BCom 1st Year Business Environment Problem of Poverty Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Environment Problem of Poverty Study Material Notes in Hindi

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Problem of Poverty
Problem of Poverty

BCom 1st year Environment Problem Unemployment India Study Material Notes in Hindi

गरीबी की समस्या

[PROBLEM OF POVERTY]

गरीबी (अथवा निर्धनता) का अर्थ अथवा अवधारणा

(MEANING OR CONCEPT OF POVERTY)

आज सरकार, राजनीतिज्ञ, समाज-सुधारक, आदि सभी गरीबी के बारे में बात करते हैं, लेकिन। सभी को गरीबी के सही अर्थ का बोध नहीं होता है। सामान्यतया गरीबी का आशय लोगों के निम्न। जीवन-स्तर से लगाया जाता है। जीवन-स्तर सापेक्ष अथवा निरपेक्ष दृष्टि से देखा जा सकता है। अतः। गरीबी की धारणा को दो रूपों में व्यक्त किया जा सकता है: (1) निरपेक्ष गरीबी (Absolute Poverty), (2) सापेक्ष गरीबी (Relative Poverty)

(1) निरपेक्ष गरीबी (Absolute Poverty)-“एक व्यक्ति की निरपेक्ष गरीबी से अर्थ है कि उसकी आय या उपभोग व्यय इतना कम है कि वह न्यूनतम भरण-पोषण स्तर के नीचे स्तर पर रह रहा है।” इसी बात को दूसरे शब्दों में इस प्रकार कह सकते हैं कि “गरीबी से अर्थ मानव की आधारभूत आवश्यकताओ-खाना, कपड़ा, स्वास्थ्य सहायता, आदि की पूर्ति हेतु पर्याप्त वस्तुओं व सेवाओं को जुटा पाने में असमर्थता से है।”

इस तरह यह कहा जा सकता है कि “गरीबी से अर्थ उस न्यूनतम आय से है जिसकी एक परिवार के लिए आधारभूत न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु आवश्यकता होती है तथा जिसे वह परिवार जुटा पाने में असमर्थ होता है।’ इस गरीबी को निरपेक्ष गरीबी कहते हैं। जो परिवार उस न्यूनतम आय को जुटा पाने में असमर्थ होता है तब कहा जाता है कि वह परिवार गरीबी रेखा से नीचे का जीवन व्यतीत कर रहा है।

(2) सापेक्ष गरीबी (Relative Poverty) सापेक्ष गरीबी आय की असमानताओं के आधार पर परिभाषित की जाती है। इस सम्बन्ध में विभिन्न वर्गों या देशों के निर्वाह-स्तर अथवा प्रति व्यक्ति आय की तुलना करके गरीबी का पता लगाया जाता है। जिस वर्ग या देश के लोगों का जीवन-स्तर या प्रति व्यक्ति आय का स्तर नीचा रहता है वे उच्च निर्वाह स्तर या प्रति व्यक्ति आय वाले लोगों की तुलना में गरीब माने जाते हैं। निर्वाह-स्तर को आय एवं उपभोग-व्यय के आधार पर मापा जाता है। उदाहरण के लिए, मान लीजिए भारत में 2017 में प्रति व्यक्ति आय जापान की तुलना में 75 गुना तथा अमेरिका की तुलना में 68 गुना कम थी। तो इसका अर्थ यह हुआ कि जापान या अमेरिका के औसत नागरिक की अपेक्षा भारतीय उतने गुना गरीब हैं।

Environment Problem of Poverty

भारत में गरीबी की परिभाषा एवं अनुमान

भारत में कैलोरी के उपभोग को गरीबी के मापदण्ड के रूप में स्वीकार किया गया है। इस मापदण्ड को अपनाया जाना तर्कसंगत भी है क्योंकि यहां बहुत बड़ी संख्या में लोगों को न्यूनतम आहार नहीं मिल पाता है।

भारतीय योजना आयोग के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 2400 कैलोरी तथा शहरी क्षेत्रों में 2100 कैलोरी से कम उपभोग करने वाले व्यक्तियों को गरीब या निर्धन माना जाता है। ग्रामवासियों के लिए कैलोरी की अपेक्षाकृत ऊंची मात्रा इस कारण निर्धारित की गयी क्योंकि गांव में लोगों को अधिक शारीरिक श्रम करना पड़ता है। कैलोरी की इस न्यूनतम मात्रा के आधार पर गरीबी रेखा खींचकर देश में गरीबों की पहचान की जाती है। सामान्यतया इसे मुद्रा की राशि में व्यक्त किया जाता है।

गराबी का अनुमानभारत में गरीबी का अनमान लगाने के लिए कोई प्रत्यक्ष अथवा उपयुक्त आकड़ उपलब्ध नहा हा इस सम्बन्ध में विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने समय-समय पर अनुमान लगाए हायद्याप इन लागा ने गरीबी के अलग-अलग मापदण्ड प्रस्तुत किए हैं परन्तु किसी भी मापदण्ड सजा चलता है कि भारत में विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में घोर गरीबी का साम्राज्य विद्यमान का

बाजना आयाग द्वारा निर्धनता अथवा गरीबी की स्थिति का अनमान राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन NOSO) द्वारा घरलू उपभोक्ता व्यय के संबंध में किए गए व्यापक नमूना सर्वेक्षण के आधार पर लगाया जाता है।

