BCom 1st Year Income & National Income Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Income & National Income Study Material Notes in Hindi

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Income & National Income
Income & National Income

BCom 1st Year Business Environment Economic Component Study Material Notes in Hindi

आय एवं राष्ट्रीय आय

[INCOME AND NATIONAL INCOME)

आय की अवधारणा

(CONCEPT OF INCOME)

सामान्य अर्थ में आय मुद्रा या वस्तुओं का वह प्रवाह है जो व्यक्ति, व्यक्ति समूह, फर्म या सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को समय की किसी विशेष अवधि (सप्ताह, मास या वर्ष) में प्राप्त होता है। आय के इस प्रवाह का उद्गम उत्पादक साधनों की बिक्री हो सकता है। इस स्थिति में आय मजदूरी, ब्याज, लगान, लाभ या राष्ट्रीय आय के रूप में प्राप्त होती है। आय उपहार (Gift) के रूप में भी मिल सकती है, जैसे—वसीयत (Will) के माध्यम से। यह हस्तान्तरण भुगतान (Transfer payment) भी हो सकता है, जैसे—बुढ़ापा पेन्शन

आय मुद्रा में प्राप्त हो सकती है या वस्तु में (Kind), जैसे फर्म के मैनेजर या अन्य स्टाफ द्वारा कम्पनी की मोटरगाड़ी का उपयोग। आय के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण बात यह है कि यह सम्पत्ति का प्रवाह (Flow of wealth) है जो किसी आर्थिक इकाई को प्राप्त होती है। आय अर्थशास्त्र की एक महत्वपूर्ण अवधारणा (Concept) है। उत्पादन के साधनों, फर्म तथा उपभोक्ताओं के आचरण के विश्लेषण में इसकी भूमिका प्रभावशाली है।

समष्टि अर्थशास्त्र में सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से समग्र आय के प्रवाह के निर्धारण का विश्लेषण किया जाता है। इस आय को राष्ट्रीय आय कहा जाता है। यह सामाजिक कल्याण का महत्वपूर्ण निर्धारक है। प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय आय आर्थिक विकास का माप है।

राष्ट्रीय आय की विभिन्न धारणाएं

(DIFFERENT CONCEPTS OF NATIONAL INCOME)

राष्ट्रीय आय का अर्थ राष्ट्रीय आय किसी अर्थव्यवस्था में एक वर्ष की अवधि में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के समग्र प्रवाह के मौद्रिक मूल्य का माप है। संक्षेप में, राष्ट्रीय आय सभी आय का योग है :

(1) GDP और GNP—समष्टि अर्थशास्त्र में राष्ट्रीय आय की अनेक धारणाओं का उपयोग किया जाता है। इसकी सर्वाधिक विस्तृत धारणा समग्र घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product-GDP) है।

समग्र घरेलू उत्पाद अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं का वह योग है जिसका उत्पादन किसी देश की सीमा के अन्तर्गत निवासियों तथा गैर-निवासियों (Residents and non-residents) द्वारा किया जाता है।

राष्ट्रीय आय के एक वैकल्पिक माप को सकल राष्ट्रीय उत्पाद (Gross National Product-GNP) कहा जाता है। GNP तथा GDP के अन्तर को निम्न प्रकार से व्यक्त किया जा सकता हैGNP = GDP + गैर-निवासी भारतीयों की विदेशों में उपार्जित आय – घरेलू अर्थव्यवस्था के अन्दर

विदेशियों द्वारा उपार्जित आय

इस प्रकार GNP के संकलन में किसी देश के निवासियों की आय को जोड़ा जाता है—उनकी उस आय को जो देश के अन्दर उपार्जित की जाती है और उनकी उस आय को भी जो देश के बाहर रहकर उपार्जित की जाती है।

इसके विपरीत GDP की गणना में किसी देश के अन्दर रहने वाले सभी व्यक्तियों की आय को जोड़ा। जाता है उनकी जो देश के निवासी (नागरिक) हैं तथा देश के अन्दर उत्पादक कार्य में लगे हैं और उनकी भी जो देश के निवासी नहीं हैं लेकिन इसी देश में उत्पादक कार्य में लगे हैं। इसमें देश के उन निवासियों की आय को शामिल नहीं किया जाता है जिसे विदेशों में उपार्जित किया जाता है।

GDP तथा GNP के अन्तर पर गौर से विचार करने की आवश्यकता है।

किसी देश का GDP उस देश में उत्पादित कुल उत्पत्ति का माप है और यह उस उत्पत्ति द्वारा सृजित कुल आय का भी माप है। किन्तु देश के निवासियों द्वारा प्राप्त कुल आय GDP से भिन्न हो सकती है। एक उदाहरण लें, भारत का GDP भारत में उत्पादित कुल उत्पत्ति द्वारा सृजित कुल आय का माप है, जबकि भारत का GNP भारतीयों द्वारा प्राप्त कुल आय है। निम्न दो कारणों से दोनों में अन्तर सम्भव है :

  • कुल घरेलू उत्पादन अनिवासियों (non-residents) के लिए साधन आय (factor income) का सृजन करते हैं जिन्होंने पूर्व में भारत में निवेश किया था। इस कारण भारत के निवासियों द्वारा प्राप्त आय भारतीय GDP से कम होगी।
  • भारत के अनेक निवासियों को विदेशों में उनके द्वारा किए गए निवेश से आय प्राप्त होती है। इस कारण भारतीयों द्वारा प्राप्त आय GDP से अधिक होगी।

