BCom 3rd Year Financial Management Ratio Analysis Study Material notes in hindi

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BCom 3rd Year Financial Management Ratio Analysis Study Material notes in Hindi

Table of Contents

BCom 3rd Year Financial Management Ratio Analysis Study Material notes in Hindi: Meaning of Ratio  Expression of Ratios Meanings of Ratio Analysis Objectives of Analysis  Importance or Utility of Ratio Analysis Classification of Financial Ratio / Accounting Ratio  Liquidity Ratio Numerical Illustration Based ratio  Capital Structure  Solvency Analysis profitability Ratios  Long Answer Numerical Illustrations Based On Calculation of Various ratios:

Financial Management Ratio Analysis
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अनुपात विश्लेषण

(Ratio Analysis)

वित्तीय विवरणों में प्रदर्शित तथ्य अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होते हैं, परन्तु अलग-अलग तथ्य अपने आप में कोई महत्त्व नहीं रखते जब तक कि उन्हें एक ही विवरण के अन्य तथ्यों तथा अन्य अवधियों के उसी प्रकार के तथ्यों के साथ सम्बन्धित नहीं किया जाता है। वर्तमान समय में वित्तीय विश्लेषण हेतु अनुपातों का सार्वभौमिक प्रयोग किया जाता है। यह तो विदित ही है कि अनुपात दो संख्याओं के मध्य गणितीय सम्बन्ध स्थापित करता। है। वित्तीय विश्लेषण के अन्तर्गत इस प्रकार का सम्बन्ध लाभ-हानि खाते की किन्हीं दो मदों के मध्य या आर्थिक चिट्टे की दो मदों के मध्य अथवा एक लाभ-हानि खाते तथा दूसरी आर्थिक चिट्ठे की मद के मध्य स्थापित किया जा सकता है।

अनुपात केवल मात्र वित्तीय विवरणों से प्राप्त संख्याओं के सम्बन्ध को अंकगणितीय रूप में प्रदर्शित करने का साधन है, जबकि अनुपात विश्लेषण वित्तीय विवरणों की मदों के समूह में सम्बन्ध निर्धारण एवं प्रस्तुतीकरण की प्रक्रिया है।

वित्तीय विवरणों के सन्दर्भ में अनुपातों का प्रयोग सर्वप्रथम सन् 1906 में अमेरिका के बैंकों द्वारा ऐसी संस्थाओं की साख-पात्रता निर्धारित करने हेतु किया गया था जो ऋण प्राप्त करना चाहती थीं। इसके बाद अनुपातों द्वारा वित्तीय विवरणों के विश्लेषण की विधि का प्रस्तुतीकरण अलेक्जैण्डर वाल (Alexander Wall) द्वारा सन् 1919 में किया गया था। वर्तमान समय में तो अनुपातों द्वारा वित्तीय विवरणों का निर्वचन आधुनिक वित्तीय नियन्त्रण का एक अभिन्न एवं अपरिहार्य अंग बन गया है।

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अनुपात का अर्थ

(MEANING OF RATIO)

सामान्य शब्दों में, जब दो संख्याओं का परिमाणात्मक सम्बन्ध इस प्रकार ज्ञात किया जाता है कि एक संख्या का दूसरी संख्या के साथ सम्बन्ध पता चल जाए तो इसे ‘अनुपात’ कहते हैं। वित्तीय विवरणों के किन्हीं दो या दो से अधिक मदों के मध्य संख्यात्मक सम्बन्ध को वित्तीय अनुपात कहते हैं। इन अनुपातों को लेखांकन अनुपात (Accounting Ratios) भी कहते हैं क्योंकि वित्तीय अनुपात वित्तीय खातों पर आधारित होते हैं।

अनुपातों की अभिव्यक्ति

(EXPRESSION OF RATIOS)

अनुपातों को निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है

(i) शुद्ध अनुपात (Pure Ratio) के रूप में इसमें वित्तीय विवरणों की किन्हीं दो मदों के मध्य पाये जाने वाले सम्बन्ध को सीधे आनुपातिक रूप में व्यक्त किया जाता है। जैसे—यदि किसी कम्पनी में चालू सम्पत्तियाँ 50,000 रुपये की तथा चालू दायित्व 25,000 रुपये के हैं तो चालू सम्पत्तियों का चालू दायित्वों के साथ सम्बन्ध प्रदर्शित करने के लिए यह कहा जायेगा कि चालू सम्पत्ति एवं चालू दायित्व का अनुपात 50,000 : 25,000 अर्थात् 2 : 1 है।

(ii) दर अथवा ‘इतने गने’ (Rate or so many Times) के रूप में अनुपात व्यक्त करने की इस विधि के अन्तर्गत दो मदों के मध्य पाये जाने वाले सम्बन्ध को प्रदर्शित करने के लिए यह स्पष्ट किया जाता है कि एक संख्या दूसरी संख्या से कितनी गुनी है। उदाहरण के लिए किसी संस्था में विक्रय और स्कन्ध की राशियाँ क्रमशः 50,000 रुपये और 10,000 रुपये हैं तो विक्रय, स्कन्ध का पाँच गुना कहलायेगा।

(iii) प्रतिशत (Percentage) के रूप में इसके अन्तर्गत दो मदों के सम्बन्ध को सैकड़े के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है । उदाहरण के लिए किसी संस्था में सकल लाभ 10,000 रुपये तथा बिक्री 50,000 रुपये है तो विक्रय पर सकल लाभ का प्रतिशत 10,000 x 100 = 20% होगा।

अनुपात विश्लेषण का अर्थ

(MEANING OF RATIO ANALYSIS)

अनुपात विश्लेषण का आशय वित्तीय विवरणों की मदों के बीच सम्बन्ध स्थापित करके व्यवसाय के वित्तीय विश्लेषण से होता है । इसके अन्तर्गत निर्दिष्ट उद्देश्य के अनुसार वित्तीय विवरणों की दो या अधिक मटों के बीच अनुपात ज्ञात करके एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचा जाता है।

“अनुपात विश्लेषण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा वित्तीय विवरणों पर आधारित संख्यात्मक सम्बन्धों का निर्धारण तथा निर्वचन किया जाता है।” अनुपात विश्लेषण में निम्नलिखित चार चरण समाहित हैं

1 सम्बन्धित सचनाओं का चयन (Selection of Relevant Information) -सर्वप्रथम वित्तीय विश्लेषण के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए वित्तीय विवरणों से सम्बन्धित सूचनाओं का चयन किया जाता है।

2. वांछित अनुपातों का परिकलन (Calculation of Disired Ratios)-वित्तीय विश्लेषण के उद्देश्यों के अनुसार उपयुक्त/वांछित अनुपातों की गणना करते हैं।

3. अनुपातों का तुलनात्मक अध्ययन (Comparative Study of Ratios) ज्ञात किए गए अनुपातों की फर्म के पिछले वर्षों के उन्हीं अनुपातों से या अन्य संस्थाओं के उन्हीं अनुपातों से अथवा उन अनुपातों के आदर्श स्तरों से तुलना की जाती है।

4. अनुपातों का निर्वचन (Interpretation of Ratios)-अनुपात विश्लेषण के अन्तिम चरण में अनुपातों का निर्वचन किया जाता है अर्थात् निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

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अनुपात विश्लेषण के उद्देश्य

(OBJECTS OF RATIO ANALYSIS)अनुपात विश्लेषण, वित्तीय विश्लेषण की महत्त्वपूर्ण तकनीक है। इसे वित्तीय विश्लेषण का हृदय कहा जा सकता है। जिस प्रकार शरीर में हृदय की धड़कन से शरीर की स्वस्थता का पता लगाया जा सकता है ठीक उसी प्रकार व्यवसाय में अनुपात विश्लेषण के माध्यम से व्यवसाय की आर्थिक स्थिति का पता लगाया जा सकता है। अनुपात विश्लेषण के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं

  1. सापेक्षिक अध्ययन (Relative Study)-वित्तीय विवरणों में प्रदर्शित किसी अंक या तथ्य का अपने आप में कोई महत्त्व नहीं होता है। अत: उनके आधार पर कोई भी निष्कर्ष तब तक नहीं निकाला जा सकता है जब तक कि विभिन्न मदों के मध्य पारस्परिक सम्बन्ध स्थापित न किया जाये। अनुपात ऐसे ही अन्तर्सम्बन्ध को व्यक्त करते हैं अर्थात् अनुपात विश्लेषण से सापेक्षिक अध्ययन का उद्देश्य पूरा हो जाता है।
  2. संक्षिप्तीकरण (Conciseness)-अनुपातों की सहायता से बड़े-बड़े अंकों या अंक समूहों को सरल तथा संक्षिप्त करना सम्भव हो जाता है। इस कारण इनमें निहित अर्थों को आसानी से समझा जा
  3. व्यावसायिक क्रियाओं का विश्लेषण (Analysis of Business Activities)- अनुपातों के तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर व्यवसाय की प्रगति अथवा अवनति के बारे में अनेक महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं।

अनुपात विश्लेषण का महत्त्व एवं उपयोगिता

(IMPORTANCE OR UTILITY OF RATIO ANALYSIS)

किसी भी संस्था के वित्तीय विश्लेषण में अनुपात विश्लेषण की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। वित्तीय विवरणों में प्रस्तुत संख्याएँ मूक (गूंगी) होती हैं, अनुपातों का प्रयोग उन्हें वाणी प्रदान करता है। इसके महत्त्व को निम्नलिखित शीर्षकों में अभिव्यक्त किया जा सकता है___

  1. प्रबन्ध को सहायता अनुपात विश्लेषण की सहायता से प्रबन्धकों को संस्था की गतिविधियों को समझने एवं कार्यकुशलता बढ़ाने में मदद मिलती है । इसके माध्यम से प्रबन्धकों को नियोजन, नियन्त्रण, समन्वय, संवहन, पूर्वानुमान, नीति निर्धारण, निर्णयन, आदि कार्यों में भी सहायता मिलती है।
  2. प्रवृत्ति अध्ययन–अनेक वर्षों के अनुपातों के आधार पर अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्यों की प्रवृत्ति का पता चल जाता है । इस प्रकार प्रवृत्ति अध्ययन से भविष्य की घटनाओं का पूर्वानुमान करने में सहायता मिलती है।
  3. विभिन्न संस्थाओं की तलना-अनुपात विश्लेषण की सहायता से विभिन्न संस्थाओं की वित्तीय स्थिति की तुलना करके उनकी कार्यकुशलता एवं क्षमता का पता लगाया जा सकता है।
  4. समचनाओं के संवहन में सहायक-अनपात विश्लेषण से इस बात की जानकारी मिल जाती है कि कहा दो अवधियों के बीच व्यवसाय में क्या-क्या परिवर्तन हए हैं। इस प्रकार अनुपात विश्लेषण को सहायता से व्यवसाय की कमजोरियों को आसानी से जाना जा सकता है।।
  5. आदर्श या मानक अनपातों का निर्धारण पिछले अनुपातों व वर्तमान कार्यकुशलता को ध्यान में रखते हुए संस्था की गतिविधियों के मानक या प्रमाप निर्धारित किए जा सकते हैं । इस प्रकार अनुपात विश्लेषण का बजट नियन्त्रण व्यवस्था तथा प्रमाप लागत प्रणाली का अभिन्न अंग माना जाता है।
  6. प्रभावशाली नियन्त्रण-अनुपातों के आधार पर मानकों (प्रमापों) की स्थापना करके संस्था की गतिविधियों पर प्रभावशाली नियन्त्रण किया जा सकता है। प्रमाप अनुपातों से वास्तविक अनुपातों की तुलना करने पर दृष्टिगत प्रतिकूल स्थिति पर नियन्त्रण करने हेतु सुधारात्मक कदम उठाये जा सकते हैं। स्पष्ट है कि संस्था के कार्य-परिणामों तथा लागतों पर उचित नियन्त्रण रखने में अनुपात विश्लेषण महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है।
  7. कार्यकुशलता के मूल्यांकन में सहायक-अनुपात विश्लेषण की सहायता से एक ही संस्था के अनेक वर्षों के अनुपातों की अथवा उसी प्रकार की अन्य संस्थाओं के अनुपातों की या सम्बन्धित उद्योग के औसत अनुपातों से तुलना करके किसी संस्था की कार्यकुशलता का मूल्यांकन किया जा सकता है । इस प्रकार अनुपात विश्लेषण का प्रयोग कार्यकुशलता के मापदण्ड के रूप में भी किया जाता है।
  8. वित्तीय क्षमता के मूल्यांकन में सहायक तरलता, शोधन क्षमता, लाभप्रदता एवं पूजी दन्तिकरण अनुपातों की सहायता से किसी भी संस्था की वित्तीय क्षमता के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी प्राप्त की जा सकती है। _
  9. संस्था में रुचि रखने वाले पक्षों को लाभ-अनुपात विश्लेषण से संस्था में रुचि रखने वाले आन्तरिक व बाह्य पक्षकारों को भी लाभ होता है। संस्था के कर्मचारी संस्था की गतिविधियों एवं लाभार्जन क्षमता, आदि का ज्ञान प्राप्त करके अपने वेतन व सुविधाओं में वृद्धि की माँग कर सकते हैं। शोधन क्षमता एवं लाभप्रदता अनुपातों का अध्ययन करके संस्था में विनियोग करने वाले (विनियोजक) एवं ऋणदाता संस्था में धन लगाने या न लगाने का निर्णय सरलता से कर सकते हैं।

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अनुपात विश्लेषण की सीमाएँ

(LIMITATIONS OF RATIO ANALYSIS)

कुछ विद्वानों का विचार है कि वित्तीय विवरण-पत्रों के विश्लेषण का आधार लेखांकन अनुपात ही हैं और इनकी सहायता से कम्पनी की उपार्जन शक्ति, वित्तीय स्थिति एवं इसके भविष्य का ज्ञान सरलता एवं पूर्णता से किया जा सकता है अर्थात् वे यह समझते हैं कि लेखांकन अनुपात एनासीन की गोली की तरह प्रकाशित लेखों से सम्बन्धित प्रत्येक शंका को दूर कर सकते हैं, परन्तु वास्तव में लेखांकन अनुपात पर इतना अधिक विश्वास करना प्रमात्मक है। ये अनुपात विश्लेषण की आधारशिला का कार्य कर सकते हैं, परन्तु इसके लिए अनुपात ही सब कुछ नहीं । इन अनुपातों का प्रयोग करते समय बड़ी सतर्कता की आवश्यकता है । वस्तुतः अनुपात विश्लेषण से किसी संस्था की लाभप्रदता, शोधन क्षमता एवं पूँजी संरचना की गहनता से जाँच सम्भव है, परन्तु विश्लेषणकर्ता को इसकी सीमाओं की जानकारी होनी चाहिए। अनुपात विश्लेषण की प्रमुख सीमाएँ निम्नवत् हैं

