BCom 2nd year Formation Company Incorporation Commencement business Study Material Notes In Hindi
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BCom 2nd year Formation Company Incorporation Commencement business Study Material Notes In Hindi: Incorporation of a Company Certificate or Incorporation Certificate of Incorporation A Conclusive Evidence Capital Subscription Commencement of Business Important Examination Questions Long Answer Questions Short Answer Questions :
BCom 2nd Year Corporate Company Legislation India An Introduction Study Material Notes in Hindi
कम्पनी का निर्माण–समामेलन एवं व्यापार का प्रारम्भ
(Formation of a company: Incorporation and Commencement of Business)
किसी कम्पनी की स्थापना से व्यवसाय प्रारम्भ करने तक पूर्ण की जाने वाली सम्पूर्ण प्रक्रिया को। निम्नांकित दो भागों में बाँटा जा सकता है
(1) कम्पनी का समामेलन,
(II) कम्पनी द्वारा व्यवसाय प्रारम्भ करना
(I) कम्पनी का समामेलन |धारा 7]
(Incorporation of A Company)
कम्पनी के निर्माण से आशय प्रवर्तकों अथवा संस्थापकों द्वारा कुछ ऐसी वैधानिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने से है जिनके फलस्वरूप कम्पनी अस्तित्व में आती है। कम्पनी का निर्माण उसके समामेलन से होता है अर्थात् समामेलन के बाद ही कम्पनी अस्तित्व में आती है। कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 3 के अधीन कोई भी सात या अधिक व्यक्ति (निजी कम्पनी की दशा में कोई भी दो या अधिक व्यक्ति तथा एक व्यक्ति कम्पनी की दशा में एक व्यक्ति) किसी वैक उद्देश्य हेतु संगठित होकर, सीमा-नियम में अपने नाम का उल्लेख करके एवं इस अधिनियम के अधीन निर्धारित पंजीकरण सम्बन्धी अन्य औपचारिकताओं का निर्वाह करके एक ‘समामेलित कम्पनी’ का गठन कर सकते हैं। कम्पनी का समामेलन कराने के लिए कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 7 के अनुसार निम्नलिखित क्रिया-विधि अपनाई जाती है
1 प्रपत्र आदि फाइल करना (Filing of Documents etc.)—उस रजिस्ट्रार के यहाँ, जिसके अधिकार क्षेत्र में कम्पनी का कार्यालय स्थापित किया जाना प्रस्तावित है, निम्नलिखित प्रपत्र व सूचना पंजीकरण के लिए देनी आवश्यक होगी
(i) सीमा नियम के अभिदाताओं द्वारा हस्ताक्षरित कम्पनी के पार्षद सीमा नियम व अन्तर्नियम-पार्षद सीमा नियम के सभी अभिदाताओं द्वारा उस ढंग से यथाविधि हस्ताक्षरित जो निर्धारित किया जाये;
(ii) अधिवक्ता आदि द्वारा घोषणा–एक अधिवक्ता (advocate), चार्टर्ड एकाउण्टेन्ट, लागत लेखाकार या पेशेवर कम्पनी सचिव द्वारा निर्धारित प्रारूप में घोषणा, जिसे कम्पनी के निर्माण के लिए नियुक्त किया गया है, और एक व्यक्ति द्वारा, जिसका कम्पनी के अन्तर्नियम में निदेशक, प्रबन्धक या सचिव के रूप में नाम दिया गया हैं, कि इस अधिनियम और इसके अन्तर्गत बनाये गये नियमों की कम्पनी के पंजीकरण और उससे पूर्व और प्रासंगिक विषयों के सम्बन्ध में सभी आवश्यकताओं का अनुपालन कर लिया गया है;
