BCom 1st Year Framework Implied Quasi Contracts Study Material notes in Hindi

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BCom 1st Year Framework Implied Quasi Contracts Study Material Notes in Hindi

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Implied Quasi Contracts
Implied Quasi Contracts

BCom 1st year Insolvency Accounts Study Material notes In Hindi

गर्मित अथवा अर्द्ध अनुबन्ध

(Implied or Quasi-contracts)

अर्द्ध, गर्भित या आभास अनुबन्ध का आशय

(Meaning of Quasi, Implied or Constructive Contracts)

अर्द्ध अनुबन्ध से आशय ऐसे अनुबन्ध से होता है जिसमें वैध अनुबन्ध के सभी लक्षण विद्यमान नहीं होते हैं लेकिन फिर भी उसे राजनियम द्वारा प्रवर्तनीय करवाया जा सकता है। ऐसे अनुबन्धों का निर्माण स्वतः ही राजनियम के प्रभाव से हो जाता है तथा पक्षकारों के बीच सामान्य रूप से कछ

अधिकार तथा दायित्व उत्पन्न हो जाते हैं। कभी-कभी ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं कि एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को कुछ प्रतिफल दूसरे व्यक्ति द्वारा किये गये कार्य या उठाई गई हानि के लिये देने हेतु बाध्य होता है। यद्यपि प्रथम व्यक्ति का यह दायित्व किसी अनुबन्ध के कारण उत्पन्न नहीं होता है. बल्कि परिस्थितियों के कारण उसका दायित्व अनुबन्ध द्वारा उत्पन्न दायित्व के समान ही हो जाता है। इस प्रकार उत्पन्न कानूनी दायित्व ही अर्द्ध अनुबन्ध कहलाते हैं। दूसरे शब्दों में, जब बिना किसी ठहराव के. केवल परिस्थितिवश अथवा पक्षकारों के व्यवहार के फलस्वरुप एक पक्ष का दूसरे पक्ष के पति कोई कानूनी दायित्व उत्पन्न हो जाता है तो उसे अर्द्ध (गर्भित) अनुबन्ध कहते हैं। स्पष्ट है कि इस प्रकार के अनुबन्ध में प्रत्यक्ष रुप से न तो कोई प्रस्ताव होता है और न उसकी स्वीकृति ही वरन् इन्हें बिना प्रस्ताव एवं स्वीकृति के होते हुये भी कानून की दृष्टि में अनुबन्ध माना जाता है।

अर्द्ध अनुबन्ध कानून द्वारा सृजित ऐसा अनुबन्ध है जो पक्षकारों द्वारा ठहराव किये बिना ही उत्पन्न हो जाता है। वस्तुत: अर्द्ध-अनुबन्ध पक्षकारों पर कानून द्वारा थोपा गया अनुबन्ध है। कानून ऐसा ‘समता के सिद्धान्त’ (Principle of Equity) के आधार पर करता है। इस सिद्धान्त के अनुसार कोई भी व्यक्ति अनुचित तरीके से किसी दूसरे व्यक्ति की हानि पर कोई लाभ नहीं उठा सकता।

एन्सन के अनुसार, “अर्द्ध-अनुबन्ध वह है जिसमें निम्नलिखित लक्षण विद्यमान हों

(i) यह अधिकार प्रत्येक परिस्थिति में हानि सहन करने वाले पक्ष के लाभ के लिए है;

(ii) यह अधिकार सार्वजनिक न होकर व्यक्तिगत है; तथा

(iii) इसका निर्माण पक्षकारों के पारस्परिक ठहराव से नहीं बल्कि विधि (कानुन) द्वारा होता है।

देसाई के अनुसार, “अर्द्ध-अनुबन्ध असाधारण प्रकार के अनुबन्ध हैं जिनमें एक पक्षकार दूसरे पक्षकार को कार्य करने अथवा कष्ट सहने के प्रतिफल स्वरुप धनराशि भुगतान करने के लिए बाध्य होता हैं। ये अनुबन्ध वास्तविक वचनों पर आधारित नहीं होते, किन्तु यह अनुबन्ध उस समय उत्पन्न होते हैं जबकि एक पक्षकार स्वतः इस प्रकार का आचरण करता है कि मानो उसने कोई प्रतिज्ञा को हो जबकि उसने कोई प्रतिज्ञा नहीं की है।”

निष्कर्ष-उपर्युक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने के पश्चात् अर्द्ध-अनुबन्ध की एक संक्षिप्त एवं उपयुक्त परिभाषा निम्नलिखित शब्दों में दी जा सकती है

