BCom 2nd Year Factory Act 1948 An Introduction Study Material Notes in Hindi

///

BCom 2nd Year Factory Act 1948 An Introduction Study Material Notes in Hindi

BCom 2nd Year Factory Act 1948 An Introduction Study Material Notes in Hindi: Objectives and Scope of the factory act main provision of factories act 1948 Constitutionalism of the Act Effect of Factories Act Is the present factored act adequate fundamental definitions Characteristics of Factories:

Factory Act 1948 An Introduction
Factory Act 1948 An Introduction

BCom 2nd Year Industrial Las General Introduction Study Material Notes in Hindi

कारखाना अधिनियम 1948 : एक परिचय

(FACTORY ACT, 1948 : AN INTRODUCTION)

लिये प्रयास के एवं जनप्रतिनिधियों में प्रथम कारण 1891; in परन्तु इन मनयम को सम

प्रस्तावना (Introduction) सम्पूर्ण विश्व समुदाय का क्रमिक विकास किसी न किसी रूप में कारखानों से सम्बद्ध रहा है तथा अनादिकाल से निर्माण कार्य होता आया है। उसमें लघु, कुटीर एवं वृहद् स्तरीय उत्पादन होता रहा है।

19वीं शताब्दी के मध्य तक हमारे देश में कारखानों में कार्य करने वाले श्रमिकों की कार्य की दशाओं पर नियन्त्रण स्थापित करने के लिये कोई अधिनियम/कानून नहीं था। भारत सरकार की नीति श्रम सम्बन्धी मामलों में हस्तक्षेप न करने (Non-interference) की थी, फलस्वरूप नियोक्ता मनमाने ढंग से श्रमिकों का शोषण करते थे। उदाहरण के लिये, अधिकांश कारखानों में सूर्योदय से सूर्यास्त तक श्रमिकों से कार्य लिया जाता था। कार्य के घण्टों की कोई निर्धारित सीमा नहीं थी। इसके अतिरिक्त उनके स्वास्थ्य, सुरक्षा, कल्याण तथा अवकाश आदि की भी कोई व्यवस्था नहीं थी। महिला एवं बाल श्रमिक अत्यधिक संख्या में थे कारखाना मालिकों का मुख्य उद्देश्य अधिकतम उत्पादन करना, लाभ कमाना एवं श्रमिकों का शोषण करना था।

कारखानों में कार्यरत श्रमिकों एवं कर्मचारियों की अति दयनीय स्थिति को देखते हुये बोम्बे कॉटन डिपार्टमेन्ट के मुख्य निरीक्षक मेजर मूर ने 1872-73 में अपनी रिपोर्ट में सर्वप्रथम श्रमिकों के शोषण, उनकी कठिनाइयों एवं विभिन्न समस्याओं पर ध्यान आकृष्ट किया और उनकी दशा में आवश्यक सुधार करने के लिये प्रयास के रूप में वांछित कानून बनाने का प्रश्न उठाया। – इस रिपोर्ट एवं जनप्रतिनिधियों के द्वारा श्रमिकों की दयनीय स्थिति पर अत्यधिक जागरूक होने पर यह परिणाम सामने आया कि वर्ष 1881 में प्रथम कारखाना अधिनियम बना। इस अधिनियम में समय-समय पर वांछित संशोधन करते हुये (i) संशोधित अधिनियम, 1891; (ii) संशोधित कारखाना अधिनियम, 1911; एवं (iii) संशोधित कारखाना अधिनियम, 1922 पारित किया गया। परन्तु इन संशोधनों के उपरान्त भी यह अधिनियम समय की आवश्यकता के अनुरूप सिद्ध न हो सका। अत: पुराने अधिनियम को समाप्त करके एक नया कारखाना अधिनियम, 1934 पारित किया गया जो शाही श्रम आयोग (Royal Commission on ‘ Labour) की सिफारिशों के अनुरूप था।

Factory Act 1948 An Introduction

समय के परिवर्तन के साथ-साथ यह अधिनियम भी अनुपयुक्त सिद्ध होने लगा एवं 28 अगस्त, 1948 को एक नया कारखाना अधिनियम पारित किया गया। इस अधिनियम को 23 सितम्बर, 1948 को तत्कालीन गवर्नर जनरल की स्वीकृति मिली तथा 1 अप्रैल, 1949 से इसे लागू किया गया।

इस अधिनियम में भी तीन बार महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किये जा चुके हैं-प्रथम सन् 1956 में, द्वितीय सन् 1976 में तथा तृतीय सन् 1987 में।

कारखाना अधिनियम के उद्देश्य तथा क्षेत्र

(Objectives and Scope of the Factory Act)

यह अधिनियम लागू काश्मीर सहित सम्पूर्ण भारत में लागू होता है तथा अधिनियम की धारा 2(m) के अन्तर्गत व्यक्त “कारखाना” (factory) की परिभाषा में आने वाले सभी औद्योगिक संस्थानों तथा उत्पादकीय प्रक्रियाओं का समावेश करता है । जब तक अन्यथा व्यवस्था की जाये यह केन्द्रीय/राज्य सरकारों से सम्बन्धित कारखानों पर भी लागू होगा।

(धारा 116) कारखाना अधिनियम का प्रमुख उद्देश्य श्रमिकों की कार्यदशाओं, स्वास्थ्य सम्बन्धी, सुरक्षा सम्बन्धा, अवकाश कार्यशील घण्टे आदि का नियमन करना तथा स्त्री और बाल श्रमिकों की सुरक्षा करना है ।

Factory Act 1948 An Introduction

कारखाना अधिनियम, 1948 के मुख्य प्रावधान

(Main Provisions of Factories Act, 1948)

इस अधिनियम के मुख्य प्रावधान अग्रलिखित हैं

1 साक्षप्त नाम, विस्तार एवं प्रारम्भ (धारा 1 वर्तमान कारखाना अधिनियम,1948 कहलाता है। इस आषानयम में कुल 120 धारायें हैं। यह अधिनियम वर्तमान में सम्पूर्ण भारत में लागू होता है। 1 अप्रैल, 1949 का यह अधनियम लागू किया गया। इस प्रकार यह अधिनियम आज सम्पूर्ण भारत में उन सभी कारखाना म लागू होता है जिन औद्योगिक संस्थानों में विद्यत शक्ति का उपयोग होने पर 10 या अधिक श्रमिक कार्य करत हैं अथवा विद्युत शक्ति का उपयोग न होने की दशा में 20 या अधिक श्रमिक कार्यरत हैं।

