BCom 1st Year Inflation Accounting Study Material Notes In Hindi

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चालू लागत लेखा-विधि पद्धति (Current Cost Accounting Method)

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मूल्य-स्तर के परिवर्तनों की सूचना देने में सी०पी०पी० पद्धति के अपर्याप्त होने की सामान्य शिकायत पर इंग्लैंड की सरकार ने सर फ्रेन्सिस सेन्डीलैन्ड्स की अध्यक्षता में एक समिति गठित की। इस समिति की रिपोर्ट सितम्बर 1975 में प्रकाशित हुई जिसमें इस समिति ने चालू लागत लेखा-विधि पद्धति की सिफारिश की। इस समिति की सिफारिशों का पर्याप्त व्यापक अध्ययन और विचारविमर्श के पश्चात् “Inflation Accounting Committee’ ने मार्च 1980 में जारी किये गये Statement of Accounting | Practice-16 (SSAP-16) द्वारा अब इस पद्धति को अपनाने का अन्तिम निर्णय ले लिया है।

सी०सी०ए० पद्धति के अन्तर्गत लाभ-हानि खाते और चिट्टे की प्रत्येक मद अपने चालू मूल्य/लागत पर दिखलायी जाती है न कि सी०पी०सी० पद्धति की तरह सामान्य मूल्य स्तर पर। इस पद्धति का उद्देश्य कम्पनी की परिचालन सम्पत्तियों (operating | assets) के रखरखाव और प्रतिस्थापना के लिये पर्याप्त आयोजन/समायोजन करना तथा व्यावसायिक कार्यकरण से लाभ और मूल्य वृद्धि काल में रखी सम्पत्तियों से लाभ (Opening profits and holding gains) को पृथक-पृथक दिखलाना है।

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सी०सी०ए० पद्धति प्रमुख बातें (Main Features of C.C.A. Method)

(1) स्थायी सम्पत्तियों का मूल्यांकन (Valuation of Fixed Assets)-चिट्टे में स्थायी सम्पत्तियों को ‘व्यवसाय के लिये। उनके मल्य’ पर दिखलाया जायेगा, न कि उनकी हासिल मूल लागत पर। व्यवसाय के लिये, उनके मूल्य में निम्न तीन अर्थ होते हैं

(अ) शद्ध प्रतिस्थापन मूल्य (Net Replacement Value)-इसका आशय मौज्दा प्रकार की सम्पत्ति की नई इकाई के । कम के लिये आवश्यक धन में से उसके व्यतीत जीवन काल का ह्रास घटाने के पश्चात् अवशेष राशि से होता है। उदाहरण के लिये मान लीजिये कि एक मशीन जिसकी मूल लागत ₹ 1,00,000 है, अनुमानित कार्य जीवन 10 वर्ष है और जो 4 वर्ष चल चुकी है,

उसकी नई इकाई का मूल्य अब ₹1,50,000 है। यदि इस मशीन का निस्तारण मूल्य शून्य हो तो अब उसका शुद्ध प्रतिस्थापन मूल्य । ₹ 1,50,000 बीते 4 वर्ष का ह्रास ₹ 60,000 = ₹ 90,000 होगा।

 (ब) शुद्ध वसूली मूल्य (Net Realizable Value)-इसका आशय मौजूदा सम्पत्ति के अब विक्रय से प्राप्त शुद्ध रोकड़ मूल्य से होता है।

(स) आर्थिक मूल्य (Economic Value)-इसका आशय सम्पत्ति को उसके बकाया जीवन काल में प्रयोग करने से अर्जित होने वाली शुद्ध आय के वर्तमान मूल्य से होता है।

