BCom 1st Year Business Statistics Functions Importance Limitations study material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Statistics Functions Importance Limitations study material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Development Meaning Scope Statistics Study Material Notes in Hindi

सांख्यिकी के कार्य, महत्व तथा सीमाएँ

(Functions, Importance and Limitations of Statistics)

अध्ययन की सुविधा के लिए सांख्यिकी के कार्यों का अध्ययन दो वर्गों में किया जाता है-प्रथम, सांख्यविद् के कार्यों के रूप में और द्वितीय, सांख्यिकी के स्वयं के कार्य।

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सांख्यविद् के कार्य

(Functions of Statistician)

आधुनिक युग में सांख्यिकी के कार्य-क्षेत्र का इतना व्यापक विस्तार हुआ है कि जीवन के सभी क्षेत्रों में सांख्यिकी को किसी न किसी रूप में कार्यरत पाया जाता है। मानव-व्यवसाय की सभी अनुसन्धान क्रियाओं में उपलब्ध समंकों के आधार पर सांख्यिकीय रीतियों के प्रयोग द्वारा विश्लेषण तथा निष्कर्ष निकालने का कार्य किया जाता है उचित प्रशिक्षण के साथ इस प्रकार के कार्य करने वाले व्यक्ति को सांख्यिक अथवा सांख्यविद् (Statistician) कहते हैं।

सामान्य तौर पर सांख्यविद के कार्यों का विभाजन चार भागों में किया जाता है

1 निरीक्षण कार्य (Observation)- प्रत्येक अनुसन्धान कार्य करने से पहले अनुसन्धानकर्ता को कुछ महत्वपूर्ण निर्णय लेने पड़ते हैं उसे अनुसन्धान का उद्देश्य,उससे सम्बन्धित परिस्थितियाँ, क्षेत्र, समय, अनुसन्धान प्रणाली इत्यादि निर्धारित करनी पड़ती है ताकि सम्पूर्ण कार्य उद्देश्यानुकूल पूर्ण हो सके। यह सब एक कुशल, अनुभवी तथा प्रशिक्षित सांख्यविद् की निरीक्षण-योग्यता (Observation Power) पर निर्भर करता है ।

2. समंकों का संकलन (Collection of Statistical Data)- उपर्युक्त ढंग से निर्धारित उद्देश्य की पूर्ति के लिए सांख्यविद् द्वारा वैज्ञानिक विधि के आधार पर आवश्यक समंकों का संकलन किया जाता है तथा उनमें शुद्धता की जाँच की जाती है ताकि संकलित आँकड़ों का सम्पादन शुद्ध रीति से हो सके।

3. विश्लेषण (Analysis)- सांख्यविद् के कार्यक्षेत्र का महत्वपूर्ण भाग संकलित आँकड़ों का विश्लेषण करना है। विश्लेषण क्रिया के अन्तर्गत इन आँकड़ों को अलग-अलग आधार पर निश्चित वर्गों में बाँटा जाता है; उनकी तालिकाएँ बनायी जाती हैं तथा उनकी केन्द्रीय प्रवृत्ति के आधार पर अथवा चित्रों द्वारा उन्हें प्रस्तुत किया जाता है तथा अन्त में इन्हें तुलना करने योग्य बनाया जाता है।

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4. निर्वचन (Interpretation)- संकलित समंकों से निर्वचन करना सांख्यिक के कार्य-क्षेत्र का केन्द्रबिन्दु है । इसके अन्तर्गत सांख्यविद् को बड़ी सावधानी तथा सतर्कता के साथ संकलित सामग्री के विश्लेषण के आधार पर ऐसे निष्कर्ष निकालने होते हैं जो तर्कपूर्ण तथा निष्पक्ष हों । इसी सन्दर्भ में नीस्वैगर का यह कथन है
सांख्यिक का कार्य, इसलिए समंकों का इकट्ठा करना और गणना करने से कहीं अधिक आगे है। समंक स्वयं नहीं बोलते और सांख्यिक ही वह व्यक्ति है जिसे उनके अर्थों की खोज करने के लिए सांख्यिकीय परिणामों का निर्वचन करना होता है ।

रोड्स (Rhodes) के अनुसार सांख्यिक के केवल तीन ही प्रमुख कार्य होते हैं-समंकों का संकलन,उनका विश्लेषण तथा निर्वचन।

रोड्स (Rhodes) के शब्दों में ये इस प्रकार हैं

“सांख्यिक का कार्य उचित ढंग से समझने के लिए तीन वर्गों में ही बाँटने योग्य है। सर्वप्रथम, उसका कार्य सांख्यिकीय आँकड़ों को इकट्ठा करना है, दूसरे,उनका विश्लेषण करना और तीसरे, ऐसे विश्लेषण से प्राप्त फलों के आधार पर निर्वचन करना है।”

सारांश में हम कह सकते हैं कि एक सांख्यिक को अपना कार्य पूर्ण विवेक, निष्पक्ष भावना, तर्क और। निपुणता के साथ पूरा करना चाहिए ताकि अनसन्धान के उद्देश्य की सफलता में कोई कमी न आने पाये।

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सांख्यिकी के कार्य

(Functions of Statistics)

आज के युग में सांख्यिकी का उपयोग सभी क्षेत्रों में व्यापक रूप से किया जाता है। मानव-जीवन से। सम्बन्धित कोई क्षेत्र ऐसा नहीं है जहाँ सांख्यिकी की आवश्यकता न पड़ती हो। सांख्यिकी के प्रमुख कार्यों की विवेचना निम्न प्रकार से की जा सकती है

1 तथ्यों को संख्यात्मक रूप से व्यक्त करना (Expression of Facts Numerically)- जैसा कि सांख्यिकी की परिभाषा से स्पष्ट किया जा चुका है.सांख्यिकी का सबसे महत्वपूर्ण कार्य विभिन्न प्रकार के तथ्यों को संख्याओं के रूप में प्रकट करना होता है। केवल यह कहना कि हमारी राष्ट्रीय आय कम है, अथवा जनसंख्या बहुत अधिक है,उस समय तक अर्थहीन है जब तक कि संख्याओं द्वारा इन दोनों प्रकार के कथनों को स्पष्ट रूप न दिया जाये यदि इस प्रकार के तथ्यों को तुलना योग्य स्थिति में प्रकट करना है तो संख्याओं का प्रयोग अति आवश्यक है।

2. जटिलता को सरलता में बदलना (Simplification of Complexities)- अनेक प्रकार के संख्यात्मक कथन जो भारी जटिलताओं और विषमताओं से पूर्ण होते हैं, आसानी से सामान्य व्यक्ति की समझ में नहीं आ सकते । सांख्यिकी की विभिन्न रीतियों के प्रयोग द्वारा; जैसे वर्गीकरण, सारणीयन, तुलनीयता और सह-सम्बन्ध स्थापन द्वारा इन जटिलताओं को सरलता में बदल लिया जाता है, जिसके फलस्वरूप कोई भी सामान्य व्यक्ति इन्हें आसानी से समझ सकता है। उदाहरणार्थ, दो महाविद्यालयों में पढ़ने वाले दो हजार छात्रों के प्राप्तांक के आधार पर उस समय तक कोई निश्चित निष्कर्ष नहीं निकला जा सकता जब तक कि दोनों महाविद्यालयों के सम्बन्ध में अलग-अलग परिणाम तालिका (Result Sheet) तैयार न की जाये वास्तव,में सांख्यिकी विज्ञान द्वारा इस प्रकार की जटिल सामग्री को सरल तथा प्रतिनिधि रूप (Representative Form) में परिवर्तित किया जाता है।

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3. तुलना करना तथा सम्बन्ध स्थापित करना (Comparison and correlation)- सरल को हुई । सामग्री को उपयोगी बनाने हेतु उसे सापेक्ष रूप में लाना होता है, ताकि उसकी सापेक्षता के आधार पर उसकी तुलना की जा सके । उदाहरण के लिए, यदि हम कहें कि भारत की प्रति व्यक्ति औसत आय 450 रुपये प्रतिवर्ष है। अथवा एक भारतीय की औसत आयु 30 वर्ष है तो ये सूचनायें हमारे लिए केवल जानकारी मात्र हैं और इससे अधिक इनका कोई उपयोग नहीं है। लेकिन इसके साथ-साथ यदि हमें यह भी ज्ञात हो कि अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 350 रुपया तथा वहाँ की औसत आय 27 वर्ष है तो दोनों देशों से । सम्बन्धित इन सूचनाओं के आधार पर बड़ी आसानी से हम ये निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि पाकिस्तान की तुलना में भारतवर्ष आर्थिक दृष्टि से अधिक सम्पन्न है तथा यहाँ जीवन की स्वास्थ्य सम्बन्धी दशायें भी अधिक विकसित और सुधरी हुई हैं । तुलना की इस रीति द्वारा सांख्यिकी विज्ञान मानव समाज की महान् सेवा करता है।

4. समुचित नीति का निर्धारण करना (Formulation of Proper Policy)-तुलना तथा सह-सम्बन्ध स्थापित कर लेने के बाद निष्कर्ष निकालने का कार्य अत्यधिक सरल हो जाता है तथा उसके आधार पर वांच्छित नीति का निर्माण किया जा सकता है। वर्तमान वित्तीय वर्ष में आयात, निर्यात की नीतियाँ क्या होनी चाहियें, कितने खाद्यान का इस वर्ष विदेशों से आयात किया जाना चाहिए, मुद्रा की पूर्ति तथा कीमत स्तर के आधार पर केन्द्रीय बैंक दर कितनी होनी चाहिए तथा मुद्रा प्रसार को रोकने के लिए सरकारी मौद्रिक नीति का रूप क्या होना चाहिए, इत्यादि ऐसे प्रश्न हैं जिनका समाधान केवल सम्बन्धित आँकड़ों के वैज्ञानिक विश्लेषण के आधार पर उचित नीतियों का निर्माण करके ही किया जा सकता है।

