BCom 2nd year Economic Growth Innovator Generation Opportunities Study Material Notes in Hindi

//

BCom 2nd year Economic Growth Innovator Generation Opportunities Study Material Notes in Hindi

Table of Contents

BCom 2nd year Economic Growth Innovator Generation Opportunities Study Material Notes in Hindi: Role of Entrepreneur an Introduction Function of Entrepreneur Role of Entrepreneur  in the Economic Growth of The Country study Role of  Entrepreneur in Generation of Employment Opportunities Complimenting and Supplementing Economic Growth Entrepreneur in Social Stability :

Economic Growth Innovator Generation
Economic Growth Innovator Generation

BCom 3rd Year Corporate Accounting Underwriting Study Material Notes in hindi

उद्यमी की भूमिका आर्थिक विकास में नवाचार एवं रोजगार के सजन के रूप में

(Role of Entrepreneur-In Economic Growth as an Innovator and in Generation of Employment Opportunities)

“किसी देश के आर्थिक विकास में उद्यमी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वह बिखरे हुये प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधनों को एकत्रित करता है।”

शीर्षक

  • उद्यमी की भूमिका—एक परिचय (Role of Entrepreneur-An Introduction)
  • उद्यमी के कार्य (Functions of Entrepreneur)
  • देश के आर्थिक विकास में उद्यमी की भूमिका एक अध्ययन (Role of Entrepreneur in the Economic Growth of the Country-A Study)
  • आर्थिक विकास में नवाचार के रूप में उद्यमी की भूमिका (Role of Entrepreneur in Economic Growth as an Innovator)
  • रोजगार के सृजन के रूप में उद्यमी की भूमिका (Role of Entrepreneur in Generation of Employment Opportunities)
  • पूरक तथा अनुपूरक आर्थिक विकास में उद्यमी की भूमिका (Role of Entrepreneurin Complimenting and Supplimenting Economic Growth)
  • सामाजिक स्थायित्व में उद्यमी की भूमिका (Role of Entrepreneur in Social Stability)

Economic Growth Innovator Generation

उद्यमी की भूमिकाएक परिचय

(Role of Entrepreneur-An Introduction)

वर्तमान में उद्यमी की भूमिका अत्यन्त व्यापक एवं बहु आयामी है। वह समाज में आर्थिक एवं व्यावसायिक क्रियाओं का प्रवर्तक होने के साथ-साथ नव प्रवर्तन का सूत्राधार होता है। उद्यमी उत्पादन संसाधनों को उच्च उत्पादकता वाले क्षेत्रों में हस्तान्तरित करता है। वह उपभोक्ताओं में नवीन इच्छा व माँग तथा नये उपभोग की अभिलाषा उत्पन्न करके समाज में विकास की भूमिका तैयार करता है। समाज विभिन्न वर्गों का संयुक्त रूप होता है। अनेक इकाइयां जैसे—विनियोगकर्ता, सरकार, कर्मचारी, उपभोक्ता, व्यावसायिक गृह व स्वैच्छिक संगठन इसके अभिन्न अंग होते हैं। वह स्वयं भी समाज की एक इकाई होता है एवं इसके विकास में उसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। उद्यमी के सामाजिक उत्तरदायित्व का स्वरूप अत्यन्त व्यापक होता है क्योंकि वह आर्थिक नेतृत्व का मुखिया होता है। उद्यमी के सामाजिक उत्तरदायित्व के विचार को संक्षेप में अग्र तीन भागों में बाँटा जा सकता है

 (1) परम्परागत विचार (Classical View) उद्यमी के द्वारा ईमानदारी से उपक्रम का संचालन, नियमित उत्पादन । एवं वितरण, समाज में कल्याणकारी कार्य करना इत्यादि।

(2) नव परम्परागत विचार (New Classical View) उद्यमी के द्वारा समाज की आर्थिक एवं सामाजिक कठिनाइयो पर विचार एवं उनका निवारण करना इत्यादि।

(3) आधुनिक विचार (Modern View) समाज में रचनात्मक एवं सृजनात्मक क्रियाओं को प्रोत्साहित करना एवं नये औद्योगिक उत्पादों एवं अवसरों का उपयोग कर परिवर्तनों व सुधारों को कार्यान्वित, प्रेरित व प्रोत्साहित कर समाज में विकास व गुणवत्ता में वृद्धि करना है।

Economic Growth Innovator Generation

उद्यमी के कार्य

(Functions of Entrepreneur)

उद्यमी के कार्यों के सम्बन्ध में विद्वान एकमत नहीं हैं। पारम्परिक अर्थशास्त्री उद्यमी को उस उपक्रम का मालिक मात्र समझते हैं जिसमें वह पूँजी लगाता है। वे पँजीपतियों व उद्यमियों के बीच कोई अन्तर नहीं करते, परन्तु आधुनिक विचारधारा में मालिकों को नियन्त्रण से अलग रखा गया है। उपक्रम का स्वामित्व अंशधारियों को प्राप्त होता है। जबकि इसका नियन्त्रण संचालक परिषद् को। वर्तमान समय में उद्यमी को उपक्रम की स्थापना से लेकर वस्तुओं के विपणन एवं विक्रय तक के समस्त कार्य करने होते हैं। उद्यमी के कार्य वर्तमान आर्थिक परिवेश में व्यापक एवं चुनौतीपूर्ण हैं।

विभिन्न विद्वानों द्वारा वर्णित उद्यमियों के मूलभूत कार्य इस प्रकार हैं

1 पीटर किल्बी ने उद्यमी के कार्यों को निम्न भागों में बाँटा है

(1) विनिमय सम्बन्धी कार्य (Exchange Relationship Task)

(1) बाजार अवसरों का ज्ञान ।

(2) दुर्लभ संसाधनों पर नियन्त्रण।

(3) आदानों (Inputs) का क्रय।

(4) उत्पाद का विपणन एवं प्रतिस्पर्धा के साथ समायोजन।

(2) प्रशासनिक कार्य (Administrative Task)

(5) सरकारी अधिकारियों के साथ व्यवहार।

(6) संस्था के भीतर मानवीय सम्बन्धों का प्रबन्ध।

(7) उपभोक्ताओं व पूर्तिकर्ता के सम्बन्धों का प्रबन्ध।

(3) प्रबन्ध नियन्त्रण कार्य (Management Control Task)

(8) वित्तीय प्रबन्ध।

(9) उत्पादन प्रबन्ध।

(10) कार्यस्थल और सामग्री की प्राप्ति एवं संयोजन।

(4) प्रौद्योगिकी कार्य (Technology Task)

(11) औद्योगिक अभियन्त्रीकरण।

(12) वस्तु की किस्म एवं प्रक्रियाओं का सम्वर्द्धन।

(13) नवीन उत्पाद एवं उत्पाद विधियों का क्रियान्वयन।

किल्बी का मानना है कि विशेष तौर से उद्यमी प्रथम दो कार्य करता है तथा शेष ग्यारह कार्यों के लिए वह विशेषज्ञों की नियुक्ति करता है तथा साथ ही यह भी कहता है कि यह कार्य उपक्रम के माप, प्रकार, क्षेत्र आदि के साथ परिवर्तित होता रहता है।

2. हॉसलिज (Hoselitz) के मतानुसार एक उद्यमी के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं—(1) अनिश्चितता वहन करना, (2) उत्पादन के साधनों में समन्वय करना, (3) नवप्रवर्तन का कार्य, एवं (4) पूँजी की व्यवस्था करना।

3.केन्टीलॉन (Cantillon) के अनुसार उद्यमी निम्नलिखित कार्यों का निर्वाह करता है (1) निश्चित मूल्य पर क्रय करना; (2) अनिश्चित मूल्य पर माल बेचना, एवं (3) जोखिम उठाना।

4. जेम्स बर्ना (James Berna) ने उद्यमी के प्रमुख कार्य इस प्रकार बताए हैं—(1) व्यवसाय का प्रवर्तन करना.(2) पूंजी की व्यवस्था करना; (3) जोखिम वहन करना, (4) तकनीकी प्रवर्तन करना तथा उन्हें अपनाना, एवं (5) व्यवसाय का प्रबन्ध करना।

उद्यमी के समस्त विभिन्न कार्यों को व्यवस्थित रूप से निम्न प्रकार दर्शाया जा सकता है

Economic Growth Innovator Generation

(I) स्थापना सम्बन्धी कार्य (Establishment Functions)

उद्यमी का सर्वप्रथम कार्य अपने उपक्रम का प्रवर्तन करना होता है। उपक्रम के प्रवर्तन एवं उसकी स्थापना करते समय उद्यमी को अनेक कार्य करने होते हैं। इनमें प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं..

(1) व्यावसायिक विचार की कल्पना करना (To imaginea business idea)-मैकनॉटन (MENaughton) का कथन है कि “प्रत्येक व्यावसायिक उपक्रम का उड़ान बिन्दु एक विचार होता है।” अत: उद्यमी पर्याप्त कल्पनाशक्ति एवं विचारशीलता के द्वारा किसी सृजनात्मक विचार की खोज करता है। वह अपने मौलिक एवं व्यावहारिक विचारों से किसी उपक्रम या उद्योग की स्थापना की कल्पना करता है। प्रत्येक समाज में व्यक्तियों के विकास के अनेक अवसर होते हैं। उद्यमी आर्थिक एवं व्यावसायिक क्षेत्रों में किसी लाभप्रद विचार की खोज करता है। व्यावसायिक विचार कई प्रकार के हो सकते हैं; जैसे—(1) वैज्ञानिक परीक्षणों का व्यावसायिक उपयोग करना; (ii) नए प्राकृतिक स्रोत की खोज और उसके व्यावसायिक उपयोग का विचार; (iii) वर्तमान वस्तु में तकनीकी सुधार से वस्तु को अधिक उपयोगी बनाना; (iv) किसी भौतिक पदार्थ का कोई नया उपयोग खोजना; (v) किसी वस्तु की परिपूरक वस्तुएं तैयार करने का विचार; एवं (vi) ग्राहक की नई जरूरतों को पूरा करने का विचार आदि।

उद्यमी इन व्यावसायिक विचारों को अपने चिन्तन एवं अनुभव से, सहयोगियों से या अपने सामाजिक अवलोकन द्वारा प्राप्त करता है।

(2) विचार की जाँचपड़ताल एवं मूल्यांकन (Investigation of the Proposition)—प्रारम्भिक विचार बन जाने के बाद उद्यमी अपने प्रस्ताव की व्यावहारिकता का मूल्यांकन करता है। ‘विचार’ की जाँच-पड़ताल से यह सुनिश्चित हो जाता है कि इस विचार को कार्यरूप में परिणत किया जा सकता है तथा धन के दुरुपयोग की सम्भावना को समाप्त किया जा सकता है। विचार की व्यावहारिकता को जाँचने के लिए उद्यमी निम्न बातों पर विचार करता है (i) सरकारी नीति-औद्योगिक नीति लाइसेंन्सिंग नीति, व्यापारिक नीति, वित्तीय नीति आदि । (ii) योग्यता एवं कौशल-तकनीकी योग्यता का स्तर, प्रबन्धकीय सेवा संगठन योग्यता आदि। (iii) साधनों की उपलब्धता–भौतिकी, मानवीय एवं वित्तीय साधन, जैसे श्रम, यन्त्र, माल, पूँजी. तकनीक बाजार आदि। (iv) लाभप्रदता-लागत, मांग, प्रतियागिता का स्तर आदि। (v) उत्पादन व वितरण समस्याएँ । उपक्रम की स्थिति चयन, सयन्त्र आभन्यास, आकार, शक्ति पूर्ति, परिवहन, गोदाम आदि।

मान घटकों पर विचार करके अपने प्रस्ताव की लाभप्रदता एवं व्यावहारिकता की जाँच करता है।

 (3) परियोजना नियोजन (Project Planning) व्यावसायिक उपक्रम की सफलता के लिए प्रभावी नियोजन आवश्यक होता है। एच, एन. पाठक (H. N. Pathak) के अनुसार, “परियोजना नियोजन इकाई की स्थापना से पूर्व किया गया काय व्यवस्थित अभ्यास (Systematic Exercise) है। यह अवसरों का ज्ञान तथा इकाई की स्थापना के बीच की कड़ी है। इस अवस्था में अपनी परियोजना को एक संस्था का रूप देने के लिए उद्यमी को अनेक महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने होते हैं। अत: उधमा। निर्णय लेने के पूर्व प्रारम्भिक अनुसन्धान करते हैं, आवश्यक सूचनाओं एवं तथ्यों को एकत्रित करते हैं। सूचनाओं का विश्लेषण करके विभिन्न विकल्प विकसित करते हैं तथा उनका तुलनात्मक मूल्यांकन करते हुए सर्वोत्तम विकल्प का चयन करते हैं। उद्यमी अपनी परियोजना नियोजन के दौरान निम्न प्रमख निर्णय लेता है

(i) उत्पादन नियोजन (Product Planning) वस्तु की किस्त. डिजाइन, आकार, विशेष तत्त्व, हिस्से-पुजे, पकिग, रंग, ब्राण्ड, लेबल आदि। (ii) लागत नियोजन (Cost Planning) कच्चे माल, मजदूरी, प्रत्यक्ष खर्च, कारखाना व्यय, कार्यालय व्यय, बिक्री, विज्ञापन आदि के आरम्भिक अनुमान। (iii) संगठनात्मक नियोजन (Organisation Planning)संस्था का आकार, संगठन स्वरूप, व्यावसायिक सहयोग, लक्ष्य आदि। (iv) वित्तीय नियोजन-पूँजी की मात्रा, पूँजी स्रोत, पूँजी संरचना आदि । (v) संयन्त्र एवं उत्पादन नियोजन (Plant and Production Planning) संयन्त्र स्थल, संयन्त्र अभिन्यास, प्लाण्ट भवन, यन्त्रीकरण व सेवाएं, उत्पादन प्रणाली, तकनीक, उत्पादन का पैमाना आदि। (vi) विपणन नियोजन (Marketing Planning) मध्यस्थ, बाजार, मूल्य, विज्ञापन, विक्रय संवर्द्धन आदि

उपर्युक्त सभी पहलुओं के सम्बन्ध में निर्णय लेते हुए उद्यमी अपनी परियोजना तैयार करता है ताकि इसे व्यावहारिक रूप दिया जा सके।

