BCom 2nd Year Entrepreneur Importance Significance Decision Study Material notes In Hindi

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BCom 2nd Year Entrepreneur Importance Significance Decision Study Material notes In Hindi

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Entrepreneur Importance Significance Decision

BCom 3rd Year Corporate Accounting Underwriting Study Material Notes in hindi

निर्णयन का महत्त्व अथवा महत्ता

(Importance or Significance of Decision-making)

निर्णय लेना नेतृत्व/उद्यमिता/प्रबन्ध का एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। यह समस्त प्रबन्धकीय कार्यों में विस्तृत है और संस्था के प्रत्येक क्षेत्र मे इसकी आवश्यकता पड़ती है। मेलविन टी. कोपलैण्ड के शब्दों में, “प्रशासन मुख्यत: निर्णय लेने की प्रक्रिया है तथा अधिकार निर्णय लेने और यह देखने का कि उसके अनुसार कार्य हो रहा है या नहीं, उत्तरदायित्व है। व्यवसाय चाहे उपक्रम बडा हो अथवा छोटा, स्थिति में परिवर्तन होता रहता है, परिस्थितियों में परिवर्तन होता रहता है, कर्मचारियों में परिवर्तन होता रहता है। तथा अनेक आकस्मिक घटनाएँ घटती रहती हैं, किन्तु पहियों को चालू रखने तथा उसकी क्रियाओं को जारी रखने के लिए निर्णय लेना अनिवार्य होता है।” जॉन मैक्डोनेल्ड के अनुसार, “व्यावसायिक प्रबन्धक पेशेवर निर्णय लेने वाला व्यक्ति है।”जॉर्ज आर. टैरी के शब्दों में, “निर्णयन के अभाव में प्रबन्धक के आधारभूत कार्यों का निष्पादन नहीं किया जा सकता है।”1 आर.एस डावर (R.S.Davar) के अनुसार, “एक प्रबन्धक का जीवन सतत निर्णय लेने के क्रिया है।”2 पीटर एफ. इफर के अनुसार, “एक प्रबन्ध जो कुछ भी करता है, वह निर्णयन के द्वारा ही करता है।”3 निर्णयन का महत्त्व निम्नलिखित से पूर्णतः स्पष्ट हो जाता है

(1) प्रबन्ध के सभी कार्यों, जैसेनियोजन, संगठन, नियन्त्रण, समन्वय आदि में निर्णयन का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उदाहरण क लिए, संगठन के सम्बन्ध में उसके ढाँचे, विधियों, सम्बन्धों की प्रकृति, कार्य का विभाजन, अधिकार एवं दायित्वों को सौंपा जाना आदि के सम्बन्ध में निर्णय करना पड़ता है। इसी प्रकार नियोजन के सम्बन्ध में उपक्रम की स्थापना, आकार, क्रियाएँ, पूँजी की मात्रा, उत्पादन की किस्म, बाजार का क्षेत्र आदि के बारे में निर्णय करना पड़ता है। इस सम्बन्ध में अर्नेस्ट डेल ने सही ही कहा है कि “प्रबन्धकीय निर्णयों से आशय उन निर्णयों से है जोकि सदैव सभी प्रबन्धकीय क्रियाओं, जैसे नियोजन, संगठन, नियन्त्रण, निर्देशन, कर्मचारियों की भर्ती, नवप्रवर्तन तथा प्रतिनिधित्व के दौरान लिये जाते हैं।”

 (2) प्रबन्धन अथवा निर्णयन दोनों अपृथक्नीय एवं सहगामी हैंनेतृत्व/उद्यमी/प्रबन्ध कार्य करता है, उसके लिए। उसे कार्य करने के वैकल्पिक तरीकों में से एक के विषय में निर्णय लेना होता है। वह जो भी परामर्श अथवा आदेश दे नियोजन अथवा संगठन करे, किसी कार्य की पुष्टि अथवा अपुष्टि करे, किसी कर्मचारी की नियुक्ति करे अथवा निकाल दे, किसी नवीन संयन्त्र की स्थापना करे अथवा पुराने संयन्त्रों में से किसी एक को बन्द करे—इन सभी में उसे निर्णय लेने होते हैं एक अनभिज्ञ प्रबन्धक, जो अपना कार्य परम्परागत विधियों से निरन्तर करता चला आ रहा है, शायद यह न जानता हो कि वह निरन्तर निर्णय लेता आ रहा है, किन्तु यदि थोड़ा-सा भी विचार करे तो उसे यह स्पष्ट हो जायेगा कि अपने प्रबन्ध कार्य में वह एक पग भी बिना निर्णय लिये नहीं बढ़ सकता है। प्रबन्ध की सफलता बहुत कुछ सही निर्णय लेने पर ही निर्भर करती हैं दूसरे शब्दों में विभिन्न परिस्थितियों में सही निर्णय लेने की क्षमता ही प्रबन्ध की कुशलता का लक्षण है। प्रो. साइमन के अनुसार, “प्रबन्ध एवं निर्णयन कोई अलग-अलग कार्य नहीं हैं अपितु एक-दूसरे के पर्याय हैं।”

Importance of Significance Decision Study

(3) प्रबन्धकद्वारा लिये गये निर्णय उनकी योग्यता, क्षमता एवं विवेकशीलता का माप है। एक संस्था अपने प्रबन्धक की योग्यता, क्षमता एवं कुशलता का माप उसके द्वारा लिये गये निर्णय के आधार पर कर सकती है। यदि निर्णय सही बैठते हैं। तो कहा जायेगा कि प्रबन्धक योग्य एवं कुशल है। अच्छे निर्णय के लिए प्रबन्धक को पुरस्कृत किया जा सकता है, बुरे निर्णय के लिए उसे दण्डित किया जा सकता है।

(4) आधनिक यग में हो रहे परिवर्तनों को लागू करने में निर्णयन का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इन परिवर्तनों को लागू करने तथा इन्हीं के अनुरूप नीतियों, कार्यपद्धतियों, कार्यक्रमों आदि में आवश्यक परिवर्तन करने के लिए प्रबन्धकों को अनेक निर्णय लेने पड़ते हैं।

(5) निर्णय का सम्बन्ध साध्य (End) अथवा साधन (Means) अथवा दोनों से हो सकता है। कुछ परिस्थितियों में साध्य दिया जा सकता है तथा प्रबन्धक को उसे प्राप्त करने के लिए सर्वश्रेष्ठ साधन के बारे में निर्णय करना होता है। अन्य परिस्थितियों में विचार-विनिमय तथा विश्लेषण करने की क्रमागत प्रक्रिया द्वारा साध्य के सम्बन्ध में भी निर्णय लेना। होता है।

(6) निर्णयन का क्षेत्र प्रबन्ध के क्षेत्र की भाँति सार्वभौमिक एवं सर्वव्यापी है। यह व्यावसायिक तथा गैर-व्यावसायिक । सभी प्रकार की संस्थाओं में समान रूप में लागू होता है। इसके क्षेत्र की व्यापकता के कारण ही इसका महत्त्व दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है।

(7) व्यावसायिक नीतियों के निर्धारण में निर्णयन का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसका कारण यह है कि प्रबन्ध को व्यवसाय नीतियों के विस्तृत विवरण तैयार करने पड़ते हैं। ये विवरण विभिन्न विभागों, आदि के उद्देश्यों एवं क्रियाओं का वर्णन प्रस्तुत करते हैं। इस कार्य का निष्पादन करने के लिए प्रबन्धक को अनेक निर्णय लेने पड़ते हैं।

निष्कर्ष-उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि वे दिन लद गये जबकि प्रबन्ध ‘मारी अथवा चूको पद्धति (Hit or Mis Method) से काम लेता था। अब तो इसके स्थान पर उसे नवीन विचारों तथा वैज्ञानिक तकनीकों से कार्य लेना पड़ता है। उस तिथि से लेकर जबकि किसी व्यवसाय अथवा उद्योग की स्थापना का विचार मन में आता है तथा जब तक वह चलता रहता है, प्रबन्धक को पग-पग पर अनेक निर्णय लेने पड़ते हैं। यह प्रबन्ध का एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। बिना निर्णय के प्रबन्धक की वही स्थिति होती है जोकि बिना रीढ़ की हड़ी वाले व्यक्ति की होती है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि निर्णय लेना प्रबन्धक की आत्मा है। यह उद्देश्यों को निर्धारित करने, कार्य की योजनाएँ तैयार करने, संगठन संरचना का निर्धारण करने, कर्मचारियों को अभिप्रेरणा देने तथा नवीन प्रक्रिया के प्रचलन में सहायता देना है।

Importance Significance Decision Study

सही निर्णय पर पहुँचने की विधि

(Procedure of Arriving at Correct Decision)

अथवा

निर्णयन की वैज्ञानिक/विवेकपूर्ण प्रक्रिया

(Scientific/Rational Process of Decision-making)

अथवा निर्णयन प्रक्रिया में शामिल कदम

(Steps in Process of Decision-making)

परम्परागत प्रक्रिया के द्वारा निर्णय लेना कठिन होता है। पीटर एफ. ड्रकर के अनुसार सही निर्णय लेने की वैज्ञानिक प्रक्रिया इस प्रकार है

