BCom 1st Year International Bank for Reconstruction Development Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year International Bank for Reconstruction Development Study Material Notes in Hindi

Table of Contents

BCom 1st Year International Bank for Reconstruction Development Study Material Notes in Hindi : Aims of International Bank Functions of Inernaions Bank Giving of Guarantee Training Settlement of International Disputes World Bank and India World bank and Imformation A Comparative Study Based on Their Functions Examinations Questions:

 International Bank for Reconstruction
International Bank for Reconstruction

BCom 1st Year Environment International Monetary Fund Study Material notes in Hindi

अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक

[INTERNATIONAL BANK FOR RECONSTRUCTION AND DEVELOPMENT]


विश्व बैंक की स्थापना

1944 में आयोजित ब्रेटनवुड्स अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक सम्मेलन में जिन दो संस्थाओं की स्थापना का निश्चय किया गया था उनमें अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) तो सदस्य देशों के अस्थायी भुगतान असन्तुलन को ठीक करने के लिए बनाया गया था, परन्तु युद्धजनित अव्यवस्था को दूर करने तथा अविकसित और अल्प-विकसित देशों को विकास करने के लिए दीर्घकालीन पूंजी की भी आवश्यकता थी। इसकी पूर्ति के लिए अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (IBRD) अथवा विश्व बैंक की स्थापना की गई। विश्व बैंक ने जून 1946 से कार्य करना आरंभ कर दिया था। विश्व बैंक एवं अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एक-दूसरे की पूरक संस्थाएं हैं।

वर्तमान में विश्व बैंक के सदस्य की संख्या 189 है।

विश्व बैंक समूह (World Bank Group)

विश्व बैंक समूह में विश्व बैंक तथा उसकी सहयोगी संस्था अन्तर्राष्ट्रीय विकास संघ (IDA) के साथ ही दो संस्थाओं का और समावेश होता है : अन्तर्राष्ट्रीय वित्त निगम (IFC) एवं बहुपक्षीय विनियोग गारण्टी अभिकरण (Multilateral Investment Guarantee Agency-MIGA)| |

इस प्रकार विश्व बैंक समूह‘ (World Bank Group) में निम्नांकित संस्थाओं का समावेश है :

(i) अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक (स्थापना वर्ष 1945)

(ii) अन्तर्राष्ट्रीय वित्त निगम (स्थापना वर्ष 1956)

(ii) अन्तर्राष्ट्रीय विकास संघ (स्थापना वर्ष 1960)

(iv) बहुपक्षीय विनियोग गारण्टी अभिकरण—MIGA (स्थापना वर्ष 1966)

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विश्व बैंक के उद्देश्य

(AIMS OF INTERNATIONAL BANK)

विश्व बैंक की स्थापना 1945 में, विश्व के विकासशील देशों में आर्थिक विकास को गतिशील बनाने के उद्देश्य से की गई थी। इसके प्रमुख उद्देश्य निम्न प्रकार हैं :

(1) पुनर्निर्माण और विकास (Reconstruction and Development) विश्व बैंक का प्रथम उद्देश्य यद्ध-पीडित देशों के पुनर्निर्माण (reconstruction) तथा पिछड़े हुए देशों के आर्थिक विकास में सहायता देना था। इस कार्य को सम्पन्न करने के लिए उसने सदस्य देशों को उत्पादक कार्यों के लिए पूंजी लगाने में प्रोत्साहन दिया।

(2) पंजी विनियोजन (Capital Investment) उत्पादन तथा विकास के लिए जिन क्षेत्रों में पूंजी की आवयकता होती है विश्व बैंक उनमें निजी उद्योगपतियों (private enterprises) को पूंजी लगाने की सलाह और आवश्यकता होने पर स्वयं भी उनके साझे में पूंजी विनियोग करता है। यदि किसी क्षेत्र में पूंजी पर उपलब्ध न हो तो विश्व बैंक स्वयं उस क्षेत्र में पूंजी लगाता है ताकि धन की कमी के कारण आवश्यक विकास कार्यों में बाधा उत्पन्न न हो।

(3) भुगतान सन्तुलन (Balance of Payments) अन्तर्राष्ट्रीय बैंक विकसित देशों को अल्प-विकसित देशों में पंजी लगाने के लिए प्रोत्साहित करता है ताकि उन देशों में उत्पादन में वृद्धि हो. श्रमिकों का रहन-सहन और जीवन-स्तर सुधर सके तथा सम्बन्धित देशों का भुगतान सन्तुलन भी व्यवस्थित होता रहे। इन सब कार्यों का उद्देश्य दीर्घकाल में अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को साम्य एवं सन्तुलित अवस्था में रखना है।

