BCom 1st Year Business Foreign Exchange Management Act 1999 Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Foreign Exchange Management Act 1999 Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Foreign Exchange Management Act 1999 Study Material Notes in  Hindi : Objectives of Foreign Exchange Management Act 1999 Important Terminology Authorised Person Reserve bank Powers to Issue Direction to Authorised Person Contravention and Penalties Power to Compound Contravention Authorities under the Fema Appointment and Powers of Adjudicating Authority  Examinaions Questions Long Answer Questions  Shot Answer Questions :

Foreign Exchange Management  Act 1999
Foreign Exchange Management Act 1999

BCom 1st Year Business Regulatory Framework Dishonour Cheques Study Material Notes in Hindi

विदेशी विनिमय प्रबन्ध अधिनियम (फेमा), 1999

(Foreign Exchange Management Act (FEMA), 1999)

आर्थिक उदारीकरण के युग में विदेशी विनिमय के कुशल प्रबन्ध की आवश्यकता अनुभव की गई। फलतः विदेशी विनिमय नियमन अधिनियम, 1973 (फेरा) की समीक्षा की गई। आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हये विश्व अर्थव्यवस्था के अधिक निकट आने के उद्देश्य से विदेशी विनिमय नियमन अधिनियम, 1973 (फेरा) में विदेशी विनिमय एवं विदेशी व्यापार से सम्बन्धित अनेक संशोधनों को कानूनी रुप दिया गया। प्रारम्भ में भारत सरकार ने ‘फेरा’ (FERA) के पुनर्विचार का मन बनाया, परन्तु बाद में सरकार ने ‘फेरा’ को रद्द करके नया कानून बनाना अधिक अच्छा समझा! तदानुसार केन्द्रीय सरकार ने रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया से इस दिशा में एक नया अधिनियम लाने का अनुरोध किया। इस उद्देश्य के लिये एक कार्य-बल (Task Force) का गठन किया गया जिसने 1994 में तत्कालीन अधिनियम (फेरा) में पर्याप्त परिवर्तन की संस्तुति की। परिणामस्वरुप फेरा (FERA) को रद्द करने तथा उसका स्थान ग्रहण करने के लिये लोकसभा में 4 अगस्त, 1998 को एक विधेयक प्रस्तुत किया गया। इस विधेयक के प्रावधानों का उद्देश्य है कि विदेशी-विनिमय से सम्बन्धित कानून को इस विचार से संघटित और संशोधित किया जाये कि विदेशी व्यापार का सरलीकरण हो और भारत का विदेशी विनिमय बाजार ठीक से चलता रहे तथा उसका व्यवस्थित विकास हो। यह बिल वित्त की स्थायी समिति को संदर्भित (Referred) किया गया जिसने कुछ संशोधनों एवं सुझावों सहित अपना प्रतिवेदन 23 दिसम्बर, 1998 को लोकसभा के समक्ष प्रस्तुत किया। इस पर कोई निर्णय लेने से पूर्व 12 वीं लोकसभा भंग हो गई और परिणामस्वरूप यह विधेयक पारित न हो सका। तत्पश्चात् वित्त की स्थायी समिति के सुधारों एवं संशोधनों को सम्मिलित करने के पश्चात् 13वीं लोकसभा के वित्त मंत्री यशवन्त सिन्हा ने अक्टूबर, 1999 में यह बिल पेश किया, जिसे लोक-सभा ने 2 दिसम्बर 1999 को पारित कर दिया एवं इसे राष्ट्रपति की स्वीकृति मिल गई। यह अधिनियम 1 जून, 2000 से लागू है।

Foreign Exchange Management

विदेशी विनिमय प्रबन्ध अधिनियम, 1999 के उद्देश्य

(Objectives of Foreign Exchange Management Act (FEMA), 1999)

इस अधिनियम को संक्षेप में ‘फेमा’ (FEMA) के नाम से जाना जाता है। इस अधिनियम की प्रस्तावना में यह उल्लेख किया गया है, कि, “यह अधिनियम विदेशी विनिमय से सम्बन्धित कानून को संघटित और संशोधित करे ताकि विदेशी व्यापार का सरलीकरण हो और भारत का विदेशी विनिमय बाजार ठीक से चले तथा उसका व्यवस्थित विकास हो।”

संक्षेप में, इस अधिनियम के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं

1 विदेशी विनिमय के क्रय-विक्रय पर नियन्त्रण रखना।

2. विदेशी विनिमय दर में स्थिरता लाना।

3. विदेशों से एवं विदेशों को होने वाले भुगतानों का नियमन करना।

4. भारत के विदेशी विनिमय बाजार का सुव्यवस्थित विकास करना।

5. भारत में पूँजी के बहिर्गमन पर रोक लगाना।

6. भुगतान असन्तुलन को दूर करने में सहायता करना।

7. आर्थिक कार्यक्रमों हेतु विदेशी मुद्रा की पूर्ति बनाये रखने में सहायता प्रदान करना।

8. अनिवासी भारतीयों के भारत में रोजगार, व्यवसाय, विनियोजन, पेशा आदि का नियमन करना।

9 . विदेशी व्यापार को प्रोत्साहन देना।

10. भारत में विदेशी पूँजी की प्रविष्टि का नियमन करना।

11. भारत में विदेशियों को रोजगार का नियमन करना

विदेशी विनिमय प्रबन्ध अधिनियम के प्रमख प्रावधान

1 संक्षिप्त नामइस अधिनियम को “विदेशी विनिमय प्रबन्ध अधिनियम, 1999′ कहा जायेगा।।

2. क्षेत्र या विस्तार यह अधिनियम सम्पूर्ण भारत में लागू होता है।

लागू होना-(i) यह भारत में निवासी व्यक्ति के स्वामित्व अथवा नियन्त्रण वाली भारत के बाहर स्थित सभी शाखाओं, कार्यालयों तथा एजेन्सियों पर भी लागू होता है।

(ii) यह अधिनियम तब भी लागू होता है जब कोई भारत का निवासी व्यक्ति भारत के बाहर इस अधिनियम का उल्लंघन करता है।

4. प्रारम्भ (प्रभावी)-केन्द्रीय सरकार ने इस अधिनियम को अधिसूचना जारी करके 1 जून, 2000 से प्रभावी कर दिया है।

Foreign Exchange Management

महत्त्वपूर्ण शब्दावली

(Important Terminology)

विदेशी विनिमय प्रबन्ध अधिनियम (फेमा) में कुछ विशेष शब्दों का प्रयोग कुछ विशेष सन्दर्भ एवं अर्थ में किया गया है। इस अधिनियम की धारा 2 में 31 पदों (terms) की सूची दी गई है, जिन्हें अधिनियम में परिभाषित किया गया है। उनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण ‘परिभाषाएँ’ निम्न वर्णित हैं

1 निर्णायक अधिकारी” (Adjudicating Authority) से अभिप्राय है, धारा 16(1) के अधीन अधिकृत अधिकारी।’

2. “पुनरावेदन न्यायाधिकरण” (Appellate Tribunal) से अभिप्राय उस न्यायाधिकरण (tribunal) से है, जिसका गठन धारा 18 के अधीन विदेशी विनिमय हेतु किया गया है। धारा 2 (b)]

3. अधिकृत व्यक्ति” (Authorised Person) से आशय है, एक अधिकृत व्यापारी, मुद्रा-परिवर्तक (money exchanger), समुद्र-पार बैंकिंग इकाई (Off-shore Banking unit) या अन्य वह व्यक्ति जिसे धारा 10 की उप-धारा 1 के अधीन विदेशी-विनिमय या विदेशी-विभाग की प्रतिभूतियों में व्यापार करने के लिए अधिकृत किया गया हो।

4. “पूँजी खाता व्यवहार” (Capital Account Transactions) से आशय है, वह व्यवहार जो भारत में निवासी व्यक्तियों के, भारत से बाहर की सम्पत्तियों व देनदारियों, जिनमें सम्भाव्य देनदारियाँ (Contingent Liabilities) भी शामिल हैं, में परिवर्तन लाता है। इसमें धारा 6 की उप-धारा (3) के व्यवहारों को भी शामिल किया गया है

प्रचलित मुद्रा (Currency) में प्रचलित कागज के नोट, पोस्टल-नोट, पोस्टल आर्डर, मनी-आर्डर, चैक, ड्राफ्टस, यात्री-चैक, साख-पत्र, विनिमय-पत्र, प्रतिज्ञा-पत्र, क्रेडिट कार्ड एवं अन्य इसी प्रकार के प्रपत्रों को शामिल किया जाता है, जिन्हें भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा अधिसूचित (notified) किया गया है।

प्रचलित कागजी मुद्रा (Currency notes) से अभिप्राय नगदी के रुप में सिक्कों तथा बैं नोट से है तथा प्रचलित कागजी मुद्रा में दोनों शामिल हैं।

चालू खाता व्यवहार (Current Account Transactions) : चालू खाता व्यवहार में पूंजीव्वहारों को छोड़कर निम्नलिखित व्यवहारों को सम्मिलित किया गया है :

(i) व्यापार के सामान्य व्यवहार में विदेशी व्यापार से सम्बन्धित देय भुगतान, अन्य चालू व्यवसाय, होगा एवं अल्पकालान बोकग तथा साख सविधाएँ

(ii) ऋणों पर देय ब्याज के भुगतान तथा विनियोगों से प्राप्त शुद्ध आय के रुप में,

(iii) विदेशों में निवास कर रहे माता-पिता या पत्नी एवं बच्चों के जीवन-निर्वाह के लिए किए गए व्ययों या खर्चों की पूर्ति के लिए भेजी गई धनराशि, तथा

(iv) मातापिता, पति या पत्नी तथा बच्चों पर किए गए ऐसे सभी व्यय या खर्चे, जो उनके विदेश भ्रमण, शिक्षा तथा स्वास्थ्य की देखभाल के लिए चिकित्सा से सम्बन्धित हैं।’

8. निर्यात (Export) : निर्यात से तात्पर्य इस शब्द के व्याकरण सम्मत परिवर्तनों तथा सजातीय अभिव्यक्ति को ध्यान में रखते हुए निम्नलिखित हैं :

(i) भारत में किसी माल को भारत से बाहर ले जाना, तथा

(ii) भारत से बाहर किसी व्यक्ति को भारत से सेवाएं प्रदान करने का प्रावधान। धारा 20]

9. विदेशी मुद्रा (Foreign Currency) : विदेशी मुद्रा से आशय भारतीय चल मुद्रा को छोड़कर किसी भी अन्य चालू मुद्रा से है।’

10. विदेशी विनिमय (Foreign Exchange) : विदेशी विनिमय से तात्पर्य विदेशी प्रचलित मुद्रा से है तथा इसके अन्तर्गत निम्नलिखित को सम्मिलित किया गया है :

(i) जमाएँ, उधार एवं किसी भी विदेशी मुद्रा में देय शेष (balance),

(ii) ड्राफ्ट्स, यात्री-चैक, साख-पत्र या विनिमय-विपत्र, जो भारतीय मुद्रा में उल्लेखित या आहरित (expressed or drawn) हों लेकिन किसी विदेशी मुद्रा में देय है :

(iii) ड्राफ्ट्स, यात्री-चैक, साख-पत्र या विनिमय-विपत्र, जो भारत से बाहर किसी बैंक द्वारा, किसी संस्था द्वारा अथवा व्यक्ति द्वारा आहरित (drawn) हो लेकिन जिनका भुगतान भारतीय मुद्रा में देय