2. व्याख्या (धारा 2) कारखाना अधिनियम की धारा 2 के अन्तर्गत कारखानों से सम्बन्धित विभिन्न शब्दावलियों को परिभाषित किया गया है।

3. कारखानों की स्वीकृति, अनुज्ञापन तथा पंजीयन (Approval, licensing and registration of factories) (धारा 6 से धारा 10) इस अधिनियम की धारा 6 से धारा 10 के अन्तर्गत कारखानों की स्वीकृति, अनुज्ञापन तथा पंजीयन सम्बन्धी प्रावधान दिये हये हैं। प्रत्येक कारखाने को इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार स्वीकृति तथा लाइसेन्स प्राप्त करना पड़ता है तथा उसका पंजीयन भी करवाना पड़ता है। इस प्रकार कारखाने की स्थापना से लेकर उसके निरीक्षण सम्बन्धी प्रावधान इन धाराओं के अन्तर्गत दिये गये हैं।

4. स्वास्थ्य सम्बन्धी प्रावधान (धारा 11 से 20 तक) कारखाना अधिनियम की धारा 11 से 20 तक के अन्तर्गत किसी भी कारखाने में कार्यरत श्रमिकों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिये विस्तृत प्रावधान दिये गये हैं। कार्य के कमरों में पर्याप्त प्रकाश स्वच्छ वाय रोशनदान.कत्रिम नमी.स्वच्छ पीने का पानी, कमरों की सफेदी, शौचालय तथा मूत्रालय, पीकदान, गन्दे पदार्थों की निकासी, पर्यावरण, कूड़ा-करकट एकत्रित न होने, आदि के सम्बन्ध में विशेष प्रावधान हैं। इन प्रावधानों का उद्देश्य कारखानों में स्वस्थ कार्य की दशाओं को उपलब्ध कराना एवं उन्हें बनाये रखना है।

5. सुरक्षा सम्बन्धी प्रावधान (Provisions relating to safety) [धारा 21 से धारा 41 तक) श्रमिकों की सुरक्षा के महत्त्व को स्वीकार करते हुये ही कारखाना अधिनियम में श्रमिकों की सुरक्षा के लिये कारखाना अधिनियम की धारा 21 से धारा 40 के अन्तर्गत सुरक्षा सम्बन्धी विभिन्न प्रावधानों का समावेश किया गया है। इस अधिनियम में यन्त्रों की घेराबन्दी करने, चलते यन्त्रों पर कार्य करने,खतरनाक यन्त्रों पर युवा व्यक्तियों की नियुक्ति न करने,स्वचालित यन्त्र स्थापित करने, बच्चों तथा औरतों की खतरनाक मशीनों पर नियुक्ति न करने देने सम्बन्धी अनेक प्रावधान दिये गये हैं। इनके अतिरिक्त आग, हानिकारक गैस, विस्फोटक गैस आदि से सुरक्षा सम्बन्धी प्रावधानों का भी इसमें उल्लेख किया गया है। जिन कारखानों में 1,000 या इससे अधिक श्रमिक कार्यरत हैं, उनमें सुरक्षा अधिकारी की नियुक्ति का प्रावधान है।

Factory Act 1948 An Introduction

6. खतरनाक प्रक्रियाओं के सम्बन्ध में प्रावधान (Provisions Regarding Hazardous Processes) कारखाना (संशोधन) अधिनियम, 1987 के द्वारा इस अधिनियम में खतरनाक प्रक्रियाओं वाले कारखानों के अधिष्ठाताओं के अनेक कर्तव्य निर्धारित किये गये हैं। ऐसी प्रक्रियाओं वाले कारखानों के स्थान की अनुमति हेतु सुझाव देने के लिये स्थान मूल्यांकन समिति की नियुक्ति का भी प्रावधान किया गया है। इसके अतिरिक्त कारखानों में सुरक्षा समिति की स्थापना करने का प्रावधान भी किया गया है। ।

7. श्रम कल्याण व्यवस्थायें (Provisions Relating to Labour Welfare) कारखाना अधिनियम की धारा 42 से धारा 50 के अन्तर्गत कारखाने में कार्य करने वाले श्रमिकों के कल्याण के लिये विभिन्न प्रावधान किये गये हैं। नहाने-धोने, कपड़े रखने तथा सुखाने, बैठने, प्राथमिक उपचार, केन्टीन, आराम-कक्ष, भोजन-कक्ष, शिश-गह आदि की व्यवस्था करने सम्बन्धी प्रावधान इस अधिनियम में दिए गए हैं। इसके अतिरिक्त 500 या अधिक श्रमिकों वाले कारखानों में श्रम कल्याण अधिकारी की नियुक्ति का भी प्रावधान इस अधिनियम में किया गया है।

8. वयस्क श्रमिकों के कार्य के घण्टों सम्बन्धी प्रावधान (Provisions Relating to Working Hours | of Adults) कारखाना अधिनियम की धारा 51 से धारा 66 के अन्तर्गत कारखाने में काम करने वाले वयस्क । श्रमिकों के काम के घण्टों के सम्बन्ध में विभिन्न प्रावधानों का समावेश किया गया है। इस अध्याय में श्रमिकों के कार्य के साप्ताहिक घण्टों, साप्ताहिक अवकाश, क्षतिपूरक अवकाश, दैनिक कार्यों के घण्टों, पध्यान्तर, कार्य के घण्टों के विस्तार, रात्रि पारियों में नियुक्ति, कार्य के लिये मजदूरी, वयस्कों के कार्य के घण्टे एवं उनसे सम्बन्धित अनेक प्रावधानों का उल्लेख किया गया है।

इन प्रावधानों में समाविष्ट मुख्य बातें इस प्रकार हैं-एक श्रमिक से अधिकतम 48 घण्टे प्रति सप्ताह कार्य करवाया जा सकता है, प्रतिदिन 5 घण्टों के कार्य के बाद आधे घण्टे का मध्यान्तर दिया जाना चाहिये। किसी भी एक दिन में श्रमिक से 9 घण्टे से अधिक कार्य नहीं करवाया जा सकता है। दिन का साप्ताहिक अवकाश दिया जाना चाहिये।