(4) परियोजना/सम्भाव्यता प्रतिवेदन तैयार करना (Preparing the Project Feasibility Report)परियोजना प्रतिवेदन समंकों, तथ्यों व सूचना के रूप में तैयार किया गया एक विस्तृत विश्लेषणात्मक विवरण होता है जो कि परियोजना नियोजन के आधार पर तैयार किया जाता है। यह उपक्रम के सम्बन्ध में लिए गए विभिन्न निर्णयों का एक विश्लेषणात्मक एवं तथ्यात्मक प्रलेख है। इस प्रतिवेदन में निर्मित की जाने वाली वस्तु, कच्चे माल, उत्पादन तकनीक, मशीनें, श्रम, पूँजी, संयन्त्र ढाँचे आदि के बारे में विस्तृत वर्णन होता है। उद्यमी द्वारा यह प्रतिवेदन तैयार करने का उद्देश्य भावी उपक्रम की लागत एवं लाभदायकता को स्पष्ट करना है। इस प्रतिवेदन से उपक्रम की व्यावहारिकता की जाँच की जा सकती है।

Economic Growth Innovator Generation

(5) परियोजना का अनुमोदन करना (Getting the Approval of Project) उद्यमी उपक्रम का पंजीयन करवाने, आवश्यक अनुमति, स्वीकृति एवं लाइसेन्स प्राप्त करने, विभिन्न सुविधाएं एवं प्रेरणाएँ प्राप्त करने, बैंक एवं वित्तीय संस्थाओं से वित्त प्राप्त करने आदि के लिए सम्बन्धित संस्थाओं व विभागों में परियोजना प्रतिवेदन प्रस्तुत करने तथा उसे अनुमोदित करवाने की प्रक्रिया को परियोजना का विक्रय (Selling the Project) भी कहा जाता है।

उद्यमी विभिन्न संस्थाओं से अपनी परियोजना का अनुमोदन प्राप्त करके उपक्रम को वैधानिक रूप से संगठित करता है। इसके आधार पर साहसी उपक्रम की वैधानिक कार्यवाही पूरी करने के साथ-साथ आवश्यक सुविधाओं, सेवाओं व प्रेरणाओं का लाभ भी उठाता है। शीघ्र अनुमोदन के लिए परियोजना प्रतिवेदन का विस्तृत एवं प्रभावी होना आवश्यक होता है।

(6) उपक्रम स्थापित करना (Establishing Enterprise)-इस अवस्था में उद्यमी पूर्व निर्धारित परियोजना के अनुसार उपक्रम स्थापित करने हेत विभिन्न कार्यवाहियाँ करता है। आधुनिक युग में उपक्रमों की स्थापना सामान्यतः औद्योगिक बस्तियों (Industrial Estates) में की जाती है। इन औद्योगिक बस्तियों एवं क्षेत्रों में उद्योगों की सभी आधारभूत सुविधाएं विद्यमान होती हैं। अत: उद्यमी को उपक्रम की स्थापना में कठिनाइयाँ नहीं आती हैं, किन्तु अन्य स्थानों पर उपक्रम की स्थापना, कच्चे माल, श्रम, शक्ति के साधन की उपलब्धता, बाजार की निकटता व अन्य आवश्यक सुविधाओं को ध्यान में रखकर की जाती है। साहसी निर्धारित स्थान पर संयन्त्र का निर्माण करवाता है तथा आवश्यक साधनों व सुविधाओं की व्यवस्था करता है।

(II) प्रबन्ध एवं संचालन सम्बन्धी कार्य (Management and Operational Functions)

उपक्रम की स्थापना के बाद उद्यमी को इसका कुशल प्रबन्ध एवं संचालन करना होता है। वह उपक्रम की उपयुक्त संगठन संरचना करता है, विभिन्न प्रबन्धकीय निर्णय लेता है, आवश्यक निर्देश देता है तथा विभिन्न क्रियाओं का पर्यवेक्षण एवं नियन्त्रण करता है। यद्यपि आधुनिक युग में व्यवसाय के प्रबन्ध एवं संचालन के कार्य काफी सीमा तक पेशेवर प्रबन्धकों एवं विशेष के द्वारा किए जाते हैं, किन्तु फिर भी उद्यमी ही इन समस्त कार्यों के लिए उत्तरदायी होता है तथा आवश्यक निर्देशन पटान करता है। बड़े-बड़े उपक्रमों में इसकी भूमिका महत्त्वपूर्ण होती जा रही है। उद्यमी के प्रबन्धकीय एवं संचालन सम्बन्धी कार्य अग्र प्रकार हैं

 (1) उपक्रम का संगठन एवं प्रबन्ध करना (Organising and Managing Enterprise) संगठन संरचना तयार करने के लिए उद्यमी उपक्रम के विभिन्न कार्यों का निर्धारण करता है, विभिन्न विभागों एवं कर्मचारियों में कार्यों का वितरण करता है तथा उन्हें आवश्यक अधिकार एवं दायित्व सौंपता है। उद्यमी कर्मचारियों के पारस्परिक सम्बन्धों को भी निश्चित करता है।

उद्यमी उपक्रम के प्रबन्ध हेतु विभिन्न नीतियों एवं लक्ष्यों का निर्धारण करता है। इनके अनुरूप उपक्रम की योजनाओं का निर्माण करता है तथा इसके प्रभावी क्रियान्वयन की व्यवस्था करता है। उसे समय-समय पर अनेक प्रबन्धकीय निर्णय भी लेने होते हैं। वह कर्मचारियों को आवश्यक निर्देशन प्रदान करके उनकी कार्य रूची, मनोबल व संगठन निष्ठा को बनाए रखता है। वह उपक्रम व बाह्य वातावरण में उचित सामंजस्य बनाए रखता है उद्यमी में प्रबन्ध कौशल का होना अत्यन्त आवश्यक है।

(2) कुशल विपणन व्यवस्था करना (Making Efficient Marketing Arrangements) अन्तर्राष्ट्रीय बाजार व तीव्र प्रतियोगिता के परिवेश में वस्तुओं के प्रभावी विपणन की व्यवस्था करना उद्यमी का एक प्रमुख कार्य है। इसके लिए उद्यमी बाजार अनुसन्धान, विक्रय पूर्वानुमान, विक्रय संवर्द्धन, विज्ञापन आदि कार्य करता है। वह कुशल मध्यस्थों एवं विक्रयकर्ता की नियुक्ति करता है तथा उनकी उचित प्रेरणा एवं प्रशिक्षण की व्यवस्था करता है।

(3) वित्त प्राप्त करना (Getting Finance)-उद्यमी को अपनी वित्तीय योजना के अनुसार विभिन्न स्रोतों से आवश्यक वित्त की व्यवस्था करनी चाहिए। उद्यमी उपक्रम की अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन पूँजीगत आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए स्थायी एवं कार्यशील पूँजी की व्यवस्था करता है। वह विभिन्न स्रोतों का तुलनात्मक अध्ययन करके ही उपयुक्त निर्णय लेता है। उद्यमी को समय-समय पर अपनी वित्तीय योजना में परिवर्तन भी करते रहना चाहिए। उद्यमी आय के पुनर्विनियोजन, कोषों के निर्माण आदि के सम्बन्ध में भी निर्णय लेता है।

Economic Growth Innovator Generation

(4) पारिश्रमिक प्रदान करना (Distribution Remuneration) उद्यमी इस कार्य के अन्तर्गत उत्पादन के प्रत्येक साधन को उसकी सेवाओं के बदले उचित पारिश्रमिक प्रदान करता है। अन्य शब्दों में, यह उद्यमी का वह महत्त्वपूर्ण कार्य है जो उद्यमी की आय को उत्पत्ति के विभिन्न साधनों में वितरित करने से सम्बन्धित है। प्रतिफल का वितरण बाजार एवं उद्योग की दशाओं, संसाधनों की सीमान्त उत्पादकता आदि अनेक तत्वों को ध्यान में रखकर किया जाता है।

(5) जोखिम उठाना (Bearing Risks)-उद्यमी व्यवसाय में जोखिमों के साथ जीता है तथा व्यवसाय के संगठन एवं विकास की अनेक जोखिमों को वहन करता है। जोखिम के बिना व्यवसाय की कल्पना करना असम्भव है। व्यवसाय में पग-पग पर ज्ञात व अज्ञात जोखिमें बनी रहती हैं। उद्यमी कुछ जोखिमों का बीमा करवाकर उनसे मुक्त हो सकता है। किन्तु व्यवसाय में कई जोखिमों का पूर्वानुमान एवं मूल्यांकन करना सम्भव नहीं होता है, जैसे—माँग, प्रतियोगिता मूल्य, प्रौद्योगिकी, फैशन,सरकारी नीति, सामाजिक मूल्य आदि में परिवर्तन के फलस्वरूप उत्पन्न जोखिम, अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक घटनाओं पर व्यापार चक्रों से उत्पन्न जोखिम, नवप्रवर्तन के कारण जोखिम आदि।

अतः उद्यमी का कार्य ज्ञात जोखिमों से सुरक्षित होना व अज्ञात जोखिमों को झेलना है। उद्यमी अपनी योग्यता एवं अनुभव के आधार पर व्यावहारिक जोखिमों का उचित प्रबन्ध कर सकता है।

(III) आधुनिक कार्य (Modern Functions)

आर्थिक विकास की उच्च व्यवस्था में उद्यमी इन कार्यों को करता है। सामाजिक विकास की दृष्टि से उद्यमी को निम्न कार्य भी आवश्यक रूप से करने होते हैं

1 उहामिता विकास कार्यक्रमों में भाग लेना (To Participate in Entrepreneurship Programmes)देश में उद्यमिता के विकास हेतु सरकारी विभागों, बैंकों, वित्तीय संस्थाओं, व्यावसायिक एवं तकनीकी संगठनों, प्रबन्ध संस्थानों आदि द्वारा समय-समय पर विकास कार्यक्रम, प्रशिक्षण कार्यक्रम, विचार गोष्ठियाँ आयोजित की जाती हैं। उद्यमी इन कार्यक्रमों में भाग लेता है। इनके माध्यम से उद्यमी को व्यावसायिक परिवर्तनों की एक नवीन विचारधारा की जानकारी होती है। विभिन्न समस्याओं पर विचार-विमर्श होने के कारण उद्यमी के ज्ञान में वृद्धि होती है। तेजी से बदल रहे विज्ञान के युग में उद्यमी का यह भी एक मुख्य कार्य है।

2. नवप्रवर्तन एवं विभेदीकरण (Innovations and Diversification) शुम्पीटर व फ्रेंज जैसे अर्थशास्त्रियों ने नवप्रवर्तन को उद्यमी का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य माना है। अपनी प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति में सुधार करने तथा समाज को अधिकतम सन्तुष्टि एवं सेवाएँ प्रदान करने के लिए उद्यमी नवप्रवर्तनों का विकास करता है तथा उन्हें अपनाता है। वह समाज में नवीन परिवर्तनों को जन्म देता है। वह शोध, अनुसन्धान व सृजनात्मक चिन्तन के द्वारा अपनी वस्तु, उत्पादन प्रणाली आदि में नए-नए सुधार करता है। उद्यमी समाज में नए मुल्यों, उच्च जीवनस्तर नई उपयोगिताओं व नवीन सन्तुष्टिया काल खोज करता रहता है।

उद्यमी नए-नए उत्पादों को विकसित कर, उत्पाद विभेदीकरण भी करता है। इससे उपक्रम का विस्तार होता है तथा समाज को उपभोग के लिए नई-नई वस्तुएं प्राप्त होती हैं।

3. व्यवसाय के भविष्य को सुरक्षित बनाना (To Make Business’s Future Safe)-उद्यमी अपने उपक्रम का सफलतापूर्वक सचालन करते हुए इसके सुनहरे भविष्य का निर्माण करता है। उद्यमी का वास्तविक कार्य उपक्रम कवतमान एवं भविष्य दोनों को सुरक्षित बनाना है। अत: उद्यमी को प्रत्येक योजना का निर्माण दीर्घकालीन परिप्रेक्ष्य में करना चाहिए। पीटर कर लिखते हैं कि “किसी भी व्यावसायिक उपक्रम में उद्यमी का विशिष्ट कार्य आज के व्यवसाय को इस योग्य बनाना है कि वह कल का निर्माण कर सके। वह आज के विद्यमान व्यवसाय को जीवित रहने तथा भविष्य में सफल होने का सामध्ये प्रदान करता है।”

4. राष्ट्रीय विकास में योगदान देना (To Contribute towards National Development)-उद्यमी समाज के संसाधनों का उपयोग करता है, इसलिए उसे भी समाज की श्रेष्ठ रचना में पूर्ण सहयोग देना चाहिए। समाज के भातिक एव मानवीय साधनों का अधिकतम विदोहन करके. रोजगार व आय का सजन करके, नवीन सन्तुष्टियों का सृजन करके तथा अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वाह करके उद्यमी राष्ट्र के विकास में अपना योगदान दे सकता है। पीटर डूकर के शब्दों में, “उद्यमी समाज के संसाधनों को घटती हुई अथवा कम उत्पादकता वाले क्षेत्रों से बढ़ती हुई अथवा अधिक उत्पादकता वाले क्षेत्रों में हस्तान्तरित करके राष्ट्रीय विकास में योगदान दे सकता है।”

Economic Growth Innovator Generation

देश के आर्थिक विकास में उद्यमी की भूमिका

(Role of Entrepreneur in the Economic Growth of the Country)

किसी देश की अर्थव्यवस्था में योगदान देने और उसे विकसित करने में उद्यमी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनका महत्त्व विकासशील देशों में और भी अधिक बढ़ जाता है। जहाँ उपलब्ध स्रोतों को प्रयोग में लाकर नवाचार के लिये अनेक अवसर मौजूद होते हैं। वह प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप में रोजगार के संसाधनों का उपयोग करके लाखों एवं करोड़ों लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करने का प्रयास करता है। देश में सामाजिक स्थायित्व लाता है। औद्योगिक दृष्टि से पिछड़े क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना करके उद्योगों का सन्तुलित व क्षेत्रीय विकास करता है। उत्तम किस्म का उत्पादन करके निर्यात में वृद्धि करने का प्रयास करता है। विदेशी बाजारों से प्रतियोगिता का सामना करने के लिए उद्यमी नवाचार द्वारा न्यूनतम लागत पर विदेशी वस्तुओं से अधिक श्रेष्ठ वस्तुओं का उत्पादन अपने देश में करके आयातों (Imports) में पर्याप्त कमी लाने का प्रयास करता है। इस प्रकार वह बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की बचत करता है। साथ ही वह अपनी आवश्यकता से अधिक उत्पादन को निर्यात (Export) करके विदेशी मुद्रा प्राप्त करता है। इस प्रकार एक महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है। इस अध्ययन के अन्तर्गत हम पृथक-पृथक शीर्षकों के अन्तर्गत उद्यमी की इन्हीं भूमिकाओं का अध्ययन करेंगे