(iii) अभिदाताओं द्वारा शपथ–पत्र (Affidavit by Subscribers to Memorandum)-पार्षद सीमा नियम के प्रत्येक अभिदाता और उन व्यक्तियों से जिनके नाम प्रथम निदेशक के रूप में कम्पनी के अन्तर्नियम में दिये गये हैं एक शपथ-पत्र (Affidavit) कि उसे किसी कम्पनी के प्रवर्तन, निर्माण या प्रबन्ध में किसी अपराध के लिए दण्डित नहीं किया गया था या इस अधिनियम या पिछले कम्पनी कानून
अन्तर्गत पिछले 5 वर्षों की अवधि में (उन्हें) दोषी नहीं पाया गया था और कम्पनी के पंजीकरण के लिए रजिस्टार के यहाँ फाइल किये गये सभी प्रपत्रों में दी गई सूचना उसी सर्वोत्तम जानकारी और विश्वास के साथ सत्य और पूर्ण है;
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(iv) कम्पनी का पता (Address of the Company)-पत्र-व्यवहार के लिए पता जब तक पंजीकृत कार्यालय स्थापित किया जाये;
(v) सीमा नियम के अभिदाताओं के नाम का विवरण-उप-नाम या पारिवारिक नाम सहित घर का पता. राष्टीयता और पार्षद सीमा नियम के प्रत्येक और पार्षद सीमा नियम के प्रत्येक अभिदाता का अन्य ऐसा विवरण जो निर्दिष्ट किया। के साथ जैसा निर्दिष्ट किया जाये और उस दशा में जहाँ अभिदाता एक निगमित जाये, पहचान के साक्ष्य के साथ जैसा निर्दिश किया निकाय (Body Corporate) है ऐसा विवरण जो निर्दिष्ट किया जाये.
शकों के नाम व पते-अन्तर्नियमों में उल्लिखित प्रथम निदेशकों के नाम, उपनाम होशाक पहचान संख्या, घर का पता, राष्ट्रीयता और अन्य विवरण पहचान के
(vi) प्रथम निदेशकों के नाम व पते-अन्तर्नियो या पारिवारिक नाम सहित निदेशक पहचान संख्या घर कम्पनी सन्नियम साक्ष्य के सहित, जैसा निर्दिष्ट हो; एवं का विवरण (Particulars of Interest) अन्य फर्मों या निगमित निकायों में उन व्यक्तियों के हित का विवरण जिनके नाम कम्पनी के अन्तर्नियम में प्रथम निदेशकों के रूप मादय हुए है, कम्पनी के निदेशक के रूप में कार्य करने की सहमति के साथ जो निर्धारित ढंग से होगी। ।
2. समामेलन का प्रमाण–पत्र जारी करना (Issue of Certificate of Incorporation)-रजिस्ट्रार, प्रपत्रों और उप-धारा (1) में सन्दर्भित सूचना के आधार पर सभी प्रपत्रों को रजिस्टर में पजीकृत करेगा और निर्धारित प्रारूप में समामेलन का प्रमाण-पत्र इस आशय से जारा करगा कि प्रस्तावित कम्पनी इस अधिनियम के अन्तर्गत निगमित या समामेलित हो गई है।
3. कम्पनी की निगमित पहचान संख्या (Corporate Identity Number) उप-धारा (2) का अन्तर्गत जारी समामेलन के प्रमाण-पत्र में निर्दिष्ट तिथि को व तिथि से रजिस्ट्रार कम्पनी को निगमित पहचान संख्या (Corporate Identity Number) आबण्टित करेगा जो कम्पनी की अलग पहचान होगी। और जो प्रमाण-पत्र में दर्शायी जायेगी।