(4) पूंजी की व्यवस्था (Arrangement of Capital) अन्तर्राष्ट्रीय बैंक सदस्य देशों में स्वयं पूंजी लगाता है तथा दसरे देशों के पंजीपतियों से पूंजी लगवाता है। इन दोनों वर्गों की पूंजी का इस ढंग से सामंजस्य। (Co-ordination) होना आवश्यक है कि आवश्यक क्षेत्रों में पूंजी पहले नियोजित की जाय और विदेशों से प्राप्त मशीनें अथवा अन्य प्राविधिक सामान का श्रेष्ठतम प्रयोग हो सके, विश्व बैंक विकास कार्य में पूंजी को प्राथमिकता के सम्बन्ध में मार्गदर्शक का कार्य करता है।

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(5) शान्तिकालीन अर्थव्यवस्था (Peace-time Change-over) विश्व बैंक का यह दायित्व है कि वह सदस्य देशों में लेन-देन अथवा ऋण सम्बन्धी जो भी कार्य करे उससे किसी देश की व्यापारिक व्यवस्था को हानि पहुंचने की आशंका नहीं होनी चाहिए। युद्ध-पीड़ित देशों की अर्थव्यवस्था को शान्तिकालीन अर्थव्यवस्था में परिवर्तित करने में विश्व बैंक को अत्यन्त गम्भीर एवं महत्वपूर्ण दायित्व सौंपा गया है।

उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि विश्व बैंक का मुख्य उद्देश्य वे सब कार्य करना है जो सदस्य देशों के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकें। विश्व बैंक की सदस्यता

विश्व का कोई भी देश विश्व बैंक का सदस्य हो सकता है, किन्तु विश्व बैंक की सदस्यता प्राप्त करने के लिए पहले अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) का सदस्य बनना अनिवार्य है। मुद्रा कोष की सदस्यता छोड़ते ही उस देश की विश्व बैंक की सदस्यता अपने आप समाप्त हो जाती है। यदि बैंक की कुल मत शक्ति के 75 प्रतिशत मत से उस देश को सदस्य बनाए रखने का प्रस्ताव पास कर दिया जाय तो वह देश मुद्रा कोष का सदस्य न रहते हुए भी विश्व बैंक का सदस्य बना रह सकता है। जब कोई देश विश्व बैंक की सदस्यता त्याग देता है तो वहां की सरकार तब तक बैंक की किसी भी राशि का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होती है जब तक कि उस देश में दिया गया ऋण चुकता नहीं हो जाता। वर्तमान में विश्व बैंक के सदस्यों की संख्या 189 है।

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विश्व बैंक के कार्य

(FUNCTIONS OF INTERNATIONAL BANK)

(1) ऋण देना (Giving of Loans)

बैंक के समझौता पत्र में स्पष्ट उल्लेख है कि बैंक को केवल उत्पादक कार्यों के लिए ऋण देना चाहिए। तथा इस ऋण के फलस्वरूप विकासशील देशों में आर्थिक विकास प्रोत्साहित होना चाहिए, प्रत्येक ऋण या तो देश की सरकार को दिया जाता है अथवा सम्बन्धित देश की सरकार द्वारा ऋण की गारण्टी दी जानी चाहिए। ऋण की विस्तृत कार्यप्रणाली इस प्रकार है :

सामान्य रूप से बैंक दीर्घकालीन और मध्यकालीन अवधि की परियोजनाओं एवं विनियोग के लिए ऋण देता है। बैंक निम्न तीन प्रकार से ऋण देने की व्यवस्था करता है :

(i) अपने स्वयं के कोषों से ऋण देता है,

(ii) मुद्रा बाजार से ऋण लेकर सदस्य देशों को ऋण देता है,

(iii) बैंक उन ऋणों की पूर्ण अथवा आंशिक रूप से गारण्टी देता है जो विनियोग एजेन्सियों अथवा निजी विनियोजकों द्वारा दिए जाते हैं

व्याज की दरविश्व बैंक द्वारा जो ऋण दिए जाते हैं उस पर ब्याज की दर प्रति 6 माह के लिए निर्धारित की जाती है। जिस ब्याज की दर पर विश्व बैंक ऋण लेता है, उसकी तुलना में वह ऋण लेने वाले देशों से 0.5 प्रतिशत ब्याज की दर अधिक लेता है।

ऋण की सीमा बैंक किसी भी परियोजना में होने वाले पूरे व्यय की राशि ऋण के रूप में नहीं देता। परन् बैंक द्वारा स्वीकृत योजना के सम्पूर्ण व्यय का वह भाग ऋण के रूप में दिया जाता है जो विदेशों से।

लखरादने के लिए व्यय किया जाता है, किन्तु यह भाग कुल लागत के 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहए। ऋणी देश को ऋण का भुगतान उस मुद्रा में करना होता है जिसमें वह ऋण लिया गया था।

(II) गारण्टी देना (Giving of Guarantee)