9. बालकों, किशोरों की नियुक्ति एवं कार्य के घण्टों सम्बन्धी प्रावधान (Provisions Relating to the Appointment and Working Hours of Children and Adolescents), आधानयम की धारा 67 से धारा 77 के अन्तर्गत किसी भी कारखाने में नवयुवकों अथात् बालका, किशारा का नियुक्ति एवं कार्य के घण्टों के सम्बन्ध में विशेष प्रावधान दिये गये हैं। इस अधिनियम में बालका (15 वर्ष से कम आयु के बच्चे) की कारखानों में नियक्ति पर निषेध लगाया गया है। इसके अतिरिक्त किशारा (1 9 स आधक किन्तु 18 वर्ष से कम आय के व्यक्ति) के कार्य के घण्टे वयस्क श्रमिकों का तुलनाम काफी कम रखे गये हैं। किशोरों से साढे चार घण्टे प्रतिदिन से अधिक कार्य नहीं करवाया जा सकता है तथा इन्हें रात्रि की पारियों में कार्य पर नहीं लगाया जा सकता है।

Factory Act 1948 An Introduction

10. महिला श्रमिकों सम्बन्धी प्रावधान (Provisions Relating to Women Workers) कारखाना अधिनियम में महिला श्रमिकों की नियुक्ति, कार्य के घण्टों आदि के सम्बन्ध में प्रावधान दिये गये है। महिला श्रमिकों से रात्रि पारियों में (सायं सात बजे से प्रात: छः बजे के बीच) कार्य नहीं करवाया जा सकता है एवं उन्हें भारी सामान उठाने जैसे कार्यों पर भी नहीं लगाया जा सकता है।

11. मजदूरी सहित वार्षिक अवकाश सम्बन्धी प्रावधान (Provisions Relating to Annual Leave with Wages) भारतीय कारखाना अधिनियम की धारा 78 से धारा 84 के अन्तर्गत कारखाने में कार्य करने वाले श्रमिकों के लिये मजदूरी सहित वार्षिक अवकाश के सम्बन्ध में विभिन्न प्रावधानों की विवेचना की गई। है। प्रत्येक वयस्क श्रमिक जिसने एक कैलेण्डर वर्ष में 240 या अधिक दिनों के लिये कार्य कर लिया है तो उसे प्रत्येक 20 दिनों के लिये अगले दिन की सवेतन छुट्टी दी जायेगी। किशोर की दशा में 15 दिन के लिये एक दिन की छुट्टी दिये जाने का प्रावधान है।

12. विशेष या विशिष्ट प्रावधान (Specific Provisions) (धारा 85 से 91 तक)-कारखाना अधिनियम की धारा 85 से घारा 91 के अन्तर्गत कारखाने के लिये कुछ विशेष प्रावधान किये गये हैं जिनके द्वारा कारखाने में कार्यरत श्रमिकों को लाभ, मालिकों को नियमित रूप से कार्य करने के लिये प्रेरित करने सम्बन्धी प्रावधान दिये गये हैं,जो इस प्रकार से हैं

(i) कुछ विशेष स्थानों पर अधिनियम को लागू करने का अधिकार (धारा 85)

(ii) सार्वजनिक तथा अनुसन्धान संस्थाओं को मुक्त करने अथवा छूट देने का अधिकार (धारा 86)

(iii) खतरनाक अथवा जोखिमपूर्ण निर्माण प्रक्रिया अथवा क्रियायें (धारा 87)

(iv) विशेष दुर्घटना की सूचना (धारा 88)

(v) कुछ बीमारियों की सूचना (धारा 89)

(vi) दुर्घटना या बीमारी के सम्बन्ध में प्रत्यक्ष जाँच कराने का अधिकार (धारा 90)

(vii) नमूने लेने का अधिकार (धारा 91)

13. दण्ड व्यवस्थायें (Penalty Provisions)-धारा 92 से धारा 106 के अन्तर्गत कारखाना अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों को पूर्णतः कार्यान्वित करने एवं अपराधियों को दण्डित करने की भी व्यवस्था की गयी है। सन् 1987 में किये गये संशोधनों के परिणामस्वरूप दण्ड सम्बन्धी प्रावधानों को अधिक सख्त एवं व्यापक बनाया गया है। इनमें आर्थिक दण्ड तथा कारावास दण्ड दोनों का समावेश है।

14. अनुपूरक प्रावधान (Supplemental Provisions) (धारा 107 से धारा 120 तक)-कारखाना अधिनियम का अन्तिम अध्याय अनुपूरक शीर्षक के नाम से दिया गया है जिसमें अपील.सूचनाओं को लगाना (Display of Notices), प्रत्याय (Return) आदि के सम्बन्ध में प्रावधान दिये गये हैं।

कारखाना अधिनियम का प्रशासनप्रस्तुत कारखाना अधिनियम के प्रावधानों के क्रियान्वयन का उत्तरदायित्व सम्बन्धित राज्य सरकारों का है जिन्हें ये अपने निरीक्षण अधिकारियों के माध्यम से करती हैं। इनका विस्तृत विवेचन अगले अध्यायों के अन्तर्गत किया गया है।

Factory Act 1948 An Introduction

क्या वर्तमान कारखाना अधिनियम शक्ति से परे है?

(Is the Present Factory Act Ultra-vires)

अथवा

अधिनियम की संवैधानिकता

(Constitutionality of the Act)

कुछ आलोचकों का मत है कि वर्तमान कारखाना अधिनियम केन्द्र की शक्ति से परे है। इस सम्बन्ध में। हमारा यह कहना है कि प्रस्तुत अधिनियम Government of India Act, 1935 की अनुसूची 7 का सूचा। ३ क विषय संख्या 27 के अधीन है। इस प्रकार प्रस्तत अधिनियम पूर्णतः केन्द्रीय विधायनी शक्ति के अन्दर है। यद्यपि विधायन का यह खण्ड प्रादेशिक विषय में डाल दिया गया है,परन्तु फिर भी यह धारणा नहीं बनाई जा सकती कि यह अधिनियम केन्द्र की विधायन शक्ति के परे है। इस सम्बन्ध में पी० लक्ष्मण राव एण्ड सन्स बनाम एडीशनल इन्स्पेक्टर ऑफ फैक्टरीज एवं अन्य का विवाद उल्लेखनीय है ।

कारखाना अधिनियम का प्रभाव

(Effect of Factories Act)

