BCom 2nd year Industrial Disputes Act 1947 Study Material Notes in Hindi

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BCom 2nd year Industrial Disputes Act 1947 Study Material Notes in Hindi

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 Industrial Disputes Act 1947
Industrial Disputes Act 1947

BCom 2nd Year Penalties Procedures Supplemental Study Material Notes in Hindi

औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947

(INDUSTRIAL DISPUTES ACT, 1947)

औद्योगिक विवाद अधिनियम : सामान्य परिचय

(Industrial Disputes Act : General Introduction)

औद्योगिक विवाद अधिनियम का संक्षिप्त इतिहास

(Brief History of Industrial Disputes Act)

सन् 1947 से पहले औद्योगिक विवादों को रोकने के लिये कई अधिनियमों का सहारा लिया गया। सर्वप्रथम 1929 में व्यापारिक संघर्ष अधिनियम बनाया गया। इस अधिनियम के अनुसार विवाद करने वाला पक्ष सरकार को विवाद निपटाने के लिये प्रार्थना पत्र देता था तब एक जाँच अदालत तथा समझौता समिति की स्थापना कर दी जाती थी लेकिन उसके निर्णय का पालन करना आवश्यक नहीं था। अत: यह अधिनियम व्यर्थ रहा और कोई लाभ नहीं दे सका।

तत्पश्चात भारत सुरक्षा कानून की धारा 91 (A) को लागू किया गया जिसके आधार पर सरकार औद्योगिक हड़तालों को रोक सकती थी तथा औद्योगिक विवाद निपटाने के लिये मध्यस्थों को अधिकार दे सकती थी। इन मध्यस्थों का निर्णय दोनों पक्षों को मानना अनिवार्य था लेकिन यह व्यवस्था भी अधिक प्रभावशाली नहीं रही। अतः सन् 1947 में औद्योगिक विवाद अधिनियम पारित किया गया। यह अधिनियम सम्पूर्ण भारतवर्ष में 1 अप्रैल, 1947 से लागू होता है। इसमें 40 धारायें और 5 अनुसूचियाँ हैं। यह अधिनियम सन् 1982 में विस्तृत रूप से संशोधित किया गया। इस अधिनियम में अन्तिम संशोधन अगस्त 1984 में किया गया जब इसमें चार नई अनुसूचियों को और जोड़ा गया। इस तरह कुल पाँच अनुसूचियाँ बनायी गयीं।

प्राक्कथन Introduction)-औद्योगिक विकास ने जहाँ एक ओर देश के आर्थिक एवं सामाजिक विकास के साथ मनुष्य की असीमित आवश्यकताओं को पूरा किया है, वहीं दूसरी ओर श्रमिक शोषण, प्रदूषण, अनुसूचित औद्योगिक स्पर्धा, ऊर्जा संकट, आर्थिक असमानता, औद्योगिक संघर्ष आदि विभिन्न समस्याओं को भी जन्म दिया है । यही कारण है कि औद्योगिक विकास मानवीय सभ्यता के लिये सुखदायक ही नहीं,दुखदायक भी है।

आज के वर्तमान समाज में अधिकांशतः उद्योगों का संचालन धनी वर्गों द्वारा ही किया जाता है जो अपने स्वार्थ के लिये प्रत्येक प्रकार से श्रमिकों का शोषण करने में तत्पर रहते हैं । उद्योगपतियों की इसी भावना के कारण ही औद्योगिक विवादों का जन्म होता है।

Industrial Disputes Act 1947

औद्योगिक विवाद/संघर्ष का आशय एवं परिभाषा

(Meaning and Definition of Industrial Dispute)

साधारण अर्थ में, औद्योगिक विवाद का आशय, औद्योगिक क्षेत्र में कर्मचारी एवं नियोक्ता के मध्य, श्रमिक एवं श्रमिक के मध्य नियोक्ता एवं नियोक्ता के मध्य होने वाले विवाद से है। यह विवाद हडताल तालाबन्दी, सही प्रकार कार्य न करना, शिथिलता से कार्य करना, घेराव, विरोध प्रदर्शन, धरना आदि के रूप में देखा जा सकता है।

परिभाषा (Definition)-“औद्योगिक संघर्षों या विवाद का आशय नियोक्ताओं और नियोक्ताओं के बीच, नियोक्ता और श्रमिक के बीच,श्रमिकों और श्रमिकों के बीच, संघर्ष अथवा मतभेद से है, जो किसी व्यक्ति की नियुक्ति अथवा उसके काम के सम्बन्ध में हो या प्रतिबन्धों या शर्तों के सम्बन्ध में हो।”

-औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 2(K) उपरोक्त परिभाषा के आधार पर प्रौद्योगिक विवाद के सम्बन्ध में निम्नलिखित दो महत्त्वपूर्ण तथ्य सामने आते हैं

(i) विवाद की विद्यमानता (Existence of Dispute) सामान्य रूप से एक विवाद तब उत्पन्न हुआ माना जाता है जब श्रमिक किसी वस्तु या व्यवस्था की माँग करते हैं और नियोक्ता उनकी माँग को ठुकरा देते है। मांग ऐसी होनी चाहिये जिसे नियोक्ता परा करने में समर्थ हों । नाजायज मांग नहीं होनी चाहिये  विवाद उचित होना चाहिये और निश्चित रूप से वास्तविक होना चाहिये। विवाद एक व्यक्तिगत झगड़े या आन्दोलन के रूप में नहीं होना चाहिये। एक औद्योगिक विवाद तभी विद्यमान होता है जबकि वह श्रमिकों द्वारा नियोक्ताओं के साथ उठाया जाता है। विवाद उत्पन्न किये बिना ही माँग खडा करना औद्योगिक विवाद नहीं माना जाता। यदि माँगों को समझौता कार्यवाही के मध्य उठाया गया है तो नियोक्ताओं के समक्ष माँग रखे बिना ही औद्योगिक विवाद विद्यमान माना जायेगा।

(ii) विवाद के पक्षकार (Parties to the Dispute) सामान्यतया औद्योगिक विवाद नियोक्ताओं और श्रमिकों के मध्य उत्पन्न होते हैं। विवादों को स्वयं श्रमिकों द्वारा या उनकी ओर से उनके श्रम संघों द्वारा उठाया जा सकता है। यह बात इस तथ्य पर आधारित है कि श्रमिकों को सामूहिक सौदेबाजी (Collective __ Bargaining) करने का अधिकार है या नहीं। विवादों में श्रमिकों का हित निहित होना चाहिये। यह आवश्यक

नहीं है कि विवादों को रजिस्टर्ड श्रम संघों द्वारा ही उत्पन्न किया जाये। अल्पमत संघ भी विवाद उठा सकते । हैं। इस सम्बन्ध में Rameshwar Manghi & Anr Vs. Management of Sangramgarh Colliery, 1994 का मामला अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।

क्या व्यक्तिगत विवाद, औद्योगिक विवाद समझा जाता है ? (Is Individual dispute Considered | as Industrial dispute?)-अधिनियम की धारा 2-A के प्रावधानों के अधीन व्यक्तिगत विवाद,औद्योगिक विवाद नहीं माने जाते। यदि उनको श्रम-संघ या श्रमिकों की उचित संख्या द्वारा उठाया जाता है तो उन्हें

औद्योगिक विवाद के रूप में विकसित किया जा सकता है। इस सम्बन्ध में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया है कि ‘किसी व्यक्ति से सम्बन्धित विवाद औद्योगिक विवाद नहीं बन सकता है। हितों का सामंजस्य (Community of Interest) होना नितान्त आवश्यक है।’

वह व्यक्ति जिसके साथ विवाद खड़ा किया जाता है ऐसा व्यक्ति होना चाहिये जिसके व्यवसाय या रोजगार में विवाद के पक्षकारों का प्रत्यक्ष रूप से सारवान हित हो।

(iii) विवाद की विषय वस्तु (Subject Matter of Dispute)-औद्योगिक विवाद व्यवसाय या सेवा की शर्तों या श्रम दशाओं से सम्बन्धित होना चाहिये। यदि कोई नियोक्ता स्वयं द्वारा हटाये गये किसी श्रमिक को फिर से सेवा में लेने से मना कर देता है तो यह विवाद श्रमिक के गैर रोजगार (Non-employment of workman) से सम्बन्धित है लेकिन श्रम संघ इस बात से सहमत नहीं हैं वे यह मानते हैं कि यह विवाद श्रमिक के रोजगार से सम्बन्धित है।

(iv) एक उद्योग में विवाद (Disupte in an industry)-औद्योगिक विवाद उत्पन्न होने के लिये यह आवश्यक है कि विवाद एक उद्योग से सम्बन्धित होना चाहिये । उद्योग के न होने पर कोई औद्योगिक विवाद उत्पन्न नहीं होता। Pepraitch Sugar Mills Ltd. Vs. P.S.M. Mazdoor Union, A.I.R. (1957) के मामले में यह निर्णय दिया गया है कि “औद्योगिक विवाद एक विद्यमान उद्योग में ही उत्पन्न हो सकता है, न कि एक बन्द हुये उद्योग में।” (Industrial Dispute can arise only out of an existing industry and not one which is closed)

Industrial Disputes Act 1947

हड़तालें एवं तालाबन्दी

(Strikes and Lockout)

प्रत्येक देश के आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक एवं औद्योगिक विकास में पूँजीपतियों और श्रमिकों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। दोनों ही वर्ग सहयोग के साथ कार्य करते हैं तो देश के प्राकृतिक संसाधनों एवं अन्य संसाधनों का कुशल प्रयोग होता है और वस्तुओं का उत्पादन एवं वितरण प्रभावशाली तरीके से निष्पादित होता है।

लेकिन कभी-कभी पूँजीपति एवं श्रमिक के बीच मतभेद उत्पन्न हो जाता है और औद्योगिक संघर्ष की स्थिति पैदा हो जाती है। पूँजीपति उत्पादन से होने वाले लाभ का एक बड़ा भाग स्वयं लेना चाहते हैं जबकि श्रमिक भी उचित एवं पर्याप्त मजदूरी को प्राप्त करना चाहते हैं। यही मनोवृत्ति आपसी मनमुटाव को जन्म देती

Industrial Disputes Act 1947

हड़ताल

(Strike)

श्रमिक अपने उचित प्रतिफल के लिये या अपनी माँगें मनवाने के लिये हड़ताल का सहारा लेते हैं जबकि पूँजीपति अपने हित के लिये और श्रमिकों के शोषण को बनाये रखने के लिये उद्योगों में तालाबन्दी की घोषणा करते हैं। इस स्थिति में दोनों के बीच संघर्ष उत्पन्न होता है जिससे औद्योगिक अशान्ति फैलती है और देश के आर्थिक विकास पर बुरा प्रभाव पड़ता है तथा नयी आर्थिक समस्यायें उत्पन्न होने लगती हैं। इस कारण सरकार को हस्तक्षेप करके हड़ताल एवं तालाबन्दी पर रोक लगानी पड़ती है।

परिभाषा (Definition)-प्रो० मलिक के अनुसार, “हड़ताल श्रमिकों का वह मान्य हथियार है जिसका प्रयोग वे अपनी सौदा करने की शक्ति को प्रभावी बनाये रखने तथा नियोक्ताओं की इच्छा के विपरीत अपनी सामूहिक माँगें मनवाने के लिये करते हैं।”

शब्दकोष के अनसार, “हडताल का आशय श्रमिकों द्वारा कार्य को चाल रखने से इन्कार करना है।”

