BCom 2nd Year Innovation Entrepreneurship Study Material notes in Hindi

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BCom 2nd Year Innovation Entrepreneurship Study Material notes in Hindi

Table of Contents

BCom 2nd Year Innovation Entrepreneurship Study Material notes in Hindi: Meaning of Innovation Meaning of Entrepreneur Characteristics of Innovation Meaning of Innovation and Entrepreneur Types of Innovation Creativity is a prerequisite to Innovation  Components of Creative Performance Stages of Innovation ( Most Importance Notes For BCom 2nd Year )

Innovation Entrepreneurship Study Material
Innovation Entrepreneurship Study Material

BCom 3rd Year Corporate Accounting Underwriting Study Material Notes in Hindi

नवाचार एवं उद्यमी

(Innovation and Entrepreneur)

“किसी व्यक्ति को उद्यमी तभी कहते हैं जबकि उसके व्यवहार में नवाचार संलग्न होता है, नवाचार व्यवहार उद्यमी का प्रमुख कार्य है।”

-जोसेफ शुम्पीटर

शीर्षक

  • नवाचार का अर्थ (Meaning of Innovation)
  • उद्यमी का अर्थ (Meaning of Entrepreneur)
  • नवाचार एवं उद्यमी का अर्थ (Meaning of Innovation and Entrepreneur)
  • नवाचार की विशेषताएँ (Characteristics of Innovation)
  • नवाचार एवं आविष्कार (Innovation and Invention)
  • नवाचार के प्रकार (Types of Innovation)
  • सृजनात्मकता नवाचार की पूर्व-आवश्यकता (Creativity is a Pre-requisite to Innovation)
  • सृजनात्मकता के घटक (Components of Creative Performance)
  • नवाचार की अवस्थायें (Stages of Innovation)

पीटर डकर के अनुसार, “नवाचार उद्यमिता का विशिष्ट उपकरण है।” (Innovation is specific instrument of entrepreneurship.)। नवाचार एवं उद्यमी इन दोनों में गहन सम्बन्ध है। बिना नवाचार के उद्यमिता अधूरी है और बिना उद्यमी के नवाचार अधूरा है। आखिर वह उद्यमी ही है जो नवाचार को विकसित एवं लागू करता है। नवाचार और उद्यमी दोनों नवाचार + उद्यमी का योग है। दोनों का अर्थ स्पष्ट होने के बाद नवाचार एवं उद्यमी का अर्थ स्वतः स्पष्ट हो जायेगा।

नवाचार का अर्थ

(Meaning of Innovation)

नवाचार किसी नवीन क्रिया को सम्पन्न करने की प्रक्रिया है। नवाचार से आशय किसी नवीन क्रिया को सम्पन्न करना, किसी नई वस्तु को निर्मित करना, किसी नये विचार को उत्पन्न करना, किसी नवीन औद्योगिकी (Technology) को लागू करने से है। नवाचार वह कार्य होता है, जो स्रोतों को सम्पदा की नई क्षमता प्रदान करता है। लक्ष्यों को प्राप्त करने के विभिन्न पस्त साहत उद्यमी उसके स्थानापन्न ढूँढने के लिए तैयार रहता है। नवाचार में निम्न क्रियायें निहित हैं

(i) ऐसे नवीन उत्पाद को प्रस्तुत करना जिससे उपभोक्ता अवगत न हों अथवा विद्यमान उत्पादों के मध्य नवीन उत्पाद प्रस्तुत करना।

(ii) नवीन कच्चे माल अथवा अर्द्ध-निर्मित उत्पाद का पता लगाना जिसका अभी तक विदोहन नहीं हआ हो।।

(iii) ऐसी नवीन निर्माणी प्रक्रिया को प्रस्तुत करना जिसकान तो अभी तक परीक्षण किया गया हो और न उसका वाणिज्यिक  उपयोग किया गया हो।

(iv) उत्पादन के संसाधनों का नया संयोजन विकसित करना।

(v) नये विचारों को उत्पन्न एवं विकसित करना। (vi) एक ऐसे नवीन बाजार को खोलना एवं विदोहन करना जिसमें पहले कभी भी कम्पनी का विक्रय नहीं हुआ हो।

 उद्यमी का अर्थ

(Meaning of Entrepreneur)