  • आर्थिक विकास में नवाचार के रूप में उद्यमी की भूमिका
  • (Role of Entrepreneur in Economic Growth as an Innovator)
  • रोजगार के सृजन में उद्यमी की भूमिका
  • (Role of Entrepreneur in Generation of Employment Opportunities)
  • पूरक तथा अनुपूरक आर्थिक विकास में उद्यमी की भूमिका
  • (Role of Entrepreneur in Complimenting and Supplementing Economic Growth)
  • सामाजिक स्थायित्व में उद्यमी की भूमिका
  • (Role of Entrepreneur in Social Stability)
  • Economic Growth Innovator Generation

आर्थिक विकास में नवाचार के रूप में उद्यमी की भमिका

(Role of Entrepreneur in Economic Growth as an Innovator)

उद्यमी की किसी देश के आर्थिक विकास में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। आर्थिक प्रक्रिया से है जिसके द्वारा किसी देश की प्रति व्यक्ति आय और कुल आय एक निश्चित समय में तथा आर्थिक विकास की प्रक्रिया में उद्यमी उत्प्रेरक की भूमिका निभाते हैं। वर्तमान युग में उद्यमी को आर्थिक विकास का कर्णधार ताहा उद्यमियों की क्रियाओं के द्वारा ही किसी देश के आर्थिक विकास का चक्र गतिमान होता है। उद्यमी प्रत्येक अर्थव्यवस्था का मुख्य कार्यकर्ता होता है क्योंकि अर्थव्यवस्था की गाडी उसके बिना आगे नहीं चल सकती है। वह किसी दशक प्राकृतिक, आथिक,मानवीय एवं तकनीकी संसाधनों को एकत्रित करके उनका देश के आर्थिक विकास में विदोहन करता है। जोसेफशुम्पीटर (Joseph Schumpter) के अनुसार, “किसी देश के आर्थिक विकास की गति नवाचार की गति पर निर्भर करती है जोकि अन्ततः देश की जनसंख्या में उद्यमियों की निपुणता की गति में वृद्धि पर निर्भर करती है।”शुम्पीटर का मत है कि आर्थिक विकास का काय स्वतः नहीं होता बल्कि इस कार्य को विशेष प्रयासों व जोखिमों के साथ शुरू करना पड़ता है, यह कार्य नवप्रवर्तक अर्थात् उद्यमी करता है, न कि पूँजीपति। पूँजीपति केवल पूँजी उपलब्ध कराता है, जबकि उद्यमी इस पूँजी के प्रयोग का निर्देशन करता है।

शुम्पीटर का कहना है कि “उद्यमी के मामले में स्वामित्व नहीं बल्कि नेतत्व अधिक महत्त्वपूर्ण है।” आर्थिक विकास एक असतत् प्रक्रिया है और आर्थिक जगत् में बहुत अधिक जोखिम तथा अनिश्चितता पायी जाती है। चूंकि साधारण व्यवसायी में जोखिम उठाने या पहल करने की योग्यता नहीं होती है, अत: इस काम को उद्यमी द्वारा पूर्ण किया जाता है। इस प्रकार उद्यमी विकास प्रक्रिया की केन्द्रीय शक्ति है। “उद्यमी विकास का मुख्य प्रेरक स्रोत है, वह नवीनताओं का सृजनकर्ता है, उत्पादन की तकनीक में क्रान्ति का अधिष्ठाता है, और बाजारों के विस्तार का श्रेय भी उसे ही दिया जाता है।” उसकी तुलना युद्ध की व्यूहरचना करने वाले उस निडर व कुशाग्र बुद्धि वाले कमाण्डर से की जा सकती है, जो लड़ाकू फौज में प्रतिक्षण, साहस, रणकौशल व उत्साह की भावना भरता रहता है।

शुम्पीटर के शब्दों में, “स्थिर अर्थव्यवस्था में उद्यमी बहाव के साथ तैरता है, गतिशील अर्थव्यवस्था में उसे बहाव के विपरीत तैरना पड़ता है। उद्यमी विकास मंच का नेता है अन्य तो पिछलग्गू होते हैं। वह अत्यधिक स्वाभिमानी तथा विवेकी होता है। उसमें जूझने की प्रवृत्ति होती है। वह जीतने का संकल्प रखता है। उसमें अपने आपको दूसरों से श्रेष्ठ सिद्ध करने की प्रबल इच्छा होती है। वह केवल लाभ के लिए ही जोखिम नहीं उठाता बल्कि सफलता प्राप्त करना भी उसका एक लक्ष्य होता है।”

उद्यमी मुख्य रूप से तीन बातों से प्रेरित होता है—(1) नई व्यावसायिक सल्तनत स्थापित करने की लालसा, (2) अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने की तीव्र उत्कंठा, एवं (3) अपनी शक्ति तथा प्रवीणता को प्रयोग करने की प्रसन्नता।

उद्यमी को अपना कार्य करने के लिए दो बातों की आवश्यकता होती है। प्रथम, नई वस्तुओं का उत्पादन करने के लिए आवश्यक तकनीकी ज्ञान की उपलब्धता, दूसरा बैंक साख की सुविधा। शुम्पीटर का कहना है कि तकनीकी ज्ञान का एक पर्याप्त भण्डार समाज में हर समय विद्यमान होता है। हाँ उसे अभी खोला नहीं गया होता है एवं इसके प्रयोग की पहल उद्यमी द्वारा की जाती है। इस प्रकार सार रूप में “विकास की दर समाज में तकनीकी ज्ञान के भण्डार में परिवर्तन का फल है। तकनीकी परिवर्तनों की दर उद्यमियों के सक्रिय होने के स्तर पर निर्भर करती है और यह सक्रियता-स्तर नए उद्यमियों के प्रकट होने तथा साख निर्माण की मात्रा द्वारा निर्धारित होती है।” उद्यमी आर्थिक विकास में नवाचार द्वारा निम्न तरीकों से अपना योगदान देता है

1 आर्थिक विकास का प्रवर्तक (Promotor of Economic Development) आर्थिक विकास का सीधा सम्बन्ध उत्पादन प्रक्रिया से होता है। उत्पादन प्रक्रिया पाँच साधनों-भूमि, पूँजी, श्रम, संगठन, साहस का संयुक्त परिणाम होती है। वास्तव में एक उद्यमी ही उत्पत्ति के इन पाँचों साधनों को एक साथ एकत्रित करते उत्पादन के योग्य वातावरण तैयार करता है। उत्पादन प्रारम्भ होने पर रोजगार, आय, माँग आदि आर्थिक तत्वों का विस्तार होता है। इस प्रकार उद्यमी आर्थिक विकास का प्रवर्तक होता है।

2. औद्योगिक सभ्यता का जनक (Father of Industrial Culture)-किसी भी देश का आर्थिक विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक कि उस देश के समाज में औद्योगिक सभ्यता का विकास न हो। उद्यमी अपने प्रयासों से अनेक सामाजिक परिवर्तन लाता है जिससे समाज में परम्पराओं को छोड़कर नवीनता को स्वीकार करने की क्षमता विकसित होती है। समाज में आने वाला यह नवीन परिवर्तन ही औद्योगिक विकास का आधार होता है।

3. आर्थिक विकास का कर्णधार (Kingpin of Economic Development)-उद्यमी आर्थिक विकास का जन्मदाता तथा प्रेरक होने के साथ-साथ कर्णधार भी होता है अर्थात् वह किसी देश के आर्थिक विकास के उत्तरदायित्व को वहन करता है। उद्यमी की स्वाभाविक एवं नियोजित क्रियाएं ही आर्थिक विकास के चक्र को गतिशील बनाये रखती हैं। इसलिए उद्यमी को विकास का रथ हाँकने वाला सारथी भी कहा जाता है।

Economic Growth Innovator Generation

4.आर्थिक विकास का उत्पेतक (Motivator of Economic Development) उद्यमी आयका प्रक्रिया प्रारम्भ होने के बाद उसे उत्प्रेरित करता रहता है, जिससे आर्थिक विकास की प्रक्रिया में निरन्तरता बनी रहता है और विकास की दर भी गिरने नहीं पाती है। उद्यमी अप्रयुक्त साधनों का विदोहन करके. प्रयक्त साधनों का कुशलतम प्रयोग करका समद्धि तथा आत्मनिर्भरता में वृद्धि करता है जिससे विकास क्रियाओं को प्रेरणा प्राप्त होती है।

5. प्रतियोगिता का जनक (Father of Competition) उत्पादन बाजार में प्रतियोगिता आर्थिक विकास का आवश्यक शतं है। उद्यमी उत्पादन की नई-नई तकनीके खोजकर नये-नये उत्पाद बनाकर नित्य नवीन विज्ञापन देकर बाजार । में प्रतियोगिता का वातावरण उत्पन्न करता है, जिससे आर्थिक क्रियाएं तेजी से गतिशील होती हैं और आर्थिक विकास का गात। को तीव्रता मिलती है।

6. नवप्रवर्तन को प्रोत्साहन (Promotion to Innovation)-आर्थिक विकास का सर्वप्रमुख घटक नवप्रवतन है, क्योंकि आधुनिक बाजारों में सभ्यता एवं आय स्तर के ऊपर उठने के साथ-साथ प्रदर्शनकारी प्रभाव, भौतिककारी अवधारणा तथा विलासिता के जीवन की अभिलाषा बढ़ी है। अत: एक उद्यमी वर्तमान माँग के साथ-साथ भावी माँग के स्वरूप तथा आकार। का भी पता लगाता है और बाजार दशाओं तथा सम्भावनाओं के अनुरूप नित्य नवीन तकनीकें खोजता है और नये-नये उत्पाद प्रस्तुत करता है।

7. आर्थिक विकास का नेतृत्वकर्ता (Leader of Economic Development)-उद्यमी उत्पत्ति के साधनों को संगठित करता है, उनका सन्तुलित रूप में प्रयोग करता है। आर्थिक लक्ष्य की प्राप्ति हेतु नियोजन करता है, आर्थिक क्रियाओं का नेतृत्व करता है, विकास चक्र को गति प्रदान करता है, सामाजिक परिवर्तन लाता है, नवप्रवर्तन करता है तथा निरन्तर विकास क्रियाओं को उत्प्रेरित करता है। अत: वास्तव में वह स्वयं विकास का पर्याय होता है। इसलिए रेल्फ हॉरविज (Ralf Harwitz) ने कहा है, “उद्यमी घटनाओं को घटित करता है, कार्यवाही चाहता है वह प्रगतिशील व्यक्ति होता है। उसके बिना न कोई घटना होती है, न कोई क्रिया और न कोई विकास।”

8. उद्योग का कप्तान (Captain of Industry) औद्योगिक विकास की प्रक्रिया उद्यमी के नेतृत्व में ही गति प्राप्त करती है। उद्यमी ही उद्योग को स्थापित करता है, उसका प्रबन्ध करता है, उसके भविष्य का अनुमान लगता है और उसके सफल संचालन हेतु नियोजन करता है। इस प्रकार अर्थव्यवस्था के औद्योगिक विकास में उद्यमी की भूमिका किसी कप्तान की भाँति होती है। इसलिए मार्शल ने उद्यमी को उद्योग का कप्तान कहा है।

उपर्युक्त के अतिरिक्त उद्यमी आर्थिक विकास में निम्नलिखित तरीकों से भी अपना योगदान देता है

9. पूँजी निर्माण में सहायक (Assists in Capital Form ation)-उद्यमी देश में छोटी-छोटी मात्रा में इधर-उधर बेकार बिखरी हुई पूँजी को एकत्रित करके उसे जन निक्षेप एवं प्रतिभूतियों के रूप में व्यवसाय में विनियोजित करता है। जन निक्षेपों का किसी उद्यम में निवेश होने से देश के संसाधनों का कुशलतम उपयोग होता है एवं निर्माण की गति में वृद्धि होती है जो कि किसी देश के आर्थिक विकास में तेजी से वृद्धि करने के लिए नितान्त आवश्यक है। इस प्रकार एक उद्यमी पूँजी निर्माणकर्ता होती है, न कि पूँजी का संचयकर्ता।

10. सन्तुलित क्षेत्रीय विकास (Balanced Regional Development)–उद्यमिता सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के विकास द्वारा देश में आर्थिक विकास की विषमताओं को कम करती है। उद्यमी पिछड़े क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना करके राज्य सरकार एवं केन्द्रीय सरकार द्वारा प्रदान की गयी सहायताएँ प्राप्त करते हैं। राजकीय सहायताएँ प्राप्त करने के उद्देश्य से ही मोदी, टाटा, बिड़ला आदि देश के बड़े-बड़े उद्यमियों ने अपनी बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियाँ ऐसे स्थानों पर लगायी हैं जिनका विश्व के नक्शे पर कोई नाम नहीं था।

Economic Growth Innovator Generation

11. आर्थिक स्वतन्त्रता (Economic Independence)-उद्यमिता किसी भी देश की आर्थिक स्वतन्त्रता के लिए एक बहुत ही आवश्यक तत्व है। उद्यमी देश में ही विदेशी उत्पादों से उत्तम किस्म का उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित करता है। विदेशी बाजारों से प्रतियोगिता का सामना करने के लिए उद्यमी न्यूनतम लागत पर विदेशी वस्तुओं से अधिक उपयोगी वस्त बनाने की कोशिश करते हैं जिसके फलस्वरूप देश को बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की बचत होती है। यही उद्यमी आवश्यकता से अधिक उत्पादन करके उसे निर्यात भी करता है जिससे देश को बहुमूल्य विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। यही निर्यात संवर्द्धन देश को आर्थिक स्वतन्त्रता प्राप्त करने में एक निर्णायक भूमिका निभाता है।

