BCom 1st Year Economic Planning India Objectives Strategy Study Material Notes In Hindi

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BCom 1st Year Ecoomic Planning India Objectives Strategy Study Material Notes In Hindi

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India Objectives Strategy
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BCom 1st Year Economic Planning India Objectives Strategy Study Material Notes In Hindi

भारत में आर्थिक नियोजन

[ECONOMIC PLANNING IN INDIA]

(आवश्यकता, उद्देश्य एवं व्यूहरचना)

(NEED, OBJECTIVES AND STRATEGY)

आर्थिक नियोजन का अर्थ एवं परिभाषाएं

(MEANING AND DEFINITIONS OF ECONOMIC PLANNING)

‘आर्थिक नियोजन’ एक व्यापक शब्द है जिसकी परिभाषा भिन्न-भिन्न अर्थशास्त्रियों व विद्वानों ने भिन्न-भिन्न प्रकार से दी है। कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं :

(1) डॉ. डाल्टन के अनुसार, “व्यापक अर्थ में आर्थिक नियोजन, विशाल साधनों के संरक्षणों द्वारा निश्चित लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु आर्थिक क्रियाओं का सचेत निर्देशन है।”

(2) बी. बूटन के शब्दों में, “आर्थिक नियोजन एक ऐसी पद्धति है जिसमें बाजार तन्त्र का प्रयोग जान-बूझकर इस प्रकार किया जाता है कि ऐसा ढाँचा बने जो कि उनको स्वतन्त्र छोड़ने पर बसने वाले ढाँचे से भिन्न हो।”

(3) गुनार मिर्डल के मत में, “आर्थिक नियोजन राष्ट्रीय सरकार की रीति-नीति से सम्बन्धित वह कार्यक्रम है, जिसमें बाजार शक्तियों के कार्यकलापों में राज्य हस्तक्षेप की प्रणाली को सामाजिक प्रक्रिया के ऊपर ले जाने हेतु लागू किया जाता है।

(4) भारतीय योजना आयोग की राय में, “आर्थिक नियोजन आवश्यक रूप से सामाजिक उद्देश्यों के अनुरूप साधनों को अधिकतम लाभ हेतु संगठित एवं उपयोग करने का एक मार्ग है।”

आर्थिक नियोजन की उपर्युक्त परिभाषाएँ यह बताती हैं कि आर्थिक नियोजन (1) निश्चित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए आर्थिक क्रियाओं का निर्देशन है। (2) यह एक पद्धति या प्रणाली है जिसमें विपणन यन्त्र को एक निश्चित ढाँचे की प्राप्ति के लिए जानबूझकर काम में लाया जाता है। (3) यह सरकार के कार्यक्रम की एक रणनीति (strategy) है। (4) इसमें राज्य द्वारा हस्तक्षेप किया जाता है। (5) इसका उद्देश्य सामाजिक प्रक्रिया को ऊपर उठाना होता है। (6) यह साधनों का अधिकतम उपयोग करने का एक तरीका है जिससे कि सामाजिक उद्देश्यों के अनुरूप साधनों का उपयोग किया जा सके। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि “आर्थिक नियोजन से अर्थ एक संगठित आर्थिक प्रयास से है जिसमें एक निश्चित अवधि में सनिश्चित एवं सपरिभाषित सामाजिक एवं आर्थिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए आर्थिक साधनों। का विवेकपूर्ण ढंग से समन्वय एवं नियन्त्रण किया जाता है।”

Economic Planning India Objectives

आर्थिक नियोजन की विशेषताएँ या लक्षण

(CHARACTERISTICS OF ECONOMIC PLANNING)

आर्थिक नियोजन की प्रमुख विशेषताएँ या लक्षण निम्नलिखित हैं :

(1) लक्ष्यों एवं प्राथमिकताओं का निर्धारण आर्थिक नियोजन की प्रमुख विशेषता निश्चित लक्ष्यों का निर्धारण है। यह लक्ष्य पहले से खूब सोच-विचारकर निर्धारित किये जाते हैं, फिर उन लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु विकास की प्राथमिकताएँ एवं उनका क्रम निश्चित किया जाता है।

(2) संगठित प्रणाली आर्थिक नियोजन के लिए एक संगठित प्रणाली या ढंग के रूप में कार्य किया जाता है। यह प्रणाली स्वतन्त्र उपक्रम प्रणाली (पूंजीवादी प्रणाली) की वैकल्पिक पद्धति है।

(3) केन्द्रीय नियोजन व्यवस्था आर्थिक नियोजन के अन्तर्गत नियोजन का कार्य एक केन्द्रीय नियोजन संस्था को सौंप दिया जाता है। यही संस्था या संगठन योजनाएँ बनाता है एवं उनमें समन्वय करता है तथा उनको कार्य रूप में परिणत कराने की व्यवस्था करता है।

(4) निश्चित अवधि आर्थिक नियोजन एक निश्चित अवधि के लिए होता है जिसमें निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयत्न किये जाते हैं।

(5) सरकारी कार्यक्रम आर्थिक नियोजन सरकारी रणनीति (Strategy) का एक भाग होता है। इसका अर्थ यह है कि इसको सरकारी कार्यक्रम के रूप में ही अपनाया जाता है।

(6) राज्य द्वारा हस्तक्षेपआर्थिक नियोजन में राज्य द्वारा हस्तक्षेप किया जाता है और निजी उद्योगों व संस्थाओं को भी राजकीय निर्देशों का पालन करना पड़ता है। कभी-कभी स्वयं राज्य भी नये-नये उद्योग व संस्थाएँ स्थापित कर देता है।

(7) सामाजिक उत्थान आर्थिक नियोजन का उद्देश्य सामाजिक उत्थान करना है जिससे कि समाज का विकास हो, उसका रहन-सहन का स्तर ऊपर उठे, उसकी आय में वृद्धि हो तथा सामाजिक बुराइयों का अन्त हो।

(8) साधनों का अधिकतम उपयोग आर्थिक नियोजन की एक विशेषता यह है कि इसमें साधनों का उपयोग विवेकपूर्ण ढंग से किया जाता है।

(9) दीर्घकालीन प्रक्रिया आर्थिक नियोजन एक दीर्घकालीन प्रक्रिया है। इसमें एक के बाद एक योजनाएँ चलायी जाती हैं जिनमें आपस में दीर्घकालीन सम्बन्ध होता है। अल्पकालीन योजनाएँ भी दीर्घकालीन योजनाओं का भाग होती हैं। इस प्रकार एक योजना दूसरी योजना के लिए तथा दूसरी योजना तीसरी योजना के लिए (और इसी प्रकार आगे भी) आधार का काम करती है।

Economic Planning India Objectives

भारत में आर्थिक नियोजन

(ECONOMIC PLANNING IN INDIA)

भारत में आर्थिक नियोजन के इतिहास को दो भागों में विभाजित कर अध्ययन कर सकते हैं: (1) स्वतन्त्रता से पूर्व (Pre-Independence) व (II) स्वतन्त्रता के पश्चात् (After Independence)

(1) स्वतन्त्रता से पूर्व

भारत में आर्थिक नियोजन की आवश्यकता 1934 में ही बतायी गयी थी, जबकि सर एम. विश्वेश्वरैया ने अपनी पुस्तक ‘Planned Economy for India’ प्रकाशित कर भारतीय जनता का ध्यान इस ओर। आकर्षित किया। 1935 के पश्चात् ब्रिटिश सरकार ने प्रान्तों को कुछ स्वतन्त्रता दे दी। अतः 1938 में पं. जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय नियोजन समिति का गठन किया गया, लेकिन यह समिति विश्वयुद्ध छिड़ जाने व कांग्रेस मन्त्रिमण्डल द्वारा त्यागपत्र दिये जाने के कारण कोई महत्वपूर्ण कार्य न कर सकी। जनवरी 1944 में बम्बई के आठ प्रमुख उद्योगपतियों ने मिलकर एक योजना बनायी जिसको बम्बई योजना का नाम दिया गया। अप्रैल 1944 में साम्यवादी दल के नेता एम. एन. राय द्वारा एक जन योजना (Peoples Plan) प्रकाशित की गयी। इसके बाद 1944 में ही एक योजना गांधीजी के विचारों से सहमत होकर श्रीमनारायण अग्रवाल द्वारा तैयार की गयी, लेकिन यह सभी योजनाएँ कागजी थीं और उन्हें कार्यरूप में परिणत नहीं किया जा सका। इन सभी का विस्तृत विवरण निम्न प्रकार है:

(1) सर विश्वेश्वरैया योजना सर विश्वेश्वरैया एक प्रसिद्ध इन्जीनियर थे। इन्होंने 1934 में एक पुस्तक लिखी थी जिसका नाम था ‘Planned Economy for India’ | इस पुस्तक में भारत के नियोजित आर्थिक विकास की ओर ध्यान आकर्षित किया गया था। यह योजना 10-वर्षीय थी जिसका मूल उद्देश्य 10 वर्षों में राष्ट्रीय आय को दुगना करना, औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि करना, लघु एवं बड़े उद्योगों का समन्वित विकास करना व व्यवसाय में सन्तुलनों की स्थापना करना था। यह योजना नियोजित आर्थिक विकास की दृष्टि से प्रथम योजना थी जिसके सुझाव महत्वपूर्ण थे, लेकिन आर्थिक कठिनाइयों व सरकार की उपेक्षा के कारण यह योजना। साकार रूप न ले सकी।

सन् 1935 में ब्रिटिश सरकार ने राज्यों को कुछ स्वतन्त्रता दे दी। अतः 1938 में पं. जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय नियोजन समिति का गठन किया गया जिसने देश की आर्थिक समस्याओं के अध्ययन के पश्चात् कुछ सुझाव सरकार के सम्मुख प्रस्तत किये थे: जैसे-सहकारी कृषि का विकास, लघु एवं वृहत उद्योगों का समन्वित विकास, कृषि ऋणों की उपलब्धता व मिश्रित अर्थव्यवस्था, आदि। लेकिन । 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध छिड़ जाने व कांग्रेस मन्त्रिमण्डल द्वारा त्यागपत्र दिये जाने के कारण इस नियोजन समिति के सुझावों पर भी कोई कार्यवाही न हो सकी।

(2) बम्बई योजना1944 के जनवरी माह में बम्बई के 8 उद्योगपतियों ने एक योजना प्रकाशित की जिसे बम्बई योजना के नाम से जाना जाता है। इस योजना के उद्योगपति थे—सर पुरुषोत्तमदास ठाकुरदास, जे. आर. डी. टाटा, घनश्यामदास बिड़ला, सर आर्देशिर दलाल, सर श्रीराम, सेठ कस्तूरभाई लाल भाई, डी. एफ, श्राफ एवं डॉ. जॉन मथाई। यह योजना 15-वर्षीय थी।

इस योजना में कुल 10,000 करोड़ र व्यय करने का प्रस्ताव था जिसका ब्यौरा इस प्रकार था-उद्योग 4,480 करोड़ र, गृह व्यवस्था 2,200 करोड़ र, कृषि 1,240 करोड़ र, परिवहन 940 करोड़ र, शिक्षा 490 करोड़ र, स्वास्थ्य 450 करोड़ ₹ व विविध 200 करोड़।

इस योजना के लिए वित्तीय साधनों की प्राप्ति इस प्रकार रखी गयी–पौण्ड पावना 1,000 करोड़ र, विदेशी ऋण 700 करोड र, व्यापार शेष 600 करोड़ र व भूमिगत धन 300 करोड़ र, बचत 4,000 करोड़ ₹, मुद्रा-प्रसार 3,400 करोड़ र।

इस योजना के मुख्य उद्देश्य थे—राष्ट्रीय आय को तिगुना करना, प्रत्येक व्यक्ति की आय को दुगना करना, शिक्षा व उद्योगों को प्राथमिकता देना, परिवहन के साधनों का विकास, कृषि क्षेत्र में 130 प्रतिशत की वृद्धि व निजी उपक्रमों को प्रोत्साहन। इन उद्देश्यों के अतिरिक्त नागरिकों को 2,600 कैलोरीज भोजन, 30 गज कपड़ा तथा 100 वर्ग फीट भूमि की न्यूनतम पूर्ति को सुनिश्चित करना भी इस योजना का लक्ष्य था। ___ परन्तु यह योजना पूंजीवादी बतायी गयी। इसमें निजी क्षेत्र को अधिक बल दिया गया था। योजना लागू न हो सकी।

(3) जन योजनाभारतीय श्रम संघ के प्रमुख श्री एम. एन. राय ने अप्रैल 1944 में एक जन योजना बनायी। राय साम्यवादी नेता थे। अतः यह योजना साम्यवादी सिद्धान्तों के आधार पर बनायी गयी। इस योजना में मूल रूप से आर्थिक जगत में राजकीय हस्तक्षेप की आवश्यकता पर विशेष बल दिया गया।

यह योजना 15,000 करोड ₹ की थी जिसमें व्यय इस प्रकार प्रस्तावित थे-उद्योग 5.600 करोड र. गृह निर्माण 3.150 करोड़ र, कृषि 2,950 करोड़ र, परिवहन 1,500 करोड़ र, शिक्षा 1,040 करोड र व स्वास्थ्य 760 करोड़।

इस योजना के लिए वित्तीय साधन इस प्रकार बताये गये—कृषि आय 10,816 करोड २. औद्योगिक आय 2,834 करोड र.प्रारम्भिक अर्थव्यवस्था 810 करोड़ र, पौण्ड पावना 450 करोड र, भमि का राष्ट्रीयकरण 90 करोड़ ।

इस योजना का मुख्य उद्देश्य 10 वर्ष में जनता की आधारभूत आवश्यकताओं को परा करना था। अन्य उद्देश्य थे सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों का विकास, आय की असमानता को दूर करना. रोजगार सुविधाआ में वृद्धि करना व कृषि उत्पादन बढ़ाना।

यह योजना साम्यवादी विचारधारा पर आधारित थी। अतः इसे उपयुक्त नहीं समझा गया।

(4) गांधीवादी योजनायह योजना गांधीजी की विचारधारा से प्रेरित होकर श्रीमन्नारायणजी ने 1944 में। प्रस्तुत की। इस योजना में 3,500 करोड़ र व्यय करने का प्रस्ताव था। यह व्यय इस प्रकार होना था कृषि 1.175 करोड़ र, वृहत् उद्योग 1.000 करोड़ र, परिवहन 400 करोड़ र, ग्रामीण उद्योग 350 करोड़ र, शिक्षा। 295 करोड़ र, जन स्वास्थ्य 260 करोड़ ₹ व अन्वेषण 20 करोड़।

इस योजना के लिए वित्त प्रवन्ध व्यवस्था इस प्रकार प्रस्तावित थी—आन्तरिक ऋण 2,000 करोड़ र, हीनार्थ प्रबन्धन 1,000 करोड़ ₹ व करारोपण 500 करोड़ २। यह योजना 10 वर्षीय योजना थी।

इस योजना का प्रमुख उद्देश्य जन समुदाय के जीवन स्तर को निर्धारित न्यूनतम सीमा तक लाना था। इसमें प्रत्येक नागरिक को 2,600 कैलोरीज वाला सन्तुलित भोजन, 120 गज कपड़ा व 100 वर्ग फुट। आवासीय भूखण्ड प्रदान करने का लक्ष्य था। इस योजना के कुछ और अन्य उद्देश्य इस प्रकार थे-ग्राम विकास, सामूहिक कृषि का विकास, भारी उद्योगों व जनउपयोगी सेवाओं वाले उद्योगों को राज्य के अधीन संचालित करना तथा अधिक-से-अधिक रोजगार देना व प्रति व्यक्ति आय में चार गुनी वृद्धि करना।

यह योजना अच्छी थी, परन्तु इसके लिए पर्याप्त वित्तीय साधन उपलब्ध नहीं थे। हीनार्थ-प्रवन्धन 1,000 करोड़ र का होने से मुद्रा-प्रसार का भय था। यह योजना आत्म अनुशासन पर आधारित थी जो व्यावहारिक नहीं थी। अतः यह योजना क्रियान्वित न हो सकी।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि स्वतन्त्रता से पूर्व गैर-सरकारी स्तर पर आर्थिक नियोजन के कई प्रयास किये गये, लेकिन उस समय की सरकार की उदासीनता के कारण कोई भी योजना लागू न हो सकी।

(II) स्वतन्त्रता के पश्चात्

भारत को स्वतन्त्रता 15 अगस्त, 1947 को मिली। तभी से भारत में नियोजित विकास की बात सामने आयी। अतः 1948 में औद्योगिक नीति घोषित की गयी तथा 1951 में औद्योगिक (विकास एवं नियमन) अधिनियम बनाया गया। इस अधिनियम का उद्देश्य उद्योगों का नियोजित विकास व नियमन करना था। 15 मार्च, 1950 को योजना आयोग बनाया गया जिसके अध्यक्ष तत्कालीन प्रधानमन्त्री पं. जवाहरलाल नेहरू थे। इस बीच दो योजनाएँ और सामने आयीं। एक तो सर्वोदय योजना व दूसरी कोलम्बो योजना।