  1. एक अकेले अनुपात का सीमित महत्त्व केवल एक अनुपात से किसी स्थिति का सम्पूर्ण चित्र स्पष्ट नहीं होता है। अतः निष्कर्ष निकालते समय सभी सम्बन्धित अनुपातों पर विचार कर लेना चाहिए। उदाहरण के लिए- तरलता की जाँच के लिए तरलता सम्बन्धी सभी अनुपातों का प्रयोग करना।
  2. गुणात्मक विश्लेषण का अभाव-अनुपात विश्लेषण किसी भी समस्या के परिमाणात्मक पक्ष पर तो प्रकाश डालता है परन्तु गुणात्मक पक्ष पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। उदाहरण के लिए-शोधन क्षमता से सम्बन्धित अनुपात किसी संस्था या व्यक्ति की शोधन क्षमता का अनुमान लगाने में तो सहायक होंगे, परन्तु उनके चरित्र एवं व्यवहार तथा ईमानदारी के सम्बन्ध में शोधन क्षमता के मापक अनुपात कोई जानकारी नहीं दे पायेंगे।
  3. निर्वचन के साधन मात्र अनुपात विश्लेषण अपने आप में साध्य नहीं हैं बल्कि ये निर्वचन के लिए मात्र हैं। अतः विश्लेषक को यह ध्यान में रखना चाहिए कि ये केवल मार्गदर्शक हैं और इनका प्रयोग तलनीय प्रकृति की अन्य सूचनाओं के साथ ही किया जाना चाहिए।
  4. उपरी दिखावे की सम्भावना अनेक बार वित्तीय विवरणों में वास्तविक स्थिति को बढ़ा-चढ़ा कर दिखा दिया जाता है जिसे ‘विण्डो ड्रेसिंग’ कहते हैं। इस प्रकार के दिखावे का प्रभाव अनुपातों पर पड़ता है। क्योंकि वित्तीय अनुपात की गणना इन विवरणों में प्रदर्शित तथ्यों के आधार पर ही की जाती है।
  5. लेखांकन की स्वाभाविक सीमाओं का प्रभाव-वित्तीय अनुपातों की गणना लेखांकन अभिलेखों से की जाती है जो कि लेखांकन पद्धति, परम्परागत सिद्धान्तों, अवधारणाओं तथा व्यक्तिगत निर्णय पर आधारित होते हैं। अत: इन अनुपातों में वे सभी कमियाँ और त्रुटियाँ होंगी जो लेखा-समंकों में विद्यमान हैं। सम्पत्तियों के मूल्यांकन में की गई त्रुटियाँ उनके आधार पर आकलित अनुपातों को स्वाभाविक रूप से प्रभावित करेंगी।
  6. अनुपातों की गणना में प्रयुक्त शब्दों की परिभाषाओं में एकरूपता का अभाव-व्यवहार में विभिन्न अनुपात ज्ञात करने हेतु उपयोग में लाए गए विभिन्न शब्दों जैसे-अंशधारियों की पूँजी.कल प्रयुक्त पँजी तथा चालू पूँजी आदि की परिभाषाओं में भी एकरूपता नहीं पायी जाती है। जैसे—कुछ कम्पनियाँ चालू पूँजी से आशय शुद्ध चालू सम्पत्तियों (चालू सम्पत्तियाँ-चालू दायित्व) से लेती हैं जबकि कुछ केवल चालू सम्पत्तियों से ही लेती हैं। इसी प्रकार एक कम्पनी को अपनी पूँजी का अधिकांश भाग स्थायी सम्पत्तियों में लगाना पड़ सकता है जबकि अन्य को कच्चे एवं तैयार माल में । इसलिए एक संस्था के अनुपातों की तुलना दूसरी संस्था के अनुपातों से या सम्पूर्ण उद्योग से नहीं की जा सकती।
  7. उचित प्रमापों का अभाव-अनुपात विश्लेषण के अन्तर्गत विभिन्न संस्थाओं के तथा एक ही संस्था के विभिन्न वर्षों के तुलनात्मक अध्ययन के लिए उचित प्रमापों का अभाव पाया जाता है। ऐसा कोई अनुपात नहीं है जिसे तुलनात्मक अध्ययन में सभी प्रकार की संस्थाओं के लिए समान रूप से प्रयोग में लाया जा सके।
  8. विश्लेषक की व्यक्तिगत योग्यता व पक्षपात का प्रभाव-अनुपात विश्लेषण में निर्वचन एवं निष्कर्ष विश्लेषक की व्यक्तिगत योग्यता व पक्षपात से प्रभावित हो सकते हैं। अत: इनका प्रयोग बड़ी सावधानी तथा सतर्कता के साथ किया जाना चाहिए।
  9. मूल्य-स्तर के परिवर्तन को न दर्शाना सामान्यतः वित्तीय विवरणों को तैयार करते समय मूल्य-स्तर में हए परिवर्तनों का समावेश नहीं किया जाता है, जिसके कारण वित्तीय विवरणों में प्रदर्शित तथ्यों के आधार पर आकलित अनुपातों से भ्रामक परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। अतः विभिन्न वर्षों के अनुपातों की तुलना करते समय मूल्य-स्तर के परिवर्तनों को भी ध्यान में रखना आवश्यक है।
  10. केवल सापेक्षिक स्थिति का प्रदर्शन–अनुपातों के माध्यम से सापेक्षिक स्थिति प्रकट की जाती है, इन्हें वास्तविक समंकों का स्थानापन्न नहीं माना जा सकता। अनुपात विश्लेषण सुदृढ़ निष्कर्ष व निश्चित निर्णय निकालने का स्थानापन्न नहीं है। अतः विश्लेषक को निष्कर्ष निकालते समय वास्तविक आँकडों को ध्यान रखना चाहिए।

वित्तीय अनुपातों/लेखांकन अनुपातों का वर्गीकरण

(CLASSIFICATION OF FINANCIAL RATIOS/ACCOUNTING RATIOS)

विभिन्न व्यक्ति एवं संस्थायें अपने-अपने उद्देश्यों को ध्यान में रखकर अनुपातों का प्रयोग करते हैं। इसलिए लेखांकन अनुपातों का वर्गीकरण विभिन्न आधारों पर एवं विभिन्न रूपों में किया जाता है। प्रसिद्ध अनुपातविज्ञ स्पेन्सर ए० टकर ने अपनी पुस्तक “Successful Managerial Control by Ratio Analysis” में 429 अनुपातों का विवेचन एवं विश्लेषण किया है। इन सभी अनुपातों का वर्णन यहाँ पर न तो सम्भव है और न ही वांछनीय है। अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से विभिन्न अनुपातों को निम्नलिखित वर्गों में विभाजित किया जा सकता है

(अ) तरलता अनुपात (Liquidity Ratio)

(ब) दीर्घकालीन शोधन क्षमता अनुपात (Long-term Solvency Ratios)

(स) आवर्त अथवा क्रियाशीलता अनुपात (Turnover or Activity Ratios)

(द) लाभदायकता अनुपात (Profitability Ratios)

(अ) तरलता अनुपात

(LIQUIDITY RATIOS) ‘

तरलता’ का आशय व्यवसाय के अपने चालू दायित्वों को पुगतान करने की क्षमता से होता है। अतः तरलता अनुपातों की गणना संस्था की अल्पकालीन शोधनक्षमता को ज्ञात करने के लिए की जाती है।

अनुपातों से यह ज्ञात होता है कि सम्बन्धित व्यवसाय अपने चालू दायित्वों का भुगतान शीघ्रतापूर्वक करने की स्थिति में है,या नहीं। मुख्य तरलता अनुपात निम्नलिखित हैं

1. चालू अनुपात (Current Ratio)-यह अनुपात संस्था की चालू सम्पत्तियों एवं चालू दायित्वों के मध्य सम्बन्ध को दर्शाता है। इस अनुपात को ‘कार्यशील पूँजी अनुपात’ (Working Capital Ratio) भी कहते हैं। अल्पकालीन शोधन क्षमता की जाँच करने की दृष्टि से चालू अनुपात एक महत्त्वपूर्ण अनुपात है। संक्षेप में, चालू अनुपात को ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र प्रयोग किया जाता है

Current Assets

Current Ratio = Current Liais

145 Tau (Cash out fafer

चालू सम्पत्तियाँ (Current Assets) वे सम्पत्तियाँ हैं जो रोकड़ या रोकड़ तुल्य (Cash or Cash Equivalents) में हैं अथवा जो अल्पकाल (Short time) में अर्थात् चिट्टे (Balance Sheet) की तिथि से 12 माह में रोकड या रोकड़ तुल्य अर्थात व्यवसाय के सामान्य संचालन चक्र (Operating Cycle) में अर्थात् लगभग एक वर्ष में नकदी में परिवर्तित हो जाती हैं।

चालू दायित्वों (Current Liabilities) से आशय उन दायित्वों से है जिनका भुगतान चिट्ठे (Balance Sheet) की तिथि से 12 माह की अवधि में या व्यवसाय के संचालन चक्र (Operating Cycle) में किया जाना है।

चालू सम्पत्तियों (Current Assets) एवं चालू दायित्वों (Current Liabilities) में शामिल की जाने वाली मदों का विवरण निम्न प्रकार है

 Current Assets = Cash in hand + Cash at Bank + B/R + Debtors + Stock or Inventories (Stock of Raw Material + Work-in-Progress + Finished Goods) + Short-term Loans and Advances + Current Investment (Marketable Securities, Short-term Investment) + Prepaid Expenses + Accrued Income etc.

Current Liabilities = Short-terin Borrowings (Bank Overdraft) + Sundry Creditors + Bills Payable + Unclaimed Dividends + Outstanding Expenses + Provision for Tax and other short-term provisions.

नोट

(i) चालू सम्पत्तियों में, बट्टे तथा अंशों तथा ऋणपत्रों के निर्गमन की हानि का वह भाग जो अपलिखित नहीं किया गया, शामिल नहीं किया जाएगा (Unamortised Portion of Discount or Loss on Issue of Shares or Debentures are not included in Current Assets.)

(ii) Loose tools, Stores and Spares आदि को चालू सम्पत्तियों में शामिल नहीं किया जाएगा।

(iii) चालू विनियोगों (Current Investments) में एक वर्ष तक के लिए किए गए विनियोगों को ही सम्मिलित किया जाता है। केवल ‘विनियोग’ (Investments) शब्द लिखा हुआ होने पर उन्हें चाल सम्पत्ति नहीं माना जाता है वान् दीर्घकालीन सम्पत्ति (Long-term asset) माना जाता है।

(iv) यदि बैंक अधिविकर्ष बार-बार लिया जाता है या यह लगातार बना ही रहता है तो इसे दीर्घकालीन दायित्व माना जाता  है ।

आदर्श स्तरचालू अनुपात का आदर्श स्तर 2 : 1 है अर्थात् चालू सम्पत्तियाँ, चालू दायित्वों की दो गुनी होनी चाहिए। यदि यह अनुपात बहुत अधिक होता है तो भी अच्छा नहीं माना जाता है, क्योंकि बहुत अधिक अनुपात यह दर्शाता है कि काफी धनराशि संस्था/व्यवसाय में बेकार पड़ी हुई है।

चालू अनुपात के सम्बन्ध में सावधानियाँ-चालू अनुपात के सम्बन्ध में अग्रलिखित सावधानियाँ रखना अत्यन्त आवश्यक है

स्थायी सम्पत्तियों की बिक्री की राशि (Cash Received on Sale of Fixed Assets)-वर्ष की समाप्ति के कुछ ही दिन पूर्व यदि स्थायी सम्पत्ति की बिक्री हई हो तो इस राशि को रोकड़ के | साथ चालू सम्पत्तियों में शामिल नहीं करना चाहिए। यदि इसे रोकड़ में शामिल कर दिया जाता। केनो चिट्टे में दिखावटी प्रदर्शन (Window-dressing) उत्पन्न हो जाता है।

(ii) देनदारों में ऐसी राशियों शामिल नहीं होनी चाहिए जिनकी वसूली लम्बी अवधि के बाद होगी।

चालू अनुपात को ‘कार्यशील पूँजी अनुपात’ (Working Capital Ratio) भी कहा जाता है। क्योंकि चालू सम्पत्तियों का चालू दायित्वों पर आधिक्य कार्यशील पूँजी माना जाता है।

(iii) वर्ष की समाप्ति के कुछ ही समय पूर्व किये गये सौदों की विस्तृत जाँच करनी चाहिए क्योंकि

कभी-कभी अनुपात का सही माप प्रदर्शित करने के लिए चालाकियाँ की जाती हैं।

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Illustration 1.

निम्नलिखित सूचनाओं से चालू अनुपात की गणना कीजिए

From the following information, compute the Current Ratio :

विविध देनदार (Sundry Debtors)      2,00,000      मशीनरी (Machinery)

14,000

पूर्वदत्त व्यय (Prepaid Expenses)     20,000        देय विपत्र (Bills Payable)             40,000

रोकड़ हाथ में तथा बैंक में                      60,000        विविध लेनदार (Sundry Creditors) 80,000

(Cash in Hand and at Bank)                    ऋणपत्र (Debentures)                              4,00,000

अल्पकालीन विनियोग                        40,000        स्कन्ध (Inventories)                      80,000

(Short-term Investments)                        देय व्यय (Expenses Payable)                80,000

(ii) निम्नलिखित सूचनाओं के आधार पर चालू अनुपात की गणना कीजिए–

Calculate the Current Ratio from the following information :

कुल सम्पत्तियाँ (Total Assets) Rs.5,00,000; स्थायी सम्पत्तियाँ (Fixed Assets) Rs.2,60,000; अंशधारी कोष (Shareholders’ Fund) Rs. 3,00,000; दीर्घकालीन दायित्व (Long-term Liabilities) Rs. 1,25,000; विनियोग (Investments) Rs. 1,50,000

2 तरल अनुपात (Liquid Ratio) यह अनुपात तरल सम्पत्तियों एवं चालू दायित्वों के सम्बन्ध को दर्शाता है। तरल अनुपात को ‘अम्ल परख अनुपात’ (Acid Test Ratio), अग्नि परीक्षा अनुपात’, ‘त्वरित या शीघ्र अनुपात (Quick Ratio) भी कहा जाता है। इस अनुपात को व्यवसाय के चालू दायित्वों को तरन्त। भुगतान करने की क्षमता के मूल्यांकन हेत ज्ञात किया जाता है। तरल अनुपात की गणना निम्नलिखित सूत्र से की जाती है

Liquid Assets or Quick Assets Liquid Ratio =

Current Liabilities Quick Assets = Current Assets – (Stock + Prepaid Expenses)

तरल सम्पत्तियों (Liquid Assets) में स्टॉक को शामिल नहीं किया जाता है, क्योंकि यह रोकड में शीघ्र परिवर्तित नहीं होता है। इसी प्रकार पूर्वदत्त व्ययों (Prepaid Expenses) को भी तरल सम्पत्तियों में शामिल नहीं किया जाता है. क्योंकि सामान्यतया इन्हें रोकड़ में परिवर्तित नहीं किया जा सकता है। कुछ लेखक तरल अनुपात ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग करते हैं

Liquid Assets Liquid Ratio = Liquid Liabilities Liquid Liabilities = Current Liabilities – Bank Overdraft

आदर्श स्तर-यह अनुपात 1:1 का आदर्श अनुपात माना जाता है, अतः तरलता अनुपात 1: 1 से अधिक होने पर संस्था की चालू वित्तीय स्थिति अच्छी मानी जाएगी।

तरल अनुपात की गणना को निम्नलिखित उदाहरणों की सहायता से भली प्रकार समझा जा सकता है
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Illustration 2.