11. विदेशी प्रतिभूति “(Foreign security) से अभिप्राय किसी ऐसी प्रतिभूति से है जो अंशों, स्कन्धों, बन्ध-पत्रों (shares, stocks, bonds), ऋण-पत्रों या अन्य किसी विपत्र के रुप में हैं तथा जो विदेशी-मुद्रा में उल्लेखित या अभिव्यक्त (denominated or expressed) है तथा इसमें उन प्रतिभूतियों को भी शामिल किया गया है जो यद्यपि विदेशी-मुद्रा में अभिव्यक्त (expressed) हैं, किन्तु जिनके शोधन (redemption) या अन्य किसी प्रकार से वापसी जैसे उन पर ब्याज या लाभांश का भुगतान भारतीय प्रचलित मुद्रा में होना है।’

12. आयात” (Import) से अभिप्राय व्याकरण-सम्मत परिवर्तनों तथा सजातीय अभिव्यक्ति को ध्यान में रखते हुए भारत में माल या सेवा को लाने से है।

13. भारतीय प्रचलित मुद्रा“(Indian Currency) से अभिप्राय ऐसी मुद्रा से है जो भारतीय रुपये में अभिव्यक्त या आहरित (expressed or drawn) की गई है, किन्तु इसमें विशेष बैंक-नोट तथा एक रुपए का वह विशेष नोट शामिल नहीं है, जिसका निर्गमन (issued) भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम. 1934 की धारा 28-A के अधीन किया गया है।

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व्यक्ति (Person) : फेमा अधिनियम के अन्तर्गत व्यक्ति में निम्नलिखित को सम्मिलित किया गया है :

(i) एक व्यक्ति ,

(ii) एक हिन्दू अविभाजित परिवार,

(iii) एक कम्पनी,

(iv) एक फर्म,

(v) व्यक्तियों का एक संघ या संस्था, चाहे उसका समामेलन हुआ है या नहीं,

(vi) प्रत्येक कृत्रिम विधि पुरुष (every artificial juridical person), जो उप-वाक्यांशों की व्याख्याओं में शामिल नहीं है, तथा

(vii) कोई भी अभिकरण/एजेन्सी, कार्यालय अथवा शाखा, जिसका स्वामित्व या नियन्त्रण ऐसे । व्यक्ति के हाथ में है।’

15.”भारत में निवासी व्यक्ति ” (Person resident in India) से अभिप्राय–

(i) उस व्यक्ति से है जो पिछले वित्तीय वर्ष में एक सौ बयासी दिनों (one hundred and eighty two days) से अधिक भारत में रहा हो, किन्तु इसमें निम्नलिखित को शामिल नहीं किया गया है

(A) वह व्यक्ति जो भारत से बाहर गया हुआ है अथवा जो भारत से बाहर निवास करता है, दोनों ही स्थितियों में, तथा भारत से बाहर वह

(a) रोजगार के लिए या रोजगार प्राप्ति के लिए गया है; अथवा (b) व्यवसाय या धन्धा चलाने के लिए गया है, अथवा

(c) ऐसी परिस्थितियों में किसी अन्य उद्देश्य से गया है, जो यह संकेत करती हों कि उसका विचार अनिश्चित अवधि तक भारत से बाहर रहने का है।

(B) एक व्यक्ति जो भारत आया है या भारत में रहता है, दोनों ही स्थितियों में, तथा वह निम्नलिखित कारणों के अलावा ऐसा करता है तथा भारत में

(a) रोजगार के लिए या रोजगार प्राप्ति के लिए आया है :

(b) व्यवसाय या धन्धा चलाने के लिए आया है:

(c) ऐसी परिस्थितियों में किसी अन्य उद्देश्य से आया है, जो यह संकेत करती हो कि उसका विचार अनिश्चित अवधि तक भारत में रहने का है।

(ii) कोई व्यक्ति या निगमित निकाय (body corporate), जिसका पंजीकरण या समामेलन (registered or incorporated) भारत में हुआ है।

(iii) भारत में स्थित ऐसा कोई कार्यालय, शाखा या एजेन्सी जिसका स्वामित्व या नियन्त्रण एस। न के हाथ में हैं, जो भारत से बाहर निवास करता है।

(iv) भारत से बाहर स्थित ऐसा कोई कार्यालय, शाखा या एजेन्सी, जिसका स्वामित्व या नियन्त्रण भारतीय निवासी के हाथ में है।

16. अप्रवासी भारतीय (Person Resident Outside India) : अप्रवासी भारतीय से आशय ऐसे व्यक्ति से हैं, जो भारत में निवास नहीं करता।

टिप्पणी (Note) : भारत में निवासी व्यक्ति से आशय, उस व्यक्ति से है जो पिछले वित्तीय वर्ष में 182 दिनों से अधिक भारत में रहा हो।

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17. भारत को प्रत्यावर्तन (Repatriate to India) : भारत को प्रत्यावर्तन से तात्पर्य है कि प्राप्त विदेशी विनिमय को भारत में लाना तथा

(i) भारत में एक अधिकृत व्यक्ति को रुपए के बदले विदेशी विनिमय का विक्रय करना, अथवा

(ii) भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा निर्धारित की गई धनराशि तक विदेशों से अर्जित धनराशि को अधिकृत व्यक्ति के खाते में जमा करना तथा इसमें ऋण अथवा दायित्व के भुगतान के लिए वसूल की गई विदेशी विनिमय राशि का उपयोग भी सम्मिलित है एवं ‘प्रत्यावर्तित’ (Repatriate) शब्द का अभिप्राय उसी के अनुसार लिया जाएगा।’

18. प्रतिभूति (Security) : प्रतिभूति से आशय उन अंशों, स्कन्धों, बॉण्डों (Bonds), ऋणपत्रों, सरकारी प्रतिभूतियों, से है जैसा कि लोक ऋण अधिनियम, 1944 में परिभाषित है; बचत प्रमाण-पत्र जिन पर सरकारी बचत प्रमाण-पत्र अधिनियम, 1959 लागू होता हो; जमा प्रतिभूतियों के रूप में जमा रसीदें एवं भारतीय यूनिट ट्रस्ट अधिनियम, 1963 की धारा 3(1) के अन्तर्गत स्थापित भारतीय यूनिट ट्रस्ट द्वारा निर्गमित यूनिट अथवा अन्य म्यूचल फण्ड के यूनिटस एवं प्रतिभूति स्वामित्व के प्रमाण-पत्र। परन्तु इसमें विनिमय-विपत्र अथवा प्रतिज्ञा-पत्र (सरकारी प्रतिज्ञा-पत्रों अथवा अन्य प्रलेखों को छोड़कर जिन्हें इस अधिनियम के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा प्रतिभूति के रूप में अधिसूचित किया जा सकता है) सम्मिलित नहीं हैं।

19. सेवा (Service) : सेवा से तात्पर्य किसी भी प्रकार की सेवा से है जोकि सम्भाव्य उपयोगकर्ताओं को उपलब्ध की जाती है तथा इसमें बैंकिंग, वित्त, बीमा, चिकित्सा सहायता, कानूनी सहायता, चिटफण्ड, वास्तविक परिसम्पत्ति (real estate), परिवहन, प्रोसेसिंग, बिजली अथवा अन्य किसी किस्म की ऊर्जा, बोर्डिंग या लॉजिंग या दोनों, मनोरंजन, आमोदार्थ, खबरों, तथा अन्य सूचनाओं के प्रबन्ध । से सम्बन्धित सुविधाएँ प्रदान करने से है, किन्तु इसमें मुफ्त सेवा प्रदान करने से सम्बन्धित अनुबन्धों को सम्मिलित नहीं किया गया हैं।’

20. हस्तान्तरण (Transfer) : हस्तान्तरण से तात्पर्य, हस्तान्तरण में क्रय-विक्रय, विनिमय, बन्धक, गिरवी, उपहार, ऋण या अन्य किसी भी रूप में अधिकार, हक, कब्जे या ग्रहणाधिकार के हस्तान्तरण से है।

विदेशी विनिमय के नियमन एवं प्रबन्ध सम्बन्धी प्रमुख प्रावधान

विदेशी विनिमय एवं प्रतिभूतियों के लेनदेन सम्बन्धी प्रावधान- ‘फेमा’ (FEMA) में विदेशी विनिमय एवं प्रतिभूतियों के लेन-देन पर कुछ प्रतिबन्ध लगाये गये हैं। ‘फेमा’ की धारा 3 के अनुसार कोई भी व्यक्ति रिजर्व बैंक की सामान्य या विशेष अनुमति के बिना निम्नांकित प्रकार के लेन-देन नहीं करेगा

(i) कोई भी व्यक्ति अधिकृत व्यक्ति के अतिरिक्त किसी भी व्यक्ति से विदेशी विनिमय या विदेशी प्रतिभूति में न तो लेन-देन कर सकता है और न उसे हस्तान्तरित कर सकता है।

(ii) कोई व्यक्ति किसी भी तरीके से भारत के बाहर के निवासी किसी भी व्यक्ति को न तो धन की अदायगी कर सकता है और न उसके खाते में कोई धन डाल सकता है।

(iii) अधिकृत व्यक्ति को छोड़कर कोई भी व्यक्ति भारत के बाहर के निवासी किसी व्यक्ति के आदेश से या किसी भी व्यक्ति की ओर से किसी भी तरीके से कोई भुगतान प्राप्त नहीं करेगा।

(iv) भारत से बाहर कोई सम्पत्ति प्राप्त करने, निर्मित करने या हस्तान्तरित करने के उद्देश्य से भारत में कोई व्यक्ति किसी वित्तीय सौदे में शामिल नहीं हो सकता।

विदेशी विनिमय, प्रतिभूति आदि को धारित करने से सम्बन्धित प्रावधान- भारत का निवासी कोई भी व्यक्ति (i) किसी भी विदेशी मुद्रा को; अथवा (ii) किसी भी विदेशी प्रतिभूति को; अथवा (ii) भारत के बाहर स्थित किसी भी अचल सम्पत्ति को अधिप्राप्त, धारित या अन्तरित नहीं कर सकेगा या अपने कब्जे में नहीं रख सकेगा।

चालू खाते के लेन-देन सम्बन्धी प्रावधान- कोई भी व्यक्ति चालू खाते लेन-देन से सम्बन्धित विदेशी विनिमय किसी अधिकृत व्यक्ति को बेच सकता है अथवा उससे प्राप्त कर सकता है। परन्तु केन्द्रीय सरकार जनहित में उचित समझे तो रिजर्व बैंक से परामर्श करके चालू खाते के लेन-देनों पर कोई भी उचित प्रतिबन्ध लगा सकती है।

पूँजी खाते के लेनदेन सम्बन्धी प्रावधान (Provisions as to Capital Account Transactions) (धारा 6): फेमा की धारा 6 के अन्तर्गत पूँजी खाते के लेन-देन से सम्बन्धित प्रावधानों को स्पष्ट किया गया है। फेमा की धारा 6 (2) के अधीन रहते हुए पूँजी खाते के लेन-देन के सम्बन्ध में। कोई भी व्यक्ति किसी अधिकृत व्यक्ति को विदेशी विनिमय बेच सकता है या उससे विदेशी विनिमय प्राप्त कर सकता है। सामान्य रुप से पूँजी लेन-देनों पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है।

फेमा की धारा 6(2) के प्रावधानों के अनुसार रिजर्व बैंक केन्द्रीय सरकार से परामर्श करने के । पश्चात् निम्नलिखित प्रतिबन्ध लगा सकता है :

(a) पूँजी खाते के लेन-देनों की किसी श्रेणी या श्रेणियों का निर्धारण, जो अनुमति योग्य है।

को ऐसे लेन-देनों के सम्बन्ध में स्वीकृति योग्य विदेशी विनिमय की सीमा का निर्धारण कर। सकता है।

