BCom 2nd Year Entrepreneur External Environmental Analysis Study Material notes In Hindi

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BCom 2nd Year Entrepreneur External Environmental Analysis Study Material notes In Hindi

Table of Contents

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External Environmental Analysis
External Environmental Analysis

BCom 3rd Year Corporate Accounting Underwriting Study Material Notes in Hindi

बाह्य पर्यावरणीय विश्लेषण

(External Environmental Analysis)

“व्यावसायिक पर्यावरण का एक ऐसा पक्ष जो उद्यमी के नियन्त्रण में नहीं है, बाह्य पर्यावरण कहलाता है।”

शीर्षक

  • उद्यमी का पर्यावरण से सम्बन्ध (Relation of Entrepreneur with Environment)
  • पर्यावरण का अर्थ (Meaning of Environment) > पर्यावरण के प्रकार (Types of Environment)
  • बाह्य पर्यावरणीय विश्लेषण (External Environmental Analysis)
  • वातावरण की जाँच तकनीकें (Techniques of Environment Scanning)
  • बाह्य पर्यावरणीय विश्लेषण की तकनीकें (Techniques of External Environmental Analysis)
  • स्वोट विश्लेषण के आधारभूत तत्व (Basic Elements of SWOT Analysis)
  • पर्यावरणीय चुनौतियों तथा अवसरों की पाश्विका (Profile of Environmental Threats and Opportunities)

External Environmental Analysis Study

व्यावसायिक पर्यावरण/वातावरण से तात्पर्य उन बाह्य शक्तियों एवं दशाओं से है, जो कि व्यवसाय को प्रभावित करती हैं। ये शक्तियाँ विशिष्ट एवं सामान्य हो सकती हैं। विशिष्ट शक्तियाँ ग्राहकों, लेनदारों एवं ऋणदाताओं से हैं, जो कि प्रत्यक्ष रूप से व्यापार के संचालन को प्रभावित करती हैं, जबकि सामान्य शक्तियाँ जिनमें सरकारी नीतियाँ, अन्य प्रतियोगी फर्मों की गतिविधियाँ एवं तकनीकी परिवर्तन आते हैं, जो व्यवसाय को प्रभावित करते हैं।

व्यवसाय तथा समाज दोनों एकदूसरे के अभिन्न अंग हैं। व्यावसायिक क्रियायें समाज के परिवेश में ही सम्पन्न की जाती हैं, कि मनुष्यविहीन स्थिति में व्यवसाय को समाज से ही अपनी जरूरत की चीजें प्राप्त होती हैं, जिनसे समाज की आवश्यकताओं को पूरा किया जाता है। व्यावसायिक वातावरण से हमारा आशय देश के अन्तर्गत व्यवसाय के फलनेफूलने के अवसर से है। देश के व्यावसायिक वातावरण पर आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक स्थिरता का प्रभाव पड़ता है। यदि किसी देश में आर्थिक स्थिरता होती है तो व्यावसायिक वातावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसी प्रकार राजनीतिक स्थिरता का भी व्यावसायिक वातावरण पर सीधा प्रभाव पड़ता है। व्यवसाय एक आर्थिक क्रिया ही नहीं, अपितु एक सामाजिक क्रिया भी है। इसीलिए यह अपने सामाजिक परिवेश के अनुकूल ही चलाई जाती है। व्यावसायिक वातावरण सामाजिक मूल्य व मान्यताओं, संस्कृति, धार्मिक आस्था व शैक्षणिक व्यवस्था से भी प्रभावित होता है।

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उद्यमी का पर्यावरण से सम्बन्ध

(Relation of Entrepreneur with Environment)

हमारे आस-पास जो भी चीजें हैं, जैसे—वायु, जल, धरातल, जलवायु ये सभी पर्यावरण की देन हैं। एक उद्यमी पर्यावरण में ही पैदा होती है, उसी में जीवित रहता है, पनपता है और अन्त में उसी में उसका अन्त हो जाता है। यही कारण है कि उद्यमी -धीरे पर्यावरण से सामंजस्य स्थापित कर लेता है। अतएव यह कहा जाता है कि एक उद्यमी पर्यावरण की ही देन है। अपने। अस्तित्व को बनाये रखने के लिये वह पर्यावरण के साथ कदम से कदम मिलाकर चलता है। उद्यमी को स्वयं पर्यावरण के। अनुकूल बनना होता है, क्योंकि वह स्वयं इसको प्रभावित करने की स्थिति में अपने आप को नहीं पाता है। इस कारण जैसेजैसे उद्यमी पर्यावरण में पनपता है, वैसे-वैसे वह उसी के अनुरूप होता जाता है। इसके अभाव में उसका जीवन विभिन्न कठिनाइयों एवं अभावों में घिरा रहता है। पर्यावरण के अनुरूप चलने वाले उद्यमी फलते-फूलते हैं तथा इसके विपरीत चलने वाले “द्यमी धीरे-धीरे नष्ट होते जाते हैं। अत: उद्यमी को वही करना चहिए जिसकी अनुमति पर्यावरण दे। संसार के विभिन्न हिस्सों में उगमी के जो रूप देखने को मिलते हैं, वे मात्र संयोग नहीं वरन पर्यावरण का ही परिणाम हैं। अत: कहा जा सकता है कि, “किसी उद्यमी की सफलता उसके पर्यावरण से सामंजस्य पर निर्भर करती है।”क्या उत्पादन करना है, उत्पादन के किन साधनों का प्रयोग करना है, केसे उत्पादन करना है, कितना उत्पादन करना है, कहाँ व केसे उत्पाद का विक्रय करना है आदि पर लिये जाने वाले निर्णयों पर पर्यावरण का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है।

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पर्यावरण का अर्थ

(Meaning of Environment)

मनुष्य जिस देश, काल तथा परिस्थिति में जन्म लेता है और जीवनयापन करता है, वहा पर्यावरण कहलाता है।

आर. एफ. डॉबनमॉयर के अनुसार, “पर्यावरण का शाब्दिक अर्थ निकटवर्ती दशाओं से है।” इसी प्रकार वैब्स्टर शब्दकोश में बताया गया है कि “पर्यावरण से आशय उन घेरे रहने वाली परिस्थितियों, प्रभावों और शक्तियों से है, जो सामाजिक और सांस्कृतिक दशाओं के समूह द्वारा व्यक्तियों अथवा समुदाय के जीवन को प्रभावित करती हैं।”1 संक्षेप में, निकटवर्ती परिस्थितियों को पर्यावरण का नाम दिया जाता है। ये परिस्थितियाँ प्रकृतिदत्त अथवा मनुष्यदत्त हो सकती हैं। पर्यावरण अपने कारकों या तत्वों को प्रभावित करता है और साथ ही स्वयं भी उनसे प्रभावित होता है।

व्यवसाय तंत्र का पर्यावरण/वातावरण (Environment of Business System)– व्यवसाय तन्त्र समाज का एक अंग है। समाज आर्थिक और अनार्थिक पर्यावरण का मिश्रण है। आर्थिक पर्यावरण में औद्योगिक, व्यापार, वित्त आदि से सम्बन्धित नीतियाँ एवं संस्थायें आती हैं। अनार्थिक पर्यावरण सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक तत्त्वों का सम्मिश्रण हैं। आर्थिक पर्यावरण व्यवसाय तत्त्व को प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित करता है और अनार्थिक पर्यावरण आर्थिक पर्यावरण को प्रभावित करता है जिसका परोक्ष प्रभाव व्यवसाय पर पड़ता है। इस प्रकार हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि व्यवसाय तन्त्र पर्यावरण की देन है।

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पर्यावरण के प्रकार

(Types of Environment)

पर्यावरण निम्नलिखित दो प्रकार का होता है

(1) आन्तरिक पर्यावरण (Internal Environment)

(2) बाह्य पर्यावरण (External Environment)।

(1) आन्तरिक पर्यावरण (Internal Environment)-आन्तरिक पर्यावरण से आशय उन घटकों से है जिन पर उद्यमी का नियन्त्रण होता है। इसे संगठन के संसाधन भी कहते हैं, जैसे-भूमि, यन्त्र, उत्पादन, भवन, पूँजी, श्रम, संगठनात्मक ढाँचा आदि।