समस्या को परिभाषित करना

समस्या का विश्लेषण करना

वैकल्पिक समाधानों का अध्ययन करना

वैकल्पिक समाधानों का मूल्यांकन करना।

सर्वोत्तम समाधान को चयन

निर्णय को कार्यान्वित करना

निर्णय की प्रतिपुष्टि करना

(1) समस्या को परिभाषित करना (Defining the Problem) निर्णय लेने के पूर्व समस्या के सही-सही रूप को जान लेना जरूरी है। यह सुझाव प्रथम दृष्टि में बेतुका प्रतीत हो सकता है, किन्तु यह सर्वविदित है कि व्यवसाय में समस्याएँ स्वयं को विशिष्ट मामलों के रूप में प्रकट नहीं करती हैं, अत: सर्वप्रथम समस्या को परिभाषित करना चाहिए इसके लिए परिस्थिति में ‘नाजुक घटक’ (Critical Factor) का पता लगाया चाहिए। ‘नाजुक घटक’ वह है जिसे सबसे पहले अन्य कोई कार्यवाही शुरू करने के पूर्व बदलना परम आवश्यक होता है। इसका पता लगाने की निम्न दो विधियाँ हैं—एक तो यह मानकर चलना कि कोई परिवर्तन नहीं किया जाना है और फिर यह प्रश्न पूछना कि यदि कोई पग न उठाये तो क्या परिणाम होगा। दूसरा तरीका यह है कि पिछली घटनाओं पर गौर किया जा सकता था या ऐसी क्या बात भुला दी गई थी जो वर्तमान स्थिति को बहत चल सकती थी।

(2) समस्या का विश्लेषण करना (Analysing the problem)—समस्या के सही रूप को समझ लेने के बाद उसका विश्लेषण करना चाहिए, ताकि यह मालूम हो सके कि निर्णय किसे लेना चाहिए, निर्णय लेने में किस-किस की सम्मति लेनी चाहिए और निर्णय की सूचना किसे देनी चाहिए। ऐसा करने हेतु निम्न चार घटकों को ध्यान में रखना चाहिए

(i) निर्णय का प्रभाव क्षेत्र (Scope of its impact)—प्रभावित होने वाला क्षेत्र अथवा कार्यों की संख्या जितनी अधिक होगी, निर्णय लेने वाला अधिकारी भी उतने ही ऊँचे स्तर का होना चाहिए।

(ii) निर्णय की भविष्यता (Futurity of decision)—इसका आशय उस समय विस्तार से है जिसके लिए निर्णय संगठन को निर्णीत कार्यवाही से बाँधता है। सामान्य नियम यह है कि समय-विस्तार जितना लम्बा हो, उतने ही ऊँचे स्तर का अधिकारी यह निर्णय करे।

Importance of Significance Decision Study

(iii) निर्णय की बारम्बारता (Periodicity of decision) यदि समस्या आवधिक रूप से प्रस्तुत होती रहती है  तो निर्णय उस स्तर के अधिकारी पर छोड़ देना चाहिए जहाँ वह उदय होती है। यदि वह कोई अनोखी समस्या हो अर्थात् कभी-कभी उठने वाली समस्या हो तो निर्णय शीर्ष प्रबन्ध द्वारा लिया जाना चाहिए।

(iv) गुणात्मक विचार (Qualitative consideration)–यदि निर्णय में कई गुणात्मक घटकों की समस्या उदय होती है, जैसे—कम्पनी की नीति, लक्ष्य, संगठन-संरचना तो ऐसा निर्णय लेने का अधिकार शीर्ष प्रबन्धक को होना चाहिए।

समस्या के विश्लेषण के लिए सम्बन्धित तथ्यों को इकट्ठा करना भी आवश्यक है, किन्तु निर्णय लेने वाले अधिकारी को चाहिए कि अतिरिक्त तथ्य इकट्ठे करने के प्रयास की शुरुआत के पहले जितने तथ्य उपलब्ध हों, उनके महत्त्व का मूल्यांकन कर ले। पुन: उसे स्मरण करना चाहिए कि तथ्यों को इकट्ठा करने की और उनकी व्याख्या करने में समय और धन दोनों का व्यय होता है तथा सम्भव है कि उनकी संस्था उसे वहन न कर सके। अन्त में उसे यह मालूम होना चाहिए कि कोई सूचना ऐसी होती है (जैसे—भावी प्रवृत्तियाँ) जिनको किसी भी कीमत पर प्राप्त नहीं किया जा सकता। संक्षेप में, उसे यह तथ्य स्वीकार करना चाहिए कि वास्तविक जीवन में निर्णय अनेक अवसरों पर अपर्याप्त सूचना के आधार पर ही करने पड़ते हैं। अत: निर्णयकर्ता को यह ज्ञान होना आवश्यक है कि कौन-सी सूचना अपर्याप्त है और ऐसी सूचना के बिना यदि निर्णय लिया गया तो कितना खतरा उठाना पड़ेगा। चूँकि उसे अपर्याप्त सूचना के सन्दर्भ में निर्णय लेने होते हैं इसलिए उसमें अपनी त्रुटियों को, जबकि अधिक सूचना उपलब्ध हो जाये, पहचानने तथा प्रारम्भिक निर्णय को तत्काल ही सुधारने की क्षमता होना आवश्यक है।

(3) वैकल्पिक समाधानों का अध्ययन करना (Study of alternative solutions) समस्या को परिभाषित एवं विश्लेषित करने के पश्चात् उसे हल करने के वैकल्पिक ढंगों की तलाश करना जरूरी है। यदि समस्त विकल्पों का विचार न किया जा सके तो कुछ महत्त्वपूर्ण विकल्पों का विचार अवश्य किया जाये क्योंकि यदि एक प्रकार के हल पर ही निर्भर रहा गया तो सम्भव है कि बाद में परिस्थितियाँ बदलने पर वह हल समयातीत हो जाये तथा तत्काल दूसरा हल उपलब्ध न होने के कारण काम रुक जाये। पुनः यदि एक ही हल सोचा गया तो उसमें यह आशंका रहती है कि उसे सुझाने वाले ने केवल अपने विभागीय हितों को दृष्टिगत रखा हो या कोई अन्य त्रुटि कर दी हो।

Importance of Significance Decision Study

(4) वैकल्पिक समाधानों का मूल्यांकन करना (Evaluation the alternative solution)—किसी समस्या के समाधान के लिए विभिन्न वैकल्पिक समाधान हो सकते हैं। इन वैकल्पिक समाधानों की खोज करने के पश्चात् इन विकल्पों का मूल्यांकन किया जाना चाहिए। विकल्पों का मूल्यांकन निर्धारित समस्या के समाधान में सहयोग, विकल्पों की लागत, विकल्पों की उपयुक्तता, समय, विकल्पों के परिणाम आदि आधार पर किया जाना चाहिए। वैकल्पिक समाधानों का मूल्यांकन एक कठिन विवेकपूर्ण प्रक्रिया है। अतएवं यह कार्य विशेषज्ञों की सहायता से सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए।

निर्णय लेने के सम्बन्ध में विभिन्न विकल्पों के चयन की प्रक्रिया का चित्र द्वारा प्रदर्शन

समस्या (Problem)

विभिन्न विकल्प (Alternatives)

विभिन्न समाधान (Solutions)

निर्णय (Decision)

(5) सर्वोत्तम समाधान का चयन (Selection of the best solution)—वैकल्पिक समाधानों का मूल्यांकन करने के उपरान्त उनमें से सर्वश्रेष्ठ समाधान को चुनना आवश्यक है। इस हेतु निम्न दृष्टिकोणों से विभिन्न समाधानों पर तुलनात्मक रूप में विचार करना चाहिए

(i) कम प्रयत्न समाधान (Economy of efforts)—यह पता लगाना चाहिए कि कौन-से वैकल्पिक ढंग, सामग्री और मानवीय प्रसाधनों के रूप में कम-से-कम निवेश पर अधिक-से-अधिक उपज प्राप्त हो सकती है।

(ii) जोखिम (Risk) कोई भी समाधान खतरे से खाली नही होता, अत: निर्णायक को प्रत्येक समाधान के लिए आपेक्षित लाभों और हानियों का अनुपात ज्ञान करना चाहिए तथा उस समाधान को चुनना चाहिए जिसमें इनका अनुपात सबसे ऊँचा हो।

(iii) साधन सम्बन्धी सीमाएँ (Limitations of resources)—सबसे महत्त्वपूर्ण प्रसाधन, जिनकी सीमाएँ ध्यान में रखना आवश्यक है, मानवीय प्रसाधन है, जबकि वित्तीय प्रसाधन रातों-रात बढ़ाये जा सकते हैं। मानवीय कार्यकर्ता जिनमें निर्णय को कार्यान्वित करने के लिए आवश्यक क्षमताएँ हों, इतनी शीघ्रता से प्राप्त नहीं हो सकते। अत: ऐसे निर्णयों के लिए कुछ निश्चित गुणों वाला सेविवर्ग चाहितए क्योंकि विद्यमान सेविवर्ग में ऐसा गुण नहीं है और बाहर से जल्दी प्राप्त भी नहीं किया। जा सकता है; अच्छा निर्णय नहीं कहेंगे।

