BCom 2nd year Incidence Taxation shifting Tax Study Material Notes in Hindi

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BCom 2nd year Incidence Taxation shifting Tax Study Material Notes in Hindi

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BCom 2nd year Incidence Taxation shifting Tax Study Material Notes in Hindi: Meaning of Incidence of Tax Distinction between Impact and Incidence of tax shifting of  distinction between tax shifting tax evasion theories of incidence shifting taxes Diffusion Theory Factors Determining Incidence or Shifting of Tax incidence of tax in perfect competition tax Incidence under monopoly Incidence of Import and Export Taxes  Incidence of Income Tax Incidence of Land Tax Important Examination Question Long Answer Questions Short Answer Questions ( Most important for BCom 2nd year Students )

Incidence Taxation shifting Tax
Incidence Taxation shifting Tax

BCom 2nd Year Economic Effects Public Expenditure Study Material Notes in Hindi

करापात: कर विवर्तन

(Incidence of Taxation: Shifting of Tax)

“कराघात का अध्ययन इतना महत्वपूर्ण नहीं है। यह जानना भी कठिन नहीं कि कराघात किस पर पड़ता है। अधिक महत्वपूर्ण बात करापात जानना है। करापात का एकमात्र महत्त्व यह है कि जो व्यक्ति कराघात सहन करता है, वह सारा या आंशिक कर भार वहन करे, लेकिन जो करापात सहन करता है, उस पर कराघात आवश्यक रूप से पड़ता है।”

-जे० के० मेहता करापात या कर भार की समस्या का अध्ययन व्यवहारिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह समस्या इस बात पर निर्भर करती है कि कर का भुगतान कौन करेगा। कर भार हमेशा उसी व्यक्ति पर नहीं पड़ता जिस पर कर लगाया जाता है, क्योंकि वह उस कर के भार को सदैव दूसरे व्यक्ति पर टालने का प्रयास करता है। कभी-कभी वह कर भार को टालने में सफल हो जाता है और कभी-कभी नहीं होता, तथापि व्यवहारिक दृष्टि से यह जानना अत्यन्त आवश्यक है कि कावहन किया जा रहा है। यह जानना कर भार के जापपूर्ण वितरण के लिए भा आवश्यक हा अतः कर भार की समस्या के अन्तर्गत हम रिलिाखत तीन बातों का अध्ययन करते हैं

(i) कर का भुगतान कौन करेगा?

(ii) कर का वास्तविक भार किसके द्वारा वहन किया जाता है?

(iii) कर भार समाज के सभी सदस्यों पर समान है अथवा असमान?

सामान्यतया कर का अन्तिम भार सदैव उस व्यक्ति पर नहीं पड़ता जिस पर कर लगाया जाता है। अतः कर भार के न्यायपूर्ण वितरण के लिए यह जानना आवश्यक है कि कर का अन्तिम भार कौन वहन कर रहा है? वास्तव में यही कर भार की समस्या है। डॉ० डाल्टन के अनुसार, “किसी कर के भार की समस्या सामान्यतः यह जानने की है कि उस कर को कौन देता है

Incidence Taxation shifting Tax

कराघात या कर का दबाव (Impact of Tax) कर का भुगतान करना एक बात है और कर का भार सहना दूसरी बात है। कर-दबाव करारोपण का तात्कालिक प्रभाव है और यह उस व्यक्ति पर पड़ता है जो सर्वप्रथम कर को चुकाता है। अतः कराघात कर के प्रारम्भिक या प्रथम भार को प्रकट करता है। जिस व्यक्ति पर कर लगाया जाता है वह उसे दूसरे व्यक्ति पर टालने का प्रयास करता है। यदि वह कर को टालने में सफल हो जाता है तो इसे कर का विवर्तन (Shifting of tax) कहते हैं।

कर भार अथवा करापात का अर्थ (Meaning of Incidence of Tax)

साधारण शब्दों में, करापात से आशय अन्तिम रूप से कर के भार को वहन करने से है। करापात की मुख्य परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं

(i) डॉ० डाल्टन के अनुसार, “अधिक निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि कर का भार उन लोगों पर होता है जो उसके प्रत्यक्ष मौद्रिक भार को वहन करते हैं।”2

(ii) प्रो० एडम्स के अनुसार, “करों के भार का अभिप्राय उनके भुगतान के पड़ने के अन्तिम स्थान से है।”

(iii) सैलिगमैन के अनुसार, “अन्तिम करदाता पर कर के बोझ को करापात कहा जाता है।”4

(iv) प्रो० जे० के० मेहता के अनुसार, “कर का भार द्राव्यिक भार है। यह भार प्रत्यक्ष होता है तथा यह उस व्यक्ति द्वारा वहन किया जाता है जिससे कराधिकारी कर राशि वसूल करता है या जो कर लगाई हुई वस्तुओं का क्रय-विक्रय करता है।

(vi) फिण्डले शिराज के अनुसार, “करापात विवर्तन का अन्तिम परिणाम है। यह प्रत्यक्ष मौद्रिक भार है।”

Incidence Taxation shifting Tax

कराघात और करापात में अन्तर

(Distinction Between Impact and Incidence of Tax)

कराघात उस व्यक्ति पर होता है जो उस कर का भुगतान सरकार को करता है अर्थात् जिस व्यक्ति से कर की राशि वसूल की जाती है, जबकि करापात उस व्यक्ति पर पड़ता जो उस भार को अन्तिम रूप से वहन करता है।

उदाहरण-माना कपड़े के उत्पादन पर कर लगाया गया है। इस कर का भुगतान कपड़ा निर्माताओं द्वारा किया जायेगा। अतः कराघात (Impact) कपड़ा निर्माताओं पर पड़ेगा, किन्तु यदि कपड़ा निर्माता कपड़े का मूल्य बढ़ाकर उपभोक्ताओं से कर वसूल करने में सफल हो जाता है तो इसका अर्थ यह है कि कपड़ा निर्माता कर के भार को उपभोक्ताओं पर विवर्तित करने में सफल हो गये हैं। ऐसी स्थिति में करापात (Incidence) उपभोक्ताओं पर पड़ा माना जायेगा। इसका कारण यह है कि कर का मौद्रिक भार शातिर जनोपाजों को ही पहन करना पड़ा है।

कराघात एवं करापात में निम्नांकित अन्तर हैं

(1) कराघात कर के प्रारम्भिक भार को प्रकट करता है, जबकि करापात अन्तिम भार को।

(2) कराघात के बाद कर-विवर्त्तन की सम्भावना रहती है, किन्तु करापात के बाद नहीं।

(3) कराघात का अनुभव कर देते ही हो जाता है, परन्तु करापात का अनुभव तभी होता है जब कर अन्तिम रूप से टिक जाए।

(4) कराघात सम्बन्धी व्यक्ति का नाम सरकार की करदाताओं की सूची में होता है, किन्तु करापात सम्बन्धी व्यक्ति का नाम सरकारी सूची में होना अनिवार्य नहीं है।

(5) कराघात से बचना कानून का उल्लंघन करना है, जबकि करापात से बचने के लिए प्रयास करना वैधानिक है।

(6) कराघात से आशय सरकार को दिये गये कर राशि के मौद्रिक भुगतान से है, जबकि करापात से अभिप्राय कर के प्रत्यक्ष मौद्रिक भार से है।

Incidence Taxation shifting Tax

कर विवर्तन

(Shifting of Tax)

साधारण शब्दों में, कर विवर्तन से आशय करदाता द्वारा कर के भार को दूसरे पर टाल देने से है। यह वह क्रिया है जिसके अन्तर्गत कर भार एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति पर टाल दिया जाता है। कर विवर्तन कर भार से बचने का ही एक उपाय है। फिण्डले शिराज के अनुसार,कर भार कर विवर्तन का अन्तिम परिणाम है।प्रो० मसग्रेव के अनुसार, “परम्परागत अर्थ में कर विवर्तन वह क्रिया है जिसके द्वारा कर का प्रत्यक्ष मौद्रिक भार, मूल्यों में परिवर्तन करके, दबाव बिन्दु से अन्तिम विश्राम स्थल की ओर हटा दिया जाता है।