“अर्द्ध-अनबन्ध एक ऐसा व्यवहार है जिसमें यद्यपि पक्षकारों के बीच कोई अ नुबन्ध नहीं होता है किन्तु सन्नियम के अनुसार उसमें सामान्य रुप से कुछ अधिकार और दायित्व उत्पन्न होते हैं।” इन अधिकारों और कर्तव्यों को न्यायालय के अन्तर्गत न्याय के आधार पर कार्यान्वित कराया जा सकता है। भारतीय अनुबन्ध अधिनियम में इन्हें “अनुबन्ध के समान कुछ नाते’ कहा गया है।

उदाहरण- रामलाल 100 टन कोयले का आदेश कोल सप्लाई लि० को भेजता है। कम्पनी गलती से रामप्रकाश को कोयले की सुपुर्दगी दे देती है। यद्यपि कम्पनी तथा रामप्रकाश के बीच प्रत्यक्ष रुप से कोई अनुबन्ध नहीं हुआ है तो भी रामप्रकाश का यह वैधानिक दायित्व होगा कि वह कोयले का मूल्य चुकाये या माल वापस करे, अन्यथा यह कम्पनी के प्रति अन्याय होगा। रामप्रकाश का यह दायित्व अनुबन्ध के कारण उत्पन्न नहीं हुआ है, अपितु परिस्थितिजन्य है।

Framework Implied Quasi Contracts

अर्द्ध-अनुबन्ध के लक्षण

(Characteristics of Quasi-Contracts)

(1) ऐसे अनुबन्ध पक्षकारों की इच्छा से उत्पन्न नहीं होते अपितु पक्षकारों पर कानून द्वारा थोपे (Imposed) जाते हैं।

(2) ऐसे अनुबन्ध में प्राय: एक पक्षकार दूसरे पक्षकार को कुछ धन चुकाने के लिए बाध्य होता है।

(3) ऐसे अनुबन्ध एक पक्षकार को किसी विशिष्ट पक्षकार के विरुद्ध ही कुछ अधिकार प्रदान करते है। अतएव ऐसे अनुबन्ध व्यक्तिगत होते हैं, सार्वजनिक नहीं।

(4) ऐसे अनुबन्ध में एक पक्षकार को दूसरे पक्षकार से धन प्राप्त करने का अधिकार होता है, निस्तीर्ण क्षतिपूर्ति का अधिकार नहीं।

(5) ऐसे अनुबन्ध राजनियमो के कारण उत्पन्न होते है। (6) इनमें वैध अनुबन्ध के सभी लक्षण विद्यमान नहीं होते हैं।

Framework Implied Quasi Contracts

अर्द्ध (गर्भित) अनुबन्धों के प्रकार

(Different kinds of Quasi (Implied) Contracts)

भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 68 से 72 में अर्द्ध-अनुबन्ध के निम्नलिखित रुपों की चर्चा की गई है

1 अनुबन्ध करने के अयोग्य व्यक्ति की आवश्यकताओं की पूर्ति करने से सम्बन्धित अर्द्ध-अनुबन्ध (धारा 68) (Quasi-contracts arising from the Supply of Necessities to those Persons who are Incompetent to Contract)- यदि अनुबन्ध करने के अयोग्य अथवा असमर्थ व्यक्ति को, या किसी ऐसे व्यक्ति को जिसका भरण-पोषण करने के लिये वह अयोग्य व्यक्ति वैधानिक रुप से बाध्य है, कोई अन्य व्यक्ति, अयं य व्यक्ति के जीवन-स्तर एवं सामाजिक स्तर के अनुकूल आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति करता है, तो तह अन्य व्यक्ति अयोग्य व्यक्ति की सम्पत्ति से भुगतान पाने का अधिकारी है।

