BCom Insolvency And Bankruptcy Code-2016 Notes In Hindi

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दिवालिये की परिसम्पत्ति का वितरण

(Distribution of Estate of Bankrupt)

1. दिवाला प्रन्यासी के कार्य (Functions of Bankrupty Trustee) न्यायिक अधिकारी द्वारा मुक्ति आदेश देने के पश्चात दिवालिये की परिसम्पत्तियाँ दिवाला प्रन्यासी के अधिकार में आ जाती हैं। धारा 149 के अनुसार दिवाला प्रन्यासी निम्नलिखित कार्य करेगा

(अ) दिवालिये के मामलों का अन्वेषण करना;

(ब) दिवालिये की परिसम्पत्तियों की वसूली करना; और

(स) दिवालिये की परिसम्पत्तियों से वसूली राशि को विभिन्न वर्ग के लेननदारों के बीच न्यायोचित तरीके से वितरित करना।

2 दिवालिये की परिसम्पत्तियाँ (Estate of Bankrupt) धारा 154 के अनुसार अपनी नियुक्ति के तुरन्त बाद ही दिवाला प्रन्यासी का दिवालिये की परिसम्पत्तियों पर अधिकार हो जाता है।

धारा 155 के अनुसार

(i) दिवालिये की परिसम्पत्तियों में निम्नलिखित सम्पत्तियाँ सम्मिलित होती हैं

(अ) दिवाला प्रारम्भ होने की तिथि पर दिवालिये की अथवा उसके अधिकार में सभी जायदादें;

(ब) ऐसी जायदादें जिन्हें दिवालिये को अपने अधिकार में लेने के लिये कार्यवाही की क्षमता है; और

(स) वे सभी जायदादें जो कि इस अध्याय के किसी प्रावधान के कारण उसकी परिसम्पत्तियों में समाविष्ट हैं।

(ii) दिवालिये की परिसम्पत्तियों में निम्नलिखित को नहीं शामिल किया जायेगा

(अ) अपवर्जित सम्पत्तियाँ

(ब) दिवालिये द्वारा किसी व्यक्ति की प्रन्यास में धारित सम्पत्तियाँ;

(स) किसी मजदूर या कर्मचारी के प्रावीडेन्ट फण्ड, पेन्शन फण्ड और ग्रेज्युटी फण्ड की देय सभी राशियाँ; और

(द) ऐसी सम्पत्तियाँ जिन्हें केन्द्र सरकार किसी वित्तीय क्षेत्र विनियामक (financial sector regulator) के

विचार-विमर्श से अधिसूचित करें।

3. जायदाद की बिक्री पर प्रतिबन्ध (Restrictions on Disposal of Property) धारा 158 के अनुसार दिवालिया का जायदाद की बिक्री पर अग्र प्रतिबन्ध होंगे

(अ) दिवाला आवेदन दाखिल करने की तिथि और दिवाला प्रारम्भ करने की तिथि के बीच देनदार द्वारा अपनी जायदाद की सभी बिक्रियाँ व्यर्थ होंगी;

(ब) उपर्युक्त (अ) के अन्तर्गत की गई बिक्री पर किसी अन्य का सम्पत्ति पर अधिकार नहीं होगा, चाहे उसने यह सम्पत्ति दिवाला प्रारम्भ होने की तिथि से पूर्व (i) सद विश्वास: (i) मल्य के लिये और (iii) दिवाला के लिये आवेदन दाखिल करने की जानकारी के बिना ही क्यों न प्राप्त की हो।

(स) जायदाद का आशय देनदार की सभी जायदादों से होगा, चाहे ये दिवालिये की परिसम्पत्तियों में समाविष्ट हैं अथवा नहीं, किन्तु इसमें देनदार द्वारा किसी अन्य व्यक्ति की प्रन्यास में रखी जायदाद सम्मिलित नहीं होंगी।।

4 .अधो-मूल्याकिंत सौदे (Undervalued Transactions) धारा 164 के अनसार दिवाला प्रन्यासी दिवालिया आर अन्य किसी व्यक्ति के बीच किसी अधो-मूल्यांकित लेन-देन के सम्बन्ध में न्यायिक प्राधिकारी को आवेदन दे सकता है। यह लेनदन दिवाला के लिये आवेदन करने के दो वर्ष के अन्तर्गत किये गये होने चाहिये और उसके कारण ही दिवाला प्रक्रिया प्रारम्भ करनी पड़ा हो। इस धारा की प्रमुख बातें निम्नलिखित हैं