5. भावी तथ्यों का अनुमान लगाना (Estimation of Future Phenomena)- सांख्यिकी विज्ञान के । द्वारा न केवल वर्तमान आर्थिक तथ्यों का विश्लेषण किया जाता है वरन् इसकी दो महत्वपूर्ण रीतियाँ-अन्तरगणन (Interpolation) तथा बाह्यगणन (Extrapolation) के आधार पर भविष्य की घटनाओं के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण अनुमान लगाये जाते हैं वास्तव में,हमारे आर्थिक विकास का जितना कार्यक्रम है और जो भी योजनाएंबनायी जाती हैं उन सब में सांख्यिकी विज्ञान का यह कार्य एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है इसी आधार पर।

डा० बाउले ने यह उचित ही कहा है

“एक सांख्यिकीय अनुमान अच्छा हो या बुरा, सही हो या गलत. लेकिन लगभग सभी दशाओं में वह एक आकस्मिक प्रेक्षक के अनुमान से ठीक होगा।

6. वैज्ञानिक नियमों की जाँच करना (A Test to the Scientific Laws)- सभी सामाजिक विज्ञानों में तर्क की कसौटी पर बनाये जाने वाले नियमों का आधार निमगन प्रणाली (Deduction Method) होता है । लेकिन इन नियमों का सबसे बड़ा दोष यह होता है कि ये केवल सामान्यतः ही सही होते हैं और व्यावहारिक जीवन में व्यक्तिगत स्तर पर इनके अपवाद पाये जा सकते हैं। सांख्यिकी विज्ञान अपनी आगमन रीति (Inductive Method) के उपयोग द्वारा इन नियमों को अधिक व्यावहारिक तथा वैज्ञानिक बनाता है। आँकड़ों के आधार पर ही अर्थशास्त्र में मुद्रा परिमाण सिद्धान्त माल्थस का जनसंख्या सिद्धान्त. ऐंजिल्स का पारिवारिक बजट बनाने का सिद्धान्त इत्यादि नियम बनाये गये हैं। इसी प्रकार अर्थशास्त्र के अतिरिक्त अन्य दसरे भौतिक जीव व प्राणिशास्त्र विज्ञान इत्यादि सभी अपने-अपने नियमों की पुष्टि सांख्यिकीय आँकड़ों के आधार पर करते हैं।

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7. व्यक्तिगत ज्ञान व अनुभव की वृद्धि करना (Enhancement of Individual Knowledge and Experience)- सामाजिक विज्ञानों में विभिन्न प्रकार से उपयोगी होने के अतिरि व्यक्तिगत दष्टिकोण को तर्कशील तथा अधिक विवेकयुक्त बनाता है। इसके द्वारा व्यक्ति के विचारों में स्पष्टता आती है। अनेक समस्याओं को सामाजिक सर्वेक्षणों तथा सांख्यिकीय जाँचों द्वारा हल करने से व्यक्ति के ज्ञान में वृद्धि होती है तथा अनुसन्धानकर्ता में बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय लेने की क्षमता आती है। इसलिए डा० बाउले के अनुसार

सांख्यिकी का उचित कार्य वास्तव में,व्यक्तिगत अनुभव में वृद्धि करना है।”2 । इसी प्रकार हिपल की राय में, “समंक एक व्यक्ति को अपने क्षितिज (ज्ञान परिधि) का विस्तार करने योग्य बनाते हैं।”

8. तथ्यों के विस्तार का उचित आभास (Proper Realization of Magnitudes)- समंकों के प्रयोग से विभिन्न प्रकार के विवरण अधिक स्पष्ट और प्रभावशाली बनते हैं। इससे न केवल समस्या की महत्ता स्थापित होती है बल्कि उसके आभास का भी ज्ञान होता है। उदाहरण के लिये, यदि यह कहा जाये कि हमारी पाँचवीं योजना पहली योजना की तुलना में बहुत बड़ी है शायद स्थिति का इससे ज्ञान नहीं होता। लेकिन यदि कहा जाये कि हमारी प्रथम योजना 1960 करोड़ रुपये की थी, पाँचवीं योजना का प्रारूप लगभग 39303 करोड़ रुपये का है। तो इससे हमें तुरन्त ही दोनों योजनाओं के आकार का आभास हो जाता है।

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सांख्यिकी का महत्व

(Importance of Statistics)

प्राचीन युग में सांख्यिकी को राजनीतिक अंकगणित (Political Arithmetic) कहा जाता था क्योंकि उस समय उसकी उपयोगिता राज्य तक ही सीमित थी परन्तु सभ्यता के विकास के साथ-साथ इस विज्ञान का क्षेत्र भी बढ़ता गया और आजकल सामाजिक और प्राकृतिक सभी विज्ञानों की विभिन्न समस्याओं के तर्कपूर्ण विवेचन में सांख्यिकी का अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान है । वालिस और रोबर्ट्स के शब्दों में उत्पन्न होने वाली समस्याओं का समाधान करने से प्रयोग किया जाता है ।”4

आधुनिक सांख्यिकी को यदि मानव-कल्याण का गणित (Arithmeticof human welfare) कहा जाये तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।

1 शासन प्रबन्ध में महत्व (Importance in Administration)-शासन प्रबन्ध का वाकस चलान कालए साख्यिकी का उपयोग अति प्राचीनकाल से होता आ रहा है परन्त आजकल राज्य के वगों में आशातीत हानी के कारण समंकों की उपयोगिता और भी अधिक हो गई है। वर्तमान राज्य केवल एक सरक्षा राज्य (Policy State) न रह कर कल्याणकारी राज्य (Welfare State) बन गया है। उसके कल्याणकारी कार्यों को सुचारु रूप से चलाने में सांख्यिकी का और भी अधिक महत्व है। इसीलिए समंकों को शासन प्रबन्ध का नेत्र कहा जाता है।

राज्य की शासन-व्यवस्था की विभिन्न दिशाओं में समंक उपयोगी हैं। सरकारी आय-व्यय (Budget) प्रचलित वर्ष तथा आगामी वर्ष के विभिन्न अनमानों के आधार पर ही बनाया जाता है। जनसंख्या, उत्पादन आयात-निर्यात राष्ट्रीय आय इत्यादि के पर्याप्त समंकों की सहायता से ही वित्त-मन्त्री द्वारा यह निर्णय लिया जाता। है कि किन करों में वद्धि या कमी की जाये: प्रशासन.प्रतिरक्षा,स्वास्थ्य,शिक्षा आदि पर कितनी धनराशि व्यय की जाये; तथा प्रशासन में अपव्यय को कैसे रोका जाये। नीति निर्धारण में भी सांख्यिकीय रीतियाँ शासन वर्ग के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होती हैं। आँकड़ों से ही सरकारी विभागों व मन्त्रालयों के निरीक्षण द्वारा कार्यकुशलता का माप किया जा सकता है। नये कानून बनाने तथा पुराने कानूनों में संशोधन करने के लिए भी। आवश्यक सांख्यिकीय सामग्री की सहायता लेनी पड़ती है। सरकार द्वारा नियुक्त विभिन्न समितियों तथा आयोगों की रिपोर्ट आवश्यक समंकों पर ही आधारित होती है । युद्ध-नीति, व्यूह-रचना, अस्त्र-शस्त्र व अन्य साज-सामान की आवश्यकता तथा खरीदी हुई सामग्री के प्रतिदर्श आदि की सफलता उपयुक्त समंकों पर निर्भर होती है ।

2. आर्थिक नियोजन में महत्व (Importance in Economic Planning)- आजकल संसार के लगभग सभी देश आर्थिक नियोजन को अपना रहे हैं टिप्पेट ने ठीक कहा है, “नियोजन आजकल का व्यवस्थित क्रम है और समंकों के बिना नियोजन की कल्पना भी नहीं की जा सकती।”

किसी देश की आर्थिक योजना का निर्माण वहाँ के उपलब्ध साधनों, मुख्य समस्याओं और आवश्यकताओं से सम्बन्धित यथेष्ट सांख्यिकीय सामग्री के बिना असम्भव है । पर्याप्त और विश्वसनीय समंकों के आधार पर ही योजना निर्माता देश में उपलब्ध प्राकृतिक व मानवीय साधन, पूंजी, राष्ट्रीय आय आदि की ठीक-ठीक जानकारी प्राप्त करते हैं। आँकड़ों से ही इस बात का पता चलता है कि देश की अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन आवश्यकताएँ क्या हैं तथा किन-किन समस्याओं को प्राथमिकता दी जाये। इन सब तथ्यों के आधार पर अर्थ-व्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में लक्ष्य निर्धारित किये जाते हैं तथा उनको प्राप्त करने के लिए उपयुक्त वित्तीय साधनों के विभिन्न क्षेत्रों में लक्ष्य निर्धारित किये जाते हैं तथा उनको प्राप्त करने के लिए उपयुक्त वित्तीय साधनों के सांख्यिकीय अनुमान लगाये जाते हैं। इस प्रकार समंक योजना-निर्माण की आधारशिला है। यही नहीं, वरन् योजना की प्रगति का मूल्यांकन भी सांख्यिकीय विधियों द्वारा ही किया जाता है। समंकों से ही यह पता चलता है कि किन-किन क्षेत्रों में योजना के निर्दिष्ट लक्ष्य प्राप्त हो गये हैं, किन में प्रस्तावित गति से विकास नहीं हो पाया है तथा विकास की धीमी गति के कारण क्या हैं? संक्षेप में, “समंकों के बिना आर्थिक नियोजन, पतवार और दिशासूचक यन्त्र रहित जहाज की भांति है।” जिस प्रकार पतवार और दिशासूचक यन्त्र के बिना जहाज के पथभ्रष्ट होने की सम्भावना रहती है उसी प्रकार पर्याप्त व यथार्थ समंकों के बिना आर्थिक योजनाओं के निर्धारित लक्ष्य प्राप्त होना लगभग असम्भव है निःसन्देह बिना समंकों के आर्थिक नियोजन अन्धकार में छलांग लगाने के समान है।

