BCom 1st Year Framework Holder & Holder Due Course Study Material notes in Hindi

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BCom 1st Year Framework Holder & Holder Due Course Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Framework Holder & Holder Due Course Study Material Notes in Hindi: Meaning of Holder in due course  Privileges of a Holder  in Due Course Difference Between Holder and Holder Due Course Holder for Value Capacity of Parties to a Negotiable Instrument  Examination Questions Long Answer Questions Short Answer Questions Objective Questions :

Holder & Holder Due
Holder & Holder Due

BCom 1st Year Framework Holder & Holder Due Course Study Material Notes in Hindi

धारी एवं यथाविधिधारी

(Holder and Holder in Due Course)

धारक का अर्थ

(Meaning of Holder)

विनिमय-साध्य विलेख अधिनियम की धारा 8 के अनुसार, “धारक से आशय ऐसे किसी भी व्यक्ति से है जो विनिमय साध्य विलेख (विनिमय-विपत्र, प्रतिज्ञा-पत्र तथा चैक) को कानूनी रुप से अपने नाम में रखने तथा सम्बन्धित पक्षकारों से देय रकम प्राप्त करने अथवा वसूल करने का अधिकारी होता है। जब कोई विनिमय साध्य विलेख खो जाता है अथवा नष्ट हो जाता है, तो उसका धारक वह व्यक्ति होता है जो ऐसी हानि अथवा विनाश के समय उसका अधिकारी था।”

उपर्युक्त परिभाषा के अनुसार विनिमय साध्य विलेख का धारक बनने के लिये निम्नलिखित दो अधिकारों का होना आवश्यक है

Framework Holder & Holder

1.विलेख को अपने नाम में रखने का अधिकार- धारक वही व्यक्ति हो सकता है जिसे विलेख को अपने नाम में अपने पास रखने का वैधानिक अधिकार प्राप्त होता है। अत: चोरी से प्राप्त किये गये अथवा खोये हुये विलेख को प्राप्त करने वाले व्यक्ति को ‘धारक’ नहीं कहा जा सकता। धारक को यह अधिकार उसे विलेख का प्रापक या प्राप्तकर्ता (Payee), पृष्ठांकिती (Endorsee) अथवा वाहक (Bearer) होने के रुप में प्राप्त हो सकता है। यदि किसी एजेन्ट के पास अपने नियोक्ता का विलेख सुरक्षित रखने के लिये है तो वह उसका धारक नहीं माना जायेगा। यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि धारक को प्रपत्र पर वास्तविक कब्जा रखना आवश्यक नहीं है, उसे विधान के अनुसार कब्जा रखने का अधिकारी होना चाहिये। उदाहरण के लिये, आदेशित चैक का प्रापक अपने एजेन्ट को बिना पृष्ठांकन के चैक सुपुर्द करने पर भी प्रलेख का धारक बना रहता है।

2. अपने नाम में धनराशि प्राप्त करने अथवा वसूल करने का अधिकार- धारक के लिये दूसरी आवश्यक बात यह है कि विलेख में वर्णित धनराशि को सम्बन्धित पक्षकारों से अपने नाम में ही प्राप्त करने अथवा वसूल करने का अधिकार हो। अतः यदि किसी व्यक्ति के अधिकार में कोई विलेख तो है, परन्तु उसे उसकी राशि अपने नाम में प्राप्त करने का अधिकार नहीं है तो वह व्यक्ति उस विलेख का धारक नहीं हो सकता है। जैसे एजेन्ट जिसको विलेख की राशि वसूल करने का अधिकार दिया गया है, विलेख का धारक नहीं है क्योंकि उसे उसकी राशि अपने नाम में प्राप्त करने का अधिकार नहीं है। इसी प्रकार कोई चोर अथवा किसी खोये हुये विलेख को पाने वाला व्यक्ति धारक नहीं कहा जा सकता क्योंकि उसे अपने नाम में विलेख की रकम प्राप्त करने का अधिकार नहीं होता है।

धारक के अधिकार (Rights of a Holder)-(i) विलेख में लिखित धनराशि के भुगतान प्राप्त करने का अधिकार, (ii) विलेख के कोरे पृष्ठांकन को विशेष पृष्ठांकन में परिवर्तित करने का अधिकार, (iii) चैक पर अपरक्राम्य शब्द लिखकर रेखांकित करना. (iv) विनिमय-विपत्र का तीसरे पक्षकार को बेचान करना, (v) विलेख के खो जाने पर उसकी दसरी प्रति माँगने का अधिकार, (vi) अपने नाम से वाद प्रस्तुत करने का अधिकार।

वास्तव में धारक की स्थिति बहुत महत्वपूर्ण होती है क्योकि-(i) विलेख के सभी पक्ष उसके प्रति उत्तरदायी होते हैं तथा (ii) केवल वह ही विलेख के अन्य पक्षों को उनके दायित्व से मुक्त कर सकता है।

Framework Holder & Holder

यथाविधिधारक से आशय

(Meaning of Holder in Due Course)

विनिमयसाध्य विलेख अधिनियम की धारा 9 के अनुसार, “यथाविधिधारक वह व्यक्ति होता है। जो प्रतिफल के बदले विलेख में लिखित धनराशि के देय होने से पूर्व ‘वाहक को देय’ विलेख (प्रतिज्ञा-पत्र, विनिमय विपत्र अथवा चैक) पर कब्जा प्राप्त करता है अथवा आदेश पर देय विलेख का आदाता (Payee) या पृष्ठांकिती (Endorsee) बन जाता है तथा विलेख प्राप्त करते समय उसे हस्तान्तरक के स्वामित्व में किसी दोष को जानने का कोई पर्याप्त कारण ज्ञात नहीं था।”

उपरोक्त परिभाषा के आधार पर किसी व्यक्ति को विनिमय-साध्य विलेख का यथाविधिधारक कहलाने के लिये निम्नलिखित शर्तों को पूरा करना अनिवार्य है

1 विलेख का अधिकार (Possession of the Instrument)- विनिमय साध्य विलेख यथाविधिधारक के अधिकार में होना चाहिये। यदि विलेख आदेश पर देय है तो उस पर यथाविधिधारक का नाम, प्राप्तकर्ता (Payee) या पृष्ठांकिती (Endorsee) के रुप में लिखा होना चाहिये। यदि विलेख एक ‘वाहक विलेख’ है तो ‘यथाविधि-धारी’ को उसका धारक होना चाहिये।

