BCom 1st Year Economics Law of Variable Proportions Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Economics Law of Variable Proportions Study Material Notes in Hindi

Table of Contents

BCom 1st Year Economics Law of Variable Proportions Study Material Notes in Hindi:  The laws of Production Short Term Laws of production Law of Variable Proportion Classical Approach Law of Diminishing Returns Limitations of the Law Assumptions of the Laws of Returns or Law of Variable Proportions  Scope of Operation of Law of Diminishing Returns Laws of Increasing Returns Theoretical Questions Long Answer Questions Short Answer Questions :

 Law of Variable Proportions
Law of Variable Proportions

BCom 1st Year Business Economics Isoquants ISO Product Curve Study Material Notes in Hindi

परिवर्तनशील अनुपातों का नियम

(Law of Variable Proportions)

उत्पादन के नियम

(The Laws of Production)

उत्पादन के नियम आदाओं (inputs) और प्रदाओं (output) में सम्बन्ध बतलाते हैं। इस सम्बन्ध का अध्ययन दो दशाओं से किया जाता है : (1) अल्पकाल में और (2) दीर्घकाल में। अल्पकाल में उत्पादन के एक आदान कारक को परिवर्तनशील और अन्य कारकों को स्थिर माना जाता है। इन दशाओं में उत्पादन के नियम परिवर्तनीय अनुपातों के नियम (The Laws of Variable Proportions) अथवा एक परिवर्तनीय आदा के प्रति प्रतिफल के नियम (Laws of Returns to a Variable Input) कहते हैं। दीर्घकाल में उत्पादन के सभी आदा कारकों को परिवर्तनशील मानकर आदा-उत्पत्ति सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है। इन सम्बन्धों का पैमाने के प्रतिफल के नियम (Laws of Returns to Scale) के अन्तर्गत अध्ययन किया जाता है। इस अध्याय में हम अल्पकाल में उत्पादन के नियमों का ही विवेचन करेंगे।

उत्पादन के अल्पकालीन नियम परिवर्तनशील अनुपातों का नियम

(Short-term Laws of Production – Law of Variable Proportions)

यह अर्थशास्त्र का एक अति महत्वपूर्ण, मौलिक और सर्व-स्वीकार्य नियम है। इस नियम के अन्तर्गत उत्पादन के एक आदान कारक को परिवर्तनशील तथा अन्य सभी कारकों को स्थिर मानकर आदान-उत्पत्ति का विश्लेषण किया जाता है। इस नियम का विश्लेषण दो दृष्टिकोणों से किया जा सकता है : प्रतिष्ठित और आधुनिक।

प्रतिष्ठित दृष्टिकोणउत्पत्ति हास नियम

(Classical Approach – Law of Diminishing Returns)

उत्पत्ति हास नियम का उल्लेख सर्वप्रथम सन् 1815 में सर एडवर्ड वेस्ट ने अपने एक लेख में किया किन्तु इसकी व्याख्या सर्वप्रथम प्रकृतिवादी अर्थशास्त्री तुर्गो (Turgot) ने की थी। इसके बाद इस नियम का वैज्ञानिक विवेचन सर्वप्रथम डॉ० मार्शल ने किया। उनके शब्दों में, “यदि कृषि-कला में कोई सुधार न हो तो भूमि पर उपयोग की जाने वाली पूँजी और श्रम की मात्रा में वृद्धि करने से कुल उपज में सामान्यतया अनुपात से कम वृद्धि होती है। साधारण शब्दों में, मार्शल तथा अन्य प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों का यह मत था कि यदि हम एक दिये हुए भूमि के टुकड़े पर श्रम और पूँजी की मात्राएँ बढ़ाते जायें तो एक ऐसी स्थिति आ जाती है जबकि कुल उत्पादन में वृद्धि उस अनुपात में नहीं होती जिस अनुपात में श्रम और पूँजी की मात्रा में वृद्धि की जाती है। फलतः श्रम और पूँजी की इकाइयों की उत्तरोत्तर वृद्धि पर सीमान्त । उत्पादन और औसत उत्पादन दोनों ही घटते जाते हैं।

इस नियम की क्रियाशीलता निम्नलिखित तालिका में दर्शायी गई है :

नियम की सीमायें (Limitations of the Law)

मार्शल तथा अन्य प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों ने इस नियम की व्याख्या केवल कृषि भूमि के सम्बन्ध में की थी जिसमें तकनीकी सुधार के अवसर कम होते हैं, यद्यपि वैज्ञानिक इस क्षेत्र में भी काफी सुधार लाये हैं। इस नियम की प्रमुख सीमायें निम्नलिखित हैं :

(1) कृषि पद्धति में सुधार (Improvements in Methods of Cultivation) : कृषि __ क्षेत्र में वैज्ञानिक सुधारों से इस नियम की क्रियाशीलता को रोका जा सकता है। किन्तु सुधार की भी एक सीमा होती है और अतः अन्त में यह नियम क्रियाशील हो जाता है।

(2) स्थिर कारक (Fixed Factors) : इस नियम की क्रियाशीलता के लिये कुछ कारकों का स्थिर होना आवश्यक है। अतः यदि कुछ कारकों को स्थिर नहीं रखा जाता है तो यह नियम नहीं क्रियाशील होगा।

(3) विजातीय परिवर्तनशील कारक (Heterogenous Variable Factors) : इस नियम की क्रियाशीलता के लिये आवश्यक है कि परिवर्तनशील कारकों की समस्त इकाइयाँ एकसी हों। वास्तविक जगत में परिवर्तनशील कारक की इकाइयों में असमानता देखने को मिलती है।

(4) परिवर्तनशील कारक की अपर्याप्त इकाइयाँ (Inadequate Units of Variable Factor) : यदि परिवर्तनशील कारक की इकाइयाँ पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं तो यह नियम क्रियाशील नहीं होगा।

नियम का आधुनिक रूप अथवा परिवर्तनशील अनुपातों का नियम (Modern Concept of Law or Law of Variable Proportions) : परिवर्तनशील अनुपातों का नियम एडम स्मिथ, रिकार्डो, माल्थस आदि प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों तथा नव-प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री मार्शल के प्रसिद्ध उत्पत्ति ह्रास नियम का ही एक नया नाम है। मार्शल तथा अन्य प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों ने इस नियम की व्याख्या केवल कृषि भूमि के सम्बन्ध में की थी। उन्होंने भूमि को उत्पत्ति का स्थिर साधन माना तथा अन्य साधनों को परिवर्तनशील। लेकिन बेनहम, जॉन राबिन्सन, स्टिगलर आदि आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने इस नियम की व्याख्या व्यापक रूप से की है। इन अर्थशास्त्रियों का मत है कि यह नियम केवल भूमि या कृषि पर ही नहीं लागू होता वरन यह तो उत्पादन के सभी क्षेत्रों व सेवा क्षेत्र (service sector) पर लागू होता है। इस नियम की इस व्यापक क्रियाशीलता पर बल देने के लिये ही आधुनिक अर्थशास्त्री इसे परिवर्तनशील अनुपातों का नियम कहते हैं। आधुनिक अर्थशास्त्रियों का यह भी मानना है कि हास, समता और बढ़ता प्रतिफल तीन विभिन्न नियम नहीं हैं, वरन् ये सभी परिवर्तनशील | अनुपातों के सामान्य नियम की तीन अवस्थायें हैं।

आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार यह नियम यह बतलाता है कि उत्पादन के साधनों के संयोग में यदि उत्पादन का कोई एक या कुछ साधन स्थिर रहें एवं अन्य साधन या साधनों की | मात्रा में उत्तरोत्तर वृद्धि की जाय तो कुल उत्पादन प्रारम्भ में बढ़ती दर से, फिर समान दर से | और अन्त में घटती दर से बढ़ता है अर्थात् एक निश्चित बिन्दु के बाद इन अन्य साधनों से प्राप्त उत्पत्ति (या सीमान्त उत्पादन) क्रमशः घटती जाती है। दूसरे शब्दों में, सीमान्त, औसत और कुल उत्पादन एक सीमा तक बढ़ते हैं और अन्त में गिरते हैं।

