BCom 1st Year Business Regulatory Framework Negotiation Assignment Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Regulatory Framework Negotiation Assignment Study Material Notes in Hindi

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Negotiation Assignment Study Material
Negotiation Assignment Study Material

BCom 1st Year Framework Holder & Holder Due Course Study Material notes in Hindi

परक्रामण एवं अभिहस्तांकन 

(Negotiation and Assignment)

एक विनिमय-साध्य विलेख की महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसे बहुत सरलता से स्वतन्त्रता पर्वक एक व्यक्ति से दसरे व्यक्ति को हस्तान्तरित किया जा सकता है। विलेख का हस्तान्तरण निम्नलिखित दो प्रकार से किया जा सकता है

1 परक्रामण द्वारा हस्तान्तरण (Transfer by Negotiation)

2. अभिहस्तांकन द्वारा हस्तान्तरण (Transfer by Assignment)

Framework Negotiation Assignment

1 परक्रामण द्वारा हस्तान्तरणधारा 14 के अनुसार, “जब कोई प्रतिज्ञा-पत्र, विनिमय-विपत्र अथवा चैक किसी व्यक्ति को उसका धारक बनाने के उद्देश्य से हस्तान्तरित कर दिया जाता है तो यह कहा जायेगा कि विलेख का परक्रामण हो गया है। इस परिभाषा के आधार पर परक्रामण के लिये आवश्यक है कि (i) विलेख का हस्तान्तरण एक व्यक्ति से दूसरे को हो, तथा (ii) हस्तान्तरण, हस्तान्तरी को धारक बनाने के उद्देश्य से किया जाये। यहाँ पर दूसरी शर्त काफी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यदि। हस्तान्तरण केवल विलेख की सुरक्षा के लिये अथवा अन्य किसी विशेष उद्देश्य से किया जाये तो उसे परक्रामण नहीं कह सकते। उदाहरणार्थ- यदि राम, श्याम को एक चैक इस उद्देश्य से सुपुर्द करे कि श्याम उस चैक को अपने पास सुरक्षित रखे तो श्याम को चैक का परक्रामण नहीं माना जायेगा क्योंकि यहाँ पर श्याम को चैक की सुपुर्दगी निक्षेपग्रहीता के रुप में की गई है न कि धारक के रुप में।

विलेख के धारक से आशय उस व्यक्ति से है जो विलेख को अपने नाम से अपने पास रखने तथा विलेख में लिखित धनराशि को विलेख से सम्बन्धित पक्षकारों से प्राप्त करने का अधिकारी होता है। इस प्रकार परक्रामण का उद्देश्य हस्तान्तरिती को विलेख का कानूनी कब्जा दिलाना है और इसके द्वारा विद्यमान धारक के अधिकार, उसका स्वामित्व तथा विलेख में निहित सभी हित हस्तान्तरिती को प्राप्त हो जाते हैं और वह स्वयं विलेख का धारक बन जाता है। इसके अतिरिक्त परक्रामण में हस्तान्तरी को हस्तान्तरक से अच्छा स्वामित्व प्राप्त होता है।

2. परक्रामण कौन कर सकता है ? (Who Can Negotiate ?)-धारा 51 के अनुसार, विलेख का लेखक (Maker or Drawer), आदाता (Payee) या पृष्ठांकिती (Endorsee) विलेख का परक्रामण कर सकता है यदि विलेख की परक्राम्यता अर्थात् उसके हस्तान्तरण पर कोई रोक नहीं लगाई गई है। यदि विलेख के लेखक, आदाता अथवा पृष्ठांकनकर्ता एक से अधिक व्यक्ति हैं तो वे संयुक्त रुप से विलेख का परक्रामण कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त परक्रामण के लिये आवश्यक है कि विलेख का धारक ही परक्रामण कर सकता है। यदि किसी अधिकृत व्यक्ति की मृत्यु हो गई है तो उसका वैधानिक प्रतिनिधि परक्रामण करने का अधिकारी है। अतः एक अजनबी व्यक्ति (Stranger) जो विलेख का धारक नहीं है, परक्रामण नहीं कर सकता।

Framework Negotiation Assignment

परक्रामण की रीतियाँ

(Methods of Negotiation)

एक विनिमय साध्य विलेख का परक्रामण निम्नलिखित दो प्रकार से किया जा सकता है

1.सुपुर्दगी द्वारा परक्रामण (Negotiation by Delivery)

2. सुपुर्दगी तथा पृष्ठांकन द्वारा परक्रामण (Negotiation by Endorsement and Delivery)

1 सुपुर्दगी द्वारा परक्रामण (Negotiation by Delivery)- विनिमय साध्य विलेख अधिनियम की धारा 47 के अनुसार वाहक को देय प्रतिज्ञा-पत्र, विनिमय-पत्र अथवा चैक का परक्रामण सुपुदगा। द्वारा हो जाता है।

अपवाद किन्तु यदि कोई प्रतिज्ञा-पत्र, विनिमय-पत्र अथवा चैक इस शर्त पर दिया गया हो तो उसका प्रभाव केवल किसी निश्चित घटना के बाद प्रारम्भ होगा, तो वह उस समय तक परक्रामण किया।

अतः “वाहक को देय’ विलेख की केवल सुपुर्दगी कर देने से ही उसका परक्रामण हो जाता है। न यहाँ यह महत्त्वपूर्ण है कि परक्रामण के लिये दी जाने वाली सुपुर्दगी में धारा 46 के अनुसार, दो विशेषताओं का होना आवश्यक है:

Framework Negotiation Assignment

(i) सपर्दगी स्वेच्छापूर्वक विलेख के निर्माता, स्वीकर्ता या पृष्ठांकनकर्ता ने अथवा इस आशय के लिये उसके द्वारा अधिकृत किसी व्यक्ति ने की हो, तथा

(ii) सपुर्दगी का उद्देश्य विलेख में निहित स्वामित्व को निरपेक्ष रुप से (Absolutely) हस्तान्तरित करना हो। इन दोनों विशेषताओं के होने पर ही सुपुर्दगी प्रभावी मानी जाएगी।

उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि परक्रामण के सम्बन्ध में ‘सुपुर्दगी’ शब्द का विशेष महत्त्व है। यहाँ पर सुपुर्दगी से अभिप्राय विलेख के स्वामित्व का स्वेच्छापूर्वक हस्तान्तरण करने से है।

उदाहरण 1- यदि वाहक को देय विलेख खो जाये तो पाने वाले को अच्छा स्वामित्व प्राप्त नहीं होगा। हाँ, यदि पाने वाला विलेख को यथाविधिधारक को हस्तान्तरित कर देता है तो उसे अच्छा स्वामित्व प्राप्त हो जायेगा।

2. यदि लेखक एक प्रतिज्ञापत्र लिखकर मर जाये और प्रतिज्ञा-पत्र उसकी अलमारी से प्राप्त किया जाये तो आदाता प्रतिज्ञा-पत्र की रकम प्राप्त नहीं कर सकता चाहे प्रतिज्ञा-पत्र उसके नाम में हो क्योंकि इसकी सुपुर्दगी मृतक द्वारा आदाता (Payee) को नहीं दी गई थी।

सुपुर्दगी के प्रकार (Kinds of Delivery)- सुपुर्दगी निम्नलिखित प्रकार की हो सकती है