2. मूल्यवान प्रतिफल के लिये विलेख प्राप्त करना (Instrument Received for Valuable Consideration)- केवल ऐसा व्यक्ति ही यथाविधिधारी कहलायेगा जिसने वैध तथा पर्याप्त मूल्यवान प्रतिफल देकर विलेख प्राप्त किया है। यदि कोई व्यक्ति दान या उपहार के रुप में या अवैध कार्य के लिये कोई विलेख प्राप्त करता है तो उस व्यक्ति को यथाविधिधारी नहीं कहा जा सकता।

3. परिपक्वता तिथि अथवा देय तिथि से पूर्व विलेख प्राप्त करना (Instrument Received Before the Date of Maturity)- यथाविधिधारक के लिये यह भी आवश्यक होता है कि उसने विलेख को उसकी देय तिथि से पहले ही प्राप्त किया हो। यदि उसने देय तिथि के बाद विलेख को प्राप्त किया हो तो वह यथाविधिधारक नहीं माना जा सकता परन्तु यह शर्त उन्हीं विलेखों पर लागू होती है जिनका भुगतान एक निश्चित अवधि के बीत जाने पर ही किया जाता है। चैकों पर यह शर्त लागू नहीं होती क्योंकि उनका भुगतान सदैव माँग पर देय होता है।

4.सद्भावना से विलेख प्राप्त करना (Instrument Received with Good Faith)-केवल उसी व्यक्ति को यथाविधिधारक माना जाता है जिसके पास विलेख को प्राप्त करते समय विश्वास करने का ऐसा कोई कारण नहीं था कि विलेख के हस्तान्तरक का स्वामित्व दोषयुक्त था। दूसरे शब्दों में, उसे विलेख ईमानदारी तथा सद्भावना से प्राप्त होना चाहिये। यदि कोई व्यक्ति किसी विलेख को चोरी से अथवा कपटपूर्ण ढंग से प्राप्त करता है, तो उसे यथविधि धारक नहीं माना जा सकता। अत: विलेख को प्राप्त करते समय पूर्ण सावधानी बरतनी चाहिये और आवश्यक छानबीन के पश्चात् ही विलेख को प्राप्त करना चाहिये। निम्नलिखित दशाओं में उसे पूर्व व्यक्ति के स्वत्वाधिकार की जाँच करनी चाहिये-(i) जब वह किसी प्रकार से दोषयुक्त हो, (ii) जब विलेख पर लेखक के हस्ताक्षर न हों, (ii) जब विलेख में प्राप्तकर्ता का नाम परिवर्तित या मिटा हुआ हो, (iv) जब विलेख फटा हुआ हो या चिपकाया हुआ है। जब तक यह सिद्ध न कर दिया जाये कि विलेख का धारक, यथाविधिधारक नहीं है, न्यायालय की दृष्टि में यथाविधिधारक ही माना जाता है।

Framework Holder & Holder

यथाविधिधारक के विशेषाधिकार

(Privileges of a Holder in Due Course)

एक यथाविधिधारक को निम्नलिखित विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं

1 अपूर्ण विलेख की स्थिति में लिखी रकम पाने का अधिकार- यदि कोई व्यक्ति अपने हस्ताक्षरयुक्त स्टाम्प लगा हुआ परन्तु अपूर्ण विलेख (जो या तो पूर्णत: कोरा है या आंशिक रुप से लिखा हुआ है) किसी दूसरे व्यक्ति को देता है, तो वह यथाविधिधारक के विरुद्ध यह नहीं कह सकता कि विलेख उसके द्वारा दिये अधिकारों अथवा निर्देशों के अनुसार पूर्ण नहीं है अर्थात् अपूर्ण विलेख की स्थिति में यथाविधिधारक को उसमें लिखी रकम के भुगतान पाने का अधिकार होता है। परन्तु शर्त यह है कि विलेख की धनराशि के लिये पर्याप्त स्टाम्प लगाया हुआ हो।

उदाहरणराम अपने हस्ताक्षर करके स्टाम्पयुक्त एक विलेख जिस पर 500 ₹ तक की राशि लिखी जा सकती है, श्याम को इस निर्देश के साथ देता है कि श्याम उस पर 300 ₹ तक की रकम। आकत कर ले। परन्त श्याम उस पर 500 ₹ लिख देता है तो यहाँ पर राम इस विलेख के यथाविधिधारा के विरुद्ध यह नहीं कह सकता कि वह केवल 300 ₹ के लिये ही उत्तरदायी है। इस प्रकार यथाविधि। धारी उक्त विलेख के आधार पर 500 ₹ ही वसूल कर सकता है।

2. पूर्व पक्षकारों का यथाविधिधारक के प्रति दायित्व- विनिमय-साध्य विलेख के सभी पूर्व पक्षकार (जैसे लेखक, स्वीकर्ता एवं समस्त पृष्ठांकक आदि) यथाविधिधारी के प्रति उस समय तक उत्तरदायी रहते हैं जब तक कि विलेख का उचित रुप से भगतान नहीं कर दिया जाता। (धारा 36)

3. विनियमविपत्र में कल्पित नाम होने की दशा में अधिकार- जब कोई विनिमय-विपत्र लेखक के आदेशानुसार किसी कल्पित नाम से देय है और उसी व्यक्ति द्वारा पृष्ठांकित किया गया हो तो विनिमय-विपत्र का स्वीकर्ता यथाविधिधारक के विरुद्ध यह नहीं कह सकता है कि विनिमय-विपत्र काल्पनिक नाम से लिखा गया है, अत: वह इस विनिमय-विपत्र का भुगतान नहीं देगा। (धारा 42)

4. सशर्त सुपुर्दगी का कोई प्रभाव नहीं यदि कोई विलेख यथाविधिधारक को हस्तान्तरित किया जाता है तो विलेख से सम्बन्धित अन्य पक्षकार इस आधार पर अपने दायित्व से नहीं बच सकते कि विलेख की सुपुर्दगी सशर्त अथवा किसी विशेष उद्देश्य के लिये थी।