GDP उत्पत्ति का और इसलिए आय का माप है जिसका उत्पादन देश में होता है। इस प्रकार भारत का GDP भारत में उत्पादित कुल उत्पत्ति तथा सेवाओं का माप है, लेकिन भारत का GNP उस आय का माप है जिसे भारत प्राप्त करता है। GDP तथा GNP में अन्तर विदेश से प्राप्त शुद्ध आय (net property income from abroad) के कारण होता है।

GDP से GNP उस समय अधिक होगा जब भारत के निवासियों द्वारा विदेशों में किए गए निवेश से अधिक आय प्राप्त होती है विदेशियों द्वारा भारत में किए गए निवेश से प्राप्त की गई आय की तुलना में। स्पष्ट है कि GDP की तुलना में GNP कम होगा जब विदेशियों को किए गए भुगतान की तुलना में विदेशों से प्राप्त भारतीयों की आय कम होगी। सामान्यतः उधार ली गई राशि की तुलना में अगर कोई देश कम मात्रा में ऋण प्रदान करता है तो उसका GNP उसके GDP की तुलना में कम होगा। इसके विपरीत जब कोई देश ऋण अधिक देता है तथा उधार कम लेता है, उसके GDP से उसका GNP अधिक होगा।

(2) NDP और NNPGDP से घिसावट (Depreciation) को घटाकर शुद्ध घरेलू उत्पाद (Net Domestic Product-NDP) प्राप्त किया जाता है, यथा

NDP = GDP – Depreciation इसी प्रकार

NNP = GNP – Depreciation जहां

NNP = शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (Net National Product)

(3) राष्ट्रीय आय (NI)-NNP से परोक्ष करों को घटाने पर राष्ट्रीय आय प्राप्त होती है। इस प्रकार

राष्ट्रीय आय (NI) = NNP – परोक्ष कर

(4) वैयक्तिक आय (Personal Income-PI) राष्ट्रीय आय कुल मजदूरी, लाभ, लगान तथा ब्याज के योग के बराबर होती है। यह व्यक्तियों की सम्पूर्ण आय का सूचक नहीं है, क्योंकि अर्जित आय का कुछ अंश उपार्जन करने वालों को नहीं मिलता है, जैसे श्रमिकों से लिया जाने वाला सामाजिक सुरक्षा अंशदान, निगम कर, कम्पनियों का अवितरित लाभ। इसलिए व्यक्तियों की आय, जो उन्हें वस्तुतः प्राप्त होती है, की जानकारी के लिए राष्ट्रीय आय से उपर्युक्त मदों को घटाना पड़ेगा। इनके विपरीत व्यक्तियों को कुछ ऐसे हस्तान्तरण भुगतान मिलते हैं, जो उन्हें बिना किसी सेवा के प्राप्त हो जाते हैं। वृद्धावस्था पेन्शन, बेरोजगारी भत्ता, आदि इसके उदाहरण हैं। व्यक्तियों की वैयक्तिक आय की जानकारी के लिए राष्ट्रीय आय में इन्हें जोड़ दिया जाता है। इस प्रकार

वैयक्तिक आय (Personal Income – PI) = राष्ट्रीय आय – सामाजिक सुरक्षा अनुदान – निगम

कर – अवितरित कम्पनी लाभ + हस्तान्तरण भुगतान

(5) वैयक्तिक व्यययोग्य आय (Personal Disposable Income-PDD-समस्त वैयक्तिक आय व्यक्तियों को खर्च करने के लिए उपलब्ध नहीं होती है। व्यक्तियों को जो आय प्राप्त होती है उसका कुछ भाग उन्हें वैयक्तिक कर (Personal taxes), जैसे आय कर, सम्पत्ति कर, व्यय कर, आदि के रूप में सरकार को भुगतान करना होता है। कर के रूप में भगतान की गई आय उन्हें व्यय के लिए उपलब्ध नहीं होती है। अतः व्यय-योग्य आय या व्यय योग्य वैयक्तिक आय प्राप्त करने के लिए व्यक्तिगत करों को घटा देना। पड़ता है। इस प्रकार

PDI = PI-वैयक्तिक कर (Personal Taxes)

राष्ट्रीय आय की गणना

(MEASUREMENT OF NATIONAL INCOME

राष्ट्रीय आय की गणना के लिए तीन विधियों का उपयोग किया जा सकता है, यथा-व्यय विधि, आय विधि तथा उत्पादन विधि या मूल्य संवर्धन विधि।

1 व्यय विधि (Expenditure Method)–व्यय विधि के अनुसार किसी दिए वर्ष में GDP की गणना के लिए उस वर्ष में उत्पादित अन्तिम वस्तुओं की खरीद पर किए गए सभी व्यय को जोड़ा जाता है। अन्तिम उत्पत्ति पर किया गया कुल व्यय (Total expenditure) व्यय के चार बड़े वर्गों का योग है। ये चार वर्ग हैं, उपभोग, निवेश, सरकार तथा शुद्ध निर्यात (Net export)|

  • उपभोग व्यय में एक वर्ष में उत्पादित तथा अन्तिम उपभोक्ताओं को बेची गई सभी वस्तुओं तथा सेवाओं पर व्यय को शामिल किया जाता है। सांकेतिक रूप में इसे C द्वारा व्यक्त किया जाता है।
  • विनियोग व्यय कुल व्यय का वह भाग है जो वर्तमान उपभोग के लिए नहीं किया जाता है अपितु वस्तुओं के उत्पादन पर किया गया वह व्यय है जिसका उपयोग भविष्य में किया जाता है। इस व्यय के लिए I का उपयोग किया जाता है।
  • सरकार वस्तुओं तथा सेवाओं को प्रदान करती है जिनकी जरूरत व्यक्तियों तथा परिवार को होती। है, जैसे—स्वास्थ्य सेवा, सड़क पर रोशनी का इन्तजाम, जल की आपूर्ति, आदि। इन सेवाओं द्वारा भी उत्पत्ति में उसी प्रकार वृद्धि होती है जिस प्रकार मोटरगाड़ी के उत्पादन से होता है। ऐसे व्यय के लिए G का उपयोग होता है।
  • कुल व्यय के चतुर्थ वर्ग का सृजन विदेशी व्यापार द्वारा होता है। शुद्ध निर्यात कुल निर्यात तथा कुल आयात (M) का अन्तर है अर्थात x – M.

