देह नहीं हो सकता कि योग्यतापूर्वक ढंग से किए गए सार्वजनिक व्यय से उत्पादन में इस प्रकार वृद्धि होनी चाहिए कि यदि करारोपण या अन्य किसी उपाय द्वारा कमी आती हो, जो कि इसे वित्त प्रबन्धन करने के लिए हो, बशर्ते उन्हें सावधानीपूर्वक चुना गया हो तो उस नियन्त्रण को पार कर देगा।

इसके विपरीत यदि सार्वजनिक व्यय अनुत्पादक कार्यों पर किया जाता है अथवा यदि सार्वजनिक व्यय मादक पदार्थ या अन्य हानिकारक पदार्थों के उत्पादन पर किया जाता है तो लोगों की कार्यक्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है जिससे उनकी कार्य करने, बचत करने की शक्ति कम होती है। इसी प्रकार शिक्षा व चिकित्सा संस्थानों व सार्वजनिक निर्माण कार्यों के स्थान पर यदि होटलों या सिनेमाघरों का निर्माण किया जाता है तो इससे भी लोगों के काम करने, बचत करने व निवेश करने की योग्यता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

(i) कार्य, बचत विनियोग करने की इच्छा पर प्रभाव (Effects on the will to Work, Save and Invest)-सार्वजनिक व्यय का काम करने, बचत करने व निवेश करने की इच्छा पर प्रभाव काफी सीमा तक सरकारी व्यय की प्रकृति तथा सरकार की नीति पर निर्भर करता है, परन्तु इस प्रभाव का अध्ययन करना कठिन होता है, क्योंकि इसका सम्बन्ध मानसिक स्थिति से होता है। इस दृष्टि से सार्वजनिक व्यय दो प्रकार का होता है

(1) वर्तमान व्यय (Present Expenditure)-वर्तमान सरकारी व्यय से व्यक्तियों की आय में वृद्धि होती है तथा वे कम काम करके ही उतना धन प्राप्त कर लेते हैं जितना उनकी आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने के लिए पर्याप्त हो और इस प्रकार उसके कार्य करने की इच्छा कम होती है, किन्तु यह तर्क पूरी तरह सत्य नहीं है, क्योंकि प्रथम, प्रत्येक व्यक्ति अपने स्तर को निरन्तर ऊँचा उठाने की इच्छा रखता है। तथा द्वितीय, यदि किसी व्यक्ति के लिए एक निश्चित जीवन-स्तर प्राप्त करने के पश्चात् कार्य करने की इच्छा कम हो जाती है तो इस कठिनाई को उसकी आय में धीरे-धीरे वृद्धि करके दूर किया जा सकता है।

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(2) भविष्य सम्बन्धी व्यय (Future Expenditure)-दि सार्वजनिक व्यय भविष्य को अधिक सुनिश्चित व सुरक्षित बनाता है। जैसे-वृद्धावस्था पेंशन, भविष्य निधि के लाभ, बीमारी व बेरोजगारी के भत्ते आदि तो लोगों के कार्य करने व बचत करने की इच्छा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसी प्रकार यदि व्यक्ति यह समझता है कि उसकी वर्तमान बचत तथा निवेश से भविष्य में उसे कोई आय प्राप्त नहीं होगी तो उसकी बचत करने व निवेश करने की इच्छा कम हो जाएगी।

डॉल्टन के अनुसार, “यदि आय की माँग बेलोचदार है तो काम करने व बचत करने की इच्छा पर कुछ प्रतिबन्ध अवश्य रहेंगे।”

मनुष्य के काम करने बचत करने की इच्छा निम्नलिखित दशाओं में कम नहीं होगी

(i) जब व्यक्तियों को सरकार से मिलने वाली सहायता सशर्त हो।

(ii) जब व्यक्तियों की आय की माँग बेलोच हो तथा सरकारी सहायता से पूरी न होती हो। इसके विपरीत उसके कार्य करने व बचत करने का इच्छा में वृद्धि हो जाएगी, यदि वे यह समझते हैं कि उनकी वर्तमान बचतें तथा निवेश सुरक्षित हैं और निवेशों के परिणामस्वरूप भविष्य में उन्हें अच्छे लाभांशों की प्राप्ति होगी।