विशेषज्ञ समूह की रिपोर्ट

योजना आयोग ने दिसम्बर 2005 में प्रोफेसर सुरेश डी. तेन्दुलकर की अध्यक्षता में देश में गरीबी का अनुमान लगाने के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था, जिसने दिसम्बर 2009 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।

तेन्दुलकर फॉर्मले में निर्धनता रेखा का आकलन भोजन में कैलोरी की मात्रा के स्थान पर प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय के आधार पर किया गया है तथा प्रत्येक राज्य में निर्धनता रेखा के लिए शहरी ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय अलगअलग निर्धारित किया गया है।

योजना आयोग ने गृहस्थ उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण से 66वें राउण्ड (2009-10) के आंकड़ों का प्रयोग करते हुए तेन्दुलकर समिति की सिफारिश के अनुसार वर्ष 2009-10 हेतु गरीबी रेखा तथा गरीबी अनुपात को अद्यतन किया। इसने गरीबी रेखा ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 673₹ मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय (एम. पी. सी. ई.) तथा शहरी क्षेत्रों के लिए 860 ₹ मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय का अनुमान लगाया। इस सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार देश में गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों का प्रतिशत जो 2004-05 में 37.2% था वह घटकर 2009-10 में 29.8% रह गया है।

तुन्दुलकर द्वारा सुझाए गए फॉमूल पर आधारित जलाई 2013 में देश में निर्धनता अनपात तथा निर्धनों की संख्या के सम्बन्ध में वर्ष 2011-12 के लिए जो आंकड़े जारी किए गए उनके अनुसार अखिल भारतीय स्तर पर ग्रामीण क्षेत्रों में 816.8 ₹ प्रति माह व शहरी क्षेत्रों में 1,000 र प्रति माह उपभोग व्यय को वर्ष 2011-12 के लिए निर्धनता रेखा की पहचान के लिए निर्धारित किया गया था। इसी आधार पर योजना आयोग ने स्पष्ट किया कि ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिदिन 27 ₹ तथा शहरी क्षेत्रों में प्रतिदिन 337 तक उपभोग व्यय करने वाले ही निर्धन हैं। इस पर सरकार को तीखी आलोचना का सामना करना पड़ा। इस स्थिति से स्वयं को बचाने के लिए योजना आयोग ने प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. सी. रंगराजन की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समूह का गठन करके उससे निर्धनता के आकलन की विधि सूझाने की अपेक्षा की।

सी. रंगराजन विशेषज्ञ समूह ने निर्धनता के मापने हेतु विधि की पुनरीक्षा के सम्बन्ध में अपना प्रतिवेदन जुलाई 2014 में सौंपा। विशेषज्ञ समूह ने निर्धनता के मापने हेतु निम्नलिखित तीन आधारों का चयन किया :

(i) भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद द्वारा निर्धारित मानकों के आधार पर कैलोरी युक्त पौष्टिकता, वसा व प्रोटीन की दैनिक आवश्यकता। इस दृष्टि से ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 2,155 कैलोरी। तथा शहरी क्षेत्रों में 2,090 कैलोरी युक्त भोजन को निर्धनता रेखा का आधार माना गया है। समूह ने यह स्पष्ट किया कि अब लोगों की कार्य संस्कृति बदल गयी है तथा लोगों को अपेक्षाकृत कम शारीरिक श्रम करना पड़ता है। (पूर्व में ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 2,400 कैलोरी तथा शहरी क्षेत्रों में 2,100 । कैलोरी से कम उपभोग करने वाले व्यक्तियों को निर्धन माना जाता था।) 68वें चक्र के राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनसार इस स्तर का भोजन प्राप्त करने के लिए 2011-12 में ग्रामीण क्षेत्रों में 554 ₹ तथा शहरी क्षेत्रों में 656 ₹ की आवश्यकता थी।

(ii) वस्त्र, आनेजाने का किराया तथा शिक्षा पर प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय ग्रामीण क्षेत्रो । में 141 ₹ तथा शहरी क्षेत्रों में 407 ₹ था।

(iii) अन्य गैर-खाद्य मदों पर ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 277 ₹ प्रति व्यक्ति औसत मासिक उपभोग व्यय  तथा शहरी क्षेत्रों में 344 ₹ प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय को निर्धनता रेखा का आधार माना गया।

Environment Problem of Poverty

भारत में निर्धनता अनुपात वर्ष 1993-94 में 45.3% था जो घटकर वर्तमान में (रंगराजन समिति के अनुसार) 29.5% रह गया है।

सी. रंगराजन विशेषज्ञ समूह द्वारा विकसित निर्धनता मापन विधि के अनुसार देश में सर्वाधिक निर्धनता अनुपात वाले राज्य हैं : छत्तीसगढ़ (47.9%), मणिपुर (46.7%), ओडिशा (45.9%), मध्य प्रदेश (44.3%) तथा झारखण्ड (42.4%)।

सबसे कम निर्धनता अनुपात वाले राज्य हैं : गोवा (6.3%), हिमाचल प्रदेश (10.9%), केरल। (11.3%), पंजाब (11.3%) तथा हरियाणा (12.5%)|

सर्वाधिक निर्धनता अनपात वाला केन्द्र शासित क्षेत्र दादरा एवं नगर हवेली (35.6%) तथा सबसे कम निर्धनता अनुपात वाला केन्द्र शासित क्षेत्र अण्डमान एवं निकोबार (6.0%) है। उत्तर प्रदेश में निर्धनता। अनुपात 39.8% है जो अखिल भारत स्तर से अधिक है।

