BCom 1st Year Business Environment General Agreement Tariffs Trade Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Environment General Agreement Tariffs Trade Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Environment General Agreement Tariffs Trade Study Material Notes in Hindi : Background and Emergence of Gatt Main Objective of Gatt  Fundamental Principles of Gatt and Under developed Countries Historical Uruguay Agreement Signed Geneva 15th Dec 1993 Examination Questions Long Answer Questions :

 General Agreement Tariffs Trade
General Agreement Tariffs Trade

BCom 1st Year Business Environment Regional Economic Groups Study Material Notes in Hindi

प्रशुल्क एवं व्यापार सम्बन्धी सामान्य समझौता (गैट)

(GENERAL AGREEMENT ON TARIFFS AND TRADE-(GATT)]

गैट की पृष्ठभूमि एवं उदय

(BACKGROUND AND EMERGENCE OF GATT)

द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में विश्व आर्थिक सहयोग की एक नयी प्रवृत्ति प्रकाश में आयी और इसी के परिणामस्वरूप अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक की स्थापना हुई। इन दोनों की सफलता से प्रेरित होकर विश्व के अनेक राष्ट्रों ने विश्व व्यापार में वृद्धि करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्र में सहयोग की इच्छा व्यक्त की। इस दिशा में पूर्व में जो द्विपक्षीय समझौते, क्षेत्रीय संघों की स्थापना आदि हुई, उससे वांछित सहयोग प्राप्त नहीं हो सका। यह अनुभव किया गया कि विश्व व्यापार का समुचित विकास करने के लिए देशों को आपस में प्रशुल्क की दीवारों को तोड़ना चाहिए। इन सब विचारों के फलस्वरूप ही प्रशुल्क एवं व्यापार सम्बन्धी सामान्य समझौते (GATT—गैट) की उत्पत्ति हुई।

अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में सहयोग लाने के उद्देश्य से विभिन्न देशों द्वारा विचार-विमर्श किया गया एवं 1945 के अन्त में संयुक्त राज्य अमरीका के राज्य विभाग ने एक पुस्तिका का प्रकाशन किया जिसका शीर्षक था ‘Proposals for Expansion of World Trade and Employment’ जिसमें अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से सम्बन्धित अनेक विषयों पर विचार व्यक्त किये गये; जैसे प्रशुल्क प्राथमिकता, अभ्यंश और लाइसेन्स प्रणाली, अदृश्य संरक्षण अनुदान, वस्तु समझौते, पूर्ण रोजगार की प्राप्ति एवं अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार संगठन (International Trade Organisation-I.T.O.) की स्थापना जो समझौतों को कार्यान्वित कर सके।

उक्त उद्देश्यों को लेकर व्यापार और रोजगार पर एक सम्मेलन 1946 में लन्दन में आयोजित किया गया तथा 1947 में इन्हीं विषयों पर जेनेवा सम्मेलन हुआ जिसका समापन 1947-48 में हवाना में हुआ जहां 53 राष्ट्रों ने अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार संगठन बनाने के लिए हस्ताक्षर किये। यद्यपि हवाना चार्टर का उद्देश्य I. T. 0. की स्थापना करना था, किन्तु कई कठिनाइयों एवं सर्व-स्वीकृति के अभाव में इसे कार्यान्वित नहीं किया जा सका। हवाना चार्टर के एक महत्वपूर्ण मुद्दे व्यापार प्रतिबन्धों में ढिलाई–को कई देशों ने पुनर्जीवित किया जिसके फलस्वरूप GATT का जन्म हुआ। 30 अक्टूबर, 1947 को जेनेवा (स्विट्जरलैण्ड) में भारत सहित 23 देशों द्वारा हस्ताक्षर किये गये, इसी समझौते को गैट (General Agreement on Tariffs & Trade) के नाम से जाना गया। गैट समझौता 1 जनवरी, 1948 से लागू हुआ था।

वर्तमान में गैट का अस्तित्व समाप्त हो चुका है। 12 दिसम्बर, 1995 में गैट को विश्व स्तर पर अलविदा कह दिया गया और इसके स्थान पर 1 जनवरी, 1995 से विश्व व्यापार संगठन (WTO) की स्थापना कर दी गई जो वर्तमान में एक सजग प्रहरी के रूप में विश्व व्यापार का नियमन कर रहा है। गैट के मुख्य उद्देश्य (Main Objectives of GATT)

गैट की स्थापना निम्न उद्देश्यों को लेकर की गयी थी:

(i) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का विस्तार करना।

(ii) सदस्य देशों में पूर्ण रोजगार की व्यवस्था कर विश्व उत्पादन में वद्धि करना।

(iii) विश्व संसाधनों का विकास करना तथा उनका पूर्ण उपयोग करना । एवं (

(iv) विश्व में, समग्र दृष्टिकोण के आधार पर, सम्पूर्ण समाज के लोगों का जीवन स्तर ऊंचा उठाना।।

(v) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार सम्बन्धी समस्याओं को पारस्परिक सहयोग एवं परामर्श द्वारा सुविधापूर्वक सुलझाना।

(vi) व्यापारिक क्षेत्र से पक्षपात हटाकर सभी देशों को बाजार की प्राप्ति के लिए समान अवसर प्रदान करना।

