BCom 1st Year Inflation Accounting Study Material Notes In Hindi

//

प्रतिस्थापन लागत के आधार पर हास के आयोजन के पक्ष में तर्क

Table of Contents

(Arguments in favour of basing depreciation on Replacement Cost)

(1) सम्पत्ति का सरल प्रतिस्थापन (Easy Replacement of Asset)-प्रतिस्थापन लागत के आधार पर ह्रास के आयोजन से व्यवसाय की पुरानी सम्पत्ति के लिये पर्याप्त धन रहेगा। इस व्यवस्था से संस्था को भावी वित्तीय कठिनाइयों से बचाया जा सकता है।

(2) सही लाभ का निर्धारण (Determination of True Profits)-लाभ-हानि खाते में लगभग सभी मदें अपने मल्य पर दिखलाई जाती हैं। अत: यदि ह्रास का आयोजन सम्पत्ति की प्रतिस्थापन लागत पर किया जाता है तो लाभ-हानि खाता व्यवसाय का सही एवं सच्चा परिणाम दिखलायेगा। प्रतिस्थापन लागत भूतकालीन मूल्यों में समायोजन पर ह्रास की राशि को चालू मूल्यों के समीप लाती है। ह्रास सम्पत्ति के भौतिक क्षय के अनुसार होता है न कि मौद्रिक क्षय के अनुसार।

(3) पूँजी को अछूती बनाये रखना (Keeping the Capital Intact)-बढ़ते मूल्य-स्तर की दशा में यदि मूल लागत के | आधार पर ह्रास का आयोजन किया जाता है तो लाभ-हानि खाता अधिक लाभ दिखलायेगा। यदि इन सभी लाभों को लाभांश के रूप | में बाँट दिया जाता है तो कम आयोजित ह्रास की सीमा तक यह पूजी का वितरण होगा। प्रतिस्थापन लागत विधि में ऐसा नहीं होता क्योंकि इसमें हास का आयोजन सम्पत्ति के बढ़ते हुए मूल्य (प्रतिस्थापन लागत) पर किया जाता है। इस प्रकार इस विधि में संस्थ की पूँजी का क्षय नहीं हो पाता।

(4) व्यावसायिक चक्रों में उपयोग (Useful in Trade Cycles)-प्रतिस्थापन लागत विधि व्यावसायिक चक्रकों के | समय भी खरी उतरती है। बढ़ते हुए मूल्यों की दशा में व्यवसाय के लाभ बढ़ जाते हैं। साथ ही सम्पत्ति की प्रतिस्थापन लागत भी बढ़ जाती है और जब ह्रास आयोजन इस बढ़ी हुई लागत के आधार पर किया जाता है तो अधिक ह्रास कुछ सीमा तक बढ़े हुए लाभों को समायोजित कर देता है। दूसरी ओर घटते हुए मूल्यों की दशा में व्यावसायिक लाभ घट जाते हैं तथा सम्पत्ति की प्रतिस्थापन लागत | कम हो जाने के कारण ह्रास की राशि भी घट जाती है जो कम लाभों के अनुरूप ही होगा।।

(5) उत्पादन लागत का सही निर्धारण (Realistic Determination of Cost Production)-प्रतिस्पर्धा की दशा में प्रतिस्थापन लागत के आधार पर हास की गणना करके वस्तु की उत्पादन लागत ज्ञात करना ही उचित रहता है। संस्था में मल्य निर्धारण विशेषतः टेण्डर मूल्य का निर्धारण इसी लागत के आधार पर किया जाता है।

(6) ‘रूढ़िवादिता की प्रथाके अनुरूप (Conforming with Convention of Conservatism)-इस प्रथा का अनसार व्यवसाय की आयों को बढ़ाकर नहीं दिखाना चाहिये। मल्य-वद्धि के समय प्रतिस्थापन लागत के आधार पर ह्रास के। आयोजन से व्यवसाय के लाभों को कुछ सीमा तक कम करके दिखलाया जा सकता है।

(7) प्रबन्धकीय कुशलता का सही माप (Realistic Measurement of Managerial Efficiency)-मूल्य-वृद्धि के समय एक तो स्टाक पर ही लाभ होने लगता है और दूसरे मूल लागत के आधार पर ह्रास के आयोजन से लाभों की मात्रा और भी बढ़ जाती है। अधिक लाभ प्रबन्धकीय कुशलता के प्रतीक माने जाते हैं। अत: मल्य-वद्धि के समय संस्था का प्रबन्ध वास्तविकता से। अधिक कुशल दिखलाई देगा। इसके विपरीत मूल्य में कमी के समय प्रबन्ध अकुशल दिखाई देगा। प्रतिस्थापन लागत पर ह्रास के आयोजन से इस अवास्तविकता को कुछ सीमता तक रोका जा सकता है।

