BCom 2nd year Entrepreneur Export Promotion Import Substitution Study Material Notes in Hindi

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BCom 2nd year Entrepreneur Export Promotion Import Substitution Study Material Notes in Hindi

Table of Contents

BCom 2nd year Entrepreneur Export Promotion Import Substitution Study Material Notes in Hindi: Meaning of Export Promotion Objective of Export Promotion need for Export in India Government Efforts For Export Promotion Obstacle in the way of Export promotion Suggestions for Export Promotion 2002-20 ( Import Export Policy 2002-07) Import Substitution Meaning and Characteristics Suggestions for Effective Import Substitution Major Import It of India Import Policy Role of Entrepreneur In export Promotion and Import Substitution ( Very Important Notes For 2nd-year Students )

Export Promotion Import Substitution
Export Promotion Import Substitution

BCom 3rd Year Corporate Accounting Underwriting Study Material Notes in hindi

निर्यात सम्वर्द्धन एवं आयात प्रतिस्थापन

(Export Promotion & Import Substitution)

“निर्यात आर्थिक विकास की जीवन-रेखा तथा प्रेरणा शक्ति है।”

शीर्षक

  • निर्यात सम्वर्द्धन से अर्थ (Meaning of Export Promotion)
  • निर्यात सम्वर्द्धन के उद्देश्य (Objectives of Export Promotion)
  • भारत में निर्यात सम्वर्द्धन की आवश्यकता (Need for Export Promotion in India)
  • निर्यात वृद्धि के लिए सरकारी प्रयास (Government Efforts for Export Promotion)
  • निर्यात वृद्धि या सम्वर्द्धन के मार्ग में बाधाएँ (Obstacles in the Way of Export Promotion)
  • निर्यात वृद्धि के लिए सुझाव (Suggestions for Export Promotion)
  • आयात-निर्यात नीति 2002-07 (Import-Export Policy 2002-07)
  • आयात प्रतिस्थापन-अर्थ एवं विशेषताएँ (Import Substitution-Meaning and Characteristics)
  • प्रभावी आयात-प्रतिस्थापन के लिए सुझाव (Suggestions for Effective Import substitution)
  • भारत की प्रमुख आयात वस्तुएँ (Major Import Items of India)
  • भारत के प्रमुख निर्यात (Major Export Items of India)
  • आयात नीति (Import Policy)
  • निर्यात सम्वर्द्धन एवं आयात-प्रतिस्थापन में उद्यमी की भूमिका (Role of Entrepreneur in Export Promotion and Import Substitution)

Export Promotion Import Substitution

निर्यात सम्वर्द्धन से अर्थ

(Meaning of Export Promotion)

निर्यात सम्वर्द्धन से अर्थ निर्यात प्रोत्साहन से लगाया जाता है, जिसमें निर्यात वृद्धि के लिए पुराने निर्यातकर्ताओं को तथा नवीन व्यक्तियों को निर्यात करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। (1) इसके लिए उन्हें नकद सहायता (Cash Subsidy) दी जाती है। (2) बैंकों से ऋण प्रदान किये जाते हैं। (3) कुछ पूँजीगत एवं अन्य आवश्यक मशीनों व कच्चे माल को भेजने को निर्यात के बदले में आयात करने की अनुमति दी जाती है। (4) निर्यात के लिए भेजे जाने वाले माल पर रेल भाड़े व सामुद्रिक भाड़े में छूट दी जाती है। निर्यात करने वाली संस्थाओं को आय-कर से छूट दी जाती है।

भारत के विदेशी व्यापार को अनुकूल बनाने के लिए यह आवश्यक है कि निर्यात को बढ़ाया जाये। विदेशी व्यापार के। पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्री एल. एन. मिश्रा के अनुसार, “निर्यात जीवन रेखा एवं देश के आर्थिक विकास के लिए शक्ति है।” निर्यात सम्वर्द्धन उन नीतियों की ओर संकेत देती है, जिससे देश के निर्यात को बढ़ावा मिलता है। यह एक ऐसी नीति की ओर इशारा करती है जिससे माल के निर्यात के लिए बाजार मिलता है। निर्यात को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न प्रेरणायें (Incentives) दी गई हैं जिनका वर्णन ऊपर किया जा चुका है।

Export Promotion Import Substitution

निर्यात सम्वर्द्धन के उद्देश्य

(Objectives of Export Promotion)

भारत में निर्यात सम्वर्द्धन के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं-(i) निर्यातकों को ऊँची उत्पादन लागत के विपरीत क्षतिपूर्ति देना; (i) नये एवं कमजोर निर्यातकों को निर्यात व्यापार बढ़ाने के लिए आवश्यक सहायता प्रदान करना; (iii) निर्यात व्यापार को सापेक्षिक लाभदायक बढ़ाने के लिए प्रयास करना; एवं (iv) आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रयास करना।

विदेशी व्यापार की कमी को पूरा करने के लिए विदेशी मुद्रा को उधार लेना। देश को विदेशी ऋणों के भार से मुक्ति दिलाने एवं आत्मनिर्भर बनाने के लिए आवश्यक है कि निर्यात बढ़ाये जायें।

भारत में निर्यात सम्वर्द्धन की आवश्यकता

(Need for Export Promotion in India)

भारत में निर्यात सम्वर्द्धन की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से है

1 विदेशी ऋण-भार को कम करने के लिए असन्तुलित विदेशी व्यापार एवं आर्थिक योजनाओं के दबाव ने भारत सरकार के लिए आवश्यक कर दिया कि वह विदेशी सरकार व अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं से ऋण ले। यह क्रम वर्षों चलने के उपरान्त विदेशी ऋणों की मात्रा दिनों-दिन बढ़ती चली गयी। सितम्बर 1999 के अन्त में भारत पर 98,780 मिलियन डॉलर का विदेशी ऋण था। इन ऋणों की वापसी व ब्याज आदि के भुगतान के लिए आवश्यक है कि निर्यात सम्वर्द्धन की नीति अपनाई जाये।

2. आत्मनिर्भरता के उद्देश्य को पूरा करने के लिए भारतीय योजनाओं का एक प्रमुख उद्देश्य था कि देश को विदेशी सहायता से मुक्ति दिलाई जाये। इस उद्देश्य की पूर्ति करने के लिए यह जरूरी हो गया कि देश के निर्यात को बढ़ाया जाये। निर्यात को बढ़ाने से बड़े पैमाने पर विदेशी मुद्रा प्राप्त की जा सकती है।

3. प्रतिकूल व्यापार सन्तुलन को ठीक करने के लिए स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् भारत का व्यापार दो वर्षों को छोड़कर शेष सभी वर्षों में प्रतिकूल (Unfavourable) रहा है, जिससे भारत के कोषों में कमी ही नहीं हुई है, बल्कि आर्थिक योजनाओं को इच्छानुसार ढालने में भी कठिनाई हो रही है। अत: असन्तुलित व्यापार को सन्तुलित करने के लिए निर्यात सम्वर्द्धन की आवश्यकता है।

4. योजना की सफलता-योजनाओं की सफलता इस बात पर निर्भर करती थी कि देश आवश्यक मशीनें एवं अन्य पूँजीगत पदार्थों का आयात करे तथा विदेशी मुद्रा प्राप्त करने के लिए अपने निर्यातों को बढ़ाये।

5. सुरक्षा के लिए देश की सुरक्षा के लिए विदेशों से युद्ध का साज-सामान, हथियार, हवाई जहाज इत्यादि का आयात करना पड़ता है। इसके लिए यह आवश्यक है कि देश अपने निर्यातों को बढ़ाये।

6. नवीन वस्तुओं के निर्यात के लिए आर्थिक योजनाओं के अन्तर्गत देश में अनेक नये-नये कारखाने स्थापित हए हैं, जो देश की आन्तरिक आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद निर्यात करने में समर्थ हैं। अत: उचित ही है कि नवीन वस्तुओं के निर्यात के लिए कोई प्रोत्साहन कार्यक्रम अपनाया जाये।

7. विकास योजनाओं की सफलता के लिए निर्यात के फलस्वरूप ही विकास योजनाओं के लिए आवश्यक मशीनरी व साज-सज्जा आयात की जा सकती है। अतः निर्यात सवर्द्धन आवश्यक है।

Export Promotion Import Substitution

निर्यात वृद्धि के लिए सरकारी प्रयास

(Government Efforts for Export Promotion)