सामान्यतः प्रत्येक व्यक्ति अपने कर भार को दूसरों पर टालने का प्रयास करता है, यद्यपि यह आवश्यक नहीं है कि वह कर भार को टालने में अवश्य ही सफल हो जाये। अतः जिस बिन्दु से आगे कर का विवर्तन सम्भव नहीं होता, कर भार उसी बिन्दु पर पड़ जाता है। दूसरे शब्दों में, कर विवर्तन न हो पाने की दशा में कराघात और करापात दोनों एक ही व्यक्ति पर पड़ते हैं। इस प्रकार कर विवर्तन कराघात और करापात के बीच की एक कड़ी है। यहाँ उल्लेखनीय है कि सामान्य रूप से प्रत्यक्ष करों का विवर्तन नहीं हो पाता, जबकि परोक्ष करों का विवर्तन हो जाता है।

संक्षेप में, जब किसी कर के मौद्रिक भार को किसी अन्य व्यक्ति पर टाल दिया जाता है तो उसे। । ‘कर का विवर्तन’ कहते हैं। यह विवर्तन करदाता की क्षतिपर्ति है। इसके द्वारा करदाता अपनी उस हानि या त्याग को पूरा करने का प्रयास करता है जो उसे कर का भुगतान करने के कारण होती है। कर का यह विवतन मूल्य सरचना (Price Mechanism) द्वारा होता है। दूसरे शब्दों में, विक्रेता कर के भार क वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि करके उपभोक्ताओं पर विवर्तित कर देता है।

Incidence Taxation shifting Tax

1 कर विवर्तन की रीति-सामान्यतः कर विवर्तन मल्य संरचना का परिणाम होता है। करदाता वस्तु के मूल्य में वृद्धि करके कर भार को उपभोक्ताओं पर टाल देता है।

2. एक अथवा अनेक बिन्दुओं पर कर विवर्तन-कर विवर्तन एक ऐसी क्रमिक प्रक्रिया है जो एक बिन्दु पर अथवा एक से अधिक बिन्दुओं पर सम्पन्न की जा सकती है।

उदाहरण-माना किसी वस्तु पर उत्पादन कर लगाया जाता है। इस कर को मिल मालिक वस्तु के मूल्य में सम्मिलित करके थोक विक्रेता पर, थोक विक्रेता फूटकर विक्रेता पर और फुटकर विक्रेता उपभोक्ताओं पर टाल दे तो इसे अनेक बिन्दुओं पर विवर्तन कहेंगे। इस उदाहरण में करापात उपभोक्ता पर पड़ेगा और कराघात मिल मालिक पर।

3. कर विवर्तन की दशाएँ-कर भार को दोनों दिशाओं में विवर्तित किया जा सकता है अर्थात् कर भार को आगे और पीछे दोनों ओर ढकेला जा सकता है। इस दष्टि से विवर्तन के दो रूप होते हैं-अग्रगामी कर विवर्तन तथा प्रतिगामी कर विवर्तन।

(i) अग्रगामी कर विवर्तन (Forward Shifting – कोई को वस्तु के मूल्य में जोड़कर उपभोक्ता काल देता है, तब इसे अग्रगामी कर विवर्तन कहते हैं। ऐसा विवर्तन प्रायः कीमत बढ़ाकर ही किया जाता है।

(ii) प्रतिगामी कर विवर्तन (Backward Shifting)-जब उत्पादक कर भार को उत्पादन के साधनों जैसे श्रम व पूँजी आदि पर विवर्तित करने में सफल हो जाता है तो इसे प्रतिगामी विवर्तन कहते हैं। ऐसा विवर्तन प्रायः लोचदार माँग वाली वस्तुओं के लिये होता है।

Incidence Taxation shifting Tax

कर विवर्तन तथा कर वंचन में अन्तर

(Distinction Between Tax-shifting and Tax-evasion)

कर वंचन से अभिप्राय ‘कर की चोरी करना है। अतः कर विवर्तन एवं कर वंचन दो भिन्न क्रियाएँ हैं। कर विवर्तन के अन्तर्गत करदाता कर भार को किसी अन्य व्यक्ति पर टाल देता है, जबकि कर वंचन के अन्तर्गत करदाता बिना कर का भुगतान किये ही कर के दायित्व से मुक्त हो जाता है। इन दोनों के अन्तर को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है

1 कर विवर्तन कर के भार को टालने की एक वैधानिक क्रिया है, जबकि कर वंचन अपराधिक एवं गैर कानूनी क्रिया है।

2. कर वंचन में सरकार को राजस्व की हानि होती है, जबकि कर विवर्तन में सरकार को राजस्व की हानि नहीं होती।

3. कर विवर्तन में कर का भार किसी न किसी व्यक्ति पर अवश्य पड़ता है, जबकि कर वंचन में कर भार का कोई प्रश्न नहीं उठता।

करापात अथवा कर विवर्तन के सिद्धान्त

(Theories of Incidence or Shifting of Taxes)

करापात अथवा कर विवर्तन के तीन प्रमुख सिद्धान्त हैं-(1) संकेन्द्रण सिद्धान्त, (2) प्रसरण सिद्धान्त, (3) आधुनिक सिद्धान्त।

1 संकेन्द्रण सिद्धान्त (Concentration Theory)

इस सिद्धान्त का प्रतिपादन निर्बाधावादी/प्रकृतिवादी अर्थशास्त्रियों (Physiocrats) द्वारा किया गया था। उनका विचार था कि कोई भी कर किसी भी व्यक्ति अथवा वस्तु पर क्यों न लगाया जाए अन्तिम रूप से उसका भार भूमिपतियों पर ही पड़ता है। इसका कारण उनकी यह धारणा थी कि कृषि को छोड़कर अन्य सभी व्यवसाय अनुत्पादक होते हैं, केवल कृषि से ही शुद्ध उपज प्राप्त होती है। अतः अतिरेक (Surplus) भी कृषि में ही प्राप्त होता है। कर इस अतिरेक में से सरकार को दिया जा सकता है। यदि कृषि को छोड़कर किसी अन्य वर्ग पर कर लगाया जाता है तो वे उसे दूसरे व्यक्तियों पर विवर्तित करने का प्रयास करेंगे और इस विवर्तन एवं पुनः विवर्तन की प्रक्रिया में अन्ततः कर भूमिपतियों पर ही केन्द्रित हो जाएँगे। अतः अनावश्यक कर विवर्तन से बचने के लिए केवल भूमि की शुद्ध उपज पर ही कर लगाना चाहिए।

Incidence Taxation shifting Tax

आलोचना (Criticism)

प्रकृतिवादियों का यह सिद्धान्त दोषपूर्ण है, क्योंकि-(i) केवल कृषि ही एक मात्र उत्पादक व्यवसाय नहीं है, धन का उत्पादन भूमि के अतिरिक्त अन्य सभी क्षेत्रों में होता है; (ii) केवल भूमि पर करारोपण। न्यायपूर्ण नहीं होता।

2. प्रसरण का सिद्धान्त (Diffusion Theory)