(8) विभिन्न उद्देश्यों में उपयोगी (Useful in Different Objectives)-बीमा, वित्तीय प्रबन्धन (financing) तथा सम्पत्तिा सामा के नियमन (Value Regulation) में सम्पत्ति का चाल मल्य ही प्रयोग में लाया जाता है। अत: ह्रास का आयोजन भी इसी मूल्य से सम्बन्धित होना चाहिये।

(9) कर-दायित्व में कमी (Reduction in Tax Liability)-इसमें वार्षिक ह्रास की राशि अधिक होने के कारण लाभ कम हो जाते हैं तथा कर-दायित्व कम हो जाता है।

उपर्युक्त कारणों से आजकल लेखापाल प्रतिस्थापन लागत के आधार पर ह्रास का आयोजन उचित मानते हैं। कुछ न्यायालयों ने भी इसके पक्ष में निर्णय दिये हैं।

प्रतिस्थापन लागत के आधार पर ह्रास के आयोजन के विपक्ष में तर्क

(Arguments against basing depreciation on Replacement Cost)

(1) प्रतिस्थापन लागत का अस्पष्ट अर्थ (Ambiguous Meaning of Replacement Cost)-कुछ विद्वानों का मत है कि सम्पत्ति की प्रतिस्थापन लागत की गणना प्रत्येक वर्ष करनी चाहिये और सम्पत्ति पर ह्रास का आयोजन सम्बन्धित वर्ष में सम्पत्ति की प्रतिस्थापन लागत के आधार पर करना चाहिये। इससे पिछले ह्रास आयेजनों में संशोधन की आवश्यकता नहीं होती। कुछ विद्वानों का मत है कि सम्पत्ति के उपयोगी जीवन काल की समाप्ति पर उस सम्पत्ति की प्रतिस्थापना लागत को ह्रास आयोजन का आधार मानना चाहिये। यह मत ही अधिक उचित है।

(2) गणना में कठिनाई (Difficult to Calculate)-प्रतिस्थापन लागत पर हास के आयोजन से गणना में कठिनाई आती है क्योंकि प्रतिस्थापना लागत सम्पत्ति के उपयोगी जीवन काल और मूल्य-स्तर को ध्यान में रखकर भी मालूम की जा प्रारम्भ में इनका सही अनुमान सम्भव नहीं।

(3) कौन-सा कीमत स्तर (Which Price Level)-मूल्य-स्तर में परिवर्तन के आधार पर मूल लागत में आवश्यक समायोजन करके ही सम्पत्ति की प्रतिस्थापन लागत ज्ञात की जा सकती है। परन्तु प्रश्न यह उठता है कि इसके लिये कौन-सा मूल्य स्तर लिया जाये? थोक मूल्य सूचनांक उपभोक्ता मूल्य सूचनांक पूँजीगत वस्तुओं के मूल्य सूचनांक आदि की गणना की जाती है। लेकिन इन सबसे अधिक उचित व्यवसाय की व्यक्तिगत सम्पत्ति का मूल्य-स्तर रहेगा। किन्तु इसके सम्बन्ध में आवश्यक सूचनायें मिलना कठिन है।

(4) लेखांकन में केवल भूतकालीन घटनाओं का अभिलेखन होता है (Accounting Records Only Past Events)-इस दृष्टि से प्रतिस्थापन लागत (भावी घटना) के आधार पर ह्रास का आयोजन उचित नही हैं।

(5) मुद्रा अवधारणा के प्रतिकूल (Against the Money Concept)-प्रतिस्थापन लागत में सम्पत्ति के मौद्रिक मूल्य के स्थान पर उसके आर्थिक मूल्य का ध्यान रखा जाता है। इससे लेखों में अनिश्चितता बढ़ जाती है।

(6) पूर्ण प्रतिस्थापन असम्भव (Complete Replacement Impossible)-प्रतिस्थापन लागत के आधार पर ह्रास के आयोजन से भी सम्पत्ति का पूर्ण प्रतिस्थापना नहीं किया जा सकता क्योंकि प्रतिस्थापन के समय तक सम्पत्ति में बहुत से सुधार व नये-नये आविष्कार हो सकते हैं जिसके कारण सम्पत्ति के प्रतिस्थापना के साथ-साथ उसके नवीनीकरण । (Modernization) की भी आवश्यकता होगी। लेकिन हास में नवीनीकरण की व्यवस्था नहीं की जाती है। इसी तरह यदि फर्म। पुराने कारोबार के स्थान पर नया कारोबार करने लगे तो फिर बिल्कुल नये किस्म की सम्पत्ति की आवश्यकता होगी।

(7) प्रतिस्थापन भावी पीढ़ी की समस्या है (Replacement is a Problem of Future Generation)-वर्तमान समय में अधिक ह्रास काटकर वस्तु की उत्पादन लागत बढ़ा देना और लाभ की मात्रा कम कर देना, यह वर्तमान उपभोक्ताओं और अंशधारियो दोनों के ही प्रतिकूल होगा। चूँकि प्रतिस्थापित सम्पत्ति का लाभ भावी पीढ़ी को होगा, अत: उसका बोझा भी। भावी पीढ़ी पर ही पड़ना चाहिये।