समय-काल-परिस्थितियों के अनुरूप समय-समय पर कारखाना अधिनियम में परिवर्तन हुआ है। वर्तमान कारखाना अधिनियम में श्रमिक हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता से संरक्षण प्रदान किया गया है। श्रमिक अब। यह समझने लगे हैं कि उनके पास भी अधिकार हैं जिनका उपयोग वे अपनी दशा सधारने एवं अपनी बात मनवाने के लिये कर सकते हैं। दूसरी ओर, नियोक्ता के मन में भी यह भय उत्पन्न हुआ है कि यदि उसने अत्यधिक मनमानी की तो श्रमिकों एवं सरकार दोनों के द्वारा उसके विरुद्ध कार्यवाही की जा सकती है। वस्तुतः वर्तमान कारखाना अधिनियम के लागू होने के बाद देश में श्रमिकों की दशा तथा कारखाने के वातावरण में निरन्तर सुधार हुआ है। नियोक्ता द्वारा किये जाने वाले मनमाने शोषण पर प्रभावपूर्ण रोक लगी है तथा सरकार श्रमिकों के प्रति अपने दायित्वों का निर्वाह करने के प्रति जागरूक हई है। निःसन्देह वर्तमान कारखाना अधिनियम ने श्रमिकों की कार्य की दशाओं को सुधारने एवं कारखाने में उत्पादकता बढ़ाने की दिशा में सराहनीय भूमिका निभाई है।

क्या वर्तमान कारखाना अधिनियम पर्याप्त है?

(Is the Present Factories Act Adequate?)

वर्तमान कारखाना अधिनियम, 1948 का व्यापक रूप से अध्ययन करने के पश्चात् यह कहा जा सकता है कि वर्तमान कारखाना अधिनियम, 1948 (अब तक के किये गये संशोधनों सहित) पिछले सभी कारखाना अधिनियमों की तुलना में अधिक व्यापक एवं श्रेष्ठ है। परन्तु प्रश्न यह है कि क्या वर्तमान कारखाना अधिनियम पर्याप्त है अथवा इसमें अभी और अधिक संशोधन की आवश्यकता है। इस प्रश्न पर गहराई से चिन्तन एवं मनन करने के पश्चात् हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि प्रस्तुत कारखाना अधिनियम में अभी भी निम्नलिखित कमियाँ विद्यमान हैं, जिनका सुधार करने के लिये निकट भविष्य में आवश्यक कदम उठाने होंगे

1 अनेक तकनीकी शब्दों की स्पष्ट व्याख्या का अभावप्रस्तुत कारखाना अधिनियम में प्रयुक्त अभी भी ऐसे अनेक शब्द हैं जिनकी या तो परिभाषा ही नहीं दी गई है अथवा अस्पष्ट परिभाषा है, जो सामान्य व्यक्ति की समझ के बाहर है, जैसे-धूल तथा धुआँ, कृत्रिम नमी.खतरनाक यन्त्र मजदरी आदि । परिणामस्वरूप इस अधिनियम को प्रभावी रूप में लागू करने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। अतः प्रयुक्त तकनीकी शब्दों की स्पष्ट व्याख्या होनी चाहिये ।

2. श्रमिक की स्पष्ट एवं निश्चित परिभाषा का अभाव-वर्तमान कारखाना अधिनियम में श्रमिक की निश्चित परिभाषा का अभाव है। परिणामस्वरूप अनेक बार कुछ कार्यों में लगे हये व्यक्तियों को श्रमिक मान लिया जाता है एवं कुछ अन्य कार्यों में लगे हुये व्यक्तियों को श्रमिक नहीं माना जाता है। श्रमिक की स्पष्ट एवं निश्चित परिभाषा न होने के कारण प्रतिवर्ष अनेक मामले न्यायालयों में केवल इसलिये प्रस्तत किये जाते हैं कि अमक कार्यरत व्यक्ति श्रमिक की परिभाषा में आता है या नहीं। ऐसे मामलों के निर्णयों में न्यायालयों। का समय भी व्यर्थ चला जाता है । अत: कारखाना अधिनियम में श्रमिक को स्पष्ट एवं निश्चित अर्थ में परिभाषित। किया जाना परमावश्यक है।

3. कठोरता का अभावइस अधिनियम में विभिन्न प्रावधानों को सैद्धान्तिक रूप से कठोर कहा जा सकता है लेकिन व्यावहारिक रूप से देखा जाये तो कारखाना अधिनियम के प्रावधान कठोर नहीं हैं जिसके। परिणामस्वरूप संगठित क्षेत्र ही नहीं, बल्कि असंगठित क्षेत्र के कारखानों में भी इसके प्रावधानों को लाग नहीं। किया जाता है। छोटे-छोटे उपक्रम भी प्रायः इसकी अवहेलना करते हुये देखे जा सकते हैं। इस प्रकार कठोरता के अभाव में श्रमिकों का शोषण होता है। इस प्रकार इसके प्रावधानों का अनुपालन अधिक कठोरता से। सुनिश्चित किया जाना अति आवश्यक है।

4. कर्मचारियों की संख्या को कारखाने का आधार मानना-वर्तमान कारखाना अधिनियम में कार्यरत कर्मचारियों की संख्या को ही कारखाने की परिभाषा का आधार माना गया है। इसके अनुसार विद्युत शक्ति का उपयोग होने पर कम-से-कम 10 तथा विद्युत-शक्ति का उपयोग न होने पर कम-से-कम 20 श्रमिक कार्यरत होने पर ही कारखाना कहलाता है। यदि इससे कम श्रमिक कार्यरत है तो वह संस्थान कारखाना नहीं है। फलतः इस प्रावधान का कारखाने के स्वामी बड़ा दुरुपयोग करते हैं। वे या तो अस्थायी रूप में श्रमिकों को रखते हैं। तथा उनका नाम उपस्थिति रजिस्टर में अंकित नहीं करते हैं अथवा अभिलेखों में अन्य प्रकार से हेर-फेर करते है और इस प्रकार जहाँ तक बन पडे अपने कारखाने को इस अधिनियम के अधीन कारखाना की श्रेणी में आने से बचा लेते हैं। अत: केवल श्रमिक संख्या के आधार पर ही किसी संस्थान को कारखाना घोषित या अघोषित नहीं करना चाहिये। इस हेतु उत्पादन या विक्रय की मात्रा या विद्युत शक्ति या कच्चे माल के उपयोग आदि । कुछ तत्वों को भी कारखाने के निर्धारण में ध्यान में रखा जा सकता है।