5. विलेख पर दोषरहित उत्तम स्वामित्व का अधिकार प्राप्त होना- यह यथाविधिधारक का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अधिकार माना जाता है। यदि विलेख के आवागमन के दौरान यथाविधिधारी स्वयं किसी कपट, जालसाजी या अवैध कार्यवाही में भागीदार न रहा हो, तो यथाविधिधारी को विलेख के हस्तान्तरणकर्ता एवं पूर्व पक्षकारों से उत्तम और दोषमुक्त स्वामित्व प्राप्त होता है, भले ही पूर्व पक्षकारों के मध्य विलेख की सुपुर्दगी कपटपूर्ण ढंग से क्यों न की गई हो। इतना ही नहीं उसके बाद के सभी हस्तान्तरियों (Transferee) अथवा धारकों को भी उत्तम एवं दोषमुक्त स्वामित्व प्राप्त होता है। प्राय: यह कहा जाता है कि जब विलेख एक यथाविधिधारक के हाथ से गुजर जाता है तो इसके सभी दोष समाप्त हो जाते हैं। वास्तव में इसकी तुलना गंगा नदी से की जा सकती है। जिस प्रकार गंगाजी में नहाने से सारे पाप धुल जाते हैं (ऐसा विश्वास किया जाता है), उसी प्रकार से विलेख यथाविधिधारक के हाथ से निकलने पर पापमुक्त (दोषमुक्त) हो जाता है।

उदाहरण अ कपट द्वारा ब से वाहक को देय विपत्र प्राप्त करके स को मूल्य के बदले हस्तान्तरित कर देता है। स इसे सद्विश्वास से प्राप्त कर लेता है। स यथाविधिधारक होने के कारण अच्छा स्वामित्व प्राप्त कर लेगा यद्यपि अ का स्वामित्व दोषपूर्ण था।

Framework Holder & Holder

इस सम्बन्ध में यह बात ध्यान रखनी चाहिये कि यथाविधिधारक केवल स्वामित्व के दोष (Defect of Title) को ही ठीक कर सकता है। यदि स्वामित्व का एकदम अभाव (Absence of Title) है तो यथाविधिधारक स्वामित्व प्रदान नहीं कर सकता। उदाहरणार्थ, एक चैक ‘आशीष को या उसके आदेशानुसार देय है।’ विजय इसे चुराकर और उस पर आशीष के जाली हस्ताक्षर करके अजय को बेचान कर देता है। अजय यद्यपि यथाविधिधारक है परन्तु वह चैक की धनराशि वसूल नहीं कर सकता है, क्योंकि यह मामला दूषित स्वामित्व का नहीं है बल्कि स्वामित्व के पूर्ण अभाव का है। (धारा 53)

6. अवैधानिक ढंग से या गैरकानूनी प्रतिफल के बदले प्राप्त किये गये विलेख के सम्बन्ध में अधिकार- किसी विलेख के भुगतान के लिये उत्तरदायी व्यक्ति यथाविधिधारक के प्रति अपने दायित्व से केवल इस आधार पर मुक्ति प्राप्त नहीं कर सकता कि सम्बन्धित विलेख खो गया था या उससे किसी कपट अथवा अपराध द्वारा या किसी गैर-कानूनी प्रतिफल के बदले प्राप्त कर लिया गया था। (धारा 58)

7. विलेख की मूल वैधता से मना करने के विरुद्ध अवरोधप्रतिज्ञापत्र का लेखक, विनिमयबिल तथा चैक का आहार्ता (Drawer) तथा लेखक के आदर के लिये विनिमय-बिल के स्वीकार करने वाले व्यक्ति आदि को विनिमय-साध्य विलेखों के सम्बन्ध में यथाविधिधारक द्वारा वाद प्रस्तुत किये जाने पर यह कहने की अनुमति नहीं है कि अमुक विलेख प्रारम्भ से ही विधिवत् रुप से तैयार नहीं किया गया था अर्थात अवैध था। अत: विलेख का लेखक इस तर्क के आधार पर अपने दायित्व से मुक्त नहीं हो सकता।

8. आदाता (प्राप्तकर्ता) (Payee) के पृष्ठांकन करने की क्षमता को अस्वीकार करने पर अवरोध- प्रतिज्ञा-पत्र का लेखक तथा आदेश पर देय विनिमय-पत्र का स्वीकर्ता, यथाविधिधारक के द्वारा वाद प्रस्तुत किये जाने पर प्राप्तकर्ता के पृष्ठांकन करने की क्षमता को अस्वीकार नहीं कर सकते अर्थात । यह नहीं कह सकते कि यथाविधिधारी को विलेख का बेचान करने वाले व्यक्ति में पृष्ठांकन करने की क्षमता नहीं थी।

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मूल्य के लिये धारक

(Holder for Value)

जब कोई व्यक्ति किसी ऐसे विनिमय साध्य विलेख का धारक है, जिसका मूल्य पहले किसी समय दिया जा चुका है, तो वह मूल्य के लिए धारक कहलाता है, क्योंकि ऐसा धारक मूल्य के बदले में उसे प्राप्त नहीं करता। उसे विलेख से सम्बन्धित पूर्व पक्षकारों के विरुद्ध उनको छोड़कर जिससे कि उसने प्राप्त किया है वे सभी अधिकार प्राप्त हो जाते हैं, जो कि उस व्यक्ति को प्राप्त थे, जिससे उसने विलेख प्राप्त किया है।

उदाहरण : आलोक को उसके ऋणी से 51,000 रुपये का एक चैक प्राप्त होता है। वह उसको बाढ़ पीड़ितों की सहायता संस्था को दान के रुप में दे देता है। ऐसी स्थिति में चैक का प्रतिफल आलोक ने दिया है, किन्तु बाढ़ पीड़ितों की सहायता संस्था ने भुगतान नहीं किया, अत: बाढ़ पीड़ितों की सहायता संस्था मूल्य के लिये धारी है।

मूल्य के लिये धारी की विशेषताएँ (Characteristics of Holder for Value):

1 ऐसा धारक किसी भी विलेख का धारक हो सकता हैं।

2. ऐसा धारक विलेख का मूल्य नहीं चुकाता है।

3. ऐसे विलेख का मूल्य पूर्व पक्षकारों में से किसी एक पक्षकार द्वारा चुकाया गया होता है।

4. ऐसे धारक को विलेख के पूर्व पक्षकारों के प्रति वे सभी अधिकार प्राप्त होते हैं, जो अधिकार उस व्यक्ति को प्राप्त थे, जिसने उसके ऐसे विलेख को प्राप्त किया था।