अनुबन्ध करने में असमर्थ अथवा अयोग्य व्यक्तियों में पागल, अवयस्क, अथवा अस्वस्थ मस्तिष्क के व्यक्ति आते हैं तथा इन पर आश्रित व्यक्तियों में उसकी पत्नी, बच्चे तथा माता-पिता आते हैं। इसलिये आश्रित व्यक्ति को यदि जीवन की आवश्यकतायें प्रदान की गई हैं तो उनका भी वही प्रभाव होगा जो अयोग्य व्यक्ति के साथ किये गये व्यवहार का होता है। जीवन की आवश्यकताओं में सामान्यत: आवश्यक आवश्यकताओं को शामिल किया जाता है लेकिन उसमें सामाजिक प्रतिष्ठा की आवश्यकताओं को भी शामिल करना पड़ेगा जैसे बच्चों की अनिवार्य शिक्षा, अयोग्य व्यक्ति के मुकदमें का खर्चा तथा माता-पिता का धार्मिक संस्कारों के प्रति किया गया खर्च, उसकी आश्रित बहिन आदि की शादी का खर्चा। इन सब किये गये खर्चों के लिये अयोग्य व्यक्ति व्यक्तिगत रुप से दायी नहीं होता है बल्कि उसकी सम्पत्ति से ही यह राशि वसूल की जा सकती है। इस प्रकार धारा 68 से सम्बन्धित नियम इस प्रकार हैं- (i) वस्तुएं अयोग्य व्यक्ति को स्वयं अथवा उस पर आश्रित व्यक्ति को ही दी गई हों, (ii) दी गई वस्तुयें अयोग्य व्यक्ति के रहन-सहन के स्तर को ध्यान में रखते हुये आवश्यकता की वस्तयें (Necessaries) होनी चाहिये, (iii) जिस समय वस्तुयें दी गई उस समय अयोग्य व्यक्ति को उनकी वास्तव में जरुरत थी, (iv) वस्तुओं के उचित मूल्य की ही माँग की जा सकती है, अनुबन्धित मल्य की नहीं, (v) उचित मूल्य केवल अयोग्य व्यक्ति की सम्पत्ति से ही वसूल किया जा सकता है, व्यक्तिगत रुप से वह इसके लिये जिम्मेदार नहीं होता।

उदाहरण- अजय, एक पागल व्यक्ति महेश को उसके स्तर के अनुकूल आवश्यकता की कछ वस्तुयें देता है। अजय, महेश की सम्पत्ति में से मूल्य पाने का अधिकारी है। इसी प्रकार यदि अजय महेश (पागल व्यक्ति) के बाल बच्चों को उनके स्तर के अनुकूल आवश्यकता की वस्तयें देता है तब भी अजय, महेश की सम्पत्ति से दी गई वस्तुओं का भुगतान प्राप्त करने का अधिकारी है। दोनों ही परिस्थितियों में अयोग्य व्यक्ति के साथ कोई अनुबन्ध नहीं होता, परन्तु फिर भी आवश्यक वस्तयें देने वाला व्यक्ति गर्भित अनबन्ध के आधार पर अयोग्य व्यक्ति की सम्पत्ति से भगतान प्राप्त कर सकता है।

2. अपने हित के लिये किसी अन्य व्यक्ति द्वारा देय राशि का भुगतान कर देने से सम्बन्धित गर्भित अनुबन्ध (धारा 69) (Reimbursement of Person Paying Money)- यदि किसी व्यक्ति द्वारा किसी ऐसे दायित्व के लिये धन का भुगतान कर दिया गया हो, जो उसके हित में हो, परन्तु जिसके भुगतान करने का वैधानिक दायित्व किसी अन्य व्यक्ति पर हो, तो वह भगतान की राशि को उस व्यक्ति से प्राप्त कर सकता है जिस पर इसके भुगतान करने का दायित्व था। इस प्रकार धारा 69 क अन्तगर भुगतान की गई रकम प्राप्त करने के लिये निम्नलिखित शर्तों को परा करना आवश्यक है–(i) भुगतान ऐसे व्यक्ति द्वारा किया गया है जिसका उस भुगतान में हित हो लिये कानूनन बाध्य हो तथा (iii) वास्तव में भुगतान कर दिया गया हो। उदाहरणार्थ अतुल, विपुल मकान में किराये पर रहता है। किरायेनामे के अनुसार पानी का बिल अदा करने की जिम्मेदारी मकान मालिक की थी। परिस्थितिवश विपुल ने नगरपालिका को पानी के बिल का भुगतान नहीं किया तथा नल काटने का नोटिस प्राप्त हुआ। नल कट जाने के कारण राम को पानी उपलब्ध नहीं हो सकेगा. अ. अतल नगरपालिका को पानी के बिल का भुगतान कर देता है। यहां पर अतुल पानी के बिल की भुगतान कर सकता है क्योकि पानी के बिल के भुगतान में अतुल का हित स्वाभाविक है।

