BCom 3rd Year Financial Management Statement Limitations Study Material Notes in hindi

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BCom 3rd Year Financial Management Statement Limitations Study Material Notes in Hindi

Table of Contents

BCom 3rd Year Financial Management Statement Limitations Study Material Notes in Hindi: Meaning of Financial Statement  Characteristics of Financial Statements Nature of Financial Statement  Types of Financial Statement  Revised Schedule  VI of Companies Act 1956 Explanation of Items, Financial Management Statement Limitations Show in Balance Sheet The Concept of Deferred Tax  Explanation of Contingent Liabilities and Commitments Long Answer Questions Short Answer Questions  Objective Questions Financial Management Statement Limitations.

Financial Management Statement Limitations
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BCom 3rd Year Financial Inventory Management Study Material notes in hindi

वित्तीय विवरण-अर्थ, प्रकार एवं सीमाएँ

(Financial Statements : Meaning, Types and Limitations)

वित्तीय विवरणों का अर्थ

(MEANING OF FINANCIAL STATEMENTS)

किसी व्यावसायिक संस्था के लिये एक निश्चित अवधि के अन्त में बनाये गये अन्तिम लेखे ही वित्तीय विवरण कहलाते हैं। इनसे उस अवधि में संचालित व्यापार के सकल व शुद्ध परिणामों की जानकारी प्राप्त की जाती है तथा उक्त अवधि के अन्त में संस्था की वित्तीय स्थिति का पता चलता है। इन विवरणों में (i) चिट्ठा, (ii) लाभ-हानि खाता, (iii) संचालकों का प्रतिवेदन, (iv) अंकेक्षक प्रतिवेदन तथा (v) अध्यक्षीय भाषण सम्मिलित किये जाते हैं । परन्तु व्यवहार में चिट्ठे एवं लाभ-हानि खाते को ही सम्मिलित रूप से वित्तीय विवरण कहते हैं।

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वित्तीय विवरणों की परिभाषाएँ।

(DEFINITIONS OF FINANCIAL STATEMENTS) 

वित्तीय विवरणों की मुख्य परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं

जॉन एन० मायर के अनुसार, “वित्तीय विवरण व्यापारिक प्रतिष्ठानों के खातों का सारांश प्रस्तुत करता है। आर्थिक चिट्ठा एक निश्चित तिथि को सम्पत्तियों, दायित्वों एवं पूँजी को प्रदर्शित करता है और आय-विवरण एक निश्चित समयावधि के दौरान क्रियाकलापों के परिणाम को दर्शाते हैं।”

स्मिथ एवं एसबर्न के अनुसार, “वित्तीय लेखांकन के अन्तिम उत्पाद के रूप में वित्तीय विवरण एक व्यावसायिक संस्थान के लेखों द्वारा तैयार किए जाते हैं जिनका उद्देश्य उद्यम की वित्तीय स्थिति तथा उसके हाल ही के कार्यकलापों के परिणाम को प्रकट करना और आय के द्वारा किए गए कार्यों का एक विश्लेषण करना होता है।”2

निष्कर्ष-उपरोक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने के उपरान्त हम यह कह सकते हैं कि वित्तीय विवरण लेखांकन प्रक्रिया का अन्तिम उत्पाद होते हैं जो एक विशेष तिथि पर संस्था की वित्तीय स्थिति एवं एक समयावधि की क्रियाओं के परिणामों को प्रकट करते हैं।

वित्तीय विवरण, वित्तीय रिपोर्ट प्रस्तुत करने की प्रक्रिया का अंग है, जिसका उद्देश्य संस्था में हित रखने वाले सभी पक्षों को निर्णय लेने के लिए आवश्यक वित्तीय सूचनाएँ प्रदान करना है। सामान्यतः, वित्तीय विवरणों के एक पूरे समूह में आर्थिक चिट्ठा (Balance Sheet), लाभ-हानि विवरण (Statement of Profit and Loss) जिसे आय विवरण (Income Statement) भी कहते हैं तथा वे लेखांकन टिप्पणियाँ (Notes to Accounts) जो चिट्ठे तथा लाभ-हानि विवरण से सम्बन्धित हैं, भी सम्मिलित की जाती हैं। भारत में इन विवरणों के लिए ‘वार्षिक खाते’ (Annual Accounts) अथवा ‘वार्षिक रिपोर्ट’ (Annual Report) शब्द का प्रयोग किया जाता है।

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वित्तीय विवरणों की विशेषताएँ

(CHARACTERISTICS OF FINANCIAL STATEMENTS)

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1 वित्तीय विवरण भूतकाल (Past) से सम्बन्धित होते हैं, अतः ये ऐतिहासिक प्रलेख (Historical _ Document) हैं।

2. वित्तीय विवरणों को मौद्रिक रूप (Monetary terms) में प्रदर्शित किया जाता है।

3. यह किसी संस्था की वित्तीय स्थिति (Financial Position) स्थिति विवरण (Balance Sheet से तथा लाभप्रदता (Profitability) लाभ-हानि विवरण (Statement of Profit and Lord से दर्शाते हैं।

वित्तीय विवरणों की प्रकृति

(NATURE OF FINANCIAL STATEMENTS)