Economic Planning India Objectives

सर्वोदय योजनाजयप्रकाश नारायण द्वारा 30 जनवरी, 1950 को प्रकाशित की गयी। इस योजना का प्रमुख उद्देश्य अहिंसात्मक ढंग से शोषणविहीन समाज की स्थापना करना था। इस योजना की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार थीं—आय व सम्पत्ति की असमानता को समाप्त करना, उद्योगों का संचालन समाज द्वारा किया जाना, भूमि का पुनः वितरण करना, सहकारी खेती का विकास करना, विदेशी लाभ अर्जित करने वाले प्रतिष्ठानों पर कठोर नियन्त्रण लगाना तथा सम्पूर्ण राज्य की आय का 50 प्रतिशत भाग ग्राम-पंचायतों द्वारा तथा शेष 50 प्रतिशत भाग शासकीय सत्ता द्वारा व्यय किया जाना। यह योजना पूर्ण रूप से सरकार ने नहीं मानी, लेकिन उसमें निहित कुछ सिद्धान्तों को अवश्य मान लिया।

कोलम्बो योजना—द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् राष्ट्रों ने अनुभव किया कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक नियोजन अपनाया जाय। अतः जनवरी 1950 में संयुक्त राष्ट्रमण्डल (Commonwealth Nations) की राष्ट्रीय सरकारों का एक सम्मेलन कोलम्बो में बुलाया गया जिसमें एक सलाहकार समिति की स्थापना की गयी। इस समिति ने 1951 से 1957 की 6 वर्षों में 1,868 मिलियन पौण्ड व्यय करने की सिफारिश की। भारत के लिए 23,337 मिलियन ₹ की व्यवस्था की गयी।

भारत ने जुलाई 1951 में पहली पंचवर्षीय योजना की रूपरेखा प्रकाशित की थी। अब तक बारह पंचवर्षीय योजनाएँ पूरी हो चुकी हैं इस बीच तीन एक-एक वर्षीय योजनाएँ व तीन वर्ष के अन्तराल में भी नियोजन हुआ है। इस प्रकार भारत ने अपने आर्थिक नियोजन के 67 वर्ष पूरे कर लिये हैं। भारत की योजनाओं में सार्वजनिक व्यय अग्र प्रकार हुआ है :

Economic Planning India Objectives

देश में नीति आयोग की स्थापना के बाद पंचवर्षीय योजनाएं लागू करने की व्यवस्था समाप्त हो गई। इसके स्थान पर नीति आयोग द्वारा 15 वर्षीय दृष्टिकोण, 7 वर्षीय रणनीति तथा 3 वर्षीय कार्य योजना (Action Plan) पर कार्य किया गया है। 15 वर्षीय दृष्टिकोण तथा 7 वर्षीय रणनीति को अभी अन्तिम रूप दिया जा रहा है।

नीति आयोग ने 3 वर्षीय कार्य योजना 23 अप्रैल, 2017 को घोषित की थी, जिसमें सम्मिलित प्रमुख बिन्दु निम्नलिखित हैं :

  • 2019-20 तक राजकोषीय घाटे को कम करते हुए 0% तक तथा राजस्व घाटे को कम करके0.9% तक लाना
  • किसानों की आय को 2022 तक दो गुना करना
  • किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य दिलवाना
  • सिंचाई आदि सुविधाओं का विस्तार करना
  • पशुपालन एवं मत्स्य क्षेत्र को बढ़ावा देकर आय के अतिरिक्त स्रोत उत्पन्न करना
  • निर्यात प्रधान उद्योगों को बढ़ावा देना तथा Coastal Employment Zone सृजित करना
  • अवसंरचना सुदृढ़ीकरण सुनिश्चित करना
  • ऊर्जा क्षेत्र में सुधार लाकर सुदृढ़ता प्रदान करना
  • घाटे में चल रहे सार्वजनिक उपक्रमों को बन्द करना
  • सार्वजनिक क्षेत्र की 20 कम्पनियों में रणनीतिक अनिवेश (Strategic Disinvestment) करना
  • 2022 तक समूचे देश में विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करना
  • कर प्रणाली का सरलीकरण एवं करवंचना पर नियन्त्रण सुनिश्चित करना
  • बेहतर मानव संसाधन प्रबन्धन सुनिश्चित करना
  • सामाजिक कल्याण के बेहतर आकलन के लिए लिंग आधारित सूचकांक (Gender Based Index) सृजित करना।
  • जल संसाधनों के Sustainable use को बढ़ावा देना
  • राष्टीय पोषण मिशन आरम्भ करना तथा एक व्यापक पोषक सूचना तन्त्र (Comprehensive Nutrition Information System) विकसित करना।

भारत में आर्थिक नियोजन की आवश्यकता या महत्त्व

(NEED OR IMPORTANCE OF ECONOMIC PLANNING IN INDIA)

भारत में आर्थिक नियोजन की आवश्यकता के सन्दर्भ में निम्न तर्क दिये जाते हैं

(1) संविधान के निर्देशक सिद्धान्तों का क्रियान्वयन देश के संविधान के नीति निदेशक सिद्धान्तों में यह कहा गया है कि सरकार अपनी नीतियों को इस प्रकार क्रियान्वित करेगी, जिससे (अ) प्रत्येक नागरिक अपनी जीविका अर्जन के लिए पर्याप्त साधन प्राप्त कर सके (ब) समाज के भौतिक साधनों का स्वामित्त्व। और नियन्त्रण इस प्रकार वितरित हो कि जिससे अधिकाधिक सामान्य लाभ हो तथा (स) आर्थिक विकास का संचालन इस प्रकार न हो, जिससे उत्पादन के साधनों और सम्पत्ति का केन्द्रण हो जाये। इन सभी की पूर्ति के लिए यह आवश्यक था कि देश में नियोजित आर्थिक विकास की व्यवस्था की जाये।।

(2) प्रति व्यक्ति आय और राष्ट्रीय आय में वृद्धि की आवश्यकता—भारत में प्रति व्यक्ति आय और उसके आधार पर राष्ट्रीय आय का स्तर काफी नीचे रहा है। 67 वर्षों के आर्थिक नियोजन के पश्चात भी विश्व में प्रति व्यक्ति आय की दृष्टि से भारत की स्थिति काफी नीचे है। अतः प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करने की दृष्टि से भी आर्थिक नियोजन की आवश्यकता स्वीकार की गयी।

(3) निर्धनता के दुष्चक्र की समाप्ति भारत में निर्धनता की गम्भीर समस्या रही है। सन् 1972-73 में देश की 51.5% जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे रह रही थी, जो 2011-12 में 29.5% अवश्य हो गयी, लेकिन अब भी काफी जनसंख्या गरीबी की समस्या से प्रभावित है। गरीबी की व्यापक समस्या के समाधान के लिए आर्थिक नियोजन महत्त्वपूर्ण है।

(4) आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था की प्राप्तिभारत कृषि प्रधान देश रहा है, अतः औद्योगिक और पूंजीगत साज-सम्मान के लिए भारत को अन्य देशों पर निर्भर रहना पड़ता था और आज भी पर्याप्त मात्रा में आयात करना पड़ता है। राष्ट्रीय सम्मान और सुरक्षा की दृष्टि से देश में आर्थिक क्षेत्र में पर्याप्त आत्म-निर्भरता आवश्यक है और इसकी प्राप्ति का एक महत्त्वपूर्ण आधार देश का नियोजित आर्थिक विकास है।

(5) प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधनों का उचित प्रयोग भारत निर्धन निवासियों का धनी देश कहा जाता है।” अर्थात् भारत में प्राकृतिक और मानवीय दोनों प्रकार के संसाधनों की प्रचुरता है, लेकिन उनका उचित प्रयोग न होने के कारण भारत आर्थिक विकास में पीछे रह गया है, अतः इन संसाधनों के उचित प्रयोग की दृष्टि से भी नियोजित विकास को उपयोगी उपकरण माना गया है।