(i) निम्नलिखित सूचनाओं के आधार पर तरल अनुपात की गणना कीजिए

Calculate Liquid Ratio from the following information: Current Liabilities Rs. 2,00,000, Current Assets Rs. 3,20,000, Inventories Rs. 1,00,000, Prepaid Expenses Rs. 20,000, Debtors Rs. 1,20,000.

(ii) दिया हुआ है-चालू सम्पत्तियाँ 1.00.000 रुपए, स्कन्ध 15,000 रुपए, पूर्वदत्त व्यय 5,000 रुपए एवं कार्यशील पूंजी 52,000 रुपए। अम्ल परख अनुपात ज्ञात कीजिए। Given : Current Assets Rs. 1,00,000, Inventories Rs. 15,000, Prepaid Expenses Rs. 5,000 and Working Capital Rs. 52,000. Calculate the Acid Test Ratio.

(iii) दिया हुआ है—कुल ऋण 19,50,000 रुपए, दीर्घकालीन ऋण 15,00,000 रुपए, स्कन्ध 3,75,000 रुपए, पूर्वदत्त व्यय 75,000 रुपए, कार्यशील पूंजी 9,00,000 रुपए । त्वरित अनुपात ज्ञात कीजिए।

Given : Total Debts Rs. 19,50,000, Long-term Debts Rs. 15,00,000, Inventories Rs. 3,75,000, Prepaid Expenses Rs. 75,000 and Working Capital Rs. 9,00,000. Find out the Quick Ratio.

(iv) त्वरित अनुपात 1.5; चालू सम्पत्तियाँ 1,00,000 रुपए; चालू दायित्व 40,000 रुपए। स्कन्ध का मूल्य परिकलित कीजिए।

Quick Ratio 1.5; Current Assets Rs. 1,00,000; Current Liabilities Rs. 40,000.

Calculate Value of Inventories ( stock )

चालू अनुपात एवं तरल अनुपात दोनों पर आधारित क्रियात्मक उदाहरण

(NUMERICAL ILLUSTRATION BASED ON CURRENT RATIO AND LIQUID RATIO)

Illustration 3.

(i) एक कम्पनी के चालू दायित्व 4,00,000 रुपए हैं। इसका चालू अनुपात 3:1 एवं तरल अनुपात

1:1 है। स्कन्ध का मूल्य ज्ञात कीजिए। Current Liabilities of a company are Rs. 4,00,000. Its Current Ratio is 3:1 and Liquid Ratio is 1 : 1. Calculate Value of Inventories.

(ii) एक्स लिमिटेड़ का चालू अनुपात 4.5:1 तथा अम्ल परख अनुपात 3:1 है। यदि इसका स्टॉक

12,000 रुपए हो तो चालू दायित्व ज्ञात कीजिए। X Ltd. has a current ratio of 4.5 : 1 and acid test ratio of 3 : 1. If its inventory is Rs. 12,000, find out its current liabilities.

(iii) एक फर्म का चालू अनुपात 4:1 तथा त्वरित अनुपात 2.5:1 है। 22,500 रुपए का स्टॉक मानते

हुए इसकी कुल चालू सम्पत्ति तथा कुल चालू दायित्व ज्ञात कीजिए।

A firm has current ratio of 4 : 1 and quick ratio of 2.5 : 1. Assuming inventories are Rs. 22,500, find out total current assets and total current liabilities.

(iv) स्कन्ध का मूल्य 3,00,000 रुपए तथा तरल सम्पत्तियाँ 12,00,000 रुपए हैं। इसका तरल अनुपात

2:1 है तो चालू अनुपात ज्ञात कीजिए। The stock is Rs. 3,00,000 and total liquid assets are Rs. 12,00,000. Liquid ratio is 2 : 1. Work out the current ratio..

(v) एक कम्पनी की चालू सम्पत्तियाँ 17,00,000 रुपए की हैं। इसका चाल अनपात 2.50 है तथा

तरलता अनुपात 0.95 है । इसकी चालू देयताओं, तरल सम्पत्तियों तथा स्टॉक की गणना कीजिए। The Current Assets of a company are Rs. 17,00,000. Its Current Ratio is 2.50 and Liquid Ratio is 0.95. Calculate its Current Liabilities, Liquid Assets and Inventory.

(vi) निम्नलिखित समंकों से चालू अनुपात ज्ञात कीजिए तरल सम्पत्तियाँ 37,500 रुपए; रहतिया 10,000 रुपए; पूर्वदत्त व्यय 2,500 रुपए; कार्यशील पूँजी 30,000 रुपए।

From the following data, calculate Current Ratio: Liquid Assets Rs. 37,500; Inventories Rs. 10,000; Prepaid Expenses Rs. 2,500; Working Capital Rs. 30,000.

(ब) पूँजी संरचना अनुपात या दीर्घकालीन शोधन क्षमता विश्लेषण

(CAPITAL STRUCTURE RATIOS OR LONG-TERM SOLVENCY ANALYSIS)

पूँजी संरचना से आशय किसी व्यावसायिक संस्था (विशेषकर कम्पनी) की पूंजी के विभिन्न स्वरूपों से है जो ऋणों, पूर्वाधिकार अंशों तथा समता अंश व संचय एवं आधिक्य (शुद्ध कीमत, Net Worth) द्वारा प्रदर्शित होती है । पूँजी संरचना का विश्लेषण दीर्घकालीन ऋणदाताओं की दृष्टि से अधिक महत्त्वपूर्ण होता है क्योंकि इसके माध्यम से उन्हें यह जानकारी मिल जाती है कि उनके द्वारा लगाई गई पूँजी की तुलना में स्वामियों द्वारा लगाई गई पूँजी कितनी है। दूसरी ओर इसके द्वारा स्वामियों को समता पर व्यापार (Trading on Equity) से होने वाले लाभों की जानकारी मिलती है । वस्तुत: अंशधारी उन्हें लाभांश के रूप में मिलने वाली राशि तथा पूँजी की सुरक्षा और ऋणपत्रधारी ऋणों पर मिलने वाले ब्याज एवं ऋण की वापसी के बारे में आश्वस्त होना चाहते हैं। अत: पूँजी संरचना अनुपातों की गणना कम्पनी की दीर्घकालीन आर्थिक स्थिति को परखने के लिए की जाती है। इस प्रकार के अनुपातों के अन्तर्गत मुख्यत: निम्नलिखित अनुपात ज्ञात किये जाते हैं

1 ऋण-समता अनुपात (Debt-Equity Ratio or Debt to Equity Ratio)ऋण-समता अनुपात की गणना संस्था की दीर्घकालीन वित्तीय नीतियों की सुदृढ़ता को ज्ञात करने के लिए की जाती है । ऋण (Debt) का आशय दीर्घकालीन ऋणों से होता है जैसे ऋणपत्र (Debentures), वित्तीय संस्थाओं से ऋण (Loan from Financial Institutions), सार्वजनिक जमा (Public Deposit) तथा अन्य दीर्घकालीन दायित्व आदि को शामिल किया जाता है।

समता (Equity) का आशय अंशधारियों (Shareholders’ Funds) के कोष से होता है ।

_ऋण-समता अनुपात अंशधारियों के कोष एवं दीर्घकालीन ऋण के बीच सम्बन्ध प्रकट करता है। इस अनुपात की गणना निम्न प्रकार की जाती है

Debt (Long-term Debts) Debt-Equity Ratio = Equity (Shareholders Shareholders’ Funds = Equity Share Capital + Preference Share Capital + Reserves and Surplus + Money Received against Share Warrants + Share Application Money Pending Allotment + Deferred Tax Liabilities (Net)* – Deferred Tax Assets (Net)* – Fictitious Assets ऐसे व्यय/हानियाँ जो अभी तक अपलिखित नहीं किये गए जैसे Discount on Issue of Shares/Debentures, Share Issue Expenses,

Underwriting commission. *Either Deferred Tax Liabilities (Net) or Deferred Tax Assets (Net) will appear.

नोट

(i) संशोधित अनुसूची VI (Revised Schedule VI) के अन्तर्गत अंश अधिपत्र के बदले प्राप्त नकद

(Money received against Share Warrants) को अंशधारियों के कोष में शामिल किया गया है। अंश अधिपत्र भी भविष्य में अंशों में परिवर्तित (Converted) हो जाएँगे।

(ii) अंश आवेदन राशि, जब तक आबंटन न हो (Share Application Money Pending Allotment), का वह भाग

जो कम्पनी के आवेदकों को वापिस करना है, उसे अन्य चालू-दायित्व (Other Current Liabilities) के अन्तर्गत दिखाया जाएगा।

(iii) कुछ व्यक्ति शोध्य पूर्वाधिकार अशों को अंशधारियों के कोष में शामिल नहीं करते हैं वरन् बाह्य कोषों (External Funds) में शामिल करते हैं क्योंकि ऐसे अंशों की राशि एक निश्चित अवधि के पश्चात् वापिस कर दी जाती है।

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वैकल्पिक सूत्र (Alternative Formula)-कुछ विद्वानों के अनुसार यह अनुपात संस्था के बाह्य तथा आन्तरिक कोषों के आपसी सम्बन्ध को व्यक्त करता है । बाह्य कोषों (External/Outsiders’ Funds) में दीर्घकालीन दायित्वों के साथ चालू दायित्वों को भी शामिल किया जाता है, जबकि आन्तरिक कोषों से अभिप्राय अंशधारियों के कोषों से ही है। ऐसी दशा में ऋण-समता अनुपात ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है

External/Outsiders Funds Debt-Equity Ratio =

Equity (Sharcholders’ Funds)

नोट-व्यवहार में वैकल्पिक सूत्र की तुलना में दीर्घकालीन दायित्वों के आधार पर ही ऋण-समता अनुपात की गणना को प्राथमिकता दी जाती है। आदर्श स्तर–ऋण-समता अनुपात का आदर्श स्तर 2:1 माना जाता है।

उद्देश्य एवं महत्त्व (Objectives and Significance)-ऋण-समता अनुपात संस्था की दीर्घकालीन वित्तीय स्थिति के विश्लेषण में उतना ही महत्त्व रखता है जितना महत्त्व चालू अनुपात अल्पकालीन स्थिति में रखता है। यह अनुपात इस बात का सचक है कि संस्था की कल सम्पत्तियों में अंशधारियों के कोषों का कितना भाग है तथा कितना भाग दीर्घकालीन ऋण का है। यह अनुपात जितना कम होगा, लेनदारों की स्थिति उतनी ही अधिक सुरक्षित होगी। यह अनुपात जितना अधिक होगा लेनदारों की जोखिम भी उतनी ही अधिक होगी। संस्था की दृष्टि से भी ऊँचा ऋण-समता अनुपात ठीक नहीं होगा क्योंकि इससे लेनदारों के प्रबन्ध में अधिक हस्तक्षेप होगा। साथ ही, ब्याज के अधिक भार के फलस्वरूप संस्था के लाभों में कमी होगी जिससे ऋण भुगतान करने की क्षमता भी घट जाएगी

Illustration 4.

(i) निम्नलिखित समंकों से ऋण-समता अनुपात की गणना कीजिए

Calculate the Debt-Equity Ratio from the following data :

Total Assets Rs. 2,00,000; Total Debts Rs. 1,20,000; Current Liabilities Rs. 40,000.

(Kanpur, 2011)

(ii) अंश पूँजी (Share Capital) :

10 रुपए वाले 15,000 समता अंश                                         1,50,000

(15,000 Equity Shares of Rs. 10 each)

सामान्य संचय (General Reserve)                                       70,000

लाभ-हानि विवरण का शेष (Balance in Statement of P. & L.)    50,000

ऋण-पत्र (Debentures)                                                                    1,20,000

विविध व्यापारिक लेनदार (Trade Payables)                                 50,000

अदत्त व्यय (Outstanding Expenses)                                         15,000

(ii) समता अंश पूँजी (Equity Share Capital)                             10,00,000

संचय एवं आधिक्य (Reserves & Surplus)                                 9,00,000

12% ऋणपत्र (12% Debentures)                                              10,00,000

चालू दायित्व (Current Liabilities)                                           2,50,000

प्रारम्भिक व्यय (Preliminary Expenses)                               1,50,000

2. स्वामित्व अनुपात (Properietary Ratio) यह अनुपात स्वामियों के कोषों तथा संस्था की कुल सम्पत्तियों या कुल समताओं (Total Equities) के मध्य पाये जाने वाले सम्बन्ध को व्यक्त करता है अर्थात् इस अनुपात से यह जानकारी मिल जाती है कि व्यवसाय की कुल सम्पत्तियों में स्वामियों के कोष किस सीमा तक लगे हुए हैं।

स्वामियों के कोषों से आशय अंशधारियों के कोषों से है जबकि कल सम्पत्तियों में सम्पर्ण चाल एवं स्थायी सम्पत्तियों को शामिल किया जाता है। अमूर्त सम्पत्तियों (Intangible Assets) को कुल सम्पत्तियों में शामिल किया जाए या न किया जाए यह इस बात पर निर्भर करेगा कि ऐसी सम्पत्तियों से कोई रकम वसूल की जा सकती है अथवा नहीं। यदि कोई रकम वसल की जा सकती है तो इन्हें कुल सम्पत्तियों में शामिल कर लिया जायेगा। कृत्रिम सम्पत्तियाँ जैसे-लाभ-हानि खाते का डेबिट शेष,प्रारम्भिक व्यय, आदि शामिल नहीं । किये जायेगे। स्थगित कर दायित्व (शद्ध) /स्थगित कर सम्पत्ति (शद्ध) का विशेष रूप से ध्यान रखें। ाट इस अनुपात को ज्ञात करने का सूत्र निम्नवत् है- ।

Shareholders’ Fund (Proprietors’ Fund) Proprietary Ratio = — (Total Real Assets)

इस अनपात को प्रतिशत में व्यक्त करने हेतु 100 से गुणा कर दिया जाता है। इस अनुपात को शुद्ध कीमत का कुल सम्पत्तियों से अनुपात (Net Worth to Total Real Assets Ratio) भी कहा जाता है। इसे समता अनुपात (Equity Ratio) भी कहते हैं।

यह अनपात जितना अधिक होता है उतनी ही व्यापार की दीर्घकालीन वित्तीय स्थिति सुदृढ मानी जाती। है जो ऋणदाताओं को सुरक्षा प्रदान करती है। परिणामस्वरूप संस्था को अतिरिक्त ऋण प्राप्त करने में आसानी रहती है।

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Illustration 5. निम्नलिखित सूचनाओं से स्वामित्व अनुपात की गणना कीजिए

Calculate Proprietary Ratio from the following information :

Shareholders’ Funds                              Non-Current Assets

Equity Share Capital                   5,00,000     Fixed Assets (Tangible)             6,25,000

Preference Share Capital          2,50,000        Current Assets

Reserves and Surplus                 1,25,000     Short-term Investments            3,75,000

Non-Current Liabilities                     Cash and Cash Equivalents    2,50,000

Debentures                                   3,00,000

Current Liabilities

Trade Payables                           075,000

                                       12,50,000                                               12,50,000

Solution.