4. प्रपत्रा आदि को सुरक्षित रखना (Safety of Documents) कम्पनी अपने पंजीकृत कार्यालय पर सभी प्रपत्रों और सूचना की प्रतियाँ सुरक्षित रखेंगी, जैसे उप-धारा (1) के अन्तर्गत मूल रूप से फाइल की गई थी जब तक इसका समापन न हो जाए।
5. झूठा या गलत विवरण देने पर दण्ड–यदि कोई व्यक्ति कम्पनी के पंजीकरण के सम्बन्ध में रजिस्ट्रार के पास फाइल किये गये प्रपत्रों में किसी सुचना का झुठा या गलत विवरण देता है, या किसी महत्त्वपूर्ण सूचना को छिपाता है जिसकी उसे जानकारी है, तो उसके विरुद्ध धारा 447 के अन्तर्गत कार्यवाही की जायेगी।
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समामेलन या निगमन का प्रमाण–पत्र [धारा 7 (2)]
(Certificate of Incorporation)
कम्पनी के रजिस्ट्रेशन के बाद रजिस्ट्रार अपने हस्ताक्षर तथा कार्यालय की सील के अन्तर्गत फार्म INC-II में एक प्रमाण-पत्र जारी करता है जिसे ‘समामेलन का प्रमाण-पत्र’ कहा जाता है। इसमें यह लिखा रहता है कि कम्पनी समामेलित हो गयी है और सीमित दायित्व वाली कम्पनियों की दशा में वह यह भी लिखता है कि यह सीमित दायित्व वाली कम्पनी है। वर्तमान में जारी किये जाने वाले समामेलन प्रमाण-पत्र पर कम्पनी की निगमित पहचान संख्या (CIN) भी अंकित की जाती है।
कम्पनी के समामेलन के प्रमाण–पत्र का नमूना
क्रमांक ……………………………………….
कम्पनी की पहचान संख्या ……………………………
मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि …….……………………… ……… (कम्पनी का नाम) सीमित/ निजी सीमित* का आज (तिथि) कम्पनी अधिनियम, 2013 के अन्तर्गत समामेलन हो गया है और इसका दायित्व सीमित/असीमित है।
स्थान : ……
तिथि:
हस्ताक्षर
रजिस्ट्रार
जो लागू न हो
काट दिया जाये
समामेलन के प्रमाण–पत्र का प्रभाव (Effect of Certificate of Incorporation) [धारा 9_समामेलन के प्रमाण-पत्र में आकत ताथ स पाषद सामा नियम के अभिदाता. और अन्य सभी व्यक्ति जो समय-समय पर कम्पनी के सदस्य बन जाते हैं, सीमा नियम में संस्था बन जायेंगे और इस अधिनियम के अन्तर्गत एक निगमित कम्पनी के सभी हो जायेंगे जिनका शाश्वत अस्तित्व होगा, एक सावमुद्रा के साथ सम्पत्ति चल-अचल मत व आपसे धारण व विक्रय करने के अधिकार के साथ, अनुबन्ध और उक्त नाम से मुकदमा करने और अपने पर मुकदमा चलवाने के लिए योग्य हो जायेंगे। संक्षेप में, के लिए योग्य हो जायेंगे। संक्षेप में, समामेलन प्रमाण-पत्र के निम्नलिखित प्रभाव हैं ।
(1) कम्पनी एक समामेलित संस्था बन जाती है-समामेलन प्रमाण-पत्र में लिखित तिथि से। कम्पनी पार्षद सीमानियम में उल्लिखित नाम की एक समामेलित संस्था हो जाती है और यह संस्था समामेलित कम्पनी के रूप में कार्य कर सकती है। इतना ही नहीं ऐसी समामेलित संस्था का स्थायी अस्तित्व एवं इसकी सार्वमुद्रा (Common Seal) होती है। दिनांक 29.5.2015 से सार्वमुद्रा की अनिवार्यता समाप्त कर दी गई है।