(6) देश का सन्तुलित विकासभारत एक विशाल क्षेत्र वाला देश भी है, लेकिन स्वतन्त्रता के पूर्व देश के सभी पक्षों का सन्तुलित विकास नहीं हो पाया, जिससे क्षेत्रीय विषमताओं की समस्या उत्पन्न हो गयी। अतः देश के सर्वांगीण एवं सन्तुलित विकास पर जोर दिया गया और यह कार्य नियोजित आर्थिक विकास द्वारा ही सम्भव है।

(7) रोजगार सुविधाओं का विस्तारभारत में आंशिक, अर्द्ध एवं पूर्ण प्रत्येक प्रकार की बेरोजगारी की समस्या रही है। उससे केवल मानव-शक्ति उपयुक्त ही नहीं रहती वरन् अनेक राजनीतिक एवं सामाजिक समस्याओं को जन्म मिलता है। अतः अधिकाधिक लोगों को रोजगार प्रदान करने के उद्देश्य की पूर्ति के लिए भी आर्थिक नियोजन के महत्त्व को स्वीकार किया गया।

(8) आर्थिक संरचना का निर्माण भारत जैसे विशाल देश में उचित आर्थिक संरचना का प्रभाव रहा है। आज भी देश में आवश्यकतानुसार शक्ति उत्पादन, सड़क और परिवहन के साधनों की व्यवस्था नहीं है। इस दृष्टि से भी आर्थिक नियोजन अत्यन्त आवश्यक था।

(9) शिक्षा एवं तकनीक का स्तर ऊंचा रखना भारत में साक्षरता दर कम रही है और अनेक क्षेत्रों में आवश्यक तकनीकी ज्ञान का अभाव है। अतः यह अनुभव किया गया कि आर्थिक नियोजन में शिक्षण और प्रशिक्षण के कार्यक्रमों को उचित महत्त्व प्रदान करके देश में शिक्षा एवं तकनीक का स्तर ऊंचा किया जाये।

(10) समाजवादी समाज की स्थापना भारत ने स्वतन्त्रता के पश्चात् प्रजातान्त्रिक रीति से समाजवादी समाज की स्थापना का लक्ष्य रखा था। इसके लिए आर्थिक विषमताओं को कम करना, निर्धन वर्ग का विकास करना, सरकारी क्षेत्र का विस्तार करना इत्यादि आवश्यक था। यह सब भी नियोजित आर्थिक विकास द्वारा ही सम्भव है।

Economic Planning India Objectives

भारत में आर्थिक नियोजन के उद्देश्य

(OBJECTIVES OF ECONOMIC PLANNING IN INDIA)

अब तक के 67 वर्ष के नियोजन के प्रमुख उद्देश्य निम्न प्रकार रहे हैं :

(1) आत्मनिर्भरता योजनाओं के प्रारम्भ से ही आत्मनिर्भरता की बात कही गयी है, लेकिन तृतीय योजना ने इस पर विशेष बल दिया है। पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में तो विदेशी सहायता पर निर्भरता को न्यूनतम करने की बात कही गयी थी। आठवीं योजना में तकनीक,खाद्यान्न, सुरक्षा व साधनों की आत्मनिर्भरता का उद्देश्य रखा गया था जबकि नौवीं योजना का उद्देश्य आत्म निर्भरता के प्रयासों को मजबूत करना है। _ ग्यारहवी तथा बारहवीं पंचवर्षीय योजना में विदेशी उधार एवं सहायता पर निर्भरता को समाप्त कर दिया गया है।

(2) राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि भारतीय नियोजन का दूसरा मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय में तीव्र गति से वद्धि करना रहा है जिससे कि जन-साधारण के जीवन स्तर को ऊपर उठाया जा सके।

(3) कल्याणकारी राज्य की स्थापना भारतीय योजना का एक उद्देश्य कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना रहा है, जिसके लिए आय एवं सम्पत्ति की असमानता को दूर करने की बात प्रथम पंचवर्षीय योजना से ही प्रत्येक योजना में कही जा रही है। पाँचवीं योजना से ही गरीबी दूर करने की बात कही गयी है। छठी योजना में भी इस उद्देश्य को पूरा करने के संकल्प को दोहराया गया, जबकि सातवीं योजना में पुनः गरीबी कम करने की बात पर जोर दिया गया है।

(4) रोजगार अवसरों की वृद्धि भारतीय नियोजन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य रोजगार सुविधाओं में वृद्धि का भी रहा है। प्रत्येक योजना में इस बात को शामिल किया गया है। इसी दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर कृषि, उद्योग, सेवाएँ, आदि का विस्तार किया गया है।

(5) सार्वजनिक क्षेत्र का विस्तारभारत में आर्थिक नियोजन का एक उद्देश्य यह भी रहा है कि सार्वजनिक क्षेत्र का विस्तार किया जाय जिससे कि जिन क्षेत्रों में निजी उद्योगपति भारी विनियोग के कारण उद्योग स्थापित करने में असमर्थ रहते हैं उन क्षेत्रों में उद्योगों की स्थापना की जा सके तथा निजी क्षेत्र से प्रतियोगिता कर उनके शोषण की प्रवृत्ति को रोका जा सके। लेकिन अब सार्वजनिक क्षेत्र का विस्तार कुछ ही क्षेत्रों के लिए सीमित कर दिया गया है।

(6) समाजवादी समाज की स्थापना इन योजनाओं में समाजवादी समाज की स्थापना पर विशेष जोर दिया गया है। इसके लिए आर्थिक असमानताओं को कम करने तथा आम जनता को सामाजिक न्याय दिलाने का प्रयास किया गया है।

(7) अन्य उद्देश्यउपर्युक्त उद्देश्यों के अतिरिक्त आर्थिक नियोजन के उद्देश्य भी रहे हैं; जैसे—जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण, मूल्य स्थिरता, उद्योग एवं सेवाओं का विस्तार, खाद्य एवं औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि, आदि। भारत में आर्थिक नियोजन के उद्देश्यों की प्राप्ति

भारत में आर्थिक नियोजन के उद्देश्यों की प्राप्ति में सफलता कहाँ तक प्राप्त हुई है यह प्रश्न विवादास्पद है। अर्थशास्त्रियों व राजनीतिज्ञों का मत है कि आर्थिक नियोजन अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में पूर्ण सफल रहा है, जबकि कछ इसको पूर्णतया असफल मानते हैं। हम मध्यम मार्ग अपनाकर यह निश्चित रूप से कह सकते हैं कि भारत अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में पूर्णरूप से सफल न होकर आंशिक रूप से सफल रहा है। इसके लिए निम्न तथ्य प्रस्तुत कर सकते हैं :

(1) राष्टीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि–भारत में 1950-51 में सकल राष्ट्रीय आय (चालू मूल्यों पर) 10,360 करोड़ रथी जो 2014-15 में बढ़कर 1,24,98,662 करोड़ रतथा 2017-18 में 1.64,38,895 करोड ३ हो गयी है। इसी प्रकार प्रति व्यक्ति आय जो 1950-51 में 274 ₹थी वह 2014-15 में बढ़कर 88,533 ₹ तथा 2017-18 में 1,11,872 करोड़ रे (चालू मूल्यों पर) हो गयी है।

(2) आत्मनिर्भरता नियोजन के कारण ही आज हम आत्मनिर्भर होने की स्थिति में हैं। विदेशी सहायता। भी हम कम ले रहे हैं और भविष्य में और भी कम लेने का अनुमान है। यह भी सम्भव है कि अगले वर्षों में बिना किसी विदेशी निर्भरता से ही अपना विकास कर सकते हैं।

(3) कल्याणकारी राज्य की स्थापना कल्याणकारी राज्य की स्थापना में भी हम अग्रसर हुए हैं। नियोजन काल में देश में शिक्षा का विस्तार हुआ है। स्वास्थ्य, कल्याणकारी कार्यों में प्रगति हुई है। सामाजिक सेवाओं जैसे पिछड़ी जातियों के कल्याण, उचित मूल्य पर वस्तुओं का वितरण, परिवहन एवं संचार सेवाओं का विस्तार, आदि किया गया है।

(4) रोजगार सेवाओं में वृद्धिनियोजन काल में नये-नये उद्योगों की स्थापना एवं पुराने उद्योगों के विकास, परिवहन एवं संचार सेवाओं के विस्तार, सार्वजनिक क्षेत्र के विस्तार, आदि के कारण रोजगार अवसरों में भारी वृद्धि हुई है। 31 मार्च, 1991 को सार्वजनिक व निजी क्षेत्रों में कुल 267.33 लाख व्यक्तियों को रोजगार मिला हुआ था, जबकि 31 मार्च, 2012 को यह संख्या बढ़कर 295.8 लाख व्यक्ति हो गयी है।

