BCom 2nd Year Income Tax Planning of Individual Study Material Notes in Hindi

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BCom 2nd Year Income Tax Planning of Individual Study Material Notes in Hindi

Table of Contents

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Individual  Study Material Notes
Individual Study Material Notes

BCom 2nd Year Cost Accounting Statement Cost And Profit Study Material Notes In Hindi

एक व्यक्ति के लिए करनियोजन

(TAX-PLANNING FOR AN INDIVIDUAL)

भारतीय आय-कर दाताओं में सर्वाधिक संख्या एक व्यक्ति’ (An Individual) करदाताओं की ही है। एक व्यक्ति। के लिये करनियोजन से आशय एक व्यक्ति करदाता द्वारा अपनी आय, विनियोगों अथवा व्यापार स्थल आदि का इस प्रकार नियोजन करना है ताकि बिना कर अपवंचन किये हुए उस व्यक्ति का करदायित्व न्यूनतम हो जाये। एक व्यक्ति करदाता को आय के पांचों शीर्षकों में से किसी एक विशेष शीर्षक या एक से अधिक शीर्षकों से आय हो सकती है। आयकर । अधिनियम में आय के विभिन्न शीर्षकों के अन्तर्गत विभिन्न विकल्प, कटौतियाँ एवं छूटे प्रदान की गई हैं। इसके अतिरिक्त धारा 80 के अन्तर्गत विभिन्न छुटे प्रदान की गई है। इन विभिन्न विकल्पों, कटौतियों एवं छूटों का लाभ उठाकर करदाता। अपना कर-दायित्व वैधानिक रूप से कम कर सकता है। अत: एक व्यक्ति करदाता को विभिन्न शीर्षकों के अन्तर्गत प्राप्त होने वाली करमुक्त प्राप्तियों, छूटों एवं कटौतियों का ज्ञान होना परमावश्यक है तभी वह अपनी कर-योग्य आय एवं कर-दायित्व को न्यूनतम कर पायेगा। संक्षेप में, एक व्यक्ति के लिये कर-नियोजन में निम्नलिखित बिन्दुओं को शामिल किया जाता है

निवासीय स्थिति के लिये करनियोजन

(Tax-planning for residential status)

जैसा कि हम जानते ही हैं कि किसी व्यक्ति का कर-दायित्व उसकी निवास स्थिति से प्रभावित होता है। निवासी व्यक्ति को अपनी प्रत्येक आय पर कर चुकाना होता है चाहे वह आय कहीं पर भी अर्जित, प्राप्त अथवा देय हो।

असाधारण निवासी व्यक्ति को अपनी प्रत्येक भारतीय आय पर तथा भारत में स्थापित पेशों अथवा भारत से नियन्त्रित व्यापारों की आय पर आय-कर चुकाना होता है। वह अन्य विदेशी आयों पर कर चुकाने हेतु दायी नहीं है।

अनिवासी व्यक्ति केवल भारतीय आयों पर ही भारत में कर चुकाने को दायी है। विदेशी आयों पर कर चुकाने को वह दायी नहीं है।

स्पष्ट है कि एक निवासी व्यक्ति करदाता का कर-दायित्व सबसे अधिक है एवं अनिवासी करदाता का सबसे कम। अतः प्रत्येक करदाता को, जहाँ तक सम्भव हो सके, अनिवासी की स्थिति में ही बने रहना चाहिए और उसे वे शर्ते पूरी नहीं करनी चाहिए जिससे कि वह निवासी बन सके। इस सम्बन्ध में कर-नियोजन निम्न प्रकार किया जा सकता है

(i) यदि कोई व्यक्ति अपनी अनिवासी की स्थिति रखना चाहता है तो इस बात का प्रयास करना होगा कि वह गत वर्ष में 181 दिन से अधिक भारत में न रहे तथा सम्बन्धित गत वर्ष से पूर्व के 4 वर्षों में भी 365 दिन से अधिक भारत में न रहे। लेकिन यदि वह गत वर्ष से पूर्व के चार वर्षों में 365 दिन से अधिक भारत में रह चुका है तो उसे ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि वह गत वर्ष में भारत में 60 दिन न रहे।

(ii) यदि कोई व्यक्ति गत वर्ष से पूर्व के चार वर्षों में 365 दिन से अधिक भारत में रह चुका है एवं गत वर्ष में भी उसका भारत में 60 दिन से अधिक रहना अनिवार्य है तो उसे ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि उसका 60 दिन का रहना दो वित्तीय वर्षों में इस प्रकार वितरित हो जाय कि वह गत वर्ष में भारत में 60 दिन से कम रहे।

(iii) यदि कोई करदाता भारतीय नागरिक है और रोजगार के उद्देश्य से विदेश में जाता है तो उसे भारत में गत वर्ष में अधिक से अधिक 181 दिन ही ठहरना चाहिए, तभी वह अनिवासी माना जायेगा।

(iv) एक भारतीय नागरिक जो भारत से बाहर रहता है, किसी गत वर्ष में भारत में किसी भी कार्य हेतु आता है तो उस यह ध्यान रखना होगा कि वह भारत में 182 दिन से कम ही रहे. तभी वह अनिवासी माना जायगा।

(v) उपरोक्त बिन्दु (iii) व (iv) में यदि किसी करदाता की परिस्थिति होमी बनती है कि उसे 182 दिन अथवा 182 दिन से अधिक रहना ही पड़ता है तो सम्बन्धित व्यक्ति को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि वह ऐसी तिथि पर भारत से बाहर जाये अथवा भारत में आये जिससे कि एक गत वर्ष में 31 मार्च तक अधिक से अधिक 181 दिन ही हो और उससे अधिक दिन अगले गत वर्ष में पड़ें।

एक आनवासा व्यक्ति को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि उसकी विदेशी आयों की प्रथम प्राप्ति भारत में न हो बल्कि विदेश में ही हो। विदेशी आयों की प्रथम प्राप्ति विदेश में ही करके बाद में भारत में भेजे जाने की दशा में। अनिवासी को भारत में उस आय पर कर नहीं चुकाना पड़ेगा।

Income Tax Planning

(II) वेतन से आय शीर्षक के सम्बन्ध में करनियोजन

(Tax-planning in relation to salary income)

वेतनभोगी कर्मचारी करदाताओं के लिये कर-नियोजन का विशेष महत्व है। ऐसे करदाता प्रभावी कर-नियोजन के माध्यम से अपने कर-दायित्व को न्यनतम कर सकते हैं। सरकारी सेवाओं में तो नियक्ति की शर्ते एवं वेतन-भत्ते पूर्व निधारित। होते हैं, इसलिये कर्मचारी नियोक्ता द्वारा दिये जाने वाले वेतन को अपनी इच्छानसार मदों के रूप में प्राप्त नहीं कर सकता है, लेकिन निजी क्षेत्र में सामान्यतया बड़े अधिकारियों को कल पारिश्रमिक का प्रस्ताव दिया जाता है. जिसे वे अपनी इच्छानुसार। वेतन भत्तों, प्रॉविडेण्ट फण्ड एवं सुविधाओं के रूप में प्राप्त कर सकते हैं।