“भारत में पंचवर्षीय योजनाओं का शुभारम्भ 1951 में हुआ है। हमारी सभी योजनाएँ अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्ध समंकों पर ही आधारित हैं। योजना आयोग ने यह स्वीकार किया है कि देश के आर्थिक विकास के लिये विशेषकर नियोजन के उद्देश्यों की पूर्ति करने और नीति प्रशासन सम्बन्धी निर्णय लेने के लिए। निरन्तर अधिकाधिक मात्रा में समंकों की आवश्यकता होती है।”3 योजनाओं के निर्माण में सांख्यिकों तथा

सांख्यिकी के कार्य,महत्व तथा सीमाएँ 19 अर्थशास्त्रियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इन योजनाओं की प्राति का माप भी सांख्यिकीय विधिया स विशषज्ञा द्वारा ही किया जाता है । इस प्रकार भारतीय आर्थिक नियोजन के लिए सांख्यिकी की बहुत उपयागिताह, परन्तु दुर्भाग्य की बात है कि अधिकांश क्षेत्रों में उपलब्ध भारतीय समंक अधिकतर दोषपूर्ण अविश्वसनीय है। यही कारण है कि योजनाओं में निर्धारित बहत से अनमान गलत सिद्ध हुए हैं जैसे द्वितीय एव। तृतीय पंचवर्षीय योजनाओं में जनसंख्या वद्धि की दर हीनार्थ प्रबन्धन की सरक्षित सीमा मूल्य स्तर का प्रवृत्तिमा, खाद्यान के उत्पादन आदि के विषय में अनुमान गलत सिद्ध हए हैं। वास्तव में “अपूर्ण और अशुद्ध समका का आधार पर किया जाने वाला नियोजन, नियोजित अर्थव्यवस्था के न होने से भी बरा है ।”

भारतीय समंकों के दोषों को दूर करने के लिए सरकार ने स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से सांख्यिकीय सगठन सम्बन्धी तथा क्रिया-सम्बन्धी अनेक महत्वपूर्ण सुधार किये हैं जिनमें विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं- केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन (Central Statistical Organization). राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण (National Sample Survey), स्थायी जनगणना संगठन आदि की स्थापना करना,समंक संकलन अधिनियम की व्यवस्था करना तथा जनसंख्या,राष्ट्रीय आय,उद्योग, कृषि आदि के समंकों को एकत्रित करने की रीतियों में और उनके क्षेत्र में व्यापक सुधार करना। इन सुधारों के अतिरिक्त, देश के विश्वविद्यालयों तथा प्रमुख अनुसन्धान संस्थाओं; जैसे- भारतीय सांख्यिकीय संस्थान (Indian Statistical Institute), भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् (Indian Council of Agricultural Research), राष्ट्रीय व्यावहारिक आर्थिक अनुसन्धान परिषद् (Indian Council of Applied Economic Research) आदि का भी सांख्यिकीय सर्वेक्षणों द्वारा आवश्यक समंक उपलब्ध कराने तथा सांख्यिकों को प्रशिक्षित कराने में पूर्ण सहयोग प्राप्त किया जा रहा है। इस प्रकार सरकार तथा राष्ट्रीय योजना आयोग नियोजन में सांख्यिकी के महत्व और उपयोगिता के प्रति जागरूक हैं।

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3. व्यवसाय तथा वाणिज्य में महत्व (Importance in Business and Commerce)- व्यापार, उद्योग तथा वाणिज्य के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए पर्याप्त मात्रा में समंकों का प्रयोग अत्यावश्यक है। व्यापारी को उपयुक्त समंकों के आधार पर ही वस्तु की माँग का अनुमान लगाना पड़ता है और क्रय-विक्रय व विज्ञापन नीतियाँ निर्धारित करनी पड़ती हैं। माँग का पूर्वानुमान लगाते समय उसे ऋतुकालीन परिवर्तनों,व्यापारचक्रों, ग्राहकों की अभिरुचि, रीति-रिवाज, जीवन-स्तर, द्रव्य की क्रयशक्ति आदि के यथेष्ट आँकड़ों को ध्यान में रखना पड़ता है, अन्यथा अनुमान गलत हो सकता है । यदि व्यापारी सम्बन्धित समंकों को आधार मान कर अनुमान नहीं लगाता है तो वह यथार्थ नहीं होगा और या तो व्यापारी का बहुत-सा माल बचा रहेगा जिससे उसे हानि होगी या माँग से कम माल होने के कारण उसे यथोचित लाभ से वंचित रहना पड़ेगा। इसलिए व्यापारी के लिए समंकों पर आधारित अनुमान लगाना नितान्त आवश्यक है। अनुमान जितने यथार्थ होंगे, व्यापारी को उतनी ही अधिक सफलता प्राप्त होगी । बाडिंगटन ने कहा भी है, “एक सफल व्यापारी वही है जिसका अनुमान यथार्थता के अत्यधिक सन्निकट होता है ।”

व्यापारी की भाँति उद्योगपति को भी भूतकालीन और वर्तमान आँकड़ों के आधार पर माँग का अनुमान लगाना पड़ता है तथा यह निर्णय करना पड़ता है कि आगामी अवधि में किस प्रकार की वस्तु का कितनी मात्रा में उत्पादन करना है। माँग के अनुमान के अतिरिक्त कच्चे माल के क्रय, निर्मित माल के विक्रय, विज्ञापन, यातायात, श्रम, वित्तीय साधनों की प्राप्ति तथा मूल्य निर्धारण सम्बन्धी नीतियाँ उपयुक्त और यथार्थ समंकों के विश्लेषण के आधार पर ही निर्धारित की जाती हैं। नये उद्योग के प्रवर्तन की विभिन्न समस्यायें सुलझाने में आँकड़े बहुत सहायक सिद्ध होते हैं।

प्रबन्ध लेखांकन तथा व्यावसायिक लेखाकर्म वस्तुतः समंकों पर ही आधारित होते हैं। समंकों की सहायता से ही किसी वस्तु की प्रति इकाई लागत, विभिन्न तत्वों में होने वाले अपव्यय, विभिन्न क्रियाओं तथा विभागों की कार्यक्षमता का सही मापन और वस्तु पर सेवा का मूल्य निर्धारण किया जा सकता है । इसी प्रकार, आँकड़ों के आधार पर ही व्यावसायिक खाते बनाये जाते हैं जिनसे व्यवसाय व उद्योग की गतिविधि का पता चल जाता है और भावी नीति निर्धारित करने में सहायता मिलती है।

वाणिज्य के अन्य क्षेत्रों में भी सांख्यिकी की उपयोगिता कछ कम नहीं है। बैंक प्रबन्धक व्यापार-चक्रों,द्रव्य की माँग में होने वाले परिवर्तनों, विनियोग सुविधाओं केन्द्रीय बैंक की नीति. मद्रा बाजार की स्थिति आदि से। सम्बन्धित समंकों के आधार पर ही यह निश्चित करते हैं कि वे कितना नकद कोष रखें तथा अपनी पूँजी का किस। प्रकार विनियोग करें। बीमा व्यवसाय में प्रीमियम की दरों का निर्धारण जीवन-प्रत्याशा, जीवन सारणियाँ, जनसंख्या सम्बन्धी आँकड़ों तथा सम्भावना सिद्धान्त के आधार पर किया जाता है सांख्यिकीय विश्लेषण द्वारा हो यह अनुमान लगा लिया जाता है कि निश्चित आयु पर औसत व्यक्ति की कितने समय तक और जीवित रहने को । प्रत्याशा है । एक जीवन बीमा कम्पनी ने एक बार यह विज्ञापन दिया था कि “हम यह नहीं जानते कि कौन मरेगा, पर हम यह अवश्य जानते हैं कि कितने मरेंगे।”

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बीमा संस्थाओं में विशेष मल्यांकन (Actuarial Valuation) सांख्यिकीय विधियों के अनुसार हा किया। जाता है। रेलवे तथा अन्य यातायात संस्थायें भी पर्याप्त मात्रा में समंकों का उपयोग करती हैं। समंकों की सहायता से ही किराये-भाड़े निश्चित किये जाते हैं और उनके आधार पर ही यह निर्णय किया जाता है कि किन मार्गों पर कितनी गाड़ियों का आयोजन करना है तथा किन विशेष अवसरों पर गाड़ियों की संख्या बढ़ानी है और कब घटानी है । रेलवे की संचालन-कुशलता का माप और रेलवे बजट का निर्माण सांख्यिकीय तथ्यों पर आधारित __स्कन्ध विपणि (Stock Exchange) तथा उपज विपणि (Produce Exchange) के सदस्यों, सट्टा करने वालों और दलालों को भी अंशों और वस्तुओं के पिछले मूल्य समंकों तथा माँग-पूर्ति की वर्तमान स्थिति आदि के आधार पर ही भावी मूल्यों के पूर्वानुमान लगाने पड़ते हैं। यदि मूल्यों के आँकड़े उपलब्ध न हों तो व्यवसाय एवं वाणिज्य के सभी पहलुओं में शिथिलता आ जाये । ब्लेयर के अनुसार, “यदि समाचार पत्रों, पत्रिकाओं,रेडियो और तार की रिपोर्टों से प्राप्त मूल्य समंक एक दिन के लिए हटा दिये जायें तो व्यावसायिक जगत शक्तिहीन हो जायेगा। यदि आजकल के कुल उपलब्ध समंक संसार से एक वर्ष के लिए हटा दिये जायें तो इसका परिणाम होगा, आर्थिक अव्यवस्था तथा विनाश ।”