5. निरीक्षण सम्बन्धी अपर्याप्त व्यवस्थायेंप्रस्तुत अधिनियम की निरीक्षण सम्बन्धी व्यवस्थायें पूर्णतः अपर्याप्त है। उदाहरण के लिये, वर्तमान कारखाना अधिनियम में ऐसा कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है कि एक निरीक्षक के अधिकार में कम-से-कम तथा अधिक-से-अधिक कितने कारखाने हो सकते हैं, ताकि वह अपना कार्य पूर्ण निष्ठा एवं दक्षता के साथ सम्पन्न कर सके । परिणामस्वरूप किसी निरीक्षक के नियन्त्रण में तो इतने अधिक कारखाने दे दिये जाते हैं कि वह ठीक प्रकार से निरीक्षण कर ही नहीं पाता और किसी निरीक्षक के अधिकार में इतने कम कारखाने होते हैं कि वह खाली बैठा रहता है । वस्तुतः तकनीकी एवं शैक्षणिक योग्यता वाले निरीक्षकों की नियुक्ति की जानी चाहिये तथा उनका कार्यक्षेत्र पूर्व निर्धारित होना चाहिये। साथ ही जिन कारखानों में केवल महिला श्रमिक कार्य करती हैं अथवा उनकी संख्या अधिक है, वहाँ पर महिला निरीक्षकों की ही नियुक्ति की जाये । इस सम्बन्ध में कारखाना अधिनियम में स्पष्ट प्रावधान होना चाहिये।

Factory Act 1948 An Introduction

6. बालक श्रमिक की आयु सम्बन्धी प्रावधानबाल श्रमिकों की आयु पहले 12 वर्ष थी जिसे बढ़ाकर 14 वर्ष कर दिया गया है, परन्तु विकसित एवं विकासशील देशों के अनुसार इस आयु को 16 वर्ष करना अति आवश्यक है।

7. श्रमिकों के अधिक कार्य के घण्टेभारत में वर्तमान कारखाना अधिनियम के अन्तर्गत श्रमिकों के कार्य के घण्टे प्रतिदिन 9 एवं साप्ताहिक कार्य के घण्टे 48 हैं जबकि पाश्चात्य देशों में श्रमिकों के प्रतिदिन 8 घण्टे एवं साप्ताहिक 42 घण्टे कार्य करने का प्रावधान है। अतः श्रमिकों के कार्य के घण्टों की संख्या में कमी आज की आवश्यकता ही नहीं, बल्कि अनिवार्यता है।

8. विद्यमान दण्ड व्यवस्था का पर्याप्त होनावर्तमान कारखाना अधिनियम के अन्तर्गत किसी प्रावधान के उल्लंघन की दशा में दण्ड के प्रावधान उचित एवं कठोर नहीं होने से इनका खुला उल्लंघन होता है । अतः दण्ड व्यवस्था को अधिक कठोर बनाना आवश्यक है। इसके अन्तर्गत अधिक आर्थिक दण्ड एवं कारावास की सजा में वृद्धि एवं कठोरता से लागू करने के लिये आवश्यक संशोधन करना आवश्यक हो गया है।

9. श्रमिकों को लाभों में हिस्सा प्रदान करने सम्बन्धी प्रावधान का अभाव-वर्तमान कारखना अधिनियम में श्रमिकों को एवं कर्मचारियों को लाभों में पर्याप्त हिस्सा देने के सम्बन्ध में स्पष्ट प्रावधान नहीं हैं। अतः। वर्तमान कारखाना अधिनियम में आवश्यक संशोधन कर श्रमिकों को लाभों में एक निश्चित प्रतिशत हिस्सा अनिवार्य रूप से मिले, यह प्रावधान करना चाहिये।

Factory Act 1948 An Introduction

आधारभूत परिभाषायें

(Fundamental Definitions)

कारखाना अधिनियम के अन्तर्गत प्रयुक्त विभिन्न शब्दों की धारा 2 के अन्तर्गत दी गई व्याख्या का जब तक विषय या सन्दर्भ से कोई विपरीत अर्थ न निकले उनका अर्थ इस धारा के अन्तर्गत स्पष्ट किये गये अर्थ । के अनुसार ही होगा। संक्षेप में, इस अधिनियम के अन्तर्गत प्रयुक्त शब्दावली की परिभाषायें निम्न प्रकार है

1 प्रौढ़ अथवा वयस्क (Adult)–’प्रौढ़ अथवा वयस्क’ से आशय उस व्यक्ति से है जो अपनी आयु के 18 वर्ष कर चुका हो । यहा व्यक्ति शब्द से आशय स्त्री तथा पुरुष दोनों से ही है। [धारा 2(a)]

Adult means a person who has completed his eighteenth year of age.

2. किशोर (Adolescent) किशोर से आशय ऐसे व्यक्ति से है जिसने अपनी आयु के 15 वर्ष पूरे कर लिए हों किन्तु 18 वर्ष पूरे न किये हों।। [धारा 2(b)]

3. कलेण्डर वर्ष (Calendar Year) कलैण्डर वर्ष से आशय 12 माह की उस अवधि से है जो किसी भी वर्ष 1 जनवरी से प्रारम्भ होकर 31 दिसम्बर को समाप्त होती है ।2 । [धारा 2(bb)]

4. बालक (Child) जिस व्यक्ति ने अपनी उम्र के 15 वर्ष पूरे नहीं किये हैं,वह बालक है। दूसरे शब्दों में, 15 वर्ष से कम उम्र का व्यक्ति बालक कहलाता है। [धारा 2(c)]

5. सक्षम व्यक्ति (Competent Person) संशोधित कारखाना अधिनियम, 1987 के अनुसार सक्षम व्यक्ति से आशय किसी भी ऐसे व्यक्ति या संस्था से है जिसे मुख्य निरीक्षक द्वारा अधिनियम के प्रावधान के अन्तर्गत किसी कारखाने में की जाने वाली जाँचों, परीक्षणों तथा निरीक्षणों के लिये मान्यता प्रदान कर दी है। सक्षम व्यक्ति को मान्यता देने से पूर्व निम्नलिखित बातें ध्यान में रखी जायेंगी

(i) उस व्यक्ति की योग्यतायें एवं अनुभव तथा उसके पास उपलब्ध सुविधायें; अथवा

(ii) उस संस्था में नियुक्त व्यक्तियों की योग्यतायें एवं अनुभव तथा उसमें उपलब्ध सुविधायें।