(i) वास्तविक सुपुर्दगी (Actual Delivery)- जब वास्तविक या भौतिक रुप से (Physically) विलेख का कब्जा एक व्यक्ति द्वारा दूसरे को दे दिया जाता है तो उसे वास्तविक सुपुर्दगी कहते हैं।

(ii) रचनात्मक सुपुर्दगी (Constructive Delivery)- जब विलेख का कब्जा पृष्ठांकिती को न देकर उसके एजेन्ट, क्लर्क अथवा कर्मचारी को दे दिया जाता है तो उसे रचनात्मक सुपुर्दगी कहते हैं। कभी-कभी पृष्ठांकक पृष्ठांकन कर देने के बाद, पृष्ठांकिती के एजेन्ट के रुप में, विलेख को अपने पास भी रख सकता है। ऐसी दशा में भी इसे रचनात्मक सुपर्दगी माना जाता है।

(iii) शर्त सहित सुपुर्दगी (Conditional Delivery)- जहाँ विलेख की सुपुर्दगी देते समय हस्तान्तरक कोई शर्त लगाता है जिसका पूरा होना अनिवार्य है तब परक्रामण ऐसी शर्त पूरी होने पर ही पूर्ण माना जायेगा। परन्तु ऐसी शर्त केवल हस्तान्तरिती को ही बाध्य करती है जिसने कि उस विलेख को सम्बन्धित शर्त के अधीन स्वीकार किया है। यदि ऐसा हस्तान्तरिती उस विलेख को किसी यथाविधिधारी को सुपुर्द कर देता है तो यथाविधिधारी को विलेख पर अच्छा अधिकार प्राप्त हो जायेगा तथा प्रत्येक पूर्व पक्षकार यथाविधिधारी के पूर्ण भुगतान के लिये उत्तरदायी होगा।

Framework Negotiation Assignment

2. सपर्दगी तथा पृष्ठांकन द्वारा परक्रामण (Negotiation by Endorsement and Delivery)- विनिमय साध्य विलेख अधिनियम की धारा 48 के अनुसार, “आदेश पर देय विलेख का परक्रामण ‘बेचान तथा सुपुर्दगी’ दोनों के द्वारा ही हो सकता है। यदि कोई चैक ‘Anju or order’ को देय है तो इसका परक्रामण उक्त चैक पर अन्जू द्वारा पृष्ठांकन करके तथा सम्बन्धित व्यक्ति को उसकी सुपुदगी देकर ही किया जा सकता है।”

3. अभिहस्तांकन द्वारा हस्तान्तरण (Transfer by Assignment)-विनिमय साध्य विलेख अधिनियम में विलेख का हस्तांतरण करने की इस विधि का कोई वर्णन नहीं किया गया है। अभिहस्तांकन के सम्बन्ध में सम्पत्ति-हस्तान्तरण अधिनियम, 1882 (Transfer of Property Act) के अन्तर्गत म व्यवस्था की गई है। अभिहस्तांकन से आशय सम्पत्ति हस्तान्तरण अधिनियम, 1882 (Transfer of Property Act) के अधीन किसी विलेख (प्रतिज्ञा-पत्र, विनिमय-पत्र या चैक) का लिखित तथा नियमानुसार स्टाम्प लगे हये रजिस्टर्ड दस्तावेज द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को स्वामित्व का हस्तान्तरण करना है। इस विधि के द्वारा विलेख को हस्तान्तरण करने की विधि बहत पेचीदा तथा लम्बी है।

इसके अतिरिक्त इसमें एक बड़ा भारी दोष यह है कि हस्तान्तरी को हस्तान्तरक से अच्छा पामित्व प्राप्त नहीं होगा। उदाहरण के लिये, यदि एक व्यक्ति. वाहक को देय विलेख को चुराकर उसका अभिहस्ताकन द्वारा हस्तातरण कर दे तो हस्तान्तरी को भी उस विलेख पर चोर जैसा स्वामित्व हा त्रास क्योंकि हस्तान्तरक का स्वामित्व दूषित था। अतः अभिहस्तांकन द्वारा हस्तान्तरो यथावाय नाता वह केवल धारक ही बनता है। व्यवहार में प्रायः अभिहस्तांकन द्वारा विलेख क हस्तान्तरण कोई उदाहरण अपवाद स्वरुप ही देखने को मिलता है। वैसे यदि कोई अभिहस्तांकन द्वारा हस्तान्तरण करना चाहे तो वह ऐसा करने के लिये स्वतन्त्र है।

Framework Negotiation Assignment

परक्रामण तथा अभिहस्तांकन में अन्तर

(Difference Between Negotiation and Assignment)

Framework Negotiation Assignment

पृष्ठांकन (Endorsement)

परिभाषा (Definition)– विनिमय साध्य विलेख अधिनियम की धारा 15 के अनुसार, “जब किसी विनिमय साध्य विलेख का लेखक या धारक, लेखक के रुप में नहीं, बल्कि परक्रामण के आशय से उसकी पीठ या उसके पीछे के भाग पर या मुख पर या संलग्न कागज की चिट पर अपने हस्ताक्षर करता है अथवा उसी उद्देश्य से किसी स्टाम्प लगे हुए ऐसे कागज पर हस्ताक्षर करता है, जो कि बाद में एक विनिमय साध्य विलेख के रुप में पूरा किया जाता हो, तो वह उसका पृष्ठांकन करता है और उस विलेख का पृष्ठांकनकर्ता कहते हैं।”

वह व्यक्ति, जिसके पक्ष में पृष्ठांकन किया जाता है, उसे पृष्ठांकिती (Endorsee) कहते हैं।

अत: पृष्ठांकन से आशय साधारणतया किसी विलेख के पीछे कुछ लिखने या मुद्रित करने से है। किसी चैक, प्रतिज्ञा-पत्र या विनिमय-पत्र के पृष्ठांकन का अर्थ इन विलेखों के पीछे किसी व्यक्ति का नाम परक्रामण के उद्देश्य से लिखने से है। पृष्ठांकन विलेख के पीछे किया जाना चाहिए तथा उस पर पृष्ठांकन। करने वाले व्यक्ति के हस्ताक्षर होने चाहिए। यदि विलेख के पीछे पृष्ठांकक केवल अपने हस्ताक्षर कर तो यह भी पृष्ठांकन हेतु पर्याप्त होगा। यह जरुरी नहीं है कि हस्ताक्षर के साथ कुछ और शब्द भी जाएं। लेकिन यह ध्यान देने योग्य है कि विलेख पर पृष्ठांकन को प्रभावी (effective) बनाने के हस्ताक्षर या तो विलेख के ऊपर किये गए हो या उसके साथ संलग्न पुर्जे या प्रपत्र पर। विलेख के

पर पृष्ठांकन भी वैध माना जाता है। इस धारा के अनुसार विलेख के पीछे किसी ऐसे व्यक्ति का साक्षर जो कि न तो विलेख का लिखने वाला है और न ही धारक है, पृष्ठांकन नहीं कहा जा सकता। वैधानिक रुप से पृष्ठांकनों की संख्या पर कोई प्रतिबन्ध नहीं लगाया गया है। इसलिए यह सम्भव है कि विलेख का सम्पूर्ण स्थान पृष्ठांकनों से भर जाए और विलेख पर और अधिक पृष्ठांकन करने के लिए कोई स्थान ही न बचे। इस स्थिति में विलेख के साथ कागज की एक पर्ची नत्थी कर दी जाती है जिसे संलग्न पत्र (allonge) कहा जाता है और बाद के सभी पृष्ठांकन इसी पर्ची पर किये जाते हैं। यह विलेख का ही एक हिस्सा बन जाता है। विलेख पर इस प्रकार पृष्ठांकन करने वाले को पृष्ठांकक (Endorser) कहते हैं।