अभिगोपकों तथा विनियोजकों (Investors) को सफलता प्राप्त करने के लिए ब्याज व लाभांश सम्बन्धी समंकों तथा संस्था की लाभ कमाने की शक्ति और वित्तीय स्थिति के आँकड़ों की सहायता लेनी पड़ती है। संक्षेप में,व्यवसाय और वाणिज्य के प्रत्येक क्षेत्र में सांख्यिकी की सेवायें असीम और अनन्त हैं।

व्यावसायिक प्रबन्ध व प्रशासन में समंक अत्यन्त उपयोगी होते हैं। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि आजकल व्यवसाय में लगभग प्रत्येक निर्णय समंकों और सांख्यिकीय रीति की सहायता से किया जाता है।’

प्रत्येक व्यवसाय प्रबन्धक को बाजार-अनुसंधान, श्रमिकों की नियुक्ति व प्रशिक्षण, विनियोग नीति, किस्म नियन्त्रण तथा अनेक दिशाओं में उचित निर्णय लेने पड़ते हैं। सांख्यिकीय विधियाँ इस सम्बन्ध में दो प्रकार से सहायक सिद्ध होती हैं-एक तो प्रबन्धक के समाने यथेष्ट संख्यात्मक सामग्री प्रस्तुत करके और दूसरे,गलत निर्णय से संलग्न जोखिम की प्रायिकता का मूल्यांकन करके, अतः अनिश्चितता को दूर करके बुद्धिमत्तापूर्ण निर्णय लेना समंकों के संकलन, विश्लेषण तथा निर्वचन सम्बन्धी सांख्यिकीय विधियों की सहायता से ही सम्भव है।

माध्य, अपकिरण,प्रतिचयन पद्धति,प्रायिकता सिद्धान्त, सैद्धान्तिक आवृत्ति बंटन आदि सांख्यिकीय विधियों द्वारा ही उत्पादित वस्तु की किस्म पर नियन्त्रण रखा जाता है।

नियन्त्रण चित्र (Control Charts) के निर्माण में सुनिश्चित गुण की औसत के आधार पर केन्द्रीय रेखा (Central line) और उसके प्रमाप विभ्रम के आधार पर उच्चतम व निम्नतम नियन्त्रण सीमायें (Upper and Lower Control Limits) निर्धारित की जाती हैं। वस्तुतः किसी व्यवसाय से सम्बन्धित तीन प्रमुख कार्यों में

सांख्यिकी के कार्य,महत्व तथा सीमाएँ /21 सांख्यिकीय रीति उपयोगी होती है- (10 क्रियाओं का नियोजन.(2) प्रमापा या मान नियन्त्रण। इन कार्यों का सम्बन्ध व्यवसाय के पाँच प्रमुख क्रियात्मक क्षेत्रों से हाता श्रम-व्यवस्था वित्त तथा लेखा कर्म इन सभी क्षेत्रों में सांख्यिकी बहुत उपयोगी एवम में उत्पादन नियोजन बाजार अनुसन्धान.बाजार विभक्तिकरण, उपभोक्ता व्यवहार, कीमत निर्माण,वितरण मागों की व्यवस्था,बाजार नियोजन व विक्रय पूर्वानुमान आदि के लिए संमक अनिवार्य है ।

नाआ का नियोजन,(2) प्रमापों या मानकों का निर्धारण तथा (3) वसाय के पांच प्रमुख क्रियात्मक क्षेत्रों से होता है-विपणन, उत्पादन, नसभा क्षेत्रों में सांख्यिकी बहुत उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है। विपणन प्रबन्ध करण, उपभोक्ता व्यवहार,कीमत निर्धारण विज्ञापन नीति आर्थिक समूहों जैसे सकल राष्ट्रीय उत्पादन उपभोग बचत विनियोग व्यय और मुद्रा के मूल्य में हान वाला

4. अर्थशास्त्र में महत्व (Importance in Economics)-या-लन चाऊ के अनुसार, “अर्थशास्त्री परिवर्तनों के मापन के लिए समंकों पर निर्भर रहते हैं। वे आर्थिक सिद्धान्तों का सत्यापन करने तथा पारकल्पना की जाँच करने के लिए भी सांख्यिकीय विधि का ही प्रयोग करते हैं।” |

इस प्रकार अर्थशास्त्र के क्षेत्र में किसी ऐसी समस्या की कल्पना करना लगभग असम्भव है जिसमें समको का विस्तृत प्रयोग न किया जाता हो। अर्थशास्त्र की सभी शाखाओं से सम्बन्धित विभिन्न नियमों व सिद्धान्तों का समंकों की सहायता से ही विश्लेषण व पुष्टीकरण किया जा सकता है। उपभोग के समंकों से व्यक्तियों के जीवनस्तर,विभिन्न मदों पर उनके व्यय,मांग की लोच आदि की समुचित जानकारी प्राप्त होती है । उत्पादन के समंकों से। राष्ट्र की सम्पत्ति की मात्रा व उसमें होने वाले परिवर्तनों तथा उनके कारणों का पता चलता है । विनिमय समंक एक देश की व्यापारिक उन्नति, आयात-निर्यात, भुगतान सन्तुलन, प्रचलित मुद्रा की मात्रा में होने वाले परिवर्तनों के सम्बन्ध में उपयोगी सूचना प्रदान करते हैं। वितरण के समंकों की सहायता से राष्ट्रीय लाभांश में उत्पादन के विभिन्न साधनों का भाग,विभिन्न वर्गों की आर्थिक स्थिति आदि का पर्याप्त ज्ञान प्राप्त होता है । इस प्रकार सूक्ष्म अर्थशास्त्र (Micro-Economics) तथा वृहत् अर्थशास्त्र (Macro-Economics) के सभी विभागों में सांख्यिकीय विश्लेषण एवं निर्वचन का बहुत महत्व है।

5. सांख्यिकी की सार्वभौमिक उपयोगिता (Universal Utility of Statistics)- सांख्यिकी का व्यापक महत्व है। ज्ञान-विज्ञान की प्रत्येक शाखा में सांख्यिकीय विधियों की उपयोगिता निरन्तर बढ़ती जा रही है। समाजशास्त्र, शिक्षा, मनोविज्ञान, भौतिकी व रसायन शास्त्र, जीवशास्त्र, नक्षत्र-विज्ञान, चिकित्सा शास्त्र आदि अनेक विज्ञानों में सांख्यिकीय विवेचन नितान्त आवश्यक है। प्रत्येक क्षेत्र में सांख्यिकी अनुसन्धान का एक महत्वपूर्ण साधन है, यहाँ तक कि साहित्य के क्षेत्र में भी लेखकों की शैली का अध्ययन,विभिन्न शब्दों की आवृत्ति, वाक्यों की लम्बाई आदि की व्याख्या सांख्यिकीय माप के आधार पर की जाती है। एडवर्ड केने के अनुसार, “आजकल सांख्यिकीय विधियों का प्रयोग ज्ञान एवं अनुसन्धान की लगभग प्रत्येक शाखा-आरेखीय कलाओं से लेकर नक्षत्र-भौतिकी तक और लगभग प्रत्येक प्रकार के व्यावहारिक उपयोग-संगीत रचना से लेकर प्रक्षेपणास्त्र निर्देशन तक में किया जाता है।” टिप्पेट ने ठीक ही कहा है-“ सांख्यिकी प्रत्येक व्यक्ति को प्रभावित करती है और जीवन को अनेक बिन्दुओं पर स्पर्श करती है।”3 आधुनिक युग में सांख्यिकी का ज्ञान अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होता है । डा. बाउले के शब्दों में,“सांख्यिकी का ज्ञान विदेशी भाषा या बीजगणित के ज्ञान की भाँति है,यह किसी भी समय, किसी भी परिस्थिति में उपयोगी सिद्ध हो सकता है।”4 सारांश में यह कहा जा सकता है कि सांख्यिकी का प्रयोग इतना विस्तृत हो गया है कि आज वह मानव क्रियाओं के प्रायः प्रत्येक पहलू को प्रभावित करता है। सरकारें अपनी नीतियां निर्धारित करने में और अपने निर्णयों के समर्थन में समंकों को आधार के रूप में प्रयुक्त करती हैं। सामूहिक सौदेबाजी में प्रबन्धक और श्रमिक दोनों ही समंक उद्धृत करते हैं। प्रतियोगी प्रमडंल अपनी-अपनी वस्तुओं की किस्म की उत्कृष्टता को सिद्ध करने के लिए समंक प्रस्तुत करते हैं। हम पर निरन्तर दैनिक समाचार-पत्रों, रेडियो, दूरदर्शन (T.V.) द्वारा संख्यात्मक तथ्यों और सांख्यिकीय विश्लेषण व निर्वचन की बौछार की जाती है वास्तव में वर्तमान युग सांख्यिकी का युग है।

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सांख्यिकी की सीमायें

(Limitations of Statistics)