स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद से ही भारत सरकार ने इस सम्बन्ध में प्रयास किये हैं तथा अनेक समितियाँ बिठायी हैं; जैसेगोरवाला समिति, 1939; डीसूजा समिति, 1957; मुदालियर समिति 1961; अलेक्जेण्डर समिति, 1977 तथा टण्डन समिति, 1980। इन समितियों की सिफारिशों के फलस्वरूप निर्यात वृद्धि के लिए भारत सरकार ने अग्र प्रयास किये हैं1

(1) निर्यात निरीक्षण परिषद् (Export Inspection Council) निर्यात (किस्म, नियन्त्रण एवं निराक्षण) अधिनियम | Export (Quality and Inspection) Act. 1963 के अन्तर्गत निर्यात निरीक्षण परिषद बनायी गयी है इसका कार्य निर्यात के लिए माल लादने से पूर्व वस्तुओं का निरीक्षण करना है जिससे कि क्वालिटी की वस्तएं हा नियात हो सकें।

(2) भारतीय विदेशी व्यापार संस्थान (Indian Institute of Foreign Trade) नई दिल्ली में 1964 में भारतीय विदेशी व्यापार संस्थान के नाम से एक संस्था स्थापित की गयी है जिसका मुख्य कार्य विदेशी व्यापार के लिए कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देना व विदेशी व्यापार के सम्बन्ध में बाजार सर्वेक्षण एवं अनुसन्धान करना है।

(3) व्यापार बोर्ड (Commodity Board) देश में विदेशी व्यापार से सम्बन्धित समस्याओं एवं नीतियों की समीक्षा को अपनी सलाह केन्द्रीय सरकार को देने के लिए 1962 में व्यापार बोर्ड की स्थापना की गई है। यह बोर्ड समय-समय पर वस्त विकास, (ii) उत्पादन विस्तार, (iii) निर्यात विपणन व्यवस्था एवं माध्यम में सधार, एवं (iv) निर्यात कार्यक्रम के सम्बन्ध में व्यापारिक समुदाय का वाणिज्य सेवाओं की व्यवस्था के सम्बन्ध में, सरकार को सुझाव देता है।

(4) भारतीय पैकेजिंग संस्था (Indian Packaging Institution) यह संस्थान 1966 में मुम्बई में स्थापित किया गया। इसका कार्य निर्यात एवं आन्तरिक सामान के पैकेजिंग का अध्ययन कर उसमें उन्नति के सुझाव देना है। इसके लिए प्रशिक्षण प्रोग्राम, विचार-गोष्ठी आदि की व्यवस्था इसके द्वारा की जाती है।

(5) निर्यात साख एवं गारन्टी निगम (ECGC) यह निगम 1964 में स्थापित किया गया था। इसका कार्य निर्यात सम्बन्धी जोखिम का बीमा करना एवं निर्यातकर्ताओं को इस सम्बन्ध में आर्थिक साख की सुविधाएँ देना है।

(6) निर्यात सम्वर्द्धन परिषदें (Export Promotion Council)—निर्यात व्यापार में उपयोजनाओं, उत्पादकों एवं निर्यातकों के सहयोग को प्राप्त करने के लिए निर्यात परिषदें स्थापित की गयी हैं। यह परिषदें उत्पादकों को निर्यात वृद्धि के लिए सलाह देती हैं। आजकल इस प्रकार की 20 परिषदें हैं, जो अलग-अलग वस्तुओं के लिए हैं; जैसे काजू, सूती वस्त्र, रेशम एवं रेयन, रासायनिक पदार्थ, ऊन व ऊनी वस्त्र, हथकरघा,खेल का सामान, इंजीनियरिंग, तैयार चमड़ाव चमड़े का सामान, जवाहरात, प्लास्टिक, मसाले आदि। इन विभिन्न निर्यात सम्वर्द्धन परिषदों के कार्यों में समन्वय स्थापित करने के लिए Federation of Indian Export Organisation की स्थापना की गयी है।

(7) निर्यात गृह (Export House)-1 जुलाई, 1968 से सरकार के द्वारा उन प्रमुख संस्थाओं को मान्यता प्रदान की जा रही है जो निर्यात में अग्रणी हैं। मान्यता प्राप्त संस्थाओं को विपणन विकास निधि (Market Development Fund) से सरकार द्वारा आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है।

(8) भारतीय पंचायत परिषद् (Indian Arbitration Council) भारतीय पंचायत परिषद 1965 में स्थापित की गयी थी जिसका कार्य व्यापारिक विवादों, विशेष रूप से विदेशी व्यापार सम्बन्धी विवादों को निपटाना है।

(9) भारतीय राज्य व्यापार निगम तथा खनिज एवं धातु व्यापार निगम (STC & MMTC) भारतीय राज्य व्यापार निगम की स्थापना मई, 1956 में हुई थी। इसकी स्थापना का उद्देश्य उन वस्तुओं एवं पदार्थों का आयात एवं निर्यात करना है। जिनको निगम निश्चित करे।

भारतीय राज्य व्यापार निगम के कार्यों में सहायता प्रदान करने के लिए निम्न निगम गठित किये गये (1) परियोजना एवं उपस्कर निगम, (ii) हस्तशिल्प तथा हस्तकरघा निर्यात निगम, (iii) भारतीय काजू निगम, व (iv) राज्य रसायन एवं भोजन निगम।

खनिज एवं धात व्यापार निगम की स्थापना 1 अक्टूबर, 1963 को भारतीय राज्य व्यापार निगम के विभाजन के फलस्वरूप हुई। इसका मुख्य कार्य खनिज एवं धातुओं का आयात एवं निर्यात करना है।

परन्तु भारतीय अर्थव्यवस्था को स्वतन्त्रता देने की नीति के फलस्वरूप अब इन निगमों का कार्य बहत ही सीमित होगया है। अत: सरकार ने इनकी कार्य-प्रणाली में परिवर्तन लाने के लिए सुझाव देने हेतु भूतपूर्व अध्यक्ष भारतीय राज्य व्यापार निगम को, सलाहकार नियक्त किया गया है जिनकी रिपोर्ट मिलने पर इनकी कार्य प्रणाली में परिवर्तन किया जायेगा।

Export Promotion Import Substitution

(10) भारतीय व्यापार सम्वर्द्धन संगठन (Indian Trade Promotion Organisation) व्यापार विकास प्राधिकरण व भारतीय व्यापार मेला प्राधिकरण को मिलाकर भारतीय व्यापार सम्वद्धन संगठन बनाया गया है जो विभिन्न देशों में भारतीय माल की प्रदर्शनियाँ आयोजित करता है और समय-समय पर सर्वेक्षण तथा समीक्षाएँ करता है ताकि भारतीय निर्यातकों के लिए नये बाजार ढूँढ़े जा सकें।

(11) व्यापारिक समझौते (Trade Agreements) भारत ने बहुत-से द्विपक्षीय व बहुपक्षीय व्यापारिक समझौते किये हैं, जिनके फलस्वरूप निर्यातों में वृद्धि हुई है। भारत के अनेक समझौते रुपया भुगतान (Rupee Payments) के आधार पर भा हुए है, जिसमें रूस एवं अन्य साम्यवादी देशों के साथ हए समझौते प्रमुख हैं। कुछ समझौते अदल-बदल (Barter) व कुछ विदेशी मुद्राओं में भी किये गये हैं। भारत बहपक्षीय समझौते जैसे चीनी समझौता व कॉफी समझौता में भी सदस्य है जिनके फलस्वरूप भी निर्यात में वृद्धि हुई है।

(12) निर्यात-आयात बैंक की स्थापना (Exim Bank) 1 जनवरी, 1982 को निर्यात-आयात बैंक की स्थापना का गया है। इसकी अधिकृत पूँजी 1,000 करोड़ रुपये है जिसे आवश्यकता पड़ने पर 2,000 करोड़ रुपये तक बढ़ाया जा सकता है। इसके संचालक मण्डल में रिजर्व बैंक. औद्योगिक विकास बैंक व निर्यात साख एवं गारन्टी निगम के प्रतिनिधि हैं। इस बैंका का कार्य निर्यात व्यापार को बढ़ावा देना है।

(13) GATT का समझौता (Agreement of GATT) GATT से तात्पर्य (General Agreement of Trade and Tarrif) से है। यह समझौता भारत सरकार द्वारा 1994 में किया गया। इसके 125 सदस्य थे जिनके बीच में यह समझौता किया गया था। 1995 में इसका नाम बदल कर WTO World Trade Organisation कर दिया गया। यह 1 जनवरी, 1995 से कार्य कर रहा है। WTO एक अन्तर्राष्ट्रीय व्यापारिक संस्था है जिसे GATT के स्थान पर स्थापित किया गया है।