इसके साथ ही रिजर्व बैंक, विदेशी विनिमय के उन आहरणों पर प्रतिबन्ध नहीं लगाएगा, जो ऋणों के भुगतान हेतु देय है, अथवा व्यवसाय की सामान्य प्रगति में प्रत्यक्ष विनियोगों पर हास (Depreciation) के रुप में देय है।

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रिजर्व बैंक (RBI) निम्नांकित के नियमन, निषेध या प्रतिबन्ध के सम्बन्ध में प्रावधानों का निर्माण कर सकता है:

(a) भारत में निवासी व्यक्ति द्वारा विदेशी प्रतिभूति के हस्तान्तरण व निर्गमन के सम्बन्ध में, (b) अनिवासी भारतीय व्यक्ति द्वारा किसी प्रतिभूति के हस्तान्तरण व निर्गमन के सम्बन्ध में,

(c) अनिवासी भारतीय व्यक्ति द्वारा भारत में स्थित किसी शाखा, कार्यालय, अथवा एजेन्सी द्वारा किसी प्रतिभूति या विदेशी प्रतिभूति के हस्तान्तरण या निर्गमन के सम्बन्ध में,

(d) किसी भी रूप में एवं किसी भी नाम से विदेशी विनिमय उधार लेने या उधार देने के सम्बन्ध में,

(e) भारत में निवासी तथा अनिवासी भारतीय व्यक्ति के मध्य किसी भी रूप में एवं किसी भी नाम से रुपया उधार लेने या देने के सम्बन्ध में,

भारत में निवासी व्यक्तियों तथा अनिवासी भारतीय व्यक्तियों के मध्य जमाओं (Deposits) के सम्बन्ध में,

(g) निर्यात, आयात अथवा प्रचलित मुद्रा या प्रचलित मुद्रा के नोट रखने के सम्बन्ध में,

(h) भारत में निवासी व्यक्ति द्वारा भारत के बाहर अचल सम्पत्ति के अधिग्रहण या हस्तान्तरण के सम्बन्ध में, किन्तु इसमें अचल सम्पत्ति को पाँच वर्षों की अवधि तक पट्टे पर देना सम्मिलित नहीं है,

(i) अनिवासी भारतीय द्वारा भारत में अचल सम्पत्ति के अधिग्रहण या हस्तान्तरण के सम्बन्ध में परन्तु इसमें अचल सम्पत्ति को पाँच वर्ष तक पट्टे पर देना सम्मिलित नहीं है,

(5) किसी ऋण बन्धन (Obligation), किसी अन्य दायित्व की गारण्टी देने या प्रतिभू के सम्बन्ध में, जो कि:

(i) भारत में निवासी व्यक्ति द्वारा अनिवासी भारतीय व्यक्ति पर देय या दायित्व के सम्बन्ध में दी गई हो, अथवा

(ii) अनिवासी भारतीय व्यक्ति द्वारा दी गई हो।

टिप्पणी (Comment) : इस प्रावधान के माध्यम से रिजर्व बैंक (RBI) विनियमों (Regulations) का निर्माण करके विशिष्ट लेन-देनों या व्यवहार या सौदों को निषेधित, प्रतिबन्धित (Restricted) अथवा विनियमित (Regulate) करता है।

एक व्यक्ति, जो भारत में निवासी है, भारत से बाहर विदेशी प्रचलित मुद्रा, विदेशी प्रतिभूति या अचल सम्पत्ति

(a) ग्रहण कर सकता है (Hold), (b) पर स्वामित्व स्थापित कर सकता है, (c) का हस्तान्तरण कर सकता है, (d) में विनियोग कर सकता है,

बशर्ते वह प्रचलित मुद्रा, प्रतिभूति या अचल सम्पत्ति ऐसे व्यक्ति द्वारा अधिग्रहित की गई है, ग्रहण की गई है, अथवा उनका स्वामित्व ऐसे व्यक्ति के पास हैं, जो उस समय अनिवासी भारतीय या/अथवा ऐसे व्यक्ति द्वारा उत्तराधिकारी के रुप में प्राप्त हुई है, जो उस समय अनिवासी भारतीय था। धारा 6(4)

एक व्यक्ति, जो अनिवासी भारतीय है, भारतीय प्रचलित मुद्रा, प्रतिभूति तथा भारत में स्थित अचल सम्पत्ति ग्रहण कर सकता है, स्वामित्व स्थापित कर सकता है, हस्तान्तरण कर सकता है, विनियोग कर सकता है। बशर्ते वह भारतीय प्रचलित मुद्रा, भारतीय प्रतिभूति या भारत स्थित अचल सम्पत्ति, ऐसे व्यक्ति द्वारा अधिग्रहित की गई है या ग्रहण की गई है अथवा उनका स्वामित्व ऐसे व्यक्ति के पास है, जो उस समय भारत में निवासी या ऐसे व्यक्ति द्वारा उत्तराधिकार के रुप में प्राप्त है, जो उक्त भारत में निवासी था।

(5) इस धारा के प्रावधानों के विपरीत न जाते हुए, रिजर्व बैंक नियम बनाकर या निषेध के द्वारा, अनिवासी भारतीय स्थित किसी भी कार्यालय, शाखा अथवा अन्य व्यवसाय स्थलों को निषेधित कर सकता है, उन पर प्रतिबन्ध लगा सकता है, अथवा उनका नियमन (Regulate) कर सकता है।

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माल तथा सेवाओं के निर्यात सम्बन्धी प्रावधान (धारा 7)-‘फेमा में कुछ ऐसे प्रावधान किये गये हैं ताकि माल तथा सेवाओं के निर्यात से प्राप्त विदेशी विनिमय का देश में विधिवत् प्रत्यावर्तन हो सके। ‘फेमा’ के अन्तर्गत प्रत्येक निर्यातक के निम्नलिखित कर्त्तव्य निर्धारित किये गये हैं

(1) वह रिजर्व बैंक या किसी अधिकारी को निर्धारित फार्म पर निर्दिष्ट ढंग से एक घोषणा करेगा जिसमें माल का सच्चा व सही विवरण व मूल्य हो।

(ii) यदि माल का पूर्ण निर्यात मूल्य निर्यात के समय निर्धारित करना सम्भव नहीं हो तो मूल्य की वह राशि जो वर्तमान परिस्थितियों में भारत के बाहर उस माल को बेचने से निर्यातक को प्राप्त होने की आशा है।

(iii) रिजर्व बैंक के निर्देशानुसार अन्य माँगी जाने वाली सूचना भी उपलब्ध करानी होगी।

(iv) सेवाओं के प्रत्येक निर्यातक का यह कर्त्तव्य है कि वह रिजर्व बैंक या ऐसे ही किसी अन्य निर्धारित प्राधिकारी को निर्धारित प्रारूप एवं विधि से एक घोषणा प्रस्तुत करेगा। इस घोषणा में वह निर्यात की गई सेवाओं के भुगतान से सम्बन्धित सही-सही तथ्यात्मक/महत्त्वपूर्ण विवरण देगा।

विदेशी विनिमय की वसली एवं प्रत्यावर्तन सम्बन्धी प्रावधान-यदि भारत के निवासी किसी व्यक्ति को विदेशी विनिमय देय अथवा अर्जित हो गई है तो ऐसा व्यक्ति रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित अवधि में तथा निर्धारित विधि से वह सभी उचित कदम उठा सकता है जिससे कि उस विदेशी विनिमय की वसूली हो सके एवं उस विदेशी विनिमय को भारत लाया जा सके।

वसूली एवं प्रत्यावर्तन प्रावधानों से छुटउपर्युक्त धारा 4 के अन्तर्गत वर्णित विदेशी विनिमय. प्रतिभूति आदि को धारित करने से सम्बन्धित प्रावधान एवं धारा 8 के अन्तर्गत वर्णित विदेशी विनिमय की वसूली एवं प्रत्यावर्तन सम्बन्धी प्रावधान निम्नलिखित स्थितियों में लागू नहीं होंगे

(i) रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित सीमा तक किसी व्यक्ति द्वारा विदेशी करेन्सी व विदेशी मुद्रा को अपने अधिकार में रखना।

(ii) रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित सीमा तक किसी व्यक्ति या व्यक्तियों द्वारा विदेशी करेन्सी खाते को रखना और उसका परिचालन।

(iii) रिजर्व बैंक की सामान्य या विशेष आज्ञा के अधीन किसी व्यक्ति द्वारा 8 जुलाई, 1947 से पहले विदेशी विनिमय की प्राप्ति या उससे किसी आय का होना।

(iv) रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित सीमा तक भारत के निवासी किसी व्यक्ति द्वारा धारित ऐसी विदेशी विनिमय, जो उसे ऐसे व्यक्ति से भेंट या उत्तराधिकार में उस राशि में से प्राप्त हुई हो जो 8 जुलाई, 1947 से पूर्व उसके पास भारत के बाहर थी या उससे प्राप्त होने वाली आय में से प्राप्त हुई हो।

(v) नौकरी, व्यवसाय, व्यापार, पेशा, सेवायें, मानदेय, उपहार, वसीयत या विधिसम्मत साधनों द्वारा प्राप्त विदेशी विनिमय जो रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित सीमा के भीतर हो। (vi) रिजर्व बैंक द्वारा विशेष रूप से स्पष्ट की गई किसी अन्य विदेशी विनिमय की प्राप्ति।

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अधिकृत व्यक्ति (धारा 2(c))

(Authorised Person)

फेमा की धारा 2 (c) के अनुसार, अधिकृत व्यक्ति से तात्पर्य किसी ऐसे अधिकृत व्यापारी, मुद्रा परिवर्तक, समुद्र पार बैंकिंग इकाई या ऐसे ही किसी व्यक्ति से है, जिसे फेमा की धारा 10 (1) के अन्तर्गत विदेशी विनिमय या विदेशी प्रतिभूतियों के लेन-देन के लिए किसी समय में अधिकृत किया गया है।

फेमा की धारा 10 रिजर्व बैंक को यह अधिकार प्रदान करती है कि विदेशी विनिमय एवं विदेशी प्रतिभतियों के लेन-देन के लिए व्यक्तियों को अधिकृत करे। अधिकृत करते समय रिजर्व बैंक कुछ शर्तो का भी उल्लेख कर सकता है तथा यदि उन शर्तों की अवहेलना या खण्डन किया जा रहा है तो जनहित में उसका अधिकृत होना समाप्त भी कर सकता है।

रिजर्व बैंक द्वारा अधिकृत किया जाना (Granting Authorisation by Reserve BAT रिजर्व बैंक के पास किसी भी व्यक्ति से आवेदन प्राप्त हो जाने पर, उसे अधिकृत व्यक्ति के

में माना जाना अर्थात् उसे मुद्रा परिवर्तक के रूप में, समुद्र पार बैंकिंग के रूप में विदेशी विनिमय या विदेशी प्रतिभूतियों में लेन-देन के लिए अधिकृत कर सकता है।

लिखित एवं सशर्त (In Written and Conditional) रिजर्व बैंक द्वारा अधिकृत व्यक्ति के रूप में माना जाने का अधिकार पत्र लिखित में देना होगा। यह अधिकार पानों जति होगा, जो अधिकार पत्र में लिखी गई हैं।

अधिकत पत्र का खण्डन (Revocation of Authorisation) रिजर्व बैंक द्वारा प्रदान की गई ‘अधिकति’ (Authorisation) को कभा भा समाप्त किया जा सकता है, यदि रिजर्व बैंक इस बात से पूर्णतया सन्तुष्ट हो जाए, कि :