व्यय-आधारित GDP इन्हीं चार प्रकार के व्ययों का योग है, अर्थात्

GDP = C + I + G + (X – M)

2. आय विधि (Income Method) उत्पादन के लिए उत्पादन के साधनों जैसे-भूमि, श्रम, पूंजी, प्रबन्धक, आदि को नियुक्त करना होता है। उत्पादन में सहयोग प्रदान करने के लिए इन साधनों को भुगतान करना होता है, यथा—भूमि को लगान, श्रमिकों को मजदूरी, पूंजी को व्याज तथा प्रबन्धक को लाभ के रूप में। आय-आधारित GDP की गणना के लिए उत्पादित साधनों को किए गए सभी भुगतान को जोड़ा जाता है।

उत्पादन के साधनों की आय के योग को साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDP at factor cost) कहा जाता है। राष्ट्रीय आय की इस अवधारणा में कुल उत्पत्ति के उन हिस्सों को बताया जाता है जो आय के रूप में उत्पादन के साधनों को प्राप्त होते हैं।

गैरसाधन भुगतान (Non-factor Payments) वस्तुओं और सेवाओं के लेनदेन पर जो कर लगाए। जाते हैं उन्हें परोक्ष कर कहा जाता है। वे प्रत्यक्ष करों से भिन्न हैं जो व्यक्तियों की आय या सम्पत्ति पर। लगाए जाते हैं, इस बात पर ध्यान दिए बिना कि लोग अपनी आय को किस प्रकार खर्च करते हैं। इसलिए आय-विधि द्वारा राष्ट्रीय आय की गणना में साधन लागत मूल्य पर आधारित कल आय तथा बाजार कीमत पर आधारित कुल आय में अन्तर किया जाता है। परोक्ष करों के कारण बाजार कीमत बढ़ जाती है। कल आय की इन दो धारणाओं में अन्तर इन्हीं परोक्ष करों (तथा सब्सिडी) के कारण ही होता है। (सब्सिडी के कारण बाजार कीमत घट सकती है।)

सामानों की आय के चार वगों (लगान, मजदूरी तथा स्वरोजगार से प्राप्त आय व्याज तथा लाभ है)। अर्थात साधन लागत पर GDP में परोक्ष करों को जोड़ने तथा सब्सिडी को घटाने पर बाजार कीमत पर GDP प्राप्त होता है।

(3) मूल्य संवर्धन विधि (Value Added Method) राष्ट्रीय उत्पादन या उत्पत्ति का सम्बन्ध व्यक्तियों, फर्मों तथा सरकारी संस्थानों द्वारा अर्थव्यवस्था में उत्पादित सभी उत्पत्तियों के जोड़ से है, किन्तु सभी उत्पादन इकाइयों द्वारा उत्पादित सभी उत्पत्तियों का योग राष्ट्रीय आय नहीं है।

उत्पादन कई चरणों में सम्पन्न होता है। कुछ फर्मों द्वारा उत्पादित उत्पत्ति का उपयोग अन्य फर्म साधन (Inputs) के रूप में करते हैं और इन अन्य फर्मों की उत्पत्ति का उपयोग अन्य और फर्म साधन के रूप में करते हैं। सभी फर्मो की कुल बिक्री को जोड़ने पर जो कुल उत्पत्ति प्राप्त होगी, वह राष्ट्रीय उत्पादन नहीं कहला सकता, क्योंकि ऐसा करने पर दोहरी गणना (Double counting) की भूल होगी। इस भूल से बचने के लिए मूल्य संवर्धन (Value Added) विधि का उपयोग किया जाता है। प्रत्येक फर्म का मूल्य संवर्धन उसकी उत्पत्ति का मूल्य तथा अन्य फर्मों से खरीदी गई उत्पत्ति जो इनके लिए इनपुट्स (inputs) के मूल्यों का अन्तर है। किसी फर्म की उत्पत्ति का कुल मूल्य उसकी उत्पत्ति का ग्रास मूल्य (Gross Value) है। इस उत्पत्ति का शुद्ध मूल्य (Net Value) ही मूल्य संवर्धन (Value Added) है।

मूल्य संवर्धन कुल उत्पत्ति में प्रत्येक फर्म का अपना योगदान है, अर्थात् यह बाजार मूल्य की वह मात्रा है जिसका उत्पादन इस फर्म द्वारा किया जाता है। इस अवधारणा के उपयोग से दोहरी गणना की समस्या नहीं उठती है। राष्ट्रीय आय की गणना की यह भी एक विधि है।

राष्ट्रीय आय का मौद्रिक एवं वास्तविक माप (Nominal and Real Measures of GDP)