उद्यमी से आशय ऐसे व्यक्ति से है जो किसी नवीन उपक्रम की स्थापना का जोखिम उठाता है, अनिश्चितताओं का सामना करता है, आवश्यक संसाधनों को एकत्रित करता है। (जैसे-श्रम, पूँजी, कच्चा माल, भवन, यन्त्र, सामग्री आदि) आधुनिक तकनीकी ज्ञान प्रदान करता है, स्वयं प्रबन्ध करता है और अच्छा लाभ कमाता है। उद्यमी के अर्थ का विस्तृत विवेचन इस पुस्तक के प्रथम अध्याय में किया जा चुका है।

नवाचार एवं उद्यमी का अर्थ

(Meaning of Innovation and Entrepreneur)

नवाचार एवं उद्यमी दोनों के मध्य चोली-दामन का सम्बन्ध है। यह उद्यमी ही है जोकि नवाचार को व्यावहारिक रूप प्रदान करता है। उद्यमी नवाचार द्वारा प्रतिपादित नवीन विचारों को व्यावहारिक रूप प्रदान करता है। उत्पादन क्रिया में नई-नई तकनीकें लाग करता है, जिनके परिणामस्वरूप उत्पादन तथा उत्पादकता दोनों में वृद्धि होती है, किस्म में सुधार होता है, उपभोक्ताओं को नये-नये उत्पादों के उपभोग का सुअवर मिलता है, प्रति इकाई उत्पादन लागत में पर्याप्त कमी होती है और लाभों में भारी वृद्धि होती है। उपक्रम का भविष्य भी उज्ज्वल हो जाता है।

जोसेफ .शुम्पीटर (JosephA.Schumpeter) के अनुसार, “उद्यमिता नवप्रवर्तनकारी कार्य है……/”शुम्पीटर की उद्यमिता की विचारधारा पूर्णत: नवाचार पर ही आधारित है। नवाचार के लिए किसी राष्ट्र में शैक्षिक, सामाजिक तथा तकनीकी स्तर को ऊँचा उठाना आवश्यक है। जोसेफ ए. शम्पीटर ने आगे लिखा है कि “एक विकसित अर्थव्यवस्था में उद्यमी वह व्यक्ति है जो अर्थव्यवस्था में किसी नवीन बात को प्रस्तुत करता है।” उद्यमी नवाचार के द्वारा नवीन परिवर्तनों-नई वस्तु, नई उत्पाद, नई वितरण प्रणाली, नये बाजार, नया कच्चा माल, नई तकनीक तथा नये अवसर आदि को जन्म देता है और उनसे अधिकाधिक लाभ प्राप्त करता है। ध्यान रहे कि उद्यमी मुनाफा (लाभ) कमाता है, किन्तु मुनाफाखोरी (Profiteering) नहीं करता है। उद्यमी नवाचार को लागू करके उपभोक्ताओं को विभिन्न प्रकार के उत्पादों का उपभोग करने का सुअवसर प्रदान करता है, किन्तु उनका शोषण नहीं करता है।

फ्रेन्ज (Frantz) के शब्दों में, “उद्यमी प्रबन्धक से बड़ा होता है। उद्यमी नवप्रवर्तक एवं प्रवर्तक दोनों है।”

पीटर एफ. डूकर (Peter F. Drucker) के शब्दों में, “उद्यमी वह व्यक्ति है जो सदैव परिवर्तन की खोज करता है, उस पर प्रतिक्रिया करता है तथा एक अवसर के रूप में उसका लाभ उठाता है।”

उक्त परिभाषाएँ उद्यमी को नवाचार की गतिशील भूमिका प्रदान करती हैं। उद्यमी प्रत्येक स्थिति का एक सृजनात्मक प्रत्युत्तर (Creative Response) प्रस्तुत करता है तथा उद्यमी आजीविका स्वरूप उन रास्तों का अनुसरण करता है जिनसे अवसरों को सृजनात्मक और नवाचारी बनाना सम्भव होता है।

निष्कर्षनवाचार तथा उद्यमिता इन दोनों में निकटतम सम्बन्ध है। दोनों में से किसी को भी एक-दूसरे से पृथक करना सम्भव नहीं है क्योंकि एक के बिना दूसरा अधूरा एवं अनुपयोगी है। इसलिए कहा जाता है कि नवाचार तथा उद्यमिता दोनों के मध्य चोली-दामन का सम्बन्ध है।