(a) ऐसा करना जनहित में है,

(b) अधिकृत व्यक्ति उन शर्तों का पालन करने में असफल रहा है, जिन शर्तों के अन्तर्गत उसे अधिकृत किया गया था अथवा इस अधिनियम के प्रावधानों की अवहेलना की गई है या इस अधिनियम के किसी नियम, अधिसूचना, निर्देश या जारी किए गए किसी आदेश का उल्लंघन किया गया है।

(3) इसके साथ ही किसी भी अधिकार पत्र को तब तक खण्डित या समाप्त नहीं किया जा सकता है, जब तक कि सम्बन्धित व्यक्ति को अपना पक्ष प्रस्तत करने के लिए उचित समय प्रदान न कर दिया। जाए।

रिजर्व बैंक के निर्देशों के अनरुप व्यापार (Dealings under the Directions of Reserve Bank) अधिकृत व्यक्ति, विदेशी विनिमय एवं विदेशी प्रतिभूति से सम्बन्धित प्रत्येक लेन-देन या। व्यवहार करने में उन समस्त सामान्य या विशेष निर्देशों का पालन करेगा, जो रिजर्व बैंक के विचार में उचित एवं न्याय-संगत हो तथा जिन्हें समय-समय पर उसके द्वारा जारी किया जाए तथा रिजर्व बैंक का पूर्वानुमति के बिना ऐसे किसी विदेशी विनिमय या विदेशी प्रतिभूति के लेन-देन में शामिल नहीं होगा जो उसके अधिकार-पत्र की शर्तों के अनुरुप नहीं है।

घोषणाएँ एवं सूचना माँगना (Making Declaration and Furnishing of Information) : अधिकृत व्यक्ति किसी भी व्यक्ति की ओर से विदेशी विनिमय में किसी व्यवहार का दायित्व लेने से पूर्व ऐसी सभी सूचनाएँ उस व्यक्ति द्वारा प्राप्त की जाएंगी, जिससे कि रिजर्व बैंक इस बात से स्वयं को सन्तुष्ट कर सके कि किए जाने वाले व्यवहार से इस अधिनियम, किसी नियम, नियमन, अधिसूचना, निर्देश या आदेश का उल्लंघन नहीं होगा। यदि सम्बन्धित व्यक्ति रिजर्व बैंक द्वारा माँगी गई सूचनाओं को लेने से मना करता है अथवा उसके द्वारा दिया गया उत्तर असन्तोषजनक है तो ऐसी दशा में ऐसे मामले को अधिकृत व्यक्ति द्वारा रिजर्व बैंक के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा। [धारा 10 (5)]

विदेशी विनिमय को घोषित उद्देश्यों के लिए उपयोग करने पर अधिनियम का उल्लंघन मानना (Not Making use of Foreign Exchange for Declared Purpose, to be considered as Contravention of Act) : अधिकृत व्यक्ति के अतिरिक्त कोई अन्य व्यक्ति यदि विदेशी विनिमय ग्रहण करता है या क्रय करता है तथा इस सम्बन्ध में वह अधिकृत व्यक्ति के समक्ष धारा 10 उपधारा (5) के अन्तर्गत विदेशी विनिमय का उपयोग उन उद्देश्यों के लिए नहीं कर सकता, जो उसने घोषित नहीं किए हैं।

इसके अतिरिक्त वह व्यक्ति इस प्रकार से प्राप्त या क्रय किए गए विदेशी विनिमय का प्रयोग उन उद्देश्यों के लिए भी नहीं कर सकता, जो इस अधिनियम के प्रावधानों, नियमों या विनियमों या निर्देशों या आदेशों से मेल नहीं खाते हैं। यदि वह ऐसा करता है तो यह माना जाएगा कि उसने इस अधिनियम के प्रावधानों की अवहेलना तथा उल्लंघन किया है।

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रिजर्व बैंक द्वारा अधिकृत व्यक्ति को निर्देश देने की शक्तियाँ (धारा 11)

(Reserve Bank’s Powers to Issue Direction to Authorised Person)

फेमा की धारा 11 के अन्तर्गत रिजर्व बैंक द्वारा अधिकृत व्यक्ति को निम्नलिखित से सम्बन्धित निर्देश देने का अधिकार प्राप्त है :

कोई भुगतान या कोई कार्य करने या छोड़ देने के निर्देश देने की शक्ति : रिजर्व बैंक इस अधिनियम के प्रावधानों अथवा इसके अधीन बनाये गये नियमों, विनियमों, जारी की गई अधिसूचनाओं, दिये गये निर्देशों की अनुपालना को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से अधिकृत व्यक्तियों को निम्नांकित भुगतान या कार्य करने या न करने का निर्देश दे सकता है :

(i) विदेशी विनिमय भुगतान करने के लिए, (ii) विदेशी प्रतिभूति का भुगतान करने के लिए, तथा (iii) विदेशी विनिमय या विदेशी प्रतिभूति से सम्बन्धित किसी कार्य को करने अथवा छोड़ देने के

सूचना उपलब्ध कराने के लिए निर्देश देने की शक्ति– इस अधिनियम के प्रावधानों या इसके जधान बनाये गये नियमों या विनियमों, दिये गये आदेशों-निर्देशों या जारी की गई अधिसूचना की अनुपालना को सनिश्चित करने के उद्देश्य से रिजर्व बैंक किसी भी अधिकृत व्यक्ति को वह कोई भी। सूचना, उस विधि से उपलब्ध करने का निर्देश दे सकता है जैसा वह उचित समझे लिए।

जुर्माना करने की शक्तियदि कोई अधिकत व्यक्ति रिजर्व बैंक द्वारा दिये गये किसी निर्देश का उल्लंघन करता है अथवा निर्देशित प्रतिवेदन प्रस्तत करने में त्रुटि करता है तो रिजर्व बैंक उस अधिकृत। व्यक्ति पर जुर्माना कर सकता है। रिजर्व बैंक जर्माना करने से पूर्व उस अधिकृत व्यक्ति को उसके पक्ष की सुनवायी का उचित अवसर देगा तथा दोषी पाये जाने की दशा में उस पर 10,000 ₹ तक का जुर्माना कर सकता है। यदि ऐसा उल्लंघन जारी रहता है तो उस पर 2,000 ₹ प्रतिदिन तक का अतिरिक्त जुर्माना तब तक किया जा सकता है जब तक कि ऐसा उल्लंघन जारी रहता है। [धारा 11 (3)]

अधिकृत व्यक्तियों के निरीक्षण की शक्तिरिजर्व बैंक किसी भी अधिकृत व्यक्ति के व्यवसाय का (जैसा भी वह उचित समझे) निरीक्षण करने हेतु अपने किसी भी अधिकारी को लिखित में अधिकृत कर सकता है। वह अधिकारी निम्नांकित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए निरीक्षण कर सकता है :

(i) रिजर्व बैंक को प्रस्तुत किये गये विवरणों, सूचना या विशेष विवरणों की सत्यता का सत्यापन करने हेतु।

(ii) ऐसी कोई सूचना या विवरण प्राप्त करने के लिए, जिसे माँगने के बाद भी अधिकृत व्यक्ति । ने उपलब्ध नहीं किया है।

(iii) इस अधिनियम के प्रावधानों अथवा इसके अधीन बनाये गये नियमों, विनियमों, दिये गये आदेशों, निर्देशों की अनुपालना सुनिश्चित करने के लिए।

अधिकृत व्यक्ति का निरीक्षण में सहयोग करने का कर्तव्य प्रत्येक अधिकृत व्यक्ति का तथा यदि ऐसा व्यक्ति कम्पनी या फर्म है तो उसके प्रत्येक संचालक या साझेदार या अन्य अधिकारी का यह कर्त्तव्य होगा कि वह निरीक्षण के लिए अधिकृत अधिकारी के समक्ष अधिकृत व्यक्ति से सम्बन्धित ऐसी पुस्तकें, खाते तथा अन्य प्रलेख, जो उसके अधिकार या शक्ति में हैं, को प्रस्तुत करे तथा ऐसे व्यक्ति, कम्पनी या फर्म के कार्यकलापों के सम्बन्ध में उस अधिकारी द्वारा माँगी गयी सूचना या विवरण निर्धारित समय में एवं निर्धारित विधि से प्रस्तुत करे।

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फेमा के प्रावधानों का उल्लंघन एवं दण्ड

(Contravention and Penalties)

फेमा अधिनियम के प्रावधानों, इसके अधीन बनाये गये नियमों या जारी किये गये आदेशों के उल्लंघन की दशा में दण्ड प्रावधानों का उल्लेख भी इस अधिनियम में किया गया है। फेमा के नियमों के उल्लंघन एवं दण्ड से सम्बन्धित विभिन्न प्रावधान इस प्रकार हैं

(A)आर्थिक दण्ड का भागी होना (धारा 13 के अनुसार)

(i) यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम के किसी प्रावधान, नियम, अधिसूचना, निर्देश अथवा आदेश का उल्लंघन करता है अथवा किसी शर्त का उल्लंघन करता है तो न्यायिक अधिकारी द्वारा निर्णय देने के बाद उस व्यक्ति पर उल्लंघन से सम्बन्धित राशि के तीन गनी राशि तक का जर्माना किया जा सकता है। ।

(ii) यदि उल्लंघन से सम्बन्धित राशि को मात्रात्मक रुप में प्रकट नहीं किया जा सकता तो दोषी व्यक्ति पर 2 लाख ₹ तक का जुर्माना किया जा सकता है।

(iii) यदि ऐसा उल्लंघन जारी रहता है तो उस व्यक्ति पर 5,000 ₹ प्रतिदिन तक का जुर्माना तब तक किया जा सकता है जब तक कि ऐसा उल्लंघन जारी रहता है।

(B) करेन्सी, प्रतिभूति, सम्पत्ति आदि के जब्त करने का निर्देश- न्यायिक प्राधिकारी उपर्युक्त । वर्णित उल्लंघनों की दशा में जुर्माना लगाने के अतिरिक्त ऐसे उल्लंघन से सम्बन्धित कोई करेन्सी, प्रतिभति. मद्रा या अन्य सम्पत्ति को जब्त करने का भी आदेश दे सकता है।

(C) धारित विदेशी विनिमय को भारत लाने या भारत के बाहर रखने का निर्देश- न्यायिक । अधिकारी यह निर्देश भी दे सकता है कि उल्लंघन करने वाले व्यक्ति द्वारा धारित विदेशी विनिमय या । उसके किसी भाग को भारत में लाया जायेगा अथवा भारत के बाहर ही रखा जायेगा।

न्यायिक अधिकारी के आदेशों के पालन सम्बन्धी नियम (Enforcement of Order of | Adindicating Authority) (धारा 14)- न्यायिक अधिकारी के आदेशों के पालन सम्बन्धी प्रावधान निम्नानुसार हैं

जुर्माने की राशि का भुगतान करने पर कारावास– यदि दोषी व्यक्ति जर्माने के भगतान का नोटिस प्राप्त होने के 90 दिन के भीतर जुर्माने की राशि का भुगतान नहीं करता तो उसे कारावास की। गजा टी जा सकती है। किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी अथवा कारावास की सजा का आदेश देने से पर्व न्यायिक प्राधिकारी उसे अपने समक्ष निर्धारित तिथि को उपस्थित होने का नोटिस देगा। न्यायिक प्राषिक द्वारा उस व्यक्ति को कारण बताओ नोटिस जारी करना पड़ेगा। इस नोटिस के द्वारा उससे यह पूछा जायेगा कि उसे क्यों नहीं कारावास भेज दिया जाये। न्यायिक अधिकारी निम्नांकित दशाओं में किसा मा व्यक्ति को गिरफ्तारी या कारावास के आदेश दे सकता है

