BCom 1st year Environment Problem Unemployment India Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st year Environment Problem Unemployment India Study Material Notes in Hindi

Table of Contents

BCom 1st year Environment Problem Unemployment India Study Material Notes in Hindi : Meaning of Unemployment Nature of Employment in India Estimates of Unemployment in India Employment in Post Reform Period Unemployment in Rural an Durban Areas Estimates of Unemployment in India Causes of Unemployment in India Employment Schemes in India Educated Unemployment in India Criticisms of Pregame :

Unemployment India Study Material
Unemployment India Study Material

BCom 1st Year Business Environment New Economic Policy Study Material Notes in Hindi

भारत में बेरोजगारी की समस्या

[PROBLEM OF UNEMPLOYMENT IN INDIA]

(स्वरूप, विस्तार एवं रोजगार नीति)

(NATURE, EXTENT AND EMPLOYMENT POLICY)

बेरोजगारी का अर्थ

(MEANING OF UNEMPLOYMENT)

जब कोई व्यक्ति शारीरिक रूप से कार्य करने में समर्थ हो तथा वह प्रचलित मजदूरी दर पर काम करना चाहे ताकि वह अपनी आजीविका चला सके, परन्तु उसे कोई काम न मिले तो उस व्यक्ति को बेरोजगार तथा इस समस्या को बेरोजगारी की समस्या कहते हैं। अन्य शब्दों में, बेरोजगारी वह दशा है जिसमें शारीरिक मानसिक रूप से स्वस्थ एवं समर्थ व्यक्ति को, जो कार्य करने की इच्छा रखता है प्रचलित मजदूरी दर पर कार्य नहीं मिलता।

भारत में बेरोजगारी का स्वरूप

(NATURE OF UNEMPLOYMENT IN INDIA)

सामान्यतः देश की सारी श्रमिक संख्या रोजगार में नहीं लगी होती। अपितु उसका कम या अधिक भाग बेरोजगार होता है। बेरोजगारी की यह मात्रा अल्पविकसित देशों में आमतौर से बहुत अधिक होती है, विशेष रूप से ऐसे देशों में जहां जनसंख्या बहुत अधिक है और तेजी से बढ़ रही है। भारत के संदर्भ में यह बात विशेष रूप से लागू होती है। यहां काफी बड़ी संख्या में देश के श्रमिक बेरोजगार हैं अथवा अल्परोजगार की दशा में हैं। कुछ ऐसे श्रमिक भी हैं, जो वर्ष के कुछ महीनों में रोजगार में होते हैं और बाकी महीनों में बेकार रहते हैं। इन सबको देखते हुए भारत में बेरोजगारी के स्वरूप को मुख्य रूप से निम्न प्रकार वर्गीकृत किया जा सकता है

Environment Problem Unemployment India

(1) संरचनात्मक बेरोजगारी (Structural Unemployment) भारत में बेरोजगारी इसी स्वभाव की है। जब देश में पूंजी के साधन सीमित होते हैं और काम चाहने वालों की संख्या बराबर बढ़ती जाती है तो कुछ व्यक्ति बिना काम के ही रह जाते हैं क्योंकि उनके लिए पर्याप्त पूंजी-साधन नहीं होते हैं। इस प्रकार की बेरोजगारी विकासशील देशों में पायी जाती है तथा यह दीर्घकालीन होती है। भारत में बेरोजगारी का स्वभाव भी इसी प्रकार का है।

(2) अल्परोजगार (Under Employment)-जब किसी व्यक्ति को अपनी क्षमता के अनुसार कार्य । नहीं मिलता है या पूरा काम नहीं मिलता है तो इसे अल्प-रोजगार कहते हैं। जैसे जब एक इंजीनियरिंग का। डिग्री प्राप्त व्यक्ति लिपिक या श्रमिक के रूप में कार्य करता है तो इसको अल्प-रोजगार कहते हैं। ऐसा व्यक्ति कार्य करता तो दिखायी देता है, लेकिन उसकी पूर्ण क्षमता का उपयोग नहीं होता है।

(3) खुली बेरोजगारी (Open Unemployment) “जब व्यक्ति कार्य करने के योग्य हैं और वे कार्य करना चाहते हैं, लेकिन उनको कार्य नहीं मिलता है तो ऐसी स्थिति को खुली बेरोजगारी कहते हैं।” भारत में इस  भारत में बेरोजगारी की समस्या प्रकार की बेरोजगारी व्याप्त है। यहां लाखों व्यक्ति ऐसे हैं जो शिक्षित हैं, तकनीकी योग्यता प्राप्त हैं, लेकिन काम करने का अवसर नहीं मिल रहा है।

(4) मौसमी बेरोजगारी (Seasonal Unemployment) इस प्रकार की बेरोजगारी वर्ष के कुछ समय में हो जाती है। भारत में यह कृषि में पायी जाती है। जब खेतों की जुताई एवं बुवाई का मौसम होता है। तो कषि में काम होता है, लेकिन बीच के समय में इतना काम नहीं होता है अतः इस प्रकार के समय में। श्रमिकों को काम नहीं मिलता है। इस बेरोजगारी को मौसमी बेरोजगारी कहते हैं।

(5) शिक्षित बेरोजगारी (Educated Unemployment) यह खुली बेरोजगारी का ही एक रूप है। इसमें शिक्षित व्यक्ति बेरोजगार होते हैं। शिक्षित बेरोजगारी में कुछ व्यक्ति अल्प-रोजगार की स्थिति में होते। हैं जिन्हें रोजगार मिला हुआ होता है, लेकिन वह उनकी शिक्षा के अनुरूप नहीं होता है। भारत में इस प्रकार। की बेरोजगारी भी पायी जाती है। वर्तमान में यहां कुल पंजीकृत बेरोजगारों में से 60 प्रतिशत शिक्षित बेरोजगार

(6) प्रच्छन्न बेरोजगारी (Disguished Unemployment)-बेरोजगारी का यह स्वरूप प्रत्यक्ष रूप से दिखायी नहीं देता है। यह छिपा रहता है। भारत में इस प्रकार की बेरोजगारी कृषि में पायी जाती है जिसमें आवश्यकता से अधिक व्यक्ति लगे हुए हैं। यदि इनमें से कुछ व्यक्तियों को खेती के कार्य से अलग कर दिया जाये तो उत्पादन में कोई अन्तर नहीं पड़ता है। ऐसे व्यक्ति प्रच्छन्न बेरोजगारी के अन्तर्गत आते हैं।

उदाहरण के लिए, खेत में 3 व्यक्तियों की आवश्यकता है, परन्तु घर के सभी 5 व्यक्ति उस कार्य में लग जाते हैं, फिर भी इससे उत्पादन में कोई अन्तर नहीं आता है तो इस प्रकार 2 व्यक्ति इस कार्य में अधिक लगे हैं। यही अदृश्य या छिपी बेरोजगारी है।

प्रोफेसर वरसिक (Worsick) के अनुसार, “छिपी बेरोजगारी बह अवस्था है जिसमें श्रम का उपयोग अपव्ययपूर्ण रूप से हो रहा है।”

कुछ विद्वानों का कहना है कि छिपी बेरोजगारी में श्रमिकों की सीमान्त उत्पादकता शून्य या शून्य के निकट होती है, जो ऋणात्मक भी हो सकती है। प्रोफेसर नर्कसे के अनुसार घनी जनसंख्या वाले देशों में छिपी बेरोजगारी कृषि क्षेत्र में 25 से 33 प्रतिशत की होती है जिसे कृषि उपज पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना हटाया जा सकता है।

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संक्षेप में छिपी बेरोजगारी में निम्न लक्षण पाये जाते हैं :

(1) विकासशील या अविकसित देशों में विद्यमान छिपी हुई बेरोजगारी विकासशील या अल्प-विकसित देशों में पायी जाती है क्योंकि इन देशों में जनसंख्या वृद्धि की गति तेज होती है, जबकि उत्पादन उस गति से नहीं बढ़ता है।

(2) सीमान्त उत्पादकता शून्य-जिन देशों में छिपी हुई बेरोजगारी पायी जाती है उन देशों में बेरोजगारी श्रमिकों की सीमान्त उत्पादकता शून्य होती है या बहुत कम होती है। .