नवाचार, नवनिर्माण, नवसृजन को निम्नांकित चित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।

1 नवीन उत्पाद

2. उत्पाद की नवीन गुणवत्ता

3. सामग्री के नवीन स्रोत

4. नये बाजार

5. नवीन संगठन संरचना

नवाचार की विशेषताएँ

(Characteristics of Innovation)

जोसेफ .शुम्पीटर (Joseph A.Schumpeter),फ्रेन्ज (Frantz), पीटर एफ.डुकर (Peter F.Drucker) आदि प्रबन्धशास्त्रियों ने इस बात की गहन खोज की है कि संगठनों में नवाचार, नवाचार सम्बन्धी स्वभाव, मूल्य और निश्चय किन बातों से बनते हैं। कई प्रश्न सूचियों और विभिन्न प्रकार के विश्लेषणों के पश्चात् वे इस नतीजे पर पहुँचते हैं कि उनमें से कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित हैं—(i) नये विचारों पर प्रयोग करना, (ii) परिवर्तनों से प्रसन्न होना, (iii) नये विचारों को प्रयोग में लाने के सम्बन्ध में अनिश्चितता का सामना करना, (iv) अपरम्परागत व्यवहार का मूल्यांकन करना, (v) किसी काम को छोड़ना नहीं और नए काम को करते समय गलतियाँ होने पर अस्थिर न होना, (vi) वर्तमान तरीकों या वर्तमान उपकरणों का वर्तमान सेवाओं के नए उपयोग खोजना, (vii) हल करने के लिए समस्याओं को ढूँढना, (viii) ऐसी समस्या पर कार्य करना जिसके कारण दूसरों को काफी कठिनाई हो रही हो, (ix) अपने मौलिक तरीके से वस्तु को पेश करना, (x) असंरचनात्मक कार्य आबंटनों हेतु तत्पर रहना, (xi) एक नए विचार की दिशा में महत्त्वपूर्ण निविष्टि प्रदान करना, एवं (xii) प्रस्तावित विचारों का मूल्यांकन प्रस्तुत करना।

संक्षेप में नवप्रवर्तन उद्यमी का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य है। अपनी प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति में सुधार करने तथा समाज को अधिकतम सन्तुष्टि एवं सेवाएं प्रदान करने के लिए उद्यमी नवप्रवर्तनों का विकास करता है तथा उन्हें अपनाता है। वह समाज में नवीन परिवर्तनों को जन्म देता है। वह शोध, अनुसन्धान व सृजनात्मक चिन्तन के द्वारा अपनी वस्तु, उत्पादन प्रणाली आदि में नए-नए सुधार करता है। उद्यमी समाज में नए मूल्यों, उच्च जीवन स्तर, नई उपयोगिताओं व नवीन सन्तुष्टियों के लिए निरन्तर खोज करता रहता है। उद्यमियों में नवविचारों पर कार्य करने और कार्य की पहल करने की प्रबल प्रवृत्ति होती है। इस प्रवृत्ति के कारण वे केवल स्वप्नदृष्टा नहीं होते हैं, बल्कि अपने सपनों को वास्तविकता में बदलने वाले कर्मयोगी भी होते हैं।

नवाचार एवं आविष्कार

(Innovation and Invention)

प्राय: लोग नवाचार (Innovation) तथा आविष्कार (Invention) को समान ही मानते हैं। वास्तविकता यह है कि म पर्याप्त अन्तर है। आविष्कार के अन्तर्गत नवीन सामग्रियों, नवीन विधियों तथा नवीन तकनीकों का पता लगाया जाता श्सक विपरीत, नवाचार के अन्तर्गत इन नवीन सामग्रियों, विधियों एवं तकनीकों का उपयोग ऐसे नवीन उत्पादों की नवीन मा के निर्माण में किया जाता है जोकि एक ओर उपभोक्ताओं को अधिक सन्तुष्टि प्रदान करती हैं और दूसरी ओर, उद्यमियों आधक लाभ प्रदान करती हैं। जहाँ एक ओर आविष्कारक नये विचार प्रदान करता है, वहीं दूसरी ओर, उद्यमी उन विचारों लागू करके आर्थिक लाभ कमाता है। एक आविष्कारक समाज के ज्ञान में वृद्धि करता है, जबकि नवाचार उपभोक्ताओं की टम वृद्धि करते हुए उन्हें नए-नए उत्पादों का उपभोग करने का सुअवसर प्रदान करता है। यह नवाचार ही है, जो आविष्कार का वाणिज्यिक उपयोग करता है।