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गैट के मूल सिद्धान्त

(Fundamental Principles of GATT)

अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए गैट ने कुछ मूलभूत सिद्धान्त स्वीकार किये थे जो इस प्रकार हैं:

  1. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार बिना किसी भेद-भाव के होना चाहिए।
  2. व्यापार में परिमाणात्मक प्रतिवन्धों को निरुत्साहित किया जाना चाहिए।
  3. व्यापारिक वाद-विवादों का निपटारा आपसी विचार-विमर्श द्वारा किया जाना चाहिए।

उक्त सिद्धान्तों से स्पष्ट है कि गैट का प्रमुख उद्देश्य यह था कि अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में भेद-भाव की नीति समाप्त कर व्यापार प्रतिबन्धों को कम किया जाये तथा बहुपक्षीय एवं स्वतन्त्र व्यापार का विकास कर विश्व व्यापार को नयी दिशा प्रदान की जाये जिससे विश्व में समृद्धि एवं विकास हो।

(1) भेदभाव की समाप्तिपरमानुगृहीत राष्ट्र-व्यवहार—गैट के सदस्यों ने यह स्वीकार किया था कि अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में प्रशुल्क की कमी एवं भेदभाव की समाप्ति पारस्परिक लाभ के आधार पर होनी चाहिए। इस उद्देश्य से, कुछ अपवादों को छोड़कर, सदस्य देशों द्वारा, आयात-निर्यात करों में शर्त-रहित परमानुगृहीत राष्ट्र-व्यवहार अपनाने पर बल दिया गया था।

(2) परिमाणात्मक प्रतिबन्धों में कमी करना—गैट में यह भी व्यवस्था की गई थी कि सदस्य देशों द्वारा व्यापार क्षेत्र में लगाये गये परिमाणात्मक प्रतिबन्धों को कम किया जाना चाहिए ताकि अनावश्यक रूप से अन्य सदस्य देशों को हानि न हो।

(3) प्रशुल्क समझौतेअन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के पूर्ण विकास में देशों द्वारा खड़ी की गयी प्रशुल्क की दीवार सबसे बड़ी बाधा है। अतः गैट में इस प्रकार का प्रावधान था कि सदस्य देश आपस में मिलकर प्रशुल्क को घटाने का प्रयत्न करें। उन बड़ी मात्रा के प्रशुल्कों को विशेष रूप से कम किया जाय जो आयात की न्यूनतम मात्रा को भी हतोत्साहित करते हैं। इस प्रकार के समझौते पारस्परिक रूप से एक-दूसरे के लाभ पर आधारित होते हैं।

गैट के अन्तर्गत निम्न बातों को ध्यान में रखकर समझौते किये गये :

(i) सदस्य देशों के उद्योगों की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए,

(ii) अर्द्ध-विकसित देशों के आर्थिक विकास के लिए संरक्षण एवं आय प्राप्त करने के लिए प्रशुल्क की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, तथा

(iii) सदस्य देशों को विशेष परिस्थितियों; जैसे-राजस्व, विकास, आदि को ध्यान में रखते हुए।

प्रशुल्क में कटौती करने के सम्बन्ध में निम्न नियमों का पालन किया गया :

(i) पारस्परिक लाभ दृष्टिकोण को वरीयता दी गई,

(ii) प्रशुल्क वृद्धि की अधिकतम सीमा निर्धारित की गई,

(iii) सौदेबाजी प्रशुल्क (Bargaining Tariff) को हतोत्साहित किया गया,

(iv) प्रशुल्क समझौतों के लिए द्विपक्षीय एवं बहुपक्षीय विधि अपनाई गई।

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गैट तथा अर्द्धविकसित देश

(GATT AND UNDER-DEVELOPED COUNTRIES)

पूर्व में उपनिवेशों की स्थापना के उद्देश्य से जिस स्वतन्त्र व्यापार को प्रारम्भ किया गया था, उस व्यापार के ढांचे को विकासशील देश स्वीकार करने की स्थिति में नहीं थे। अतः अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में एवं नयी अर्थव्यवस्था स्थापित करने तथा अपने हितों की सुरक्षा के लिए विकासशील देश GATT के सदस्य बने, किन्तु प्रारम्भ में GATT ने इन देशों के हितों को प्राथमिकता नहीं दी, क्योंकि प्रशुल्क तथा आयात करों के सम्बन्ध में बिना भेदभाव (Non-descrimination) की नीति अपनायी गयी, किन्तु विकासशील देश आपस में सहयोग कर