भारतीय औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 2(a) के अनुसार किसी उद्योग में नियुक्त व्यक्तियों के समूह द्वारा सामूहिक रूप से कार्य बन्द कर देना या सम्मिलित रूप से कार्य करने से इन्कार कर देना अथवा किसी उद्योग में कार्य करते रहने या नियोजन स्वीकार करते रहने के लिये नियुक्त व्यक्तियों की किसी संख्या द्वारा सामूहिक रूप से अथवा एक सामान्य समझदारी के अधीन कार्य करने से इन्कार कर देना हड़ताल है।” __निष्कर्ष-उपरोक्त विवरण के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि हडताल से आशय श्रमिकों द्वारा अपनी मांगों को मनवाने के लिये या अपने अधिकारों की प्राप्ति के लिये कार्य करने से मना या इन्कार कर देने से है हड़ताल प्रायः सामूहिक रूप से की जाती है।

हड़ताल की विशेषतायें (Characteristics of Strike) : हड़ताल के निम्नलिखित लक्षण होते हैं

1 श्रमिकों द्वारा केवल उपस्थित होना हड़ताल नहीं है कार्य न करना हड़ताल है।

2. जब तक हड़ताल अवैध घोषित नहीं होती.श्रमिक और नियोक्ता का सम्बन्ध बना रहता है।

3. हड़ताल वैध व अवैध हो सकती है।

4 . अनुचित हड़ताल अवैध हड़ताल नहीं मानी जाती।

5 नियोक्ता के आदेशों की अवहेलना करते हुये आधा घण्टे भी श्रमिकों का कार्य पर नहीं जाना।

6. प्रदर्शन में भाग लेते हुये 15 मिनट तक कार्य पर नहीं जाना हड़ताल नहीं है।

7.  श्रमिकों का केवल एकत्रित होना हड़ताल नहीं है।

8. हड़ताल आवश्यक रूप से श्रम संघर्ष का रूप नहीं है।

9. हड़ताल के लिये उद्देश्य महत्त्वपूर्ण नहीं है।

10. हड़ताल करना श्रमिकों का अधिकार नहीं है।

11. धीरे-धीरे कार्य करना हड़ताल नहीं मानी जायेगी।

12. हड़ताल समझौते के अन्तर्गत होनी चाहिये, मनमाने ढंग से नहीं।

13. हड़ताल उसी औद्योगिक संस्थान में होनी चाहिये जहाँ श्रमिक कार्य करते हैं।

14. हड़ताल सामूहिक एवं संयुक्त रूप से कार्य बन्द कर देना है।

15. सामूहिक रूप से त्याग पत्र देना हड़ताल है।

16. अस्थायी रूप से कार्य करने से मना कर देना हड़ताल है।

17. सामहिक रूप से अवकाश लेना हडताल नहीं है।

Industrial Disputes Act 1947

हड़ताल के प्रकार (Kinds of Strikes)-हड़ताल सामान्य रूप से निम्न प्रकार की होती है

1 सामान्य हड़तालइस हड़ताल से आशय ऐसी हड़ताल से है जिसमें श्रमिक सामूहिक रूप से किसी माँग या अधिकार को लेकर कार्य करना बन्द कर देते हैं।

2. देर करो हड़तालऐसी हड़ताल में श्रमिक संस्थान में उपस्थित तो रहते हैं लेकिन कार्य करने में विलम्ब करते हैं या कार्य नहीं करते हैं।

3. मन्द गति से कार्य करना हड़ताल-इस हडताल के अन्तर्गत श्रमिक निर्धारित गति से कार्य नहीं करते कान मंद गति से कार्य करते हैं। इससे नियोक्ता को हानि होती है ।

4. भूख हड़तालभूख हड़ताल से आशय ऐसी हड़ताल से है जिसमें श्रमिक भूखे रहकर औद्योगिक संस्थान के मक्ष या नियोक्ता के घर के समक्ष बैठकर विरोध जताते हैं।

5. प्रतीक हड़ताल यह हड़ताल सामान्य रूप से एक दिन की होती है इसका मुख्य उद्देश्य नियोक्ताओं पाप्रबन्धकों को अपनी ओर आकर्षित करना है।

6. त्वरित हड़ताल यह हड़ताल किसी घटना के घटित होने पर शोर करके या आवाज लगाकर त्वरित रूप से कार्य बन्द करके विरोध स्वरूप की जाती है।

7. सहानुभूति हड़तालइस हड़ताल का मुख्य उद्देश्य अन्य हड़तालियों के प्रति सहानुभूति प्रकट करने के लिये हड़ताल करना है।

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तालाबन्दी

(Lockout)

जब किसी औद्योगिक संस्थान का नियोक्ता अपने संस्थान में श्रमिकों को काम देने से इन्कार कर देता है जबकि श्रमिक कार्य करना चाहता है तो ऐसी स्थिति को तालाबन्दी कहते हैं। नियोक्ता तालाबन्दी श्रमिकों से परेशान होकर या उनके विरोध और क्रोध से डरकर करता है।

परिभाषाऔद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा-2(L) के अनुसार नियोक्ता द्वारा कर्मचारियों को काम पर जारी नहीं रखने के लिये निम्न कार्यों में से कोई भी कार्य करना तालाबन्दी में सम्मिलित है।

1 रोजगार के स्थान को बन्द करना।

2. कार्य स्थगित करना।

3. तालाबन्दी उचित, अनुचित, वैधानिक या अवैधानिक हो सकती है।

4. व्यावसायिक कारणों से कुछ समय के लिये उपक्रम को बन्द कर देना तालाबन्दी नहीं है।

5. श्रमिकों की छंटनी करना तालाबन्दी नहीं है। ।

6. उद्योग का हस्तान्तरण करते समय कार्य देने से मना करना तालाबन्दी नहीं है। 7. कार्य को बन्द करना तालाबन्दी नहीं है।

क्या हड़ताल एवं तालाबन्दी करना संवैधानिक अधिकार है (Is strike or Lockout a Constitutional Right)-प्रत्येक देश के संविधान के अन्तर्गत नागरिकों, उद्योगों, संस्थाओं और उपक्रमों को कुछ मौलिक अधिकार दिये गये हैं जैसे वैधानिक व्यापार करना,शान्ति बनाये रखना, अपने-अपने धर्म को मानना, मत और विचार प्रकट करने की स्वतन्त्रता आदि मौलिक अधिकार हैं।

यहाँ यह प्रश्न महत्त्वपूर्ण है कि क्या हड़ताल करना और तालाबन्दी करना संवैधानिक अधिकार है या नहीं इस सम्बन्ध में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया है कि अपनी माँगें पूरी कराने के लिये हड़ताल या तालाबन्दी करना श्रमिक और नियोक्ता का अन्तिम प्रयास है, उनका संवैधानिक अधिकार नहीं। अतः सरकार आवश्यकता पड़ने पर इन पर रोक लगा सकती है।

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हड़ताल एवं तालाबन्दी के सम्बन्ध में निषेधात्मक प्रावधान

(Prohibition on Strikes and Lockouts)

औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 22 के अधीन हड़ताल तथा तालाबन्दी के सम्बन्ध में निषेधात्मक प्रावधान निम्न हैं

1 लोक कल्याण सेवाओं में हड़ताल-लोक कल्याण सम्बन्धी सेवाओं के उपक्रम में नियुक्त कोई भी व्यक्ति हड़ताल नहीं करेगा जब तक कि उसने हड़ताल करने के पूर्व के 6 सप्ताह के अन्दर हड़ताल की सूचना अपने नियोक्ता को न दे दी हों।

हड़ताल अवैध मानी जाएगी यदि ऐसी सूचना को दिये हुये 14 दिन पूरे न हुये हो अथवा हड़ताल प्रारम्भ होने की सूचना में वर्णित तिथि समाप्त न हो गयी हो अथवा किसी समझौता अधिकारी के समक्ष चल रही कार्यवाही को सात दिन पूरे न हो गये हों।।

2. लोक कल्याण सेवाओं में तालाबन्दीलोक कल्याण सम्बन्धी सेवाओं के उपक्रम के नियोक्ता तब तक तालाबन्दी नहीं कर सकेंगे जब तक कि तालाबन्दी करने से पूर्व के 6 सप्ताहों में तालाबन्दी करने की लिखित सचना न दे दी गयी हो अथवा ऐसी सूचना दिये हुये 14 दिन पूरे न हुये हों अथवा सूचना में तालाबन्दी पारम्भ होने की वर्णित तिथि समाप्त न हो गयी हो अथवा किसी समझौता अधिकारी के समक्ष चल रही कार्यवाही को समाप्त हुये 7 दिन पूरे न हो गये हों।

नोटयदि उपरोक्त प्रावधानों को नहीं माना गया तो हड़ताल या तालाबन्दी अवैध होगी।

3. पहले से ही चल रही हड़ताल या तालाबन्दी-यदि किसी जन कल्याण सेवा के उपक्रम में हड़ताल या तालाबन्दी पहले से ही चल रही है तो इसकी पूर्व सूचना देना आवश्यक नहीं है लेकिन ऐसी सूचना निर्धारित प्राधिकारी के पास उस दिन अवश्य भेजनी होगी जिस दिन से हडताल या तालाबन्दी घोषित की जाती है।

4. हड़ताल की सूचनाहड़ताल की सूचना निर्धारित संख्या में निर्धारित व्यक्ति या व्यक्तियों को अधिनियम के नियमों के अन्तर्गत निर्धारित रीति से दी जानी चाहिये।

5. तालाबन्दी की सूचनातालाबन्दी की सूचना विवाद अधिनियम के अन्तर्गत बनाये गये नियमों के अधीन निर्धारित विधि से दी जानी चाहिये।

6. समुचित सरकार को सूचना देनायदि किसी नियोक्ता को हड़ताल की सूचना प्राप्त होती है अथवा कोई नियोक्ता तालाबन्दी की सूचना देता है तो ऐसी सचना प्राप्त करने या सूचना देने के 5 दिनों के भीतर समुचित सरकार को या उसके द्वारा निर्धारित अधिकारी को सूचना के सम्बन्ध में रिपोर्ट भेजनी होगी।

हड़ताल या तालाबन्दी के सम्बन्ध में सामान्य निषेध (General prohibition on strikes and Lockouts) निम्नलिखित दशाओं में किसी भी औद्योगिक संस्थान का कोई भी श्रमिक अनुबन्ध भंग करने वाली हड़ताल नहीं कर सकता और न ही कोई नियोक्ता तालाबन्दी कर सकता है।

(i) यदि समझौता बोर्ड के समक्ष चल रही कार्यवाही को समाप्त हुये 7 दिन पूरे न हुये हो।

(ii) यदि किसी श्रम न्यायालय, अधिकरण या राष्ट्रीय अधिकरण के समक्ष चल रही कार्यवाही को समाप्त हुये दो माह पूरे न हुये हों। अथवा

(iii) पंच निर्णय की कार्यवाही को समाप्त हुये 2 माह नहीं हुये हो। (iv) यदि कोई समझौता या निर्णय प्रभावशाली हो।

अवैध हड़ताल एवं तालाबन्दी (Illegal strikes and Lockouts)-कोई भी हड़ताल या तालाबन्दी निम्नलिखित दशाओं में अवैध मानी जायेगी

1 यदि वह धारा 22 अथवा धारा 23 अथवा 10(3) अथवा धारा 10(A)(4A) के प्रावधानों का उल्लंघन करती हो।

2. यदि कोई हड़ताल या तालाबन्दी पहले से ही चल रही हो और विवाद को किसी बोर्ड,श्रम न्यायालय, अधिकरण या राष्ट्रीय अधिकरण को निर्देशित करते समय भी विद्यमान हो तो यह हड़ताल या तालाबन्दी अवैध नहीं मानी जायेगी बशर्ते प्रारम्भ करते समय यह अवैध नहीं थी अथवा धारा-10 के अन्तर्गत उस पर कोई निषेध नहीं लगाया गया था।