नवाचार एवं आविष्कार को निम्न प्रकार दर्शाया जा सकता है

आविष्कार                                   नवीनता का सृजन                             नवीन ज्ञान का परिणाम

नवाचार  कल्पनाओं अथवा संसाधनों का लाभदायक प्रयोगों में रूपान्तरण नवीन उत्पाद, सेवा अथवा प्रक्रियाओं का परिणाम

नवाचार के प्रकार

(Types of Innovation)

करातको (Kuratko) : रिचर्ड एम. होगेटस (Richard M. Hodgetts); एवं डॉनाल्ड एफ. (Donald F.) के अनुसार नवाचार निम्नलिखित प्रकार के हो सकते हैं

1नवीकरण (Innovation) यह नवीन उत्पादों एवं प्रक्रिया का उत्पादन करता है।

2. विस्तार (Extension) यह पहले से बने उत्पाद, कार्य या प्रक्रिया का विस्तार करता है।

3. दोहराने की प्रणाली (Duplication) यह पहले से मौजद विचार या उत्पाद की रचनात्मक नकल करता है। रचनात्मक नकल का अर्थ है उसे बढ़ाने या सुधारने के लिए कुछ नया रचनात्मक कार्य करना।

4. संयोग (Synthesis)—यह स्थापित धारणाओं एवं विचारों का मिश्रण है ताकि वे मिलकर एक नया कार्यक्रम प्रारम्भ कर सकें।

सृजनात्मकता नवाचार की पूर्वआवश्यकता

(Creativity is a Pre-requisite to Innovation)

सृजनात्मकता एवं नवाचार दोनों शब्दों का अक्सर एक ही आशय समझा जाता है, किन्तु दोनों का अर्थ भिन्न है। ‘सृजनात्मकता’ से आशय नवीनता को वास्तविकता में लाने वाली योग्यता से है, जबकि नवाचार नवीन कार्यों को करने की प्रक्रिया है, दोनों के मध्य यह भिन्नता अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। किसी भी विचार या कल्पना का मूल्य तब तक शून्य होता है जब तक कि वह किसी नए उत्पाद, सेवा अथवा प्रक्रिया के रूप में परिवर्तित नहीं हो जाती। नवप्रवर्तन मूलतः सृजनात्मक कल्पनाओं एवं धारणाओं (Creative Ideas) का लाभप्रद प्रयोगों में रूपान्तरण है, जबकि सजनात्मकता, नवप्रवर्तन की पूर्वआवश्यकता है।

अलेक्जेण्डर ग्राहम बेल (Alexander Grahm Bell) ने सृजन प्रक्रिया को निम्नांकित प्रकार से स्पष्ट किया है—

विचार की

पहचान (Recognition)

विचार

व्याख्या (Rationalisation

 

विचार

विकास (Incubation)

 

विचार

ग्राह्यता (Realisation)

 

विचार

ग्राह्यता (Realisation)

 

चार प्रमापीकरण

(Validation)

उपर्युक्त चित्र के अनुसार सृजन प्रक्रिया की प्रमुख अवस्थाएँ निम्नलिखित हैं

(1) विचार की पहचान या जन्म (Recognition)—इस अवस्था को अंकुरण (Germination) अवस्था भी कहते हैं। इससे प्रादुर्भाव होता है, चाहे वह नवीन विचार की खोज हो अथवा किसी समस्या के समाधान का कोई नवीन हल हो।

(2) विचार व्याख्या (Rationalisation) नवीन विचार के मन्थन की अवस्था को युक्तिपूर्वक विचार व्याख्या कहते मास सोपान में विचार का जनक विचार की विश्लेषणात्मक ढंग से व्याख्या करता है। इस सोपान में सम्बन्धित साहित्य सूचनाएँ।

(3) विचार विकास (Incubation) यह अवस्था पल्लवन की अवस्था होती है। इस अवस्था को Incubation Stage भी कहते हैं।

(4) विचार ग्राह्यता (Realisation)-उक्त अवस्थाओं से गुजर कर नवविचार की चमक एवं समझ स्पष्ट होने लगती । है जिससे विचार की संरचना समझी जाती है एवं उसके क्रियान्वयन का विश्वास होने लगता है।

