BCom 1st Year Environment Foreign Trade Economic Development Study Material Notes in Hindi

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Foreign Trade Economic Development
Foreign Trade Economic Development

BCom 1st Year Unites Nations Conference Trade Development Study Material Notes in Hindi

विदेशी व्यापार एवं आर्थिक विकास

[FOREIGN TRADE AND ECONOMIC DEVELOPMENT]

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

(HISTORICAL BACKGROUND)

क्लासिकल तथा नव-क्लासिकल अर्थशास्त्रियों की यह धारणा थी कि विदेशी व्यापार देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान कर सकता है। रॉबर्टसन (D.H. Robertson) ने विदेशी व्यापार को ‘विकास का इंजिन’ (Engine of Growth’) कहा। इस विचारधारा के आलोचक भी रहे हैं। आलोचकों का कहना है कि अनेक निर्धन देशों के विकास के इतिहास को देखने से पता चलता है कि विदेशी व्यापार में यथेष्ट वृद्धि के बावजूद भी घरेलू आर्थिक विकास की गति अत्यन्त धीमी रही है। 1990 के दशक के आखिरी भाग में लिखते हुए सैम्युलसन तथा नारडस का कहना है कि विदेशी व्यापार का राष्ट्रीय आय पर वही प्रभाव पड़ता है जो प्रभाव निवेश या लोक व्यय का पड़ता है। विदेशी व्यापार गुणक राष्ट्रीय आय पर पड़ने वाले प्रभाव को मापता है। उपर्युक्त विचारों की अब हम विस्तार से जांच करेंगे।

विदेशी व्यापार आर्थिक विकास का सहायक

विदेशी व्यापार निम्न प्रकार से आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करता है :

(1) जे. एस. मिल ने आर्थिक विकास के सन्दर्भ में विदेशी व्यापार के लाभ को दो वर्गों में बांटा है, यथा, प्रत्यक्ष आर्थिक लाभ (direct economic advantage) तथा परोक्ष आर्थिक लाभ (indirect economic advantage)। मिल के अनुसार परोक्ष लाभ प्रत्यक्ष लाभ की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण हैं।

() प्रत्यक्ष लाभ की विवेचना करते हुए मिल का कहना है कि विदेशी व्यापार के कारण विश्व के उत्पादन साधनों की अधिक कार्यकुशल (more efficient) नियुक्ति होती है। यह क्लासिकल तुलनात्मक लाभ सिद्धान्त पर आधारित है। विदेशी व्यापार की स्थिति में प्रत्येक देश में उत्पादक साधन उन्हीं वस्तुओं के उत्पादन में लगता है जिनमें उस देश को तुलनात्मक लाभ प्राप्त है। जब कोई देश उन्हीं वस्तुओं के उत्पादन में विशिष्टीकरण (specialisation) हासिल करता है जिनमें उसे तुलनात्मक लाभ प्राप्त है तथा अन्तर्राष्ट्रीय विनिमय दर पर व्यापार करता है, उसकी वास्तविक आय में वृद्धि होती है। आय में वृद्धि होने पर इस देश में पूंजी संचय में भी वृद्धि होती है तथा आर्थिक वृद्धि की दर बढ़ जाती है।

() परोक्ष लाभ-(a) विदेशी व्यापार का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण परोक्ष लाभ यह है कि बाजार का विस्तार होता है। उत्पादनकर्ता केवल घरेलू बाजार में ही अपनी वस्तु को नहीं बेचता है, बल्कि विदेशी बाजार में भी। विस्तृत बाजार में बेचने के कारण उत्पादन की प्रक्रिया में सुधार होता है श्रम विभाजन का अधिक सक्ष्म होना. मशीन का अधिक समय तक उपयोग होना, आविष्कार तथा उत्पादन प्रक्रिया में सुधार, आदि।

(b) दूसरा लाभ वह है जो अधिक विकास के प्रारम्भिक चरण में प्राप्त होता है। इस चरण में लोग निष्क्रिय. आलसी तथा अविकसित रुचि के हो सकते हैं। उनकी इच्छाएं या तो पूर्ण रूप से सन्तुष्ट होती है। या पर्णरूप से अविकसित। इच्छा के अभाव में वे अपनी उत्पादक शक्ति का पूर्ण उपयोग नहीं कर पाते हैं। टिभी व्यापार के परिणामस्वरूप उन्हें नई वस्तुओं से परिचय होता है, नई वस्तुओं को पाने का आकर्षण बढ़ता है और नई आकांक्षाओं का जन्म होता है। ऐसी आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए औद्योगिक क्रान्ति होती है. अधिक बचत करने की इच्छा होती है तथा पंजी संचय बढ़ता है। इन सबसे आर्थिक विकास को प्रोत्साहन मिलता है।