12 नवीन व्यावसायिक एवं औद्योगिक इकाइयों की स्थापना (Establishment of New Business and Industrial Units) उद्यमी के कारण हो समाज में नये-नये व्यवसायों एवं उद्योगों की स्थापना होती है। उदामी उत्पत्ति साधनों को उत्पादक कार्यों की और प्रस्तुत करता है। प्रो. कारवर (Prof. Carvar) लिखते हैं कि “उद्यमी की सेवाएँ ऐसी हैं जिनको एक वेतनभोगी प्रबन्धक कभी भी परा नहीं कर सकता है।” भारत में बिड़ला, टाटा, बजाज आदि ऐसे उद्यमी हुए हैं जिन्हाने औद्योगिक क्रियाओं का विस्तार करके विकास की गति को बढ़ाया है। उद्यमी के नेतृत्व के बिना उत्पत्ति के सभी साधन निष्क्रिय बने रहते हैं, वे उत्पादक कभी नहीं बन पाते।

13.रोजगारों का निर्माण (Generation of Employment) उद्यमिता प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार का निर्माण करती है। प्रत्यक्ष रूप से यह व्यक्तियों में कार्य करने के लिए इच्छा उत्पन्न करती है और अप्रत्यक्ष रूप से बड़ी और घाटा व्यावसायिक इकाइयों की स्थापना द्वारा लाखों-करोड़ों लोगों को रोजगार प्रदान करती है। इस प्रकार उद्यमिता देश की बेरोजगारी की समस्या का समाधान करने में अत्यन्त सहायक है।

14. सृजनात्मक शक्ति और नवाचार (Creativity and Innovation) सृजनात्मक शक्ति नवाचार की प्राथमिक आवश्यकता है। यह एक अद्भुत प्रक्रिया है जिसका निष्पादन तेज मस्तिष्क द्वारा ही सम्भव होता है। बिना सृजनात्मक शक्ति के आर्थिक विकास सम्भव नहीं है। सृजनात्मक शक्ति नवीनता लाने की योग्यता है। नवाचार भी किसी नवीनता को लाने की प्रक्रिया है। सृजनात्मक शक्ति तथा नवाचार में मूल अन्तर यह है कि जहाँ एक ओर सृजनात्मक शक्ति योग्यता के धारण से सम्बन्धित है, वहीं दूसरी ओर, नवाचार नये कार्य को करने से सम्बन्धित है। सृजनात्मक शक्ति का तब तक कोई मूल्य नहीं होता जब तक कि उसे उपयोगी उत्पादों अथवा सेवाओं में परिवर्तित न कर दिया जाये। यह कार्य नवाचार द्वारा सम्पन्न होता है। इस दृष्टि से सृजनात्मक शक्ति नवाचार की प्राथमिक आवश्यकता हई। इस प्रकार नवाचार सृजनात्मक शक्ति का उपयोग करता है जिसके कारण किसी देश का आर्थिक विकास सम्भव होता है। नवाचारात्मक व्यवहार उद्यमी का कार्य है।

15. देश की प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि (Increase in per Capita Income)—एक उद्यमी सदैव नये-नये व्यावसायिक अवसरों की खोज में रहता है। एक उद्यमी निष्क्रिय पड़ी हुई भूमि, श्रम, पूँजी, संगठन एवं साहस को राष्ट्रीय आय के रूप में परिवर्तित करता है, जो अन्ततः प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के रूप में परिलक्षित होती है।

16. जीवन स्तर में सुधार (Improvement in Living Standards)—एक उद्यमी व्यवसाय की स्थापना कर आवश्यक वस्तुओं की कमी को दूर करने का प्रयास करता है और बाजार में नये एवं उत्तम किस्म के उत्पादों की पूर्ति करता है। उद्यमिता लघु उद्योग की सहायता से एक आम आदमी के जीवन स्तर में वृद्धि करती है। उद्यमी न्यूनतम लागत पर उपभोक्ता के उपयोग के लिए विभिन्न वस्तुएँ उत्पन्न करते हैं।

Economic Growth Innovator Generation

आर्थिक विकास में नवाचारक के रूप में उद्यमी की भूमिका और पीटर एफ. डूकर

(Role of Entrepreneur in Economic Development as a Innovator and Peter F. Drucker) –

पीटर एफ. डुकर के अनुसार, “उद्यमी सदैव परिवर्तन की खोज करता है और अवसर के रूप में उसका विदोहन करता है। इस दिशा में नवाचार एक उपकरण का कार्य करता है।” पीटर एफ. ड्रकर के अनुसार उद्यमी नवाचार करता है और संसाधनों की श्रेष्ठ रचना करता है। उनकी दृष्टि में संसाधनों जैसी कोई चीज नहीं है जब तक कि उनको प्राप्त न कर लिया जाय और आर्थिक विकास में उनका सदुपयोग न कर लिया जाय। उन्होंने नवाचार को एक विषय के रूप में प्रस्तुत किया है जिसका अधिगम (Learnt) करके व्यवहार में लाया जा सकता है। पीटर एफ. डुकर ने नवाचार की भूमिका अथवा योगदान का उल्लेख निम्नलिखित प्रकार से किया है

(i) उद्यमी नवाचारक तथा नेता दोनों होना चाहिए।

(ii) नवाचारक अवसर की खोज करने तथा उसका सफलतापूर्वक विदोहन करने में सक्षम होना चाहिए।

(iii) नवाचार अत्यन्त सरल होना चाहिए, ताकि सरलता से इसको समझा जा सके। इसके अभाव में वह ऐच्छिक परिणाम नहीं दे सकेगा।

(iv) उद्यमी को नवाचार वर्तमान के लिए करना चाहिए, न कि भविष्य के लिए। इसका कारण है कि भविष्य अज्ञात है, कल क्या हो जाये, कोई निश्चित रूप में नहीं कह सकता।

(v) उद्यमी के लिए व्यवसाय का स्वामी होना आवश्यक नहीं है।

(vi) उद्यमी को संसाधनों को एकत्रित करना चाहिए तथा अवसरों का पता लगने पर वाणिज्यिक लाभ के लिए उनका आबंटन करना चाहिए।

(vii) उद्यमी में ज्ञान, पटुता, परिश्रमशीलता, लगाव तथा नवाचार के प्रति वचनबद्धता होनी चाहिए।

2. रोजगारों के सजन के रूप में उद्यमी की भूमिका

(Role of Entrepreneur in Generation of Employment Opportunities

आधुनिक युग की सबसे गम्भीर समस्या निरन्तर बढ़ती हुई बेरोजगारी, विशेषकर शिक्षित बेरोजगारी है जिसने आज विश्वव्यापी रूप धारण कर लिया है। विकासशील एवं अविकसित देशों में बेरोजगारी अनेक आर्थिक एवं सामाजिक समस्याओं की जड़ मानी जाती है। बेरोजगारी केवल एक सामाजिक या मनोवैज्ञानिक समस्या ही नहीं वरन् एक आर्थिक अभिशाप भा। है। बेरोजगारी एक ऐसी गम्भीर एवं घातक बीमारी है जिसके कारण एक ओर राष्ट्रों के विभिन्न साधन अप्रयुक्त रहते हैं वहा दूसरी ओर व्यक्तियों के कौशल एवं ऊर्जाओं का उपयुक्त प्रयोग नहीं हो पाता। इस सम्बन्ध में एच. डब्ल्यू सिंगर (H. W. Singer) ने एक स्थान पर ठीक ही लिखा है कि, “बेरोजगारी केवल एक सामाजिक समस्या ही नहीं वरन् एक मानवीय समस्या भी है।

बेरोजगारी से आशय एक ऐसी स्थिति से है जिसमें व्यक्ति वर्तमान मजदूरी दर पर काम करने को तत्पर है, किन्तु उसे काम नहीं मिलता है। भारत में विद्यमान रोजगार अवसर मुश्किल से 5% से लेकर 10% तक बेरोजगारों को ही रोजगार प्रदान करने में समर्थ हैं। यह अन्तर निरन्तर बढ़ता जाता है जिसके कारण बेरोजगारी की समस्या दिनों-दिन गम्भीर रूप धारण करती जा रही है। हमारे देश में प्रतिवर्ष बढ़ती हुई बेरोजगारी की समस्या ने न केवल राष्ट्रीय तन्त्र को झकझोर दिया है, वरन् हमारी नियोजित विकास की प्रक्रिया पर भी एक प्रश्न चिह्न लगा दिया है। यदि इस समस्या के निवारण में तुरन्त उपयुक्त कदम नहीं उठाये गये तो वह दिन दूर नहीं जब देश का समूचा ताना-बाना ही संकट की स्थिति में आ जायेगा और देश की स्वतन्त्रता को खतरा उत्पन्न हो जायेगा।

Economic Growth Innovator Generation

उद्यमिता बेरोजगारी की समस्या के निवारण का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन है। उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि एक सरकार विभिन्न क्रियाओं में 100 कृत्यों (Job) का सृजन करती है अर्थात् उपलब्ध कराती है। इनमें 100 बेरोजगारों को ही रोजगार मिलता है जोकि 30-40 वर्ष तक रोजगार में रहते हैं। तत्पश्चात् वे अवकाश ग्रहण कर लेते हैं और इस प्रकार कृत्य (Jobs) पुनः रिक्त हो जाते हैं जिन पर नए आवेदकों की नियुक्ति हो जाती है। इस प्रकार नियुक्ति तथा नये आवेदकों की नियुक्ति का क्रम निरन्तर चलता रहता है। यदि ये ही 100 व्यक्ति उद्यमी बन जायें तो वे न केवल स्वयं के लिए रोजगार उपलब्ध करने में समर्थ होंगे अपितु और भी सैकड़ों बेरोजगारों को रोजगार प्रदान कर सकेंगे। जैसे-जैसे समय व्यतीत होता जायेगा, ये उद्यमी अपने कारोबार में नवाचार लाकर उसका विकास करके प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष दोनों रूप में अधिकाधिक लोगों को रोजगार देने में समर्थ होंगे। इस दृष्टि से उद्यमिता बेरोजगारी के दोषों का सामना करने एवं उनका निवारण करने का सर्वश्रेष्ठ मार्ग है।

रोजगार सृजन (Creation of Job/Employment)

बेरोजगारी की समस्या का स्थायी समाधान समाज के उद्यमीकरण द्वारा स्वरोजगार (Self Employment) में निहित है। बढ़ती बेरोजगारी विकासशील देशों की ज्वलन्त समस्या है। इसके अनेक कारण हैं। रोजगार संख्या की तुलना में जनसंख्या वृद्धि की दर का अधिक होना। सामाजिक सांस्कृतिक कारणों के द्वारा नौकरी से आशाओं व आकांक्षाओं के सन्दर्भ में अनुचित मूल्यों को जोड़ देना। सामान्यतया बेरोजगार युवाओं व युवतियों की संख्या से 15 से 20 प्रतिशत को ही रोजगार मिल पाता है। शेष बचे 80 से 85 प्रतिशत के लिये स्वरोजगार ही विकल्प बचता है। इस समस्या से निपटने के लिए निम्न दो विकल्प अत्यन्त महत्वपूर्ण माने जाते हैं

(1) लघु एवं कुटीर उद्योगों की स्थापना (Establishment of small and cottage industries); एवं

(2) स्वरोजगार कार्यक्रम (Self Employment Programmes)  

Economic Growth Innovator Generation

(I) लघु एवं कटीर उद्योगों की स्थापना

(Establishment of Small and Cottage Industries)

हमारे देश के सुनियोजित आर्थिक विकास में कुटीर एवं लघु उद्योगों की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। कुटीर एवं लघु उद्योगों ने सामाजिक आर्थिक-उद्देश्यों की प्रगति में भी प्रमुख भूमिका निभाई है। भारतीय परिवेश में सुव्यवस्थित एवं सफल लघु उद्योग क्षेत्र न केवल औद्योगिक एवं आर्थिक विकास को सम्बल प्रदान करता है, अपितु बेरोजगारी की समस्या का भी समाधान प्रस्तुत करता है। लघु उद्योगों की इस भूमिका की झलक हमारी पँचवर्षीय योजनाओं में भी देखने को मिलती है। समय-समय पर घोषित औद्योगिक नीति सम्बन्धी वक्तव्यों में भी लघु उद्योगों की भूमिका का वर्णन होता है। लघु उद्योग क्षेत्र के महत्त्व का पता इस बात से भी चलता है कि नई औद्योगिक नीति में भी इसे सम्मिलित किया गया है जिसका उद्देश्य हस्तशिल्प, हथकरघा तथा लघु एवं कुटीर उद्योगों का विकास करना तथा इनकी प्रौद्योगिकी (Technology) को अद्यतन (up-to-date) बनाना है।

भारत की अर्थव्यवस्था एवं औद्योगिक विकास में लघु उद्योगों के महत्त्व को देखते हुए उनके विकास के लिए विशेष प्रयासों की आवश्यकता महसूस की गई। सरकार द्वारा उद्यमियों को उद्योग स्थापना में सहायता एवं पंजीकरण आदि के उद्देश्य से जिला स्तर पर उद्योग केन्द्रों की स्थापना की गई। उद्यम स्थापना के प्रति आम जनता में रुचि उत्पन्न करने एवं प्रेरित करने के उद्देश्य से उद्यमिता संस्कृति के प्रसार पर बल दिया गया एवं उद्यमिता विकास संस्थानों, लघु उद्योग सेवा संस्थान, लघु उद्योग विकास संगठन एवं विभिन्न औद्योगिक संस्थानों की स्थापना की गई। इन विभिन्न संस्थानों के माध्यम से सरकार प्रतिवर्ष हजारों लोगों को उद्योग स्थापना, उद्योग संचालन एवं उद्योग के विकास हेतु विभिन्न कार्यक्रमों द्वारा प्रशिक्षण व वित्त निगमों द्वारा आर्थिक सहायता देती है, जिससे कि यह उत्पादन, रोजगार और निर्यात में अधिकतम योगदान कर सकें, विभिन्न योजनाओं एवं प्रावधानों के माध्यम से इस नीति के अन्तर्गत कुटीर, अति लघु ग्रामीण एवं हस्तशिल्प उद्योगों के विकास के लिए विभिन्न सुविधाएँ व रियायतें प्रदान की गयी हैं। इस क्षेत्र की यथार्थ ऋण आवश्यकताओं को समझने एवं पूरा करने के लिए विशेष एजेन्सी की स्थापना व लघ इकाइयों की इक्विटी में अन्य इकाइयों की भागीदारी की अनुमति दी गई है। लघु उद्योगों में विलम्बित भुगतानों की समस्याओं के भी समाधान का प्रयास किया गया है।