इस सिद्धान्त का प्रतिपादन एन० एफ० केनार्ड (N.E. Canard) द्वारा किया गया था। कैनार्ड महोदय ने संकेन्द्रण सिद्धान्त की आलोचना करते हुए कहा कि, ‘अतिरेक’ केवल भूमि में ही पैदा नहीं होता बल्कि श्रम, पूँजी, व्यवसाय, वाणिज्य आदि सभी क्षेत्रों में पैदा होता है। उनका मत था कि ‘प्रत्येक कर का विवर्तन उस समय तक होता रहता है जब तक कि उसका भार समाज के सभी वर्गों पर न फैल जाये।’ केनाई कर प्रसार की तलना कपिंग की चीड-फाड से करते हैं। उनके अनुसार, “यदि मनष्य के शरीर की किसी नस में से खून निकाल लिया जाए तो केवल उसी नस में ही खून की कमी नहीं होती, अपितु सारे शरीर में खून की कमी हो जाती है।” इसी प्रकार यदि कोई कर समाज के किसी एक वर्ग र लगा जाना नो माका भार समाज के सभी वर्गों पर पड़ता है। मैंसफील्ड (Mansfield) के अनुसार, “कर उस पत्थर के समान है जो कि झील में गिरकर एक घेरा उत्पन्न कर देता है, तथा वह घेरों की ऐसी श्रृंखला में परिवर्तित हो जाता है कि झील के सम्पूर्ण पानी में हलचल मच जाती है।”

Incidence Taxation shifting Tax

आलोचना (Criticism)

यह सिद्धान्त दोषपूर्ण है, क्योंकि-(i) विवर्तन की प्रक्रिया अनिवार्य नहीं है। अनेक कर, (आय कर, धन कर आदि) ऐसे हैं जिनका विवर्तन नहीं होता; (ii) कर भार का वितरण सम्पूर्ण समाज पर समान रूप से नहीं पड़ता: (iii) समाज में अपूर्ण प्रतियोगिता पाई जाती है जो विवर्तन की क्रिया में सदैव बाधाएँ उत्पन्न करती रहती है।

3. कर-भार का आधुनिक सिद्धान्त (Modern Theory of Tax Incidence)

करापात का आधुनिक सिद्धान्त यह मानता है कि ‘कर उत्पादन लागत का एक अंग है। जिस प्रकार श्रम तथा पूँजी की सेवाओं के लिये उन्हें क्रमशः मजदूरी तथा ब्याज दिया जाता है, ठीक उसी प्रकार सरकार द्वारा की जाने वाली सेवाओं के निष्पादन के लिये जनता को कर का भुगतान करना पड़ता है। अतः इस दृष्टि से वस्तु का मूल्य इतना अवश्य होना चाहिये कि जिससे कर की राशि का भुगतान किया जा सके। यदि वस्तु का वर्तमान मूल्य पहले से ही इतना है कि उससे कर का भुगतान किया जा सकता है (अर्थात् मूल्य से अतिरेक प्राप्त हो रहा है) तो विक्रेता बिना मूल्य बढ़ाये कर का भार स्वयं वहन कर लेगा। इसके विपरीत यदि कर का भुगतान वर्तमान मूल्य में से नहीं हो पाता है तो ऐसी दशा में मूल्यों का बढ़ना तब तक जारी रहेगा जब तक कि कर का भुगतान पूरा न हो जाये। यह सर्वविदित है कि जब भी कोई कर लगाया जाता है तो उससे प्रायः वस्तुओं के मूल्य बढ़ जाते हैं। यदि वह मूल्य वृद्धि कर की मात्रा के बराबर है तो इसका अर्थ यह है कि विक्रेता कर-भार को पूरी तरह से उपभोक्ताओं पर टालने में सफल हो गया है; किन्तु यदि मूल्य में वृद्धि, कर-राशि से कम है तो कर का कुछ भाग विक्रेता स्वयं सहन कर लेता है और कुछ भाग उपभोक्ताओं पर डाल देता है।

Incidence Taxation shifting Tax

स्पष्ट है कि कर-विवर्तन की समस्या मुख्य रूप से दो बातों पर निर्भर करती है-(i) वस्तुओं के क्रय-विक्रय (अर्थात् विनिमय) की सम्भावनाओं पर, तथा (ii) मूल्य में किये जाने वाले हेर-फेर पर। किसी वस्तु पर कर लगाये लाने से उसके मूल्य में कितनी वृद्धि होगी, यह बात प्रायः उस वस्तु की माँग एवं पूर्ति की लोच पर निर्भर होती है। इस प्रकार कर-भार का आधुनिक सिद्धान्त प्राचीन सिद्धान्तों की अपेक्षा करापात का अधिक वैज्ञानिक ढंग से विश्लेषण करता है। प्रसरण सिद्धान्त की भाँति यह सिद्धान्त कर-भार के विवर्तन की क्रिया को सहज रूप में स्वीकार ही नहीं करता बल्कि कर-विवर्तन का महत्त्वपूर्ण निर्धारक तत्त्वों की सफल व्याख्या भी करता है। सारांश रूप में, आधुनिक सिद्धान्त के अनुसार कर-विवर्तन एक अनिवार्य तथा सामान्य रूप में होने वाली प्रक्रिया नहीं है, बल्कि मूल्य-संरचना, वस्तु-विनिमय, वस्तु की माँग एवं पूर्ति की लोच, कर की प्रकृति, उत्पत्ति की दशायें, स्थानापन्न वस्तुओं की उपलब्धता कर ,की मात्रा तथा श्रम व पूँजी की गतिशीलता आदि तत्त्वों द्वारा प्रभावित होने वाली एक प्रक्रिया है।

Incidence Taxation shifting Tax

कर-भार अथवा कर-विवर्तन को निर्धारित करने वाले तत्व

(Factors Determining Incidence or Shifting of Tax)

केन्दीकरण व प्रसरण के सिद्धान्तों में अनेक दोष हैं इसलिये वर्तमान समय के अर्थशास्त्रियों के मार कर-भार अथवा कर-विवर्तन निम्नलिखित बातों पर निर्भर करता है :

1.करों की प्रकृति (Nature of Taxes)-कर-भार करों की प्रक्रति पर निर्भर करता है। प्रायः कछ कर ऐसे होते हैं जिनका पूरा भाग आगे व पीछे की ओर विवर्तित किया जा सकता है। उदाहरण के लिये, अप्रत्यक्ष करों तथा बेलोच माँग वाली वस्तुओं पर लगाया गया कर विवर्तित किया जा सकता है। इसके विपरीत, प्रत्यक्ष-कर का विवर्तन नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि करों का विवर्तन पूर्ण रूप से करों की प्रकृति पर निर्भर करता है।

2. माँग व पूर्ति की लोच (Elasticity of demand and supply)-कर-भार वस्तु की माँग व पूर्ति की लोच पर भी निर्भर करता है। माना वस्तु की माँग बेलोच है, तो कर-भार क्रेताओं की ओर हस्तान्तरित होगा। यदि वस्तु की माँग लोचदार है तो कर भार अधिक हस्तान्तरित नहीं होगा। यदि वस्तु की पूर्ति की लोच लोचदार है तो उत्पादक पूर्ति में कमी करके कर-भार को उपभोक्ताओं की ओर हस्तान्तरित कर देते हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि कभी क्रेता तो कभी विक्रेता कर-भार को एक-दूसरे की ओर हस्तान्तरित करते रहते हैं। संक्षेप में, कर-भार का निस्तारण क्रेताओं व विक्रेताओं की आपसी सौदा करने की शक्ति पर भी निर्भर करता है।

3. उत्पादन की दशाएँ (Conditions of Production)-कर-विवर्तन उत्पादन की दशाओं पर भी निर्भर करता है। यदि उत्पादन एकाधिकार के अन्तर्गत हो रहा है तो कर-विवर्तन का रूप दूसरे प्रकार का होगा। एक एकाधिकारी वस्तु के उत्पादन को नियन्त्रित करके ऊँचा मूल्य रखकर करों का विवर्तन कर सकता है। यहाँ उत्पत्ति के नियमों का प्रभाव भी देखा जायेगा, अर्थात एकाधिकारी उद्योग में उत्पत्ति का कौन-सा नियम लागू हो रहा है। इसी प्रकार, पूर्ण प्रतियोगिता में भी उत्पत्ति के नियमों का प्रभाव कर-विवर्तन पर पड़ेगा।