आज के युग में सांख्यिकी को एक महत्वपूर्ण विज्ञान समझा जाता है क्योंकि इसका प्रयोग प्रत्येक शास्त्र तथा जीवन से सम्बन्धित प्रत्येक पहलू व समस्या में किया जाने लगा है। परन्तु इस विज्ञान की भी अपनी कुछ सीमायें हैं जिनके कारण कभी-कभी निकलने वाले निष्कर्ष गलत तथा भ्रमात्मक हो जाते हैं । सुप्रसिद्ध सांख्यिक श्री टिप्पेट के अनुसार, किसी भी क्षेत्र में सांख्यिकीय नियमों का उपयोग कछ मान्यताओं पर आधारित तथा कुछ सीमाओं से प्रभावित होता है, इसलिए प्रायः अनिश्चित निष्कर्ष निकलते हैं।” अतः इस आधार पर प्रो० न्यूजहोम ने इस विज्ञान की सीमाओं के सम्बन्ध में लिखा है कि सांख्यिकी निःसन्देह अनुसन्धान के लिए एक समुचित साधन व आधार प्रस्तुत करती है, परन्तु सीमाओं से परिपूर्ण । सत्यता तो यह है कि सांख्यिकी शास्त्र की केवल एक सीमा है और वह यह कि यह शास्त्र सीमाओं से घिरा शास्त्र है; यही कारण है कि विभिन्न सीमाओं के होने पर और उन पर जब बिना ध्यान दिये हुए निष्कर्ष निकाले जाते हैं तो वह भ्रमात्मक तथा अशुद्ध प्रतीत होते हैं जिनसे प्रभावित होकर सामान्य व्यक्ति सांख्यिकी के प्रति अविश्वास प्रकट करने लगते हैं।

यहाँ यह लिखना आवश्यक न होगा कि सीमायें हर शास्त्र की होती हैं । उदाहरणार्थ- अर्थशास्त्र का प्रत्येक नियम सीमाओं और अपवादों पर आधारित है। अत्यन्त दृढ प्रकृति वाले भौतिकशास्त्र तथा रसायनशास्त्र की भी अपनी कुछ सीमायें हैं। सांख्यिकी की सीमाओं का पूर्ण निराकरण यद्यपि सम्भव नहीं है, परन्तु यदि उनके अनुसार तथा उन पर ध्यान रखते हए कार्य किया जाये तो इन सीमाओं से उत्पन्न होने वाले दोषों को समाप्त अवश्य किया जा सकता है । संक्षेप में सांख्यिकी की कुछ प्रमख सीमाएं निम्नलिखित हैं

1 सांख्यिकी समूहों का अध्ययन करती है, व्यक्तिगत इकाइयों का नहीं (Statistics deals with aggregates but not with individuals)- सांख्यिकी के अध्ययन की यह विशेषता है कि यह समूहों का अध्ययन मात्र होता है, व्यक्तिगत इकाइयों का नहीं। यद्यपि इकाइयों के माध्यम से ही समूह या समय समग्र का अध्ययन किया जाता है परन्तु इसके निष्कर्ष सदैव एक औसत तथा समूह की प्रकृति का आभास प्रकट करते हैं। दूसरे शब्दों में व्यक्तिगत इकाइयों की व्यक्तिगत विशेषताओं पर ध्यान नहीं दिया जाता वरन् निकलने वाला प्रत्येक निष्कर्ष समूह का प्रतिनिधित्व करता है। प्रो० नीज बैंगर के अनुसार, “सांख्यिकी के निष्कर्ष समूह के सामूहिक व्यवहार का अनुमान करने में सहायक होते हैं, उस समूह की व्यक्तिगत इकाइयों का नहीं।” उदाहरणार्थ, एक कारखाने में काम करने वाले 4 व्यक्तियों का मासिक वेतन 4000 रु०,3000 रु०,2000 रु० तथा 1000 रु. है। जिनका औसत 2500 रु. होता है। इससे दो परिणाम निकलते हैं। प्रथम कि सामान्यतः अधिकतर लोगों की आय पर्याप्त है जबकि ऐसी बात नहीं है। द्वितीय, इन सभी लोगों की आय औसत के समीपवर्ती है, जबकि यह स्वीकार करना ही पड़ेगा कि सांख्यिकी का सम्बन्ध व्यक्तिगत इकाई से न होकर सदैव समूह-मात्र से ही होता है।

2. सांख्यिकी सदैव संख्यात्मक तथ्यों का अध्ययन करती है, गुणात्मक तथ्यों का नहीं (Statistics studies quantitative phenomena and not qualitative)- सांख्यिकी-शास्त्र की दूसरी सीमा यह है। कि यह शास्त्र केवल संख्यात्मक तथ्यों और समस्याओं का अध्ययन करता है, गुणात्मक तथ्यों का नहीं। दूसरे शब्दों में, सांख्यकी के अन्तर्गत सदैव उन्हीं समस्याओं का अध्ययन किया जाता है जिनका संख्यात्मक वर्णन सम्भव होता है; जैसे-ऊँचाई, आयु, लम्बाई, उत्पादन इत्यादि । परन्तु इसके विपरीत कुछ ऐसे भी तथ्य और समस्याएँ होती हैं जिनका संख्यात्मक वर्णन सम्भव ही नहीं हो पाता और उनके गुणात्मक स्वरूप का ही अध्ययन करना पड़ता है क्योंकि उनको संख्याओं द्वारा प्रदर्शित या वर्णित किया जाना असम्भव होता है; जैसे-सुन्दरता, चरित्र, बौद्धिक स्तर, व्यवहार इत्यादि । ऐसी समस्याएँ या तथ्य पूर्णतः सांख्यिकीय क्षेत्र से बाहर ही बने रहते हैं। हाँ.यह लिखना अनावश्यक न होगा कि ऐसी समस्याओं का परोक्ष रूप से अध्ययन तो किया जा सकता है. परन्त प्रत्यक्ष ढंग से नहीं।

3. सांख्यिकीय निष्कर्ष असत्य व भ्रमात्मक सिद्ध हो सकते हैं यदि उनका अध्ययन बिना सन्दर्भ के किया जाये (Statistical results may be misleading and ambiguous if analysed without proper _context of the problem)- सांख्यिकी का एक सीमा यह है कि जब तक समस्या से सम्बन्धित हर पहले निष्कर्ष सामान्यतः भ्रमात्मक सिद्ध हो सकता है। उदाहरणार्थ सूती वस्त्र उद्योग का कुछ निश्चित वर्षों में लाभ तब तक निकाला हआ प्रत्येक निष्कर्ष सामान्यतः भ्रमात्मकासकर बिना सन्दर्भ व परिस्थितियों को समझे हए जो निष्कर्ष निकाले जाते है वर वास्तविक रूप से वे निष्कर्ष सत्य नहीं होते। उदाहरणार्थ-सूती वस्त्र उद्योग का कुरु क्रमशः 10,000, 13,000, 18,000 तथा 25,000 रुपया है तथा जूट 10,000, 18,000 तथा 25,000 रुपया है तथा जट उद्योग में उन्हीं वर्षों में लाभ की मात्रा U. 18,000, 13,000 तथा 10,000 रुपये है। दोनों ही उद्योगों का औसत लाभ समान होने पर यही कहा जायेगा कि वस्तुस्थिति सामान्य है क्योंकि दोनों उद्योगों का औसत लाभ 16,500 रुपया सत्यता यह है कि सूती उद्योग तो उन्नति कर रहा है लाभ बढ़ने के कारण) और जट उद्योग हानि उठाकर अवनात की ओर अग्रसर हो रहा है। दूसरा उदाहरण लीजिए। यदि चीनी के मूल्य ब यदि चीनी के मूल्य बढ़ जाने से नमक के मुल्य भी बढ जायें तो यह निष्कर्ष निकाल लेना चाहिए कि नमक के मूल्य को बढाने के लिए चीनी का मल्य बढाना आवश्यक है- अनुचित वा भ्रमात्मक होगा, क्योंकि दोनों के मूल्य में कोई सम्बन्ध नहीं है। यह तो आकस्मिक अथवा दैव रूप से हो ऐसा हुआ कि चीनी के मूल्य बढ़ने पर नमक का भी मूल्य बढ़ गया था।

वास्तव में दोनों वस्तुओं के मूल्यों के बढ़ने के कारण अलग-अलग थे अतः बिना सन्दर्भ देखे,किसी तथ्य को समान मान लेना एक भयंकर भूल होगी। डा० बाउले ने कहा है कि “जो विद्यार्थी समंकों का उपयोग करता है उसे अनुसंधान के निष्कर्षों को प्रमाणित मान कर संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए प्रत्यत उस विधि के समस्त अंगों का। पर्याप्त ज्ञान प्राप्त करना चाहिए।”

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4. सांख्यिकीय समंकों का सजातीय होना आवश्यक है (Statistical data should be homogeneous)- सांख्यिकीय निष्कर्षों के लिए आवश्यक है कि जिन समंकों से निष्कर्ष निकाले जाएँ वे सजातीय हों तथा उनमें एकरूपता पायी जानी चाहिए। अगर समंकों में एकरूपता व सजातीयता नहीं है और वे अलग रूप में तथा विभिन्न तरीकों से एकत्रित किये गये समंक हैं तथा उनकी प्रकृति में भी अन्तर है तो ऐसे विजातीय समंकों से निकाले गये निष्कर्ष सदैव भ्रमात्मक होंगे। उदाहरणार्थ-चलन में मुद्रा की मात्रा तथा वर्षा की मात्रा से सम्बन्धित समंकों के आधार पर कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है क्योंकि इन दोनों में कोई सह-सम्बन्ध नहीं है । इसी प्रकार, मनुष्य की आयु व मूल्यस्तर में कोई सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयत्न करना पूर्णतया गलत होगा।