राष्ट्रीय उत्पत्ति (National Product) किसी देश में उत्पादित सभी वस्तुओं तथा सेवाओं की कुल उत्पत्ति है। राष्ट्रीय उत्पत्ति के अध्ययन का अर्थ है राष्ट्रीय आय (national income) का भी अध्ययन। राष्ट्रीय आय तथा व्यय के चक्रीय प्रवाह में यह दिखाया जाता है कि राष्ट्रीय उत्पत्ति मजदूरी, लाभ तथा लगान के रूप में आय को भी दर्शाता है। इसका यह अर्थ है कि एक ही आर्थिक क्रिया जो उत्पत्ति का उत्पादन करती है, समान मूल्य की आय का भी उत्पादन करती है।

कुल उत्पत्ति की जानकारी के लिए विभिन्न वस्तुओं की मात्रा का समग्र जोड़ लिया जाता है। ऐसे योग के लिए वस्तुओं की विभिन्न मात्राओं (कोयला जो टन में मापा जाता है, कपड़ा जिसकी माप मीटर में होती है, दूध जिसकी माप लीटर में होती है, आदि) को एक सामान्य इकाई (common unit) अर्थात् कीमत या मूल्य में बदला जाता है। इसका यह अर्थ है कि भौतिक उत्पत्ति को उसकी प्रति इकाई कीमत से गुणा किया जाता है और फिर प्रत्येक वस्तु के इस मुल्य को जोड़ा जाता है।

इस प्रकार जो जोड़ (total) प्राप्त होता है वह राष्ट्रीय उत्पत्ति का मौद्रिक मूल्य (money value) है जिसे अक्सर मौद्रिक राष्ट्रीय आय (nominal national income) या प्रचलित कीमत पर राष्ट्रीय आय (national income at current price) कहा जाता है।

मौद्रिक राष्ट्रीय आय में परिवर्तन निम्न कारणों से सम्भव है :

  • भौतिक मात्रा में परिवर्तन के कारण, या
  • वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतों में परिवर्तन के कारण।

अर्थशास्त्री यह जानना चाहते हैं कि राष्ट्रीय आय में परिवर्तन का कितना अंश भौतिक मात्राओं में परिवर्तन के कारण होता है या कीमतों में परिवर्तन के कारण। इसके लिए वास्तविक राष्ट्रीय आय में परिवर्तन जो सिर्फ वस्तुओं तथा सेवाओं की मात्रा में परिवर्तन के कारण होता है तथा कीमत स्तर में परिवर्तन के कारण होने वाले परिवर्तन के मध्य अन्तर किया जाता है। वास्तविक राष्ट्रीय आय की गणना के लिए यह निर्धारित किया जाता है कि यदि कीमत स्थिर रहती तो राष्ट्रीय आय को क्या होता। इसके लिए किसी आधार वर्ष की कीमत के अनुसार प्रत्येक वर्ष में उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं का मूल्यांकन किया जाता है। इस प्रकार वास्तविक राष्ट्रीय आय (real national income) की गणना किसी आधार वर्ष की कीमत स्तर के अनुसार प्रत्येक व्यक्तिगत उत्पत्ति का मूल्य निकाला जाता है। वास्तविक राष्ट्रीय आय को स्थिर कीमत पर राष्ट्रीय आय (national income at constant prices) भी कहा जाता है।

चूंकि इसकी गणना के लिए कीमतों को स्थिर मान लिया जाता है, इसलिए वास्तविक राष्ट्रीय आय में परिवर्तन केवल भौतिक मात्रा में परिवर्तन के कारण ही होता है।।

सघउ (सकल घरेलू उत्पादGDP) : साधन कीमत (Factor Cost), बाजार कीमत (Market Price या चालू कीमत (Current Price) तथा स्थिर कीमत (Constant Price) पर सघउ एक वर्ष के अन्तर्गत किसी देश की सीमा के अन्तर्गत उत्पादित अन्तिम (final) वस्तुओं तथा सेवाओं का कुल मूल्य है। हजारों, लाखों प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं से सघउ का निर्माण होता है, लेकिन सवाल यह उठता है कि मोटरगाडी को सिनेमा के साथ या खाद्यान्न को डॉक्टर की सेवा या पेन्सिल को पर्यटन के साथ कैसे जोड़ा जाए? उत्तर है मूल्य के द्वारा। प्रत्येक वस्तु या सेवा को उसका सापेक्ष महत्व या मूल्य कीमत के रूप में दिया जाता है। यदि एक मोटर साइकिल 35,000 ₹ में बिकती है, तो सघउ में उसे 35,000 ₹ के रूप में जोड़ा जाता है. एक पेन्सिल की कीमत 3 ₹ है तो उसे सघउ में 3₹ के रूप में जोड़ा जाएगा। कहने का तात्पर्य यह है कि प्रत्येक वस्तु या सेवा को उसकी कीमत से गुणा किया जाता है तथा उसका मौद्रिक मूल्य (रुपए, डॉलर या पाउण्ड) को सघउ में शामिल किया जाता है। एक कठिनाई यहां उठती है। अधिकांश सरकारी सेवाओं को कीमत पर बेचा नहीं जाता है। इस दशा में हमें मूल्यांकन की दूसरी विधि को अपनाना पड़ता है और वह है सेवाओं की उत्पत्ति के लिए उपयुक्त इनपुट (inputs) की लागत।