(5) सार्वजनिक क्षेत्र का विस्तार नियोजन के फलस्वरूप सार्वजनिक क्षेत्र का काफी विस्तार हुआ है? वर्तमान में इस क्षेत्र में केन्द्रीय सरकार के 320 उपक्रमों में 11,71,844 करोड़ ₹ की पूँजी विनियोजित है। जिसमें उर्वरक, भारी एवं हल्की इंजीनियरिंग सामान, खनिज एवं धातु, उपभोक्ता माल, परिवहन, विपणन, आदि की सेवाएं शामिल हैं।

(6) समाजवादी समाज की स्थापना आर्थिक नियोजन समाजवादी समाज की स्थापना करने में भी सहायता दे रहा है, यद्यपि अभी हम पूर्ण रूप से समाजवादी समाज की स्थापना नहीं कर पाये हैं।

(7) अन्य उद्देश्य आर्थिक नियोजन अन्य उद्देश्यों को भी प्राप्त करने में आंशिक रूप से ही सफल रहा है। पिछड़े क्षेत्रों का विकास किया है। उद्योगों का विकास हुआ है। कृषि उत्पादन बढ़ा है। सिंचाई सुविधाओं का विस्तार हुआ है। जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण करने में भी सहायता मिली है। विदेशी व्यापार कुछ सन्तुलित हुआ है। परिवहन एवं संचार व्यवस्था का विस्तार हुआ है तथा आन्तरिक बचतें बढ़ी हैं।

Economic Planning India Objectives

नियोजन की व्यूहरचना

(STRATEGY OF PLANNING)

व्यूहरचना का आशय-व्यूह-रचना एक व्यापक धारणा है। इसकी व्याख्या करते हए प्रो. जे. के. अन्जारिया ने लिखा है कि “व्यूह-रचना के अन्तर्गत वे सभी मुख्य निर्णय आते हैं, जो किसी योजना अथवा विभिन्न योजनाओं के निर्माण के समय लिये जाते हैं। इसके अन्तर्गत योजना निर्माण की पूरी प्रक्रिया, योजना के उद्देश्य, प्राथमिकताएं, विनियोग प्रारूप, संसाधन संग्रह, वित्तीय एवं मौद्रिक नीति तथा प्रत्यक्ष नियन्त्रण आदि शामिल होते हैं।”

व्यूह-रचना के प्रमुख तत्त्वों को निम्न प्रकार रखा जा सकता है

(1) योजना का आकारयोजना पर कुल परिव्यय क्या होगा और इसमें सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र की क्या स्थिति रहेगी?

(2) उद्देश्य एवं प्राथमिकताएं योजना के उद्देश्यों को निर्धारित करना तथा विकास की दृष्टि से प्राथमिकताओं का क्रम निर्धारित करना।

(3) विनियोग प्रारूप योजना में किये जाने वाले विनियोग प्रारूप को निर्धारित करना और यह निश्चित करना कि योजना में उद्योग, कृषि, परिवहन, ऊर्जा, सामाजिक सेवाओं इत्यादि के मध्य संसाधनों का वितरण किस प्रकार किया जायेगा?

(4) वित्त प्राप्ति अथवा संसाधन संग्रहव्यूह-रचना के अन्तर्गत यह भी निर्धारित किया जाता है कि । सा में आवश्यक वित्तीय संसाधनों को किस प्रकार जुटाया जायेगा? इसमें करों, घाटे की वित्त-व्यवस्था और विदेशी सहायता इत्यादि की क्या स्थिति रहेगी?

(5) नीतिगत ढांचा याजना क सन्दर्भ में विभिन्न आर्थिक, मौद्रिक एवं राजकोषीय नीतियों को निर्धारित करना।

यह उल्लेखनीय है कि व्यूह-रचना का निर्माण दीर्घकालीन और अल्पकालीन दोनों दृष्टिकोणा स किया सकता हा पिछले कुछ समय में व्यह-रचना शब्द का प्रयोग ‘सन्तुलित’ और ‘असन्तुालत विकास नात निधारित करने के लिए भी किया जाने लगा है। निष्कर्षात्मक रूप में तीव्र गति एवं वांछित आर्थिक विकास क लक्ष्य को प्राप्त करने की दृष्टि से नियोजन रूपी युद्ध की सफलता का मूल आधार इसके लिए अपनाया गया कुशल व्यूह-रचना ही होती है, जिससे नियोजन के उद्देश्यों प्राथमिकताओं और लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके।

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भारत में नियोजन की व्यूहरचना

(STRATEGY OF PLANNING IN INDIA)

भारत में नियोजन की कोई एक निश्चित व्यह-रचना नहीं अपनायी गयी है। समय-समय पर आवश्यकताओं और परिस्थितियों को ध्यान में रखकर व्यह-रचना का निर्धारण किया जाता रहा है, जिसका योजनावार विवरण निम्न है

(1) प्रथम योजना की व्यूहरचना (Strategy of First Plan)

प्रथम पंचवर्षीय योजना के निर्माण के समय देश में एक और समस्या यह थी कि द्वितीय विश्व-युद्ध और देश के विभाजन के कारण अर्थव्यवस्था में उत्पन्न असन्तुलनों को दूर किया जाये तथा दूसरी ओर यह आवश्यक था कि भविष्य में देश के विकास के लिए एक बहुमुखी सन्तुलित प्रक्रिया को प्रारम्भ किया जाये। अतः प्रथम योजना की व्यूह रचना का पहला आधार अर्थव्यवस्था का पुनर्निर्माण करना तथा दूसरा आधार आधारभूत संरचना (infra-structure) का निर्माण करके कृषि क्षेत्र का बहुमुखी विकास करना था।

(II) द्वितीय योजना की व्यूहरचना (Strategy of Second Plan)

द्वितीय योजना की व्यूह-रचना प्रथम योजना से एकदम भिन्न थी। इस योजना में प्राथमिकताओं की दृष्टि से पहला स्थान उद्योग तथा खनिज को, दूसरा स्थान परिवहन और संचार को, तीसरा स्थान कृषि को तथा चौथा स्थान सामाजिक सेवाओं को प्रदान किया गया।

यह योजना पी. सी. महालनोविस के परिचालन मॉडल पर आधारित थी। इसमें सन्तुलित विकास के स्थान पर असन्तुलित विकास को श्रम-प्रधान परियोजनाओं के स्थान पर पूंजी-प्रधान परियोजनाओं को, कृषि के स्थान पर उद्योगों को तथा उपभोग के स्थान पर उत्पादन को प्राथमिकता दी गई।

यह उल्लेखनीय है कि दूसरी योजना में अपनाई गई व्यूह-रचना से देश में भारी उद्योगों की स्थापना करने तथा आधारभूत संरचना को विकसित करने में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त हुई, लेकिन एक ओर कृषि की अवहेलना और औद्योगिक विकास पर अधिक बल देने से विदेशी विनिमय का गम्भीर संकट उत्पन्न हो गया, दूसरी ओर कृषि की निम्न उत्पादकता और लघु उद्योगों की असफलता के कारण अर्थव्यवस्था में अत्यधिक स्फीतिकारी दबाव उत्पन्न हो गये।

(III) तृतीय योजना की व्यूहरचना (Strategy of Third Plan)

तृतीय योजना अपेक्षाकृत बड़ी और महत्त्वाकांक्षी योजना थी, जिसमें यह निर्णय लिया गया कि “योजनावधि में अर्थव्यवस्था का तीव्र गति से विकास होना चाहिए तथा राष्ट्र को आत्मनिर्भरता तथा स्वतः विकास की ओर भी बढ़ना चाहिए।” प्रथम और द्वितीय पंचवर्षीय योजनाओं के अनुभवों के आधार पर तृतीय योजना में विकास की लगभग सन्तुलित नीति अपनायी गई।

औद्योगिक क्षेत्र में ऐसे उद्योगों के विकास पर विशेष बल दिया गया, जिससे आत्म-निर्भरता और स्वतः विकास में सहयोग मिले। इनमें कोयला, इस्पात, तेल, विद्युत-शक्ति, इन्जीनियरिंग तथा रसायन उद्योग उल्लेखनीय थे। कुटीर एवं लघु उद्योगों को यह उत्तरदायित्व सौंपा गया कि वे रोजगार के अवसरों में वृद्धि के साथ ही उपभोक्ता वस्तुओं और कुछ निर्माता वस्तुओं की पूर्ति में सहयोग करें। इस योजना की व्यूह-रचना में एक विशेषता यह भी थी कि नियतिों के विस्तार के लिए ठोस आधार का निर्माण करने पर जोर दिया। गया. जिससे भविष्य में विदेशी सहायता पर निर्भरता को कम किया जा सके। आर्थिक विकास के लिए आधारभत संरचना को विकसित करने की दृष्टि से परिवहन एवं संचार के साधनों के विकास को भी व्यूह-रचना का एक महत्त्वपूर्ण भाग माना गया।