(8) लेखों में हेर-फेर की सम्भावना (Possibility of Manipulation in Accounts)-प्रतिस्थापन लागत का वस्तुपरक (Objective) माप सम्भव नहीं। यह निर्णयों व विचारों पर आधारित है। अत: प्रबन्धक अपने निहित उद्देश्यों के अनुकूल निर्णय करके लेखों में हेर-फेर करवा सकते हैं। इससे प्रबन्धक अपनी अकुशलताओं को भी छिपा सकते हैं। ।

(9) मुद्रा प्रसार को बढ़ावा (Adds the Severity of Inflation)-मुद्रा प्रसार के समय प्रतिस्थापन लागत पर ह्रास के आयोजन का अर्थ कम लाभ, फलत: कम आय-कर व कम लाभांश का भुगतान होता है। इससे कम्पनी के पास गुप्त संचय बढ़ जाते हैं। जिससे मुद्रा प्रसार की तीव्रता बढ़ जाती है।

(10) कानूनी मान्यता का अभाव (Lack of Legal Acceptance)-प्रतिस्थापन लागत के आधार पर ह्रास के आयोजन को अभी तक किसी भी कानून में मान्यता नहीं मिली है तथा न्यायालयों के मत भी अधिकार इसके विरुद्ध ही हैं। अत: इस आधार पर हास के आयोजन का अर्थ यह होगा कि विभिन्न कानूनों के अन्तर्गत लेखों के प्रस्तुतीकरण के लिये कम्पनी को अलग से लेखे तैयार करने होंगे। इससे कम्पनी पर अनावश्यक कार्य भार पड़ेगा।

उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि मूल्य-स्तर में परिवर्तन के कारण मूल लागत के स्थान पर प्रतिस्थापन लागत का प्रयोग अधिक उपयोगी है किन्तु इसमें साध्यता (Feasibility) तथा वस्तुपरकता (Objectivity) के अभाव के कारण लेखपाल, कानून व न्यायालय सभी इसका प्रयोग उचित नहीं मानते।

(ब) चालू लागत (Current Cost)-मूल लागत और प्रतिस्थापन लागत के दो अतिशयों (extremes) के बीच समझौता स्वरूप कुछ लोग चालू लागत का सुझाव देते हैं। इसमें प्रतिवर्ष ह्रास का आयोजन सम्पत्ति के भतकालीन या भावी मूल्य के आधार पर न करके उसके सम्बन्धित वर्ष के चालू मूल्य पर करते हैं। वर्ष में उसी प्रकार की दूसरी खरीदी गई सम्पत्तियों की लागत को पुरानी सम्पत्ति की चालू लागत या चालू मूल्य माना जायेगा और यदि किसी वर्ष समान प्रकार की सम्पत्तियाँ नहीं क्रय की जाती हैं तो लेखा-वर्ष में सम्पत्ति का औसत बाजार मूल्य उस सम्पत्ति का चालू मूल्य माना जायेगा। अतः स्पष्ट है कि मल्य-स्तर में परिवर्तन की दशा में सम्पत्ति का चालू मूल्य प्रतिवर्ष बदलता ही रहेगा और इस आधार पर ज्ञात किया गया सम्पत्ति पर ह्रास का आयोजन भी प्रतिवर्ष बदलता रहेगा।

चालू लागत पर विचार भी साध्य (feasible) नहीं है। व्यवसाय की सम्पत्ति का चालू मूल्य ज्ञात करना कठिन है क्योकि सम्बन्धित सम्पत्ति के मूल्य सूचकांकों (Price Index Numbers) का मिलना कठिन है। सम्पत्ति की चालू लागत के वस्तुपरक (obiective) माप के अभाव के कारण यह प्रबन्धकीय निर्णयों व मतों से प्रभावित रहेगी और प्रबन्ध द्वारा लेखों में गड़बड़ी किये जाने के अवसर बने रहेंगे। यही नहीं, मूल्यों में वृद्धि की दशा में चालू लागत पर आधारित ह्रास का समायोजन सम्पत्ति के प्रतिस्थापना के लिये भी अपर्याप्त रहेगा क्योंकि मूल्य वृद्धि पर ह्रास की राशि में वृद्धि धीरे-धीरे होती है क्योंकि यह प्रत्येक वर्ष की चालू लागत पर आधारित होती है। लेकिन प्रतिस्थापन लागत का अन्तिम वर्ष की कीमतों पर आधारित होने के कारण इसमें वृद्धि ह्रास की राशि में वृद्धि से अधिक होगी।

BCom 1st Year Inflation Accounting Study Material Notes In Hindi

chetansati

Admin

https://gurujionlinestudy.com

Leave a Reply

Your email address will not be published.

Previous Story

BCom 1st Year Human Resource Accounting Study Material Notes In Hindi

Next Story

BCom 1st Year Responsibility Accounting Study Material notes in Hindi

Latest from B.Com