(iv) समयानकलता (Timely) यदि परिस्थिति अत्यावश्यक हो तो वह समाधान सर्वोत्तम होगा जो सभी को स्पष्ट रूप से विदित हो जाये और वे अनुभव करने लगें कि कुछ महत्त्वपूर्ण निर्णय लिया गया है दूसरी ओर, यदि समस्या ऐसी हो कि उसका समाधान करने के लिए दीर्घकाल तक किन्तु लगातार प्रयत्न करते रहना आवश्यक है तो उसका ऐसा समाधान होना चाहिए। जो मन्द गति से शुरू होते हुए कालान्तर में वेग धारण कर ले।

(6) निर्णय को प्रभावी ढंग से कार्यान्वित करना (Converting the decision into effective action)निय लेने की प्रक्रिया में एक अन्य महत्त्वपूर्ण कदम चुने गये निर्णय को प्रभावी ढंग से कार्यान्वित करना है। इसके बिना निर्णय असे वाटों की एक घोषणा मात्र होगा, किन्तु प्रबन्धकीय निर्णय केवल अधीनस्थों के कार्य द्वारा क्रियान्वित किये जा सकते  है कि निर्णय को प्रभावी ढंग से कार्यान्वित करना एक कठिन बात है। निर्णय लेने वाला प्रबन्धक स्वयं कोई कार्यवाही पारमार्यवाही उसके अधीनस्थों को ही करनी है। अधीनस्थों से सही क्रिया करवाने के लिए प्रबन्धक को उन्हें अभिप्रेरित जा गट जरूरी है कि अधीनस्थ ‘निर्णय’ को ‘अपना निर्णय’ समझें। ऐसी भावना तब ही उत्पन्न हो सकती है. जबकि अधीनस्थों को वैकल्पिक समाधानों के विकास में भाग लेने का अवसर मिले। ऐसी भागीदारी से अन्तिम निर्णय की कशलता में वृद्धि हो जाती है क्योंकि कुछ पहलू प्रकाश में आ सकते हैं, जो प्रबन्धक से उपेक्षित रह गये थे। अधीनस्थों को अभिप्रेरित करने के पश्चात् प्रबन्धक अपने निर्णय में इनके क्रियान्वित करने हेतु कर्त्तव्य का निर्माण करे। इसके बिना निर्णय व्यर्थ रहेगा। अन्त में निर्णय के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु निर्णयकर्त्ता को यह भी निश्चित करना चाहिए कि किसको निर्णय की सचना देनी है। और ऐसे व्यक्ति को अपेक्षित कर्त्तव्य का ज्ञान करा देना भी आवश्यक है।

(7) निर्णय की प्रतिपुष्टि एवं अनुसरण करना (Feedback and Following up the Decision)-पाटर. एफ. ड्रकर द्वारा बताये गये उपर्युक्त 6 अंगों के अतिरिक्त वैज्ञानिक विधि में निम्न छठे अंग का भी समावेश किया जाना चाहिए। निर्णय का अनुसरण किया जाना यह देखा गया है कि निर्णय लेने क उपरान्त अधिकांश व्यक्ति उसका अनुसरण नहीं करते। हैं जिसके कारण उसका महत्त्व कम हो जाता हैं निर्णय का अनुसरण करके ही उसकी व्यावहारिकता का पता लगाया जा सकता है। गलती करना मनुष्य का स्वभाव है, अतः हो सकता है कि लिया गया निर्णय गलत एवं अव्यावहारिक हो तो ऐसी स्थिति में उसमें आवश्यक संशोधन किया जाना चाहिए। हमारी सम्मति में निर्णय के सही अथवा गलत होने की चिन्ता न करके उस पर अटल रहना ही बुद्धिमत्ता नहीं है।

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व्यावसायिक नियोजन

(Business Planning)

किसी भी कार्य को करने से पूर्व उसकी सामान्य रूपरेखा बनाना ही नियोजन कहलाता है। उद्यमियों/ प्रबन्धकों को यह सोचना पड़ता है कि उनके पास जो साधन इस समय मौजूद हैं उनके आधार पर कार्य करने का सबसे अच्छा तरीका क्या होगा, । कार्य करने के लक्ष्य क्या होंगे तथा कार्य करने में जो कठिनाइयाँ आएंगी, वे किस प्रकार हल की जा सकती हैं आदि। अर्थात् नियोजन एक रचनात्मक प्रक्रिया है जो वैकल्पिक उद्देश्यों, नीतियों, कार्यविधियों व कार्यक्रमों में से सर्वोत्तम का चुनाव करती हैं। नियोजन का मुख्य उद्देश्य कार्यों में निश्चितता लाना है तथा विभिन्न प्रबन्धकीय क्रियाओं में समन्वय स्थापित करना है। दूसरे शब्दों में नियोजन “पूर्व निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए भावी कार्यक्रम के सम्बन्ध में किये जाने वाले कार्यों में से सर्वश्रेष्ठ का चयन है।” नियोजन प्रक्रिया में अनेक बाधाएँ, रुकावटें, कठिनाइयाँ एवं अनिश्चितताएँ रहती हैं और सफल नेता/उद्यमी को इन सभी पर विजय प्राप्त करनी पड़ती है, तभी वह अपने निर्धारित लक्ष्य अथवा लक्ष्यों पर पहुँच पाता है। प्रायः छात्रों में नियोजन के सम्बन्ध में भ्रान्तियाँ विद्यमान रहती हैं हम इन भ्रान्तियों को करने हेतु आवश्यक विषय सामग्री प्रस्तुत कर रहे हैं।

नियोजन का अर्थ तथा परिभाषा

(Meaning and Definition of Planning)

नियोजन प्रबन्ध का प्रमुख एवं प्राथमिक कार्य है (Planning is the primary function of management)। नियोजन का अर्थ भविष्य के बारे में अनुमान लगाना है। नियोजन में इस बात का निर्णय करना कि क्या करना है, कहाँ करना है, कब करना है, केसे करना है और किस व्यक्ति द्वारा किया जाना है, शामिल किया जाता है? जैसा कि उर्विक ने कहा, “नियोजन मूल रूप से कार्यों को सुव्यवस्थित ढंग से करने, कार्य को करने से पूर्व उस पर मनन करने तथा कार्यों का अनुमानों की तुलना में तथ्यों के आधार पर करने का प्राथमिक रूप में एक मानसिक चिन्तन है।” भावी घटनाओं का क्या क्रम होगा इसकी प्रत्याशा ही नियोजन का मल तत्त्व है। क्योंकि भविष्य अनिश्चित होता है और इस अनिश्चितता को नियोजित ढंग से कम-से-कम करके किसी भी संगठन द्वारा उद्देश्यों को प्राप्त किया जाता है। प्रबन्ध की प्रक्रिया नियोजन से प्रारम्भ होती है तथा नियोजन पर ही समाप्त मानी जाती है किसी भी कार्य को करने से पूर्व उसके बारे में सोच-विचार कर एक योजना तैयार करके और उसी के आधार पर कार्य करने से उस कार्य में अधिक सफलता मिलने की सम्भावना होती है। बिना योजना बनाये किसी काम को करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। व्यावसायिक संस्थाओं की जटिल समस्याओं का समाधान करने के लिए तथा समन्वित ढंग से उद्देश्यों तथा लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सोच-विचार कर योजना बनाना और उसी योजना के अनुसार कार्य करना और भी अधिक जरूरी है अत: व्यवसाय के प्रबन्ध में नियोजन के महत्त्व को सभी प्रबन्धक स्वीकार करते हैं अन्य कार्य इसके बाद आते हैं। वैज्ञानिक प्रबन्धक के प्रवर्तक श्री टेलर ने प्रत्येक व्यावसायिक उपक्रम में एक पथक योजना विभाग की स्थापना पर बल दिया। उसके अनुसार, “योजना विभाग का कार्य विभिन्न विभागों में काम करने वाले श्रमिकों के लिए योजना बनाना है।” श्रीशील्ड के अनुसार, “योजना विभाग प्रबन्ध का हृदय है जिसका एकमात्र कार्य उत्पादन के विभिन्न पहलुओं में कार्यरत कर्मचारियों की आवश्यकताओं को पूरा करना है।”

नियोजन प्रत्येक समाज में अथवा संगठन में जहाँ तक इसका आशय ‘विवेकपूर्ण क्रिया’ अथवा थोड़ी-सी दूरदर्शिता से रहता है, विद्यमान हैं उदाहरण के लिए, विक्रय संचालक विक्रय अभियान की योजना बनाता है; व्यवसाय प्रवर्तक नवीन व्यवसाय स्थापित करने की योजना बनाता है; विद्यार्थी परीक्षा देने एवं उसमें पास होने की योजना बनाता है; समाज-सेवक सामाजिक कुरीतियों को दूर करने की योजना बनाता है; और देश का वित्त-मन्त्री आर्थिक साधन जुटाने की योजना बनाता है। इस प्रकार प्रत्येक विवेकशील अथवा दूरदर्शी व्यक्ति को कदम-कदम पर नियोजन का सहारा लेना पड़ता है। योजना निर्माण के कार्य में मुख्यतया उच्च स्तरीय प्रबन्धक ही सक्रिय भाग लेते हैं। परन्तु यहाँ यह स्मरण रहे कि योजना निर्माण का कार्य प्रत्येक स्तर पर होता है जिसमें विभिन्न विभागीय अध्यक्ष, पर्यवेक्षक (Supervisor) व फोरमैन भी भाग लेते हैं। यहाँ यह बता देना भी उचित होगा कि पूर्वानुमान (Forecasting) और नियोजन में अन्तर है। पूर्वानुमान का आशय यह पता लगाने से है कि घटना चक्र किस प्रकार घूमेगा परन्तु नियोजन का आशय किसी कार्यवाही को करने का निर्णय लेने से है।