(14) निर्यात प्रक्रियन क्षेत्र (Export Processing Zones-EPZs) भारत में 7 निर्यात प्रक्रियन क्षेत्र हैं। काण्डाला (गुजरात), सान्ताक्रुज (महाराष्ट्र), फाल्टा (पश्चिम बंगाल), नोयडा (उत्तर प्रदेश), कोचीन (केरल), चेन्नई (तमिलनाड), एवं विशाखापट्टनम (आन्ध्र प्रदेश)। तीन और निर्यात प्रक्रियन क्षेत्र निजी क्षेत्र में बनाने की अनुमति सरकार ने दे दी है—एक सूरत में दूसरा मुम्बई में व तीसरा चेन्नई में। इसके साथ-साथ उत्तर प्रदेश सरकार को भी वृहत् नोयडा (Greater) में निर्यात प्रक्रियन क्षेत्र स्थापित करने की अनुमति दे दी गई है। जिन इकाइयों को इन क्षेत्रों में प्रवेश दिया जाता है, उन्हें अपना शत-प्रतिशत उत्पादन निर्यात करना अनिवार्य होता है।

(15) व्यापारिक प्रतिनिधियों की नियुक्ति (Appointment of Trade Representatives)-भारत सरकार ने निर्यातों में वृद्धि करने के उद्देश्य से अपने 50 से भी अधिक दूतावास कार्यालयों में व्यापारिक प्रतिनिधियों की नियुक्ति की है। इन प्रतिनिधियों का कार्य उन देशों में सर्वेक्षण कर इस बात का पता लगाना है कि वहाँ भारत की किन वस्तुओं की माँग हो सकती है।

(16) निर्यात की प्राथमिकता क्षेत्र के रूप में मान्यता (Recognition of Export in Priority Sector)निर्यात करने वाली संस्थाओं को प्राथमिकता के आधार पर सरकार व रिजर्व बैंक द्वारा साख सुविधाएँ उपलब्ध की जाती हैं। उनसे कम दर से ब्याज ली जाती है। बैंक Pre-Shipment & Post-Shipment दोनों पर अग्रिम (Advance) प्रदान करती है। रिजर्व बैंक इस प्रकार के अग्रिम व ऋणों पर पुनर्वित्त सुविधाएँ प्रदान करता है। भारतीय औद्योगिक विकास बैंक भी निर्यात करने वालों को प्रत्यक्ष वित्तीय सुविधाएँ प्रदान करता है।

(17)विपणन विकास निधि (Market Development Fund)–भारत सरकार ने जुलाई 1963 में विपणन विकास निधि की स्थापना की है। इस निधि में से उन भारतीय उत्पादकों व निर्माताओं को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है जो विदेशों में भारतीय वस्तुओं के निर्यात के लिए प्रयत्न करते हैं।

(18) ग्रीन कार्ड (Green Card) सरकार ने शत-प्रतिशत निर्यात करने वाली संस्थाओं को ग्रीन कार्ड जारी किया है जिससे कि सरकार द्वारा उन्हें सभी मामलों में उच्च प्राथमिकता (Top Priority) दी जा सके और उनके कार्य में कोई रूकावट पैदा न हो।

(19) निर्यात सम्वर्द्धन बोर्ड (Export Promotion Board) देश में निर्यात को बढ़ावा देने के लिए केबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक उच्च अधिकार प्राप्त पर्याप्त निर्यात सम्वर्द्धन बोर्ड का गठन किया गया है। इस बोर्ड के सदस्य हैं—वाणिज्य, वित्त, कपड़ा, भूतल, परिवहन, उद्योग व इलेक्ट्रॉनिक विभाग के केन्द्रीय सरकार के सचिव।

(20) अन्य उपाय (Other Measures)–निर्यात वृद्धि के लिए कई उपाय किये गये हैं; जैसे—(i) निर्यात क्रिया शुल्क को सरल बनाना, (ii) निर्यात की जाने वाली वस्तुओं के लिए आयातों पर कम शुल्क लगाना या बिल्कुल न लगाना, (iii) कुछ वस्तुओं के लिए निर्यात लाइसेंस आवश्यक न होना,एवं (iv) निर्यात के लिए नकद सहायता (Cash Compensatory Support) देना, आदि।

Export Promotion Import Substitution

निर्यात वृद्धि या सम्वर्द्धन के मार्ग में बाधाएँ

(Obstacles in the Way of Export Promotion)

भारत ने स्वतन्त्रता-प्राप्ति के उपरान्त अपने निर्यात बढ़ाने का हर सम्भव प्रयास किया है, लेकिन फिर भी वांछित उपलब्धि प्राप्त नहीं हो सकी है और व्यापार सन्तुलन दो वर्षों को छोड़कर सदा ही भारत के विपरीत रहा है। भारत के निर्यात वृद्धि में निम्न बाधाएँ हैं जिन्हें दूर किया जाना आवश्यक है

(1) उच्च मूल्य-अधिकांश भारतीय वस्तुओं की उत्पादन लागत अधिक होने के कारण उनका विक्रय मल्य अधिक होता है जिससे वे अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में उचित स्थान प्राप्त नहीं कर पाती हैं। अतः भारत सरकार को कई वस्तुओं के निर्यात में हानि के लिए सहायता (Subsidy) देनी पड़ती है।

(2) वस्तुओं का निम्न स्तर–निर्यात की जाने वाली भारतीय वस्तुओं की क्वालिटी निम्न होती है जिससे उनको विदेशी प्रतिस्पर्धा में खड़े रहना कठिन हो जाता है। इसके दो मुख्य कारण हैं—धीमी गति से आधुनिकीकरण एवं तकनीकी ज्ञान का अभाव।

(3) प्रशुल्क नीतियाँ अनेक देशों ने भारतीय माल के आयात पर ऊँची दर से आयात शुल्क व आयात परिमाण (Import Quantity) सीमाएँ निर्धारित कर रखी हैं, जिसके फलस्वरूप भारतीय माल विदेशों में कम पहुँच पाता है। भारत में कुल निर्यात का लगभग दो-तिहाई माल इस प्रकार का है जिसे इन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

(4) स्थानापन्न वस्तुएँभारतीय निर्यात वृद्धि के प्रयासों में एक बाधा स्थानापन्न वस्तुओं की है। भारत के निर्यातों में जूट से बनी वस्तुएँ तथा सूती वस्त्र महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं, लेकिन इनकी स्थानापन्न वस्तुएँ आ जाने के कारण इनका निर्यात प्रभावित हो रहा है। जूट के बोरों का स्थान सूती व कागज के बोरे ले रहे हैं। सूती वस्त्रों का स्थान कृत्रिम रेशम के रस्त्र ले रहे हैं।

(5) विदेशी प्रतिस्पर्द्धा-भारतीय वस्तुओं की विदेशी बाजारों में कटु प्रतियोगिता है, जिसके कारण उनको वहाँ बेचने में कठिनाइयाँ पैदा हो रही हैं, जैसे-जूट की वस्तुओं में बांग्लादेश से प्रतियोगिता है, सूती वस्त्रों में जापान व चीन से, चाय में श्रीलंका व इण्डोनेशिया से।

(6) प्रचार की कमीभारतीय वस्तुओं के बारे में विदेशों में विज्ञापन एवं प्रचार बहुत ही कम है, जिसके फलस्वरूप निर्यात हमारी आशा के अनुरूप नहीं बढ़ पाये हैं।

(7) सीमित बाजार-भारत से निर्यात की जाने वाली वस्तुओं की मात्रा सीमित है तथा उनका बाजार भी सीमित है। यदि किसी प्रकार विदेशी बाजार में भारतीय वस्तु की माँग कम हो जाती है तो हमारे निर्यात स्वतः ही कम हो जाते हैं।

(8) भारतीय व्यापारियों की नीतियाँ-भारतीय व्यापारियों द्वारा अपनायी जाने वाली नीतियाँ भी निर्यात वद्धि में रुकावट पैदा करती हैं, जैसे—भारतीय व्यापारी नमूने के अनुरूप माल नहीं भेजते हैं, जिसके फलस्वरूप करोड़ों रुपयों का माल वापस नहीं लौट आता, बल्कि देश की प्रतिष्ठा में भी गिरावट आ जाती है।