(अ) दिवाले के लिये आवेदन कने की तिथि से पूर्व 2 वर्षों के दौरान एक दिवालिया और उसके सहयोगी (associate) के बीच लेनदेन को अधो-मूल्यांकित लेनदेन माना जायेगा। (ब) दिवाला प्रन्यासी के आवेदन पर न्यायिक प्राधिकारी

(i) अधो-मूल्यांकित लेनेदेन को व्यर्थ घोषित करने का आदेश पारित कर सकता है;

(ii) अधो-मूल्यांकित लेनदेन के अन्तर्गत हस्तान्तरित जायदाद को दिवाला प्रन्यासी के अधिकार में लेने का आदेश ___पारित कर सकता है; और

(iii) ऐसे हस्तान्तरण से पूर्व की स्थिति लाने के लिये उचित आदेश दे सकता है।

(स) उपर्य़ुक्त (ब) (i) नहीं लागू होगा यदि लेनदेन दिवालिये के व्यवसाय के सामान्य व्यवहार में किया गया है।

(द) इस धारा के लिये, दिवालिया द्वारा किसी अन्य व्यक्ति के साथ निम्न लेनदेन अधो-मूल्यांकित माने जायेंगे. यदि

(i) वह उस व्यक्ति को उपहार में देता है;

(ii) उस व्यक्ति द्वारा दिवालिये से कोई प्रतिफल नहीं प्राप्त किया है:

(iii) यह शादी के प्रतिफल में हैं: अथवा

(iv) यह एक प्रतिफल के लिये है जिसका मुद्रा में मूल्य दिवालिया द्वारा प्रदान किये गये मुद्रा मूल्य से काफी कम है।

BCom Insolvency And Bankruptcy Code-2016 Notes In Hindi

5.वरीयता लेनदेन (Preference Transactions)-धारा 165 के अनुसार यदि दिवालिये ने किसी व्यक्ति को वरीयता दी है जिसके कारण दिवाला प्रक्रिया लायी गई है तो दिवाला प्रन्यासी न्यायिक प्राधिकारी को इस धारा के अन्तर्गत आदेश देने के लिये आवेदन कर सकता है। ऐसी परिस्थितियाँ निम्नलिखित हो सकती हैं

(i) दिवाला के लिये आवेदन करने की तिथि से पूर्व 2 वर्ष की अवधि के दौरान दिवालिया द्वारा अपने किसी सहयोगी (associate) को लेनदेन में वरीयता दी गई हो।

(ii) दिवाला के लिये आवेदन करने की तिथि से पूर्व 6 माह की अवधि के दौरान दिवालिया द्वारा अपने सहयोगी के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति को लेनदेन में वरीयता दी गई हो।

(iii) उपर्युक्त स्थितियों में दिवाला प्रन्यासी के आवेदन पर न्यायिक प्राधिकारी

(अ) वरीयता दिये लेनदेन को व्यर्थ घोषित करने का आदेश पारित कर सकता है:

(ब) दिवाला प्रयासी को हस्तान्तरित की गई सम्पत्ति को अपने अधिकार में लेने का आदेश पारित कर सकता है और

(स) लेनदेन से पर्व की स्थिति लाने के लिये कोई अन्य आदेश दे सकता है।

(iv) दिवालिये द्वारा किसी व्यक्ति को लेनदेन में वरीयता देने की स्थिति तभी मानी जायेगी जबकि

(अ) व्यक्ति दिवालिये का लेनदार या उसके ऋण के लिये प्रतिभू या गारंटी देने वाला है और

ऐसे हस्तातरण या भुगतान से भुगतान पाने वाले लेनदार को भुगतान की गई राशि उस राशि से अधिक है

तालिया हो जाने पर उसकी सारी सम्पत्तियों को सभी लेनदारों में आनुपातिक आधार पर वितरित किये जाने पर प्राप्त होती।

chetansati

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