मिसेज जॉन राबिन्सन के शब्दों में, “उत्पत्ति ह्रास नियम बतलाता है कि किसी एक उत्पत्ति के साधन की मात्रा को स्थिर रखा जाए तथा अन्य साधनों की मात्रा में उत्तरोत्तर वृद्धि की जाय तो, एक निश्चित बिन्दु के बाद, उत्पादन में घटती दर से वृद्धि होगी। जैसा कि इस | परिभाषा से स्पष्ट है कि मिसेज रॉबिन्सन एक साधन को स्थिर रखकर अन्य साधनों को | परिवर्तनशील रखती हैं। इसके विपरीत बेनहम, स्टिगलर, बोल्डिंग आदि अर्थशास्त्री अन्य साधनों को स्थिर मानते हुए केवल एक साधन को परिवर्तनशील रखते हैं।

बेनहम के शब्दों में, “उत्पादन के साधनों के संयोग में एक साधन का अनुपात ज्यों-ज्यों बढ़ाया जाता है, त्यों-त्यों, एक बिन्दु के बाद, उस साधन का सीमान्त तथा औसत उत्पादन घटता जाता है। यह ध्यान रखना चाहिये कि रॉबिन्सन और बेनहम की परिभाषाओं में व्यक्त दृष्टिकोण की भिन्नता का इस सिद्धान्त के विश्लेषण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि प्रमुख तथ्य यह है कि सिद्धान्त के विवेचन में एक या कुछ साधनों को स्थिर तथा एक या कुछ साधनों को परिवर्तनशील माना जाना चाहिये।

प्रो० सैम्युलसन के अनुसार, “एक या कुछ साधनों को स्थिर रखकर अन्य साधनों को परिवर्तित करने पर जो उत्पादन प्राप्त होता है, वह क्रमशः घटते हुए क्रम में प्राप्त होता है।

बोल्डिंग के शब्दों में, “ज्यों-ज्यों हम किसी एक साधन की मात्रा को अन्य साधनों की स्थिर मात्रा के साथ बढ़ाते हैं तो परिवर्तित साधन की सीमान्त उत्पादकता घटती जाती है।”

लागत के शब्दों में, इस नियम को लागत वृद्धि नियम कहते हैं क्योंकि जैसे-जैसे उत्पादन बढ़ता है, वैसे-वैसे सीमान्त उत्पादन लागत बढ़ती जाती है।

उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण : माना कि भूमि और पूँजी की मात्रायें स्थिर रहती हैं तथा श्रम की मात्रा में परिवर्तन किये जाते हैं। श्रम की इकाइयों में उत्तरोत्तर वृद्धि करने से जो उत्पादन प्राप्त होता है, वह निम्न सारणी में दिया गया है :

उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है कि पहले पहल कुल, औसत और सीमान्त उत्पादन बढ़ते हैं और फिर अधिकतम होकर अन्त में घटने लगते हैं। यह ध्यान रहे कि उत्पादन में कमी का बिन्दु कुल, औसत और सीमान्त उत्पादन के लिये एक ही नहीं होता। पहले सीमान्त उत्पादन घटता है, फिर औसत उत्पादन और अन्त में कुल उत्पादन घटता है। अतः स्पष्ट है कि इन तीनों में ही अन्त में घटते प्रतिफल की प्रवृत्ति पायी जाती है। नियम को और स्पष्ट करने के लिये उपरोक्त तालिका को रेखाचित्र पर दर्शाया गया है। जैसा कि चित्र 3.1 से स्पष्ट है कि कुल उत्पादन वक्र A बिन्दु तक बढ़ती हुई गति से बढ़ता है और इसके बाद घटती हुई गति से बढ़ता हुआ अपने अधिकतम बिन्दु प्रथम अवस्था द्वितीय अवस्था , तृतीय C तक पहुँच जाता है जिसके बाद अवस्था यह धीरे-धीरे गिरने लगता है और जब कल उत्पादन वक्र गिरने लगता 401 है, तब सीमान्त उत्पादन ऋणात्मक कु० उ० हो जाता है। सीमान्त उत्पादन वक्र 301 भी कुल उत्पादन वक्र के साथ बढ़ता 1.25 1 है तथा यह कुल उत्पादन वक्र के 1201 मोड़ के बिन्दु पर अधिकतम होता “151 है। इसके बाद यह घटता जाता है। 10औसत उत्पादन वक्र भी प्रारम्भ में औ० उ० बढ़ता है तथा फिर घटने लगता है। कुल, औसत और सीमान्त उत्पादन  स्पष्ट किया गया है।

प्रथम अवस्था (बढ़ते प्रतिफल की अवस्था)- प्रारम्भ में परिवर्तनशील साधन (श्रम) की अपेक्षा स्थिर साधन (भूमि और पूजी) की मात्रा अधिक होती है। अतः जब स्थिर साधन पर परिवर्तनशील साधन की इकाइयाँ बढ़ायी जाती हैं तो स्थिर साधन का अधिक गहन प्रयोग होता है जिससे उत्पादन तेजी से बढ़ता है। परिणामस्वरूप इस अवस्था में कुल उत्पादन बढ़ती हुई। गति से बढ़ता है जिसके फलस्वरूप सीमान्त और औसत उत्पादन दोनों ही बढ़ते हैं। इस अवस्था में सीमान्त उत्पादन सदैव ही औसत उत्पादन से अधिक रहेगा। इस अवस्था की अन्तिम (चौथी) इकाई पर स्थिर व परिवर्तनशील साधनों का अनुकूलतम अनुपात रहता है। इस अवस्था में मोड़ के बिन्दु (चित्र में A बिन्दु तक) कुल उत्पादकता वक्र (TP Curve)X-अक्ष के प्रति उन्नतोदर (convex) होता है तथा इस बिन्दु के बाद इस अवस्था की समाप्ति तक (चित्र में A से B बिन्दु तक) कुल उत्पादन वक्र X-अक्ष के लिये अवनतोदर (concave) होता है। इस अवस्था की समाप्ति पर सीमान्त उत्पादन वक्र औसत उत्पादन वक्र को उसके अधिकतम बिन्दु पर ऊपर से काटता है।

द्वितीय अवस्था (घटते प्रतिफल की अवस्था) – यह अवस्था तब शुरू होती है जबकि औसत उत्पादन गिरने लगता है तथा तब समाप्त होती है जबकि सीमान्त उत्पादन शून्य हो जाय। चूँकि इस अवस्था से पूर्व परिवर्तनशील साधन की मात्रा में इतनी अधिक वृद्धि हो जाती है कि स्थिर साधनों पर परिवर्तनशील साधन का कुशलतम प्रयोग होने लगता है, अतः परिवर्तनशील साधन की इकाइयों में और अधिक वृद्धि होने पर इसके औसत और सीमान्त उत्पादन गिरने लगते हैं। इस अवस्था में कुल उत्पादन घटते हुए दर से बढ़ता है तथा औसत उत्पादन सदैव ही सीमान्त उत्पादन से अधिक रहेगा।

तृतीय अवस्था (ऋणात्मक सीमान्त प्रतिफल की अवस्था) – इस अवस्था में परिवर्तनशील साधन की मात्रा इतनी अधिक हो जाती है कि स्थिर साधन के कुशल प्रयोग में बाधायें आने लगती हैं। अतः कुल उत्पादन गिरने लगता है तथा सीमान्त उत्पादन ऋणात्मक हो जाता है।

व्यवहार में प्रायः उत्पादक दूसरी अवस्था में पाया जायेगा। उसका तृतीय अवस्था में पाये जाने का तो प्रश्न ही नहीं उठता क्योंकि यह अवस्था परिवर्तनशील साधन के ऋणात्मक सीमान्त उत्पादन अथवा गिरते हुए कुल उत्पादन की अवस्था है। प्रथम अवस्था में कुल उत्पादन और सीमान्त उत्पादन दोनों ही बढ़ते हैं। इस अवस्था में स्थिर साधन का परिवर्तनशील साधन के सम्बन्ध में बहुत अधिक अनुपात होता है। इस कारण इसका आर्थिक दृष्टि से कुशल उपयोग सम्भव नहीं हो पाता है। अतः एक विवेकी उत्पादक दूसरी अवस्था में ही (उपर्युक्त दिये चित्र में A और C के बीच) किसी न किसी बिन्दु पर उत्पादन करेगा। जहाँ उसे स्थिर साधन की कार्यकुशलता में वृद्धि का लाभ मिल सकेगा।

उत्पत्ति हास नियम या परिवर्तनशील अनुपातों के नियम की मान्यताएँ

(Assumptions of the Law of Returns or Law of Variable Proportions)