3. एक संवैधानिक हड़ताल के कारण घोषित तालाबन्दी अवैध नहीं होगी तथा अवैध तालाबन्दी के कारण घोषित हड़ताल भी अवैध नहीं होगी।

4. किसी भी अवैध हड़ताल या अवैध तालाबन्दी को उकसाने अथवा समर्थन देने के लिये कोई भी व्यक्ति वित्तीय सहायता नहीं दे सकेगा।

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अवैध हडताल या तालाबन्दी पर दण्ड का प्रावधान (Penalty for illegal strikes and Lockouts)-अवैध हड़ताल या तालाबन्दी की दशा में दण्ड सम्बन्धी प्रावधान निम्नलिखित हैं

1 अवैध हड़ताल के सम्बन्ध में(i) एक महीने तक के कारावास की सजा, अथवा (ii) पचास रुपये तक का जुर्माना, अथवा (iii) सजा और जुर्माना दोनों।

2. अवैध तालाबन्दी के सम्बन्ध में(i) एक महीने तक के कारावास की सजा, अथवा (ii) एक हजार रुपये तक का जुर्माना, अथवा (iii) सजा एवं जुर्माना दोनों।

3. अवैध हड़ताल एवं तालाबन्दी को उकसाने के सम्बन्ध में(i) 6 महीने तक के कारावास की सजा, अथवा (ii) 1 हजार रुपये तक का जुर्माना अथवा Gi) सजा एवं जुर्माना दोनों।

4. अवैध हड़ताल एवं तालाबन्दी को वित्तीय सहायता देने के सम्बन्ध में (i) 6 महीने तक के कारावास की सजा अथवा (ii) 1 हजार रुपये तक का जुर्माना अथवा (ii) सजा एवं जुर्माना दोनों।

श्रमिकों को कार्य देने में असमर्थता/कामबन्दी तथा श्रमिकों की छंटनी

(Lay-off and Retrenchment of Workers)

किसी भी औद्योगिक संस्थान में बड़ी संख्या में श्रमिक या कर्मचारी काम करते हैं। इनकी संख्या काम के स्तर के अनुसार घटती बढ़ती रहती है। यह आवश्यक नहीं होता कि एक नियोक्ता किसी श्रमिक को निरन्तर कार्य पर बनाये रखे। कार्य पूरा होने पर वह उसे निकाल सकता है या श्रमिकों की अधिकता होने पर उसकी छंटनी कर सकता है । ऐसा करने से श्रमिक की कार्य के प्रति सुरक्षा समाप्त होती है। अतः श्रमिक को निकालना या छंटनी करने का विषय ‘कानूनी विषय’ है। श्रमिक को कार्य देने में असमर्थता एवं छंटनी के सम्बन्ध मे औद्योगिक विवाद अधिनियम में कुछ विशेष प्रावधान दिये गये हैं

कार्य देने में असमर्थता या कामबन्दी का आशय (Meaning of Lay-off)-सरल शब्दों में, कार्य देने में असमर्थता या कामबन्दी से आशय नियोक्ता द्वारा श्रमिक की आवश्यकता न होने पर श्रमिक को काम देने से इन्कार करना है।

औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 2 KKK के अनुसार, “कार्य देने में असमर्थता से आशय नियोक्ता द्वारा किसी ऐसे श्रमिक को जिसका नाम उसके औद्योगिक उपक्रम के उपस्थिति रजिस्टर में लिखा है एवं जिसकी छंटनी न की गयी हो कोयला, शक्ति अथवा कच्चे माल की कमी अथवा स्टॉक का संग्रह अथवा मशीन का बन्द हो जाना या अन्य किसी कारण से कार्य देने में असमर्थता, इन्कार करने अथवा अयोग्यता से

निष्कर्षउपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि कामबन्दी या कार्य देने में असमर्थता अस्थायी होती हैं स्थायी प्रकृति की नहीं।

काम देने में असमर्थता या कामबन्दी (Characteristics of Lay-off)-कार्य देने में असमर्थता या कार्यबन्दी के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं

1 श्रमिक या कर्मचारी का नाम औद्योगिक उपक्रम के उपस्थिति रजिस्टर में लिखा होना चाहिये।

2. कार्य देने में असमर्थता अस्थायी रूप से हो।

3. कार्य देने में असमर्थता के कारण अपरिहार्य होते हैं।

4. कार्य देने में असमर्थता. छंटनी से अलग होती है।

5. कार्य देने में असमर्थता के लिये यह आवश्यक है कि श्रमिक संस्थान में नियमित रूप से कार्य करता हो।

6. श्रमिक की छंटनी नहीं की गयी हो।

7. नियोक्ता आकस्मिक एवं विशेष कारणों से श्रमिक को कार्य देने में असमर्थ हो ।

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कार्य देने में असमर्थता या कामबन्दी के कारण (Causes of Lay-off-औद्योगिक संस्थान का नियोक्ता निम्नलिखित दशाओं में श्रमिक या श्रमिकों को कार्य देने से इन्कार कर सकता है

1 शक्ति की कमी के कारण।

2. कच्चे माल की कमी के कारण।

3. कोयले की कमी के कारण।

4. पानी की पर्याप्त पूर्ति न होने के कारण।

5. व्यापारिक मंदी होने के कारण।

6. उत्पादित माल का अधिक संग्रह हो जाने के कारण।

7. सरकार की उद्योग विरोधी नीति के कारण।

8. करों में अत्यधिक वृद्धि के कारण।

9. आयातों में वृद्धि के कारण।

10. उत्पादन की नयी तकनीक लागू होने के कारण।

11. उत्पादन की लागतों में निरन्तर वृद्धि के कारण ।

12. औद्योगिक कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण।

13. औद्योगिक संघर्ष की दशा में उत्पादन कार्यों पर विपरीत प्रभाव पड़ने के कारण ।

14. अन्य कोई प्राकृतिक कारण।

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उपक्रम के अन्तरण की दशा में श्रमिकों को क्षतिपूर्ति

(Compensation to the workers in case of transfer of Undertakings)

जब किसी एक औद्योगिक उपक्रम का अन्तरण होता है तो उसके श्रमिकों को क्षतिपूर्ति दी जाती है। इसके सम्बन्ध में विवाद अधिनियम की धारा 25(FF) में प्रावधान दिये गये हैं जो निम्न प्रकार हैं

नियमानुसार नोटिस एवं क्षतिपूर्ति औद्योगिक उपक्रम के अंतरण होने पर प्रत्येक श्रमिक को छंटनी। कनिया के अनुसार ही नोटिस तथा क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार है। उसे यह अधिकार तब ही होगा। जबकि वह अंतरण की तिथि से ठीक पूर्व 12 महीनों से सेवायोजक की निरन्तर सेवा में हो।

1. नोटिस तथा क्षतिपर्ति का प्राप्त नहीं होना-यदि किसी उपक्रम के अन्तरण होने की दशा में सेवायोजक बदल जाता है तो श्रमिक को निम्नलिखित दशाओं में नोटिस और क्षतिपूर्ति पाने का अधिकार नहीं होता है ।

(i) यदि अन्तरण से उसकी सेवा में कोई फर्क न हुआ हो।

(ii) यदि अन्तरण के बाद सेवा की शर्तों में कोई फर्क नहीं होता तथा वे पूर्व शर्तों के समान ही हैं।

(iii) अन्तरण के बाद यदि नया सेवायोजक शर्तों के अधीन छंटनी करता है तो श्रमिक को पूर्व की भाँति ही क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार होगा।

उपक्रम को बन्द करने पर सूचना

(Notice of Close down of Undertakings)

औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 25 (FFA) के अनुसार किसी उपक्रम को बन्द करने की सूचना देने के सम्बन्ध में मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं

1 सूचना की अवधियदि कोई नियोक्ता अपने किसी उपक्रम को बन्द करना चाहता है तो उसे ऐसे बन्द की तिथि से कम से कम 60 दिन पूर्व सरकार को इस आशय की सूचना निर्धारित रीति से देनी होगी। इस सूचना में उपक्रम को बन्द करने के कारणों का भी उल्लेख किया जायेगा।

2. सूचना देने से मुक्ति-निम्नलिखित दशाओं में उपक्रम के बन्द करने की सूचना देना आवश्यक नहीं

(i) यदि औद्योगिक उपक्रम में श्रमिकों की संख्या 50 से कम है। (ii) पिछले 12 महीनों की अवधि में प्रतिदिन श्रमिकों की औसत संख्या 50 से कम रही है। (iii) यदि उपक्रम पुल, सड़कें, नहरें, भवन, बाँध का निर्माण करने या अन्य ऐसे ही कार्यों के लिये स्थापित किया गया हो।

3. सरकार द्वारा छूट देनाऔद्योगिक उपक्रम में दुर्घटना होने अथवा नियोक्ता की मृत्यु होने अथवा ऐसी ही अन्य परिस्थितियों के अन्तर्गत यदि सरकार संतुष्ट है तो वह उपक्रम को बन्द करने की सूचना देने के दायित्व से मुक्त कर सकती है।

उपक्रम बन्द करने पर क्षतिपूर्ति

(Compensation for Close Down of Undertaking)

जब कोई औद्योगिक उपक्रम बन्द कर दिया जाता है तो उस उपक्रम के श्रमिकों को क्षतिपति प्राप्त करने का अधिकार मिल जाता है। इसके प्रमुख प्रावधान विवाद अधिनियम की धारा 25(FFF) में दिये गये हैं जो निम्न हैं

1 छंटनी के नियमों के अधीन नोटिस एवं क्षतिपूर्ति का अधिकार-जब कोई उपक्रम किसी कारणवश बन्द कर दिया जाता है तो उसके प्रत्येक श्रमिक को जिसने बन्द के ठीक पहले निरन्तर सेवा का एक वर्ष पूरा कर लिया है. उक्त धारा के प्रावधानों के अन्तर्गत सूचना तथा क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार होगा। बन्द की दशा में श्रमिकों को कार्य नहीं देना छंटनी ही माना जायेगा।

2. आवश्यक परिस्थितियों में बन्द करने पर क्षतिपूर्तिविवाद अधिनियम की उक्त धारा के अन्तर्गत यदि नियोक्ता अपने उपक्रम को किन्हीं ऐसे कारणों से बन्द कर देता है जिन पर उसका कोई नियन्त्रण नहीं है तो श्रमिक को अधिकतम 3 महीनों के औसत वेतन के बराबर क्षतिपूर्ति पाने का अधिकार है।

3. खनन करने वाले उपक्रमों की दशा में सूचना एवं क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार न होना-यदि कोई उपक्रम खनन कार्य करता है तथा उसके खनन क्षेत्र में खनिज भण्डार समाप्त हो जाते हैं तो ऐसे उपक्रम के श्रमिकों को छंटनी की सूचना एवं क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार नहीं होगा बशर्ते कि निम्नलिखित शर्ते पूरी होती हैं

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छंटनी की प्रक्रिया

(Procedure of Retrenchment)

औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 25 (G) के अन्तर्गत छंटनी की विधि का वर्णन किया गया है। इस धारा के अनुसार यदि किसी औद्योगिक उपक्रम में किसी श्रमिक की छंटनी की जाती है तथा वह श्रमिक उस संस्थान के किसी विशेष वर्ग के श्रमिकों में से एक है तो नियोक्ता श्रमिकों में से उस श्रमिक की पहले छंटनी करेगा जिसकी नियुक्ति सबसे बाद में हुई है। यदि नियोक्ता किसी अन्य श्रमिक की छंटनी करता – है तो उसे इसके कारणों का उल्लेख करना होगा। इस सम्बन्ध में पंजाब सरकार बनाम कश्मीर सिंह (1989) का मामला महत्त्वपूर्ण है।