भारत के निर्यात में परम्परागत निर्यातों का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। यदि इन वस्तुओं की माँग विदेशों में कम हो जाती है तो भारतीय निर्यात स्वतः ही प्रभावित हो जाते हैं।

Export Promotion Import Substitution

निर्यात वृद्धि के लिए सुझाव

(Suggestions for Export Promotion)

(1) निर्यात विपणन अनुसन्धानभारत सरकार, व्यापारिक संघों, भारतीय विदेशी व्यापार संस्थान आदि को विपणन अनुसन्धान करना चाहिए और इस बात का पता लगाना चाहिए कि विदेशों में किन-किन वस्तुओं की माँग है जिससे कि उस प्रकार की वस्तुओं का उत्पादन व निर्यात किया जा सके।

(2) व्यापक प्रचारभारत सरकार व व्यापारियों को विदेशों में भारतीय वस्तुओं का व्यापक विज्ञापन एवं प्रचार करना चाहिए जिससे कि वहाँ पर वस्तु की माँग उत्पन्न हो सके और उसको पूरा कर निर्यात को बढ़ाया जा सके।

(3) निर्यात वस्तुओं की किस्म एवं डिजाइन में सुधार-विदेशों में प्रतिस्पर्धा से मुकाबला करने के लिए भारतीय निर्माताओं को अपनी-अपनी वस्तुओं की किस्मों एवं डिजाइनों में सुधार करना चाहिए तथा किस्म नियन्त्रण (Quality Control) पर विशेष आँख रखनी चाहिए जिससे कि विदेशियों को अपनी आशाओं के अनुरूप वस्तु मिल सके। इससे निर्यात वृद्धि में सहायता मिलेगी।

(4) वस्तुओं की लागतों में कमी–निर्माताओं को वस्तुओं की लागत में कमी करनी चाहिए जिससे कि वस्तुएँ अन्तराष्ट्रीय लागतों पर तैयार हो सकें और प्रतियोगिता में सफलता प्राप्त कर सकें।

(5) निर्यात प्रोत्साहन व प्रेरणाएँभारत सरकार को निर्यात प्रोत्साहन के लिए और अधिक प्रेरणा देनी चाहिए इसके। लिए (i) सहायता (Subsidy), व (ii) आयात अधिकार (Import Entitlement) जैसे कारगर हथियारों का अधिकाधिक प्रयोग किया जा सकता है। सहायता से अर्थ निर्यात की रकम का एक निश्चित प्रतिशत निर्यातकर्ता को नकद देने से है। आयात अधिकार में निर्यातकर्ता को उसके द्वारा अर्जित विदेशी मुद्रा की मात्रा के एक निश्चित प्रतिशत के मूल्य की वस्तुओं के आयात। के लिए अनुमति दे दी जाती है।

(6) वित्तीय व अन्य सुविधाएँ यद्यपि निर्यात करने वाले उद्योगों को रिजर्व बैंक व अन्य वित्तीय संस्थाओं द्वारा वित्तीय सहायता दी जा रही है, लेकिन फिर भी इसमें गति लाने की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त इन उद्योगों को कच्चा माल व बिजली. आदि को भी प्राथमिकता के आधार पर उपलब्ध कराया जाना चाहिए जिससे कि वे नियमित उत्पादन कर सकें और निर्यात वृद्धि में अपना पूर्ण योग दे सकें।

(7) व्यापारिक समझौते-जिन देशों ने विदेशी माल के आयात पर प्रतिबन्ध लगा रखे हैं उन देशों से भारत को द्विपक्षीय या बहुपक्षीय समझौते करने चाहिए जिससे कि भारतीय माल वहाँ प्रवेश कर सके और कुल निर्यात बढ़ा सके।

Export Promotion Import Substitution

आयात-निर्यात नीति 2002-2007

(Import-Export Policy 2002-2007)

भारत सरकार ने 31 मार्च, 2002 को दसर्वी पंचवर्षीय योजना काल (2002-07) के लिए आयात-निर्यात नीति घोषित की है। इस नीति की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं

(1) निर्यात पर लगे मात्रात्मक प्रतिबन्धों में ढील-कुछ वस्तुओं को छोड़कर निर्यात पर लगे सभी मात्रात्मक प्रतिबन्ध हटा लिए गए हैं।

(2) कृषि निर्यात पर जोर-इस नीति के विभिन्न कार्य उत्पादों के निर्यात पर परिवहन सहायता देने के अतिरिक्त, उस पर लगे विभिन्न प्रकार के प्रतिबन्ध हटा लिए गए हैं। जैसे रूस को निर्यात किये जाने वाले मक्खन, गेहूँ व गेहूँ से बने पदार्थ, मोटे अनाज, मूंगफली का तेल तथा काजू पर पंजीकरण और पैकिंग का प्रतिबन्ध उठा लिया गया है।

(3) कुटीर एवं हस्तशिल्प को प्रोत्साहन—कुटीर एवं हस्तशिल्प को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से कुछ स्थानों पर स्थापित उद्योगों को विशेष रियायतें दी गई हैं; जैसे—तिरूपुर से हौजरी, पानीपत से ऊनी कम्बल और लुधियाना से बने हुए ऊनी कपड़ों के निर्यात को काफी प्रोत्साहन दिया गया है।

(4) इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर उद्योग—इस उद्योग को प्रोत्साहन देने के लिए इस नीति में प्रौद्योगिकी पार्क स्कीम को संशोधित किया गया है।

(5) भारतीय दूतावासों में व्यावसायिक केन्द्रों की स्थापना—इस नीति में कहा गया है कि सभी महत्त्वपूर्ण दूतावासों में व्यावसायिक केन्द्रों की स्थापना की जायेगी जिससे कि वे उस देश से विदेशी व्यापार बढ़ा सकें।

(6) विशेष आर्थिक क्षेत्रों (S.E.Z) की स्थापना विभिन्न राज्यों में विशेष आर्थिक क्षेत्र (Economic zones) स्थापित किए जायेंगे। जहाँ अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की सभी सुविधाएँ उपलब्ध होंगी और इनसे निर्यात किए गए माल पर कोई शुल्क नहीं लिया जायेगा। इस क्षेत्र में किसी वस्तु के आयात के लिए कोई लाइसेन्स लेना आवश्यक नहीं होगा। ऐसे कच्चे माल, पूँजीगत माल, स्पेयर पार्ट्स जो देश के भीतर से ही क्रय किए जायेंगे उन पर केन्द्रीय उत्पादन शुल्क नहीं लगेगा।

(7) अफ्रीकी क्षेत्रों पर जोर-इस नीति में अफ्रीकी क्षेत्रों को निर्यात बढ़ाने पर जोर दिया गया है। इसके लिए बनाए गए कार्यक्रम के प्रथम चरण में नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रीका, मॉरीशस, कीनिया, इथोपिया, तंजानिया और घाना सहित देशों में निर्यात बढ़ाने पर जोर दिया गया है। इन देशों में पाँच करोड़ रुपए तक का निर्यात करने वालों को एक्सपोर्ट हाउस का दर्जा दिया गया है।

(8) आभूषण उद्योग को प्रोत्साहनआभूषण उद्योग को प्रोत्साहन देने के लिए गैर तराशे गए हीरों पर सीमा शुल्क घटाकर शून्य कर दिया गया है तथा इनके लिए लाइसेन्स प्रणाली भी समाप्त कर दी गई है।

(9) अन्य प्रमुख विशेषताएँ–(i) बैंकों को विदेशी कारोबार शाखाएँ खोलने की अनुमति दी गई है। (ii) हस्तशिल्प क्षेत्र के निर्यात पर शुल्क समाप्त कर दिया गया है। (iii) जूट और प्याज को छोड़कर सभी कृषि योग्य बीजों के निर्यात पर लगी रोक समाप्त कर दी गई है। (iv) नए कारोबारियों को बिना जाँच व बैंक गारण्टी के लाइसेन्स प्रदान करने की व्यवस्था है।

Export Promotion Import Substitution

आयात-निर्यात नीति (2002-2007) के क्रियान्वयन होने पर जिन विशेषताओं की अपेक्षा सरकार ने की है वह निम्न हैं