वेतन पैकेज से आशय कर्मचारी को नियोक्ता से मिलने वाले कुल पारिश्रमिक को विभिन्न मदों में इस प्रकार विभाजित करना है ताकि करयोग्य वेतन न्यूनतम रहे एवं कर दायित्व भी न्यूनतम रहे। इसके लिये कर मुक्त भत्तों, आंशिक कर मुक्त भत्तों, पूर्ण या आंशिक रूप से कर मुक्त सुविधाओं को प्राथमिकता क्रम में प्राप्त किया जाता है और शेष राशि वेतन के रूप में नकद प्राप्त की जाती है। अत: कर-नियोजन के माध्यम से नियोक्ता द्वारा वेतन पैकेज के प्रस्तावित विभिन्न विकल्पों में से श्रेष्ठ/सर्वाधिक लाभप्रद विकल्प को चुना जा सकता है। वेतन पैकेज का चयन करने के बाद कर्मचारी को जो आय प्राप्त होती है वह यदि कर-मुक्त सीमा से अधिक है, तो अपनी बचत ऐसी योजनाओं में जमा करा सकता है जिन पर आयकर अधिनियम के अन्तर्गत कटौतियाँ या छूटे प्राप्त होती हैं, ताकि कर दायित्व को न्यूनतम किया जा सके।

संक्षेप में, वेतन शीर्षक के अन्तर्गत होने वाली आय के सम्बन्ध में कर-नियोजन करते समय निम्नलिखित बिन्दुओं पर विचार करना परमावश्यक है

(1) जहाँ तक सम्भव हो मँहगाई भत्ते एवं मँहगाई वेतन की राशि को सेवा की शर्तों के अन्तर्गत ही प्राप्त किया जाये, ताकि इनकी प्राप्त राशि को मूल वेतन का भाग माना जा सके। ऐसा होने से न केवल मकान किराये भत्ते, ग्रेच्युटी एवं एक-मुश्त पेंशन राशि के सम्बन्ध में कर-दायित्व न्यूनतम रहेगा वरन् प्रमाणित प्रॉवीडेण्ट फण्ड में नियोक्ता द्वारा प्रदत्त अंशदान के सम्बन्ध में भी अधिकतम छूट प्राप्त हो सकेगी। इसी प्रकार कमीशन भी सेवा की शर्तों के अन्तर्गत कर्मचारी द्वारा की गई बिक्री पर निश्चित प्रतिशत से लेना चाहिए ताकि यह भी मूल वेतन का भाग बन सके और उपर्युक्त के सम्बन्ध में अधिक-से-अधिक छूट मिल सके।

(2) यदि किसी भत्ते की प्राप्त पूरी रकम कर-योग्य है एवं वही भत्ता सुविधा के रूप में प्राप्त होने पर कर-मुक्त है तो भत्ते के स्थान पर नियोक्ता से सुविधा प्राप्त करनी चाहिए। उदाहरणार्थ भोजन भत्ता कर-योग्य है परन्तु कार्य-स्थल पर नाश्ते एवं भोजन की सुविधा कर-मुक्त है। अत: भोजन भत्ते (lunch allowance) के स्थान पर नाश्ते एवं भोजन की सुविधा लेनी चाहिए। कर्मचारी को चिकित्सा भत्ता लेने के स्थान पर चिकित्सा सुविधायें प्राप्त करने को प्राथमिकता देनी चाहिए। चिकित्सा भत्ता कर-योग्य होता है जबकि चिकित्सा सुविधाएँ कर-मुक्त। मनोरंजन भत्ता सरकारी कर्मचारियों की दशा में एक निश्चित सीमा तक कटौती योग्य है जबकि गैर-सरकारी कर्मचारियों को प्राप्त मनोरंजन भत्ते के सम्बन्ध में कोई कटौती नहीं मिलती। अत: गैर-सरकारी । कर्मचारी को मनोरंजन भत्ता नहीं लेना चाहिए उसके स्थान पर उसे मनोरंजन की सुविधाएँ प्राप्त करनी चाहिए। मनोरंजन की सुविधाएँ कर-मुक्त होती हैं। ऐसा करने से उसका कर-दायित्व न्यूनतम रहेगा। संक्षेप में, कर्मचारी। करदाता को ऐसी सुविधाएँ या अनुलाभ प्राप्त करने को प्राथमिकता देनी चाहिए जो कर-मुक्त हैं ताकि उसका कर-दायित्व न्यूनतम रहे।

निम्नलिखित अनुलाभ/सुविधाएँ करमुक्त हैं

(i) चिकित्सा सुविधाएँ (Medical facilities),

(ii) नाश्ते की सुविधाएँ (Refreshment facilities),

(iii) यातायात सुविधाएँ (Conveyance facilities),

(iv) फोन या मोबाइल सुविधा (Telephone or mobile facility),

(v) भोजन (Lunch/Dinner) की सुविधा, परिवार नियोजन की सुविधा (Family Planning Facilities),

(vii) ब्याज-रहित ऋण (interest free loan) की सुविधा 20,000 ₹ की राशि तक,एक व्यक्ति के लिए कर-नियोजन

(viii) रिफ्रेशर कोर्स सुविधा (Refresher course facility),

(ix) शिक्षा सुविधा (Education facility), 1,000 ₹ प्रतिमाह प्रति बच्चा तक,

(x) अन्य कर-मुक्त सुविधाएँ (Other tax-free facilities)

(3) यातायात भत्ता अपने निवास स्थान से कार्यालय आने तथा वापिस घर जाने के लिये 800 २/1,600₹ प्रति माह से अधिक नहीं लेना चाहिए क्योंकि 800₹ प्रति माह (01.04.2015 से 1,600 ₹ प्रतिमाह) तक यातायात भत्ता। कर-मुक्त है। यदि कर्मचारी पूर्णतया अन्धा व शारीरिक रूप से कमर के नीचे से विकलांग हो तो ऐसी दशा में यह भत्ता 1,600 ₹ प्रति माह (01.04.2015 से 3.200 १ प्रतिमाह) तक कर-मुक्त होता है।

(4) बच्चों की शिक्षा का भत्ता 100 प्रति माह प्रति बच्चा (अधिकतम दो बच्चों के लिये) कर-मुक्त है, अतः

नियोक्ता से यह भत्ता उक्त सीमा तक ले लेना चाहिए।

(5) छात्रावास भत्ता 300₹ प्रति माह प्रति बच्चा (अधिकतम दो बच्चों के लिये) कर-मुक्त है, अत: नियोक्ता से यह भत्ता उक्त सीमा तक ले लेना चाहिए।

(6) याद नियोक्ता द्वारा मकान किराया भत्ता अथवा किराया मक्त मकान की सविधा दोनों में से किसी एक को लेने का विकल्प प्राप्त होता है तो उसे दोनों ही दशाओं में कर की गणना करके यह मालूम करना चाहिए कि किस विकल्प में उसका कर-दायित्व न्यूनतम है, उसी विकल्प को स्वीकार करना चाहिए।

(7) किराये से मुक्त मकान के साथ नियोक्ता फर्नीचर, आदि की सुविधा भी प्रदान करता है तो कर्मचारी को इसकी मूल लागत का 10% वार्षिक अथवा यदि फर्नीचर किराये पर लेकर प्रदान किया जाता है तो उसका किराया कर्मचारी की कर-योग्य आय में जोड़ दिया जाता है। अत: कर्मचारी को नियोक्ता से ऋण लेकर फर्नीचर, आदि स्वयं क्रय कर लेना चाहिए।