पृष्ठांकन के पूरा होने के लिए यह भी आवश्यक है कि विलेख की सुपुर्दगी कर दी जाए। सुपुर्दगी स्वयं पृष्ठांकक अथवा उसकी ओर से अधिकृत किसी एजेन्ट द्वारा की जानी चाहिए। जब तक विलेख की सुपुर्दगी नहीं की जाती, तब तक विलेख पर पृष्ठांकक का अनुबन्ध अपूर्ण माना जाता है और किसी भी समय रद्द किया जा सकता है।

वैध पृष्ठांकन के लक्षण (Essentials of a Valid Endorsement)

(i) पृष्ठांकन विलेख के लेखक या धारक अथवा आहर्ता या आदाता या पृष्ठांकिती द्वारा किया जाना चाहिए।

(ii) पृष्ठांकन विलेख की पीठ पर या मुख पर अथवा उसके साथ संलग्न किसी कागज पर किया जाना चाहिए।

(iii) विलेख पर पृष्ठांकनकर्ता का हस्ताक्षर होना आवश्यक है। हस्ताक्षर, विलेख में किये गए हस्ताक्षर से मेल खाना चाहिए।

(iv) यदि विलेख के लेखक द्वारा पृष्ठांकन किया जाता है तो वह तभी पूर्ण माना जाएगा जब उसने लेखक के रुप में हस्ताक्षर करने के अतिरिक्त पृष्ठांकनकर्ता के रुप में भी हस्ताक्षर किया हो।

(v) सुपुर्दगी के पूर्व विलेख का पूर्ण होना आवश्यक है, लेकिन धारा 20 के अनुसार एक अपूर्ण विलेख का लेखक अथवा धारक उसका पृष्ठांकन कर सकता है, बशर्ते उस पर आवश्यक स्टाम्प लगा हुआ हो।

(vi) पृष्ठांकन की संख्या पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है, अर्थात् एक पृष्ठांकित विलेख का फिर से पृष्ठांकन किया जा सकता है।

Framework Negotiation Assignment

विलेख का पृष्ठांकन कौन कर सकता है? (Who can Endorse?):

निम्नलिखित पक्षकारों में से कोई भी व्यक्ति या पक्षकार विनिमय साध्य विलेख का पृष्ठांकन कर सकता है। ये पक्षकार पृष्ठांकन केवल उसी दशा में कर सकते हैं, जबकि विलेख का पृष्ठांकन वर्जित या प्रतिबन्धित नहीं है।

1 विलेख का आदाता (Payee of the Instrument)- प्रत्येक विलेख का आदाता पृष्ठांकन कर सकता है।

2. विलेख का लेखक (Writer of Instrument)- विलेख का लेखक उसका पृष्ठांकन कर सकता है लेकिन वह हस्ताक्षर लेखक के रुप में न करके अन्य किसी रूप में या हैसियत से करने चाहिये।

3. विलेख का पृष्ठांकक (Endorsee of Instrument)- विलेख का पृष्ठांकक विलेख का पृष्ठांकन कर सकता है।

4. विलेख के संयुक्त आदेशक (Joint Makers of Instrument)-विलेख का पृष्ठाकना विलख के संयुक्त आदेशक कर सकते हैं। इसमें विलेख का लेखक, आदाता या पष्ठांकिती, सभी उसका। पृष्ठांकन कर सकते हैं।

लेखक, आदाता, आदेशक या पृष्ठांकक उसी दशा में पष्ठांकन कर सकेंगे. जबकि वे विलख का धारक होंगे।

5. 5. साझेदार (Partner)- कोई भी साझेदार किसी विपरीत ठहराव के अभाव में साझदारा सस्था की ओर से विलेख का पृष्ठांकन कर सकता है।

पृष्ठांकन के प्रकार

(Kinds of Endorsements)

1 कोरा पृष्ठांकन और पूर्ण पृष्ठांकन (धारा 16) (Endorsement “in blank” and Endorsement “in full”)-धारा 16 (1) के अनुसार अगर पृष्ठांकक विलेख के ऊपर उसके पीछे केवल अपने हस्ताक्षर करता है तो ऐसे पृष्ठांकन को कोरा पृष्ठांकन कहते हैं। ऐसी स्थिति में विलेख वाहक को देय बन जाता है, भले ही आरम्भ में यह विलेख आदेश पर देय था। इसके विपरीत यदि पृष्ठांकक हस्ताक्षर करने के पश्चात् इस तरह का एक निर्देश जोड़ देता है कि विलेख की राशि किसी विशेष व्यक्ति को अथवा उसके आदेश पर भुगतान की जाए, तो इसे पूर्ण पृष्ठांकन कहा जाएगा।

कोरे पृष्ठांकन को सामान्य पृष्ठांकन (general endorsement) के नाम से भी जाना जाता है। इस पृष्ठांकन में विलेख के पृष्ठांकिती का नाम नहीं लिखा जाता है। इसमें पृष्ठांकन करने वाले द्वारा सिर्फ हस्ताक्षर किए जाते हैं और उसके बाद यह एक वाहक विलेख बन जाता है। उदाहरण के लिए एक बिल है जो मोहनलाल या उसके द्वारा आदेशित व्यक्ति को देय है। इस बिल के पीछे वह अपने हस्ताक्षर इस प्रकार कर देता है ‘मोहन लाल’। यह ‘मोहन लाल’ के द्वारा किया गया एक कोरा पृष्ठांकन है। इस स्थिति में जब तक पृष्ठांकन कोरा रहता है, इस विलेख के अधिकार केवल सुपुर्दगी द्वारा ही हस्तान्तरित किए जा सकते हैं, ठीक उसी तरह जैसे कि एक वाहक विलेख में होते हैं।

पूर्ण पृष्ठांकन को विशेष पृष्ठांकन (special endorsement) के नाम से भी जाना जाता है। इसमें पृष्ठांकक के हस्ताक्षर के साथ उस व्यक्ति का नाम भी लिखा जाता है जिस व्यक्ति को अथवा उसके द्वारा आदेशित अन्य व्यक्ति को विलेख का भुगतान किया जाना है। उदाहरण के लिए विलेख के पीछे लिखा है “श्याम को भुगतान करो” (Pay to Shyam) अथवा “श्याम को अथवा आदेशी को भुगतान करो” (Pay to Shyam or Order) और उसके साथ पृष्ठांकन करने वाले के हस्ताक्षर भी हैं, तो ऐसे पृष्ठांकन को पूर्ण या विशेष पृष्ठांकन माना जाता है।

धारा 54 के अनुसार एक विनिमय-साध्य विपत्र का जो कि आदेशिती को देय है, कोरा पृष्ठांकन किया जा सकता है और उसकी सुपुर्दगी किसी भी व्यक्ति को दी जा सकती है। इस पृष्ठांकन और सुपुर्दगी का यह प्रभाव होता है कि यह आदेशित विलेख, वाहक विलेख में बदल जाता है और इस विलेख का भुगतान एक वाहक को हो सकता है। साथ ही इसका हस्तांतरण भी केवल सुपुर्दगी द्वारा ठीक उसी तरह हो सकता है जैसे कि यह विलेख मूल रुप में वाहक को देय विलेख के रुप में लिखा गया हो। लेकिन अगर एक आदेशित चैक जो कि रेखांकित भी है, तो भुगतानकर्ता बैंकर को रेखांकन के नियमों के अनुसार ही उसका भुगतान करना पड़ेगा।