यदि दोषी व्यक्ति ने जमाने की वसली को रोकने के उद्देश्य से उसके नोटिस जारी करने का बाद बेईमानी से अपनी सम्पत्ति के किसी भाग को हस्तान्तरित कर दिया है अथवा छिपा लिया है या इधर-उधर कर दिया है। __ii) यदि दोषी व्यक्ति के पास नोटिस जारी होने के समय जुर्माने की पूरी रकम या उसक बड़ भाग को चुकाने की स्थिति में होते हये भी जाने को चकाने में लापरवाही करता है या इन्कार करता है।

गिरफ्तारी के वारण्ट का निर्गमनयदि न्यायिक अधिकारी इस बात से सन्तुष्ट हो जाए कि दोषी व्यक्ति कहीं भाग जाएगा तो न्यायिक अधिकारी उस दोषी व्यक्ति की गिरफ्तारी का वारण्ट जारी कर सकता है।

गिरफ्तारी के वारण्ट को क्रियान्वित किया जाना- एक न्यायिक अधिकारी द्वारा निर्गमित गिरफ्तारी के वारण्ट का क्रियान्वयन किसी अन्य ऐसे न्यायिक अधिकारी द्वारा भी किया जा सकता है, जिसके क्षेत्राधिकार में दोषी व्यक्ति पाया जाता है।

दोषी व्यक्ति की न्यायिक अधिकारी के समक्ष उपस्थिति- गिरफ्तारी वारण्ट के आधार पर गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के 24 घण्टों के अन्दर (यात्रा में लगने वाले समय को छोड़कर) यथाशीघ्र गिरफ्तारी वारण्ट जारी करने वाले न्यायिक अधिकारी के समक्ष पेश किया जायेगा। परन्तु यदि दोषी व्यक्ति गिरफ्तारी वारण्ट में लिखी गई राशि तथा गिरफ्तारी में हुए व्ययों को गिरफ्तार करने वाले अधिकारी को चुका देता है तो ऐसा अधिकारी उसे तुरन्त छोड़ देगा।

उपस्थित होने पर दोषी व्यक्ति को कारावास भेजने से पहले कारण बताने का अवसर देना- दोषी व्यक्ति के न्यायिक अधिकारी के समक्ष उपस्थित होने पर न्यायिक अधिकारी दोषी व्यक्तिको इस बात की सुनवाई का अवसर देगा कि उसे कारावास की सजा क्यों न दे दी जाये।

अभिरक्षा में रखने या जमानत पर छोड़ने का आदेश देना- न्यायिक अधिकारी जाँच पूरी होने तक दोषी व्यक्ति को किसी अधिकारी की अभिरक्षा में रखने अथवा जमानत पर छोड़ने का आदेश दे सकता है। न्यायिक अधिकारी जमानत पर छोड़ने का आदेश तभी देता है जबकि आवश्यकता पड़ने पर दोषी व्यक्ति की उपस्थिति हेतु उसकी सन्तुष्टि के अनुरुप जमानत दे दी गई हो।

कारावास में रखने का आदेश जाँच पूरी होने एवं दोषी पाये जाने पर न्यायिक अधिकारी उस दोषी व्यक्ति को कारावास में रखने का आदेश दे सकता है। यदि न्यायिक अधिकारी दोषी व्यक्ति को कारावास में रखने का आदेश जारी नहीं करता है तो वह गिरफ्तार व्यक्ति को छोड़ने का आदेश देगा।

प्रमाणपत्र के निष्पादन में कारावास में रखे गये व्यक्ति को नजरबन्द रखना-प्रत्येक व्यक्ति जिसे प्रमाण-पत्र के निष्पादन में कारावास में रखा गया है, को निम्नांकित अवधि तक नजरबन्द या निरुद्ध (Detained) रखा जा सकता है

(i) यदि प्रमाण-पत्र की राशि एक करोड़ ₹ या अधिक की है तो तीन वर्ष तक तथा (ii) अन्य किसी भी दशा में छ: माह तक। __परन्तु ऐसे नजरबन्द या निरुद्ध व्यक्ति को कारावास अधिकारी द्वारा तब छोड़ दिया जायेगा जबकि निरुद्ध वारण्ट में उल्लिखित राशि का उसे भुगतान कर दिया जायेगा।

कारावास से छोड़ा गया व्यक्ति पुनः गिरफ्तार नहीं- यदि किसी दोषी व्यक्ति को कारावास से छोड़ दिया जाता है तो वह बकाया राशि के भुगतान के दायित्व से मुक्त नहीं हो पाएगा लेकिन उस दोषी व्याक्त को उसी प्रमाणपत्र के निष्पादन में पन: गिरफ्तार नहीं किया जा सकेगा। धारा 14 (121

गिरफ्तारी आदेश (Detention order) का निष्पादन- किसी भी व्यक्ति के विरुद्ध गिरफ्तारी नजरबन्दी आदेश को भारत में किसी भी स्थान पर निष्पादित किया जा सकता है। इसका निष्पादन अचान्वयन) ठीक उसी प्रकार किया जायेगा जैसे कि दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अधीन गिरफ्तारी वारण्ट को निष्पादित किया जाता है।

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उल्लंघन के प्रशमन या समझौते की शक्ति

(Power to Compound Contravention)

इस आधानयम के किसी प्रावधान अथवा इसके अधीन बनाये गये नियम, विनियम. दिये आदश या निर्देश के उल्लंघन का दोष (धारा 13 के अन्तर्गत) किया गया है तो ऐसा दोषी व्यक्ति उसके प्रशमन हेतु निम्नांकित को आवेदन कर सकता है :

(i) प्रवर्तन निदेशक, अथवा

(ii) केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिकृत प्रवर्तन निदेशालय के किसी अधिकारी को, अथवा (iii) केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिकृत रिजर्व बैंक के किसी अधिकारी को।

प्रवर्तन निदेशक या केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिकृत अधिकारी आवेदन प्राप्त होने के 180 दिनों के भीतर केन्द्रीय सरकार द्वारा निर्धारित रीति से किसी भी उल्लंघन का प्रशमन कर सकता है। धारा 151m

यदि किसी उल्लंघन का प्रशमन कर दिया गया है तो उल्लंघन के दोषी व्यक्ति के विरुद्ध कोर्ट। कार्यवाही प्रारम्भ नहीं की जायेगी या जारी नहीं रखी जायेगी।

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फेमा के अधीन अधिकारीगण

(Authorities Under The FEMA)

भारत में फेमा का प्रमुख उद्देश्य विदेशी व्यापार एवं भुगतान को सुविधाजनक बनाना, विदेशी पूँजी निवेश को प्रोत्साहन देना तथा विदेशी विनिमय का बेहतर प्रबन्धन करना है। फेमा के अधीन इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु निम्नलिखित अधिकारीगणों का सृजन किया गया है

(I) निर्णायक अधिकारीगण (Adjudicating Authorities)

(II) विशिष्ट निदेशक (अपील) (Special Directors (Appeals)

(III) पुनरावेदन/अपील न्यायाधिकरण (Appelate Tribunal)

(IV) प्रवर्तन निदेशालय (Directorate of Enforcement)

इनकी नियुक्तियों, शक्तियों एवं इनके आदेशों के विरुद्ध अपील का संक्षिप्त वर्णन निम्नालिखित प्रकार है

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न्यायिक प्राधिकारी की नियुक्ति एवं अधिकार (धारा 16)

(Appointment and Powers of Adjudicating Authority)

फेमा की धारा 16 के अन्तर्गत, न्यायिक प्राधिकारियों के सम्बन्ध में निम्नांकित प्रावधान किए गए हैं

न्यायिक अधिकारी की नियुक्ति (Appointment of Adjudicating Authority)केन्द्रीय सरकार राजकीय गजट में आदेश प्रकाशित करके केन्द्रीय सरकार के अधिकारियों में से जितने आवश्यक हों, उतने न्यायिक प्राधिकारियों की नियुक्ति कर सकती है।

कार्य (Functions)- केन्द्रीय सरकार द्वारा न्यायिक प्राधिकारियों की नियुक्ति निम्नलिखित कार्यों के लिए की जाएगी :

(a) फेमा की धारा 13 के अन्तर्गत उल्लंघन के आरोपी व्यक्ति के विरुद्ध निर्धारित विधि से आवश्यक जाँच करने के लिए।

(b) आरोपी पक्षकार या व्यक्ति पर जुर्माना करने से पहले उसे सुनवाई का उचित अवसर प्रदान करने के लिए।

(c) यदि किसी न्यायिक प्राधिकारी को ऐसा लगे कि कोई दोषी व्यक्ति लगाए जाने वाले जुर्माने के भगतान से बचने का प्रयास करेगा या भाग जाएगा तो ऐसी दशा में ऐसे व्यक्ति से उन शर्तों के अन्तर्गत बॉण्ड या जमानत मांगने के लिए जो वह उचित समझे

क्षेत्राधिकार (Jurisdiction)- न्यायिक प्राधिकारियों का कार्य-क्षेत्र भी केन्द्रीय सरकार सरकारी गजट में प्रकाशित आदेश में निर्धारित करेगी। लिखित शिकायत पर जाँच- कोई भी न्यायिक प्राधिकारी किसी भी प्रकार की जाँच तभी करेगा जबकि उसे केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिकृत किसी अधिकारी से लिखित में शिकायत प्राप्त होगी।

न्यायिक प्राधिकारी की शक्तियाँ– प्रत्येक न्यायिक प्राधिकारी को वें सभा न्यायिक प्राधिकारी को वे सभी शक्तियाँ प्राप्त होंगी। ल (Civil Court) को प्राप्त हैं तथा जो इस अधिनियम की धारा 28 (2) का अधीन अपील अधिकरण (Appellate Tribunal) को प्राप्त सम्बन्ध में निम्नांकित बातें भी लागू होंगी : (Appellate Tribunal) को प्राप्त हैं। इसके अतिरिक्त न्यायिक प्राधिकारा क पायक प्राधिकारी के समक्ष सभी कार्यवाहियाँ भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 193 तथा 228 के अर्थों में वैधानिक कार्यवाहियाँ मानी जायेंगी।

(ii) न्यायिक प्राधिकारी को दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 345 तथा 3404 लिए दीवानी न्यायालय माना जायेगा।

शिकायत का निपटाराप्रत्येक न्यायिक प्राधिकारी जहाँ तक सम्भव होगा, प्रत्येक शिकायत शाघ्रातिशीघ्र निपटायेगा तथा इस बात का प्रयास करेगा कि शिकायत मिलने की तिथि से एक वर्ष के भीतर शिकायत का अन्तिम निपटारा हो जाए।

लेकिन यदि शिकायत का निर्धारण एक वर्ष के भीतर नहीं किया जा सकता तो ऐसी स्थिति में न्यायिक प्राधिकारी एक निश्चित समय अन्तराल में लिखित रुप में निर्धारित अवधि के भीतर शिकायत का निपटारा न होने के कारणों को दर्ज करेगा।

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(II) विशेष निदेशक (अपील्स) को अपील (धारा 17)

(Appeal to Special Director (Appeals))

फेमा की धारा 17 के अन्तर्गत प्रावधान है कि न्यायिक प्राधिकारियों के आदेश के विरुद्ध अपील की जा सकती है। इसकी सुनवाई के लिए विशेष निदेशक (अपील्स) अपील की नियुक्ति का प्रावधान किया गया है। इस सम्बन्ध में मुख्य प्रावधान निम्नलिखित प्रकार है :