Shareholders’ Funds 8,75,000 Proprietary Ratio = ”

Total Assets

12,50,000 = 0.7:1or 70% Workings: Shareholders’ Fund = Equity Share Capital + Preference Share Capital

+ Reserve and Surplus

= 5,00,000 + 2,50,000 + 1,25,000 = Rs. 8,75,000

3. शोधन क्षमता अनुपात (Solvency Ratio or Debt to Total Assets Ratio)-इस अनुपात से इस बात का ज्ञान होता है कि कम्पनी की कुल सम्पत्तियों से वसूल होने वाली राशि से कम्पनी के बाह्य दायित्वों का भुगतान हो सकेगा या नहीं अर्थात् इस अनुपात के द्वारा कुल सम्पत्तियों एवं कुल बाह्य दायिस्मों के मध्य विद्यमान सम्बन्ध की जानकारी होती है। यदि ऐसा सम्भव होता है तो कम्पनी को शोधक्षम्य माना जाता है । इसे ज्ञात करने हेतु निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता हैं ।

कुल सम्पत्तियों की तुलना में कुल बाह्य दायित्वों की राशि जितनी कम होगी फर्म की दीर्घकालीन शोधन क्षमता उतनी ही सुदृढ़ मानी जाएगी।

नोट-स्वामित्व अनुपात एवं शोधनक्षमता अनपात का योग प्रतिशत के रूप में 100 होता है। इसका अर्थ यह है कि यदि में से स्वामित्व अनुपात घटा दिया जाए तो शोधन क्षमता अनुपात ज्ञात हो जाएगा।4.

4. स्थायी सम्पत्ति अनुपात (Fixed Assets Ratio)- सुदृढ़ वित्तीय नीति के अनुसार स्थायी सम्पत्तियों का क्रय दीर्घकालीन कोषों (Long-term Funds) से ही किया जाना चाहिए। यह जानने के लिए कि इस नीति का पालन हुआ है या नहीं, स्थायी सम्पत्ति अनुपात को ज्ञात करते हैं। यह अनुपात स्थायी सम्पत्तियों में । दीर्घकालीन कोषों का भाग देकर ज्ञात किया जाता है

Fixed Assets Ratio =      Net Fixed Assets

(Shareholders’ Funds + Long-term Liabilities)

स्थायी सम्पत्तियों में ह्रास, आदि के आयोजन को घटाकर शुद्ध स्थायी सम्पत्तियाँ ज्ञात की जाती हैं तथा इनमें दीर्घकालीन विनियोगों की राशि को भी शामिल किया जाता है।

कुछ विद्वान यह अनुपात ज्ञात करने के लिए केवल अंशधारियों के कोषों से ही भाग करते हैं। सूत्रानुसार

Fixed Assets Net Worth Ratio = — Fixed Assets (after depreciation)

Proprietors’ Funds

यह अनुपात 1: 1 से अधिक नहीं होना चाहिए। यह अनपात 0.67 के आस-पास होना चाहिए इससे अधिक नहीं।

5.पूँजी दन्तिकरण अनुपात (Capital Gearing Ratio)- यह अनुपात किसी व्यावसायिक संस्था की समता अंश पूँजी तथा संचय एवं आधिक्य का उसी कम्पनी की पूर्वाधिकार अंश पूँजी एवं ऋणपत्र तथा अन्य दीर्घकालीन ऋणों के मध्य परिकलित किया जाता है। इसे पूँजी मिलान अनुपात भी कहा जाता है। इस अनुपात की गणना हेतु निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है

(Equity Capital + Reserve & Surplus) Capital Gearing Ratio = 7

(Preference Capital + Debentures) + Interest Bearing Finance

जब पूँजी दन्तिकरण अनुपात 1 से कम हो तो पूँजी का उच्च दन्तिकरण (High gearing) और 1 से अधिक हो तो निम्न दन्तिकरण (Low gearing) माना जाता है।

उच्च दन्तिकरण की दशा में स्थिर लागत वाली पूँजी की तुलना में समता अंश पूँजी की रकम कम होती है.परिणामस्वरूप ऐसी दशा में व्यवसाय पर स्थिर वित्तीय व्ययों का भार अधिक होता है परन्तु समता अंशधारियों को समता पर व्यापार (Trading on Equity) का लाभ प्राप्त होता है। __

निम्न दन्तिकरण की दशा में स्थिर लागत वाली पूँजी की तुलना में समता अंश पूँजी की रकम अधिक होती है जिसके कारण व्यवसाय के लाभों पर स्थिर वित्तीय व्ययों का भार उतना ही कम होता है।

सामान्यतः उच्च दन्तिकरण की स्थिति अच्छी नहीं मानी जाती है। यह उसी समय अच्छी मानी जाती है जबकि बाहरी पक्षकारों को दिये जाने वाले ब्याज की दर कम्पनी द्वारा अर्जित लाभ की दर से कम हो। ऐसी दशा में अंशधारियों को समता पर व्यापार का लाभ प्राप्त होगा। वस्तुतः अधिक उच्च पूँजी दन्तिकरण एवं अधिक निम्न पूँजी दन्तिकरण दोनों ही स्थितियाँ किसी भी संस्था के लिए ठीक नहीं होती इसलिए जहाँ तक हो सके उचित दन्तिकरण ही होना चाहिए।

6.ऋण-सेवा अनुपात अथवा ब्याज व्याप्ति अनुपात (Debt-Service Ratio Or Interest Coverage Ratio)- यह अनुपात संस्था की ब्याज शोधन क्षमता को दर्शाता है। इस अनपात के द्वारा यह पता चलता है कि किसी संस्था की वार्षिक आय, देय ब्याज की कितनी गुनी है। इसीलिए इसकी गणना हेत् शद्ध आय में ऋण-सेवा व्यय (Interest) का भाग किया जाता है। जहाँ तक शुद्ध आय का प्रश्न है. शुद्ध आय में ब्याज तथा कर से पूर्व का लाभ (E.B.I.T.) ही लेते हैं क्योंकि ब्याज चुकाने के बाद बची शेष आय पर ही आय कर का भुगतान करना होता है। सूत्र रूप में

Debt-Service Ratio or Interest Coverage Ratio

Net Income before Interest & Tax

Interest Payable

सामान्यतः ब्याज तथा कर के पूर्व का लाभ देय ब्याज का 6-7 गुना आदर्श अनुपात माना जाता है । यह अनपात जितना अधिक होगा ऋण सेवा व्यय का सापेक्षिक भार उतना ही कम होगा और ऋणदाताओं को उतनी ही अधिक सुरक्षा प्राप्त होगी। यद्यपि इस अनुपात का अधिक होना ऋणदाताओं की दृष्टि से लाभप्रद होता है परन्त ऊँचा अनुपात इस तथ्य का सूचक भी होगा कि संस्था में ऋण ग्राह्य शक्ति का कम प्रयोग हुआ है और ‘समता पर व्यापार’ नीति का लाभ नहीं उठाया गया है। ऐसी स्थिति अंशधारियों की दृष्टि से लाभप्रद । नहीं होती क्योंकि कुल विनियोजित पूँजी पर लाभ की दर कम हो जाती है।

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(स) आवर्त या क्रियाशीलता अनुपात

(TURNOVER OR ACTIVITY RATIOS)

प्रत्येक व्यावसायिक संस्था में ऋणदाताओं एवं स्वामियों द्वारा प्रदत्त कोषों का विनियोजन विभिन्न प्रकार को सम्पत्तियों में किया जाता है। इन सम्पत्तियों का प्रबन्ध जितना अच्छा होगा, अजित लाभों की रकम उतनी ही अधिक होगी। अत: व्यवसाय में इन साधनों का कुशलतापूर्वक व लाभप्रद ढंग से उपयोग किया गया है या नहीं, यह जानने के लिए ही क्रियाशीलता या आवर्त अनुपातों की गणना की जाती है।

वस्तुतः इस वर्ग में सम्मिलित किये जाने वाले अनुपातों की गणना का प्रमुख उद्देश्य कम्पनी की। कार्य-निष्पत्ति तथा प्रबन्धकों की कार्यकुशलता का मूल्यांकन करना होता है। ये सभी अनुपात विक्रय (Saleel or Turnover) पर आधारित होते हैं। इन अनुपातों द्वारा विक्रय मूल्य अथवा कुल विक्रय की लागत (Cost of goods sold) एवं विभिन्न सम्पत्तियों के बीच सम्बन्ध स्थापित किया जाता है। इन्हें बिक्री अनुपात (Turnover Ratios) इसलिए कहते हैं क्योंकि ये अनुपात उस गति को प्रदर्शित करते हैं जिससे सम्पत्तियाँ बिक्री में परिवर्तित होती हैं। बिक्री या आवर्त अनुपात (Turnover Ratios) को सामान्यत. इतने बार (so many time) के रूप में व्यक्त किया जाता है जो यह इंगित करता है कि विक्रय के स्तर (Volume of sales) की उपलब्धि में किसी सम्पत्ति में विनियोजित कोषों का कितनी बार आवर्त (turnover) हुआ है।

आवर्त अनुपात जितना ऊँचा होगा उतना ही वह अधिक अनुकूलता तथा कार्यकुशलता का प्रतीक होगा। इसके विपरीत निम्न आवर्त अनुपात,प्रतिकूलता एवं घटिया कार्य-निष्पत्ति का परिचायक होगा।

1.स्कन्ध आवर्त अनुपात (Stock or Inventory Turnover Ratio) स्कन्ध आवर्त अनुपात, बेचे गए   माल की लागत तथा स्कन्ध के बीच सम्बन्ध स्थापित करता है। इसकी गणना दी हई अवधि में बेचे गए माल की लागत में उस अवधि के औसत स्कन्ध का भाग देकर की जाती है। वर्तमान में कम्पनियों के लिए लाभ-हानि के विवरण का प्रारूप भी निर्धारित कर दिया गया है, उसमें Sales के स्थान पर Revenue from Operations शब्दावली का प्रयोग किया गया है। इसलिए बेचे गए माल की लागत (Cost of Goods Sold) के स्थान पर Cost of Revenue from Operations लिखा जाएगा। संक्षेप में, स्कन्ध आवर्त अनुपात ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र प्रयोग किया जाता है

नोट-प्रत्यक्ष व्यय (Direct Expenses) से सम्बन्धित सूचना अलग से दी जा सकती है। यदि प्रत्यक्ष व्यय के सम्बन्ध में कोई सूचना न दी हुई हो तो यह माना जाएगा कि संस्था ने प्रत्यक्ष व्यय नहीं किये हैं।

औसत स्कन्ध (Average Inventory-औसत स्कन्ध की गणना वर्ष के प्रारम्भ व अन्त के स्कन्ध की सहायता से। निम्न सूत्र द्वारा की जाती है

औसत स्कन्ध (Average Stock) = Opening Stock + Closing Stock

ध्यान रखने योग्य महत्त्वपूर्ण बिन्दु (Rememberable Points)

(i) यदि प्रश्न में बेचे गए माल की लागत की सूचना नहीं दी हुई है और न उसे ज्ञात किया जा सकता है तो स्कन्ध आवर्त अनुपात की गणना हेतु उपर्युक्त वर्णित सूत्र में बेचे गए माल की लागत के स्थान पर विक्रय की शुद्ध राशि (Net Sales) का प्रयोग करेंगे।

(ii) यदि प्रश्न में औसत स्कन्ध की राशि न दी हुई हो और न उसे ज्ञात किया जा सकता है तो प्रारम्भिक अथवा अन्तिम स्कन्ध (जैसी भी स्थिति हो) का ही प्रयोग किया जा सकता है ।।

उद्देश्य एवं महत्त्व (Objectives and Significance) यह अनुपात दर्शाता है कि वर्ष में कितनी बार स्कन्ध का विक्रय तथा प्रतिस्थापन हुआ है अर्थात् स्कन्ध को कितनी तीव्रता से बेचा गया है। इतना ही नहीं, यह इन्वण्टरा के रूप में लगी हुई पूंजी के सक्षम उपयोग का द्योतक है। इसलिए यह अनुपात जितना अधिक ऊँचा होता है उतना ही अच्छा माना जाता है। ऊँचे स्कन्ध आवर्त अनुपात वाली संस्थाएँ लाभ की निम्न दर। पर भी अधिक लाभ कमा लेती हैं। इसके विपरीत नीचा स्कन्ध आवर्त अनुपात व्यवसाय में मन्दी, स्कन्ध में

अधिक विनियोग तथा स्कन्ध में अप्रचलित सामग्री के होने का सूचक होता हैं । स्पष्टीकरण हेतु निम्नलिखित उदाहरण देखें
Financial Management Ratio Analysis

Illustration 6. निम्नलिखित सूचनाओं से स्कन्ध आवर्त अनुपात की गणना कीजिए

From the following information, calculate Inventory Turnover Ratio :

(i) प्रारम्भिक स्टॉक 1.00.000 रुपए: वर्ष में क्रय 6.37,500 रुपए; वर्ष में विक्रय 7,50,000 रुपए एवं अन्तिम स्कन्ध 1,62,500 रुपए। Opening Stock Rs. 1,00,000%;

Purchases during the year Rs. 6,37,500; Sales during the year Rs. 7,50,000 and Closing Stock Rs. 1,62,500.

(ii) विक्रय 8,00,000 रुपए; सकल लाभ विक्रय पर 25%,प्रारम्भिक स्कन्ध 77,500 रुपए, अन्तिम स्कन्ध 72,500 रुपए।

Sales Rs. 8,00,000; Gross Profit Ratio 25% on sales; Opening Stock Rs. 77,500 and Closing Stock Rs. 72,500.

(iii) विक्रय 2,00,000 रुपए; सकल हानि अनुपात 25%, औसत स्कन्ध 50,000 रुपए।

Sales Rs. 2,00,000; Gross Loss Ratio 25%; Average Stock Rs. 50,000.

(iv) प्रारम्भिक रहतिया 29,000 रुपए; क्रय 2,42,000 रुपए; विक्रय 3,25,000 रुपए; सकल लाभ की दर-विक्रय का 25% I

Opening Stock Rs. 29,000; Purchases Rs. 2,42,000; Sales Rs. 3,25,000; Rate of Gross Profit : 25% on sales.

(v) नकद विक्रय 9,00,000 रुपए; उधार विक्रय 3,75,000 रुपए; विक्रय वापसी 75,000 रुपए; औसत स्कन्ध 90,000 रुपए; सकल लाभ की दर-विक्रय का 25% |

Cash Sales Rs. 9,00,000; Credit Sales Rs. 3,75,000; Sales Return Rs. 75,000: Average Stock Rs. 90,000; Rate of Gross Profit: 25% on sales

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Illustration 7. (i) प्रारम्भिक स्टॉक 29,000 रुपए; अन्तिम स्टॉक 31,000 रुपए; विक्रय 3,00,000 रुपए; सकल लाभ 25% लागत का। स्टॉक आवर्त अनुपात की गणना कीजिए।

Opening Inventory Rs. 29,000; Closing Inventory Rs. 31,000; Sales Rs. 3,00,000; Gross Profit 25% on cost. Calculate Inventory Turnover Ratio.