1.पूँजीगत वस्तुओं की निर्यात प्रोत्साहन योजना (Export Promotion ofCapital Goods Scheme) में संशोधित किए गए। पूँजीगत वस्तुओं पर आयात शुल्क 15 प्रतिशत से कम करके 10 प्रतिशत कर दिया गया। इस योजना के अधीन 20 करोड़ रुपये या उससे अधिक के आयातों को बिना शुल्क दिए मंगवाने की अनुमति दी गई, परन्तु कुछ निर्यात-बाध्यता की शर्ते रखी गई। कृषि व सम्बद्ध क्षेत्रों के निर्यातों के लिए पूँजीगत वस्तुओं को 5 करोड़ रुपए तक बिना आयात शुल्क दिए मंगवाने की सुविधा प्रदान की गई। इससे आशा है कि कृषि क्षेत्र निर्यातों (Agro-exports) को प्रोत्साहन मिलेगा। इस योजना के अधीन सेवा-उद्योगों जैसे—अस्पताल, वायुयान द्वारा माल ढुलाई, होटल व अन्य पर्यटन सम्बन्धित सेवाओं को भी शून्य-शुल्क का लाभ दिया गया।

2. प्रतिबन्धित सूची (Restricted list) को काफी कम कर दिया गया। सरकार ने 542 मदों के आयात को प्रतिबन्धों से मुक्त कर दिया जिसमें 150 ऐसी मदें शामिल हैं जिनका आयात अब विशेष आयात लाइसेंसों के माध्यम से करने की अनुमति दी गई। 60 मदों को विशेष आयात लाइसेंसों की श्रेणी से हटाकर खुले सामान्य लाइसेन्स (Open General Licence) के वर्ग में रखा गया। 5 मदों पर पर्यावरण सुरक्षा, देश की सुरक्षा व्यवस्था, सार्वजनिक स्वास्थ्य तथा सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए प्रतिबन्ध लगाए गए।

3.  वैल्यू बेस्ड एडवांस लाइसेंस (Value-based Advance Licence) तथा पुरानी बुक योजनाओं के स्थान पर एक नई ड्यूटी एनटाइटलमैंट पास बुक (Duty Entitlement Pass Book) योजना शरू की गई जिसमें इन दोनों योजनाओं के अच्छे तत्त्वों का समावेश था और जिसे लागू करना प्रशासनिक रूप से अधिक आसान था।

4.स्वर्ण आभूषण व जवाहरात के निर्यातों को प्रोत्साहित करने के दृष्टिकोण से नई नीति में उन एजेंसियों में वृद्धि की गई जो स्वर्ण के भण्डार रख सकती हैं। एजेंसियों की संख्या में वृद्धि होने से निर्यातकों को स्वर्ण की आपूर्ति ज्यादा आसानी से और अधिक मात्रा में हो सकेगी जिससे आभूषण निर्माण में कोई व्यवधान नहीं होगा।

5.कृषि व सम्बद्ध क्षेत्रों में कर रही निर्यात उन्मुख इकाइयों तथा निर्यात प्रोसेसिंग क्षेत्रों के लिए घरेलू बिक्री की अनिवार्य शों में ढील दी गई। इन इकाइयों को वह छूट दी गई कि वे घरेलू प्रशुल्क क्षेत्र (Domestic tariff area) में अपने उत्पादन का 50 प्रतिशत तक बेच सकती हैं।

6. इस बात को ध्यान में रखते हुए कि नियमों और कार्यप्रणाली को सरल बनाने की आवश्यकता है, नई नीति में कार्यप्रणाली को पारदर्शी और कम विवेकाधीन (less discretionary) बनाने के प्रयास किए गए। उदाहरण के लिए, एडवांस लाइसेन्स के अधीन निर्यात बाध्यता और लाइसेन्स की वैधता की अवधि 12 महीने से बढ़ाकर 18 महीने कर दी गई।

7. नई नीति में सॉफ्टवेयर व हार्डवेयर निर्यातों को प्रोत्साहन देने के लिए कदम उठाए गए हैं। इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर उत्पादक अब केवल 50 प्रतिशत उत्पादन का निर्यात कर सकते हैं और 50 प्रतिशत उत्पादन की घरेलू क्षेत्र में बिक्री कर सकते हैं।

आयात-निर्यात नीति में परिवर्तन व संशोधन

(Revisions and Modifications in EXAM Policy)

31 मार्च, 2003 को वर्ष 2003-04 के लिए घोषित संशोधित निर्यात-आयात नीति में 12 प्रतिशत विकास दर के द्वारा 50 अरब डॉलर के निर्यात का लक्ष्य रखा गया। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए नीति में जहाँ निर्यात सम्वर्द्धन क्षेत्रों (ईपीजेड), विशेष आर्थिक (एसईजेड) योजना और शत प्रतिशत निर्यातोन्मुखी इकाइयों (ईओयू) को बड़े पैमाने पर रियायतें दी है वहीं वर्तमान निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं में डीईपीबी और ईपीसीजी के प्रावधानों को सरल बना दिया है। सेवा और कृषि क्षेत्र को प्राथमिकता देते हुए इनको कई तरह की सुविधाओं की घोषणा नीति में की गई है। इसके साथ ही मात्रात्मक प्रतिबन्ध समाप्त करने की विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की शर्तों का पालन करने के उद्देश्य से 69 उत्पादों को प्रतिबन्धात्मक सूची से बाहर कर दिया गया है। इनमें पशु उत्पाद, सब्जियाँ व मसाले, एण्टीबायोटिक और फिल्म शामिल हैं। वहीं निर्यात पर लगे प्रतिबन्धों मे छूट देते हुए बासमती को छोड़कर अन्य धान, काटन लिंट, रेयन, अर्थ, सिल्क ककन और कंडोम के अतिरिक्त दसरे फैमिली प्लानिंग उत्पादों के निर्यात पर लगी रोक को भी समाप्त कर दिया गया है। देशों पर निर्यात की निर्भरता को कम करने के उद्देश्य से स्वतन्त्र देशों के राष्ट्रकुल (सीआईएस) देशों को निर्यात का के लिए फोकस सीआईएस कार्यक्रम की शुरुआत की जा रही है। साथ ही रल, आभूषण, कपड़ा और केमिकल जैसेपर उत्पादों के निर्यात पर जोर जारी रहेगा।

निर्यात-आयात नीति की मुख्य बातें सेवा क्षेत्र निर्यात पर विशेष जोर। स्वास्थ्य चिकित्सा,मनोरंजन, पेशेवर सेवाओं एवं पर्यटन को प्रोत्साहन कृषि निर्यात को प्रोत्साहन देने के लिए निगमित निवेश पर बल। कृषि निर्यात क्षेत्रों को और सक्षम बनाया जायेगा। अधिक सम्भावना वाले कपड़ा, आटो कलपुर्जे,रत्न एवं आभूषण, औषधी तथा इलेक्ट्रॉनिक्स हार्डवेयर क्षेत्र पर विशेष ध्यान । पाँच वस्तुओं का निर्यात नियन्त्रण मुक्त। तेजी से विकास का दर्जा हासिल करने वालों को प्रोत्साहन। ईपीसीजी योजना और लचीली एवं आकर्षक की जाएगी। सीबीईसी तथा डीजीएफटी द्वारा पहली बार एक साथ अधिसूचना जारी । कारोबारी। लागत में कमी के लिए प्रक्रिया का सरलीकरण । दर्जाधारकों के लिए वार्षिक अग्रिम लाइसेंस की शुरूआत। निर्यात बाजारों का विविधीकरण करते हुए 1 अप्रैल, 2003 से नवराष्ट्रकुल देशों (सीआईएस) पर विशेष ध्यान। 24 देशों तक पहुँच के लिए अफ्रीका में निर्यात को विस्तार।

आयात-निर्यात नीतिएक नजर में

5 वर्षों की इस आयात-निर्यात नीति की प्रमुख विशेषताएँ हैं

(i) 2002-07 की अवधि में देश के वार्षिक निर्यात स्तर को 46 अरब डॉलर से बढ़ाकर 80 अरब डॉलर करने का लक्ष्य, इसके लिए निर्यातों में 11.9% प्रतिवर्ष की औसत वृद्धि का लक्ष्य।

(ii) इलेक्ट्रॉनिक हार्डवेयर तथा रत्नों एवं आभूषणों के निर्यात सम्वर्द्धन हेतु विशेष पैकेज।

(iii) विश्व व्यापार में भारत की हिस्सेदारी 0.67% के मौजूदा स्तर से बढ़ाकर 1.0% (2007) तक करने का लक्ष्य। ‘औद्योगिक क्लस्टर्स’ से निर्यात सम्वर्द्धन हेतु अतिरिक्त सुविधाएं।