SSAP-16 के अन्तर्गत उपरोक्त तीनों में से प्रथम को सर्वोत्तम माना है। किन्तु यदि किसी सम्पत्ति की शुद्ध प्रतिस्थापना लागत उसके शुद्ध वसूली मूल्य और आर्थिक मूल्य दोनों से अधिक है तो ऐसी स्थिति में सम्पत्ति को उसके शुद्ध वसूली मूल्य और आर्थिक मूल्य में जो भी अधिक हो, पर मूल्यांकित करना चाहिये। स्व:अधिकृत भूमि और भवन का व्यवसाय के लिये उनका मूल्य ज्ञात करने के लिये सामान्यतया इनके वर्तमान प्रयोग के लिये खुले बाजार मूल्य को लिया जायेगा तथा इस मूल्य में उनके अधिग्रहण के अनुमानित व्ययों को जोड़ा जायेगा। संयंत्र व मशीनरी को उसकी शुद्ध चालू प्रतिस्थापना लागत पर मूल्यांकित करना चाहिये। स्थायी विनियोगों को अन्य स्थायी सम्पत्तियों की तरह ही दिखलाया जायेगा। उद्धृत (Quoted) विनियोगों को स्कन्ध बाजार के औसत मूल्य पर मूल्यांकित करना चाहिये तथा अ-उद्धृत (unquoted) विनियोगों का मल्यांकन संचालकों के मतानुसार उस कम्पनी की चाल लागत के आधार पर शुद्ध सम्पत्ति मूल्य पर किया जायेगा जिसमें ये विनियोग किये गये हैं अथवा इन्हें इनसे होने वाली भावी आय के वर्तमान मल्य के आधार पर मल्यांकित किया जा रहा है। चाल सम्पत्ति की भाँति रखे विनियोगों को स्कन्ध और चाल कार्य की भाँति दिखलाया जायेगा। इस पद्धति के अन्तर्गत मौद्रिक सम्पत्तियों और सभी दायित्वों को उनकी ऐतिहासिक लागत पर दर्शाया जाता है अर्थात् इनमें कोई समायोजन की आवश्यकता नहीं होती है।

सी०सी०ए० पद्धति के अनुसार स्थायी सम्पत्तियों के ह्रासित मूल्य और ऐतिहासिक लागत लेखा-विधि पद्धति से उनकी हासित मूल लागत के अन्तर को शुद्धथाती लाभ (Net Holding Reserve) कहते हैं तथा इसे ‘चालू लागत लेखा-विधि संचय’ (Current Cost Accounting Reserve) अथवा पुनर्मूल्यन संचय (Revaluation Reserve) में हस्तान्तरित कर दिया जाता है।

(2) चालू लागत परिचालन लाभ की गणना (Calculation of Current Cost Operating Profit)-इसकी गणना के लिये ऐतिहासिक लागत लेखा-विधि पद्धति से ज्ञात परिचालन लाभ में निम्न समायोजन किये जाते हैं

(अ) ह्रास समायोजन (Depreciation Adjustment)

(ब) विक्रय की लागत के लिये समायोजन (Cost of Sales Adjustment)

(स) मौद्रिक कार्यशील पूँजी समायोजन (Monetary Working Capital Adjustment)

(द) दन्तिकरण समायोजन (Gearing Adjustment)

(इ) स्थायी सम्पत्तियों के विक्रय पर समायोजन (Adjustment for Fixed Assets Disposal)

(अ) ह्रास समायोजन (Depreciation Adjustment)-सी०सी०ए० पद्धति के अन्तर्गत चालू वर्ष के लिये ह्रास की। गणना सम्बन्धित सम्पत्ति के चालू मूल्य (Curent Value) पर की जाती है। यह गणना सम्पत्ति के प्रारम्भिक चालू मूल्य और अन्तिम चालू मूल्य के औसत के आधार पर की जाती है। मूल्य वृद्धि के काल में सम्पत्ति के चालू मूल्य के बढ़ जाने के कारण सी०सी०ए० के अन्तर्गत आयोजित ह्रास एच०सी०ए० के अन्तर्गत आयोजित ह्रास से अधिक होगा। अत: इसके लिये अतिरिक्त ह्रास आयोजन की। आवश्यकता होती है। यह ही ह्रास समायोजन कहलाता है। इसके लिये लाभ-हानि खाता डेबिट तथा चाल लागत लेखा-विधि संचय खाता क्रेडिट किया जायेगा।

P. and L. Account Dr.

To.C.C.A. Reserve Account

ह्रास की पिछली कमी (Backlog of Depreciation)—यह चालू वर्ष के लिये वर्ष के अन्त में सम्पत्ति की चालू लागत पर चार्ज किये जाने चाहिये वाले ह्रास और सम्पत्ति की औसत चालू लागत पर वास्तव में चार्ज किये गये ह्रास का अन्तर होता है। यह हास तब-तब उत्पन्न होता रहेगा जब-जब सम्पत्ति का पुनर्मूल्यन किया जायेगा। सम्पत्ति के पुनर्मूल्यन से ह्रास का पिछला आयोजना

अपर्याप्त हो जाता है और तब पिछली कमी की व्यवस्था की आवश्यकता हो जाती है। पिछले वर्षों में कम आयोजित ह्रास की राशि के | समायोजन के लिये सी०सी०ए० संचय खाता डेबिट तथा सम्पत्ति खाता क्रेडिट किया जायेगा।

C.C.A. Reserve Account                  Dr.