(iii) आर्थिक साधनों के अन्तरण पर प्रभाव (Effects on Diversion of Economic Resources)-सार्वजनिक व्यय आर्थिक साधनों के स्थानान्तरण को प्रोत्साहित करता है, क्योंकि आर्थिका साधनों के पुनर्वितरण का प्रभाव उत्पादन पर पड़ता है। डॉल्टन का मत है कि “भौतिक पूँजी का विकास मानव पूंजी या ज्ञान की लागत पर करना एक भूल है जिससे हानि होगी और उत्पादन नहीं बढ़ेगा।”

1 प्रत्यक्ष तथा परोक्ष अन्तरण (Direct and Indirect Diversion)-प्रत्यक्ष अन्तरण में राज्य देश में उपलब्ध साधनों का स्वयं उपयोग करता है, जबकि परोक्ष अन्तरण में सरकार साधनों का स्वयं उपयोग न करके नागरिकों में रुचि पैदा करती है कि वे साधनों का दूसरे ढंग से उपयोग करें। उदाहरणतः। सिंचाई साधनों का प्रयोग कृषि क्षेत्र में तथा विद्युत-शक्ति का विकास उद्योग धन्धों में उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है। इस प्रकार सार्वजनिक व्यय साधनों के विभिन्न प्रयोगों को हस्तान्तरित करके उत्पादन में वृद्धि के लिए साधनों के प्रयोग पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।

सार्वजनिक व्यय संसाधनों का विभिन्न प्रयोगों में अन्तरण करता है। यह आर्थिक साधनों को निजी उपयोग से सरकारी उपयोग की ओर स्थानान्तरित कर देता है। डाल्टन प्रतिरक्षा पर किए गए व्यय को आर्थिक अपव्यय मानते हैं। किन्तु यह सही नहीं है, क्योंकि प्रतिरक्षा पर किए जाने वाला सरकारी व्यय किसी भी राष्ट्र में आन्तरिक शान्ति तथा उसकी बाह्य सुरक्षा की दृष्टि से अत्यन्त आवश्यक तथा महत्वपूर्ण होता है और इसके बिना उस देश के आर्थिक कल्याण में वृद्धि नहीं की जा सकती। आधारभूत सेवाओं के निर्माण पर किया जाने वाला सार्वजनिक व्यय लोगों को नए-नए उद्योगों को खोलने तथा लगाने के लिए तथा चालू उद्योगों का उत्पादन बढ़ाने के लिए सहायक होता है।

2. वर्तमान से भविष्य में हस्तान्तरणराज्य भावी पीढ़ी का संरक्षक होता है और इसलिए सिंचाई, विद्युत तथा परिवहन आदि परियोजनाओं पर, जिनका लाभ भावी पीढ़ी को मिलता है, राज्य व्यय करता है। वर्तमान में जब सरकार प्रतिरक्षा, संरक्षण एवं सामाजिक सुरक्षा पर व्यय करती है तो व्यक्ति के साधनों का हस्तान्तरण स्वतः ही वर्तमान से भविष्य की ओर हो जाता है। इस सम्बन्ध में प्रो० हैन्सन का विचार है, “वर्तमान समय में पहले की अपेक्षा अभौतिक सम्पत्ति; जैसे-वैज्ञानिक ज्ञान, योग्यता, तकनीकी प्रशिक्षण, व्यक्तिगत स्वास्थ्य एवं कार्य क्षमता, सामाजिक एकता और सहयोग स्थापित करने की क्षमता अधिक महत्व रखती है।”