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निष्कर्ष इस प्रकार नियोजन तथ्यों पर आधारित भविष्य के कार्यक्रम का एक उद्देश्यपूर्ण मानसिक चिन्तन है। नियोजन की कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं

1 विलियम एच.न्यूमैन के शब्दों में, “सामान्यतः भविष्य में क्या करना है, उसे पहले से तय करना ही नियोजन कहलाता है।”

2. जार्ज आर. टैरी के शब्दों में, “नियोजन भविष्य के गर्भ में देखने की विधि या कला है, यह भविष्य की आवश्यकताओं का पूर्वानुमान लगाना है जिससे निर्धारित लक्ष्यों की दृष्टि से किए जाने वाले वर्तमान प्रयासों को उनके अनुरूप बनाया जा सके।”

3. बिली ई. गोज के अनुसार, “नियोजन प्राथमिक रूप में चयन है तथा नियोजन की समस्या उसी समय उत्पन्न होती है, जबकि वैकल्पिक क्रियाओं के किए जाने का पता लगा हो।”

4. कूण्ट्ज एवं ओडोनेल के अनुसार, “नियोजन एक बौद्धिक प्रक्रिया है, कार्य करने के मार्ग का सचेत निर्धारण है, निर्णयों को उद्देश्यों, तथ्यों तथा पूर्व विचारित अनुमानों पर आधारित करना है।”3

5. हेयन्स तथा मेसी के शब्दों में, “नियोजन प्रबन्धक की वह प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत उसे पहले से ही यह निर्णय लेना होता है कि वह क्या करेगा ? यह एक विशेष प्रकार की निर्णय लेने की प्रक्रिया है……। यह एक बौद्धिक प्रक्रिया है, जिसके लिए सृजनात्मक विचारधारा तथा कल्पना की आवश्यकता होती है।”

6. हेनरी फेयोल के अनुसार, “कार्य की योजना से अभिप्राय उन परिणामों से है जिनको प्राप्त करना है, कार्य की उस रूपरेखा से है जिसका पालन करना है, उन अवस्थाओं से है जिनसे होकर काम को गुज़रना है तथा उन तरीकों से है जिनको प्रयोग किया जाना है।”5

7. एम. ई. हर्ले (M.E.Hurley) के शब्दों में, “क्या करना है, इसका पूर्व निर्धारण नियोजन है। इसमें विभिन्न वैकल्पिक उद्देश्यों, नीतियों, पद्धतियों एवं कार्यक्रमों में से चयन करना निहित है।”

8. क्लॉड एस. जार्ज के अनुसार, “नियोजन आगे देखना है, भावी घटनाओं की संकल्पना है तथा वर्तमान में भविष्य को प्रभावित करने वाले निर्णय लेना है।”6

उपर्युक्त परिभाषाओं के अध्ययन से यह स्पष्ट हो गया है कि नियोजन प्रबन्ध का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। नियोजन के द्वारा ही प्रबन्ध अपने लक्ष्यों को निर्धारित साधनों के माध्यम से प्राप्त करने का प्रयास करता है और इस कार्य को कब, किस तरह और केसे करना है, इसका निर्धारण करता है, जिससे निर्धारित परिणामों की प्राप्ति सम्भव हो पाती है।

Importance Significance Decision Study

नियोजन के लक्षण अथवा विशेषताएँ

(Characteristics of Planning)

नियोजन के लक्षण (Characteristics of Planning) अथवा विशेषताएं निम्न हैं:

नियोजन एक बौद्धिक प्रक्रिया है

नियोजन प्रबन्ध का प्राथमिक कार्य है

वैकल्पिक क्रियाओं में से सर्वोत्तम का चुनाव

नियोजन की सर्वव्यापकता

नियोजन एक निरन्तर चालू रहने वाली प्रक्रिया है।

निर्धारित उद्देश्य एवं लक्ष्य का होना

नियोजन पूर्वानुमान लगाना है

नियोजन योजना की एकता है

नियोजन एक परस्पर आश्रित प्रक्रिया है

नियोजन एक लोचपूर्ण प्रक्रिया है

नियोजन आगे देखने की प्रक्रिया है

नियोजन मूलतः एक चयन प्रक्रिया है

नियोजन की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं

Importance Significance Decision Study

1 नियोजन एक बौद्धिक प्रक्रिया है (Planning isa intellectual process)—नियोजन एक बौद्धिक प्रक्रिया है जिसमें नियोजनकर्ता को सम्मानित कार्य पदों और विकल्पों में से एक सर्वोत्तम कार्य पद या विकल्प का चयन करना होता है। ऐसे चयन के लिए नियोजनकर्ता को विश्लेषण करना होता है जिसमें विवेक,दूरदर्शिता तथा विश्लेषण शक्ति का होना आवश्यक है। यदि नियोजनकर्ता में सृजनात्मक और कल्पनाशक्ति नहीं होगी तो वह प्रभावी नियोजन नहीं कर सकेगा। नियोजन मानसिक प्रक्रिया इसलिए है क्योंकि यह न केवल तत्काल उत्पन्न समस्या के समाधान में सहायक है वरन् सम्भावित समस्याओं के बारे में भी मानसिक तौर पर विचार करता है और सम्भावित समस्याओं की खोज करता है। यह सम्भावित घटनाओं की भावी मानसिक तस्वीर पहले से ही चित्रित कर लेता है।

2 नियोजन प्रबन्धका प्राथमिककार्य है (Planningisa primary function of management) नियोजन प्रबन्ध का एक प्राथमिक कार्य है प्रबन्ध के अन्य कार्य संगठन, नियुक्तियाँ, निर्देशन, नियंत्रण इत्यादि नियोजन पर ही आधारित होते हैं। बिना नियोजन के न तो संगठन ही किया जा सकता है और न ही नियुक्तियाँ ही, निर्देश भी योजना के अनुसार दिये जाते हैं और नियन्त्रण में नियोजन द्वारा निर्धारित लक्ष्यों की वास्तविकता से तुलना की जाती है।

3.वैकल्पिक क्रियाओं में से सर्वोत्तम का चुनाव (Planning isa selection of best among alternative courses of actions) योजनाकार अपने उद्देश्यों की व्याख्या करके उन्हें प्राप्त करने के लिए उपलब्ध भिन्न-भिन्न तरीकों में से किसी एक तरीके का चुनाव करता है, जो श्रेष्ठतम हो अर्थात् कम-से-कम लागत व श्रम के द्वारा अधिकतम कार्य सिद्धि प्राप्त करा सके चुनाव का यह निर्णय नियोजन की मुख्य विशेषता है। किसी भी उपक्रम की सफलता बहुत हद तक इस चयन पर निर्भर करती है।

4. नियोजन की सर्वव्यापकता (Pervasiveness of Planning) नियोजन की एक बड़ी विशेषता यह है कि यह सर्वव्यापी है। नियोजन की आवश्यकता एक उपक्रम में प्रत्येक स्तर पर होती है। नियोजन कार्य केवल सर्वोच्च प्रबन्धक (Top Management) का ही उत्तरदायत्वि नहीं है वरन इसका विस्तार मध्य प्रबन्धक और निम्न प्रबन्धक (Middle and Lower Management) तक रहता है अर्थात छोटे-से-छोटे प्रबन्ध से लेकर बड़े-से-बड़े प्रबन्ध तक रहता है। इस प्रकार नियोजन का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। प्रबन्ध को अपने सभी कार्यों का नियोजन करना पड़ता है। विभागीय प्रबन्धक, पर्यवेक्षक व फोरमैन  भी नियोजन में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं।

5. नियोजन एक निरन्तर चालू रहने वाली प्रक्रिया है (Planning is a continuous process) नियोजन की एक उल्लेखनीय विशेषता यह है कि यह एक निरन्तर चाल रहने वाली प्रक्रिया है। योजना बनाने की आवश्यकता केवल व्यवसाय की स्थापना के समय नहीं होती वरन् सदैव बनी रहती है। यह कभी न समाप्त होने वाली प्रक्रिया है। एक योजना के बाद दूसरी. दूसरे के बाद तीसरी और तीसरी के बाद चौथी योजनाएं बनाई और लागू की जाती रहती हैं। जब तक व्यवसाय चलता रहेगा. उसमें योजनाएं चलती रहेंगी। कण्ट्ज़ एवं ओ’ डोनेल के अनुसार, “निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए यह जरूरी है कि प्रभावी नियोजन का कार्य लगातार चलता रहे।”