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हस्तक्षेप वाली व्यापार नीति लागू करने में सफल हो गये। GATT ने भी इस बात को स्वीकार किया कि अल्पकालीन भुगतान सन्तुलन की समस्याओं को हल करने के लिए व्यापार में परिमाणात्मक नियन्त्रण आवश्यक होंगे। विकासशील देशों ने यह भी अनुभव किया कि विकास और विनियोग के फलस्वरूप उन्हें अधिक आयातों की आवश्यकता होगी जो निर्यातों की आय से पूरी नहीं होगी अतः आयात लाइसेंसों के माध्यम से विदेशी विनिमय की राशनिंग करनी होगी। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए GATT में धारा XVIII का समावेश किया गया जिसके अन्तर्गत विकासशील देशों को आयात प्रतिबन्ध लगाने की छूट दी गयी। आगे चलकर विकासशील देश GATT के नियमों में भी संशोधन कराने में सफल हो गये कि उन्हें निर्यात आर्थिक सहायता एवं रियायती अथवा अधिमानी व्यवहार (Preferential treatment) की छूट दी जाए। इसके पहले GATT में परमानुगृहीत राष्ट्र विचारधारा का समावेश था जो व्यापार करने वाले सब देशों के साथ समान व्यवहार पर बल देता था, किन्तु विकासशील देशों का तर्क था कि उन्हें अपने निर्मित माल के निर्यात में कुछ अधिमान मिलना चाहिए ताकि वे विकसित देशों के साथ प्रतियोगिता कर सकें। फिर भी विकासशील देशों के तर्क को सरलता से स्वीकार नहीं किया गया। यद्यपि रियायती व्यवहार को अंकटाड (UNCTAD) के प्रथम जेनेवा सम्मेलन (1964) तथा द्वितीय दिल्ली सम्मेलन (1968) में स्वीकार किया गया, किन्तु वास्तव में यह 1971 में लागू किया गया जब GATT के सदस्य परमानुगृहीत राष्ट्र सिद्धान्त की दो बातों को हटाने के लिए सहमत हो गये। पहले बंधन को हटाने के फलस्वरूप विकासशील देशों को एक-दूसरे को रियायती आधार पर व्यापार प्रदान करने की छूट मिल गयी और द्वितीय बन्धन को हटाने से रियायतों की सामान्य योजना को आधार मिल गया। इस योजना के अन्तर्गत, विकसित देशों ने. विकासशील देशों की चनी हुई निर्मित वस्तओं को प्राथमिकता प्रदान की, किन्तु व्यावहारिक क्षेत्र में इन रियायतों का अधिक महत्व नहीं था।

गैट के विभिन्न उद्देश्य एवं कार्यों में अर्द्ध-विकसित देशों को प्राथमिकता दी गयी तथा नये अध्याय को भी गैट में इसी उद्देश्य से जोड़ा गया और वास्तविकता तो यही है कि अर्द्ध विकसित देश अपनी समस्याओं के समाधान के लिए ही गैट के सदस्य बने थे। इन देशों को विदेशी व्यापार के क्षेत्र में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जैसे शिशु उद्योगों का संरक्षण, प्राथमिक उत्पादनों की कीमतों में अस्थिरता, भूगतान-शेष में प्रतिकूलता, इत्यादि। इस प्रकार ये समस्याएं गैट के लिए एक बड़ी चुनौती थी।

विकासशील देशों को आपस में मिलकर अपना व्यापार बढ़ाने एवं अपने अर्थतन्त्र को मजबूत करने में गैट की भमिका महत्वपूर्ण रही है। यह न केवल विश्व में पूंजी के केन्द्रीकरण को रोकने में सफल हुआ, वरन विश्व के देशों में जो आर्थिक युद्ध चल रहा था, उसे नियन्त्रित करने में भी गैट को सफलता मिली। यह । प्रशंसनीय है कि इन देशों की समस्याओं को हल करने में गैट ने अनेक प्रभावी योजनाएं लाग की थी। 1957 और 1983 में गैट ने इस बात की जांच करने के लिए एक विशेषज्ञों की समिति नियक्त की थी कि अर्द्ध-विकसित देशों के व्यापार में विकसित देशों के समान वृद्धि क्यों नहीं हई। ।

यद्यापि विकासशील एवं अर्दविकसित देशों की समस्याओं को कुछ सीमा तक हल करने में सफल रहा किन्तु पूर्ण रूप से यह हल नहीं हुई हैं। कैनेडी-प्रशुल्क नीति के अन्तर्गत भी इन देशों पर पूर्ण ध्यान का दिया गया। इन देशों के प्रतिनिधियों ने भी यह स्वीकार किया था कि गैट ने अद्ध-विकसित दशा की व्यापार नीति एवं आर्थिक विकास की आवश्यकता को अच्छी तरह नहीं समझा।

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गैट का आलोचनात्मक मूल्यांकन

अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग के क्षेत्र में गैट की स्थापना सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रवृत्ति रही है। एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था होते हुए गैट अपने प्रारम्भिक वर्षों में कोई उल्लेखनीय कार्य न कर सका। गैट की स्थापना का उद्देश्य सदस्य देशों के बीच व्यापार प्रतिबन्धों को समाप्त कर अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का संवर्द्धन करना था, किन्तु कुछ आलोचकों का मत है कि प्रारम्भ से ही गैट पर अमेरिका और उसके मित्र देशों का वर्चस्व कायम रहा। अमरीका ने विश्व की व्यापारिक गतिविधियों को संचालित करने के लिए गैट को अपना माध्यम बनाया। इसका परिणाम यह हुआ कि विकासशील देश अपने अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के संवर्द्धन का लाभ नहीं उठा सके। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अपने उद्देश्यों में गैट कुछ सफल रहा है फिर भी निम्न आधार पर गैट की आलोचनाएं की जाती रहीं:

(1) अर्द्धविकसित देशों की समस्याओं को हल करने में कठिनाई–चूंकि अर्द्ध-विकसित देशों की व्यापार की समस्याएं, विकसित देशों की तुलना में अधिक कठिन हैं, उन्हें हर सम्भव कीमत पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए थी पर ऐसा नहीं हुआ और अधिकांश पिछड़े देशों को निराशा ही हाथ लगी।

(2) उदार नीतियों का अनुचित लाभगैट ने परिमाणात्मक प्रतिबन्धों के सम्बन्ध में कुछ अपवाद स्वीकार किये थे अर्थात् विशेष कारणों से पिछड़े देशों को इन प्रतिबन्धों को लागू करने की अनुमति दी गयी, किन्तु अन्य मामलों में गैट इन परिमाणात्मक प्रतिबन्धों को समाप्त करने में सफल नहीं रहा।

(3) पारस्परिक लाभ के सिद्धान्त से अहितगैट में प्रशुल्कों में कमी पारस्परिक लाभ के आधार पर करने का प्रावधान था किन्तु पिछडे देशों की यह शिकायत रही कि इससे उनकी मोलभाव की शक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है तथा विकसित देशों ने इस धारा का लाभ उठाकर कि एक देश किसी वस्तु पर समझौता करने से इंकार कर सकता है, अर्द्ध विकसित देशों की महत्वपूर्ण वस्तुओं की अवहेलना की।

(4) विवादों को निपटाने में असफलता यद्यपि गैट को बहुपक्षीय आधार पर सदस्य देशों के विवादों को निपटाने में सहायता मिली, किन्तु इसमें अफसलताएं भी कम नहीं रहीं। सबसे बड़ी असफलता यह रही कि गैट के बार-बार कहने पर भी संयुक्त राज्य अमरीका ने दुग्ध पदार्थों पर लगे आयात प्रतिबन्धों को समाप्त नहीं किया तब फिर बदला लेने के लिए नीदरलैण्ड ने भी अमरीका के गेहूं के आटे के आयात पर प्रतिबन्ध लगाया। इस प्रकार कहा जा सकता है कि गैट अपने उद्देश्यों में पूर्ण रूप से सफल नहीं हो पाया।

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ऐतिहासिक उरुग्वे समझौता हस्ताक्षरित : जेनेवा, 15 दिसम्बर, 1993

(HISTORICAL URUGUAY AGREEMENT SIGNED : GENEVA, 15TH DEC., 1993)

अक्टूबर, 1947 में 23 सदस्य देशों के साथ गैट का जन्म हुआ। इसका उद्देश्य सदस्य देशों के बीच व्यापार प्रतिबन्धों को समाप्त कर अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का संवर्द्धन करना था। गैट के 1986 तक कुल आठ चक्र (Rounds) हुए। इसका पहला चक्र 1947 में जेनेवा में. दसरा 1949 में एनेसी (फ्रांस) में तीसरा 1950-51 में तोर्क (इंग्लैंड) में, चौथा 1956 जिनेवा में, पांचवां 1960-61 में जिनेवा में, छठा 1964-67 में जिनेवा में, सातवां 1973-79 जिनेवा में और आठवां तथा सर्वाधिक महत्वपूर्ण दौर उरुग्वे के पुन्टा डेल एस्टे में 20 सितम्बर, 1986 को शुरू हुआ तथा 15 दिसम्बर, 1993 को जिनेवा में समाप्त हुआ। उरुग्वे दौर इसलिए महत्वपूर्ण था कि इसमें कृषि, सेवाएं, व्यापार सम्बन्धित विनियोग उपाय तथा बौद्धिक सम्पत्ति अधिकार, वस्त्र, आदि को शामिल किया गया। गैट के तत्कालीन महानिदेशक आर्थर डंकल ने दिसम्बर 1991 में सदस्य देशों के विचारार्थ एक पांच सौ-पृष्ठीय प्रस्ताव प्रस्तुत किया। इसमें आयात शुल्कों में लगभग एक-तिहाई की कमी तथा कृषि सम्बन्धी व्यापार पर आयात प्रतिबन्धों को हटाने की व्यवस्था थी। अन्त में अनेक कठिनाइयों के बाद सितम्बर 1986 में शुरू बहुव्यापार समझौता 15 दिसम्बर, 1993 को जिनेवा में सम्पन्न हआ तथा डंकल प्रस्ताव पर 117 देशों ने हस्ताक्षर किये जिसमें भारत भी शामिल था।

उल्लेखनीय है कि गैट समझौते के लिए 15 दिसम्बर, 1993 की अन्तिम तिथि निर्धारित की गई थी. किन्त कतिपय मुद्दों पर अमेरिका और यूरोपीय समुदाय के देशों में मतभेद के कारण इस समझौते में अनेक बाधाएं आई। इन दोनों के प्रतिनिधि मतभेद दूर कर गैट समझौता लागू करने का पुरजोर प्रयास करते रहे, किन्तु 13 दिसम्बर को भी मतभेद दूर नहीं हो सके थे। एक समय तो ऐसा भी आया कि सदस्य देशों के । बीच गहरे मतभेद हो गए और यह लगने लगा था कि वार्ता असफल हो जाएगी तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के सामने संकट उत्पन्न हो जाएगा, किन्त उरुग्वे चक्र का सफल समापन एक महत्वपूर्ण घटना रही तथा इससे बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ा।