कोरे पृष्ठांकन को पूर्ण पृष्ठांकन में बदलना (Conversion of endorsement in blank into endorsement in full) धारा 49 के अनुसार किसी कोरे पृष्ठांकन किए हुए विलेख का धारक, बिना अपने हस्ताक्षर किए, पिछले पृष्ठांकक के हस्ताक्षर के ऊपर किसी पृष्ठांकिती को भुगतान सम्बन्धी निर्देश देकर, विलेख के कोरे पृष्ठांकन को पूर्ण पृष्ठांकन में बदल सकता है और इस तरह धारक अपने लिए एक पृष्ठांकक के दायित्व की भी उत्पत्ति नहीं करता। इस धारा के अनुसार किसी ऐसे विलेख का धारक जो साधारण रुप से पृष्ठांकित है, उसको विशेष पृष्ठांकन में बदल कर सकता है। ऐसा करने के लिए उसे केवल पृष्ठांकक के हस्ताक्षर के ऊपर एक निर्देश लिखना पड़ता है। यह निर्देश किसी दूसरे व्यक्ति को या आदेशी को विलेख में लिखी रकम चुकाने का होता है। इस तरह की कार्यवाही का सबसे बड़ा लाभ यह है कि धारक यद्यपि विलेख का हस्तांतरण करता है, फिर भी पृष्ठांकक के रुप में उसका कोई भी दायित्व नहीं होता।

Framework Negotiation Assignment

(Hischfeld Vs. Smith (1866), L.R. I C.P. 340)

धारा 55 के अनुसार किसी विलेख के कोरे पृष्ठांकक से इसकी परी राशि के लिए दावा नहीं किया जा सकता सिवाय उस व्यक्ति के जिसके पक्ष में यह पृष्ठांकन हुआ है।

2. देय राशि की आंशिक रकम के लिए पृष्ठांकन या आंशिक पृष्ठांकन (धारा 56) (Endorsement for part of sum due or partial endorsement) धारा 56 के अनसार विनिमय-साध्य विलेख पर कोई भी लिखित आदेश अगर विपत्र में लिखी गयी रकम के किसी एक भाग का परक्रामण करने के उद्देश्य से दिया गया है तो वह वैध नहीं होगा, लेकिन उस स्थिति में. जब विलेख की रकम का आंशिक भुगतान पहले ही किया जा चुका है, ऐसी स्थिति में इसका उल्लेख विलेख पर कर। दिया जाना चाहिए और उसके पश्चात् शेष रकम के लिए विलेख का परक्रामण किया जा सकता है।

इस धारा के अनुसार विलेख की रकम के किसी भाग का हस्तान्तरण करने पर प्रतिबन्ध लगाया है। इसका कारण यह है कि एक व्यक्तिगत अनुबन्ध को कई भागों में विभक्त नहीं किया जा सकता। अगर पृष्ठांकन किया जाना है तो पृष्ठांकन पूरी रकम के लिए किया जाना चाहिए। विलेख का आंशिक पृष्ठांकन अर्थात् वह पृष्ठांकन जो कि विलेख में लिखी रकम का केवल एक भाग ही पृष्ठांकिती को हस्तांतरित करता है, विलेख का परक्रामण नहीं किया जा सकता है।

लेकिन यदि विलेख की रकम का आंशिक भुगतान पहले हो चुका है तो उस विलेख का बाकी बची हई रकम के लिए पृष्ठांकन किया जा सकता है। लेकिन यह आवश्यक है कि ऐसे आंशिक भुगतान का उल्लेख विलेख पर होना चाहिए और उसके बाद ही बाकी बची रकम के लिए वह विलेख पृष्ठांकित किया जा सकता है अन्यथा नहीं। उदाहरण के लिए इस प्रकार का पृष्ठांकन : “Pay to Z or order ₹ 5,000 being unpaid residue of the bill वैध माना जाएगा।

3. प्रतिबन्धित पृष्ठांकन (Restrictive Endorsement) धारा 50 के अनुसार, जब पृष्ठांकनकर्ता किसी विनिमय साध्य विलेख पर अपने हस्ताक्षर के ऊपर उस व्यक्ति का नाम लिखता है, जिसको वह पृष्ठांकन कर रहा है तथा साथ ही कुछ ऐसे शब्द भी जोड़ देता है जिससे उस विलेख को आगे पृष्ठांकन करने पर प्रतिबन्ध हो जाए तो वह प्रतिबन्धित पृष्ठांकन कहलाता है। उदाहरण के लिये “लेखपत्र के धन का केवल सतीश को भुगतान करो,” प्रतिबन्धित पृष्ठांकन है जो सतीश द्वारा भावी पृष्ठांकन पर प्रतिबन्ध लगा देता है।

(4) शर्तसहित (शर्तयुक्त) पृष्ठांकन (Conditional Endorsement)- ऐसा पृष्ठांकन जिसमें पृष्ठांकक, पृष्ठांकन करते समय स्पष्ट शब्दों द्वारा विलेख के अधीन अपने दायित्व को समाप्त कर देता है अथवा अपने दायित्व को किसी निश्चित घटना के घटित होने पर निर्भर कर देता है, शर्तयुक्त / शर्तसहित पृष्ठांकन कहलाता है। शर्तयुक्त पृष्ठांकन एवं प्रतिबन्धित पृष्ठांकन में अन्तर है। प्रतिबन्धित पृष्ठांकन में भावी पृष्ठांकन पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाता है, जबकि शर्तयुक्त पृष्ठांकन में पृष्ठांकक का दायित्व सीमित या समाप्त हो जाता है।

शर्तयुक्त पृष्ठांकन के प्रकार

(Kinds of Conditional Endorsement)

(i) दायित्व रहित पृष्ठांकन (‘Sans Recourse’ Endorsement)- वह पृष्ठांकन, जिसमें पृष्ठांकन करते समय पृष्ठांकक यह लिख देता है कि विलेख के अनादरित होने पर वह पृष्ठांकिती अथवा उसके बाद वाले धारक के प्रति उत्तरदायी नहीं होगा, दायित्व-रहित पृष्ठांकन कहलाता है।

उदाहरणबिना मेरे दायित्व केको भुगतान करो। (Pay to A Without recourses to me)

Framework Negotiation Assignment

इस सम्बन्ध में यह महत्त्वपूर्ण है कि जब पृष्ठांकक इस प्रकार अपने दायित्व को मुक्त कर देता है और बाद में उस विलेख का धारक हो जाता है, तो बीच के सभी पृष्ठांकक उसके प्रति उत्तरदायी होते हैं।

उदाहरण– A एक विनिमय साध्य विलेख का आदाता एवं धारक है। पृष्ठांकन द्वारा अपने दायित्व को मुक्त करके वह विलेख को B को हस्तान्तरित कर देता है। B उसे C को पृष्ठांकित कर देता है और Cउसे A को पृष्ठांकित कर देता है। A का पहला अधिकार भी विद्यमान रहता है और साथ ही साथ वह B और C के विरुद्ध एक पृष्ठांकिती के अधिकार भी रखता है।

(ii) व्यय रहित पृष्ठांकन (Sans Fair Endorsement)- यदि पृष्ठांकनकर्ता पृष्ठांकन करते समय विलेख पर यह लिख दे कि पृष्ठांकिती अथवा अन्य कोई भी धारक उस विलेख के सम्बन्ध में पृष्ठांकनकर्ता के हिसाब से किसी भी प्रकार का व्यय न करे, तो इसे व्यय रहित पष्ठांकन कहते हैं।

उदाहरण

“A अथवा उसके आदेशानुसार व्यय रहित भुगतान करो। “Pay Aor order sans fair.”