श्रमिकों की पुनर्नियुक्ति (Re-employment of Workers)-यदि किसी नियोक्ता ने कुछ श्रमिकों की छंटनी कर दी है तथा उसी नियोक्ता को उन्हीं श्रमिकों को नियुक्त करना है तो वह निर्धारित विधि से ऐसे । श्रमिकों को उन्हें नियुक्ति के लिये प्रस्ताव करने का मौका देगा तथा नियुक्ति में उन्हें प्राथमिकता देगा।

इस सम्बन्ध में संतोष गुप्ता बनाम स्टेट बैंक आफ पटियाला (1981) का मामला महत्त्वपूर्ण है।

कामबन्दी के सम्बन्ध में निषेधात्मक प्रावधान (Prohibitory Provisions regarding lay off) -ये प्रावधान औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा-25(M) में दिये गये हैं जो निम्न प्रकार हैं

अनुमति प्राप्त करने पर कामबन्दी-यदि किसी औद्योगिक उपक्रम के उपस्थिति रजिस्टर में किसी श्रमिक का नाम दर्ज है तो समुचित सरकार या निर्धारित अधिकारी से पूर्व अनुमति लिये बिना उस श्रमिक की कामबन्दी नहीं की जा सकती। पूर्व अनुमति प्राप्त करने के लिये नियोक्ता को आवेदन पत्र प्रस्तुत करना होगा।

2. आवेदन पत्र निर्धारित रीति से प्रस्तुत करनाकामबन्दी की पूर्व अनुमति प्राप्त करने के लिये नियोक्ता को निर्धारित रीति से आवेदन पत्र सरकार के समक्ष प्रस्तुत करना होगा जिसमें कामबन्दी के कारणों का उल्लेख होगा। इस आवेदन पत्र की 1 प्रति श्रमिक को भी दी जायेगी।

3. खनन उपक्रमों में कामबन्दी के लिये पूर्व अनुमति लेनायदि किसी खनन सम्बन्धी औद्योगिक संस्थानों में आग, विस्फोट, बाढ़, ज्वलनशील, गैस के कारण श्रमिकों की कामबन्दी कर दी जाती है तो ऐसे उपक्रमों के नियोक्ताओं को कामबन्दी शुरू होने की तिथि से 30 दिनों के अन्दर समुचित सरकार अथवा निर्धारित अधिकारी के पास कामबन्दी जारी रखने के लिये पूर्व अनुमति लेने हेतु निर्धारित विधि से प्रार्थना पत्र भेजना चाहिये।

4. पूर्व अनुमति का पारित होनाजब कोई नियोक्ता कामबन्दी की पूर्व अनुमति प्राप्त करने के लिये उपयुक्त सरकार अथवा निर्धारित अधिकारी को प्रार्थना पत्र देता है तो वह सरकार अथवा निर्धारित अधिकारी उस प्रार्थना पत्र के आधार पर जाँच पड़ताल करता है तथा श्रमिक और कामबन्दी में हित रखने वाले सभी व्यक्तियों के तर्क सुनता है इसके पश्चात कामबन्दी के विभिन्न कारणों की सत्यता जाँचता है। ऐसा करने पर और सन्तुष्ट होने पर वह एक आदेश जारी करेगा जिसमें या तो कामबन्दी की अनुमति देगा या अनुमति देने से इन्कार कर देगा। इस आदेश की एक-एक प्रतिलिपि श्रमिक तथा नियोक्ता को भेज दी जायेगी।

किसी नियोक्ता ने कामबन्दी की पूर्व अनुमति के लिये आवेदन किया है लेकिन समुचित सरकार या निर्धारित अधिकारी ने 60 दिनों की अवधि व्यतीत होने पर। उस आवेदन को स्वीकार या अस्वीकार करने के सम्बन्ध में किसी प्रकार की कोई सूचना नहीं दी है तो ऐसे। आवेदन की तिथि 60 दिन बीत जाने के बाद यही माना जायेगा कि कामबन्दी की पूर्व अनुमति मिल गयी है।

6. उचित सरकार या निर्धारित अधिकारी का आदेश लागू होगा-कामबन्दी की अनुमति देने या न देने के सम्बन्ध में समुचित सरकार या निर्धारित अधिकारी का आदेश अंतिम आदेश होगा जो सभी पक्षों को मान्य । होगा। यह आदेश तिथि से एक वर्ष तक प्रभावी होगा लेकिन यदि इस आदेश को समुचित सरकार या निर्धारित । अधिकारी पनः अवलोकित करता है अथवा इसको न्यायाधिकरण के पास निर्देशित करता है तो इस दशा में आदेश प्रभावी नहीं रहेगा।

7. आदेश पर पनर्विचारसमचित सरकार या निर्धारित अधिकारी स्वेच्छा से या नियोक्ता अथवा श्रमिक के आवेदन पर अपने आदेश पर पुनर्विचार कर सकता है अथवा उसे अधिकरण को निर्देशित कर सकता है ।। अधिकरण को निर्देशित तिथि के 30 दिनों के अन्दर अपना न्याय निर्णय देना होगा।

8. अवैध कामबन्दीयदि कामबन्दी के लिये पूर्व अनुमति लेने हेतु समुचित सरकार या निर्धारित अधिकारी के पास आवेदन नहीं दिया जाता है और कामबन्दी कर दी जाती है तो ऐसी कामबन्दी अवैध मानी जायेगी और इस दशा में श्रमिकों को कामबन्दी की अवधि में वे सभी लाभ और अधिकार प्राप्त होंगे जैसे कि कामबन्दी नहीं हुई हो।

9. छूट का अधिकारयदि उपक्रम में कोई दुर्घटना घटित हो जाये अथवा उपक्रम के नियोक्ता की मृत्यु हो जाये अथवा अन्य इसी प्रकार का कोई और कारण हो तो समुचित सरकार सन्तुष्ट होने पर किसी भी उपक्रम को एक निश्चित अवधि के लिये कामबन्दी हेतु पूर्व अनुमति प्राप्त करने के लिये प्रार्थना-पत्र देने के दायित्व से मुक्त कर सकती है।

10. क्षतिपर्ति का अधिकारकामबन्दी की दशा में श्रमिकों को कामबन्दी के दिनों की क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार होगा लेकिन यदि नियोक्ता ने कामबन्दी वाले श्रमिक को वैकल्पिक रोजगार उपलब्ध करा दिया है तो श्रमिक को क्षतिपूर्ति का अधिकार नहीं होगा।

पूर्व अनुमति प्राप्त किये बिना कामबन्दी या छंटनी पर दण्ड (Penalty for lay-off and Retrenchment without Obtaining Prior permission)-यदि कोई नियोक्ता औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 25M अथवा धारा 25N के प्रावधानों का पालन नहीं करता है तो उसे एक महीने तक के कारावास अथवा एक हजार रुपये तक का जुर्माना अथवा दोनों से दण्डित किया जा सकता है।

Industrial Disputes Act 1947

औद्योगिक उपक्रम को बन्द करने की प्रक्रिया

(Procedure for closing an undertaking) ‘

किसी उपक्रम को बन्द करने की प्रक्रिया का वर्णन औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 25(0) में दिया गया है जो निम्न प्रकार है

1 सरकार को प्रार्थनापत्र देनायदि कोई नियोक्ता अपने औद्योगिक संस्थान को बन्द करना चाहता है तो उसे 90 दिन पूर्व समुचित सरकार की पूर्व अनुमति के लिये एक प्रार्थना-पत्र देना होगा यह प्रार्थना-पत्र निर्धारित रीति से देना चाहिये तथा इसमें उपक्रम को बन्द करने के कारणों का भी उल्लेख करना चाहिये । इस आवेदन-पत्र की एक प्रतिलिपि श्रमिक प्रतिनिधियों के पास भी भेजनी चाहिये। नोट-यह प्रावधान उन उपक्रमों पर लागू नहीं है जो पुल, सड़कें, बाँध, भवन बनवाने अथवा अन्य संरचनात्मक कार्यों में संलग्न हैं।

2. सरकार द्वारा अनुमतिजब किसी नियोक्ता द्वारा उपक्रम को बन्द करने की अनुमति प्रदान करने हेतु प्रार्थना-पत्र दिया जाता है तो समुचित सरकार आवश्यक जाँच पड़ताल करती है पक्षों को सुनती है तथा नियोक्ता दारा उपक्रम बन्द किये जाने के कारणों की सत्यता का पता लगाती है और इन सब बातों से सन्तुष्ट होने पर असमति देने के लिये आदेश जारी करती है। यदि सरकार तथ्यों से असन्तुष्ट है तो वह अनुमति प्राप्त करने लिये दिये गये प्रार्थना-पत्र को अस्वीकार कर देती है और इसके लिये आदेश जारी करती है। आदेश की एक-एक प्रतिलिपि नियोक्ता और श्रमिकों के पास भेज दी जाती है।

3. निर्धारित अवधि के बाद पूर्व अनुमति मान लेना-यदि किसी नियोक्ता ने उपक्रम बन्द करने के लिये। पार्थना-पत्र दिया है और उचित सरकार ने 60 दिनों में भी इसकी अनुमति देने या न देने के सम्बन्ध में कोई। नहीं दिया है तो 60 दिन व्यतीत हो जाने के बाद स्वतः ही अनुमति प्राप्त हुई मानी जायेगी।

4. अन्तिम सरकारी आदेशउपक्रम बन्द करने की अनुमति देने या न देने के सम्बन्ध में समुचित सरकार का आदेश अंतिम माना जायेगा और सभी पक्षकारों पर मान्य होगा। यह आदेश 1 वर्ष तक प्रभावी रहता है।

5. आदेश पर पुनर्विचार अथवा उसे अधिकरण को सौंपनासमुचित सरकार स्वेच्छा से या नियोक्ता अथवा किसी श्रमिक के आवेदन पर यदि उचित समझे तो अपने आदेश पर पुनर्विचार कर सकती है अथवा अधिकरण को निर्णय देने के लिये सौंप सकती हैं।

6. पूर्व अनुमति प्राप्त किये बिना उपक्रम को बन्द करना अवैध है-यदि उपक्रम को बन्द करने के लिये अनमति प्राप्त करने हेतु औद्योगिक विवाद अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार आवेदन नहीं किया जाता है। अथवा समुचित सरकार अनुमति प्राप्त करने हेतु दिये गये आवेदन को अस्वीकार कर देती हैं लेकिन फिर भी उपक्रम को बन्द कर दिया जाता है तो ऐसी बन्दी अवैध मानी जायेगी तथा सभी श्रमिकों को वे सभी लाभ प्राप्त करने का अधिकार होगा जो लाभ उपक्रम चालू रहने पर उन्हें प्राप्त होते हैं।

7. छट का अधिकारयदि संस्थान में दुर्घटना हो जाये या नियोक्ता की मृत्यु हो जाये या इसी प्रकार का अन्य कोई कारण हो या उससे समुचित सरकार सन्तुष्ट हो जाये तो सरकार आदेश पारित करके एक निश्चित अवधि के लिये धारा 25 के प्रावधानों से छूट दे सकती है।

8. क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकारयदि किसी नियोक्ता को उपक्रम बन्द करने की अनुमति प्राप्त हो गयी है तो ऐसी अनुमति के आदेश के ठीक पहले तक नियुक्त श्रमिक नियोक्ता से क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के अधिकारी होंगे। क्षतिपूर्ति की राशि प्रत्येक पूरे वर्ष की निरन्तर सेवा के लिये अथवा 6 महीनों से अधिक की सेवा के लिये 15 दिनों के औसत वेतन के आधार पर दी जायेगी। [धारा 25(0)(8)]

बन्द उपक्रम को पुन: चालू करना [धारा 25(P)] (Re-starting of Closed Undertakings)औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 25(P) के अन्तर्गत बन्द उपक्रमों को पुनः प्रारम्भ करने के सम्बन्ध में निम्नलिखित प्रावधान हैं