3. स्वेच्छा से परन्त शल्क लेने की भावना से किये गये कार्यों से सम्बन्धित गर्भित अब (धारा 70) (Obligation of Person Enjoying Benefit of a Non-gratutious Act)- जब कोर्ट व्यक्ति निःशल्क या उपकार के अभिप्राय के बिना किसी दूसरे व्यक्ति के लिये कोई कार्य करता अथवा उसे कोई वस्तु प्रदान करता है और दूसरा व्यक्ति उस कार्य या वस्तु का लाभ उठा लेता र वह उस कार्य या वस्तु के लिये पहले व्यक्ति को पारिश्रमिक या मूल्य का भुगतान करने के लिये बाधा है। उदाहरणार्थ, अतुल गलती से कुछ माल भरत के घर दे आता है। भरत उस माल को अपना मानकर उपयोग कर लेता है। यहाँ पर भरत, अतुल को इस माल का मूल्य चुकाने के लिये बाध्य है।

4. खोई हुई वस्त पाने वाले का दायित्व (Responsibility of the Finder of Goods)- जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की खोई हुई वस्तु पाता है और उसे अपने अधिकार में ले लेता है तो उसके और वस्तु के स्वामी के बीच एक गर्भित अनुबन्ध स्थापित हो जाता है। धारा 71 के अनसार ऐसे व्यक्ति के अधिकार एवं दायित्व बिल्कुल एक निक्षेपग्रहीता (Bailee) के समान ही होते हैं। अत: उसका कर्तव्य है, कि वह पाये हुये माल की उचित सुरक्षा करे, वास्तविक स्वामी को खोजने का उचित प्रयास करे, तथा स्वामी को उसकी वस्तु लौटा दे। साथ ही माल को पाने वाले व्यक्ति का यह अधिकार है कि माल की सुरक्षा, स्वामी की खोज तथा माल को वापस करने के सम्बन्ध में किये गये उचित व्यय तथा पारिश्रमिक स्वामी से वसूल कर सकता है। उल्लेखनीय है कि पाने वाले व्यक्ति को यह अधिकार नहीं है कि वह माल के स्वामी पर अपनी मांगों के लिये वाद योजित कर सके, परन्तु वह माल पर विशिष्ट ग्रहणाधिकार लागू कर सकता है अर्थात् वस्तु को उस समय तक रोके रख सकता है जब तक कि स्वामी द्वारा उसके उचित व्ययों का भुगतान न कर दिया जाये। वह माल के स्वामी द्वारा घोषित पुरस्कार को पाने का भी अधिकारी है। कुछ परिस्थितियों में वह वस्तु को बेचने का अधिकारी भी होता है।

5. गलती अथवा उत्पीड़न के अधीन प्राप्त धन अथवा वस्तु वापस करने का दायित्व (धारा-72) (Liability to Return Money or Goods Received by Mistake or Under Coercion)- भूल (गलती) अथवा उत्पीड़न (बल-प्रयोग) के कारण यदि कोई धनराशि अथवा वस्तु एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति ने प्राप्त कर ली हो, तो दूसरा व्यक्ति प्राप्त धन या वस्तुओं को पहले व्यक्ति को लौटाने के लिये उत्तरदायी होता है। उदाहरणार्थ, ‘अ’ तथा ‘ब’ संयुक्त रुप से ‘स’ के प्रति 500 ₹ के ऋणी हैं। ‘अ’, ‘स’ को 500 ₹ चुका देता है परन्तु ‘ब’ को इस बात की जानकारी नहीं है और वह भी ‘स’ को 500 ₹ चुका देता है। ‘स’ 500₹ ‘ब’ को लौटाने के लिये बाध्य है।

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 अर्द्ध अनुबन्ध से क्या आशय है? ऐसे अनुबन्ध के उदाहरण दीजिये।

What is Ouasi Contract? Give Illustrations of such contracts.

2. अर्द्ध अनुबन्ध तथा अनुबन्ध में अन्तर स्पष्ट कीजिये। विभिन्न अर्द्ध अनबन्धों का वर्णन कीजिये।

Point out the differences between Quasi Contract and Contract. Describe the various Quasi Contracts

3. अर्द्ध अनुबन्ध वास्तव में हैं किन्तु राजनियम में नहीं हैं।” समीक्षा कीजिये। अर्द्ध अनुबन्धों के प्रकारोंको बताइये।

Quasi Contract are in fact but not in law.” Comment. Mention the types of Quasi Contracts. ”

4. अनुबन्ध कला न्याथिक सिद्धान्तों पर उत्पन्न विधि है, न कि दो पक्षों में हुए सांविधिक ठहराव से उत्पन्न उपयुक्त उदाहरण देते हुए समझाइये।

Quasi Contract is not the product of any contractual agreement entered into between the parties but a creation of law on the basis of equitable principles.” Discuss by giving suitable examples.