यथाविधिधारी तथा मूल्य के लिये धारी में अन्तर

(Difference between Holder in due course and Holder for Value)

Framework Holder & Holder

1 मूल्य भुगतान (Payment of Value)- यथाविधिधारी विलेख के बदले में मूल्य स्वयं चुकाता है लेकिन मूल्य के लिये धारी के लिये ऐसा होना आवश्यक नहीं है।

2. स्वत्वाधिकार (Title)- यथाविधिधारी अपने हस्तान्तरणकर्ता की अपेक्षा अच्छा स्त ताह अथात् हस्तान्तरणकर्ता का अधिकार दषित होने पर भी उसे अच्छा स्वत्व प्राप्त हो जाता है, जबाक मूल्य के लिये धारी का स्वत्व विलेख के हस्तान्तरणकर्ता के समान ही रहता है।।

3. वाद प्रस्तुत करना (Filing of Suit)- यथाविधिधारी विलेख के अनादरित होने की दशा में हस्तान्तरणकर्ता के विरुद्ध वाद प्रस्तुत कर सकता है, जबकि मूल्य के लिये धारी हस्तान्तरणकर्ता के विरुद्ध वाद प्रस्तुत नहीं कर सकता है।

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विनिमय साध्य विलेख के पक्षकारों की क्षमता (धारा 26)

(Capacity of Parties to a Negotiable Instrument)

विनिमय साध्य विलेख के पक्षकार के रुप में दायित्व ग्रहण करने की क्षमता अनुबन्ध करने की क्षमता के साथ सह-विस्तृत होती है। भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 11 के अनुसार, प्रत्येक वह व्यक्ति अनुबन्ध करने की क्षमता/योग्यता रखता है, जो प्रचलित कानून के अनुसार वयस्क है, स्वस्थ मस्तिष्क का है तथा किसी भी प्रचलित कानून के अनुसार अनुबन्ध करने के अयोग्य नहीं है। इस प्रकार वह व्यक्ति, जो अनुबन्ध करने की क्षमता रखता है या योग्य है, किसी प्रतिज्ञा-पत्र, विनिमय-पत्र तथा चैक को लिखकर, स्वीकार करके, पृष्ठांकन करके एवं सुपुर्दगी तथा हस्तान्तरण करके स्वयं को आबद्ध कर सकता है तथा बाध्य किया जा सकता है। किसी विनिमय साध्य विलेख के पक्षकार बन जाने पर अनुबन्ध करने के योग्य पक्षकारों का दायित्व समाप्त नहीं होता।

1 अवयस्क (Minor)-भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 11 के अनुसार किसी अवयस्क द्वारा किया गया अनुबन्ध पूर्णतया व्यर्थ होता है। यदि एक व्यक्ति अपनी अवयस्कता की स्थिति में कोई अनुबन्ध करता है तो वयस्कता प्राप्त कर लेने के पश्चात् भी वह उस अनुबन्ध की पुष्टि (ratification) नहीं कर सकता। परन्तु विनिमय-साघ्य विलेख अधिनियम की धारा 26 के अनुसार अवयस्क विनिमय साध्य-विलेख लिख सकता है, पृष्ठांकित कर सकता है, उसकी सुपुर्दगी तथा हस्तान्तरण भी कर सकता है। लेकिन वह विलेख से स्वयं बाध्य नहीं होता, यद्यपि अन्य पक्षकार बाध्य होते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि विलेख का धारक अन्य पक्षों के विरुद्ध विलेख को प्रवर्तित करा सकता है, लेकिन अवयस्क के विरुद्ध नहीं। संक्षेप में, हम यह कह सकते हैं कि एक अवयस्क विलेख के अधीन स्वयं उत्तदायी नहीं होता, किन्तु इसके अधीन उसे कुछ अधिकार प्राप्त होते हैं तथा पूर्व पक्षकारों के विरुद्ध वह विलेख के लिए वाद प्रस्तुत कर सकता है।

अवयस्क अपने बैंक खाते में से चैक द्वारा धन निकाल सकता है, परन्तु यदि अवयस्क ने किसी धारक को कोई चैक काटकर दिया है और बैंक उस चैक का भुगतान नहीं करता, तो धारक के प्रति अवयस्क का कोई उत्तरदायित्व नहीं होगा। यदि भूल से बैंक अवयस्क को, उसके द्वारा जमा कराई गई राशि से अधिक धन का भुगतान कर देता है, तो वह अवयस्क से दिये गए अधिक धन को वापिस प्राप्त नहीं कर सकता।

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2. दिवालिया (Insolvent)-कानूनन एक दिवालिया व्यक्ति न तो किसी विनिमय-साध्य विलेख पर अपनी स्वीकृति प्रदान कर सकता है और न ही उसका पृष्ठांकन कर सकता है। किन्तु यदि दिवालिया व्यक्ति किसी विलेख का लेनदार हो तथा वह उस विलेख का पृष्ठांकन यथाविधिधारी को कर दे तो वह यथाविधिधारी उस विलेख में लिखित रकम का भुगतान दिवालिया व्यक्ति के अतिरिक्त अन्य पक्षकारों से प्राप्त कर सकता है। दिवालिया हो गये व्यक्ति की सम्पत्ति चूंकि सरकारी प्रापक (official receiver) के हाथ में चली जाती है, अत: वह किसी विलेख के लिये वाद प्रस्तुत नहीं कर सकता। किन्तु यदि दिवालिया व्यक्ति अपने हित में कोई विलेख लिखता है, तो वह उस विलेख के सम्बन्ध में वाद प्रस्तुत कर सकता है, बशर्ते सरकारी-प्रापक इसमें कोई बाधा या अड़चन न डाले।