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3.कीमतों में स्थिरता के लिए अन्तरणआर्थिक स्थिरता अर्थात पर्ण रोजगार तथा मल्यों के स्थायित्व को बनाए रखने के लिए भी आर्थिक साधनों के स्थानान्तरण का महत्व होता है। मन्दी के समय में सार्वजनिक निर्माण कार्यों पर व्यय से प्रभावी माँग में वृद्धि होगी, निवेश में वृद्धि होगी तथा रोजगार के अधिक अवसर उपलब्ध होंगे। इस प्रकार सरकारी व्यय की मदद से निवेश को बचतों के बराबर किया जा सकता है।

4. मानवीय पूँजी निर्माणपूँजीवादी व्यवस्था में अधिकांश साधन भौतिक पूँजी में लगे होते हैं। मानवीय पूँजी में साधनों का बहुत कम उपयोग होता है। देश के आर्थिक विकास में केवल भौतिक पूँजी। की ही आवश्यकता नहीं होती है। डाल्टन के अनुसार, “मानवीय पूँजी अथवा ज्ञान के स्थान पर भौतिक पँजी के विकास को प्रोत्साहन एक गलत नीति है जो उत्पत्ति को बढ़ाने की नहीं वरन् घटाने की प्रवृत्ति रखती है गजब सरकार स्वास्थ्य, शिक्षा, गृह-व्यवस्था अथवा सामाजिक सरमा थाति र तारा करती है तथा बच्चों को पौष्टिक भोजन प्रदान करती है तो मानव पूँजी बढ़ती है तथा उत्पादन बढ़ता है।

5. क्षेत्रीय अन्तरणसार्वजनिक व्यय द्वारा आर्थिक साधनों का एक स्थान से दसरे स्थान को भा। स्थानान्तरण किया जाता है। आर्थिक साधनों के स्थानान्तरण से उत्पादन शक्ति बढ़ती है और प्रायः प्रादेशिक या क्षेत्रीय विषमताएँ कम होती हैं। ऋण, उपदान तथा अन्य सुविधाएँ पिछड़े क्षेत्रों के आर्थिक विकास को तीव्रतर करने में सहायक होते हैं।

उत्पादन पर सार्वजनिक व्यय के प्रभाव के सम्बन्ध में डॉल्टन का मत है कि “उत्पादन के दृष्टिकोण से सार्वजनिक व्यय के वे प्रकार समाज के लिए अच्छे माने जाते हैं जो यदि आवश्यक रकम को निजी हाथों में छोड़ दिया जाता तो उसकी तुलना में वह (सार्वजनिक क्षेत्र में) उत्पादन शक्ति में वृद्धि करते हैं।करारोपण सार्वजनिक व्यय के तुलनात्मक प्रभावों का जिक्र करते हुए डाल्टन लिखते हैं कि, ‘जहाँ केवल कराधान को लिया जाएगा वहाँ उससे उत्पादन में कमी होगी तथा जहाँ केवल सार्वजनिक व्यय को लिया जाएगा वहाँ उत्पादन में निश्चित वृद्धि होगी।”

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(B) वितरण पर प्रभाव (Effect on Distribution)-सार्वजनिक व्यय केवल उत्पादन पर ही प्रभाव नहीं डालता, अपितु यह धन का समान एवं न्यायपूर्ण वितरण करने में भी सहायक है। इस असमानता को दूर करने के लिए राज्य आंशिक रूप से सार्वजनिक व्यय का सहारा लेता है अर्थात् अमीर व्यक्तियों पर ऊँचे कर लगाकर उससे प्राप्त आय को निर्धन वर्ग पर व्यय करता है। डॉ० डाल्टन के अनुसार, “सार्वजनिक व्यय की वह पद्धति उत्तम मानी जाती है जो कि आय की असमानता को दूर करने की शक्तिशाली क्षमता रखती है।

सर्वप्रथम जर्मन अर्थशास्त्री वेगनर ने बताया कि राजस्व या करारोपण का उद्देश्य केवल आय प्राप्त करना ही नहीं है, बल्कि देश में धन का उचित ढंग से वितरण सम्भव बनाना है। वितरण इस ढंग से किया जाना चाहिए कि उससे सामाजिक कल्याण में वृद्धि सम्भव हो सके।