4. कर का आधार (Basis of Taxation)-विशिष्ट करों अर्थात् संख्या, वजन अथवा आकार के आधार पर लगाये गये करें का विवर्तन किया जा सकता है। किन्तु वस्तु के मूल्य के आधार पर (Ad Valorem) लगाये गये करों का विवर्तन करना कठिन होता है क्योंकि जैसे-जैसे वस्तु का मूल्य बढ़ता है करों की राशि भी बढ़ती जाती है।

Incidence Taxation shifting Tax

5. कर की राशि (Amount of Tax)-यदि किसी वस्तु पर सरकार द्वारा बहुत ही अल्प मात्रा में कर लगाया जाता है तो व्यापारी उसका भार स्वयं सह लेता है तथा उपभोक्ताओं पर उसे नहीं टालता। इनका कारण यह है कि छोटी-सी राशि के लिये वह अपने ग्राहकों को नाराज नहीं करना चाहता। किन्तु यदि कर की राशि अधिक है तो इसे उपभोक्ताओं पर टालने का हर सम्भव प्रयत्न किया जाता है।

6. समय तत्व (Time Element)-यदि विक्रेता पर कोई कर बहुत थोड़े समय के लिये अस्थाई रूप से लगाया जाता है तो वह प्रायः भार को स्वयं सह लेता है तथा उसे अपने ग्राहकों पर नहीं टालता। किन्तु जो कर स्थाई रूप में लगाये जाते है, उन्हें विवर्तित करने का प्रयास किया जाता है।

7. पूँजी की गतिशीलता (Mobility of Capital)-यदि पूँजी पूर्ण रूप से गतिशील होती है तो उत्पादक कर के भार को उपभोक्ताओं पर विवर्तित करने में सफल हो जाता है क्योंकि वह पँजी का विनियोग कर उससे लाभ प्राप्त कर लेता है। किन्तु यदि उसने पहले से ही व्यवसाय में अधिकतम पुँजी लगा रखी है तो कर के भार को उपभोक्ताओं पर नहीं डाला जा सकता।

8. उत्पत्ति के नियम (Laws of Return)-कर के विवर्तन पर उत्पत्ति के नियमों का भी प्रभाव पड़ता है जिसका विवेचन इस प्रकार है

(i) क्रमागत उत्पत्ति हास नियम-यदि वस्तु का उत्पादन, उत्पत्ति हास नियम के अन्तर्गत हो रहा है। तो इसका आशय यह है कि जैसे-जैसे उत्पादन बढ़ता है प्रति इकाई लागत में वृद्धि होती है। अतः जब कर मूल्य में जोड़ी जाती है तो वस्तु का मूल्य अधिक बढ़ जाता है जिससे वस्तु की माँग में कमी होने की सम्भावना रहती है। अतः कर की पूर्ण राशि का विवर्तन नहीं किया जा सकता है।

(ii) क्रमागत उत्पत्ति समता नियम-यदि वस्तु का उत्पादन, उत्पत्ति समता नियम के अन्तर्गत हो रहा है तो उत्पत्ति घटाने या बढ़ाने का लागत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यदि कर की राशि को त मूल्य में जोड़ा जाता है तो इससे माँग प्रभावित नहीं होती और कर की समस्त राशि को मूल्य में मिला। उपभोक्ताओं पर विवर्तित किया जा सकता है।

(iii) क्रमागत उत्पत्ति वद्धि नियम-यदि वस्त का उत्पादन, उत्पत्ति वृद्धि नियम के अन्तर्गत हो कता जस-जस उत्पादन बढ़ता है प्रति डकार्ड लागत घटती जाती हैं। यदि ऐसी स्थिति में कर लगाया तो वस्तु के मूल्य में कर की राशि से अधिक की वृद्धि हो सकती है और उसका भार उपभोक्ताओं पड़ेगा।

Incidence Taxation shifting Tax

9. करारोपण का उद्देश्य (Objects of Taxation)-कुछ कर इस उद्देश्य से लगाये जाते हैं उनका विवर्तन कर दिया जायेगा. जैसे परोक्ष कर। परन्तु कुछ करो का यह उद्देश्य होता है कि जिन पर लगाये गये हैं वे ही उसका भुगतान करें तथा उनका विवर्तन न किया जा सके जैसे-आय-कर।

10. स्थानापन्न वस्तुओं की उपलब्धि (Availability of Substitutes)-जिस वस्तु पर का लगाया गया है, यदि बाजार में उसकी स्थानापन्न वस्तु उपलब्ध होती है तो कर भार को सरलता के विवर्तित नहीं किया जा सकता। इसका कारण यह है कि जैसे ही उत्पादक करों को वस्तु के मल्य शामिल करता है मूल्य बढ़ जाता है जिसके फलस्वरूप उपभोक्ता उन स्थानापन्न वस्तुओं का प्रयोग करते। लगते हैं जो सस्ती होती हैं। जिन वस्तुओं की कोई स्थानापन्न वस्तुएं नहीं होतीं यदि उन पर कर लगाया जाता है तो विक्रेता आसानी से करों की राशि को विवर्तित कर देता है क्योंकि उपभोक्ता ऐसी वस्त को खरीदने के लिये बाध्य होता है।

पूर्ण प्रतियोगिता में कर भार

(Incidence of Tax in Perfect Competition)

अथवा

वस्तु की माँग एवं पूर्ति की लोच का कर विवर्तन पर प्रभाव

(Effect of elasticity of demand and supply on shifting of tax)

पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत कर भार क्रेता वहन करेगा अथवा विक्रेता यह बात मुख्यतः वस्तु के माँग एवं पूर्ति की लोच तथा उत्पत्ति नियमों पर निर्भर करती है। माँग एवं पूर्ति की लोच की विभिन्न स्थितियों में कर विवर्तन को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है

(1) वस्तु की माँग की लोच तथा करापात (Elasticity of Demand and Incidence)-डाल्टन (Dalton) के अनुसार, “अन्य बातें समान रहने पर करारोपित वस्तु की माँग जितनी अधिक लोचदार होगी उतना ही करापात विक्रेता पर होगा …….. तथा करारोपित वस्तु की पूर्ति जितनी अधिक लोचदार होगी, करापात उतना ही अधिक क्रेता पर होगा।” अतः

(1) पूर्णतया लोचदार माँग : यदि वस्तु की माँग पूर्णतया लोचदार है तो कर का सम्पूर्ण भार पूर्णतया विक्रेता पर पड़ेगा जैसा कि चित्र नम्बर 11.1 से स्पष्ट है

चित्र में SS पूर्णतया बेलोचदार पूर्ति की रेखा है। कर लगने से पूर्व वस्तु की कीमत OM के ही | बराबर तय होती है और वस्तु की पूर्ति की मात्रा हर दशा में पूर्ववत् OS के ही बराबर रहती है। इस प्रकार | पूर्णतया बेलोच पूर्ति में उत्पादक कर के भार का विवर्तन उपभोक्ताओं की ओर नहीं कर सकता है।

(iii) लोचदार, कम लोचदार अथवा अधिक लोचदार पूर्ति की स्थिति-व्यवहार में न तो पूर्णतया लोचदार व न ही पूर्णतया बेलोच पूर्ति की स्थिति होती है, अपितु इन दोनों के बीच की स्थिति पायी जाती – है। इस स्थिति में क्रेता तथा विक्रेता पूर्ति के अनुसार कर-भार का विवर्तन एक-दूसरे की ओर कर सकते हैं। अतः पूर्ति की लोच की विभिन्न स्थितियों में कर-भार का विवर्तन क्रेताओं व विक्रेताओं के बीच कितना होगा, इसे हम रेखाचित्र 11.8 से स्पष्ट कर सकते हैं।

