BCom 3rd Year Financial Management of Receivables Study Material Notes in hindi

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BCom 3rd Year  Financial Management of Receivables Study Material  Notes  in Hindi

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 Financial Management of Receivables
Financial Management of Receivables

BCom 1st Year Finnaical accounting notes in Hindi

प्राप्यों का प्रबन्ध

(MANAGEMENT OF RECEIVABLES)

किसी भी व्यवसाय का प्रमुख उद्देश्य लाभों में वद्धि करना होता है एवं लाभों का सम्बन्ध व्यवसाय द्वारा किये गये विक्रय से होता है। अतः आधुनिक प्रतिस्पर्धा के युग में प्रत्येक व्यवसायी द्वारा विक्रय में वृद्धि करने के लिए नकद विक्रय के साथ-साथ उधार विक्रय भी किया जाता है। वर्ष के अन्त तक उधार विक्रय की न वसूल की गई राशि ‘प्राप्य’ कहलाती है जिसमें मुख्यतः देनदारों (Debtors) एवं प्राप्य बिलों (Bills Receivables) को सम्मिलित किया जाता है । इन प्राप्यों का व्यवसाय की चालू सम्पत्तियों में महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। सामान्यतया कुल चालू सम्पत्तियों में प्राप्यों की रकम 15% से 25% तक होती है । प्राप्यों का व्यवसाय की कुल चालू सम्पत्तियों में स्कन्ध के बाद महत्त्वपूर्ण स्थान होता है । अतः प्राप्यों का कुशल प्रबन्ध करना आवश्यक हो जाता है। प्राप्यों का अर्थ (Meaning of Receivables).

प्राप्य, किसी संस्था के अपने ग्राहकों के प्रति दावों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिन्हें चिट्ठे में विपत्र, आदि नामों से दर्शाया जाता है। इन प्राप्यों का सृजन उधार विक्रय के फलस्वरूप होता है।

जॉन जे. हैम्पटन के अनुसार, “प्राप्य व्यवसाय के सामान्य संचालन के दौरान माल अथवा सेवाओं की बिक्री के कारण फर्म को देय राशि का प्रतिनिधित्व करने वाले सम्पत्ति खाते होते हैं ।”

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प्राप्यों में विनियोजन सम्बन्धी लागते

(Costs Associated with Receivables)

उधार विक्रय करने एवं प्राप्यों में वृद्धि के परिणामस्वरूप संस्था को विभिन्न प्रकार की लागते वहन करनी पड़ती हैं जिन्हें प्राप्यों में विनियोजन सम्बन्धी लागतें कहा जाता है। मुख्यत: ऐसी लागतों में निम्नांकित को शामिल किया जाता है :

(1) पूँजी लागतें (Capital Costs)–माल के उधार विक्रय एवं ग्राहकों से भुगतान प्राप्ति के बीच एक समय अन्तराल (Time Lag) होता है, अतः प्राप्यों में संस्था के वित्तीय स्रोतों का एक महत्त्वपूर्ण भाग अवरुद्ध हो जाता है । इस समय अन्तराल के दौरान संस्था को अपने दायित्वों जैसे-कच्ची सामग्री के पूर्तिकर्ताओं एवं कर्मचारियों, आदि को भुगतान करने के लिए अतिरिक्त वित्तीय साधनों की व्यवस्था करनी पड़ती है। इन अतिरिक्त कोषों की लागत संस्था को चुकानी पड़ती है।

(2) वसूली लागत (Collection Cost)-संस्था को अपने प्राप्यों एवं देनदारों से समय पर भुगतान प्राप्त करने के लिए प्रशासनिक व्यय (Administrative expenses) करने पड़ते हैं। ग्राहकों के लेखांकन अभिलेख तैयार करने हेतु लेखापालकों की नियुक्ति, ग्राहकों की साख क्षमता की जांच हेतु साख विशेषज्ञों की नियुक्ति एवं ग्राहकों से भुगतान वसूल करने हेतु वसूली एजेण्टों की नियुक्तियाँ की जाती हैं। इन सभी मदों पर होने वाला व्यय वसूली लागत कहलाता है। संस्था यदि केवल नकद विक्रय ही करे, तो ये लागतें संस्था को वहन नहीं करनी पड़ेंगी।

(3) नकद बट्टा (Cash Discount)-संस्था अपने ग्राहकों से शीघ्र-अतिशीघ्र भुगतान वसूल करना चाहती है। इसलिए संस्था अपने ग्राहकों को शीघ्र भुगतान के लिए प्रेरित करती है तथा विभिन्न प्रकार की नकद छुट की घोषणाएं भी समय-समय पर करती है। संस्था के ग्राहक नकद छूट का लाभ उठाने हेतु शीघ्र ही भगतान कर देते हैं। संस्था के द्वारा दी गयी नगद छूट संस्था की लागत होती है क्योंकि इससे संस्था को प्राप्त होने वाली राशि में कमी होती है।

(4) डूबत ऋण (Bad Debts)-संस्था कितनी भी प्रभावी वसूली नीति लागू कर ले, कुछ ग्राहकों से हर सम्भव प्रयास के बाद भी संस्था भुगतान वसूल करने में असमर्थ रहती है। इन ऋणों को डूबत ऋण (Bad debts) कहा जाता है, इन डूबत ऋणों को लाभ-हानि खाते से अपलिखित कर दिया जाता है, जिससे संस्था के लाभों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

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प्राप्यों में विनियोग के आकार को प्रभावित करने वाले घटक

(Factors Affecting the Size of Investment in Receivables)

प्राप्यों में विनियोग का आकार अर्थात् प्राप्यों के लिए कितनी पूँजी की व्यवस्था करनी पड़ेगी. इसका निर्धारण अनेक तत्वों पर निर्भर करता है ।सुविधा के दृष्टिकोण से इन्हें निम्नलिखित दो भागों में वर्गीकृत करके अध्ययन किया जा सकता है

(अ) सामान्य कारक (General Factors)-सामान्य कारकों के अन्तर्गत उन सभी कारकों को सम्मिलित किया जाता है, जो किसी भी व्यवसाय में प्रत्येक प्रकार की सम्पत्ति में विनियोग सम्बन्धी निर्णयों को प्रभावित करते हैं। इनमें मुख्यत : व्यवसाय की प्रकृति एवं स्वरूप,व्यवसाय की मात्रा, विक्रय का अनुमानित आकार, आर्थिक दशाएं, पूँजी की लागत, स्थिर एवं चल सम्पत्तियों में विनियोग अनुपात, नियन्त्रण, पूर्ण सुरक्षा नियमितता, प्रबन्धकों का दृष्टिकोण, मुद्रा-प्रसार एवं मूल्यों में होने वाले सामान्य उच्चावचनों, आदि को सम्मिलित करते हैं। ये कारक अपना दीर्घकालीन प्रभाव छोड़ते हैं तथा संस्था के द्वारा इन पर अल्पकाल में नियन्त्रण कर पाना सम्भव नहीं होता है।

(ब) विशिष्ट कारक (Specific Factors) विशिष्ट कारकों को अल्पकालीन कारक भी कहा जाता है। ये कारक संस्था द्वारा नियन्त्रणीय होते हैं। मुख्य विशिष्ट कारक इस प्रकार हैं

(i) उधार बिक्री की मात्रा (Level of Credit Sales)-प्राप्यों में विनियोग की मात्रा एवं उधार बिक्री में धनात्मक सहसम्बन्ध पाया जाता है। उधार बिक्री में वृद्धि होने से सामान्यतया प्राप्यों में भी वृद्धि हो जाती है तथा उधार बिक्री में कमी होने से प्राप्यों में विनियोग भी कम हो जाते हैं। उधार बिक्री एवं प्राप्यों के बीच इस सम्बन्ध को प्राप्य आवर्त (Receivable turnover) के द्वारा विश्लेषित किया जा सकता है।

प्राप्य आवर्त (Receivable turnover) = Net credit sales

Average receivable

प्राप्य आवर्त जितना अधिक आयेगा, व्यवसाय में प्राप्यों के लिए उतने कम विनियोग की आवश्यकता पड़ेगी।

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(ii) विक्रय की शर्ते (Terms of sales)-विक्रय की शर्ते प्राप्यों में विनियोग की मात्रा को प्रभावित करती हैं। कठोर विक्रय की शर्तों के फलस्वरूप प्राप्यों का आकार बहुत कम होगा। नकद विक्रय एवं उधार विक्रय का आपसी अनुपात भी प्राप्यों के आकार को प्रभावित करता है। यदि संस्था नकद विक्रय को अधिक प्रोत्साहन देती है तो प्राप्यों में विनियोग कम होता है।

(iii) संस्था की साख नीति (Credit Policy of the Firm)-संस्था द्वारा अपनायी जाने वाली उदार (Liberal) या कठोर (Strict) साख नीति भी प्राप्यों में विनियोग की मात्रा को प्रभावित करती है। उदार साख नीति अपनाने से प्राप्यों की मात्रा में वृद्धि होती है। इसके विपरीत, यदि संस्था कठोर साख नीति अपनाती है तो प्राप्यों में विनियोग की मात्रा घट जाती है।

(iv) नकद छूट का आकार (Size of Cash Discount)-प्राप्यों से वसूली को तीव्र करने या वसूली अवधि को न्यूनतम करने हेतु संस्था द्वारा नकद छूट का विकल्प ग्राहकों अथवा देनदारों (Debtors) को दिया जाता है। नकद छूट जितनी अधिक एवं आकर्षक होगी, उतने अधिक देनदार इस सुविधा का लाभ उठायेंगे, जिससे प्राप्यों की मात्रा में कमी हो जाएगी। नकद छूट की लागत प्राप्यों की विनियोग लागत से कम होनी चाहिए अन्यथा संस्था को अनावश्यक हानि वहन करनी पड़ेगी।

(v) साख विभाग की क्षमता (Capability of Credit Department)-संस्था के साख विभाग की क्षमता भी उस संस्था के प्राप्यों में विनियोग के आकार को प्रभावित करती है। यह विभाग अपने कार्य में जितना अधिक दक्ष एवं कुशल होगा, उधार राशि की वसूली उतनी ही शीघ्रता से होगी तथा ऋणों के डूबने की सम्भावनाएं भी कम हो जाएंगी। फलस्वरूप प्राप्यों में विनियोग की राशि कम होगी। इसके विपरीत, यदि साख विभाग अपने कार्य में लापरवाही करने के साथ-साथ प्राप्यों की वसूली में भी ढिलाई करता है तो प्राप्यों में अधिक राशि विनियोजित होगी तथा ड्बत ऋण की सम्भावनाएं भी बढ़ जाएंगी

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प्राप्यों के प्रबन्ध का अर्थ

(Meaning of Receivables Management)

जैसा कि स्पष्ट किया जा चका है कि प्राप्यों का सजन उधार विक्रय के फलस्वरूप होता है। जहाँ एक ओर उधार बिक्री के कारण कुल बिक्री में वृद्धि होती है और संस्था के लाभों में वृद्धि होती है, वहीं दूसरी ओर प्राप्यों में विनियोग होने से न केवल संस्था की पूँजी का एक महत्त्वपूर्ण भाग प्रायों में फंस (अवरुद्ध हो जाता है बल्कि ग्राहकों द्वारा समय पर भुगतान न किये जाने अथवा दिवालिया हो जाने की दशा में डूबत ऋण होने की सम्भावना भी रहती है। इस प्रकार प्राप्यों का सजन लाभदायक भी है और जोखिमपूर्ण भी। अतः प्राप्यों में विनियोजन करते समय इन दोनों में अर्थात् लाभदायकता और जोखिम में सामंजस्य स्थापित करना चाहिए। इस प्रकार प्राप्यों के प्रबन्ध के अन्तर्गत संस्था के वित्तीय प्रबन्धक प्राप्यों के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाली अतिरिक्त लागतों एवं अतिरिक्त विक्रय के फलस्वरूप प्राप्त होने वाले अतिरिक्त लाभों के मध्य सामंजस्य स्थापित करते हैं।