3. अस्वस्थ मस्तिष्क वाले व्यक्ति (Persons of Unsound Mind)-अस्वस्थ मस्तिष्क वाले व्यक्तियों में पागल, शराबी, उन्मत्त, तथा जड़बुद्धि वाले व्यक्तियों को शामिल किया जाता है। वे व्यक्ति जो अपने हित पर पड़ने वाले अनुबन्ध के प्रभावों को समझने में असमर्थ होते हैं, अस्वस्थ मस्तिष्क वाले व्यक्ति कहलाते हैं। ऐसे व्यक्ति किसी विनिमय साध्य विलेख को लिखने, स्वीकार करने. पष्ठांकन करने एवं सपर्दगी तथा हस्तान्तरण करने के अयोग्य होते हैं। अत: अस्वस्थ मस्तिष्क वाले व्यक्ति विनिमय-साध्य विलेख के लिए तभी बाध्य होते हैं जबकि उन्होनें विलेख को अपने मस्तिष्क के स्वस्थ होने के दौरान लिखा. स्वीकार किया, पृष्ठांकित या हस्तान्तरित किया है। ध्यान रहे कि जो व्यक्ति पागलपन या अन्य किसी कारण से यह तर्क देता है कि वह अनुबन्ध के प्रभावों को समझने में असमर्थ है, उसे ही अनुबन्ध के समय उस कारण के मौजूद होने का प्रमाण देना पड़ेगा।।

4. साझेदार (Partners)-साझेदारी कानून, एजेन्सी कानून की ही एक शाखा है। कानन की निगाह में प्रत्येक साझेदार फर्म का सामान्य एवं अधिकार प्राप्त एजेन्ट होता है। अत: व्यापारिक साझेदारी फर्म (Trading Partnership Firm) के साझेदारों को फर्म की ओर से विनिमय-साध्य विलेख लिखने, स्वीकार करने एवं पृष्ठांकित करने का गर्भित अधिकार होता है। परन्तु अव्यापारिक (non-trading) फर्म के साझेदारों को जब तक इस प्रकार के स्पष्ट अधिकार न दिये गये हों, वह ऐसा करने के अधिकारी नहीं हैं। दोनों ही परिस्थितियों में दायित्व फर्म के नाम से ग्रहण करना चाहिए, ताकि फर्म के सभी साझेदारों को बाध्य किया जा सके।

5. संयुक्त हिन्द्र परिवार (Joint Hindu Family)-संयुक्त हिन्दू परिवार के मुखिया द्वारा परिवार की ओर से किसी विनिमय-साध्य विलेख पर हस्ताक्षर की स्थिति में मुखिया के अतिरिक्त अन्य सदस्यों के दायित्व के विषय में न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णयों के आधार पर पर्याप्त मतभेद हैं। मद्रास एवं कलकत्ता उच्च न्यायालयों के निर्णय के अनुसार-ऐसे किसी भी व्यक्ति के विरुद्ध वाद प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है, जिसका नाम विनिमय-साध्य विलेख पर लिखा हुआ न हो। अत: यदि संयुक्त हिन्दू परिवार का मुखिया प्रतिज्ञा-पत्र पर अपने नाम से हस्ताक्षर करता है, तो परिवार के अन्य सदस्य उस विलेख के सम्बन्ध में उत्तरदायी नहीं होंगे। किन्तु इलाहाबाद तथा बम्बई के उच्च न्यायालयों के निर्णय के अनुसार मुखिया को, परिवार के सभी लेनदारों में परिवार का प्रतिनिधित्व करने वाला माना गया है और इसलिए वह जब भी आवश्यक समझे, पारिवारिक कारोबार को चलाने के लिए विलेख लिख सकता है तथा परिवार के सभी सदस्यों को उससे बाध्य कर सकता है (Krishnananda v. Rajaram, 44 All. 393 and Sakhabhai Vs. Magan Lal 26, Bom. L. R. 206). नागपुर उच्च न्यायालय के अनुसार जब सयुंक्त परिवार के मुखिया द्वारा प्रतिज्ञा-पत्र लिखा जाता है तथा ऋणों का प्रयोग व्यापारिक कार्यों में किया जाता है, तो परिवार के शेष सदस्य व्यक्तिगत रुप से उत्तरदायी हो जाते हैं। विभिन्न न्यायालयों द्वारा दिये गये निर्णयों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यदि किसी विलेख पर परिवार के सभी सदस्यों द्वारा हस्ताक्षर किये गये हों तो वे सभी, ऋण का भुगतान करने के लिये व्यक्तिगत रुप से उत्तरदायी होंगे। केवल अवयस्क सदस्यों का दायित्व पारिवारिक सम्पत्ति में अपने हिस्से तक ही सीमित रहेगा। जब मुखिया ने परिवार के व्यापार को चालू रखने के लिए या किसी विधिसंगत जरुरत के लिए परिवार के सामूहिक हित में किसी विलेख पर हस्ताक्षर किये हों तो अन्य सदस्य परिवार की सम्पत्ति में अपने हिस्से की सीमा तक ही उत्तरदायी होंगे, किन्तु यदि मुखिया ने विलेख पर व्यक्तिगत रुप से हस्ताक्षर किया है, तो केवल मुखिया का ही उस विलेख के सम्बन्ध में सम्पूर्ण उत्तरदायित्व होगा, शेष सदस्यों का नहीं।

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6. निगम (Corporation)-जब तक विधान द्वारा निगम को ऐसा करने का अधिकार न दे दिया गया हो, कोई भी निगम अथवा कम्पनी अनुबन्ध करने की क्षमता रखने के बावजूद किसी विनिमय-साध्य विलेख का निर्माण, स्वीकृति, पृष्ठांकन, सुपुर्दगी तथा हस्तान्तरण नहीं कर सकती। गैर-व्यापारिक कम्पनियों को विलेख लिखने, स्वीकार करने, आदि का कोई गर्भित अधिकार पार्षद सीमा-नियम के उद्देश्य वाक्य के अन्तर्गत स्पष्ट रुप से प्राप्त करना पड़ता है। कभी-कभी यह अधिकार पार्षद सीमा-नियम में दिए गए उद्देश्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक मानकर गर्भित रुप से दिया जा सकता है। व्यापारिक कम्पनियों को विनिमय-साध्य विलेख लिखने, स्वीकार करने, आदि का अधिकार गर्भित रुप से प्राप्त होता है।