(iii) ऐच्छिक पृष्ठांकन (Facultative Endorsement)-जब पृष्ठांकक, पृष्ठांकन में यह । देता है कि वह विलेख के अनादरित होने पर अनादरित होने की सचना पाप्त करने के आध त्याग करता है और इस प्रकार अपने दायित्व में अपनी इच्छा से वटि कर दे. तो ऐस पृष्ठाकर ऐच्छिक पृष्ठांकन कहते हैं।

उदाहरण अथवा उसके आदेशानुसार भुगतान कीजिए अनादरण की सूचना का त्याग A or order notice of  Dishonor waved .

यह एक ऐच्छिक पृष्ठांकन है और पृष्ठांकक उसके अनादरित होने पर उत्तरदायी रहता है, यद्यपि अनादरित होने की सूचना नहीं दी गई है।

Framework Negotiation Assignment

(iv) घटना के घटित होने पर दायित्व पृष्ठांकन (Liability depending upon an envent Endorsement)- जब पृष्ठांकनकर्ता पृष्ठांकन करते समय अपने दायित्व को किसी विशेष घटना के घटित होने पर या न होने पर निर्भर कर देता है, तो ऐसे पृष्ठांकन को घटना पर घटित दायित्व पृष्ठांकन कहते हैं। ऐसी दशा में पृष्ठांकनकर्ता उसी समय उत्तरदायी होगा, जबकि घटना घटित हो जाए अथवा उस समय उत्तरदायी होगा, जबकि घटना घटित न हो।

उदाहरण– (i) “क को ख के साथ विवाह करने के उपरान्त भुगतान कीजिए”। (ii) “क के चुनाव में हार जाने के बाद भुगतान कीजिए”।

(5) पृष्ठांकन रद्द करना (Cancellation of Endorsement)-धारा 40 के अनुसार, जब पृष्ठांकक की सहमति के बिना ही विलेख का धारक किसी पूर्व पक्षकार के विरुद्ध पृष्ठांकन के उपचार को नष्ट अथवा दृषित करता है, तो पृष्ठांकक धारक के प्रति अपने दायित्व से ठीक उसी तरह मुक्त हो जाता है, जैसे कि परिपक्वता तिथि पर विलेख का भुगतान कर दिया गया हो।

(6) वापसी परक्रामण (Negotiable Back)- जब कोई पृष्ठांकक किसी विलेख का परक्रामण पृष्ठांकन द्वारा करे ओर वह विलेख परक्रामित होते-होते पुन: उसके पास लौट आता है तो ऐसी दशा में इसे वापसी परक्रामण कहते हैं। अत: ऐसी दशा में बीच वाले धारकों का दायित्व समाप्त हो जाता है।

लेकिन उपरोक्त नियम का एक अपवाद है। यदि कोई पृष्ठांकक किसी विलेख का दायित्व-रहित (“Sans Recourse”) पृष्ठांकन करता है तथा बाद में वह उस विलेख का पुन: धारक बन जाता है तो सभी मध्यवर्ती पक्षकार (middle-parties) उसके प्रति उत्तरदायी होंगे

Framework Negotiation Assignment

अवैधानिक तरीके से प्राप्त किये गए विलेख

(Instrument Obtained By Unlawful Means)

अथवा (Or)

अवैधानिक प्रतिफल के बदले प्राप्त किए गये विलेख

(Instrument Obtained For Unlawful Consideration)

कोई भी व्यक्ति अपने से अच्छा स्वत्वाधिकार दूसरे व्यक्ति को हस्तांतरित नहीं कर सकता। खोया हुआ माल पाने वाला, एक चोर या वह व्यक्ति जिसने किसी वस्तु को कपट द्वारा या अवैधानिक प्रतिफल के बदले में प्राप्त किया है, उस वस्तु पर किसी भी प्रकार का स्वत्वाधिकार प्राप्त नहीं करता। उस वस्तु का वास्तविक स्वामी उस वस्तु को न केवल उपरोक्त वर्णित व्यक्तियों से वापस प्राप्त करने का अधिकारी होता है, बल्कि किसी भी व्यक्ति से जिसके कब्जे में वह वस्तु है, उससे वापस प्राप्त करने का अधिकारी होता है। किन्तु किसी वस्तु के हस्तान्तरण एवं विनिमय-साध्य विलेख के परक्रामण में अन्तर है। विनिमय-साध्य विलेख अधिनियम उन व्यक्तियों को संरक्षण प्रदान करता है जिन्होंने विनिमय-साध्य विलेख को सद्विश्वास के साथ तथा मूल्यवान प्रतिफल के बदले में प्राप्त किया है। एक यथाविधिधारी परक्रामण के आधार पर किसी भी विलेख पर अच्छा स्वत्वाधिकार प्राप्त कर सकता है, भले ही पूर्व पक्षकारों का अधिकार दोषपूर्ण ही क्यों न रहा हो।

यदि कोई विलेख अवैधानिक तरीके से प्राप्त किया जाता है, अथवा उसका प्रतिफल अवैधानिक है तो ऐसा विलेख व्यर्थ माना जाता है। प्रत्येक ठहराव, जिसका प्रतिफल या उद्देश्य गैर-कानूनी होता है, व्यर्थ होता है। किसी अनुबन्ध के सम्बन्ध में लागू होने वाले प्रतिफल या उद्देश्य से सम्बन्धित नियम विनिमय-साध्य विलेखों की स्थिति में भी लागू होते हैं। अत: यदि कोई विनिमय-साध्य विलेख ऐसे के बदले में प्राप्त किया जाता है या ऐसे प्रतिफल के बदले में दिया जाता है जो अवैधानिक है. -नियम द्वारा वर्जित हे, लोक-नाति के विरुद्ध हे या अनैतिक है, तो ऐसा विलेख व्यर्थ होता है, तथा वह उससे सम्बन्धित पक्षा क बाच किसा दायित्व का निर्माण नहीं करता। इस सम्बन्ध में प्रमख नियम निम्नांकित प्रकार हैं

(i) खोए हए विलेख (Lost Instruments)-(i) किसी खोए हुए विलेख का पाने वाला उसके विरुद्ध कोई स्वत्व प्राप्त नहीं कर सकता और न ही वह ऐसे किसी विनिमय पत्र के वास्तविक स्वामी के विरुद्ध कोई स्वत्व प्राप्त नहीं कर स स्वीकर्ता अथवा प्रतिज्ञा-पत्र या चेक के लेखक से उसका भाग पत्र या चैक के लेखक से उसका भुगतान प्राप्त कर सकता है। वास्तविक स्वामी को पाने वाले से, विलेख को वापस प्राप्त करने का अधिकार है।