स्थिर एवं चालू कीमत पर सघउ

सघउ की गणना स्थिर कीमत तथा चालू (बाजार) कीमत पर हो सकती है। यदि सघउ का अनुमान प्रचलित बाजार कीमत अर्थात् चालू कीमत पर लगाया जाता है तो उसे बाजार (चालू) कीमत पर सघउ कहा जाता है। इस स्थिति में प्रत्येक प्रकार की वस्तु तथा सेवा का मूल्यांकन प्रत्येक वर्ष की वास्तविक (actual) कीमत पर होता है।

लेकिन हर वर्ष वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतों में परिवर्तन होता है, अधिकतर कीमतें बढ़ती ही हैं। इसलिए मुद्रास्फीति काल में सघउ के मूल्य में वृद्धि केवल कीमतों में वृद्धि के कारण होती है। इसलिए यह जानने के लिए कि वास्तविक उत्पत्ति (real output) में कितना परिवर्तन हुआ है, हमें कीमतों में वृद्धि (या कमी) के प्रभाव का समायोजन करना होगा ताकि सघउ में वृद्धि (या कमी) केवल उत्पत्ति में वृद्धि (या कमी) को परिलक्षित करे, कीमतों में वृद्धि (या कमी) को नहीं। इसके लिए प्रत्येक प्रकार की उत्पत्ति तथा सेवा के मूल्य को प्रत्येक वर्ष किसी आधार वर्ष की कीमत के रूप में व्यक्त किया जाता है। यह स्थिर कीमत पर सघउ है। इस विधि की अवधारणा अत्यन्त सरल है, किन्तु, व्यवहार में लाना काफी कठिन है। इस प्रकार जो सघउ प्राप्त होता है उसे वास्तविक सघउ (real GDP) कहा जाता है।

आर्थिक विश्लेषण के अनेक उद्देश्यों के लिए चालू कीमत पर सघउ तथा उसके घटक (components) ही काफी हैं। इस स्थिति में वस्तुओं और सेवाओं का मूल्यांकन प्रतिवर्ष उनकी वास्तविक कीमतों (actual prices) पर किया जाता है, लेकिन हम जब भी यह जानना चाहते हैं कि वास्तविक उत्पत्ति (real output) घट रही है या बढ़ रही है, स्थिर कीमत पर सघउ की आवश्यकता होगी।

साधन कीमत पर सघउ

सघउ की साधन कीमत पर जानकारी के लिए चालू कीमत पर सघउ से परोक्ष करों (अर्थात् व्यय कर करों) को घटाना तथा सब्सिडी को जोड़ना होगा। साधन कीमत पर सघउ कुल उत्पादन का वह भाग है जो उत्पादन के साधनों को प्राप्त होता है। बाजार (चालू) कीमत में परोक्ष कर भी शामिल होता है, किन्तु परोक्ष कर राजस्व उत्पादन के साधनों को प्राप्त नहीं होता है। दूसरी ओर, सब्सिडी के रूप में दी गई आर्थिक सहायता हस्तान्तरण आय (transfer earnings) जो साधनों को प्राप्त होती है। इसलिए परोक्ष करों को बाजार कीमत पर सघउ से घटाया जाता है तथा सब्सिडी को जोड़ दिया जाता है।

राष्ट्रीय आय के घटक

(Components of National Income)

राष्टीय आय के घटक (components) से तात्पर्य यह है किन-किन स्रोतों से राष्टीय आय प्राप्त होती है। ये घटक राष्ट्रीय आय की गणना विधि के अनुसार भिन्न-भिन्न होते हैं। ऊपर हम लोगों ने देखा कि राष्ट्रीय आय की गणना की दो प्रमुख विधियां हैं—व्यय विधि एवं आय विधि।।

व्यय आधारित सघउ के घटकसघउ (GDP), जो व्यय पर आधारित होता है, चार प्रकार के व्ययों का योग है, यथा,

GDP =C+I+G”+ (X*-M)

जहां = वास्तविक (actual)

आय एवं राष्ट्रीय आय अतः लिप्जे एवं क्रिस्टल का कहना है कि “व्यय आधारित सघउ उपभोग, निवेश, सरकार तथा निवल निर्यात व्यय का जोड़ है जो वस्तुओं तथा सेवाओं के चालू उत्पादन पर किया जाता है।” (GDP expenditure-based in the sum of consumption, investment, government and net export expenditure on currently produced goods and services-Lipsey and Chrystal) इसके अनुसार व्यय आधारित सघउ के निम्न घटक हैं जिन्हें व्यय की श्रेणी के अनुसार बांटा गया है :

  • उपभोग (Consumption)
  • लोक व्यय (Government Expenditure)
  • सकल घरेलू स्थिर पूंजी निर्माण (Gross domestic fixed capital formation)
  • स्टॉक में वृद्धि तथा चालू कार्य (Increase in stocks and work in progress)
  • सकल निवेश (यह सकल घरेलू स्थिर पूंजी निर्माण तथा स्टॉक में वृद्धि एवं चालू कार्य का योग है)—(Gross Investment)
  • निवल निर्यात (Net Exports, ie.,X – M)
  • सांख्यिकी विसंगति (Statistical Error)

उपर्युक्त सूची से स्पष्ट है कि व्यय आधारित सघउ के चार घटक उपभोग पर व्यय, सरकार के व्यय, निवेश तथा निवल निर्यात हैं।

सघउ के घटकों की जानकारी काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे इन घटकों के सापेक्ष महत्व की जानकारी मिलती है। विकसित अर्थव्यवस्था में निजी उपभोग व्यय सबसे बड़ा घटक होता है, किन्तु विकासशील अर्थव्यवस्था की तुलना में कम बड़ा। विकासशील अर्थव्यवस्था की तुलना में विकसित अर्थव्यवस्था में लोक व्यय तथा सकल निवेश प्रतिशत सघउ में अधिक होता है। अधिकांश देशों का निवल निर्यात ऋणात्मक (Negative) होता है।