यदि कोई उपक्रम औद्योगिक विवाद (संशोधन) अधिनियम 1976 के लागू होने के पूर्व बन्द कर दिया गया था और उसके बारे में सरकार निम्न बातों पर विचार करके उचित समझती है तो वह उपक्रम को पुन चालू करने का आदेश दे सकती है

1 वह उपक्रम नियोक्ता के नियन्त्रण के बाहर कारणों से बन्द किया गया था।

2. उस उपक्रम के पुनः आरम्भ किये जाने की सम्भावना विद्यमान है।

3. श्रमिकों के पुनर्वास के लिये अथवा जनता के जीवन के लिये आवश्यक वस्तुयें एवं सेवायें उपलब्ध कराने हेतु अथवा दोनों ही कारणों से उपक्रम का उन्हें प्रारम्भ करना आवश्यक है।

4. उपक्रम को पुनः प्रारम्भ करने से नियोक्ता को किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं है।

5. उपक्रम को पुनः चालू करने के सम्बन्ध में सरकार ऐसा आदेश सरकारी गजट में देशी एवं उपक्रम को पुनः चालू करने के लिये कम से कम 1 महीने का समय दिया जायेगा।

उपकम बन्द करने के लिये दण्ड का प्रावधान (Penalty for Closure of Undertaking) –यदि कोई नियोक्ता किसी उपक्रम को बन्द करने की प्रक्रिया के सम्बन्ध में दिये गये काननी प्रावधानों का पालन नहीं करता है तो उसे निम्नलिखित दण्डों को सहन करना होगा

1 यदि कोई नियोक्ता धारा 250(1) के प्रावधानों का पालन किये बिना ही उपक्रम को बन्द कर देता _है तो उसे 6 महीने तक का कारावास अथवा 5 हजार रुपये तक का जुर्माना अथवा दोनों से दण्डित किया जा सकता है।

2. यदि कोई नियोक्ता उपक्रम बन्द करने की अनुमति न मिलने पर भी उपक्रम को बन्द कर देता है। अथवा सरकार द्वारा किसी उपक्रम को उन्हें चालू करने का आदेश मिलने के बाद भी उपक्रम को चालू नहीं करता है तो ऐसा नियोक्ता 1 वर्ष तक के कारावास अथवा 5 हजार रुपये तक का जुर्माना अथवा दोनों ही दण्डों से दण्डित किया जा सकता है। यदि नियोक्ता आगे भी ऐसा उल्लंघन करता रहता है तो उस पर दोष सिद्ध हो जाने की तिथि से 2 हजार रुपये प्रतिदिन तक का जर्माना तब तक किया जा सकता है जब तक कि वह ऐसा उल्लंघन जारी रखता है।

Industrial Disputes Act 1947

अनुचित श्रम व्यवहार

(Unfair Labour Practices)

अनुचित श्रम व्यवहार का अध्याय औद्योगिक विवाद (संशोधन) अधिनियम, 1982 में सम्मलित किया। गया है। इसी में पाँचवीं अनुसूची भी जोड़ी गयी है जिसमें अनुचित श्रम व्यवहार का विस्तृत विवरण है।

सामान्य रूप से यह पाया जाता है कि नियोक्ताओं तथा श्रमिकों के मध्य अनेक विषयों पर मतभेद उत्पन्न हो जाता है। दोनों एक-दसरे की भावनाओं को नहीं समझ पाते और परस्पर विरोधी भावना बनायें रखते हैं। इस विरोधी भावना के कारण दोनों ही पक्ष एक-दूसरे के लिए गैर-कानूनी कार्य करने से भी नहीं चूकते  नियोक्ताओं और श्रमिकों और उनके संगठनों द्वारा किये जाने वाले ऐसे गैर-कानूनी और अवांछनीय आचरणों। या व्यवहारों को अनुचित श्रम व्यवहार की श्रेणी में रखा जाता है।

अनुचित श्रम व्यवहार का क्षेत्र

(Scope of Unfair Labour Practices)

सन् 1982 के संशोधन अधिनियम द्वारा औद्योगिक विवाद अधिनियम में पाँचवीं अनुसूची सम्मिलित की गयी है। इस अनुसूची में अनुचित श्रम व्यवहार को दो भागों में बाँटा गया है

(A) नियोक्ताओं या उनके संघों द्वारा अनुचित श्रम व्यवहार।

(B) श्रमिकों या उनके संघों द्वारा अनुचित श्रम व्यवहार।

(A) नियोक्ताओं या उनके संघों द्वारा अनुचित श्रम व्यवहार-नियोक्ताओं या उनके संघों द्वारा निम्न प्रकार का कार्य या व्यवहार अनुचित श्रम व्यवहार माना जायेगा1. सेवायोजक द्वारा, किसी श्रम संघ की स्थापना करने, उसमें शामिल होने, उसकी सहायता करने,

सामूहिक सौदेबाजी करने एवं सुरक्षा की दृष्टि से मिलकर कार्य करने के श्रमिक के अधिकार में बाधा डालना। इस सन्दर्भ में निम्नलिखित क्रियाओं को अनुचित श्रम व्यवहार माना जाता है

() किसी श्रमिक के श्रम संघ में शामिल होने पर नियोक्ता द्वारा सेवा से हटाने की धमकी देना।

() श्रम संघ गठित करने पर औद्योगिक उपक्रम को बन्द करने की धमकी देना।

() श्रम संघ के कार्यों को प्रभावहीन करने के लिये किसी श्रमिक की मजदूरी को बढ़ाना।

2. श्रम संघ के कार्यों में हस्तक्षेप करने अथवा अपना प्रभाव बनाये रखने के लिये किसी श्रम संघ को

वित्तीय सहायता देना या अन्य किसी प्रकार से अपना समर्थन देना। इस सन्दर्भ में निम्नलिखित क्रियायें अनुचित श्रम व्यवहार समझी जायेंगी

() श्रम संघ के कार्यों में अत्यधिक रुचि लेना।

() अपने श्रमिकों को किसी ऐसे श्रम संघ में संगठित करने का प्रयास करना जो मान्यता प्राप्त नहीं है।

3. नियोक्ता द्वारा गठित या वित्तीय सहायता से पोषित श्रम संघों की स्थापना करना।

4. किसी श्रमिक को किसी विशेष श्रम संघ की सदस्यता लेने के लिये उकसाना या नहीं लेने के लिये कमजोर करना  इस सम्बन्ध में निम्नलिखित क्रियायें अनुचित श्रम व्यवहार समझी जायेगी

() किसी श्रमिक द्वारा अन्य श्रमिकों को किसी श्रम संघ में शामिल होने या संगठित होने के लिये उकसाने के कारण उस श्रमिक को नियोक्ता द्वारा पदमुक्त करना अथवा दण्ड देना।

() किसी श्रमिक को वैध हड़ताल में शामिल होने पर पदमुक्त या पदच्युत करना।

() श्रम संघ के कार्यों में भाग लेने के कारण श्रमिकों के वरिष्ठता क्रम में परिवर्तन करना ।

() श्रम संघ की कार्यवाही में भाग लेने के कारण श्रमिकों को उच्चपदों पर पदोन्नत करने से मना ।

करना। यो श्रमिकों में आपसी मनमुटाव पैदा करने के लिये अथवा श्रम संघ की ताकत कम करने के लिये कुछ श्रमिकों को बिना योग्यता के पदोन्नत करना।

(अ) श्रमिक को दुख देने या सताने के लिये। (ब) नियोक्ता द्वारा दुर्भावना से अपने अधिकारों का प्रयोग करके। (स) झूठा आपराधिक आरोप लगाकर। (द) अन्य झूठे कारणों से। (य) छुट्टी लिये बिना अनुपस्थित रहने के असत्य आरोप लगाकर। (र) श्रमिक पर अन्य कोई दुराचरण का आरोप लगाकर ।

5. हड़ताल तोड़ने के उद्देश्य से उपक्रम के कार्य को ठेके पर देना

6. दुर्भावना से प्रेरित होकर किसी श्रमिक को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरित करना।

7. वैध हड़ताल पर चल रहे श्रमिकों को काम पर पुनः लगाने की शर्त के रूप में आचरण बन्धक पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिये मजबूर करना।

8. श्रमिकों के किसी एक वर्ग का पक्ष लेना या उसके साथ पक्षपात करना।

9. अवैध तालाबन्दी को करना या जारी रखना।

10. मान्य श्रम संघों से सामूहिक सौदेबाजी करने से इन्कार करना।

11. अधिनियम के प्रावधानों का या श्रमिक और स्वयं के बीच हुए समझौते का पालन न करना।

12. बल प्रयोग या हिंसा के कार्यों को अपनाना या उनमें भाग लेना।

13. वैध हड़ताल के चलते हुये नये श्रमिकों की नियुक्ति करना।

14. श्रमिकों को उनके अधिकारों से वंचित करने के उद्देश्य से श्रमिकों की बदली करना या अस्थायी अथवा आकस्मिक आधार पर नये श्रमिक नियुक्त करना।

15. किसी विवाद की कार्यवाही में नियोक्ता के विरुद्ध आरोप लगाने वाले अथवा प्रमाण या गवाही देने वाले श्रमिकों के विरुद्ध पक्षपात करना अथवा उन्हें सेवामुक्त करना।

(B) श्रमिकों या उनके संघों द्वारा अनुचित श्रम व्यवहारयदि श्रमिक या उनके श्रम संघ निम्न कार्यों को करते हैं तो उन्हें अनुचित श्रम व्यवहार माना जायेगा

1 श्रमिकों द्वारा अन्य श्रमिकों को या श्रमिक को अवैध हड़ताल करने की सलाह देना अथवा उसे सक्रिय सहयोग देना अथवा उसे उकसाना।

2. किसी श्रमिक को अथवा श्रमिकों को उनके अधिकार के उपयोग में रुकावट डालना या उन पर

दबाव डालना। इस सन्दर्भ में निम्नलिखित कार्य अनुचित श्रम व्यवहार हैं(अ) किसी श्रम संघ या उसके सदस्यों द्वारा औद्योगिक उपक्रम के आस-पास इस प्रकार जमा होना  और शोर करना कि गैर हड़ताली श्रमिक उपक्रम में प्रवेश न कर सकें। (ब) गैर हडताली श्रमिकों को बल प्रयोग द्वारा हडताल करने के लिये उकसाना या हिंसा के कार्यों में शामिल होने के लिये उकसाना या उन्हें धमकी देना।।

3. मान्य श्रम संघों द्वारा सेवा योजक के साथ सद्भावना के आधार पर सामूहिक सौदेबाजी करने से इन्कार करना।

अन्य उत्पीड़न कार्यों में भाग लेना

4. धीरे कार्य करने, धरना देने,प्रबन्धकों, अधिकारियों या अन्य कर्मचारियों का घेराव करने,उन्हें भड़काने जैसे अनुचित कार्य करना।

5. सेवा योजकों अथवा प्रबन्धकीय कर्मचारियों के निवास स्थानों पर प्रदर्शन करना।

6. कार्य पर जाने से रोकने के लिये किसी श्रमिक के विरुद्ध बल प्रयोग करना, उसे धमकी देना या डराना।

7. सेवा योजक की औद्योगिक सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाने के उद्देश्य से अन्य श्रमिकों को उकसाना।

अनुचित श्रम व्यवहार पर निषेध (Prohibition on Unfair Labour Practices)-औद्योगिक विवाट  अधिनियम की धारा 25(T) के अधीन कोई भी नियोक्ता या श्रमिक या रजिस्टर्ड अथवा अनरजिस्टर्ड श्रम संघ कोई भी अनुचित श्रम व्यवहार नहीं करेगा।