(ii) स्कन्ध आवर्त अनुपात 3 गुना है; औसत स्कन्ध 1,00,000 रुपए है, लागत पर अर्जित लाभ 10% है। बिके हुए माल की लागत की गणना कीजिए।

Stock Turnover Ratio is 3 times, Average Stock is Rs. 1,00,000; Profit earned is 10% of cost. Calculate cost of goods sold.

(iii) बेचे गए माल की लागत 2,00,000 रुपए है। स्कन्ध आवर्त अनुपात 8 गुना है । प्रारम्भिक रहतिए। का मूल्य अन्तिम रहतिए से 1.5 गुना अधिक है। प्रारम्भिक एवं अन्तिम रहतिए के मूल्यों की गणना कीजिए।

Rs. 2,00,000 is the Cost of Goods Sold, Inventory Turnover Ratio 8 times: Stock in the beginning is 1.5 times more than the Stock at the end. Calculate values of Opening and Closing Stock (Inventory).

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Illustration 8. विभव लिमिटेड के निम्नलिखित लाभ हानि विवरण से स्कन्ध आवर्त अनुपात की गणना कीजिए

From the following statement of Profit and Loss of Vibhav Ltd., Calculate Inventory Turnover Ratio :

STATEMENT OF PROFIT AND LOSS

FOR THE YEAR ENDED 31ST MARCH, 2015

                Particulars                        Note No. 1.

II Revenue from Operations                        20,00,000

  1. Other Income 1,00,000

III. Total Revenue (I + II)                                 21,00,000

III. Expenses :  

Purchases of Stock-in-Trade                       10,00,000

Changes in Inventories of Stock-in-Trade  50,000

Employees Benefit Expenses                             2,40,000

Depreciation and Amortisation                       10,000

Other Expenses                                    40,000

Total Expenses                                     13,40,000

  1. Profit before Tax (III – IV) 7,60,000

Note to Accounts

Particulars 1.                             र

Changes in Inventories of Stock-in-Trade

Opening Inventory                             2,00,000

Less : Closing Inventory                       1,50,000

                                                  50.000

Illustration 9. (i) दिया हुआ है-परिचालन से आगम 2,00,000 रुपए; सकल लाभ-लागत पर 25%; प्रारम्भिक स्कन्ध, अन्तिम स्कन्ध के मूल्य का 1/3 था; अन्तिम स्कन्ध, परिचालन से आगम का 30% था। स्कन्ध आवर्त अनुपात ज्ञात कीजिए।

Given : Revenue from Operations : Rs. 2,00,000; GP: 25% on cost; Opening Inventory was 1/3rd of the value of Closing Inventory. Closing Inventory was 30% of Revenue from Operations. Find out the Inventory Turnover Ratio.

(ii) दिया हुआ है-परिचालन से आगम की लागत 3,00,000 रुपए; स्कन्ध आवर्त अनुपात-6 times | यदि प्रारम्भिक स्कन्ध, अन्तिम स्कन्ध से 10,000 रुपए कम है तो प्रारम्भिक स्कन्ध का मूल्य ज्ञात कीजिए।

Given :  Cost of Revenue from Operations Rs. 3,00,000; Inventory Turnover Ratio: 6 times. Find out the value of Opening Inventory, if opening inventory is Rs. 10,000 less than the closing inventory.

(iii) दिया हुआ है-औसत स्कन्ध 80,000 रुपए; स्कन्ध आवर्त अनुपात-6 times; विक्रय मूल्य-लागत से 25% अधिक । सकल लाभ की रकम एवं परिचालन से आगम की राशि ज्ञात कीजिए।

Given : Average Inventory Rs. 80,000; Inventory Turnover Ratio : 6 times; Selling Price : 25% above cost. Determine the amount of gross profit and revenue from operations.

Solutions 

(i) Gross Profit is 25% pm cost Therefore goods costing Rs 100 is gold for Rs . 125

Henece , if Revenue  From  Operations (Sales) Rs 125

Cost of Revenue form Operations Cost of Goods sold = Rs 100

If Revenue form Operations  are Rs

2 देनदार या प्राप्य आवर्त अनुपात (Debtors or Receivables Turnover Ratio)- सामान्यतः सभी व्यावसायिक संस्थाएँ उधार माल बेचती हैं परन्तु प्रत्येक संस्था यह चाहती है कि देनदारों व प्राप्य विपत्रों से राशि समय पर वसूल हो जाये । कोई संस्था उधार की वसूली करने में कितनी सफल हुई है, इसकी जाँच हेत ही देनदार आवर्त अनुपात की गणना की जाती है। यह अनुपात वर्ष की शुद्ध उधार बिक्री और औसत प्राप्यों के बीच सम्बन्ध स्थापित करता है। प्राप्यों के अन्तर्गत देनदार व प्राप्य बिलों को शामिल किया जाता है। इस अनुपात को ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है

नोट यदि वर्ष के प्रारम्भ व अन्त के देनदारों (प्राप्यो) तथा उधार बिक्री सम्बन्धी सूचना उपलब्ध नहीं हो तो कुल बिक्रा व वर्ष के अन्त में प्राप्यों की रकम के आधार पर ही निम्नलिखित स्त्र द्वारा इस अनुपात की गणना की जाती है

Debtors or Receivables Turnover Ratio =  Total Sales

Account Receivables

देनदार आवर्त अनुपात की गणना करते समय भुनाये गये विपत्र (जो दायित्व उत्पन्न करते है) की परी । राशि सम्मिलित की जाती है तथा अप्राप्य एवं संदिग्ध ऋणों (Bad and Doubtful Debts) की राशि को घटाया नहीं जाता है।

उपर्युक्त सूत्रों की सहायता से देनदार आवर्त अनुपात की जानकारी विक्रय-फेर के रूप में होती है अर्थात उपर्युक्त सूत्र यह जानकारी प्रदान करता है कि उधार विक्रय, कुल देनदारों का कितने गुना है। कुछ व्यक्ति इस अनुपात को विक्रय-फेर के स्थान पर प्रतिशत के रूप में ज्ञात करते हैं। प्रतिशत के रूप में ज्ञात किये जाने पर यह अनुपात यह जानकारी प्रदान करता है कि कुल देनदार, उधार विक्रय के कितने प्रतिशत हैं। सूत्रानुसार :

Debtors Turnover Ratio (Percentage of Receivables to Net Sales)

Average Trade Receivables

Total Sales Or Net Credit Sales

उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण-यदि वर्ष 2014 के अन्त में किसी संस्थान का उधार विक्रय 5,00,000 रुपये एवं औसत व्यापारिक प्राप्यों की रकम 1,00,000 रुपये है तो विक्रय फेर के रूप में देनदार आवर्त अनुपात RUN = 5 होगा अर्थात् औसत व्यापारिक प्राप्यों की तुलना में उधार विक्रय पाँच गुना है। इसके 1,00,000 विपरीत,प्रतिशत के रूप में देनदार आवर्त अनुपात = 1,00,000 = 20% होगा अर्थात् व्यापारिक प्राप्य,उधार 5.00,000 विक्रय के 20% हैं। दोनों तरह से बात एक ही है केवल उक्त अनुपात को व्यक्त करने का ढंग अलग-अलग है। नोट-स्पष्ट सूचना के अभाव में विक्रय-फेर अथवा प्रतिशत किसी भी रूप में देनदार आवर्त अनुपात ज्ञात कर सकते हैं। इसको दोनों ही तरह से सही मानेंगे। ऊँचा प्राप्य या देनदार आवर्त अनपात देनदारों से वसली की कशलता का परिचायक है। इसके विपरीत नीचा देनदार आवर्त अनुपात इस बात का सूचक है कि उधार बिक्री की वसूली व्यवस्था कुशल नहीं है।

औसत संग्रह अवधि (Average Collection Period)-देनदारों की वसूली का विश्लेषण करने हेतु देनदार आवर्त अनुपात के साथ-साथ ‘औसत संग्रह अवधि’ की भी गणना की जाती है। औसत संग्रह अवधि देनदारों की वसूली में लगने वाले समय को प्रकट करती है अर्थात् इसका उद्देश्य यह मालूम करना है कि व्यवसाय में ग्राहक कितने समय के पश्चात् भुगतान करते हैं। इसकी गणना देनदारों की राशि में एक दिन की बिक्री का भाग देकर की जाती है। सूत्र रूप में

Financial Management Ratio Analysis

औसत संग्रह अवधि को देनदारों की गतिशीलता (Debtors Velocity) भी कहते हैं। सामान्यतः औसत संग्रह अवधि किसी भी दशा में बिक्री की शर्तों में निर्धारित शुद्ध वसूली अवधि + उसके 1/3 से अधिक नहीं होनी चाहिए। यदि वास्तविक औसत संग्रह अवधि निर्धारित वसूली अवधि के 1, गुने से अधिक है तो सामान्यत: यह माना जायेगा कि कम्पनी में उधार वसूली के सम्बन्ध में लापरवाही बरती जाती है। Trade Receivables की रकम ज्ञात करते समय Provision for doubtful debts की। रकम को नहीं घटाया जाता है।

स्पष्टीकरण हेतु निम्नलिखित उदाहरण देखें

Illustration 10 अग्रलिखित सूचनाओं क देनदार आवर्त अनुपात की गणना कीजिए ।

Calculate Debtors Turnover Ratio from the Following formation :

 

Illustration  11

निम्नलिखित सूचनाओं से देनदार आवर्त अनुपात की गणना कीजिए

From the following information, calculate Debtors Turnover Ratio :

बेचे गए माल की लागत 7.50,000 रुपए: सकल लाभ लागत पर 25%; नकद बिक्री कुल बिक्री की 20%; प्रारम्भिक देनदार 1.25,000 रुपए; अन्तिम देनदार 2,50,000 रुपए। Cost of Goods Sold Rs. 7.50,000: Gross Profit on Cost: 25%; Cash Sales 20% of total sales: Opening Debtors Rs. 1,25,000; Closing Debtors Rs. 2,50,000

 

Illustration 12.

अनिल प्लास्टिक लिमिटेड के विषय में पिछले पाँच वर्षों के उधार बिक्री एवं देनदारों (प्राप्तियों) के निप्नलिखित आँकडे उपलब्ध हैं

The following data regarding credit sales and reccivable for the past 5 years are available in respect of Anil Plastics Limited

: Particulars                                     2010            2011              2012               2013           2014

Sundry Debtors (at year end) 5,75,000  6,50,000   8,50,000    10,75,000     15,50,000

Bills Receivables (at year end) 1,25,000  1,50,000  3,50,000    4,25,000      4,50,000

Total Credit Sales (for the year)33,00,000 36,00,000   40,00,000  2,00,000 45,00,000

Sales Returns (for the year) 3,00,000  4,00,000      4,00,000         4,50,000     5,00,000

दिए गए आँकड़ों के आधार पर पिछले पाँच वर्षों के लिए अनिल प्लास्टिक्स लिमिटेड की देनदार आवर्त की गणना करके उपयुक्त निष्कर्ष निकालिए। इसी प्रकार की अन्य कम्पनियों में सामान्यतः देनदार आवर्त 4 है।

On the basis of the given data, calculate Receivable Turnover of Anil Plastics for the past five years and draw suitable conclusion. The Receivables Turnover in similar other firms is normally 4 times.

For 2010 only closing Debtor and B/R has been taken because opening  Debtors and B/R are note Given .

निष्कर्ष सन् 2010 एवं सन 2011 में इस कम्पनी की उधार वसल करने की नीति अन्य कम्पनियों की तलना में अच्छी थी क्योंकि इसका अनुपात 4.29 एवं 4.27 गना है जबकि अन्य का केवल 4 गुना है । परन्तु आगामी वर्षों में इसका गिरना चिन्ताजनक है। अत: प्रबन्धकों को उधार बेचना चाहिए तथा देनदारों से राशि वसुल करने की प्रक्रिया तेज करनी चाहिए।

Illustration 13. निम्नलिखित सूचना से प्रत्येक वर्ष के लिये देनदार आवर्त की गणना करो :

From the following information given below find out Debtors Turnover for each year :

                                                                                        2014                                     2015

शुद्ध उधार विक्रय (Net Credit Sales)                                   21,160                               24,384

औसत व्यापारिक प्राप्य (Average Trade Receivables)   4,600                                  5,080

2015 के लिये यदि कम्पनी अपना देनदार आवर्त बढ़ाकर 6 गुना कर देती है तो इसका कार्यशील पूँजी पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

If the company increase its debtors turnover for the year 2015 to 6 times, what would be the impact on working capital?

Net Credit Sales Debtors Turnover = A

Average Trade Receivables

21,160 For 2014 = = 4.6 times

24,384

For 2015 = 5080 = 4.8 times

यदि वर्ष 2015 में देनदार आवर्त अनुपात बढ़कर 6 गुना हो जाता है तो औसत व्यापारिक प्राप्य 24,384/6 = 4,064 रुपये के होंगे अर्थात् औसत व्यापारिक प्राप्य 5,080 – 4,064 = 1,016 रुपये से कम हो जायेंगे। परिणामस्वरूप कम्पनी की कार्यशील पूँजी 1,016 रुपये से घट जायेगी अर्थात् कार्यशील पूँजी की आवश्यकता 1,016 रुपये से कम हो जायेगी।

Illustration 14. जगतारा एण्ड कम्पनी के वर्ष 2014 के वित्तीय रिकॉर्ड से निम्नलिखित आँकडे लिए गये ।

The following data have been taken from the financial records of Jagtara & Company for the year 2014 :

       Details                                                                                                             Amount

Total Sales (for the year)                                                                                5,00,000

Cash Sales (included in the above)                                                            51,00,000

Sales Returns (for the year)                                                                           40,000

Sundry Debtors (year end)                                                                            45,000

Bills Receivable (year end)                                                                           10,000

Provision for Bad Debts (year end)                                                          5.000

उपयुक्त सूचनाओं के आधार पर जगतारा एण्ड कम्पनी की औसत वसूली अवधि की गणना।

कीजिए।

Calculate the Average Collection Period of Jagtara & Company on the basis of the above information

3.लेनदार या देय आवर्त अनुपात (Creditors or Pavable Turnover Ratio)- सामान्यतः सभी संस्थाएँ उधार माल खरीदती हैं। कोई संस्था जिनसे उधार माल खरीदती है, वे उसके ‘लेनदार’ कहलाते हैं तथा उधार क्रय के लिए जो विनिमय-विपत्र स्वीकृत किये जाते हैं उन्हें ‘देय बिल’ (Bills Payable) कहा जाता है। इन लेनदारों व देय बिलों के योग को ‘कल देय’ (Total Payables) कहा जाता है। कुल देय एवं क्रय की मात्रा का विश्लेषण करके यह ज्ञात करना आवश्यक है कि संस्था कितने समय में अपने लेनदारों का भुगतान कर सकती है । इसके लिए ‘लेनदार या देय आवर्त अनुपात’ तथा ‘औसत भुगतान अवधि’ की गणना की जाती है।

लेनदार आवर्त अनुपात, उधार क्रय (Credit Purchases) एवं कुल देय (Total Payables) के बीच सम्बन्ध स्थापित करता है । इसकी गणना के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है