(3) परिवार रोजगार से सम्बन्धित—छिपी हुई बेरोजगारी सामान्यतया परिवार के सदस्यों से सम्बन्धित होती है।

(4) सूचना का अभाव-छिपी बेरोजगारी से सम्बन्धित सूचनाएं प्रायः नहीं मिल पाती हैं, क्योंकि यह। व्यक्तिगत सूचनाओं पर ही आधारित होती है।

(5) विकसित व अल्प-विकसित देशों की छिपी बेरोजगारी की प्रकृति में अन्तर विकसित देशों में भी छिपी बेरोजगारी पायी जाती है परन्तु उसकी प्रकृति में अन्तर होता है। विकसित देशों में यह अल्पकालिक होती है, जबकि अल्प-विकसित देशों में दीर्घकालीन होती है।

(6) मौसमी बेरोजगारी से भिन्न-छिपी बेरोजगारी मौसमी बेरोजगारी से भिन्न है। छिपी बेरोजगारी जनसंख्या की तीव्र वृद्धि के कारण होती है, जबकि मौसमी बेरोजगारी प्राकृतिक या जलवायु के कारण

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व्यावसायिक पर्यावरण भारत में बेरोजगारी का अनुमान

(ESTIMATES OF UNEMPLOYMENT IN INDIA)

एक व्यक्ति को 8 घण्टे प्रतिदिन के आधार पर यदि वर्ष में 273 दिन का रोजगार प्राप्त हो, तो यह एक मानक-मानव-वर्ष (Standard Person Year) कहा जाएगा। योजना आयोग द्वारा नियुक्त बेरोजगारी के अनुमान तैयार करने के लिए विशेषज्ञों की समिति के सिफारिशों के आधार पर राष्ट्रीय न्यादर्श सर्वेक्षण संगठन द्वारा बेरोजगारी अनुमान की निम्नलिखित तीन अवधारणाओं को अंगीकार किया गया है।

1 सामान्य स्थिति बेरोजगारी (Usual Status Unemployment)

2. साप्ताहिक स्थिति बेरोजगारी (Weekly Status Unemployment)

3. दैनिक स्थिति बेरोजगारी (Daily Status Unemployment)

1 सामान्य स्थिति बेरोजगारी के अन्तर्गत सर्वेक्षण में शामिल व्यक्तियों के सन्दर्भ में यह जानने का प्रयास किया जाता है कि उनकी सामान्य गतिविधि क्या है अर्थात् वे लोग ‘सामान्यतया’ रोजगार में हैं, बेरोजगार है, अथवा श्रम शक्ति से बाहर हैं। स्वाभाविक है कि इस संकल्पना में एक लम्बी अवधि ही ली जाएगी और यह अवधि सर्वेक्षण के पहले का एक वर्ष होती है। सामान्य स्थिति बेरोजगारी एक व्यक्ति दर (Person rate) है और दीर्घ कालीन बेरोजगारी (Cronic unemployment) को प्रदर्शित करती है, क्योंकि संदर्भ वर्ष में जितने लोग भी ‘सामान्यतया’ बेरोजगार होते हैं, उन्हें बेरोजगारी में शामिल कर लिया जाता है।

इस तरह सामान्य स्थिति बेरोजगारी में ऐसे व्यक्तियों को शामिल किया जाता है, जो पूरे वर्ष के दौरान बेरोजगार ही हों, यह प्रमाप उन व्यक्तियों के लिए अधिक महत्व रखता है जो नियमित रोजगार की तलाश में रहते हैं। वे व्यक्ति आकस्मिक काम (Casual Work) स्वीकार नहीं करते। इसी कारण इस बेरोजगारी को खुली बेरोजगारी (Open Unemployment) भी कहा जाता है।

2. साप्ताहिक स्थिति बेरोजगारी की अवधारणा के अन्तर्गत सर्वेक्षण सप्ताह के दौरान यदि किसी व्यक्ति को किसी भी दिन एक घण्टे का भी रोजगार नहीं मिला होता तो उसे साप्ताहिक स्थिति बेरोजगारी में शामिल कर लिया जाता है। साप्ताहिक स्थिति बेरोजगारी दर भी सामान्य स्थिति बेरोजगारी दर की तरह ही एक व्यक्ति दर है।

3. दैनिक स्थिति बेरोजगारी की अवधारणा विगत सात दिनों में से प्रत्येक दिन की गतिविधि पर ध्यान देती है। बेरोजगारी के इस अनुमान के लिए जब कोई व्यक्ति किसी दिन एक घण्टे की अधिक और चार घण्टे से कम कार्य करता है तो उसे आधे दिन कार्यरत माना जाता है। चार घण्टे या अधिक काम करने पर व्यक्ति को पूरे दिन कार्यरत माना जाता है। दैनिक स्थिति बेरोजगारी प्रति सप्ताह बेरोजगारी के श्रम दिनों का प्रति सप्ताह कुल श्रम दिनों से अनुपात है। जहां सामान्य स्थिति बेरोजगारी दर तथा साप्ताहिक स्थिति बेरोजगारी दर व्यक्ति दरें हैं वहीं दैनिक स्थिति बेरोजगारी दर एक समय दर (Time rate) है।

सामान्य स्थिति बेरोजगारी दर को संदर्भ वर्ष में सामान्यता खुली बेरोजगारी की माप माना जाता है। साप्ताहिक स्थिति बेरोजगारी सम्पूर्ण सप्ताह में बेरोजगार रहने वाले श्रमिकों का अनुपात है। इस तरह, साप्ताहिक स्थिति बेरोजगारी भी दीर्घकालीक बेरोजगारी को मापती है, परन्तु इसकी संदर्भ अवधि एक सप्ताह होती है। दैनिक स्थिति बेरोजगारी, बेरोजगारी का व्यापक माप है। जिसमें खुली बेरोजगारी के अतिरिक्त अल्परोजगार को भी शामिल किया जाता है।

इस तरह, दैनिक स्थिति बेरोजगारी, बेरोजगारी का सबसे उपर्युक्त माप है, क्योंकि इसमें खुली बेरोजगारी तथा आंशिक अथवा अल्प बेरोजगारी भी शामिल रहती है। अतः नीति निर्धारण की दृष्टि से इसका सबसे अधिक महत्व है। भारत में दीर्घकालीन बेरोजगारी की समस्या उतनी गंभीर नहीं है। जितनी कि अल्परोजगार की समस्या। इसके अतिरिक्त अल्परोजगार की परिस्थितियों में से गुजरने वाले लोगों की संरचना में भी परिवर्तन होते रहते हैं, रोजगार की नीति का निर्धारण करते समय तथा रोजगार कार्यक्रम बनाते समय इन समस्याओं। पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है।

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आर्थिक सुधारों की अवधि में बेरोजगारी

(UNEMPLOYMENT IN POST-REFORM PERIOD)

देश में आर्थिक सुधार की प्रक्रिया 1991 में प्रारम्भ की गयी, परन्तु 1991-92 विशेष रूप से एक मंद वर्ष था। वास्तव में सुधार प्रक्रिया ने वर्ष 1993-94 के उपरान्त गति प्राप्त की। अतः 1993-94 से 1999-2000 की अवधि उदारीकरण की गतिशीलता का काल थी। उल्लेखनीय है कि 1977-78 से 1993-94 के दौरान सभी श्रेणियों की बेरोजगारी में गिरावट की प्रवृत्ति दिखाई देती है, परन्तु 1999-2000 तथा 2004-05 में स्थिति पलट गई जैसा कि निम्नलिखित सारणी-15.1 में प्रदर्शित किया गया है।

सारणी 15.1 : भारत में बेरोजगारी दरें :

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खुली बेरोजगारी (Open Unemployment) जो सामान्य मुख्य स्थिति की कसौटी से मापी जाती है, 1977-78 में 4.23 प्रतिशत से कम होकर 1993-94 में 2.56 प्रतिशत हो गयी, परन्तु 1999-2000 में बढ़कर 2.81 प्रतिशत हो गयी। वर्ष 2004-05 में यह पुनः बढ़कर 3.6 प्रतिशत हो गयी। वर्ष 2009-10 में यह घटकर 2.50 प्रतिशत पर आ गयी जो आर्थिक सुधारों के उपरान्त सबसे कम थी। 68वें दौर के अनुमान के अनुसार वर्ष 2011-12 के लिए यह 2.70 प्रतिशत रही।

बेरोजगारी की सबसे व्यापक माप अर्थात् चालू दैनिक स्थिति बेरोजगारी (Current Daily Status Unemployment) के अनुसार भी बेरोजगारी दर जो 1977-78 में 8.18 प्रतिशत थी। वह घटकर 1993-94 में 3.06 प्रतिशत हो गयी, परन्तु 1999-2000 में यह गिरने की प्रवृत्ति पलट गयी और यह बढ़कर 7.31 प्रतिशत हो गयी। 2004-05 में यह और बढ़कर 8.28 प्रतिशत तक पहुंच गयी। इसके उपरांत इसमें गिरावट आई और 2009-10 में यह 6.60 प्रतिशत के स्तर तक कम हो गयी। 68वें दौर की रिपोर्ट के अनुसार यह पुनः घटकर 5.60 प्रतिशत हो गयी।

ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी

(UNEMPLOYMENT IN RURAL AND URBAN AREAS)

ग्रामीण तथा शहरी बेरोजगारी दरों को सारणी-15.2 में निम्नवत् प्रदर्शित किया जा सकता है :

सारणी 15.2 : ग्रामीण एवं शहरी बेरोजगारी दरें

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उपर्युक्त सारणी-15.2 से स्पष्ट है कि आर्थिक सुधारों के पूर्व काल में 1977-78 से 1987-88 तक ग्रामीण तथा शहरी दोनों क्षेत्रों में बेरोजगारी की दर में वृद्धि हुई। आर्थिक सुधारों के उपरांत 1993-94 से 2004-05 तक चालू दैनिक स्थिति दरों में शहरी क्षेत्रों में वृद्धि हुई, यह 1993-94 में 7.43 प्रतिशत से बढ़कर 2004-05 में 8.28 प्रतिशत तक पहुंच गयी। इसके उपरांत वह 2009-10 में 5.80 प्रतिशत तथा 2011-12 में 5.50 प्रतिशत के स्तर तक घट गयी। बेरोजगारी की यह दर ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक तेजी से बढ़ती हुई, 1993-94 में 5.63 प्रतिशत से बढ़कर 2004-05 में 8.28 प्रतिशत तक पहुंच गयी। यही स्थिति बेरोजगारी के अन्य मापों में उपलब्ध है—ग्रामीण तथा शहरी दोनों क्षेत्रों में वर्ष 2011-12 में ग्रामीण तथा शहरी दोनों क्षेत्रों में बेरोजगारी की दरें नीची रहीं।