(2) बाहा पर्यावरण (External Environment)-बाह्य पर्यावरण से आशय उन घटकों से है जिन पर उद्यमी का कोई नियन्त्रण नहीं होता है, जैसे—आर्थिक, सामाजिक, तकनीकी, प्रतियोगी, पूर्तिकर्ता, ग्राहक, बाजार आदि।

बाह्य पर्यावरणीय विश्लेषण

(External Environment Analysis)

बाह्य पर्यावरणीय विश्लेषण का अर्थ (Meaning of External Environmental Analysis) पर्यावरणीय विश्लेषण एक व्यवस्थित प्रक्रिया है, जिसके अन्तर्गत एक विश्लेषणकर्ता किसी व्यावसायिक संगठन के भावी विकास को प्रभावित करने वाले बाह्रा घटंकों विश्लेषण करता है, जैसे आर्थिक घटक,सामाजिक घटक तकनीकी घटक.राजनीति घटक, बाजार घटक, पूतिकर्ता आदि। बाह्य पर्यावरणीय विश्लेषण के अर्न्तगत एक विश्लेषणकर्त्ता उपर्युक्त घटकों में सूचनाओं एवं आँकड़ों का संकलन करता है, मूल्यांकन करता है एवं उनका विश्लेषण करता है। इसी के आधार पलक्ष्या, उद्दश्या एव व्यावसायिक व्यूहरचनाओं में आवश्यक संशोधन किये जाते हैं।

निष्कष रूप में कहा जा सकता है कि “बाहा पर्यावरणीय विश्लेषण एक प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत व्यावसायिक संगठन को प्रभावित करने वाले बाहा घटकों का विश्लेषण किया जाता है। उन घटकों पर उमा का नियन्त्रण महास है और ये घटक उद्यमी के निर्णय को प्रभावित करते हैं।”

बाह्य पर्यावरणीय विश्लेषणको प्रभावित करने वाले घटक (Factors affecting External Environment Analysis)—एक उद्यमी को व्यवसाय के संचालन में विभिन्न बाह्य पर्यावरणीय घटकों का सामना करना पड़ता है। उनमें प्रमुख बाह्य पर्यावरणीय घटक निम्नलिखित हैं

  • आर्थिक घटक (Economic Factors)
  • सामाजिक घटक (Social Factors)
  • तकनीकी अथवा प्रौद्योगिकी घटक (Technological Factors)
  • प्रतियोगी घटक (Competitive Factors)
  • राजनीतिक घटक (Poltical Factors)
  • आपूर्तिकर्ता घटक (Supplier Factors)
  • ग्राहक घटक (Customer Factors)

 (I) आर्थिक घटक (Economic Factors)

व्यवसाय एक आर्थिक क्रिया है अतएव इस पर आर्थिक घटकों का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। व्यापार तथा उद्योग के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा अपनायी गई उदारीकरण, विश्वव्यापीकरण एवं निजीकरण की नीति के अच्छे परिणाम हमारे सामने आ रहे हैं। व्यवसाय के आर्थिक पर्यावरण को प्रभावित करने वाले प्रमुख आर्थिक घटक निम्नलिखित हैं।

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1 आर्थिक विकास का स्तर

(Stage of Economic Development)

2 आर्थिक नीतियाँ

(Economic Policies)

3.आर्थिक प्रणाली (Economic System)

(अ) पूँजीवादी अर्थव्यवस्था

या अवस्था (Capitalist Economy)

(ब) साम्यवादी समाजवादी अर्थव्यवस्था (स) मिश्रित अर्थव्यवस्था

(Communist or Socialist (Mixed Economy) Economy)

(1) आर्थिकविकासका स्तर या अवस्था (Stage of Economic Development) आर्थिक विकास की अवस्था मानीय अथवा घरेलू बाजार का आकार निर्धारित करती है तथा व्यवसाय को प्रभावित करती है। विकास के स्तर के आधार विश्व की अर्थव्यवस्था, अविकसित, विकसित एवं विकासशील अर्थव्यवस्था में विभक्त हो गई है। अमेरिका, कनाडा, फांस. इटली, जर्मनी, ब्रिटेन तथा जापान इत्यादि देशों की अर्थव्यवस्था विकसित मानी जाती है तथा एशियाई, अफ्रीकी लैटिन अमेरिकी देशों की अर्थव्यवस्था विकासशील मानी जाती है अर्थात यहाँ अभी विकास हो रहा है तथा सभी नागरिका। को जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति अभी नहीं हो पा रही है।

विकासशील देशों में वस्तु की कम माँग का मख्य कारण अल्प आय है। चूँकि विक्रय तथा माँग आय की लोच पर आधारित। होते हैं, आय की वृद्धि के साथ माँग बढ़ती है, परन्त वस्त की माँग में वद्धि करने के लिए क्रेता की क्रय-शक्ति में वृद्धि करने में फर्म असमर्थ होती है। अत: फर्म लागत व्यय में कमी करके विक्रय मल्य को नीचे स्तर पर रखने का प्रयत्न करती हैं। यहाँ तक कि नई खोज एव अनुसंधान द्वारा कम लागत पर वस्त कम आय वाले बाजार (Low Income Market) कलिए तयार। किया जाता है। उदाहरणार्थ, प्रसिद्ध कम्पनी कोलगेट ने कम आय बाजार के लिए (विकासशील एवं अविकसित राष्ट्रों) कम मूल्य क़ी कपड़े धोने की मशीन का निर्माण किया है इसी प्रकार नेशनल केश रजिस्टर ने ऐसे रजिस्टर का उत्पादन किया है, जो आधुनिक रजिस्टर के मूल्य के लगभग आधे मल्य से कम पर विकासशील देशों के बाजारों में विक्रय किया जाता है। ऐसे देशो में जहाँ विनियोग एवं आय के स्तरों में निरन्तर वद्धि होती है, वहाँ व्यवसाय और विनियोग की सम्भावनाएँ अधिक अवश्य होती हैं, परन्तु अर्थशास्त्रियों व व्यवसायियों के बीच अब यह धारणा सदढ होती जा रही है कि विकसित देश विनियोग के दृष्टिकोण से अधिक उपयुक्त नहीं हैं क्योंकि वहाँ की अर्थव्यवस्था विकास के अधिकतम बिन्दु (Saturation Point) तक पहुंच चुकी है। अत: आर्थिक विकास की अवस्था व्यवसाय की प्रकृति, पैमाने आदि को प्रभावित करती है।

(2) आथिक नातिया (Economic Policies) आर्थिक नीति वह सरकारी नीति होती है जो किसी देश की समस्त आर्थिक गतिविधियों के निर्देशन, नियन्त्रण तथा नियमन से सम्बन्ध रखती है। चूँकि ‘अर्थव्यवस्था’ शब्द के अन्तर्गत बहुत सारी बातें समाहित होती हैं, अतः आर्थिक नीति भी किसी एक नीति का नाम नहीं होता है, बल्कि औद्योगिक, व्यापारिक, मौद्रिक, राजकोषीय, साख, कीमत, कृषि तथा श्रम इत्यादि क्षेत्रों से जुड़ी विशिष्ट सरकारी नीतियाँ, एकीकृत स्वरूप में आर्थिक नीति के नाम से सम्बोधित की जाती हैं।

सरकार की आर्थिक नीति का प्रभाव व्यवसाय पर अधिक एवं प्रत्यक्ष रूप में पड़ता है। विशेष प्रकार के व्यवसाय पर आर्थिक नीति का अनुकूल प्रभाव पड़ता है, किसी व्यवसाय पर प्रतिकूल और अन्य व्यवसायों पर यह प्रभाव तटस्थ (Neutral) होता है। अर्थिक नीतियों के प्रमुख उपकरण निम्नलिखित हैं

  • औद्योगिक नीति (Industrial Policy)
  • राजकोषीय नीति (Fiscal Policy)
  • मौद्रिक नीति (Monetary Policy)
  • व्यापार नीति (Trade Policy)

(3) आर्थिक प्रणाली (Economic System)—किसी देश की आर्थिक प्रणाली व्यवसाय के आर्थिक पर्यावरण को प्रभावी ढंग से प्रभावित करती है। किसी देश की आर्थिक प्रणाली निम्न प्रकार की हो सकती है