एक या अधिक विशेष निदेशक अपील की नियुक्ति (Appointment of Special Directors (Appeals)) :- केन्द्रीय सरकार अधिसूचना के द्वारा एक या अधिक विशेष निदेशकों (अपील) को नियुक्ति करेगी तथा अधिसूचना में मामलों तथा स्थानों का भी निर्धारण करेगी, जहाँ वह अपने-अपने क्षेत्राधिकार का प्रयोग कर सकेगा। विशेष निदेशक (अपील) की नियुक्ति का उद्देश्य न्यायिक प्राधिकारी द्वारा किए गए निर्णय के विरुद्ध प्रस्तुत की गई अपील की सुनवाई करना है। धारा 17 (1)]

अपील का अधिकारकोई भी सहायक प्रवर्तन निदेशक या उप प्रवर्तन निदेशक, जो किसी न्यायिकप्राधिकारी के आदेश से पीड़ित है वह विशेष निदेशक (अपील) के पास उस आदेश के विरुद्ध अपील कर सकता है।

अपील की अवधिकिसी भी आदेश के विरुद्ध अपील उस आदेश की प्रतिलिपि प्राप्त करने के 45 दिनों के भीतर की जा सकती है। अपील निर्धारित प्रारुप में, निर्धारित रीति से सत्यापित तथा निर्धारित फीस के साथ प्रस्तुत की जायेगी।

किन्तु यदि विशेष निदेशक (अपील) किसी भी अपील को 45 दिनों की अवधि के बाद भी स्वीकार कर सकता है, यदि वह इस बात से सन्तुष्ट हो कि इस निर्धारित अवधि में अपील प्रस्तुत न करने का पर्याप्त कारण था।

विशेष निदेशक (अपील) द्वारा आदेश– किसी आदेश के विरुद्ध अपील प्राप्त करने के बाद विशेष निदेशक (अपील) अपीलकर्ताओं को सुनवायी का अवसर देगा। तत्पश्चात् वह जैसा भी उचित समझे, अपील किये गये आदेश के संशोधन, समर्थन या निरस्तीकरण हेतु आदेश जारी कर देगा।

आदेश की प्रति भेजनाविशेष निदेशक (अपील) अपने आदेश की एक प्रति अपील करने वाले पक्षकारों को तथा एक प्रति सम्बन्धित न्यायिक प्राधिकारी को भेजेगा।

विशेष निदेशक (अपील) की शक्तियाँ [Powers of Special Director (Appeals)] – प्रत्येक विशेष निदेशक (अपील) को सिविल न्यायालयों के समान वे सभी अधिकार प्राप्त होंगे जो अधिकार अपील न्यायाधिकरण को धारा 28 (2) के अन्तर्गत प्रदान किए गए हैं तथा

(a) उसके समक्ष की जाने वाली समस्त कार्यवाहियों को भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 193 तथा धारा 228 के अन्तर्गत न्यायिक कार्यवाही माना जाएगा। (b) अपराध प्रक्रिया संहिता. 1973 के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उसे विशेष निदेशक (अपील) को लोक अदालत के समान माना जाएगा।

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 (III) अपील न्यायाधिकरण

(Appellate Tribunal)

फेमा के अन्तर्गत अपील अधिकरण की स्थापना का प्रावधान दिया गया है। इसके सम्बन्ध में मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं :

स्थापना (Establishment)-फेमा इस अधिनियम के अधीन अधिसूचना जारी करके अपील न्यायाधिकरण की स्थापना करेगी, जिसे विदेशी विनिमय अपील न्यायाधिकरण (Appellate Tribunal for Foreign Exchange) के नाम से जाना जाएगा तथा यह न्यायिक प्राधिकारी तथा विशेष निदेशक (अपील) के आदेशों के विरुद्ध की गई अपीलों की सुनवायी करेगा।

अपील का अधिकार– केन्द्रीय सरकार अथवा कोई भी व्यक्ति जो न्यायिक प्राधिकारी या विशेष निदेशक (अपील) के आदेश से पीडित है. अपील अधिकरण के समक्ष अपील कर सकता है।

किन्तु कोई व्यक्ति न्यायिक प्राधिकारी या विशेष निदेशक (अपील) के किसी ऐसे आदेश के विरुद्ध अपील करता है जिसमें कोई जर्माना किया गया है तो उस व्यक्ति को अपील अधिकरण के पास अपील करते समय जुर्माने की राशि केन्द्रीय सरकार द्वारा निर्धारित प्राधिकारी के पास जमा करानी पड़ेगी। का परन्तुक] किन्तु, यदि अपील अधिकरण किसी विशेष मामले में यह मत रखता हो कि अपील के समय जुर्माने की राशि जमा कराना अपीलकर्ता के लिए अनावश्यक कठिनाई उत्पन्न करेगा तो अपील अधिकरण उसे जुर्माने की राशि जमा करने की आवश्यकता से मुक्त कर सकता है। अपील अधिकरण ऐसा करते समय जुर्माने की वसूली की सुरक्षा हेतु वे सभी शर्ते भी लगा सकता है, जो वह उचित समझे।

अपील की अवधिपीड़ित पक्षकार या केन्द्रीय सरकार अपील अधिकरण के समक्ष अपील न्यायिक प्राधिकारी या विशेष निदेशक (अपील) के आदेश की प्रतिलिपि प्राप्त होने के 45 दिनों के भीतर की जा सकती है। अपील निर्धारित प्रारुप में, निर्धारित रीति से सत्यापित तथा निर्धारित फीस के साथ प्रस्तुत की जायेगी।

किन्तु अपील अधिकरण इस 45 दिन की अवधि बीतने के बाद भी अपील को स्वीकार कर सकता है, यदि वह इस बात से सन्तुष्ट हो कि उक्त अवधि में अपील नहीं करने का पर्याप्त कारण था।

आदेश जारी करनाअपील अधिकरण अपील प्राप्त करने के बाद अपीलकर्ता पक्षकारों को उचित सुनवाई का अवसर देगा। तत्पश्चात् वह जैसा भी उचित समझे, अपील किये गये आदेश के समर्थन, संशोधन या निरस्तीकरण का आदेश दे सकता है।

आदेश की प्रति भेजनाअपील अधिकरण अपने द्वारा जारी आदेश की एक प्रतिलिपि अपील के पक्षकारों को तथा एक प्रतिलिपि सम्बन्धित न्यायिक प्राधिकारी या विशेष निदेशक (अपील) को (जैसी भी स्थिति हो) भेज देगा।

आदेश की अवधिअपील अधिकरण के समक्ष प्रस्तुत अपील का यथासम्भव शीघ्रातिशीघ्र निपटारा किया जायेगा तथा इस बात का प्रयास किया जायेगा कि उस अपील का अन्तिम निपटारा अपील प्राप्त होने के एक सौ अस्सी दिनों में कर दिया जाये। परन्तु, यदि किसी अपील का निपटारा 180 दिनों में नहीं हो सकता हो तो अपील अधिकरण इसके कारणों को अभिलिखित करेगा।

न्यायिक प्राधिकारी के आदेश का परीक्षण- अपील अधिकरण न्यायिक प्राधिकारी द्वारा दिये गये आदेश की वैधता, औचित्य या सत्यता को परखने के लिए स्वत: अथवा अन्य किसी के कहने पर उसकी कार्यवाही का अभिलेख मांग सकता है तथा अन्य जो भी उचित समझे, आदेश दे सकता है।

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अपील अधिकरण का गठन

(Composition of Appellate Tribunal)

अपील अधिकरण के गठन सम्बन्धी प्रमुख प्रावधान निम्नानुसार हैं :

अपील अधिकरण का एक अध्यक्ष होगा।

इसके उतनी ही संख्या में सदस्य होंगे जितने केन्द्रीय सरकार की राय में उचित होंगे।

अपील अधिकरण के क्षेत्राधिकार का प्रयोग उसकी पीठों (Benches) द्वारा किया जा सक

किसी भी पीठ का गठन अध्यक्ष द्वारा एक या अधिक सदस्यों से किया जा सकता हो ।

अपील अधिकरण की पीठे साधारणत: नयी दिल्ली में तथा ऐसे स्थानों पर बैठेंगी जो केन्द्रीय सरकार अध्यक्ष से परामर्श कर अधिसूचित करेगी।

अपील अधिकरण की प्रत्येक पीठ के क्षेत्राधिकार की अधिसचना केन्द्रीय सरकार द्वारा जारी की जायेगी।

अपील अधिकरण का अध्यक्ष किसी भी सदस्य का एक पीठ से दूसरी पीठ में स्थानान्तरण कर सकेगा।

यदि किसी मामले की सुनवायी के दौरान अध्यक्ष या सदस्य को यह लगे कि इस मामले की सुनवायी दो सदस्यीय पीठ द्वारा की जानी चाहिए तो सदस्य द्वारा सुझाव देने पर अध्यक्ष उस मामले को ऐसी ही पीठ को अन्तरित कर सकता है।

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अध्यक्ष, सदस्य तथा विशेष निदेशक (अपील) आदि से सम्बन्धित प्रावधान

(Provisions Relating to Chairperson, Member and Special Director

योग्यता सम्बन्धी प्रावधान अध्यक्ष, सदस्य तथा विशेष निदेशक (अपील) की नियुक्ति के लिए योग्यता सम्बन्धी प्रावधान निम्नानुसार हैं :

(i) अध्यक्ष की योग्यताएं- कोई भी व्यक्ति अध्यक्ष के रुप में नियुक्त तभी किया जा सकता है जब वह किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश हो अथवा रहा हो अथवा जिला न्यायाधीश बनने की योग्यता रखता हो।

 (ii) सदस्य की योग्यताएँ- कोई भी व्यक्ति अपील अधिकरण के सदस्य के रुप में नियुक्ति के योग्य तभी माना जायेगा जबकि वह जिला न्यायालय का न्यायाधीश हो अथवा रहा हो अथवा जिला न्यायाधीश बनने की योग्यता रखता हो।

 (iii) विशेष निदेशक (अपील) की योग्यताएं- कोई भी व्यक्ति विशेष निदेशक (अपील) के रुप में नियुक्ति के योग्य तभी माना जायेगा

(a) जब वह भारतीय विधिक सेवा का सदस्य रहा हो तथा वह उस सेवा में प्रथम श्रेणी के पद को धारित कर चुका हो, अथवा

(b) जब वह भारतीय राजस्व सेवा का सदस्य रहा हो तथा वह भारत सरकार के संयुक्त सचिव के समकक्ष पद को धारित कर चुका हो।

कार्यकालकोई भी अध्यक्ष या सदस्य अपना पद ग्रहण करने के बाद पाँच वर्ष तक उस पद पर बना रहेगा। किन्तु कोई भी अध्यक्ष अपनी आयु के 65 वर्ष पूरे कर लेने के बाद तथा कोई भी सदस्य अपनी आयु के 62 वर्ष पूरे कर लेने के बाद अपने पद पर बना नहीं रह सकता। धारा (22)]

सेवा सम्बन्धी नियम शर्ते (Terms and Conditions of Service)(धारा 23)- अध्यक्ष, अन्य सदस्यों तथा विशेष निदेशक (अपील) के भत्ते तथा अन्य सेवा सम्बन्धित नियम तथा शर्ते वही होंगी, जो निर्धारित की जाए,

नियुक्ति वेतन तथा भत्ते तथा सेवा सम्बन्धी नियम तथा शर्ते ऐसी होंगी, जो उसको किसी भी प्रकार से हानि न पहुँचाए।

रिक्त पद (Vacancies) (धारा 24)- केवल अस्थाई अनुपस्थिति की दशा को छोड़कर यदि अध्यक्ष या सदस्य के कार्यालय में कोई रिक्त पद होता है तो ऐसी दशा में केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुरुप किसी दूसरे व्यक्ति को रिक्त पद पर नियुक्त कर देगी तथा अपील न्यायाधिकरण के समक्ष कार्यवाही उस स्तर से प्रारम्भ की जा सकती है, जिस स्तर पर रिक्त पद भरा गया हो।