श्रम ब्यूरो की पांचवीं वार्षिक रिपोर्ट 2015-16 के अनुसार देश में सामान्य मुख्य स्थिति दृष्टिकोण के अनुसार 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के लिए श्रम शक्ति के प्रतिशत के रूप में बेरोजगारी की दर (UR) ग्रामीण क्षेत्रों में 5.1 प्रतिशत तथा शहरी क्षेत्रों में 4.9 प्रतिशत है। रिपोर्ट की गई कल य. आर. 5.0 प्रतिशत है

बेरोजगारी की दरेंशहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में अंतर

उपर्युक्त सारणी से यह स्पष्ट होता है कि प्रारंभ में बेरोजगारी की दरें शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा ऊंची रही है। चालू दैनिक स्थिति के आधार पर बेरोजगारी दर शहरी क्षेत्रों में 1977-78 में 10.3 प्रतिशत थी, जबकि इसी अवधि में ग्रामीण बेरोजगारी दर 7.7 प्रतिशत थी। 1987-88 में ग्रामीण बेरोजगारी दर में पर्याप्त गिरावट आई और यह 5.3 प्रतिशत हो गयी, परन्तु शहरी बेरोजगारी दर 9.4 प्रतिशत के स्तर पर बनी रही। 1993-94 के पश्चात उदारीकरण के काल में ग्रामीण बेरोजगारी की वृद्धि दर पुनः बढ़कर 7.2 प्रतिशत हो गयी, जबकि शहरी बेरोजगारी दर 1993-94 और 1999-2000 के बीच थोड़ी बढ़कर 7.7 प्रतिशत हो गयी। शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी के उच्च स्तरों की व्याख्या संगठित क्षेत्र में बेरोजगारी के ऊंचे अनुपात के रूप में की जा सकती है। इसके विपरीत ग्रामीण क्षेत्रों में अदृश्य बेरोजगारी (Disguised Unemployment) के ऊंचे स्तर विद्यमान होते हैं।

शहरी क्षेत्रों में 1993-94 तक बेरोजगारी के दरों में धीरे धीरे और लगातार गिरावट आई, परन्तु इसके उपरान्त 1999-2000 से यह पुनः बढ़ने लगी और 2004-05 में 8.28 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गयी। पुनः शहरी क्षेत्र की बेरोजगारी दरें घटकर 2009-10 में 5.8 प्रतिशत तथा 2011-12 में 5.5 प्रतिशत के स्तर पर आ गई। इसका कारण विकास प्रक्रिया के दौरान शहरी क्षेत्रों की और विशेष ध्यान देना है। परन्तु ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी में वृद्धि संभव सुधार उपरांत काल के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों की उपेक्षा का परिणाम है।

सारणी-15.1 में दिए गए आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि जहां सामान्य मुख्य स्थिति बेरोजगारी की दरें मर्यादित हैं। वहां, चालू दैनिक स्थिति बेरोजगारी की दरें काफी ऊंची हैं। अन्य शब्दों में भारतीय अर्थव्यवस्था की मुख्य खुली बेरोजगारी नहीं बल्कि अल्परोजगार है।

भारत में बेरोजगारी का आकार (Size of Unemployment in India)

भारत में राष्ट्रीय न्यादर्श सर्वेक्षण संगठन के आधार पर यह अनुमान लगाया गया कि चालू दैनिक स्थिति (Current Daily Status) के आधार पर 1999-2000 में 265.8 लाख लोग बेरोजगार थे जबकि 1993-94 में इनकी संख्या 2013 लाख थी। आर्थिक सुधारों के पूर्व 1983 में यह संख्या 217.6 लाख थी। वर्ष 2004-05 में बेरोजगारों की संख्या बढ़कर 347.4 लाख हो गयी। देश में वर्ष 2009-10 में 281 लाख तथा 2011-12 में 247 लाख लोग बेरोजगार थे। इस तरह बेरोजगारी में 2004-05 से 2011-12 के बीच 100 लाख की कमी आई।

वर्ष 1993-94 से 1999-2000 के बीच बेरोजगारी में वृद्धि मुख्यतः विकास की रोजगार-जनन-क्षमता। की घटती प्रवृत्ति का परिणाम रही। वर्ष 2004-05 तक बेरोजगारी दर बढ़ती गई। तदुपरांत 2009-10 तथा 2011-12 में बेरोजगारी की दर घट गयी। इस काल में बेरोजगारी दर की नीची रहने का कारण संभवतः यह रहा कि इस दौरान श्रम शक्ति की वृद्धि दर कम रही है, क्योंकि इस आयु वर्ग की जनसंख्या शिक्षा स्तर में सुधार के लिए स्कूल-कॉलेजों में अभी पढ़ रही थी।

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बेरोजगारी : एक गम्भीर समस्या अथवा बेरोजगारी के दुष्परिणाम

राष्ट्र के लिए वेरोजगारी की समस्या एक गम्भीर समस्या है। इस समय कुल पंजीकृत बेरोजगारों में 60 प्रतिशत बेरोजगार पढ़े-लिखे हैं तथा प्रत्येक सात बेरोजगारों में से एक स्त्री है। इस समस्या के कुछ दुष्परिणाम हैं जो निम्नलिखित हैं:

(1) मानव शक्ति का व्यर्थ जानाबेरोजगारी एक राष्ट्र के लिए गम्भीर समस्या होती है। इसके कारण मानव-शक्ति का उचित उपयोग नहीं हो पाता है और यह शक्ति व्यर्थ ही चली जाती है। यदि इसको उचित । रूप से काम में लिया जाये तो यह राष्ट्र के लिए समृद्धि एवं सम्पन्नता का साधन बन सकती है।

(2) सामाजिक समस्याओं का जन्म जिस देश में बेरोजगारी होती है उस देश में नयी-नयी सामाजिक समस्याएं जैसे—चोरी, डकैती, बेईमानी, अनैतिकता, शराबखोरी, जुएबाजी, आदि पैदा हो जाती हैं जिससे सामाजिक सुरक्षा को खतरा पैदा हो जाता है। शान्ति एवं व्यवस्था की समस्या उत्पन्न हो जाती है जिस पर सरकार को भारी व्यय करना पड़ता है।

(3) राजनीतिक अस्थिरताबेरोजगारी की समस्या देश में राजनीतिक अस्थिरता पैदा कर देती है क्योंकि व्यक्ति हर समय राजनीतिक उखाड़-पछाड़ में लगे रहते हैं।

(4) आर्थिक सम्पन्नता में कमी-बेरोजगारी से प्रति व्यक्ति आय में गिरावट आती है जिससे जीवन-स्तर गिरता है। लोगों की ऋणग्रस्तता एवं निर्भरता में वृद्धि होती है। आर्थिक समस्याएं बढ़ती हैं।

(5) अन्य दुष्परिणाम बेरोजगारी के अन्य दुष्परिणाम होते हैं, जैसे-औद्योगिक संघर्षों में वृद्धि हो जाती है, मालिकों द्वारा बेरोजगारी का लाभ उठाकर कम मजदूरी दी जाती है, फलतः भरपेट तथा पौष्टिक भोजन न मिलने से मृत्यु दर बढ़ जाती है, आदि।

बेरोजगारी से सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक वातावरण दूषित हो जाता है। इसीलिए विलियम बेवरिज (William Beveridge) ने लिखा है कि “बेरोजगार रखने के स्थान पर लोगों को गड्ढे खुदवाकर वापस भरने के लिए नियुक्त करना ज्यादा अच्छा है।”

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भारत में बेरोजगारी के कारण

(CAUSES OF UNEMPLOYMENT IN INDIA)

भारत में बेरोजगारी के कारण निम्नलिखित हैं :

(1) बढ़ती जनसंख्या बेरोजगारी में तीव्र गति से वृद्धि का मुख्य एवं महत्वपूर्ण कारण बढ़ती हुई जनसंख्या है जो 1.64 प्रतिशत वार्षिक की दर से बढ़ रही है जबकि रोजगार की सुविधाएं उस दर से नहीं बढ़ रही हैं।

(2) दोषपूर्ण शिक्षाप्रणाली देश में शिक्षित बेरोजगारी बढ़ने का मुख्य कारण हमारी दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली है। यहां शिक्षा सिद्धान्त-प्रधान शिक्षा है, जबकि इसको व्यवसाय प्रधान (Job-oriented) होना चाहिए।

(3) हस्तकला एवं लघु उद्योगों की अवनति—बेरोजगारी बढ़ाने में हस्तकला एवं लघु उद्योगों की अवनति ने भी काफी योगदान दिया है। इन उद्योगों की अवनति का मुख्य कारण मशीनों के प्रयोग में वद्धि का होना है। इससे इन उद्योगों के श्रमिकों को भी अन्य कार्य देखने के लिए विवश होना पड़ा है जिससे बेरोजगारी में वृद्धि हुई है।