() पूँजीवादी अर्थव्यवस्था (Capitalist Economy)—पूँजीवादी अर्थव्यवस्था प्रणाली से आशय उस प्रणाली से है, जिसमें उत्पादन के सभी साधनों पर निजी स्वामित्व का एकाधिकार होता है। सरकार केवल आन्तरिक व बाहरी सरक्षा का कार्य करती है। सभी आर्थिक क्रियाओं का संचालन एवं नियमन पूँजीपतियों द्वारा ही किया जाता है। क्या उत्पादन किया जाये? कितनी मात्रा में उत्पादन किया जाये?, केसे उत्पादन किया जाये?, उत्पादों का वितरण किस प्रकार किया जाये? ये सभी निर्णय पुँजीपति स्वयं लेते हैं। इसे ‘स्वतन्त्र अर्थव्यवस्था’ अथवा ‘बाजारोन्मुखी अर्थव्यवस्था’ भी कहा जाता है। पँजीवादी अर्थव्यवस्था अमरीका, जापान, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, इटली एवं कनाडा आदि देशों में पायी जाती है।

() साम्यवादी एवं समाजवादी अर्थव्यवस्था (Communist and Socialist Economy)-इन दोनों प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं में उत्पादन के साधनों पर सार्वजनिक क्षेत्र का स्वामित्व एवं एकाधिकार होता है। सभी आणि निर्णय किसी केन्द्रीय सत्ता द्वारा लिये जाते हैं। साम्यवादी एवं समाजवादी अर्थव्यवस्था मुख्य रूप में रूस, चीन क्यबा हंगरी पोलैण्ड, उत्तरी कारिया, वियतनाम, रोमानिया, चैक, स्लोवाकिया गणराज्य, बुल्गारिया आदि देशों में पायी जाती थी।

() मिश्रित अर्थव्यवस्था (Mixed Economy)-मिश्रित अर्थव्यवस्था वाली आर्थिक प्रणाली से आशय उस आथिका प्रणाली से है जिसमें उत्पादन के संसाधनों पर निजी क्षेत्र तथा सार्वजनिक क्षेत्र दोनों का अधिकार होता है। ए. एच. हेन्सन ने मिश्रित अर्थव्यवस्था को दहरी (Dual Economy) अर्थव्यवस्था का नाम दिया है। दो की स्थिति पायी जाता। है। कुछ कीमतें माँग और पूर्ति के आधार पर बाजार शक्तियों द्वारा तय की जाती हैं तो नियन्त्रण रखती है। मिश्रित अर्थव्यवस्था भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, स्वीडन, नार्वे ऑस्टिया तथा डजरायल आदि दशो   में पायी जाती है।

External Environmental Analysis Study

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(II) सामाजिक घटक (Social Factors)

बाहरी पर्यावरण को सामाजिक घटक भी प्रभावी ढंग से प्रभावित करते हैं। सामाजिक मूल्य, शिक्षा का स्तर, जनसंख्या का आकार, जनसंख्या का लिंग-अनुपात, पारिवारिक रीति-रिवाज, परम्पराएँ मान्यताएँ, रुचियाँ, प्राथमिकताएँ, व्यय करने की आदते, शहरीकरण की गति, उपभोग की आदतें आदि ऐसे घटक हैं जो बाहरी पर्यावरण को प्रभावित करते हैं। इनकी उपेक्षा किये जाने के भयंकर दुष्परिणाम होते हैं। अत: एक व्यवसाय की रणनीति ऐसी होनी चाहिए जो इस सामाजिक पर्यावरण से मेल खाये। इसके अनुरूप ही विपणन व्यवस्था की जाती है।

उत्पाद का रंग भी लोगों के विश्वास, राजनीतिक मूल्यों तथा विभिन्न संस्कृतियों के साथ जुड़ा होता है। नीला रंग हॉलैण्ड में ‘सी’ तथा गर्म का सूचक है, जबकि स्वीडन में पुल्लिंग’ एवं ‘मेंढक’ का सूचक है। अरब तथा अन्य मुस्लिम देशों में ‘हरा’ रग अत्यन्त प्रसिद्ध है, परन्तु मलेशिया में हरा रंग अशुभ तथा बीमारी जैसे अर्थों का प्रतीक है। चीन तथा कोरिया में ‘सफेद’ रंग मृत्यु तथा विलाप का प्रतीक है, जबकि अन्य देशों में यह शान्ति का प्रतीक तथा शुभ माना जाता है। बहुत-से देशों में उपभोक्तावाद’ (Consumerism) एक सामाजिक आन्दोलन है, जो विक्रेताओं के प्रति क्रेताओं के सन्दर्भ में एक ‘शक्ति’ के रूप में उभरकर सामने आया है।

(III) तकनीकी तथा प्रौद्योगिकी घटक (Technological Factors)

तकनीकी घटक बाहरी पर्यावरण को प्रभावी ढंग से प्रभावित करते हैं। तकनीक से आशय उत्पादन के ढंग, विधि अथवा तरीके से है। उत्पादन कैसे किया जाय अथवा किसी उत्पादन कार्य के लिए विभिन्न साधनों को किस ढंग से मिलाया या लगाया जाये, तकनीक इसकी मात्रात्मक अभिव्यक्ति है। उदाहरणतया, गेहूँ या अन्य किसी फसल के उत्पादन के लिए हमें एक निश्चित मात्रा में भूमि, पूँजी (हल, ट्रैक्टर आदि) और श्रम का प्रयोग करना होगा। जिस अनुपात में इन साधनों को उत्पादन के लिए इस्तेमाल किया जाता है, उसे ही उत्पादन तकनीक कहते हैं।

तकनीक में परिवर्तन उत्पादन, वितरण तथा सेवाओं को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा अभी हाल में दिया गया निर्णय कि दिल्ली में बसों को पेट्रोल या डीजल के स्थान पर सी. एन. जी. (Compressed Natural Gas) पर चलाया जाये, ने मोटरगाड़ी उद्योग को गम्भीर रूप से प्रभावित किया है। मोटरगाड़ी निर्माता, जो नई तकनीक से बसों का निर्माण करते हैं, उनके द्वारा निर्मित बसों की बाजार में भारी माँग है, जबकि दूसरों की, जो नई तकनीक से बसों का निर्माण नहीं करते हैं, माँग एकदम घट गयी है। अतएव एक फर्म जो तकनीक परिवर्तन के साथ नहीं चल सकती, उसका जीवित रहना मश्किल होता है। विभिन्न बाजारों एवं देशों के विविध तकनीकी पर्यावरण वस्तुओं में परिवर्तन करने को बाध्य करते हैं। उदाहरणार्थ, अमेरिका में बने बिजली के सामान 110 वोल्ट के लिए बनाए जाते हैं, जबकि उन्हें 240 वोल्ट की शक्ति के आधार पर दूसरे देशों के लिए बनाया जाता है। तकनीकी सुधार करते रहने से व्यवसाय को निम्नलिखित लाभ होते हैं__

(1) संसाधनों की बचत (Economy of Resources)-तकनीक में तकनीकी सधार से लाभ सुधार लाकर उसी पूँजी से उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। उत्पादन तकनीक में सुधार के फलस्वरूप प्रायः संसाधनों की बचत भी होती है। इसका कारण यह है कि बेहतर | (1) संसाधनों की बचत उत्पादन तकनीक से किफायत के साथ श्रेष्ठतर ढंग से संसाधनों का प्रयोग सम्भव (2) उत्पादन क्षमता में वृद्धि बन जाता है, इसके सहारे निश्चित उत्पादन की मात्रा को कम संसाधनों के प्रयोग ।

(2) उत्पादन क्षमता में वृद्धि (Increase in Production Capac– | (5) जीवन स्तर में सधार उच्चस्तरीय तकनीकी से उत्पादन-क्षमता या कुशलता बढ़ जाती है। ऐसी | से उपलब्ध साधनों का श्रेष्ठतर उपयोग सम्भव बन जाता है। इससे साधनों में सधार होता है। चूँकि श्रेष्ठतर ढंग से साधनों को मिलाने से उनकी उत्पादकता बढ़ जाती है, इसलिए कुल उत्पादन पहले से अधिक हो जाती है। इससे लागत घट जाती है। माल सस्ता हो जाता है और इसके परिणामस्वरूप लाभों में वृद्धि होती है। साथ ही बढ़िया किस्म का उत्पादन होने लगता है।

(3) प्रतियोगी शक्ति में वृद्धि (Increase in Competitive Power)-तकनीकी प्रगति के परिणामस्वरूप वस्तुओं  में सुधार होता है जिससे राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में माल के विक्रय में प्रतियोगी शक्तियों में वृद्धि WWससे आयात प्रतिस्थापन कर सकते हैं। इससे सन्तुष्टि की मात्रा बढ़ेगी और राष्ट्रीय उत्पादन की संरचना में भी विकास होगा।