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 (IV) चतुर्थ योजना की व्यूहरचना (Strategy of Fourth Plan)

इस योजना की व्यूह-रचना की मुख्य बातें निम्न प्रकार थीं—

(1) कृषि और सिंचाई को प्राथमिकता इस योजना में कृषि और सिंचाई के विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई और कुल परिव्यय का 23.3% इस क्षेत्र के लिए रखा गया। ।

(2) बड़े धक्के (Big Push) के सिद्धान्त का प्रयोग योजना के आकार को अपेक्षाकृत विशाल रखा गया, जिससे एक बड़े धक्के के रूप में देश की अर्थव्यवस्था को गति प्रदान की जा सके।

(3) स्थिरता एवं सामाजिक न्याय के साथ विकास योजना की व्यूह-रचना सामाजिक न्याय के उद्देश्य से विकेन्द्रित विकास पर आधारित थी।

(4) निर्यात प्रोत्साहन पर बलइस योजना में निर्यात में बाधक तत्वों को दूर करने, निर्यातों की प्रतियोगी क्षमता को बढ़ाने तथा निर्यात के लिए आधिक्य सृजन करने हेतु व्यूह-रचना अपनाई गई।

(5) आन्तरिक संसाधनों पर अधिक निर्भरताव्यूह-रचना के एक आवश्यक अंश के रूप में यह स्वीकार किया गया कि वित्त के बाहरी साधनों पर निर्भरता कम की जाये और आन्तरिक साधनों को अधिक गतिशील बनाया जाये।

(6) नीचे से नियोजनइसके अन्तर्गत पंचायती राज संस्थाओं तथा सहकारी समितियों के माध्यम से राज्य तथा जिला स्तर पर नियोजन उपकरण को मजबूत बनाने तथा विकेन्द्रित नियोजन अपनाया गया।

(7) खायान्नों की कीमतों में स्थायित्व खाद्यान्न की कीमतों में स्थायित्त्व बनाये रखने की दृष्टि से खाद्यान्नों की व्यवस्था को प्रभावशाली बनाने, खाद्यान्नों का सुरक्षित भण्डार बनाने तथा सस्ते अनाजों की दुकानों की व्यवस्था को चालू रखा गया।

(8) आर्थिक शक्ति पर नियन्त्रणआर्थिक शक्ति पर नियन्त्रण की दृष्टि से एकाधिकारी अधिनियम बैंकों के राष्ट्रीयकरण तथा समुचित राजकोषीय नीतियों को अपनाया गया।

(9) लोक उपक्रमों के कार्यसंचालन में सुधार लोक उद्यमों के सन्दर्भ में सरकार ने यह अपेक्षा की कि वे सुदृढ़, स्वायत्त और उत्तरदायित्वपूर्ण इकाइयों के रूप में कार्य करेंगी तथा अपनी कुशलता एवं लाभदायकता बढ़ायेंगी।

(10) अन्य पहलूउपर्युक्त के अतिरिक्त देश में क्षेत्रीय असन्तुलनों को दूर करने, अविकसित क्षेत्रों का विकास करने, आयातों को न्यूनतम करने तथा आयात प्रतिस्थापन की व्यूह-रचना भी अपनायी गयी।

(V) पांचवीं योजना की व्यूहरचना (Strategy of Fifth Plan)

पांचवीं योजना में दो आधारभूत उद्देश्य रखे गये—गरीबी उन्मूलन और आर्थिक आत्म-निर्भरता। इस दृष्टि से भारी एवं आधारभूत उद्योगों के विकास को आवश्यक माना गया तथा विकास परियोजनाओं का शीघ्र पूरा करने, पूर्व-स्थापित क्षमताओं का पूर्ण प्रयोग करने तथा कमजोर वर्गों के न्यूनतम स्तर को बनाये रखने पर जोर दिया गया।

यह उल्लेखनीय है कि पांचवीं योजना की व्यूह-रचना में जहां एक ओर विकास की दर में वृद्धि पर जोर दिया गया वहां इस पहलू पर भी ध्यान दिया गया कि आय और सम्पत्ति के वितरण में अधिकाधिक समानता के लक्ष्य को प्राप्त किया जाये।

(VI) छठवीं पंचवर्षीय योजना की व्यूहरचना (Strategy of Sixth Five Year Plan)

छठवीं योजना (1980-85) में अपनाई गई व्यूह-रचना के सन्दर्भ में योजना प्रारूप में लिखा था कि “छठवीं योजना की व्यूह-रचना कृषि और उद्योग दोनों की आधारित-संरचना को एक साथ मजबूत करने की होगी, जिससे विनियोग, उत्पादन, निर्यात और रोजगार में तीव्र वृद्धि के लिए उचित परिस्थितियां बनाई जा सकें और इस उद्देश्य के लिए विशेष कार्यक्रम तैयार किये जा सकें। साथ ही ग्रामीण और असंगठित क्षेत्रों में विशेष रूप से अधिक रोजगार के अवसर उत्पन्न किये जा सकें और जनता की न्यूनतम आधारभूत आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।” इसके अतिरिक्त यह भी स्पष्ट किया गया कि “गरीबी की समस्या पर प्रहार केवल एक विस्तारशील अर्थव्यवस्था (Expanding Economy) में ही किया जा सकता है। अतः। जनता के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के विशेष उद्देश्य के लिए अन्य कार्यक्रम एवं नीतियां अपनानी होंगी।”

इस योजना में गरीबी उन्मलन करके तथा रोजगार के अधिकतम अवसर प्रदान करने का दृष्टि स व्यापक व्यूह-रचना अपनाई गयी और अनेक नवीन कार्यक्रम प्रारम्भ किये गये। योजना की व्यूह-रचना में इस पहलू पर भा जोर दिया गया कि निर्यात बढाने के सढ प्रयास किये जायें, जिससे दीर्घकाल में भुगतान सन्तुलन की समस्या का हल हो सके।

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(VII) सातवीं पंचवर्षीय योजना की व्यहरचना (Strategy of Seventh Five Year Plan)

सातवीं योजना में योजना प्रक्रिया के विकेन्द्रीकरण पर जोर दिया गया उत्पादक रोजगार बढ़ान क राष्ट्रीय कार्यक्रमों को विस्तृत किया गया कषि विकास की गति को तीव्र करने का लक्ष्य रखा गया, जिसस खाद्यान्ना म आत्मनिर्भरता प्राप्त की जा सके और गरीबी उन्मलन में कार्यक्रमों को तेज किया गया। औद्योगिक विकास की दृष्टि से यह नीति रही कि तकनीकी सुधार करके उद्योगों का आधुनिकीकरण किया जाये, उनकी कार्यकुशलता में वृद्धि की जाये तथा उनके मध्य लाभकारी प्रतियोगिता बनी रहे। विकास नीति की दष्टि से इस बात पर जोर दिया गया कि देश में विकास कार्यक्रमों में विकास एवं तकनीकी का समन्वय स्थापित किया जाये। देश में सभी विकासात्मक कार्यक्रमों को तैयार करने में इस बात पर ध्यान दिया गया कि पर्यावरण प्रदूषण को नियन्त्रित किया जा सके।

(VIII) आठवीं योजना की व्यूहरचना एवं विशिष्ट लक्षण (Strategy and Salient Features of Eighth Plan)

यह उल्लेखनीय है कि आठवीं योजना अनेक दृष्टियों से पिछली योजनाओं से भिन्न थी। इस दृष्टि से इस योजना के विशिष्ट लक्षण निम्न प्रकार थे

(1) संकेतसूचक नियोजन यह योजना प्रकृति की दृष्टि से संकेतसूचक थी। सार्वजनिक क्षेत्र की परियोजनाओं एवं विकल्पों का विस्तृत परीक्षण अवश्य किया गया, लेकिन शेष अर्थव्यवस्था के लिए वांछित दिशा में विकास की दृष्टि से प्रेरणात्मक व्यवस्थाओं पर जोर दिया गया।