(4) त्रुटिपूर्ण नियोजन देश में 1951 से 31 मार्च, 2017 तक नियोजन का कार्य हआ. लेकिन यह नियोजन त्रुटिपूर्ण रहा। इसमें रोजगारमूलक नीति का प्रतिपादन नहीं किया गया। अतः विद्वानों का मत है। कि इस कारण से बेरोजगारी में वृद्धि हुई है।

(5) मन्द पंजीनिर्माण गतिदेश में पूंजी-निर्माण की गति बहुत ही धीमी रही है जिसके कारण उद्योगों व्यवसायों व सेवाओं का विस्तार भी धीमी गति से ही हुआ है, जबकि जनसंख्या के तीव्र गति से बढ़ने के कारण रोजगार सुविधाएं उस दर से नहीं बढ़ पायी हैं।

(6) यन्त्रीकरण एवं अभिनवीकरणभारत विकासशील देश होने के कारण यन्त्रीकरण एवं अभिनवीकरण की ओर बढ़ रहा है। देश में स्वचालित मशीन लगायी जा रही है। कृषि में यन्त्रीकरण की गति बराबर बदा रही है। इन सभी का परिणाम है कि अब पहले की तुलना में कम व्यक्तियों से वही कार्य कराया जा रहा है।

 (7) विदेशों से भारतीयों का आगमन–पिछले कुछ वर्षों से भारत मूल के निवासियों को कुछ देशों द्वारा निकाला जा रहा है। इन देशों में ब्रिटेन, श्रीलंका, युगाण्डा, केन्या, आदि प्रमुख हैं। इन देशों से भारतीयों के आने के कारण बेरोजगारी में वृद्धि हुई है।

(8) दोषपूर्ण दृष्टिकोणइस देश में बेरोजगारी का एक महत्वपूर्ण कारण शिक्षित व्यक्तियों द्वारा नौकरी चाहने की इच्छा है। वे स्वयं कोई उत्पादन कार्य प्रारम्भ नहीं करना चाहते हैं। उनमें इस दोषपूर्ण विचार के कारण भी बेरोजगारी में वृद्धि हुई है।

(9) मजदूरी उत्पादकता में अन्तर—देश में नियोजन के कारण मुद्रा-प्रसार बना हुआ है जिससे मूल्य वृद्धि होती रहती है। इससे प्रभावित होकर श्रमिकों की मांग पर श्रमिकों के वेतन व भत्ते बढ़ा दिये जाते हैं जिससे वस्तुओं की लागत और मूल्य बढ़ जाते हैं, लेकिन वस्तुओं की मांग कम हो जाती है। इससे उत्पादन कम करने के कारण बेरोजगारी में वृद्धि हो जाती है।

(10) रोजगार विहीन संवृद्धिभारत में नियोजन काल में विशेषकर आर्थिक सुधारों की अवधि में रोजगार विहीन संवृद्धि प्राप्त हुई है तथा देश के मुख्य क्षेत्र कृषि में वृद्धि दर निराशाजनक रही जो अंततः देश में बेरोजगारी का कारण बनी।

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भारत में बेरोजगारी दूर करने के उपाय

(SUGGESTIONS TO SOLVE THE PROBLEM OF UNEMPLOYMENT IN INDIA)

भारत में बेरोजगारी दूर करने के लिए निम्न सुझाव दिये जा सकते हैं :

(1) जनसंख्या वृद्धि पर नियन्त्रण बेरोजगारी दूर करने के लिए जनसंख्या वृद्धि पर उचित नियन्त्रण लगाया जाना चाहिए। भारत में वर्तमान जनसंख्या वृद्धि दर 1.64 प्रतिशत वार्षिक है जो अधिक है।

(2) शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन वर्तमान शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन किया जाना चाहिए। इसको रोजगार उन्मुख (Employment-oriented) बनाया जाना चाहिए जिसके लिए व्यावसायिक शिक्षा का विस्तार किया जा सकता है।

(3) कुटीर एवं लघु उद्योगों का विकास—बेरोजगारी दूर करने के लिए सुझाव दिया जाता है कि कुटीर एवं लघु उद्योगों का विस्तार किया जाना चाहिए जिससे कि कम पूंजी विनियोग पर अधिक व्यक्तियों को रोजगार मिल सके। इसके लिए ऐसे लघु उद्योगों का विकास किया जाना चाहिए जो श्रम-प्रधान हों।

(4) प्राकृतिक साधनों का सर्वेक्षण—सरकार को प्राकृतिक साधनों का विस्तृत सर्वेक्षण करके उन सम्भावनाओं का पता लगाना चाहिए जिससे नये-नये उद्योग स्थापित किये जा सकते हैं।

(5) कृषि पर आधारित उद्योगधन्धों का विकास—भारत में कृषि में प्रच्छन्न बेरोजगारी एवं मौसमी बेरोजगारी पायी जाती है। अतः यह सुझाव दिया जाता है कि गांवों में कृषि सहायक उद्योग-धन्धों का विकास किया जाना चाहिए जिससे कि कृषक खाली समय में भी कुछ कार्य कर सकें। इसके लिए पशुपालन, मुर्गीपालन, बागवानी, दुग्ध व्यवसाय, मत्स्य पालन, आदि जैसे उद्योग-धन्धों का विकास किया जा सकता है।

(6) गांवों में रोजगारउन्मुख नियोजनगांवों में डॉक्टरों, कम्पाउण्डरों, मिस्त्रियों, अध्यापकों, छोटे उद्योगपतियों, आदि को रोजगार मिलने की काफी सम्भावनाएं हैं, अतः गांवों के लिए ऐसी रोजगार-उन्मुख योजनाएं बनायी जानी चाहिए जहां इस प्रकार के व्यक्ति काम पर लग सकें। भारत में गांव व शहरों को मिलाने वाली अधिकांश सड़कें पक्की नहीं हैं, अतः इनको पक्का कराने का कार्य प्रारम्भ किया जाना चाहिए।

(7) पूर्ण क्षमता का उपयोग—भारत में बहुत-से उद्योग अपनी क्षमता से कम क्षमता पर कार्य कर रहे। हैं। अतः इस प्रकार के उद्योगों को अपनी पूरी क्षमता से कार्य करने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए जिससे कि बृहत् उद्योगों में रोजगार अवसरों की वृद्धि की जा सके।

(8) जनशक्ति नियोजन देश में जनशक्ति नियोजन किया जाना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि विभिन्न उत्पादन क्षेत्रों में श्रम की मांग एवं पूर्ति के बीच समायोजन किया जाना चाहिए। समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप ही शिक्षा का विकास किया जाना चाहिए। इसके लिए श्रमिकों की भारी मांग व उसकी पूर्ति के बारे में पहले से पता लगा लिया जाना चाहिए तथा उसी के अनुसार प्रशिक्षण, आदि की व्यवस्था की जानी। चाहिए।

(9) विनियोग दर में वृद्धि रोजगार सुविधाओं को बढ़ाने के लिए घरेलू बचतों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए जिससे कि पूंजी-निर्माण ऊंची दर से किया जा सके और विनियोग दर में वृद्धि की जा सके। इससे नये-नये उद्योगों की स्थापना में सहायता मिलेगी और रोजगार सुविधाओं में वृद्धि होगी।

(10) गांवों में बिजलीघरों की स्थापना ग्रामीण बेरोजगारी को दूर करने के लिए भगवती समिति ने यह सुझाव दिया है कि गांवों में बिजलीघरों की स्थापना की जानी चाहिए जिससे कि वहां छोटे-छोटे उद्योग-धन्धे पनप सकें।

(11) अन्य सुझावबेरोजगारी कम करने के लिए (i) सड़क निर्माण कार्य प्रारम्भ किया जाए: (ii) ग्रामीण मकान बनाने के लिए सुविधाएं दी जायें; (iii) छोटी सिंचाई सुविधाओं का विस्तार किया जाए: (iv) कृषि सेवा केन्द्र (Agro-service Centres) स्थापित किये जायें जिससे कि तकनीकी व्यक्तियों को गांवों में ही रोजगार मिल सके।

राष्ट्रीय श्रम आयोग ने देश में बेकारी एवं अर्द्ध-बेकारी की समस्या के निवारण हेतु कई उपयोगी सुझाव दिये, जैसे—(i) रोजगार की राष्ट्रीय नीति पूर्व-निश्चित करना, (ii) अखिल भारतीय मानव शक्ति सेवा निर्माण करना, (iii) शिक्षा पद्धति में परिवर्तन, (iv) औद्योगिक सेवाओं को मजबूत करना, तथा (v) प्रत्येक सामुदायिक विकास खण्ड में कम-से-कम एक रोजगार दफ्तर रखना।

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भारत में रोजगार योजनाएं

(EMPLOYMENT SCHEMES IN INDIA)

अथवा

भारत में बेरोजगारी कम करने के लिए सरकार द्वारा प्रयत्न

(STEPS TAKEN BY GOVERNMENT TO REDUCE UNEMPLOYMENT IN INDIA)

प्रारम्भ में सरकार ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। इस सम्बन्ध में सरकार की धारणा थी कि विकास के बाद बेरोजगारी की समस्या स्वतः ही सुलझ जायेगी, लेकिन बेरोजगारी दूर करने या रोजगार में वृद्धि लाने की बात तो सभी योजनाओं में कही गयी है और इस समस्या पर विशेष रूप से ध्यान दिया गया है। सरकार ने बेरोजगारी कम करने के लिए निम्नलिखित उपाय किये हैं :