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 अर्द्ध अनुबन्ध को परिभाषित कीजिये।

Define Quasi Contract

2. अर्द्ध अनुबन्ध को उदाहरण द्वारा समझाइये।

Explain the meaning of Quasi Contract by giving example.

3. अर्द्ध निर्मित अनुबन्ध में दायित्व राजनियम द्वारा थोपा जाता है। समझाइये।

Liability is imposed by law in a Quasi Contract. Explain.

4. अपने हित के लिये दूसरे व्यक्ति की ओर से भुगतान करने वाले व्यक्ति के अधिकार बताइये।

Explain the rights of a person making payment due to another for his own interest.

5. माल पाने वाले के क्या कर्त्तव्य तथा अधिकार है?

What are the rights and duties of a finder of goods?

6. अर्द्ध अनुबन्ध पर टिप्पणी लिखिये।

Write a note on Quasi Contract.

Framework Implied Quasi Contracts

व्यावहारिक समस्याएँ

(Practical Problems)

PP1. एक व्यापारी A, गलती से B के घर पर कुछ वस्तुएं भूल जाता है। B उन वस्तुओं को अपना समझकर उनका उपयोग कर लेता है। A को क्या अधिकार प्राप्त होंगे?

A; trader leaves gonds at B’s house by mistake. A treats the goods as his own. What are A’s rights?

उत्तर-A उन वस्तुओं के मूल्य की वसूली B से करने का अधिकारी है। धारा 70 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को कोई वस्तु सुपुर्द करता है जो स्वेच्छापूर्वक तो था किन्तु शुल्क या मूल्य न लेने के अभिप्राय से नहीं था तथा यदि दूसरा व्यक्ति उन वस्तुओं का उपयोग कर लेता है तो दूसरा व्यक्ति उस वस्तु की क्षतिपूर्ति हेतु या उस वस्तु को पहले वाले व्यक्ति को लौटाने के लिए बाध्य

PP2. रेलवे कम्पनी गैर कानूनी प्रभार की राशि लिये बगैर प्रेषणी को माल की सपुर्दगी देने से इन्कार कर देती है। माल प्राप्त करने के उद्देश्य से प्रेषणी, प्रभार की राशि का भुगतान कर देता है। क्या वह भुगतान किये गये प्रभार की राशि को वसूल सकता है ?

A railway company refuses to deliver goods to the consignee except upon the payment of illegal charge for carriage. The consignee pays the sum in order to obtain the goods. Can he recover the amuunt paid ?

उत्तर-धारा 72 के अन्तर्गत प्रेषणी भुगतान किये गये प्रभार की राशि वसूल करने का अधिकारी है क्योंकि उसे बल-प्रवर्तन द्वारा अवैधानिक प्रभार का भुगतान करने के लिए विवश किया गया है।

PP3.A गलती से कुछ धन का भुगतान को कर देता है, जो वास्तव में C को देय है। क्या C उस धन की वसूली B से कर सकता है ?

A pays some money to B by mistake. It is really due to C. Can C recover the amount from B?

उत्तर-नहीं, C उस धन की वसूली B से नहीं कर सकता क्योंकि B और C के बीच न्याय संगत सम्बन्ध व अनुबन्ध का अभाव है। यद्यपि धारा 72 के अधीन B को आवश्यक रुप से वह धनराशि A को लौटानी पड़ेगी।

PP4.A और B ने संयुक्त रुप से C से 100 ₹ उधार लिये हैं। A,C को 100 ₹ का भुगतान कर देता है। B को इस बात की जानकारी नहीं है और वह भी C को 100 ₹ का भुगतान कर देता है। क्या C अतिरिक्त प्राप्त हुए 100 ₹ B को लौटाने हेतु बाध्य है ? ।

A and B jointly owe ₹ 100 to C. A pays ₹ 100 to C. B not knowing it pays a another ₹ 100. Is C bound to return ₹ 100 received extra by him ?

उत्तर-हाँ, C अतिरिक्त प्राप्त किये गये 100 ₹ B को लौटाने के लिए बाध्य है। धारा 72 के। अनसार, “यदि एक व्यक्ति को, जिसे गलती से अथवा उत्पीड़न के अन्तर्गत किसी रकम का भुगतान किया गया है, तो वह व्यक्ति उस रकम को लौटाने के लिए बाध्य है।”

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chetansati

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