सार्वजनिक व्यय तीन प्रकार के हो सकते हैं

(i) प्रगतिशील व्यय (Progressive Expenditure)-समाज में जिस वर्ग की आय कम हो उसे उसी अनुपात में व्यय का अधिक लाभ प्रदान किया जाएँ तो उसे प्रगतिशील सार्वजनिक व्यय कहेंगे। उदाहरणतः निर्धनों को निःशुल्क शिक्षा व चिकित्सा सहायता देने के लिए किया गया व्यय। इससे वितरण की विषमताएँ कम होंगी।

(ii) आनुपातिक व्यय (Proportional Expenditure)-यदि समाज के विभिन्न वर्ग के लोगों को उनकी आय के अनुपात में ही सार्वजनिक व्यय के लाभ दिए जाए तो उसे आनुपातिक व्यय कहते हैं। इस व्यय से वितरण की विषमताएँ यथावत् रहेंगी।

(iii) प्रतिगामी सार्वजनिक व्यय (Regressive Expenditure)-यदि उच्च आय वाले वर्ग के लोगों को अधिक लाभ दिए जाएँ तथा निर्धन वर्ग के लोगों को कम लाभ दिए जाएँ तो सार्वजनिक व्यय प्रतिगामी प्रकृति का कहलाएगा। इससे वितरण की विषमताएँ बढ़ जाएँगी।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि प्रगतिशील व्यय के द्वारा ही आय की असमानता को दूर किया जा सकता है। प्रगतिशील सार्वजनिक व्यय के निम्न रूप हो सकते हैं

(I) नकद अनुदान (Cash Grants)-धन की वह अदायगी जो कि सरकार द्वारा प्राप्तकर्ता को नकद रूप में दी जाती है, नकद अनुदान कहलाती है। उदाहरणतः वृद्धावस्था पेंशन, बीमारी. बेरोजगारी तथा दुर्घटना के समय मिलने वाले लाभ। ये सभी अनुदान प्रगतिशील प्रकृति के हैं, क्योंकि ये निम्न आय वाले वर्गों के पक्ष में आय का पुनर्वितरण करते हैं, आय एवं धन की विषमताओं को कम करते हैं तथा __ आर्थिक व सामाजिक लाभ में वृद्धि करते हैं।

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(II) निःशुल्क या सस्ती वस्तुएँ एवं सेवाएँ (Free or Cheap Goods and Services )-निःशुल् शिक्षा, पौष्टिक बाल आहार की व्यवस्था, निःशुल्क स्वास्थ्य सेवा आदि धनी वर्ग की अपेक्षा निर्धन वर्ग के। लोगों को अधिक लाभ पहुंचाते हैं। अतः इनसे आर्थिक विषमताएँ कम होती हैं।

प्रगतिशील सार्वजनिक व्यय काम करने तथा बचत करने की इच्छा पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता। है। तीव्र प्रगतिशील सार्वजनिक व्यय के लिए लगाए गए तीव्र प्रगतिशील कर करदाताओं के कठिन श्रम करने व अधिक बचत करने की इच्छा को हतोत्साहित कर सकते हैं। डॉ० डॉल्टन के अनुसार, “यदि किसी अनुदान के कारण कोई व्यक्ति उसके मुकाबले कम काम या कम बचत करता है जितना कि वह अन्य स्थिति में करता तो उससे उसकी आय बढ़ाने में अनुदान का प्रभाव कम हो जाएगा और इसके विपरीत दशा में अनुदान के प्रभावों में वृद्धि हो जाएगी।

अतः यह आवश्यक है कि सरकार उत्पादन तथा वितरण में सन्तुलन स्थापित रखे तथा उत्पादन में जो वृद्धि होती है वह कुछ ही हाथों में केन्द्रित न रहकर उसका लाभ सब में समान रूप से वितरित होना चाहिए।