आयआधारित सघउ के घटक–बाजार कीमत पर आय-आधारित सघउ मजदूरी, स्वरोजगार से प्राप्त आय, लगान, लाभ तथा सब्सिडी को घटाकर परोक्ष करों का योग है। इस सघउ के निम्न घटक हैं :

  • रोजगार से प्राप्त आय;
  • सकल लाभ:
  • लगान;
  • स्वरोजगार (स्टॉक में वृद्धि को घटाकर);
  • सांख्यिकी की विसंगति।

राष्ट्रीय आय की गणना में साधनों को किए गए भुगतान के चार प्रमुख घटक हैं, यथा-रोजगार से प्राप्त आय, स्वरोजगार से प्राप्त आय, लगान तथा लाभ।

रोजगार से प्राप्त आयइसमें मजदूरी तथा वेतन शामिल हैं। यह श्रम की सेवा के लिए किया गया भुगतान है।

स्वरोजगार से प्राप्त आय इस वर्ग में वह आय शामिल है जो उन लोगों को मिलती है जो किसी संस्था के कर्मचारी नहीं हैं, बल्कि अपनी सेवा या उत्पत्ति को बेचकर प्राप्त करते हैं।

लगान—यह भूमि तथा अन्य साधनों की सेवाओं के लिए किया गया भुगतान है जिन्हें किराए पर लगाया जाता है।

लाभ यह वह निवल व्यावसायिक आय है जो नियुक्त किए गए श्रमिकों तथा भौतिक इनपुट को किए गए भुगतान के बाद बचता है।

लाभ तथा लगान राष्ट्र की पूंजी (भूमि सहित) के उपयोग के लिए किया गया भुगतान है। ।

इन घटकों के विश्लेषण से यह जानकारी मिलती है कि विकसित देशों में राष्ट्रीय आय का सबसे बड़ा स्रोत रोजगार से प्राप्त आय है तथा दूसरे स्थान पर लाभ होता है। अविकसित या विकासशील देशों की स्थिति इससे भिन्न होती है।

निष्कर्ष यह निकलता है कि राष्ट्रीय आय के घटकों के अध्ययन का यह महत्व है कि इससे देश की आर्थिक स्थिति की जानकारी मिल सकती है कि वह विकास के किस चरण में है।

सम्भावित राष्ट्रीय आय

(Potential National Income)

जिस राष्ट्रीय आय का वस्तुतः उत्पादन होता है अर्थात् Actual National Income ऐसा बताती है। कि अर्थव्यस्था क्या करती है अर्थात् वास्तव में कितना उत्पादन करती है। राष्ट्रीय आय की एक अन्य अवधारणा यह है कि यदि उत्पादन के सभी साधनों को पूर्ण रोजगार मिला होता या रोजगार के ऊंचे स्तर पर होता, तो राष्ट्रीय उत्पादन कितना हुआ होता। इस राष्ट्रीय उत्पादन या आय को सम्भावित राष्ट्रीय आय (Potential National Income) या पूर्ण रोजगार के स्तर पर आय (Full-employment income) या रोजगार के उच्च स्तर पर आय (High-employment income) कहा जाता है।।

सम्भावित राष्ट्रीय आय (Potential or full-employment national income) तथा प्रचलित राष्ट्रीय आय (Current GDP) के अन्तर को उत्पत्ति खाई (Output gap) या राष्ट्रीय आय खाई (GDP gap)। कहा जाता है।

राष्ट्रीय आय का महत्व

(Importance of National Income)

राष्ट्रीय आय किसी देश के दीर्घकालीन एवं अल्पकालीन आर्थिक निष्पादन (Economic Performance) का एक महत्वपूर्ण माप है।

प्रति व्यक्ति वास्तविक राष्ट्रीय आय की दीर्घकालीन प्रवृत्ति किसी समाज के जीवन स्तर की दिशा का ज्ञान कराती है। इसमें वृद्धि का अर्थ है जीवन स्तर में सुधार तथा आर्थिक कल्याण में वृद्धि।

राष्ट्रीय आय की अल्पकालीन प्रवृत्ति व्यावसायिक चक्र (Business Cycle) की जानकारी देती है। इसमें ह्रास आर्थिक मन्दी का सूचक है, जबकि वृद्धि आर्थिक समृद्धि का।

राष्टीय आय तथा रोजगार में घना सम्बन्ध है। सामान्यतः राष्ट्रीय आय में वृद्धि की स्थिति में रोजगार के स्तर में भी वृद्धि होती है तथा बेरोजगारी में हास।

राष्ट्रीय समष्टि आर्थिक विश्लेषण का आधार है।

राष्ट्रीय आय किसका माप नहीं करती (What National Income Does not Measure)

किसी दिए वर्ष में राष्ट्रीय आय संगठित बाजार में आर्थिक क्रियाओं के प्रवाह को मापती है, लेकिन अनेक आर्थिक क्रियाएं बाजार के बाहर घटित होती हैं जिन्हें राष्ट्रीय आय नहीं मापती है, यद्यपि इनके द्वारा वास्तविक साधनों का उपयोग होता है तथा वे हमारी आवश्यकताओं को संतुष्ट करती हैं। ऐसी क्रियाओं में प्रमुख निम्नलिखित हैं :