विश्व बैंक का दूसरा कार्य है गारण्टी देना। बैंक सदस्य देशों के लिए अन्य वित्तीय संस्थाओं (बैंकों, आदि) से ऋण की व्यवस्था करवा सकता है और उनके द्वारा दिए जाने वाले ऋणों के समय पर भगतान की गारण्टी करता है। बैंक प्रत्येक गारण्टी पर कमीशन लेता है। बैंक के समझीता-पत्र के अनुसार अपने कार्यकाल के पहले दस वर्षों में उसके लिए प्रत्येक गारण्टी के लिए कम से कम 1 प्रतिशत और अधिक से अधिक 1.5 प्रतिशत गारण्टी कमीशन लेना आवश्यक था। यह कमीशन बिना चुकाई हई ऋण राशि पर लिए जाने की व्यवस्था है। दस वर्ष की अवधि के बाद बैंक को इस कमीशन की राशि में परिवर्तन करने का अधिकार दिया गया था। विश्व बैंक ने आरम्भ से ही इस कमीशन की दर 1 प्रतिशत रखी और उसमें परिवर्तन करने की आवश्यकता नहीं समझी।

बैंक 1949 से ही ऋणों तथा ऋणपत्रों की गारण्टी करता रहा है। गारण्टी कार्य पिछले कुछ वर्षों में सर्वथा समाप्त हो गया है क्योंकि 1986 के पश्चात् एक भी ऋण की गारण्टी नहीं दी गई। इसके दो कारण हैं—एक तो विश्व बैंक के दो सहयोगी, अन्तर्राष्ट्रीय वित्त निगम और अन्तर्राष्ट्रीय विकास संघ ने अविकसित देशों के उद्योगों को पर्याप्त मात्रा में दीर्घकालीन ऋण पूंजी देनी आरम्भ कर दी है, दूसरे अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग बढ़ जाने से बड़े देश विश्व बैंक की गारण्टी के बिना ही विदेशों में ऋण देने लगे हैं।

(III) प्राविधिक सहायता (Technical Assistance)

बैंक का तीसरा कार्य है प्राविधिक सहायता की व्यवस्था करना। इस कार्य की पूर्ति के लिए बैंक ने यह निश्चित किया है कि अविकसित सदस्य देशों के विस्तृत आर्थिक सर्वेक्षण किए जायं जिससे उन देशों के प्राकृतिक साधन, आर्थिक एवं औद्योगिक सम्भावनाएं, परिवहन के साधन, आदि की एक साथ ही पूर्ण जानकारी हो जाय। सम्पूर्ण आर्थिक सर्वेक्षण के अतिरिक्त बैंक अपने विशेषज्ञों को विभिन्न नियोजन कार्यों में सहायता देने के लिए सदस्य देशों में भेजता रहता है। यह विशेषज्ञ आर्थिक, वैज्ञानिक, प्राविधिक अथवा अन्य कार्यों में सहायता देते हैं। बैंक द्वारा अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा किए जाने वाले आर्थिक सर्वेक्षणों तथा अनुसन्धानों में सहयोग प्रदान किया जाता है। अनेक अफ्रीकी एवं अन्य देशों के आर्थिक सर्वेक्षण प्रकाशित किए जा चुके हैं।

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(IV) प्रशिक्षण व्यवस्था (Training)

नियोजित आर्थिक विकास आज का युगधर्म बन गया है और प्रत्येक देश के विभिन्न क्षेत्रों में योजनाओं का संचालन करने के लिए प्रशिक्षित अधिकारियों की आवश्यकता है। विश्व बैंक ने इस आवश्यकता को ध्यान में रखकर 1 जनवरी, 1949 को सदस्य देशों के वरिष्ठ अधिकारियों के लिए एक-वर्षीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आरम्भ किया। 1950 से कनिष्ठ कर्मचारियों के लिए भी लोक वित्त तथा हिसाब-किताब ठीक ढंग से रखने के लिए प्रशिक्षण कार्य आरम्भ किए गए।

(V) अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का निपटारा (Settlement of International Disputes)

एक अन्तर्राष्ट्रीय निष्पक्ष संगठन होने के नाते विश्व बैंक एक ऐसी संस्था बन गई है जिसे अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक समस्याएं सुलझाने के लिए मध्यस्थ बनाया जा सकता है। इस दिशा में बैंक के दो कार्य अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं :

(1) भारतपाक नहरी पानी विवाद (Indo-Pak River Water Dispute)-भारत का विभाजन होने । भारत और पाकिस्तान में पंजाब की नदियों के जल-विभाजन सम्बन्धी विवाद उत्पन्न हो गया था जो क्रमशः भीर रूप धारण कर गया। अन्ततः विश्व बैंक की इस विवाद में मध्यस्थता से 1951 में दोनों देशों के अधिकारियों के बीच वार्ता आरम्भ हुई और 1954 में बैंक ने दोनों देशों के सामने सिन्ध घाटी के जल-विभाजन ने योजना प्रस्तुत की। विचार करते-करते अन्त में 19 जनवरी, 1960 को इस विवाद का निपटारा हो गया और दोनों के बीच एक महत्वपूर्ण समस्या का अन्त हो गया।