6.निर्धारित उद्देश्य एवं लक्ष्य का होना (Definite object and Goal)—नियोजन संस्था द्वारा निर्धारित लक्ष्य तथा उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाता है। जैसा कि बिली. ई. गोज ने लिखा है, “नियोजन उद्देश्यों पर अपना ध्यान केन्द्रित कर सकता है। वह यह भविष्यवाणी कर सकता है कि अन्तिम उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए क्या क्रियाएं की जानी चाहिए? प्रबन्धकीय नियोजन निर्धारित लक्ष्यों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए एक निरन्तर समन्वित प्रक्रियाओं के ढांचे की प्राप्ति करना चाहता है।”

7.नियोजन पूर्वानुमान लगाना है (Planning is forecasting)-नियोजन का एक अन्य महत्त्वपूर्ण लक्ष्य पूर्वानुमान का होना है। पूर्वानुमान व्यावसायिक नियोजन का आधार है। यह भविष्य की जोखिमों को स्पष्ट करके उपक्रम को इनका सामना करने के लिए सतर्क और सावधान कर देता है “पूर्वानुमान सांख्यकीय एवं गणितीय पद्धतियों पर आधारित, वर्तमान परिवर्तनों से समायोजित भूतकालीन प्रवृत्तियों के आधार पर भावी प्रवृत्तियों का अनुमान है।”

8. नियोजन योजना की एकता (Planning is unity of plan)—हैनरी फेयोल एकता को नियोजन की एक विशेषता मानते हैं। उसके अनुसार एक समय में केवल एक योजना ही लागू की जा सकती है। दो विभिन्न योजनाओं के होने पर भ्रान्ति एवं अव्यवस्था उत्पन्न होगी। लेकिन जरूरत पड़ने पर एक ही योजना को कई भागों में बाँटा जा सकता है। ऐसे अक्सर बड़े उपक्रमों में करना पड़ता है। पहली योजना के बाद दूसरी योजना ओर दूसरी योजना के बाद तीसरी योजना की जानी चाहिए ताकि क्रियाओं में निरन्तरता बनी रहे।

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9.नियोजन एक परस्पर आश्रित प्रक्रिया है (Planning is an interdependent process)-एक उपक्रम के कार्यक्रमों को कई भागों में विभाजित किया जाता है इन सभी विभागों की अलग-अलग योजनाएं होती हैं। की सामूहिक योजना का एक अंग होती हैं। ये विभागीय योजनाएं एक-दूसरे पर निर्भर करती हैं।

10. नियोजन एक लोचपूर्ण प्रक्रिया है (Planning is a flexible process)—नियोजन लोचपूर्ण होना चाहिए। ताकि बदलती हुई परिस्थितियों के अनुरूप इसमें भी आवश्यक परिवर्तन किए जा सकें। नियोजन में लोच का तत्त्व मात्र अनिश्चितताओं को दूर करने में सहायक सिद्ध होता है। कूण्टज़ एवं ओ’ डोनेल के अनुसार, “प्रत्येक नियोजक को अनुमानों और घटनाओं की सामाजिक जाँच करनी चाहिए और एक इच्छित लक्ष्य की प्राप्ति के अनुरूप अपनी योजनाओं का पुनर्निर्माण कर लेना चाहिए।”

11.नियोजन आगे देखने की प्रक्रिया है (Planningisa process of looking ahead)-नियोजन का सम्बन्ध भावी गतिविधियों के निर्धारण से होता है। हॉज एवं जॉनसन लिखते हैं कि “नियोजन अच्छे परिणामों की प्राप्ति हेतु भावी परिस्थितिया । का पूर्वानुमान लगाने का प्रबन्ध कार्य है।” इस प्रकार एल. ए. एलन का कथन है कि “नियोजन भविष्य को पकड़ने के लिए। बनाया हुआ पिंजरा है।” स्पष्ट है कि नियोजन के द्वारा प्रबन्धक अपनी भावी आवश्यकताओं.समस्याओं, गतिविधियों एवं साधना। की रूपरेखा तैयार करता है।

12. नियोजन मूलत: एक चयन प्रक्रिया है (Planning is basically a choosing process)-नियोजन म । श्रेष्ठ निष्पादन हेतु पहले विभिन्न विकल्पों की खोज की जाती है और बाद में एक सर्वोत्तम विकल्प का चुनाव किया जाता है। है। बिली ई. गोज का कहना है कि, “नियोजन मूलतः एक चयन प्रक्रिया है तथा नियोजन की समस्या उस समय उत्पन्न हो जाता है है जब किसी कार्य के विभिन्न विकल्पों की खोज की जाती है।” इस प्रकार श्रेष्ठ विकल्प का चयन करके ही योजनाओं का निर्माण किया जाता है।

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नियोजन के उद्देश्य

(Objects of Planning)

नियोजन के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं

1 घटना प्रवाह को वांछित दिशा प्रदान करना (Planning gives adefinite direction to wors, नियोजन का प्रथम उद्देश्य किसी कार्य विशेष को करने के लिए उसकी रूपरेखा तैयार करना और उसे एक विशिष्ट दिशा प्रदान। करना है।

2. भावा कायों में निश्चितता लाना (Planning brinos certaintv in actions)-नियाजन द्वारा सस्था का भावी कार्यों की रूपरेखा निश्चित की जाती है जिससे कार्यों की अनिश्चितता समाप्त हो जाती है।

3.गतिविधियों में एकात्मकता व समन्वय स्थापित करना (Planning brings uniformity and Coordination in activities) नियोजन के अन्तर्गत संस्था की सारी गतिविधियाँ एक मूल उद्देश्य की प्राप्ति की ओर प्रेरित होती हैं तथा वे एक सूत्र में बंधी रहती हैं। इस प्रकार नियोजन का उद्देश्य संस्था की समस्त गतिविधियों में एकात्मकता व समन्वय स्थापित करना है।

4. प्रबन्ध प्रयत्नों में मितव्ययिता लाना (Planning brings economy in management efforts) – भावी कार्यक्रम की योजना बन जाने से सारा कार्य सुचारु रूप से होता है और इससे प्रबन्ध सम्बन्धी प्रयत्नों में मितव्ययिता आती है।

5. पूर्वानुमान लगाना (Forecasting)—पूर्वानुमान नियोजन का सार है। नियोजन का उद्देश्य भविष्य के सम्बन्ध में पूर्वानुमान लगाना है।

6.निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करना (Achieving determined objective)-नियोजन का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए निरन्तर प्रयत्न करते रहना है।

7. कुशलता में वृद्धि करना (Increasing efficiency)—नियोजन का एक मूलभूत उद्देश्य उपक्रम की कुशलता में वृद्धि करना है।

8. जानकारी देना (Providing knowledge)—नियोजन एक सुविचारित कार्यक्रम होता है जिससे उपक्रम के आन्तरिक एवं बाहरी व्यक्तियों को उपक्रम के सम्बन्ध में समुचित सूचना एवं जानकारी प्राप्त होती है।

9. भावी जोखिम में कमी (Decrease future risk)—नियोजन उपक्रम की भावी जोखिम एवं सम्भावनाओं को परखता है एवं भावी जोखिमों में कमी लाता है।

10. दर्लभ व सीमित साधनों का अधिकतम उपयोग करने के लिए प्रत्येक संस्था के पास पूँजी,मशीन व मानवीय साधन सीमित मात्रा में होते हैं। इनसे कम कीमत पर अधिकतम उत्पादन करना नियोजन का ही उद्देश्य है।

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नियोजन की प्रकृति

(Nature of Planning)

नियोजन की प्रकृति में निम्नलिखित बातों का समावेश होता है

1 नियोजन एक बौद्धिक क्रिया है(Planning is an intellectual process) नियोजन निर्णय लेने से सम्बन्धित है। वास्तव में निर्णय लेना और चयन करना नियोजन के लिए इतने आवश्यक है। कि विभिन्न विकल्प खोजे बिना नियोजन सम्बन्धी समस्याएं परी नहीं हो सकती। इस प्रकार नियोजन एक बौद्धिक किया है जिसमें निर्णय कहाँ और कैसे लिए जाने हैं। और उचित प्रकार से विकसित, विश्लेषित एवं मूल्यांकित विकल्पों में से उचित विकल्प का चयन करना इस क्रिया में शामिल है। नियोजन एक बौद्धिक क्रिया है क्योंकि यह किसी अनुमान पर आधारित नहीं है। इसमें उद्देश्यों व तथ्यों को ध्यान में रखकर क्रिया को नियोजित कर उसका अनुकरण किया जाता है। कार्य करने से पूर्व अनुमानों पर पूर्ण रूप से सोच विचार किया जाता। है। उर्विक ने इसे और भी अधिक स्पष्ट करते हुए लिखा है “व्यावसायिक नियोजन सैद्धान्तिक रूप से कार्यों को व्यवस्थित ढंग से करने से पहले उस पर विचार करना और अनुमानों की जगह तथ्यों को प्रकाश में लाने का एक प्रकार का मानसिक चिन्तन है।”