अनुचित श्रम व्यवहार के लिये दण्ड (Penalty for Unfair Labour Practices) -यदि कोई सेवा योजक अथवा श्रमिक किसी भी प्रकार का अनुचित श्रम व्यवहार करते हैं तो उन्हें 6 माह के कारावास की सजा अथवा 1 हजार रुपये तक का जुर्माना अथवा दोनों ही प्रकार के दण्ड से दण्डित किया जा सकता है।

निपटारे अथवा परिनिर्णय को भंग करने पर दण्ड (Penalty for breach of settlement or Award) यदि कोई व्यक्ति औद्योगिक विवाद अधिनियम के अधीन दिये गये किसी निपटारे या परिनिर्णय को भंग करता है और उसे मानने से इन्कार करता है तो वह छ: माह तक के कारावास अथवा जुर्माना अथवा दोनों प्रकार से दण्डित किया जा सकता है। न्यायालय अपराधी से आर्थिक दण्ड के रूप में जो भी धन वसल करता है वह उस धन राशि को क्षतिपति के रूप में पीडित पक्षकार को दिला सकता है।

यदि निपटारे या परिनिर्णय की शर्त को बार-बार भंग किया जाता है तो दोषी पक्षकार जितने दिन भंग करने का अपराध करता है उतने दिनों के लिये उसे 200 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से दण्डित किया जा सकता

गोपनीय सूचना को प्रकट करने पर दण्ड (Penalty for Disclosing Confidential Information)-यदि कोई व्यक्ति औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 21 के अधीन गोपनीय रखी जाने वाली किसी सूचना को जानबूझकर प्रकट करता है तो इस दशा में श्रम संघ या व्यक्तिगत व्यवसाय द्वारा शिकायत होने पर वह 6 माह तक का कारावास या 1,000 रुपए के आर्थिक दण्ड या दोनों प्रकार से दण्डित किया जा सकता है।

अन्य अपराधों के लिये दण्ड (Penalty for other offences) [धारा31] (i) यदि कोई नियोक्ता द्वारा धारा-33 का उल्लंघन करता है तो वह 6 माह तक का कारावास अथवा

1000 रुपए तक का आर्थिक जुर्माना अथवा दोनों प्रकार से दण्डित हो सकता है। [धारा 31(1)] (ii) यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम के किसी अन्य प्रावधान या इस अधिनियम के अन्तर्गत बनाये

गये किसी भी नियम का उल्लंघन करता है तो वह 100 रु. तक के आर्थिक दण्ड से दण्डित किया जा सकता है।

Industrial Disputes Act 1947

कम्पनियों आदि द्वारा किये जाने वाले अपराध (Offences Committed by Companies etc.) [धारा 32]-यदि इस अधिनियम के अधीन अपराध करने वाला व्यक्ति कोई कम्पनी है या अन्य समामेलित संस्था है या व्यक्तियों का समूह है या उनके प्रबन्ध से सम्बन्धित कोई व्यक्ति है तो वह प्रत्येक अपराध के लिये दोषी माना जायेगा जब तक कि वह यह सिद्ध न कर दे कि उक्त अपराध उसके ज्ञान या सहमति से नहीं हुआ

Industrial Disputes Act 1947

औद्योगिक विवाद अधिनियम से सम्बन्धित विविध प्रावधान

(Miscellaneous Provisions Related to Industrial Disputes Act)

औद्योगिक विवाद अधिनियम के अन्तर्गत औद्योगिक विवादों के सम्बन्ध में अन्य प्रावधान निम्न हैं

कार्यवाही के दौरान नौकरी की शर्तों में परिवर्तन (Change in Conditions of Service during vodindi-यदि किसी औद्योगिक विवाद की कार्यवाही किसी भी अधिकारी के सामने विचाराधीन हो तो उस समय श्रमिकों की सेवा की शर्तों में परिवर्तन करने के सम्बन्ध में अधिनियम के मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं

लिखित अनुमति के आधार पर परिवर्तन-यदि किसी विवाद की कार्यवाही समझौता अधिकारी या जोर्ट या पंच या श्रम न्यायालय या अधिकरण के समक्ष चल रही है तो कोई भी नियोक्ता निर्दिष्प अधिकारी हैं

(अ) विवाद से सम्बन्धित श्रमिक के हितों पर विपरीत प्रभाव का पड़ना।

(ब) दुराचरण के कारण श्रमिक का पदच्युत किया जाना ।

अनुबन्ध की शतों के आधार पर सेवा की शर्तों में परिवर्तन करना-यदि किसी औद्योगिक विवाद साम्बन्ध में कोई कार्यवाही चल रही हो तो विवाद से सम्बन्धित श्रमिक पर प्रभावी होने वाले स्थायी आदेशों अथवा अनुबन्ध की शर्तों के आधार पर उस श्रमिक की सेवा की शर्तों में निम्नलिखित दशाओं में परिवर्तन किया जा सकता है

(अ) यदि शर्ते विवाद से अलग हों।

(ब) विवाद से अलग दुराचरण के आधार पर श्रमिक को पदमुक्त करना या पदच्युत करना।

इस दशा में नियोक्ता को श्रमिकों के लिये 1 महीने की मजदरी देनी होगी तथा जिस अधिकारी के समक्ष विवाद की कार्यवाही चल रही है उस अधिकारी के पास इस कार्य की अनुमति लेने के लिये प्रार्थना-पत्र देना होगा।

3. संरक्षित श्रमिक के विरुद्ध कार्यवाही करना-कोई भी नियोक्ता औद्योगिक विवाद की कार्यवाही के दौरान किसी भी संरक्षित श्रमिक के विरुद्ध कोई ऐसी कार्यवाही नहीं करेगा जिससे श्रमिक की सेवा की शर्तों पर विपरीत प्रभाव पड़े अथवा वह सेवा से हट जाये या अन्य किसी प्रकार से दण्डित हो जाये

उपरोक्त के सन्दर्भ में संरक्षित श्रमिक से आशय उस श्रमिक से है जो संस्थान से सम्बन्धित रजिस्टर्ड श्रम संघ का पदाधिकारी है।

4. सुरक्षित श्रमिकों की संख्या प्रत्येक औद्योगिक संस्थान में सुरक्षित श्रमिकों की संख्या कुल श्रमिक संख्याओं का 1 प्रतिशत निश्चित है लेकिन इनकी कम से कम संख्या पाँच होनी चाहिये और अधिक से अधिक सौ होनी चाहिये। समुचित सरकार सुरक्षित श्रमिकों के सम्बन्ध में आवश्यक नियमों का भी निर्माण कर सकती है ये वे नियम होते हैं जिनके अनुसार सुरक्षित श्रमिकों को चुना जायेगा और उन्हें मान्यता प्रदान की जायेगी।

5. आदेश जारी करनाजब कोई नियोक्ता धारा 33(2) के अन्तर्गत स्वयं द्वारा की गयी कार्यवाही की अनुमति के लिये प्रार्थना-पत्र समझौता अधिकारी बोर्ड,श्रम न्यायालय,पंच या अधिकरण के समक्ष प्रस्तुत करता है तो निर्दिष्ट अधिकारी तुरन्त इस प्रार्थना-पत्र पर सुनवाई करेगा और प्रार्थना-पत्र प्राप्त करने के तीन महीने के अन्दर जैसा भी उचित समझे आदेश जारी करेगा। __यदि कोई अधिकारी उचित समझता है तो उचित कारणों के आधार पर इस अवधि को बढ़ा भी सकता

6. दण्डयदि कोई नियोक्ता धारा 33 के प्रावधानों का उल्लंघन करता है तो उसे 6 महीनों तक के कारावास की सजा या 1 हजार रुपये तक का जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जा सकता है।

Industrial Disputes Act 1947

सेवा की शर्तों में परिवर्तन करने पर शिकायत

(Complaint as to Change in Service Conditions)

यदि कोई नियोक्ता औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 33 का पालन नहीं करते हुये विवाद की कार्यवाही के समय किसी श्रमिक की सेवा की शर्तों में परिवर्तन करता है अथवा उसे पदमुक्त या पदच्युत कर देता है तो वह पीड़ित श्रमिक इसकी लिखित शिकायत निम्न को कर सकता है

(i) यदि कार्यवाही समझौता अधिकारी या बोर्ड के पास चल रही है तो वह इस शिकायत को समझौता अधिकारी या बोर्ड के पास भेजेगा।

(ii) यदि कार्यवाही पंच,श्रम न्यायालय, अधिकरण अथवा राष्ट्रीय अधिकरण के समक्ष चल रही है तो पीडित श्रमिक शिकायत इसके पास भेजेगा। ये शिकायत को विवाद मानते हए उस पर निर्णय करेंगे और इस निर्णय को समुचित सरकार के पास प्रस्तुत करेंगे।

कार्यवाही को हस्तान्तरण करने की शक्ति

(Power to Transfer Proceedings)

(i) समुचित सरकार कारण सहित लिखित आदेश जारी करके किसी भी श्रम कल्याण अधिकरण राष्टीय अधिकरण के समक्ष चल रही किसी भी कार्यवाही को वापिस ले सकती है तथा किसी अन्य श्रम न्यायालय, अधिकरण अथवा राष्ट्रीय अधिकरण को अंतरित कर सकती है। ऐसी दशा में निर्दिष्ट प्राधिकारी सरकारी आदेश के अन्तर्गत कार्यवाही पर उचित प्रकार से विचार करेगा।।

यदि कोई कार्यवाही अधिकरण अथवा राष्ट्रीय अधिकरण के पास चल रही है तो उसे भी श्रम न्यायालय के पास हस्तान्तरित किया जा सकता है।

 (ii) यदि समुचित सरकार अधिकार दे तो अधिकरण अथवा राष्ट्रीय न्यायाधिकरण धारा 33 तथा  के अन्तर्गत चल रही किसी कार्यवाही को श्रम न्यायालय को हस्तान्तरित कर सकता है लेकिन इस आशय की अधिसूचना समुचित सरकार के लिये सरकारी गजट में प्रकाशित करना अनिवार्य है।

नियोक्ता से धन की वसूली करना

(Recovery of Money from Employer)

सेवायोजक से बकाया धन की वसूली के सम्बन्ध में निम्न प्रावधान औद्योगिक विवाद अधिनियम में। दिये गये हैं। इनका वर्णन निम्नलिखित प्रकार है

1 प्रार्थना पत्र देनायदि किसी ठहराव के अन्तर्गत अथवा छंटनी या जबरन छट्टी या उपक्रम के बन्द होने के कारण किसी नियोक्ता पर किसी श्रमिक की क्षतिपूर्ति की राशि बकाया है तो उस श्रमिक को अथवा उसके द्वारा अधिकृत व्यक्ति को अथवा श्रमिक की मृत्यु पर उसके उत्तराधिकारी को इस आशय के लिये लिखित में एक आवेदन समुचित सरकार को देना चाहिये। यदि समुचित सरकार आवेदन से सन्तुष्ट होगी तो वह उस राशि के लिये जिलाधीश को एक प्रमाण-पत्र जारी करेगी। वह जिलाधीश क्षतिपूर्ति की उस राशि को भूमि के लगान की तरह वसूल करेगा।

क्षतिपूर्ति की बकाया राशि के लिये आवेदन राशि बकाया होने की तिथि से 1 वर्ष के भीतर कर देना चाहिये लेकिन यदि सरकार आवेदन में देरी का कारण उपयुक्त समझती है तो आवेदन की 1 वर्ष की अवधि को बढ़ा भी सकती है।