(i) जब कोई विलेख खो जाता है तो धारक का यह कर्तव्य है कि वह विलेख से सम्बन्धित उत्तरदायी पक्षकारों को इस घटना की सूचना दे। पुनः विलेख के परिपक्व होने पर धारक द्वारा भुगतान की मांग की जानी चाहिए तथा यदि भगतान नहीं किया जाता तो उसका यह कर्तव्य है कि वह सभी पक्षकारों को अनादरण की सूचना दे।

(ii) खोए हुए विलेख को प्राप्त करने वाला न तो उस विलेख का भुगतान प्राप्त कर सकता है और न ही भुगतान प्राप्त करने के लिए अपने नाम से वाद प्रस्तुत कर सकता है।

(iii) खोए हुए विलेख को प्राप्त करने वाला विलेख के वास्तविक स्वामी के विरुद्ध श्रेष्ठ स्वत्वाधिकार प्राप्त नहीं कर सकता।

(iv) यदि विलेख “वाहक को देय” है और पाने वाला व्यक्ति उसे प्रतिफल के बदले में किसी ईमानदार हस्तांतरिती (transferee) को परक्रामित कर देता है तो ऐसे हस्तांतरिती को प्रलेख पर श्रेष्ठ अधिकार प्राप्त हो जाएगा तथा उसे वास्तविक स्वामी के विरुद्ध उस विलेख को अपने अधिकार में रखने तथा उत्तरदायी पक्षकारों से भुगतान की मांग करने का अधिकार होगा।

(v) यदि विलेख “आज्ञा पर देय” है तथा पाने वाला उस पर जाली पृष्ठांकन करके बदले में किसी ईमानदार हस्तांतरिती को परक्रामित कर दे तो ऐसे हस्तांरिती को उस विलेख पर कोई वैध अधिकार प्राप्त नहीं होगा और न ही वह उस विलेख के आधार पर वाद प्रस्तुत करने का अधिकारी होगा। [Mercantile Bank of India Vs. Mas Earnhas (1932) P.C.] जाली पृष्ठांकन व्यर्थ होता है तथा यदि जाली पृष्ठांकन के आधार पर किसी विलेख को परक्रामित किया जाता है तो यथाविधिधारी भी हस्तांतरिती से श्रेष्ठ अधिकार प्राप्त नहीं कर सकता।

Framework Negotiation Assignment

(vi) यदि खोया हुआ विलेख, उस प्राप्त करने वाले व्यक्ति के अधिकार में है, तो विलेख का वास्तविक स्वामी विलेख को उस व्यक्ति से वापस प्राप्त कर सकता है। किन्तु यदि विलेख उसके अधिकार में नहीं है तथा उसने विलेख का भुगतान प्राप्त कर लिया तो विलेख का वास्तविक स्वामी, उस खोए हुए विलेख को प्राप्त करने वाले व्यक्ति से क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकारी है। [Lowell Vs. Martin (1813) 4 Taunt 790]

(vii) यदि विलेख का स्वीकर्ता अथवा निर्माता खोये हुए विलेख का यथाविधि भुगतान (Payment in due course) कर देता है, तो वह विलेख के अन्तर्गत अपने दायित्व से मुक्त हो जाता है।

[Burn Vs. Morris (1834)2Cr. & M.579]

(2) चोरी किये गये विलेख (Stolen Instrument)- एक व्यक्ति, जिसने कि वास्तविक स्वामी से कोई विलेख चोरी कर लिया है, वह किसी भी उत्तरदायी व्यक्ति से भुगतान का दावा नहीं कर सकता और वास्तविक स्वामी विलेख वापस ले सकता है अथवा धनराशि वापस ले सकता है। लेकिन यदि चोरी किया गया कोई विलेख सुपुर्दगी द्वारा यथाविधिधारी को हस्तान्तरित कर दिया गया है तो हस्तान्तरिती को चोर के विरुद्ध ही नहीं, बल्कि सभी पूर्व पक्षकारों के विरुद्ध अच्छा स्वत्व मिल जाता है।

(3) कपट द्वारा प्राप्त किये गये विलेख (Instrument obtained by Fraud) यदि कोई विलेख कपट द्वारा लिखा या प्राप्त किया गया है तो ऐसे विलेख के सम्बन्ध में दावा किये जाने पर यदि आहर्ता या स्वीकार कर्ता यह सिद्ध कर दे कि उसके पास से विलेख कपट से प्राप्त किया गया है, तो कपट करने वाले व्यक्ति को कुछ भी वसूल करने का अधिकार नहीं होगा। साथ ही भविष्य में भी ऐसे विलेख के सम्बन्ध में किए जाने वाले पृष्ठांकन या हस्तान्तरण को कपट प्रभावित करता है लेकिन कपट के सम्बन्ध में प्राप्त होने वाली सुरक्षा आहर्ता या स्वीकारकर्ता को यथा-विधिधारी या उससे अधिकार प्राप्त करने वाले किसी धारक के विरुद्ध नहीं मिल सकती।

(4) अवैधानिक प्रतिफल के बदले में प्राप्त विलेख (Instrument obtained for an Unlawful Consideration)- अनुबन्धों का यह सामान्य नियम है कि ऐसा ठहराव, जिसका ७५० अथवा प्रतिफल अवैधानिक होता है, व्यर्थ होता है। यह नियम विनिमय साध्य विलेखों पर भी लागू होता है। यदि कोई विलेख अवैधानिक प्रतिफल के बदले में प्राप्त किया जाता है, तो प्राप्तकता का किसी प्रकार का वैध स्वत्वाधिकार प्राप्त नहीं होता। अत: किसी अवैध या अनैतिक प्रतिफल प्रतिफल के बदले में प्राप्त विलेख उसके पक्षकारों के मध्य किसी प्रकार का दायित्व उत्पन्न नहीं करता। ।

करता। किन्तु यदि ऐसा विलेख यथाविधिधारी द्वारा मूल्यवान प्रतिफल के बदले तथा सदविश्वास के साथ प्राप्त उसे विलेख पर श्रेष्ठ अधिकार प्राप्त हो जाता है।

 (5) अनादृत होने के बाद या परिपक्वता की अवधि के बाद प्राप्त किया हुआ विपत्र (Instrument acquired after dishonour or when overdue) साधारण नियम के अनुसार किसी विपत्र का यथा-विधिधारी हस्तांतरक के किसी भी दोष से प्रभावित नहीं होता। लेकिन धारा 59 के अनुसार अगर कोई व्यक्ति कोई ऐसा विपत्र जो कि अनादृत हो गया है अथवा जिसकी भुगतान तिथि निकल चुकी है, अनादरण की सूचना होते हुए तथा परिपक्वता के पश्चात् लेता है तो उसे हस्तांतरक के अधिकार ही मिलते हैं। उसे हस्तांतरक के अधिकार से अच्छे अधिकार नहीं मिलते। वह यथाविधिधारी के विशेष अधिकारों को प्राप्त नहीं कर सकता और अन्य पक्षकारों के विरुद्ध भी उसके केवल वही अधिकार हो सकते हैं जो हस्तांतरक के थे। इस तरह निम्नलिखित परिस्थितियों में यथाविधिधारी अपने विशेष अधिकारों का दावा नहीं कर सकता।

(i) उन विपत्रों के सम्बन्ध में जो अनादृत होने के पश्चात् अनादरण की सूचना होते हुए भी प्राप्त किए गए हैं।

(ii) उन विपत्रों के सम्बन्ध में जो उसकी परिपक्वता की अवधि के बाद प्राप्त किए गए हैं।