  • लघु उद्योगों की स्थापना में वृद्धि करने हेतु नियमों का सरलीकरण

लघु उद्योगों की अधिकाधिक स्थापना हो और रोजगार के अवसरों में वृद्धि हो इस बात को ध्यान में रखते हुए लघु उद्योगों के पंजीकरण, लाइसेन्स एवं स्थापना की विभिन्न औपचापरिकताओं व प्रक्रियाओं को सरल बनाने का प्रयास किया जा रहा है। लघु उद्योग, सहायक उद्योग तथा निर्यातोन्मुख इकाइयों की संयन्त्र और मशीनरी में पूँजी निवेश की सीमा को बढ़ाकर क्रमशः 1 करोड़, 3 करोड़ तथा अति लघु इकाई की सीमा 25 लाख कर दी गई है। राष्ट्रीय नीति के अनुसार उद्योगों से सम्बन्धित सेवा व्यापार उद्यमों को चाहे वह कहीं भी स्थित हो, लघु उद्योग की मान्यता दी जायेगी और इनमें पूँजी निवेश की सीमा अति लघु इकाइयों के बराबर होगी। लघु उद्योगों की भूमि आवण्टन/विद्युत कनेक्शन में वरीयता, कौशल/प्रौद्योगिक उन्नयन की सुविधाएँ व अति लघु उद्योगों को संस्थानिक वित्त, सरकार के क्रय कार्यक्रम में प्राथमिकता और श्रम कानून के कुछ प्रावधानों से छूट देकर अतिरिक्त समर्थन किया जायेगा। लघु उद्योगों के क्षेत्र के विकास में सहायक उदार प्रस्तावों के अतिरिक्त इक्विटी, एकल स्रोत इत्यादि योजना द्वारा भी लघु उद्योगों को सहायता दी जायेगी।

Economic Growth Innovator Generation

  • लघु उद्योगों के विकास हेतु प्राथमिकता क्षेत्र का निर्धारण

देश में ऐसे उद्योगों को प्राथमिकता दी जायेगी जिनमें रोजगार की अधिक सम्भावनाएं हों, जिनमें देश के उपलब्ध प्राकृतिक साधनों का उपयोग सम्भव हो तथा जिनके लगाने से उस क्षेत्र में एन्सिलरी इकाइयाँ स्थापित हो सकें। निम्न उद्योगों को प्राथमिकता क्षेत्र में सम्मिलित किए जाने का प्रस्ताव है—(1) कृषि पर आधारित उद्योग, (ii) खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, (iii) चीनी व उससे सम्बन्धित उद्योग, (पेपर प्लाण्ट, डिस्टलरी, केमिकल आदि।) (iv) होर्टीकल्चर पर आधारित उद्योग, (v) पेट्रोकेमिकल्स उद्योग, (vi) हैन्डलूम उद्योग, (vii) रेशम पर आधारित उद्योग, (viii) इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग, (ix) पशु सम्पदा पर आधारित उद्योग, (x) कपड़ा उद्योग, (xi) खनिज सम्पदा पर आधारित उद्योग, (xii) फाउन्ड्री, ग्लास तथा सिरैमिक्स उद्योग, (xiii) निर्यात मूलक इकाइयाँ, (xiv) होटल स्थापना, (xv) ट्रांसपोर्ट कार्य, (xvi) होलीडे रिसोर्ट, (xvii) केम्पिंग साइट, (xviii) हैन्डीक्राफ्ट ट्रेडिंग एण्ड मैन्यूफैक्चरिंग, (xix) एम्यूजमैन्ट पार्क, (xx) टेलीकम्युनिकेशन सुविधाएँ, (xxi) कम्प्यूटर शिक्षा एवं प्रशिक्षण हेतु केन्द्र की स्थापना, (xxii) सुस्थापित कम्प्यूटर प्रशिक्षण संस्थाओं की फ्रेन्चाइजी, (xxiii) डेस्क टाप पब्लिशिंग सेन्टर, (xxiv) साइबर केफे, (xxv) सॉफ्टवेयर निर्माण व कंसल्टेंसी, (xxvi) कम्प्यूटर रखरखाव व अनुरक्षण, (xxvii) कम्प्यूटर असेम्बलिंग, (xxviii) नेटवर्क परामर्श व प्रबन्धन, (xxix) वेबसाइट तैयार करना, (xxx) काल सर्विस सेन्टर (xxxi) इन्टरनेट सेवा प्रदाता, (xxxii) ई-कॉमर्स।

उक्त उद्योगों के विकास एवं प्रोत्साहन हेतु विशिष्ट सुविधाएँ शासन द्वारा दी जाएंगी। इसमें भूमि को रियायती दर पर उपलब्ध कराना, बिक्रीकर में विशेष छूट आदि सम्मिलित हैं। प्रत्येक उद्योग के लिए एक विशिष्ट नीति तैयार की जाएगी। लघु उद्योगों में कम पूंजी के निवेश के साथ अधिक लोगों को रोजगार मिलने की सम्भावना होती है। देश में ग्रामोद्योग, दस्तकारी, छोटे व मझोले उद्योगों की कुल संख्या लगभग एक करोड़ है जिनमें 80% लोगों को रोजगार प्राप्त है। लघु इकाइयों द्वारा देश के कल उत्पादन का 40% उत्पादन तथा कुल निर्यात किया जाता है।

  • (2)

    स्वरोजगार कार्यक्रम (Self Employment Programmes)

भारत जैसे बहुसंख्यक देश में जहाँ जनसंख्या 115 करोड़ से भी अधिक है. बेरोजगारी का होना स्वाभाविक है। यह सत्य है कि हाल के वर्षों में बेरोजगारी की समस्या ने विकट रूप धारण कर रखा है। इस समस्या के समाधान हेत लघु उद्योग विकास। संगठन ने अपने क्षेत्रीय कार्यालयों के माध्यम से उद्यमिता प्रशिक्षण कार्यक्रम तथा लघु उद्योग आरम्भ करने के लिए प्रोत्साहन देने का अभियान चलाया है। इस अभियान को सम्पूर्ण देश में फैले लघ उद्योग सेवा संस्थानों, शाखा संस्थानों तथा विस्तार केन्द्रा के माध्यम से चलाया जा रहा है। एक बेरोजगार व्यक्ति जब प्रोत्साहित होता है तब उसमें लघु उद्योग आरम्भ करने का इच्छा। उत्पन्न होती है और उद्यमिता तथा विकास के लिए वह अपनी औद्योगिक इकाई स्थापित करने का निश्चय करता है। वह अपने एक स्वतन्त्र व्यक्तित्व का निर्माण करता है, अपने उपक्रम का नियन्त्रण करता है और साथ ही कुछ लोगों के लिए रोजगार भा उपलब्ध कराता है। अपने उपक्रम का स्वामित्व प्राप्त हो जाने के फलस्वरूप जहाँ एक ओर आन्तरिक सन्तोष मिलता है वहीं पर सामाजिक प्रतिष्ठा और व्यक्तित्व में बढ़ोतरी होती है। उपक्रम का स्वामी इस प्रकार के अभियान से, लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु वस्तुओं का उत्पादन करके अथवा सर्विस प्रदान करके, समाज के उत्थान का भागीदार बन जाता है। लघु उद्योग लगाने के लिए जिस उद्यमी के अन्दर असीम इच्छा शक्ति हो, उसे उपक्रम के आरम्भ में व्यापार के विषय में अच्छी जानकारी हो जानी चाहिए। लघु उद्योग लगाने में उद्यमी का कोई भी लक्ष्य या उद्देश्य हो, परन्तु औद्योगिक उपक्रम से समुचित लाभ प्राप्त करना ही उद्यमी का मुख्य उद्देश्य रहना चाहिए।

टी. डब्ल्यू. शुल्ज (T. W. Schultz) के अनुसार, “किसी भी देश में रोजगार के अवसरों का तीव्र आर्थिक प्रगति के साथ गहरा सम्बन्ध होता है। वस्तुतः स्वरोजगार आर्थिक विकास का प्रमुख आधार है।” स्वरोजगार एवं उद्यमिता विकास बेरोजगारी की विकट समस्या के समाधान का एक व्यावहारिक उपाय है। आज देश में लाखों शिक्षित युवक कार्यविहीन एवं बेकार हैं। स्वरोजगार के माध्यम से उन्हें उद्योग-धन्धों एवं व्यवसाय की ओर प्रवृत्त किया जा सकता है। मानव शक्ति के आधिक्य का उचित नियोजन करने तथा राष्ट्रीय संसाधनों का उत्पादक उपयोग करने के लिए भारत सरकार ने अनेक स्वरोजगार योजनाओं का नियोजन काल में क्रियान्वयन किया; जैसे—शिक्षित बेरोजगार युवकों के लिए स्वरोजगार योजना; शहरी गरीबी के निराकरण हेतु स्वरोजगार योजना; स्वरोजगार के लिए ग्रामीण युवा प्रशिक्षण की राष्ट्रीय योजना; उन्नत औजार किट योजना; समन्वित ग्रामीण विकास योजना ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारण्टी कार्यक्रम, जवाहर रोजगार योजना, रोजगार बीमा योजना, नेहरू रोजगार योजना, प्रधानमंत्री का एकीकृत शहरी गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम आदि। प्रमुख रूप से निम्न योजनाएँ स्वरोजगार दिलाने हेतु संचालित की जा रही हैं

Economic Growth Innovator Generation

(1) प्रधानमन्त्री रोजगार योजना

(2) स्वर्ण जयन्ती रोजगार योजना

() स्वर्ण जयन्ती शहरी स्वरोजगार योजना

() स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना

(3) इन्दिरा आवास योजना

(4) सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना

(5) जय प्रकाश रोजगार गारण्टी योजना

 

(1) प्रधानमन्त्री रोजगार योजना

शिक्षित बेरोजगार यवाओं को स्वरोजगार स्थापित करने के उद्देश्य से शासन द्वारा 15 अगस्त, 1993 को प्रधानमन्त्री रोजगार योजना घोषित की गई, जिसे 2 अक्टूबर, 1993 से सम्पूर्ण देश में लागू किया गया। 22 जनवरी, 1999 को शासन द्वारा इस योजना में कुछ परिवर्तन किए गए। जिला स्तर पर यह योजना जिला उद्योग केन्द्र द्वारा संचालित की जा रही है इस योजना के विभिन्न विवरण इस प्रकार हैं .

(i) ऋण सीमाइस योजना के अन्तर्गत प्रत्येक पात्र लाभार्थी को अधिकतम दो लाख रुपये तक ऋण मिल सकता है। ये ऋण कम्पोजिट ऋण के रूप में देने का प्रावधान है। यदि कोई इकाई साझेदारी में स्थापित की जा रही है, तब इसके अन्तगत अधिकतम दस लाख रुपये तक ऋण हेतु आवेदन किया जा सकता है। इस योजना में लघु औद्योगिक इकार्ड तथा सेवा इकाइ हतु दो लाख रुपए तक एवं व्यवसाय स्थापना हेतु एक लाख रुपए तक की परियोजना हेतु आवेदन किया जा सकता है।

(ii) मार्जिन मनी एवं अनुदान–अनुदान की सीमा कुल परियोजना लागत पर 15 प्रतिशत व अधिकतम 7,500 रुपये प्रति लाभार्थी (उत्तर-पर्वी राज्यों को छोडकर) एवं मार्जिन मनी 5 प्रतिशत से 16.5 प्रतिशत तक बैंक द्वारा ली जा सकती है। जिससे अनुदान एवं मार्जिन मनी मिलाकर कल परियोजना लागत का 20 प्रतिशत हो सके।

(iii) बैंक को दी जाने वाली गारन्टी-एक लाख रुपये तक की परियोजना हेत एवं साझेदारी की अवस्था में प्रति व्यक्ति एक लाख रुपए तक किसी प्रकार की कोलेटरल गारन्टी लाभार्थी की ओर से नहीं देनी होगी, बल्कि अपनी सम्बन्धित परियोजना के लिए ली जाने वाली सम्पत्तियों को बैंक को बन्धक करना होगा।

(iv) ऋण का पुनर्भुगतान स्वीकृत ऋण धनराशि 3 वर्ष से 7 वर्ष के मध्य चुकानी होगी, परन्तु यह मोरेटोरियम अवधि 6 माह से 18 माह के बाद ही परियोजना अनुसार लागू होगी।

(v) ब्याज दरव्याज दर का निर्धारण भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा समय-समय पर जारी किए जाने वाले दिशा-निर्देशों के अनुसार किया जाएगा।

(vi) आवश्यक अर्हताएँ (1) शिक्षित बेरोजगार हो, (2) शैक्षिक योग्यता न्यूनतम कक्षा 8 उत्तीर्ण, (3) अभ्यर्थी की पारिवारिक वार्षिक आय समस्त स्रोतों से रुपये 40,000/- से अधिक न हो, (4) आयु 18 वर्ष से 35 वर्ष के मध्य हो (महिलाओं/अनुसूचित जाति/जनजाति, भूतपूर्व सैनिक एवं विकलांग अभ्यर्थी हेतु अधिकतम आयु सीमा 45 वर्ष) (5) अभ्यर्थी सम्बन्धित क्षेत्र में कम-से-कम 3 वर्ष से रह रहा हो, एवं (6) अभ्यर्थी किसी वित्तीय संस्था का डिफाल्टर न हो।

(2) स्वर्ण जयन्ती रोजगार योजना

गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले गरीब लोगों को उद्यम स्थापना हेतु ऋण सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से यह योजना संचालित की गयी है। इस योजना को शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में अलग-अलग रूप से संचालित किया जा रहा है। जिनका विस्तृत वर्णन निम्नलिखित हैं

Economic Growth Innovator Generation

() स्वर्ण जयन्ती शहरी स्वरोजगार योजना

देश के सभी शहरों/अर्द्ध-शहरों में स्वर्णजयन्ती शहरी रोजगार योजना 1 दिसम्बर, 1997 से चल रही है। बैंक ऋण वाले इसके अन्य उपायों में दो उप-योजनाएँ हैं—शहरी स्वरोजगार कार्यक्रम (यू. एस. ई. पी.) और शहरी क्षेत्रों में महिला और बाल विकास की योजना (डी. डब्ल्यू. सी. यू. ए.)। इसके अन्तर्गत कम-से-कम 30 प्रतिशत महिलाओं,3 प्रतिशत विकलांगों और अनुसूचित जाति तथा जनजाति की औसत संख्या के बराबर इस वर्ग के लोगों को सहायता देना अनिवार्य है। इस योजना के अन्तर्गत 75 प्रतिशत सब्सिडी केन्द्र और 25 प्रतिशत राज्य सरकारें देती हैं।