(1) यह मान लिया जाता है कि उत्पत्ति के साधनों को मिलाने के अनुपात में आवश्यकतानुसार परिवर्तन किया जा सकता है। यदि विभिन्न साधनों का पारस्परिक अनुपात स्थिर है तो यह नियम लागू नहीं होगा।

(2) इस नियम के लिये एक या कुछ साधनों को स्थिर तथा अन्य साधन या साधनों को परिवर्तनशील रखना आवश्यक है।

(3) परिवर्तनशील साधनों की सब इकाइयाँ समरूप होती हैं।

(4) परिवर्तनशील साधन की परिवर्तित इकाइयों के उत्पादन पर प्रभाव का सही अनुमान लगाया जा सकता है।

(5) यह मान लिया जाता है कि संगठन, उत्पादन विधि, तकनीकी ज्ञान आदि में कोई परिवर्तन नहीं आता है। इनमें परिवर्तन से इस नियम की क्रियाशीलता को टाला जा सकता है।।

(6) इस नियम का सम्बन्ध उत्पादन की मात्रा से है, न कि उत्पादित वस्तुओं के मूल्य से।

(7) यह नियम तभी लागू होता है जबकि परिवर्तनशील साधन की पर्याप्त मात्रा का प्रयोग हो चुका हो। दूसरे शब्दों में, प्रारम्भ में वृद्धि नियम लागू हो सकता है किन्तु परिवर्तनशील साधन की मात्रायें बढ़ाते जाने पर अन्त में यह नियम ही क्रियाशील होगा।

(8) यह नियम तभी लागू होगा जबकि उत्पत्ति के विभिन्न साधनों को एक दूसरे के स्थान पर प्रतिस्थापित करना सम्भव न हो।

(9) साधनों के मूल्य (input prices)

अपरिवर्तित रहते हैं। उत्पत्ति हास नियम की क्रियाशीलता को रोकना

(Checking the Operation of Law of Diminishing Returns)

उत्पत्ति ह्रास नियम एक कटू सत्य है परन्तु प्रश्न यह है कि क्या इसे रोका जा सकता है। वास्तव में इस नियम की क्रियाशीलता को पूर्णतया तो नहीं समाप्त किया जा सकता किन्त मानव प्रयत्नों से इसे रोका या भविष्य के लिये स्थगित किया जा सकता है। वैज्ञानिक आविष्कारों के प्रयोग से, कृषि-कला में सुधार करके, उन्नत बीज, अच्छी व पर्याप्त मात्रा में खाद का प्रयोग करके, सिंचाई की व्यवस्था सुधार कर तथा यातायात व संवाद-वाहन के साधनों में विकास करके कृषि के क्षेत्र में इस नियम की क्रियाशीलता को भविष्य के लिये टाला जा सकता है। इसी प्रकार उद्योगों में भी नयी मशीनों के प्रयोग, उत्पादन की रीतियों में सुधार, नये-नये आविष्कार आदि से इस नियम की क्रियाशीलता को एक लम्बे काल तक स्थगित किया जा सकता है। रूस, अमरीका, इंग्लैंड, जर्मनी, जापान आदि उन्नतशील देशों में उपर्युक्त उपायों द्वारा इस नियम की क्रियाशीलता को रोका गया है।

उत्पत्ति हास नियम की क्रियाशीलता के कारण या दशाएँ

(Conditions or Causes of the Operation of Law of Diminishing Returns)

मार्शल इस नियम को केवल कृषि पर ही लागू मानते थे। अतः उनके अनुसार इस नियम की क्रियाशीलता का मुख्य कारण कृषि में प्रकृति की प्रमुखता है किन्तु यह मत सही नहीं है। यह नियम कृषि, उद्योग, खान-खोदने आदि सभी उत्पादन के क्षेत्रों में लागू होता है। इन सभी क्षेत्रों में इसके लागू होने के निम्न कारण हैं

(1) एक या कुछ साधनों का स्थिर होना (Fixity of one or some factors of production) : इस नियम के अन्तर्गत एक या कुछ साधनों (जैसे भूमि और पूँजी) को स्थिर मान लिया जाता है। अतः जब परिवर्तनशील साधन (जैसे श्रम) की इकाइयाँ बढ़ायी जाती हैं तो परिवर्तनशील साधन (श्रम) को स्थिर साधनों (भूमि और पूँजी) की उत्तरोत्तर कम मात्रा के साथ कार्य करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में भूमि और पूँजी पर दबाव बढ़ता जाता है तथा श्रम की उत्पादक शक्ति कम होती जाती है और उत्पत्ति हास नियम क्रियाशील हो जाता है।

(2) कुछ साधनों की पूर्ति सीमित होना (Limited Supply of Certain Factors) : वास्तव में अन्य साधनों की तुलना में एक साधन की कमी इस नियम के लागू होने का मूल कारण है। उत्पत्ति के कुछ साधन, जैसे भूमि, कच्चा माल, मशीन आदि की पूर्ति सीमित होती है। ऐसी स्थिति में एक उत्पादक को इन साधनों की सीमित मात्रा से ही अपना काम चलाना होता है। परिणामस्वरूप यह नियम क्रियाशील हो जाता है। उदाहरण के लिये कृषि व्यवसाय में होती है। अतः उत्पादन बढ़ाने के लिये यदि भमि की सीमित मात्रा के साथ श्रम । तथा पूँजी का अधिक प्रयोग किया जाता है तो एक बिन्दु के बाद यह नियम लागू होने लगता है। अन्य उद्योगों में यदि मशीन या कच्चे माल की कमी है और इस सीमित उत्पादक साधन के साथ अन्य साधनों को अधिक मात्रा में प्रयोग किया जाता है तो यह नियम क्रियाशील हो जाता है।

किसी साधन की सीमितता के तीन कारण होते हैं : (1) साधन की पूर्ति में कमी, (2) साधन को एक प्रयोग से दूसरे प्रयोग में हस्तान्तरित करने की बहुत ऊँची लागत और (3) साधन का दूसरे साधनों से अपूर्ण स्थानापन्न।

(3) अनुकूलतम संयोग के बाद उत्पादन बढ़ाने पर (Increase in production after optimum combination of factors of production) : प्रारम्भ में परिवर्तनशील साधन की इकाइयाँ बढ़ाने पर सीमान्त उत्पादन बढ़ता जाता है किन्तु शीघ्र ही एक ऐसी अवस्था आ जाती है जिस पर सीमान्त उत्पादन अधिकतम हो जाता है। इसे अनुकूलतम संयोग का बिन्दु कहते हैं। इस बिन्दु पर परिवर्तनशील और स्थिर साधनों का प्रयोग आदर्श अनुपात में होता है। यदि इस बिन्दु के बाद परिवर्तनशील साधन की मात्रा में वृद्धि की जाती है तो उत्पादन के साधनों का वास्तविक संयोग अनुकूलतम संयोग के बिन्दु से दूर हटता जाता है और उत्पत्ति हास नियम लागू हो जाता है।

(4) साधनों का एक दूसरे से अपूर्ण स्थानापन्न होना (Factors of production ___ being imperfect substitutes for one another) : उत्पत्ति के साधनों की प्रतिस्थापन लोच असीमित नहीं होती। अतः यदि कोई साधन दुर्लभ हो जाता है तो उसका स्थानापन्न किसी दूसरे साधन से न होने के कारण उत्पादन कार्य में बाधा पड़ जाती है तथा उत्पत्ति ह्रास नियम क्रियाशील हो जाता है। जैसे यदि कोई फैक्ट्री बिजली की शक्ति से चलती है तथा यदि उस फैक्ट्री को दी जाने वाली बिजली में कटौती कर दी जाती है तो कोई अन्य साधन इसका पूर्ण स्थानापन्न न होने के कारण फैक्ट्री को कम घंटे चलाना पड़ेगा जिससे प्रति इकाई उत्पादन व्यय बढ़ जायेंगे अर्थात यह नियम क्रियाशील हो जायेगा।

(5) साधनों की अविभाज्यता (Indivisibility of Factors): यदि साहसी, प्रबन्धक आदि किसी अविभाज्य साधन का उसकी अधिकतम क्षमता से अधिक प्रयोग किया जाता है तो प्रबन्ध तथा समन्वय सम्बन्धी कठिनाइयाँ इतनी बढ़ जाती हैं कि बड़े पैमाने की बहुत सी अमितव्ययिताएँ आ जाती हैं जिससे लागत बढ़ने लगती है तथा ह्रास नियम क्रियाशील हो जाता है।