(8) एक वेतन भोगी कर्मचारी द्वारा नौकरी करने के लिये ऐसी संस्था को प्राथमिकता देनी चाहिए जिसमें प्रमाणित

प्रॉवीडेण्ट फण्ड रखा जाता हो, क्योंकि यदि वह 5 वर्ष की सेवा अवधि से पूर्व ही त्याग-पत्र देकर नौकरी से अलग होता है और दूसरी किसी ऐसी संस्था में नौकरी प्रारम्भ करता है जिसमें प्रमाणित प्रॉवीडेण्ट फण्ड है तो उसकी पूर्व संस्था के प्रॉवीडेण्ट फण्ड का शेष दूसरी संस्था के प्रॉवीडेण्ट फण्ड खाते मे हस्तान्तरित कर दिया जायेगा तथा ऐसी दशा में पूर्व संस्था से प्राप्त प्रॉवीडेण्ट फण्ड पर कोई कर नहीं लगेगा।

(9) प्रमाणित प्रॉवीडेण्ट फण्ड में कर्मचारी का अंशदान वेतन के 12% तक कर-मुक्त होता है। कर्मचारी को चाहिए कि वह नियोक्ता से 12% तक का अंशदान लें भले ही उसे कुछ अन्य कर-योग्य सुविधाएँ छोड़नी पड़ें। कुछ अन्य सुविधाओं के बदले 12% तक अंशदान बढ़ाने से कर्मचारी को अपना कर-दायित्व न्यूनतम करने में मदद मिलेगी।

(10) कर्मचारी को अवकाश-यात्रा अनुलाभ का पूरा उपयोग करना चाहिए। यह सुविधा कर-मुक्त है तथा कर्मचारी बिना कर-दायित्व उत्पन्न किए अधिकतम लाभ प्राप्त कर सकता है।

(11) यदि कर्मचारी को अपने व्यक्तिगत कार्यों के लिये धन की आवश्यकता है तो उसे अग्रिम वेतन लेने के स्थान पर 20,000 ₹ तक का ब्याज-मुक्त ऋण ले लेना चाहिए जिससे उस पर कर-भार न्यूनतम पड़े। अग्रिम वेतन के रूप में प्राप्त की गई राशि को वेतन में शामिल किया जाता है और उस पर कर लगता है जबकि 20,000 ₹ तक ब्याज-मुक्त ऋण कर-मुक्त अनुलाभ है।

(12) सरकारी कर्मचारी की दशा में एक मुश्त पेंशन की प्राप्त राशि कर-मुक्त होती है तथा गैर-सरकारी कर्मचारी की दशा में यह आंशिक कर-मुक्त होती है जबकि नियमित/मासिक पेंशन की प्राप्त पूरी राशि कर-योग्य होती है। अतः कर्मचारी को अपनी पेंशन के बदले अधिकतम राशि एक मुश्त प्राप्त करनी चाहिए।

(13) अवकाश ग्रहण करते समय प्राप्त होने वाली ग्रेच्युइटी की राशि कर-मुक्त होती है। सरकारी कर्मचारियों की दशा में प्राप्त पूरी राशि पूर्णतया कर-मुक्त है तथा गैर-सरकारी कर्मचारियों के लिये दस लाख रुपये तक कर-मुक्त। है। अत: यदि वेतन भोगी कर्मचारी को ग्रेच्युइटी की कोई राशि प्राप्त हई है तो वेतन से आय शीर्षक के सम्बन्ध में कर-नियोजन करते समय प्राप्त ग्रेच्यइटी के सम्बन्ध में कर-मुक्त ग्रेच्युइटी की राशि का भा ध्यान मरख चाहिए।

(14) रिटायरमेन्ट के समय अर्जित अवकाश का नकदीकरण सरकारी कर्मचारियों के लिये पूर्णतया कर-मुक्त है एवं गर सरकारी कर्मचारियों के लिये तीन लाख रुपये तक कर-मक्त है। यदि वेतन भोगी कर्मचारा का आजत। अवकाश क नकदीकरण की कोई राशि प्राप्त हई है तो वेतन से आय शीर्षक के सम्बन्ध में कर-नियाजन करत। समय अजित अवकाश के नकदीकरण के सम्बन्ध में कर-मुक्त सीमा को भी ध्यान में रखना चाहिए।

(15) अपने कर दायित्व को कम करने के लिये कर्मचारी को 1.50,000 तक की बचत करके धारा 80C के अन्तर्गत अनुमोदित विनियोग योजनाओं (जैसे SPF या RPF में स्वयं का अंशदान, P.P.F., N.S.C. जीवन बीमा प्रीमियम, सार्वजनिक बैंकों में 5 वर्ष की स्थायी जमा आदि) में विनियोग करना चाहिए। यह ध्यान रखें कि धारा 80C, धारा 80CCC एवं धारा 80CCD इन तीनों धाराओं के अन्तर्गत कुल मिलाकर 1,50,000₹ का कटाता स्वाकृत की जाती है, परन्तु धारा 80cCD के अन्तर्गत केन्द्रीय सरकार द्वारा या अन्य किसी नियोक्ता द्वारा कर्मचारी के खाते में अंशदान के रूप में जमा की गयी राशि के सम्बन्ध में 1,50,000 ₹ की अधिकतम सामा के अतिरिक्त कटौती स्वीकृत है। इसके अतिरिक्त धारा 80D के अन्तर्गत चिकित्सा बीमा प्रीमियम के सम्बन्ध में 15,000र या 20,000र (कर निर्धारण वर्ष 2016-17 से 25,000 या 30,000२) तक की कटौती का लाभ लिया जा सकता है। विकलांग आश्रित व्यक्तियों के भरण-पोषण एवं चिकित्सा पर हुए व्यय के सम्बन्ध में। (यदि कोई हो तो) धारा 80DD के अन्तर्गत 50,000₹ या 1.00.000₹ कर निर्धारण वर्ष 2016-17 से 75,000 या 1,25,000 २) तक की कटौती का लाभ लिया जा सकता है। इसके अतिरिक्त धारा 80DDB, धारा 800 के अन्तर्गत उच्च शिक्षा हेत लिये गये ऋण के ब्याज के सम्बध में (यदि कोई हो तो), धारा 80G के अन्तर्गत कुछ कोषों एवं पुण्यार्थ संस्थाओं आदि को दिये गये दान के सम्बन्ध में, धारा 80GG के अन्तर्गत रहने हेतु लिये गये मकान के भुगतान किये गये किराये के सम्बन्ध में, धारा 80GGA के अन्तर्गत वैज्ञानिक अनुसन्धान एवं विकास के लिये दिये गये दानों के सम्बन्ध में धारा 80GGB, धारा 80GGC, धारा 80QQB एवं धारा 80U की कटौती का लाभ प्राप्त किया जा सकता है, यदि आवश्यक शर्ते पूरी हो रही हों।

Income Tax Planning

(III) मकानसम्पत्ति से आय के सम्बन्ध में कर नियोजन

(Tax-planning in relation to Income from House Property)