  • अवैधानिक आर्थिक क्रियाएं (Illegal Economic Activities) जैसे-जुआ, वेश्यावृत्ति, नशीली दवाओं का व्यापार, आदि।
  • कालाधन सृजन करने वाली क्रियाएं जिनकी रिपोर्टिग आयकर में नहीं होती है।
  • गैर-बाजार क्रियाएं जैसे—गृहिणी द्वारा गृहकार्य, स्वेच्छा से बिना किसी पारिश्रमिक के कार्य करना, आदि।

भारत में राष्ट्रीय आय की प्रवृत्तियां (Trends in National Income of India)

स्वतन्त्रता प्राप्ति के पूर्व भारत में राष्ट्रीय आय के अनुमान के लिए विशिष्ट एवं व्यवस्थित प्रयास नहीं। किये गये। इस सम्बन्ध में प्रथम प्रयास 1868 में दादाभाई नौरोजी द्वारा किया गया। उन्होंने अपनी पस्तक ‘Poverty and Un-British Rule in India’ में अनुमान किया कि भारतीयों की प्रति व्यक्ति आय 20₹ थी। इसके पश्चात् कई अन्य अर्थशास्त्रियों ने भी राष्ट्रीय आय का अनुमान किया जो निम्न प्रकार के थे:

फिण्डले शिरास (Findlay Shirras) (1911)   49 ₹ प्रति व्यक्ति

वाडिया एवं जोशी (1913-14)             44.30 ₹  प्रति व्यक्ति

डॉ. वी. के. आर. वी. राव (1925-29)         76.00 ₹ प्रति व्यक्ति

1947 में स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् सरकार ने तीव्रतर आर्थिक विकास के आयोजित विकास की रणनीति को अपनाने का निश्चय किया। इसके लिए राष्ट्रीय आय की जानकारी आवश्यक थी। इसलिए 1949 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय आय समिति (National Income Committee) की नियुक्ति प्रोफेसर पी. सी. महालनोबीस (Prof. P.C. Mahalnobis) की अध्यक्षता में की। इस समिति के अन्य दो सदस्य डी. आर. गाडगिल (D. R. Gadgil) तथा वी. के. आर. वी. राव (V. K. R. V. Rao) थे। इस प्रकार पहली बार राष्ट्रीय आय के व्यवस्थित एवं वैज्ञानिक अनुमान की दिशा में कदम उठाया गया। समिति ने 1951 में अपनी प्रथम रपट प्रस्तुत की तथा अन्तिम रपट 1954 में। इस रपट के अनुसार देश की कुल राष्ट्रीय आय 8,650 करोड़ रथी तथा प्रति व्यक्ति आय 246.90 २ अन्तिम रपट में 1950 से 1954 की अवधि के लिए राष्ट्रीय आय के अनुमान प्रस्तुत किए गए। इसके पश्चात् राष्ट्रीय आय के अनुमान के लिए सरकार ने केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन (Central Statistical Organisation-Cso) की स्थापना की जो अब राष्ट्रीय आय का अनुमान नियमित रूप से प्रकाशित करता है।

CSO ने पहले National Income Committee द्वारा प्रयुक्त विधि के द्वारा ही राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाया। यह अनुमान 1948-49 से 1964-65 की अवधि के लिए उपलब्ध है। फिर CSO ने एक संशोधित विधि का उपयोग किया और कई बार आधार वर्ष में परिवर्तन किया-1960-61 से 1970-71, फिर 1980-81, 1993-94, 1999-2000, 2004-05 और अब 2011-12 कर दिया है। CSO ने अर्थव्यवस्था को निम्न वर्गों में विभाजित किया है :

प्राथमिक क्षेत्र (Primary Sector)—कृषि, वन और लकड़ी, मत्स्य, खनन।

द्वितीयक क्षेत्र (Secondary Sector)—विनिर्माण (पंजीकृत तथा अपंजीकृत), निर्माण, बिजली, गैस तथा जल आपूर्ति।

परिवहन, संचार तथा व्यापार (Transport, Communication and Trade)-परिवहन, भण्डारण तथा संचय, रेलवे, अन्य माध्यमों के परिवहन तथा भण्डारण, संचार, व्यापार, होटल तथा रेस्तरां ।

वित्त तथा जमीन (Finance and Real Estate) बैंकिंग तथा बीमा; जमीन, आवास का स्वामित्व तथा व्यावसायिक सेवाएं। लोक प्रशासन एवं प्रतिरक्षा तथा अन्य सेवाएं (Public Administration and Defence and other Services)

राष्ट्रीय आय की गणना की विधियां

किसी देश की राष्ट्रीय आय की गणना के लिए निम्न तीन विधियों का उपयोग किया जा सकता है

(1) उत्पादन विधि (Product Method) इस विधि के द्वारा किसी देश में एक वर्ष की अवधि में उत्पादित अन्तिम (final) वस्तुओं तथा सेवाओं के नेट मूल्य को लिया जाता है। ऐसे सभी मूल्यों का कुल योग राष्ट्रीय आय कहलाता है।

(2) आय विधि (Income Method) इस विधि के द्वारा विभिन्न क्षेत्रों तथा वाणिज्यिक उद्यमों में कार्यरत श्रमिकों की शुद्ध आय के कुल योग द्वारा राष्ट्रीय आय प्राप्त की जाती है। इस प्रकार, राष्ट्रीय आय = कुल लगान + कुल मजदूरी + कुल ब्याज + कुल लाभ।

(3) उपभोग विधि (Consumption Method) इसे व्यय विधि (Expenditure Method) भी कहा जाता है। आय का उपभोग पर व्यय होता है तथा/या बचा लिया जाता है। कुल आय = कुल उपभोग + कुल बचत।