तेन्दुलकर विशेषज्ञ समूह द्वारा विकसित निर्धनता मापन विधि के अनुसार देश में सर्वाधिक निर्धनता वाले राज्य हैं बिहार (33.7%), ओडिशा (32.6%), असम (31.9%), मध्य प्रदेश (31.7%) तथा उत्तर प्रदेश (29.4%)

Environment Problem of Poverty

भारत में गरीबी के कारण

(CAUSES OF POVERTY IN INDIA)

भारत में गरीबी के लिए उत्तरदायी कारणों में से प्रमुख निम्नलिखित हैं :

1 रोजगार के अवसरों में धीमी वृद्धि–भारत में श्रमिकों की संख्या में तेजी से वृद्धि होती रही जबकि उनके लिए रोजगार के अवसरों में आशातीत वृद्धि नहीं हुई। ऐसा होने के दो कारण रहे : एक अपर्याप्त पूंजी निर्माण के फलस्वरूप अपेक्षित मात्रा में उत्पादक रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं हो सके। तथा दूसरे, देश में पूंजी-प्रधान उत्पादन तकनीक अपनाए जाने से श्रम-प्रधान कार्यकलापों का अधिक तेजी से विस्तार नहीं हो सका। फलस्वरूप बेरोजगारी बढ़ी और अल्प रोजगार में लगे व्यक्तियों की संख्या में भी वृद्धि हुई। ऐसी स्थिति में गरीबी का फैलना स्वाभाविक है।

2. निम्न आय अर्जक परिसम्पत्तियां रोजगार की कमी के कारण जहां मजदूरी नहीं बढ़ सकी, वहां आय-अर्जक परिसम्पत्तियों के अभाव में मजदूरी के अलावा आय का अन्य स्रोत भी नगण्य रहा। देश में आय वितरण की असमानता के फलस्वरूप गरीब व्यक्तियों के पास परिसम्पत्तियां न के बराबर हैं।

3. कमाई या अर्जन का स्तर निम्न सामान्यतया जिन कार्यों में निर्धन व्यक्ति कार्यरत होते हैं वहां अक्सर मजदूरों का शोषण होता है और उन्हें मजदूरी कम प्राप्त होती है। ऐसा विशेष रूप से अर्थव्यवस्था के असंगठित क्षेत्र में होता है। जैसे—खेती, लघु उद्योग आदि। इन क्षेत्रों में श्रमिक संघ के रूप में संगठित नहीं हैं। इस कारण मालिक मजदूरों का शोषण करने और कम मजदूरी देने में सफल हो जाते हैं।

3. जनसंख्या में भारी वृद्धि जनसंख्या में होने वाली भारी वृद्धि भी गरीबी की स्थिति को गंभीर बनाने में सहायक है। जनसंख्या वृद्धि से गरीबों के उपभोग स्तर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तथा उनकी आर्थिक स्थिति और खराब हो जाती है। इनकी आय का लगभग सम्पूर्ण भाग परिवार के पालन-पोषण पर व्यय हो जाता है और इस तरह बचत और निवेश के लिए इनके पास कुछ नहीं बचता। इससे पूंजी निर्माण और आर्थिक विकास की गति धीमी पड़ जाती है। परिणामस्वरूप गरीबी की समस्या और उलझ जाती है।

4. दोषपूर्ण विकासरणनीति—देश में गरीबी तथा आय-विषमताओं के लिए विकास की रणनीति भी। बहुत हद तक उत्तरदायी है। उदाहरणार्थ, देश में पूंजीगत वस्तुओं के निर्माण पर अधिक बल दिया गया जिसके कारण पूंजी-गहन परियोजनाओं में निवेश अधिक हुआ और रोजगार के अवसर कम सृजित हुए। उपभोग वस्तुओं के उत्पादन पर ध्यान कम दिए जाने से उपभोग वस्तुओं का अभाव हो गया। उपभोग वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि से आय एवं रोजगार के अवसरों में वृद्धि की जा सकती थी। इन सबका सम्मिलित प्रभाव यह हुआ कि देश में बेरोजगारी बढ़ी और आय कम होने से गरीबी की समस्या में वद्धि हो गयी।

5. मुद्रा प्रसार और मूल्य वृद्धि–भारत में बढ़ते विकास व्ययों को पूरा करने के लिए भारी मात्रा में घाटे की वित्त-व्यवस्था का सहारा लिया जाता है। इससे अर्थव्यवस्था पर भारी स्फीतिकारी दबाव उत्पन्न हए हैं और कीमतें बढ़ी हैं। कीमतों में वृद्धि से मुद्रा की क्रय शक्ति घट जाती है जिर गरीबी और भी बढ़ने लगती है।

6. सामाजिक कारण भारत में प्रचलित सामाजिक और सांस्कृतिक संस्थाए गराबा जिम्मेवार हैं। समाज में व्याप्त जाति प्रथा, संयुक्त परिवार प्रणाली, उत्तराधिकार का नियम, निरक्षरता, अज्ञानता, भाग्यवादिता तथा धार्मिक रूढिवादिता लोगों को नए विचार तथा तकनीकों को अपनान सराकरता हा इसक अभाव में लोग अपनी आय को बढ़ा लेने में सफल हो जाते और दरिद्रता के दारूणचक्र स। मुक्ति पा जात। सामाजिक उत्तरदायित्व निभाने और झठी प्रतिष्ठा को प्राप्त करने हेतु लोग फिजूलखचा करते हैं और निर्धन बने रहते हैं।