To Assets Account

(ब) विक्रय की लागत के लिये समायोजन या कोसा (Cost of Sales Adjustment or COSA)-सी०सी०ए० पद्धति इस महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त पर आधारित है कि परिचालन लाभ या हानि (operating profits and loss) के निर्धारण के लिये चालू लागत का मिलान चालू आगम से हो। चूँकि बिक्री की राशि चालू मूल्य पर होती है, अत: किसी समायोजन की आवश्यकता नहीं होती है किन्तु विक्रय की लागत में सम्मिलित उपयुक्त कच्चा माल (या विक्रीत तैयार माल) की गणना उपभोग (या विक्रय) की तिथि पर कच्चे माल (या तैयार माल) की वर्तमान प्रतिस्थापन लागत के आधार पर की जायेगी, न कि इनके क्रय मूल्य के आधार पर। चूंकि उपभक्त (या विक्रीत) कच्चे माल (या विक्रीत माल) की प्रत्येक व्यक्तिगत मद की उपभोग (या बिक्री) की तिथि पर चालू लागत की सदैव तैयार उपलब्धि आवश्यक नहीं होती है, अत: इसके लिये विक्रय लागत में सम्बद्ध मूल्य निर्देशांकों के आधार पर कुल विक्रय लागत समायोजन (Overall Cost of Sales Adjustment) किया जाता है। परिचालन लाभ की गणना के लिये कोसा की राशि से लाभ-हानि खाता डेबिट तथा चालू लागत लेखा-विधि संचय (CCA Reserve) खाता क्रेडिट किया जायेगा। कोसा की आवश्यकता विक्रय की लागत की गणना में सम्मिलित अन्य मदों, जैसे मजदूरी, हास को छोड़कर अन्य परिचालन व्यय आदि के लिये भी होती है।

सी०सी०ए० पद्धति के अन्तर्गत चिट्ठे में अन्तिम स्कन्ध को व्यवसाय के लिये उसके मूल्य पर दिखलाया जाता है, न कि उसकी मूल लागत व बाजार मूल्य के निम्नतम मूल्य पर। यहाँ पर स्कन्ध के व्यवसाय के लिये मूल्य का आशय उसके प्रतिस्थापना मूल्य और शुद्ध वसूली मूल्य की निम्नतम राशि से होता है। प्रतिस्थापना मूल्य की गणना के लिये चिट्ठे की तिथि पर सम्बद्ध मूल्य-निर्देशांक का प्रयोग किया जा सकता है। सी०सी०ए० पद्धति के अनुसार मूल्यांकित स्कन्ध के मूल्य में हुई वृद्धि को सी०सी०ए० संचय में हस्तान्तरित कर दिया जाता है।

(स) मौद्रिक कार्यशील पूँजी समायोजन (Monetary Working Capital Adjustment or MWCA)-मौद्रिक कार्यशील पूँजी का आशय व्यापारिक देनदारों, प्राप्य बिलों और पूर्व भुगतानों के योग का व्यापारिक लेनदारों, देय बिलों और अदत्त व्ययों के योग पर आधिक्य से होता है। मूल्य-स्तर में वृद्धि के परिणामस्वरूप (न कि व्यवसाय के परिचालन-स्तर में वृद्धि के परिणामस्वरूप) व्यवसाय की शुद्ध मौद्रिक कार्यशील पूँजी की आवश्यकता में वृद्धि के लिये आवश्यक समायोजन को मौद्रिक कार्यशील पूँजी समायोजन कहते हैं। इसके लिये ऐतिहासिक लागत के आधार पर मौद्रिक कार्यशील पूँजी में हुई कुल वृद्धि से व्यवसाय के परिचालन स्तर में वृद्धि के परिणामस्वरूप मौद्रिक कार्यशील पूँजी में हुई वृद्धि को घटाया जायेगा। परिचालन-स्तर में वृद्धि से मौद्रिक कार्यशील पूँजी में वृद्धि ज्ञात करने के लिये वर्ष के प्रारम्भ और अन्त की मौद्रिक कार्यशील पूँजी की मदों को वर्ष के मूल्यों के औसत परिवर्तन के आधार पर समायोजित किया जाता है। समायोजित अन्त की मौद्रिक कार्यशील पूँजी का प्रारम्भिक मौद्रिक कार्यशील पूँजी पर आधिक्य परिचालन-स्तर में वृद्धि का परिणाम होता है। इस सम्बन्ध में यह ध्यान रहे कि व्यापारिक । लेनदारों में समायोजन सामग्री के मूल्य-निर्देशांकों के आधार पर किया जाता है तथा व्यापारिक देनदारों ने समायोजन तैयार माल के मल्य-निर्देशांकों के आधार पर। मूल्य-स्तरों में वृद्धि के परिणामस्वरूप आवश्यक अतिरिक्त शुद्ध मौद्रिक कार्यशील पूंजी की। व्यवस्था के लिये इन राशि से लाभ-हानि खाता डेबिट तथा सी०सी०ए० संचय खाता क्रेडिट दिया जाता है।