यदि उधार क्रय की राशि उपलब्ध न हो तो क्रय की राशि ही प्रयोग की जा सकती है। इसी प्रकार यदि वर्ष के प्रारम्भ व अन्त के लेनदारों तथा देय बिलों की सूचना उपलब्ध न हो तो वर्ष के अन्त के लेनदारों व देय बिलों की रकम को ही प्रयोग किया जाता है।

देनदार आवर्त अनुपात की भाँति इस अनुपात को निम्नलिखित सूत्र के द्वारा प्रतिशत में भी ज्ञात कर सकते हैं

Creditors Turnover Ratio (Percentages of Payables to Net Credit Purchases)

Average Accounts Payable *100

Net Credit Purchases

औसत भुगतान अवधि (Average Disbursement or Payment Period)- उधार क्रय का भुगतान । कितनी अवधि में किया जाता है यह जानना आवश्यक है, यदि इसका भुगतान समय से नहीं किया जाता तो कम्पनी की साख को धक्का लगता है। इसके लिए औसत भुगतान अवधि (Average Disbursement  Period) की गणना की जाती है । औसत भुगतान अवधि को लेनदारों की गतिशीलता (Creditors Velocity) भी कहते हैं । इसे ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है

Average Payment Period    = Average Payables

No. of Months or Weeks     or Net Credit Purchases D ays in a year

नोट-लेनदार आवर्त अनुपात तथा औसत भुगतान अवधि की गणना करते समय लेनदारों की राशि में से लेनदारों के लिए बट्टा आयोजन की राशि को नहीं घटाया जाता है।

औसत भुगतान अवधि की तुलना प्राप्त उधार अवधि से करके भुगतान की तत्परता या इसमें हो रही देरी का पता लगाया जा सकता है। औसत संग्रह अवधि की तरह औसत भुगतान अवधि के लिए कोई प्रमाप निर्धारित नहीं किया जा सकता है। फिर भी व्यवसाय की विभिन्न वर्षों की औसत भुगतान अवधि का विश्लेषण करके उसकी भुगतान नीति के बारे में जाँच की जा सकती है।

स्पष्टीकरण हेतु निम्नलिखित उदाहरण देखें

Illustration 15. निम्नलिखित सूचनाओं से लेनदार आवर्त अनुपात तथा औसत भुगतान अवधि (माह में)

ज्ञात कीजिए

From the following information, calculate the Creditor’s Turnover Ratio and Average Payment Period (in months) :

कुल क्रय (Total Purchase)                                        8,00,000

नकद क्रय (Cash Purchase)                                      1,50,000

क्रय वापसी (Purchase Returns)                                50,000

लेनदार (Creditors) 1.4.2014                                    50,000

लेनदार (Creditors) 31.3.2015                                 70,000

देय विपत्र (B/P) 1.4.2014                                             45,000

देय विपत्र (B/P)31.3.2015                                          35,000

Illustration 16. (अ) दिया हुआ है-उधार क्रय 5,00,000 रुपए; अन्तिम लेनदार 1,00,000 रुपए; लेनदार आवर्त अनुपात  5 times: प्रारम्भिक लेनदार की रकम ज्ञात कीजिए।

Gien : Credit Purchase Rs. 5,00,000; Closing Creditors Rs. 1,00,000: | Creditors Turnover Ratio  5 times. Calculate the amount of opening creditors.

(ब) बिक्रि पर सकल लाभ 20 % है एवं  सकल लाभ 90,000 रु है । सकन्ध आवर्त सकन्ध अनुपात 6 गुणा है एवं प्रारम्भिक सकन्ध से 12,000 रुपये कम है । प्रारम्भिक लेनदान 60,000 रुपए एवं अन्तिम लनेदार 75,000 रुपए हैं । ज्ञात कीजिए (i)  उधार क्रय (ii) लेनदार आवर्त अनुपात ।

Gross profit on sales is 20% and the amount of gross profit is Rs. 90,000. The stock turnover ratio is 6 times and the opening stock is Rs. 12,000 less in comparison to the closing stock. Opening creditors are Rs. 60,000 and closing creditors are Rs. 75,000. Find out : (i) Credit Purchase, (ü) Creditors Turnover Ratio.

Illustration 17. निम्नलिखित विवरण से प्रत्येक निम्नलिखित वर्षों के लिए देनदार आवर्त ज्ञात करों

From the following particulars, find out creditors’ turnover for each of the following years :

                                 2013                    2014                 2015

शुद्ध क्रय (Net Purchases)                   4,00,000             6,00,000          7,00,000

औसत देय राशियाँ (Payables)             80,000              1,50,000          2,00,000

यदि 2015 के लिये लेनदार आवर्त तीन गुना होगा तो कार्यशील पूँजी पर क्या प्रभाव पड़ेगा ? If the creditors turnover for 2015 would be 3 times, what would be the impact on working capital?

Illustration 18. निम्नलिखित वित्तिय आँकडें क आधार पर फर्म की औसत भुगतान अवधि ज्ञात किजिए ।

On the basis of the following financial data calculate the Average Payment Period of the firm :

  Items                                                                           Amount

Total Annual Purchases                                        5,00,000

Cash Purchases                                                        50,000

Purchase Returns                                                    90,000

Trade Creditors                                                        75,000

Bills Payables                                                            32,500

Reserve for Discount to Creditors                 12,500

4. कुल सम्पत्ति आवर्त अनुपात (Total Assest Turnover Ratio)- यह अनुपात यह बतलाता है। किविक्रय कल सम्पत्तियों की तलना में कितनी बार हआ है अर्थात यह अनुपात किसी संस्था का कुल सम्पत्तिया तथा उनके आधार पर बेची गयी वस्त की लागत में सम्बन्ध स्थापित करता है। इसे निम्नलिखित सूत्र के द्वारा ज्ञात किया जा सकता है

Cost of Goods Sold or Net Sales Total Assets Turnover Ratio =

Total Assets

कुल सम्पत्तियों से आशय स्थायी एवं चाल सभी सम्पत्तियों के योग से हैं परन्तु ह्रास,आदि का समायोजन। कर लिया जाता है। इसके साथ-साथ यह भी ध्यान देने योग्य है कि कृत्रिम सम्पत्तियों को छोड़ देते हैं परन्त । अमूर्त सम्पत्तियों को सम्मिलित कर लिया जाता है।

इस अनुपात के अधिक होने का अर्थ यह है कि संस्था अपनी सम्पत्तियों का प्रभावशाली ढंग से उपयोग कर रही है जबकि इस अनुपात के कम होने का अर्थ यह है कि संस्था के प्रबन्धक संस्था की सम्पत्तियों की। तुलना में उचित मात्रा में विक्रय नहीं कर पा रहे हैं तथा सम्पत्तियों में अति विनियोग हो गया है। 2: 1 का कुल सम्पत्ति आवर्त अनुपात सन्तोषजनक माना जाता है।

5. स्थायी सम्पत्ति आवर्त अनुपात (Fixed Assets Turnover Ratio)-इस अनुपात के द्वारा स्थायी सम्पत्तियों में विनियोग को ध्यान में रखते हुए विक्रय की पर्याप्तता (Adequacy) का पता चलता है। वस्तुतः यह अनपात स्थायी सम्पत्तियों के कुशल एवं लाभदायक प्रयोग का सूचक होता है। यह अनुपात स्थायी सम्पत्तियों (ह्रास घटाकर) का बेचे गये माल की लागत के साथ पाये जाने वाले सम्बन्ध को स्पष्ट करता है। स्थायी सम्पत्ति आवर्त अनुपात की गणना हेतु निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है

Fixed Assets Turnover Ratio = Cost of Goods Sold or Net Saies

Fixed Assets less Depreciation

इस अनुपात में वृद्धि कार्य-निष्पादन में कुशलता का प्रतीक मानी जाती है जबकि इस अनुपात में कमी को स्थायी सम्पत्तियों के प्रयोग में अकुशलता तथा अति-विनियोग का द्योतक माना जाता है। एक निर्माणी उद्योग में स्थायी सम्पत्ति आवर्त अनुपात 5 : 1 सन्तोषजनक माना जाता है।

निर्माणी संस्थाओं में स्थायी सम्पत्ति आवर्त अनुपात का अधिक महत्त्व है क्योंकि ऐसी संस्थाओं में स्थायी सम्पत्तियों में विनियोग का उत्पादन तथा विक्रय पर अत्याधिक प्रभाव पड़ता है। __

6. चालू सम्पत्ति आवर्त अनुपात (Current Assets Turnover Ratio)-इस अनुपात के द्वारा चालू सम्पत्तियों के प्रयोग की कुशलता या अकुशलता तथा इनमें अति विनियोजन या अल्प विनियोजन की स्थिति का पता चलता है। इस अनुपात की गणना हेतु निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है

Current Assets Turnover Ratio = Cost of Goods Sold or Net Sales

Current Assets

यह अनुपात उन संस्थाओं के लिए उपयोगी है जहाँ स्थायी सम्पत्तियों का कम प्रयोग होता है।

7.कार्यशील पूँजी आवर्त अनुपात (Working Capital Turnover Ratio)- इस अनुपात के द्वारा इस बात का ज्ञान होता है कि संस्था ने अपनी कार्यशील पूँजी का उपयोग कुशलता से किया है या नहीं। यह अनुपात बेचे गये माल की लागत में कार्यशील पूँजी का भाग देकर ज्ञात किया जाता है। कार्यशील पूँजी का अभिप्राय, चालू सम्पत्तियों में से चालू दायित्वों को घटाने के बाद बची हुई रकम से है। इस अनुपात को ज्ञात करने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है।

Working Capital Turnover Ratio = ?  Cost of Goods Sold or Net Sales

Working Capital

यदि यह अनुपात अधिक है तो यह माना जाता है कि कार्यशील पूँजी का कुशलतापूर्वक उपयोग किया गया है। इसके विपरीत इस अनुपात के कम होने पर यह माना जाता है कि कार्यशील पूँजी का कुशलतापूर्वक उपयोग नहीं किया गया है। एक विश्लेषक को कार्यशील पूँजी आवर्त के आधार पर निष्कर्ष निकालते समय सतर्कता बरतनी चाहिए क्योंकि यह अनुपात कई अन्य सम्बन्धों का मिश्रण है जिनमें से प्रत्येक का सावधानीपूर्वक विश्लेषण किया जाना चाहिए। इस अनुपात की व्याख्या स्कन्ध आवर्त अनुपात और देनदार आवर्त अनुपात के सन्दर्भ में ही की जानी चाहिए।-

8.पूजी अथवा शुद्ध मूल्य आवर्त अनपात (Capital or Net Worth Turnover Ratio)-इस अनुपात के द्वारा शुद्ध मूल्य या अंशधारियों की विनियोजित पंजी तथा बिक्री के मध्य पाये जाने वाल सम्बन्ध का ज्ञान होता है। शुद्ध मूल्य (Net Worth) से आशय अंश पंजी संचिति तथा आधिक्यों के योग से है।

सूत्र रूप में

के कुशल पूँजी आवर्त अपजी के मध्य स

Net Worth Turnover Ratio – Net Sales or Cost of Sales

Net Worth or Shareholders’ Funds

इस अनुपात का प्रयोग व्यवसाय में अंशधारियों द्वारा विनियोजित राशि की कार्यकुशलता को मापने के लिए किया जाता है। यह अनुपात जितना ऊँचा होता है उतना ही अच्छा होता है क्योंकि यह संस्था के धन के कुशल प्रयोग का सूचक है।

9. कुल पूंजी आवर्त अनुपात (Total Capital Turnover Ratio)- यह अनुपात विक्रय की लागत। एवं अंशधारियों की नियोजित पूँजी के मध्य सम्बन्ध प्रकट करता है। इसकी गणना निम्नलिखित सूत्र द्वारा की जाती है

Total Capital Turnover Ratio = 4 Cost of Sales or Net Sales

Capital Employed

विनियोजित पूँजी से अभिप्राय कुल दीर्घकालीन एवं अल्पकालीन पूँजी से है। इस अनुपात के द्वारा विनियोजित पूँजी की कार्यक्षमता ज्ञात की जा सकती है। इस अनुपात की तुलना इसी प्रकार के गत वर्ष के अनुपात से करके पूँजी की कार्यक्षमता ज्ञात की जा सकती है।

महत्त्वपूर्ण-यदि प्रश्न में बिक्री की लागत (Cost of Sales) न दी हुई हो अथवा बिक्री की लागत ज्ञात करना सम्भव न हो तो जहाँ-जहाँ उपर्युक्त वर्णित अनुपातों में बिक्री की लागत लिखा हुआ है वहाँ पर बिक्री की रकम का प्रयोग किया जा सकता है।

Illustration 19. विभव लि. का 31 दिसम्बर 2015 का चिट्ठा निम्नलिखित है

Following is the Balance Sheet of Vibhav Ltd. as on 31st Dec., 2015 :

(द) लाभदायकता अनुपात

(PROFITABILITY RATIOS)

प्रत्येक व्यावसायिक संस्था का उद्देश्य अधिकतम लाभ कमाना होता है। संस्था के लाभों का मापन निरपेक्ष एवं सापेक्ष दोनों रूपों में करना आवश्यक है। निरपेक्ष रूप में लाभों से अभिप्राय रुपयों में लाभ की मात्रा से है जो लाभ-हानि खाते से ज्ञात होती है। इसके विपरीत लाभों को बिक्री अथवा पूँजी के प्रतिशत के । रूप में मापना लाभों का सापेक्ष माप है जिसे ‘लाभानदता’ कहते हैं। लाभप्रदता प्रबन्ध की कुशलता की माप है। संस्था की संचालन कुशलता तथा अंशधारियों को पर्याप्त प्रतिफल संस्था द्वारा अर्जित लाभों पर निर्भर है।

किसी संस्था की लाभप्रदता की गणना इसके लाभप्रदता अनुपातों के माध्यम से की जा सकती है ।। लाभप्रदता सम्बन्धी अनुपातों की गणना सम्पत्तियों एवं विनियोगों अथवा बिक्री के आधार पर की जा सकती है। विभिन्न लाभदायकता अनुपातों को अग्रलिखित तीन वर्गों में विभक्त किया जा सकता है

(अ) बिक्री पर आधारित लाभदायकता अनुपात (Profitability Ratios based on Sales)

(ब) पूँजी पर आधारित लाभदायकता अनुपात (Profitability Ratios based on Capital)

(स) अंशों पर अर्जित लाभदायकता को व्यक्त करने वाले अनुपात  (Ratios showing Profitability of Shares)

विभिन्न लाभदायकता अनुपातों की संक्षिप्त विवेचना निम्नवत् है

(अ) बिक्री पर आधारित लाभदायकता अनुपात

प्रत्येक संस्था द्वारा बिक्री पर पर्याप्त लाभ अर्जित किया जाना आवश्यक है अन्यथा न केवल संचालन व्ययों की पूर्ति में कठिनाई होगी बल्कि संस्था के स्वामियों को भी लाभ प्राप्त नहीं होगा। इसलिए बिक्री के सन्दर्भ में लाभदायकता की माप हेतु मुख्यतः निम्नलिखित अनुपातों की गणना की जाती है

1. सकल लाभ अनुपात (Gross Profit Ratio)- यह अनुपात सकल लाभ तथा शुद्ध विक्रय के सम्बन्ध को स्पष्ट करता है, इसे सामान्यतः प्रतिशत के रूप में प्रकट किया जाता है। इसे सकल उपान्त (Gross Margin) भी कहते हैं। सूत्र रूप में