(C) आर्थिक स्थिरता पर प्रभाव (Effect on Economic Stability)-सरकार के सामने सबसे प्रमुख समस्या आर्थिक स्थिरता की है। विशेष रूप से पूँजीवादी देशों में व्यापार-चक्र के भयानक प्रभाव होते हैं जिसके अन्तर्गत आर्थिक मन्दी तथा मुद्रा-प्रसार की अवस्थाएँ अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती हैं तथा अर्थव्यवस्था पंगु हो जाती है।

प्रो० कीन्स ने आर्थिक उच्चावचनों को दूर करने के लिए एक उपयुक्त राजकोषीय नीति का समर्थन किया और यह स्पष्ट किया कि मन्दी और मुद्रास्फीति के समय सार्वजनिक व्यय की भूमिका क्या होनी चाहिए।

1 आर्थिक स्थायित्व (Economic Stability)-आर्थिक स्थिरता का अर्थ है-स्थिर मूल्य-स्तरों पर पूर्ण रोजगार की स्थिति। प्रो० पीगू के अनुसार पूर्ण रोजगार तथा मूल्य स्तर में स्थिरता तब होती है जब बचतें निवेश के बराबर (S = I) हो जाती हैं। जब बचतें निवेश से अधिक (S> I) होती हैं तो अर्थव्यवस्था में सुस्ती (Recession) आ जाती है जिससे मन्दी की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इसके विपरीत जब निवेश बचतों से अधिक (I>S) हो जाते हैं तो उससे मुद्रा-स्फीति की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। मन्दी या तेजी आर्थिक स्थिरता की दशाएँ हैं।

(i) मन्दी काल में सार्वजनिक व्यय (Public Expenditure During Depression)-मन्दी अर्थव्यवस्था की वह स्थिति है जिसमें बचतें निवेश से अधिक होती हैं। इसके परिणामस्वरूप प्रभावी माँग (Effective Demand) कम हो जाती हैं जिससे कीमतें गिरने लगती हैं। गिरती हुई कीमतों से व्यापारियों को हानि होती है, उत्पादन कम होता है और रोजगार के अवसर घट जाते हैं जिससे प्रभावी माँग पुनः कम हो जाती है। उत्पादन तथा रोजगार में पुनः कटौतियाँ की जाती हैं और इस प्रकार यह दुष्चक्र चलता रहता है। ऐसी स्थिति में सार्वजनिक व्यय द्वारा सार्वजनिक निर्माण कार्य की योजनाओं को आरम्भ करके लोगों को कार्य दिया जा सकता है। इससे इन लोगों की आय में वृद्धि होगी, जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न वस्तुओं की माँग में वृद्धि हो जाएगी। यह वृद्धि अधिक उत्पादन को प्रोत्साहित करेगी जिससे रोजगार की मात्रा भी बढ़ेगी। अधिक रोजगार कुल प्रभावी माँग में वृद्धि करेगा और इस प्रकार वृद्धि का यह क्रम चलता रहेगा।

सार्वजनिक निर्माण व्यय दो प्रकार का होता है

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(I) समुद्दीपन व्यय (Pump-priming)-यह वह प्रारम्भिक व्यय है जो मन्दीकाल में अर्थव्यवस्था में आर्थिक क्रिया को आरम्भ कर फिर से जीवित करता है, इस रूप में नई क्रय-शक्ति को उत्पन्न करके व्यक्तिगत निवेश को बढ़ाया जाता है। टेलर के अनुसार, “समुद्दीपन व्यय की नीति इस विश्वास पर आधारित है कि जब सार्वजनिक धन पर्याप्त मात्रा तथा उचित परिस्थितियों में आय स्रोतों में लगाए जाएँ तो वह गिरती हुई अर्थव्यवस्था को बदलकर उसकी क्रियाशीलता को पुनः बढ़ा देंगे।”।