ऋण सीमा व्यक्तिगत मामले में इस योजना के अन्तर्गत 50,000 रुपए की परियोजनाओं हेतु ऋण मिल सकता है। यदि दो या दो से अधिक व्यक्ति मिलकर आवेदन करते हैं तो 50,000 रुपए से अधिक लागत वाली परियोजना पर भी विचार किया जा सकता है, बशर्ते प्रत्येक व्यक्ति का अंश 50,000 रुपये या इससे कम हो।

अनुदानकुल परियोजना लागत का 15 प्रतिशत या 7,500 रुपए अधिकतम (इनमें जो अधिक हो) साझेदारी की स्थिति में भी प्रत्येक लाभार्थी को उपर्युक्त अनुसार अनुदान का लाभ मिलेगा।

मार्जिन मनीप्रत्येक लाभार्थी को परियोजना लागत का 5 प्रतिशत मार्जिन मनी नकद धन के रूप में लगाना होगा।

बैंक को दी जाने वाली गारण्टी-ऋणी को कोई समर्थक गारण्टी की आवश्यकता नहीं होगी। कार्यक्रम के अन्तर्गत सृजित परिसम्पत्ति बैंकों को अग्रिम ऋण देने के लिए बन्धक रखी जाएगी।

ऋण पुनर्भुगतानस्वीकृत ऋण धनराशि 3 से 7 वर्ष के मध्य चुकानी होगी, परन्तु यह मोरेटोरियम (विलम्बन) अवधि 6 माह से 18 माह के बाद लागू होगी।

अर्हताएँ–(i) अभ्यर्थी गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन कर रहा हो; अर्थात् पारिवारिक वार्षिक आय 20,200/- रुपए से अधिक न हो।

(ii) अभ्यर्थी कम-से-कम 3 वर्ष से उस शहर में रह रहा है, जहाँ ऋण हेतु आवेदन किया जा रहा हो।

(iii) अभ्यर्थी किसी बैंक, वित्तीय संस्था का दोषी न हो।

(iv) अभ्यर्थी ने आयु 18 वर्ष पूर्ण कर ली हो।

() स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना

एक समस्त स्वरोजगार योजना, स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना के नाम से 1 अप्रैल, 1999 को शरू हई। इस योजना में पहले के स्वरोजगार तथा सम्बद्ध कार्यक्रमों यथा-समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम, स्वरोजगार के लिए ग्रामीण यवाओं का प्रशिक्षण कार्यक्रम (ट्राइसेम), ग्रामीण क्षेत्र महिला एवं बाल-विकास कार्यक्रम, ग्रामीण दस्तकारों को उन्नत उपकरण किटों की आपूर्ति (सिदा), गंगा कल्याण योजना तथा 10 लाख कुआँ योजना, को समेकित कर दिया गया है.और अब से कार्यक्रम अलग से नहीं चल रहे हैं। इस योजना में पहले के स्वरोजगार कार्यक्रमों की शक्तियों और कमजोरियों का ध्यान रखा गया है। योजना का उद्देश्य ग्रामीण गरीबों को पारिवारिक आय बढ़ाना तथा आधारभूत स्तर पर लागा काम जरूरतों व संसाधनों को सुगमता प्रदान करना है। इस पुनर्संरचना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में भारी संख्या में उद्यमों की स्थापना। करना, जिसमें गरीबों की काबलियत, हर क्षेत्र की क्षमता शक्ति भू-आधारित अन्य तरीकों से सूक्ष्म उद्योगों के विकास के माध्यम से निरन्तर आय का सृजन कर कार्यक्रम को अधिक प्रभावशाली बनाना है।

यह योजना एक ऋण एवं सब्सिडी कार्यक्रम है। ऋण प्रमुख तत्त्व होगा, जबकि सब्सिडी केवल समर्थकारी तत्त्व होगी। अत: योजना के अन्तर्गत परियोजनाओं का नियोजन और तैयारी. गतिविधि समूहों का चयन, क्षमता निर्माण और आत्मनिभर । समहों के चयन के साथ-साथ बुनियादी ढांचे के नियोजन, स्वरोजगारियों के चयन, ऋण-पूर्व गतिविधियों और ऋण वसूली सहित प्राणोत्तर निगरानी के काम में बैंकों की अधिकाधिक भागीदारी की व्यवस्था है। योजना के अन्तर्गत सब्सिडी परियोजना लागत। के 30 प्रतिशत की एकसमान दर पर होगी, लेकिन इसकी अधिकतम सीमा 7.500 रुपये होगी। अनुसचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों के लिए यह सीमा 50 प्रतिशत या 10,000 रुपये होगी। स्वरोजगारियों (आत्मनिर्भर समूहों) के लिए सब्सिडी परियोजना की लागत 50 प्रतिशत होगी, लेकिन इसकी अधिकतम सीमा 1.25 लाख रुपए है। सिंचाई परियोजनाओं के लिए सब्सिडी की अधिकतम सीमा नहीं होगी। योजना में ग्रामीण गरीबों के कमजोर वर्गों पर विशेष ध्यान दिया गया है। इसी तरह कम-से-कम 50 प्रतिशत अनुसूचित जातियों/जनजातियों, 40 प्रतिशत महिलाओं और तीन प्रतिशत विकलांगों को योजना का लक्ष्य बनाया जायेगा। योजना में दी जाने वाली धनराशि केन्द्र और राज्य सरकारों 75:25 के अनुपात में बांटेंगी। राज्यों के निर्धारित केन्द्रीय आबण्टन का विवरण राज्यों में गरीबी के आधार पर किया जाएगा. लेकिन वर्ष के दौरान धन के उपयोग की क्षमता और विशेष आवश्यकताओं जैसी बातों को भी ध्यान में रखा जाएगा।

Economic Growth Innovator Generation

(3) इंदिरा आवास योजना

सर्वप्रथम 1985-86 में RLEGP (ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारण्टी कार्यक्रम) की एक उपयोजना के रूप में इन्दिरा आवास योजना आरम्भ हुई जिसे 1 अप्रैल, 1989 से जवाहर रोजगार योजना की उपयोजना के रूप में जारी रखा गया।

1 जनवरी, 1996 से इन्दिरा आवास योजना को जवाहर रोजगार योजना से अलग करके एक पृथक् एवं स्वतन्त्र योजना का रूप दे दिया गया। इस योजना का मुख्य उद्देश्य अनुसूचित जाति/जनजाति, मुक्त बन्धुआ मजदूरों के सदस्यों द्वारा मकानों के निर्माण में मदद करना तथा गैर-अनुसूचित जाति/जनजाति के गरीबी रेखा से नीचे के ग्रामीण लोगों को अनुदान देना है। योजना के अन्तर्गत मकान का आबंटन लाभार्थी परिवार की महिला सदस्य के नाम अथवा पति-पत्नी के संयुक्त नाम पर किया जाता है।

(4) सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना

सनिश्चित रोजगार योजना और जवाहर ग्राम समृद्धि योजना को मिलाकर 25 सितम्बर, 2001 को ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिर सामदायिक. सामाजिक तथा आर्थिक परिसम्पत्तियों के सजन सहित ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरी रोजगार तथा खाद्य सुरक्षा देने के लिए सम्पूर्ण ग्रामीण योजना शुरू की गई। पंचायती संस्थाओं के माध्यम से लागू की जाने वाली इस योजना में प्रति वर्ष 100 करोड़ मानव दिवस रोजगार सृजित किया जाएगा। ग्रामीण विकास मन्त्रालय द्वारा संचालित दो चरणों वाली इस योजना के पहले चरण में जिला एवं ब्लाक पंचायतों को सम्मिलित किया जाएगा जिस पर आबण्टित धनराशि का 50% व्यय होगा (जिला परिषदों को 20% तथा पंचायत समितियों को 30% मिलेगा)। योजना के दूसरे चरण में ग्राम पंचायतें शामिल की जाएंगी। इस योजना में कार्य करने वाले बेरोजगारों को प्रतिदिन 5 किलो खाद्यान्न दिया जाएगा, शेष भुगतान मुद्रा में किया जाएगा। योजना के अन्तर्गत किए गए कार्य श्रम आधारित होंगे और स्थायी सामुदायिक परिसम्पत्तियों के सजन में सहायक होंगे। आर्थिक सर्वेक्षण 200203 के अनसार पूर्व से चल रही रोजगार आश्वासन योजना को पूरी तरह सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना में समेकित कर दिया गया है।

(5) जय प्रकाश रोजगार गारण्टी योजना

इस योजना का उद्देश्य देश के सर्वाधिक विपदाग्रस्त जिलों में बेरोजगारों को गारण्टी प्रदान करना है। इस योजना को शरू करने के लिए प्रचालन सम्बन्धी तौर-तरीक तय करने की प्रक्रिया चल रही है।

Economic Growth Innovator Generation

उधमिता स्वरोजगार की आवश्यकता एवं महत्त्व

(Need and Importance of Entrepreneurship Self Employment)

जित उद्यमी ही देश के प्रचुर संसाधनों को उत्पाद में रूपान्तरित करके देश में आय, सम्पत्ति एवं पूँजीगत साधनों सकते हैं। स्वरोजगार राष्ट्र के सामाजिक-आर्थिक लक्ष्यों एवं व्यक्तियों की उच्च आकांक्षाओं की पूर्ति का सहज मार्ग है । एवं स्वरोजगार की आवश्यकता एवं महत्त्व को अग्र बिन्दुओं के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।

1 राष्ट्रीय उत्पादन में वृद्धि के लिए (To Increase National Production) विकासशील देशों का लगभग एक सा ही इतिहास रहा है, लम्बा विदेशी शासन, हाल ही में मिली राजनीतिक स्वतन्त्रता व वर्तमान काल में आर्थिक स्वतन्त्रता के लिए प्रयासरत रहना। इस प्रक्रिया में अधिकांश को राष्ट्रीय उत्पादन की वृद्धि के लिए मुख्यतः आयात विकल्प, उपभोक्ता उत्पादन, सेवा व निर्यात उत्पादन में वद्धि की समस्या का सामना करना पड़ता है। आयात की वैकल्पिक उत्पादनों। की आवश्यकता, राष्ट्रीय व मुद्रा को बाहर जाने से बचाने के लिए पड़ती है, जो कि विकास कार्यों के लिए आवश्यक है, परन्तु विकासशील देशों में जब चौतरफा विकास शुरू होता है तभी उपभोक्ता वस्तुओं/सेवाओं की माँग बढ़ती है। इन माँगों की आपूर्ति अधिक-से-अधिक उपभोक्ता उत्पादन एवं सेवाओं द्वारा होती है। चूँकि कोई देश अकेले ही विकास नहीं कर सकता। तीव्रगति से स्थायी विकास के लिए विकासशील देशों को दसरे देशों से व्यापार करना आवश्यक है, जिसके लिए उन्हें विदेशी मुद्रा की आवश्यकता होती है। विदेशी मुद्रा उपार्जन का प्रमुख तरीका है निर्यात हेतु उत्पादन करना जिसके लिए और अधिक आत्मनिर्भर उद्यमियों की आवश्यकता है।

राष्ट्रीय उत्पादन

आयात विकल्प उत्पादन

उपभोक्ता उत्पादन

सेवायें व निर्यात उत्पादन

Economic Growth Innovator Generation

2. बेरोजगारी का व्यावहारिक हल (Practical Solution of Unemployment) स्वरोजगार सम्भवत: अकेला एक ही व्यावहारिक उपाय है जिसे अपनाकर बेरोजगारी की विकट समस्या से निपटा जा सकता है। केवल मजदरी वाला रोजगार (Wage Employment) देने की नीति द्वारा बेरोजगारी की भीषण समस्या का हल नहीं किया जा सकता है। वास्तव में व्यक्तियों को स्वरोजगार के द्वारा अपने पैरों पर खड़ा करके ही उन्हें बेकारी के अभिशाप से मुक्ति दिलाई जा सकती है। इस बात पर विचार करते हुए, श्रम मन्त्रालय ने स्वरोजगार को बढ़ावा देने और विभिन्न जिलों के विभिन्न रोजगार कार्यालयों में स्वरोजगार प्रेरक कक्ष खोलने के सुझाव माँगे हैं। स्वरोजगार ही बेरोजगारी का बुनियादी हल है।

4. एकाधिपत्य कम करने के लिए (To Reduced Monopoly)—विकासशील देशों में व्यापार, उद्योग व व्यावसायिक क्षेत्रों में एकाधिपत्य एक आम बुराई है। राजनीतिक कारणों के साथ ही उद्यमियों की कमी के कारण भी अधिक पूँजी वालों के एकाधिपत्य को बढ़ावा मिलता है। युवाओं में स्वरोजगार को प्रोत्साहित करने के सुनियोजित प्रयास इस एकाधिपत्य को समाप्त करने में अहम् भूमिका निभाते हैं, क्योंकि स्वरोजगार को अपनाने वाले अनेक लोग उत्पादन व सेवाएँ आरम्भ कर देते हैं, जो अन्यथा कुछ ही लोगों द्वारा की जाती हैं।

5. क्षेत्र के कल्याण कार्यों में लाभ के पुनर्निवेश हेतु (Reinvestment of Earning)—किसी क्षेत्र विशेष में जब कोई बाहरी व्यक्ति उद्यम की स्थापना करता है तो अधिकांशत: लाभ का अधिक भाग वह उद्यम में निवेश नहीं करता बल्कि अधिकांश पूँजी का निवेश वहीं होता है जहाँ का उद्यमी होता है, जो कि उद्यम स्थान से भिन्न होता है। इस प्रक्रिया की तुलना रक्त शोषण की प्रक्रिया से की जा सकती है। अत: इसको हम जोंक प्रभाव (लीच इफेक्ट) कहते हैं। यह अधिकतर विकासशील देशों के पिछड़े क्षेत्रों में देखा जाता है। फलस्वरूप स्थानीय संसाधनों से प्राप्त सम्पत्ति में बहिर्गमन की नियमित प्रक्रिया चलती रहती है। इस प्रभाव से बचने के लिए स्थानीय युवाओं को स्वरोजगार एवं अपने ही क्षेत्र में उद्यम स्थापना के लिए तैयार करना आवश्यक है। ऐसी इकाइयों से प्राप्त लाभ का पुन: उसी स्थान पर निवेश होता है।