7. एजेन्ट (Agent)-ऐसा कोई भी व्यक्ति, जो अनुबन्ध करने की क्षमता रखता है. वह किसी विनिमय-साध्य विलेख को लिखने, स्वीकार करने, पृष्ठांकित करने, सुपुर्दगी एवं हस्तान्तरण करने का अधिकार अपने किसी अधिकृत एजेन्ट को सौंप सकता है। ऐसी दशा में यदि नियोक्ता द्वारा नियुक्त किया गया अधिकृत एजेन्ट (Authorised agent) अपनी अधिकार-परिधि के भीतर रहते हुए अपने नियोक्ता द्वारा दिए गये निर्देशों का पालन करते हुए किसी विलेख का निर्माण, स्वीकृति या पृष्ठांकन करता है, तो वह अपने इन कार्यों से नियोक्ता को बाध्य कर सकता है। स्मरणीय है कि ऐसा करते समय एजेन्ट को चाहिए कि वह विलेख पर उत्तरदायी व्यक्ति का नाम स्पष्ट रुप से प्रकट कर दे। ऐसा एजेन्ट जिसने विलेख पर हस्ताक्षर करते समय-(i) अपने नियोक्ता का नाम स्पष्ट रुप से उल्लिखित नहीं किया है या (ii) यह स्पष्ट नहीं किया है के वह एक एजेन्ट के रुप में कार्य कर रहा है एवं विलेख पर इसी हैसियत स हस्ताक्षर कर रहा है, या (iii) यह स्पष्ट नहीं किया है कि उसका व्यक्तिगत दायित्व उठाने का काई आभप्राय नहीं है, तो ऐसी दशा में वह विनिमय-साध्य विलेख अधिनियम के अनुसार देय राशि का भुगतान करने के लिए व्यक्तिगत रुप से उत्तरदायी होगा। परन्त अभिकर्ता ऐसे व्यक्तियों के प्रति किसी प्रकार से व्यक्तिगत रुप से उत्तरदायी नहीं होगा, जिन्होंने उसके हस्ताक्षर इस आश्वासन के आधार पर माप्त किए हैं कि वे विलेख से सम्बन्धित धनराशि के भुगतान के सम्बन्ध में केवल नियाक्ता को ही उत्तरदायी ठहराएंगे।

8. वैधानिक उत्तराधिकारी (Legal Representative)-किसी मृतक व्यक्ति का वैधानिक उत्तराधिकारी यदि अपने दायित्वों को स्पष्ट रुप से, मृत व्यक्ति के उत्तराधिकार में प्राप्त सम्पत्ति तक सीमित नहीं करता, तो वह मृत व्यक्ति के विनिमय-साध्य विलेख के प्रति व्यक्तिगत रुप से उत्तरदायी माना जाएगा [Radha Kishan Vs. Narayani Bai (1963) A.I. R. M. P. 191] अन्य शब्दों में, मतक का वैधानिक उत्तराधिकारी जो किसी विनिमय-साध्य विलेख पर अपने हस्ताक्षर करता है, व्यक्तिगत रुप से उत्तरदायी होगा, जब तक कि स्पष्ट रुप से वह अपने दायित्व को इस प्रकार प्राप्त की गई सम्पत्ति तक सीमित न कर दे।

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विनिमयसाध्य विलेख के पक्षकारों का दायित्व

(Liabilities of Parties to a Negotiable Instrument)

1 लेखक या आहर्ता का दायित्व (Liability of drawer)-विनिमय-साध्य विलेख अधिनियम की धारा 30 के अनुसार, किसी भी विनिमय पत्र या चैक का लेखक, जब तक वह विनिमय-पत्र या। चैक, स्वीकृत नहीं हो जाता, मूल-ऋणी के रुप में दायी होता है। किन्तु इसके बाद उसका दायित्व एक । प्रतिभू (Surety) के रुप में होता है। यदि विलेख देनदार द्वारा अस्वीकार करने या भुगतान न करने के कारण अप्रतिष्ठित हो जाए तथा यदि अप्रतिष्ठा की सूचना उसे (लेखक को) मिल चुकी हो तो लेखक भुगतान के लिये दायी होगा। इसके अतिरिक्त वह धारक की क्षतिपूर्ति करने के लिए भी उत्तरदायी होगा। धारक का यह कर्तव्य है कि वह उन सभी पक्षकारों को विलेख के अनादरण की सूचना उचित रुप से दे जिन्हें वह अनादरण के लिए उत्तरदायी ठहराना चाहता है। अनादरण की सूचना मौखिक अथवा लिखित रुप में दी जा सकती है “विलेख के लेखक को अनादरण की सूचना अवश्य मिलनी चाहिए। जब तक लेखक को अनादरण की सूचना नहीं दी जाती या जब तक लेखक को यह जानकारी नहीं हो जाती कि विलेख का अनादरण हो गया है, विलेख का धारक उसके विरुद्ध कोई भी वैधानिक कार्यवाही नहीं कर सकता,” यह निर्णय Miller Vs. The National Bank of India (19.Cal.146)के विवाद में दिया जा चुका है।

2. चैक के देनदार या आही का दायित्व (Liability of drawee of cheque)विनिमय-साध्य विलेख अधिनियम की धारा 31 के अनुसार, चैक के देनदार के रुप में बैंक का यह कर्तव्य होता है कि जब तक चैक के लेखक के जमा खाते में पर्याप्त धनराशि जमा है तब तक वह उसके किसी भी चैक का भुगतान न रोके। लेकिन यदि आहारीं ऐसा भुगतान नहीं करता है अथवा भुगतान करने में कोई त्रुटि करता है तो वह आहार्ती को होने वाली ऐसी हानि की पूर्ति के लिए उत्तरदायी होगा, जो भुगतान न करने के परिणामस्वरुप हुई हो।

3. एजेन्ट का दायित्व (Liability of Agent)-विनिमयसाध्य विलेख अधिनियम की धारा 28 के अन्तर्गत यह स्पष्ट किया गया है कि एक एजेन्ट जो किसी प्रतिज्ञा-पत्र या चैक पर यह प्रकट किये बिना कि वह एजेन्ट है या एजेन्ट के रुप में कार्य कर रहा है या इसके सम्बन्ध में उसका व्यक्तिगत दायित्व लेने का विचार नहीं है, हस्ताक्षर करता है तो वह उसके सम्बन्ध में उन व्यक्तियों के अतिरिक्त जिन्होनें उसे इस विश्वास पर, कि केवल नियोक्ता का दायित्व है, हस्ताक्षर करने के लिये प्रेरित किया, अन्य सभी के प्रति व्यक्तिगत रुप से उत्तरदायी होगा।