इस शीर्षक की आय के सम्बन्ध में कर-नियोजन करते समय निम्नलिखित बिन्दुओं को ध्यान में रखना चाहिए :

(i) एक से अधिक मकानों का स्वयं के निवास हेतु प्रयोग : यदि करदाता के स्वामित्व में एक से अधिक मकान हैं। जिन्हें वह अपने स्वयं के निवास हेतु प्रयोग करता है तो उसे अधिकतम वार्षिक मूल्य वाले मकान को अपने स्वयं के निवास हेतु प्रयुक्त मकान के रूप में घोषित करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से ही करदाता का आय-कर दायित्व कम रहता है। परन्तु करदाता को स्वयं के निवास हेतु चयन किये जाने वाले मकान का निर्णय करते समय सम्बन्धित मकानों के सम्बन्ध में चुकाये गये नगरपालिका कर एवं ऋण पर दिये गये ब्याज की राशि पर भी विचार करना चाहिए क्योंकि यह दोनों घटक भी करदाता की कर-योग्य आय को प्रभावित करते हैं। शेष सभी मकानों को किराये पर उठाया हुआ माना जायेगा। ऐसी दशा में सम्बन्धित व्यक्ति करदाता को उनमें से एक मकान अपने स्वामित्व में रखना चाहिए एवं शेष मकानों को उसे अपने परिवार के सदस्यों को इस प्रकार हस्तान्तरित कर देना चाहिए ताकि वह धारा 64 के अन्तर्गत न आ पायें अर्थात् हस्तान्तरिती की आय करदाता की आय में न जुड़े। ऐसा करने पर वह एक ही मकान का स्वामी रहेगा। दूसरे मकान या मकानों के स्वामी उसके परिवार के सदस्य हो जायेंगे और सभी मकानों को निवास हेतु प्रयुक्त मानकर उनका वार्षिक मूल्य शून्य हो जायेगा। उदाहरण के लिये, यदि एक व्यक्ति अपने दो मकानों को स्वयं के निवास हेतु प्रयोग करता है। ऐसी दशा में उसकी इच्छानुसार एक मकान की आय तो कर-मुक्त होगी एवं दूसरा मकान किराये पर उठाया हुआ माना जायेगा। यदि वह व्यक्ति किराये पर उठाया हुआ माने गये मकान को बिना उचित प्रतिफल लिये अपनी पत्नी को हस्तान्तरित कर दे तो भी वही उस मकान का स्वामी माना जाता है और उसे मकान हस्तान्तरित करने से कोई लाभ नहीं होगा। यदि वह व्यक्ति इस मकान को बिना उचित प्रतिफल लिये अपने पुत्र-वधू को हस्तान्तरित कर दे तो हस्तान्तरणकर्ता मकान का स्वामी नहीं माना जायेगा। इस मकान से होने वाली आय पुत्र-वधु के हाथों में कर-योग्य होगी और इसे हस्तान्तरणकर्ता की आय में शामिल किया जायेगा। मकान। स्वयं के रहने हेतु प्रयोग किया जा रहा है, अत: इसकी आय शुन्य मानी जायेगी और करदाता की आय में कुछ भी शामिल नहीं होगा, परिणामस्वरूप उसका कर-दायित्व कम हो जायेगा। यहाँ इस व्यक्ति ने किसी प्रकार भी आय-कर अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं किया, परन्तु प्रावधानों की व्याख्या का लाभ उठाते हुए कर-दायित्व कम किया गया है।

(ii) मकानसम्पत्ति का निर्माण या क्रय ऋण लेकर कराना चाहिए क्योकि ऋण पर ब्याज को स्वीकृत व्यय मानते हुए उसकी कटौती प्रदान की जाती है और मकान सम्पत्ति की कर-योग्य आय कम हो जाती है। यदि मकान में स्वयं भी रहना हो तो भी मकान बनवाने या खरीदने के लिये ऋण लेना चाहिए क्योंकि स्वयं के मकान के क्रय/निर्माण हेतु लिये गये ऋण पर देय ब्याज 2,00,000 ₹ तक कटौती योग्य होता है। इस प्रकार स्वयं रहने वाले मकान के सम्बन्ध में 2,00,000 तक की हानि स्वीकत हो सकती है जिसे न केवल अन्य मकानों की आय से वरन् अन्य शीर्षकों की आयों से भी पूरा किया जा सकता है। यदि चालू वर्ष में अन्य शीर्षकों में पूर्ति योग्य आय न हो अर्थात् यदि उसी कर-निर्धारण वर्ष में मकान सम्पत्ति से हानि की पूर्ति न हो सके तो अगले आठ वर्षों में इसकी पूर्ति मकान सम्पत्ति से आय शीर्षक से की जा सकती है। व्यक्ति करदाता को अपना कर-दायित्व न्यूनतम करने के लिये इस प्रावधान का अधिकतम लाभ उठाना चाहिए। मकान निर्माण या क्रय हेतु कभा। भी ऋण अपने मित्र या रिश्तेदार से प्राप्त नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसे ऋण पर ब्याज की कटौती प्रदान नहीं की जाती है। यहाँ पर यह भी उल्लेखनीय है कि ऋण के मूलधन की वापसी पर धारा 80C के अन्तर्गत सकल कुल आय म स कटाता स्वीकृत की जाती है।

(iii) यदि किसी मकान के निर्माण या क्रय हेत विदेश से लिये गये ऋण पर दिये जाना वाला ब्याज भारत के बाहर चुकाना है तो ऐसे ब्याज का भुगतान करते समय उसमें से स्रोत पर आय-कर की कटौती कर लेनी चाहिए, क्योकि यदि इस ब्याज पर स्रोत पर आय-कर की कटौती नहीं की जायेगी तो ऐसे ब्याज हेतु कटौती प्रदान नहीं की जायेगी।

(iv) करदाता के स्वयं रहने में प्रयुक्त सम्पत्ति को कभी भी गत वर्ष में किसी भी अवधि के लिये किराये पर नहीं उठाया जाना चाहिए अन्यथा उस दशा में उस मकान की आय की गणना यह मानकर की जायेगी मानो वह मकान पूरे वर्ष । किराये पर उठाया गया है। परिणामस्वरूप कर-योग्य आय अधिक होगी और कर-दायित्व भी अधिक होगा।

(v) यदि किसी करदाता के पास यह विकल्प हो कि वह अपना मकान किराये पर उठा दे और स्वयं किराये के मकान में रहे तो अपने मकान में ही रहना चाहिए क्योंकि स्वयं के निवास हेतु प्रयोग किये जाने वाले मकान का वार्षिक मूल्य शून्य होता है।

(vi) यदि मकान किराये पर दिया गया है एवं किराये की राशि में बिजली, पानी, लिफ्ट आदि सुविधाओं की राशि भी। सम्मिलित है तो किरायेदार से जो लिखित में अनुबन्ध किया जाए उसमें उन सुविधाओं का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए अन्यथा मकान-सम्पत्ति की आय की गणना करते समय इन सुविधाओं पर किये गये खर्चों की कटौती नहीं मिलेगी।

(vii) यदि किरायेदार से किराये की कुछ राशि वसूल नहीं हुई (unrealised rent) है तो इस सम्बन्ध में यथाशीघ्र कानूनी कार्यवाही कर, मकान-सम्पत्ति की आय में से इसकी कटौती ले लेनी चाहिए।