यह उल्लेखनीय है कि किसी भी कारखाने की ऐसी जाँचों, परीक्षणों तथा निरीक्षणों के लिये एक से अधिक व्यक्तियों या संस्थाओं को सक्षम व्यक्ति के रूप में मान्यता दी जा सकती है।4 धारा 2c(a)] ___

6. खतरनाक प्रक्रिया (Hazardous Process) खतरनाक प्रक्रिया से तात्पर्य प्रथम अनुसूची के किसी उद्योग से सम्बन्धित ऐसी प्रक्रिया या क्रिया से है जिस पर यदि विशेष ध्यान न दिया जाये तो उसमें प्रयुक्त कच्चा माल अथवा उसके मध्यवर्ती या तैयार माल, गौण-उत्पादों (By products), व्यर्थ या अपशिष्ट (Waste) पदार्थों से निम्नलिखित प्रभाव होते हैं

(i) उसमें संलग्न या सम्बन्धित व्यक्तियों के स्वास्थ्य को गम्भीर क्षति पहुँच सकती हो; अथवा

(ii) सामान्य वातावरण दूषित हो सकता हो।

परन्तु यदि राज्य सरकार चाहे तो राजकीय गजट में विज्ञप्ति प्रसारित करके प्रथम अनुसूची में किसी भी उद्योग को जोड़कर, हटाकर या हेर-फेर करके संशोधन कर सकती है ।। [धारा 2(b)]

7. नवयुवक (Young Person) नवयुवक वह है जो या तो बालक है या किशोर है। दूसरे शब्दों में 18 वर्ष से कम उम्र का कोई भी व्यक्ति नवयुवक है । । [धारा 2(d)]

8. दिन (Day) मध्यरात्रि से प्रारम्भ होने वाली 24 घण्टों की अवधि को दिन कहते हैं ।।

9. सप्ताह (Week) सप्ताह से आशय सात दिनों की उस अवधि से है जो शनिवार को मध्य रात्रि से प्रारम्भ होती है अथवा कारखाना निरीक्षक द्वारा लिखित में अनमोदित किसी भी दिन का मध्य रात्रि स प्रारम्भ होती है।

10. शक्ति (Power) शक्ति से आशय विद्यत शक्ति या ऊर्जा (Eneray) या अन्य किसी प्रकार की शाक्त या ऊजो से है जो यन्त्रों की सहायता से सम्प्रेषित (Transmit) की जाती है जिसका उत्पादन मनुष्या या पशु साधनों से नहीं किया जाता है। [धारा 2(g)]

11. प्रमुख चालक (Prime Mover) प्रमुख चालक से तात्पर्य किसी ऐसे इन्जन, मोटर या अन्य उपकरण से है जो शक्ति का उत्पादन करता है या अन्य किसी प्रकार से शक्ति उपलब्ध करता है। [धारा 2(h)]

12. सम्प्रेषण या संचारण यन्त्र (Transmission Machinery) सम्प्रेषण या संचारण यन्त्र से तात्पर्य उन यन्त्रों से है जो प्रमुख चालक की गति अन्य यन्त्रों को संचारित करते हैं अथवा उन यन्त्रों से है जिनके माध्यम से किसी यन्त्र या उपकरण द्वारा शक्ति प्राप्त की जाती है। गति संचारित करने वाले तथा प्राप्त करने वाले यन्त्रों में निम्नलिखित को सम्मिलित किया जाता है

(i) धुरा (Shaft); (ii) पहिया (Wheel); (iii) ढोल (Drum); (iv) चरखी (Pully); (v) चरखी यन्त्र (System of Pulleys); (vi) संयोजक क्लच (Coupling clutch); (vii) यन्त्रों के पट्टे (Driving belt); तथा (viii) अन्य कोई उपकरण तथा साधन जो गति को संचारित करने में सहायक है। [धारा (i)]

13. यन्त्र (Machinery) यन्त्र का अभिप्राय मुख्य चालक (Prime mover), प्रेषण यन्त्र (Transmission Machinery) अथवा उन सब यन्त्रों से है जिनके द्वारा शक्ति उत्पन्न की जाती है,स्थानान्तरित की जाती है तथा प्रेषित की जाती है। इस प्रकार इस अधिनियम के अन्तर्गत यन्त्र से आशय ऐसे यन्त्रों से है जो मानवीय एवं पशु-शक्ति से चालित न हों, अपितु अन्य शक्ति (जैसे विद्युत शक्ति, पानी, कोयले, अणु अथवा भाप की शक्ति) से चालित हो । वस्तुतः हाथ से चलाये जाने वाले यन्त्र कारखाना अधिनियम के अन्तर्गत नहीं आते।

Factory Act 1948 An Introduction

14. निर्माण प्रक्रिया (Manufacturing Process) निर्माण प्रक्रिया का अभिप्राय निम्नलिखित उद्देश्य के लिये की गई प्रक्रिया से है

(i) किसी वस्तु या पदार्थ को प्रयुक्त करने, बेचने, परिवहन करने, सुपुर्दगी अथवा व्यवस्था करने के उद्देश्य से बनाना, परिवर्तित करना (Transforming), मरम्मत करना, सजाना (Ornamenting), पूर्ण करना या फिनिश (Finishing) करना,पैकिंग (Packing) करना, तेल देना, धोना,साफ करना, टुकड़े-टुकड़े करना, ढहाना (Demolishing) अथवा अन्य प्रकार से उपर्युक्त उद्देश्य हेतु काम में लाना।

(ii) तेल, पानी या गन्दे पानी को निकालना या पम्प करना।

(iii) शक्ति उत्पन्न करना (Generating), परिवर्तित करना (Transforming) अथवा प्रेषित करना (Transmitting)।

(iv) मुद्रण हेतु टाइप कम्पोज करना, लैटर प्रैस द्वारा मुद्रण करना, पत्थर पर लिखकर छपाई (Lithography) करना,फोटो के चित्र को धातु की चादर पर उतारकर खोदना (Photogravuring) या इसी प्रकार की अन्य क्रिया करना अथवा पुस्तक की जिल्द बाँधना।

(v) जहाजों अथवा नावों (Ships and Vessels) का निर्माण करना, पुनःनिर्माण करना, मरम्मत करना, फिर से सुधारना (Refitting), फिनिश (Finishing) करना, विघटित (Breaking up) करना। (vi) सुरक्षित रखने अथवा संग्रह के लिये किसी वस्तु को शीत-गृह (Cold Storage) में रखना।।