(2) कम्पनी के अस्तित्व की तिथि समामेलन के प्रमाण-पत्र की तिथि से शुरू होना-कम्पनी उसी तारीख से अस्तित्व में आयी हुई मानी जाती है, जिस दिन से समामेलन का प्रमाण-पत्र दिया जाता है और समामेलन की तिथि के पूरे दिन से उसका अस्तित्व माना जाता है चाहे कितने ही बजे समामेलन का पत्र निर्गमित किया गया हो। उदाहरण के लिए, यदि कम्पनी के समामेलन के प्रमाण-पत्र को 2 बजे दोपहर में निर्गमित किया गया है तो कम्पनी उस दिन प्रात: काल से ही समामेलित मानी जायेगी। उस दिन 2 बजे से पूर्व किये गये अनुबन्धों को इस आधार पर निरस्त नहीं किया जा सकता कि उस समय कम्पनी का अस्तित्व नहीं था।
(3) कम्पनी का स्थायी अस्तित्व होना–समामेलन के बाद कम्पनी का अस्तित्व स्थायी हो जाता है। किसी भी सदस्य की मृत्यु होने से या दिवालिया होने से कम्पनी का समापन नहीं होता है।
(4) कम्पनी का पृथक् अस्तित्व–कम्पनी का अस्तित्व अपने सदस्यों से पृथक् होता है अर्थात् कम्पनी अपने सदस्यों पर वाद प्रस्तुत कर सकती है और कम्पनी के सदस्य कम्पनी पर वाद प्रस्तुत कर सकते हैं।
(5) कम्पनी और सदस्यों के मध्य अनुबन्ध का होना-समामेलन होते ही कम्पनी पार्षद सीमानियम तथा पार्षद अन्तर्नियम कम्पनी तथा इसके सदस्यों को इस प्रकार से बाध्य करते हैं जैसे कि इन प्रपत्रों को कम्पनी तथा प्रत्येक सदस्य ने हस्ताक्षरित किया हो अर्थात् वे प्रपत्र कम्पनी तथा सदस्य दोनों पर ही लागू होते हैं।
(6) समामेलन के बाद कम्पनी को एक वैधानिक व्यक्ति माना जाना-रजिस्ट्रेशन के बाद एक कम्पनी वैधानिक व्यक्ति बन जाती है और कम्पनी अपनी सार्वमुद्रा के अधीन एक व्यक्ति की भाँति कार्य करती है।
(7) पार्षद सीमानियम तथा पार्षद अन्तर्नियमों के अन्तर्गत सदस्यों द्वारा देय धन कम्पनी के ऋण की भाँति माना जाना-सदस्यों द्वारा पार्षद सीमानियम तथा पार्षद अन्तर्नियमों के अन्तर्गत कम्पनी को देय धनराशि इस तरह समझी जाती है जैसे कि कम्पनी का सदस्यों पर ऋण हो।
(8) वाद प्रस्तुत करने का अधिकार–समामेलन के बाद कम्पनी दूसरे पक्षों पर वाद प्रस्तुत कर सकती है और दूसरे पक्ष कम्पनी पर वाद प्रस्तुत कर सकते हैं।
(9) समामेलन से पूर्व के अनुबन्ध–समामेलन से पहले किये गये अनुबन्धों के लिए कम्पनी तब तक बाध्य नहीं होती जब तक कि समामेलन के पश्चात् कम्पनी द्वारा इस सम्बन्ध में नये अनुबन्ध नहीं कर लिये जाते।
(10) लेनदारों पर प्रभाव–कम्पनी का समामेलन हो जाने के पश्चात् लेनदार अपनी धनराशि प्राप्त करने के लिए कम्पनी के विरुद्ध वाद प्रस्तुत कर सकते हैं।
यह उल्लेखनीय है कि एक बार समामेलन प्रमाण-पत्र निर्गमित करने के पश्चात् समामेलन के प्रमाण-पत्र को रद्द नहीं किया जा सकता। हाँ, कम्पनी अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार कम्पनी का समापन अवश्य सम्भव है।
समामेलन प्रमाण–पत्र–एक निश्चयात्मक प्रमाण
(Certificate of Incorporation-A Conclusive Evidence)