(II) क्षतिपूरक व्यय (Compensatory Expenditure)-मन्दी की अवधि में गैर-सरकारी व्यय की कमी को पूरा करने के लिए तथा आर्थिक स्थिरता को बनाए रखने के लिए जो सरकारी व्यय किया जाता है उसे क्षतिपूरक व्यय कहते हैं। आर्थिक स्थिरता को बनाए रखने के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि सरकार निजी निवेश की कमी को पूरा करने के लिए अपने व्यय में वृद्धि करें। टेलर के अनुसार, __ “क्षतिपूरक व्यय का अभिप्राय यह है कि आय को वांछित स्तर तक लाने के लिए व्यक्तिगत व्यय की कमी को सार्वजनिक व्यय से पूरा किया जाए मन्दी की अवधि में क्षतिपूरक व्यय का अर्थ होता है-घाटे की वित्त व्यवस्था को अपनाना। क्षतिपूरक व्यय के लिए धन की व्यवस्था करने के तीन उपाय हैं-कराधान, सार्वजनिक ऋण तथा नई मुद्रा का निर्माण।

(ii) तेजीकाल में सार्वजनिक व्यय (Public Expenditure During Inflation)-मुद्रास्फीति की दशा में निवेश बचतों से अधिक हो जाते हैं। ऐसी दशा में सरकार को चाहिए कि वह बचत का बजट (Surplus Budget) बनाए अर्थात् अपनी आय से कम व्यय करे और इस प्रकार बचत के बजट से उसे जो अतिरिक्त धन प्राप्त हो उसका उपयोग उसे अर्थव्यवस्था के उन क्षेत्रों में पूंजी उपलब्ध कराने के लिए करना चाहिए जिनमें कि पूँजी की कमी अनुभव की जा रही हो, ताकि अर्थव्यवस्था की कुल उत्पादन क्षमता में वृद्धि हो सके। साथ-साथ वस्तुओं और सेवाओं की मात्रा में भी वृद्धि की जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त अनुत्पादक सार्वजनिक व्यय में कमी की जानी चाहिए।

2. आर्थिक विकास (Economic Development)-अल्पविकसित देशों में उपक्रम तथा उद्यम का अभाव पाया जाता है। निजी उद्यम प्रायः उन देशों में विनियोजन करना नहीं चाहते जहाँ जोखिम अधिक होती है तथा शीघ्र प्रतिफल की आशा नहीं होती। इन देशों में बेरोजगारी की समस्या व्यापक रूप से विद्यमान होती है, जिसका प्रमुख कारण होता है पूँजी व तकनीकी ज्ञान की कमी।

जॉन डलर (Jhon Adlers के अनसारअतिरिक्त उत्पादन का एक उठता हआ अनपात पुँजी निर्माण में लगाना चाहिए जिससे अल्पविकसित देश के आर्थिक विकास की गति तेज हो सके।” इसके लिए दो कार्य आवश्यक हैं ।

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(i) बजट को बढ़ाना चाहिए जिससे अतिरिक्त उत्पादन का एक बढ़ता हुआ भाग विकास कार्यों पर लगाया जा सके।

(ii) सार्वजनिक व्यय का अधिक से अधिक भाग विकसित कार्यों में लगाना चाहिए।

आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए सार्वजनिक व्यय की भूमिका निम्न तथ्यों से स्पष्ट होती है

(i) सार्वजनिक उद्योगों का विकासनर्से (R. Nurksey) के अनुसार, “अल्पविकसित देशों में राज्य साहसियों का कार्य कर सकते हैं जिनका पिछड़े देशों में बहुत अभाव होता है।” स्पैगलर के अनुसार, “सरकार बहुत से कार्य स्वयं करके साहसियों की कमी पूरी कर सकती है जो इस वर्ग के द्वारा पूरे किए जाते थे। सरकार इन देशों में भारी व आधारभूत उद्योगों की स्वयं स्थापना करके आर्थिक विकास को गति प्रदान कर सकती है।