डंकल प्रस्ताव का भारत पर प्रभाव : एक आलोचनात्मक विश्लेषण

भारत में डंकल प्रस्ताव पर एक लम्बी बहस चली। जहां एक पक्ष इसे स्वीकार किये जाने के पक्ष में था, दूसरा पक्ष इसका काफी विरोध कर रहा था, किन्तु 15 दिसम्बर, 1993 को भारत ने भी इस पर हस्ताक्षर कर दिए। इसे लेकर सरकार की तीखी आलोचना की गई एवं आरोप लगाया गया कि गैट समझौता राष्ट्रहित के विरुद्ध है तथा इससे भारत आर्थिक रूप से गुलाम हो जाएगा।

डंकल प्रस्ताव : विरोध के प्रमुख मुद्दे

आलोचकों का कथन है कि ‘डंकल प्रस्ताव’ गैट के माध्यम से बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा विश्व बाजार को अपने नियन्त्रण में लेने का साधन है। इस प्रस्ताव को स्वीकार करने से भारत में आर्थिक उपनिवेशवाद का शिकंजा कसेगा अतः यह भारत की आर्थिक गुलामी का दस्तावेज है। निर्यात बढ़ने की दलील को आलोचकों ने संदिग्ध माना, क्योंकि विश्व में मन्दी का दौर चल रहा था। दूसरी आलोचना सब्सिडी को लेकर रही। यदि किसानों को पानी, बिजली एवं उर्वरक पर सब्सिडी बन्द की जाती है तो कृषि की कमर ही टूट जाएगी। एक बात यह भी है कि इंकल प्रस्तावों को सम्पूर्ण रूप से स्वीकार करना होगा अतः भारत उसके कुप्रभाव से मुक्त नहीं हो सकेगा। इस बात को लेकर भी विरोध किया गया है कि इंकल प्रस्तावों के कारण भारत पर बौद्धिक सम्पदा के एकाधिकार की गहरी मार पड़ेगी, क्योंकि रसायन, दवा, कम्प्यूटर, इलेक्ट्रॉनिक, प्रौद्योगिकी, आदि के सारे पैटेंट पश्चिमी हैं तथा भारत को उनकी भारी कीमत चुकानी होगी। यद्यपि भारत का कुछ निर्यात बढ़ेगा, किन्तु जिन वस्तुओं के निर्यात में वृद्धि होगी, देश में उनकी कीमतें बढ़ेगी।

दवाइयों की कीमत बढ़ने का देश पर सबसे घातक प्रभाव होगा। आयातित दवाइयों की कीमतों में 60 से लेकर 300 प्रतिशत तक की वृद्धि की सम्भावना व्यक्त की गई। पहले से ही जो दवाइयां काफी महंगी है, वे और महंगी हो जाएंगी. क्योंकि ये दवाइयां विदेशों से आती हैं जहां पेटेंट कानून के अन्तर्गत इनकी कीमतें निर्धारित करना उनका अधिकार है। दवा निर्माताओं ने पैटेंट कानून के अन्तर्गत 50 प्रतिशत की रॉयल्टी प्रस्तावित की है। समझौते में पैटेंट करने पर 20 वर्ष की अवधि निर्धारित की गई है। यद्यपि समझौते में भारत को यह अधिकार होगा कि वह लाइसेंसिंग अनिवार्य कर दवा की कीमतों पर नियन्त्रण रखे, किन्तु इसके लिए भी कड़ी शर्तों का प्रावधान है। यह भी आशंका व्यक्त की गई है कि दवाई के फार्मूलों के आयात पर निर्भर रहने से देश का औषधि उद्योग लुप्त हो जाएगा। भारत वस्त्र उद्योग और सिले-सिलाए कपड़ों के व्यापार को गैट के दायरे में लाना चाहता था, पर अमेरिका ने इसे विफल कर दिया। इस प्रकार डंकल प्रस्तावों की कट आलोचना की गई।

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भारत पर डंकल प्रस्तावों का अनुकूल प्रभाव : आलोचनाओं का उत्तर

डंकल प्रस्तावों पर सहमति से उरुग्वे दौर की वार्ता सम्पन्न हो गई जिसके अन्तर्गत वस्तुओं और सेवाओं के क्षेत्र में व्यापार से सम्बन्धित बौद्धिक सम्पदा अधिकार निवेश उपायों तथा वख और कृषि जिसो के क्षेत्र में व्यापार पर चिर-प्रतीक्षित समझौता सम्पन्न हो गया। इससे भारत को जो लाभ होगा, उसे निम्नांकित बिन्दओं में स्पष्ट किया गया है। उसे इंकल प्रस्तावों की आलोचनाओं का उत्तर भी कहा जा सकता है ।

1 यदि भारत डंकल प्रस्ताव स्वीकार न करता तो भारत अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार समदाय से पृथक हो जाता। प्रस्ताव स्वीकार करने से भारत का निर्यात बढ़ेगा। आशा है इससे भारत का व्यापार 2 बिलियन डालर। तक बढ़ने की आशा व्यक्त की गई थी।

