सी०पी०पी० पद्धति के आधार पर वित्तीय विवरणों की तैयारी-इसके लिये निम्न प्रक्रिया अपनायी जाती है-
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BCom 1st Year Inflation Accounting Study Material Notes In Hindi
(1) स्थायी सम्पत्तियों और अंश पूँजी को चालू प्रतिस्थापना लागत पर दिखलाया जाय। इसके लिये प्रत्येक मद की मूल लागत को एक परिवर्तन कारक (Conversion Factor) अर्थात् चालू वर्ष के मूल्य-स्तर के ऐतिहासिक मूल्य स्तर से अनुपात से गुणा किया जाता है। सूत्र रूप में
Converted Value of the Item = Original Cost of the Item Conversion Factor
उदाहरण के लिये मान लीजिये कि एक मशीन 2010 में ₹ 12,000 की क्रय की गयी। उस वर्ष का मूल्य निर्देशांक 120 था। यदि 2018 का मूल्य निर्देशांक 180 है तो 2018 के पूरक चिट्टे में इसे 100×12,000 = ₹ 18,000 पर दिखलाया जायेगा। ।
सम्पत्ति को उसके चालू मूल्य पर दिखलाने से यदि इसके मूल्य में कोई वृद्धि होती है तो वृद्धि की अतिरिक्त राशि से सम्बन्धित सम्पत्ति खाता डेबिट का पुनर्मूल्यन संचय खाता (Revaluation Reserve Account) क्रेडिट किया जाता है। इस खाते का प्रयोग। समता अंश पूँजी को चालू मूल्य पर दिखलाने से हुई बुद्धि को पूरा करने के लिये किया जा सकता है।
(2) हाय-योग्य सम्पत्तियों पर हास की गणना उनकी पुनवर्णित चालू लागत के आधर पर की जायेगी। यदि ऐतिहासिक लागत के आधार पर आगणिक ह्रास की राशि दी हो तो उसे चालू मूल्य निर्देशांक का सम्बन्धित सम्पत्ति के क्रय के वर्ष के निर्देशांक के अनुपात से गुणा किया जाता है।
(3) वर्तमान वर्ष के चिट्ठे में सभी मौद्रिक मदें अपने चालू मूल्य पर ही होती हैं। अतः पूरक चिट्ठे में उन्हें उसी मूल्य पर दिखलाया जाता है किन्तु तुलनात्मक चिट्ठा में पिछले वर्ष की मौद्रिक मदों को उपर्युक्त (1) में दिये सूत्र के आधार पर तथा वर्ष में हुई वृद्धि को औसत निर्देशांक के आधार पर पुनवर्णित किया जायेगा।
(4) अमूर्त सम्पत्तियों पर विचार करते समय सावधानी से काम लेना चाहिये। चूँकि इन सम्पत्तियों के वसूली-योग्य मूल्य का अनुमान लगाना बहुत कठिन होता है, अत: रूढ़िवादिता की सामान्य परिपाटी का पालन करते हुऐ इनके पुनर्मूल्यन का कार्य त्यागा जा सकता है।
(5) मौद्रिक मदों के रोके रखने से क्रय शक्ति में परिवर्तन का लाभ अथवा हानि को पुरक लाभ-हानि खाते में पृथक से दिखलाया जायेगा। इस सम्बन्ध में ध्यान रहे कि मौद्रिक मदों से लाभ को लाभांश के रूप में नहीं वितरित किया जा सकता है।
(6) वर्ष-पर्यन्त चलने वाले लेन-देनों, जैसे क्रय, विक्रय, संचालन व्यय आदि को चालू मूल्य पर लाने के लिए निम्न सूत्र का प्रयोग किया जाता है।
यदि औसत निर्देशांक (Average Index) के सम्बन्ध में जानकारी नहीं है तो इसके लिये बीच वर्ष के निर्देशांक अथवा अवधि के प्रारम्भ और अन्त के निर्देशांकों के औसत का प्रयोग किया जा सकता है।
(7) विक्रीत माल की लागत तथा अन्तिम स्कन्ध का मूल्य निर्धारित करने के लिये यह ज्ञात करना होगा कि विक्रीत माल किस समय की क्रय है। इसके लिये संस्था में प्रयुक्त स्कन्ध निर्गमन पद्धति पर ध्यान देना होगा। उदाहरया के लिये फिफो पद्धति के अन्तर्गत विक्रीत माल की लागत प्रारम्भिक स्कन्ध और चालू क्रय के योग से अन्तिम स्कन्ध घटाकर प्राप्त लागत होगी तथा अन्तिम स्कन्ध । चाल क्रय का भाग माना जायेगा। दूसरी ओर लिफो पद्धति के अन्तर्गत विक्रीत माल की लागत में अधिकतर चालू क्रयें ही सम्मिलित होती हैं। हाँ. यदि चालू क्रय विक्रीत माल