प्रो. एस. सी. कुच्छल के अनुसार, “प्राप्यों के प्रबन्ध का आशय आन्तरिक अल्पकालीन परिचालन प्रक्रिया के एक भाग के रूप में इस सम्पत्ति में कोषों के विनियोजन से सम्बन्धित निर्णय लेना है।”

निष्कर्ष-उपर्युक्त विवचेन के उपरान्त निष्कर्ष रूप में यही कहा जा सकता है कि प्राप्यों में विनियोग से होने वाली सम्भावित आय (उधार बिक्री के फलस्वरूप लाभों में होने वाली सम्भावित वृद्धि) तथा उत्पन्न होने वाली सम्भावित लागत (ब्याज) एवं हानियों (डूबत ऋण) के मध्य सामंजस्य स्थापित करना ही ‘प्राप्यों का प्रबन्ध’ है । इस प्रकार प्राप्यों के प्रबन्ध को इस सम्पत्ति अर्थात् प्राप्यों में कोषों के विनियोजन से सम्बन्धित निर्णयन प्रक्रिया जो कि संस्था के विनियोगों पर कुल प्रत्याय को अधिकतम कर सके, के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।

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प्राप्यों के प्रबन्ध का उद्देश्य

(Objective of Receivables Management)

प्राप्यों के प्रबन्ध का उद्देश्य बिक्री को अधिकतम करना या ऋणों की जोखिम को न्यूनतम करना नहीं है, बल्कि अन्य सम्पत्तियों के प्रबन्ध की भाँति ही प्राप्यों में किये गये विनियोग पर अधिकतम प्रतिफल प्राप्त करना है। इस प्रकार प्राप्यों के प्रबन्ध का उद्देश्य प्राप्यों में किये गये विनियोग से अधिकतम लाभ अर्जित करना है और यह तभी सम्भव है जब उधार विक्रय एवं प्राप्यों में उस बिन्दु तक वृद्धि की जाये जहाँ प्राप्यों में अतिरिक्त कोषों के विनियोगों पर प्राप्त होने वाला लाभ, उस अतिरिक्त साख के लिए प्राप्त कोषों की लागत से कम हो । इस प्रकार प्राप्यों के प्रबन्ध का उद्देश्य अधिकतम बिक्री न होकर अनुकूलतम बिक्री मात्रा को निर्धारित करना है तथा प्राप्यों में विनियोग को अनुकूलतम स्तर पर बनाये रखना है।

एस. ई. बोल्टन के अनुसार, “प्राप्यों में प्रबन्ध का उद्देश्य विक्रय एवं लाभों को उस बिन्दु तक बढ़ाना है, जहाँ प्राप्यों में अतिरिक्त कोषों के विनियोग पर प्रत्याय उस अतिरिक्त साख के लिए प्राप्य कोषों की लागत अर्थात् पूँजी लागत से कम हो।”

संक्षेप में, प्राप्यों के प्रबन्ध के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं

(i) अनुकूलतम उधार विक्रय मात्रा का निर्धारण,

(ii) प्राप्यों की लागतों पर प्रभावी नियन्त्रण,

(iii) उचित साख नीति द्वारा प्राप्यों में विनियोग को अनुकूलतम स्तर पर बनाये रखना।

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प्राप्यों के प्रबन्ध का क्षेत्र अथवा कार्य

(Scope or Functions of Receivables Management)

प्राप्यों के प्रबन्ध के अन्तर्गत मुख्यतः निम्नलिखित पहलुओं को शामिल किया जाता है

1 साख नीति का निर्धारण एवं मूल्यांकन,

2 साख नीतियों का क्रियान्वयन,

3 संग्रहण प्रक्रिया का निर्धारण,

4 प्राप्यों का विश्लेषण एवं नियन्त्रण ।

1 साख नीति का निर्धारण एवं मूल्यांकन (Formulation and Evaluation of Credit Policy) प्राप्यों के कशलतापूर्वक प्रबन्ध हेतु उपयुक्त साख नीति का निर्धारण प्रत्येक व्यवसाय की एक आधार आवश्यकता है। साख नीति के निर्धारण से अभिप्राय उन निर्णायक तत्वों से है जो व्यापारिक साख की – अर्थात् प्राप्यों में निवेश को प्रभावित करते हैं।

किसी संस्था की साख नीति को मुख्यतः निम्नांकित दो भागों में बांटा जा सकता है :

(अ) उदार साख नीति (Linient or Liberal Credit Policy) तथा ।

(ब) कठोर साख नीति (Tight or Stringent Credit Policy) |

उदार साख नीति के अन्तर्गत ग्राहकों को उदार शर्तों पर अधिक समय के लिए अधिक मूल्य का माल उधार दिया जाता है। इस नीति से बिक्री की मात्रा में वृद्धि होने के कारण संस्था के लाभों में भी वृद्धि हो जाती है। परन्तु लाभों में वृद्धि के साथ-साथ भुगतान न मिलने से न केवल डूबत ऋणों की हानियाँ बढ जाती हैं, बल्कि संस्था को तरलता की समस्या का सामना भी करना पड़ता है।

कठोर साख नीति के अन्तर्गत अच्छी साख वाले कुछ चुने हुए ग्राहकों को ही कम साख अवधि के। लिए माल का उधार विक्रय किया जाता है। इससे कुल बिक्री की मात्रा तो कम हो जाती है, परन्तु संस्था को डूबत ऋण की हानि एवं तरलता की समस्या का सामना अपेक्षाकृत कम करना

साख नीति के अन्तर्गत मुख्यत: निम्नांकित को सम्मिलित किया जाता है :

(i) साख कसोटियां (Credit Standards)

(ii) साख शर्ते (Credit Terms),तथा

(iii) संग्रहण नीति (Collection Policy)

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(i) साख कसौटियाँ-साख कसौटियाँ वे मूलभूत मापदण्ड हैं जिनके आधार पर ग्राहकों को उधार की सुविधा दी जाती है। साख कसौटियाँ उदार होने पर उधार माल की बिक्री बढ़ जाती है एवं साख कसौटियाँ कठिन होने पर उधार बिक्री की मात्रा कम हो जाती है। अत: चाल या वर्तमान साख नीति में कितनी उदारता अपनाना उपयक्त रहेगा. इसके उत्तर हेतु अतिरिक्त बिक्री से प्राप्त होने वाले अतिरिक्त लाभ की तुलना प्राप्यों में अतिरिक्त विनियोग की सम्भावित लागतों से करनी चाहिए। इसके बाद जब तक इस अतिरिक्त शुद्ध लाभ (अतिरिक्त बिक्री पर लाभ-सम्बन्धित अतिरिक्त लागते) की दर अपेक्षित प्रत्याय दर (पूँजी लागत) से अधिक हो तब तक साख कसौटियों मे ढील देना औचित्यपूर्ण (न्यायसंगत या उपयुक्त) माना जाएगा।

Illustration 1. एक फर्म निम्नलिखित श्रेणियों के ग्राहकों को साख सुविधा प्रदान करके अपनी बिक्री बढ़ाने पर विचार कर रही है

(अ) 10% भुगतान न करने की जोखिम वाले ग्राहक, एवं (ब) 30% भुगतान न करने की जोखिम वाले ग्राहक ।

(अ) श्रेणी की स्थिति में बिक्री में 30,000 रुपये की वृद्धि अपेक्षित है जबकि

(ब) श्रेणी की स्थिति में 40,000 रुपये की वृद्धि अपेक्षित है।

उत्पादन एवं विक्रय लागतें बिक्री की 60% हैं, जबकि संग्रहण लागतें

(अ) श्रेणी की स्थिति में बिक्री की 5% एवं (ब) श्रेणी की स्थिति में बिक्री की 10% होंगी।

आपको उपर्युक्त प्रत्येक श्रेणी के ग्राहकों को साख सुविधा दिये जाने के सम्बन्ध में फर्म को परामर्श देना है।

A firm is considering pushing up its sales by extending credit facilities to the following categories of customers :

(a) Customers with a 10% risk of non-payment, and (b) Customers with a 30% risk of non-payment.

The incremental sales expected in case of category (a) are Rs. 30,000 while in case of category (b) they are Rs. 40,000.

The cost of production and selling costs are 60% of sales while the collection costs amount to 5% of sales in case of category (a) and 10% of sales in case of category (b).

You are required to advise the firm about extending credit facilities to each of the above categories of customers.

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Thus, the firm does not stand to gain or lose on account of extending credit to customers with 30% risk of non-payment. The firm should not, therefore, extend credit to such customers unless it is beneficial for the firm in the longrun because of having a wider market for its products.

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Illustration 2. एक नया ग्राहक समूह जिसके साथ भुगतान न करन की जोखिम %  है आपसे व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित करने की इच्छा करता है यह समूह डेढ़ माह का उधार मांगता है और इससे आपकी बिक्रि 60,000 रुपये प्रति वर्ष बढंने की सम्भावना है उत्पादन प्रशासनिक और बिक्रि व्यय बिक्रि के 80%  है । आपको 50%  की दर से आय कर देना है । यदि अपेक्षित प्रत्याय दर 40% कर के पश्चाय है तो क्या आपको यह प्रस्ताव स्वीकार करना चाहिए?

A group of new customers with 10% risk of non-payment desires to establish business connection with you. This group would require one and a half month of credit and is likely to increase your sales by Rs. 60,000 p.a. Production, administrative and selling expenses amounted to 80% of sales. You are required to pay income tax

चूँकि उपलब्ध प्रत्याय दर (50%) अपेक्षित प्रत्याय दर (40%) से अधिक है, अत : नये ग्राहक समूह। का प्रस्ताव स्वीकार कर लेना चाहिए।

This rate (50%) being higher than required rate of return (40%), the proposal should be accepted.

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(ii) साख शर्ते-साख शर्ते वे प्रतिबन्ध हैं जिनके आधार पर उधार माल बेचा जाता है। संक्षेप में, साख शर्तों के अन्तर्गत उधार विक्रय राशि के पुनर्भुगतान के सम्बन्ध में नियम बनाये जाते हैं। इनमें प्रमुख रूप से साख अवधि एवं नकद छूट को सम्मिलित किया जाता है।

(अ) साख अवधि (Credit Period)-साख अवधि से अभिप्राय उस अवधि से है जिसके लिए ग्राहकों को उधार की सुविधा दी जाती है। साख अवधि वस्तु की माँग, औसत वसूली अवधि तथा डूबत ऋण से होने वाली हानि को प्रभावित करती है। साख अवधि में वृद्धि करने से विक्रय में वृद्धि होगी एवं इसके परिणामस्वरूप लाभ में वृद्धि होगी, किन्तु इसके साथ ही प्राप्यों में अतिरिक्त कोषों का विनियोग हो जाने से प्राप्यों की लागत में वद्धि होने के साथ-साथ डबत ऋणों के कारण होने वाली हानियों की सम्भावना भी बढ । जाती है। इसके विपरीत, यदि साख अवधि में कमी की जाती है तो बिक्री में कमी के कारण लाभों में कमी होगी तथा प्राप्यों में विनियोग की लागत घटने के साथ-साथ वसूली व्यय एवं डूबत ऋण की राशि भी घट जायेगी। अतः साख अवधि में वृद्धि की जाए या नहीं, इसके निधारण के लिए भी लागत-लाभ विश्लेषण किया जाएगा।  संक्षेप में, साख अवधि में परिवर्तन का निर्णय लेने हेतु निम्नांकित प्रक्रिया अपनाई जाती है :

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उपर्युक्त प्रक्रिया को निम्नलिखित उदाहरणों की सहायता से सरलापूर्वक समझा जा सकता है

Illustration 3. एक कम्पनी अपने चुने हुए ग्राहकों को एक माह की साख प्रदान करती है। उत्पाद का विक्रय मूल्य 100 रु. प्रति इकाई एवं वार्षिक बिक्री 60,000 इकाइयों की है। वर्तमान उत्पादन पर जो कि विक्रय से मिलता है, उत्पाद की कुल लागत 90 रु. प्रति इकाई एवं परिवर्तनशील लागत 80 रु. प्रति इकाई है।

कम्पनी की और अधिक उदार शर्तों के तहत एक माह की साख अवधि को दो माह की साख अवधि में परिवर्तित करने की योजना है जिससे ग्राहक समूह 25% से बढ़ जायेगा। विनियोग पर प्रत्याशित प्रत्याय दर 20% की पृष्ठभूमि में क्या साख मानकों में दी गयी छूट का स्वयं में कोई औचित्य है?