(4) नयेनये संसाधनों की खोज (New Discovery of Resources) उच्चस्तरीय तकनीक नये-नये संसाधनों एवं उत्पादनों की खोज में भी सहायक होती है। नये संसाधनों की जानकारी व प्रयोग से पुराने और नये दोनों प्रकार के पदार्थ का अधिक मात्रा में उत्पादन किया जा सकता है और फिर नये पदार्थ पुरानी वस्तुओं का प्रतिस्थापन कर सकते हैं। इससे सन्तुष्टि की मात्रा बढ़ेगी और राष्ट्रीय संरचना में भी विकास होगा।

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(5) जीवन स्तर में सुधार (Improvement in Living Standard) तकनीकी प्रगति से कम लागत पर अच्छे और नवीन उत्पादों से समाज के जीवन-स्तर में सुधार होता है।प्रौद्योगिकी में तेजी से आने वाले परिवर्तनों के कारण उद्योगों में बहुत-सी समस्याएँ खड़ी हो जाती हैं, क्योंकि इससे उत्पादन बहत जल्दी पुराने पड़ जाते हैं। उत्पादक की मार्केटिंग प्रौद्योगिकी के लिए अपनाये जाने वाले तरीके भी पहले की बजाय जल्दी पुराने पड़ जाते हैं।

 (6) विक्रय में वृद्धि (Increase in Sales) तकनीकी प्रगति से वस्तुओं की किस्म में सुधार से राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में माल के विक्रय में वृद्धि होती है जिससे आयात प्रतिस्थापन और निर्यात प्रोत्साहन में सहायता मिलती है।

निष्कर्षनिष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है जो व्यवसाय प्रौद्योगिक परिवर्तनों के साथ नहीं चलते. उनका अस्तित्व जल्द ही समाप्त हो सकता है।

(IV) प्रतियोगी घटक (Competitive Factors)

प्रतियोगी घटक भी बाहरी पर्यावरण को प्रभावी ढंग से प्रभावित करते हैं। प्रतिद्वन्द्वी व्यवसाय संचालन के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रतियोगियों के व्यवहार के अनुरूप व्यवसाय को अपनी अनेक गतिविधियों का संचालन करना पड़ता है तथा उनमें परिवर्तन लाने पड़ते हैं। प्रतियोगिता निम्नलिखित प्रकार की हो सकती है

(1) जनन प्रतियोगिता (Genetic Competition)जब इच्छाओं के विकल्पों में प्रतियोगिता होती है तो जिस श्रेणी की इच्छाओं को सन्तुष्ट किया जा सकता है, उन्हें जनन प्रतियोगिता कहते हैं। अधिक स्पष्ट शब्दों में, वैकल्पिक वस्तुओं में आपसी प्रतियोगिता किसी विशेष प्रकार की इच्छा को सन्तुष्ट करने वाली प्रतियोगिता को जनन-प्रतियोगिता कहते हैं। उदाहरणार्थ, यदि कोई व्यक्ति अपने धन को विनियोजन करना चाहता है तो उसके सामने अनेक प्रतियोगी घटकों के प्रकार विकल्प होते हैं, जैसे—वह इस धन को पोस्ट ऑफिस या बैंक में जमा कर सकता है या शेयर या डिबेन्चर के खरीदने में लगा सकता है। इसी प्रकार उपभोक्ता यदि अपनी आय को मनोरंजन मद पर व्यय करना चाहता है तो उसके सम्मुख अनेक विकल्प हैं; जैसे—सिनेमा,टी.वी,कम्प्यूटर आदि। इस प्रकार विभिन्न निवेश योजनाओं या विभिन्न मनोरंजन के उपकरणों के बीच होने वाली प्रतियोगिता को जनन प्रतियोगिता कहतें हैं ।

(1) जनन प्रतियोगिता

(2) इच्छाओं की प्रतियोगिता

(3) ब्रांड प्रतियोगिता

(4) उत्पाद स्वरूप प्रतियोगिता कहते हैं।

(2) इच्छाओं की प्रतियोगिता (Desire Competition)-इस प्रकार की प्रतियोगिता का मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओं की मूल इच्छाओं को प्रभावित करना है। इस प्रकार की इच्छा प्रतियोगिता प्रायः उन देशों में पायी जाती है जहाँ उपभोक्ता की आय कम होती है और साथ ही अनेक तृप्त इच्छाएँ भी होती हैं।

किसी फर्म का प्रतियोगी केवल एक जैसी वस्तु का उत्पादन करने वाली फर्म ही नहीं होती परन्त वे सभी फर्में होती हैं, जो उपभोक्ता की सीमित आय के लिए प्रतिस्पर्धा करती हैं। उदाहरण के लिए, एक फ्रिज निर्माता के प्रतियोगी न केवल अन्य फ्रिज निर्माता होते हैं बल्कि टी.वी. निर्माता, स्कूटर, गैस चूल्हा, कम्प्यूटर निर्माता तथा अन्य कम्पनियाँ जो बचतें तथा विनियोग की स्कीमें चलाती हैं जैसे बीमा कम्पनी, यूनिट ट्रस्ट ऑफ इण्डिया आदि भी होते हैं क्योंकि सभी प्रतियोगी उपभोक्ता की सीमित आय को अपनी ओर खींचना चाहते हैं। इस प्रकार उपभोक्ताओं को इच्छाओं में प्रतिस्पर्द्धा को इच्छा प्रतिस्पर्धा कहते हैं।।

(3) ब्रांड प्रतियोगिता (Brand Competition) अन्त में उपभोक्ता को ब्रांड प्रतियोगिता का सामना करना पड़ता है। एक ही उत्पादन के अनेक ब्रांडों में प्रतियोगिता होती है, उदाहरण के लिए, उपभोक्ता कलर टीवी. खरीदने का निश्चय करता है तो अगला प्रश्न यह उठता है कि वह कौन-सी ब्रांड का टी.वी. खरीदे; जैसे-वीडियोकोन फिलिप्स, बी.पी.एल इत्यादि।

(4) उत्पाद स्वरूप प्रतियोगिता (Product form Competition)_दय पका की प्रतियोगिता में उपभोक्ता को उत्पादन के विभिन्न स्वरूपों में से चयन करना पड़ता है, उदाहरण के लिए, उपभोक्ता को टी.वी. की आवश्यकता हो, तो अगला । प्रश्न यह उठता है कि वह किस प्रकार का टी.वी. लेना चाहता है। जैसे ही वह किस प्रकार काटा.वा. लना चाहता हैं ।

जैसेब्लेक एण्ड व्हाइट अथवा कलर

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(V) राजनीतिक घटक (Political Factors)

बाह्य पर्यावरणीय विश्लेषण को राजनीतिक घटक प्रभावी ढंग से प्रभावित करते हैं। किसी व्यवसाय अथवा उद्योग के जीवित रहने एवं विकसित होने के लिए राजनीतिक स्थिरता का होना परम आवश्यक है। यही नहीं, किसी भी देश के व्यापक विकास में भी राजनीतिक स्थिरता का बहुत महत्त्व रहता है। शासन सत्ता में जितनी अधिक स्थिरता होगी और लोगों का जितना अधिक विश्वास सरकार में बना रहेगा, विकास की दीर्घकालीन योजनाएँ उतनी ही कुशलता व सफलता के साथ कार्यान्वित की जा सकेंगी. विकास किसी अवरोध के बिना होता रहेगा, उसमें उपयुक्त गति आ जाएगी और लोगों की आर्थिक व सामाजिक स्थिति में सुधार होने लगेगा। यदि देश में शान्ति और सरक्षा है. व्यक्तिगत सम्पत्ति के संग्रह पर किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं है तथा जन-जीवन की सुरक्षा एवं न्याय के लिए कटिबद्ध है तो लोगों में आय को बचाने की अधिक इच्छा होगी, अधिक पूँजी संचयन होगा और व्यापार के विकास को प्रोत्साहन मिलेगा। विदेशी पूँजी भी देश में शान्ति व सुरक्षा रहने पर ही आकर्षित होगी। इसका ज्वलन्त उदाहरण 13 दिसम्बर, 2001 को भारत की संसद पर आतंकवादियों का हमला है। इसने तथा जम्मू व कश्मीर के आतंकवाद ने भारत के पर्यटक उद्योग को गम्भीर रूप से प्रभावित किया है। सरकार की उद्योग, सरकारी क्षेत्र व जनक्षेत्र इत्यादि से सम्बन्धित नीतियों पर भी आर्थिक विकास की गति निर्भर रहती है।