[धारा 2(b)] इस धारा के अध्ययन से निर्माण प्रक्रिया में आने वाली कुछ क्रियाओं का बोध अवश्य होता है किन्तु निर्माण प्रक्रिया की प्रकृति का ज्ञान नहीं हो पाता है। वास्तव में ऐसा कोई सूत्र निर्धारित नहीं किया गया है जिससे यह निर्धारित किया जा सके कि कोई प्रक्रिया निर्माण प्रक्रिया है अथवा नहीं।

केस लॉ : कर्नल सरदार एवं अन्य बनाम सरकार व अन्य के विवाद में राजस्थान उच्च न्यायालय ने अपना निर्णय देते हुये लिखा है कि “यह प्रत्येक मामले की परिस्थितियों पर निर्भर करेगा कि कोई प्रक्रिया निर्माण प्रक्रिया है अथवा नहीं। प्रत्येक मामले का निर्णय करते समय उसके तथ्यों, उस प्रक्रिया की प्रकृति, उसके स्वाभाविक परिणामों तथा प्रचलित व्यावसायिक मान्यताओं को ध्यान में रखना होगा।”

बम्बई सरकार बनाम ए० एच० भिवण्डीवाला के मामले में यह निर्णय दिया गया कि नमक बनाने, उसे पैक करने तथा अभिदान करने की क्रिया निर्माण प्रक्रिया है,यद्यपि यह मानवीय श्रम के द्वारा ही की जाती है। यह आवश्यक नहीं कि निर्माण प्रक्रिया में मशीन की सहायता ली ही जाये। मशीन के प्रयोग के बिना भी निर्माण प्रक्रिया की जा सकती है।

इसी प्रकार चिन्तामनराव बनाम मध्य प्रदेश सरकार के मामले में यह निर्णय दिया गया है कि बीड़ी बनाने का काम निर्माण प्रक्रिया की श्रेणी में आता है। निर्माण प्रक्रिया यान्त्रिक शक्ति की सहायता से अथवा मानवीय श्रम अथवा दोनों से ही हो सकती है। यह बात महत्त्वपूर्ण है कि निर्माण प्रक्रिया विक्रय तथा लाभ कमाने के उद्देश्य से की जाये।

इतनी अनिश्चितता के बावजूद भी निर्माण प्रक्रिया की एक आधारभूत बात यह है कि उससे कुछ परिवर्तन या रूपान्तरण (Transformation) होना चाहिये । चाहे किसी वस्तु पर कितना ही श्रम लगाया गया हो और वह भी मशीनों के माध्यम से लगाया गया हो, तो भी वह निर्माण प्रक्रिया नहीं मानी जाएगी जब तक कि उस वस्तु में कोई परिवर्तन नहीं हुआ हो। दूसरे शब्दों में, जब तक उस वस्तु के विद्यमान स्वरूप में कोई ऐसा परिवर्तन नहीं हुआ हो जिससे कि व्यावसायिक जगत में उसे भिन्न वस्तु के रूप में जाना जा सके तब तक उस क्रिया को निर्माण प्रक्रिया नहीं कहा जा सकता है।

न्यायाधीशों के निर्णयों के अनुसार घोषित निर्माण प्रक्रियायें-विभिन्न मामलों पर विचार करते समय न्यायाधीशों ने निम्नलिखित प्रक्रियाओं को निर्माण प्रक्रिया घोषित किया है

(i) कपास ओटना और दबाना। [Sheikh Jafarji Hapitullah Versus Sheikh Ismail, AIR (1937), Nag. 31] (ii) बीड़ी बनाना। [Chintaman Rao and Others Versus State of M.P., AIR (1958) SC388]

(iii) नमक के कारखानों में समुद्री पानी से नमक बनाना। [Ardeshir Bhiwandjwala Versus State of Bombay (Now Maharashtra). AIR (1962) SC 29]

(iv) लॉण्ड्री में कपड़े धोने की प्रक्रिया।

(v) गैस के साथ बीयर मिलाना और बोतलों में भरना।

(vi) मिठाई के पैकेट तैयार करना ।

(vii) सुपारी काटना तथा सुखाना।

(viii) मूंगफली छीलना।

(ix) धूप में सूखी तम्बाकू की पत्तियों को एकत्र करना, प्रसंस्करण करना, भण्डारन करना तथा उनका परिवहन करना।

(x) तम्बाकू के पत्तों को गीला करके निचोड़ने तथा सुखाने की क्रिया।

(xi) विक्रय हेतु दूध का पेस्चुराईजेसन।

(xii) सुखा दूध निर्मित करना।

(xiii) चूड़ियों में रंग भरने के लिये नक्कासी करना।

(xiv) विभिन्न स्रोतों से घी इकट्ठा करना तथा फिर ‘हीटिंग’ करके तथा उनको टीनों में उड़ेल कर सील करना।

(xv) एक रैस्टोरेन्ट की रसोई में खाद्य पदार्थों तथा अन्य खाद्यों को बनाना।

(xviii) पानी खींचने या निकालने की क्रिया।

(xix) मोटर गाड़ियों की धुलाई, सफाई तथा तेल देना [Gateway Auto Service Vs. Regional Director, E.S.L. Corporation-1981 Lab. I.C-49 (Bom.)]

Factory Act 1948 An Introduction

(xxx) फिल्म स्टूडियो जहाँ कच्ची फिल्मों से पक्की फिल्में बनाई जाती हैं, निर्माण प्रक्रिया के अन्तर्गत आते हैं।

अपवादन्यायालयों ने निम्नलिखित क्रियाओं को निर्माण प्रक्रिया नहीं माना है

(i) वस्तुओं की छंटाई करना

(ii) अनाज बीनना।

(iii) फिल्म का प्रदर्शन करना

(iv) मनुष्यों द्वारा घास की गाँठे बनाना।

(v) केवल पैकिंग मात्र का कार्य करना।

(vi) शीत भण्डार में रखने से आ जाने वाली नमी दूर करने के लिये वस्तुओं को धूप में सुखाने की प्रक्रिया।

विशेष टिप्पणीयहाँ पर ध्यान रखने योग्य बात है कि निर्माण प्रक्रिया विक्रय तथा लाभ कमाने के उद्देश्य से की जानी चाहिये । उदाहरण के लिये, घरेलू उपयोग तथा शौक के लिये की गई क्रिया निर्माण प्रक्रिया नहीं हो सकती, क्योंकि इसका उद्देश्य विक्रय द्वारा लाभोपार्जन करना नहीं है।