चित्र में SS, SISI, SIS, रेखायें पूर्ति की लोच की विभिन्न स्थितियों को व्यक्त करने वाली हैं और DD माँग रेखा है। चित्र में SS पूर्ति वक्र कम लोचदार या बेलोच है। जब वस्तु पर KK1 कर लगाया जाता ६ तब इसमें से KA करों का विवर्तन किया जाता है और शेष KA कर उत्पादक स्वयं देता है, जो उपभोक्ताओं के भार से अधिक है। जब वस्त की पूर्ति की लोच SS, अधिक लोचदार होती है तब कविवर्तन की स्थिति पहले से बदल जाती है। अब करों का भार विक्रेता पर कम और उपभोक्ताओं पर  अधिक होता है। चित्र के अनुसार SS पूर्ति पर उत्पादक AK कर-भार को वहन करता है, जबकि उपभोक्ताओं की ओर AK के बराबर कर विवर्तित कर दिया जाता है।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि ज्यों-ज्यों पूर्ति की लोच बेलोच होती जायेगी त्यों-त्यों करों का विवर्तन कम होगा, और पूर्ति की लोच के बढ़ने के साथ-साथ करों का विवर्तन भी अधिक होगा।

संक्षेप में, किसी वस्तु पर लगाये गये कर का प्रत्यक्ष मौद्रिक भार क्रेता और विक्रेता के बीच उस वस्तु की माँग व पूर्ति की लोच के अनुपात में विभाजित किया जाता है। डॉ० डाल्टन (Dalton) के अनुसार, “सारांश यह है कि वस्तु की पूर्ति कम करके विक्रेता कर का भार क्रेता पर डालना चाहता है। माँग कम करके क्रेता कर का भार विक्रेता पर डालना चाहता है। इन दो प्रकार के व्यक्तियों में जो अधिक योग्य होता है, उसी के अनकल परिणाम होता है।”

(3) कर भार तथा उत्पत्ति के नियम (Laws of Returns and Incidence)-उत्पत्ति के क्षेत्र में तीन नियम क्रियाशील होते हैं

(i) जब किसी वस्तु का उत्पादन क्रमागत उत्पत्ति हास अथवा क्रमागत वर्द्धमान लागत नियम के अन्तर्गत हो रहा है तो कर का भार क्रेताओं तथा उत्पादक/विक्रेताओं दोनों पर पड़ता है। उत्पत्ति हास नियम के अन्तर्गत जैसे-जैसे उत्पादन बढ़ाया जाता है वैसे-वैसे प्रति इकाई उत्पादन लागत में वृद्धि होती जाती है। इसी प्रकार उत्पादन घटाने पर प्रति इकाई उत्पादन लागत कम होती जाती है। माना किसी वस्त पर कर लगाया जाता है तो कर लगने से वस्तु के मूल्य में वृद्धि हो जायेगी तथा मूल्य बढ़ने से वस्तु की माँग कम हो जायेगी। माँग में कमी होने से उत्पादक भी वस्तु का उत्पादन कर कर देंगे जिससे वस्तु की प्रति इकाई उत्पादन लागत घट जायेगी। अतः उत्पत्ति हास नियम के क्रियाशील रहने पर यदि किसी वस्तु पर कर लगाया जाता है तो इससे वस्तु के मूल्य में कर राशि की तुलना में कम वृद्धि होती है। इस स्थिति को चित्र नं0 11.9 से स्पष्ट किया गया है

(ii) जब किसी वस्तु का उत्पादन क्रमागत उत्पत्ति (लागत) समता नियम के अनुसार हो रहा है तो कर का पूर्ण भार उपभोक्ताओं को सहन करना होता है। जैसा कि चित्र नं0 11.10 से स्पष्ट है

प्रारम्भिक मूल्य = QIP2                 कर की मात्रा = P2PI

कर के बाद मूल्य = QP1               मूल्य में वृद्धि = P2P1

(iii) जब किसी वस्तु का उत्पादन उत्पत्ति वृद्धि नियम के अन्तर्गत हो रहा है तो एक सीमा तक उत्पादन में वद्धि के साथ-साथ प्रति इकाई लागत घटती जाती है। ऐसी स्थिति में यदि उत्पादित वस्तु पर लगाया जाता है तो इससे वस्तु का मूल्य बढ़ेगा, माँग कम होगी तथा उत्पादन में भी कमी आयेगी। पान के कम होने से वस्तु की लागत पहले से अधिक बढ़ जायेगी तथा वस्तु के मूल्य में कर की राशि अधिक वद्धि हो जायेगी तथा करों का अधिकांश भार क्रेताओं पर पड़ेगा। अतःजब किसी वस्त का पादन क्रमागत उत्पत्ति वृद्धि नियम अथवा क्रमागत लागत हास नियम के अनुसार हो रहा है तो मान-कर्ता मूल्य में कर की राशि से भी अधिक वृद्धि कर देगा और इस प्रकार क्रेता पर कर की मात्रा से भी अधिक भार पड़ेगा

एकाधिकार में करापात

(Tax Incidence Under Monopoly)

एकाधिकार बाजार की वह दशा है जिसके अन्तर्गत वस्तु की पूर्ति पर एक ही उत्पादक या फर्म का अधिकार होता है। इनका उद्देश्य अपनी उत्पादित वस्तु से अधिकतम लाभ प्राप्त करना होता है। एकाधिकारी अपनी वस्तु की कीमत उस बिन्दु पर निर्धारित करता है जहाँ सीमान्त लागत व सीमान्त आगम दोनों बराबर हो जाती है अर्थात MC = MRI एकाधिकारी पर दो प्रकार से कर लगाया जा सकता है-(अ) एकाधिकारी लाभ पर कर (ब) उत्पत्ति की मात्रा के अनुसार कर।

(अ) एकाधिकारी लाभ पर कर (Tax on Monopoly Profits)-इस कर से आशय उत्पादक के लाभ पर एक मुश्त कर लगाना अथवा उसके लाभ के अनुपात में कर लगाना है। इन दोनों दशाओं में एकाधिकारी अपने ऊपर लगे हए कर का विवर्तन नहीं कर पाता और उसे स्वयं ही कर-भार वहन करना पड़ता है। इसका कारण यह है कि एकाधिकारी कर लगने से पहले से ऐसा मूल्य अथवा उत्पादन की मात्रा निश्चित करता है जिससे वह अधिकतम लाभ प्राप्त कर सके। कर लगने के बाद यदि वह उत्पादन को घटाकर कीमत को बढ़ाता है तो वस्त की माँग गिर जाने के कारण उसका कुल लाभ कम हो जाएगा।

एकाधिकारी अपने लाभ पर लगाये कर का विवर्तन क्यों नहीं कर पाता-लाभ पर लगाये गए कर का उत्पादन की मात्रा से कोई सम्बन्ध नहीं होता। अतः एकमुश्त कर लगने से सीमान्त लागत में कोई पाद्ध नहीं होती और सीमान्त लागत वक्र का रूप पूर्ववत रहता है, क्योंकि वह उसकी स्थायी लागत का एक अश बन जाता है, परन्त औसत लागत अवश्य बढ़ जाती है और औसत लागत वक्र का रूप भी बदल जाता है। प्रो० टेलर के अनुसार, “वह कर जो स्थायी लागत को बढ़ाता है, सीमान्त लागतों में कोई नक परिवर्तन नहीं करता।

इस प्रकार हम देखते हैं कि ऐसा कर न ही वस्तु Y4 की बेची जाने वाली मात्रा को और न उसके मूल्य को बढ़ायेगा, क्योंकि उसके कारण न तो सीमान्त लागत ही एकाधिकारी बदलती है और न सीमान्त आगम। इसलिए इस कर को शुद्ध लाभ आगे (उपभोक्ताओं पर) टाला नहीं जा सकता।