(iv) विशेष आर्थिक क्षेत्रों में रियायतों में वृद्धि, ऐसे क्षेत्रों में समुद्रपारीय बैंकिंग (Overseas Banking) के तुल्य सुविधाएँ।

(v) एक्सपोर्ट प्रमोशन केपिटल गुड्स (EPCG) व ड्यूटी एंटाइटेलमेन्ट पासबुक योजनाएँ अधिक आकर्षक बनाई गई।

(vi) संवेदनशील उत्पादों के अतिरिक्त शेष सभी उत्पादों के निर्यातों पर से मात्रात्मक प्रतिबन्धों की समाप्ति।

(vii) निर्यात बाजार के विस्तार हेतु अफ्रीका पर फोकस।

(viii) प्रसंस्कृत फलों व सब्जियों, पोल्ट्री व डेयरी उत्पादों तथा गेहूँ व चावल उत्पादों को ट्रांसपोर्ट सब्सिडी।

(ix) काटेज सेक्टर व हैण्डीक्राफ्ट्स पर विशेष फोकस।

Export Promotion Import Substitution

आयात प्रतिस्थापन

(Import Substitution)

आयात प्रतिस्थापन का अर्थ यह है कि अब तक जिन वस्तुओं का विदेशों से आयात किया जा रहा है उनका उत्पादन देश में ही किया जाये। ऐसा करने से (i) व्यापार सन्तुलन में स्थायित्व आयेगा, (ii) आयात कम करने पड़ेंगे, (iii) विदेशों पर निर्भरता समाप्त हो जायेगी, एवं (iv) देश में बेरोजगारी कम होगी और औद्योगीकरण में वृद्धि होगी।

आयात प्रतिस्थापन को निम्नांकित दिशाओं में अपनाया जाना चाहिए

(i) आयातित कच्चे माल एवं संघटकों के उपभोग में कटौती करना।।

(ii) आयातित कच्चे माल, संघटकों, औजारों को देश में निर्मित अवयवों, औजारों, कच्चे माल से प्रतिस्थापित करना।

(iii) आयातित कच्चे माल और. संघटकों के स्थान पर किसी अन्य पदार्थ का प्रतिस्थापन करना।

(iv) प्रावस्थित निर्माण कार्यक्रमों में तेजी से भारतीयकरण को लाग करना।

आयात प्रतिस्थापन से व्यापार सन्तुलन कम होता है, आयात में कमी होती है, विदेशी निर्भरता समाप्त होती है एवं बेरोजगारी में कमी आती है। आयात प्रतिस्थापन मुख्य रूप से आयात नीति पर निर्भर होता है। वर्तमान में इस नीति का मार्गदर्शी सिद्धान्त विकास-प्रेरित नीति को बढ़ावा देना है, जिससे देश आत्मनिर्भरता के लक्ष्यों को प्राप्त कर सके। इस नीति के प्रमुख लक्षण निम्न हैं

(i) विदेशी मुद्रा को बचाने के लिए जहाँ तक सम्भव हो सके कम-से-कम आयात करना चाहिए

(ii) आयात का स्वरूप इस प्रकार बदलना चाहिए कि जिससे निर्यात प्रोत्साहन किया जा सके। इसका उद्देश्य प्रमुखतः भूगतान शेष की प्रतिकूल स्थिति को सुधारना है, एवं

(iii) ऐसी वस्तुओं आयात को बढ़ावा देना चाहिए, जिनसे अर्थव्यवस्था के औद्योगीकरण में सहायता मिले और। पी जान का आयात जो देश में ही उत्पन्न या उत्पादित की जा सकती हो, पूर्णतः बन्द कर देना चाहिए।

गत 52 वर्षों में भारत ने आयात प्रतिस्थापन के क्षेत्र में अत्यधिक प्रगति की है। 1950-51 से 2000-01 तक आयात प्रतिस्थापन में अपेक्षित सुधार ही हुआ है एवं तलनात्मक रूप से वर्ष 2001-02 में भी यह प्रगति आशा के अनुरूप हा ह जसा कि तालिका से स्पष्ट है

क्रम मद  

2000-01

 

2001-02
1.  

अनाज व अनाज के उत्पाद

 

90 87
2.  

रबड़

 

695 831
3.  

रसायन पदार्थ

 

1542 15,471
4.  

लौह इस्पात

 

3,5,69 3,975

 

वर्ष 2000-01 के दौरान कुल आयात 2.30,873 करोड़ रुपए व वर्ष 2001-02 में कुल आयात 2,45,199 करोड़ रुपए था। उपर्युक्त तालिका यह स्पष्ट करती है कि सभी क्षेत्रों में भारत ने प्रगति की है और आयात प्रतिस्थापन ने महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है।

प्रभावी आयात प्रतिस्थापन के लिए सुझाव

(Suggestions for Effective Import Substitution)

भविष्य में आयात प्रतिस्थापन को अधिक प्रभावी व सरल बनाने के लिए सुझाव दिए जा सकते हैं
1. सरकार व उद्योगों को अनुसंधान एवं विकास पर विशेष जोर देना चाहिए, इसके लिए कर लगाने की आवश्यकता हो तो सरकार को इसके लिए प्रभावी कदम उठाने चाहिए।

2. आयात प्रतिस्थापन के अनुसन्धानकर्ता को और अधिक प्रलोभन दिया जाना चाहिए ताकि इस ओर उनकी रुचि बनी रहे।

3. लाइसेंस प्रणाली को सरल बनाया जाना चाहिए, विशेष रूप से उन उद्योगों व क्षेत्रों में जहाँ विदेशी मुद्रा की कोई आवश्यकता नहीं है।

4. आयात प्रतिस्थापन की लागत में कमी करनी चाहिए।

भारत की प्रमुख आयात वस्तुएँ

(Major Import Items of India)

भारत की प्रमुख आयात संरचना को चार प्रमुख वर्गों में बाँटा गया है

(1) खाद्य उपभोग वस्तुएँ—अनाज और अनाज उत्पाद ।

(2) पूँजीगत वस्तुएँ—गैर विद्युतीय मशीनरी, विद्युतीय मशीनरी, परिवहन सम्बन्धी उपकरण।

(3) कच्चे पदार्थ और मध्यवर्ती विनिर्मित वस्तुएँ खाद्य तेल, पेट्रोलियम तेल और लुब्रिकेण्ट, उर्वरक और उर्वरक सामग्री, लोहा व इस्पात, रासायनिक तत्त्व, और मोती।

(4) अन्य अवर्गीकृत वस्तुयें।

भारत के प्रमुख निर्यात

(Major Export of India)

भारतीय निर्यात की जाने वाली वस्तुओं को प्रमुख रूप से चार वर्गों में बाँटा जा सकता है—

(1) कृषि व सम्बद्ध उत्पाद–चाय, काजूगिरी, चावल, मछली व मछली उत्पादन।

(2) विनिर्मित वस्तुएँ-सिले-सिलाए कपड़े, जूट, उत्पाद, चमड़ा व उससे निर्मित सामान, हस्तशिल्प, रत्न और आभूषण रसायन और सम्बद्ध उत्पाद, इंजीनियरिंग वस्तुएँ।

(3) अयस्क और खनिज (कोयले के अतिरिक्त) कच्चा लोहा।

(4) अन्य अवर्गीकृत वस्तुयें।

आयात नीति

(Import Policy)

स्वतन्त्रता-प्राप्ति से लेकर वर्तमान तक भारत की आयात नीति में परिस्थितिवश अत्यधिक उच्चावचन रहे। कभी यह नाति अत्यधिक उदार एवं उत्साहवर्द्धक रही तथा कभी अत्यधिक कठोर रही। परिणामस्वरूप आयात की मात्रा एवं उत्पादों में अप्रत्याशित परिवर्तन होते रहे। आयात नीति के मुख्य चरण निम्न हैं

(अ) आयात-प्रतिबन्ध (Import Restriction)—इस कठोर आयात प्रतिबन्धात्मक नीति की शुरुआत 1956-57 में हुई। जैसे-जैसे विदेशी मुद्रा का संकट गम्भीर होता गया सरकार और अधिक वस्तुओं पर आयात प्रतिबन्ध लगाती चली गई। यह आयात प्रतिबन्ध लगभग 1977-78 तक लागू रहे। आयातों को विभिन्न श्रेणियों में बाँटा गया__(1) पूर्णतया प्रतिबन्धित वस्तुएँ; (2) सरकारी एजेंसियों के माध्यम से आयात; एवं (3) खुले सामान्य लाइसेन्स के माध्यम से आयात आदि।