संक्षेप में, सरकार द्वारा जितनी ही अधिक शान्ति, सुरक्षा व अन्य सुविधाएँ उपलब्ध करायी जायेंगी, उतनी ही अधिक व्यवसाय के विकास में गति आयेगी।

(VI) आपूर्तिकर्ता घटक (Supplier Factors)

आपूर्तिकर्ता भी बाहरी पर्यावरण विश्लेषण को प्रभावित करते हैं। आपूर्तिकर्ता वे लोग होते हैं, जो उद्योग के लिए कच्चा माल, सामग्री आदि की पूर्ति करते हैं। सही समय पर, सही किस्म (Quality), सही मूल्य एवं सही मात्रा में इनकी आपूर्ति होना आवश्यक है, ताकि उद्योग सही ढंग से निरन्तर चलते रहें।

महत्त्व आपूर्तिकर्ताओं के महत्त्व के प्रमुख स्तम्भ निम्नलिखित हैं—(अ) व्यवसाय एवं उद्योग के सतत व सुव्यवयस्थित संचालन के लिए विश्वसनीय आपूर्ति साधन का अपना अलग महत्त्व है। आपूर्ति में अनिश्चतता के कारण कम्पनी अपनी आवश्यकता से अधिक कच्चे माल का संग्रहण करती है जिस पर अधिक लागत व्यय होती है। भारत में स्टॉक 3-4 महीने का तथा आयातित माल का स्टॉक 9 महीने की अवधि का होता है, जबकि जापान जैसे उन्नतिशील देश में यह स्टॉक कम-से-कम कुछ चन्द घण्टों के लिए या अधिक-से-अधिक 2 सप्ताह के लिए रखा जाता है। कुछ कम्पनियाँ जिनकी आपूर्ति अधिक संवेदनशील है, आपूर्ति पर अधिक बल दिया जाता है। (ब) आपूतिकर्ता के व्यवहार में परिवर्तन आने से भी कम्पनी का कार्य प्रभावित हो सकता है। (स) एक ही आपूर्तिकर्ता पर निर्भर रहना जोखिमपूर्ण हो सकता है क्योंकि तालाबन्दी या हड़ताले आदि होने के कारण कम्पनी को कच्चे माल मी आपूर्ति बन्द हो जाती है। अतः एक से अधिक आपूर्तिकर्ता जोखिम कम करने के लिए नियुक्त किये जाने चाहिए। (द) आपूर्ति प्रबन्ध (Supply Management)-आपूर्ति प्रबन्ध उस स्थिति में अधिक महत्त्वपूर्ण होता है जब अभाव का पर्यावरण होता है। इसलिए आपूर्तिकर्ता की सहायता प्राप्त करने के लिए कम्पनी अपने एजेण्ट द्वारा विभिन्न उपाय करती है।

(VII) ग्राहक (Coustomers)

यह कैसी विचित्र विडम्बना है कि उपभोक्ता को एक ओर तो ‘ग्राहक (उपभोक्ता) सदैव सही है’, ‘उपभोक्ता बाजार का राजा है’, ‘ग्राहक (उपभोक्ता) परम परमेश्वर है’जैसे मोहक नारों से सम्मानित किया जा रहा है तो दूसरी ओर इसके ‘संरक्षण’ (सरक्षा) की बात कही जाती है। यद्यपि यह विरोधाभास है कि किन्तु कटु सत्य तो यही है। आँकड़े और तथ्य इस बात को प्रमाणित करते हैं कि उपभोक्ता ‘बेचारा’ सभी ओर से मारा जा रहा है। वह बिना ताज का ऐसा राजा है जो कि स्वयं अपनी ‘प्रभुसत्ता’ की रक्षा नहीं कर पा रहा है। वह एक बार नहीं, अनेक बार विभिन्न प्रकार से लूटा जा रहा है। दुनिया भर में ‘मोहम्मद गौरी’ जैसे अनेक लटेरे पैदा हो गए हैं जो प्रतिदिन एवं प्रतिवर्ष उपभोक्ताओं पर ‘डाका डाल’ कर अपनी तिजोरी भर रहे हैं। ऐसे ‘गौरियों की ओर हम ‘किंकर्तव्यविमूढ़’ एवं असहाय ही देख रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार भारतीय उपभोक्ताओं को प्रतिवर्ष लगभग 2.000 करोड़ रुपये इसी संगठित लूट में खोने पड़ते हैं। यह स्थिति उस देश की है जो अपने आपको कल्याणकारी राज्य घोषित कर चुका है।

बाहरी पर्यावरणीय विश्लेषण के घटकों में ग्राहक की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। यह व्यवसाय का राजा कहलाता है। ग्राहक की सन्तुष्टि अथवा असन्तुष्टि पर ही किसी व्यवसाय का विकास अथवा विनाश निर्भर करता है। हमारी सारी आर्थिक अर्थव्यस्था ही ग्राहकोन्मुखी (Customer Oriented) है। अतएव इसे सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। एक व्यावसायिक उपक्रम में कई प्रकार के ग्राहक हो सकते हैं। जैसे—फुटकर ग्राहक, थोक ग्राहक, औद्योगिक ग्राहक, सरकारी निकाय ग्राहक, विदेशी ग्राहक आदि। उदाहरण के लिए, टायर कम्पनी के ग्राहक वाहन निर्माता, वाहन स्वामी, सार्वजनिक क्षेत्र, परिवहन संस्थान तथा अन्य वाहन प्रयोगकर्ता होते हैं। किसी एक ग्राहक वर्ग पर निर्भर करना जोखिमपूर्ण होता है। इससे व्यावसायिक उपक्रम की विपणन । शक्ति क्षीण हो जाती है। अत: व्यावसायिक उपक्रम के पास विभिन्न प्रकार के ग्राहक होने चाहिए।व्यवसाय की सफलता के लिए। व्यवसायी को यह जानना भी आवश्यक है कि ग्राहक क्या चाहते हैं और किस प्रकार की वस्तुओं की ओर उसका रूझान हो रहा। है। वस्तुतः उपभोक्ता स्वीकृति एक बड़ी चुनौती बन गयी है क्योंकि व्यावसायिक पर्यावरण में गैर-आर्थिक कारण जैसे पवत्तियों, इच्छाओं तथा लोगों की आशाओं के कारण उपभोक्ता व्यवहार पर बहत प्रभाव पड़ता है। ग्राहक वर्ग का निर्माण करते हए अनेक तत्त्वों को ध्यान में रखना आवश्यक है; जैसे-लाभप्रदता (Profitability), निर्भरता, माँग की स्थिरता, विकास की सम्भावनाएँ, प्रतियोगिता की सीमा आदि।

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वातावरण की जाँच तकनीकें

(Techniques of Environment Scanning)

वातावरण की चुनौतियों का विश्लेषण व इसमें सूचनाओं को एकत्रित करके उनका विश्लेषण करना ही जाँच का मुख्य लक्ष्य है। वातावरण की जाँच की मुख्य तीन तकनीकें हैं

(1) सूचना एकत्रित करना (Information gathering)-जरूरी सूचना एकत्रित करके एक नीतिज्ञ प्रबन्धक व्यापार के वातावरण सम्बन्धी जानकारी प्राप्त कर सकता है। सूचना के निम्नलिखित स्रोत हैं

(i) व्यापारिक पत्रिकाएँ Business India, Business Today, The Journal of Entrepreneurship आदि।

(ii) अखबारें जैसे—Economic Times, Financial Express, Business आदि।

(iii) व्यापार डायरेक्ट्रियाँ, रिपोर्ट, गाइड आदि।

(iv) विभिन्न कम्पनियों की वार्षिक रिपोर्ट।

इन स्रोतों की अपनी कुछ सीमाएँ हो सकती हैं क्योंकि आमतौर पर यह देखा गया है। कम्पनियाँ अपनी रिपोर्टों पर व सरकारी आँकड़े बनावटी छवि पर जोर देते हैं।

(2) जाससी (Spving) अनुभवी व्यक्ति आपर्ति करने वाले ग्राहकों व प्रतिस्पर्धियों के राजों को जानने की कोशिश कर सकते हैं। इन तथ्यों को इकट्ठा करके व्यापार में जाँच के लिये प्रयोग किया जाता है।