लेकिन पारस्परिक सहायतार्थ विनिमय-पत्र के सम्बन्ध में दूसरी बात लागू नहीं होती। जब एक पारस्परिक सहायतार्थ विनिमय-पत्र भुगतान तिथि के बाद प्राप्त किया गया है, तो यथाविधिधारी उसका भुगतान प्राप्त कर सकता है। एक पारस्परिक सहायतार्थ बिल का धारक भुगतान तिथि के बाद भी उसी स्थिति में होता है जिस स्थिति में वह भुगतान तिथि से पहले था, बशर्ते कि वह विनिमय-पत्र प्रतिफल के बदले और सद्भावना के साथ प्राप्त करता है।

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(6) जाली पृष्ठांकन (Forged Endorsements)-जाली पृष्ठांकन की स्थिति अलग होती है। साथ ही यह भी देखना पड़ता है कि पृष्ठांकन कोरा है या पूर्ण। यदि विपत्र का पूर्ण पृष्ठांकन हुआ है, तो जिस व्यक्ति द्वारा ऐसा पृष्ठांकन किया जाता है, उसके हस्ताक्षर असली होने चाहिए। यदि कोई विपत्र जाली पृष्ठांकन द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हस्तांतरित किया जाता है, तो सद्विश्वास और मूल्य के बदले विपत्र प्राप्त करने वाले व्यक्ति को भी यथाविधिधारक के अधिकार प्राप्त नहीं होते।

विनिमय-साध्य विपत्र अधिनियम की धारा 58 अपराध द्वारा प्राप्त किए गए विपत्र के सम्बन्ध में यथाविधिधारी के अधिकार की रक्षा करती है, लेकिन जाली पृष्ठांकन की स्थिति में यह संरक्षण प्राप्त नहीं होता। कोई भी धारक चाहे वह यथाविधिधारक ही क्यों न हो, जाली पृष्ठांकन द्वारा विपत्र पर अधिकार प्राप्त नहीं कर सकता। Thorappa vs. Umedmalji, 25 Bom. L. R.604]

लेकिन यदि विपत्र पर कोरा पृष्ठांकन हुआ है तो बात अलग होती है। इस स्थिति में धारक के लिए यह महत्त्व की बात नहीं है कि उसने विपत्र सद्विश्वास से प्राप्त किया था या नहीं। कोरे पृष्ठांकन की स्थिति में धारक अपना अधिकार इस जाली पृष्ठांकन के द्वारा प्राप्त नहीं करता और वह जालसाजी को बिल्कल भी ध्यान में रखे बिना विपत्र से सम्बन्धित सभी पक्षों पर दावा कर सकता है।

(7) जाली विपत्र (Forged Instrument)—किसी व्यक्ति के अधिकार के विरुद्ध कपट पूर्ण ढंग से लिखना अथवा लिखावट को दूसरे व्यक्ति के अधिकार के विरुद्ध प्रवर्तित करना जालसाजी कहा जाता है।

भारतीय दण्ड संहिता की धारा 463 में जालसाजी (Forgery) की परिभाषा इस प्रकार दी गई है

जनता या अन्य व्यक्ति को हानि या कष्ट पहुँचाने की भावना से या किसी दावे को मजबूत बनाने के लिए या किसी व्यक्ति से कोई सम्पत्ति ले लेने के उद्देश्य से या किसी स्पष्ट या गर्भित अनबन्ध में भाग लेने के लिए या कोई कपट करने के उद्देश्य से जो कोई भी कोई एक झूठा प्रलेख या प्रलेख का एक भाग लिखता है, वह जालसाजी करने वाला कहा जाता है।”

अगर किसी प्रकार किसी जाली विपत्र का धारक विपत्र का भुगतान प्राप्त कर लेता है तो वह अपने पास उस धन को नहीं रख सकता। विपत्र का वास्तविक स्वामी भुगतान करने वाले व्यक्ति को इस बात के लिए बाध्य कर सकता है कि वह वास्तविक स्वामी करे। ऐसी स्थिति में देनदार द्वारा सही धारक को फिर से भगतान करना होगा। जाली हस्ताक्षर पर गलती से भुगतान कर दिया है तो वह भुगतान पाने वाले से चुकाई गई रकम वापस माँग सकता है। मिटान्त सब जगह लागू हाता हा यह सिद्धान्त एक यथाविधिधारी पर भी लाग होगा अन्तर है। जालसाजी की स्थिति में स्वत्वाधिकार की अनपस्थिति है। इस स्थिति में यथाविधिधारक को। स्वत्वाधिकार प्राप्त ही नहीं होता।

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प्रतिफल रहितविलेख

(Instument without Consideration)

धारा 43 के अनुसार, बिना प्रतिफल अथवा मूल्यहीन प्रतिफल के लिये लिखा, स्वीकृत, पृष्ठांकित अथवा हस्तांतरित विलेख सम्बन्धित पक्षों के बीच भुगतान करने का कोई दायित्व निर्मित नहीं करता। किन्तु यदि ऐसा कोई पक्ष प्रतिफल के बदले विलेख को पृष्ठांकन द्वारा अथवा इसके बिना ही किसी धारक को हस्तान्तरित करता है, तो धारक (अथवा धारक से स्वामित्व प्राप्त करने वाला बाद का कोई धारक) हस्तान्तरक अथवा अन्य किसी पूर्व पक्ष से विलेख पर देय राशि वसूल कर सकता है।

विलेखों में प्रतिफल के अभाव के सम्बन्ध में धारा 43 में दो नियम दिए गए हैं, जो इस प्रकार

1 निकट पक्षों के बीच (As between immediate parties)- बिना प्रतिफल अथवा मूल्यहीन प्रतिफल के लिए लिखा, स्वीकृत, पृष्ठांकित अथवा हस्तांतरित विलेख सम्बन्धित पक्षों के बीच अदायगी करने का कोई दायित्व निर्मित नहीं करता। निकट पक्षों के बीच प्रतिवादी (defendent), प्रतिफल के अभाव को अपने पक्ष में प्रस्तुत कर दायित्व से बच सकता है।

उदाहरणएक विपत्र का धारक A, इसे बिना प्रतिफल B को हस्तांतरित करता है। B इसे बिना प्रतिफल C को हस्तांतरित करता है। C इसे मूल्य के बदले D को हस्तांतरित करता है तथा D इसे बिना प्रतिफल E को हस्तांतरित करता है।

उपर्युक्त उदाहरण में निकट पक्ष इस प्रकार हैं-A एवं B, B एवं C,C एवं D तथा D एवं El प्रतिफल का अभाव होने से B, C और E इस विलेख की राशि उनके निकट पूर्व पक्षों A, B और D से नहीं वसूल कर सकते।

2. दूरवर्ती पक्षों के बीच (As between remote parties)- यदि कोई धारक प्रतिफल के बदले एक विलेख प्राप्त करता है, तो प्रतिफल के बदले अथवा इसके बिना उससे स्वामित्व प्राप्त करने वाला बाद का प्रत्येक धारक विलेख की राशि हस्तांतरक अथवा पूर्व पक्षों से प्राप्त कर सकता है। इसका अर्थ यह है कि एक बार विलेख यथाविधिधारक के हाथ में आ जाने पर वह स्वयं, अथवा बाद में उससे स्वामित्व प्राप्त करने वाला प्रत्येक धारक विलेख की राशि किसी भी अथवा सभी पूर्व पक्षों से वसूल कर सकता है।