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वित्तीय विवरणों से व्यवसाय की आर्थिक स्थिति एवं विचाराधीन अवधि में प्राप्त परिणामों की जानकारी मिलती है. परन्तु इन विवरणों में प्रदर्शित मूल्य कभी भी चालू मूल्य अथवा वास्तविक मूल्य को नहीं दर्शात क्योंकि वित्तीय विवरणों में प्रदर्शित आंकड़े लिपिबद्ध तथ्य, लेखांकन परम्पराओं तथा व्यक्तिगत निर्णयों सामूहिक परिणाम होते हैं। वित्तीय विवरणों की प्रकृति के सम्बन्ध में निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिन्दु हैं___

1 लिपिबद्ध तथ्य (Recorded Facts)- व्यावसायिक व्यवहारों का लेखा व्यावसायिक पस्तकों में। उसी तिथि को तथा उसी मूल्य पर किया जाता है,जब वे व्यवहार किये जाते हैं। समय व्यतीत होने के साथ-साथ। ये लेखे ऐतिहासिक रूप धारण कर लेते हैं तथा इन्हीं लेखों की सहायता से वित्तीय विवरण तैयार किये जाते हैं। अतः वित्तीय विवरण लिपिबद्ध तथ्यों पर आधारित होते हैं।

2. लेखांकन परम्पराएं एवं अवधारणाएँ (Accounting Conventions and Concepts)-वित्तीय विवरण लेखांकन सम्बन्धी अनेक सिद्धान्तों, अवधारणाओं तथा परम्पराओं पर आधारित होते हैं । व्यावसायिक व्ययों का पूँजी एवं आगम व्ययों में विभाजन, ह्रास रीति का चुनाव, स्टॉक मूल्यांकन आदि लेखांकन प्रथाओं से प्रभावित होते हैं।

3  व्यक्तिगत निर्णय (Personal Judgement)- यद्यपि लेखांकन अवधारणाएं एवं परम्पराएं लेखापाल के लिये पथ प्रदर्शन का कार्य करती हैं परन्तु फिर भी इन अवधारणाओं एवं परम्पराओं का प्रयोग उसके व्यक्तिगत निर्णय पर ही निर्भर करता है। स्कन्ध मूल्यांकन की विभिन्न विधियों (लीफो, फीफो, औसत) आदि में से किस पद्धति का प्रयोग किया जाये, यह लेखापाल के व्यक्तिगत निर्णय पर निर्भर करता है।

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वित्तीय विवरणों के उद्देश्य

(OBJECTIVES OF FINANCIAL STATEMENTS)

वित्तीय विवरण प्रायः निम्नलिखित उद्देश्यों से तैयार किये जाते हैं

  1. रोकड़ प्रवाह की जानकारी-विनियोजकों एवं लेनदारों के लिये राशि, समय एवं सम्बन्धित अनिश्चितता के सन्दर्भ में रोकड़ प्रवाह का भावी अनुमान लगाने तुलना करने तथा मूल्यांकन के लिये आवश्यक सूचना प्रदान करना।
  2. अर्जनशक्ति का ज्ञान-वित्तीय विवरणों के उपयोगकर्ताओं के लिये संस्था की अर्जन शक्ति का भावी अनुमान लगाने एवं मूल्यांकन करने हेतु सूचनाएँ प्रदान करना।
  3. वित्तीय क्रियाओं का विवरण देना संस्था की लाभार्जन शक्ति के भावी अनुमान, तुलना तथा मूल्यांकन हेतु स्थिति विवरण आय विवरण तथा वित्तीय क्रियाओं का विवरण प्रस्तत करना।
  4. वित्तीय स्थिति एवं सामयिक अर्जनों का विवरण देना-संस्था की लाभार्जन शक्ति के भावी अनुमान, तुलना तथा मूल्यांकन हेतु स्थिति विवरण, आय विवरण तथा वित्तीय क्रियाओं का विवरण प्रस्तुत करना।
  5. वित्तीय पूर्वानुमान प्रदान करना-उपयोगकर्ताओं के भावी अनुमानों की विश्वसनीयता बढ़ाने हेतु वित्तीय पूर्वानुमान उपलब्ध करवाना।
  6. समाज को प्रभावित करने वाली क्रियाओं की जानकारी संस्था की उन सभी क्रियाओं के बारे में। सूचनाएँ उपलब्ध करवाना जो संस्था के सामाजिक दायित्व की पूर्ति को प्रदर्शित करती हैं।
  7. प्रबन्धकीय योग्यता का मूल्यांकन संस्था के मुख्य उद्देश्यों को प्राप्त करने की दिशा में संस्था के साधनों का प्रबन्ध द्वारा प्रभावपूर्ण ढंग से प्रयोग करने सम्बन्धी उपयोगी सूचनायें प्रदान करना।।
  8. तथ्यपूर्ण व विश्लेषित सूचनाएँ देना-व्यावसायिक लेन-देनों एवं अन्य घटनाओं के बारे में तथ्यपूर्ण एवं विश्लेषित सूचनाएँ देना जिससे संस्था की लाभार्जन शक्ति का अनुमान, तुलना व मूल्यांकन किया जा सके।

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