(3) भविष्यवाणी (Forecasting) भविष्य में समस्या सुलझाने से बेहतर उसकी भविष्यवाणी या पूर्वानुमान (Anticipation) करने वाले अधिक सफल होते हैं। Peter F. Druker वJoel Arthur Barken के यही विचार हैं

भविष्यवाणी भविष्य में होने वाली घटनाओं के अनुमान की तकनीक है। हालांकि भविष्य आकस्मिक तथा अनिश्चित है, फिर भी एक निश्चित सीमा तक वैज्ञानिक विश्लेषण व उसके नतीजों को सहजज्ञान (Intution) से जोड़कर उसके बारे में बताया जा सकता है।

उद्यमी अपने व्यवसाय में निम्नलिखित तरीकों को अपनाकर सफल हो सकता है।

(i) उत्पाद के प्रयोग के बारे में ग्राहकों को शिक्षा देकर, (ii) अपने उत्पाद की एक साकार माँग पैदा करके, (iii) निर्यात व घरेलू माँग पूरी करके, एवं (iv) भावी माँग को पूरा करके।

बाह्य पर्यावरणीय विश्लेषण की तकनीकें

(Techniques of External Environmental Analysis)

विश्लेषकों ने बाहरी पर्यावरणीय विश्लेषण की विभिन्न तकनीकों का उल्लेख किया है। उनमें से प्रमख तकनीकें निम्नलिखित हैं

(I) स्वोट विश्लेषण (SWOT Analysis);एवं

(II) ईटोप विश्लेषण (ETOP Analysis)

(I) स्वोट विश्लेषण (SWOT Analysis)

अथवा

शक्तियाँ, कमजोरियाँ, अवसर, चुनौतियाँ विश्लेषण (Strengths, Weaknesses, Opportunities, Threats Analysis)  स्वोट विश्लेषण पर्यावरण के आन्तरिक तथा बाह्य तत्वों के मूल्यांकन का एक प्रयोगसिद्ध विश्लेषण (Empiricall Analysis) है। यह पद्धति अनुभवों (Observations) एवं प्रयोगों (Experiments) पर आधारित विश्लेषण है। यह विश्लेषण पद्धति सूचनाओं द्वारा प्राप्त संघटकों द्वाराव्यूह प्रबन्धन (Strategicar प्राप्त सघटको द्वारा व्यह प्रबन्धन (Strategicmanagement) का कार्य करता है।

‘SWOT” शब्द अंग्रेजी के चार भिन्न-भिन्न शब्दों के प्रथम अक्षरों का सामूहिक रूप है जो निम्नलिखित है.

स्वोट विश्लेषण का प्रयोग प्रभावी संगठनात्मक रणनीतियों को तैयार करने में किया जाता है। एक व्यवसाय अपने संगठन की शक्तियों (Strengths-S) दुर्बलताओं (Weaknesses-W),अवसरों (Opportunities-0), व चनौतियों (Threats-T) के साथ तुलना कर सकता है। स्वोट विश्लेषण के अनुसार, एक प्रभावपूर्ण संगठनात्मक रणनीति वह है जिसमें एक व्यवसाय अपनी शक्तियों का प्रयोग करके अवसरों का अधिक-से-अधिक लाभ उठाता है तथा कमजोरियों (Weaknesses) के प्रभाव को कम करके समस्याओं को प्रभावहीन बना देता है। वास्तव में यह व्यावसायिक अवसरों का अधिक-से-अधिक लाभ उठाकर अपनी क्षमताओं का अधिकतम उपयोग करना सिखाता है। इसे वोट्स-अप (WOTS-UP) विश्लेषण के नाम से भी जाना जाता है।

शक्तियाँ (Strengths)  दुर्बलतायें  (Weaknesses)   अवसरो (Opportunities)  चुनौतियाँ (Thrests)

उपर्युक्त विश्लेषण के अनुसार, “एक प्रभावपूर्ण संगठनात्मक रणनीति वह कहलाती है जिसमें एक व्यवसाय अपनी तमाम शक्तियों का प्रयोग करके अपने अवसरों का अधिकाधिक लाभ उठाता है एवं विद्यमान दुर्बलताओं के प्रभाव को कम करके समस्याओं को प्रभावहीन बना देता है।” अन्य शब्दों में, “स्वोट विश्लेषण एक व्यवसाय को प्राप्त अवसरों का अधिकाधिक लाभ लेकर अपनी क्षमताओं का अधिकतम प्रयोग करना सिखाता है।” और इस तरह समस्त अक्षमताओं को कम कर तमाम समस्याओं अथवा कठिनाइयों को व्यवसाय से दूर रखा जाता है।

स्वोट विश्लेषण के आधारभूत तत्त्व

(Basic Elements of SWOT Analysis)

आन्तरिक घटक (Internal Factor) यह वे घटक हैं जो संगठन अथवा व्यक्ति में उपल्ब्ध होते हैं। विश्लेषण की दृष्टि से इनको निम्नलिखित दो वर्गों में रखा गया है ।

(1) शक्तियाँ (Strength) प्रत्येक संगठन, व्यवसाय एवं व्यक्ति में अपनी कछ शक्तियाँ होती हैं। इनको विशिष्टताए। भी कहा जाता है। इन शक्तियों को सकारात्मक बिन्दु (Positive Points) कहते हैं। जैसे—व्यक्तिगत सम्प्रेषण में शुद्ध उच्चारण, वृहत् वर्णमाला ज्ञान, बोधगम्य भाषा-शैली तथा समूह सम्प्रेषण में प्रभाव विचारों की श्रृंखलाबद्ध प्रस्तुति आदि सकारात्मक बिन्दु हैं, जो श्रोताओं को अपनी ओर आकर्षित करते है तथा वार्तालाप में प्रश्नों का तार्किक उत्तर देना प्रमुख शक्तियाँ हैं। इसी प्रकार संगठनात्मक सम्प्रेषण में प्रभावी प्रतिपष्टि की प्राप्ति शक्ति मानी जाती है।

आन्तरिक घटक (Internal Factor)

बाह्य घटक (External Factors)

शक्तियाँ (Strength)

दुर्बलतायें (Weaknesses)

चुनौतियाँ (Threats)

अवसरों | (Opportunities)

(2) दुर्बलतायें (Weaknesses)—प्रत्येक व्यक्ति, व्यवसाय एवं संगठन में कुछ दुर्बलतायें होती हैं। दुर्बलतओं की पहचान तथा उनको चिह्नित करना महत्त्वपूर्ण घटक है। दुर्बलताओं को नकारात्मक बिन्दु (Negative Point) कहते हैं। जैसे-व्यक्तिगत सम्प्रेषण में अशुद्ध उच्चारण, तेजी से बोलना, श्रोताओं को अपनी ओर आकर्षित न कर पाना अथवा स्वयं अच्छे श्रोता के रूप में धैर्यपूर्वक सुनने का अभाव प्रमुख कमजोरियां हैं। संगठनात्मक स्तर पर संचार के प्रति अधीनस्थों की उदासीनता अथवा समूह संचार में भूमिका विवाद (Role Conflict) आदि प्रमुख दुर्बलतायें हैं।

1 बाह्य घटक (External Factor)—

यह वे घटक हैं जो बाह्य आवरण से सृजित होते हैं। जैसे—आपूर्तिदाता, नवीन प्रतियोगी क्रेता, प्रतिस्थापन वस्तुएँ, सरकार, सभा आदि, बाह्य घटकों को दो वर्गों में बाँटा गया है। इनको चुनौतियाँ एवं अवसर कहा गया है।

(1) चुनौतियाँ (Threats)—समाज एवं बाह्य वातारण चुनौतियों को जन्म देता है। प्रत्येक व्यवसाय, संगठन अथवा व्यक्ति को सफलता के पथ पर अग्रसर होने के लिए चुनौतियों को स्वीकार करना पड़ता है। वास्तव में चुनौतियां ही बाद में अवसर बन जाती हैं। जैसे—सम्प्रेषण ने नवीन माध्यमों की खोज यथा इन्टरनेट, ई-कॉमर्स, ई-बैंकिंग की चुनौतियाँ।