15. श्रमिक अथवा श्रमजीवी (Worker) ‘श्रमिक से आशय ऐसे व्यक्ति से है जो प्रत्यक्ष या किसी एजेन्सी (जिसमें ठेकेदार भी सम्मिलित है) के माध्यम से नियोक्ता की जानकारी से या बिना जानकारी के मजदूरी पर या बिना मजदूरी पर किसी निर्माण प्रक्रिया या निर्माण प्रक्रिया के लिये कार्य में आने वाले यन्त्र या भवन के किसी भाग की सफाई के लिये या निर्माण प्रक्रिया से सम्बन्धित या उसके लिये किये जाने वाले किसी कार्य के लिये नियुक्त किया गया हो। किन्तु इसमें भारतीय संघ की सशस्त्र सेनाओं का सदस्य सम्मिलित नहीं है ।।

श्रमिक की परिभाषा का विवेचन एवं विश्लेषण अधिनियम द्वारा श्रमिक की परिभाषा का विवेचन एवं विश्लेषण करने पर निम्नलिखित विशेषतायें स्पष्ट होती हैं__ अनबन्ध-श्रमिक और नियोक्ता के मध्य अनुबन्ध अवश्य होना चाहिये। यदि किसी श्रमिक की नियुक्ति ठेकेदार द्वारा की जाती है तो वह श्रमिक नहीं कहलायेगा, क्योंकि श्रमिकों पर नियोक्ता का नियन्त्रण होना आवश्यक है।

(ii) नियुक्तिश्रमिक की नियुक्ति प्रत्यक्ष अथवा एजेन्सी द्वारा होनी चाहिये । प्रत्यक्ष नियुक्ति का आशय नियोक्ता द्वारा नियुक्ति से है। एजेन्सी द्वारा नियुक्ति का अभिप्राय किसी ठेकेदार या अन्य व्यक्ति द्वारा की गई नियुक्ति से है जो नियोक्ता के अधीन कार्यरत हो।

(ii) मजदूरी का भुगतान अनिवार्य नहीं श्रमिकों की नियुक्ति मजदूरी अथवा बिना मजदूरी के भी की जा सकती है, अर्थात् ऐसे व्यक्ति जो कार्य सीखने के लिये (Apprentice) रखे जाते हैं और जिन्हें मजदूरी प्रदान नहीं की जाती है,श्रमिक में सम्मिलित हैं।

(iv) निर्माण प्रक्रिया अथवा अन्य कार्य हेतु श्रमिकों की नियुक्ति निर्माण प्रक्रिया अथवा उससे सम्बन्धित किसी अन्य कार्य के लिये की जानी चाहिये । निर्माण प्रक्रिया शब्द का अत्यधिक व्यापक रूप में प्रयोग किया गया है। यदि श्रमिक निर्माणी प्रक्रिया पूर्ण हो जाने के पश्चात् अन्य कोई कार्य करता है तो वह श्रमिक नहीं होगा।

(v) नाम मस्टर रोल अथवा रजिस्टर में लिखा होना-श्रमिक का नाम कारखाने के मस्टर रोल या उपस्थिति रजिस्टर में दर्ज अवश्य होना चाहिये। जिन व्यक्तियों का नाम रजिस्टर में दर्ज नहीं है, वे श्रमिक नहीं हैं, चाहें उन्हें मजदूरी मिलती हो।

(vi) ठेकेदार के माध्यम से नियुक्ति-ठेकेदार के माध्यम से भी श्रमिक की नियुक्ति की जा सकती है, चाहे इसकी नियोक्ता को जानकारी हो अथवा नहीं।

(vii) भारतीय संघ की सशस्त्र सेना का कोई भी सदस्य श्रमिक नहीं है।

16. कारखाना‘ (Factory) कारखाना से अभिप्राय किसी भवन से है जिसमें उसकी परिधि भी शामिल है तथा

(i) जहाँ दस या दस से अधिक श्रमिक काम कर रहे हों अथवा पिछले 12 माह में किसी भी दिन कर रहे थे तथा उक्त भवन में,या उसके किसी भी भाग में शक्ति की सहायता से निर्माण-प्रक्रिया की जा रही हो या साधारणतया की जाती हो, अथवा

(ii) जहाँ बीस या बीस से अधिक श्रमिक कार्य कर रहे हों या पिछले 12 माह में किसी भी दिन काम कर रहे थे तथा उक्त भवन या उसके किसी भी भाग में निर्माण-प्रक्रिया बिना शक्ति की सहायता से की जा रही हो अथवा साधारणतया की जाती है।

स्पष्टीकरण 1 : दस या बीस श्रमिक की गणना करते समय “ठेके पर रखे गये” श्रमिक भी शामिल करने होंगे तथा दिन में भिन्न-भिन्न रिले या समूह में काम करने वाले श्रमिक भी शामिल करने होंगे।

स्पष्टीकरण 2 : ‘कारखाने’ की परिभाषा में खदानें तथा रेलवे रनिंग शैड (Railway running shed) सम्मिलित नहीं हैं क्योंकि उनके लिये पृथक अधिनियम है। इसी प्रकार भारतीय संघ की चलित इकाई, होटल, जलपान-गृह अथवा भोजन-गृह को कारखाना नहीं माना गया है। सन 1987 में किये गये संशोधनों के अनुसार Electronic Data Processing Unit अथवा Computer Unit भी कारखाना नहीं है यदि उसके अहाते। अथवा परिधि में निर्माण प्रक्रिया नहीं की जाती है।

सरल शब्दों में, ‘कारखाना’ शब्द से आशय,ऐसे किसी भी स्थान से है जहाँ 10 से अधिक श्रमिक शक्ति। की सहायता से निर्माण प्रक्रिया करते हों या 20 से अधिक श्रमिक बिना शक्ति की सहायता से निर्माण प्रक्रिया करते हों।

Factory Act 1948 An Introduction

chetansati

Admin

https://gurujionlinestudy.com

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Previous Story

BCom 2nd Year Industrial Las General Introduction Study Material Notes in Hindi

Next Story

BCom 2nd year Approval Licensing Registration Inspection Factories Study Material Notes In Hindi

Latest from BCom 2nd Year Corporate Laws