2.उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक (Helpful in achieving objectives) योजना सदैव कुछ उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए बनाई जाती है। नियोजन द्वारा ही हम सामूहिक प्रयत्नों को उद्देश्यों की ओर अग्रसर करने में सफल होते हैं। दूसरे शब्दों में, प्रत्येक योजना को किसी-न-किसी सामहिक उद्देश्यों की प्राप्ति की दिशा में, स्पष्ट रूप से, प्रशस्त होना जरूरी है। अतः योजनाएं वे चुने हुए मार्ग हैं जिनके माध्यम से प्रबन्धक सामहिक प्रयत्नों का किसी-न-किसी सामान्य उद्देश्य की पूर्ति के लिए। समन्वय करते हैं।

3.नियोजनचयन करने की क्रिया है (Planning is a selective process) नियोजन विभिन्न वैकल्पिक क्रियाओं में से सर्वोत्तम क्रिया का चयन करता है। प्रबन्धक के सामने विभिन्न वैकल्पिक लक्ष्य, नीतियाँ, विधियाँ तथा कार्यक्रम होते हैं

और इनमें से उसे सर्वोत्तम का चनाव करना होता है। यह चयन सभी सम्भव विकल्पों का तुलनात्मक अध्ययन करके ही किया जाता है।

4. नियोजन प्रबन्ध का मुख्य कार्य है (Planning is a primary function of management)—नियोजन प्रबन्ध के सभी कार्यों में सबसे प्रथम स्थान रखता है। यह इसलिए है क्योंकि प्रबन्धकों को अपना कार्य प्रारम्भ करने के लिए सर्वप्रथम नीतियों, कार्यविधियों, कार्यक्रमों और परियोजनाओं आदि का निश्चय करना पड़ता है। प्रबन्ध के दूसरे कार्य जैसे संगठन, निर्देशन एवं नियन्त्रण आदि तभी आरम्भ किए जाते हैं जब नियोजन का कार्य पूरा हो जाता है। अत: यह कहना अनुचित होगा कि प्रबन्ध की प्रक्रिया नियोजन से प्रारम्भ होती है और नियोजन पर ही समाप्त होती है।

5. नियोजन समस्त प्रबन्धकीय क्रियाओं में व्याप्त है (Planning prevails in all managerial activities) प्रत्येक कार्य में योजना बनाने की जरूरत पड़ती है बड़े से बड़े कार्य से लेकर छोटे-से-छोटे कार्य के लिए भी योजना की जरूरत पड़ती है। स्कूल हो या कॉलेज, छोटा व्यापारी हो या बड़ा, कारखानेदार, डाक्टर हो या अध्यापक सभी को अपने-अपने कार्य का नियोजन करना पड़ता है। साथ-ही-साथ योजना बनाना प्रत्येक स्तर के प्रबन्धक का कार्य है। शीर्ष प्रबन्धक हो अथवा विभागीय अध्यक्ष, पर्यवेक्षक हो अथवा फोरमैन, प्रत्येक को अपने स्तर पर नियोजन करना पड़ता है। परन्तु नियोजन की यह आवश्यकता प्रत्येक में अलग-अलग होती है। किसी सीमा तक यह इस बात पर निर्भर करेगी कि उच्च अधिकारियों ने उस प्रबन्धक को कितने अधिकार सौंपे हैं और नियोजन के सम्बन्ध में उनकी क्या नीति है ? अत: नियोजन का क्षेत्र सर्वव्यापी है।

6. नियोजन एक निरन्तर चालू रहने वाली क्रिया है (Planning is a continuous process) नियोजन की प्रकृति के बारे में यह भी एक उल्लेखनीय तत्त्व है कि एक निरन्तर चालू रहने वाली क्रिया है। इसका अभिप्राय यह है कि एक संगठन में योजनाओं का क्रम चलता ही रहता है। एक योजना के बाद दूसरी, दूसरी के बाद तीसरी योजनाएं बनाई और लागू की जाती रहती हैं। अत: जब तक उपक्रम चलता रहेगा। उसमें योजनाएं भी चलती रहेंगी। कण्ट्ज एवं ओ’डोनेल के शब्दों में, “निर्धारित लक्ष्य पर पहुँचने के लिए प्रभावी नियोजन, घटनाओं, पूर्वानुमानों तथा योजनाओं के पुनर्निर्माण में निरन्तरता की आवश्यकता होती है।”

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7.नियोजन कार्यकशलता में वृद्धि के लिए किया जाता है (Planning is directed towards efficiency) नियोजन का मुख्य उद्देश्य संस्था की कार्यकुशलता में वृद्धि करना होता है। नियोजन द्वारा सामग्री, विधियों, मानवीय शक्ति तथा मशीनों आदि के प्रयोग में मितव्ययिता लाने का प्रयत्न किया जाता है जिससे उत्पादन लागत में कमी आती है। इस प्रकार योजना एक ऐसी कार्यविधि है जिसके द्वारा कम-से-कम विनियोग (Input) से अधिकतम इच्छित परिणाम (Output) प्राप्त किए जा सकें। एक अच्छी योजना, न केवल विनियोग और परिणामों (Input-Output) में अनुकूलतम अनुपात स्थापित करती है, बल्कि उन व्यक्तियों को जो इसे क्रियान्वित करते हैं, अधिकतम सन्तुष्टि भी प्रदान करती है।

8. नियोजन सदैव भविष्य को ध्यान में रखकर किया जाता है (Planning is always forward looking)—ऐलन के अनुसार, व्यवसाय के “योजना एक प्रकार का जाल है जो भविष्य को पकड़ने के लिए बिछाया जाता है।”वास्तव में नियोजन का सार भी भविष्य है। जो भी योजनाएँ बनाई जाती हैं उन्हें कार्य रूप भविष्य में दिया जाता है। यदि व्यवसाय को अगले वर्ष की उत्पादन योजना बनानी है तो उसे भविष्य की माँग को, संस्था के वर्तमान और भावी साधनों को तथा सरकारी नीतियों को ध्यान में रखना होगा।

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नियोजन का महत्त्व अथवा लाभ

(Importance of Advantages of Planning)

एक योजनाबद्ध कार्यक्रम सदैव अच्छा रहता है क्योंकि यह कार्य के होने को सम्भव बनाता है जोकि अन्यथा नहीं किया जाता। बिना नियोजन किये चलाया गया एक व्यवसाय उसी तरह होता है जिस तरह बिना नाविक के एक जहाज। यदि पहले सही कार्य की योजना तैयार नहीं की जाती है, तब निर्णय गलती करो और सुधारों के आधार पर बिना किसी भय के किए जाएंगे, जिसके परिणामस्वरूप मानवीय तथा सामग्री साधनों का अपव्यय होगा। बिना नियोजन के एक संगठन उद्देश्य रहित चलता है।

डी. एच. कौल के मतानुसार, “बिना नियोजन के किया गया कार्य तीर और तुक्के के समान होगा जिससे केवल भ्रम, सन्देह एवं अव्यवस्था ही उत्पन्न होगी।”

व्यवसाय में नियोजन का निम्नलिखित कारणों से महत्त्व स्पष्ट होता है

1 भावी अनिश्चितता तथा परिवर्तनों का सामना करने के लिए (To offset future uncertainties and chances) हम सब जानते हैं कि भविष्य सदा अनिश्चित और परिवर्तनशील होता है। इस अनिश्चितता और परिवर्तनशीलता का सामना करने के लिए नियोजन की जरूरत पड़ती है। नियोजन की सहायता से दीर्घकालीन प्रवृत्तियों का पता लगाया जाता है और फिर उसके आधार पर व्यावसायिक नीतियों का निर्धारण किया जा सकता है। अतः प्रबन्धक भविष्य के प्रति आश्वस्त हो जाता है।

2. उद्देश्य प्राप्ति में सहायक(Helps inachieving objective) सभी व्यावसायिक संस्थाओं के उद्देश्य पूर्व-निर्धारित होते हैं और इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए नियोजन किया जाता है। नियोजन उनकी प्राप्ति का सर्वोत्तम ढंग तय करता है और फिर कार्य परिणामों को उद्देश्य की पृष्ठभूमि में परखता है। इस प्रकार वह सदा उद्देश्यों पर प्रबन्धकों का ध्यान दिलाता रहता है। मूल उद्देश्य पर ध्यान केन्द्रित रहने से सभी अधिकारी व कर्मचारी संस्था के उद्देश्यों के प्रति सजग रहते हैं। इस प्रकार नियोजन संस्था को अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक सिद्ध होता है।

3. समन्वय में सहायता (Helps in Co-ordination) संस्था के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए नियोजन उसके विभिन्न कार्यों में एकता स्थापित करता है। एक ही लक्ष्य पर पहुँचने के लिए बिखरे हुए और जटिल कार्यों में समन्वय किया जाता है। इसके साथ सारी संगठन व्यवस्था में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि एक ही कार्य दुबारा न किया जा सके तथा विभिन्न कार्य आपस में रुकावट पैदा न करें। इस प्रकार नियोजन संस्था के विभिन्न कार्यों में एकता व समन्वय स्थापित करता है।