(viii) यदि मकान पर स्थानीय सत्ता द्वारा कोई कर (सेवा कर सहित) लगाया जाता है तो इसका भुगतान गत वर्ष की समाप्ति अर्थात् 31 मार्च से पूर्व ही कर देना चाहिए, अन्यथा उस गत वर्ष में इसकी कटौती नहीं मिलेगी और कर-भार बढ़ जायेगा।

(IV) ‘व्यवसाय अथवा पेशे के लाभशीर्षक के सम्बन्ध में करनियोजन

(Tax-planning in relation with Profit or Gains of Business or Profession head)

1 व्यापार की स्थापना हेतु क्षेत्र का चुनाव करना चाहिए क्योकि कुछ पिछड़े क्षेत्रों में स्थापित उद्योगों को अधिक कटौतियाँ प्राप्त होती हैं।

2. करनियोजन करते समय व्यवसाय की स्थापना से पूर्व व्यवसाय की प्रकृति का भी ध्यान रखा जाना चाहिए। अलग-अलग प्रकृति के व्यापार को अलग-अलग कटौतियाँ प्राप्त होती हैं।

3. व्यापार के सम्बन्ध में वांछित व्ययों को करने से पूर्व यह देख लेना चाहिए कि उक्त व्ययों की कटौती स्वीकृत हो जायेगी या नहीं। अत: वे ही व्यय करने चाहियें जो स्वीकृत हों तथा साथ-ही-साथ कटौती स्वीकृत होने के लिये वांछित वैधानिक औपचारिकताओं को भी पूरा कर लेना चाहिए। उदाहरणार्थ, कोई भी व्यय जो 10,000₹ से अधिक हो तो उसका भुगतान Account Payee चैक या Account Payee बैंक ड्राफ्ट द्वारा ही करना चाहिए, अन्यथा इसका 100% भाग अस्वीकार कर दिया जायेगा। यदि भगतान माल वाहनों को चलाने. भाडे पर देने या पट्टे पर देने के सम्बन्ध में किया गया है तो यह राशि 10,000₹ के स्थान पर 35,000₹ होगी।

4. यदि एकल व्यवसाय किया जा रहा है और इसके लिये रोकड़ की आवश्यकता है तो मित्रों एवं रिश्तेदारों से उपहार लेने के स्थान पर ब्याज पर ऋण लेना चाहिए, ताकि ब्याज की कटौती मिल सके।

5. व्यापर अथवा पेशे से आय की गणना में ह्रास एक स्वीकृत मद है। यदि कोई सम्पत्ति गतवर्ष में कम से कम 180 दिन प्रयोग हुई है तो उस पर पूरे वर्ष का ह्रास प्रदान किया जाता है। अत: नई मशीन या सम्पत्ति इस प्रकार से तथा। ऐसे समय पर क्रय करनी चाहिए जिससे वह गत वर्ष में कम से कम 180 दिन कार्य करे। जो सम्पत्ति 180 दिन से। अधिक प्रयोग में आती है, उस पर हास की दर का शत-प्रतिशत हास स्वीकत होता है अन्यथा ह्रास का दर का। 50% हा स्वीकृत होगा। अतः ह्रास का पूरा लाभ उठाने हेत सम्पत्ति का प्रयोग गत वर्ष की समाप्ति तक 180 दिन से अधिक हो जाना चाहिए।

6. अर्थदण्ड एवं रिश्वत आदि अवैधानिक भुगतानों से बचना चाहिए क्योंकि इनकी छूट नहीं मिलती है।

7. यदि सस्ती दर पर ऋण मिलता हो, तो ऐसा ऋण लेना एवं अपना धन दसरी बचत योजनाओं में जमा कराना, ताकि दोहरा लाभ प्राप्त हो सके।

8. कार आदि वाहन व्यापार की सम्पत्तियों के रूप में क्रय करना, क्योंकि व्यापार से सम्बन्धित इन वाहनों के व्यय एवं हास स्वीकृत व्यय के रूप में कटौती योग्य होते हैं।

Income Tax Planning

(V) पूँजी लाभ के सम्बन्ध में करनियोजन

(Tax-planning in relation of Capital Gains)

(1) जहाँ तक सम्भव हो सके, पूँजी सम्पत्तियों का ऐसी तिथि पर विक्रय किया जाना चाहिए जिससे उनसे उत्पन्न/अर्जित होने वाला पूँजी लाभ दीर्घकालीन पूँजी लाभ हो क्योंकि दीर्घकालीन पूँजी लाभ की गणना करने के लिये सम्पत्ति की प्राप्ति की लागत एवं सम्पत्ति में सुधार की लागत को स्फीति सूचकांक (C.LL) के आधार पर। बढ़ा दिया जाता है। परिणामस्वरूप दीर्घकालीन पूँजी लाभ की रकम न केवल कम आती है, वरन् दीर्घकालीन पूँजी लाभों पर कर भी कम दर से लगाया जाता है।

(2) अर्जित/प्राप्त दीर्घकालीन पूँजी लाभ पर देय कर से बचने के लिए धारा 54,548, 54D, 54EC, 54F एवं 54G के अन्तर्गत कर-मुक्ति का लाभ उठाने के लिये प्राप्त पँजी लाभ की रकम को निर्धारित अवधि में अनमोदित (वांछित) सम्पत्ति, बॉण्डस आदि में विनियोजित कर देना चाहिए, परन्तु ऐसी सम्पत्तियों/बॉण्डस आदि को प्राप्ति की तिथि से 3 वर्ष के अन्दर-अन्दर विक्रय/हस्तान्तरित नहीं करना चाहिए अन्यथा पूर्व में कर-मुक्त किया गया पूँजी लाभ रद्द हो जायेगा एवं फिर से कर-योग्य माना जायेगा।

(3) जिन सम्पत्तियों के सम्बन्ध में करदाता को ह्रास स्वीकृत है, उन सम्पत्तियों के हस्तान्तरण पर होने वाला पूँजी लाभ धारा 50 के अन्तर्गत सदैव अल्पकालीन पूँजी लाभ होता है। इस सम्बन्ध में अर्जित अल्पकालीन पूँजी लाभ पर देय कर से बचने के लिये अर्जित हए पूंजी लाभ की राशि के बराबर या उससे अधिक मूल्य की कोई अन्य सम्पत्ति, विक्रय की गई सम्पत्ति के उसी खण्ड/समूह में कय कर ली जाये। ऐसी सम्पत्ति सम्बन्धित गत वर्ष में ही क्रय की जानी चाहिए।

(4) यदि किसी सम्पत्ति पर संयुक्त स्वामित्व हो तो पहले उस सम्पत्ति का विभिन्न स्वामियों में बँटवारा करना चाहिए। इसके बाद ही उक्त सम्पत्ति को विक्रय करना चाहिए।