(2) अवसर (Opportunities)—व्यवसाय की प्रगति में अवसरों का समुचित लाभ उठाना महत्त्वपूर्ण होता है। व्यवसाय, संगठन एवं व्यक्ति के जीवन में अनेक अवसर प्राप्त होते हैं। इन अवसरों का समुचित प्रयोग करके ही बुलन्दियों तक पहुँचा जा सकता है। वास्तव में अवसर सफलता की उँचाइयों तक पहुँचने के लिए सीढ़ी का कार्य करते हैं। जैसे—कुछ व्यवसायियों ने ई-कॉमर्स के व्यावसायिक अवसर का लाभ उठाकर व्यवसाय को वैश्विक (Global) आकार प्रदान किया है।

जिस प्रकार प्रत्येक सिक्के के सदैव दो पहलू होते हैं, उसी प्रकार प्रत्येक व्यवसाय अथवा उसके कार्यात्मक क्षेत्र में भी। शक्तियाँ एव कमजोरियाँ अवश्य होती हैं। प्रत्येक चुनौती अवश्य ही एक अवसर प्रदान करती है। इस विश्लेषण में चुनौतियाँ एवं अवसर (T-O) तथा कमजोरियाँ एवं शक्तियों (W-S) का अन्तर्सम्बन्धित विश्लेषण किया जाता है। इसको (TOWS)विश्लेषण कहते हैं।

स्वोट का विश्लेषण (Analysis of SWOT)—स्वोट विश्लेषण में निम्नलिखित को सम्मिलित किया जाता है—

  • संस्था की शक्तियाँ (Strenghts of the Enterprises)
  • संस्था की दुर्बलताएँ (Weaknesses of the Enterprise)
  • व्यवसाय के अवसर (Business Opportunities)
  • पर्यावरणीय चुनौतियाँ (Environmental Threats)
  • 1 संस्था की शक्तियाँ (Strenghts of the Enterprises) संस्था की शक्तियों से आशय उसकी प्रतिस्पर्धा करने की शक्ति से है जिसके कारण उसकी बाजार में भूमिका सुनिश्चित हो जाती है। इसके कारण संस्था में स्थायित्व आता है तथा प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता में वृद्धि होती है। संस्था की शक्तियों का माप (Measuring the Strenghts of the Institution)-

(i) संस्था की उपलब्धियों की माप करके इसके अन्तर्गत संस्था की उपलब्धियों एवं उत्पादनों के गुणों की सूची तैयार की जाती है। जितनी अधिक उपलब्धियाँ होंगी, संस्था को उतना ही अधिक शक्तिशाली माना जायेगा।।

(ii) कार्यक्षमता की माप करके संस्था की मशीनों व श्रम का पूरा उपयोग हो तथा बर्बादी कम-से-कम हो तो संस्था की शक्ति में वृद्धि स्वाभाविक है।

  1. संस्था की दुर्बलताएँ (Weakness of the Institution)-प्रतिस्पर्धा के दृष्टिकोण से संस्था की कमजोर स्थिति को संस्था की दुर्बलता कहा जाता है। बाजार में संस्था की भूमिका सुनिश्चित नहीं होती।

संस्था की दुर्बलताओं का माप (Measuring the Weaknesses of the Institution)-इसके लिए निम्नलिखित उपायों का सहारा लिया जा सकता है

(i) संस्था के साधनों का पूर्ण उपयोग न होने के कारणों का विश्लेषण।

(ii) संस्था की कार्यक्षमता की कमी का विश्लेषण।

(iii) संस्था की असफलताओं का विश्लेषण।

  1. व्यवसाय के अवसर (Business Opportunities) व्यवसाय के अवसर से तात्पर्य उन परिस्थितियों से है जिनके अन्तर्गत संस्था प्रतिस्पर्धात्मक लाभ कमाने के अवसरों को प्राप्त करती है तथा संस्था को विकसित करने के उपायों की खोज करती है।

व्यवसाय के अवसरों का माप (Measuring the Business Opportunities) व्यवसाय के अवसरों का माप निम्नलिखित में से हो सकता है

(i) अधिकतम प्राप्तियों का ज्ञान करके।

(ii) न्यूनतम प्राप्तियों का ज्ञान करके।

(iii) सामान्य प्राप्तियों का ज्ञान करके।

  1. पर्यावरणीय चुनौतियाँ (Environmental Threates)—पर्यावरणीय चुनौतियों से आशय उन विपरीत परिस्थतियों से है, जो संस्था के संचालन में बाधाएँ उत्पन्न करती हैं तथा उद्यमी उनका सामना करने के लिए स्वयं को तैयार करता है।

पर्यावरणीय चुनौतियों का माप (Measurement of Environmental Threats)

(i) विद्यमान चुनौतियों का विश्लेषण।

(ii) भावी चुनौतियों का विश्लेषण।

(iii) सामान्य चुनौतियों का विश्लेषण।

(iv) विशिष्ट चुनौतियों का विश्लेषण।

ईटोप विश्लेषण (ETOP Analysis)

ईटोप विश्लेषण से आशय है-पर्यावरणीय चुनौतियों एवं अवसरों की पाश्विका (Environmental Threats and Opportunities Profile) यह पर्यावरणीय निदान की महत्त्वपूर्ण तकनीक है। पर्यावरणीय चनौतियों एवं अवसरों का पारस्परिक महत्त्व ज्ञात करने के लिए पर्यावरणीय चुनौतियाँ एवं अवसरों की पाश्विका तैयार की जाती है। इसी आधार पर संस्था की भावी व्यूहरचना की जाती है। इसी के आधार पर उच्चतम प्रबन्ध सबसे महत्त्वपूर्ण घटकों पर ध्यान केन्द्रित करता है और कम महत्त्वपूर्ण घटका का और अपेक्षाकृत कम ध्यान देता है।

पर्यावरणीय चुनौतियों तथा अवसरों की पाश्विका

(Profile of Environmental Threats and Opportunities)

(I) पर्यावरणीय चुनौतियाँ (Environmental Threats)-पर्यावरणीय चुनौतियाँ विभिन्न प्रकार की हो सकती हैं। समय-समय पर संस्था को इन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। पर्यावरणीय चुनौतियों के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं

(i) ब्याज दरों में वृद्धि,

(ii) आयात प्रतिबन्ध,

(iii) निर्यात प्रतिबन्ध,

(iv) मूल्य नियन्त्रण,

(v) कराधान की दरों में वृद्धि,

(vi) उद्योगों के विस्तार पर प्रतिबन्ध,

(vii) प्रतियोगिता में वृद्धि होना,

(viii) नये-नये करों की घोषणाएँ,

(ix) विदेशी उद्योगपतियों को भारत में उद्योगों की स्थापना की अनुमति दिया जाना,

(x) लघु उद्योगों के लिए कुछ उत्पादों को संरक्षित करना आदि।।

(II) अवसर (Opportunities) व्यवसाय में अवसर आते-जाते रहते हैं। पर्यावरणीय विश्लेषक यह ज्ञात कर सकता है कि किस समय किस अवसर का लाभ उठाना संस्था के लिए हितकर होगा। पर्यावरणीय अवसरों के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं

(i) आयातों पर प्रतिबन्ध लगाया जाना।

(ii) निर्यातों पर प्रतिबन्धों को हटाया जाना।

(iii) ब्याज दरों में कमी होना।

(iv) उत्पादों के आवागमन पर लगाये गये प्रतिबन्धों को हटाया जाना अथवा कम किया जाना।

(v) विक्रय कर की दरों में कमी करना।

(vi) निर्यात प्रोत्साहन के लिए सरकार द्वारा विभिन्न छुटों एवं रियायतों की घोषणाओं का किया जाना। राष्ट्रीयकृत व्यावसायिक उपक्रमों का निजीकरण (Privatisation)किया जाना।

(vii) आयकर की दरों में कमी व निजी क्षेत्र (Private Sector)को प्रोत्साहन दिया जाना।

(viii) संस्था के उत्पादों की देशी व विदेशी माँग में वृद्धि करना।

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उपयोगी प्रश्न (Useful Questions)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

1. उद्यमी का पर्यावरण से क्या सम्बन्ध है ? बाह्य पर्यावरण विश्लेषण की तकनीकों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।

What is the relation of Entrepreneur with environment ? Describe in brief the external Environmental analysis techiques.

2. बाह्य पर्यावरणीय विश्लेषण से क्या आशय है ? बाह्य पर्यावरणीय विश्लेषण को प्रभावित करने वाले प्रमुख घटकों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।

What is meant by External Environmental Analysis ? Explain in brief the factors affecting external environmental analysis.