सकल लाभ अनुपात संस्था की व्यावसायिक कुशलता एवं लाभार्जन क्षमता की अच्छी माप है। इससे यह ज्ञात होता है कि अप्रत्यक्ष व्ययों को छोड़कर व्यवसाय की सकल लाभदायकता क्या है ? इसलिए यह अनुपात जितना अधिक होगा व्यवसाय उतना ही लाभप्रद कहा जायेगा। इसके विपरीत, इस अनुपात का कम होना इस बात का प्रतीक है कि व्यवसाय में विक्रय के अनुपात में लाभ कम हो रहे हैं । इस अनुपात के सम्बन्ध में प्रमाप निर्धारित करना कठिन है, परन्तु एक संस्था का सकल उपान्त पर्याप्त होना चाहिए जिससे न केवल संचालन व्ययों की पूर्ति हो सके बल्कि व्यवसाय के स्वामियों को पर्याप्त प्रतिफल भी प्राप्त हो सके।

2. संचालन अनुपात (Operating Ratio)-यह अनुपात संचालन लागत एवं शुद्ध विक्रय की राशि के मध्य विद्यमान सम्बन्ध को प्रदर्शित करता है। संचालन लागत (Operating Cost) से आशय बेचे गए माल की लागत (Cost of goods sold) एवं संचालन व्ययों (Operating Expenses) के योग से होता है। संचालन व्ययों का आशय निर्माण व्यय, प्रबन्ध एवं प्रशासन व्यय, कार्यालय व्यय तथा बिक्री एवं वितरण व्यय से है। गैर-संचालन व्ययों (non-operating expenses) एवं गैर संचालन आयों को छोड़ दिया जाता है। संक्षेप में, इस अनुपात की गणना के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता ह

उद्देश्य एवं महत्त्व (Objectives and Significance) संचालन अनुपात व्यवसाय की कार्यकुशलता एवं लाभार्जन-क्षमता की माप है। इस अनुपात से यह ज्ञात होता है कि शुद्ध विक्रय का कितना भाग बेचे गए माल की लागत और संचालन व्ययों में लग जाता है। यह अनुपात जितना कम होगा उतना ही अच्छा है. गैर-परिचालन व्ययों (ब्याज, लाभांश आदि) को पूरा करने के लिए उतने ही अधिक लाभ उपलब्ध होंगे तथा शुद्ध लाभ भी अधिक होगा। इसके विपरीत, इस अनुपात के अधिक होने पर गैर-परिचालन व्ययों की पूर्ति के लिए कम लाभ शेष रहेंगे जिससे शुद्ध लाभ भी कम होगा।

3., व्यय अनुपात (Expness Ratio)-उत्पादन लागत और परिचालन व्यय की प्रत्येक मद का शद्ध विक्रय के साथ सम्बन्ध व्यक्त करने के लिए व्यय अनुपातों की गणना की जाती है। इसके लिए प्रत्येक व्यय की राशि में शुद्ध विक्रय का भाग देकर 100 की गुणा कर देते हैं। यह अनुपात भी प्रतिशत के रूप में ही व्यक्त होता है। प्रत्येक क्षेत्र में कम्पनी की कार्यक्षमता ज्ञात करने के लिए विभिन्न ‘व्यय अनुपात’ ज्ञात किये जा सकते हैं। विभिन्न ‘व्यय अनुपात’ निम्नलिखित हैं

व्यय अनुपातों से व्यवसाय की प्रबन्धकीय कुशलता एवं लाभार्जन क्षमता का ज्ञान हो जाता है। इससे व्यय की प्रत्येक मद में बचत या अपव्यय की जानकारी प्राप्त हो जाती है।

4. परिचालन लाभ अनुपात (Operating Profit Ratio)- इसे शुद्ध परिचालन आय अनुपात (Net Operating Income Ratio) भी कहते हैं । इस अनुपात के अन्तर्गत परिचालन लाभ (संचालन लाभ) एवं शुद्ध विक्रय के मध्य सम्बन्ध स्थापित किया जाता है। परिचालन लाभ से आशय किसी संस्था की सामान्य व्यावसायिक क्रियाओं से प्राप्त होने वाले शद्ध लाभ से है। संचालन लाभ में निम्नांकित को शामिल नहीं किया जाता है

(i) असंचालन आयें (Non-operating Incomes)-जैसे-विनियोगों पर ब्याज, लाभांश, सम्पत्तियों के क्रय-विक्रय पर होने वाला लाभ, आदि।

(ii) असचालन व्यय (Non-operating expenses)-ऐसे व्यय जिनका व्यवसाय के संचालन से कोई सम्बन्ध नहीं होता।

संक्षेप में, सकल लाभ में से संचालन व्यय घटाने से जो लाभ आता है उसे परिचालन लाभ (संचालन । लाभ) कहा जाता है । इस अनुपात की गणना हेतु निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है

Operating Profit Ratio  Operating Profit Ratio = Net Sales

यह अनुपात जितना अधिक होता है संस्था की संचालनात्मक कार्यक्षमता उतनी ही अधिक होती है ।

5. शद्ध लाभ अनुपात (Net Profit Ratio)- शुद्ध विक्रय के प्रतिशत के रूप में यह अनुपात शुद्ध एवं शद्ध विक्रय के मध्य सम्बन्ध स्थापित करता है। शद्ध लाभ विशेष लेखांकन अवधि में आगम का। शयों पर आधिक्य है। यह ध्यान देने योग्य है कि शद्ध लाभ में संचालन लाभ एवं गैर-संचालन लाभ दोनों ती सम्मिलित होते हैं। इस अनुपात की गणना का उद्देश्य संस्था की सम्पर्ण क्रियाओं की कुशलता की जाँच करना है। शुद्ध लाभ अनुपात ज्ञात करने हेतु निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है

Net Profit Ratio = Net Profit , -X1000070

Net Sales

यह अनुपात जितना अधिक होगा व्यावसायिक संस्था की लाभदायकता एवं कार्यक्षमता उतनी ही अधिक होगी। इसके विपरीत, यह अनुपात जितना ही कम होगा संस्था की कार्यकुशलता भी उतनी ही कम मानी जायेगी।

Illustration 20. निम्नलिखित सूचनाओं से सकल लाभ अनुपात की गणना कीजिए

Compute Gross Profit Ratio from the following information:

(i) कुल बिक्री 10,60,000 रुपए; विक्रय वापसी 60,000 रुपए; शुद्ध बेचे गए माल की लागत 8,00,000 रुपए।

Total Sales Rs. 10,60,000; Sales Return Rs. 60,000; Cost of Net Goods Sold Rs. 8,00,000.

(ii) विक्रय 6,00,000 रुपए; लागत पर सकल लाभ 25% Sales Rs. 6,00,000; Gross Profit 25% on cost.

(iii) क्रय 14,00,000 रुपए; प्रारम्भिक रहतिया 1,20,000 रुपए; अन्तिम रहतिया 2,40,000 रुपए; उधार विक्रय 12,50,000 रुपए; नकद विक्रय कुल बिक्री का 20%

Purchase Rs 14,00,000; Opening Stock Rs. 1,20,000; Closing Stock Rs. 2,40,000; Credit Sales Rs. 12,50,000; Cash Sales 20% of total sales.

(iv) प्रारम्भिक रहतिया 1,50,000 रुपए क्रय 15,50,000 रुपए; अन्तिम रहतिया 2,50,000 रुपए; मजदूरी 1,30,000 रुपए; आन्तरिक ढुलाई 12,000 रुपए; बिक्री 20,90,000 रुपए; विक्रय वापसी 1,00,000 रुपए।

Opening Stock Rs. 1,50,000; Purchase Rs. 15,50,000; Closing Stock Rs. 2,50,000; Wages Rs. 1,30,000; Carriage Inwards Rs. 12,000; Sales Rs. 20,90,000  Sales Return Rs. 1,00,000

(ब) पूँजी पर आधारित लाभदायकता अनुपात

केवल बिक्री के आधार पर ही लाभदायकता का माप करना भ्रमात्मक हो सकता है। हो सकता है कि विक्रय की दृष्टि से शुद्ध लाभ पर्याप्त हों परन्तु विनियोजित पूँजी की तुलना में बिक्री कम हो । अतः यह। आवश्यक है कि लाभदायकता की पूर्ण एवं विश्वसनीय जाँच हेतु विनियोजित पूँजी पर आधारित लाभप्रदता अनुपात ज्ञात किये जायें।

इन पर आधारित मुख्य अनुपात निम्नवत् हैं

1  विनियोजित पूँजी पर प्रत्याय (Return on Capital Employed) यह अनुपात संस्था में ‘ विनियोजित पूंजी तथा शुद्ध लाभ के मध्य पाये जाने वाले सम्बन्ध को व्यक्त करता है। विनियोजित पूँजी को।

विभिन्न विद्वानों ने अलग-अलग अर्थों में प्रयक्त किया है। विनियोजित पँजी के विभिन्न अर्थ एवं उनक सन्दम। में प्रत्याय दर ज्ञात करने के लिए प्रयोग किये जाने वाले सूत्र निम्न प्रकार है

(i) सकल विनियोजित पँजी पर प्रत्याय (Return on Gross Capital Employed) -सकल। विनियोजित पूंजी का आशय सभी स्थायी सम्पत्तियों एवं चाल सम्पत्तियों के योग से है। इसमें ख्याति को हैं ।परन्तु कृत्रिम (Fictitious) सम्पत्तियों को शामिल नहीं किया जाता है। स्थायी सम्पत्तियाँ ह्रास घटाने के बाद बचे हुए मूल्य पर शामिल की जाती है। यदि स्थायी सम्पत्तियों के वर्तमान मूल्य (बाजार मूल्य) दिए हुए हों, तो स्थायी सम्पत्तियों को उनके वर्तमान मूल्य पर ही शामिल किया जायेगा। इस प्रकार सकल विनियोजित पूँजी का आशय कल सम्पत्ति (Total Assets) से होता है। सकल विानयाजित। पूँजी पर प्रत्याय की गणना हेतु निम्नलिखित सत्र का प्रयोग किया जाता है

Return on Gross Capital Employed: Net Profit before interest and tax x 100

Gross Capital Employed (Total Assets)

(i) शुद्ध विनियोजित पूँजी पर प्रत्याय (Return on Net Capital Employed)-सकल विनियोजित पूंजी की राशि में से चाल दायित्व (Current Liabilities) की राशि घटाने के बाद बची हुई शेष राशि को शुद्ध विनियोजित पूँजी कहते हैं। दूसरे शब्दों में शुद्ध विनियोजित पूँजी का आशय अंशधारियों के कोष (Shareholders’ Funds) + दीर्घकालीन दायित्व से होता है। शुद्ध विनियोजित पूँजी पर प्रत्याय की गणना हेतु निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है

Return on Net Capital Employed : Net Profit before interest and tax x 1000

Net Capital Employed

नोट1. अंशधारियों के कोष में क्या-क्या शामिल किया जाता है, इसकी विस्तृत विवेचना पीछे ऋण-समता अनुपात के अन्तर्गत की गई है।

2. व्यापारिक विनियोग (Trade Investment)-एक कम्पनी द्वारा किसी दूसरी कम्पनी के (अपनी सहायक कम्पनी में नहीं) अंशों या ऋणपत्रों में अपने व्यवसाय की प्रगति हेतु किया गया विनियोग, व्यापारिक विनियोग (Trade Investment) कहलाता है। व्यापारिक विनियोग के अलावा किया गया विनियोग, अन्य विनियोग (Other Investment) कहलाता है । गैर-व्यापारिक विनियोग (Non-trading Investments) को विनियोजित पूँजी (Capital Employed) की गणना में शामिल नहीं किया जाता । इस विनियोग से होने वाली ब्याज की आय को भी लाभों में शामिल नहीं किया जाएगा।

(ii) स्वामियों की शुद्ध विनियोजित पूँजी पर प्रत्याय (Return on Proprietor’s Net Capital Employed)-स्वामियों की शुद्ध विनियोजि आशय अंशधारियों के कोष अथवा अंशधारियों द्वारा व्यवसाय में विनियोजित रकम से है। इस अनुपात को ‘Return on Owner’s Equity’, ‘Return on Net Wortn’ अथवा ‘Return on Shareholders’ Funds’ भी कहा जाता है। स्वामियों की शद्ध विनियोजित पूँजी पर प्रत्याय की गणना हेतु निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है

Return on Proprietor’s Net Capital Employed : Net Profit after interest and tax

x 100 Proprietor’s Net Capital Employed

नोट-

1 प्रश्न में यदि अन्य कोई संकेत न हो तो विनियोजित पूँजी पर प्रत्याय की गणना में शुद्ध विनियोजित पूँजी का (Net Capital Employed) ही प्रयोग करना चाहिए।

2. समता पुँजी पर प्रत्याय (Return on Equity Capital) यह अनुपात समता अंशधारियों के लिए। उपलब्ध शुद्ध लाभ (अर्थात् ब्याज, कर एवं पूर्वाधिकार अंश पूँजी पर लाभांश घटाने के बाद शुद्ध लाभ) तथा। समता अंश पूंजी के मध्य सम्बन्ध को प्रदर्शित करता है। समता पूँजी पर प्रत्याय की गणना हेतु निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है

Illustration 26. निम्नलिखित सूचनाओं से विनियोजित पूँजी पर प्रत्याय की गणना कीजिए

Calculate return on capital mployed from the following informations :

(i) ब्याज के पश्चात् परन्तु कर से पूर्व शुद्ध लाभ 1,32,000 रुपए; 15% दीर्घकालीन ऋण

4,00,000 रुपए; अंशधारियों के कोष 2,40,000 रुपए; कर की दर 50% Net Profit after interest but before tax Rs. 1,32,000; 15% Long-term debts Rs. 4,00,000; Shareholders’ funds Rs. 2,40,000; Tax Rate 50%..

(ii) कर के पश्चात् शुद्ध लाभ 2,50,000 रुपए; चालू सम्पत्तियाँ 20,00,000 रुपए; स्थायी सम्पत्तियाँ

12,50,000 रुपए; अभी तक का ह्रास 2,50,000 रुपए; चालू दायित्व 7,50,000 रुपए; 10% ऋण पत्र 17,50,000 रुपए; आयकर की दर 50% । Net Profit after tax Rs. 2,50,000; Current Assets Rs. 20,00,000; Fixed Assets Rs. 12,50,000; Depreciation up-to-date Rs. 2,50,000; Current Liabilities Rs. 7,50,000; 10% Debentures Rs. 17,50,000; Rate of Income Tax 50%.