भारत में राष्ट्रीय आय की गणना किसी एक विधि द्वारा संभव नहीं है, क्योंकि आवश्यक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। अतः यहां उत्पादन विधि तथा आय विधि दोनों का उपयोग किया जाता है।

भारत का सकल राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय

(Gross National Income and Per Capita Income of India)

तालिका 4.1 में भारत के सकल राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय को प्रस्तुत किया गया है।

चालू कीमत पर सकल राष्ट्रीय आय 1950-51 में 10,360 ₹ से बढ़कर 2017-18 में 1,64,38,895 करोड़ ₹ हो गया, अर्थात् 1,586 गुना वृद्धि हुई। किन्तु, 2004-05 की स्थिर कीमत पर यह वृद्धि 4.4 गुना हुई-1950-51 में 2,92,996 करोड़ ₹ से बढ़कर 2017-18 में 1,28,35,004 करोड़ ₹। इस अन्तर का कारण है कीमतों में वृद्धि | 2004-05 के आधार वर्ष के आधार पर थोक मूल्य सूचकांक 1950-51 में 6.8 था, जो 2016-17 (दिसम्बर 2017) में बढ़कर 259 हो गया अर्थात् इसमें 30 गुना वृद्धि हुई। इसी के कारण चालू कीमत पर सघउ में बहुत अधिक वृद्धि देखी जाती है, किन्तु वास्तविक वृद्धि दर काफी कम रही है। यही अन्तर प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि में भी देखने को मिलता है—चालू कीमत पर इसी अवधि में 408 गुना वृद्धि जबकि स्थिर कीमत पर अर्थात् वास्तविक वृद्धि मात्र 11.5 गुना।

भारत में राष्ट्रीय आय की वृद्धि दर की तुलना में प्रति व्यक्ति आय में अपेक्षाकृत कम वृद्धि हुई है। इसका कारण यह रहा है कि जनसंख्या में अनुमान से अधिक वृद्धि हुई है। भारत में योजनाकाल में हुई राष्ट्रीय आय की वृद्धि दर को तालिका 4.2 में प्रस्तुत किया गया है।

तालिका 4.2 : औसत वार्षिक वृद्धि दर

प्रथम पंचवर्षीय योजना में चालू कीमतों पर सकल राष्ट्रीय आय की वार्षिक वृद्धि दर मात्र 2.0% तथा स्थिर कीमतों पर 4.0% रही। यह वृद्धि दर उतार-चढ़ावों के साथ ग्यारहवीं योजना में क्रमशः 16.0% तथा 7.8% हो गयी। इसी तरह चालू कीमतों पर प्रथम योजना काल में प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि दर 0.3% से बढ़कर ग्यारहवीं योजना में 14.4% हो गयी। इसी अवधि में स्थिर कीमतों पर प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि दर 2.7% से बढ़कर 6.0% हो गयी।

दसवीं योजना काल से भारत में आर्थिक विकास की दर में अधिक तेजी आयी जो 2007-08 तक बनी रही। तालिका से यह भी स्पष्ट है कि 1990 के दशक के शुरू में आर्थिक सुधारों को अपनाने के कारण आठवीं योजना काल से ही उत्पत्ति की औसत वार्षिक दर पहले की तुलना में काफी बढ़ गई। .

उल्लेखनीय है कि 2005-06 तथा 2007-08 के बीच लगातार तीन वर्षों तक 9 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर रही तथा 2008-09 के वित्तीय संकट से तेजी से उबरने के पश्चात आज भारतीय अर्थव्यवस्था चुनौती पूर्ण दौर से गुजर रही है। स्थिर कीमतों पर भारत की विकास दर 2016-17 में 7.0% तथा वर्ष 2017-18 में 6.6% पर पहुंच गयी। घरेलू संरचनागत तथा बाहरी कारकों के कारण आर्थिक विकास में मंदी आई। 25 वर्षों में पहली बार (1986-87 तथा 1987-88 में) 5 प्रतिशत से कम की विकास दर लगातार दो वर्षों तक देखी गयी।

प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1 राष्ट्रीय आय से आप क्या समझते हैं ? निम्न अवधारणाओं के अन्तर को स्पष्ट करें :

(क) सकल घरेलू उत्पाद तथा सकल राष्ट्रीय उत्पाद;

(ख) सकल घरेलू उत्पाद बाजार कीमत पर तथा सकल घरेलू उत्पाद साधन लागत पर:

(ग) वैयक्तिक आय एवं व्यय-योग्य आय;

(घ) सकल घरेलू उत्पाद एवं निवल घरेलू उत्पाद ।

2. राष्ट्रीय आय की गणना की विभिन्न विधियों की विवेचना करें।

3. भारतीय राष्ट्रीय आय में पिछले 67 वर्षों में वृद्धि की क्या प्रवृत्ति रही है? 4. भारतीय राष्ट्रीय आय की संरचना में हुए परिवर्तनों पर प्रकाश डालें।

लघु उत्तरीय प्रश्न

1 GDP तथाGNP के अन्तर को स्पष्ट करें।

2. सम्भावित राष्ट्रीय आय की धारणा को स्पष्ट करें।

3. मौद्रिक राष्ट्रीय आय तथा वास्तविक राष्ट्रीय आय के अन्तर पर प्रकाश डालें। –

4. भारतीय राष्ट्रीय आय के संरचनात्मक परिवर्तन को स्पष्ट करें।

Income & National Income

chetansati

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