(1) सामान्य रोजगार सरकार ने उद्योगों में भारी विनियोग करके रोजगार सुविधाएं बढ़ाने का उपाय किया है। प्रशिक्षणार्थी (Apprenticeship) का विस्तार हुआ है जिससे कि अधिक व्यक्तियों को प्रशिक्षण दिया जा सके। गांवों में भूमियों का पुनः वितरण किया है। साख व अन्य आवश्यक इनपुट उपलब्ध किये गये हैं। साथ ही गांवों एवं शहरों में अनेक रोजगार कार्यक्रम चालू किये गये हैं जिनमें प्रमुख हैं—स्वर्णजयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना (Swarnajayanti Gram Swarojgar Yojana), स्वर्ण जयन्ती शहरी रोजगार योजना, प्रधानमन्त्री रोजगार सृजन कार्यक्रम, जयप्रकाश नारायण रोजगार गारण्टी योजना, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना (मनरेगा)।

(2) विशिष्ट रोजगारशिक्षित वर्ग में बेरोजगारी कम करने के लिए कुछ विशिष्ट रोजगार कार्यक्रम भी अपनाये गये हैं, जैसे स्कूलों की संख्या बढ़ाकर नवीन अध्यापकों को नियुक्त किया गया है। सरकार ने जनशक्ति नियोजन (Manpower Planning) की बात मान ली है। इसलिए उपयुक्त नीति व प्रशिक्षण सुविधाओं के विस्तार, आदि पर जोर दिया जा रहा है।

(3) नियोजन सेवाएं रोजगार दिलाने के लिए बेरोजगारों के मार्गदर्शन के लिए रोजगार कार्यालयों की संख्या में बराबर वृद्धि की जा रही है। 1950 के अन्त में रोजगार कार्यालयों की संख्या केवल 143 थी जो बढ़कर वर्तमान में 969 हो गयी है।

(4) कुटीर एवं लघु उद्योगों का विकास-औद्योगिक नीति में कुटीर एवं लघु उद्योगों के विकास पर भारी जोर दिया गया है। लघु उद्योग क्षेत्र के लिए 20 वस्तुएं सुरक्षित है। साथ ही इन उद्योगों की सहायता के लिए। प्रत्येक जिला मुख्यालय पर एक औद्योगिक सलाहकारी केन्द्र खोला जा रहा है। अब तक इस प्रकार के 422 जिला केन्द्र स्थापित किये जा चुके हैं। इससे बेरोजगारी को कम करने में सहायता मिलेगी।

(5) बेरोजगारी भत्ता विभिन्न राज्य सरकारें अपने अपने राज्य में पंजीकृत बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता दे रही हैं।

(6) अन्य उपायशिक्षित बेरोजगारी को कम करने के लिए केन्द्रीय सरकार ने यह योजनाएं लाग की है : (i) औद्योगिक दृष्टि से पिछडे क्षेत्रों में उद्योग खोलने पर केन्द्रीय सरकार सहायता देती है। (ii) पहाड़ी व दुर्गम क्षेत्रों में बसें, आदि चलाने के लिए परिवहन सहायता दी जाती है। (iii) स्वयं रोजगार व साहसी चातुर्य को बढ़ावा देने के लिए साहस कार्यक्रम लागू किया गया है। (iv) इन्जीनियर साहसी प्रशिक्षण प्रोग्राम के अन्तर्गत ब्याज सहायता दी जाती है। (v) लघु उद्योग सेवा संस्थाओं द्वारा इन्जीनियरों को प्रशिक्षण दिया जाता है। (vi) पिछड़े व ग्रामीण क्षेत्रों में उद्योग स्थापित करने के लिए ग्रामीण साहसी कार्यक्रम चलाया जा रहा है। (vii) ग्रामीण युवकों को स्वयं रोजगार के लिए एक राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जा रहा है। (viii) जिला उद्योग केन्द्र स्थापित किये गये हैं।

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भारत में शिक्षित बेरोजगारी

(EDUCATED UNEMPLOYMENT IN INDIA)

शिक्षित बेरोजगारी से अर्थ उस बेरोजगारी से है जिसमें रोजगार चाहने वाला व्यक्ति शिक्षित है, लेकिन उसको रोजगार नहीं मिल रहा है। भारत में शिक्षित बेरोजगारी बढ़ रही है जिसके कारण निम्न प्रकार हैं:

(1) शिक्षा का विस्तारस्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् शिक्षा का काफी विस्तार हुआ है। लाखों स्कूल खुले हैं। हजारों कॉलेज व टेक्नीकल इन्स्टीट्यूट स्थापित हुए हैं। इन सबके फलस्वरूप शिक्षित व्यक्तियों की संख्या का विस्तार हुआ है।

(2) दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली शिक्षित बेरोजगारी बढ़ने का दूसरा कारण दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली है। इसमें सैद्धान्तिक बातों पर अधिक ध्यान दिया जाता है, जबकि व्यावहारिक बातों पर कम। उसका परिणाम यह होता है कि शिक्षित व्यक्ति व्यावहारिक नहीं हो पाते हैं।

(3) मनोवृत्ति में परिवर्तन शिक्षित बेरोजगारी बढ़ने का तीसरा कारण शिक्षित व्यक्ति की मनोवृत्ति में परिवर्तन है। शिक्षित व्यक्ति दफ्तरों में नौकरी पाने की इच्छा तो रखता है, लेकिन स्वयं परिश्रम का कार्य नहीं करना चाहता है।

(4) प्रशिक्षण संस्थाओं की अपर्याप्तता—शिक्षित बेरोजगारी बढ़ने का चौथा कारण भारत में प्रशिक्षण संस्थाओं का अभाव है। यहां जिस गति से शिक्षित व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि हो रही है उस गति से प्रशिक्षण संस्थाएं न तो स्थापित हो रही हैं और न पुरानी संस्थाओं का विस्तार व विकास।

(5) उपयुक्त सूचनाओं को प्रदान करने वाली संस्थाओं का अभाव-शिक्षित बेरोजगारी बढ़ने का पांचवां कारण भारत में उपयुक्त सूचनाएं देने वाली संस्थाओं का अभाव है। यहां के विशाल क्षेत्रफल व शिक्षा के विस्तार की तुलना में ऐसी संस्थाओं का अभाव है जो शिक्षित व्यक्तियों को यह दिशा-निर्देश दे सकें कि उन्हें किस प्रकार का रोजगार मिल सकता है।

शिक्षित बेरोजगारी कम करने के लिए सरकारी प्रयास

भारत में शिक्षित बेरोजगारी कम करने के लिए सरकार ने निम्न योजनाएं लागू की हैं :

(1) पिछड़े क्षेत्रों में उद्योग खोलने पर सहायता केन्द्रीय सरकार पिछड़े क्षेत्रों में उद्योग खोलने पर सहायता देती है। (2) परिवहन सहायता—पहाड़ी व दुर्गम क्षेत्रों में परिवहन सेवा चलाने के लिए केन्द्रीय सरकार सहायता प्रदान करती है। (3) स्वयं-रोजगार कार्यक्रम स्वयं-रोजगार व साहसी चातुर्य को बढ़ावा देने के लिए विकास कार्यक्रम लागू किया गया है। (4) इन्जीनियर साहसी प्रोग्राम इन्जीनियर साहसी कार्यक्रम के अन्तर्गत ब्याज की सहायता इन्जीनियरों को दी जाती है। (5) इन्जीनियर साहसी प्रशिक्षण प्रोग्राम लघु उद्योग संस्थाओं द्वारा इन्जीनियरों को प्रशिक्षण दिया जाता है। (6) ग्रामीण साहसी कार्यक्रम पिछडे व ग्रामीण क्षेत्रों में उद्योग स्थापित करने के लिए ग्रामीण साहसी कार्यक्रम चलाया जा रहा है। (7) राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम ग्रामीण युवकों को स्वयं रोजगार देने के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम चलाया जा रहा है। (8) जिला उद्योग केन्द्रों की स्थापना प्रत्येक जिले में जिला उद्योग केन्द्र स्थापित किये जा रहे हैं जो उद्योगों की स्थापना व उनके विकास में सहायता पहुंचाते हैं। (9) स्वर्ण जयन्ती शहरी रोजगार योजना (SJSRY) यह योजना 1 दिसम्बर, 1997 से लागू की गई है। इस योजना का उद्देश्य शहरी बेरोजगार या अल्परोजगार वाले व्यक्तियों को अपना रोजगार स्थापित करने में सहायता प्रदान करना है। इस योजना के दो भाग हैं—(i) शहरी स्व-रोजगार कार्यक्रम (Urban Self Employment Programme) व (ii) शहरी मजदूरी रोजगार कार्यक्रम (Urban Wages Employment Programme)। इन योजनाओं के अन्तर्गत रोजगार स्थापित करने पर प्रोजेक्ट लागत के 50 प्रतिशत तक आर्थिक सहायता (Subsidy) प्रदान की जाती है।

भारत में बेरोजगारी की समस्या शिक्षित बेरोजगारी कम करने के लिए सुझाव

शिक्षित बेरोजगारी कम करने के लिए निम्न सुझाव दिये जाते हैं

(1) शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन भारत की वर्तमान शिक्षा प्रणाली अंग्रेजों द्वारा लगभग 200 वर्ष पूर्व अपनायी गयी थी और यह आज भी उसी रूप में है। अतः सुझाव दिया जाता है कि इसमें आमूल-चूल परिवर्तन किये जाने चाहिए जिससे कि सैद्धान्तिक बातों के साथ-साथ व्यावहारिक बातों का भी ज्ञान हो सका।