त्यागपत्र एवं पद से हटाना (Resignation and Removal)

(i) अध्यक्ष या सदस्य केन्द्रीय सरकार को अपने हाथ से लिखित सूचना देकर अपने पद से त्याग-पत्र दे सकता है।

किन्तु अध्यक्ष या सदस्य द्वारा पद त्याग की सूचना देने के पश्चात केन्द्रीय सरकार ऐसी सूचना । प्राप्ति की तिथि से आगामी तीन माह तक उसके स्थान पर किसी अन्य व्यक्ति की व्यवस्था होने तक काल को अवधि समाप्त होने तक, जो भी पहले हो, तक अपने पद पर बने रहने का आदेश दे सकती है।

(ii) अध्यक्ष या सदस्य को उसके पद से तब तक नहीं हटाया जा सकता, जब तक कि स्वयं केन्द्र सरकार, उस जांच में र्व्यवहार अथवा अक्षमता का दोषी पाये जाने के बाद उसे पद से हटाने का आदेश न जारी कर दे किन्तु ऐसा करने से पहले केन्द्र सरकार उस अध्यक्ष या सदस्य को जांच के समय अपना पक्ष प्रस्तुत करने का उचित अवसर आवश्यक रुप से प्रदान करेगी।

कुछ दशाओं में सदस्य द्वारा अध्यक्ष के रुप में कार्य करना (Member to act as Chairperson in certain Circumstances)

(i) यदि मृत्यु, पद-त्याग या किसी अन्य कारण से अध्यक्ष का पद रिक्त हो जाता है तो ऐसी दशा में जिस तिथि तक इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार नए अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं हो जाती, तब तक सबसे वरिष्ठ सदस्य अध्यक्ष के रुप में कार्य करेगा।

(ii) यदि अनुपस्थित रहने, बीमारी के कारण या अन्य किसी कारण से अपने कार्यों का निष्पादन करन में वह असफल रहता है, तो जिस तिथि तक वह अध्यक्ष पुनः अपना कार्य-भार ग्रहण नहीं कर लेता, तब तक सबसे वरिष्ठ सदस्य अध्यक्ष के रुप में कार्य करेगा।

अपील न्यायाधिकरण के लिए कर्मचारी (Staff of Appellate Authority)(धारा 27):

(a) केन्द्रीय सरकार अपील न्यायाधिकरण तथा विशेष निदेशक (अपील) को उतनी संख्या में अधिकारी तथा कर्मचारी प्रदान करेगा, जो संख्या उसे उचित प्रतीत हो।

(b) अधिकारी एवं कर्मचारी अध्यक्ष तथा विशेष निदेशक (अपील) के निर्देशन में अपने कार्यों का निष्पादन करेंगे।

(c) अपील न्यायाधिकरण एवं विशेष निदेशक (अपील) के कार्यालय के अधिकारों एवं कर्मचारियों के वेतन व भत्ते तथा सेवा सम्बन्धित अन्य शर्ते वही होगी, जो निर्धारित की जाएँ।

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अपील न्यायाधिकरण की कार्य प्रणाली तथा शक्तियाँ

(Procedure and Powers of Appellate Tribunal)

अपील प्राधिकरण तथा विशेष निदेशक (अपील) की कार्य-प्रक्रिया एवं शक्तियों के सम्बन्ध में प्रमुख प्रावधान निम्नानुसार हैं :

न्याय के नैसर्गिक सिद्धान्तों एवं अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार कार्य प्रक्रिया- अपील अधिकरण तथा विशेष निदेशक (अपील) नागरिक दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1908 में निर्धारित प्रक्रिया का पालन करने के लिए बाध्य नहीं हैं, किन्तु वे न्याय के नैसर्गिक सिद्धान्तों (Principles of natural justice) के अनुरुप कार्य करेंगे तथा उन्हें इस अधिनियम के अन्य प्रावधानों का पालन करते हुए अपनी प्रक्रिया का नियमन करने की शक्तियाँ प्राप्त होगी।

दीवानी न्यायालय की शक्तियाँअपील न्यायाधिकरण तथा विशिष्ट निदेशक (अपील) को इस अधिनियम के अधीन अपने कार्यों के निष्पादन हेतु वही शक्तियाँ प्राप्त होंगी जो शक्तियाँ एक दीवानी-न्यायालय (civil-court) को दीवानी प्रक्रिया संहिता, 1908 (Civil Procedure Code, 1908) के अधीन, एक वाद पर कार्यवाही के दौरान निम्नलिखित तथ्यों के सम्बन्ध में प्राप्त होती हैं

(a) किसी व्यक्ति को बुलाना (जो मुकद्दमे से सम्बन्ध रखता है), उसे उपस्थित होने के लिये कहना तथा शपथ दिलाकर उसका परीक्षण करना;

(b) दस्तावेजों की खोज व उनके प्रस्तुतीकरण के सम्बन्ध में.

(c) शपथ-पत्र पर साक्ष्य प्राप्त करना, (receiving evidence on affidavits);

(d) भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (Indian Evidence Act, 1872) की धारा 123 एवं 124 के प्रावधानों के अनुसार किसी भी कार्यालय से कोई भी जनता से सम्बन्धित रिकार्ड या दस्तावेज या उस रिकार्ड या दस्तावेज की कॉपी तलब करना (requisitioning);

(e) साक्ष्यों या दस्तावेजों (witness or evidence) के परीक्षण हेतु अधिकार-पत्र जारी करना; ( इसके निर्णयों पर पुनर्विचार (review) करना; साझठे या दोषपूर्ण प्रतिनिधित्व को रद्द करना या इस पर एक-पक्षीय निर्णय देनाः

राठे या दोषपूर्ण प्रतिनिधित्व को रद्द करने से सम्बन्धित दिये गये किसी निर्णय को रद्द करना या इसके द्वारा पारित किये गये एक-पक्षीय निर्णय को रद्द करना;

अन्य कोई तथ्य, जिसका निधारण केन्द्र सरकार द्वारा किया जा सकता है।

आदेशों का क्रियान्वयन- अपील अधिकरण अथवा विशेष निदेशक (अपील) के द्वारा दिये आदेशों का क्रियान्वयन दावाना न्यायालय का डिक्रा (Decree) के समान करवाया जा सकेगा। इस व्यावसायिक नियामक ढाँचा पभ में अपील अधिकरण एवं विशेष निदेशक (अपील) को दीवानी न्यायालय की सभी शक्तियाँ होंगी।

आदेश का दीवानी न्यायालय को अन्तरण- अपील अधिकरण तथा विशेष निदेशक (अपील) अपने किसी भी आदेश को स्थानीय क्षेत्राधिकार वाले दीवानी न्यायालय को अन्तरित या प्रेषित कर सकते हैं। तब ऐसा न्यायालय उस आदेश को उसी प्रकार क्रियान्वित करेगा जैसे वह अपने द्वारा जारी की गई डिक्री को करता है।

न्यायिक कार्यवाहियाँ मानना– अपील अधिकरण तथा विशेष निदेशक (अपील) के समक्ष सभा कार्यवाहियों को भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 193 तथा 228 क अ कार्यवाहियाँ माना जायेगा। अपील अधिकरण को दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 345 तथा 346 के उद्देश्यों के लिए दीवानी न्यायालय माना जायेगा।

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अपील अधिकरण आदि से सम्बन्धित अन्य प्रावधान

(Other Provisions Relating to Appellate Tribunal etc.):

अपील अधिकरण आदि से सम्बन्धित कछ अन्य प्रावधान निम्नानुसार है

पीठो में कार्यो का वितरण (Distribution of Business amongst Benches) न्यायाधिकरण का अध्यक्ष समय-समय पर अधिसचना जारी करके अपना कार्य पीठों में वितरित करने का उचित एवं प्रभावी व्यवस्था करेगा।

मामलों का हस्तान्तरण (Transfer of Cases)- अपील न्यायाधिकरण का अध्यक्ष किसा भा पक्षकार द्वारा आवेदन दिए जाने पर एवं सूचना देकर सुनने के पश्चात अपनी इच्छा से लम्बे समय से पड़े मामलों को किसी अन्य पीठ को हस्तान्तरित कर सकेगा।

बहुमत द्वारा निर्णय (Decision to be by Majority)- किसी दो सदस्यों वाली पीठ के सदस्यों में मतभेद होने पर मतभेद के मुद्दों को अध्यक्ष के निर्देश के लिए भेजना होगा। उसके बाद या तो अध्यक्ष उन मुद्दों को स्वयं सुनवाई करेगा अथवा अपील न्यायाधिकरण के एक या दो सदस्यों को निर्देश देगा और बाद में सुनवाई करने वाले सभी सदस्यों के बहुमत से निर्णय किया जाएगा। (धारा 31)

अपीलार्थी का अधिकार (Right of Appellant)- अपील न्यायाधिकरण अथवा विशेष निदेशक (अपील) को अपील करने वाले व्यक्ति को यह अधिकार प्राप्त होता है कि वह अपने मामले को प्रस्तुत करने के लिए स्वयं अथवा उसका वकील अथवा अपने चार्टर्ड एकाउण्टेंट के साथ उपस्थित हो सकता है। केन्द्र सरकार अपने एक अथवा अधिक वकीलों, चार्टर्ड एकाउण्टेंट्स अथवा अपने किन्हीं अधिकारियों को प्रस्तुतकर्ता के रुप में अधिकृत कर सकता है।

लोक सेवक के रुप में (Members, to be Public Servants)- अध्यक्ष एवं सदस्य, विशेष निदेशक अपील तथा न्यायिक प्राधिकारी सभी भारतीय दण्ड संहिता, 1860 के अन्तर्गत लोक सेवक माने जाएंगे।

दीवानी न्यायालय का क्षेत्राधिकार नहीं- इस अधिनियम के अधीन जो मामले न्यायिक प्राधिकारी, अपील अधिकरण या विशेष निदेशक (अपील) की शक्तियों में आते हैं उनमें दीवानी न्यायालय का क्षेत्राधिकार नहीं होगा। अतः दीवानी या अन्य न्यायालय द्वारा ऐसे किसी मामले में कोई निषेधाज्ञा या कोई आदेश जारी नहीं किया जायेगा तथा किसी भी अन्य प्राधिकारी द्वारा इस अधिनियम के अधीन कोई कार्यवाही नहीं की जायेगी।

उच्च न्यायालय में अपील-कोई भी व्यक्ति जो अपील अधिकरण के आदेश से पीड़ित है वह उसके आदेश के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील कर सकता है। अपील, अपील अधिकरण के आदेश या आदेश के सम्प्रेषण के 60 दिनों के भीतर की जा सकती है। अपील, आदेश से उत्पन्न किसी कानूनी पहलू के सन्दर्भ में ही की जा सकती है।

इसके साथ ही यदि अपीलकर्ता निर्धारित अवधि में अपील प्रस्तुत नहीं कर पाता है तो उसके द्वारा समय पर अपील प्रस्तुत न कर पाने के कारणों से यदि उच्च न्यायालय सन्तष्ट हो जाता है तो वह उसे अधिकतम.60 दिन की विस्तार अवधि प्रदान कर सकता है, जिसके दौरान अपीलकर्ता उस आदेश या निर्णय के विरुद्ध अपील प्रस्तुत कर सकता है!