5. सांख्यिकीय नियम दीर्घकाल में तथा औसत रूप में ही सत्य हैं (Statistical laws are true in the long run and on the average)- सांख्यिकीय नियमों की यह भी एक सीमा कही जाती है कि वे सामान्यतः औसत रूप से ही सत्य होते हैं और वह भी केवल दीर्घकाल में। इसके साथ ही साथ सांख्यिकीय नियम प्राकृतिक विज्ञान के नियमों की भाँति दृढ़, सार्वभौमिक तथा सर्वमान्य नहीं होते हैं । उदाहरणार्थ, भौतिकशास्त्र का गुरुत्वाकर्षण का नियम तथा रसायनशास्त्र में हाइड्रोजन व ऑक्सीजन के संयोग से पानी बनाने की प्रक्रिया सर्वथा सत्य है जो प्रत्येक अवस्था में एक निश्चित रूप में प्रकट होती है। परन्तु इसके विपरीत सांख्यिकी का सम्भावना सिद्धान्त (Theory of Probability) इतना दृढ़, निश्चित व पूर्ण नहीं है, यह तो एक सामान्य प्रवृत्ति या सन्निकट प्रवृत्ति (Approximate tendencies) का आभास मात्र ही है। सम्भावना सिद्धान्त के अनुसार यदि बन्दूक से निशाना लगाया जाये तो निशाना लगने या न लगने की सम्भावना 1/2 है परन्तु यह तभी संभव हो सकता है जबकि एक से अधिक बार निशाना लगाया जाये और यह भी संभव हो सकता है कि 100 बार निशाना लगाने पर 70 बार निशाना ठीक लगे तथा 30 बार गलत लगे,जबकि सम्भावना 50 और 50 की थी। अतः स्पष्ट है कि संभावना सिद्धान्त किसी दृढ़ व निश्चित आधार को प्रस्तुत नहीं करता है । इसी कारण प्रायः यह कहा जाता है कि सांख्यिकीय नियम केवल औसत रूप से ही सत्य होते हैं और वह भी केवल दीर्घकाल में ही।।

6. सांख्यिकीय रीति किसी समस्या के अध्ययन की विभिन्न रीतियों में से एक है (Statistics is one of the methods used for the study of any problem)- सामान्यतः जीवन में जितनी भी समस्याओं का अध्ययन किया जाता है उनके अध्ययन की अनेक रीतियाँ होती हैं। सांख्यिकी भी अन्य रीतियों के सदश एक रीति है, परन्तु एक-मात्र रीति नहीं। इसलिए सांख्यिकी के माध्यम से निकाले गये निष्कर्ष पूर्णतः प्रमाणित नहीं हो सकते हैं जब तक कि प्रयोग अन्तरावलोकन व नियन्त्रण विधि द्वारा उन निष्कर्षों की जांच न कर ली जाये इसी। तथ्य का समर्थन करते हुए प्रो० क्राक्स्टन तथा काउडेन ने कहा है कि, “यह नहीं मान लेना चाहिए कि सांख्यिकीय रीति ही अनुसंधान कार्य में प्रयोग की जाने वाली एकमात्र रीति है न ही इस रीति को प्रत्येक प्रकार की समस्या का सर्वोत्तम हल समझना चाहिए।” फिर भी यह कहना अनावश्यक न होगा कि सांख्यिकीय रीतियों का प्रयोग। अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि यह शास्त्र हमें सत्यता के अत्यन्त निकट लाकर खड़ा करता है।

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7.सांख्यिकी का प्रयोग वही व्यक्ति कर सकता है जिसे सांख्यिकीय रीतियों का पूर्ण ज्ञान हो (Statistics  can be used only by a person who possesses the perfect knowledge of statistical methods)- सांख्यिकीय सीमाओं के सन्दर्भ में सबसे महत्वपूर्ण सीमा यह समझी जाती है कि सांख्यिकी का प्रयोग प्रत्येक व्यक्ति नहीं कर सकता,बल्कि सांख्यिकी का प्रयोग वह व्यक्ति कर सकता है जिसे सांख्यिकी का पूर्ण । ज्ञान हो तथा जो उन रीतियों के प्रयोग (Application) से भली-भाँति परिचित हो और उनमें दक्ष हो । बिना पूर्ण जानकारी किये हुए समंकों का प्रयोग करना व उनका विश्लेषण करके उनसे निष्कर्ष निकालना अत्यन्त खतरनाक । होता है, क्योंकि इस प्रकार निकाले हए निष्कर्ष सदैव भ्रमात्मक एवं अशद्धियों से परिपूर्ण होते हैं। इस सन्दर्भ में यूल एवं कैण्डाल ने अपना मत प्रकट करते हए लिखा है. “अयोग्य व्यक्तियों के हाथ में सांख्यिकीय रीतियाँ अत्यन्त खतरनाक औजार हैं। जिस प्रकार एक अयोग्य व्यक्ति के हाथ में कोई औजार गलत प्रयोग होने से स्वयं व समाज के लिए घातक सिद्ध हो सकता है, उसी प्रकार सांख्यिकी का उचित ज्ञान न रखने के कारण उसके प्रयोग से निकाले गये निष्कर्ष भी जन-समदाय के लिए हानिकारक या अकल्याणकारी हो सकते हैं । डा० ए० एल० बाउले ने लिखा है कि “समंक केवल एक आवश्यक किन्तु अपूर्ण औजार प्रदान करते हैं जो उन लोगों के हाथों में खतरनाक है जो उनकी प्रयोग विधि और कमियों से परिचित नहीं हैं।”

8. सांख्यिकी केवल साधन मात्र है, समस्या का समाधान नहीं (Statistics is a mean but not a solution of the problem)- इस अन्तिम सीमा के सम्बन्ध में सभी लोग एकमत नहीं हैं। वैसे यह सीमा डा. बाउले द्वारा की गयी परिभाषा पर आधारित है जिसके अनुसार सांख्यिकी का उद्देश्य समंकों का संकलन (Collection) व उनका उचित रूप से प्रदर्शन (Presentation) करना मात्र है,उनसे निष्कर्ष निकालना नहीं। सांख्यिकी तो कच्ची सामग्री के रूप में समंकों को प्रस्तुत करती है जिससे वांच्छित निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। अगर इस विचारधारा को स्वीकार किया जाय तो कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इसकी आलोचना करते हैं। उनके दृष्टिकोण से अगर सांख्यिकी का कर्तव्य निष्कर्ष निकालना नहीं है, तो सांख्यिकी बेकार है और उसका महत्व समाप्त हो जायेगा। वस्तुतः निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए यह कहना आवश्यक होगा कि सांख्यिकी का कार्य केवल साधन के रूप में काम करना है ताकि समस्या के समाधान में सुविधा हो सके। सांख्यिकी के अन्तर्गत पक्षपातरहित आँकड़ों का संकलन तथा उन्हें विभिन्न तरीकों से आवश्यकतानुसार प्रस्तुत करना ही आता है जिसमें से निष्कर्ष निकालना उसकी परिधि के बाहर की बात होती है।

अन्त में. उपरोक्त सभी सीमाओं का अध्ययन करने के बाद यह बात सदैव स्मरण रखनी चाहिए कि अनुसंधानकर्ता को इन सीमाओं के प्रति पूर्णरूप से जागरूक रहना चाहिए, ताकि उसके द्वारा निकाले गये निष्कर्ष सत्यता के सन्निकट हो सकें।

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सांख्यिकी के प्रति अविश्वास

(Distrust of Statistics)

इसमें कोई सन्देह नहीं कि सांख्यिकी अत्यधिक उपयोगी विज्ञान है, किन्तु फिर भी इसके प्रति एक अविश्वास की भावना धीरे-धीरे बलवती होती जा रही है । कुछ व्यक्तियों ने इसको झूठों का विज्ञान (Science of Liers) कहा है। ऐसे व्यक्तियों का यह कहने का मुख्य कारण यह है कि सांख्यिकी के परिणाम बहुधा सामान्य जीवन के विपरीत होते हैं। कहा जाता है कि “सांख्यिकी कुछ भी सिद्ध कर सकती है” (Statistics can prove | anything) । इसका आशय यह हुआ कि सांख्यिक एकत्रित समंकों से जो कुछ भी परिणाम निकालना चाहे, वह निकाल सकता है । एक अन्य विद्वान कहते हैं, सांख्यिकी मिट्टी के समान है जिससे आप अपनी इच्छानुसार देवता या दानव बना सकते हैं (Statistics are clay out of which you can make a God or devil as you please) । डिजरायली ने भी कुछ ऐसी ही बात कही है। इनके अनुसार झूठ तीन प्रकार के होते हैं- झूठ, सफेद झूठ, समंक (There are three degrees of lies-lies, damned lies and statistics) । एक अन्य

1 परस्पर विपरीत आँकड़ों का मिलना- एक ही समस्या पर सरकारी आँकड़े कुछ निष्कर्ष निकालत ह अ विरोध पक्ष के ऑकड़े कुछ और। इन विरोधी आँकडों को देखकर जनसाधारण का समंकों से विश्वास उठ जाता। है.और यह धारणा बन जाती है कि सांख्यिकी कुछ भी सिद्ध कर सकती है

2. सांख्यिकी निष्कर्षों का प्रत्यक्ष अनभव के विपरीत होना-कभी-कभी देखने में आता है कि सांख्यिकीय निष्कर्ष कछ होते हैं और देखने को कुछ और मिलता है। उदाहरण के लिए. सांख्यिकीय आंकड़े बताते है कि मूल्यों में गिरावट आई है जबकि प्रतिदिन के भावों में किसी प्रकार की गिरावट नहीं प्रतीत होती।

