BCom 3rd Year Financial Management Capitalization Study Material Notes In Hindi
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BCom 3rd Year Financial Management Capitalization Study Material Notes In Hindi : Capitalization Theories of Capitalization Over Capitalization Effects of Over Capitalization Evils of Over Capitalization Under Capitalization Under Capitalization VS Over Capitalization Numerical Questions With Solutions Relating Capitalization (Most Important Notes For BCom 3rd Year Students):
BCom 3rd Year Financial Management Planning Study Material Notes In Hindi
पूँजीकरण
(Capitalisation)
पूँजीकरण वित्तीय नियोजन का महत्त्वपूर्ण अंग है। कुछ विद्वान तो पूँजीकरण एवं वित्तीय योजना को एक-दूसरे का पर्यायवाची ही मानते हैं । परन्तु ऐसा विचार भ्रमपूर्ण तथा अव्यावहारिक है। यह भी ध्यान रखने योग्य है कि यह पूँजी संरचना से भी पूर्णतया भिन्न है। सरल शब्दों में, पूँजीकरण का अर्थ व्यवसाय के लिए आवश्यक पूँजी की मात्रा निर्धारित करने की क्रिया से है। सामान्यतः एक व्यावसायिक संस्था में नियमित रूप से विनियोजित पूँजी की कुल मात्रा को ही पूँजीकरण माना जाता है, परन्तु पूँजीकरण के इस विचार के सम्बन्ध में भी परम्परागत विद्धानों एवं आधुनिक विद्धानों के भिन्न-भिन्न मत हैं।
परम्परागत विचारकों के अनुसार, पूँजीकरण के अन्तर्गत अंश-पूँजी, स्वामित्व कोष एवं अधिशेष तथा दीर्घकालीन ऋण अर्थात् केवल दीर्घकालीन पूँजी को ही शामिल किया जाता है परन्तु आधुनिक वित्त विचारकों के अनुसार पूँजीकरण की मात्रा के अन्तर्गत दीर्घावधि पूँजी के साथ-साथ अल्पावधि पूँजी (अल्पावधि ऋण तथा व्यापारियों से प्राप्त उधार) भी सम्मिलित की जाती है।
पूँजीकरण की उक्त धारणा को सदैव उचित एवं तर्क संगत नहीं माना जा सकता। वस्तुतः पूँजीकरण का आशय व्यवसाय के लिए आवश्यक पूँजी की मात्रा निर्धारित करने की क्रिया से होता है । इस प्रकार पूँजीकरण एक मूल्यांकन अवधारणा (valuation concept) है। यह मूल्यांकन अवधारणा नव-प्रवर्तित (newly promoted) संस्था और पूर्व स्थापित (already established) संस्था में अलग-अलग हो सकती है। नव-प्रवर्तित संस्था की दशा में पूँजीकरण से आशय पूँजी की उस मात्रा से होता है, जो व्यवसाय की स्थापना से लेकर कार्य-संचालन तक के व्ययों एवं लागतों को पूरा करने के लिए आवश्यक एवं पर्याप्त हो। दूसरी ओर चालू व्यवसाय (पूर्व-स्थापित संस्था) के सन्दर्भ में पूँजीकरण का अभिप्राय विनियोजित कुल पूँजी के वर्तमान मूल्यांकन से होता है। इस दृष्टिकोण से पूँजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी कम्पनी की सम्भावित आय के वर्तमान मूल्यांकन के आधार पर उसकी कुल सम्पत्ति के वर्तमान विनियोग मूल्य का अनुमान लगाया जाता है। इस प्रकार एक संस्था का पूँजीकरण उसकी आय उपार्जित करने की क्षमता से अधिक सम्बन्ध रखता है और इस अर्थ में सम्भावित आय कमाने के लिए आवश्यक या इच्छित पूँजी की मात्रा को ही पूँजीकरण कहते हैं।
पूँजीकरण की परिभाषा (Definition of Capitalisation)
मुख्य परिभाषाएं निम्नलिखित हैं
पूँजीकरण की परम्परागत विचारधारा पर आधारित परिभाषाएं (Definitions Based on Tradition Approach of Capitalisation)
गेस्टनबर्ग के अनुसार, “पूँजीकरण का अर्थ, व्यवसाय में नियमित रूप से लगायी गयी सम्पूर्ण पूँजी के कुल लेखांकन मूल्य से होता है।”1 |
लिलियन डोरिस के अनुसार, “पूँजीकरण में निगम की स्वामित्व पूँजी तथा उधार पूँजी सम्मिलित होती है जो इसके दीर्घकालीन ऋण द्वारा दिखाई जाती है ।
उपयुक्त परिभाषाओं में इसी बात पर बल दिया गया है कि पंजीकरण का अर्थ स्वामित्व पूजी, संचिता कोष एवं अधिशेष तथा दीर्घावधि ऋण पूँजी के योग से है।
आधुनिक विचारधारा पर आधारित परिभाषा (Definition Based on Modern Approach)।
वाकर एवं बाघन के अनुसार, “पूँजीकरण का प्रयोग केवल दीर्घावधि ऋण एवं पूंजी को सम्बोधित करने । के लिए करना भ्रामक है और इससे तो यह निष्कर्ष निकलता है कि अल्पकालिक ऋणदाता पूजी प्रदायक नहीं हात । व्यवहार में व्यापार के लिए कल पँजी अल्पकालिक ऋणदाताओं दीर्घकालिक ऋणदाताआभार स्वामिया। द्वारा प्रदान की जाती है।”
मूल्याकंन अवधारणों पर आधारित परिभाषा (Definition Based on Valuation Concept)
गुथमैन एवं ड्रगाल के अनुसर, “पंजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी कम्पनी की सम्भावित आय के वर्तमान मूल्यांकन के आधार पर उसकी कल सम्पत्ति के वर्तमान विनियोग मूल्य का अनुमान लगाया जाता
निष्कर्ष-पूंजीकरण की उपर्युक्त परिभाषाओं के अध्ययन के उपरान्त हम यह कह सकते हैं कि
पूजीकरण का अर्थ व्यापार के लिए आवश्यक पँजी की मात्रा निर्धारित करने की क्रिया से है। नव-प्रवर्तित संस्था की दशा में इसका अर्थ पँजी की उस मात्रा से है जो व्यवसाय की स्थापना से लेकर कार्य-संचालन तक के व्ययों एवं लागतों को परा करने के लिए आवश्यक एवं पर्याप्त हो। दूसरी ओर चालू व्यवसाय के सन्दर्भ में पूँजीकरण से तात्पर्य एक निश्चित समय बिन्दु पर लगायी गयी पूँजी की कुल मात्रा से न होकर उस पूँजी के वर्तमान मूल्य (आय के सन्दर्भ में) से होता है।