उत्पत्ति हास नियम की क्रियाशीलता का क्षेत्र

(Scope of Operation of Law of Diminishing Returns)

मार्शल के अनुसार उत्पत्ति ह्रास नियम केवल कृषि और कृषि जैसे उत्पादन क्षेत्रों (जैसे खान खोदना, मछली पकड़ना, मकान बनाना, वन काटना आदि) में ही क्रियाशील होता है, निर्माणी उद्योगों में नहीं। किन्तु आधुनिक अर्थशास्त्री मार्शल के इस मत से सहमत नहीं हैं। उनके अनुसार यह एक सार्वभौमिक नियम है और उत्पादन क्रिया के प्रत्येक क्षेत्र में क्रियाशील होता है। आधुनिक अर्थशास्त्रियों का मत है कि जब भी एक या कुछ उत्पत्ति के साधन स्थिर होते हैं तथा अन्य साधन परिवर्तनशील होते हैं तो एक बिन्दु के बाद यह नियम क्रियाशील होगा चाहे वह कृषि क्षेत्र हो, निमोणी उद्योग हो, निमोण कार्य हो, मछली पकड़न का व्यवसाय हो, खान खोदने का कार्य हो, अथवा उत्पादन का कोई अन्य क्षेत्र हो। हाँ यह हो सकता है कि प्रारम्भ में यह नियम लागू न हो किन्तु जब स्थिर और परिवर्तनशील साधनों में अनुकूलतम संयोग स्थापित हो जाता है तो उसके पश्चात् यह नियम अवश्य क्रियाशील होगा। यह एक अलग बात होगी कि भिन्न-भिन्न उद्योगों में इस नियम की विभिन्न अवस्थायें कम या अधिक लम्बी होती हैं। दूसरे शब्दों में, कुछ उद्योगों में यह नियम शीघ्र क्रियाशील हो जाता है तो दूसरे उद्योगों में कुछ देरी से। जैसे एक निर्माणी उद्योग की तुलना कषि उद्योग में यह नियम शीघ्र लागू हो जाता है। अतः स्पष्ट है कि यह नियम सभी प्रकार के जटिल उत्पादन के लिये सत्य। होता है।

आर्थिक विश्लेषण में उत्पत्ति हास नियम का महत्व

(Significance of the Law in Economic Analysis)

अर्थशास्त्र का यह नियम एक अति महत्वपूर्ण नियम है। विकस्टीड के शब्दों में, “यह नियम उतना ही सार्वभौमिक है जितना कि जीवन का नियम।” इस नियम की सार्वभौमिकता के कारण ही अर्थशाB42

व्यास्त्र को एक विज्ञान माना जाता है। यह नियम अर्थशास्त्र के अनेक सिद्धान्तों का आधार है। इसकी महत्ता निम्न विवेचन से स्पष्ट होती है :

(1) यह नियम अर्थशास्त्र का एक आधारभूत नियम है (It is a fundamental Law of Economics): उत्पादन क्रिया के सभी क्षेत्र इस नियम से प्रभावित होते हैं।

(2) यह नियम माल्थस के जनसंख्या सिद्धान्त आधार है (It is the basis of Malthusian Theory of Population) : माल्थस के अनुसार जनसंख्या खाद्यान्न से अधिक तीव्र गति से बढ़ती है। खाद्यान्न के धीमी गति से बढ़ने का कारण कृषि में उत्पत्ति हास नियम की क्रियाशीलता है। वास्तव में माल्थस के निराशावादी दृष्टिकोण का कारण यही नियम था। माल्थस के अनुसार भूमि सीमित है, उसकी पूर्ति को बढ़ाया नहीं जा सकता। अतः यदि इसी भूमि से अधिक उत्पादन लेना है तो ऐसा अधिक श्रम और पूँजी का प्रयोग करके ही सम्भव है किन्तु भूमि में प्रकृति की प्रधानता के कारण शीघ्र ही उत्पत्ति ह्रास नियम क्रियाशील हो जाता

(3) रिकार्डो के लगान सिद्धान्त का आधार भी यही नियम ही है (This law is also the basis of Recardian Theory of Rent) : रिकार्डो के अनुसार, “लगान अधि-सीमान्त और सीमान्त भूमि की उपजों का अन्तर है।” इस लगान का कारण भूमि में उत्पत्ति हास नियम की क्रियाशीलता ही है। गहरी खेती में जब किसी भूमि के टुकड़े पर श्रम और पूँजी की अधिकाधिक इकाइयों का प्रयोग किया जाता है तो इस नियम की क्रियाशीलता के कारण हर अगली इकाई से प्राप्त उत्पत्ति घटती जाती है। कोई भी कृषक श्रम और पूँजी की इकाइयों में उस सीमा तक ही वृद्धि करेगा जिस पर कि इकाई पर किया गया व्यय उसके मूल्य के बराबर हो। इस इकाई को सीमान्त इकाई कहते हैं। सीमान्त इकाई से प्राप्त उपज इस इकाई पर किये गये व्यय के बराबर होती है। इस इकाई से पूर्व की इकाइयों पर जो अधिक उपज प्राप्त होती है, रिकार्डो ने इसी को आर्थिक लगान कहा है। विभिन्न इकाइयों के बीच उपज का अन्तर भूमि में उत्पत्ति हास नियम की क्रियाशीलता का परिणाम है। अतः स्पष्ट है कि लगान इसी नियम की क्रियाशीलता के कारण ही प्राप्त होता है। विस्तृत खेती में निम्न कोटि की भूमियों को जोत में लाने का कारण भी इस नियम की क्रियाशीलता ही है।

(4) उत्पादन के क्षेत्र में प्रतिस्थापन नियम और वितरण के क्षेत्र में सीमान्त उत्पादकता सिद्धान्त का आधार भी यही नियम है (This law is the basis of law of substitution and law of marginal productivity theory)

(5) यह नियम ही एक देश से दूसरे देश में जनसंख्या के प्रवास के लिये उत्तरदायी है। (This law is responsible for migration of population from one region to another) : इतिहास साक्षी है कि एक देश से दूसरे देश को जनसंख्या का प्रवास का कारण। एक ओर भूमि पर जनसंख्या का बढ़ता हुआ दबाव था तो दूसरी ओर, जो अधिक महत्वपूर्ण । है. उत्पत्ति हास नियम की क्रियाशीलता के कारण भूमि से अधिक उत्पादन न मिलना था।

6 किसी देश या क्षेत्र में लोगों का जीवन स्तर इस नियम द्वारा प्रभावित होता है। (The standard of living of the people of a country or region is influenced by ___ this law): उदाहरण के लिये जब देश की जनसंख्या की वृद्धि भूमि, पूँजी तथा प्राविधिक परिवर्तनशील अनुपातों का नियम ज्ञान की अपेक्षा तीव्र होती है तो उत्पत्ति हास लागू होगा और लोगों का जीवन-स्तर नीचा होता जायेगा।

(7) इस नियम ने बहुत से आविष्कारों खोजों को प्रोत्साहित किया है (This law has encouraged many inventions and discoveries) : प्रारम्भ से ही मनुष्य इस नियम की क्रियाशीलता को रोकने के लिये अनुसंधान व खोज करता रहा है। कृषि में रासायनिक खादों व अच्छे बीजों की खोज, कीटनाशक दवाओं व विभिन्न कृषि यंत्रों का आविष्कार आदि इस नियम की क्रियाशीलता को रोकने के लिये ही किये गये हैं।

(8) दैनिक जीवन में महत्व (Importance in daily life) : यह नियम बतलाता है कि बिना रुचि के किसी कार्य को करते रहने पर आनुपातिक लाभ क्यों नहीं मिल पाता है। वस्तुतः ऐसा इस नियम की क्रियाशीलता के कारण ही होता है।

इस नियम की उपर्युक्त महत्ता के कारण ही श्रीमती जॉन राबिन्सन ने इसे एक “तार्किक आवश्यकता” कहा है।

उत्पत्ति वृद्धि नियम (Law of Increasing Returns)

यदि किसी उद्योग में एक या कुछ साधनों को स्थिर रखकर अन्य साधनों की मात्रा बढ़ायी जाय और यदि उत्पादन बढ़ाये गये साधनों के अनुपात से अधिक बढ़े तो इसे उत्पत्ति वृद्धि नियम कहेंगे। लागत की भाषा में इसे लागत ह्रास नियम कहते हैं क्योंकि यह बताता है कि उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ सीमान्त उत्पादन लागत कम होती जाती है।