समामेलन प्रमाण-पत्र इस बात का एक निश्चयात्मक प्रमाण है कि कम्पनी के निर्माण में कम्पनी द्वारा सभी कानूनी औपचारिकताओं का अनुपालन यथाविधि कर लिया गया है। इसके बाद कम्पनी का अपने सदस्यों से पृथक् अस्तित्व हो जाता है। एक बार प्रमाण-पत्र जारी कर दिया जाये तो इसकी वैधता पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता चाहे बाद में पता लगने कि सीमानियम पर हस्ताक्षर करने वाले सभी अभिदाता, शिशु (Infants) थे या उनके हस्ताक्षर जाली थे।
इस प्रकार से मूसा गुलाम आरिफ बनाम इब्राहिम गुलाम ऑरिफन, 40 कलकत्ता। (P.C.), पार्षद सीमा नियम पर दो व्यस्कों एवं अन्य 5 सदस्यों के हस्ताक्षर अभिभावक ने कर दिये थे। ये 5 सदस्य उस समय अवयस्क थे और अभिभावक ने प्रत्येक अवयस्क के हस्ताक्षर किये थे, परन्तु रजिस्ट्रार
कम्पनी सन्नियम ने कम्पनी का पंजीकरण करके समामेलन प्रमाण-पत्र जारी कर दिया। वादी ने न्यायालय में वाद कर। दिया कि कम्पनी का समामेलन प्रमाण-पत्र शून्य घोषित कर दिया जाये।
लार्ड मैक्नाटन ने कहा-“उनकी लार्डशिप (Lordshin) यह मान लेगी कि कम्पनी ने पंजीकरण के लिए भारतीय कम्पनी कानून द्वारा निर्धारित शर्तों का अनपालन नहीं किया और पार्षद सीमा नियम के 7 अभिदाता नहीं थे एवं रजिस्ट्रार द्वारा प्रमाण-पत्र जारी नहीं किया जाना चाहिए था। परन्तु प्रमाण-पत्र सभी । उद्देश्यों के लिए निश्चयात्मक है।”
इसी प्रकार से पोल के विवाद में भी सीमा नियम पर हस्ताक्षर होने के बाद परन्तु कम्पनी के पंजीकरण होने से पहले, सीमानियम में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किये गये थे, निर्णय दिया गया प्रमाण-पत्र वैध था।
समामेलन प्रमाण-पत्र की निश्चयात्मकता केवल कम्पनी के समामेलन के सम्बन्ध में है। यदि एक कम्पनी अवैध उद्देश्यों के लिए पंजीकृत हो जाये तो कम्पनी के पंजीकरण से वे अवैध उद्देश्य, वैध नहीं हो जायेंगे। वस्तुत: समामेलन प्रमाण-पत्र केवल यह प्रमाणित करता है कि कम्पनी का समामेलन विधिवत् हआ है, यह इस बात का प्रमाण नहीं है कि इसमें वर्णित सभी उद्देश्य वैधानिक तथा क्षमायोग्य हैं। यह प्रमाण-पत्र अवैधानिक उद्देश्यों को वैधानिकता प्रदान नहीं करता। कम्पनी अवैधानिक उद्देश्यों के साथ व्यवसाय नहीं कर सकती, भले ही इसका उल्लेख सीमा नियम में किया गया हो। परन्तु कम्पनी के समामेलन के प्रमाण-पत्र के कारण, प्रमाण-पत्र की वैधता पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगाया जा सकता। यह भी स्मरण रखना होगा कि न्यायालय भी समामेलन का प्रमाण-पत्र रद्द नहीं कर सकता।
निष्कर्ष–उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि कम्पनी का समामेलन हो जाने के बाद से यह निश्चयात्मक (अटूट) प्रमाण समझा जाता है कि कम्पनी का समामेलन ठीक प्रकार से किया गया है, भले ही कोई अनियमितता रह गई हो। समामेलन का प्रमाण-पत्र जारी होने के पश्चात् कम्पनी के अस्तित्व को चुनौती नहीं दी जा सकती। इस प्रकार कम्पनी का समामेलन का प्रमाण-पत्र कम्पनी के अस्तित्व का तो प्रमाण है, परन्तु समामेलन से पूर्व की अनियमितताओं को नियमित करने का प्रमाण नहीं है।
पूँजी अभिदान
(Capital Subscription)