उपर्युक्त उदाहरण में E, विलेख की राशि A, B अथवा C से उसी तरह वसूल कर सकता है जैसे कि D, क्योकि D मूल्य चुकाकर इस विलेख का धारक बना है। इस बात से कोई अन्तर नहीं पड़ता कि E ने विलेख का मूलय नहीं चुकाया; अथवा A एवं B को कोई मूल्य प्राप्त नहीं हुआ (दूसरा नियम); किन्तु E को D के विरुद्ध कोई अधिकार प्राप्त नहीं है, क्योंकि इन दो निकट पक्षों के बीच E द्वारा D को कोई प्रतिफल नहीं दिया गया। (पहला नियम)।

आंशिक रूप में प्रतिफल का निष्फल होना (Partial failure of Consideration)-जब प्रतिफल, जिसके लिये किसी व्यक्ति ने प्रतिज्ञा-पत्र, विनिमय-पत्र अथवा चैक आदि किसी विलेख पर हस्ताक्षर किये थे, मुद्रा के रूप में था और वह मूल रूप से आंशिक रूप में मौजूद नहीं था अथवा

आंशिक रूप में असफल हो गया था, तो ऐसे विलेख का धारक अपने साथ नजदीकी सम्बन्ध रखने वाला पक्षकार से विलेख के ऊपर वास्तव में जितना प्रतिफल दिया गया है. उससे अधिक धनराशि पान का। अधिकारी नहीं है।

उदाहरण-1,800 ₹ के लिए ‘अ’ अपने आदेश पर देय एक विपत्र ‘ब’ पर लिखता है। बा विपत्र स्वीकार करता है, किन्तु बाद में गैर-अदायगी द्वारा इसका अनादरण करता है। विपत्र के सम्बन्ध म ‘अ ‘ब’ पर दावा करता है। ‘ब’ यह सिद्ध कर देता है कि विपत्र 900 ₹ के लिए स्वाकृत। था। ‘अ’ 900 ₹ वसूल कर सकता है, किन्तु यदि विपत्र यथाविधिधारक के हाथ में विलेख की पूरी राशि, 1,800 ₹ वसूल कर सकता है।

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परीक्षा हेत सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 परक्रामण की स्पष्ट शब्दों में व्याख्या कीजिये। यह किस प्रकार किया जाता है। तथा यह साधारण अभिहस्तांकन से किस प्रकार भिन्न होता है ?

Explain clearly the term Negotiation. How it can be done and how does it differ from an ordinary assignment?

2. विनिमय साध्य विलेख के पृष्ठांकन से आप क्या समझते हैं ? वैध पृष्ठांकन के आवश्यक तत्वों को स्पष्ट कीजिये।

What do you mean by the endorsement of a negotiable instrument? Explain the essential elements of a valid endorsement.

3. एक विनिमय साध्य विलेख का हस्तान्तरण, अभिहस्तांकन द्वारा तथा परक्राम्यता द्वारा किया जा सकता है किन्तु धारक के लिए इसके भिन्न-भिन्न परिणाम होंगे। व्याख्या कीजिये व उदाहरण दीजिए।

A Negotiable Instrument may be transferred by Negotiation and Assignment, but with different consequnces to the holder. Explain and illustrate.

4. खोये हुए विलेख, जाली-विलेख, कपट द्वारा प्राप्त विलेख या अवैधानिक प्रतिफल के बदले प्राप्त विलेख के परक्रामण सम्बन्धी नियमों का विवेचन कीजिए।

Discuss the rules regarding negotiation of a lost instrument, an instrument obtained by fraud, or unlawful consideration.

5. पृष्ठांकन शब्द को पारिभाषित कीजिए। पृष्ठांकन के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिये।

Define the term “Endorsement”. Explain the various types of endorsement.

Framework Negotiation Assignment

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

1 परक्रामण तथा अभिहस्तांकन में क्या अन्तर है ?

What is the difference between Negotiation and Assignment?

2. वैध पृष्ठांकन के आवश्यक लक्षण बताइये।

Explain the essential characteristics of a valid endorsement?

3. पृष्ठांकन कौन कर सकता है ?

Who may Endorse?

4. प्रतिबन्धात्मक पृष्ठांकन को समझाइये।

Explain the Restrictive Endorsement.

5. शर्तयुक्त पृष्ठांकन क्या है ?

What is Conditional Endorsement?

6. जाली पृष्ठांकन को समझाइये।

Explain the forged endorsement.

7. खोये हुए विलेख से सम्बन्धित नियम क्या है ?

What is the rules regarding lost instrument?

8. अनादरण होने के बाद या परिपक्वता की अवधि के बाद प्राप्त विलेख से आप क्या समझते हैं ?

What do you mean by Instrument acquired after dishonor or when overdue?

9. जाली विलेख क्या है?

What is a forged instrument?

10. प्रतिफल रहित विलेख से क्या आशय है ?

Instrument without consideration?

Framework Negotiation Assignment

सही उत्तर चुनिए

(Select the Correct Answer)

1 परक्राम्यता में प्रतिफल होता है–

(Consideration in negotiability is) :

(अ) गर्भित (Implied) (1)

(ब) गर्भित नहीं (Not implied)

(स) प्रमाणित (To be proved)

(द) उपरोक्त में से कोई नहीं (None of the above)

2. धारक द्वारा आदेश पर देय चैक का परक्रामण किया जाता है—

(The cheque payable on order is negotiated by):

(अ) सुपुर्दगी द्वारा (Delivery)

(ब) पृष्ठांकन द्वारा (Endorsement)

(स) सुपुर्दगी एवं पृष्ठांकन द्वारा (Delivery and Endorsement) (1)

(द) उपरोक्त में से कोई नहीं (None of the above)

3. अभिहस्तांकन में प्रतिफल हे

In assignment consideration is) :

(अ) गर्भित (Implied)

(ब) गर्भित नहीं (Not implied)

(स) प्रमाणित (To be proved) (1)

(द) उपरोक्त में से कोई नहीं (None of the above)

4. प्रतिज्ञा-पत्र की परक्रामणता के सम्बन्ध में सूचना देना होता है-

(In case of Promissory note intimation about negotiability is):

(अ) आवश्यक (Necessary)

(ब) अनावश्यक (Unnecessary) (1)

(स) वैधानिक (Statutory)

(द) उपरोक्त में से कोई नहीं (None of the above)

5. विनिमय साध्य विलेख का हस्तान्तरण किया जाता है-

(The negotiable instrument is transferred by):

(अ) परक्रामण द्वारा (Negotiation)

(ब) हस्तांकन द्वारा (Assignment)

(स)(अ) तथा

(ब) दोनों (Both (a) and (b)) (1)

(द) उपरोक्त कोई नहीं (None of the above)

6. विनिमय साध्य विलेख का बेचान कर सकता है-

(The negotiable instrument can be endorsed by) :

(अ) धारक (Holder)

(ब) प्राप्तकर्ता (Indorsee) (स) बेचानकर्ता (Endorser)

(द) उपरोक्त सभी (All of the above) (1)

7. निम्नलिखित में से कौन सा एक प्रकार का बेचान है ?

(Which one of the following is a type of endorsement?) :

(अ) कोरा बेचान (Blank endorsement)

(ब) पूर्ण बेचान (Full endorsement)

(स) सशर्त बेचान (Conditional endorsement)

(द) उपरोक्त सभी (All of the above) (1)

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chetansati

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