(iii) ब्याज एवं कर के पश्चात् शुद्ध लाभ 3,00,000 रुपए; कर 3,00,000 रुपए; शुद्ध स्थायी सम्पत्तियाँ 12,50,000 रुपए; दीर्घकालीन व्यापारिक विनियोग 1,25,000 रुपए; चालू सम्पत्तियाँ 5,50,000 रुपए: 12% ऋणपत्र 10,00,000 रुपए; समता अंश पूंजी 1,25,000 रुपए; 10% पूर्वाधिकार अंश पॅजी 1.25,000 रुपए; संचय एवं आधिक्य 2,50,000 रुपए; चालू दायित्व 4,25,000 रुपए। Net Profit after interest and tax Rs. 3,00,0003; Tax Rs. 3.00.000: Net Fixed Assets Rs. 12,50,000; Long-term Trade Investments Rs. 1,25,000; Current

(स) अंशों पर अजित लाभदायकता को व्यक्त करने वाले अनुपात 

1 प्रति अश अजेन (Earning per Share : E.PS.)-कम्पनी के लाभों में से ब्याज, कर व। पर्वाधिकार अंशों पर लाभांश का भुगतान करने के पश्चात जो राशि बचती है उस पर समता अंशधारियों का। अधिकार होता है । यह लाभ ‘समता अंश पूँजी पर अर्जित लाभ’ कहलाता है। लाभ की इस रकम में कम्पनी के कल समता अंशों की संख्या का भाग देकर प्रति समता अंश अर्जन ज्ञात हो जाती है। इसे ज्ञात करने हेतु निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है

Earning available to Equity Shareholders

Epe –

Net Profit after tax, interest and preference dividend)

No. of Equity Shares

यह अनुपात जितना अधिक होता है व्यवसाय उतना ही कशल माना जाता है तथा साथ-ही-साथ बाजार में कम्पनी के अंशों का मूल्य भी उतना ही अधिक होगा तथा कम्पनी उतनी ही आसानी से अतिरिक्त पूंजी। की व्यवस्था कर सकती है।

2.अर्जुन प्रत्याय अनुपात (Earning Yield Ratio-EY.R.)-यह अनुपात प्रति अंश अजेन और उसके बाजार मूल्य का परस्पर सम्बन्ध है। इस अनुपात के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि बाजार मूल्य के आधार पर अंश की उपार्जन शक्ति क्या है ? इस अनुपात के अध्ययन का तब अधिक महत्त्व होता है जब अंशों को अंकित मूल्य के स्थान पर बाजार से बाजार मल्य पर क्रय किया जाता है । इस अनुपात को। ज्ञात करने हेतु निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है

Earning Yield Ratio = Market Price per share -x 100

3. प्रति अंश साभांश (Dividend per Share-D.P.S.)-सामान्यतः समता अंशधारी इस बात में अधिक रुचि नहीं रखते हैं कि कम्पनी प्रति अंश कितनी आय अर्जित करती है बल्कि वे इस बात में अधिक रुचि रखते हैं कि कम्पनी प्रति अंश कितना लाभांश घोषित करती है। कुल वितरित लाभांश की रकम में कुल अंशों की संख्या का भाग दे दिया जाये तो प्राप्त रकम को प्रति अंश लाभांश कहेंगे। सूत्र रूप में

Dividend per Share =  Dividend for Equity Shareholders

Number of Equity Shares

यह अनुपात यह बताता है कि समता अंशधारियों को वास्तव में लाभांश के रूप में कितनी राशि प्रति अंश वितरित की गई है। यह अनुपात जितना अधिक होगा उतना ही समता अंशधारियों के लिए अच्छा होगा।

4. भुगतान अनुपात (Pay-out Ratio or FO.R.)- इस अनुपात से यह ज्ञात करने में सहायता मिलती है कि उपार्जित आय का कोन-सा भाग लाभांश के रूप में भुगतान किया गया है और कौन-सा भाग उद्योग में पुनः प्रयोग के लिए रोक लिया गया है। जैसे यदि एक विनियोजक कम्पनी की पूँजी वृद्धि में हित रखता है। और उसे यह ज्ञात होता है कि यह कम्पनी, उपार्जित आय का बहुत थोड़ा भाग लाभांश में देती हैं तथा बहुत बडा भाग कम्पनी में रोककर कम्पनी के लिए प्रयोग करती है तो वह इससे प्रसन्न होगा और इस कम्पनी में विनियोग करेगा; इसके विपरीत यदि एक कम्पनी ऐसी है जिसमें उपार्जित आय का बहुत बड़ा भाग लाभांश के रूप में बाँटा जाता है और न के बराबर या बिल्कुल नहीं रोका जाता है तो वह इस कम्पनी में विनियोग नहीं करेगा।

निष्कर्ष-जो अंशधारी अपने अंशों पर अधिक-से-अधिक लाभांश प्रति वर्ष नकद लेना चाहते हैं उनके दष्टिकोण से यह अनुपात जितना बड़ा होता है (High pay-out Ratio) उतना ही अच्छा माना जाता है, परन्तु जो कम्पनी की प्रगति एवं विकास में हित रखते हैं वे छोटे भुगतान अनुपात (Low Pay-out Ratio) को पसन्द करते हैं।

5. लाभांश प्रत्याय अनुपात (Dividend Yield Ratio)- अधिकतर विनियोक्ता अंशों का क्रय खुले बाजार में करते हैं जबकि कम्पनी द्वारा दिये जाने वाले लाभांश की घोषणा अपने अंशों की चुकता पूँजी पर एक निर्धारित प्रतिशत से की जाती है। इस प्रकार लाभांश की घोषणा अंशों के बाजार मूल्य पर नहीं की जाती ऐसी स्थिति में अंशों के विनियोजक कम्पनी द्वारा घोषित लाभांश को अंश के बाजार मूल्य के आधार परिवर्तित कर यह ज्ञान प्राप्त करते हैं कि वोस्तव में उनके विनियोग पर उन्हें क्या प्रत्याय (Return) प्रा हुई है। इसे ही ‘लाभांश प्रत्याय अनुपात’ कहते हैं। संक्षेप में, इस अनुपात की गणना प्रति अंश लाभांश प्रात अश बाजार मूल्य का भाग देकर उसे 100 से गुणा करके की जाती है। इस प्रकार यह अनुपात प्रति लाभाश और अंश के बाजार मल्य का परस्पर सम्बन्ध है। सूत्र रूप में

Dividend per Share — 100 Dividend Yield Ratio (D.Y.R.)E

Market Price per Share

6. लाभांश कवर (Dividend Cover)- यह अनुपात इस बात का ज्ञान कराता है कि प्रति अंश लामा की तुलना में प्रति अंश अर्जन (Earning) कितनी गुनी है। इस अनुपात को प्रति अंश अर्जन (E.PS प्रति अंश लाभांश (D.P.S.) का भाग देकर ज्ञात किया जाता है। सूत्र रूप में

E.P.S

Dividend Cover = D.P.S.

7 मूल्य अर्जन अनुपात (Price Earning Ratio-P/E Ratio)- यह अनुपात अंश के बाजार मल्य तथा प्रति अंश अर्जन दर के मध्य पाये जाने वाले सम्बन्ध को व्यक्त करता है। दूसरे शब्दों में यह अनपात यह बतलाता है कि स्कन्ध विनिमय बाजार में प्रति अंश का बाजार मूल्य,प्रति अंश अर्जन का कितने गना है। इसे निम्नलिखित सूत्र द्वारा व्यक्त किया जा सकता है

. Market Price per Share (M. P. S.) P/E Ratio = Earning per Share (E. P. S.)

मूल्य अर्जन अनुपात किसी भी अंश के मूल्य की सर्वोत्तम माप है। इस अनुपात से भविष्य की किसी। तिथि पर अंश के भावी मूल्य का अनुमान लगाया जा सकता है और यह भी ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है कि अंश का मूल्यांकन कम है या अधिक । एक कम्पनी के P/E Ratio की तुलना इसी प्रकार की दूसरी कम्पनियों के P/E Ratio से करने पर अंश के अति या कम मूल्यांकन की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

Illustration 29. निम्नलिखित सूचनाएँ एक्स लिमिटेड की पुस्तकों से प्राप्त की गईं हैं

Following informations have been obtained from the books of X Limited :

कर के पूर्व लाभ (Profit before tax)                                                           ₹25,00,000

कर की दर (Rate of Tax)                                                                                     -50%

प्रस्तावित लाभांश (Proposed Dividend)                                                       15%

समता अंश पूँजी (Equity Share Capital ) (40,000 X 100)                ₹40,00,000

8%  पूर्वाधिकार अंश पूँजी (8% Preference Share Capital)               ₹ 12,50,000

समता अंश पूँजी के लिए गणना करें

(Calculate for the Equity Share Capital):

(i) प्रति अंश आय  (Earning per Share)

(ii) प्रात अशलाभाश (Dividend per Share a Terspee

(iii) भुगतान अनुपात (Payout Ratio)

(iv) लाभांश प्रतिफल अनुपात (Dividend Yield Ratio)

(v) मूल्य अर्जन अनुपात (Price Earning Ratio) ।

समता अंशों का बाजार मूल्य 200 रुपए प्रति अंश है।

The market price of equity shares is Rs. 200 per share.

Solution.

(i) Earning per Share (E.P.S.):

Earnings available to Equity Shareholders i.e.

Net Profit after tax, interest, and preference dividend

No. of Equity Shares

11,50,000

40,000    = Rs.28.75

विभिन्न अनुपातों के परिकलन पर आधारित दीर्घ उत्तरीय क्रियात्मक उदाहरण

(LONG ANSWER NUMERICAL ILLUSTRATIONS BASED

ON CALCULATION OF VARIOUS RATIOS)

 Illustration 30. एक कम्पनी के वित्तीय लेखों के कुछ समंक निम्न प्रकार हैं

Some data of the financial accounts of a company are as follows: *

वार्षिक बिक्री (Annual Sales)                                                             10,00,000

बिक्रि पर सकल लाभ का प्रतिशत % of Gross Profit on Sales)        16%

औसत स्टॉक (Average Stock)                                                         70,000

चालू दायित्व (Current Liabilities)                                                 80,000

चालू अनुपात (Current Ratio)                                                          250%

अन्तिम स्टॉक (Closing Stock)                                                       60,000

प्राप्त अन्त में  (Receivable at the end)                                       1,25,000

उपर्युक्त सूचनाओं से निम्न अनुपातों की गणना कीजिए

From the above information, calculate the following ratios :

(1) सकन्ध आवर्त (Stock Turnover)

(i) प्राप्य आवर्त (Receivable Turnover)

(ii) अम्ल परख अनुपात (Acid Test Ratio)

(iv) चल सम्पत्ति आवर्त (Current Assets Turnover

(v) औसत वसूली अवधि माह में (Average Collection Period in months)

नोट-उधार बिक्री की कोई जानकारी प्रश्न में नहीं दी गई है, इसलिए प्राप्य आवर्त अनुपात की गणना उधार बिक्री के स्थान

पर प्रदत्त वार्षिक बिक्री की राशि के आधार पर ही की गई है। इसी प्रकार वर्ष के प्रारम्भ में प्राप्य की रकम नहीं दी हुई। है, इसलिए वर्ष के अन्त में प्राप्य को रकम ही Average Receivables के स्थान पर प्रयोग की गई है।

Financial Management Ratio Analysis

Illustration 31. निम्नलिखित आँकड़े 31 मार्च, 2015 को एक्स लिमिटेड के अभिलेखों से लिए गए हैं

The following data are being taken from the records of X Ltd. as on 31st March 2015 :

रोकड़ (Cash)                                                         6,00,000

देनदार (Debtors)                                                 3,00,000

स्टॉक (Stock)                                                       2,00,000

पूर्वदत्त व्यय (Prepaid Expenses)                   1,00,000

लेनदार (Creditors)                                           3,00,000

देय बिल (Bills Payable)                                     60,000

बिक्रि(Sales) Cont-both                                  10,00,000

क्रय (Purchases)                                                  7,20,000

क्रय वापसी ((Purchases Return)                     20.000

उपर्युक्त सूचनाओं के आधार पर निम्नलिखित की गणना कीजिए

On the basis of above information compute the following:

(i) कार्यशील पूंजी अनुपात (Working Capital Ratio)

(ii) अम्ल परख अनुपात (Acid Test Ratio)

(iii) रहतिया तथा बिक्री लागत अनुपात (Stock and Cost of Sales Ratio)

(iv) देय आवर्त अनुपात (Payable Turnover Ratio)

(v) औसत देय अवधि (Average time of Payables)

Illustration 34. नीचे दी गई सूचनाओं के आधार पर निम्नलिखित अनुपातों की गणना कीजिए

(i) सकल लाभ अनुपात, (ii) स्कन्ध आवर्त अनुपात, (iii) ऋण-समता अनुपात एवं (iv) कार्यशील । पूँजी आवर्त अनुपात। शुद्ध विक्रय (परिचालन से आगम) 7,87,500 रुपए; बेचे गए माल की लागत 3,95,600 रुपए, चालू दायित्व 2,37,000 रुपए; ऋण 87,000 रुपए; चालू सम्पत्तियां 3,99,000 रुपए; समता अंश पूँजी 3,75,000 रुपए; 8% ऋणपत्र 1,25,000 रुपए एवं औसत स्कन्ध 1,97,800 रुपए।

On the basis of the information given below, calculate the following ratios : (i) Gross Profit Ratio, (ii) Stock Turnover Ratio, (iii) Debt-Equity Ratio and (iv) Working Capital Turnover Ratio. Information : Net Sales (Revenue from Operations) Rs. 7,87,500; Cost of Goods Sold Rs. 3,95,600; Current Liabilities Rs. 2,37,000; Loan Rs. 87,000; Current Assets Rs. 3,99,000; Equity Share Capital Rs. 3,75,000; 8% Debentures Rs. 1,25,000 and Average Inventory Rs. 1,97,800.

Illustration 35. शरद ट्रेडर्स लि. के व्यापार से सम्बन्धित निम्नलिखित अनुपात हैं देनदारों की गति 3 माह, रहतिये की गति 8 माह, लेनदारों की गति 2 माह, सकल लाभ अनुपात 25 प्रतिशत । 31 दिसम्बर, 2014 को समाप्त होने वाले वर्ष के लिए सकल लाभ 4.00.000 रुपये है। वर्ष के । अन्त का अन्तिम रहतिया प्रारम्भिक रहतिये से 10,000 रुपये अधिक है। प्राप्य बिल 25,000 रुपये। और देय बिल 10,000 रुपये के हैं। बिक्री, देनदार, अन्तिम रहतिया और लेनदारों की राशि निकालिए।

Following are the ratios relating to trading activities of Sharad Traders Ltd. : Debtors’ Velocity 3 months: Stock Velocity 8 months; Creditors Velocity 2 months; Gross Profit Ratio 25 percent. Gross Profit for the year ended 31st December, 2014 amounts to Rs. 4,00,000. Closing Stock at the end of the vear is Rs. 10,000 more than the opening stock. Bills receivable amounts to Rs. 25,000 and Bills payable to Rs. 10,000 Find out Sales, Debtors, Closing Stock and Creditors.

प्रदत्त अनुपातों की सहायता से वित्तीय विवरण तैयार करना

(PREPARATION OF FINANCIAL STATEMENTS

 WITH THE HELP OF GIVEN RATIOS)

Illustration 36 निम्नलिखित सूचनाओं से आप स्वामी के कोष को वितरण अधिकतम सम्भव विवरणों के साथ बनाइए

From the following information, make out a statement of Proprietor’s Fund with as many details as possible

 

 

Financial Management Ratio Analysis

chetansati

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