(2) स्वेज नहर विवाद (Swez Canal Dispute) विश्व बैंक द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग अथवा शान्ति की दिशा में किया गया दूसरा कार्य स्वेज नहर विवाद से सम्बन्धित है। 1956 के अन्तिम दिनों में जब मिस्र द्वारा स्वज नहर का राष्ट्रीयकरण करने की घोषणा कर दी गई तो राजनीतिक निपटारा तो हो गया, परन्तु स्वेज नहर कम्पनी में ब्रिटेन के अंशों का हर्जाना देने के प्रश्न पर विवाद उत्पन्न हो गया। लगातार छ: माह तक विचार-विमर्श के पश्चात् बैंक दोनों देशों में समझौता कराने में सफल हो गया।

विश्व बैंक की आलोचनाएं

(1) ऊंची ब्याज दर—आलोचकों के अनुसार बैंक की ब्याज दर ऊंची है। बैंक विशेष रूप से पिछड़े देशों के आर्थिक पुनरुत्थान के लिए ऋण देता है अतः ऐसे देशों के सन्दर्भ में बैंक की ब्याज की दर काफी अधिक है। विश्व बैंक द्वारा लिए जाने वाले ब्याज में तीन बातों का समावेश होता है—प्रथम, बैंक को व्याज का भुगतान कर बाजार से ऋण लेना होता है; द्वितीय, बैंक सब प्रकार के ऋणों पर क्षतिपूर्ति के लिए 1 प्रतिशत कमीशन लेता है: तीसरे, बैंक 14 से 1 प्रतिशत तक वसूली प्रशासनिक लागत और निधि कोष के लिए करता है। इसे दृष्टि में रखते हुए बैंक रियायती दर पर ऋण नहीं दे पाता। अन्तर्राष्ट्रीय विकास संघ (IDA) की स्थापना से ऊंची व्याज की शिकायत काफी हद तक दूर हो गई है। IDA विश्व बैंक की रियायती ऋण की खिड़की (Soft Loan Window) के रूप में जाना जाता है।

(2) अपर्याप्त सहायताआलोचकों का यह भी मत है कि विकासशील देशों की भारी आवश्यकताओं को देखते हुए, उनके लिए विश्व बैंक द्वारा दी जाने वाली सहायता अपर्याप्त है।

वर्तमान में उक्त आलोचना सही नहीं है क्योंकि बैंक ने उक्त सीमा को स्वीकार कर अपनी पूंजी में वृद्धि की है तथा सदस्य देशों का अभ्यंश बढ़ा दिया है। यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि बैंक कुछ निश्चित उत्पादक योजनाओं के लिए ऋण देता है अतः देशों को भी हर प्रकार की परियोजना के लिए बैंक से ऋण की आशा नहीं करनी चाहिए।

(3) पुनः भुगतान क्षमता पर अधिक जोर-बैंक की यह भी आलोचना की जाती है कि ऋण देने के पूर्व बैंक सम्बन्धित देश की भुगतान क्षमता पर अधिक बल देता है। पिछड़े देशों को सहायता देते समय इस प्रकार की शर्त नहीं लगाई जानी चाहिए। किन्तु, बैंक के समर्थक कहते हैं कि बैंक की पूंजी को सुरक्षित रखने के लिए यह आवश्यक है।

(4) कार्यों में विलम्ब एवं जटिलताएं यह भी आलोचना की जाती है कि बैंक की ऋण देने की प्रक्रिया जटिल है एवं इसमें काफी विलम्ब लगता है तथा इसमें विकासशील देशों को ऋण प्राप्त करने में कठिनाई होती है। किन्तु, यह आलोचना भी सही नहीं है क्योंकि विश्व बैंक 189 देशों का बैंक है और उसके विस्तृत कार्यक्षेत्र को देखते हुए कुछ विलम्ब होना स्वाभाविक है।

(5) पक्षपातपूर्ण व्यवहार विश्व बैंक पर अमरीका एवं ब्रिटेन सरीखे कुछ विकसित देशों का अधिक प्रभाव है। बैंक के मताधिकार का लगभग 43% विश्व के पांच बड़े देशों के हाथ में है। बैंक के प्रबन्ध विभाग एवं अन्य सहयोगी कर्मचारियों में अधिकांश अमरीका तथा यूरोप के हैं। इस प्रकार बैंक पर राजनीतिक प्रभाव अधिक है।