(2) प्रशिक्षण संस्थाओं में वृद्धि यहां प्रशिक्षण सुविधाएं बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण संस्थाओं का विस्तार किया जाना चाहिए जिससे कि शिक्षित व्यक्ति प्रशिक्षण प्राप्त कर अपना व्यवसाय प्रारम्भ कर सके।

(3) सूचना देने वाली संस्थाओं में वृद्धि शिक्षित व्यक्तियों को ये सूचना कि उन्हें क्या करना चाहिए। देने वाली संस्थाओं की संख्या बढ़ानी चाहिए जिससे कि वे स्वयं अपना कारोबार स्थापित कर सकें और नौकरी के लिए लालायित न हों।

(4) मनोवृत्ति में परिवर्तन शिक्षित व्यक्तियों में बेरोजगारी कम करने के लिए उनकी मनोवृत्ति में परिवर्तन होना चाहिए जिसके लिए आवश्यक सामाजिक वातावरण बनाया जाना चाहिए।

(5) सरकारी सहायता शिक्षित व्यक्तियों को अपना व्यवसाय स्थापित करने के लिए सरकार की ओर से अधिक वित्तीय सहायता, अनुदान व अन्य सहायता दी जानी चाहिए जिससे कि अधिकाधिक शिक्षित व्यक्ति नौकरी की ओर न दौड़कर अपना कारोबार स्थापित कर सकें और बेरोजगारी में वृद्धि न करके इस समस्या को हल करने में अपना योगदान दे सकें।

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भारत में ग्रामीण बेरोजगारी : मौसमी एवं छिपी बेरोजगारी

(RURAL UNEMPLOYMENT IN INDIA : SEASONAL AND DISGUISHED)

भारत की लगभग 69 प्रतिशत जनसंख्या गांवों में रहती है जिसका प्रमुख व्यवसाय कृषि करना है। लेकिन इस जनसंख्या को गांवों में पूरा काम नहीं मिल पाता है। अतः वहां बेरोजगारी पायी जाती है जिसे ग्रामीण बेरोजगारी कहते हैं।

भारत में ग्रामीण बेरोजगारी दो प्रकार की पाई जाती है—(1) मौसमी बेरोजगारी (Seasonal Unemployment), (2) छिपी हुई बेरोजगारी (Disguised Unemployment)| मौसमी बेरोजगारी वह है जो किसी मौसम या समय में होती है, जैसे फसल काटने अगली फसल की शुरुआत करने के बीच कोई काम नहीं मिलता है। इसी को मौसमी बेरोजगारी कहते हैं। भारत में मौसमी बेरोजगारी के सम्बन्ध में अलग-अलग अनुमान हैं। शाही कृषि आयोग के अनुसार यहां 4-5 महीने लोग बेकार रहते हैं, जबकि कृषि श्रमिक प्रथम जांच के अनुसार यहां कृषि श्रमिक को मात्र 218 दिन को ही कार्य मिलता है, जबकि द्वितीय कृषि श्रमिक प्रथम जांच के अनुसार यहां 222 दिन को ही कार्य मिलता है। ग्रामीण श्रमिक जांच के अनुसार यहां 1964-65 में पुरुष कृषि श्रमिक को 240 दिन व स्त्री कृषि श्रमिक को 159 दिन को कार्य मिला था। यह सभी अनुमान यह सिद्ध करते हैं कि यहां मौसमी बेरोजगारी विद्यमान है।

ग्रामीण क्षेत्रों में छिपी हुई बेरोजगारी भी पायी जाती है। छिपी हुई बेरोजगारी से अर्थ किसी काम में आवश्यकता से अधिक व्यक्तियों के लगाने से है। भारतीय गांवों में कृषि उद्योग में इसी प्रकार की बेरोजगारी पायी जाती है। राष्ट्रीय श्रम आयोग के अध्ययन दल के अनुसार यहां 1.7 करोड़ व्यक्ति छिपी हुई बेरोजगारी से पीड़ित हैं। एक अनुमान के अनुसार भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में कुल श्रम शक्ति की 7.1 प्रतिशत पुरुषों में तथा 9.2 प्रतिशत स्त्रियों में बेरोजगारी पायी जाती है।

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ग्रामीण बेरोजगारी के कारण

भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी के अनेक कारण हैं जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं :

(1) भूमि के प्रति प्रेम अधिकांश कृषक अलाभकारी खेती होने पर भी उसे नहीं छोड़ते हैं, क्योंकि उन्हें अपनी भमि से लगाव व प्रेम होता है। (2) उत्तराधिकार नियम-भारत में उत्तराधिकार नियम इस प्रकार के हैं कि पिता की मृत्यु पर पिता की भूमि में सभी पुत्र व पुत्रियों को हक मिलता है जिससे वे उससे चिपके रहते हैं, चाहे भूमि से कोई लाभ हो अथवा नहीं। (3) ग्रामीण क्षेत्रों में लघु एवं बृहत् उयोगों का अभाव ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे लघ एवं बहत् उद्योगों का अभाव पाया जाता ह जिससे वे रोजगार पा सकें। (4) संयुक्त परिवार प्रणाली यद्यपि संयुक्त परिवार प्रणाली टूट-सी गयी है, लेकिन फिर भी अनेक स्थानों पर बनी हुई है। इसका परिणाम यह हुआ है कि बिना रोजगार के भी व्यक्ति गांवों में बने रहते हैं। (5) मौसमी कृषि—भारत में कृषि मौसमी है, जिसके फलस्वरूप कई महीने गांवों में बेकार रहना पड़ता है। (6) ग्रामीण वातावरण के प्रति आकर्षण-आज भी अनेक व्यक्ति ऐसे हैं जिन्हें ग्रामीण वातावरण अधिक पसन्द है अतः वे बेकार होते हुए भी गांव छोड़ना नहीं चाहते हैं।

ग्रामीण बेरोजगारी दूर करने के उपाय

यदि हम ग्रामीण बेरोजगारी दूर करना चाहते हैं तो निम्न उपाय काम में लाने चाहिए ।

(1) लघु एवं बृहत् उद्योगों का विकास ग्रामीण क्षेत्रों में लघु एवं बृहत् उद्योगों का विकास किया जाना चाहिए जिसके लिए आवश्यक सुविधाएं जैसे बिजली, पानी, सड़कें, आदि सरकार द्वारा प्रदान की जानी चाहिए। (2) सामाजिक वातावरण ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक वातावरण को परिवर्तित करने का प्रयास करना चाहिए और ग्रामीण जनता को यह बताना चाहिए कि बेकार बैठने से तो कुछ काम करना अच्छा है। इसके लिए ग्राम पंचायत व ब्लॉक समिति की सहायता करनी चाहिए। (3) प्रशिक्षण—गांवों में कुटीर उद्योगों व लघु उद्योगों की स्थापना के लिए प्रशिक्षण सुविधाओं का विस्तार किया जाना चाहिए जिससे कि ग्रामीण प्रशिक्षण प्राप्त कर रोजगार में लग सकें और बेकारी कम करने में सहयोग दे सकें।

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ग्रामीण बेरोजगारी दूर करने के सरकारी प्रयास

(GOVERNMENT EFFORTS TO REMOVE RURAL UNEMPLOYMENT)

रोजगार नीति

(EMPLOYMENT POLICY)

कल्याणकारी राज्य के रूप में भारत सरकार ने गरीबी के विरुद्ध संघर्ष करने तथा अपने देशवासियों विशेषकर, पिछड़े तथा सुविधाविहीन वर्ग की समृद्धि एवं विकास के लिए सतत नियोजित एवं सघन प्रयास स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय से ही चला रखा है। अन्य शब्दों में, स्वतन्त्रता प्राप्ति के उपरान्त से ही भारत सरकार द्वारा विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में लोगों की गरीबी दूर करने, उन्हें रोजगार की सुविधाएं प्रदान करने हेतु विविध कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।

वर्तमान समय में सरकार द्वारा चलाए जा रहे गरीबी उन्मूलन सम्बन्धी कुछ प्रमुख कार्यक्रमों का संक्षिप्त विवरण निम्नवत् है :

1 महात्मा गांधी रोजगार गारंटी अधिनियम मनरेगा (Mahatma Gandhi National Rural

Employment Guarantee Act–MNREGA)

2 फरवरी, 2006 को लागू राष्ट्रीय रोजगार गारण्टी योजना का नाम बदलकर 2 अक्टूबर, 2009 से इस योजना का नाम महात्मा गांधी रोजगार गारण्टी कार्यक्रम कर दिया गया।

ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार उपलब्ध कराने की दृष्टि से ‘मनरेगा’ भारत सरकार की महत्त्वपूर्ण फ्लैगशिप’ योजनाओं में से एक है जिसका उद्देश्य उस प्रत्येक परिवार को, जिसके प्रौढ़ सदस्य स्वेच्छा से बिना कौशल का शारीरिक कार्य करना चाहते हैं। वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिवसों की गारंटी युक्त मजदूरी रोजगार प्रदान करके देश के ग्रामीण क्षेत्रों में परिवारों की आजीविका सुरक्षा को बढ़ाना है। यह महिलाओं की 1/3 भागीदारी का भी अधिदेश देता है। योजना का प्राथमिक उद्देश्य मजदूरी रोजगार को बढ़ाना है। यह एक मांग आधारित स्कीम है जिसको ऐसे कार्यों के माध्यम से किया जाना है, जो प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के सुदृढ़ीकरण पर ध्यान केन्द्रित करते हुए सूखा, वनों की कटाई और मृदाक्षरण जैसे गरीबी के मूल कारणों को दूर करते हैं और इस प्रकार सतत विकास को प्रोत्साहित करते हैं। इस तरह, मनरेगा का केन्द्र बिन्दु जल संरक्षण, सूखा ग्रस्त क्षेत्रों का उद्धार (वानिकी/वृक्षारोपण सहित), भूमि विकास, बाढ़ नियंत्रण/संरक्षण (जल टहराव वाले क्षेत्रों में जल निकासी सहित) तथा सभी मौसमों में अच्छी सड़कों हेतु सड़क सम्बद्धता से सम्बन्धित कार्यों पर ध्यान देना रहा है। योजना के अंतर्गत रोजगार के इच्छुक एवं पात्र व्यक्ति द्वारा पंजीकरण कराने के 15 दिन के भीतर रोजगार नहीं दिए जाने पर निर्धारित दर से बेरोजगारी भत्ता केन्द्र सरकार द्वारा दिए जाने का प्रावधान है।

मनरेगा पहले चरण में 2 फरवरी, 2006 से 200 जिलों में अधिसूचित किया गया था और वित्तीय वर्ष 2007-08 से इसे 130 और जिलों पर लागू किया गया था। 1 अप्रैल, 2008 से इस अधिनियम के अंतर्गत देश के सभी जिले लाए गए। इस तरह यह योजना देश के सभी 684 जिलों के 6,863 विकास खण्ड की। 162.839 ग्राम पंचायतों में लागू है। राष्ट्रीय स्तर पर मनरेगा के अन्तर्गत भगतान की गयी औसत मजदूरी वित्तीय वर्ष 2006-07 में 65₹ से बढ़ाकर वित्तीय वर्ष 2013-14 में 132₹ कर दी गयी। इससे क्रयशक्ति में पर्याप्त रूप से वृद्धि हुई है जिसके फलस्वरूप भारत में ग्रामीण क्षेत्रों के गरीबों की आजीविका संसाधन का आधार सुदृढ़ हुआ है। मनरेगा ने कृषक मजदूरों की सौदेबाजी की क्षमता को सफलता पूर्वक बढ़ाया है, जिससे कृषि सम्बन्धी मजदूरी बढ़ी है, आर्थिक परिणामों में सुधार हुआ है तथा विपत्ति के दौरान होने वाले। उत्प्रवास में कमी आई है।

वर्ष 2016-17 में इस कार्यक्रम के अंतर्गत 5.109 करोड़ परिवारों तथा 7.64 करोड़ व्यक्तियों को रोजगार उपलब्ध कराया गया। सृजित मानव दिवसों में महिलाओं का प्रतिशत 56.1 रहा है, जबकि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की भागीदारी 49 प्रतिशत रही।

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मनरेगा की आलोचनाएं (Criticisms of MGNREGA)

मनरेगा की प्रमुख आलोचनाएं निम्नलिखित हैं :

1 कार्यान्वयन के प्रति उत्साह में कमी (Half Hearted Implementation) हाल की अवधि में MGNREGA को लागू करने के उत्साह में कुछ कमी आ रही है। रोजगार सृजन की गति कम हो रही है खासतौर पर गरीब व उपेक्षित वर्गों जैसे अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए। जहां 2009-10 में प्रति परिवार 54 व्यक्ति दिन रोजगार प्रदान किया गया वहां 2010-11 में 47 व्यक्ति दिन, 2011-12 में 43 व्यक्ति दिन तथा 2013-14 में केवल 46 व्यक्ति दिन रोजगार ही प्रदान किया जा सका (जबकि लक्ष्य 100 व्यक्ति दिन रोजगार प्रदान करना था)। योजना के प्रति अनुत्साह इस बात से भी सिद्ध होता है कि हाल में वर्षों में इस योजना के अन्तर्गत काफी बड़ी राशि खर्च ही नहीं की गई।

2.कार्यान्वयन में अनियमितताएं (Irregularities in Implementation) मनरेगा के कार्यान्वयन में व्यापक अनियमितताएं हैं तथा घूसखोरी व्याप्त है। उदाहरण के लिए, मनरेगा पर 2007 में प्रकाशित अपनी एक रिपोर्ट में काम्पट्रोलर एवं आडिटर जनरल (Comptroller and Auditor General) ने संकेत किया कि बिहार में 7 कार्यों पर फर्जी (कल्पित) श्रमिकों के नाम 8.99 लाख रुपए का मजदूरी भुगतान किया गया (एक ही श्रमिक का एक ही अवधि में दो या तीन कार्यों में नाम दर्ज पाया गया)।

3. फर्जी नामावली (Fake Muster rolls) नामावली (muster rolls) में छेड़छाड़ परिवर्तन करने की समस्याएं सामने आने लगी हैं। उदाहरण के लिए, ‘अनुपस्थित’ को ‘उपस्थित’ में बदलने, काम के दिनों में हेर-फेर करने जैसी गड़बड़ियां की गई है। कुछ स्थितियों में नामावली में उन लोगों के नाम भी मौजूद पाए गए हैं जो बहुत पहले गांव छोड़कर अन्य स्थानों को चले गए थे। यहां तक कि कभी-कभी मृत व्यक्तियों के नाम भी नामावली में दर्ज पाए गए।

4. व्यापक भ्रष्टाचार (Widespread Corruption) विभिन्न शोधकर्ताओं और संगठनों द्वारा देश के विभिन्न भागों में किए गए सर्वेक्षणों से मनरेगा में व्यापक स्तर पर फले भ्रष्टाचार का पता लगा है। झठे व नकली बिलों बढ़ा-चढ़ाकर लिखे गए खर्चा, सस्ते व खराब क्वालिटी के माल के इस्तेमाल, गांव के मखिया लोगों व सरकारी अफसरों द्वारा धन के गलत प्रयोग इत्यादि के कई उदाहरण सामने आए हैं।।

5. मजदूरी के भुगतान में देरी (Delayed payment of wages)—कई राज्यों से शिकायतें आई हैं। कि मजदूरी का भगतान 15 दिनों की निर्धारित अवधि में नहीं किया जाता। जो लोग मनरेगा के कार्यों में काम करने आते हैं वे अक्सर निर्धनतम वर्ग के होते हैं जिनके पास कोई वैकल्पिक रोजगार नहीं होता। इसलिए समय पर मजदरी न मिलने से ये लोग या तो ऋण लेते है या फिर अपना गांव छोडकर अन्य स्थानों पर जाने को मजबर होते हैं। ऐसे उदाहरण भी मिले है कि न केवल श्रमिकों को मजदरी समय पर नहीं दी गई अपितु पुरानी (outdated) दरों पर दी गई।

6. मजदूरी का गिरता हिस्सा (Declining share of wages) यह बात भी सामने आई है कि कई ग्राम पंचायतों के भुगतानों में मजदूरी के हिस्से में तेज गिरावट हुई है। मनरेगा में मजदूरी के हिस्से में तेज गिरावट अत्यन्त चिन्ता का विषय है, क्योंकि यह तथ्य इस पूरे कार्यक्रम के औचित्य पर ही प्रश्नचिह्न लगाता है (क्योंकि मनरेगा रोजगार गारंटी का कार्यक्रम है)।

7. स्टाफ की कमी (Lack of Staff) मनरेगा के सफल कार्यान्वयन में समर्पित प्रशासनिक व तकनीकी स्टाफ की कमी एक बहत बडी अडचन रही है। कुछ राज्यों में ‘प्रोग्राम अफसर’ तथा ‘ग्राम रोजगार सेवकों की नियक्ति की प्रक्रिया पूरी नहीं की गई है। CAG के अनुसार “स्टाफ में कमी, निर्देशों के न पालन करने का सामान्य बहाना बन गया है।”

8. बेरोजगारी भत्ते की अदायगी होना (Non-payment of unemployment allowance) अधिनियम की धाराओं में यह व्यवस्था है कि बेरोजगारी भत्ते का भुगतान राज्य सरकार को करना पडेगा। इस प्रावधान को इसलिए शामिल किया गया ताकि राज्य सरकारें रोजगार प्रदान करने की भरसक कोशिश करें, क्योंकि रोजगार प्रदान करने की 90 प्रतिशत लागत का भार केन्द्र सरकार उठाती है। परन्तु कई राज्य सरकारों ने बेरोजगारी भुगतान करने में आनाकानी की है तथा कभी-कभी इसकी राशि को कम करने का प्रयास किया है।

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निष्कर्ष (Conclusion)