Environment Problem of Poverty

भारत में गरीबी दूर करने हेतु सुझाव

(SUGGESTIONS FOR REMOVAL OF POVERTY IN INDIA)

भारत में गरीबी हटाने या कम करने के लिए निम्न सुझाव दिए जा सकते हैं:

1 आर्थिक विकास की गति को तेज करनागरीबी दर करने के लिए देश में आर्थिक विकास का गति को तेज करना होगा। तीव्र आर्थिक विकास से बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसरों का सृजन होगा जिससे अधिक से अधिक श्रमिकों को रोजगार मिलेगा। फलस्वरूप उनकी आय में वृद्धि होगी।

2. कुटीर एवं लघु उद्योगों का विकास देश में कुटीर एवं लघु उद्योगों की स्थापना पर विशेष बल दिया जाना चाहिए। ये उद्योग कम पूंजी से अधिक व्यक्तियों को रोजगार देने में समर्थ होते हैं। भारत में बेरोजगारी तथा अर्द्धबेरोजगारी अधिक मात्रा में पाई जाती है। लघु एवं कुटीर उद्योग इस बेरोजगारी में कमी ला सकते हैं।

3. कृषि विकासदेश में कृषि के विकास पर पर्याप्त ध्यान दिया जाना चाहिए। कृषि में यंत्रीकरण को बढ़ावा न देकर श्रम को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। कृषि में बहुफसली कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए तथा इसे व्यावसायिक आधार पर किया जाना चाहिए ताकि कृषि से सम्बद्ध श्रमिक पूरे वर्ष भर कृषि कार्यों में लगे रहे। इसके लिए सिंचाई की सुविधाओं में पर्याप्त वृद्धि की जानी चाहिए, उन्नतशील बीज, रासायनिक खाद, कीटनाशक दवाइयों व अन्य आवश्यक वस्तुओं को उचित दर पर विशेषकर लघु एवं सीमांत कृषकों को उपलब्ध कराया जाना चाहिए।

4. ग्रामीण क्षेत्रों में सार्वजनिक निर्माण कार्य भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में पूर्ण बेरोजगारी और अर्द्धबेरोजगारी अधिक है। अतः इसे दूर करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में सार्वजनिक निर्माण कार्यों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। इसके अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों का निर्माण, नहर, कुएं, ग्रामीण आवास, विद्युत आदि के निर्माण कार्य प्रारम्भ किए जा सकते हैं। इससे ग्रामीण लोगों को रोजगार मिलेगा और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार आएगा।

5. सामाजिक न्याय को बढ़ावा देना—गरीबी दूर करने के लिए परिसम्पत्तियों में गरीबों की हिस्सेदारी बढ़ाना आवश्यक है। सबसे महत्वपूर्ण परिसम्पत्ति विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि भूमि है जिसका पुनर्वितरण गरीबों के पक्ष में करने के लिए भूमि सुधार कार्यक्रमों एवं कानूनों को प्रभावी ढंग से लाग किया जाना चाहिए। परिसम्पत्ति का अन्य रूप उत्पादन इकाइयों की सम्पत्ति है; जैसे—भवन, मशीन, उपकरण आदि। अनदान तथा अधिक रियायती दरों पर ऋण उपलब्ध कराकर इस सम्बन्ध में गरीबों की मदद की जा सकती है। इस तरह, उपलब्ध धनराशि की सहायता से वे छोटी-छोटी उत्पादन इकाइयां लगा सकते हैं अथवा छोटे-छोटे उपकरण क्रय कर अपना व्यवसाय चला सकते हैं।

6. जनसंख्या नियन्त्रण सामान्यतया यह देखने में आता है कि गरीब परिवारों में जन्म दर ऊंची होती है, अतः इसे घटाया जाना बहुत आवश्यक है। इसके लिए कई उपाय प्रयोग में लाए जा सकते हैं। एक तो शिक्षा तथा प्रचार के माध्यम से इन्हें छोटे परिवार के महत्व को समझाया जाना चाहिए। दसरे, जन्म नियन्त्रण के विभिन्न उपायों को इन्हें बताया जाना चाहिए तथा उससे सम्बन्धित साधनों को इन्हें निःशुल्क या सस्ती दरों पर उपलब्ध कराया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त परिवार की देखभाल के लिए चिकित्सा सुविधाओं की पर्याप्त व्यवस्था की जानी चाहिए। इससे छोटे परिवार को बढ़ावा देने का। उद्देश्य पूरा हो सकेगा।

इस तरह, देश में गरीबी दूर करना तथा बेरोजगारी की समस्या से निजात पाना एक चुनौती भरा कार्य है। इन समस्याओं से छुटकारा प्राप्त करने के लिए सघन आर्थिक एवं सामाजिक प्रयास तथा दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है।

Environment Problem of Poverty

भारत में गरीबी निवारण कार्यक्रम

(REMOVAL OF POVERTY PROGRAMMES IN INDIA)

कल्याणकारी राज्य के रूप में भारत सरकार ने गरीबी के विरुद्ध संघर्ष करने तथा अपने देशवासियों विशेषकर, पिछड़े तथा सुविधाविहीन वर्ग की समृद्धि एवं विकास के लिए सतत नियोजित एवं सघन प्रयास स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय से ही चला रखा है।