डॉ० मार्शल के अनुसार, “श्रम और पूँजी में वृद्धि करने से सामान्यतया संगठन में सुधार होता है जिसके परिणामस्वरूप श्रम और पूँजी की कार्यक्षमता में वृद्धि हो जाती है। उनके अनुसार यह नियम केवल निर्माणी उद्योगों में लागू होता है। किन्तु आधुनिक अर्थशास्त्री मार्शल के इस मत से सहमत नहीं हैं। आधुनिक अर्थशास्त्री मानते हैं कि यह नियम कृषि, उद्योग तथा उत्पादन के अन्य सभी क्षेत्रों में लागू होता है।

श्रीमती जॉन राबिन्सन ने इस नियम की परिभाषा इस प्रकार दी है, “जब किसी उद्योग में किसी उत्पत्ति के साधन की अधिक मात्रा लगाई जाती है तो सामान्यतया संगठन में ऐसे सुधार सम्भव हो जाते हैं जिससे उत्पादन साधन की प्राकृतिक इकाइयाँ अधिक कुशल हो जाती हैं जिससे उत्पादन में वृद्धि करने के लिये साधनों की मौलिक मात्रा को उसी अनुपात में बढ़ाना आवश्यक नहीं होता।

नियम की व्याख्या (Explanation of the Law) : यदि कोई उद्योग इस नियम के अन्तर्गत कार्य रहा है तो उसमें परिवर्तनशील साधन की मात्रा में वृद्धि करने पर सीमान्त उत्पादन बढ़ता जायेगा तथा कुल उत्पादन में वृद्धि बढ़ती हुई गति से होगी। इस बात को निम्न तालिका द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है :

जैसा कि उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है कि इस नियम के अन्तर्गत कार्य कर रहे उद्योग में परिवर्तनशील साधन की इकाइयों में वृद्धि करने पर कुल उत्पादन बढ़ती हुई गति के बढ़ता है तथा सीमान्त और औसत उत्पादन दोनों ही बढ़ते हैं किन्तु सीमान्त उत्पादन में वृद्धि की गति औसत उत्पादन की गति से अधिक होती है। इसी तथ्य को नीचे दिये रेखाचित्र द्वारा भी स्पष्ट किया गया है।

उत्पत्ति वृद्धि नियम की मान्यतायें (Assumptions of the Law of Increasing Returns): यह नियम तभी क्रियाशील होता है जबकि :

(1) उत्पत्ति के साधनों का अनुकूलतम संयोग स्थापित न हुआ हो।

(2) परिवर्तनशील साधन की इकाइयाँ स्थिर साधन की इकाइयों की अपेक्षा छोटी हों।

उत्पत्ति वृद्धि नियम के लागू होने के कारण

(Causes of Operation of Law of Increasing Returns)

(1) साधनों की अविभाज्यता (Indivisibility of Factors): श्रीमती जॉन रोबिन्सन । के अनुसार इस नियम की क्रियाशीलता का मुख्य कारण साधनों की अविभाज्यता है। उत्पत्ति के । कुछ साधन, जैसे मैनेजर, मशीन आदि एक सीमा तक अविभाज्य हैं। प्रारम्भ में इन साधनों का। पूर्ण उपयोग नहीं हो पाता है। अतः जैसे-जैसे परिवर्तनशील साधन की इकाइयाँ बढ़ाते जाते हैं, वैसे-वैसे इन अविभाज्य साधनों का अधिक उपयोग होने लगता है, उत्पादन अनुपात से अधिक बढता है तथा प्रति इकाई उत्पादन लागत घटती जाती है अर्थात् यह नियम क्रियाशील हो जाता। है। किन्त यदि अविभाज्य साधन की पूर्ण क्षमता का उपयोग करने के पश्चात भी उत्पादन। बढ़ाया जाता है तो उत्पत्ति ह्रास नियम लागू होगा।

(2) साधनों की पर्याप्त पूर्ति (Adequate Availability of Factors) : यदि उत्पत्ति के साधनों की पूर्ति घटायी-बढ़ायी जा सकती है अर्थात् प्रत्येक साधन के अनुपात में कमी या वृद्धि की जा सकती है तो इससे उत्पत्ति के साधनों को आदर्श अनुपात में लाया जा सकता है। ऐसी स्थिति में एक सीमा तक उत्पादन अनुपात से अधिक बढ़ेगा तथा उत्पत्ति वृद्धि नियम लागू होगा।

(3) बड़े पैमाने की उत्पत्ति की बचतें (Economies of Large Scale): कुछ उद्योगों में उत्पादन के आकार के बढ़ाने पर उस औद्योगिक संस्था को बड़े पैमाने की आन्तरिक और बाह्य बचतें प्राप्त होती हैं। उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ प्रति इकाई उत्पादन लागत घटती जाती है और यह नियम क्रियाशील हो जाता है।

(4) श्रम विभाजन तथा विशिष्टीकरण (Division of Labour and Specialization) : उत्पादन के पैमाने के विस्तार से श्रम विभाजन और विशिष्टीकरण की योजनायें लागू की जा सकती हैं जिससे साम्य और कुशलता बढ़ती है तथा प्रति इकाई उत्पादन लागत कम होती जाती है।

(5) प्राविधिक मितव्ययिताएँ (Technological Economies) : बड़े उद्योगों में अधिक कुशल व्यवस्थापकों की नियुक्ति की जा सकती है, बड़ी-बड़ी मशीनें लगायी जा सकती हैं तथा अन्वेषण की योजनायें चलायी जा सकती हैं। इससे प्रति इकाई उत्पादन लागत में कमी की जा सकती है।

क्या यह नियम असीमित रूप से लागू हो सकता है ? (Can this law operate without limit) : उत्पत्ति वृद्धि नियम में कुल उत्पादन परिवर्तनशील साधन में की गयी वृद्धि के अनुपात से अधिक बढ़ता है तथा वस्तु की प्रति इकाई उत्पादन लागत घटती जाती है। अतः प्रत्येक उत्पादक अपना उत्पादन इसी नियम के अन्तर्गत ही करना चाहेगा। परन्तु प्रश्न यह है कि क्या यह नियम किसी उद्योग में असीमित रूप से लागू किया जा सकता है ? वास्तव में मनुष्य इसके लिये प्रयत्नशील तो है किन्तु किसी उद्योग में इस नियम की क्रियाशीलता को अनन्त काल तक बनाये रखना सम्भव नहीं। प्रारम्भ में परिवर्तनशील साधन की तुलना स्थिर साधन की मात्रा अधिक होती है। अतः जब स्थिर साधन पर परिवर्तनशील साधन की मात्रायें बढ़ायी जाती हैं तो स्थिर साधन का अधिक गहन प्रयोग होने लगता है जिससे उत्पादन तेजी से बढ़ता है तथा हर अगली इकाई की सीमान्त उत्पादकता बढ़ती जाती है और उत्पादन में वृद्धि करते जाने से एक ऐसा बिन्दु आ जाता है जबकि स्थिर साधनों पर परिवर्तनशील साधन एक आदर्श अनुपात में होते हैं तथा परिवर्तनशील साधन की सीमान्त उत्पादकता अधिकतम होती है। यदि इस बिन्दु के बाद भी परिवर्तनशील साधन की मात्रा बढ़ायी जाती है तो उत्पादन साधनों का वास्तविक अनुपात इस आदर्श अनुपात से दूर हटता जाता है। यहाँ से परिवर्तनशील साधन की क्रियाशीलता समाप्त हो जाती है। अतः स्पष्ट है कि साधनों के अनुकूलतम बिन्दु तक आने तक ही यह नियम क्रियाशील होता है।