2. राशि की गणनायदि किसी श्रमिक को अपने नियोक्ता से कोई राशि प्राप्त करनी है अथवा कोई लाभ प्राप्त करना है तो ऐसी राशि या लाभ की गणना करने का कार्य समुचित सरकार किसी भी श्रम न्यायालय को दे सकती है। श्रम न्यायालय औद्योगिक विवाद अधिनियम के अधीन राशि या लाभ की गणना अधिक से अधिक तीन महीनों में पूरा करेगा। आवश्यकता की दशा में श्रम न्यायालय का अधिकारी गणना की अवधि को बढ़ा भी सकता है।

3. कमिश्नर की नियुक्तियदि श्रम न्यायालय उचित समझे तो राशि या लाभ की गणना करने के लिये एक कमिश्नर नियुक्त कर सकता है। यह कमिश्नर आवश्यक साक्ष्य के आधार पर श्रम न्यायालय को अपनी रिपोर्ट देगा तब श्रम न्यायालय रिपोर्ट और अन्य परिस्थितियाँ जाँच कर लाभ की राशि का निर्धारण करेगा।

4. समुचित सरकार के पास रिपोर्ट भेजना श्रम न्यायालय अपना निर्णय समुचित सरकार के पास भेजेगा। श्रम न्यायालय द्वारा गणना की गयी राशि की वसूली के लिये जिलाधीश को निर्देशित किया जायेगा जो उस राशि को भूमि के लगान की तरह वसूल करेगा।

5. एक ही प्रार्थनापत्रयदि एक ही नियोक्ता के यहाँ काम करने वाले अनेक श्रमिक उस से कोई राशि या लाभ प्राप्त करने के अधिकारी हैं तो अधिनियमों के नियमों के अन्तर्गत प्राप्त की जाने वाली राशि के लिये उन सभी श्रमिकों की ओर से केवल एक ही प्रार्थना-पत्र दिया जा सकता है।

अपराधों की सुनवाई करना

(Hearing of Offences)

कोई न्यायालय दण्डनीय अपराधों की सुनवाई तभी करेगा जबकि समचित सरकार या उसके अधीन कोई अधिकारी सम्बन्धित शिकायत को करे।

मेटोपॉलिटन मजिस्ट्रेट या प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट से निम्न श्रेणी का न्यायालय औद्योगिक विवाद अधिनियम के अन्तर्गत दण्डनीय अपराधा का सुनवाई नहा करगा।

Industrial Disputes Act 1947

व्यक्तियों की सुरक्षा

(Protection of Persons)

औटोगिक विवाद अधिनियम की धारा 35 के अन्तर्गत व्यक्तियों की सुरक्षा के सम्बन्ध में अगलिखित

1 गैर कानूनी हड़ताल या तालाबन्दी में भाग लेने से इन्कार करने की दशा में सरक्षा-कोई भी श्रमिक जो इस अधिनियम के अन्तर्गत किसी गैर-कानूनी हडताल या तालाबन्दी में भाग लेने से या उसका समथन करने से मना करता है तो ऐसी मनाही के कारण उसे किसी श्रम संघ द्वारा संघ से निकाला नहीं जा सकता है, वह किसी प्रकार से आर्थिक दण्ड से दण्डित नहीं किया जा सकता है, वह किसी ऐसे लाभ या अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता जिसका कि वह अधिकारी है. वह किसी श्रम संघ में अयोग्य सदस्य के रूप में नहीं रखा जा सकता है।

2. क्षतिपूर्ति का भुगतानयदि किसी श्रम संघ के नियमों के अन्तर्गत विवाद का निपटारा किसी विशेष विधि से होना है तो श्रम संघ के नियमों की कोई भी व्यवस्था इस धारा के अन्तर्गत सुरक्षित अधिकार या छूट को प्रभावित नहीं करेगी तथा ऐसी किसी कार्यवाही में सिविल न्यायालय श्रम संघ या समिति से निकाले गये किसी व्यक्ति के लिये यह आदेश दे सकता है कि उसे श्रम संघ या समिति के कोष में से उचित या न्यायसंगत क्षतिपूर्ति की राशि का भुगतान किया जाये।।

पक्षकारों का प्रतिनिधित्व

(Representation of Parties)

औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 36 के अधीन पक्षकारों के प्रतिनिधित्व सम्बन्धी प्रावधान वर्णित हैं जो निम्न प्रकार हैं

1 श्रमिक का प्रतिनिधित्वएक श्रमिक जो विवाद का पक्षकार है किसी कार्यवाही में निम्न को अपना प्रतिनिधित्व कराने का अधिकार रखता है

() किसी रजिस्टर्ड श्रम संघ के सदस्य अथवा अन्य अधिकारी द्वारा, जिसका कि वह सदस्य है।

() श्रमिक संघों के किसी अन्य संघ के सदस्य अथवा अधिकारी द्वारा जिससे कि उक्त श्रम संघ सम्बन्धित है।

() यदि श्रमिक किसी श्रम संघ का सदस्य नहीं है तो किसी भी श्रम संघ के कार्यकारी सदस्य अथवा  अधिकारी अथवा उद्योग में सेवारत किसी भी दूसरे कर्मचारी द्वारा।

2. नियोक्ता का प्रतिनिधित्वएक नियोक्ता जो विवाद का पक्षकार है. इस अधिनियम के प्रावधानों के अधीन किसी भी कार्यवाही में निम्नलिखित द्वारा अपना प्रतिनिधित्व कराने का अधिकार रखता है

(अ) नियोक्ताओं के किसी संघ के अधिकारी द्वारा जिसका कि वह सदस्य है। (ब) नियोक्ताओं के संघों में किसी संघ के अधिकारी द्वारा जिससे कि उक्त संघ सम्बन्धित हैं। (स) जहाँ नियोक्ता नियोक्ताओं के किसी संघ का सदस्य नहीं है तो उद्योग से सम्बन्धित अन्य नियोक्ताओं के किसी संघ के अधिकारी द्वारा अथवा उसी उद्योग में लगे किसी भी नियोक्ता द्वारा।

3. कुछ दशाओं में वकील नियुक्त करने का अधिकार नहीं-औद्योगिक विवाद अधिनियम के अधीन विवाद के किसी भी पक्षकार को किसी कार्यवाही में अथवा किसी के समक्ष कार्यवाही में वकील द्वारा अपना प्रतिनिधित्व कराने का अधिकार नहीं है।

3. कानूनी सलाहकार की नियुक्ति करनाकिसी श्रम न्यायालय, अधिकरण या राष्ट्रीय अधिकरण के समक्ष कार्यवाही में विवाद के किसी पक्षकार को दूसरे पक्षकारों की सहमति से या सम्बन्धित अधिकारी की आज्ञा से वैधानिक सलाहकार द्वारा अपना प्रतिनिधित्व कराने का अधिकार होगा।

कठिनाइयों को दर करने की शक्ति या अधिकार

(Rights to Get-rid of Difficulties)

औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 36(A) के अधीन कठिनाइयों को दूर करने के सम्बन्ध में विभिन्न प्रावधान दिये गये हैं। ये प्रावधान निम्नलिखित हैं

1 निर्दिष्ट सरकार द्वारा निर्देश देना-यदि समुचित सरकार की दृष्टि में किसी निर्णय या समझौते के। किसी प्रावधान के सम्बन्ध में कोई शंका उत्पन्न होती है तो वह इस विषय को उचित श्रम न्यायालय अधिकरण या राष्ट्रीय अधिकरण को निर्देशित करेगी।

2. न्यायालय का निर्णय अन्तिम श्रम न्यायालय, अधिकरण व राष्ट्रीय अधिकरण निर्दिष्ट विषय के पक्षकारों को सुनने के बाद और सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखने के बाद अपना निर्णय देगा जो अन्तिम होगा और सभी पक्षकारों पर बाध्य होगा।

छूट देने का अधिकार

(Power to Exempt)

औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 36(B) के अन्तर्गत छूट देने की शक्ति से सम्बन्धित प्रावधानों का वर्णन किया गया है जो निम्नलिखित हैं-यदि समुचित सरकार इस बात से सहमत हो जाती है कि किसी सरकार के किसी विभाग द्वारा नियन्त्रित किसी औद्योगिक संस्थान या उपक्रम या उपक्रमों में नियुक्त श्रमिकों के विवादों की जाँच पड़ताल तथा समझौता कराने की पर्याप्त व्यवस्था उपलब्ध है तो सरकार राजकीय गजट में अधिसूचना देकर कुछ शर्तों सहित या बिना शर्त के इन उपक्रमों को इस अधिनियम के सभी या कुछ। प्रावधानों के पालन से मुक्ति दे सकती है।

अधिनियम के अन्तर्गत की जाने वाली कार्यवाही की सुरक्षा

(Power of Action taken under this Act)

यदि किसी व्यक्ति ने सदभावना से कार्य किया है अथवा वह सदभावना से कार्य करने का उद्देश्य रखता है तो औद्योगिक विवाद अधिनियम के अन्तर्गत बनाये गये प्रावधानों के अधीन ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध वैधानिक कार्यवाही नहीं की जायेगी।

नियम बनाने की शक्ति

(Power to make Rules)

औद्योगिक अधिनियम की धारा 37 के अन्तर्गत नियम बनाने की शक्ति के सम्बन्ध में प्रावधान दिये गये हैं। इन प्रावधानों का वर्णन निम्नलिखित प्रकार है

1 पूर्व प्रकाशन की शर्तेसमुचित सरकार पूर्व प्रकाशन की शर्तों के अन्तर्गत अधिनियम के प्रावधानों को प्रभावशाली बनाने के लिये आवश्यक नियम बनायेंगी।

2. नियमों के विषयसरकार द्वारा बनाये गये नियम निम्नलिखित सभी विषयों या उनमें से किसी एक के लिये प्रावधान बना सकेंगे।

(i) समझौता अधिकारी बोर्ड न्यायालय अधिकरण राष्ट्रीय अधिकरण के अधिकार और कार्यविधि के सम्बन्ध में नियम तथा निर्देशित मामलों के सम्बन्ध में नियम।

(ii) पंचों के अधिकार तथा उनके द्वारा अपनायी जाने वाली कार्यविधि के सम्बन्ध में नियम ।

(iii) मूल्यांककों की नियुक्ति के सम्बन्ध में नियम।

(iv) कार्यसमितियों के कानून और कार्यविधि के सम्बन्ध में नियम।

(v) न्यायालय तथा बोर्ड के सदस्यों तथा श्रम न्यायालय, अधिकरण, राष्ट्रीय अधिकरण के अधिकारियों तथा मूल्यांककों द्वारा स्वीकार किये जाने वाले भत्ते के सम्बन्ध में नियम।

(vi) न्यायालय बोर्ड,श्रम न्यायालय, अधिकरण अथवा राष्ट्रीय अधिकरण के सदस्यों को वेतन तथा भत्ते दिये जाने के सम्बन्ध में नियम।

(vii) हड़ताल या तालाबन्दी की सूचना देने के सम्बन्ध में नियम।

श्रम न्यायालय अधिकरण या राष्ट्रीय अधिकरण में चल रही कार्यवाही के सम्बन्ध में वकीलों द्वारा पक्षकारों का प्रतिनिधित्व करने के सम्बन्ध में नियम का किसी अन्य मामले के सम्बन्ध में नियम जो निर्देशित किया जायें या किया जाना है। आर्थिक दण्ड का प्रावधान-विवाद अधिनियम की धारा 38 के नियमों का पालन न करने पर अधि टण्ड से दोषी व्यक्ति को दण्डित किया जा सकता है। से अधिक पचास रुपये तक के दण्ड से दोषी व्यक्ति को दण्डित किया जा सकता है।

सरकार के पास नियमों को प्रस्तुत करना-विवाद अधिनियम की इस धारा के अन्तर्गत शीघ से शीघ्र राज्य विधान सभा में प्रस्तुत किये जायेंगे अथवा यदि समुचित सरकार बनाये।