(ब) आयात उदारीकरण (Import Liberalisation)-1991 में आयात नीति में उदारीकरण का नया दौर शरू हुआ। बाद की आयात नीति सम्बन्धी घोषणाओं में आयातों को और उदार बनाया गया। सरकार की नई आयात नीति में मात्रात्मक प्रतिबन्धों को कम किया गया एवं सामान्य खुले लाइसेन्स (O.G.L.) सूची में पूँजीगत वस्तुओं और कच्चे माल की और मदों को शामिल करके, आयात उदारीकरण की प्रक्रिया में इन्हें प्राथमिकता दी गई है।

(स) आयात प्रतिस्थापन (Import Substitution)-भारत में आयात प्रतिस्थापन के मुख्य दो उद्देश्य ये थे—(1) विदेशी मुद्रा की बचत करना, एवं (ii) अधिकाधिक वस्तुओं के उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना। आयात प्रतिस्थापन नीति के परिणामस्वरूप आयातों की संरचना में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। कई मदें जिनका पहले आयात किया जाता था अब देश में ही बनाई जाने लगी हैं। इस नीति के परिणामस्वरूप देश कई औद्योगिक वस्तुओं—जैसे लोहा व इस्पात, वाहन, रेल के डिब्बे, मशीन टूल्स,डीजल इंजन, पावर ट्रांसफार्मर इत्यादि का उत्पादन करने लगा है तथा कई अन्य वस्तुओं के उत्पादन में तो आत्म-निर्भरता की स्थिति प्राप्त की जा चुकी है। वस्तुत: भारत में आयात प्रतिस्थापन की नीति अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल रही है। इसके परिणामस्वरूप न केवल आयातों की संरचना में व्यापक परिवर्तन हुए हैं, अपितु ‘छुपे हुए विकास सम्भाव्य’ को विकसित करने के लिए अनुकूल वातावरण पैदा करने में भी सहायता मिलती है।

निर्यात सम्वर्द्धन एवं आयात प्रतिस्थापन में उद्यमी की भूमिका

(Role of Entrepreneur in Export Promotion and Import Substitution)

देश की उन्नति एवं समुचित आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है कि अधिक-से-अधिक विदेशी मुद्रा अर्जित की जाये। विशेषतः विकासशील देशों के लिए विदेशी मुद्रा का अर्जन और अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है। इसके लिए सरकार द्वारा समय-समय पर अपनी नीतियों एवं योजनाओं को (निर्यात सम्वर्द्धन एवं आयात प्रतिस्थापन के सन्दर्भ में) और अधिक उदार बनाने का प्रयत्न किया जाता रहा है। भारतीय आयात-निर्यात व्यापार को बढ़ावा देने के लिए सरकार विभिन्न प्रेरणादायक योजनाओं के माध्यम से उद्योगपतियों को लगातार प्रोत्साहित करने का प्रयास करती रहती है। देश के समुचित आर्थिक विकास में उद्योगपति एवं उद्यमियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। आयात-निर्यात व्यापार में उद्यमी की भूमिका अग्रणीय (Leading) हो गई है। अनेक विकसित । देश अमेरिका, फ्रांस, जापान एवं जर्मनी इसके उदाहरण हैं कि राष्ट्रीय आर्थिक प्रगति के साथ-साथ विदेशी बाजारों में इन राष्ट्रो । के उद्यमियों द्वारा आधिपत्य सा हो गया है। अनेक विकासशील राष्ट्र आर्थिक समृद्धि के साथ-साथ अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में अपनी हिस्सेदारी अपने देश के उद्यमियों के कारण ही बढ़ाने में सक्षम हुए। भारतीय उद्यमियों में भी नव प्रवर्तन, अधिक जोखिम, उच्च । तकनीकी, घरेलू संसाधनों पर निर्भर उद्योगों की स्थापना कर स्वतन्त्रता के पश्चात् एक महत्त्वपूर्ण पहल की है। संक्षेप में। निर्यात सम्वर्द्धन एवं आयात प्रतिस्थापन में उद्यमी की भूमिका को निम्नांकित बिन्दुओं में वर्गीकृत करके इसे और अधिक स्पष्ट किया है

(1) निर्यात के लिए आयात (Import for Export)-ऐसे अनेक देश हैं जो अन्तर्राष्ट्रीय बाजार से आयात नहीं। कर पाते हैं अथवा उन्हें उन वस्तुओं की विस्तृत जानकारी नहीं होती है। कभी-कभी उन्हें आयात करने में विभिन्न कठिनाइयों। का सामना करना पड़ता है। इसलिए भारतीय उद्यमियों द्वारा ऐसे उत्पाद भी आयात किये जाते हैं जिनका तुरन्त अन्य देशों को। निर्यात कर दिया जाता है अथवा कुछ सुधार करने के पश्चात् उन उत्पादों का निर्यात कर दिया जाता है, जिससे देश केवल विदेशी । मुद्रा ही अर्जित नहीं करता अपितु व्यापारिक सम्बन्धों में भी सुधार होता है।

(2) अनुसंधान एवं विकास पर ध्यान (Attention on Research and Development) सामान्यत: यह माना। जाता है कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है। उसी तरह मनुष्य की आवश्यकताएँ एवं इच्छाएँ भी परिवर्तित होती रहती हैं। परिणामस्वरूप उन्हें नई-नई वस्तुओं एवं सेवाओं की आवश्यकता महसूस होती है। भारतीय उद्यमी इस बात को ध्यान में रखते हुए अनुसंधान एवं विकास पर समुचित ध्यान देते हैं तथा नई वस्तुओं के आविष्कार तथा पुरानी वस्तुओं के सुधार के बाद उनका निर्यात करते हैं जिससे अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में स्थायित्व प्राप्त होता है।

(3) उपलब्ध संसाधनों का समुचित विदोहन (Fair uses of Available Resources) उद्यमियों द्वारा देशों में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का समुचित विदोहन किया जाता है। कहा जाता है कि भारत प्राकृतिक संसाधनों की दृष्टि से सबसे अमीर देश है। देश में विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक संसाधनों का भण्डार है। उद्यमियों द्वारा इन संसाधनों को खोजकर एक परिवर्तित स्वरूप प्रदान किया जाता है तथा तत्पश्चात् इन्हें अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में निर्यात किया जाता है। जिसके फलस्वरूप देश को विदेशी मुद्रा अर्जित होती है तथा देश को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में ख्याति प्राप्त होती है।

(4) कटीर उद्योगों के उत्पादों का निर्यात (Export of Small Scale Industry Product) भारतीय उद्यमियों द्वारा देश के विभिन्न भागों में स्थित लघु एवं कुटीर उद्योगों के उत्पादों को एकत्रित करके तथा अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में उनका उचित प्रचार-प्रसार करके, उनके स्वरूप को आधुनिकता का लिबास पहनाकर उन्हें अन्य देशों को निर्यात किया जाता है। जिससे न केवल विदेशी मुद्रा अर्जित होती है बल्कि लघु एवं कुटीर उद्योगों को समुचित प्रोत्साहन एवं लाभ भी मिलता है।

(5) हस्तकला उद्योग (Handicrafts Industries) उद्यमी बँकि लघ एवं कटीर उद्योगों के उत्पादों पर विशेष ध्यान देते हैं, इसलिए भारतीय संस्कृति के प्राचीन रल हस्तकला एवं शिल्पकला के उत्पादों को संग्रहीत कर उद्यमी इनको अन्तर्राष्ट्रीय बाजार तक पहुँचाने का भी कार्य करते हैं। जिससे न केवल देश को विदेशी मुद्रा अर्जित होती है बल्कि भावी व्यापार के लिए रास्ते भी सुलभ होते हैं।

(6) घरेलू प्रौद्योगिकी का अधिक प्रयोग (Maximum use of Domestic Technology) विदेशी उत्पादों की निर्भरता एवं विदेशी मुद्रा की बचत करने के लिए आवश्यक है कि आयातों में कमी की जाये। इसलिए भारतीय उद्यमियों द्वारा अधिकांशतः भारतीय अथवा घरेलू प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया जाता है। जिसके परिणामस्वरूप वस्तुओं की लागत में कमी आती है।