A company is extending on one month’s credit to its selected customers. It sells. product of Rs. 100 each and has annual sales volume of 60,000 units. At current level of production, which matches with sales, the product has total cost of Rs. 90 per unit and a variable cost of Rs. 80 per unit. The company is considering a plan to grant more liberal terms by extending the duration of credit from one month to two months and expects the sales to the customers group to go up by 25 percent. In the background of a normal expectation of a 20% return on investment, will this relaxation in credit standard justify itself?

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Illustration 4. अनमोल लिमिटेड की वार्षिक बिक्री 1000000 रुपये हैं एवं परिवर्तनशील लागते 7.50,000 रुपये हैं। वर्तमान में कम्पनी 15 दिन शुद्ध’ की साख प्रदान कर रही है एवं इसकी सित सग्रह। अवधि 30 दिन है। रजत जयन्ती उत्सव के अवसर पर यह 25 दिन शुद्ध’ की साख प्रदान करने का याजना।बना रही है एवं आशा करती है कि इससे विक्रय में 20% की वृद्धि हो जायेगी। यद्यपि इसके परिणामस्वरूप औसत संग्रह अवधि में अतिरिक्त 30 दिन की वद्धि हो जायेगी। यदि कम्पनी अपनी प्राप्यों में विनियोग पर 25% की प्रत्याय दर में कोई परिवर्तन नहीं चाहती तो क्या इसे साख अवधि बढ़ा देनी चाहिये ? वर्ष में 360 दिन मानिये।

Anmol Ltd. has annual sales of Rs. 10,00,000 and the variable costs are Rs. 7,50,000. At present the company gives terms of net 15 days and its average collection period is 30 days. On the occasion of its silver jublee celebrations, it plans to give terms of net 25 days and anticipates its sales increase by 20%. However, this change results in the average collection period, increased by another 30 days. If the company does not want any change in its rate of return of 25% on investment in receivables, should it extend the credit period ? Assume 360 days a year.

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Illustration 5. एक फर्म ‘एक्स’ एवं ‘वाई’ दो साख नीतियों पर विचार कर रही है। ‘एक्स’ नीति में वसूली अवधि 3 माह होगी एवं ‘वाई’ नीति में 4 माह । वर्तमान में फर्म की बिक्री 30,00,000 रुपये है एवं इसमें इन दो नीतियों के अन्तर्गत 20% व 25% बढ़ने की उम्मीद है तथा डूबत ऋण हानियाँ क्रमशः 4% एवं 6% ही रहेंगी। वर्तमान में फर्म की कुल लागतें 24,00,000 रुपये हैं एवं फर्म इसी लाभदायकता स्तर को बनाये रखना चाहती है। यदि प्राप्यों पर फर्म की वांछित प्रत्याय दर 18% है तो इसे किस नीति का अनुसरण करना चाहिये?

A firm is considering two credit policies X and Y. The collection period will be 3 months in policy X and 4 months in policy Y. At present the firm’s sales are Rs. 30,00,000 and they are expected to increase by 20% and 25% under these two policies, and the bad debt losses will stand at 4% and 6% respectively. At present the total costs for the firm are Rs. 24,00,000 and the firm wants to maintain the same profitability level. If the firm’s required return on receivables is 18%, which policy should it follow ?

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Illustration 6.  राहुल लिमिटेड का वर्तमान विक्रय स्तर 54,00,000 रुपये है । फर्म हेतु पूँजी की लागत 24%  है एवं 10 रुपये के विक्रय मूल्य पर 1 रुपये का अंशदान है । वर्तमान साख अवधि 30 दिन है  एवं फर्म की योजना इसे बढ़ाकर 40 दिन करने की है। इसके परिणामस्वरूप अशोध्य ऋण अनुपात, अतिरिक्त बिक्रि पर 8% होगा । यदि साख अवधि में परिवर्तन किये जाने के कारण 13,50,000 रुपये की अतिरिक्तबिक्री होने की उम्मीद हो तो फर्म के सकल लाभ पर क्या प्रभाव होगा ? वर्ष में 360 दिन मानिये।

Rahul Limited’s present level of sales is Rs. 54,00,000. The cost of capital for the firm is 24% and the contribution is Rs. 1 on a selling price of Rs. 10. The present credit period is 30 days and the firm plans to increase it to 40 days. As a result the bad debt proportion on the additional sales will be 8%. If Rs. 13,50,000 additional

expected because of the change in credit period, what is the effect on the gross profit of the firm ? Assume 360 days a year.

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Illustration 7. आशीष लि. की वर्तमान बिक्री 60,00,000 रु. है। प्रति इकाई विक्रय मूल्य 20 रु. है। परिवर्तनशील लागतें 12 रु. प्रति इकाई और स्थिर लागतें 5,00,000 रु. प्रति वर्ष हैं । एक माह की वर्तमान उधार अवधि को बढ़ाकर 2 अथवा 3 माह ,जो भी अधिक लाभदायी होगी, करने का प्रस्ताव है। निम्नलिखित अतिरिक्त सूचनाएँ उपलब्ध हैं

                                                  उधार बिक्री के आधार पर 

                                         एक माह              दो माह           तीन माह 

बिक्री में वृद्धि                                          __                      10%                         30%

बिक्री पर डूबत ऋणों का प्रतिशत       1%                      2%                            5%

जब बिक्री में 30% से वृद्धि होगी, तो स्थिर लागतें 1,50,000 रु. से बढ़ेगी। कम्पनी विनियोग पर कर से पूर्व 20% प्रत्याय चाहती है । प्रस्तावों की लाभदायकता का मूल्याकंन करो और कम्पनी के लिए सर्वोत्तम उधार अवधि का सुझाव दीजिए।

Ashish Ltd. has a present, annual sales turnover of Rs. 60,00,000. The unit sale price is Rs. 20. The variable costs are Rs. 12 per unit and fixed costs amounted to Rs. 5,00,000 per annum. The present credit period of one month is proposed to be | extended to either 2 or 3 months whichever will be more profitable. The following additional information are available :

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Illustration 8. ग्राहकों का एक समह आपसे वर्ष 2006 में 24 लाख रुपये मूल्य के माल के क्रय का अनुबन्ध करना चाहता है जिसकी सपर्दगी त्रैमासिक किस्तों में होनी है। वस्तु का मूल्य 30 रु० प्रति। इकाइ ह जिस पर आप 15 रु० लाभ की आशा करते हैं। इस प्रस्ताव की स्वीकृति से आप की ओर 40,000 रु. प्रति वर्ष अतिरिक्त अनुवर्ती लागत में वृद्धि होगी।

इस समूह के ग्राहकों के सम्बन्ध में विगत काल सूची निम्न प्रकार थी

अवधि                                           प्राप्य बिलों का प्रतिशत

30 दिन के अन्त पर                            15%

60 दिन के अन्त पर                           25%

90 दिन के अन्त पर                          40%

100 दिन के अन्त पर                         20%

प्राप्या में रुके कोष पर 18% अवसर लागत मानते हए बताइये कि क्या इस प्रस्ताव को स्वीकृत करना वांछनीय होगा ? वर्ष में 360 दिन मानिये।

A group of customers want to enter into a contract with you to buy goods worth Rs. 24 lakh during 2006, the deliveries to be made in four equal instalments quarterly. The price of the commcditics is Rs. 30 per unit on which you expect a profit of Rs. 15. The acceptance of this proposal would mean an additional recurring expenditure of Rs. 40,000 p.a. on your part.

The ageing schedule of accounts receivables in respect of this group of customers in the past was as follows:

Period                               % of bills for which payment received

At the end of 30 days                                 15%

At the end of 60 days                                 25%

At the end of 90 days                                 40%

At the end of 100 days                               20%

Assuming an opportunity cost of 18% of the funds locked up in accounts receivables, will it be desirable to accept this proposal ? Assume 360 days a year.

Since the profits from the additional sales exceeds the opportunity cost of investment in receivables, the proposal should be accepted.

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Illustration 9. एक विक्रेता, जिसकी वार्षिक बिक्री 5 लाख रुपये है और अ सूली अवधि 30 दिन है. अपनी बिक्री में सधार करने के लिए और उदार साख नीति की वकालत करना चाहता है। एक प्रबन्ध सलाहकार के अध्ययन से निम्नांकित सूचनाएं उपलब्ध हैं :

A trader, whose current sales are Rs. 5 lakhs per annum and an average collection period of 30 days, wants to pursue a more liberal credit policy to improve sales. A study made by a management consultant reveals the following information:

साख नीति           वसूली अवधि में वृद्धि         बिक्री में वृद्धि      प्रत्याशित डूबत ऋण हानि

(Credit Policy)   (Increase in Sales)  (Increase in Sales)  (Bad Debts loss (Increase            Collection Period                                      anticipated

p                            10 Days                     30,000                    1.5%

Q                           20 Days                     48,000                    2.0%

R                            30 Days                    75,000                    3.0%

S                           45 Days                     90,000                   4.0%

विक्रय मूल्य प्रति इकाई 3 रु., औसत लागत प्रति इकाई 2.25 रु. और परिवर्तनशील लागत प्रति इकाई 2 रु. है। चालू डूबत ऋण की हानि 1% है। अतिरिक्त विनियोग पर आवश्यक प्रत्याय 20% है। वर्ष में 360 दिन मानिए । उपर्युक्त नीतियों में से आप किसकी अनुशंसा करेंगे?

The selling price per unit is Rs. 3, average cost per unit is Rs. 2.25 and variable cost per unit is Rs. 2. The current bad debts loss is 1%. Required return on average investment is 20%. Assume 360 days a year. Which of the above policies would you recommended?

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Illustration 10. आयुष लि. वर्तमान में अपने उत्पाद को 1,200 रु. प्रति की दर से बेच रही है। और इसकी परिवर्तनशील लागत 960 रु० है । 31 मार्च, 2006 को समाप्त वर्ष में कम्पनी ने औसतन 400 इकाई प्रति माह बेची। वर्तमान में कम्पनी एक माह का उधार अपने ग्राहकों को स्वीकृत करती है। कम्पनी इसको बढ़ाकर 2 महीने करने पर विचार कर रही है। इससे निम्नलिखित प्रत्याशा है

बिक्री में वृद्धि                                   25%

रहतिया में वृद्धि                       Rs. 2,40,000

लेनदारों में वृद्धि                       Rs. 1,20,000

आपको साख अवधि को बढ़ाने या न बढ़ाने के सम्बन्ध में परामर्श देना है यदि(अ) सभी ग्राहक 2 महीने की बढ़ी हुई साख अवधि का लाभ लेते हैं और

(ब) विद्यमान ग्राहक साख अवधि का लाभ नहीं लेते हैं परन्त केवल नये ग्राहक साख अवधि का लाभ लेते हैं। यह मानिये कि बढ़ी हुई समस्त बिक्री नये ग्राहकों से है । कम्पनी विनियोग पर 30% न्यूनतम प्रत्याय दर की आशा करती है।

Ayush Ltd. is currently selling its product for Rs. 1,200 each and its variable cost is Rs. 960. For the year ended 31st March, 2006, the company sold on an average 400 items per month. At present the company grants one month credit to its customers. The company is thinking of extending the same to two months on account of which the following is expected

Increase in Sales                              25%

Increase in Stock                      Rs 2,40,000

Increase in Creditors                Rs 1,20,000

You are Required to advise the Company on whether or not or extend  the credit term if :

(a) All customers avail the extended credit period of two months and

(b) existing customers do not avail  the credit terms but only the new customers avails t he same . Assume in this case the entire increase in sales is Attributable to the new customers

The Company expects a minimum return of 30% on the investment .