(5) यदि करदाता अपने कुछ अंशों का विक्रय करना चाहता है तो उसे अपने अंश प्राप्ति की तिथि के 12 माह बाद ही बेचने चाहिए ताकि उसे दीर्घकालीन पूँजी लाभ हो। इसके अतिरिक्त उसे सर्वप्रथम मल अंश बेचने चाहिये क्योकि मूल अंशों की बढ़ी हुई सूचकांक लागत के कारण उन पर दीर्घकालीन पूँजी लाभ कम होगा। बोनस अंशों का विक्रय यदि आवश्यक हो तो, सबसे अन्त में करना चाहिए क्योंकि बोनस अंशों की प्राप्ति लागत शून्य होने के कारण बोनस अंशों के विक्रय प्रतिफल की राशि ही उन अंशों पर पूँजी लाभ होगा। ऐसी दशा में करदाता का कर-दायित्व अधिक होगा।

(6) यदि किसी अंशधारी को अपने अंशों पर कम्पनी से बोनस अंश मिलते हैं और बोनस अंश मिलने के बाद वह तुरन्त कुछ अंश बेचना चाहता है तो उसे मूल अंश बेचने चाहिए ताकि दीर्घकालीन पूँजी लाभ की राहत उसे मिल सके।

(7) यदि अंशधारी सूचीकृत बोनस अंश बेचना चाहता है तो इनके आबण्टन की तिथि से 12 माह के पश्चात् बेचना उचित होगा, क्योंकि ऐसे दीर्घकालीन पूँजी लाभ पर 10% की दर से कर लगेगा।

(8) यदि कोई व्यक्ति किसी कम्पनी के समता अंश अथवा Equity oriented fund के units हस्तान्तरित करता है एवं उक्त हस्तान्तरण पर प्रतिभूति संव्यवहार कर (Security Transaction Tax) दिया गया है तो इस प्रकार अर्जित होने वाले पूंजी लाभ पर निम्नलिखित दर से आय-कर का भुगतान करना होगा

(i) दीर्घकालीन पूँजी लाभ-शून्य [धारा 10(38)]

(ii) अल्पकालीन पूजी लाभ-15% [धारा 111A]

अतः धारा 111 A के अन्तर्गत देय आय-कर से बचने के लिये उपरोक्त वर्णित कम्पनी के समता अंशों अथवा Equity Oriented Fund के Units को दीर्घकालीन पूँजी सम्पत्ति की श्रेणी में आने पर ही हस्तान्तरित करने चाहिये।

(VI) अन्य साधनों से आय के सम्बन्ध में करनियोजन

(Tax-planning in relation to Income from other sources)

1 यदि करदाताओं की सम्बन्धित कर-निर्धारण वर्ष में कुल आय कर-मुक्त सीमा के अन्तर्गत रहने की सम्भावना हो, तो उद्गम स्थान पर कर की कटौती से बचने के लिये ब्याज भुगतानकर्ता के यहाँ फार्म 15G में दो प्रतियों की घोषणा (declaration) प्रस्तुत कर दना चाहिए, ताकि बिना कर की कटोती किये ब्याज का भुगतान प्राप्त हो सके।

2. बैंक में स्थायी जमा पर सम्पूर्ण वित्तीय वर्ष में कुल मिलाकर 10,000₹ (01.04.2018 से वरिष्ठ नागरिक की दशा में 50.0003) से अधिक ब्याज जमा होने पर उद्गम स्थान पर 10% की दर से कर की कटौती की जाती है। इस कटौती से बचने के लिये यदि करदाता की बैंक ब्याज एवं अन्य आय की कुल राशि मिलाकर करमुक्त सीमा से अधिक नहीं हो, तो निर्धारित फार्म (15G अथवा 15H) में बैंक को घोषणा-पत्र प्रस्तुत करना, ताकि ब्याज पर कर की कटौती नहीं की जा सके। यदि उद्गम स्थान पर कर की कटौती हो जाती है और करदाता की आय करयोग्य नहीं है, तो उसे कर की वापसी (Refund) मिल सकती है, लेकिन इसके लिये उसे रिटर्न भरनी होगी तथा वापसी में भी समय लगेगा। अत: इन असुविधाओं से बचने के लिये उसे उपरोक्त उद्घोषणा फार्म भुगतानकर्ता बैंक को भुगतान के पूर्व प्रेषित कर देना चाहिए, ताकि कर की कटौती किये बिना पूरी राशि मिल सके

3. जिन करदाताओं को करमुक्त सीमा से अधिक आय प्राप्त होने वाली हो उनको उद्गम स्थान पर कर की कटौती से बचने के लिये राशि एक ही कम्पनी या फर्म या व्यक्ति के पास जमा नहीं करनी चाहिए, बल्कि विभिन्न व्यक्तियों, कम्पनियों एवं फर्मों के यहाँ इस प्रकार विनियोग करना चाहिए कि प्रत्येक द्वारा करदाता को वर्ष भर में भुगतान किये जाने वाले ब्याज की राशि 5,000 ₹ से अधिक न हो।

4. जिन करदाताओं की कुल कर-योग्य आय इतनी हो कि उन्हें 30% की अधिकतम दर पर आय-कर चुकाना पड़ता है तो उन्हें कर-मुक्त प्रतिभूतियों एवं बॉण्डस में विनियोग करना चाहिए। घरेलू कम्पनी के अंशों पर मिलने वाला लाभांश एवं पारस्परिक कोष के यूनिट्स (Units of Mutual Funds) पर प्राप्त आय कर-मक्त हैं, अत: आय-कर से बचने के लिये घरेलू कम्पनी के अंशों एवं पारस्परिक कोष के यूनिट्स में विनियोग करना चाहिए।

5. यदि उद्गम स्थान पर कर की कटौती की गयी हो तो कटौती करने वाले से निर्धारित फार्म में कर की कटौती का प्रमाण-पत्र प्राप्त कर लेना चाहिए, ताकि काटे गये कर की कटौती का समायोजन हो सके या कर की वापसी के लिये माँग की जा सके।

Income Tax Planning

(VII) अन्य व्यक्तियों की आय करदाता की आय में शामिल

किये जाने के सम्बन्ध में करनियोजन

(Tax-planning in relation to Clubbing of Income)

(1) अव्यस्क सन्तान को सम्पत्ति हस्तान्तरित करने के स्थान पर वयस्क पुत्रों अथवा पुत्रियों के नाम हस्तान्तरित करना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से उक्त सम्पत्ति की आय हस्तान्तरण करने वाले व्यक्ति की आय न मानी जाकर उन्हीं की आय मानी जाती है जिनको सम्पत्ति हस्तान्तरित की गई है।

(2) एक व्यक्ति द्वारा अपनी सम्पत्ति अपने जीवन-साथी अथवा पुत्रवधु को हस्तान्तरित करने के स्थान पर आश्रित माता-पिता या भाई-बहन के नाम पर हस्तान्तरित करनी चाहिए, क्योकि इनको हस्तान्तरित सम्पत्ति की आय, सम्पत्ति हस्तान्तरित करने वाले व्यक्ति करदाता की आय में शामिल नहीं होगी।

(3) हिन्दू अविभाजित परिवार को सम्पत्ति हस्तान्तरित करने के स्थान पर परिवार के सदस्य के व्यक्तिगत नाम पर सम्पत्ति हस्तान्तरित करनी चाहिए।