3. पर्यावरण से क्या अभिप्राय है ? इसके विभिन्न प्रकार क्या हैं ?

What do you mean by Environment? What are its various types?

4. वातावरण की जाँच की विभिन्न तकनीकों का विस्तार से वर्णन करें।

Discuss in detail various techniques of environment scanning.

5. बाह्य पर्यावरणीय विश्लेषण की विभिन्न तकनीकें कौन-कौन सी हैं ? वर्णन कीजिए।

What are the various techniques of External environmental analysis ? Discuss.

6. स्वोट विश्लेषण क्या है ? विश्लेषण कीजिए।

What is SWOT Analysis ? Analyse it.

7. निम्नलिखित को समझाओ

Explain the following

(अ) स्वोट विश्लेषण

SWOT Analysis

(ब) ईटोप विश्लेषण

ETOP Analysis

8. पर्यावरणीय चुनौतियाँ तथा अवसरों की पाश्विका पर एक लेख लिखें।

Write a note on profile of environmental threats and opportunities.

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लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

1 पर्यावरण से क्या आशय है ?

What is meant by environment?

2. पर्यावरण तथा उद्यमी में क्या सम्बन्ध है ?

What is the relationship between environment and entrepreneur?

3. बाहरी पर्यावरणीय विश्लेषण से क्या आशय है ?

What is meant by external environmental analysis?

4. स्वोट विश्लेषण क्या है ?

What is SWOT analysis?

5. ईटोप विश्लेषण से क्या आशय है?

What is meant by ETOP analysis?

6. पर्यावरणीय अवसरों के कोई पाँच उदाहरण दीजिए।

Give any five examples of environmental opportunities.

7. पर्यावरणीय चुनौतियों के कोई चार उदाहरण दीजिए।

Give any four examples of environmental threats.

8. आर्थिक प्रणाली कितने प्रकार की होती हैं ? इनमें से किसी एक का वर्णन कीजिए।

What are the types of economic systems ? Explain any one of them.

9. प्रतियोगी घटक क्या हैं ?

What are competitive factors?

10.स्वोट विश्लेषण में किन-किन घटकों पर विचार किया जाता है ? |

What factors are considered in SWOT analysis ?

11. उद्यमिता विकास को प्रभावित करने वाले पर्यावरण संघटकों की व्याख्या कीजिए।

Exaplain the environmental factors affecting entrepreneurial development.

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III. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

1 बाह्य पर्यावरणीय विश्लेषण से क्या आशय है ?

What do you mean by external environmental analysis?

2. स्वोट विश्लेषण से क्या आशय है ?

What is meant by SWOT analysis?

3. आर्थिक घटकों का अर्थ बताइये।

What is meant by economic factors ?

4. उद्यमिता पर्यावरण क्या है ?

What is meant by an entrepreneurial environment?

5. ईटोप विश्लेषण क्या है ?

What is ETOP analysis?

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

1. सही उत्तर चुनिए (Select the Correct Answer)

(i) बाहरी पर्यावरणीय विश्लेषण के घटक हैं

(अ) आर्थिक

(ब) सामाजिक

(स) तकनीकी

(द) ये सभी।

External environmental factors are

(a) Economic

(b) Social

(c) Technical

(d) All these.

(ii) इनमें से कौन-सा स्वोट विश्लेषण में सम्मिलित नहीं है—

(अ) अवसर

(ब) प्रबन्ध

(स) शक्ति

(द) चुनौती।

Which of the following is not included in the SWOT analysis

(a) Opportunity

(b) Management

(c) Strength

(d) Threat.

(iii) बाहरी पर्यावरणीय विश्लेषण में कौन-सा घटक नहीं है

(अ) तकनीकी

(ब) प्रतियोगी

(द) उत्पादन।

(स) सामाजिक

बाह्य पर्यावरणीय विश्लेषण

Which of the following is not the factor of external environmental analysis

(a) Technical

(c) Social

(b) Competitive

(iv) इनमें से कौन-सा ईटोप विश्लेषण में सम्मिलित है

(d) Production.

(अ) अवसर

(ब) प्रतियोगिता

(स) शक्ति

(द) दुर्बलता।

Which of the following is included in the ETOP analysis

(a) Opportunity

(b) Competition

(c) Strength

(d) Weakness

(v) स्वोट विश्लेषण में सम्मिलित है

(अ) शक्तियाँ

(ब) दुर्बलताएँ

(स) चुनौतियाँ

(द) ये सभी।

SWOT analysis includes

(a) Strengths

(b) Weaknesses

(c) Threats

(d) All these

[उत्तर-(i) (द), (ii) (ब), (iii) (द), (iv) (अ), (v) (द)]

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2. इंगित करें कि निम्नलिखित वक्तव्य ‘सही’ हैं या ‘गलत’

(Indicate Whether the Following Statements are “True’ or ‘False’)

(i) बाहरी पर्यावरणीय विश्लेषण में बाहरी घटकों का विश्लेषण किया जाता है।

External factors analysis is done under external environmental analysis.

(ii) स्वोट विश्लेषण आन्तरिक पर्यावरण के मूल्यांकन से सम्बन्धित है।

SWOT Analysis is related to the evaluation of internal environment analysis.

(iii) किसी संस्था की व्यूहरचना के लिए बाहरी पर्यावरणीय विश्लेषण आवश्यक है।

Evaluation of external environmental analysis is necessary for strategy formulation of an enterprise.

(iv) प्रतियोगी घटक बाहरी पर्यावरणीय विश्लेषण का आवश्यक घटक है।

Competition factor is an essential factor of external enviromental analysis.

(v) ईटोप विश्लेषण आन्तरिक पर्यावरण को प्रभावित करता है।

ETOP Analysis affects internal environment.

(vi) स्वोट पर्यावरण में पर्यावरणीय चुनौतियों को सम्मिलित किया जाता है।

Environmental threats are included in SWOT analysis.

[उत्तर-(i) सही, (ii) गलत, (iii) सही, (iv) सही, (v) गलत, (vi) सही।]

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3. रिक्त स्थान भरें (Fill in the Blanks)

(i) बाहरी पर्यावरणीय विश्लेषण में …………. घटकों का विश्लेषण किया जाता है। External factors analysis is done under……… environmental analysis. बाहरी (External)/आन्तरिक (Internal)/बाहरी व आन्तरिक दोनों (Both Internal and externalni

(ii) ईटोप विश्लेषण …………. पर्यावरण को प्रभावित करता है। ETOP analysis affects……..environment बाहरी (External)/आन्तरिक (Internal)/आन्तरिक व बाहरी दोनों (Both internal.

(iii) प्रतियोगी घटक ………. पर्यावरणीय विश्लेषण का आवश्यक घटक है। Competitive factor is an essential factors of …… environmental analysis. [बाहरी (External)/आन्तरिक (Internal)/बाहरी व आन्तरिक (External and Internal)]

(iv) स्वोट पर्यावरण में पर्यावरणीय ………. को सम्मिलित किया जाता है। Environmental……….are included is SWOT analysis. [चुनौतियाँ (Threats)/सरक्षा (Safety)/साधनों (Factors)] उत्तर-4) बाहरी (External), (ii) आन्तरिक (Internal), (ii) बाहरी (External), (iv) चुनातिया (Threats)]

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4. मिलान समबन्धी प्रश्न (Matching Questions)

भाग-अ का भाग-ब से मिलान करें (Match Part-A with Part-B)

भाग-अ (Part-A

 

भाग-ब (Part-B)
1. आन्तरिक पर्यावरण (Internal Environment) a) शक्तियाँ व दुर्बलताएँ (Strength and Weaknesses)
2. बाह्य पर्यावरणीय विश्लेषण की तकनीक (Technique (b) आन्तरिक व बाहरी घटक (Internal and External of external environment) factor)
3. ईटोप विश्लेषण (ETOP Analysis)

 

(c) बाह्य पर्यावरण (External environment)
4. स्वोट विश्लेषण के तत्त्व (Elements of SWOT

(d) बाह्य पर्यावरणीय विश्लेषण की तकनीक (Technique of analysis) external environmental analysis)

5. आन्तरिक घटक (Internal factor)

(e) स्वोट विश्लेषण (SWOT Analysis)

 

 [उत्तर-1. (c), 2. (e), 3. (d), 4. (b), 5. (a).]

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chetansati

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