(6) ग्रामीण क्षेत्र की गरीबी हटाने में असफल एवं पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव आलोचकों का कहना है कि विश्व बैंक की ऋण नीति विकासशील देशों के ग्रामीण क्षेत्रों की गरीबी दूर करने में असफल रही है जिससे इन देशों की गरीब जनसंख्या को आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्राकृतिक साधनों पर निर्भर रहना पड़ा है जिससे पर्यावरण पर कुप्रभाव पड़ा है। विश्व बैंक द्वारा प्रायोजित आर्थिक विकास पर्यावरण को कमजोर करने के मूल्य पर प्राप्त हुआ है। किन्तु, वर्तमान में बैंक द्वारा पर्यावरण संरक्षण हेतु किए गए उपायों को देखते हुए इस आलोचना को उचित नहीं कहा जा सकता।

उपर्युक्त आलोचनाओं के बावजूद इस तथ्य से इन्कार नहीं किया जा सकता कि अर्द्ध-विकसित देशों के आर्थिक विकास का पथ प्रशस्त करने में बैंक ने महत्वपूर्ण कार्य किया है। यह विश्व बैंक की सहायता का ही परिणाम है कि पहले की बंजर जमीन अब फसलों से लहलहा रही है, बिजली की रोशनी ने अन्धकार को मिटा दिया है तथा यातायात और ऋण के पुनर्भुगतान की शर्तों को भी सरल बना दिया है तथा अल्प-आय एवं मध्यम-आय वाले देशों को कई प्रकार की रियायतों की घोषणा की गई है।

विश्व बैंक के पूर्व अध्यक्ष ब्लेक के शब्दों में, “विश्व के कम विकसित देशों (अर्थात् विकासशील देशों । के लिए विश्व बैंक एक अपूर्व सहारा है। बैंक का उद्देश्य ऐसी व्यवस्था और विचारधारा का निर्माण करना है। जिससे समृद्धि केवल कल्पना न रहकर ठोस और साकार बन जाए।”

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विश्व बैंक और भारत

(WORLD BANK AND INDIA)

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत के प्रारम्भिक आर्थिक विकास में विश्व बैंक की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। एशियाई राष्टों में पहला ऋण विश्व बैंक द्वारा 1949 में भारत को ही दिया गया। बैंक के भारत के साथ। दीर्घ एवं रचनात्मक सम्बन्धों ने विश्व बैंक को एक विकास संस्था के रूप में विकसित होने में काफी सहायता की है। __ भारत विश्व बैंक के प्रारम्भिक सदस्यों में से एक है। शुरू में भारत का अभ्यंश 400 मिलियन डॉलर था एवं उसका नाम अधिकतम पूंजी वाले 5 देशों में शामिल था जिससे भारत को विश्व बैंक में एक स्थाई कार्यकारी संचालक नियुक्त करने का अधिकार मिल गया था। किन्तु, अब अन्य देशों का अभ्यंश भारत से अधिक हो जाने के कारण प्रथम 5 देशों में भारत का स्थान नहीं रह गया है। ।

वर्तमान (11 जनवरी, 2013) भारत के पास 6,844.7 मिलियन अमेरिकी डॉलर के 56,739 शेयर हैं। भारत 2.91 प्रतिशत के मताधिकार के साथ 7वां सबसे बड़ा शेयर धारक है। घटक के रूप में (जिसमें चार देश भारत, बांग्लादेश, श्रीलंका तथा भूटान शामिल हैं, भारत का मताधिकार 3.26% हो गया है।)

विश्व बैंक की सदस्यता से भारत को निम्न लाभ हुए हैं : ।

(1) विश्व बैंक द्वारा भारत को ऋण विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार भारत विगत 70 वर्षों (1945 -2015) में बैंक से सर्वाधिक ऋण प्राप्त करने वाला देश है। विगत 70 वर्षों में विश्व बैंक के दो अंगों IBRD तथा IDA ने भारत को क्रमशः 52.7 बिलियन डॉलर तथा 49.4 बिलियन डॉलर के ऋण प्रदान किए

विगत वर्षों में भारत को जिन योजनाओं के लिए ऋण मिले हैं, उनमें से मुख्य निम्न प्रकार हैं :

(i) रेल व्यवस्था का नवीनीकरण एवं विस्तार, (ii) टाटा लौह एवं इस्पात तथा भारत लौह एवं इस्पात कम्पनी, (iii) चम्बल घाटी क्षेत्र तथा राजस्थान नहर क्षेत्र का विकास, (iv) दामोदर घाटी निगम विद्युत परियोजना, (v) एयर इण्डिया द्वारा हवाई जहाजों का क्रय, (vi) हल्दिया बन्दरगाह का निर्माण तथा चेन्नई एवं कोलकाता बन्दरगाहों का विकास, (vii) विद्युत शक्ति विस्तार परियोजनाएं, (viii) औद्योगिक साख एवं विनियोग निगम की कार्यशील पूंजी में वृद्धि, (ix) कृषि विकास हेतु ऋण, (x) निजी क्षेत्र में कोयला उद्योग के विकास हेतु ऋण, (xi) ट्राम्बे थर्मल पावर स्टेशन की स्थापना हेतु ऋण, (xii) जनवरी, 2001 में आए गुजरात भूकम्प से हुई बर्बादी से उबरने के लिए 300 मिलियन डॉलर की तात्कालिक सहायता दी तथा साथ ही बैंक द्वारा सरकार को गुजरात के पुनर्निर्माण के लिए पुनः सहायता उपलब्ध कराने का भी प्रस्ताव किया है।