सभी नियम शीघ्र से शीघ्र राज्य वि केन्द्रीय सरकार है तो सभी नियमों को दोनों सदनों में प्र

5. नियम के परिवर्तित या निष्प्रभावी होने पर प्रभावइस धारा के अन्तर्गत केन्द्रीय सरकार द्वारा निर्मित प्रत्येक नियम शीघ्र से शीघ्र संसद के प्रत्येक सदन में तीस दिन के लिये प्रस्तुत किया जायेगा। यदि दोनों सदन विचार-विमर्श के बाद नियम में परिवर्तन करने के लिये सहमत हो जाते हैं तो वे उसमें परिवर्तन करेंगे और परिवर्तित रूप प्रभावशाली होगा। यदि दोनों सदन नियम नहीं बनाने के विषय में सहमत हो जायें तो उनकी आपसी सहमति के बाद नियम निष्पभावी हो जायेगा। नियम के परिवर्तित या निष्प्रभावी होने से पहले की किसी बात या व्यवस्था पर विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा।

अधिकारों का प्रत्यायोजन

(Delegation of Powers)

औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 39 में अधिकारों को सौंपने से सम्बन्धित प्रावधान वर्णित हैं जो निम्न प्रकार हैं

समुचित सरकार सरकारी गजट में अधिसूचना देकर यह निर्देश देगी कि उसे इस अधिनियम या इसके नियमों के अधीन जो शक्तियाँ प्राप्त हैं वे निम्नलिखित द्वारा भी प्रयोग में लाई जा सकती हैं(i) यदि केन्द्रीय सरकार समुचित सरकार है तो उसके अधिकारी द्वारा या राज्य सरकार द्वारा या राज्य

सरकार के अधिकारी द्वारा जिनका नाम अधिसूचना में वर्णित है । (ii) यदि समुचित सरकार राज्य सरकार है तो उसके किसी अधिकारी द्वारा जिसका अधिसूचना में उल्लेख किया गया है।

अनुसूचियों में परिवर्तन करने की शक्ति

(Power to Amend Schedules)

औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 40 के अन्तर्गत अनुसूचियों में संशोधन करने से सम्बन्धित प्रावधान निम्न हैं

1 प्रथम अनुसूची में परिवर्तन-यदि समुचित सरकार जनहित में यह उचित समझती है तो वह पहली अनुसूची में अन्य उद्योग अधिसूचना जारी करके, शामिल कर सकती है। ऐसी अधिसूचना के जारी होने पर पहली अनुसूची संशोधित मानी जायेगी।

2. द्वितीय तृतीय अनुसूची में परिवर्तन-केन्द्रीय सरकार सरकारी गजट में अधिसूचना जारी करके दूसरी या तीसरी अनुसूची में परिवर्तन कर सकती है और ऐसी अधिसूचना के जारी होने के बाद दूसरी या तीसरी अनुसूची संशोधित मानी जायेगी।

3. अधिसूचना को संसद या विधान सभा के समक्ष प्रस्तुत करना-अधिसूचना जारी होने के बाद शीघ्र से शीघ्र उसे संसद के समक्ष या विधान सभा के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिये । यदि अधिसूचना केन्द्रीय सरकार द्वारा जारी की जाती है तो उसे संसद के समक्ष अथवा यदि अधिसूचना राज्य सरकार द्वारा जारी की जाती है तो उसे विधान सभा के समक्ष प्रस्तुत किया जाना आवश्यक है।

परीक्षा हेतु सम्भावित महत्त्वपूर्ण प्रश्न

(EXPECTED IMPORTANT QUESTIONS FOR EXAMINATION)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(LONG ANSWER QUESTIONS)

1 औद्योगिक संघर्ष से आप क्या समझते हैं ? भारत में औद्योगिक संघर्षों के कौन-कौन से प्रमुख कारण। हैं ? समझाइए।

What do you understand by the term ‘Industrial Dispute’? What are the main causes of industrial disputes in India ? Explain.

2. औद्योगिक संघर्ष अधिनियम,1947 के अन्तर्गत निम्नलिखित शब्दों की परिभाषा दीजिए- मजदूरी. (ii) औसत वेतन, (ii) उद्योग एवं (iv) लोकोपयोगी सेवा।

Define the following terms as explained in the Industrial Disputes Act, 1947 : (i) Wages, (ii) Average Pay, (iii) Industry and (iv) Public Utility Service.

3. औद्योगिक संघर्ष अधिनियम, 1947 के अन्तर्गत निम्नलिखित शब्दों की व्याख्या कीजिए-(i) जबरी छुट्टी, (ii) लोकोपयोगी सेवा, (iii) हड़ताल, (iv) छंटनी एवं (v) तालाबन्दी।

Explain the following terms in the Industrial Disputes Act, 1947 : (i) Lay off, (ii) Public Utility Service, (iii) Strike, (iv) Retrenchment and (v) Lock-out.

4. औद्योगिक संघर्ष अधिनियम, 1947 में औद्योगिक संघर्षों को रोकने और समझौता करने के सम्बन्ध में भारत में क्या प्रावधान हैं ? बतलाइये।

What are the provisions of Industrial Disputes Act, 1947 relating to prevention and settlement of industrial disputes in India ? Discuss.

5. औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के अन्तर्गत औद्योगिक संघर्षों का निपटारा करने के लिए उपलब्ध तन्त्र की स्पष्ट व्याख्या कीजिए।

Critically discuss the machinery that exists under the Industrial Disputes Act for settlement of disputes.

6. औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के अधीन औद्योगिक विवादों को रोकने एवं निपटारा करने के लिए किस तन्त्र की स्थापना की गई है, स्पष्ट करो।

Explain clearly the machinery which exists for the prevention and settlement of Industrial disputes under the Industrial Disputes Act.

7. समझौता अधिकारी,समझौता बोर्ड,श्रम न्यायालय तथा राष्ट्रीय न्यायाधिकरण के कर्तव्यों एवं अधिकारों की विवेचना कीजिए।

Discuss the duties and powers of Conciliation Officer, Conciliation Board, Labour Court and National Tribunal.

8. औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के अन्तर्गत औद्योगिक विवादों को रोकने तथा उनका निपटारा करने के लिए जो प्राधिकारी सृजित किये जा सकते हैं, उनके सम्बन्ध में विस्तृत वर्णन तथा व्याख्या कीजिए।

State and explain in detail all about the various authorities which can be created under the Industrial Disputes Act, 1947 for prevention and settlement of industrial disputes.

9.साबन्दी में अन्तर कीजिए। औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के अन्तर्गत हडताल और प्रतिबन्ध लगाये गये हैं ? किन परिस्थितियों में हडताल और तालाबन्दी को

Distinguish between a strike and lockout. What restrictions have been imposing strikes and lockouts under the Industrial Disputes Act, 1947? Under wn circumstances, strikes and lockouts can be declared illegal.

10. जनोपयोगी सेवा की परिभाषा दीजिए। उसमें हडताल व तालाबन्दी पर क्या प्रतिबन्ध लगाये गय

Define Public Utility Service. What restrictions have been imposed on strikes and lockouts in public utility services?

11. हड़ताल एवं तालाबन्दी में अन्तर बताइए। ये किस समय अवैध माने जाते हैं ? हड़ताल एवं तालाबन्दियों पर निषेध से सम्बन्धित प्रावधानों का वर्णन कीजिए।

Distinguish between Strike and Lock-out. When will a strike or a lock-out is illegal? State the provisions relating to the prohibition of strikes and lock-outs.

12. काम देने में इन्कारी (असमर्थता) तथा छंटनी शब्दों को परिभाषित कीजिए और भारतीय औद्योगिक संघर्ष अधिनियम, 1947 में इसके सम्बन्ध में जो प्रावधान हैं, उनकी व्याख्या कीजिए।

Define the term ‘Layoff’ and ‘Retrenchment’ and discuss the law relating to them as contained in Industrial Disputes Act, 1947. (Bundelkhand Jhansi, 2012;

13. औद्योगिक विवाद अधिनियम,1947 के अन्तर्गत ‘श्रमिकों की छंटनी’ तथा कार्य देने से इनकारी (अनिवार्य छुट्टी) सम्बन्धी प्रावधानों को बताइये।

Discuss the provisions of Industrial Disputes Act, 1947 regarding retrenchment and lay-off.

14. औद्योगिक संघर्ष अधिनियम,1947 के अन्तर्गत दण्ड सम्बन्धी प्रावधानों को सविस्तार स्पष्ट कीजिए।

Explain the provisions of the Industrial Disputes Act related to penalties.

लघु उत्तरीय प्रश्न

(SHORT ANSWER QUESTIONS)

1 औद्योगिक विवाद अधिनियम के कोई चार उद्देश्य बताइये।

State any four objectives of Industrial Disputes Act.

2. औद्योगिक विवाद के क्या कारण हैं ?

What are the causes of the Industrial Dispute?

3. औद्योगिक विवाद अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ/प्रावधान बताइये।

Describe the main features of Industrial Dispute Act.

4. औसत वेतन को परिभाषित कीजिए।

Define Average Pay.

5. समझौता अधिकारी कौन होता है ?

Who is a conciliation officer?

6. श्रम न्यायालय किसे कहते हैं ?

What is Labour Court?

7. जाँच न्यायालय किसे कहते हैं ?

What is a Court of Enquiry?

8. परिवर्तन की सूचना किसे कहते हैं ?

What is Notice

9. समझौता बोर्ड पर सा, 1 टिप्पणा लिखिए

Write short note on Conciliation Board.

10. राष्ट्रीय अधिकरण (Tribunal) को समझाइये।

Explain the National Tribunal.

11. उपयुक्त सरकार (Appropriate Government) को समझाइये।

Explain the Appropriate Government.

12. समझौता अधिकारी के कर्त्तव्य एवं शक्तियों को बताइये।

Explain the power and duties of Conciliation Officer.

13. समझौता बोर्ड के कर्त्तव्य बताइये ।

Explain the duties of Conciliation Board.

14. हड़ताल एवं तालाबन्दी में अन्तर बताइये ।

Distinguish between Strike and Lockout.

15. हड़ताल एवं तालाबन्दी पर क्या सामान्य प्रतिबन्ध लगाये गये हैं ?

What are the general prohibitions on Strikes and Lockouts?

16. औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 के अन्तर्गत हड़ताल और तालाबन्दी पर क्या प्रतिबन्ध लगाये गये

What restrictions have been imposed on strikes and lockouts under the Industrial Disputes Act, 1947 ?

17. किन परिस्थितियों में हड़ताल और तालाबन्दी को अवैध घोषित किया जा सकता है ?

Under what circumstances strikes and lockouts can be declared illegal?

18. जनोपयोगी सेवाओं में हड़ताल व तालाबन्दी पर क्या प्रतिबन्ध लगाये गये हैं ?

What restrictions have been imposed on strikes and lockouts in public utility services?

19. अवैध हड़ताल एवं तालाबन्दी क्या है ?

What is illegal Strike and Lockouts?

20. काम देने में असमर्थता एवं छंटनी शब्दों को परिभाषित कीजिए।

Define the term Layoff and Retrenchment.

21. काम देने में असमर्थता एवं छंटनी शब्दों से आप क्या समझते हैं ?

What do you understand by the term Layoff and Retrenchment?

22. छंटनी के क्या कारण हैं ?

What are the causes of Retrenchment?

23. काम देने में असमर्थता एवं छंटनी में अन्तर बताइये।

Distinguish between Lay-off and Retrenchment.

24. काम देने में असमर्थता से सम्बन्धित प्रमुख प्रावधान क्या हैं ?

What are the main provisions related to Lay-off?

25. छंटनी से सम्बन्धित प्रमुख प्रावधान क्या हैं ? |

What are the main provisions related to Retrenchment ?

 

chetansati

Admin

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