4. मितव्ययी संचालन में सहायक (It secures economy in operation) नियोजन द्वारा सामग्री, विधियों, मानवीय शक्ति तथा मशीनों आदि में मितव्ययिता लाने का प्रयत्न किया जाता है जिससे उत्पादन लागत में कमी आती है। इस प्रकार संस्था के साधनों का कुशलतम उपयोग सम्भव बनाकर नियोजन मितव्ययिता प्राप्त करता है।

5. प्रभावी नियन्त्रण सम्भव (Effective control possible)—नियोजन से नियन्त्रण में पर्याप्त सहायता मिलती है। नियोजन प्रबन्धकों को नियन्त्रण करने के लिए मापदण्ड प्रस्तुत करता है जिसके आधार पर कर्मचारियों की प्रगति का मूल्यांकन किया जा सकता है। नियोजन यह निश्चित कर देता है कि विभाग या कर्मचारी को कब, क्या और किस प्रकार काम करना है जिसके फलस्वरूप नियन्त्रण प्रभावपूर्ण हो जाता है।

6. प्रबन्धकों की कार्यक्षमता में वृद्धि (Increase in managerial efficiency)-नियोजन पर ही प्रबन्ध के अन्य कार्यों की सफलता निर्भर करती है। नियोजन द्वारा ही प्रबन्ध संस्था के हर पहलू पर नजर रख सकते हैं, सही निर्देश दे सकते हैं तथा उसे सफलतापूर्वक चला सकते हैं। वास्तव में नियोजन ही प्रबन्धकों के कार्य में निश्चितता और नियमितता ला सकता है। नियोजन निश्चित रूप से प्रबन्धकों को अपना उद्देश्य समय से और न्यूनतम लागत पर पूरा करने में सहायता करता है। प्रबन्ध नियोजन के माध्यम से निश्चित होकर प्रबन्ध कार्य अधिक कुशलता से कर सकते हैं।

7.संगठन को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए (Increase in organisation effectiveness)-नियोजन किसी संस्था के संगठन को प्रभावशाली बनाता है और वांछित परिणामों को प्राप्त करने में लगने वाली अनावश्यक देरी और लाल फीताशाही को समाप्त करके प्रबन्धकों के कार्यों में गति प्रदान करता है। नियोजन से क्रियाओं का अनावश्यक दोहराव रुक जाता है जिससे समय और श्रम की बचत होती है।

8. साधनों का कुशलतम उपयोग (Best use of resources) संस्था के उपलब्ध एवं भावी साधनों का समचित उपयोग नियोजन द्वारा ही हो सकता है। साधनों का उपयोग का कार्यक्रम भी नियोजन ही बनाता है।

9.कर्मचारियों की सन्तुष्टि में वृद्धि (Improvement in the satisfaction of employees) नियोजन । कर्मचारियों की भावनात्मक एवं मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं का ध्यान रखता है। उसके लिए न्यायोचित वित्तीय एवं अवित्तीय सुविधाओं की व्यवस्था करता है। परिणामस्वरूप कर्मचारियों में सन्तोष की भावना का विकास होता है।

10.उपभोक्ताओं को लाभ (Advantages to consumers)—कम लागत में अधिकतम उत्पादन होने के कारण उपभोक्ता को सस्ते मूल्य पर माल उपलब्ध हो जाता है।

निष्कर्ष-जार्ज आर. टैरी का यह कथन सत्य ही है कि नियोजन एक उपक्रम के सफलतापूर्वक कार्यों की। आधारशिला है।”

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उपयोगी प्रश्न (Useful Questions)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

1 नेतृत्व क्षमता का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए। नेतृत्व की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

Explain meaning and definition of Leadership ability. Describe the Characteristics of Leadership.

2. नेतृत्व क्या है ? नेतृत्व के कार्यों का वर्णन कीजिए।

What is Leadership ? Describe the Functions of Leadership.

3. नेतृत्व सम्बन्धी गुण पर अपने विचार स्पष्ट कीजिए।

Explain your point of view on Leadership Qualities.

4. जोखिम वहन की क्षमता का क्या अर्थ है ? व्यावसायिक जोखिमों के विभिन्न कारण क्या हैं ?

What do you mean by the ability of risk-taking? What are the different causes of Business Risk?

5. व्यावसायिक जोखिम क्या है ? जोखिमों की प्रकृति के बारे बताइये।

What is Business Risk ? Explain the Nature of Business Risk.

6. निर्णयन क्षमता से आप क्या समझते हैं ? निर्णयन की प्रकृति के बारे में बताइए।

What do you understand by desicion-making ability ? Explain about nature of decision-making.

7. निर्णयन की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए। आदर्श निर्णयन प्रक्रिया का संक्षेप में वर्णन कीजिए।

Explain the concept of decision-making. Describe in brief the ideal process of decision-making.

8. निर्णयन के तत्त्व अथवा आधार घटक क्या हैं ? समझाइये।

What are the elements or criteria or factors of decision-making? Explain.

9. सही निर्णय पर पहुँचने की विधि का विस्तार से वर्णन कीजिए।

Explain in detail procedure of arriving at correct decision.

10. व्यावसायिक नियोजन क्या है ? नियोजन की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।

What is Business Planning ? Describe the process of planning.

11. नियोजन की प्रकृति स्पष्ट कीजिए तथा इसकी महत्ता की विवेचना कीजिए।

Explain the nature of planning and describe the importance of planning

 

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

1 नेतृत्व की परिभाषा दीजिए।

Define leadership.

2. नेतृत्व की क्या विशेषताएँ हैं ?

What are the characteristics of leadership?

3. नेतृत्व का क्या महत्त्व है ?

What is the importance of leadership?

4. नेतृत्व में कौन-कौन से गुण होने चाहिए ?

What are the qualities of leadership?

5. नेतृत्व के मार्ग में आने वाली बाधायें कौन-कौन-सी हैं ?

What are the hindrances of leadership?

6. एक अच्छे नेता के कोई चार गुण बताइये।

State any four qualities of a good leader.

7. एक सफल नेता के क्या गुण होते हैं ?

What are the qualities of a successful leader?

8. प्रबन्धकीय एवं नेतृत्व के गुण किस प्रकार आपस में एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं ?

How are managerial and leadership qualities interrelated?

9. “नेतत्व की आवश्यकता केवल में कोई तीन कारण दीजिए। के लिए होती है।” क्या आप इससे सहमत हैं ? अपने उत्तर के समर्थन ”

Leadership is required only for less efficient subrodinates.” Do you agree ? Give an in support of your answer.

10. व्यावसायिक जोखिम का क्या अर्थ है ?

What do you mean by business risk?

11. व्यावसायिक जोखिम के क्या कारण हैं ?

What are the causes of business risk?

12. निर्णयन की क्या विशेषतायें हैं ?

What are the characteristics of decision-making?

13. नियोजन के पाँच उद्देश्य बताइए।

Give five objects of planning.

14.नियोजन की प्रकृति लिखो।

Write nature of planning.

15. नियोजन की विशेषताओं को बताइये।

Explain the characteristics/features of planning.

16. नियोजन की प्रक्रिया के कदम बताइये।

Write various steps in the process of planning.

17. नियोजन की सीमाएँ लिखो।

Write limitation of planning.

18. “नियोजन प्रबन्ध का प्राथमिक कार्य है।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।

“Planning is the primary function of Management.” Explain this statement.

19. एक आदर्श योजना की पाँच विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

Give the five features of an ideal planning.

20. नियोजन के महत्त्व पर संक्षिप्त टिप्पणी दें।

Give a brief note on the importance of planning.

21. नियोजन ‘एक बौद्धिक प्रक्रिया’ के रूप में वर्णन करें।

Explain planning as an intellectual process.

22. नियोजन की उपयोगिता बताइए।

Describe the utility of planning.

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III. अति लघ उत्तरीय प्रश्न

(Very Short Answer Type Questions)

1 एक अच्छे नेता के गुण बताइये।

Give qualities of a good leader.

2. नेतृत्व शब्द का पर्याय शब्द बताइये।

Give a substitute for the use of the word leadership.

3. नेतृत्व की दो विशेषताएँ बतायें।

Give two characteristics of leadership.

4. नेता के कोई दो कार्य बतायें।

State two functions of a leader.

5.नेतृत्व की एक परिभाषा दें।

Give one definition of leadership.

6. व्यावसायिक जोखिम क्या है ?

What is business risk?

7. व्यावसायिक जोखिम के कोई दो कारण बतायें।

State any two cause of business risk.

8. निर्णयन के तत्त्व क्या हैं ?

What are the elements of decision-making?

9. निर्णयन की अवधारणा को बतायें

State the concept of decision-making.

10. नियोजन का क्या अर्थ है?

What is the meaning of planning?

11. नियोजन क्यों एक बौद्धिक प्रक्रिया है ?

How is planning an intellectual process?

12. नियोजन की परिभाषा दीजिए।

Define planning.

13. नियोजन की कोई दो सीमाएँ बतायें।

State any two limitation of planning.

14. नियोजन मूलतः एक चयन प्रक्रिया है। केसे ?

Planning is basically a choosing process. How?

15. नियोजन पूर्वानुमान लगाना है। केसे ?

Planning is forecasting. How?

16. नियोजन आगे देखने की प्रक्रिया है। केसे ?