भारत को सबसे अधिक ऋण रेलवे विकास के लिए दिए गए। इसके बाद क्रमशः विद्युत उत्पादन, उर्वरक कारखानों एवं कृषि एवं सिंचाई का क्रम आता है।

(2) विश्व बैंक का नवीनतम ऋणभारत सरकार द्वारा IBRD तथा IDA द्वारा हाल के वर्षों में उपयोग। किए गए ऋण का विवरण इस प्रकार है :

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 (3) भारत विकास मंच (India Development Forum) विश्व बैंक ने भारत की दूसरी एवं तीसरी पंचवर्षीय योजना में आर्थिक सहायता देने के उद्देश्य से 1958 में ‘भारत सहायता क्लब’ की स्थापना की जिसमें विश्व बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय विकास संघ के अतिरिक्त दस राष्ट्र हैं। ये राष्ट्र हैं-संयुक्त राज्य अमरीका, इंगलैण्ड, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा, जापान, आस्ट्रिया, बेल्जियम, इटली तथा नीदरलैण्ड्स । समय-समय पर क्लब की बैठक होती है जिसमें भारत को सहायता देने पर विचार किया जाता है।

वर्तमान में भारत सहायता क्लब का नाम बदलकर भारत विकास मंच (India Development Forum) हो गया है।

(4) पाकिस्तान के साथ नहरी पानी विवाद में मध्यस्थता-भारत और पाकिस्तान में पंजाब की नदियों के जल विभाजन को लेकर तीव्र विवाद पैदा हो गया था। बैंक की मध्यस्थता के फलस्वरूप 1960 में इस विवाद का निपटारा हुआ।

(5) सामान्य ऋणों की सविधा विश्व बैंक ने भारत की यह प्रार्थना स्वीकार कर ली है कि वह ऋणों का प्रयाग अपनी इच्छानुसार कर सके। अतः भारत को सामान्य ऋणों की सुविधा उपलब्ध हो गई है।

इस प्रकार विश्व बैंक ने भारत को आर्थिक विकास के विभिन्न क्षेत्रों में उदारतापूर्वक आर्थिक सहायता दी है।

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विश्व बैंक एवं अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष : कार्यप्रणाली पर आधारित एक तुलनात्मक विवेचन

(WORLD BANK AND IMF: A COMPARATIVE STUDY BASED ON THEIR FUNCTIONS)

ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में दो जुड़वां संस्थाओं (Two Twins Institutions) का जन्म हुआ—विश्व बैंक और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष। दोनों का मुख्यालय वाशिंगटन (अमरीका) में ही है। यद्यपि दोनों संस्थाओं के कार्य एक-दूसरे के पूरक हैं, किन्तु व्यक्तिगत रूप से दोनों के कार्य पृथक्-पृथक् हैं। विश्व बैंक ऋण देने वाली एक ऐसी संस्था है जिसका उद्देश्य विकासशील देशों में दीर्घकालीन आर्थिक विकास की दशाएं पैदा करना एवं असमानताओं को कम करना है। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष विश्व की मुद्राओं के लिए एक कप्तान का कार्य करता है एवं देखता है कि देशों में भुगलान की एक व्यवस्थित प्रणाली चालू रहे। मुद्रा कोष अपने ऐसे सदस्य देशों को ऋण देता है जिनके सामने भुगतान सन्तुलन की विकट समस्या पैदा होती है।

इन दोनों संस्थाओं का जन्म 1944 में ब्रेटनवुड्स सम्मेलन में हुआ था। अतः कभी कभी इन्हें ‘ब्रेटनवुड्स संस्थाएं’ (Bretton Woods Institutions) भी कहा जाता है। चूंकि यह द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति का युग था, अतः इन दोनों का मूल लक्ष्य युद्ध से जर्जरित विश्व अर्थव्यवस्था को एक सुदृढ़ आधार देना था।