(c) मिल का कहना है कि विदेशी व्यापार निर्धन देशों के आर्थिक विकास को दो तरह से सहायता करता है। प्रथम, उन्नत विदेशी तकनीक का आयात किया जा सकता है। इससे पूंजी तथा श्रम की उत्पादकता में वृद्धि होगी। दूसरे, विदेशी पूंजी का आयात सम्भव है। इससे निवेश केवल घरेलू बचत पर ही निर्भर नहीं करेगा। अतः कुल निवेश घरेलू बचत पर आधारित निवेश तथा विदेशी पूंजी (निवेश) का योग होता है। अधिक निवेश का अर्थ है आर्थिक वृद्धि की ऊंची दर।।

(2) क्लासिकल अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार सिद्धान्त के आधार पर ला मिण्ट (Hla Myint) ने आर्थिक विकास पर अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रभाव को तीन तरह से व्यक्त किया है ।

() अतिरेक का निकास (Vent for surplus)-अतिरिक्त उत्पादन अर्थात् घरेलू बाजार में जो वस्तु नहीं बिक पाती है तथा अतिरेक (surplus) के रूप में भण्डार में जमा हो जाता है उसे विदेशी व्यापार के माध्यम से विदेशी बाजार में बेचा जा सकता है। इस प्रकार घरेलू बाजार की क्षमता से अधिक उत्पादन सम्भव

है।

() स्थैतिक तुलनात्मक लागतयदि उत्पादक साधनों की मात्रा को स्थिर मान लें, तो स्थैतिक तुलनात्मक लागत के सिद्धान्त के अनुसार, तकनीकी उन्नति की अनुपस्थिति में भी, प्रत्येक देश उन्हीं वस्तुओं का उत्पादन करता है जिनके उत्पादन में उसे न्यूनतम लागत वहन करनी पड़ती है। इससे बन्द अर्थव्यवस्था की तुलना में सभी देशों में वस्तुओं का अधिक उत्पादन होगा।

() गतिशील अर्थव्यवस्था को लें जहां उत्पादक साधनों का परिमाण स्थिर नहीं रहता है तथा तकनीक भी स्थिर नहीं रहती है, बल्कि दोनों में सुधार सम्भव है। मिण्ट का कहना है कि गतिशील अर्थव्यवस्था में विदेशी व्यापार आर्थिक विकास निम्न प्रकार से प्रेरित करता है :

  • बाजार के क्षेत्र का विस्तार करके;
  • श्रम विभाजन के क्षेत्र में विस्तार;
  • मशीनरी का अधिक उपयोग;
  • नव प्रवर्तन की प्रेरणा
  • तकनीकी अविभाज्यता की कठिनाइयों को दूर करके;
  • श्रम की उत्पादकता में वृद्धिः
  • बड़े पैमाने पर उत्पादन की सम्भावना के कारण उत्पत्ति वृद्धि नियम का लागू होना तथा आर्थिक विकास।

इन लाभों की तुलना मिल द्वारा वर्णित परोक्ष प्रभावों से की जा सकती है।

(a) विकास प्रक्रिया को पूर्ति पक्ष से देखें। विदेशी व्यापार निर्धन देशों को अभावों (shortages) को समाप्त करने का अवसर देता है। इसमें घरेलू बाजार के छोटे आकार से उत्पन्न गैर-मितव्ययता खत्म हो जाएगी। यह पूंजी वस्तुओं तथा सामग्री को आयात करने का अवसर प्रदान करता है जिनकी जरूरत विकास उद्देश्यों को पूरा करने के लिए होती है।

(b) भौतिक वस्तुओं के आयात से भी अधिक महत्वपूर्ण बात विदेशी व्यापार का शैक्षणिक प्रभाव (Educative Effect) है। विकास के लिए भौतिक वस्तुओं से भी बड़ा बाधक ज्ञान (Knowledge) की कमी है। विकसित देशों के साथ सम्बन्ध होने से यह कमी शीघ्र ही दूर हो सकती है। तकनीकी ज्ञान तथा कौशल का आयात तकनीकी प्रगति का एक अपरिहार्य माध्यम है तथा विचारों का आयात विकास के लिए। एक महत्वपूर्ण प्रेरणा।

विकसित देशों की सफलताओं तथा असफलताओं से सीख ग्रहण करने का अवसर प्रदान करके तथा। चयनात्मक ढंग से ऋण लेने तथा अपने को ढालने की सविधा प्रदान करके विदेशी व्यापार निधन दशा का आर्थिक विकास की गति को काफी तेज कर सकता है।