सरकार द्वारा चलायी जा रही विकासात्मक नीति का प्रमुख उद्देश्य गरीबी पर कारगर ढंग से आक्रमण करना है। अधिक रोजगार सृजित करने, उत्पादक परिसम्पत्तियों का निर्माण करने, तकनीकी, उद्यमवृत्तिक कौशल का प्रशिक्षण देने और अत्यन्त गरीबों की आय के स्तर को बढ़ाने की दृष्टि से सरकार द्वारा चलाए जा रहे गरीबी उन्मूलन सम्बन्धी कुछ प्रमुख कार्यक्रमों का संक्षिप्त विवरण निम्नवत

1 महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम मनरेगा (Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Act-NREGA) ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार उपलब्ध कराने की दृष्टि से ‘मनरेगा’ भारत सरकार की महत्त्वपूर्ण ‘फ्लैगशिप योजनाओं में से एक है जिसका उद्देश्य उस प्रत्येक परिवार को, जिसके प्रौढ सदस्य स्वेच्छा से बिना कौशल का शारीरिक कार्य करना चाहते हैं: वित्तीय वर्ष में कम-से-कम 100 दिवसों की गारंटी युक्त मजदूरी रोजगार प्रदान करके देश के ग्रामीण क्षेत्रों में परिवारों की आजीविका सुरक्षा को बढ़ाना है। यह महिलाओं की 1/3 भागीदारी का भी अधिदेश देता है। योजना का प्राथमिक उद्देश्य मजदूरी रोजगार को बढ़ाना है। यह एक मांग आधारित स्कीम है जिसको ऐसे कार्यों के माध्यम से किया जाना है जो प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के सुदृढीकरण पर ध्यान केन्द्रित करते हुए सूखा, वनों की कटाई और मृदाक्षरण जैसे गरीबी के मूल कारणों को दूर करते हैं और इस प्रकार सतत विकास को प्रोत्साहित करते हैं। इस तरह, मनरेगा का केन्द्र बिन्दु जल संरक्षण, सूखा ग्रस्त क्षेत्रों का उद्धार (वानिकी/वृक्षारोपण सहित), भूमि विकास, बाढ़ नियंत्रण/संरक्षण (जल ठहराव वाले क्षेत्रों में जल निकासी सहित) तथा सभी मौसमों में अच्छी सड़कों हेतु सड़क सम्बद्धता से सम्बन्धित कार्यों पर ध्यान देना रहा है। योजना के अंतर्गत रोजगार के इच्छुक एवं पात्र व्यक्ति द्वारा पंजीकरण कराने के 15 दिन के भीतर रोजगार नहीं दिए जाने पर निर्धारित दर से बेरोजगारी भत्ता केन्द्र सरकार द्वारा दिए जाने का प्रावधान है। मनरेगा के अन्तर्गत मजदूरों को दी जाने वाली मजदूरी की दरों को ‘खेतिहर मजदूरों’ के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index for Agriculture Labours) से सम्बद्ध करने की घोषणा 6 जनवरी, 2011 को की थी।

मनरेगा पहले चरण में 2 फरवरी, 2006 से 200 जिलों में अधिसूचित किया गया और वित्तीय वर्ष 2007-08 से इसे 130 और जिलों में लागू किया गया। 1 अप्रैल, 2008 से इस अधिनियम के अंतर्गत देश के सभी जिले लाए गए हैं। इस तरह यह योजना देश के सभी 684 जिलों के 6,863 विकास खण्डों की 2,62,839 ग्राम पंचायतों में लागू है। मनरेगा के फलस्वरूप भारत में ग्रामीण क्षेत्रों के गरीबों की आजीविका संसाधन का आधार सुदृढ़ हुआ है। मनरेगा ने कृषक मजदूरों की सौदेबाजी की क्षमता को सफलतापूर्वक बढ़ाया है, जिससे कृषि सम्बन्धी मजदूरी बढ़ी है, आर्थिक परिणामों में सुधार हुआ है तथा विपत्ति के दौरान होने वाले उठावास में कमी आई है।

2. स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना (SGSY) एक विशिष्ट स्वरोजगारी सृजन कार्यक्रम । अप्रैल, 1999 से पूर्ववती एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम (आई आर डी पी) और सम्बद्ध कार्यक्रमों का पनर्गठन करके प्रारंभ किया गया। इस योजना का उद्देश्य स्वरोजगारियों को बैंक ऋण एवं सरकारी सब्सिडी के माध्यम से स्व-सहायता समूहों में संगठित करके गरीबी रेखा से ऊपर लाना था। योजना के अंतर्गत सब्सिडी कुल परियोजना लागत के 30 प्रतिशत की दर से दी जाती थी, लेकिन लागत के 30 प्रतिशत की दर से दी जाती थी, लेकिन इसकी अधिकतम सामा 7,500 ₹ (अनुसूचित जातियों/अनसचित जनजातियों तथा विकलांगों के लिए यह जातिया/अनुसूचित जनजातियों तथा विकलांगों के लिए यह सीमा 50 प्रतिशत रखा गया है, जो अधिकतम 10,000₹ है) निर्धारित की गई थी। स्व-सहायता समूहा का पारया का 50 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जाती थी. जिसकी अधिकतम सीमा 1.25 लाख र या प्रात प्य 10,000 र, इनमें जो भी कम हो, निर्धारित की गई थी।