की लागत से कम है तो प्रारम्भिक स्कन्ध का एक भाग भी विक्रीत माल की लागत में। सम्मिलित होगा। इस स्थिति में अन्तिम स्कन्ध गत वर्ष या वर्षों की क्रयों का भाग होगा। अत: विक्रीत माल की लागत में सम्मिलित पारम्भिक स्कन्ध के लिये वर्ष के प्रारम्भ का निर्देशांक, चालू क्रयों के लिये वर्ष का औसत निर्देशांक तथा पिछले वर्षों में क्रय किये। माल के लिये इनके क्रय के वर्ष का निर्देशांक प्रयोग किया जाता है। यह ध्यान रहे के यदि अन्तिम स्कन्ध का शुद्ध वसूली मूल्य उसके दस प्रकार जात किये गये चालू क्रय शक्ति मूल्य से कम हो तो इसे उसके शुद्ध वसूली मूल्य पर ही दिखलाया जायेगा।
लाभ का निर्धारण (Determination of Procit)
सी०पी०पी० पद्धति के अन्तर्गत लाभ के निर्धारण की दो पद्धतियाँ हैं-(1) शुद्ध परिवर्तन पद्धति तथा (2) आय-विवरण। परिवर्तन (या पुनवर्णन) आदि।
(1) शुद्ध परिवर्तन पद्धति (Net Change Method)—यह पद्धति इस सामान्य लेखांकन सिद्धान्त पर आधारित है कि एक लेखावधि में स्वामियों की समता में परिवर्तन की राशि ही लाभ होती है। इस परिवर्तन को ज्ञात करने के लिये निम्न प्रक्रिया अपनानी होगी ।
(अ) ऐतिहासिक लेखा-विधि पद्धति से तैयार किये गये आर्थिक चिट्टे को वर्ष के अन्त की चालू क्रय-शक्ति (CPP) के रूप में बदला जाता है। इसमें मौद्रिक और अमौद्रिक सभी मदे पूर्व वर्णित आधार पर उचित परिवर्तन कारकों का प्रयोग करते हुए बदली जाती है। समता अंश पूँजी को भी बदला जाता है। आर्थिक चिट्टे के दोनों पक्षों का अन्तर संचिति (reserve) होता है। वैकल्पिक व्यवस्था के अनुसार समता अंश पूँजी को न बदला जाए तथा आर्थिक चिट्टे के अन्तर को ‘समता’ (Equity) माना जाये।
(ब) ऐतिहासिक लागत लेखा-विधि पद्धति के अन्तर्गत तैयार किये गये अन्तिम आर्थिक चिट्ठे को भी बदला जाता है। हाँ, मौद्रिक मदें नहीं बदली जाती। समता अंश पूँजी को भी बदलने के पश्चात् आर्थिक चिट्ठे के दोनों पक्षों का अन्तर ‘संचिति’ माना जाता है। यदि समता अंश पूँजी को पुनर्वर्णित नहीं किया गया तो अन्तर ‘समता’ माना जायेगा।
(स) यदि समता पूँजी को भी बदला गया है तो वर्ष के अन्त में संचिति का प्रारम्भिक संचिति पर आधिक्य वर्ष का लाभ होगा। यदि समता पूँजी को नहीं बदला गया है तो वर्ष के अन्तर में समता का प्रारम्भिक समता पर आधिक्य लाभ होगा।
(2) आय विवरण परिवर्तन (या पुनर्वर्णन) पद्धति (Conversion or Restatement of Income Statement Method)-इस पद्धति के अन्तर्गत ऐतिहासिक लागत के आधार पर तैयार किये गये आय-विवरण को सी०पी०पी० के शब्दों में पुनर्वर्णित किया जाता है। इसके लिये निम्न आधार अपनाये जाते हैं
(अ) बिक्री और परिचालन व्यर्थों को वर्ष के लिये लागू औसत दर पर बदला जाता है।
(ब) बिक्री की लागत को फिफो की मान्यता को ध्यान में रखते हुए पूर्व वर्णित आधार पर बदला जाता है।
(स) ह्रास की गणना सम्पत्ति के पुनर्वर्णित मूल्य पर की जा सकती है अथवा सम्पत्ति की ऐतिहासिक लागत पर आगणित ह्रास की राशि को उस सम्पत्ति पर लागू ‘परिवर्तन कारक’ (conversion factor) के आधार पर बदला जा सकता है।
(द) कर और लाभांश को उन निर्देशांकों के आधार पर बदला जायेगा जो कि इसके भुगतान की तिथि पर प्रचिलत थे।
(इ) इस पद्धति के अन्तर्गत मौद्रिक मदों के धारण से लाभ या हानि की पृथक से गणना करनी होगी तथा कुल लाभ अथवा हानि की राशि ज्ञात करने के लिये इसे आय विवरण में लिखा जायेगा।
चालू क्रय शक्ति पद्धति के दोष (Demerits of C.P.P. Method)