इस नियम की क्रियाशीलता का लागत के शब्दों में भी विवेचन किया जा सकता है। इस नियम की क्रियाशीलता के दो प्रमुख कारण हैं- उत्पत्ति के साधनों की अविभाज्यता तथा बड़े पैमाने की उत्पत्ति की बचतें। जब उत्पादन के पैमाने का विस्तार किया जाता है तो उत्पादक को साधनों की अविभाज्यता का लाभ मिलता है तथा बड़े पैमाने की उत्पत्ति की बचतें प्राप्त होती हैं। जिनके कारण प्रति इकाई उत्पादन लागत कम होती जाती है अर्थात् उत्पत्ति वृद्धि नियम लागू हो जाता है। किन्तु ये लाभ एक सीमा तक ही प्राप्त किये जा सकते हैं। यदि उत्पादन इस सीमा के बाद भी बढ़ाया जाता है तो प्रबन्ध तथा समन्वय सम्बन्धी समस्याएँ इतनी बढ़ जाती हैं। कि बड़े पैमाने की बहुत सी अमितव्ययिताएँ आ जाती हैं तथा अविभाज्य साधनों की कमी होने लगती है। इससे प्रति इकाई उत्पादन लागत बढ़ने लगती है तथा उत्पत्ति वृद्धि नियम की क्रियाशीलता समाप्त हो जाती है।

उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि उत्पत्ति वृद्धि नियम किसी भी उद्योग में अनिश्चित काल तक तथा असीमित रूप में नहीं क्रियाशील होता है। यदि यह अनन्त सीमा तक लागू होता तो केवल एक ही फर्म अर्थव्यवस्था की सम्पूर्ण माँग को पूरा कर सकती थी और हमारे सामने जनसंख्या, लगान आदि की कोई समस्या उत्पन्न नहीं होती। वास्तव में उत्पत्ति वृद्धि नियम परिवर्तनशील अनुपातों के नियम की एक अस्थायी अवस्था है। प्रारम्भिक अवस्था में एक सीमा तक उत्पत्ति वृद्धि नियम लागू होता है तथा अन्त में उत्पत्ति ह्रास नियम ही क्रियाशील होता है।

उत्पत्ति समता नियम (Law of Constant Returns)

त्पत्ति समता नियम उत्पत्ति वृद्धि नियम और उत्पत्ति ह्रास नियम के बीच की अवस्था में क्रियाशील होता है। यह अवस्था तब आती है जबकि बड़े पैमाने की उत्पत्ति की बचतें समाप्त हो जाती हैं, प्रति इकाई उत्पादन लागत न्यूनतम है और फर्म उत्पादन के अनुकूलतम स्तर के बिन्दु पर पहुंच गई है। यह प्रायः अल्पकालिक होता है तथा तभी तक लागू होता है जब तक कि उत्पत्ति हास नियम क्रियाशील नहीं हो जाता है। किसी भी उद्योग में जब श्रम और पूँजी की अधिकाधिक इकाइयों के लगाने से उत्पादन में समान अनुपात में वृद्धि हो अर्थात् प्रत्येक अतिरिक्त इकाई का सीमान्त उत्पादन समान रहता हो तो इसे उत्पत्ति समता नियम कहते हैं। मार्शल के अनुसार, “उत्पादन के जिस स्तर पर उत्पत्ति वृद्धि और उत्पत्ति हास नियमों की क्रियाशीलताएँ संतुलित हो जाती हैं, वहाँ उत्पत्ति समता नियम लागू होता है।

यह ध्यान रहे कि उत्पत्ति समता नियम में अन्य उत्पत्ति के नियमों की भाँति किसी साधन को स्थिर नहीं रखा जाता है। इस नियम के अन्तर्गत, उत्पादन के अनुकूलतम स्तर पर पहुँचने के पश्चात्, उत्पत्ति के सभी साधनों को समान अनुपात में बढ़ाना होता है। प्रो० स्टिगलर ने इस नियम को इसी आधार पर परिभाषित किया है। उनके अनुसार, “जब सभी उत्पादक सेवाओं को एक दिये हुए अनुपात में बढ़ाया जाता है तो उत्पादन उसी अनुपात में बढ़ता है।”

उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण : निम्न उदाहरण द्वारा इस नियम को स्पष्ट किया गया है :

उपरोक्त तालिका से स्पष्ट है कि साधनों की मात्रा में वृद्धि करने पर कुल उत्पादन में वद्धि साधनों की मात्रा में वृद्धि के अनुपात में ही हो रही है। इस नियम के अन्तर्गत सीमान्त और औसत उत्पादन समान रहते हैं।

इस नियम को और अधिक स्पष्ट करने के लिये उपरोक्त तालिका को दायें दिये रेखाचित्र 401 3.3 पर प्रदर्शित किया गया है। चित्र से स्पष्ट है। कि कुल उत्पादन साधनों की मात्रा में परिवर्तन के अनुपात में परिवर्तित होता है तथा सीमान्त उत्पादन और औसत उत्पादन साधनों की मात्रा में सीमान्त उत्पादन वक्र परिवर्तन पर स्थिर रहते हैं।

मूलतया उत्पत्ति का एक ही नियम है

(Basically there is only one law of returns)

उत्पत्ति के तीन नियम होते हैं : उत्पत्ति वृद्धि नियम, उत्पत्ति समता नियम तथा उत्पत्ति हास नियम। परन्तु आधुनिक अर्थशास्त्रियों का मत है कि उत्पत्ति का मूलतया एक ही नियम है और वह है उत्पत्ति ह्रास नियम। इसका कारण यह है कि प्रत्येक उद्योग में उत्पत्ति वृद्धि नियम और उत्पत्ति समता नियम तो केवल थोड़े समय के लिये ही क्रियाशील होते हैं तथा अन्त में तो उत्पत्ति ह्रास नियम ही क्रियाशील होता है। दूसरे शब्दों में, प्रत्येक उद्योग को उत्पत्ति ह्रास नियम के अन्तर्गत ही उत्पादन करना होता है। प्रारम्भ में थोड़े समय के लिये उत्पत्ति वृद्धि तथा समता नियम क्रियाशील हो जाते हैं। इसीलिये अर्थशास्त्रियों का मत है कि उत्पत्ति का तो केवल एक ही नियम है और वह है उत्पत्ति हास नियम। उत्पत्ति वृद्धि नियम और उत्पत्ति समता नियम तो उत्पत्ति हास नियम की ही अस्थायी अवस्थायें हैं। श्रीमती जॉन राबिन्सन के अनुसारउत्पत्ति ह्रास नियम एक तार्किक अनिवार्यता (Logical necessity) है और उत्पत्ति वृद्धि नियम एक अनुभवसिद्ध तथ्य (Empirical fact) है।” .

उपर्युक्त आधार पर इस नियम को इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है। स्थिर साधनों को स्थिर रखते हुए जब परिवर्तनशील साधन की मात्रायें बढ़ायी जाती हैं तो प्रारम्भ में स्थिर साधनों के गहन प्रयोग और बड़े पैमाने की उत्पत्ति की बचतों के कारण उत्पादन परिवर्तनशील साधनों में की गयी वृद्धि से अधिक अनुपात में बढ़ता है। यह उत्पत्ति वृद्धि नियम की अवस्था कहलाती है। किन्तु परिवर्तनशील साधन की अधिकाधिक इकाइयों के प्रयोग करते जाने पर एक ऐसा बिन्दु आता है जबकि स्थिर साधनों पर परिवर्तनशील साधन की सीमान्त उत्पत्ति अधिकतम होती है तथा लागत के शब्दों में वस्तु की प्रति इकाई लागत निम्नतम होती है। इस बिन्दु को अनुकूलतम उत्पादन का बिन्दु कहते हैं। यदि उत्पादन इसी स्थिति में चलता रहे अर्थात् साधनों – की मात्रा में वृद्धि करने पर उत्पादन में वृद्धि आनुपातिक हो तो इसे उत्पत्ति समता नियम की अवस्था कहा जायेगा। इस अवस्था में सीमान्त उत्पादन समान रहता है। यह अवस्था अल्पकालिक होती है तथा परिवर्तनशील साधन की इकाइयों में और वृद्धि करने पर उत्पादन में वृद्धि साधनों में की गयी वृद्धि से कम अनुपात में होती है, इसे उत्पत्ति हास नियम की अवस्था कहते हैं। इस अवस्था में सीमान्त उत्पादन गिरता जाता है। यदि साधन की मात्रा में वृद्धि आगे भी जारी रहती है तो भी यही नियम लागू होता रहेगा।

उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण : उत्पत्ति हास नियम की इस स्थिति को निम्न तालिका से स्पष्ट किया गया है:

सैद्धान्तिक प्रश्न

(Theoretical Questions)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 परिवर्तनशील अनुपातों के नियम की सचित्र व्याख्या कीजिये।

Explain with a diagram the Law of Variable Proportions.