Environment Problem of Poverty

स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना की अब राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एन.आर.एल.एम.) के रूप पुनसंरचना की गयी है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन का उद्देश्य गरीब परिवारों का लाभदायक स्वराजगार तथा कोशल मजूदरी वाले रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने में सक्षम बनाकर गरीबी को घटाना है।

3. प्रधानमन्त्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई)-25 दिसम्बर, 2000 को आरम्भ की गई 100 आतशत कन्द्र प्रायोजित इस योजना (सीएसएस) का प्राथमिक उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में सभी पात्र असम्बद्ध क्षेत्रों को सभी मौसमों में सड़क से जुड़े रहने की व्यवस्था करना है।

4. इन्दिरा आवास योजना (आईएवाई) इन्दिरा आवास योजना केन्द्रीय प्रायोजित योजना है जिसका वित्त पोषण केन्द्र और राज्यों के बीच खर्च की भागीदारी 75: 25 के अनुपात में की जाती है। संघ राज्य क्षेत्रों के मामले में पूरा निधिकरण केन्द्र द्वारा किया जाता है। आईएवाई के अन्तर्गत आवासन के लिए लक्षित वर्ग है : जो परिवार ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी रेखा से नीचे रह रहे हैं, विशेष रूप से अ.जा./अ.ज.जा. और मुक्त हुए बन्धुआ मजदूर।

5. स्वर्ण जयन्ती शहरी रोजगार योजना (SJSRY) शहरी क्षेत्रों में गरीवी निवारण के लिए 1 दिसम्बर, 1997 से लागू यह योजना पूर्व में चल रही तीन योजनाओं को सम्मिलित करके बनाई गई थी—(i) नेहरू रोजगार योजना (NRY), (ii) गरीबों के लिए शहरी बुनियादी सेवाएं (UPSP), (iii) प्रधानमन्त्री की समन्वित शहरी गरीबी उन्मूलन योजना (PMIUPEP)|

सितम्बर 2013 में इस योजना को राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (NULM) से जोड़ा गया जिसका उद्देश्य शहरी बेरोजगारों और अल्प रोजगारों के लिए लाभप्रद योजना उपलब्ध कराना है।

6, प्रधानमन्त्री रोजगार योजना (PMRY)-2 अक्टूबर, 1993 से आरम्भ इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों तथा छोटे शहरों (20,000 तक की जनसंख्या) के शिक्षित बेरोजगारों को स्व-रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना था। इस योजना के अन्तर्गत व्यवसाय एवं सेवा क्षेत्र हेतु ऋण सीमा 2 लाख र तथा उद्योग क्षेत्र के लिए ऋण सीमा 5 लाख ₹ तक निर्धारित थी। इसमें अधिकतम 12,500 ₹ प्रति उद्यमी की दर से अनुदान देय था। इस योजना में 1 अप्रैल, 1994 को SEEUY योजना का विलय कर दिया गया था। 15 अगस्त, 2008 से प्रारम्भ किये गये प्रधानमन्त्री रोजगार सृजन कार्यक्रम में इस कार्यक्रम का भी समन्वय कर दिया गया था।

7. अन्नपूर्णा योजना1 अप्रैल, 2000 से प्रभावी इस योजना का उद्देश्य 65 वर्ष या उससे अधिक आयु वर्ग के असहाय वृद्ध नागरिक, जो राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन स्कीम के अन्तर्गत पेंशन प्राप्त करने के पात्र हैं. लेकिन उन्हें पेंशन नहीं मिल रही है, की आवश्यकता को पूरा करने के लिए खाद्य सुरक्षा प्रदान करना है। इस योजना के अन्तर्गत प्रति व्यक्ति 10 किग्रा खाद्यान्न प्रतिमाह निःशुल्क दिया जाता है।

8. जनश्री बीमा योजना समाज के गरीब वर्ग को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए 10 अगस्त, 2000 से आरम्भ इस योजना के अन्तर्गत 18 से 60 आयु वर्ग के लाभार्थियों को 200 ₹ वार्षिक प्रीमियम का भगतान करना होता है। लाभार्थी को स्वाभाविक मृत्यु की दशा में 30,000 ₹. दर्घटनावश मत्य स्थायी विकलांगता के लिए 75,000 ₹ तथा आंशिक विकलांगता के लिए 37,500 ₹ का बीमा कवच देने का प्रावधान है। गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लाभार्थी प्रीमियम की केवल आधी राशि का भुगतान करेंगे।

9. अन्त्योदय अन्न योजनादिसम्बर 2000 को शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अन्तर्गत शामिल गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वालों को खाद्यान्न उपलब्ध कराना है। इस योजना में देश के 2 करोड़ निर्धनतम परिवारों को प्रति माह 35 किग्रा. अनाज विशेष रियायती मल्य पर उपलब्ध कराया जाता है। योजनान्तर्गत वितरित किए जाने वाले गेहं एवं चावल का केन्द्रीय निर्गम मूल्य क्रमशः 2 ₹ तथा 3 ₹ प्रति किग्रा है।