(1) इस पद्धति के अन्तर्गत मुद्रा के मूल्य में आये परिवर्तनो का लेखा किया जाता है। इसमें व्यक्तिगत सम्पत्तियों के मूल्य में परिवर्तनों का ध्यान नहीं दिया जाता है। अत: यह हो सकता है कि सामान्य मूल्य-स्तर में तो वृद्धि हो रही हो किन्तु किसी विशिष्ट मशीन के मूल्य में लगातार कमी आ रही हो। इस स्थिति में इस पद्धति के अन्तर्गत इस मशीन को चिट्ठे में सामान्य मूल्य निर्देशांक में आयी वृद्धि के आधार पर बढ़ाकर ही दिखलाया जायेगा।
(2) सी०पी०पी० पद्धति निर्देशांकों पर आधारित है जोकि एक सांख्यिकीय माध्य होते हैं। इसीलिये इस पद्धति का व्यक्तिगत फर्मों के लिये सूक्ष्मता से प्रयोग नहीं किया जा सकता।
(3) सही मूल्य निर्देशांक का चयन भी एक कठिन कार्य है क्योकि विभिन्न मूल्य स्थितियो के लिये बहुत से निर्देशांकों की गणना की जाती है।
(4) इस पद्धति से ज्ञात किये गये लाभों में धारण लाभ (holding gains) और मौद्रिक मदों से लाभ और हानि सम्मिलित होते हैं किन्तु ऐसे लाभ-हानि की राशि से संस्था की कुशलता का माप सम्भव नहीं।
उपर्यक्त कमियों के कारण ही सेन्डीलैन्ड्स समिति ने सी०पी०पी० पद्धति के स्थान पर चालू लागत लेखा-विधि पद्धति के उपयोग की सिफारिश की है।
(2) पुनर्स्थापन लागत लेखा-विधि पद्धति (Replacement Cost Accounting Method)
यह पद्धति सी०पी०पी० पद्धति पर एक सुधार है। सी०पी०पी० पद्धति में एक बड़ा दोष है कि किसी विशेष सम्पत्ति है। व्यक्तिगत कीमत सूचकांक (Individual Price Index) का ध्यान नहीं रखा जाता है। इसके विपरीत पुनर्स्थापन लागत लेखा-विधि। पद्धति के अन्तर्गत मूल्य परिवर्तन हेतु सामान्य कीमत सचकांक का प्रयोग न करके प्रत्येक सम्पत्ति से प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित व्यक्तिगत सूचकांकों का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार इस पद्धति में अनेक प्रकार के सूचकांकों का प्रयोग किया जाता है। चूंकि । व्यवहार में प्रत्येक सम्पत्ति से सम्बन्धित सूचकांक उपलब्ध नहीं होते हैं, अत: इस पद्धति का कोई व्यावहारिक महत्त्व नहीं है। इसके अतिरिक्त इस पद्धति में विषयपरकता (Objectivity) का पूर्ण अभाव रहता है।
(3) चालू मूल्य लेखा-विधि पद्धति (Current Value Accounting Method)
– इस पद्धति के अन्तर्गत सभी सम्पत्तियों और दायित्वों को चिटे में उनके चाल मल्य पर दिखलाया जाता है। वर्ष के प्रारम्भ में। और वर्ष के अन्त में शुद्ध सम्पत्तियों का मल्य ज्ञात कर लिया जाता है और इन दोनों तिथियों की शुद्ध सम्पत्तियों के मूल्य में अन्तर का। हा उस अवधि का लाभ या हानि माना जाता है। पुनर्स्थापन पद्धति की भाँति इस पद्धति में भी सम्बद्ध चालू मूल्यों को निर्धारित करना जटिल कार्य है।
(4) स्थिर रुपया लेखा-विधि पद्धति (Constant Rupee Accounting Method)
इस पद्धति के अन्तर्गत उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer price index) में हलचलों (movements) के आधार पर समायोजन किये जाते हैं। ये समायोजन ‘वर्ष के लिये औसत मूल्यों’ (average prices for the year) के आधार पर किये जा । सकते हैं अथवा वर्ष के अन्त के मूल्यों (end of the year prices) के आधार पर। बाद वाले आधार के अन्तर्गत आगम मदों (revenue items) को इस मान्यता के आधार पर समायोजित किया जाता है कि आय विवरण (Income Statement) में रिकार्ड की गयी राशियाँ वर्ष के मध्य में विद्यमान मूल्यों पर हैं। इसके अतिरिक्त मूल्यों में हलचलों के परिणामस्वरूप मौद्रिक मदों पर लाभ या हानि की भी गणना की जाता है और इसे दर्शाया जाता है।