(7) लागत नियन्त्रण के उपाय (Solution for Cost Control)-वर्तमान तीव्रतम प्रतिस्पर्धा के दौर में गुणवत्ता को प्रथम स्थान दिया जाता है, लेकिन वस्तुओं की कीमत भी महत्त्वपूर्ण घटक है। ऐसी स्थितियों में प्रत्येक व्यवसायी यह कोशिश करता है कि उसकी उत्पाद की लागत न्यूनतमहो। इसके लिए भारतीय उद्यमी सदैव प्रयत्नशील रहते हैं। जिसके परिणामस्वरूप निर्यात की मात्रा में वृद्धि होती है तथा नये व्यावसायिक अवसरों की खोज में सहायता मिलती है।

(8) मानव संसाधन आधारित उत्पादों का निर्माण (Manufacturing of Human Resources Basis Product) भारत में मानव संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं तथा अन्य देशों की तुलना में श्रम की लागत न्यूनतम आती है। इसलिए भारतीय उद्यमियों द्वारा मुख्यतः ऐसे उत्पादकों का अधिक निर्माण किया जाता है जो कि मानव श्रम पर आधारित होते हैं। जिसके परिणामस्वरूप उत्पाद की लागत न्यूनतम आती है तथा मानव संसाधन का उपयोग एवं विकास होता है। निर्यात सम्वर्द्धन में प्रोत्साहन मिलता है।

(9) स्वनिर्मित उत्पादों का प्रचार-प्रसार (Advertisement of Self-Produce Product) आयात की मात्रा में कमी करने के लिए तथा स्वदेशी वस्तुओं के निर्यात के लिए उद्यमियों द्वारा स्वनिर्मित उत्पादों के प्रचार-प्रसार पर अधिक बल दिया जाता है क्योंकि देश के आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है कि विदेशी उत्पादों पर निर्भरता में कमी की जाये। भारतीय उद्यमी इस प्रयास में काफी हद तक सफल भी हुए हैं।

(10) गुणवत्ता वृद्धि कर निर्यात सम्वर्द्धन (Export Promotion after Quality Improvement)-प्राचीन समय में वस्तुओं एवं उत्पादों की कीमत पर विशेष ध्यान दिया जाता था। परन्तु समय परिवर्तन के साथ-साथ यह अवधारणा भी परिवर्तित हो गई। वर्तमान समय में कीमत को मूल्यांकन के दौर में द्वितीय स्थान प्रदान किया जाता है, जबकि गुणवत्ता को प्रथम। इस बदलते परिवेश का भारतीय उद्यमियों ने समुचित लाभ उठाया तथा अपनी वस्तुओं एवं सेवाओं में गुणवत्ता की वृद्धि करके तथा कीमतों को निम्न करके निर्यात सम्वर्द्धन को पूर्ण सहयोग प्रदान किया।

(11) नवप्रवर्तन पर आधारित उच्च तकनीक वाले उत्पादों का निर्यात (Export of High Technique Product Basis of Innovation) वर्तमान में भारतीय उद्योगपतियों एवं उद्यमियों द्वारा केवल परम्परागत ढंग से ही उत्पादन नहीं किया जाता है बल्कि आमिर नकता के इस दौर में उच्च तकनीक का प्रयोग किया जाता है। जैसे—कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर आदि। ऐसी तकनीक वाले उत्पादों का आर अधिक नव प्रवर्तन आधारित सधार किया जाता है तथा उनका निर्यात किया जाता है। जिला देश के आर्थिक विकास को गति प्राप्त होती है।

उपयोगी प्रश्न (Useful Questions)

दीर्ध उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

1 निर्यात सम्वर्द्धन से आप क्या समझते हैं ? इसकी भारत में क्या आवश्यकता है ?

What do you mean by Export Promotion? What is the need of export promotion in India?

2. निर्यात सम्बर्द्धन के लिए सरकारी प्रयासों का वर्णन कीजिए।

Discuss the government efforts for Export Promotion.

3. निर्यात सम्वर्द्धन के क्या उद्देश्य हैं ? निर्यात वृद्धि के लिए सुझाव दीजिए।What are the objectives of Exprot Promotion ? Give suggestions for Export Promotion.

4. आयात-निर्यात नीति 2002-07 पर एक लेख लिखें।

Write a note on Import-Export Policy–2002-07.

5.नियात सम्वर्द्धन तथा आयात प्रतिस्थापन में उद्यमी के योगदान का वर्णन कीजिए।

Describe the role of entrepreneur in export promotion and import substitution.

6. आयात प्रतिस्थापन का क्या अर्थ है ? प्रभावी आयात प्रतिस्थापन के लिए सुझाव दीजिए।

What do you mean by Import Substitution? Give suggestions for an effective import promotion.

7. निम्न को समझाइये

Explain the following

(अ) आयात नीति

Import Policy

(ब) आयात प्रतिस्थापन

Import Substitution

8. निम्न पर टिप्पणी लिखें

Write note on

() भारत की प्रमुख आयात वस्तुएँ

Major Import Items of India.

(ब) भारत की प्रमुख निर्यात वस्तुएँ

Main Export Items of India.

Export Promotion Import Substitution

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

1. निर्यात सम्वर्द्धन के क्या उद्देश्य हैं?

What are the objectives of export promotion?

2. निर्यात सम्वर्द्धन के मार्ग में क्या बाधायें है?

What are the obstacles in the way of export promotion?

3. प्रभावी आयात प्रतिस्थापन के लिए आप क्या सुझाव देंगे ?

What suggestions you will give for effective import substitution?

4. निर्यात वृद्धि के लिए आप क्या सुझाव देंगे ?

What suggestion you will give for export promotion?

5. भारत में आयात प्रतिस्थापन के क्या उद्देश्य थे?

What was the Objectives of import substitution in India?

III. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

1 निर्यात सम्वर्द्धन का क्या अर्थ है ?

What do you mean by export promotion?

2. आयात प्रतिस्थापन किसे कहते हैं?

What do you mean by import substitution?

3. भारत की प्रमुख आयात वस्तुएँ कौन-कौन सी हैं ?

What are the major import items of India?

4. भारत की प्रमुख निर्यात वस्तुएँ कौन-कौन सी हैं ?

What are the major export items of India?

निर्यात सम्वर्द्धन एवं आयात प्रतिस्थापन

Export Promotion Import Substitution

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)  

(i) उद्यमी सहायता करते हैं

(अ) निर्यात में कमी

(ब) आयात में वृद्धि

(स) आयात प्रतिस्थापन

(द) निर्यात प्रतिस्थापन।

Entrepreneur help in

(a) Export reduction

(b) Increasing exports

(c) Import substitution

(d) Export substitution.

(ii) उद्यमी का अधिकतम योगदान है
(अ) आर्थिक विकास में

(ब) आयात प्रतिस्थापन में

(स) निर्यात प्रतिस्थापन में

(द) इनमें से कोई नहीं।

Maximum role of an entrepreneur is

(a) In economic development

(b) In import substitution

(c) In export substitution

(d) None of These

(iii) निम्न में से आयात नीति के मुख्य चरण कौन-सा है ?

(अ) आयात प्रतिबन्ध

(ब) आयात उदारीकरण

(स) आयात प्रतिस्थापन

(द) उपर्युक्त सभी।

Which of the following is the main phase of import policy?

(a) Import restrictions

(b) Import liberalization

(c) Import substitution

(d) All of the above

[उत्तर-(i) (स), (ii) (अ), (iii) (द)।]

2. इंगित कीजिए कि निम्नलिखित कथन ‘सही’ हैं या ‘गलत’

(Indicate Whether the Following Statements are “True’ or ‘False’)

(i) निर्यात सम्वर्द्धन में उद्यमी की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

There is key role of entrepreneur in export promotion.

(ii) उद्यमी बेरोजगारी की संख्या में वृद्धि करता है।

Entrepreneur increases the number of unemployed.

(iii) आयात प्रतिस्थापन में उद्यमी की कोई भूमिका नहीं है।

There is no role of entrepreneur in import substitution.

(iv) उद्यमी नवाचारक है।

An entrepreneur is an innovator.

(v) उद्यमी आयात प्रतिस्थापन में सहायता करता है।

Entrepreneur helps in import substituition.

(vi) उद्यमी आयातों में वृद्धि करता है।

Entrepreneur increases imports.

[उत्तर-(i) सही, (ii) गलत, (iii) गलत, (iv) सही, (v) सही, (vi) गलत।]

Export Promotion Import Substitution

chetansati

Admin

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