(5) विचार प्रमापीकरण (Validation) इस अवस्था में विचार का विभिन्न दृष्टिकोणों से परीक्षण किया जाता है । तथा विचार मूल्य का स्पष्टीकरण हो जाता है।

सृजनात्मकता के घटक

(Components of Creative Performance)

सृजनात्मकता के तीन प्रमुख घटक हैं। एक व्यक्ति में रचनाधर्मिता अथवा सृजनशीलता की प्रक्रिया के लिए विभिन्न क्षमताएँ (Skills) होनी चाहिए। सृजन प्रक्रिया और सृजनात्मकता के घटकों को निम्नांकित चित्र द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है।

नवाचार की अवस्थायें

(Stages of Innovation)

जेम्स आर.एडम्स (James R.Adams) के अनुसार, “व्यवसाय पृथ्वी पर सबसे महत्त्वपूर्ण क्रिया है। यह वह आधारशिला है जिस पर संस्कृति का निर्माण होता है। वास्तव में धर्म, समाज, शिक्षा सबका मूल आधार व्यवसाय ही है। किसी भी व्यवसाय की स्थापना एवं प्रारम्भ के लिए व्यावसायिक अवसरों की खोज से लेकर, उत्पादन प्रारम्भ होने तक अनेक कार्यवाहियाँ करनी होती हैं तथा विभिन्न निर्णय लेने होते हैं। व्यवसाय प्रवर्तन में की जाने वाली प्रारम्भिक क्रियाओं को अध्ययन की सविधानुसार अग्रलिखित छ: प्रमुख अवस्थाओं में बाँटा जा सकता है।

  • व्यावसायिक विचारों की पहचान (Identification of Business Idea)
  • व्यवसाय का नियोजन (Business Planning)
  • परियोजना प्रतिवेदन का निर्माण (Formation of Project Report)
  • संगठन संरचना का निर्माण (Formation the Organisation Structure)
  • वित्त के साधन (Source of Finance) व्यवसाय का प्रारम्भ (Commencement of Business)

 (1) व्यावसायिक विचार की पहचान (Identification of Business Idea)

मैकनॉटन (MCNauthton) के शब्दों में, “प्रत्येक व्यावसायिक उद्यम का उड़ान-बिन्दु (take-off point) एक विचार होता है। विचार वह शक्ति है जो प्रत्येक व्यावसायिक संस्था को अपने प्रेक्षपथ पर कायम रखती है। वे उद्यम जिनके पास मौलिक एवं व्यावहारिक विचारों का शक्ति स्रोत नहीं होता, मलिन हो जाते हैं तथा अन्तत: लुप्त हो जाते हैं।” प्रवर्तन एवं नवप्रवर्तन की प्रारम्भिक अवस्था व्यावसायिक अवसरों की पहचान करना होता है। अवसर की पहचान उसकी व्यावहारिकता एवं लाभदायकता का परीक्षण करने के उपरान्त ही उपक्रम की स्थापना का निर्णय होता है। संक्षेप में इस अवस्था में निम्न बातें शामिल होती हैं—(अ) व्यवसाय के प्रेरक, (ब) व्यावसायिक विचार, एवं (स) विचार की व्यावहारिकता एवं लाभदायकता की जाँच।

() व्यवसाय के प्रेरक (Motives of Business)—समाज में उद्यमिता एवं व्यवसाय के प्रसार और विकास में प्रेरणा साधारणतया एक महत्त्वपूर्ण कारक होती है तथापि प्रेरणा के वृहत् दायरे के अन्तर्गत कुछ सामाजिक अभिप्रायों को उद्यमिता स्वभाव से महत्त्वपूर्ण ढंग से जुड़े पाया गया है; जैसे उपलब्धि की आवश्यकता,शक्ति संयोजन, पराश्रय,प्रसार,व्यक्तिगत उपलब्धि,सामाजिक उपलब्धि, प्रभाव आदि।

() व्यावसायिक विचार (Business Ideas)—किसी भी प्रवर्तन अथवा नवप्रवर्तन सम्बन्धी विचार के लिए रचनात्मक एवं ठोस कार्य-योजना होना आवश्यक है। व्यावसायिक विचार अनेक विकल्पों के मध्य चयनित किया जाता है। जैसे निर्माणी इकाई स्थापित की जाए या सेवा उद्यम स्थापित किया जाए अथवा खाद्य एवं कृषि उद्योग स्थापित किया जाए।