प्रथम विश्व युद्ध के बाद अलग-अलग देशों ने अपनी मौद्रिक नीतियां लागू कर ली थीं जिससे अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भुगतानों की समस्या आ गई थी। अतः मुद्रा कोष को यह दायित्व सौंपा गया कि पृथक् एवं राष्ट्रीय स्तर तक की मौद्रिक नीतियों का फिर से उदय न हो। दूसरी समस्या यह थी कि युद्ध के कारण भवन, सड़कें पुल एवं दूरसंचार साधन, आदि ध्वस्त हो चुके थे। अतः इनका पुनर्निर्माण आवश्यक था, यह दायित्व विश्व बैंक को सौंपा गया।

प्रारम्भ में विश्व बैंक ने एशिया, अफ्रीका और लेटिन अमरीका के विकासशील देशों की सहायता की ओर अपना ध्यान केन्द्रित किया। जहां तक विश्व में आर्थिक समृद्धि लाने का प्रश्न है, विश्व बैंक और मुद्रा कोष दोनों की ही इसमें सहभागिता है, यह बात दूसरी है कि दोनों संस्थाओं के आकार, ढांचा एवं किसी देश को सहायता देने के तरीके में अन्तर है। जैसे कि अमीर और गरीब दोनों ही प्रकार के देश विश्व-बैंक के सदस्य बन सकते हैं, किन्तु इस संस्था से सहायता पाने का अधिकार गरीब देशों को ही है।

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विश्व बैंक की सदस्यता प्राप्त करने के लिए, मुद्रा कोष की सदस्यता अनिवार्य शर्त है।

जहां विश्व बैंक, केवल विकासशील देशों को सहायता देता है मुद्रा कोष का लाभ अमीर एवं गरीब दोनों ही देश उठा सकते हैं। जितने अधिक देश मुद्रा कोष के सदस्य बनें, उन्हें उतना ही लाभ होता है। आजकल प्रायः सब देशों में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार होता है एवं अन्तर्राष्ट्रीय विनियोग भी प्रोत्साहित हो रहा है।

यदि सभी देश मुद्दा कोष के सदस्य हों तो उन्हें विदेशी मुद्रा के क्रय-विक्रय में एवं आयात-निर्यात की वित्तीय व्यवस्था करने में सुविधा होती है। मुद्रा कोष इस बात का प्रयास करता है कि अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक प्रणाली में तरलता बनी रहे। मुद्रा कोष समष्टि आर्थिक प्रबन्ध (Macro-Economic Management) के क्षेत्र में तकनीकी सहायता भी देता है और जो देश मुद्रा कोष के उद्देश्यों के अनुरूप आर्थिक नीतियों का अनुसरण करते हैं, उन्हें मुद्रा कोष आर्थिक सहायता देता है। अपने प्रारम्भिक काल से लेकर आज तक विश्व बैंक ने विभिन्न देशों में विभिन्न परियोजनाओं हेतु बड़ी मात्रा में ऋण स्वीकृत किये। इसके विपरीत, मुद्रा कोष ने उक्त अवधि में अपने सदस्य देशों को भुगतान सन्तुलन की कठिनाई हल करने के लिए अल्पकालीन एवं मध्यम ऋणों के रूप में अपेक्षाकृत सीमित मात्रा में ऋण आवंटित कर सका है।

विश्व बैंक समूह एक बड़ी संस्था

अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की तुलना में, विश्व बैंक एक बड़ा समूह है। विश्व बैंक की तीन सहयोगी संस्थाएं हैं—अन्तर्राष्ट्रीय विकास संघ (IDA), अन्तर्राष्ट्रीय वित्त निगम (IFC) एवं बहुपक्षीय विनियोग गारंटी एजेंसी (MIGA)। इस प्रकार विश्व बैंक की संगठनात्मक संरचना अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की तुलना में अधिक विस्तृत है।

विश्व बैंक और मुद्रा कोष की परियोजनाएं एवं नीतियां

विश्व बैंक ने अपने प्रारम्भिक वर्षों में विकासशील देशों की विशिष्ट विकास परियोजनाओं के लिए सहायता स्वीकृत की जैसे विद्युत परियोजना, सड़क निर्माण, पुलों का निर्माण तथा रेलवे लाइन बिछाना, आदि। शुरू में बैंक ने बड़ी औद्योगिक परियोजनाएं प्रारम्भ की, किन्तु बाद में ऐसी छोटी योजनाएं भी प्रारम्भ की गईं जिनसे उत्पादकता एवं जीवन स्तर बढ़ने में सहायता मिले। हाल ही के वर्षों में विश्व बैंक ने आर्थिक नीतियों में सामान्य सुधार के लिए भी ऋण देना प्रारम्भ कर दिया है। विश्व बैंक ने आर्थिक नीतियों में बड़े पैमानों के सुधार हेतु ऋण दिया जिसे ढांचागत समायोजन कहा जाता है। इसका उद्देश्य यह है कि सीमित साधनों को लागत के प्रभावित करने वाले विनियोगों की ओर प्रवाहित किया जा सके ताकि बजटीय घाटे और मुद्रास्फीति को नियन्त्रित किया जा सके एवं विकासशील देश दीर्घकालीन विकास को प्राप्त कर सकें। विश्व बैंक द्वारा दिये जाने वाले ऋण देश की आर्थिक नीतियों को भी प्रभावित करते हैं।