(iv) हेबरलर (Haberler) का कहना है कि चार तरीकों से विदेशी व्यापार विकासशील देशों की गतिशील लाभ पहुंचाता है। गतिशील लाभ का अर्थ यह है कि उत्पत्ति सम्भावना वक्र (Production possibility curve) ऊपर की ओर तथा बाहर हटता जाता है, जैसा संलग्न चित्र में दिखाया गया है। चित्र में PP उत्पत्ति सम्भावना है तथा PP एवं P”P” इस वक्र का ऊपर की ओर और बाहर हटना दिखाते हैं। इसके निम्न चार तरीके हैं :

() विदेशी व्यापार के कारण पूंजी वस्तुओं, मशीनरी, कच्ची सामग्री तथा मध्यवर्ती वस्तुओं का प्रावधान। उत्पत्ति संभावना

() विदेशी व्यापार के कारण तकनीकी ज्ञान, कौशल, प्रबन्धकीय प्रवीणता तथासाहस (entrepreneurship) का आगमन।

() अन्तर्राष्ट्रीय निवेश के माध्यम से पूंजी की प्राप्ति।

() प्रतिस्पर्धा का प्रेरणात्मक प्रभाव।

विदेशी व्यापार का आर्थिक विकास पर प्रभाव : आलोचना

विदेशी व्यापार के जिस अनुकूल प्रभाव की ऊपर विवेचना की गई उसका सम्बन्ध इस बात से है कि क्या हो सकता है या क्या होना चाहिए। निश्चित रूप से हम नहीं कह सकते हैं कि ऐसा ही हुआ है या ऐसा ही होगा। अनेक निर्धन देशों के ऐतिहासिक अनुभव से पता चलता है कि उनके विदेशी व्यापार में पर्याप्त वृद्धि हुई, किन्तु उनके घरेलू विकास की दर अत्यन्त धीमी थी। ऐसा क्यों हुआ है?

यह सही है कि आज के अनेक विकसित देशों के आर्थिक विकास की गति विदेशी व्यापार के कारण ही तेज हुई। ब्रिटेन का विकास ऊनी और सूती कपड़ों के निर्यात से, स्वीडेन का टिम्बर के निर्यात से. डेनमार्क का डेयरी उत्पाद से, कनाडा का गेहूं निर्यात से, ऑस्ट्रेलिया का गेहूं और ऊन से, स्विट्जरलैण्ड का लेस-निर्माण और घड़ी-निर्माण से; जापान का विकास रेशम के निर्यात से। किन्तु ऐसे भी उदाहरण हैं जहां विदेशी व्यापार के विस्तार के बावजूद वे देश आज भी निर्धन हैं।

गुन्नार मिर्डल (G. Myrdal) का कहना है कि बाजार शक्तियों का संचयी प्रभाव यह होता है कि अन्तर्राष्ट्रीय असमानता बढ़ती है। जब दो देशों, जिनमें एक औद्योगिक तथा दूसरा अविकसित होता है, के मध्य अबाधित व्यापार होता है तो इसका स्वाभाविक परिणाम यही होता है कि अविकसित देश निर्धनता तथा गतिहीनता की ओर जाता है। इसके तीन कारण हैं :

  • अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर साधनों (पूंजी) के आवागमन (movement) का प्रतिकूल प्रभाव। विदेशी पूंजी के अन्तःप्रवाह ने केवल निर्यात के लिए घरेलू प्राकृतिक साधनों का उपभोग किया है। घरेलू क्षेत्र के लिए उत्पादन पर ध्यान नहीं दिया।
  • अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन-प्रभाव’ (demonstration effect) क्रियाशील रहा है जिससे विदेशी वस्तुओं की मांग बढ़ी। इसे आयात द्वारा पूरा करने की कोशिश की गई।
  • व्यापार शर्त (term of trade) में लगातार गिरावट आई जिससे निर्धन देशों को नुकसान हुआ क्योंकि इससे इन देशों की प्रतियोगिता करने की शक्ति कमजोर पड़ जाती है।

मार्क्सवादी लेखकों का कहना है कि विदेशी व्यापार से निर्धन देशों का शोषण होता है। विश्व दो तरह के देशों में बंट जाता है। विकसित देशों में निर्मित वस्तुओं का उत्पादन होता है तथा निर्धन देश कृषि वस्तुओं का उत्पादन करने वाले देश बन कर रह जाते हैं। निर्धन देशों को जब से आजादी प्राप्त हुई है, यह स्थिति बदल गई है।

निष्कर्ष विदेशी व्यापार आर्थिक विकास का बाधक नहीं है। यह विदेशी निवेश तथा टेक्नोलॉजी का स्रोत है। आर्थिक विकास में इनके महत्व को कम करके आंका नहीं जा सकता है।

प्रश्न

1 विदेशी व्यापार की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि बताइए।

2. विदेशी व्यापार आर्थिक विकास का किस प्रकार सहायक है? समझाइए।

Foreign Trade Economic Development

chetansati

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