10. वाल्मीकि अम्बेडकर आवास योजना (VAMBAY) दिसम्बर 2001 में शुरू की गई इस योजना का मूल उद्देश्य शहरों की गन्दी बस्तियों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के लिए आवासीय यूनिटों का निर्माण और उन्नयन करना तथा इस योजना के एक घटक ‘निर्मल भारत अभियान’ के अन्तर्गत सामुदायिक शौचालयों के माध्यम से एक स्वस्थ तथा बाहरी पर्यावरण को बेहतर बनाना है।

11. जय प्रकाश नारायण रोजगार गारण्टी योजना केन्द्र सरकार ने श्री जयप्रकाश नारायण के जन्म शताब्दी वर्ष में देश के सर्वाधिक निर्धनता वाले जिलों के बेरोजगारों को रोजगार की गारण्टी देने के लिए ‘जय प्रकाश नारायण रोजगार गारण्टी योजना’ आरम्भ की है। योजना के पहले चरण में देश के 130 सर्वाधिक पिछड़े जिलों की पहचान करने और योजना की रूपरेखा बनाने के लिए ग्रामीण विकास मन्त्रालय द्वारा एक कार्यबल गठित किया गया है।

11. वरिष्ठ नागरिक बचत योजनावरिष्ठ नागरिकों की ब्याज आय को संरक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से 2 अगस्त, 2004 में शुरू की गई इस योजना के अन्तर्गत 55 वर्ष की आयु का कोई भी व्यक्ति अकेला या पत्नी के साथ संयुक्त खाता खोल सकता है। योजना के अन्तर्गत जमा राशि पर 9 प्रतिशत की ब्याज दर लागू होगी और 1.000 ₹ के गुणांक में 15 लाख ₹ की अधिकतम सीमा तक राशि जमा की जा सकती है। योजना के अन्तर्गत जमा में अब 10 हजार ₹ तक के ब्याज पर कोई कर कटौती (टीडीएस) नहीं की जाएगी।

12. जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण मिशनदेश के 63 बेहाल शहरों का एक लाख करोड़ ₹ की लागत से नवीनीकरण करने के लिए प्रधानमन्त्री द्वारा 3 दिसम्बर, 2005 को जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीनीकरण मिशन का विधिवत् शुभारम्भ किया गया। इस मिशन में शहरी गरीबों को रियायती दर पर भूमि का अधिकार देने के साथ भवन निर्माण की अनुमति वाले जटिल नियमों को सरल बनाना, कृषि भूमि और गैर कृषि प्रयोग में बदलने के कानूनों को नरम करना, सम्पत्ति का मालिकाना हक लागू करना, शहरों में न्यूनतम 20 से 25 प्रतिशत विकसित भूमि, कम आय और कमजोर वर्ग के लोगों के लिए आरक्षित करना, निजी और सार्वजनिक भागीदारी को बढ़ावा देना और शहरी सेवा एवं प्रबन्धन में पारदर्शिता और जवाबदेही तय करना शामिल है। इस मिशन के अन्तर्गत सात वर्ष के पहले चरण में सभी राज्यों की राजधानियों, चारों महानगरों, दस लाख की जनसंख्या वाले सभी शहरों तथा धार्मिक, सांस्कृतिक और विरासत की दृष्टि से महत्वपूर्ण शहरों को सम्मिलित करने का लक्ष्य रखा गया था।

13. आम आदमी बीमा योजना ग्रामीण क्षेत्रों में भूमिहीन खेतिहरों को निःशुल्क बीमा सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से इस योजना का शुभारम्भ केन्द्र सरकार द्वारा 2 अक्टूबर, 2007 को किया गया। योजनान्तर्गत प्रति लाभार्थी, वार्षिक प्रीमियम 200 ₹ निर्धारित किया गया है, जिसका भुगतान 50:50 के आधार पर केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकार द्वारा किया जाएगा। जनवरी 2012 तक 1.97 करोड़ व्यक्ति इस योजना में शामिल हो चुके थे।

14. इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना का विस्तार केन्द्र सरकार द्वारा 19 नवम्बर, 2007 को किया गया। विस्तारीकरण के अन्तर्गत अब इसका नया नाम इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना कर दिया गया है। यह योजना निर्धनता रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे 65 वर्ष से अधिक आयु के सभी वृद्धजनों के लिए लागू की गई है। पहले राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना के अन्तर्गत निर्धन परिवारों के बेसहारा वृद्धजन ही मासिक पेंशन के पात्र थे, लेकिन अब नई योजना में ‘बेसहारा’ शब्द हटा दिया गया है। इस योजना के अन्तर्गत केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकार द्वारा 200-200 ₹ प्रतिमाह अर्थात् 400 ₹ प्रतिमाह लाभार्थी को दिए जाते हैं।

15. खाद्य सुरक्षा योजना, 2013—देश में व्याप्त गरीबी, भूख एवं कुपोषण को दृष्टिगत रखते हुए जनसाधारण को गरिमामय जीवन व्यतीत करने, सस्ती दर पर पर्याप्त मात्रा में गुणवत्ता युक्त भोजन की सुलभ्यता सुनिश्चित करने तथा खाद्य एवं पोषण सम्बन्धी सुरक्षा प्रदान करने के लिए खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 पारित किया गया है। यह योजना मूलतः 3 जुलाई, 2013 को जारी राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अध्यादेश 2013 द्वारा जो 5 जुलाई, 2013 से प्रभावी हुआ, लागू की गई। इस योजना के लागू होने से देश की 67 प्रतिशत जनसंख्या अर्थात् 82 करोड़ लोग भूख और कुपोषण से मुक्त होने का अनुमान है। इस कानून के अनुसार गरीबों को प्रत्येक महीने प्रति व्यक्ति 5 किग्रा अनाज सस्ती दर पर मिलेगा। वितरित बाल चावल, गेहूं, मोटे अनाज का मूल्य क्रमशः 3 ₹, 2₹तथा 1 ₹ होगा।