2. सब्सिडी में कटौती की जो आशंका व्यक्त की गई, वह निराधार है। समझौते में कृषि उपज का कुल कीमत को 10 प्रतिशत तक सब्सिडी दिए जाने का प्रावधान है जो भारत की मौजदा सब्सिडी व्यवस्था से अधिक है।

3. जहां तक पेटेंट का प्रश्न है, बीजों के मामले में किसानों और अनुसन्धानकर्ताओं के अधिकारों को सरकार संरक्षण देगी। कषक अपनी उपज का बीज बचाकर रख सकेंगे, लेकिन उन्नत बीजों की खरीद पर किसानों को बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को रॉयल्टी देनी होगी। आयातित उन्नत बीजों की व्यावसायिक बिक्री किसान नहीं कर सकेंगे।

4. दवाइयों की कीमतों में तत्काल वृद्धि नहीं होगी तथा सरकार के पास दवाओं के मूल्य नियन्त्रित करने का अधिकार रहेगा। एक बात और है, डंकल प्रस्ताव नये पैटेंट पर ही लागू होंगे। भारत में दवा के उत्पाद पर नहीं वरन् प्रक्रिया पर पैटेंट है तथा 80 प्रतिशत दवाइयां पेटेंट से बाहर हैं।।

5. जहां तक बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा भारत में निवेश कर लाभ अर्जित करने या विकसित देशों द्वारा हावी होने का प्रश्न है, उसका उत्तर यह है कि विदेशी पूंजी निवेश की अनुमति देने का अधिकार भारत सरकार को ही रहेगा।

6. जहां तक भारत की सार्वजनिक वितरण प्रणाली का प्रश्न है, डंकल प्रस्ताव का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इस पर दी जाने वाली सब्सिडी यथावत् रहेगी।

7. यद्यपि भारत सरकार बौद्धिक सम्पदा अधिकार को समझौता में शामिल करने के पक्ष में नहीं थी. किन्तु विश्व-समुदाय के सामने उसे झुकना पड़ा।

8. प्राकृतिक रूप से विकसित जीन एवं जीन प्रक्रिया को पैटेंट कराने का कोई दायित्व नहीं होगा।

9. यह भी मत है कि भारत में कृषि निर्यात प्रोत्साहित होगा जिससे किसानों को लाभ होगा।

10. यह तर्क भी भारत के पक्ष में है कि यदि भारत समझौते से पृथक् हो जाता तो कई देश जिनसे अभी हमारा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार होता है, हमारे निर्यात व्यापार पर कई प्रकार के प्रतिबन्ध लगाते।

उपर्युक्त बिन्दुओं को देखते हुए कहा जा सकता है कि डंकल प्रस्तावों के विरोध में जो दलीलें दी गई हैं वे उचित नहीं हैं। यदि ध्यान से देखा जाए तो भारत को कई क्षेत्रों जैसे वस्त्रोद्योग, कृषि-निर्यात, अन्य वस्तुओं के निर्यात, आदि में लाभ होगा। भारत को गैट समझौते के दुष्प्रभावों से बचने के लिए अपनी पारम्परिक कृषि प्रणाली एवं चिकित्सा प्रणाली पर नये शोध करने होंगे तथा पश्चिमी पैटेंट का मुंह नहीं ताकना होगा। भारत को विश्व के साथ जोड़ने का डंकल प्रस्तावों के माध्यम से अच्छा अवसर मिलेगा, किन्तु नये परिवेश में डंकल प्रस्ताव के हानिकारक पहलुओं का अध्ययन कर हमें उनके निराकरण का मार्ग अभी से निकाल लेना चाहिए।

डंकल प्रस्ताव : भारत ने क्या पाया एवं क्या खोया

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गैट के आठवें दौर में सम्मिलित क्षेत्र

गैट के आठवें दौर की वार्ता में कुल 15 क्षेत्रों को सम्मिलित किया गया। इन क्षेत्रों को दो भागों में बांटा गया। पहले भाग का सम्बन्ध व्यापारिक वस्तुओं से था जबकि दूसरे भाग का सम्बन्ध सेवाओं से था।

(A) व्यापारिक वस्तुओं से सम्बन्धित पहले भाग में 14 क्षेत्र सम्मिलित किये गये :

1 प्रशुल्क (Tariffs)

2. गैर-प्रशुल्क उपाय (Non-Tariff Measures)

3. उष्ण कटिबन्धीय उत्पाद (Tropical Products)

4. राष्ट्रीय संसाधन आधारित उत्पाद (National Resource Based Products)

5. वस्त्र एवं कपड़ा (Textiles and Clothings)

6. कृषि उत्पाद (Agriculture Products)

7. गैट धाराएं (GATT Articles)

8. सुरक्षा (Safeguards)

9. बहु-पक्षीय व्यापार समझौते एवं व्यवस्थाएं (Multilateral Trade Agreements and Arrangements)

10. अनुदान (Subsidies)

11. विवाद निपटारे (Disputes Settlements)

12. बौद्धिक सम्पदा अधिकार के व्यापार सम्बन्धी पहलू (TRIPS)

13. व्यापार सम्बन्धी निवेश उपाय (TRIMS)