(4) यदि अवयस्क, करदाता के व्यापार में सक्रिय सहयोग देता है, तो उसे उचित वेतन दिया जाना चाहिए एवं इस प्रकार दिया जाने वाला वेतन उसकी शारीरिक या मानसिक सेवाओं का पारिश्रमिक होगा और उसकी व्यक्तिगत आय माना जायेगा न कि उसके माता-पिता की आय में शामिल होगा।

(5) यदि एक व्यक्ति अपने अवयस्क बच्चों, जीवन-साथी अथवा पुत्र-वधू को अपनी सम्पत्ति हस्तान्तरित करता है तो उन्हें उक्त सम्पत्ति को ऐसे विनियोगों या बॉण्डों में विनियोग करना चाहिए जिनकी आय कर-मुक्त है। ऐसा करने से सम्पत्ति हस्तान्तरित करने वाले का कर-दायित्व नहीं बढ़ेगा।

(6) यदि अवयस्क बच्चा शारीरिक रूप से विकलांग अथवा मानसिक रूप से अपंग अथवा मन्द बुद्धि है तो ऐसे अवयस्क बच्चे को सम्पत्ति हस्तान्तरित कर देनी चाहिए। इस प्रकार हस्तान्तरित की गई सम्पत्ति से होने वाली आय सम्पत्ति हस्तान्तरित करने वाले माता-पिता की आय में शामिल नहीं की जाती है।

Illustration 1

श्री आनन्द मोहन को आगरा की प्रगति कम्पनी लिमिटेड द्वारा नियुक्ति का प्रस्ताव अग्रलिखित दो वैकल्पिक पैकेज के साथ दिया गया है

Sri Anand Mohan has been offered an employment by Pragati Company Limited Agra with the following two alternative packages :

Income Tax Planning

Illustration 2

श्री अशोक कुमार इलाहाबाद में एक सार्वजनिक कम्पनी में 10,000₹ मासिक वेतन पर प्रबन्धक नियुक्त किये गये हैं। इसके अतिरिक्त उन्हें मूल वेतन का 60% महंगाई वेतन मिलेगा। उन्हें 20,000₹ वार्षिक बोनस भी मिलेगा। उनको यह विकल्प दिया गया है कि निम्नलिखित में से भत्ते अथवा सुविधायें चन लें

(1) उनके तीन बच्चों के लिए 900 प्रति माह शिक्षा भत्ता अथवा कम्पनी के अपने ही विद्यालय में निःशुल्क शिक्षा ऐसे ही किसी अन्य विद्यालय में 200 र प्रतिमाह प्रति बच्चे का औसत व्यय आता है।

(2) बगीचा भत्ता 400 ₹ प्रति माह अथवा माली की मुफ्त सुविधा जिसके लिए कम्पनी 400 ₹ प्रति माह देगी।

(3) चिकित्सा भत्ता 2,000₹ प्रति माह अथवा निजी अस्पताल में किये गये चिकित्सा व्ययों की प्रतिपूर्ति 24,000₹ वार्षिक।

(4) अवकाश यात्रा भत्ता 12,000 र वार्षिक अथवा अवकाश यात्रा रियायत (निर्धारित शर्तों के अनुसार) 12.000₹

(5) मकान किराया भत्ता 3,000 र प्रति माह, जो रकम वह वास्तविक किराये के रूप में देते हैं अथवा किराये से मुक्त मकान की सुविधा जिसका उचित किराया 36,000 ₹ वार्षिक है।

(6) निजी कार्यों के लिए सवारी भत्ता 2,000 प्रति माह अथवा कार्यालय एवं निजी प्रयोग के लिए एक फियेट कार का मुफ्त प्रयोग।

(7) घरेलू नौकर भत्ता 1,000 र प्रति माह अथवा घरेलू नौकर की मुफ्त सुविधा जिसके लिए कम्पनी को 12,000 ₹ वार्षिक का भुगतान करना होगा।

(8) बिजली तथा पानी भत्ता 600 र प्रति माह अथवा इस सम्बन्ध में बिलों का कम्पनी द्वारा भुगतान जो अनुमानतः 7,200₹ प्रति वर्ष होंगे। ये दोनों निजी प्रयोग के लिये हैं। श्री अशोक कुमार को परामर्श दीजिए कि वह कौन सा विकल्प चुने और क्यों?

Sri Ashok Kumar has been appointed as a Manager in a public company at Allahabad on a monthly salary of 10,000. Besides, he will get dearness pay @ 60% of basic pay. He will also get bonus of 20,000 per annum. He has been given the option to choose either the allowances or the facilities given below:

(i) Education Allowance 900 per month for his three children or the facility of free education in the company’s own school. The average expenditure in similar other school works out to 200 per child per month.

(ii) Garden Allowance 400 per month or free facility of a gardener whose pay of 400 per month is to be paid by the company.

(iii) Medical Allowance ₹ 2,000 per month or reimbursement of medical expenses incurred in a private hospital₹ 24,000 per annum.

(iv) Leave Travel Allowance ₹ 12,000 per annum or Leave Travel Concession (as per prescribed conditions) ₹ 12,000.

(v) House Rent Allowance + 3,000 per month which he actually pays as rent or a rent free house of the fair rent of₹36,000 per annum.

(vi) Conveyance Allowance for private use₹2,000 per month or free use of a Fiat car for official as well as private purposes.

(vii) Domestic Servant Allowance @₹ 1,000 per month or free servant facility for which company will have to pay 12,000 per annum.

(viii) Electricity and Water Allowance ₹600 per month or bills on this account to be paid by the company estimated to ber 7,200 per year. Both these are for personal use.

Advise Sri Ashok  Kumar as to which option he should choose and why?

Income Tax Planning

He should choose alternative II as it is better from tax planning point of view.

Illustration 3

मि० जगमोहन एक लोक उपक्रम में 37,000 ₹ प्रति माह वेतन पर नियुक्त हैं। उन्हें कम्पनी द्वारा इन्दौर (जनसंख्या 28 लाख) में किराया मुक्त आवास की सुविधा है। इसका अनुमानित वार्षिक मूल्य 60.000₹ है। कम्पनी उन्हें दो माह के वेतन के बराबर बोनस देती है।

1-4-2017 को उन्होंने एक नया फ्लैट इन्दौर में दस लाख र में खरीदा जिसका वार्षिक किराया मूल्य 60,000 र है। इस मकान के सम्बन्ध में निम्नांकित व्यय हुए

मरम्मत एवं रख-रखाव 3,000 ₹, अग्नि बीमा प्रीमियम 1,000 ₹, मकान क्रय हेतु लिए गए ऋण का ब्याज 1,00,000 र, नगरपालिका कर 8,000 श मि० जगमोहन को दो विकल्प प्राप्त हैं

(i) यदि वे स्वयं के मकान में रहते हैं तो कम्पनी उन्हें 5,000₹ प्रति माह मकान किराया भत्ता देगी।

(ii) यदि वे कम्पनी के मकान में रहते हैं तो उनका मकान 5,000₹ प्रति माह किराए पर दिया जा सकता है।

उन्हें कौन-सा विकल्प चुनना चाहिए?

Mr. Jagmohan is appointed in a Public Sector on the salary₹ 37,000 per month. He is provided a rent-free accommodation by the company at Indore. Its annual rental value is₹60,000. Company gives him bonus equal to two months salary.