रेखाचित्र द्वारा स्पष्टीकरण-चित्र 11.12 में MCER तथा MR की स्थिति पूर्ववत् रहती है, क्योंकि पूर्ति एवं मूल्य की स्थिति में करारोपण से कोई परिवर्तन नहीं होता अर्थात् करारोपण के बाद तथा पूर्व में पूर्ति की मात्रा OLE तथा KL ही रहती है। AC वक्र करारोपण से पहले है तथा ACI करारोपण के बाद का है। कर लगने से पहले एकाधिकारी को प्रति इकाई लाभ KP मिल रहा था, परन्तु कर लगने के बाद प्रति इकाई लाभ घटकर KP रह उत्पादन की मात्रा जाता है। अतः कर राशि के बराबर ही उसके लाभ में चित्र 11.12 कमी हुई है। इस प्रकार स्पष्ट है कि सम्पूर्ण कर भार एकाधिकारी द्वारा सहन किया जाता है।

(ब) उत्पादन की मात्रा के अनुसार कर (Tax in Proportion of Output)-जब उत्पत्ति की मात्रा के अनुपात में कर लगाया जाता है तब एकाधिकारी कर का विवर्तन करने में सफल हो जाता है। इसका कारण यह है कि कर उत्पादन व्यय का अंग बन जाता है। कर लगने पर प्रति इकाई उत्पादन व्यय भी बढ़ जायेगा। सीमान्त उत्पादन व्यय में वृद्धि होने से अब उसकी पुरानी उत्पत्ति की मात्रा तथा पुराने मूल्य पर वस्तु को बेचने में अधिकतम एकाधिकार लाभ प्राप्त नहीं होता वरन् उसे अपनी उत्पत्ति कम करके ऊँचे मूल्य पर बेचने में ही अधिकतम एकाधिकारी लाभ प्राप्त होगा। एकाधिकारी को अधिकतम लाभ उसी समय प्राप्त होता है जब उसका सीमान्त उत्पादन व्यय सीमान्त आय के बराबर हो। इस दशा में सीमान्त उत्पादन व्यय में वृद्धि हो गई है। अतः एकाधिकारी को इस दशा में सीमान्त उत्पादन लागत के बराबर करने के लिए मूल्य को बढ़ाना ही होगा। इस प्रकार एकाधिकारी कर के भार को अपने ग्राहकों पर टाल देता है।

प्रो० टेलर (Prof. Taylor) के अनुसार, “दूसरे वर्ग के कर (उत्पत्ति के अनुपात में लगाये जाने वाले कर) सामान्यतया आगे की ओर विवर्तनशील होते हैं, क्योंकि समस्त लागत एक निश्चित मात्रा में बढ़ जाती है और सीमान्त आगम तथा सीमान्त YA लागत में एक नये बिन्दु पर सन्तुलन स्थापित होता है और MC इस प्रकार वस्तु का मूल्य बेची जाने वाली मात्रा भी नई होती है।”

चित्र 11.13 में कर लगने से पूर्व MC वक्र ने MRF वक्र को L बिन्दु पर काटा। अतः कीमत = KM| कर लगने के बाद यह MC बन जाता है जो MR वक्र को L बिन्दु पर काटता है। अतः नई कीमत KM हो जाती है और मैं उत्पादन OM से घटकर OM1 हो जाता है। अतः एकाधिकारी कर के कुछ भार को उत्पादन घटाकर तथा MR कीमत बढ़ा-कर क्रेताओं पर टालने में सफल हो जाता है।

परन्तु एकाधिकारी कितनी मात्रा में अथवा कितने अंश तक कर का विवर्तन कर सकेगा या अपने ग्राहकों से ले MIM वस्तु की मात्रा सकेगा यह वस्तु की माँग व पूर्ति की लोच तथा उत्पत्ति के नियमों पर निर्भर करेगा।

आयात-निर्यात करों का भार

(Incidence of Import and Export Taxes)

आयात-निर्यात करों का भार प्रत्येक देश में वस्त की माँग की लोच पर निर्भर करता है और उसी के अनुसार करों का भार उत्पादक तथा उपभोक्ताओं के मध्य वितरित होता है।

आयात करों का भार प्रायः अपने देश के लोगों को ही सहन करना पड़ता है। आयात करने वाला देश कर की राशि को उन वस्तुओं के मूल्य में जोड़ देता है जिन्हें वह खरीदता है। अन्त में उपभोक्ताओं को ही इस कर का भार वहन करना पड़ता है। प्रो० फिण्डले शिराज ने ठीक ही कहा है, “आयातों पर लगाये गये करों का भार प्रायः और जान-बूझकर उपभोक्ताओं पर टाल दिया जाता है। आयात कर का भार सदैव उपभोक्ताओं पर ही पड़ता है, ऐसी बात नहीं है। यह उत्पादक पर भी पड़ सकता है। यह आयातित वस्तु की माँग की लोच पर निर्भर करेगा। यदि आयातित वस्तु की माँग की लोच आयात करने वाले देश में बेलोचदार है तथा प्रतिस्थापन वस्तुएँ उपलब्ध नहीं हैं तो ऐसी स्थिति में कर का भार उपभोक्ता पर टाल दिया जायेगा। यदि आयात करने वाले देश में आयातित वस्तु की माँग लोचदार है और उत्पादक के लिए दूसरा कोई बाजार नहीं है तो उत्पादक को उस कर का पूरा भार स्वयं वहन करना पड़ेगा।

आयात कर की तरह निर्यात कर वस्तु को भेजने वाले को देना पड़ता है। विश्व बाजार में प्रतिस्पर्धा की स्थिति होती है तथा कीमत निश्चित दी हुई होती है। इसलिए ऐसी स्थिति में कोई भी निर्यातक देश इनकी कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता। प्रायः कर का भार उसे अपने लाभ में से ही चुकाना होता है। वह कर भार को केवल तब ही विवर्तित कर सकता है, जबकि विश्व बाजार में निर्यातक देश की स्थिति काफी मजबूत हो, उस वस्तु पर उसका एकाधिकार हो तथा उस वस्तु की माँग की लोच इतनी बेलोचदार हो कि मूल्य में वृद्धि होने पर भी माँग में कोई कमी ना आए। निर्यात कर को उपभोक्ताओं पर टालना कम ही सम्भव होता है तथा प्रायः निर्यात कर का भार स्वयं निर्यातक देश को ही वहन करना पड़ता है।

आय कर का भार

(Incidence of Income Tax)

आय कर, अतिरिक्त लाभ कर (Surcharge on Profit) तथा अधिकतम लाभ कर (Super Profit _Tax) आदि प्रत्यक्ष कर होते हैं जिनको जिस व्यक्ति पर लगा दिया जाता है, उसे स्वयं ही इनके भार को

वहन करना पड़ता है। यह दूसरों पर नहीं टाला जा सकता। आय करों के भार का स्पष्ट अध्ययन करने के लिए इसे दो भागों में बाँटा जा सकता है- (i) निजी व्यक्ति की शुद्ध आय पर कर (Tax on the Net Incomes of the Individuais) तथा (ii) व्यापारिक फर्मों की शुद्ध आय पर कर (Taxes on Net Incomes of Business Firms)

1 निजी व्यक्ति की शद्ध आयों पर कर (Taxes on Net Profit of the Individuals)-प्रत्येक व्यक्ति की आय पर जो कर लगाया जाता है उसका भार उसे स्वयं वहन करना पड़ता है, वह उसे दूसरे पर नहीं टाल सकता। इसके निम्न कारण हैं-प्रथम प्रगतिशील आय करों का क्षेत्र सीमित होता है और उनका प्रत्येक पर समान भार पड़ता है। द्वितीय आय कर का भार बचत की हुई आय पर पड़ता है जो न्यायपूर्ण होता है तथा ततीय बाजार की शक्तियाँ इस प्रकार के कर विवर्तन में विपरीत रहती हैं, क्योंकि श्रम बाजार स्थानीय होता है तथा पूर्ति बेलोचदार होती है। ऐसी स्थिति में जब मजदूरी दर बढ़ती है और उस पर कर लगाया जाता है तो वे इसका विरोध नहीं कर सकते। कर भार को दूसरों पर नहीं टाला जा सकता, क्योंकि श्रमिकों की पूर्ति बेलोचदार होती है।