14. गैट कार्य पद्धति (GATT Functioning System)

बाद में इन 14 क्षेत्रों को 7 क्षेत्रों में पुनः आबंटित कर दिया गया :

1. बाजार पहुंच (Market Access)

2. कृषि (Agriculture)

3. वस्त्र (Textiles)

4. बौद्धिक सम्पदा अधिकार के व्यापार सम्बन्धी पहलू (TRIPS)

5. व्यापार सम्बन्धी निवेश उपाय (TRIMS)

6. सेवाओं का व्यापार (Trade in Services)

7.संस्थागत मामले (Institutional Matters)|

(B) सेवाओं से सम्बन्धित दूसरे भाग में सेवाओं के व्यापार को अलग से आठवें दौर में सम्मिलित किया गया।

गैट सन्धि पर मराकश में हस्ताक्षर (अप्रैल 1994)

यद्यपि 117 देशों ने 15 दिसम्बर, 1993 को जिनेवा में डंकल प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर उसे स्वीकार कर लिया था, किन्तु अन्तिम रूप से गैट सन्धि को 15 अप्रैल, 1994 को स्वीकृत किया गया तथा मोरक्को (अफ्रीका) के मराकश शहर में 12 अप्रैल, 1994 से आयोजित चार-दिवसीय सम्मेलन में गैट समझौते एवं इसके परिशिष्ट पर 117 सदस्य देशों ने हस्ताक्षर किये। गैट के महानिदेशक पीटर सदरलैंड ने इसे अतिमहत्वाकांक्षी बताते हुए सभी सदस्य देशों से इसे भेदभाव-रहित बनाने का अनुरोध किया। नये गैट समझौते के मुख्य मुद्दे

15 अप्रैल, 1994 को हस्ताक्षरित गैट समझौते के मुख्य मुद्दे इस प्रकार थे।

1 आयात शुल्क आयात शुल्कों में 40 प्रतिशत तक कटौती की जाएगी। इसके फलस्वरूप सैकड़ों उत्पादों जैसे खाद्य, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं कपडे, इत्यादि की कीमतों में कमी होगी।

2. कृषि व्यापार एवं कृषि सब्सिडी-आगामी 6 वर्षों में किसानों को मिलने वाली कषि सब्सिडी में 20 से 36 प्रतिशत की कमी का प्रावधान किया गया। उल्लेखनीय है कि पहली बार कृषि को गैट की सीमा में लाया गया। विकसित देशों में सब्सिडी के कारण करदाताओं को, एक अनुमान के अनुसार 160 अरब डॉलर कर देना पड़ता है। कृषि समझौता के फलस्वरूप ऐसे देशों को जो कृषि आयात के लिए अपनी अर्थव्यवस्था पर पाबन्दी लगाये हुए थे,अपनी कुल घरेलू खपत का कम से कम तीन प्रतिशत कृषि जिन्सो का आयात करना होगा। इसी क्रम में जापान और कोरिया में चावल के आयात पर लगा प्रतिबन्ध समाप्त होगा।

3. कपड़े का आयात कोटा समाप्त—विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों से कपड़ों एवं सिले-सिलाये वस्त्रों पर लागू आयात कोटा दस वर्षों में धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगा तथा आखिरी वर्ष में कोटे में तेजी से कमी होगी। अनुमान है कि कपड़े एवं वस्तुओं पर संरक्षण के कारण प्रत्येक अमरीकी परिवार को साल में औसतन 310 डॉलर अधिक व्यय करने पड़ते हैं।

4. राशिपातन (Dumping) को रोकने की व्यवस्था—समझौते में राशिपातन अर्थात् घरेलू बाजार के मूल्यों की तुलना में कम कीमत पर विदेशों में बेचना, पर रोक लगाने हेतु कड़े नियम बनाये गये हैं, क्योंकि अमेरिका और यूरोप के देश राशिपातन पर रोक लगाने के नाम पर शुल्क लगाकर स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का गला घोंट रहे थे। इसके सिवाय कुछ दक्षिण एशियाई देशों ने राशिपातन के नये तरीके खोज लिये थे।

5. बौद्धिक सम्पदा अधिकारकॉपीराइट की चोरी रोकने, नकली सामान से उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं की रक्षा करने, ध्वनि रिकॉर्डिंग के निर्माताओं के अधिकार सुरक्षित करने तथा बेहतर पैटेंट संरक्षण के माध्यम से नये आविष्कारों को प्रोत्साहन देने के लिए, समझौते में कठोर नियम बनाये गये हैं।

6. गैट का विस्तार1947 में अस्थायी संगठन के रूप में स्थापित गैट अब एक स्थायी विश्व व्यापार संगठन बन गया है और इसे विश्व बैंक तथा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसा दर्जा मिल जाएगा। 1 जनवरी, 1995 से गैट का स्थान विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation-WTO) ने ले लिया है। WTO का। मुख्यालय जेनेवा में ही है।

गैट की मराकश में जारी रिपोर्ट : गैट का विश्व व्यापार पर प्रभाव

मराकश में 15 अप्रैल, 1994 को गैट समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद गैट द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया था कि उरुग्वे दौर के समझौते से अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में प्रतिवर्ष 755 अरब डॉलर की वृद्धि होगी। विकसित देश सीमा शुल्क में औद्योगिक आयातों में औसतन 38% तथा कृषि उत्पादों में 37% की कटौती करेंगे जिससे हजारों उत्पादों की कीमतों में कमी होगी।