He has purchased a new flat for ₹ 10 lakh at Indore on 1-4-2017 which annual rental value is ₹60,000. Expenses in respect of the house are as under :

Repairs and maintenance ₹3,000; Fire insurance premium ₹ 1,000; Interest on loan taken for purchasing of the house ₹ 80,000; Municipal tax ₹8,000. Mr. Jagmohan has two options :

(i) If he resides in the self flat, the company will pay him house rent allowance 5,000 per month.

(ii) If he resides in company’s house, his own flat can be let out for 5,000 per month.

Which option should be chosen by him?

Income Tax Planning

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(EXPECTED IMPORTANT QUESTIONS FOR EXAMINATION)

1 श्री अग्रवाल एक कम्पनी में संचालक हैं। उनको दो विकल्प दिये गये हैं

Mr. Agarwal is a Director in a Company. He has been given two options :

Income Tax Planning

श्री अग्रवाल को कर-निर्धारण वर्ष 2018-19 में कौन-सा विकल्प चुनना चाहिए ?

Which option should Mr. Agarwal choose in assessment year 2018-19 ?

Ans. Taxable Salary : First ₹ 1,54,400 and Second Option ₹ 1,44,900; He should opt for the second package.

2. श्री सुनील दत्त कानपुर में एक निजी कम्पनी में 8,000₹ मासिक वेतन पर प्रबन्धक नियुक्त किये गये हैं। इसके अतिरिक्त उन्हें मूल वेतन का 120 प्रतिशत महंगाई भत्ता मिलेगा। उन्हें यह विकल्प दिया गया है कि निम्नलिखित में से भत्ते अथवा सुविधायें चुन लें1. निजी कार्यों के लिए सवारी भत्ता 1,000 र प्रतिमाह अथवा कार्यालय एवं निजी प्रयोग के लिए एक फीयट कार का मुफ्त प्रयोग।

3. बिजली तथा गैस भत्ता 500 र प्रतिमाह अथवा इस सम्बन्ध में 6,000 र प्रतिवर्ष के अनुमानित बिलों का भुगतान कम्पनी द्वारा किया जायेगा। ये दोनों निजी प्रयोग के लिये हैं।

4. मकान किराया भत्ता 24,000 ₹ वार्षिक। श्री दत्त द्वारा चुकाया गया किराया 30,000 ₹ प्रतिवर्ष अथवा किराये से मुक्त मकान की सुविधा जिसका उचित किराया 24,000 १ वार्षिक है।

5. बगीचा भत्ता 500 र प्रतिमाह अथवा माली की मुफ्त सुविधा जिसे कम्पनी 500 र प्रतिमाह वेतन देगी।

6. उनके तीन बच्चों के लिए 600 र प्रतिमाह शिक्षा भत्ता अथवा कम्पनी के अपने ही विद्यालय में नि:शुल्क शिक्षा। ऐसे ही किसी अन्य विद्यालय में 150 ₹ प्रतिमाह प्रति बच्चे का औसत व्यय आंका गया है।

7. अवकाश यात्रा भत्ता 10,000 ₹ वार्षिक अथवा अवकाश यात्रा रियायत (निर्धारित शर्तों के अनुसार) 10,000 चिकित्सा भत्ता 1,500 र प्रतिमाह अथवा निजी अस्पताल में किये गये चिकित्सा व्ययों की प्रतिपूर्ति 18,000 र वार्षिक

श्री दत्त को परामर्श दीजिए कि वह कौन-सा विकल्प चुनें और क्यों?

Sri Sunil Datta has been appointed as a manager in a private company at Kanpur on a monthly salary of 8,000. Besides he will get dearness allowance @ 120% of his salary. He has been given the option to choose either the allowances or the facilities given below :

(i) Conveyance Allowance for private use ₹ 1,000 per month or free use of a Fiat car for official as well as private purposes.

(ii) Electricity and Gas Allowance ₹ 500 per month or bills on this account to be paid by the company estimated to be 6,000 per year. Both these are for personal use.

(iii) House Rent Allowance ₹ 24,000 per annum. Rent paid by Mr. Datta ₹30,000 per annum or rent free house of the fair rent of 24,000 per annum.

(iv) Garden Allowance 500 per month or free gardener whose pay of 500 per month is to be paid by the company.

(v) Education Allowanceर 600 per month for his three children or free education in the company’s  own school. The average expenditure in similar other school works out to 150 per child per month.

(vi) Leave Travel Allowance ₹ 10,000 per annum or Leave Travel Concession (as per prescribed conditions) 10,000.

(vii) Medical Allowance ₹ 1,500 per month or reimbursement of medical expenses incurred in a private hospital 18,000 per annum. Advise Sri Datta as to which option he should choose and why? Ans. Taxable Salary: Option 2,71,600 and Option II 2,64,400; Mr. Datta is suggested to choose perquisites instead of allowances.

3. मि० हरिमोहन एक लोक उपक्रम में 80,000 ₹ प्रति माह वेतन पर नियुक्त हैं। उन्हें कम्पनी द्वारा इन्दौर (जनसंख्या 28 लाख) में किराया मुक्त आवास की सुविधा है। इसका अनुमानित वार्षिक मूल्य 1,50,000 ₹ है। कम्पनी उन्हें दो माह के वेतन के बराबर बोनस देती है। 1-4-2017 को उन्होंने एक नया फ्लैट इन्दौर में दस लाख ₹ में खरीदा जिसका वार्षिक किराया मूल्य 1,50,000₹ है। इस मकान के सम्बन्ध में निम्नांकित व्यय हुएमरम्मत एवं रख-रखाव 7,500 ₹, अग्नि बीमा प्रीमियम 2,500 ₹, मकान क्रय हेतु लिए गए ऋण का ब्याज 2,00,000 ₹, नगरपालिका कर 20,000 ₹ । मि० हरिमोहन को दो विकल्प प्राप्त है(i) यदि वे स्वयं के मकान में रहते हैं तो कम्पनी उन्हें 12,500 ₹ प्रति माह किराया भत्ता देगी। (ii) यदि वे कम्पनी के मकान में रहते हैं तो उनका मकान 12,500 ₹ प्रति माह किराए पर दिया जा सकता है। उन्हें कौन-सा विकल्प चुनना चाहिए?

Mr. Harimohan is appointed in a Public Sector on the salary ₹ 80,000 per month. He is provided a rent-free accommodation by the company at Indore (Population 28 Lakh). Its annual rental value is ₹1,50,000. Company gives him bonus equal to two months salary. He has purchased a new flat for ₹ 10 lakh at Indore on 1-4-2017 which annual rental value is ₹1,50,000. Expenses in respect of the house are as under : | Repairs and maintenance ₹ 7,500; Fire insurance premium ₹ 2,500; Interest on loan taken for purchasing of the house ₹ 2,00,000; Municipal tax ₹ 20,000. Mr. Harimohan has two options : (i) If he resides in the self flat, the company will pay him house rent allowance 12,500 per month. (ii) If he resides in company’s house, his own flat can be let out for 12,500 per month. Which option should be chosen by him ?

Ans. (i) Taxable Total Income 11,20,000 and Tax Liability 1,52,955 and (ii) Taxable Total Income 11,79,000 and Tax Liability 1.71.186. He should live in own flat.

Income Tax Planning

chetansati

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