(2) मानव विकास इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा, साक्षरता तथा आधारभूत आवश्यकताओं (basic needs) की पूर्ति को विशिष्ट प्राथमिकता दी गयी।

(3) आधारभूत संरचना का विकास योजना में यह माना गया कि आर्थिक विकास की तीव्र गति के लिए आधारभूत संरचना के तीन अंगों-शक्ति, परिवहन एवं सन्देशवाहन का समन्वित विकास किया जाना चाहिये।

(4) राजकोषीय असन्तुलनों का सुधार—आठवीं योजना में वित्त व्यवस्था की दृष्टि से राजकोषीय असन्तुलनों को ठीक करने पर ध्यान दिया गया, जिससे मुद्रास्फीतिक प्रभावों को नियन्त्रित किया जा सके।

(5) एकीकृत एवं समन्वित नियोजन इसमें विभिन्न विकास कार्यक्रमों को उचित रूप से एकीकृत असन्तुलनों को ठीक करने पर ध्यान दिया गया, जिससे मुद्रास्फीतिक प्रभावों को नियन्त्रित किया जा सके।

(6) जनता की भागीदारी योजना क्रियान्वयन के लिए जिला, ब्लॉक तथा गांव स्तर पर ऐसी संस्थागत व्यवस्था विकसित करने पर बल दिया गया, जिसमें जनता एवं स्वैच्छिक संगठनों की अधिकतम भागीदारी हो सके।

(7) निष्पादन प्रधान नियोजन योजना में संसाधनों के आबंटन की भूमिका के स्थान पर निष्पादन उन्मुखता (परिणाम प्रधानता) पर बल दिया गया।

(8) ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार पर विशेष बल—इससे जहां एक ओर बेरोजगारी की समस्या की गम्भीरता कम हो, वहां दूसरी ओर ग्रामीण जीवन स्तर में सुधार हो, शहरों की ओर जनसंख्या के भागने की प्रवृत्ति कम हो तथा गांवों के विकास कार्यक्रमों में निरन्तरता आये।

(9) लोचपूर्ण नियोजन योजना कार्यक्रमों में परिवर्तन, आविष्कार एवं समायोजनों के लिए पर्याप्त क्षेत्र है।

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(IX) नौवीं पंचवर्षीय योजना की व्यूहरचना (Strategy of Ninth Plan)

इस योजना में उत्पादक रोजगार का सृजन करने के लिए ऐसे क्षेत्रों, उपक्षेत्रों और तकनीकों पर बल। दिया गया, जो श्रम प्रधान हों। इस योजना में विकास की दृष्टि से क्षेत्रीय असन्तलन को कम करने तथा आत्मनिर्भरता प्राप्त करने की व्यूह-रचना भी अपनाई गई।

व्यावसायिक पर्यावरण नौवीं पंचवर्षीय योजना में कुछ क्षेत्रों की पहचान की गई, जिन पर विशेष ध्यान देने की व्यूह रचना बनाई गई। ये क्षेत्र निम्न प्रकार थे

(1) पर्यावरण असन्तुलन को दूर करना,

(2) शहरीकरण की समस्याओं का पता लगाना और उनका हल करना,

(3) निर्यातों को बढ़ावा देने के लिये एक सुदृढ़ विदेश व्यापार नीति का निर्माण करना और उसको कार्यरूप देना,

(4) केन्द्र और राज्यों के राजस्व घाटों को कम करने के लिये एक दीर्घकालीन योजना लागू करना.

(5) विद्यमान सार्वजनिक परिसम्पत्तियों के स्वस्थ तथा अनुकूल उपयोग को सुनिश्चित करना,

(6) सभी स्तरों पर सरकारी वित्तीय हालत में सुधार के लिये ऋण कार्यक्रमों को विनियमित करना,

(7) आधारित संरचना क्षेत्र (Infrastructure) का परिमाणात्मक एवं गुणात्मक सुधार करना।

(X) दसवीं योजना की व्यूह रचना (Strategy of Tenth Plan)

दसवीं योजना में अपनायी जाने वाली व्यूहरचना के प्रमख तत्व निम्नलिखित थे

(1) सरकारी भूमिका आर्थिक क्रियाओं में सरकार की भूमिका को पुनः परिभाषित किया गया और इन क्रियाओं में सरकारी उत्तरदायित्व को सीमित किया गया, जिससे सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका में भी कमी आये।

यह स्पष्ट किया गया कि सामाजिक क्षेत्र और आधारिक संरचना क्षेत्र (infrastructure) में, जहां अन्तराल (Gaps) अधिक हैं सरकार को महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।

(2) राजकोषीय और मौद्रिक नीतियों में लोच आर्थिक मामलों में निजी क्षेत्र की बढ़ती भूमिका के कारण व्यावसायिक उतार-चढ़ावों में अर्थव्यवस्था की संवेदनशीलता में वृद्धि होगी। इस दृष्टि से देश की मौद्रिक एवं राजकोषीय नीतियों में अधिक लचीलापन लाने का निश्चय किया गया।

(3) राष्ट्रीय लक्ष्यों के साथ राज्य स्तरीय लक्ष्यों का निर्धारण भारतीय नियोजन में अभी तक राष्ट्र-स्तरीय लक्ष्यों पर ही ध्यान केन्द्रित किया जाता रहा था, लेकिन सभी राज्यों में सन्तुलित विकास के महत्त्व को ध्यान में रखते हुये दसवीं योजना में मुख्य विकास लक्ष्यों का राज्यवार विवरण भी शामिल किया गया।

(4) कृषि विकासएक आधारिक तत्व-आर्थिक सुधार के प्रारम्भिक प्रयासों में उद्योगों पर अधिक ध्यान दिया गया था तथा कृषि क्षेत्र की उपेक्षा की गई थी, लेकिन दसवीं योजना में कृषि विकास को एक आधारिक तत्व (Core element) के रूप में स्वीकार किया गया, क्योंकि इस क्षेत्र के विकास से समाज को और विशेष रूप से ग्रामीण निर्धनों को व्यापक लाभ प्राप्त होते हैं।

(5) रोजगार सृजन—दसवीं योजना की विकास व्यूह रचना में उन क्षेत्र के विकास को अधिक किया गया, जो उच्च कोटि के रोजगार पैदा करने की संभावना रखते हों।

(6) विश्व की प्रतियोगी चुनौतियों का सामना शेष विश्व की आर्थिक प्रतियोगी चुनौतियों का सामना करने के लिये घरेलू सुधार को इस प्रकार बढ़ाने पर जोर दिया गया, जिससे घरेलू सुधारों में वृद्धि हो और विदेशी प्रतियोगिता का उचित रूप से सामना किया जा सके। इसके लिये घरेलू तथा विदेशी उद्यमियों को निवेश के लिये प्रोत्साहित किया गया।

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(XI) ग्यारहवीं योजना की व्यूह रचना [Strategy of Eleventh Plan (2007-12)]

ग्यारहवीं योजना में तीव्र विकास के साथ अधिक समावेशी संवृद्धि (inclusive growth) की दो तरफा व्यहरचना अपनायी गयी। निर्धनता अनुपात में कमी लाने, श्रम बल वृद्धि को उच्च गुणवत्ता युक्त रोजगार उपलब्ध कराने, जनसंख्या वृद्धि की दर को घटाने तथा स्वच्छ पेयजल की लगातार पहंच को सनिश्चित करने पर जोर दिया गया। सामाजिक-आर्थिक प्राथमिकताओं की दृष्टि से कृषि, सिंचाई, जल संसाधनों के विकास, स्वास्थ्य शिक्षा, ग्रामीण आधारभूत संरचना तथा सामान्य आधारभूत संरचना का क्रम निर्धारित किया गया।

(XII) बारहवीं योजना की व्यूह रचना [Strategy of Twelfth Plan]

बारहवीं योजना में तीव्र, धारणीय एवं अधिक समावेशी विकास की ब्यूहरचना की गयी है। इस योजना में कर्जा परिवहन. ग्रामीण अवसंरचना के विकास पर ध्यान दिया गया है। इसके साथ ही कृषि विनिर्माण। स्वास्थ्य शिक्षा एवं कौशल विकास, नवोन्मेष, तथा पर्यावरण संरक्षण पर जोर दिया गया है।

बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-2017)