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(ब) नकद छट का आकार एवं नीति (Size and Policy of Cash Discount) दनदारा स उधार विक्रय का रकम जल्दी वसूल करने के लिए प्रायः संस्था द्वारा ग्राहकों को नकद बट्टा प्रदान किया जाता हा नकद छट का शती में छट की दर तथा छट की अवधि दोनों तय की जाती है। यदि कोई ग्राहक नकद छूट का लाभ नहीं उठाता है तो उसे देय तिथि तक शद्ध भगतान करना पडता है। वस्तुतः साख शर्तों के अन्तर्गत (अ) नकद छूट की दर,(ब) नकद छूट की अवधि एवं (स) शद्ध साख अवधि तीनों बिन्दुओं को दर्शाया जाता है। उदाहरणार्थ-‘2/10,शुद्ध 30’ साख शर्त यह प्रदर्शित करती है कि यदि ग्राहक 10 दिन के अन्दर भुगतान करता हता उस 2 भातशत नकद छट दी जायेगी। यदि वह इस ऑफर का लाभ नहीं उठाता है तो उसे 30 दिन के अन्दर भुगतान करना होगा। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि शुद्ध धनराशि (देय रकम-नकद छट) का 20 दिना हत् रखने के लिए 2 प्रतिशत ब्याज का भगतान करना पड़ेगा। इस आधार पर नकद छट की वार्षिक वित्तीयन लागत को निम्नलिखित सत्र की सहायता से ज्ञात किया जा सकता है

Annual Financing Cost=- % Discount    365                              100 – %

  Discount Credit period – Discount period

नकद छूट दिये जाने से छुट की धनराशि से संस्था के लाभ कम हो जाते हैं,क्योंकि इसके कारण ग्राहकों द्वारा देय राशि से कम राशि वसूल होती है.परन्त दसरी ओर भगतान अवधि में कमी होने से न केवल प्राप्यों में विनियोग की रकम कम हो जाती है बल्कि डबत ऋण में कमी आती है। इस प्रकार नकद छूट के कारण एक तरफ संस्था तरलता के होने वाले लाभ प्राप्त करती है तथा दूसरी तरफ डूबत ऋणों में कमी होती है। केवल नकद छूट के रूप में ग्राहकों से कम वसूल होने वाली राशि की हानि होती है । अतः नकद छूट दी जाये या नहीं, इसका निर्धारण करने के लिए लागत-लाभ विश्लेषण किया जाएगा। वस्तुतः यह निर्णय लेने के लिए वित्तीय प्रबन्धक को नकद छुट से प्राप्त होने वाले लाभों तथा नकद छट प्रदान किए जाने के कारण होने वाली हानि की आपस में तुलना करनी होगी। यदि नकद छट दिये जाने के कारण प्राप्त लाभों की रकम, बढ़ी हुई लागतों से अधिक हो तो नकद छुट प्रदान करना संस्था के हित में माना जाएगा। इसके विपरीत दशा में नकद छट स्वीकार करना संस्था के हित में नहीं माना जाएगा।

नकद छूट द्वारा साख नीति के निर्धारण एवं मूल्यांकन को निम्नांकित उदाहरण की सहायता से भली प्रकार समझा जा सकता है :

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Illustration 11. मोनिका लि. वर्तमान में 15,000 इकाइयाँ 20 रु. प्रति इकाई के हिसाब से बेचती है। औसत वसूली अवधि 40 दिन है। वर्तमान में प्रति इकाई औसत लागत 15 रु. एवं परिवर्तनशील लागत 12 रु. प्रति इकाई है।

‘कम्पनी उधार क्रय के बाद ग्राहकों द्वारा 15 वें दिन से पहले भुगतान करने पर 3% नकद बट्टा प्रस्तावित करने की सोच रही है। यह आशा की जाती है कि यदि नकद बट्टा प्रदान किया जाता है तो सम्भावित बिक्री 18.000 इकाइयों की होगी एवं औसत वसूलो अवधि घटकर 25 दिन हो जाएगी। डूबत ऋण व्यय अप्रभावित रहेंगे। कम्पनी की सम्भावित प्रत्याय की दर 16% है। कुल बिक्री का 70% नकद छूट पर वसूल किया जाएगा।

क्या कम्पनी द्वारा यह प्रस्ताव क्रियान्वित किया जाना चाहिए।

Monika Ltd. currently sells 15,000 units for Rs. 20 each. The average collection period is 40 days. The present average cost per unit is Rs. 15 and variable cost per unit is Rs. 12. The company is contemplating to alllow 3% discount for payment prior to the 15th day after a credit purchase. It is expected that if cash discount is allowed then expected sales will be 18,000 units and the average collection period will drop to 25 days. Assume bad debts expenses will not be affected. The company expects a rate of return of 16%. 70% of the total sales will be collected on cash discount.

Should the company implement the proposal?

Solution :

उपर्युक्त प्रश्न को पढ़ने से पता चलता है कि नकद छूट के प्रस्ताव को स्वीकार करने से अग्रलिखित दो स्रोतों से लाभ होगा ।

(i) विक्रय वृद्धि पर अतिरिक्त लाभ,

(ii) औसत वसूली अवधि में कमी होने से प्राप्यों में होने वाले विनियोग की लागत में कमी के कारण बचत।

दूसरी ओर प्रदान की गई छुट इस प्रस्ताव की लागत होगी।

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Illustration 12. आशीष लिमिटेड एक रोकड़ छूट नीति “3/10, शुद्ध 30” की शर्त पर लागू करने पर विचार कर रही है। शर्त में यह है कि यदि ग्राहक अपने बिल का 10 दिन में भुगतान करता है तो वह 3% नकद छूट प्राप्त करता है अन्यथा ग्राहक को अपने बिल का 30 दिन के अन्दर भुगतान करना है। आशीष लिमिटेड आशा करती है कि बिक्री का 60% रोकड़ छुट नीति का विकल्प लेगा जिससे औसत वसूलो अवाध सुधर कर 30 दिन से 18 दिन हो जायेगी। आशीष लिमिटेड़ की वर्तमान बिक्री 50 लाख रुपये है। क्या कम्पनी को रोकड़ छूट नीति लागू करनी चाहिए? विनियोग पर अपेक्षित प्रत्याय दर 15% है।

Ashish Ltd. is willing to introduce a cash discount policy on the terms “3/10, net 30″. The terms imply that if the customer pays his bills within 10 days he gets a cash discount 3%, otherwise the customer is required to clear his bills within 30 days. The company expects that 60% of the sales will opt for cash discount policy and as a result the average collection period will improve from 30 days to 18 days. The present sales of the company is Rs. 50 Lakhs. Should company introduce cash discount policy? Required return on investment is 15%.

Loss of Revenue (50,00,000×60%x3%)                        Rs. 90,000

Investment in Receivables Released : (a) – (b)             Rs. 1,66,667

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Illustration 13. एक कम्पनी ’60 दिन शुद्ध’ की प्रमाप साख शर्त प्रस्तावित करती है। इसकी उधार लेने की लागत 16% प्रतिवर्ष है । बताइये कि क्या ग्राहकों को,7 दिनों के अन्तर्गत भुगतान हेतु 2.5% छूट प्रस्तावित की जानी चाहिए, जो (i) 60 दिन.10 80 दिन एवं (ii) 105 दिन के पश्चात् भुगतान देंगे।

A company offers standard credit terms of ’60 days net’. Its cost of short-term borrowings is 16% per annum. Determine whether a 2.5% discount should be offered for payment within 7 days to customers who would normally pay after (i) 60 days, (i) 80 days, and (ii) 105 days.

यह निर्णय करने के लिए कि 7 दिनों के अन्तर्गत भुगतान हेतु ग्राहकों को 2.5% छूट प्रस्तावित की जानी चाहिए अथवा नहीं, में उधार लेने की लागत एवं छूट की लागत की तुलना करनी होगी। उधार लेने की लागत 16% प्रतिवर्ष दी हुई है। स्वाभाविक है कि छूट की लागत 16% प्रतिवर्ष से कम होने पर ही छूट प्रस्तावित करेंगे अन्यथा नहीं। यदि फर्म 7 दिनों के अन्तर्गत भुगतान हेतु 2.5% छूट प्रस्तावित करती है तो इसका अर्थ है कि देय राशि की 97.5% रकम क्रमशः 53 दिनों,73 दिनों एवं 98 दिनों के लिए उपलब्ध होगी एवं प्रत्येक स्थिति में छूट की वार्षिक लागत निम्नांकित प्रकार होगी

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स्पष्ट है कि छूट का प्रस्ताव उन्हीं ग्राहकों को दिया जाना चाहिए जो 80 अथवा 105 दिन के पश्चात् भुगतान करेंगे एवं ऐसे ग्राहकों को छूट प्रस्तावित नहीं करेंगे जो कि 60 दिनों के पश्चात् भुगतान देंगे।

 संग्रहण नीति (Collection Policy) साख नीति के निर्धारण में तीसरा महत्त्वपूर्ण निर्णय क्षेत्र संग्रहण नीति (वसूली नीति) है। संग्रहण नीति के अन्तर्गत साख अवधि समाप्त होने के पश्चात् प्राप्यों की राशि वसूल करने के लिए अपनाये जाने वाले तरीकों पर विचार किया जाता है। इन तरीकों में ग्राहकों से पत्र-व्यवहार, टेलीफोन पर वार्तालाप, व्यक्तिगत रूप से वार्तालाप तथा कानूनी कार्यवाही, आदि को सम्मिलित किया जाता है। सामान्यतः संग्रहण पर किये गये व्यय व डूबत ऋण से होने वाली हानि में विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है, परन्तु यह ध्यान रखना आवश्यक है कि संग्रहण व्यय तथा डूबत ऋण से हानि में रेखीय सम्बन्ध नहीं है। प्रारम्भ में जैसे-जैसे संग्रहण व्यय बढ़ता जाता है, डूबत ऋण हानि में अपेक्षाकृत अधिक अनुपात में कमी होती है। लेकिन संग्रहण व्यय का एक बिन्दु ऐसा आता है जिससे अधिक खर्च करने पर संस्था को कोई अतिरिक्त लाभ प्राप्त नहीं होता है । इस बिन्दु को संतृप्ति बिन्दु (Saturation Point) कहा जाता है । अनुकूलतम संग्रहण नीति का निर्धारण संग्रहण नीति से उत्पन्न आय और बढ़ी हुई लागतों का तुलनात्मक अध्ययन करके किया जाना चाहिए। अतः वित्तीय प्रबन्धक को संगहण व्यय तथा डबत ऋण से होने वाली हानि के बीच सामंजस्य स्थापित करना होता है।

संग्रहण नीति के विश्लेषण एवं प्रभावी नियन्त्रण हेत मुख्यतः निम्नलिखित तकनीकों को अपनाया जा सकता है

(i) देनदार या प्राप्य आवर्त अनुपात (Debtors or Receivable Turnover Ratio) कोई संस्था उधार की वसूली करने में कितनी सफल हई है. इसकी जाँच देनदार आवर्त अनुपात के आधार पर की जा सकती है। यह अनुपात वर्ष की शुद्ध उधार बिक्री और औसत प्राप्यों के बीच सम्बन्ध स्थापित करता है। इस अनुपात को ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है

Net Credit Sales Debtors or Receivables Turnover Ratio = Average Receivables where:

Average Receivables. – Opening Debtors and B/R) + (Closing Debtors and B/RS

नोट-यदि वर्ष के प्रारम्भ एवं अन्त के देनदारों (प्राप्यों) तथा उधार बिक्री सम्बन्धी सूचना उपलब्ध नहीं हो तो कुल बिक्री व वर्ष के अन्त में प्राप्यों की रकम के आधार पर ही इस अनुपात का परिकलन कर लेंगे। ऊंचा प्राप्य या देनदार आवर्त अनुपात देनदारों से वसूली की कुशलता का परिचायक है। इसके विपरीत,नीचा देनदार आवर्त अनुपात इस बात का सूचक है कि उधार बिक्री की वसूली व्यवस्था कुशल नहीं है ।

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Illustration 14. एक कम्पनी के अभिलेखों से पिछले दो वर्षों के लिए निम्नलिखित सूचना प्राप्त की गई हैं

The following information has been extracted from the records of a company for the last two years :

2003                               2004

Net Sales (Rs.)                          10,00,000                      13,20,000

Receivables (Rs.)                     2,00,000                         2,20,000

उपर्युक्त समंकों के आधार पर (i) प्रदत्त दो वर्षों के लिए प्राप्य आवर्त की गणना कीजिए एवं (ii) वर्ष 2005 हेतु 15,60,000 रुपये की बजटिड़ बिक्री पर 6.5 गुना प्राप्य आवर्त हेतु औसत प्राप्यों की रकम ज्ञात कीजिए।

On the basis of the above data (i) compute the receivables turnover for the given two years and (ii) find out the average size of investment in receivables for an improved receivables turnover of 6.5 times on the budgeted sales volume of Rs. 15,60,000 for the year 2005.