2. व्यापारिक फर्मों की शुद्ध आय पर कर (Taxes on Net Incomes of Business Firms)-इस प्रकार के कर व्यापारिक फर्मों द्वारा कमाये गये शुद्ध लाभ तथा आधिक्य लाभ पर लगाये जाते हैं। शुद्ध लाभ पर लगाये गये कर से तात्पर्य उस कर से है जो फर्म द्वारा अपने श्रमिकों, पूँजी तथा अन्य लागतों को चुकाने के बाद बचाये गये आधिक्य पर लगाया जाता है। इस प्रकार के कर विनियोग तथा उत्पादन को निरुत्साहित नहीं करते, क्योंकि वे आय के आधिक्य पर लगाये जाते हैं। इस प्रकार के कर वस्तुओं की कीमतों में भी कोई परिवर्तन नहीं करते। अतः इस प्रकार के करों को नहीं टाला जा सकता। अल्पकाल में शुद्ध आय पर लगाये गये कर का भार स्वयं फर्म के स्वामियों को ही वहन करना पड़ता है, क्योंकि यहाँ पूर्ति अधिक या बेलोचदार पाई जाती है जो कीमत को प्रभावित नहीं करती। पूर्ण प्रतिस्पर्धा की स्थिति में भी कर भार को दसरों पर नहीं टाला जा सकता, किन्तु एकाधिकार में कर भार। को कुछ हद तक टालना सम्भव होता है, क्योंकि एकाधिकारी का वस्तु की पूर्ति पर नियन्त्रण होता है। एकाधिकारी लाभ पर लगाये गये कर भार को टालना कर की प्रकृति पर निर्भर करेगा। यदि सरकार एकाधिकार की दशा में वस्त की प्रति इकाई बिक्री पर कर लगाती है तो वह टालने में सफल होगा, किन्त यदि इकट्ठी राशि के रूप में कर लगाया जाता है तो उसे स्वयं को ही इस कर का भार वहन करना पड़ेगा अर्थात इसे उपभोक्ताओं पर नहीं टाला जा सकता।

यदि कर किसी विशेष उद्योग या व्यापार के लाभ पर लगाया गया है तो उनमें वहाँ से हटने की प्रवृत्ति पाई जायेगी। ऐसी स्थिति में कर भार वस्तुओं के उपभोक्ताओं पर पड़ेगा। सामान्यतया आय कर का भार स्वयं करदाता को ही वहन करना पड़ता है।

III. बिक्री तथा उत्पादन कर का भार

(Incidence of Sales-Tax and Excise Duty)

दस्तु की बिक्री तथा उत्पादन पर जो कर लगाया जाता है वह वस्तु कर (Commodity Tax) कहलाता है। बिक्री कर वह कर होता है जो वस्तु के विक्रय के समय लगाया जाता है, जबकि उत्पादन कर (Excise-Duty) वस्तु के उत्पादन के समय लगाया जाता है। इस प्रकार के कर भार का विवर्तन वस्तु की माँग एवं पूर्ति की लोच पर निर्भर करता है।

वस्तु की बिक्री या उत्पादन पर जो कर लगाया जाता है उसका भार विक्रेता तथा क्रेता पर क्रमशः वस्तु की माँग की लोच तथा पूर्ति की लोच के अनुपात में वितरित होगा। यदि वस्तु की माँग की लोच तथा वस्तु की पूर्ति की लोच बराबर है तो उत्पादन तथा उपभोक्ता पर कर भार समान रूप से पड़ेगा तथा वस्तु की कीमत में लगाये गये कर की आधी मात्रा में वृद्धि होगी। यदि वस्तु की माँग की लोच, पूर्ति की लोच से अधिक है तो विक्रेता पर कर का भार अधिक पड़ेगा तथा वस्तु की कीमत में बहुत कम वृद्धि होगी, किन्तु यदि वस्तु की माँग की लोच, पूर्ति की लोच से कम है तो ऐसी स्थिति में कर भार क्रेता पर विक्रेता की अपेक्षा अधिक पड़ेगा तथा फलस्वरूप वस्तु की कीमत में अत्यधिक वृद्धि होगी। इसके अतिरिक्त कर विवर्तन का क्षेत्र उत्पत्ति के नियम, करों की प्रकृति तथा बाजार स्थिति पर निर्भर करेगा।

साधारणतया बिक्री कर तथा उत्पादन कर का विवर्तन आगे की ओर होता है, परन्तु विपरीत दिशा में भी कर विवर्तन सम्भव है। यदि वस्तु की माँग की लोच अधिक है तो कर भार विक्रेता पर अधिक पड़ेगा। इसके विपरीत यदि वस्तु की पूर्ति की लोच अधिक है तो कर भार क्रेता पर अधिक पड़ेगा। यदि क्रेता की वस्तु की माँग लोच बेलोचदार है तो विक्रेता कर को मूल्य में जोड़कर क्रेता पर कर भार टालने में सफल हो जाते हैं।

मृत्युकर का भार

(Incidence of Death Duty)

मृत्यु कर (Death Duty) व्यक्ति की मृत्यु उपरान्त छोड़ी गई चल एवं अचल सम्पत्ति पर लगाया जाता है, किन्तु इसकी एक निश्चित सीमा होती है। मृत्यु कर दो प्रकार से लगाये जाते हैं-(i) जायदाद कर (Estate Duty) तथा (ii) उत्तराधिकारी कर (Inheritance Tax)| जायदाद कर मरने वाले व्यक्ति की चल व अचल सम्पत्ति के कुल मूल्य पर बँटवारे के होने से पूर्व लिया जाता है, जबकि उत्तराधिकारी कर उत्तराधिकारियों को प्राप्त होने वाली सम्पत्ति पर लगाया जाता है। इसमें कर चल व अचल सम्पत्ति के कुल मूल्य पर नहीं लगाया जाता है। अब प्रश्न उठता है कि मृत्यु कर का भार किसको वहन करना पड़ता है? मृतक व्यक्ति को या सम्पत्ति के उत्तराधिकारी को। मृतक व्यक्ति पर तो कर के भार का प्रश्न ही नहीं उठता, क्योंकि उस व्यक्ति के मरने पर सब ऋणों का भुगतान मान लिया जाता है। कर का स्वरूप चाहे । मृत्यु कर, जायदाद कर या उत्तराधिकार कर हो, उत्तराधिकारी को ही वहन करना पड़ेगा। एक स्थिति में अवश्य कर का भार मरने वाले व्यक्ति पर पड़ेगा यदि उसने कर चुकाने के लिए बीमा करवा दिया हो, क्योंकि इस बीमे की प्रत्येक किस्त का भुगतान वह अपने जीवन काल में ही करता है।

मृत्यु कर प्रत्यक्ष कर है जो समाज कल्याण में न्यायपूर्ण वितरण करता है तथा आर्थिक असमानताओं में कमी करता है, किन्तु यह पूँजी संचय को निरुत्साहित करता है, क्योंकि उसे मालूम है कि जितना वह अपने जीवन में पूँजी संचय करेगा उसका काफी भाग मृत्युपरांत कर के रूप में सरकार के पास चला जायेगा।

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सम्पत्ति कर का भार

(Incidence of Property Tax)

सम्पत्ति पर कर भार समझने के लिए इसको दो भागों में विभाजित करेंगे

(1) उस सम्पत्ति पर लगाया गया कर जिसका उपयोग उपभोग में किया जा रहा हो जैसे-मकान पर लगाया गया कर आदि।

(2) उस सम्पत्ति पर लगाया गया कर जिसका उपयोग विक्रय हेतु उत्पादित की गई वस्तु पर किया जा रहा हो।