पंचवर्षीय योजनाओं की सतत श्रृंखलाओं में बारहवीं पंचवर्षीय योजना । अप्रैल, 2012 से शुरू हो चकी है। इस योजना के अन्तिम स्वरूप को योजना आयोग की पूर्ण बैठक में 15 सितम्बर, 2012 का स्वीकार किया। बारहवीं पंचवर्षीय योजना को ‘तीव्र, धारणीय एवं अधिक समावेशी विकास’ (Faster, Sustainable and more Inclusive Growth) के केन्द्रीय दृष्टिकोण के आधार पर तैयार किया गया है। योजना की मुख्य विशेषताएं निम्न प्रकार हैं :

(1) विकास लक्ष्य (Development Aim) बारहवीं पंचवर्षीय योजना में प्रारम्भ में 9% से 9.5% वार्षिक वृद्धि का लक्ष्य रखा गया था, जिसे अन्तिम रूप से अब 8.2% निर्धारित किया गया है। यह उल्लखनाय है कि ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना में 8.1% वार्षिक वद्धि का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन वास्तविक वृद्धि। 7.9% की रही। बारहवीं पंचवर्षीय योजना में अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के लिए विकास लक्ष्य निम्न प्रकार। निर्धारित किए गए हैं: क्षेत्र विकास दर कृषि, वानिकी एवं मछली पालन

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(3) ऊर्जा (Energy) यह स्वीकार किया गया है कि ऊर्जा एक मुश्किल क्षेत्र है। देश के पास ऊर्जा संसाधनों की कमी है और आयात पर निर्भरता बढ़ रही है। इसलिए यह आवश्यक है कि ऊर्जा उत्पादों का घरेलू उत्पादन बढ़ाया जाए। इसके लिए ऊर्जा नीति की व्यापक समीक्षा भी करनी होगी।

(4) परिवहन (Transport) तीव्र विकास के लिए कुशल, विश्वसनीय एवं सुरक्षित परिवहन की आवश्यकता होती है। इस दृष्टि से सड़कों, रेलवे, बन्दरगाहों और नागरिक उड्डयन में क्षमता विस्तार एवं आधुनिकीकरण के लिए बड़ी मात्रा में विनियोग करना होगा। सड़क परिवहन में सार्वजनिक निजी साझेदारी (PPP) मॉडल का अधिक व्यापक रूप से प्रयोग किया जाएगा। रेलवे में आधुनिकीकरण को तीव्र प्राथमिकता दी जाएगी। बन्दरगाहों की क्षमता का विस्तार किया जाएगा। वायु-परिवहन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण नगरों को वायु-सम्पर्क से जोड़ने पर जोर दिया जाएगा।

(5) ग्रामीण रूपान्तरण (Rural Transformation)-जनगणना 2011 के अनुसार 83.3 करोड़ व्यक्ति ग्रामीण भारत में रहते हैं, जिनमें से अधिकांश फसल कृषि, बागवानी, पशुपालन या मछली पालन पर निर्भर हैं। इस क्षेत्र में निर्धनता को कम करने के लिए फॉर्म क्षेत्र में आय अवसरों का विस्तार करना होगा तथा गैर-कृषि क्रियाओं में व्यक्तियों के प्रगतिशील अवशोषण के प्रयास करने होंगे। बारहवीं योजना में ग्रामीण अवसंरचना को अधिक विस्तृत और सुदृढ़ किया जाएगा। ग्रामीण क्षेत्र में स्वास्थ्य एवं पोषणता पर विशेष ध्यान दिया जाएगा तथा ग्रामीण स्थानीय सरकारों को अधिक अधिकार दिए जाएंगे।

(6) कषि क्षेत्र कृषि क्षेत्र में इस प्रकार के प्रयास किए जाएंगे, जिससे 4% वार्षिक वृद्धि का लक्ष्य प्राप्त किया जा सके। इस दृष्टि से (i) जल प्रबन्धन में सुधार किया जाएगा. मिट्टी की उर्वरता का संरक्षण किया जाएगा तथा मिट्टी में पोषणीय तत्वों के कुशल प्रबन्धन के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएंगे। (iii) रासायनिक उर्वरकों के प्रबन्धन में कशलता पर ध्यान दिया जाएगा। (iv) कृषि उत्पादकता में वृद्धि करने के लिए नवीनतम तकनीकों के प्रयोग एवं नवोन्मेष को प्राथमिकता दी जाएगी। (v) कृषि शोध एवं विकास में विनियोग में वृद्धि की जाएगी। (vi) अच्छे बीजों की समय पर उपलब्धि को सुनिश्चित किया जाएगा। (vii), भूमि एवं पट्टा सुधार के क्षेत्र में चल रही समस्याओं का प्रभावशाली समाधान किया जाएगा। (viii) डेयरी क्षेत्र को सुदृढ़ किया जाएगा। इनके अतिरिक्त कृषि बीमा का विस्तार किया जाएगा, विपणन व्यवस्था में सुधार किए जाएंगे।

(7) निर्माणी क्षेत्र (Manufacturing Sector) निर्माणी क्षेत्र में ग्यारहवीं योजना में 10-11 प्रतिशत वृद्धि के लक्ष्य की तुलना में 8% की प्राप्ति का अनुमान है। चिन्ता का विषय यह है कि घरेलू राष्ट्रीय उत्पाद में निर्माणी क्षेत्र का भाग मात्र 15% है, जबकि चीन में यह 34% है। इसके साथ ही रोजगार सृजन की दृष्टि से भी इस क्षेत्र का तीव्र विकास वांछनीय है। इस दृष्टि से (i) निर्माणी क्षेत्र को वैश्विक नेटवर्क से एकीकृत किया जाएगा, (ii) भौतिक अवसंरचना में सुधार किया जाएगा, (iii) सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम क्षेत्र की भूमिका में वृद्धि की जाएगी. (iv) कशल मानव संसाधन की उपलब्धता में वृद्धि के कदम उठाए जाएंगे. (v) निर्माणी क्षेत्र में आने वाली बाधाओं का समाधान करने तथा क्षमता सृजन करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएंगे, (vi) सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में भूमिका को पेशेवर प्रबन्ध के आधार पर सुधारा जाएगा, (vii) निर्यातों को प्रोत्साहित किया जाएगा तथा (viii) व्यावसायिक नियमनात्मक ढांचे को प्रतियोगिता प्रेरित बनाया जाएगा।

(8) स्वास्थ्यबारहवीं योजना में स्वास्थ्य सुविधाओं और विशेष रूप से महिला एवं बाल स्वास्थ्य की योजनाओं पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। इसके लिए स्वास्थ्य अवसंरचना का विस्तार किया जाएगा तथा स्वास्थ्य के लिए मानव संसाधन में वृद्धि की जाएगी।

(9) शिक्षा एवं दक्षता विकासबारहवीं योजना में सभी स्तरों—प्राइमरी, सेकण्डरी, हायर सेकण्डरी तथा उच्च शिक्षा को सुदृढ़ करने के लिए सघन प्रयास किए जाएंगे। साथ ही, वोकेशनल शिक्षा एवं दक्षता विकास के प्रयासों को भी सुदृढ़ किया जाएगा।

(10) नवोन्मेष (Innovation)-2010-2020 तक के दशक को ‘नवोन्मेष दशक’ की घोषणा के साथ में योजना में इस दिशा में भी विशिष्ट एवं विस्तृत प्रयास किए जाएंगे।

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प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1 आर्थिक नियोजन क्या है ? इसके महत्व एवं उद्देश्य बताइए।

2. भारत में आर्थिक नियोजन के प्रमुख उद्देश्य क्या हैं? इन उद्देश्यों को प्राप्त करने में कहां तक सफलता प्राप्त

3. आर्थिक नियोजन से क्या अभिप्राय है? भारत जैसी एक विकासोन्मुख अर्थव्यवस्था में नियोजन के महत्व की विवेचना कीजिए।

4. भारत में आर्थिक नियोजन के उद्देश्य एवं व्यूहरचना बताइए।

5. बारहवीं पंचवर्षीय योजना पर एक निबन्ध लिखिए।

6. बारहवीं योजना में तीव्र, धारणीय एवं अधिक समावेशी विकास के लक्ष्य बताइए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

1 आर्थिक नियोजन का अर्थ समझाइए।

2. आर्थिक नियोजन की विशेषताएं बताइए।

3. आर्थिक नियोजन के उद्देश्य बताइए।

4. भारत में नियोजन के उद्देश्य बताइए।

5. बारहवीं योजना की व्यूहरचना को स्पष्ट कीजिए।

6. बारहवीं पंचवर्षीय योजना की प्राथमिकताएं क्या हैं?

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chetansati

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