(ii) निजी क्षेत्र को प्रोत्साहनसरकार प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से सहायता देकर निजी उद्यमियों को प्रोत्साहित कर सकती है। यह सहायता कर, छूटें, आर्थिक उपदान, सस्ती साख सुविधाएँ, विद्युत एवं परिवहन सुविधाओं के विस्तार के रूप में हो सकती हैं।

(iii) सामाजिक उपरि पूँजीदेश में औद्योगीकरण को गति प्रदान करने के लिए सरकार सामाजिक उपरिपूँजी (Social Over-head Capital); जैसे-शक्ति, परिवहन, सिंचाई, संचार, शिक्षा, स्वास्थ्य व बैंकिंग आदि उपलब्ध कराती है।

(iv) मानवीय पूँजी का निर्माणआर्थिक विकास में मानव-पूँजी एक निर्धारक घटक है। शिक्षा स्वास्थ्य व आवास सुविधाओं पर व्यय करके सरकार मानव-पूँजी के निर्माण में सहायता दे सकती है।।

(v) क्षेत्रीय सन्तुलनसार्वजनिक व्यय के द्वारा सरकार क्षेत्रीय असन्तुलन को दूर कर सकती है। तथा सब क्षेत्रों को समान रूप से विकसित कर सकती है। प्रो० लेविस (Prof. Levis) के अनुसारविकास कार्यक्रमों में अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों का एक साथ विकास होना चाहिए जिससे कृषि एवं उद्योग के बीच तथा घरेलू उपभोग हेतु उत्पादन एवं निर्यात हेतु उत्पादन के बीच उचित सन्तुलन रखा जा सके।

प्रो० जे० के० मेहता के अनुसार, “सार्वजनिक व्यय एक दो धार वाला अस्त्र है। यह समदाय __की अधिक भलाई भी कर सकता है और यदि इसका निर्माण मूर्खतापूर्ण रीति से किया गया है तो यह

बहुत हानि भी पहुँचा सकता है। प्रत्येक अच्छी चीज का दुरुपयोग सम्भव है। अतः सार्वजनिक व्यय एक उपयुक्त नीति के आधार पर होना चाहिए।

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions)

प्रश्न 1. किसी देश की अर्थव्यवस्था पर सार्वजनिक व्यय के प्रभावों की विवेचना कीजिये। Examine the effects of public expenditure on the economy of country.

प्रश्न 2. “आधुनिक सरकारों की वित्तीय नीति में सार्वजनिक व्यय का आर्थिक स्थिरता प्राप्त करने में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है।” क्या आप इस तथ्य से सहमत हैं ? कारण सहित अपना उत्तर लिखिये।

The public expenditure has now become an important instrument in the fiscal policies of most modern governments, in attaining the economic stability.” Do you agree with this statement ? Give reasons for your answer.

प्रश्न 3. सार्वजनिक व्यय की उचित नीति से समाज का आर्थिक कल्याण बढ़ता है ? इस बात से आप कहाँ तक सहमत हैं ?

Wise policy of public expenditure brings economic welfare of society, how far do you agree with this statement ?

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लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions)

प्रश्न 1. सार्वजनिक व्यय का कार्य, बचत व विनियोग करने की क्षमता पर क्या प्रभाव पड़ता है ?

What is the effect of public expenditure on ability to work, save and invest ?

प्रश्न 2. सार्वजनिक व्यय का आर्थिक साधनों के स्थानान्तरण पर क्या प्रभाव पड़ता है ?

What is the effect of public expenditure on the diversion of economic resources ?

प्रश्न 3. सार्वजनिक व्यय किस प्रकार आय व धन के वितरण की विषमताओं को कम करते हैं ?

How public expenditure helps to reduce inequalities of income and wealth ?

प्रश्न 4. मन्दीकाल में सार्वजनिक व्यय किस प्रकार का होना चाहिये ?

What should be the type of public expenditure during depression ?

प्रश्न 5. सार्वजनिक व्यय आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायक है ?

How public expenditure proves helpful in economic development ?

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chetansati

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