कम्पनी का समामेलन हो जाने के पश्चात् प्रत्येक सार्वजनिक कम्पनी को पूँजी अभिदान की प्रक्रिया से भी गुजरना होता है। पूँजी प्राप्त करने के लिये दो विकल्प हो सकते हैं : प्रथम, निजी स्रोतों (संचालकों, उनके मित्रों एवं रिश्तेदारों आदि) से; तथा द्वितीय जनता से।
पूँजी प्राप्त करने के लिये कम्पनी को अनेक सम्बन्धित कार्य भी करने पड़ते हैं जैसे अभिगोपकों. दलालों, बैंकरों आदि की नियुक्ति करना, प्रविवरण को प्रकाशित करना, जनता को आवेदन फार्म उपलब्ध कराना, अंशों के सूचीयन हेतु आवेदन करना आदि।
प्रविवरण जारी होने के बाद जनता कम्पनी के अंशों को क्रय करने के अपने प्रस्ताव (आवेदन-पत्र द्वारा) कम्पनी के बैंकर के माध्यम से भेजती है, जिनके साथ आवेदन शल्क (Anplication monev) भी भेजा जाता है। एक निश्चित तिथि के बाद कम्पनी जनता से प्राप्त सभी आवेदन-पत्रों को अपने बैंक से प्राप्त कर लेती है तथा आवेदनकर्ताओं को अंशों का आबंटन कर देती है। जिन आवेदनकर्ताओं को अंशों का आबंटन नहीं किया जाता है या माँगी गई मात्रा से कम मात्रा में किया जाता है. उन्हें उनकी सम्पूर्ण या आंशिक राशि वापिस कर दी जाती है। अंशों के आबंटन के बाद कम्पनी एक आबंटन विवरण पत्र (Return of Allotment) रजिस्ट्रार के पास भेजती है।
कम्पनी द्वारा व्यवसाय प्रारम्भ करना
(Commencement of Business)
कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 11 के अनुसार अंश पूंजी वाली एक सार्वजनिक और एक निजी कम्पनी अपना व्यवसाय तब तक आरम्भ नहीं कर सकती एवं ऋण लेने की शक्तियों – प्रयोग भी नहीं कर सकती जब तक कि
निदेशकों द्वारा निर्धारित प्रारूप एव ढग से एक घोषणा रजिस्ट्रार के पास फाइल न कर दी गई हो कि पार्षद सीमा नियम के प्रत्येक अभिदाता ने अपने द्वारा लिये जाने वाले अंशों के मूल्य का भुगतान कर दिया है और घोषणा करने का तिथि का सार्वजनिक कम्पनी का चुकता पूंजी 5 लाख से कम नहीं हैं एक निजी कम्पनी की दशा में एक लाख रूपये से कम नहीं है, तथा (i) कम्पनी ने अपने पंजीकत कार्यालय के पते का धारा 12 उप-धारा (2) के अनुसार सत्यापन नहीं करा लिया है।
कम्पनी संशोधन अधिनियम, 2015 की अधिसूचना संख्या 1/6/2015-CL (V) के अन्तर्गत 29.5.2015 से ‘व्यापार प्रारम्भ करने का प्रमाण–पत्र‘ प्राप्त करने का प्रावधान समाप्त कर दिया गया है अर्थात् 29.5.2015 से एक कम्पनी समामेलन का प्रमाण–पत्र प्राप्त करने के उपरान्त ही व्यापार प्रारम्भ कर सकती है।
परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न
(Expected Important Questions for Examination)
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions)
1 भारतीय कम्पनी अधिनियम, 2013 के अन्तर्गत एक कम्पनी के निर्माण के सम्बन्ध में उठाई जाने वाली वैधानिक औपचारिकताओं का वर्णन कीजिये।
Describe the legal formalities that are to be complied with under Indian Companies Act, 2013 regarding the formation of a company.