मनरेगा की उपर्युक्त आलोचनाओं से स्पष्ट है, अधिकतर आलोचनाएं इसके असंतोषजनक कार्यान्वयन को लेकर हैं। योजना के मूलाधार व उसकी उपयोगिता को लेकर कोई संशय नहीं है। बहुत से अर्थशास्त्री इस बात पर सहमत हैं कि इस कार्यक्रम में ग्रामीण आर्थिक व सामाजिक संबंधों को कई स्तरों पर बदलने की संभावना व सामर्थ्य है। सर्वेक्षणों से यह भी ज्ञात हुआ है कि इससे अत्यन्त पिछड़े वर्गों के शक्तिकरण में सहायता मिली है। सी.पी. चन्द्रशेखर एवं जयति घाष के अनुसार, “यह कार्यक्रम उस पूरी व्यवस्था को उलटने की क्षमता रखता है जिसके अन्तर्गत सरकार अपने नागरिकों से संबंध स्थापित करती है, तथा यह कार्यक्रम ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार, स्थानीय महावलियों व स्थानीय मजदूर वर्ग के अंतः संबंधों को पुनः परिभाषित करता है। इस प्रकार, अपनी मूल भावना में यह कार्यक्रम अब तक के तमाम मजदूरी रोजगार कार्यक्रमों से नितान्त भिन्न है, क्योंकि यह रोजगार को अधिकार के रूप में स्वीकार करता है तथा यह मांग-प्रेरित (demand driven) है।” इसके अतिरिक्त, इसमें स्थानीय लोगों को कार्यक्रम बनाने तथा उन पर निगाह रखने के जिस प्रकार के अधिकार दिए गए हैं वे पहले मौजूद नहीं थे।

मनरेगा के अधीन सार्वजनिक व्यय का समावेशी’ स्वरूप न केवल सामाजिक तथा कल्याणगत आधार पर वांछित है, वह आर्थिक आधार पर भी सर्वथा न्यायोचित है। सीधे तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में अकुशल श्रमिकों को मजदूरी आय उपलब्ध कराकर वह समग्र मांग में व्यापक वृद्धि करने में सहयोग देता है, क्योंकि इस व्यय का गुणक प्रभाव काफी अधिक होता है। इस प्रकार, यह मंदी के विरुद्ध प्रभावी समष्टि आर्थिक अस्त्र है।

उपर्युक्त विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि मनरेगा को चालू रखना उपयोगी है। इसके साथ ही कार्यक्रम के कार्यान्वयन में आ रही अकुशलताओं व गड़बड़ियों का समाधान करना भी आवश्यक है। इसके लिए आवश्यक है कि इस योजना के सामाजिक अंकेक्षण (Social audit) की व्यवस्था की जाए ताकि इसमें अधिक पारदर्शिता लाई जा सके तथा सही उत्तरदायित्व निर्धारित किया जा सके।

2. स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना (SGSY)/राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशनअजीविका एक विशिष्ट स्वरोजगारी सृजन कार्यक्रम 1 अप्रैल, 1999 से पूर्ववर्ती एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम (आई. आर. डी. पी.) और सम्बद्ध कार्यक्रमों का पुनर्गठन करके प्रारंभ किया गया। इस योजना का उद्देश्य स्वरोजगारियों को बैंक ऋण एवं सरकारी सब्सिडी के माध्यम से स्व-सहायता समूहों में संगठित करके गरीबी रेखा से ऊपर लाना है। स्व-सहायता समूहों को परियोजना लागत की 50 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जाती है, जिसकी अधिकतम सीमा 1.25 लाख ₹ या प्रतिव्यक्ति 10 हजार ₹, इनमें जो भी कम हो निर्धारित की गई है।

स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना विशेष रूप से ग्रामीण गरीबों में असुरक्षित वर्गों पर ध्यान देती है। योजना के अंतर्गत स्वरोजगारियों में कम से कम 50% अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों, 40% महिलाओं. अल्पसंख्यकों तथा 3% शारीरिक रूप से विकलांग होना आवश्यक है। स्व-सहायता समूह 10 से 20 सदस्यों द्वारा मिलकर गठित किया जा सकता है।

स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना की अब राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एन.आर.एल.एम.) करूपम पुनसरचना की गयी है। इसका नाम बदलकर अब आजीविका कर दिया गया है। राष्ट्रीय ग्रामाण। आजीविका मिशन का उद्देश्य गरीब परिवारों को लाभदायक स्वरोजगार तथा कौशल मजूदरी वाले राजगार । के अवसर उपलब्ध कराने में सक्षम बनाकर गरीबी को घटाना है। ।

3. प्रधानमन्त्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई)

25 दिसम्बर, 2000 को आरम्भ की गई 100 प्रतिशत केन्द्र प्रायोजित इस योजना (सीएसएस) का। प्राथमिक उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में सभी पात्र असम्बद्ध क्षेत्रों को सभी मौसमों में सड़क से जुड़े रहने की व्यवस्था करना है। योजना के आरंभ से अब तक 1,26,176 बस्तियों को जोड़ने के लिए कल 4.74.528 किमी की परियोजनाएं स्वीकृत की गई हैं।

4. इन्दिरा आवास योजना (आईएवाई)

इन्दिरा आवास योजना केन्द्रीय प्रायोजित योजना है जिसका वित्त पोषण केन्द्र और राज्यों के बीच खर्च की भागीदारी 75 : 25 के अनुपात में की जाती है। संघ राज्य क्षेत्रों के मामले में पूरा निधिकरण केन्द्र द्वारा किया जाता है। आईएवाई के अन्तर्गत आवासन के लिए लक्षित वर्ग हैं : जो परिवार ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी रेखा से नीचे रह रहे हैं, विशेष रूप से अ.जा./अ.ज.जा. और मुक्त हुए बन्धुआ मजदूर

5. स्टार्ट अप इण्डिया कार्यक्रम

इस कार्यक्रम का औपचारिक आरम्भ 16 जनवरी, 2016 को किया गया। नये उद्यमियों को प्रोत्साहित करने वाले इस कार्यक्रम में अनेक छूटें (आयकर कैपिटल गेन टैक्स आदि में) देकर उद्यमियों को स्वरोजगार के लिए प्रेरित करने की योजना है।

6. स्टैण्ड अप इण्डिया कार्यक्रम

अनुसूचित जाति/जनजाति तथा महिला उद्यमियों के हितार्थ यह योजना अप्रैल 2016 में आरम्भ की गई। इस योजना में प्रत्येक बैंक शाखा को अपने क्षेत्र में कम-से-कम दो उद्यमी परियोजनाओं के लिए लक्षित उद्यमियों को ऋण उपलब्ध कराने का दायित्व सौंपा गया है।

विजन : 2020 फॉर इण्डिया देश में गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले व्यक्तियों की दशा में सुधार लाने की दृष्टि से विजन : 2020 फॉर इण्डिया नाम से एक महत्वाकांक्षी नीतिगत दस्तावेज केन्द्र सरकार द्वारा तैयार कराया जा रहा है जिसका उद्देश्य एक निश्चित समय सीमा के अन्दर गरीबी रेखा से नीचे आने वाले लोगों की विभिन्न कार्यक्रमों के द्वारा स्थिति में सुधार करना है, ताकि अगले बीस वर्षों में ‘गरीबी रेखा के नीचे’ का कलंक समाज से पूरी तरह मिटाया जा सके।

इसके लिए योजना आयोग के सदस्य डॉ. एस. पी. गुप्ता की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया है। विजन-2020 फॉर इण्डिया एक ऐसा महत्वपूर्ण दस्तावेज होगा जिसके आधार पर आने वाले दो दशकों के लिए अनेक नवीन योजनाएं एवं कार्यक्रम प्रारम्भ किए जाएंगे जो गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम में सहायक होंगे।

Environment Problem Unemployment India

प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1 भारत में बेरोजगारी की समस्या विद्यमान है। इसके कारणों की समीक्षा कीजिए और समाधान हेतु उपाय प्रस्तुत कीजिए।

2. छिपी बेरोजगारी किसे कहते हैं ? इसके कारणों को बताइए तथा दूर करने के उपाय समझाइए।

3. बेरोजगारी किसे कहते हैं? इस समस्या के कारण क्या हैं ? इन्हें दूर करने के सुझाव दीजिए।

4. भारत में बेरोजगारी के क्या कारण है ? रोजगार के अधिक अवसर देने के लिए विभिन्न योजनाओं में कौन-कौनसे उपाय किये गये हैं?

5. भारत में अदृश्य बेरोजगारी के कारण एवं प्रभावों की चर्चा कीजिए। बेरोजगारी क्या है? भारत में शिक्षित वर्ग की बेरोजगारी के कारण तथा उसके निराकरण के उपाय लिखिए। 7. भारत में बेरोजगारी की मुख्य समस्या खुली बेरोजगारी नहीं बल्कि अल्प रोजगार है।’ स्पष्ट कीजिए। 8. आर्थिक सुधारों की अवधि में भारत में बेरोजगारी की प्रवृत्ति की विवेचना कीजिए।

Environment Problem Unemployment India

लघु उत्तरीय प्रश्न

1 बेरोजगारी से क्या अभिप्राय है ?

2. खुली बेरोजगारी क्या है?

3. प्रच्छन्न बेरोजगारी का अर्थ स्पष्ट कीजिए।

4. मौसमी बेरोजगारी क्या है?

5. छिपी बेरोजगारी के लक्षण बताइए।

6. मनरेगा क्या है?

7. अल्परोजगार से आप क्या समझते हैं ?

8. भारत में बेरोजगारी के अनुमान की विभिन्न धारणाएं क्या हैं ?

9. भारत में ग्रामीण बेरोजगारी के कारण बताइए।

10. बेरोजगारी के दुष्परिणाम बताइए।

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chetansati

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