रिपोर्ट के अनुसार आयात शुल्क में सबसे ज्यादा कटौती लकड़ी, कागज, फर्नीचर (69 प्रतिशत),धात 150 प्रतिशत) गैर-विद्युत् मशीनरी (58 प्रतिशत),खनिज उत्पाद (52 प्रतिशत), बिजली मशीनरी (47 प्रतिशत) और रसायन (42 प्रतिशत) में होगी। सबसे कम कटौती कपड़ा (22 प्रतिशत), चमड़ा और जूते (18 प्रतिशत), माठली और मत्स्य उत्पादन (26 प्रतिशत) में होगी। ये सभी विकासशील देशों के महत्वपूर्ण निर्यात हैं।

इस समझौते के बाद औद्योगिक उत्पादों में से लगभग 50 प्रतिशत विकसित देशों में बिना शुल्क प्रवेश दिन उत्पादों पर औसत शुल्क वर्तमान में 6.3 प्रतिशत से घटकर सिर्फ 3.9 प्रतिशत रह जाएगा। शिमोर्ड के अनसार विकसित देश कृषि उत्पादों में आयात शुल्को में औसतन 37 प्रतिशत कटौती करेंगे। इससे विकासशील देशों को काफी लाभ होगा। इसके अतिरिक्त, सरकार कृषि और औद्योगिक उत्पादों पर लगभग सभी आयात शुल्क भविष्य में नहीं बढ़ायेगी। यह निर्णय 1986 में उरुग्वे दौर के शुरू के लक्ष्य से अच्छा है जब आयात शुल्कों में एक-तिहाई कटौती का लक्ष्य रखा गया था।

रिपोर्ट में पर्यटन जैसे सेवा उद्योग में मुक्त व्यापार के प्रभाव को शामिल नहीं किया गया। गैट ने पहली बार सेवाओं के बारे में नियम तय किये, क्योंकि प्रारम्भ में उसका ध्यान वस्तुओं पर केन्द्रित था। रिपोर्ट में कस्टम राजस्व में कमी के कारण राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं को होने वाले नुकसान को शामिल नहीं किया गया। मराकश घोषणा : पांच मुख्य समझौते

मराकश घोषणापत्र में ये पांच मुख्य समझौते हुए हैं :

(i) विश्व व्यापार संगठन की तैयारी समिति का निर्णय, (ii) विश्व व्यापार संगठन की स्थापना सम्बन्धी समझौते की स्वीकृति का निर्णय, (iii) व्यापार और पर्यावरण सम्बन्धी निर्णय, (iv) सेवाओं सम्बन्धी व्यापार का निर्णय, (v) विश्व व्यापार संगठन की स्थापना के संगठन सम्बन्धी एवं वित्तीय परिणामों का निर्णय। 1 जनवरी, 1995 से विश्व व्यापार संगठन की स्थापना कर दी गई, किन्तु 1 जनवरी, 1995 तक सभी गैट सदस्य देशों द्वारा विश्व व्यापार संगठन की सदस्यता न ग्रहण किये जा सकने के कारण 12 दिसम्बर, 1995 तक गैट का अस्तित्व बनाए रखा गया और अन्ततः 12 दिसम्बर, 1995 में गैट को पूर्णरूप से अलविदा कर दिया गया।

वर्तमान में विश्व व्यापार संगठन एक सजग प्रहरी के रूप में विश्व व्यापार का नियमन कर रहा है।

Environment General Agreement Tariffs

प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1 गैट पर आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिए तथा बताइए कि इस समझौते से विश्व के कुल व्यापार को बढ़ाने में कहां तक सहायता मिली है?

2. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पर से प्रतिबन्ध हटाने के सम्बन्ध में गैट के योगदान की विवेचना कीजिए।

3. गैट के क्या उद्देश्य हैं ? इन उद्देश्यों को पूरा करना उसके लिए कहां तक सम्भव हो सका है? अर्द्ध-विकसित देशों के विशेष सन्दर्भ में समझाइए।

[संकेत–पहले गैट का परिचय देते हुए उसके उद्देश्य स्पष्ट कीजिए। इसके बाद गैट की प्रगति का विवरण देते हुए बताइए कि गैट अपने उद्देश्यों की पूर्ति में आंशिक रूप से सफल हुआ है, इसके बाद उन प्रयत्नों को स्पष्ट कीजिए जो गैट ने अर्द्ध-विकसित देशों की समस्याओं को हल करने के लिए किये हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

1 गैट की प्रगति का विवरण देते हुए उसका संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।

2. दिसम्बर 1993 में जिनेवा में सम्पन्न ऐतिहासिक उरुग्वे समझौते से भारत किस तरह प्रभावित होगा? संक्षेप में समझाइए।

3. मराकश में हस्ताक्षरित गैट सन्धि के मुख्य मुद्दे क्या है? क्या आप इस बात से सहमत हैं कि भारत को गैट से लाभ हुआ है? संक्षेप में समझाइए।

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chetansati

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