Economic Growth Innovator Generation

6. आर्थिक प्रभुत्व को बाँटने के लिए (To Divide Economic Power)-अभी तक दो शक्तियों ने ही विश्व पर साम्राज्य किया है—शारीरिक और आर्थिक। प्रारम्भिक काल में प्रथम का प्रभुत्व अधिक था तो आधुनिक समाज में दूसरे का प्रभुत्व अधिक है। आर्थिक प्रभुत्व औद्योगिक व व्यावसायिक गतिविधियों का स्वाभाविक परिणाम है। जब तक औद्योगिक एवं व्यावसायिक कार्य योजनाबद्ध रूप से नहीं होते हैं तब तक आर्थिक सत्ता कुछ ही लोगों में सीमित रहेगी और यह स्थिति विकासशील देशों में प्रतिकूल सामाजिक, राजनीतिक परिस्थितियों को उत्पन्न करती है। इस समस्या से निपटने का एक ही मार्ग है कि औद्योगिक कार्यकलाप बड़ी संख्या में युवाओं को सौंपे जाएँ। इसके लिए इन देशों के युवाओं में उद्यमिता/स्वरोजगार के विकास के लिए आन्दोलन की आवश्यकता है।

7. सन्तुलित क्षेत्रीय विकास के लिए (To Balanced Regional Development) व्यावसायिक कार्यों के साथ-साथ सार्वजनिक सुविधाओं का विकास भी जुड़ा रहता है; जैसे—सड़क, यातायात, सचार, स्त शिक्षा, मनोरंजन आदि। चूँकि औद्योगिक कार्य अधिकतर देशों के कुछ ही शहरों एवं उनके आस-पास के क्षेत्रा म सामत रहते हैं, अतः विकास भी उन्हीं क्षेत्रों तक सीमित रहता है। फलस्वरूप क्षेत्रों के असन्तुलित विकास की समस्या उत्पन्नात है। विकासशील देशों में इसके अनेक उदाहरण देखे जा सकते हैं। 60 के दशक तक भारत में 50% से अधिक आधारक इकाइयाँ केवल 6 शहरों में ही सीमित थीं। आज वे ही शहर शेष देश की अपेक्षा अधिक विकसित है। इसी प्रकार थाइलण्ड में बैंकाक, मलेशिया में क्वालालम्पुर व पेनेग, फिलीपीन्स में मनीला व दक्षिण कोरिया में सियोल क्षेत्रों में असन्तुलित विकास के कुछ उदाहरण हैं।

स्थानीय जनसंख्या में स्वरोजगार विकास के सुनियोजित प्रयासों से देश में विभिन्न क्षेत्रों में उद्यमियों का विकास होगा। चूँकि अधिकतर व्यक्ति विशेष तौर पर लघु उद्यमी अपने मूल क्षेत्र में उद्यम स्थापना को प्राथमिकता देते हैं। स्वरोजगार में संलग्न युवा देश के सभी क्षेत्रों में औद्योगिक व व्यावसायिक गतिविधियों का विकास करेंगे।

8. आत्मनिर्भर समाज की स्थापना (Establishing of Self-sufficient Society) आर्थिक क्रियाओं द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादकता क्रान्ति (Productivity Revolution) एवं पूँजी निर्माण से ही एक आत्मनिर्भर समाज की स्थापना होती है, किन्तु उत्पादकता तथा धन सुजन का मूल आधार उद्यमिता ही है। स्वनियोजित उपक्रमी उत्पादन में वृद्धि द्वारा स्थानीय समुदाय की आवश्यकता की पूर्ति करके निर्यात संवर्द्धन में भी योगदान दे रहे हैं।

9. मानव शक्ति का उपयोग करने के लिए (To Utilization of Human Resource)-शिक्षित युवा वर्ग में शक्ति के साथ-साथ क्रिया कौशल की योग्यता होती है। बेरोजगारी की वर्तमान समस्या का कारण नौकरियों के प्रति इस वर्ग की अति निर्भरता है, जिसके परिणामस्वरूप युवा शक्ति का ह्रास एवं दुरूपयोग होता है। जिस समय वे युवावस्था के शिखर पर होते हैं, अपने को बेकार पाते हैं और सार्थक उद्देश्य के अभाव में अक्सर युवा वर्ग असामाजिक एवं हिंसात्मक गतिविधियों की ओर अग्रसर हो जाता है, जो बहुधा आत्मघाती सिद्ध होती है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि राष्ट्र अपने सबसे अधिक मूल्यवान संसाधन युवा शक्ति को खो देता है। स्वरोजगार युवा शक्ति के उपयोग के अनेक उत्तम अवसर प्रदान करता है। स्वरोजगार वास्तव में चुनौतीपूर्ण एवं रचनात्मक कार्य है। इसके लिए अतिरिक्त ऊर्जा की आवश्यकता है जो कि युवाओं में है। इससे युवा वर्ग में आत्मविश्वास की वृद्धि होती है, जिसकी विकासशील देशों में कमी है।

उद्यमिता के माध्यम से भारत के विपुल मानवीय संसाधनों का उपयोग किया जा सकता है। मानवीय संसाधन एक खजाने की भाँति है, जिसका उपयोग धन के सृजन के लिए किया जा सकता है। प्रयोग न किए जाने पर इसका कोई मूल्य नहीं है, किन्तु इस खजाने की चाबी स्वरोजगार है जो कि व्यक्तियों में खुशहाली का द्वार है।

10. गरीबी उन्मूलन (Poverty Eradication)-भारत गरीबी एवं अभावों का दु:ख एक लम्बे समय से भोग रहा है। यहाँ के असंख्य नागरिक गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन कर रहे हैं। रोजगार का अभाव ही हमारे देश में भुखमरी, निर्धनता व दुखों का मूल कारण है। पी. एन. पाण्डेय (P.N. Pandey) लिखते हैं कि “किसी भी देश में गरीबी का वहाँ के रोजगार के स्तर से गहरा सम्बन्ध होता है।”स्पष्ट है कि देश में रोजगार के स्तर को बढ़ाकर ही गरीबी को समाप्त किया जा सकता है तथा लोगों को एक उच्च जीवन-स्तर प्रदान किया जा सकता है।

Economic Growth Innovator Generation

11. उद्यमीय प्रवृत्तियों एवं कौशल का विकास (To Develop Entreprenurial Tendencies and Skills) स्वरोजगार की भावना से ही व्यक्ति में साहसी मनोवृत्ति विकसित होने लगती है। समाज की युवा पीढ़ी रचनात्मक प्रवृत्तियों की ओर अग्रसर है। स्वरोजगार व्यक्तियों में स्वतन्त्र जीवन जीने, सृजनात्मक कार्य करने व कुछ प्राप्त (Need for Achievement) की ललक भर देता है।

12.योजना के लक्ष्यों की प्राप्ति (To Achieve the Plan Objectives) हमारी पंचवर्षीय योजना के सामाजिक, आर्थिक लक्ष्यों की प्राप्ति का मूल आधार भी स्वरोजगार है। इसलिए सरकार विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में रोजगार के अवसरों के सृजन पर जोर देती रही है।

13. हस्तशिल्पकला का विकास (Development of Handicrafts)-स्वरोजगार योजना के अन्तर्गत शहरी एव ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगार हस्त शिल्पियों एवं कामगारों को वित्तीय सहायता उपलब्ध करवाकर देश की हस्त शिल्पकला एवं कौशल का जीवित रखा जा सकता है। भारत में स्वरोजगार अनेक लघु दस्तकारों व कलाकारों की आजीविका का एक साधन बनता जा रहा है। इस प्रकार देश में सांस्कृतिक वैभव, परम्पराओं एवं कौशल को सुरक्षित रखा जा सकता हैं ।

14. राष्ट्रीय महत्व (National Importance) स्वरोजगार की स्थापना से सम्पूर्ण राष्ट्र लाभान्वित होता है। स्वरोजगार के कारण प्रादेशिक असन्तोष एवं विद्रोह की भावना का निराकरण हो जाता है तथा राष्ट्रीय एकता को बल मिलता है। स्वरोजगार के फलस्वरूप देश आत्मनिर्भर बनता है तथा उसे विदेशी सहायता की आवश्यकता नहीं होती है जिससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है।

15. पूँजी निर्माण को प्रोत्साहन (Promotes Capital Formation) स्वरोजगार की क्रियाओं से देश में उद्योग-धन्धों का विकास होता है, उत्पादक कार्यों का विस्तार होता है तथा समाज में अनेक नए उपक्रमों की संख्या बढ़ जाती है। इससे देश में व्यावसायिक क्रियाओं का एक जाल बिछ जाता है। अनेक सेवा एवं वाणिज्यिक गतिविधियों से देश में धन-सम्पदा एवं पूँजी का निर्माण होता है। उद्यमियों की आय, बचत व लाभ पुन: नए उद्योगों की स्थापना में सहायक होते हैं।

16.राजकीय नीतियों के क्रियान्वयन में सहयोग (Contribution for the Execution of Government Policies) स्वरोजगार के माध्यम से सरकार अपनी विभिन्न नीतियों एवं कार्यक्रमों का सफलतापूर्वक क्रियान्वयन कर सकती है। तकनीकी शोध एवं विकास ढाँचे का निर्माण, एकीकृत विकास आदि के सम्बन्ध में निर्धारित नीतियों को स्वरोजगार के माध्यम से पूरा किया जा सकता है।

17. औद्योगिक वातावरण का निर्माण (Creation of Industrial Environment) स्वरोजगार योजना के अन्तर्गत साहसी देश में औद्योगिक वातावरण के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। एक व्यक्ति द्वारा उद्योग या रोजगार प्रारम्भ करने तथा उसकी औद्योगिक सफलता से प्रेरित होकर अनेक युवक उद्यम स्थापना के लिए उत्साहित होते हैं। यह क्रम निरन्तर चलता रहता है। इस प्रकार स्वरोजगार देश में औद्योगिक विकास का वातावरण निर्मित कर देता है।

Economic Growth Innovator Generation

18. प्रबन्धकीय योग्यता का विकास (DevelopmentofManagerial Capacity) स्वनियोजित व्यक्ति स्वयं रोजगार पहल करने की योजना बनाने की, निर्णय लेने की तथा अपने व्यवसाय के प्रबन्धन की क्षमता का विकास करता है। इसके अतिरिक्त, स्वरोजगार व्यक्ति में अनेक गुणों, जैसे—नेतृत्व, निर्णय क्षमता, आत्मविश्वास, धैर्य, दूरदर्शिता, सहनशीलता आदि को विकसित करके व्यक्तित्व विकास का मार्ग प्रदत्त करता है। स्वरोजगार से व्यक्ति में साहसिकता, उद्यमवृत्ति एवं जोखिम उठाने की क्षमता का विकास होता है।

19. समाज के कमजोर वर्गों का उत्थान (Upliftment of Weaker Sections of Society) स्वरोजगार समाज में अनेक कमजोर वर्गों की आजीविका एवं आर्थिक उत्पादन का एक प्रमुख उपाय है। समाज के शोषित लोगों, बेसहारा युवकों, अपंगों,महिलाओं व आर्थिक दृष्टि से पिछड़े व्यक्तियों कोस्वरोजगार योजना के अन्तर्गत वित्तीय सहायता उपलब्ध करवाकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है। स्वरोजगार ऐसे कमजोर लोगों को न केवल आय का साधन उपलब्ध कराता है, वरन् उनकी आत्मकुण्ठा एवं हीनता के भाव को भी कम करने में सहायक होता है।

20.आधारभूत सुविधाओं का विकास (Development of Infrastructural Facilities)—सरकार स्वरोजगार योजना के सफल क्रियान्वयन हेतु कई आधारभूत सुविधाओं का विकास भी करती है। सरकार जिला उद्योग केन्द्रों व अन्य सम्बन्धित संस्थाओं से सम्पर्क करके सड़क, बिजली, पानी, प्रशिक्षण संस्थाओं, बैंकों आदि सुविधाओं के विकास का कार्य भी करती है ताकि उद्योग-धन्धों की स्थापना की जा सके।

स्वरोजगार आर्थिक-सामाजिक बुराइयों एवं समस्याओं को मिटाकर राष्ट्र के सामाजिक स्तर को उन्नत करने एवं व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाकर उसमें आत्मविश्वास जगाने का एक प्रभावशाली कार्यक्रम है। यहाँ पर ‘अपनी सहायता उन्नत सहायता’ वाली कहावत चरितार्थ होती है।