(द) दन्तिकरण समायोजन (Gearing Adjustment)-दन्तिकरण का आशय ऋण पूँजी और अंशधारियों के कोषों के अनपात से होता है। सी०सी०ए० का उद्देश्य अंशधारियों के लिये सही लाभ का निर्धारण होता है। एक कम्पनी की शुद्ध परिचालन। सम्पत्तियों Net Operating Assets) (अथात् स्थायी सम्पत्तियों और शद्ध कार्यशील पँजी का योग) की वित्त व्यवस्था के लिये। अंशधारियों के साथ-साथ ऋणों व अन्य मादक दायित्वों का भी उपयोग किया जाता है। चूंकि डन ऋणों का भगतान उसी मोद्रिका शिमें किया जाता है, अत: ये मूल्य पारवतनस अप्रभावित होते हैं। मूल्य-वद्धि की अवधि में इन ऋणों से क्रय की गई सम्पत्तिया का व्यवसाय के लिये मुल्य इन ऋणा स आकर्षक हो जाता है। यह आधिक्य (ऋण-पँजी पर ब्याज घटाने के बाट) अंशधारियों को उस समय उदित होता है जबकि साधारण व्यवसाय के दौरान उस सम्पत्ति का प्रयोग या विक्रय किया जाता है। चालू लागत परिचालन लाभ की गणना में ऋण-पूँजी की विद्यमानता पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। फलतः अंशधारियों को देय लाभ का कम आकलन होता है। अत: व्यवसाय के सही परिचालन लाभ के निर्धारण के लिये चालू वर्ष के ह्रास, विक्रय की लागत और मौद्रिक कार्यशील पूँजी तीनों के समायोजनों की शुद्ध कुल राशि को शुद्ध ऋणों के विनियोजित कुल परिचालन पूँजी अनुपात से कम कर देना चाहिये। यही दन्तिकरण समायोजन कहलाता है। यहाँ पर शुद्ध ऋणों का आशय ऋण-पत्र, उधार तथा करों के लिये आयोजन के योग से हस्तस्थ। रोकड़, बैंक शेष और विपण्य प्रतिभूतियों के योग को घटाकर प्राप्त राशि से होता है तथा विनियोजित कुल परिचालन पूँजी का आशय शुद्ध ऋणों और समता कोषों के योग से होता है। संक्षेप में, दन्तिकरण समायोजन के लिये निम्न सूत्र का प्रयोग किया जा सकता है —

दन्तिकरण समायोजन में अधिक शुद्धता के लिये औसत दन्तिकरण अनुपात का प्रयोग उचित होगा। इसके लिये शुद्ध उधारों और अशंधारियों के कोषों का वर्ष के प्रारम्भ और अन्त की राशियों का औसत लेकर दन्तिकरण अनुपात ज्ञात किया जायेगा। करण समायोजन के लिये सी०सी०ए० संचय खाता डेबिट तथा लाभ-हानि खाता क्रेडिट किया जायेगा।

(इ) स्थायी सम्पत्तियों के विक्रय पर समायोजन (Adjustment for Fixed Assets Disposal)-किसी स्थायी सम्पत्ति के विक्रय पर लाभ या हानि की गणना ऐतिहासिक लागत और प्रतिस्थापन लागत दोनों के आधार पर की जा सकती है। प्रतिस्थापना लागत पर आकलित लाभ (अथवा हानि) और ऐतिहासिक लागत पर आकलित लाभ (अथवा हानि) का अन्तर ही स्थायी सम्पत्ति के विक्रय पर समायोजन कहलाता है। इस लाभ या हानि की राशि को सी०सी०ए० लाभ-हानि खाते में ले जाते हैं।

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