जहां विश्व बैंक नीतिगत सुधारों (Policy Reforms) एवं परियोजनाओं के लिए ऋण देता है, मुद्रा कोष केवल नीतियों से सम्बन्ध रखता है। मुद्रा कोष अपने सदस्य देशों की मौद्रिक एवं राजकोषीय नीतियों को इस तरह प्रभावित करता है कि उनकी भुगतान सन्तुलन की स्थिति में सुधार हो सके। इस सम्बन्ध में मुद्रा कोष सतत् रूप से अपने सदस्य देशों से सलाह-मशविरा करता रहता है। मुद्रा कोष सदस्य देशों को अपनी विदेशी भुगतान की अल्पकालीन समस्या हल करने हेतु भी ऋण देता है। 1973 से लागू लोचपूर्ण विनिमय दर प्रणाली के अन्तर्गत मुद्रा कोष अपने सदस्य देशों की मुद्राओं की पूर्ण परिवर्तनीयता बनाये रखने का भी प्रयास करता है। 1991 तक 70 सदस्य देशों ने मुद्रा परिवर्तनीयता (Currency Convertibility) हेतु । अपनी स्वीकृति दे दी थी

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दोनों संस्थाओं में बढ़ता हुआ सहयोग

विश्व बैंक एवं मुद्रा कोष दोनों एक-दूसरे की पूरक संस्थाएं रही हैं। आर्थिक नीतियों में व्यापक सुधार। काण देने का कार्य पिछले दशकों में दोनों ही संस्थाओं ने किया है। अतः इनमें सहयोग में वृद्धि हुई है। जहां बैंक आर्थिक विकास की परियोजनाओं की सफलता हेतु प्रयासरत है, मुद्रा कोष अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक स्थिरता बढ़ाने हेतु प्रयत्नशील है।

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प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1 विश्व बैंक के क्या उद्देश्य हैं? उसके कार्यों की व्याख्या कीजिए।

संकेतसबसे पहले विश्व बैंक की स्थापना को समझा दीजिए फिर शीर्षक देकर उसके उद्देश्यों को स्पष्ट कीजिए। अन्त में बैंक की ऋण देने की कार्यप्रणाली को समझाइए।]

2. विश्व बैंक की सफलताओं का उल्लेख कीजिए। यदि इसमें कुछ दोष हैं तो उन्हें स्पष्ट करते हुए बताइए कि उन्हें दूर करने के लिए आप क्या सुझाव देंगे?

[संकेतसबसे पहले विश्व बैंक की प्रगति का विवरण विभिन्न शीर्षकों में दीजिए। जहां आंकड़े देना जरूरी हों, संक्षेप में उन्हें भी दीजिए। फिर बैंक की आलोचनाओं को स्पष्ट करते हुए अन्त में यह निष्कर्ष दीजिए कि यद्यपि बैंक ने स्वयं अपने दोषों को काफी हद तक दूर कर लिया है, फिर भी उसे पिछड़े देशों के आर्थिक विकास, कार्यक्रम को प्राथमिकता देनी चाहिए।]

3. भारत विश्व बैंक से किस सीमा तक लाभान्वित हुआ है? विस्तार से समझाइए।

[संकेत—पहले यह बताइए कि भारत विश्व बैंक का प्रारम्भिक सदस्य है। फिर यह विवरण दीजिए कि विश्व बैंक से भारत को कुल कितना ऋण मिला है तथा वह किन योजनाओं के लिए लिया गया है। अन्त में, अन्य क्षेत्रों में होने वाले लाभों का विवेचन करते हुए नवीनतम स्थिति को आंकड़ों सहित प्रस्तुत कीजिए।]

4. वर्तमान समय में दो मौद्रिक संस्थाओं-अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष तथा अन्तर्राष्ट्रीय पुनःनिर्माण एवं विकास बैंक की स्थापना वरदान स्वरूप सिद्ध हुई है।” स्पष्ट कीजिए।

[संकेत–प्रश्न के उत्तर में दोनों संस्थाओं की स्थापना का परिचय देते हुए इनके महत्व को समझाना है।]

5. अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण तथा विकास बैंक के संगठन, उद्देश्य एवं कार्यों की विवेचना कीजिए।

6. विश्व बैंक के उद्देश्यों पर प्रकाश डालिए और यह स्पष्ट कीजिए कि उनकी प्राप्ति में वह कहां तक सफल रहा।

लघु उत्तरीय प्रश्न

1 विश्व बैंक के उद्देश्यों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।

2. अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।

International Bank for Reconstruction

chetansati

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