Environment Problem of Poverty

गरीबी निवारण कार्यक्रम की समीक्षा

स्वतन्त्रता के उपरान्त देश में गरीबी निवारण हेत सरकार द्वारा जो कार्यक्रम चलाए गए हैं, उनका अभाव दिखाई देने लगा है तथा वर्ष प्रतिवर्ष गरीबी के आंकड़ों में आंशिक सुधार परिलक्षित होता है। लोगो का आय बढ़ रही है। देश में मध्यम वर्ग का आकार बढ़ रहा है। हर वर्ष लगभग चार करोड़ व्यक्ति मध्यम वग में शामिल हो रहे हैं। विश्लेषकों के अनुसार वर्तमान में 30 करोड़ मध्यम वर्ग के लोगों में से लगभग एक-तिहाई विगत 10 वर्षों में गरीबी से उठकर मध्यम वर्ग में पहुंचे हैं।

1991 में आर्थिक उदारीकरण के बाद से ही आर्थिक वृद्धि दर आठ-नौ प्रतिशत के बीच रही हैं। इसस समृद्धि के स्तर में तो वृद्धि तो हुई है, परन्त अधिक जनसंख्या तथा सम्पत्ति के असमान वितरण के कारण अपेक्षित परिणाम नहीं दिख रहे हैं।

अभी भी देश की 29.8 प्रतिशत जनसंख्या गरीब है। अतः इस संदर्भ में अभी गहन एवं योजनाबद्ध प्रयास की आवश्यकता है।

विजन : 2020 फॉर इण्डिया देश में गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले व्यक्तियों की दशा में सुधार लाने की दृष्टि से विजन : 2020 फॉर इण्डिया नाम से एक महत्वाकांक्षी नीतिगत दस्तावेज केन्द्र सरकार द्वारा तैयार किया गया है जिसका उद्देश्य एक निश्चित समय सीमा के अन्दर गरीबी रेखा से नीचे आने वाले लोगों की विभिन्न कार्यक्रमों के द्वारा स्थिति में सुधार करना है ताकि अगले बीस वर्षों में ‘गरीबी रेखा के नीचे’ का कलंक समाज से पूरी तरह मिटाया जा सके।

विजन-2020 फॉर इण्डिया एक ऐसा महत्वपूर्ण दस्तावेज है जिसके आधार पर आने वाले दो दशकों के लिए अनेक नवीन योजनाएं एवं कार्यक्रम प्रारम्भ किए जाएंगे, जो गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम में सहायक होंगे।

विजन 2020 के यह महत्वपूर्ण लक्ष्य हैं :

Environment Problem of Poverty

प्रश्न

Environment Problem of Poverty

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1 गरीबी से क्या समझते हैं ? भारत में ग्रामीण गरीबी उन्मूलन के कौन-कौन से कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं?

2. गरीबी की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए। भारत में गरीबी के कारणों को बताइए।

3. गरीबी रेखा से क्या तात्पर्य है? भारत में गरीबी के मुख्य पहलुओं का वर्णन कीजिए।

4. भारत में गरीबी निवारण के लिए कौन-कौन सी योजनाएं चल रही हैं? उन योजनाओं को विस्तार से समझाइए।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

1 निरपेक्ष गरीबी क्या है?

2. सापेक्ष गरीबी क्या है?

3. भारत में गरीबी के क्या कारण हैं?

4. मनरेगा क्या है?

5. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना पर प्रकाश डालिए।

6. खाद्य सुरक्षा योजना क्या है?

7. अंत्योदय अन्न योजना क्या है?

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बहुविल्पीय प्रश्न

1 रंगराजन समिति के अनुसार वर्ष 2011-12 में देश में निर्धनता अनुपात था :

(अ)21.9%

(ब) 29.5%

(स) 29.8%

(द) 28.7%

2. तेन्दुलकर समिति ने कितने र प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय को वर्ष 2011-12 में निर्धनता रेखा का आधार माना?

(अ) ₹ 972

(ब)₹816

(स) ₹801

(द)₹673

3. मनरेगा कार्यक्रम कब अधिसूचित किया गया?

(अ)2 फरवरी, 2006

(ब) 15 अगस्त, 2006

(स) 26 जनवरी, 2006

(द) 2 अक्टूबर, 2006

4. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना कब प्रारम्भ की गई?

(अ) 1 जनवरी, 2000

(ब) 26 जनवरी, 2000

(स)2 अक्टूबर, 2000

(द) 25 दिसम्बर, 2000

5. निम्नलिखित में से कौन सुमेलित नहीं है?

(अ) मनरेगा 2 फरवरी 2006

(ब) स्वर्ण जयन्ती शहरी रोजगार योजना-1 दिसम्बर, 1997

(स) प्रधानमंत्री रोजगार योजना-1 अप्रैल, 2000

(द) राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अध्यादेश-3 जुलाई, 2013

[उत्तर : 1. (ब), 2. (ब), 3. (अ), 4. (द), 5. (स)।]

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chetansati

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