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IV प्रवर्तन निदेशालय

(Directorate of Enforcement)

फेमा की धारा 36 प्रवर्तन निदेशालय की स्थापना से सम्बन्धित है। इस अधिनियम के उद्देश्यों का प्राप्ति के लिए केन्द्रीय सरकार अग्र अधिकारियों की नियुक्ति कर सकती है :

(a) प्रवर्तन निदेशक (Directors of Enforcement) (b) अतिरिक्त प्रवर्तन निदेशक (Additional Directors of Enforcement) (c) विशेष प्रवर्तन निदेशक (Special Directors of Enforcement) (d) उप-प्रवर्तन निदेशक (Deputy Directors of Enforcement) (e) सहायक प्रवर्तन निदेशक (Assistant Directors of Enforcement) (D फेमा के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अन्य किसी भी श्रेणी के अधिकारी, जो सहायक प्रवर्तन

[धारा 36(1)] निदेशक से निम्न (below) स्तर का है।

नियुक्ति एवं शक्तियाँ (Appointment and Powers)- यह केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिकारियों की नियुक्ति तथा उनकी शक्तियों पर प्रकाश डालती है। यह केन्द्रीय सरकार द्वारा सहायक निदेशक स्तर से नीचे के अधिकारियों की नियुक्ति हेत प्रवर्तन निदेशालय के अन्य अधिकारियों को अधिकृत करने से सम्बन्धित है।

केन्द्रीय सरकार द्वारा लागू शर्तों तथा सीमाओं के अन्तर्गत रहते हुए प्रवर्तन निदेशालय का प्रत्येक अधिकारी अपने कर्तव्य का निर्वाह तथा शक्तियों का प्रयोग करेगा।।

उल्लंघन का अन्वेषण (Investigation of Contravention)(धारा 37)- प्रवर्तन निदेशालय के वे अन्य अधिकारी, जो सहायक अधिकारी के स्तर से निम्न स्तर के नहीं हैं, फेमा की धारा 13 के अन्तर्गत किए गए उल्लंघनों की खोज/अन्वेषण का कार्य करेंगे।

केन्द्र सरकार द्वारा उल्लंघन का अन्वेषण (Investigation of Contravention by Central Government)- केन्द्रीय सरकार अधिसूचना जारी करके केन्द्र सरकार, राज्य सरकार या रिजर्व बैंक के किसी भी अधिकारी या अधिकारियों के किसी वर्ग को (जो भारत सरकार के अपर सचिव (Under Secretary) से कम स्तर का न हो) फेमा की धारा 13 के अन्तर्गत किए गए उल्लंघन की खोज/अन्वेषण के लिए अधिकृत कर सकता है।

आयकर अधिकारियों की शक्तियों का प्रयोग (Exercising the Powers)-वे अधिकारी, जिन्हें उपधारा (1) के अन्तर्गत अधिकृत किया गया है, आयकर अधिनियम, 1961 के अधीन नियुक्त अधिकारियों की भाँति अपनी शक्तियों का प्रयोग कर सकेंगे तथा ऐसा वे फेमा के अन्तर्गत निर्धारित सीमाओं के भीतर ही करेंगे।

अन्य अधिकारियों को शक्तियाँ प्रदान करना (Empowering other Officers)-फेमा में दिए गए प्रावधानों के अन्तर्गत केन्द्रीय सरकार एक आदेश जारी करके कुछ सीमाओं और शर्तों के अन्तर्गत जो वह उचित एवं न्याय-संगत समझे, सीमा शुल्क या केन्द्रीय उत्पाद शुल्क अधिकारियों या किसी पुलिस अधिकारी या केन्द्रीय या राज्य सरकार के अधिकारी को अपने आदेश में वर्णित उन सभी शक्तियों का उपयोग करने तथा उन कर्त्तव्यों के पालन करने के लिए अधिकृत कर सकती है, जो प्रवर्तन निदेशक या अन्य किसी प्रवर्तन अधिकारी को प्राप्त होती हैं।

धारा 38 (1)] ये सभी अधिकारी उन सभी शक्तियों का उपयोग कर सकेंगे जो आयकर अधिकारी को आयकर अधिनियम में प्राप्त है। किन्तु वे उस अधिनियम में निर्धारित की गई सीमाओं में रहकर ही शक्तियों का उपयोग कर सकेंगे।

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विविध प्रावधान

(Miscellaneous Provisions)

फेमा के अन्तिम अध्याय में अनेक पहलुओं के सम्बन्ध में कछ प्रावधान दिये गये हैं जिनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित प्रकार है

1.पलेखों के सम्बन्ध में मान्यता/धारणा (Presumption as to documents)- यदि किसी व्यक्ति द्वारा कोई प्रलेख प्रस्तुत किया जायेगा अथवा उससे जब्त (Seize) किया जायेगा अथवा विधिवत प्रमाणित रुप में भारत के बाहर से प्राप्त किया जायेगा तो उसके सम्बन्ध में न्यायालय या न्यायिक प्राधिकारी द्वारा यही माना जायेगा कि उस पर किये गये हस्ताक्षर सही हैं तथा हस्तलेख उसी व्यक्ति का है। इसके अतिरिक्त यह भी माना जायेगा कि उस प्रलेख का विषय-वस्तु (Contents) भी सही हैं। यदि। वह व्यक्ति इस मान्यता को झुटलाना चाहता है तो उसे ही यह सिद्ध करना पड़ेगा कि वह प्रलेख ठीक नहीं है उस पर हस्ताक्षर झूठे हैं अथवा उस प्रलेख की विषय-वस्तु झूठी है।

फेमा के क्रियान्वयन का निलम्बन (Suspension of operation of FEMA)- यदि नप हो कि अब वे परिस्थितियाँ उत्पन्न हो गई हैं जिनमें फेमा के अधीन प्रदान की गई। केन्द्रीय सरकार सन्तुष्ट हो कि अब वे परिस्थितियाँ उत्पा अनमतियाँ बन्द करनी चाहिए अथवा लगाये गये प्रतिबन्ध हटा लेने चाहिए अथवा सरकार जनहित में

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परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 फेमा के विदेशी विनिमय के नियमन एवं प्रबन्ध सम्बन्धी प्रमुख प्रावधानों का उल्लेख कीजिए।

State the main provisions of FEMA with regard to the regulation and management of foreign exchange.

2. ‘फेमा’ के प्रावधानों, ‘फमा’ के अधीन बनाये या जारी किये गये नियमों, विनियमों, आदेशों के उल्लंघन पर दण्ड व्यवस्था स्पष्ट कीजिए। जुर्माने की राशि वसूल करने हेतु न्यायिक प्राधिकारी की शक्तियों का वर्णन कीजिए।

Explain provisions of penalty for contravention of provisions of FEMA and rules, regulations and orders made and issued under FEMA. Describe the powers of adjudicating officer regarding the collection of penalty.

3. विदेशी विनिमय प्रबन्ध अधिनियम, 1999 की स्थापना तथा इसके अधीन विभिन्न अधिकारियों की शक्तियों एवं क्रियाविधि का संक्षेप में वर्णन कीजिए।

Describe briefly the constitution, powers and procedures of different authorities under the Foreign Exchange Management Act, 1999.

4. अपील न्यायाधिकरण के गठन, क्रियाविधि तथा उसके समक्ष की जाने वाली अपीलों पर एक विस्तृत लेख लिखिए। क्या सिविल न्यायालय इस क्षेत्र में हस्तक्षेप कर सकता है ?

Write a detailed note on composition, procedure and appeals to Appellate Tribunal. Does civil court has any interference in this field ?

5. विदेशी विनिमय प्रबन्ध अधिनियम (फेमा), 1999 के उद्देश्यों व मुख्य प्रावधानों का वर्णन कीजिए

Describe the objects and various provisions of Foreign Exchange Management Act,

6. विदेशी विनिमय प्रबन्ध अधिनियम (फेमा) के अन्तर्गत अधिकृत व्यक्ति की स्थिति को स्पष्ट कीजिए।

Clarify the position of authorised person in connection with FEMA.

7. फेमा के अन्तर्गत नियमों के उल्लंघन, दण्ड व अपील सम्बन्धी नियमों को समझाइए।

Describe the rules and regulations of FEMA in connection with Contravention, Penalties and Appeal.

8. निम्नलिखित को परिभाषित कीजिए :

(अ) अधिकृत व्यक्ति

(ब) पूँजी खाता व्यवहार (स) प्रचलित मुद्रा

(द) चालू खाता व्यवहार Describe the following terms:

(a) Authorised Person

(b) Capital Account Transaction (c) Currency

(d) Current Account Transaction

9. अधिकृत व्यक्ति कोन है? इसके अधिकार-पत्र का खण्डन कब किया जा सकता है? इसके कर्तव्यों को स्पष्ट कीजिए। इसे निर्देश देने तथा इसका निरीक्षण करने सम्बन्धी रिजर्व बैंक की शक्तियों का वर्णन कीजिए।

Who is an authorised person ? When the authorisation letter of him may be revoked? Explain his duties. Describe powers of the RBI with regard to issue of directions to him and inspection of him.

10. न्यायिक अधिकारी तथा विशेष निदेशक (अपील) के आदेशों के विरुद्ध अपील सम्बन्धी प्रावधानों। एवं प्रक्रिया का उल्लेख कीजिए।

Describe the procedure and provisions of appeal against the orders of adjudicating officer and special director (appeals).

11. पूँजी खाता व्यवहार से सम्बन्धित प्रावधानों की व्याख्या करो। कौन-से पूँजी खाता व्यवहार निषेधित है?

Explain provisions regarding Capital Account Transactions. Which Capital Account transactions are prohibited ?

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लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 फेमा से आप क्या समझते हैं ? इसके प्रमुख उद्देश्य बताइए।

What to you understand by FEMA? Discuss its objectives.

2. पूँजी खाता लेन-देन से क्या आशय है?

What is meant by Current Account Transactions?

3. चालू खाता लेन-देन से क्या आशय है?

What is meant by Current Account Transactions?

4. अधिकृत व्यक्ति से क्या आशय है ?

What is meant by an Authorised Person ?

5. भारत में निवासी व्यक्ति को परिभाषित करें।

Define person resident in India.

6. विदेशी विनिमय एवं प्रतिमूतियों के लेन-देन सम्बन्धी प्रावधान क्या हैं ?

What are the provisions as to transactions in foreign exchange and security ?

7. माल या सेवाओं के निर्यात से सम्बन्धित प्रावधान क्या हैं ?

What are the provisions as to Export of Goods and Services ?

8. विदेशी विनिमय की वसूली से सम्बन्धित प्रावधान क्या है ?

What are the provisions as to Realisation of Foreign Exchange?

9. रिजर्व बैंक द्वारा अधिकृत व्यक्तियों को दिशा-निर्देश देने की शक्तियाँ क्या हैं ?

What are Reserve Bank’s Powers to issue Direction to Authorised Persons ?

10. रिजर्व बैंक द्वारा अधिकृत व्यक्ति के निरीक्षण की शक्तियाँ क्या हैं ?

What are the powers of the Reserve Bank to Inspect Authorised Persons?

11. प्रवर्तन निदेशालय क्या है ?

What is the Directorate of Enforcement?

12. अपील न्यायाधिकरण का गठन कैसे होता है ?

How composition of the Appellate Tribunal takes place?

13. अध्यक्ष, सदस्य तथा विशेष निदेशक (अपील) की नियुक्ति हेतु योग्यताएँ क्या हैं ?

What are the Qualifications for the appointment of Chairman, Member, and Special Director (Appeals)?

14. फेमा के उल्लंघन तथा दण्ड से सम्बन्धित प्रावधान बताइए।

Explain the provisions as to contravention and penalties of FEMA.

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chetansati

Admin

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