3. सामान्य व्यक्तियों की अज्ञानता-जनसाधारण की सांख्यिकीय रीतियों के प्रति अज्ञानता के कारण वे समंकों से कुछ और निष्कर्ष निकाल लेते हैं और जब निष्कर्ष भ्रामक होते हैं तो सांख्यिकी पर अविश्वास करने लगते हैं।

4. समंकों की सत्यता को न जाँचना-कभी-कभी सांख्यिक ही समंकों की सत्यता की जाँच किये बिना ही उससे निष्कर्ष निकाल लेता है. और जब निष्कर्ष वास्तविकता के विपरीत आते हैं तो जनसाधारण सांख्यिकी विज्ञान पर अविश्वास करने लगता है।

5. समंकों का गलत व्यक्तियों द्वारा प्रयोग-कभी-कभी वे व्यक्ति जिनको सांख्यिकीय रीतियों का पूर्ण ज्ञान नहीं है.समंकों के गलत विश्लेषण व निर्वचन द्वारा गलत निष्कर्ष निकाल लेते हैं। इसलिए कहा गया है “अयोग्य व्यक्तियों के हाथों में सांख्यिकी विधियाँ अत्यन्त खतरनाक औजार है।” ।

6. समंकों का पक्षपातपूर्ण प्रयोग-कुछ व्यक्ति अपनी किसी बात को सिद्ध करने के लिए तथा अपने का का प्रभाव डालने के लिए आँकड़ों का सहारा लेते हैं, और अपने मतलब के आँकड़ों से अपने प्रकार से निष्कर्ष निकाल कर रख देते हैं,परिणामतः सांख्यिकी के प्रति अविश्वास बढ़ जाता है।

7. सांख्यिकीय सीमाओं की उपेक्षा- सांख्यिकी की अपनी कई सीमायें हैं । निर्वचन करते समय यदि इन सीमाओं का ध्यान न रखा जाये तो निष्कर्ष भ्रमपूर्ण प्रतीत होते हैं। जैसे-सांख्यिकीय निष्कर्ष सामूहिक होते हैं, यदि उनको व्यक्तिगत इकाई पर लागू करेंगे तो परिणाम विपरीत हो सकता है।

अत: स्पष्ट है कि सांख्यिकी में अविश्वास जनसाधारण की अज्ञानता और उनके द्वारा समंकों के दुरुपयोग के कारण है । सांख्यिकी विज्ञान सर्वथा दोषरहित है और यदि समंकों को सही प्रकार से एकत्रित किया जाये, उनका सही विश्लेषण,निर्वचन व प्रस्तुतीकरण आदि किया जाये, तो कोई कारण नहीं है कि उनसे सही शुद्ध व सर्वमान्य परिणाम न निकले। वॉलिस तथा रोबर्ट्स ने चेतावनी दी है कि, “जो व्यक्ति समंकों को बिना सोचे-समझे स्वीकार कर लेता है,वह प्रायः अनावश्यक रूप से धोखा खा जाता है, परन्तु जो उन पर बिना विचार किये अविश्वास करता है वह अक्सर अनावश्यक रूप से अनभिज्ञ रह जाता है।”

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अविश्वास को दूर करने के उपाय

यदि निम्नलिखित सावधानियाँ बरती जायें तो समंकों के प्रति अविश्वास को समाप्त किया जा सकता है

1 आँकडों का निष्पक्ष एवं स्वतन्त्र प्रयोग- समंकों का प्रयोग करते समय उनका निष्पक्ष भाव व स्वतन्त्र रूप। से विश्लेषण करना चाहिए, ताकि परिणामों पर प्रयोगकर्ता की भावना व इच्छा का प्रभाव न पड़े। ऐसा करने से सांख्यिकीय निष्कर्ष अधिक सही व स्पष्ट होंगे।

2. विश्लेषण- एकत्रित किये गये आँकडों का गहन अध्ययन करके उनका तर्कपूर्ण विश्लेषण करना चाहिए। यदि स्वतन्त्र विचार-विनिमय के बाद तर्कपर्ण विश्लेषण किया जाये तो परिणामों की भ्रान्ति को दूर। किया जा सकता है।

3. साख्यिकी के जानकार व्यक्ति द्वारा प्रयोग-सांख्यिकी के विषय में अविश्वास का कारण यह है कि साख्यिकाय रातियों से अनभिज्ञ व्यक्ति इस विज्ञान का गलत प्रयोग द्वारा निष्कर्ष निकालते हैं। यदि सांख्यिकीय रातियों का पूर्ण ज्ञाता व्यक्ति ही इसके प्रयोग द्वारा निष्कर्ष निकाले तो सांख्यिकी के प्रति अविश्वास को खत्म किया जा सकता है।

4. सांख्यिकीय सीमाओं को ध्यान में रखना-निष्कर्ष निकालते समय सांख्यिकी की सीमाओं का विशेष ध्यान रखना चाहिए। सीमाओं से परे कार्य करने पर भ्रामक परिणाम निकलते हैं। दो अतुलनीय तथ्यों से तुलना करना भ्रामक हो सकता है। उदाहरण के लिए, फौज की मृत्यु-दर और शहर की मृत्यु-दर की तुलना गलत है।

5. समंकों के प्रयोग से पूर्व उसकी सत्यता की जाँच करना-समंकों का प्रयोग करने से पूर्व यह अवश्य। देख लेना चाहिए कि समंक किस संस्था या व्यक्ति ने एकत्रित किये हैं। एकत्रित करने की विधि विश्वसनीय है या नहीं। जब यह पूर्ण विश्वास हो जाये कि समंक सही व सत्य हैं, तभी उनका प्रयोग करके निर्णय लेने चाहिएँ। गलत समंकों के विश्लेषण से गलत निष्कर्ष ही प्राप्त होंगे।

इस प्रकार स्पष्ट है कि यदि सांख्यिकी का प्रयोग सही व्यक्ति द्वारा उचित तरीके अपनाकर, निष्पक्ष एवं स्वतन्त्र भाव से, आँकड़ों की सत्यता की जांच करके एवं सही विश्लेषण व तर्क सहित किया जाये तो इसके प्रति अविश्वास को समाप्त किया जा सकता है । कहा ठीक ही गया है कि, “सांख्यिकी का प्रयोग ऐसे नहीं होना चाहिए जैसे एक अन्धा व्यक्ति बिजली के स्तम्भ से प्रकाश न पाकर सहारा पाने का प्रयास करता है जबकि वास्तविक कार्य प्रकाश देना होता है न कि सहारा।”

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समंकों का दुरुपयोग

(Misuse of Statistics)

यह एक कटु सत्य है कि कुछ व्यक्तियों अथवा संस्थाओं द्वारा समंकों का दुरुपयोग करके उनसे असत्य और भ्रामक निष्कर्ष निकाले जाते हैं। समंकों का दुरुपयोग या तो जान-बूझकर किया जा सकता है अथवा वह सामान्यीकरण (Generalization) की त्रुटियों के कारण उत्पन्न हो सकता है। सामान्यतः समंकों का दुरुपयोग निम्न प्रकार होता है

1 अनुपयुक्त तुलना (Inappropriate comparison)- समंकों के मध्य तुलना करने के लिये यह आवश्यक है कि वे सजातीय हों अथवा एक आधार पर एकत्र किये गये हों। यदि विजातीय समंकों में तुलना की जाती है तो परिणाम गलत निकलते हैं । ऐसे परिणाम भ्रम पैदा करने वाले होते हैं। उदाहरण के लिये,एक सामान्य नगर और एक महामारी से प्रभावित नगर की मृत्यु-दर तुलना करके यह निष्कर्ष निकालना कि सामान्य नगर में स्वास्थ्य की सुविधाएँ अधिक मात्रा में उपलब्ध हैं,उचित नहीं है। क्योंकि महामारी से प्रभावित नगर में मृत्यु-दर अधिक होने के विशेष कारण विद्यमान हैं। इसी प्रकार यदि विभिन्न वर्षों की राष्ट्रीय आय की गणना करते समय मूल्य-स्तर में परिवर्तन को ध्यान में न रखा जाये तो निष्कर्ष असत्य होंगे।

2. समंकों के संकलन में दोष (Defects in data collection)- यदि समंकों के संकलन में त्रुटियाँ रह गयी हैं तो उनके आधार पर निकाले गये निष्कर्ष भी भ्रमपूर्ण तथा सत्य से दूर हो सकते हैं । त्रुटिपूर्ण मापदण्डों तथा अस्पष्ट व परिवर्तनशील परिभाषाओं के कारण समंकों के संकलन में त्रुटियाँ आ सकती हैं। यदि दो भिन्न-भिन्न देशों या अवधियों में गरीबी रेखा के सम्बन्ध में आँकड़े एकत्र किये जा रहे हैं तो यह ध्यान रखना आवश्यक है कि गरीबी रेखा की परिभाषा दोनों परिस्थितियों में समान और स्थिर है या नहीं। यदि परिभाषाओं में अन्तर है तो परिणाम भ्रान्तिपूर्ण होंगे।

3. सांख्यिक का पक्षपात या अभिनति (Bias of Statistician)- सांख्यिकी की अभिनति या पक्षपात (bias) की भावना समंकों के दुरुपयोग का मुख्य कारण है । प्रत्येक सांख्यिक की अपनी विचारधारा, दृष्टिकोण तथा मान्यताएँ होती हैं। यदि कोई अन्वेषक या सांख्यिक किसी तथ्य के सम्बन्ध में ऑकड़े एकत्र करने से पूर्व हा कुछ धारणाएँ बना लेता है तो वह समंकों को इस प्रकार से प्रस्तुत करेगा, जिससे उसकी पूर्व धारणाओं के अनुकूल ही निष्कर्ष निकले । जैसे-एक आधे भरे गिलास को एक व्यक्ति ‘आधा खाली’ कहकर परिभाषित कर सकता है तथा दूसरा सकारात्मक धारणा का व्यक्ति उसी गिलास को ‘आधा भरा गिलास’ कह सकता है।