2. कम्पनी अधिनियम, 2013 के अन्तर्गत एक सार्वजनिक कम्पनी की स्थापना के लिये वैधानिक औपचारिकताओं की विवेचना कीजिये।
Discuss the legal formalties to form a Public Company under Indian Company Act, 2013.
3. एक कम्पनी के समामेलन की विधि लिखिये।
Write the procedure of incorporating of a company.
4. निगमन प्रमाणपत्र क्या है ? यह कब जारी किया जा सकता है ? इसके जारी होने के क्या-क्या प्रभाव होते हैं, वर्णन कीजिये।
What is certificate of incorporation ? When can it be issued ? Discuss the effects of certificate of incorporation.
5. कम्पनी के समामेलन का प्रमाण पत्र कम्पनी के अस्तित्व का एक निश्चयात्मक प्रमाण पत्र है” समझाइये। दो कानूनी निर्णयों को भी दीजिये। “
The certificate of incorporation is a conclusive evidence of the existence of a company.” Discuss. Give two case laws.
6. कम्पनी के समामेलन से क्या आशय है ? एक संयुक्त स्कन्ध कम्पनी के समामेलन की प्रक्रिया का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
What is meant by incorporation of a company ? Describe in brief the process of incorporation of a Joint Stock Company.
7. कम्पनी के निगमन की प्रक्रिया का वर्णन कीजिये तथा उन सब प्रपत्रों के नाम लिखिये जो कम्पनी रजिस्ट्रार के समक्ष प्रस्तुत किये जाते हैं ?
Describe the procedure relating to the incorporation of a company and write the names of documents that are filed with the Registrar of companies.
8. कम्पनी अधिनियम, 2013 के अधीन कम्पनियों की स्थापना से सम्बन्धित प्रक्रिया का वर्णन कीजिये। उन प्रपत्रों का वर्णन कीजिए, जिन्हें रजिस्ट्रार के पास जमा करना आवश्यक है।
Describe the procedure relating to the formation of companies under the Companies Act, 2013. Enumerate the various documents to be filed with the Registrar.
9. समामेलन प्रमाण-पत्र के निर्गमन का क्या प्रभाव है? क्या न्यायालय ऐसे समामेलन प्रमाण-पत्र को कर सकता है, जिसे अनुचित रूप से निर्गमित या जारी किया गया है?
What is the effect of issuing a Certificate of Incorporation? Can a Court cancel a certificate of incorporation which has been improperly issued?
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लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions)
1 “सामेलन का प्रमाण पत्र कम्पना के अस्तित्व का निश्चयात्मक प्रमाण-पत्र है।” इस कथन की विवेचना कीजिये।
“Certificate of incorporation is the conclusive evidence of the existence of a company.” Explain this statement.
2. कम्पनी रजिस्ट्रार द्वारा एक बार कम्पनी के समामेलन का प्रमाण पत्र निर्गमित कर देने पर उसे पुनः वापिस नहीं लिया जा सकता चाहे भले ही कम्पनी के समामेलन में भारी त्रुटियाँ रह गई हों।” स्पष्ट कीजिये।
“Once the certificate of incorporation of a company is issued by the Registrar of companies, the same can not be withdrawn irrespective of the fact that there might have been serious irregularities in the formation of the company.”
3. समामेलन के प्रभावों को संक्षेप में लिखिये।
Describe in brief the effects of incorporation.
4. एक सार्वजनिक कम्पनी को व्यापार प्रारम्भ करने का प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिये किन शर्तों को पूरा करना आवश्यक है ?
What conditions should be fulfilled by a public company to obtain the certificate of commencement of business?
5. समामेलन के प्रमाण पत्र का एक नमूना दीजिये।
Give a specimen of certificate of Incorporation.
6. व्यापार प्रारम्भ करने के प्रमाण पत्र का एक नमूना दीजिये।
Give a specimen of certificate of commencement of Business.
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