Comment : An increase in the receivables turnover shows an improvement in the level of receivables management.

(ii) औसत संग्रह अवधि (Average Collection Period) Collection Period)-देनदारों की वसूली का विश्लेषण देनदारा करने हेतु देनदार आवर्त अनुपात के साथ-साथ ‘औसत संग्रह अवधि’ की भी गणना की जाती है। औसत सग्रह अवाध दनदारा की वसली में लगने वाले समय को प्रकट करती है अर्थात इसका उद्देश्य यह मालम करना है कि व्यवसाय में ग्राहक कितने समय के पश्चात भगतान करते हैं। इसकी गणना देनदारों की राशि में एक दिन की बिक्री का भाग देकर की जाती है।

सूत्र रुप में Average Collection Period Average Trade Receivables No. of Months or Weeks (in months or weeks or days) Net Credit Sales or Days in a year

Or Months or Weeks or Days in a year

Debtors Turnover Ratio

औसत संग्रह को देनदारों की गतिशीलता (Debtors Velocity) भी कहते है।

सामान्यत: औसत संग्रहण अवधि किसी भी दशा में बिक्री की शर्तों में निर्धारित शुद्ध वसूली अवधि + उसके 1/3 से अधिक नहीं होनी चाहिए। यदि वास्तविक औसत संग्रहण अवधि निर्धारित वसूली अवधि के 14 गुने से अधिक है तो सामान्यतया यह माना जायेगा कि कम्पनी में उधार वसूली के सम्बन्ध में लापरवाही बरती जाती है।

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Illustration 15. जगतारा एण्ड कम्पनी के वर्ष 2005 के वित्तीय रिकॉर्ड से निम्नलिखित आँकड़े लिये गये हैं

The following data have been taken from the financial records of Jagtara & Company for the year 2005 :

Details                                                                                  Amount

(Rs.)

Total Sales (for the year)                                                 5,00,000

Cash Sales (included in the above)                            1,00,000

Sales Returns (for the year)                                          40,000

Sundry Debtors (year-end)                                           45,000

Bills Receivable (year-end)                                           10,000

Provision for Bad Debts (year-end)                              5,000

उपर्युक्त सूचनाओं के आधार पर जगतारा एण्ड कम्पनी की औसत वसूली अवधि की गणना कीजिए।

Calculate the Average Collection Period of Jagtara & Company on the basis of the above information.

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Illustration 16.

Credit sales for the year, 2005                                    3,00,000

Accounts Receivable as on 1.1 2005                          35,000

Accounts Receivable as on 31.12 2005                      25,000

Calculate the average age of receivables.

Illustration 17. वर्ष 2005 के लिए ‘अ’, ‘ब’ तथा ‘स’ तीन कम्पनियों के विषय में कतिपय चयनित वित्तीय आँकडे नीचे दिये गये हैं। तीनों कम्पनियाँ समान आकार-प्रकार की हैं और एक ही व्यवसाय में कार्यरत हैं। तीनों कम्पनियों की शुद्ध वार्षिक उधार बिक्री 36,00,000 रुपये की है।

Below are given certain selected financial data of ‘A’, ‘B’ and ‘C’ companies for the year 2005. All three firms are of equal size and belong to the same line of business. The net credit sales of each one of them are Rs. 36,00,000 per year.

निष्कर्ष : प्रश्न में बताया गया है कि बाजार में एक महीने के उधार पर ग्राहकों को माल बेचने की परम्परा है, अतः अधिकतम 30 दिन + (30 x 1 = 10 दिन) = 40 दिन की वसूली अवधि को सन्तोषजनक कहा जा सकता है। इस मापदण्ड के आधार पर ‘अ’ कम्पनी की देनदारों से वसूली ठीक कही जा सकती है परन्तु ‘ब’ तथा ‘स’ कम्पनी की वसूली नीति को सन्तोषजनक नहीं माना जा सकता क्योंकि इन कम्पनियों में वसली अवधि 40 दिन से अधिक है। अतः इन कम्पनियों को कम उधार बिक्री करनी चाहिए तथा अपनी वसली की प्रक्रिया तेज करनी चाहिए।

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टिप्पणियाँ

1 वर्ष में वैसे 365 दिन होते हैं किन्तु व्यवहार में सुविधा की दृष्टि से 360 से ही गुणा करने की परम्परा है।

2. सामान्य परम्परा यह है कि बाजार में प्रचलित उधारी की अवधि में ऐसी अवधि का एक-तिहाई जोड़कर जो योग आता है, उसे वसूली की सामान्य अवधि मान लिया जाता है । उपर्युक्त उदाहरण में सामान्य उधार की अवधि 30 दिन है, उसमें SUXI जोड़कर 30 + 10 = 40 दिन) की अवधि होती है, उसे सामान्य वसूली अवधि मान लिया गया है।

Illustration 18. स्टोवों का एक निर्माता 30 दिन में 21 प्रतिशत कटौती,60 दिन में शुद्ध (net) की शर्त पर खुदरा व्यापारियों को बेचता है। गत तीन वर्षों के दिसम्बर के अन्त में देनदारों और प्राप्य बिलों और सभी तीन वर्षों की शुद्ध बिक्री इस प्रकार है

A manufacturer of stoves sells to retailers on terms 2 percent discount in 30 days, 60 days net. The debtors and receivables at the end of December of past three years and net sales for all these three years are as under :

2003              2004                2005

Debtors (देनदार)                        50,000           46,000             90,000

Bills Receivables (प्राप्य बिल)    5,000              4,000             10,000

Net Sales (शुद्ध विक्रय)             2,75,000-        3,15,000          5,25,000

इन प्रत्येक तीनों वर्षों के लिये औसत संग्रह अवधि निर्धारित कीजिये और टीका दीजिये।

Determine the average collection period for each of these three years and comment.

Solution :

टिप्पणी-चूँकि निर्माता 60 दिन की उधार पर माल बेचता है, अतः औसत वसूली अवधि 80 दिन (60 दिन + 60 दिन का ) से अधिक नहीं होनी चाहिये । इस मापदण्ड के आधार पर तीनों वर्षों में औसत वसूली अवधि को सन्तोषजनक कहा जायेगा। इसके अतिरिक्त प्रत्येक वर्ष औसत वसूली अवधि निरन्तर गिर रही है। जो प्राप्यों के कुशल प्रबन्ध को प्रदर्शित करती है। Working Notes :

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प्राप्यों का कालक्रम अनसची (Ageing Schedule of Receivables)-प्राप्यों द्वारा भुगतान किये जाने की प्रवृत्ति (Trend) की जानकारी प्राप्त करने हेत कालक्रम अनसची एक महत्त्वपर्ण साधना अनुसूचा एक विवरण के रूप में तैयार की जाती है जिसमें (1) कुल बकाया ऋण की राशि, (ii) समयानुसार बकाया ऋण की राशि.तथा (iii) प्रत्येक अवधि की बकाया राशि का कुल प्राप्यों की राशि से प्रतिशत दर्शाया जाता है । इस प्रकार इस अनसची के अन्तर्गत प्राप्यों को उनकी आयु या समय के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। सरल शब्दों में प्राप्य कालक्रम अनसची एक निश्चित तिथि को समयावधि के आधार पर प्राप्यों (दनदारो) की स्थिति को प्रकट करती है। यह अनसूची प्राप्यों की खाताबही से तैयार की जाती है। इस खाताबही में प्रत्येक ग्राहक द्वारा क्रय की तिथि. उसे भुगतान हेतु दिया गया समय एवं धनराशि का विवरण होता है । यह अनुसूची प्राप्यों की तरलता का पिछली अवधि की तरलता से एवं अन्य व्यवसाय की उसी अवधि की तरलता से तुलनात्मक अध्ययन करने में सहायता प्रदान करती है। कालक्रम अनुसूची को निम्नलिखित उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है

सरिता लि. में 1 अक्टूबर,2005 को प्राप्यों की राशि 8,00,000 रु. थी। इस राशि की बिक्री निम्नांकित प्रकार थी:

सितम्बर में 3,20,000 रु.; अगस्त में 2,80,000 रु.; जुलाई में 1,60,000 रु. तथा शेष जुलाई से पूर्व । यदि कम्पनी द्वारा स्वीकृत साख शर्ते ‘2/10 शुद्ध 30’ हों तो साख अवधि को ध्यान में रखते हुए कालक्रम अनुसूची बनाइए तथा संस्था के वसूली प्रयासों पर प्रकाश डालिए।

इस तालिका से स्पष्ट है कि 60% प्राप्यों की वसूली प्रमाप साख अवधि अर्थात् 30 दिन में नहीं हो पा रही है। अतः कम्पनी को उधार वसूली कार्य में तीव्रता लानी चाहिए।

(It is clear from the above table that 60% of the receivables can not be collected in the standard credit period i.e., in 30 days. Therefore, the company should improve its collection efforts.)

2. साख नीतियों का क्रियान्वयन (Implementation of Credit Policies) निर्धारित साख नीति को संस्था में लागू करना ही साख नीतियों का क्रियान्वयन कहलाता है। साख नीति के क्रियान्वयन में निम्नलिखित दो कार्य करने पड़ते हैं :

(अ) साख आवेदकों का मूल्यांकन,(ब) प्राप्यों में विनियोग का वित्तीयन।

(अ) साख आवेदकों का मूल्यांकन (Evaluation of Credit Applicants) किसी संस्था द्वारा अनुकूलतम साख नीति का निर्धारण कर लेने से ही प्राप्यों का कुशल एवं प्रभावी प्रबन्ध नहीं हो सकता। उधार मानक तय करने के पश्चात् साख आवेदकों अर्थात् साख सुविधा चाहने वाले ग्राहकों के विषय में पर्याप्त जानकारी प्राप्त करके उसका विश्लेषण करना साख नीति का दूसरा महत्त्वपूर्ण पहलू है। साख विश्लेषण के आधार पर यह निर्णय लिया जाता है कि किन-किन ग्राहकों को कितनी साख सुविधा प्रदान की जाए। इस प्रक्रिया में निम्नलिखित दो महत्वपूर्ण कार्य करने पड़ते हैं :

(i) ग्राहकों के विषय में साख सूचनाओं का संग्रहण.(ii) संग्रहीत साख सूचनाओं का विश्लेषण।

(i) ग्राहकों के विषय में साख सूचनाओं का संग्रहण (Collecting Credit Information pertaining to Customers)-उधार क्रय का आवेदन ग्राहकों द्वारा किया जाता है। ये ग्राहक अपनी साख-श्रेष्ठता को प्रमाणित करने के लिए कुछ सूचनाएं तथा व्यापारिक सन्दर्भ भी देते हैं, परन्तु सामान्यतया ग्राहक द्वारा उपलब्ध कराई गई सूचनाएं पर्याप्त नहीं होती हैं। अतः ग्राहकों की साख योग्यता से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण सूचनाएं उनके वित्तीय विवरणों, बैंकों से सूचना प्राप्त करके,साख मूल्यांकन संस्थाओं,बाजार रिपोर्ट, आदि स्त्रोतों से प्राप्त कर सकते हैं। पुराने ग्राहकों के सम्बन्ध में संस्था का अपना अनुभव महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकता है।