2. प्रकृति द्वारा निभायी गयी भूमिका उत्पत्ति हास नियम के अनुरूप है, जबकि मनुष्य द्वारा निभायी गयी भूमिका उत्पत्ति वृद्धि नियम के अनुरूप होती है।” व्याख्या कीजिये। ”

Application of natural forces generally causes the operation of the Law of Diminishing Returns, while those affected by men results in Law of Increasing Returns.” Discuss.

3. उत्पत्ति वृद्धि निया तथा उत्पत्ति स्थिर नियम केवल हास नियम के ही अस्थायी रूपहैं।” इस कथन की व्याख्या कीजिये।

The Law of Increasing Returns and the Law of Constant Returns are the temporary phases of the Law of Diminishing Returns.”

4. परिवर्तनशील अनुपातों का नियम से आप क्या समझते हैं इस नियम का क्या महत्व है

What do you mean by the Law of Variable Proportions ? What is its importance.

5. क्रमागत उत्पत्ति वृद्धि नियम को स्पष्ट कीजिये। यह क्यों लागू होता है ? क्या यह नियम असीमित रूप से लागू हो सकता है ?

Explain the Law of Increasing Returns. Why it operate? Can it operate without limit? :

6. उत्पत्ति ह्रास नियम केवल कृषि में ही नहीं लागू होता है बल्कि यह सभी प्रकार के जटिल उत्पादन के लिये सत्य होता है।’ इसकी विवेचना कीजिये। ”

The Law of Diminishing Returns is not applicable to agriculture “alone; it is valid for all complex production.” Discuss.

7. परिवर्तनशील अनुपातों के नियम की तीन अवस्थाओं को समझाइये। आर्थिक रूप से कौन वर्धनक्षम है और क्यों ?

Explain the three phases of the law of variable proportions. Which is economically viable and why?

8. घटते प्रतिफल का नियम परिवर्तनशील अनुपातों के नियम की ही एक अवस्था है। समझाइये। क्या यह नियम सार्वभौमिक है ?

The law of diminishing returns is one phase of the law of variable proportions. Discuss. Is this law universal?

9. उत्पत्ति ह्रास नियम केवल एक तार्किक अनिवार्यता है, जबकि उत्पत्ति वृद्धि नियम एक अनुभवगम्य तथ्यों का विषय है। उपर्युक्त कथन का परीक्षण कीजिये तथा उत्पत्ति ह्रास नियम के सम्बन्ध में आधुनिक दृष्टिकोण का वर्णन कीजिये।

The Law of Diminishing Returns is merely a matter of logical necessity but the Law of Increasing Returns is a matter of empirical Joan Robinson Examines the above statement and gives the modern view regarding the law of diminishing returns.

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 परिवर्तनशील अनुपातों का नियम क्या है ?

What is the law of variable proportions?

2. परिवर्तनशील अनुपातों के नियम की कौन-कौन सी तीन अवस्थायें हैं ?

What are the three stages of the law of variable proportions?

3. प्रतिफल के नियम की मान्यताएँ क्या हैं ?

What are the assumptions of the law of returns?

4. घटते प्रतिफल के नियम की क्रियाशीलता के क्या कारण हैं ?

What are the causes of the operation of the law of diminishing returns?

5. बढ़ते प्रतिफल के नियम की क्रियाशीलता के क्या कारण हैं ?

What are the causes of the operation of the law of increasing returns? fact.”

6. क्या बढ़ते प्रतिफल का नियम असीमित रूप से लागू हो सकता है ?

Car the law of increasing returns operate without limit?

7. आर्थिक विश्लेषण में उत्पत्ति ह्रास नियम का क्या महत्व है ?

What is the significance of the law of diminishing returns in economic analysis?

8. घटते प्रतिफल के नियम पर आधारित आर्थिक सिद्धान्तों के नाम बताइये।

Name the economic theories based on the law of decreasing returns.

9. उत्पत्ति के विभिन्न नियमों में सम्बन्ध स्पष्ट कीजिये।

Explain the relationship between various laws of returns.

III. अति लघु उत्तरीय प्रश्न

(Very Short Answer Questions)

(अ) एक शब्द या एक पंक्ति में उत्तर दीजिये।

Answer in one word or in one line.

1 उत्पत्ति हास नियम एक तार्किक अनिवार्यता है और उत्पत्ति वृद्धि नियम एक अनुभवसिद्ध तथ्य है।” यह कथन किसका है ?

Law of diminishing returns is a logical necessity and law of increasing returns an empirical fact”. Whose statement it is?

2. घटते प्रतिफल का नियम उतना ही सार्वभौमिक है जितना कि जीवन का नियम।” यह किसका कथन है ? ”

Law of decreasing returns is as universal as the law of life.” Whose statement it is?

3. रिकार्डो का लगान सिद्धान्त प्रतिफल के किस नियम पर आधारित है ?

Ricardian Theory of Rent is based on which law of returns?

4. उत्पत्ति वृद्धि नियम का दूसरा नाम क्या है ?

What is the other name of the law of increasing returns?

5. उत्पत्ति हास नियम का आधुनिक नाम क्या है ?

What is the modern name of the law of diminishing returns?

6. अर्थशास्त्र के तीन सिद्धान्त बताइये जोकि उत्पत्ति ह्रास नियम पर आधारित हैं।

Write three theories of Economics, which are based on the law of diminishing returns.

7. जब श्रम की औसत उत्पादकता धनात्मक किन्तु गिरती हुई होती है तो सीमान्त उत्पादिकता की स्थिति क्या होगी?

What will be the position of marginal productivity when the average productivity of labour is positive but decreasing?

8. परिवर्तनशील अनुपातों के नियम की तीन अवस्थाओं में से एक उत्पादक के लिये सबसे महत्वपूर्ण अवस्था कौनसी मानी जाती है?

Out of three phases of the law of variable proportions, which is deemed to be the best for a producer.

उत्तरमाला :

1. Mrs Joan Robinson

2. Wicksteed

3. Law of Diminishing Returns

4. Law of Decreasing Costs

5. परिवर्तनशील अनुपातों का नियम (Law of variable proportions)

6. माल्थस का जनसंख्या सिद्धान्त, रिकार्डो का लगान मिदान्त. सीमान्त उत्पादकता सिद्धान्त,

7. औसत उत्पादन, सीमान्त उत्पादन से कम होगा।

8. दूसरी परिवर्तनशील अनुपातों का नियम

(ब) बतलाइये कि क्या निम्नलिखित कथन सत्य हैं या असत्य।

State whether the following statements are True or False.

1 बढ़ते प्रतिफल की पहली अवस्था में मोड़ के बिन्दु तक कुल उत्पादकता वक्र X-अक्ष के प्रति उन्नतोदर होता है।

In the first phase of increasing returns, upto point of inflexion total product curve is convex to X-axis.

2. बढ़ते प्रतिफल की पहली अवस्था में मोड़ के बिन्दु के बाद अवस्था के समाप्त होने तक कुल उत्पादकता वक्र X-अक्ष के लिये अवनतोदर होता है।

In the first phase of increasing returns after the point of inflexion upto the end of this phase, total product curve is concave to X-axis.

3. उत्पत्ति ह्रास नियम मछली पकड़ने के व्यवसाय में नहीं लागू होता है।

Law of decreasing returns does not apply to fisheries.

4. उत्पत्ति वृद्धि नियम और पूर्ण प्रतियोगिता का सह अस्तित्व नहीं हो सकता।

Law of increasing returns and perfect competition can not coexist.

5. अल्पकाल में ऋणात्मक प्रतिफल की अवस्था में परिवर्तनशील साधन की सीमान्त उत्पादकता ऋणात्मक नहीं हो सकती है।

In the short-run in the phase of negative returns, the marginal productivity of the variable factors can not be negative.

6. परिवर्तनशील अनुपातों का नियम उत्पादन का अल्पकालीन नियम है।

The Law of variable proportions is a short-term law of production.

[उत्तरमाला : सत्य : 1,2,4,6; असत्य : 3,5.]

(स) रिक्त स्थानों की पूर्ति करो

(Fill in the blanks)।

1 बढ़ते प्रतिफल की अवस्था में कुल उत्पादकता वक्र मोड़ के बिन्दु तक x-अक्ष के प्रति ………… होता है।

In the phase of increasing returns, TP curve is ………… to x-axis upto the point of inflexion.