4.वैधानिक प्रतिनिधि का दायित्व (Liability of Legal Representative)-विनिमय साध्य विलेख अधिनियम की धारा 29 के अनुसार, जिस प्रकार धारक की मृत्यु के बाद उसका वैधानिक उत्तराधिकारी सभी लेख-पत्रों का अधिकारी होता है, उसी प्रकार किसी मृतक व्यक्ति का वैधानिक प्रतिनिधि, जो किसी प्रतिज्ञा-पत्र, विनिमय पत्र अथवा चैक पर अपने नाम के हस्ताक्षर करता है तो वह उसके लिये व्यक्तिगत रुप से उत्तरदायी होता है, जब तक कि वह स्पष्ट रुप से अपने दायित्व को प्राप्त की गई सम्पत्ति तक सीमित न कर ले।

5. प्रतिजा पत्र के लेखक का दायित्व (Liability of maker of a Promissory Note)सय विलेख अधिनियम की धारा 32 के अनुसार, प्रतिज्ञा पत्र का लेखक परिपक्वता की तिथि। सो अथवा एक विशेष व्यक्ति को या उसके आदेशित व्यक्ति को भुगतान करने के लिए बाध्य नहीं करने की दशा में लेखक किसी भी पक्षकार के प्रति जिसने ऐसी त्रटि के कारण हानि उठाई हो, क्षतिपूर्ति करने के लिये उत्तरदायी है।

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6. विनिमय पत्र के स्वीकर्ता का दायिल Exchange)-विनिमय-साध्य विलेख अधिनियम स्वीकर्ता इसकी परिपक्वता की तिथि पर इसकी धनराशि को या परिपक्वता के पश्चात् उसके धारक को माँग पर चुकाने के लिये बाध्य है। यदि ऐसा भुगतान करने में त्रुटि रहने पर वह विनिमय-पत्र के किसी भी पक्षकार को हुई ऐसी हानि की पूर्ति के लिये बाध्य है, जो उसे ऐसी त्रुटि के कारण उठानी पड़ी हो।

विनिमय-साध्य विलेख अधिनियम की धारा 88 के अनुसार यदि लेख-पत्र में पहले से कोई परिवर्तन किया गया है, तो भी विनिमय पत्र का स्वीकर्ता अपनी स्वीकृति से बाध्य होता है।

7. पृष्ठांकिती का दायित्व (Liability of Endorser)-विनिमय-साध्य विलेख अधिनियम की धारा 35 के अनुसार, किसी विपरीत अनुबन्ध के अभाव में जब कोई व्यक्ति विनिमय साध्य लेख पत्र की परिपक्वता से पूर्व पृष्ठांकन करता है और सुपुर्द करता है और अपने दायित्व को सीमित नहीं करता है तो ऐसी दशा में वह प्रत्येक अगले धारी को अनादरण से हुई हानि की पूर्ति करने के लिए बाध्य होगा, बशर्ते कि उसे अनादरण अथवा अप्रतिष्ठित होने की सूचना दे दी गई हो अथवा उसे प्राप्त हो गई हो।

धारा 88 के अनुसार यदि विनिमय साध्य लेख पत्र में पहले से अर्थात् पृष्ठांकन के पूर्व में कोई परिवर्तन किया जा चुका है, तो पृष्ठांकन होने के बाद पृष्ठांकक इस आधार पर अपने दायित्व से मुक्त नहीं हो सकता।

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लेख पत्र के पूर्व पक्षकारों का दायित्व

(Liability of Prior Parties)

8. यथाविधिधारी के प्रति (In Favour of Holder in Due Course)-विनिमय-साध्य विलेख अधिनियम की धारा 36 के अन्तर्गत यह स्पष्ट प्रावधान है कि विनिमय साध्य लेख पत्र का प्रत्येक पूर्व पक्षकार यथाविधिधारी के प्रति उस समय तक उत्तरदायी रहता है, जब तक कि लेख पत्र का उचित रूप से भुगतान न कर दिया जाए।

9. लेखक, आहर्ता एवं स्वीकर्ता के मूल दायित्व (Liability of Maker, Drawer and Acceptor etc.)-विनिमय-साध्य विलेख अधिनियम की धारा 37 के अनुसार, प्रतिज्ञा पत्र अथवा चैक का लेखक स्वीकृति तक, विनिमय पत्र का आहार्ता तथा बाद में विनिमय पत्र का स्वीकर्ता किसी विपरीत अनुबन्ध के अभाव में मूल ऋणी की भाँति उत्तरदायी होते हैं और अन्य पक्षकार लेखक, आहर्ता अथवा स्वीकर्ता के लिये प्रतिभू के रुप में उत्तरदायी होते हैं।

10. एकदूसरे के प्रति दायित्व (Liability of each Subsequent Party)- विनिमय-साध्य विलेख अधिनियम की धारा 38 के अन्तर्गत यह स्पष्ट किया गया है कि उपरोक्त दशा में प्रतिभू के रुप में उत्तरदायी पक्षकारों के बीच प्रत्येक पूर्व पक्षकार प्रत्येक बाद वाले पक्षकार के प्रति मूल ऋणी के रुप में उत्तरदायी होता है।

11. पृष्ठांकनकर्ता का दायित्व से मुक्त होना (Discharge of Liability of Endorser)विनिमय-साध्य विलेख अधिनियम की धारा 40 के अन्तर्गत यह स्पष्ट किया गया है कि यदि किसी विनिमय साध्य लेखपत्र का धारक पृष्ठांकनकर्ता की बिना सहमति के किसी पूर्व पक्षकार के विरुद्ध पृष्ठांकनकर्ता के अधिकार को नष्ट कर देता है अथवा क्षति पहुंचाता है, तो पृष्ठांकनकर्ता धारक के प्रति अपने दायित्व से उस सीमा तक मुक्त हो जाता है, मानो कि परिपक्वता पर लेख पत्र का भुगतान हो गया था।

12. जाली पृष्ठांकन की दशा में (In case of forged Endorsement)- विनिमय-साध्य विलेख अधिनियम की धारा 41 के अनुसार, किसी पूर्व पृष्ठांकित विनिमय पत्र का स्वीकर्ता अपने दायित्व से इस आधार पर मुक्त नहीं हो सकता कि पृष्ठांकन जाली है, बशर्ते विनिमय पत्र को स्वीकार करते समय उसे पृष्ठांकन के जाली होने का ज्ञान था, अथवा ऐसा विश्वास करने के लिये पर्याप्त आधार था।