Financial Management of Receivables

(ii) संग्रहीत साख सूचनाओं का विश्लेषण (Analysis of Collected Credit Information) किसी ग्राहक के विषय में विभिन्न साधनों से साख सूचनाएं एकत्रित करने के पश्चात् ग्राहक की साख योग्यता निर्धारित करने के लिए संग्रहीत सचनाओं का विश्लेषण किया जाता है। सूचनाओं के विश्लेषण की कोई निर्धारित विधि नहीं है. अत: प्रत्येक फर्म अपनी आवश्यकतानुसार विश्लेषण करती है। ग्राहक की साख क्षमता का विश्लेषण प्राय: 5 (Five) C’s अर्थात् चरित्र (character), क्षमता (capacity), पूँजी (capital), संपाश्विकता (collateral) एवं परिस्थितियों (condition) के आधार पर किया जाता है। संक्षेप में, साख सूचनाओं के विश्लेषण में (अ) गणात्मक, एवं (ब) परिमाणात्मक दोनों पहलुओं को सम्मिलित किया जाना चाहिए।

गुणात्मक पहलू का मूल्यांकन ग्राहक की ख्याति के आधार पर किया जा सकता है।

परिमाणात्मक पहलू का मूल्यांकन ग्राहक के वित्तीय विवरणों एवं संस्था के पास उपलब्ध पिछली सूचनाओं के आधार पर किया जाता है। इस प्रकार के मूल्यांकन में सर्वप्रथम देनदारों की कालक्रम अनुसूची (Ageing Schedule) तैयार की जाती है तथा इसके साथ-साथ औसत वसूली अवधि (Average Collection Period) की गणना भी की जाती है। इसके पश्चात् ग्राहक के चिट्ठे के आधार पर उसकी तरलता का विश्लेषण करने के लिए विभिन्न तरलता अनुपात ज्ञात किये जाते हैं।

इन दोनों पहलूओं का मूल्यांकन करने के पश्चात् यह निर्णय लिया जाता है कि ग्राहक विशेष को साख सुविधा प्रदान की जाये या नहीं और यदि दी जाए तो कितनी राशि तक साख सुविधा स्वीकृत करेंगे।

(ब) प्राप्यों में विनियोग का वित्तीयन (Financing the Investment in Receivables) प्राप्यों का वित्तीयन अल्पकालीन स्रोतों से किया जाता है और इसका प्रमुख स्रोत बैंकों से अल्पकालीन उधार लेना है। बैंक प्राप्यों में अदत्त राशि के विरुद्ध अल्पकालीन वित्तीयन करते हैं, परन्तु उन प्राप्यों के विरुद्ध वित्तीयन करना पसन्द नहीं करते जो 180 दिन से अधिक अवधि के लिए अदत्त हैं।

3. संग्रहण प्रक्रिया का निर्धारण (Formulation of Collection Procedure) एक सुदृढ़ एवं व्यवस्थित संग्रहण नीति हेतु एक स्पष्ट संग्रहण प्रक्रिया का होना आवश्यक है। संग्रहण प्रक्रिया इस प्रकार की होनी चाहिए ताकि संग्रहण में लगने वाला समय कम होने के साथ-साथ संग्रहण व्यय भी कम हो। संग्रहण प्रक्रिया में अधिक ढिलाई अथवा अधिक कठोरता दोनों ही व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। अतः संग्रहण प्रक्रिया ऐसी होनी चाहिए ताकि बिक्री पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना अशोध्य ऋण से उत्पन्न होने वाली हानि को न्यूनतम कर सके। एक संस्था उधारी की वसूली नकद छूट का प्रलोभन देकर, तकादे के पत्र लिखकर अथवा संग्रहण संस्थाओं के माध्यम से कर सकती है। संग्रहण की कौन-सी कार्यवाही संस्था के हित में रहेगी. इसका निर्णय पिछले अनुभव के आधार पर किया जा सकता है।

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4. प्राप्यों का विश्लेषण एवं नियन्त्रण (Analysis and Control of Receivables) __प्राप्यों के प्रभावी प्रबन्ध एवं नियन्त्रण हेतु संस्था द्वारा उचित सूचना प्रणाली को अपनाया जाना जरूरी है। उचित सूचना प्रणाली के अभाव में देय खातों की अवहेलना हो सकती है, ग्राहकों को निर्धारित सीमा से अधिक राशि की उधार सुविधा दी जा सकती है, ग्राहक नकद छूट की अवधि समाप्त होने के बाद भी छूट ले सकते हैं। अतः प्राप्यों पर नियन्त्रण बनाये रखने के लिए इनका विश्लेषण किया जाना आवश्यक है। प्राप्यों का विश्लेषण करने हेतु मुख्यतः अनुपात विश्लेषण तकनीक का प्रयोग किया जाता है।

परीक्षोपयोगी प्रश्न (Examination Questions)

दीर्घ उत्तरीय सैद्धान्तिक प्रश्न

(Long Answer Theoretical Questions)

1 प्राप्यों के प्रबन्ध से आप क्या समझते हैं ? प्राप्यों में विनियोग को प्रभावित करने वाले तत्वों की व्याख्या कीजिए।

What do you understand by Management of Receivables? Explain the factors affecting the investment in receivables.

2. प्राप्य प्रबन्ध से आप क्या समझते हैं? इसके उद्देश्यों की व्याख्या कीजिए।

What do you understand by Receivables Management? Explain its objectives.

3. प्राप्यों का अर्थ समझाइए। प्राप्यों सम्बन्धी विभिन्न लागतों का वर्णन कीजिए।

Explain the meaning of Receivables. Describe various costs associated with receivables.

4. साख नीति क्या है? इसका निर्धारण एवं मूल्यांकन किस प्रकार किया जाता है?

What is Credit Policy? How can it be formulated and evaluated?

5. निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए

Write short notes on the following:

(i) कालक्रम अनुसूची (Ageing schedule)

(ii) वसूली नीति का निर्धारण (Determination of collection policy)

(iii) साख शर्ते (Credit conditions)

(iv) रोकड़ छूट (Cash discount)

(v) साख कसौटियां (Credit standards)

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लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 . प्राप्यों के प्रबन्ध से आप क्या समझते हैं?

What do you understand by Management of Receivables?

2.प्राप्य प्रबन्ध के उद्देश्यों की व्याख्या कीजिए।

Explain the objectives of Receivables Management.

3. साख नीति क्या है?

What is Credit Policy?

4. प्राप्यों में विनियोग को प्रभावित करने वाले तत्वों की व्याख्या कीजिए।

Explain the factors affecting the investment in receivables.

5. कालक्रम अनुसूची पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

Write a short note on Ageing schedule.

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न

(Objective Questions)

बताइये कि निम्नलिखित कथन सत्य हैं अथवा असत्य

State whether the following statements are True or False :

1. प्राप्य, चल सम्पत्तियों के ही एक अंग होते हैं।   (सत्य)

Receivables are a part of current assets.  (True)

2. कोई फर्म कठोर साख नीति नहीं रख सकती यदि उसके उत्पादों की माँग है। (असत्य)

A firm can not have a strict credit policy in case its products are in demand. (False)

3. साख अवधि अधिक होने पर, ऋणों के वसूल होने की अधिक सम्भावना होती है। (असत्य) The higher the credit period, the greater are the chances of recovery of debt. (False)

4. विक्रय की मात्रा किसी फर्म की साख नीति से प्रभावित होती है। (सत्य)

The volume of sales is influenced by credit policy of a firm. (True)

5. प्राप्यों के प्रबन्ध द्वारा प्राप्यों को संग्रहित करने की लागत एवं कठोर साख नीति के कारण विक्रय की हानि को सन्तुलित किया जाता है।

Management of receivables involves balancing the cost of carrying receivables and the loss of sales due to a tight credit policy.

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निम्नलिखित में से सही विकल्प चुनिए (Select the correct option in the following) :

1. ग्राहकों को नकद छूट देने के परिणामस्वरूप

Offering cash discounts to Customers results in :

(a) औसत वसूली अवधि गिरती है ।(reducing the average collection period) (V)

(b) औसत वसूली अवधि में वृद्धि होती है । (increasing the average collection period)

(c) विक्रय में वृद्धि होती है। (increasing sales)

(d) इनमें से कोई नहीं (none of these)

2. कठोर साख नीति के परिणामस्वरूप (Strict credit policy results in) :

(a) विक्रय में वृद्धि होती है। (increasing sales)

(b) विक्रय में कमी होती है । (decreasing sales)

(c) विक्रय पर कोई प्रभाव नहीं होता (no effect on sales)

(d) इनमें से कोई नहीं (none of these)

3. उदार साख नीति के परिणामस्वरूप (Liberal credit policy results in): ।

(a) अप्राप्य ऋण में वृद्धि होती है। (increasing bad debts)

(b) अप्राप्य ऋण में कमी होती है (decreasing bad debts)

c) विक्रय में कमी होती है । (decreasing sales)

(d) इनमें से कोई नहीं (none of these)

4. ‘प्राप्यों’ शब्द में सम्मिलित है (The term receivables implies) :

(a) केवल व्यापारिक देनदार (Trade Debtors only)

(b) व्यापारिक देनदार एवं प्राप्य बिल (Trade Debtors and B/R)

(c) व्यापारिक देनदार, प्राप्य बिल एवं पूर्वदत्त व्यय

(Trade Debtors, B/R and Prepaid Expenses)

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क्रियात्मक प्रश्न

(Numerical Questions)

1. एक फर्म निम्नलिखित श्रेणियों के ग्राहकों को साख सुविधा प्रदान करके अपनी बिक्री बढ़ाने पर विचार कर रही है(अ) 10% भुगतान न करने की जोखिम वाले ग्राहक, एवं (ब) 20% भुगतान न करने की जोखिम वाले ग्राहक। (अ) श्रेणी की स्थिति में बिक्री में 80,000 रुपये की वृद्धि अपेक्षित है जबकि (ब) श्रेणी की स्थिति में 1,00,000 रुपये की वृद्धि अपेक्षित है। उत्पादन एवं विक्रय लागतें बिक्री की 60% हैं, जबकि संग्रहण लागतें (अ) श्रेणी की स्थिति में बिक्री की 5% एवं (ब) श्रेणी की स्थिति में बिक्री की 10% होंगी। आपको उपर्युक्त प्रत्येक श्रेणी के ग्राहकों को साख सुविधा दिये जाने के सम्बन्ध में फर्म को परामर्श देना

A firm is considering pushing up its sales by extending credit facilities to the following categories of customers : (a) Customers with a 10% risk of non-payment, and (b) Customers with a 20% risk of non-payment. The incremental sales expected in case of category (a) are Rs. 80,000 while in case of category (b) they are Rs. 1,00,000. The cost of production and selling costs are 60% of sales while the collection costs amount to 5% of sales in case of category (a) and 10% of sales in case of category (b).

You are required to advise the firm about extending credit facilities to each of the above categories of customers.

Ans. Incremental Income (a) customers with a 10% risk of non-payment Rs. 20,000%; (b) customers with a 20% risk of non-payment Rs. 10,000.

2. एक नया ग्राहक समूह जिसके साथ भुगतान न करने का जोखिम 10% है, आपसे व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित करने की इच्छा करता है। यह समूह डेढ़ माह का उधार माँगता है और इससे आपकी बिक्री 50,000 रु. प्रति वर्ष बढ़ने की सम्भावना है। उत्पादन, प्रशासनिक और बिक्री व्यय बिक्री के 80% हैं। आपको 50% की दर से आय कर देना है। यदि अपेक्षित प्रत्याय दर 40% (कर के पश्चात्) है तो क्या आपको यह प्रस्ताव स्वीकार करना चाहिए?

A group of new customers with a 10% risk of non-payment desires to establish a business connection with you. This group would require one and a half months of credit and is likely to increase your sales by Rs. 50,000 p.a. Production, administrative and selling expenses amounted to 80% of sales. You are required to pay income tax @ 50%. Should you accept the offer if the required rate of return is 40% (after tax)

Ans. The available rate of return (50%) is higher than the required rate of return (40%). Hence, the proposal should be accepted.