4. प्रतिशतों का दुरुपयोग (Misuse of percentages)- सांख्यिकी में प्रतिशतों का भी बहुत दुरुपयोग किया जाता है। दो समूहों की तुलना में गलत आधार का प्रयोग करने से प्रतिशत रीति द्वारा भ्रमपूर्ण पारणाम निकलते हैं। उदाहरण के लिये,एक कारखाने में उत्पादन की मात्रा गत अवधि के उत्पादन 50,000 इकाइयों से। घटकर 25000 इकाइयाँ रह गयी । इन तथ्यों के आधार पर उत्पादक का यह कथन सर्वथा गलत और भ्रमपूर्ण हे कि उसके कारखाने का उत्पादन गत अवधि की तुलना में 100% घट गया है। वास्तविकता यह है कि उसका। उत्पादन गत अवधि की तुलना में 50% घट गया है क्योंकि गत अवधि के उत्पादन की तुलना में कुल उत्पादन में। 25,000 इकाइयों की कमी आयी है जो 50,000 इकाइयों को आधार मानते हुए 50% है। परन्तु वर्तमान उत्पादन को आधार मानकर यह प्रतिशत 100% होता है। सही निष्कर्ष निकालने के लिये प्रतिशत परिवर्तन मूल संख्या के आधार पर निकालने चाहिएँ।

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5. सांख्यिकीय विधियों का अनुचित प्रयोग (Improper use of Statistical Methods)सांख्यिकीय विधियों के दुरुपयोग द्वारा भी समंकों में त्रुटियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। डेरेल हफ के कथनानुसार, “माध्य और सम्बन्ध,प्रवृत्तियाँ और रेखाचित्र सदैव वे नहीं होते जो वे ऊपर से प्रतीत होते हैं। जितना स्पष्ट रूप दिखाई देता है, उनमें उससे कुछ अधिक हो सकता है और उससे बहुत कम भी हो सकता है।” उदाहरण के लिये, यदि किसी कक्षा के दो छात्रों के गत तीन परीक्षाओं के औसत प्रतिशत अंक समान हों तो यह परिणाम निकालना उचित नहीं होगा कि दोनों छात्रों का बौद्धिक स्तर समान है। गहन परीक्षण से यह ज्ञात हो सकता है कि एक छात्र प्रगति की ओर है तथा दूसरा छात्र अवनति कर रहा है। एक ही परिस्थिति में अलग-अलग माध्यों का प्रयोग करके दुषित परिणाम निकाले जा सकते हैं। बिन्दुरेखीय चित्रों के प्रदर्शन में मापदण्डों (Scale) का परिवर्तन करके वास्तविक स्थिति को छिपाया जा सकता है । इसी प्रकार दो तथ्यों के बीच कारण और परिणाम का सम्बन्ध हुए बिना भी,सम्बन्ध स्थापित करने से गलत निष्कर्ष निकल सकते हैं।

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6. एकपक्षीय तर्क (One-side arguments)- एकपक्षीय तर्क या सभी पहलुओं पर विचार किये बिना प्राप्त निष्कर्ष भ्रमपूर्ण हो जाते हैं। समंकों के आधार पर निर्वचन करने के लिये सम्बन्धित पहलुओं तथा परिस्थितियों का ध्यान रखना आवश्यक होता है । उदाहरण के लिये, यदि यह कहा जाये कि धूम्रपान करने वालों में से 70 प्रतिशत व्यक्ति केंसर के रोगी हो जाते हैं तो इस आधार पर यह निष्कर्ष निकालना.कि धुम्रपान केंसर के कारणों में से एक मुख्य कारण है, अनुचित है। सही निष्कर्ष निकालने के लिये यह जानना आवश्यक है कि धूम्रपान न करने वालों में से कितने प्रतिशत व्यक्ति केसर के शिकार हात है।

7. गणना या मुद्रण की त्रुटियां (Errors of calculation and printing)- समंकों से गणना करते समय कुछ त्रुटियां हो सकती हैं अथवा प्राप्त प्रकाशित समंकों में मुद्रण सम्बन्धी त्रुटियां रह सकती हैं। ऐसी त्रुटियों के कारण भी निकाले गये निष्कर्ष सत्य से परे हो सकते हैं। अत: ऐसी त्रुटियों के सम्बन्ध में आवश्यक सावधानी बरतनी चाहिए।

8. कम्प्यूटर का असावधानीपूर्वक प्रयोग (Uncritical use of computer)- आज के आधुनिक युग में समंकों के विश्लेषण में कम्पयूटर का व्यापक प्रयोग होने लगा है । कम्प्यूटर के सही परिचालन के लिये भी पर्याप्त सावधानी एवं दक्षता की आवश्यकता होती है । इसके अभाव में कम्प्यूटर भी गलत और भ्रमपूर्ण परिणाम दे सकता है।

इस प्रकार,व्यवहार में,समंकों का त्रुटिपूर्ण सामान्यीकरण करके तथा उनके दुरुपयोग द्वारा अनेक सांख्यिकीय भ्रम उत्पन्न किये जाते हैं तथा अवास्तविक निष्कर्षों द्वारा सामान्य जन को धोखा देने का प्रयास किया जाता है ।। अत: इन त्रुटियों और भ्रम से बचने के लिये सतत् सावधानी की आवश्यकता है।

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प्रश्न

1 सांख्यिकी के प्रमुख कार्यों को उदाहरण सहित बताइए।

Describe, with the help of illustrations, the functions of statistics.

2. व्यापार एवं वाणिज्य में सांख्यिकी का महत्व बताइए।

Explain the importance of statistics in trade and business.

3. आर्थिक विश्लेषण तथा नियोजन में सांख्यिकी की उपयोगिता का विवेचन कीजिए।

Discuss the use of statistics in economic analysis and planning.

4. सांख्यिकी विज्ञान की सीमाओं का विवेचन कीजिए।

Discuss the limitations of statistics.

5. सांख्यिकी की परिभाषा दीजिये। सांख्यिकी के महत्त्व पर प्रकाश डालिए सांख्यिकी के प्रात आवश्वास के कारण दीजिये।

Define statistics. Discuss the importance of Statistics. State varius causes of distrust of statistics.

6. सांख्यिकी के प्रति अविश्वास के क्या कारण हैं। अविश्वास पैदा करने वाली अशुद्धियों के स्रोतों कोन बताइए तथा इन्हें दूर करने के सुझाव दीजिए।

What are the causes of distrust in statistics ? Describe the sources of errors which create distrust and suggest remedies for removing distrust.

7. अयोग्य व्यक्तियों के हाथों में सांख्यिकीय रीतियाँ बहुत भयानक हथियार की तरह हैं। सांख्यिकी ऐसे विज्ञानों में से एक है जिसका प्रयोग करने वालों में एक कलाकार का आत्मसंयम होना चाहिए।” इस कथन की समीक्षा कीजिए।

Statistical methods are most dangerous tools in the hands of the inexperts. Statistics is one of those sciences whose adopts must exercise the self-restraints of an artist.” Comment.

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लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answered Questions)

8. प्रत्येक प्रश्न का उत्तर 100 से 120 शब्दों में दीजिये

The answer should be between 100 to 120 words:

(i) सांख्यिकी के कार्यों का वर्णन कीजिए।

Discuss the functions of ‘Statistics’.

(ii) सांख्यिकी की सीमायें बताइये।

Explain the limitations of Statistics’.

(iii) व्यवसाय में सांख्यिकी का महत्व बताइए।

Explain the importance of statistics in trade and business.

(iv) “सांख्यिकी वह माटी है जिससे तुम चाहो तो देवता अथवा दानव बना सकते हो।” समीक्षा कीजिए।

Statistics are like clay out of which you can make a God or devil as you like.” Comment.

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(v) “झूठ तीन प्रकार के होते हैं-झूठ,सफेद झूठ और समंक ।” स्पष्ट कीजिए।

“There are three degree of lies-lies, damned lies and statistics.” Explain.

(vi) “सांख्यिकी कुछ भी सिद्ध कर सकती है।” स्पष्ट कीजिए।

“Statistics can prove anything.” Explain it.

(vii) “समंक असत्य नहीं बोलते बल्कि असत्यवादी ही अशुद्ध चित्रण करते हैं ।” स्पष्ट कीजिए।

“Figures won’t lie but liars figure.” Explain.

(viii) समंकों के प्रति अविश्वास के कारण तथा अविश्वास को दूर करने के उपाय बताइए।

Explain the causes of distrust for statistics and remedies for removing it.

सांख्यिकी के कार्य,महत्व तथा सीमाएँ/29

(ix) ‘समंक कभी झूठ नहीं बोलते।’ इस कथन की समीक्षा कीजिये।

“Figures do not lie.” Comment.

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न

(Very Short Answered Questions)

(अ) निम्न कथनों में से कौन-सा कथन सत्य या असत्य है

State whether the following statement are TRUE or FALSE:

(i) सांख्यिकी में केवल संख्यात्मक तथ्यों का अध्ययन होता है.गणात्मक तथ्यों का नहीं ।

Statistics is the study of only quantitative facts and not qualitative facts.

(ii) सांख्यिकीय नियम,प्राकृतिक विज्ञान के नियमों की भांति दृढ.सार्वभौमिक तथा सर्वमान्य होते हैं ।

Statistical laws are particular and universally applicable like the natural science.

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chetansati

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