13. कल्पित नाम में आहरित बिल की स्वीकृति (Acceptance of bill Drawn in Fictitious Name)- जब कोई विनिमय पत्र किसी कल्पित नाम से आहर्ता की आज्ञा पर देय हो और उसी व्यक्ति के द्वारा आहर्ता के हस्ताक्षर के रुप में पृष्ठांकित किया गया हो, तो स्वीकर्ता यथाविधिधारी के प्रति यह नहीं कह सकता कि उक्त नाम कल्पित है।

14. बिना प्रतिफल के विलेखों के लिये दायित्व (Liability of Instrument without Consideration) विनिमय-साध्य विलेख अधिनियम की धारा 43 के अनुसार, बिना प्रतिफल के अथवा एस प्रतिफल, जो बाद में निष्फल हो गया हो, कोई विनिमय साध्य विलेख यदि लिखा, आहरित, स्वीकृति, पृष्ठाकित अथवा हस्तान्तरित किया गया हो, तो वह उस व्यवहार के लिये कोई दायित्व उत्पन्न नहीं करता।

लेकिन यदि ऐसे किसी पक्षकार ने मूल्य के बदले में विलेख को हस्तान्तरित कर दिया हो तो ल्याथधारी तथा उससे स्वत्वाधिकार वाले बाद के धारक विलेख की राशि हस्तान्तरक अथवा किसी पूर्व पक्षकार से वसूल करने के अधिकारी होते हैं।

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परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 धारी तथा यथाविधिधारी में अन्तर बताइये। विनिमय साध्य विलेख अधिनियम के अन्तर्गत यथाविधिधारी को जो अधिकार दिये गये हैं, उनकी पूर्ण रुप से व्याख्या कीजिये।

Distinguish between ‘holder and holder in due course’. Explain the specialprivileges granted to a holder in due course under the Negotiable Instrument.

2. यथाविधिधारी का स्वत्व समस्त दोषों से मुक्त होता है। उदाहरण सहित इस कथन की व्याख्या कीजिये।

A holder in due course has a title free from all defects. Explain the statement with examples.

3. प्रत्येक यथाविधिधारक का धारक होना अनिवार्य है, किन्तु प्रत्येक धारक यथाविधिधारक नहीं हो सकता विवेचना कीजिए।

For every holder in due course, it is essential to be the holder, but every holder can not be the holder in due course. Explain it.

4. विनिमय साध्य विलेख में पक्षकारों की क्षमता के सन्दर्भ में निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिये :

(i) क्या एक अवयस्क विनिमय साध्य विलेख लिख सकता है ?

(ii) क्या एक दिवालिया किसी विनिमय साध्य विलेख का पृष्ठांकन कर सकता है ?

Answer the following questions, in the context of the capacity of the parties in negotiable instruments :

(i) Can a minor make the negotiable instrument?

(ii) Can an insolvent, endorse any negotiable instrument?

5. विनिमय साध्य विलेख के विभिन्न पक्षकारों के दायित्वों का वर्णन कीजिये।

Describe the liabilities of various parties to Negotiable Instrument.

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 धारक तथा यथाविधिधारक में अन्तर बताइये।

Distinguish between holder and holder in due course.

2. मूल्य के लिये धारी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये ।

Write short note on Holder for value.

3. यथाविधिधारक से क्या आशय है ?

What is meant by Holder in due course ?

4. कौन धारक नहीं होता है?

Who is not a holder ?

5. विनिमय साध्य विलेख का धारक कौन हो सकता है?

Who can be a holder of a negotiable instrument?

6. कौन धारक होते हैं लेकिन यथाविधिधारक नहीं होते हैं ?

Who are the holder but not the holder in due course ?

7. चैक के देनदार या आहार्यो का दायित्व क्या है ?

What is the liability of the drawee of the cheque?

8. पृष्ठांकक का दायित्व क्या है ?

What is liability of endorser?

9. किन दशाओं में एक अधिकृत एजन्ट विनिमय साध्य विलेख अधिनियम के अनुसार देय राशि का भगतान करने के लिये व्यक्तिगत रुप से उत्तरदायी होगा?

Inder what conditions, an authorized agent will be personally liable for making ment of money, according to the Negotiable Instrument Act ?

10. विनिमय-साध्य लेख पत्र के मामले में अवयस्क की क्या स्थिति है ?

What is the position of a minor in the matter of a negotiable instrument?

सही उत्तर चुनिए

(Select the Correct Answer)

1 विनिमय साध्य लेखपत्र का पक्षकार कौन हो सकता है-

(Who can become the party to a negotiable instrument) :

(अ) अवयस्क (Minor)

(a) fallstell (Insolvent)

(स) प्रतिनिधि (Agent)

(द) उन्मत्त (Lunatic)

2. पूर्व पक्षकार का यथाविधिधारी के प्रति दायित्व होता है-

(Liability of Parties towards holde in due course is) :

(अ) अशत: उत्तरदायी (Partially liable)

(ब) पूर्णतः उत्तरदायी (Fully liable) (1)

(स) उत्तरदायी नहीं (Not liable)

(द) उपरोक्त में से कोई नहीं (None of the above)

3. यथाविधिधारी से सम्बन्धित धारा है-

(The Section of holder in due course is) :

(अ)9(1)

(ब) 8

(स) 10

(द) 11

4. यथाविधिधारी होने के लिये आवश्यक तत्व है-

(Essential element to be a holder in due course is):

(अ) धारक होना (To be holder)

(ब) प्रतिफल (Consideration)

(स) अच्छा स्वत्व (Good title)

(द) उपरोक्त सभी (All of the above) (1)

5. यथाविधिधारक एक विनिमय साध्य विलेख प्राप्त करता है-

(Holder in due course obtains a negotiable instrument) :

(अ) दोष रहित (Without defect)

(ब) दोष से मुक्त (Free from defect)(1)

(स) दोष सहित (With defect)

(द) उपयुक्त में से कोई नहीं (None of the above)

6. एक अवयस्क के पक्ष में लिखा गया विनिमय विपत्र होता है-

(A bill of exchange written in favour of minor is) :

(अ) वैध (Valid) (1)

(ब) व्यर्थ (Void)

(स) व्यर्थनीय (Voidable)

(द) अवैध (Invalid)

7. निम्नलिखित में से कौन वैध विनिमय पत्र लिखने के लिये अयोग्य है-

(Who is incompetent to draw a valid bill of exchange) :

(अ) दिवालिया (Insolvent) (1

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