() विचार की व्यावहारिकता एवं लाभदायकता की जाँच (Evaluating the Feasibility and Profitability of Ideas)-किसी भी प्रवर्तन अथवा नवप्रवर्तन की दशा में जो व्यावसायिक विचार चयनित किया गया है उसमें इस बात की जाँच करनी होती है कि उत्पाद या सेवा का वास्तविक रूप क्या है ? उनकी क्या उपयोगिताएँ हैं ? उत्पादन एवं क्रियान्वयन की सम्भावित क्षमता क्या है ? उक्त क्षमता हेतु निवेश की सीमा क्या है ? बाजार सम्भावनाएँ क्या हैं ? तकनीकी जटिलता/व्यवस्था क्या है ? सम्भावित वार्षिक विक्रय क्या है ? सम्भावित लाभ क्या हैं ? एवं सफलता के निर्धारक तत्त्व क्या हैं ? उक्त प्रश्नों का उत्तर ज्ञात करना आवश्यक है,क्योंकि इससे व्यावसायिक विचार की उपादेयता, व्यावहारिकता एवं लाभदायकता के सम्बन्ध में निर्णय लिया जा सकता है। 8

(II) व्यवसाय नियोजन (Business Planning)

व्यवसाय का प्रवर्तन करने से पूर्व व्यवसाय के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु नियोजन करना पड़ता है। व्यवसाय के लक्ष्यों की पूर्ति न्यूनतम साधनों के द्वारा अधिकतम कुशलता से करने के लिए व्यवासय की समग्र योजना एवं नियोजन करना अपरिहार्य है। नियोजन के महत्त्वपूर्ण घटक निम्नलिखित हैं

1 उत्पाद नियोजन (Product Planning),.

2. वित्तीय नियोजन (Financial Planning),

3. विपणन नियोजन (Marketing Planning),

4. लागत नियोजन (Cost Planning),

5. संगठनात्मक नियोजन (Organisational Planning), एव

6. संयन्त्र एवं उत्पादन नियोजन (Plant and Production Planning)

(III) परियोजना प्रतिवेदन का निर्माण (Formation of Project Report)

प्रवर्तन की प्रारम्भिक अवस्था में व्यवसाय के महत्त्वपूर्ण पहलुओं की समग्र योजना बनाने के पश्चात् प्राथमिक परियोजना प्रतिवेदन की रचना की जाती है। प्राथमिक परियोजना प्रतिवेदन में उद्यम की संक्षिप्त एवं महत्त्वपूर्ण जानकारी की स्पष्ट रूपरेखा प्रस्तुत की जाती है। परियोजना के प्राथमिक प्रतिवेदन का प्रारूप निम्नलिखित है

परियोजना के प्राथमिक प्रतिवेदन का प्रारूप

1 सामान्य (General)

उद्यमी का नाम (Name of the Entrepreneur)………….. वर्ग : सामान्य/अनु. जाति/ अनु. जनजाति/अन्य पिछड़े/महिला/अवकाश प्राप्त/तकनीकी/विकलांग (Category :

General/SC/ST/OBC/Women/Ex-servicemen/Technical/Handicapped)……….

जन्मतिथि (Date of Birth)… …………….आयु (Age)……………………

इकाई का नाम (Name of Unit)…………… परियोजना (Project)…….

फैक्ट्री का पता (Factory Address)…………… ..Rented/Shed

कार्यालय का पता (Office Address)…………… …………………… FETET (District)……………………

संविधान : स्वामित्व/साझेदारी/प्रा. लि./सहकार संस्था (Constitution : Proprietorship/Partnership/Pvt. Ltd./Co-operative Society)

औद्योगिक गतिविधि की प्राकृति : निर्माण/जॉब वर्क/सेवाएँ/प्रसंस्करण/एसैम्बली (Natureof Industrial Activity-Manufacturing/Jobwork/Servicing/Processing/Assembling)

उत्पाद का नाम (Name of Article(s) to be manufactured)……………..

विद्युत् शक्ति की आवश्यकता : अश्वशक्ति/किलोवाट [(Power Requirement (in HP/KW)]

chetansati

Admin

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