2. अल्पकाल में ऋणात्मक प्रतिफल की अवस्था में परिवर्तनशील साधन की सीमान्त उत्पादकता ………… होती है।

In the short-run marginal productivity of variable factor is. the phase of negative returns.

3. उत्पादन की पहली अवस्था में परिवर्तनशील साधन की औसत उत्पादकता …………

In the first phase of production, the average productivity of the variable factor

4. परिवर्तनशील अनुपातों के नियम की तीसरी अवस्था में ………… ऋणात्मक होती है।

In the third phase of the law of variable proportions ………… is negative.

5. जब कुल उत्पादकता गिरती है तब परिवर्तनशील साधन की सीमान्त उत्पादकता ………… होती है।

When total productivity decreases, the marginal productivity of variable factor is ..

6. परिवर्तनशील अनुपात के नियम में मोड़ के बिन्दु पर ………… अधिकतम होता है।

In the law of variable proportions at the point of inflexion ………… is the maximum.

7. उत्पादन की दूसरी अवस्था में श्रम की औसत उत्पादकता ………… है।

In the second phase of output average productivity of labour

8. बढ़ते प्रतिफल के नियम का दूसरा नाम ………… है।

The other name of the law of increasing returns is ….

9. परिवर्तनशील अनुपात की पहली अवस्था वहाँ समाप्त होती है जहाँ औसत उत्पादकता

The first phase of the law of variable proportions ends where average productivity is

10. परिवर्तनशील अनुपातों का नियम …………. का नियम भी कहा जाता है।

The law of variable proportions is also called as the law ….

11. बढ़ते प्रतिफल की अवस्था में मोड़ के बिन्दु के बाद TP-वक्र X-अक्ष के प्रति ………… होता है।

In the phase of increasing returns after the point of inflexion, TP curve is………… tox-axis.

[उत्तरमाला : 1. उन्नतोदर (convex) 2. ऋणात्मक (negative), 3. बढ़ती है (increases) 4. सीमान्त उत्पादकता (marginal productivity), 5. ऋणात्मक (negative) 6. सीमान्त उत्पादकता (MP) 7. घटती है (decreases) 8. घटती लागत का नियम (Law of decreasing costs) 9. अधिकतम (maximum) 10. घटते प्रतिफल (diminishing returns) 11. अवनतोदर (concave)] (द)

सही उत्तर का चयन करो

(Choose the correct answer) :

1 बढ़ते प्रतिफल की अवस्था में मोड़ के बिन्दु तक कुल उत्पादकता वक्र :

(अ) X-अक्ष के प्रति उन्नतोदर होता है

(ब) X-अक्ष के प्रति अवनतोदर होता है

(स) Y-अक्ष के प्रति उन्नतोदर होता है

(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।

In the phase of increasing returns, up to the point of inflexion, the TP curve is :

(a) Convex to X-axis

(b) Concave to X-axis

(c) Convex to Y-axis.

(d) none of the above.

2. अल्पकाल में ऋणात्मक प्रतिफल की अवस्था में परिवर्तनशील साधन की सीमान्त उत्पादकता होती है:

(अ) धनात्मक

(ब) ऋणात्मक

(स) शून्य

(द) उपर्युक्त सभी।

In the short-term in the phase of decreasing returns, the marginal productivity of variable factor is :

(a) positive

(b) negative

(c) zero

(d) all the above.

3. कौनसा नियम उत्पत्ति हास नियम पर आधारित नहीं है ?

(अ) माल्थस का जनसंख्या सिद्धान्त

(ब) रिकार्डो का लगान सिद्धान्त

म सीमान्त उत्पादकता सिद्धान्त

(द) पैमाने का घटता प्रतिफल

Which of the following law is not based on the law of diminishing returns?

(a) Malthusian Theory of Population

(b) Ricardian Theory of Rent

(c) Marginal Productivity Theory

(d) Diminishing Returns to Scale

4. उत्पत्ति ह्रास नियम लागू होने का मुख्य कारण है :

(अ) साधनों की सीमितता

(ब) साधनों की परस्पर अपूर्ण स्थानापन्नता

(स) उपर्युक्त दोनों

(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं।

The main reason of the operation of the law of diminishing returns is :

(a) a limited supply of certain factors

(b) imperfect substitution of factors of production

(c) both the above

(d) none of the above.

5. जब परिवर्तनशील साधन की औसत उत्पादकता धनात्मक किन्तु गिरती हुई होती है तो सीमान्त उत्पादकता की स्थिति :

(अ) गिरती हुई

(स) ऋणात्मक

(द) इनमें से कोई भी हो सकती है।

When average productivity of variable factor is positive but falling, then marginal productivity is :

(a) falling

(b) zero

(c) negative

(d) any of these.

6. परिवर्तनशील अनुपात के नियम में मोड़ के बिन्दु पर :

(अ) AP अधिकतम होता है

(ब) MP अधिकतम होता है

(स) TP अधिकतम होता है

(द) उपर्युक्त सभी अधिकतम होते हैं।

In the law of variable proportions, at the point of inflexion :

(a) AP is maximum

(b) MP is maximum

(c) TP is maximum

(d) all the above are at their maximum.

7. परिवर्तनशील अनुपातों के नियम की तीसरी अवस्था में :(-) AP ऋणात्मक होती है

(ब) MP ऋणात्मक होती है

(स) AP और MP दोनों ऋणात्मक होते हैं

(द) उपर्युक्त सभी असत्य।

In the third phase of the law of variable proportions :

(a) AP is negative

(b) MP is negative

(c) AP and MP both are negative

(d) All are false.

8. जब औसत उत्पादकता गिरती है तब यह सीमान्त उत्पादकता

(अ) के बराबर होती है

(ब) से अधिक होती है

(स) से कम होती है।

When average productivity falls then it is :

(a) equal to

(b) more than

(c) less than, marginal productivity.

9. परिवर्तनशील अनुपात के नियम की पहली अवस्था वहाँ समाप्त होती है, जहाँ :

(अ) MP अधिकतम हो –

(ब) AP अधिकतम हो (स) AP वक्र MP वक्र को ऊपर से काटे ।

(द) MP वक्र AP वक्र को उसके अधिकतम बिन्दु पर ऊपर से काटे।

The first phase of the law of variable proportions ends where :

(a) MP is maximum

(b) AP is maximum

(C) AP curve intersects MP curve from above

(d) MP curve intersects AP curve at its maximum point from above.

10. जब श्रम की AP धनात्मक किन्तु गिरती हुई होती है तो MP की स्थिति :

(अ) गिरती हुई होती है

(ब) शून्य होती है

(स) ऋणात्मक होती है

(द) उपर्युक्त में से कोई भी हो सकती है।

When MP of labour is positive but declining, MP will be :

(a) decreasing

(b) zero

(c) negative

(d) any of the above.

11. जब AP बढ़ता है तब MP: :

अ) बढ़ता है

(ब) घटता है

(स) अधिकतम होता है

(द) उपर्युक्त सभी स्थितियाँ सम्भव।

When AP increases then MP:

(a) increases

(b) decreases

(c) is maximum

(d) all are possible.

12. उत्पत्ति ह्रास नियम का सम्बन्ध है :

(अ) लगान से

(ब) श्रम से (स) उपज की मात्रा से

(द) ब्याज से।

The law of decreasing returns is related to :

(a) rent

(b) labour

(c)quantity of product

(d) interest.

13. ऋणात्मक प्रतिफल की अवस्था में MP ऋणात्मक होती है :

(अ) स्थिर साधन की

(ब) परिवर्तनशील साधन की

(स) दोनों की

(द) दोनों गलत।

In the stage of negative returns, MP is negative of:

(a) fixed factor

(b) variable factor

(c) both

(d) both wrong.

14. घटते प्रतिफल की अवस्था को कहते हैं :

(अ) घटते सीमान्त उपज की अवस्था

(ब) घटते औसत उपज की अवस्था

(स) घटते सीमान्त व औसत उपज की अवस्था

(द) घटते कुल उपज की अवस्था।

The stage of diminishing returns is called : (a) stage of diminishing marginal product (b) stage of diminishing average product (c) stage of diminishing marginal and average products (d) stage of diminishing total product.

उत्तरमाला : 1. (a) 2. (b) 3. (d) 4. (c) 5. (d) 6. (b) 7. (b) 8. (b) 9. (d) 10. (d) 11. (d) 12. (c) 13. (b) 14. (c)] .

 

chetansati

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