Economic Growth Innovator Generation

3. पूरक तथा अनुपूरक आर्थिक विकास में उद्यमी की भूमिका

(Role of Entrepreneur in Complimenting and Supplementing

Economic Growth) आर्थिक विकास एक क्रपिक प्रक्रिया है। जिस प्रकार मानव के विकास का आदिम इतिहास इस तथ्य को स्पष्ट करता है कि मनुष्य जन्म के समय शिशु, शिशु से किशोर, किशोर से तरुण और फिर तरुणावस्था को पार करते हुए वृद्धावस्था की ओर अग्रसर होता है, ठीक उसी प्रकार किसी व्यवसाय या उद्योग को अपने पिछड़ेपन से आर्थिक विकास की चरम सीमा तक पहुँचने के लिए अनेक अवस्थाओं में से होकर गुजरना पड़ता है। क्रमिक आर्थिक विकास अपने में इतना सार्वभौमिक है कि वर्तमान समय में व्यावसायिक एवं औद्योगिक दृष्टि से विकसित कहे जाने वाले देशों जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस व जापान आप का मा आथक विकास को सम्पन्नता की मंजिल तक पहुँचने के लिए विभिन्न अवस्थाओं से होकर गुजरना। पड़ा था।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि कोई व्यवसाय अथवा उद्योग रातों-रात अचानक ही आर्थिक विकास का चरम सीमा पर नहीं पहुँच जाता। उसे पूरक तथा अनुपूरक आर्थिक विकास की कई सीढ़ियों को पार करना पड़ा। इस कार्य में उद्यमा की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। उद्यमिता को विकसित करके ही अनेक आर्थिक-सामाजिक समस्याओं, जैसे—गरीबी, पूँजी की कमा, बेरोजगारी, निम्न उत्पादकता, धन की विषमता, असन्तुलित क्षेत्रीय विकास, उत्पादन में कमी, प्रत्याय में कमी, अकुशलता, रुग्ण इकाइयों की समस्या, पूँजी निर्माण की धीमी गति, नवीनता का अभाव. उपयक्त व्यावसायिक पर्यावरण का अभाव. क्षित वितरण प्रणाली, मूल्यों में अत्यधिक उतार-चढ़ाव, उद्योगों पर सरकार की रस्सा-कसी. आयात-निर्यात पर प्रतिबन्ध आदि का सामना करना पड़ता है। उद्यमी अपने चातुर्य, कौशल, सहनशीलता, धैर्य. नवाचार तथा गत अनभव से पूरक तथा अनुपूरक आर्थिक विकास की विभिन्न सीढ़ियों को पार कर लेता है एवं बाधाओं को दर करता है। उदाहरण के लिए, उद्यमी नवीन उत्पादन विधियों, नवाचार, नये कच्चे माल, स्वचालित यन्त्र, नवीन टेक्नोलॉजी, अनुसन्धान, बाजार अन्वेषण आदि से जहाँ एक और उत्पादन तथा उत्पादकता दोनों में वृद्धि तथा श्रेष्ठ उत्पादन में जहाँ एक ओर पूरक तथा अनुपूरक आर्थिक विकास की गति में तीव्रता लाता है, वहीं दूसरी ओर, उपभोक्ताओं के उपभोग के लिए पर्याप्त मात्रा में सस्ता, सुन्दर एवं टिकाऊ उत्पादन उपलब्ध कराता है तथा निर्यातों में वृद्धि करता है और आयातों में कमी लाता है। किसी ने सत्य ही कहा है कि “उद्यमियों की कमी पूरक तथा अनुपूरक आर्थिक विकास में एक प्रमुख बाधा है।” सी. डब्ल्यू कुक (C. W.Cook) के अनुसार, “उद्यमिता राष्ट्र के उत्पादक संसाधनों तथा उपभोक्ताओं के मध्य एक सेतु (Bridge) निर्मित करती है।” पीटर एफ. ड्रकर (Peter F. Drucker) के अनुसार, “नवाचार उद्यमिता का महान् नायक है।”

Economic Growth Innovator Generation

4.सामाजिक स्थायित्व में उद्यमी की भूमिका

(Role of Entrepreneur in Social Stability)

उद्यमी का सामाजिक स्थायित्व में महत्त्वपूर्ण योगदान है। समाज के मूल्यों, प्रारूपों, व्यवहारों, विश्वासों, परम्पराओं व धारणाओं का उद्यमी प्रवृत्तियों के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान है। किसी ने सत्य ही कहा है कि “मानव सामाजिक प्राणी है।” (“Man is a social animal”) उद्यमी भी एक सामाजिक प्राणी है अतएव उस पर समाज के पर्यावरण का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक ही है।

गत कुछ वर्षों में भारतीय समाज में जो आर्थिक-सामाजिक परिवर्तन एवं सामाजिक स्थायित्व की लहर आयी है, उसमें उद्यमी की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। तकनीकी प्रशिक्षण एवं प्रबन्धकीय शिक्षण के कारण रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई है। सन्तुलित क्षेत्रीय विकास को प्रोत्साहन मिला है। शहरीकरण तथा औद्योगीकरण ने जातिवाद के घेरे में बँधी व्यावसायिक पहचानों को विखण्डित कर दिया है और सामाजिक स्थायित्व को अभिप्रेरित किया है। आज प्रत्येक देश में सामाजिक परिवर्तनों एवं आर्थिक विकास की बढ़ती हुई आकांक्षाओं के सन्दर्भ में स्व-लाभ के लिए कार्य करने वाले उद्यमी की धारणा पूर्णतः अव्यावहारिक हो गयी है। वर्तमान दशाएँ आज एक ऐसे उद्यमी की माँग करती हैं, जो समाज के प्रति जागरूक हो तथा दूसरों की प्रगति से चिन्तित न हो। आधुनिक उद्यमी अपनी क्रियाओं के सामाजिक प्रभावों के प्रति पूर्ण रूप से जागरूक रहता है। उद्यमिता समाज में नए रोजगार, नई वस्तुएँ, नये व्यवसाय व जीवन के नये मूल्य व नये स्तर विकसित कर सकती है। सामाजिक-नवप्रवर्तन’ आधुनिक उद्यमी का प्रमुख कार्य है। विकासशील देशों में उद्यमिता सामाजिक रूप से एक वांछनीय व्यवहार (Socially Desired Behaviour) है, जो सामाजिक लक्ष्यों पर आधारित होता है, न कि वैयक्तिक लक्ष्यों पर।

उद्यमिता किसी भी राष्ट्र में सामाजिक एवं आर्थिक विकास की प्रक्रिया का एक आधारभूत तत्व है। उद्यमी समाज के एक बड़े भाग के कल्याण हेतु कार्य करता है। उसकी परियोजनाएँ, नीतियाँ एवं निर्णय सामाजिक हित पर आधारित होती हैं। यह समाज में विकास की दशाओं का निर्माण करता है तथा सामाजिक परिवर्तन का महत्त्वपूर्ण आधार बनाता है। समाज से सम्बद्ध हाकर उद्यमिता एक वैयक्तिक क्रिया नहीं वरन् एक अर्थपूर्ण सामाजिक उद्यम (Social Endeavour) का स्वरूप ग्रहण कर लता है। उद्यमी सामाजिक संसाधनों का विकास करके समाज के आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वह देश मपूजी का सृजन करके आर्थिक व सामाजिक विकास की प्रक्रिया को सुदृढ़ बनाता है। कालाबाजारी, संग्रह, कृत्रिम कमी, मूल्य पाद्ध, मुनाफाखोरी जैसी दूषित मनोवृत्तियों का उन्मूलन करके समाज को ऊपर उठाता है। समाज के विकास के नये मार्ग एवं नव संसाधन भी निर्मित करता है। इस प्रकार उद्यमी समाज में फैली हुई दूषित मनोवृत्तियों का उन्मूलन करके समाज में स्थायित्व लाता है और उसे प्रगति के मार्ग पर अग्रसर करता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

1 उद्यमी से क्या आशय है ? नवाचारक के रूप में देश के आर्थिक विकास में उद्यमी की भूमिका की विवेचना कीजिए।

What is meant by Entrepreneur ? Discuss the role of entrepreneur as a innovator in economic growth of the country.

2. उद्यमी का अर्थ स्पष्ट कीजिए। रोजगार के अवसरों का सृजन करने में उद्यमी के योगदान का मूल्यांकन कीजिए।

Explain the meaning of Entrepreneur. Evaluate the role of the entrepreneur in generating employment opportunities.

3. उद्यमी से क्या आशय है ? किसी देश के आर्थिक विकास में उद्यमी के योगदान का वर्णन कीजिए।

What is meant by Entrepreneur ? Describe the role of entrepreneur in the economic growth of a country.

4. निम्नलिखित को समझाओ

Explain the following

() नवाचारक के रूप में एक उद्यमी की भूमिका बताइए।

Role of entrepreneur as an innovator.

() सामाजिक दायित्व में उद्यमी की भूमिका।

Role of Entrepreneur in social stability.

() पूरक तथा अनुपूरक आर्थिक विकास में उद्यमी की भूमिका।

Role of entrepreneur in complimenting and supplementing economic growth.

5. उद्यमिता/स्वरोजगार की आवश्यकता एवं महत्त्व पर एक विस्तृत लेख लिखें।।

Write a detailed note on the need and importance of entrepreneurship/self-employment.

6. रोजगारों के सृजन में लघु एवं कुटीर उद्योगों की भूमिका पर एक लेख लिखें।

Write a note on creation of job/employment through cottage and small industries.

7. उद्यमी किस प्रकार आर्थिक विकास में नवाचार द्वारा अपना योगदान देता है? वर्णन करें।

How entrepreneur contribute in economic growth as an innovator ? Discuss.

8. देश के आर्थिक विकास में उद्यमी की भूमिका पर एक विस्तृत लेख लिखें।

Write a detailed note on the role of the Entrepreneur in the economic growth of the country.

9. उद्यमी के द्वारा किये जाने वाले विभिन्न कार्यों का विस्तृत रूप में वर्णन करें।

Discuss in detail various functions performed by an entrepreneur.

10. निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें

Write brief notes on

() सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना (SGRY)

() प्रधानमन्त्री रोजगार योजना (PRY)

() स्वर्ण जयन्ती रोजगार योजना (SJRY)

Economic Growth Innovator Generation

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

1 नवाचारक के रूप में उद्यमी की भूमिका बताइए।

State the role of entrepreneur as an innovator.

2. नियोत संवर्द्धन में उद्यमी के योगदान का संक्षेप मे वर्णन कीजिए।

Describe in brief the role of entrepreneur in export promotion.

3. आयात प्रतिस्थापन में उद्यमी की क्या भूमिका है?

What is the role of the entrepreneur in import substitution?

4. क्या उद्यमी का रोजगार के अवसरों का सृजन करने में कोई योगदान है ? स्पष्ट कीजिए।

In there any role of entrepreneur in generation employment opportunities ? Explain.

5. उद्योगों के सन्तुलित क्षेत्रीय विकास में उद्यमी की क्या भूमिका है?

What is the role of entrepreneurs in the balanced regional development of industries?

6. सामाजिक स्थायित्व में उद्यमी का क्या योगदान है ?

What is the role of the entrepreneur in social stability?

7. निर्यात सम्वर्द्धन में उद्यमी का क्या योगदान है?

What is the role of the entrepreneur in export promotion?

8. अर्थव्यवस्था में प्रमुख क्षेत्र में उद्यमी की भूमिका की विवेचना कीजिए।

Discuss the role of entrepreneur in primary sectors of economy.

Economic Growth Innovator Generation

III. अति लघु उत्तरीय प्रश्न

(Very Short Answer Type Questions)

1.रोजगार के सृजन में उद्यमी की क्या भूमिका रहती है?

What is the role of the entrepreneur in the generation of employment opportunities?

2. रोजगारों के निर्माण से आप क्या समझते हैं?

What do you understand about the generation of employment?

3. सन्तुलित क्षेत्रीय विकास से आप क्या समझते हैं ?

What do you understand by balanced regional development?

4. स्वरोजगार कार्यक्रम क्या है ?

What is a self-employment program?

5. प्रधानमंत्री रोजगार योजना क्या है ?

What is Prime Minister Rozgar Programme?

Economic Growth Innovator Generation

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

सही उत्तर चुनिए (Select the Correct Answer)

(i) उद्यमी रोजगार के अवसरों में करता है

(अ) वृद्धि

(ब) कमी

(स) न कमी न वृद्धि

(द) इनमें से कोई नहीं।

Entrepreneur in employment opportunities

(a) Increase

(b) Decrease

(c) Neither Increase Nor Decrease

(d) None of these.

(ii) उद्यमी है

(अ) नवाचारक

(ब) जोखिम वहन करने वाला

(स) साहसी

(द) ये सभी।

Entrepreneur is

(a) Innovator

(b) Risk bearing

(c) Enterprising

(d) All these.

(iii) व्यवसाय तथा उद्योगों के विकास में उद्यमी का योगदान है

(अ) अनावश्यक

(ब) आवश्यक

(स) कोई औचित्य नहीं

(द) कोई योगदान नहीं।

The role of the entrepreneur in the development of businesses and industries is

(a) Unnecessary

(b) Necessary

(c) No Justification

(d) No role

(iv) उद्यमी सहायता करते हैं

(अ) निर्यात में कमी

(ब) आयात में वृद्धि

(स) आयात प्रतिस्थापन

(द) निर्यात प्रतिस्थापन।

Entrepreneur help in

(a) Export Reduction

(b) Increasing Exports

(c) Import Substitution

(d) Export Substitution.

(v) भारत में उद्यमियों का भविष्य है

(अ) उज्ज्व ल

(ब) अन्धकार में

(स) सामान्य

(द) इनमें से कोई नहीं।

Future of Entrepreneurs in India is

(a) Bright

(b) In Dark

(c) Normal

(d) None of these.

(vi) उद्यमी का अधिकतम योगदान है

(अ) आर्थिक विकास में

(ब) सामाजिक स्थायित्व में

(स) निर्यात संवर्द्धन में

(द) ख्याति में वृद्धि करने में।

Maximum role of an entrepreneur is

(a) In Economic Development

(b) In Social Stability (c) In Export Promotion

(d) In Increasing Goodwill

[उत्तर-(i) (अ), (ii) (द), (iii) (ब), (iv) (स), (v) (अ), (vi) (अ)।]

Economic Growth Innovator Generation

2. इंगित करें कि निम्नलिखित कथन ‘सही’ हैं या गलत’

(Indicate Whether the Following Statements are “True’ or ‘False’)

(i) उद्यमी नवाचारक है।

Enterpreneur is an innovator.

(ii) निर्यात संवर्द्धन में उद्यमी की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

There is a key role for entrepreneurs in export promotion.

(iii) आयात प्रतिस्थापन में उद्यमी की कोई भूमिका नहीं है।

There is no role of entrepreneur in import substitution.

(iv) उद्यमी बेरोजगारों की संख्या में वृद्धि करता है।

Entrepreneur increases the number of unemployed.

(v) उद्यमी का उद्योगों के सन्तुलित क्षेत्रीय विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान है।

There is a key role for entrepreneurs in the balanced regional development of industries.

(vi) उद्यमी रोजगार अवसरों का सृजन करता है।

Entrepreneur creates employment opportunities.

(vii) उद्यमी आयात प्रतिस्थापन में सहायता करता है।

Entrepreneur helps in import substitution.

(viii) उद्यमी आविष्कारक है तथा नवाचारक नहीं है।

Entrepreneur is an inventor and not innovator.

(ix) उद्यमी आयातों में वृद्धि करता है।

Entrepreneur increase imports.

(x) उद्यमी आर्थिक विकास की कुंजी है।

An entrepreneur is a key to economic growth.

[उत्तर-(i) सही, (ii) सही, (iii) गलत, (iv) गलत, (v) सही, (vi) सही, (vii) सही, (viii) गलत, (ix) गलत, (x) सही।]

Economic Growth Innovator Generation

chetansati

Admin

https://gurujionlinestudy.com

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Previous Story

BCom 2nd Year Entrepreneur Critical Evaluation Development Programme Notes In Hindi

Next Story

BCom 2nd year Entrepreneur Balanced Role Economic Development Study Material Notes in Hindi

Latest from BCom 2nd year Fundamental Entrepreneurship