Planning is a process of looking ahead. How? |

[नोट-प्रश्न सं 14 से 16 के लिए शीर्षक नियोजन की विशेषताएँ देखें।]

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

1. सही उत्तर चुनिए (Select the Correct Answer)

(i) “अधिकांश व्यावसायिक उपक्रमों के असफल होने का प्रमुख कारण अकुशल नेतृत्व है।” यह कथन है

(अ) कूण्ट्ज एवं ओ’ डोनैल का

(ब) पीटर एफ. ड्रकर का

(स) जार्ज आर. टैरी का

(द) मूने एवं रेले का। ”

The main reason for most business enterprises becoming unsuccessful is the inefficient leadership.” This statement is of

(a) Koontz and O’Donnell

(b) Peter F. Drucker

(c) George R. Terry

(d) Mooney and Riley.

(ii) उपक्रम के विकास के लिए नेतृत्व/उद्यमिता है

(अ) अनिवार्य

(ब) आवश्यक

(स) अनावश्यक

(द) समय की बर्बादी।

For the development of an enterprise leadership/entrepreneurship is

(a) Compulsory

(b) Necessary

(c) Unnecessary

(d) Wastage of Time.

(iii) नेतृत्व है

(अ) बासिज्म

(ब) भय

(स) उच्च पद

(द) इनमें से कोई नहीं।

Leader is

(a) Bossism

(b) Fear

(c) High Post

(d) None of these.

(iv) नेतृत्व का शक्ति स्वरूप है

(अ) निरंकुश

(ब) जनता

(स) निर्बाध

(द) ये सभी।

Power style of leadership is—

(a) Autocratic

(b) Democratic

(c) Free-rein

(d) All these.

(v) नियोजन होता है

(ब) भूतकाल के लिए

(ब) भविष्य के लिए

(स) वर्तमान के लिए

(द) सभी के लिए।

Planning is for –

(a) Past

(b) Future

(c) Present

(d) All.

(vi) नियोजन है

(अ) आवश्यक

(ब) अनावश्यक

(स) समय की बर्बादी

(द) धन की बर्बादी।

Planning is

(a) Necessary

(b) Unnecessary

(c) Wastage of Time

(d) Wastage of Money.

(vii) नियोजन होता है

(अ) अल्पकालीन

(ब) मध्यकालीन

(स) दीर्घकालीन

(द) सभी अवधियों के लिए।

Planning is

(a) Short-term

(b) Middle-term

(c) Long-term

(d) For All Term.

(viii) निर्णय का कार्य है

(अ) निम्न प्रबन्ध

(ब) मध्यम प्रबन्ध

(स) उच्च प्रबन्ध

(द) सभी प्रबन्धकीय स्तर।

The function of decision-making is of

(a) Lower Management

(b) Middle Management

(c) Top Management

(d) All Levels of Management.

(द) समय की बर्बादी।

(ix) नेता/उद्यमी के लिए निर्णय लेना है

(अ) अनिवार्य

(ब) आवश्यक

(स) अनावश्यक

For leader/entrepreneur decision-making is

(a) Compulsory

(b) Necessary

(c) Un-necessary

(d) Wastage of Time.

(d) wasuag

(x) नेतृत्व/उद्यमी का कार्य है

(अ) जोखिम लेना

(ब) निर्णय लेना

(स) व्यावसायिक नियोजन

(द) ये सभी।

Function of leadership/entrepreneur is

(a) Risk taking

(d) All these.

(c) Business Planning

(b) Decision-making

[उत्तर-(i) (ब), (ii) (अ),(iii) (द), (iv) (द).(v) (द), (iv) (अ),(vii) (द),(viii) (द), (ix) (अ), (x) (द)।

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2. इागत कर कि निम्नलिखित वक्तव्य ‘सही’ हैं या ‘गलत’

(Whether the Following Statements are True’ or ‘False’)

(i) नेतृत्व के सभी गुण जन्मजात होते हैं।

All the leadership qualities are by birth.

(ii) सभी प्रबन्धक नेता होते हैं।

All managers are leaders.

(iii) सभी नेता प्रबन्धक होते हैं।

All leaders are managers.

(iv) नेता बॉस होता है।

Leader is the boss.

(v) नेता अपने अधीनस्थों के समक्ष आदर्श आचरण प्रस्तुत करता है।

Leader presents ideal conduct before his subordinates.

(vi) निर्णयन प्रबन्ध का प्राथमिक कार्य है।

Decision-making is the primary function of a manager.

(vii) निर्णयन एक मानसिक प्रक्रिया है।

Decision-making is a mental process.

(viii) निर्णयन तथा निर्णय दोनों एक ही हैं।

Decision-making and decision both are same.

(ix) निर्णयन समय की बर्बादी है।

Decision-making is the waste of time.

(x) नेतृत्व/उद्यमिता की सफलता कुशल निर्णयन पर निर्भर करती है।

Success of leadership/entrepreneur depends on efficient decision-making.

(xi) यह कथन मिथ्या है कि नेता/ उद्यमी का मार्ग जोखिमों से भरा है।

It is false to state that the path of a leader entrepreneur is full of risks.

(xii) नेता/उद्यमी पग-पग पर जोखिम लेता है।

Leader/entrepreneur takes risk at every step.

(xiii) नियोजन एक मानसिक कसरत है।

Planning is a mental exercise.

(xiv) नियोजन आगे देखने वाला है।

Planning is forward looking.

(xv) नियोजन पीछे देखने वाला है।

Planning is backward looking.

(xvi) नियोजन समय की बर्बादी है।

Planning is wastage of time.

(xvii) नियोजन मूलत: एक चयन प्रक्रिया है।

Planning is fundamentally a choosing process.

(xviii) नियोजन नेता/उद्यमी का एक प्राथमिक कार्य है।

Planning is a primary function of leader/entrepreneur.

उत्तर- गलत, (ii) सही, (iii) गलत, (iv) गलत, (v) सही, (vii) सही, (viii) गलत. (ix) गलत, (x) सही, (xi) गलत, (xii) सही, (xiii) सही, (xiv) सही, (xv) गलत, (xvi) गलत, (xvii) सही, (xviii) सही।]

Importance Significance Decision Study

3. रिक्त स्थान भरें (Fill in the Blanks)

(i) यह कथन मिथ्या है कि उद्यमी का मार्ग ……. से भरा है।

It is false to state that the path of a leader entrepreneur is full of ……

[जोखिमों (Risks)/सफलता (Success)/उद्यमिता (Entrepreneur)]

(ii) नियोजन …… आगे देखने वाला है। Planning is …… looking .

[पीछे (Backward)/आगे (Forward)/सामने (Infront)]

(iii) नियोजन मूलतः एक …… प्रक्रिया है। Planning is fundamentally a …… process.

[चयन (Choosing)/प्रारम्भिक (Initial)/अन्ततः (Ending)]

(iv) नेतृत्व की सफलता …… पर निर्भर करती है। Success of leadership depends on efficient …….[कुशलनिर्णयन (Decision-making)/उद्यम (Entrepreneur)/ईमानदारी (Honesty)]

(v) नेता अपने अधीनस्थों के समक्ष …… प्रस्तुत करता है। Leader present …… before his subordinates. [ईमानदारी (Honesty)/आदर्श आचरण (Ideal Conduct)/बहादुरी (Bravery)]

(vi) “अधिकांश व्यावसायकि उपक्रमों के असफल होने का प्रमुख कारण …… है।”

The main reason of most business enterprises becomming unsuccessful is the ……

[अकुशल नेतृत्व (Inefficient leadership)/अकुशल प्रबन्ध

(Inefficient management)/अकुशल संगठन (Inefficient organisation)]

(vii) उपक्रम के विकास के लिए नेतृत्व है ……

For the development of an enterprise leadership is

[आवश्यक (Necessary)/अनिवार्य (Compulsory)/अनावश्यक (unnecessary)]

[उत्तर-(i) जोखिमों (Risks), (ii) आगे (Forward), (iii) चयन (Choosing), (iv) कुशलनिर्णयन (Decision-making), (v) आदर्श आचरण (Ideal conduct),

(vi) अकुशल नेतृत्व (Inefficient leadership), (vii) अनिवार्य (Compulsory)]

4. मिलान सम्बन्धी प्रश्न (Matching Questions) भाग-अ का मिलान भाग-ब से करें Match Part-A with Part-B

भाग-अ (Part-A)

 

भाग-ब (Part-BI
1. नियोजन है (Planning is)

 

(a) एक चयन प्रक्रिया (A Choosing process)

2. नेतृत्व है (Leadership is)

(b) मानसिक कसरत (Mental Excercise)
3. नियोजन मूलतः (Planning is fundamentally)

(c) सभी प्रबन्धकीय स्तर पर (All level of

Menagement)

4. नियोजन एक (Planning a)

(d) व्यक्तियों को पारस्परिक उद्देश्यों के लिए स्वैच्छिक प्रयत्न करने हेतु प्रभावित करने की योग्यता (The ability of influencing people to survive willaigly for

 

5. निर्णयन का कार्य है (The function of decision-

(e) अनिवार्य (Compulsory)

 

 [उत्तर-1. (e), 2. (d), 3. (a), 4. (b), 5. (c).]

Importance of Significance Decision Study

 

chetansati

Admin

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