3. आकांक्षा लिमिटेड विक्रय पर साख के अपने वर्तमान स्तर को 1 माह से 2 माह करके उदार करना चाहती है। इसके परिणामस्वरूप विक्रय 60 लाख रुपये के वर्तमान स्तर से बढ़कर 72 लाख रुपये हो जायेगा परन्तु डूबत ऋण हानियों का प्रतिशत जो इस समय विक्रय का 3% है उसमें विक्रय के 2% से वृद्धि होने की सम्भावना है। कम्पनी की परिवर्तनशील लागते विक्रय की 75% हैं एवं स्थिर व्यय 12 लाख रुपये प्रति वर्ष हैं। संशोधित साख नीति के क्रियान्वयन पर कम्पनी को परामर्श दीजिए। साख विस्तार के लिये वांछित अतिरिक्त कोषों पर ब्याज को विचार में लेने की आवश्यकता नहीं है।

Aakansha Limited wants to relax its credit on sales from the current level of 1 month to 2 months. Due to this, sales would increase to Rs. 72 lakhs from the present level of Rs. 60 lakhs per annum, but the percentage of bad debt losses which is now at 3% of sales is likely to go up by 2% of sales. The company’s variable cost is 75% of sales and fixed expenses are Rs. 12 lakhs per annum. Advise the company on the implications of revising the credit policy. Interest on the additional funds required to extent credit not be considered.

Ans. The new credit policy should be recommended, as it will increase the profit by Rs. 1,20,000.

4. 3,00,000 रु. वार्षिक की वर्तमान बिक्री से और अधिक बिक्री बढ़ाने के लिए आशीष लिमिटेड एक और अधिक उदार साख नीति पर विचार कर रही है। वर्तमान में फर्म के उधार बिक्री की औसत वसूली अवधि 30 दिन है। यह अनुमानित है कि यदि वसूली अवधि को 30 दिन से बढ़ा दिया जाये तो बिक्री 75,000 रु. से बढ़ जाएगी। वित्तीय प्रबन्धक ने अनुमान किया है कि 30 दिन की अवधि बढ़ाने से डूबत ऋण हानि 5% होगी। वर्तमान डूबत ऋण हानि 1% है । फर्म का वर्तमान लागत प्रारूप निम्नलिखित है और आगामी वर्ष में भी यही रहेगा :

In order to increase sales from the present annual sales of Rs. 3,00,000, Ashish Ltd. is considering a more liberal credit policy. At present, the average collection period of credit sales of the firm is 30 days. It is expected that if the collection period is lengthened by 30 days, sales will increase by Rs. 75,000. The finance manager has estimated that with 30 days increase bad debt losses will be 5%. The present bad debts loss is 1%. The firm has the following cost pattern at present and the same will be in the coming year :

मूल्य प्रति इकाई (Price per unit)                                                  Rs.3.00

परिवर्तनशील लागत प्रति इकाई (Variable cost per unit)        Rs. 1.80

औसत लागत प्रति इकाई (Average cost per unit)                    Rs. 2.40

अपेक्षित प्रत्याय दर (अवसर लागत)                                                    20%

[Required rate of return (opportunity cost)]

वर्ष में कार्यशील दिनों की संख्या (Working days in a year)        360

क्या नई साख नीति का अनुमोदन करना चाहिए?

Should new credit policy be recommended?

Ans. The new credit policy should be recommended, as it will increase the profit by Rs. 8,750.

5. एक फर्म अपने उत्पाद की 40,000 इकाइयाँ प्रति वर्ष 35 रु. प्रति इकाई की दर से बेचती है। प्रति इकाई औसत लागत 31 रु. है और प्रति इकाई परिवर्तनशील लागत 28 रु. है। औसत वसूली अवधि 60 दिन है। डूबत ऋण हानियां बिक्री की 3% हैं और वसूली के व्यय 15,000 रु. हैं। फर्म एक अधिक कठोर वसूली वाली नीति अपनाने के प्रस्ताव पर विचार कर रही है, जो कि डूबत ऋण हानियों को घटाकर बिक्री का 1% और औसत वसूली अवधि को घटाकर 45 दिन कर देगी। इससे बिक्री मात्रा 1,000 इकाइयों से कम हो जाएगी और वसूली व्यय बढ़कर 25,000 रु. हो जायेंगे। फर्म की अपेक्षित प्रत्याय दर 20% है। क्या आप नई वसूली नीति अपनाने की सिफारिश करेंगे? अपनी गणना हेतु वर्ष में 360 दिन मान लीजिए।

A firm sells 40,000 units of its product per annum @ Rs. 35 per unit. The average cost per unit is Rs. 31 and the variable cost per unit is Rs. 28. The average collection period is 60 days. Bad debts losses are 3% of sales and the collection charges amount to Rs. 15,000. The firm is considering proposals to follow a strict collection policy which would reduced bad debt losses to 1% of sales and the average collection period to 45 days. It would however reduce sales volume by 1,000 units and increase the collection expenses to Rs. 25,000. The firm’s required rate of return is 20% would you recommend the adoption of the new collection policy? Assume 360 days in a year for the purpose of your calculation.

Ans. Yes, Net gain from new policy Rs. 22,383.

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6. कैलाश लिमिटेड की वार्षिक बिक्री 15,00,000 रुपये है एवं परिवर्तनशील लागतें 11,25,000 रुपये हैं। वर्तमान में कम्पनी ’15 दिन शुद्ध’ की साख प्रदान कर रही है एवं इसकी औसत संग्रह अवधि 30 दिन है। रजत जयन्ती उत्सव के अवसर पर यह 25 दिन शुद्ध’ की साख प्रदान करने की योजना बना रही है एवं आशा करती है कि इससे विक्रय में 20% की वृद्धि हो जायेगी। यद्यपि इसके परिणामस्वरूप औसत संग्रह अवधि में अतिरिक्त 30 दिन की वृद्धि हो जायेगी। यदि कम्पनी अपनी प्राप्यों में विनियोग पर 25% की प्रत्याय दर में कोई परिवर्तन नहीं चाहती तो क्या इसे साख अवधि बढ़ा देनी चाहिए ? वर्ष में 360 दिन मानिये।।

Kailash Ltd. has annual sales of Rs. 15,00,000 and the variable costs are Rs. 11,25,000. At present the company gives terms of net 15 days and its average collection period is 30 days. On the occasion of its silver jublee celebrations, it plans to give terms of net 25 days and anticipates its sales increase by 20%. However, this change results in the average collection period, increased by another 30 days. If the company does not want any change in its rate of return of 25% on investment in receivables, should it extend the credit period ? Assume 360 days a year.

Ans. Profit on Additional Sales = Rs. 75.000; Required Return on additional investment = 25% of Rs. 1,75,000 = Rs. 43.750: It should extend the credit period because required return on additional investment is less than the profit on additional sales.

7. एक फर्म ‘एक्स’ एवं ‘वाई’ दो साख नीतियों पर विचार कर रही है। ‘एक्स नीति’ में वसूली अवधि 3 माह होगी एवं ‘वाई’ नीति में 4 माह । वर्तमान में फर्म की बिक्री 40,00,000 रुपये है एवं इसमें इन दो नीतियों के अन्तर्गत 20% व 25% बढ़ने की उम्मीद है तथा डूबत ऋण हानियों क्रमश: 4% एवं 607 ही रहेंगी। वर्तमान में फर्म की कुल लागतें 32,00,000 रुपये हैं एवं फर्म इसी लाभदायकता स्तर को बनाये रखना चाहती है। यदि प्राप्यों पर फर्म की वांछित प्रत्याय दर 18% है तो इसे किस नीति का अनुसरण करना चाहिये?

A firm is considering two credit policies X and Y. The collection period will be 3 months in policy ‘X’ and 4 months in the policy ‘Y’. At present the firm’s sales are Rs. 40,00,000 and they are expected to increase by 20% and 25% under these two policies, and the bad debt losses will stand at 4% and 6% respectively. At present the total costs for the firm are Rs. 32,00,000 and the firm wants to maintain the same profitability level. If the firm’s required return on receivables is 18%, which should it follow ? Ans. Net Profit : Credit Policy ‘X’ Rs. 99,200; Credit Policy ‘Y’ Rs. 92,000 Since net profit in case of Policy ‘Y’ is more than that of ‘Y’, it should be adopted.

8. राजेश लिमिटेड का वर्तमान विक्रय स्तर 27,00,000 रुपये है। फर्म हेतु पूंजी की लागत 24% है एवं 10 रुपये के विक्रय मूल्य पर 1 रुपये का अंशदान है। वर्तमान साख अवधि 30 दिन है एवं फर्म की योजना इसे बढाकर 40 दिन करने की है। इसके परिणामस्वरूप अशोध्य ऋण अनुपात अतिरिक्त बिक्री पर 8% होगा। यदि साख अवधि में परिवर्तन किये जाने के कारण 6.75,000 रुपये की अतिरिक्त बिक्री होने की उम्मीद हो तो फर्म के लाभ पर क्या प्रभाव होगा ? वर्ष में 360 दिन मानिये। Rajesh Limited’s present level of sales is Rs. 27,00,000. The cost of capital for the firm is 24% and the contribution is Rs. 1 on selling price of Rs. 10. The present credit period is 30 days and the firm plans to increase it to 40 days. As a result the bad debt proportion on the additional sales will be 8%. If Rs. 6,75,000 additional sales are expected because of the change in credit period, what is the effect on the gross profit of the firm ? Assume 360 days a year. Ans. Profit will decrease by Rs. 20,700 as a result of implementation of new credit policy. Hence rejected.

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9. प्रीमियर स्टील लि. की वर्तमान वार्षिक बिक्री 40,00,000 रु. है। प्रति इकाई विक्रय मूल्य 20 रु. है। परिवर्तनशील लागतें 12 रु. प्रति इकाई और स्थिर लागतें 5,00,000 रु. प्रति वर्ष हैं। एक माह की वर्तमान उधार अवधि को बढाकर 2 अथवा 3 माह जो भी अधिक लाभदायी होगी. करने का प्रस्ताव है। निम्नलिखित अतिरिक्त सूचनाएँ उपलब्ध हैं

उधार बिक्री के आधार पर

       एक माह             दो माह         तीन माह

बिक्री में वृद्धि                                            _                   10%            30%

बिक्री पर डूबत ऋणों का प्रतिशत           1%                  2%             5%

जब बिक्री में 30% से वृद्धि होगी तो स्थिर लागतें 75,000 रु. से बढ़ेगी। कम्पनी विनियोग पर कर से पूर्व 20% प्रत्याय चाहती है। प्रस्तावों की लाभदायकता का मूल्यांकन करो और कम्पनी के लिए सर्वोत्तम उधार अवधि का सुझाव दीजिए। Premier Steel Ltd. has a present, annual sales turnover of Rs. 40,00,000. The unit sale price is Rs. 20. The variable costs are Rs. 12 per unit and fixed costs amount of Rs. 5,00,000 p.a. The present credit period of one month is proposed to be extended to either 2 or 3 months whichever will be more profitable. The following additional information are available :

On the basis of the credit period of

                                   1 month           2 months          3 months

Increase in sales by         _                     10%                   30%

1% of bad debts to sales  1%                  2%                    5%

Fixed cost will increase by Rs. 75,000 when sales will increase by 30%. The company requires a pre-tax return on investment @ 20%. Evaluate the profitability of the proposals and recommend best credit period for the company. Ans. 2 months credit policy should be recommended. Net Gain on 2 months credit = Rs. 55,667 and Net Gain on 3 months credit = Rs. 48,583.

10. ग्राहकों का एक समूह आपसे वर्ष 2006 में 15 लाख रुपये मूल्य के माल के क्रय का अनुबन्ध करना चाहता है जिसकी सुपुर्दगी 4 त्रैमासिक किस्तों में होनी है । वस्तु का मूल्य 25 रुपये प्रति इकाई है जिस पर आप 10 रुपये लाभ की आशा करते हैं। इस प्रस्ताव की स्वीकृति से आप की ओर 20,000 रुपये प्रति वर्ष अतिरिक्त अनुवर्ती लागत में वृद्धि होगी। इस समूह के ग्राहकों के सम्बन्ध में विगत काल सूची निम्न प्रकार थी

अवधि                                    प्राप्य बिलों का प्रतिशत

30 दिन के अन्त पर                            15%

60 दिन के अन्त पर                            25%

दिन के अन्त पर                                 40%

100 दिन के अन्त पर                            20%

प्राप्यों में रुके कोष पर 18% अवसर लागत मानते हुए बताइये कि क्या इस प्रस्ताव को स्वीकृत करना वांछनीय होगा ? वर्ष में 360 दिन मानिये। A group of customers want to enter into a contract with you to buy goods worth Rs. 15 lakh during 2006, the deliveries to be made in four equal instalments quarterly. The price of the commodities is Rs. 25 per unit on which you expect a profit of Rs. 10. The acceptance of this proposal would mean an additional recurring expenditure of Rs. 20,000 p.a. on your part. The ageing schedule of accounts receivables in respect of this group of customers in the past was as follows:

Period                       % of bills for which payment received

At the end of  30 days                    15%

At the end of 60 days                      25%

At the end  90 days                        40%

At the end o 100 days                   20%

Assuming an opportunity cost of 18% of the funds locked up in accounts receivables, will it be desirable to accept this proposal ? Assume 360 days a year.