यदि उस सम्पत्ति पर कर लगाया जाता है जो उपभोग करने के काम आती है; जैसे मकान पर लगाया गया कर, तो ऐसी स्थिति में कर भार स्वयं सम्पत्ति मालिक को ही वहन करना पड़ता है। वह दूसरे पर कर भार नहीं टाल सकता। यदि वह अपने मकान को किराये पर उठा देता है तो कर भार अल्पकाल में किरायेदार पर नहीं टाला जा सकता, किन्तु दीर्घकाल में अवश्य टाला जा सकता है, क्योंकि दीर्घकाल में मकानों की पूर्ति कम हो जाती है। इसके साथ यदि मकान की माँग बेलोचदार है तो सम्पत्ति मालिक कर का भार किरायेदार पर टालने में सफल हो जाता है। यदि मकान की माँग कम लोचदार है तो कर का पूरा भार स्वयं सम्पत्ति मालिक को ही वहन करना पड़ता है।

यदि उस सम्पत्ति पर कर लगाया जाता है जो उत्पादन के काम आ रही है तो वह कर उत्पादन लागत में सम्मिलित हो जाता है, यह टाला भी जा सकता है अथवा नहीं भी। यदि सम्पत्ति कर को स्थिर लागत; जैसे लाइसेंस फीस आदि के रूप में लिया जाए तो अल्पकाल में इस कर भार को नहीं टाला जा सकता, क्योंकि यह सीमान्त लागत को प्रभावित नहीं करता और वस्तु की विक्रय के अधिकतम लाभ (सीमान्त लागत = सीमान्त आगम) पर कोई प्रभाव नहीं डालता। अतः कर का पूरा भार सम्पत्ति के । उपयोग करने वाले को ही वहन करना पड़ेगा।

दीर्घकाल में सम्पत्ति कर का कुछ भाग टाला जा सकता है, क्योंकि दीर्घकाल तक सीमान्त फर्म इस कर के भार को सहन नहीं कर सकती और वे उद्योग छोड़कर चली जाएँगी जिसके फलस्वरूप उद्योग का उत्पादन घट जाएगा। इनका परिणाम यह होगा कि वस्तुओं की पूर्ति कम करके वस्तुओं के मूल्य में कर जोड़कर मूल्यों में वृद्धि की जाएगी, जिसका भार टाला जा सकता है। कर भार किस सीमा तक टाला जा सकता है यह माँग तथा पूर्ति लागत परिवर्तन पर निर्भर करेगा। यदि वस्तु की पूर्ति सापेक्षिक लोचदार तथा माँग सापेक्षिक बेलोचदार है तो कर का अधिकतर भार टाला जा सकता है।

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भूमि कर का भार

(Incidence of Land Tax)

भूमि पर कर तीन रूपों में लगाया जा सकता है

(अ) आर्थिक लगान पर कर-यदि कर आर्थिक लगान के आधार पर लगाया जाता है तो उसका भार भूमिपति पर पड़ता है। इसका कारण यह है कि आर्थिक लगान एक प्रकार का आधिक्य है जो कि उत्पादित वस्तुओं के मूल्य में सम्मिलित नहीं होता। मिल के अनुसार, “भूमि कर का भार विवर्तन नहीं किया जा सकता, क्योंकि भूमि कर स्वामियों के ऊपर पुराना कर होता है, पुराने कर का कोई भार नहीं होता।”

(ब) फसल के अनुसार कर-फसल के अनुसार कर लगने पर कर लागत का एक अंश होता है और उसे उपभोक्ता को सहन करना पड़ता है।

(स) उपज की मात्रा पर कर-भूमि की उपज के आधार पर लगने वाले कर का विवर्तन वस्त की माँग की लोच के ऊपर निर्भर करता है। माँग लोचदार होने पर कर भार कृषक को तथा माँग बेलोचदार होने पर कर भार उपभोक्ताओं को सहन करना पड़ता है।

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परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(Expected Important Questions for Examination)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions)

प्रश्न 1. कर भार से क्या आशय है ? कर भार के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।

What is meant by incidence of tax ? Discuss the various theories of incidence of tax.

प्रश्न 2. कराघात तथा करापात में अन्तर कीजिये। कर विवर्तन को प्रभावित करने वाले प्रमख घटकों की विवेचना कीजिये।

Distinguish between incidence of tax and impact of tax. Discuss the main factors which influence the incidence of tax.

प्रश्न 3. पूर्ण प्रतियोगिता की अर्थव्यवस्था में कर-भार का विवेचन कीजिये।

Discuss the problems of incidence of taxation under a competitive economy.

प्रश्न 4. कर-विवर्तन से क्या आशय है ? कर-विवर्तन के विभिन्न सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिये।

What do you understand by Shifting of Taxes ? Discuss the various Theories regarding the Shifting of Taxes.

प्रश्न 5. “किसी वस्तु पर लगाये गये कर का प्रत्यक्ष आर्थिक भार क्रेता और विक्रेता के बीच उस वस्तु की माँग और पूर्ति की लोच के अनुपात में विभाजित किया जाता है।” (डाल्टन) विवेचना कीजिये।

“The direct money burden of Tax imposed on any object is divided between the buyers and the sellers in the proportion of the elasticity of supply of the object taxed to the elasticity of demand for it.” (Dalton) Discuss.

प्रश्न 6. कर भार से क्या आशय है ? निम्नांकित स्थितियों में कर भार को स्पष्ट कीजिये-

(अ) एकाधिकार में कर-भार,

(ब) आयात-निर्यात करों का भार,

(स) आय करों का भार।

What is meant by incidence of tax ? Discuss the incidence of tax under the following conditions—

(a) Indigence under monopoly,

(b) Incidence of taxes on Import and Export,

(c) Incidence of taxes on income.

प्रश्न 7. कर विवर्तन पर पूर्णतया लोचदार एवं पूर्णतया बेलोचदार माँग के प्रभाव को समझाइये।

Explain the effect of perfect elastic and perfectly inelastic demand on tax shifting.

प्रश्न 8. करापात और कर विवर्तन पर माँग की लोच तथा पूर्ति की लोच के प्रभावों की विवेचना कीजिये।

Discuss the effects of elasticity of demand and elasticity of supply on tax incidence and tax shifting.

Incidence Taxation shifting Tax

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions)

प्रश्न 1. कराघात और करापात में अन्तर बताइये।

Distinguish between the incidence of tax and impact of the tax.

प्रश्न 2. कर-विवर्तन से क्या आशय है ?

What is meant by shifting of tax ?

प्रश्न 3. कर-विवर्तन तथा कर-वंचन में क्या अन्तर है ?

What is the difference between tax-shifting and tax-evasion ?

प्रश्न 4. कर-विवर्तन के प्रसरण सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिये।

Explain the Diffusion theory of tax shifting.

प्रश्न 5. कर-विवर्तन का आधुनिक सिद्धान्त क्या है ?

What is the modern theory of tax shifting ?

प्रश्न 6. कर-विवर्तन को प्रभावित करने वाले चार प्रमुख घटक बताइये।

State the four important elements which affects tax-shifting.

प्रश्न 7. संक्षेप में कर-विवर्तन पर माँग की लोच के प्रभावों को स्पष्ट कीजिये।

Briefly explain the effect of elasticity of demand on tax-shifting.

प्रश्न 8. एकाधिकार में करापात को स्पष्ट कीजिये।

Explain the tax incidence under monopoly.

प्रश्न 9. उत्पत्ति के नियम किस प्रकार कर भार को प्रभावित करते हैं ?

How laws of returns affect tax incidence.

प्रश्न 10. बिक्री तथा उत्पादन पर कर भार को स्पष्ट कीजिये।

Explain the incidence of sales tax and excise duty.

Incidence Taxation shifting Tax

chetansati

Admin

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