Ans. Net Expected Return Rs. 6,00,000 – Rs. 20,000 = Rs. 5,80,000; Opportunity Cost of Funds @ 18% p.a. Rs. 56,625; Net Benefit on the Contract Rs. 5,23,375. The proposal should be accepted.

11. एक कम्पनी की वर्तमान वार्षिक बिक्री 10 लाख रु. और औसत वसूली अवधि 45 दिन है। कम्पनी एक उदार साख नीति अपनाकर प्रयोग करना चाहती है कि वसूली अवधि में वृद्धि से अतिरिक्त बिक्री का सृजन होगा। निम्नलिखित सूचनाओं से निर्धारित कीजिए कि आपकी दृष्टि में कम्पनी को कौन-सी नीति अपनानी चाहिए

A company currently has an annual turnover of Rs. 10 lakhs and an average collection period of 45 days. The company wants to experiment with a more

nberal credit policy on the ground that increase in collection period will generate additional sales. From the following information, kindly indicate which of the policies you would like the company to adopt :

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उत्पाद का विक्रय मूल्य 5 रु. है। औसत लागत प्रति इकाई वर्तमान स्तर पर 4 रु.है तथा परिवर्तनशील लागत प्रति इकाई 3 रु. है। वर्तमान डूबत ऋण हानि 1% है एवं अतिरिक्त विनियोग पर आवश्यक प्रत्याय दर 20% है। वर्ष में 360 दिन मानिए। The selling price of the product is Rs. 5. Average cost per unit at current level is Rs. 4 and the variable cost per unit is Rs. 3. The current bad debt loss is 1% and the required rate of return on investment is 20%. A year can be taken to comprise of 360 days.

Ans. Profit Increase in Credit Policy 1-Rs. 1,333; Profit Decrease : Credit ‘ Policy 2-Rs.5,733, Credit Policy3-Rs. 14,662, Credit Policy4-Rs. 38,520. Hence, the firm may select the credit policy 1, as it will increase the profit by Rs. 1,333.

12. शिव पार्वती लि. वर्तमान में अपने उत्पाद को 1,000 रु. प्रति की दर से बेच रही है और इसकी परिवर्तनशील लागत 800 रु. है। 31 मार्च, 2006 को समाप्त वर्ष में कम्पनी ने औसतन 400 इकाई प्रति माह बेचीं। वर्तमान में कम्पनी एक माह का उधार अपने ग्राहकों को स्वीकृत करती है। कम्पनी इसको बढ़ाकर 2 महीने करने पर विचार कर रही है। इससे निम्नलिखित प्रत्याशा है

बिक्री में वृद्धि                                25%

रहतिया में वृद्धि                   Rs. 2,00,000

लेनदारों में वृद्धि                  Rs. 1,00,000

आपको साख अवधि को बढ़ाने या न बढ़ाने के सम्बन्ध में परामर्श देना है यदि

(अ) सभी ग्राहक 2 महीने की बढ़ी हुई साख अवधि का लाभ लेते हैं और

(ब) विद्यमान ग्राहक साख अवधि का लाभ नहीं लेते हैं परन्तु केवल नये ग्राहक साख अवधि का लाभ लेते हैं। यह मानिये कि बढ़ी हुई समस्त बिक्री नये ग्राहकों से है। कम्पनी विनियोग पर 40% न्यूनतम प्रत्याय दर की आशा करती है।

Shiv Parvati Ltd. is currently selling its product for Rs. 1,000 each and its variable cost is Rs. 800. For the year ended 31st March, 2006, the company sold on an average 4CO items per month. At present the company grants one month credit to its customers. The company is thinking of extending the same to two months on account of which the following is expected :

Increase in sales                                  25%

Increase in stock                      Rs. 2,00,000

Increase in creditors Rs. 1,00,000

You are required to advise the company on whether or not to extend the credit term if :

(a) all customers avail the extended credit period of two months and

(b) existing customers do not avail the credit terms but only the new customers avail the same. Assume in this case the entire increase in sales is attributable to the new customers.

The company expects a minimum return of 40% on the investment.

Ans. Extend the credit in both (a) and (b); Additional Profit in (a) Rs. 8,000____and (b) Rs. 1,36,000.

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13. स्वाति लिमिटेड एक रोकड़ छूट नीति “2/10, शुद्ध 40″ की शर्त पर लागू करने की इच्छुक है। शर्त में यह है कि यदि ग्राहक अपने बिल का 10 दिन में भुगतान करता है तो वह 2% की नकद छूट प्राप्त करता है अन्यथा ग्राहक को अपने बिल का 40 दिन के अन्तर्गत भुगतान करना है। स्वाति लिमिटेड आशा करती है कि बिक्री का 60% रोकड़ छूट नीति का विकल्प लेगा जिससे औसत वसूली अवधि सुधरकर 40 दिन से 24 दिन हो जायेगी। स्वाति लिमिटेड की वर्तमान बिक्री 80 लाख रुपये है। क्या कम्पनी को रोकड़ छुट नीति लागू करनी चाहिए? विनियोग पर अपेक्षित प्रत्याय दर 15% है।

Swati Ltd. is willing to introduce a cash discount policy on the terms “2/10, net! 40″. The terms imply that if the customer pays his bills within 10 days he gets a cash discount of 2%, otherwise the customer is required to clear his bills within 40 days. Swati Ltd. is expecting that 60% of sales will opt for cash discount policy and as a result the average collection period will improve from 40 days to 24 days. The present sales of Swati Ltd. is Rs. 80 Lakhs. Should company introduce cash discount policy? Required return on investment is 15%..

Ans. Loss of Revenue Rs. 96,000; Return on Investment Released Rs. 53,333  The proposal of cash discount should not be introduced

14. एक कम्पनी 40 दिन शुद्ध’ की प्रमाप साख शर्त प्रस्तावित करती है । इसकी उधार लेने की लागत 18% प्रतिवर्ष है । बताइये कि क्या ग्राहकों को, 10 दिन के अन्तर्गत भुगतान हेतु 2% छूट प्रस्तावित की जानी चाहिए, जो (i) 40 दिन, (ii) 55 दिन एवं (iii) 70 दिन के पश्चात् भुगतान देंगे। A company offers standard credit terms of 40 days net. Its cost of short term borrowings is 18% per annum. Determine whether a 2% discount should be offered for payment within 10 days to customers who would normally pay after (i) 40 days, (ii) 55 days, and (iii) 70 days.

Ans. Annual Financing Cost of Discount : (i) 24.8%, (ii) 16.55%, (iii) 12.4%. Conclusion : The discount should be offered to customers who would have paid

after 55 or 70 days, and not to those who would have paid after 40 days.

15. एक कम्पनी के अभिलेखों से पिछले दो वर्षों के लिए निम्नलिखित सूचना प्राप्त की गई है

The following information has been extracted from the records of a company for the last two years :

2003                                       2004

Net Sales (Rs.)                                           4,00,000                                  5 ,28,000

Receivables (Rs.)                                     80,000                                        88,000

उपर्युक्त समंकों के आधार पर (i) प्रदत्त दो वर्षों के लिए प्राप्य आवर्त की गणना कीजिए एवं (i) वर्ष 2005 हेतु 6,50,000 रुपये की बजटिड़ बिक्री पर 6.5 गुना प्राप्य आवर्त हेतु औसत प्राप्यों की रकम ज्ञात कीजिए। On the basis of the above data (i) compute the receivables turnover for the given two years and (ii) to find out the average size of investment in receivables for an improved receivables turnover of 6.5 times on budgeted sales volume of Rs. 6,50,000 for the years 2005. Ans. (i) Receivables Turnover-5 times for 2003 and 6 times for 2004.

(ii) Receivables Rs. 1,00,000

16. मेवात एण्ड कम्पनी लिमिटेड के पिछले तीन वर्षों के अग्रलिखित आँकड़े उपलब्ध हैं

The following data for the proceeding three years are available in respect of Mewat & Company Limited :

(Amount in Rupees)

Particulars                                                                 2002                        2003                2004

Sundry Debtors (Year end)                            5,50,000                   6,75,000       8,90,000

Bills Receivable (Year end)                            2,50,000                 3,25,000          3,10,000

“Total Annual Credit Sales                           42,00,000              155,00,000       75,00,000

Sales Returns (for the year)                          2,00,000                  2,50,000       3,00,000

उपर्युक्त आँकड़ों के आधार पर कम्पनी के देनदार आवर्त (तीनों वर्षों के लिए) की गणना कीजिए। इनके। विश्लेषण से आप क्या निष्कर्ष निकाल सकते हैं ? On the basis of the above data calculate ‘Debtors or Receivable Turnover’ (for all the three years) of the company. What conclusion can you draw from analysis of such turnover ?

Ans. Receivables or Debtors Turnover : 2002 – 5 times, 2003 – 5.83 times, 2004-6.54 times.

Conclusion :  From the above analysis one can draw the conclusion that Debtors Turnover or Receivables Turnover of the company has gradually increased during the past three years. This is a favourable change which indicates that the credit and collection policy of the company is being managed quite efficiently.

17. ‘ब’ लि. वस्तुओं को नकद एवं उधार (स्थगित प्रभागों पर नहीं) बेचती है। 2005 के वर्ष के लिए निम्नांकित विवरण उनकी पुस्तकों से प्राप्त किये गये हैं :

‘B’ Ltd. sells goods on cash as well as on credit (though not on deferred instalement terms). The following particulars are extracted from their books of accounts for the year 2005 :                                                                                                                               Rs.

कुल सकल विक्रय (Total Gross Sales)                                                                          1,00,000

नकद विक्रय (जो उपर्युक्त मद में शामिल है) [Cash Sales (included in above)]     20,000

विक्रय वापसी  (Sales Return)                                                                                           7,000

विक्रय के सम्बन्ध में 31-12-2005 को कुल देनदार

(Total Debtors for sales on 31-12-2005)                                                             9,000

प्राप्य बिल 31-12-2005 को (Bills Receivable on 31-12-2005)                          2,000

संदिग्ध ऋणों के लिए संचय 31-12-2005 को

(Provision for doubtful debts on 31-12-2005)                                               1,000

कुल लेनदार 31-12-2005 को (Total Creditors on 31-12-2005)                   10,000

औसत वसूली अवधि ज्ञात कीजिए ।(Calculate the Average Collection Period).

Ans. Average Collection Period 55 days.

Hint : 365 working days have been taken.

18. एक फर्म में 1 दिसम्बर, 2006 को प्राप्यों की राशि 80,000 रुपये थी। इस राशि की बिक्री इस प्रकार थी नवम्बर में 32,000 रुपये, अक्टूबर में 24,000 रुपये, सितम्बर में 16,000 रुपये तथा शेष सितम्बर से पूर्व । यदि फर्म द्वारा स्वीकृत साख शर्ते “2/10 शुद्ध 30” हों तो साख अवधि को ध्यान में रखते हुए देनदार काल-सूची बनाइए तथा संस्था के वसूली प्रयासों पर टीका कीजिए।

A firm has Rs. 80,000 in receivables on December 1, 2006. The sales represented by this amount were made as follows : Rs. 32,000 in November, Rs. 24,000 in October, Rs. 16,000 in September and the remainder prior to September. If the credit terms offered by the firm are “2/10 net 30”, prepare an ageing schedule keeping in view the credit period and comment on the collections efforts of the firm.

Ans. 60% of the receivables can not be collected in the standard credit period i.c., in 30 days. Therefore, the company should improve its collection efforts.

Hint : Ssc Page 11.24.

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chetansati

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