BCom 3rd Year Internet Basic Concepts Study Material Notes in Hindi

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Basic Concepts Study Material
Basic Concepts Study Material

BCom 3rd Year Information Technology Implications Business Study Material Notes in Hindi

इंटरनेट एवं इसकी बुनियादी अवधारणा

The Internet and Its Basic Concepts

परिचय

( Introduction )

इनफाँर्मशन सुपर हाइवें की अवधारणा के सूत्रपात से एक ऐसी क्रान्तिकारी राह खुल गई , जिसमें घर या आफिस में बैठे बैठे सूचनाओं तथा जानकारियों के अथाह भण्डार  और विश्व के किसी भी कोने में बैठे व्यक्तियों

Internet Basic Concepts

संवाद करना सम्भव हो गया है। तब से लेकर आज तक इस ग्लोबल नेटवर्क से जुड़ने वालों की संख्या निरन्तर बढ़ती ही जा रही है। इस नेटवर्क की रीढ़ है इंटरनेट-यह आपस में जुड़े नेटवर्कों का समूह है जो इंटरनेट प्रोटोकॉल सट (TCP/IP) का प्रयोग करते हैं। इंटरनेट को असंख्य नेटवर्कों और सेवाओं का सुपर नेटवर्क कह सकते हैं। यह 1960 के दशक में अस्तित्व में आया। कम्प्यूटरों के नेटवर्कों का यह ग्लोबल नेटवर्क अमेरिकी सरकार के शोध कार्यों में जुटे वैज्ञानिकों के परिश्रम का परिणाम था। धीरे-धीरे यह शैक्षिक संस्थाओं के बीच शोध सम्बन्धी जानकारियों के आदान-प्रदान का जरिया बन गया और आगे चलकर व्यावसायिक व व्यक्तिगत कार्यों में भी इंटरनेट ने अपनी पैठ बना ली। लेकिन इंटरनेट की नींव रखने वालों को स्वप्न में भी गुमान न होगा कि एक दिन ऐसा आएगा, जब इसकी लोकप्रियता सभी हदों को पार कर जाएगी।

व्यक्तिगत, आर्थिक और राजनीतिक रूप से आगे बढ़ने के लिए सूचनाओं का होना और उन तक लोगों की पहुँच होना आवश्यक है। इंटरनेट पर आज ई-कॉमर्स की सुविधा है, जिससे लाखों की संख्या में लेन-देन व खरीदने-बेचने का काम होता है। आज व्यावसायिक जगत में ई-कॉमर्स का अपना स्थान है और इसकी स्वीकार्यता भी दिनों दिन बढ़ रही है। ई-कॉमर्स ने व्यावसायिक परिदृश्य को काफी हद तक बदल दिया है। ई-कॉमर्स की महत्ता पर इस अध्याय में विस्तार से प्रकाश डाला गया है। लेकिन इस विशाल नेटवर्क में सुरक्षा तथा नियन्त्रण सम्बन्धी कुछ खामियाँ हैं, जिन्हें दूर करना बेहद आवश्यक है। जैसा कि प्राय: हर नई तकनीक के साथ प्रारम्भ में होता है कि लोग उसे सहज ही स्वीकार करने को तैयार नहीं होते। तकनीक की तुलना में नियन्त्रण कमजोर रहता है और उसकी वैश्विक स्वीकार्यता तब तक नहीं सम्भव होती, जब तक नियन्त्रण के प्रभावशाली उपाय न कर लिए जायें। उदाहरणार्थ, यहाँ पर यह बताना उल्लेखनीय होगा कि प्रारम्भ में लोगों के मन में ATM मशीनों को लेकर इसी प्रकार का संशय था।

Internet Basic Concepts

इंटरनेट के प्रयोग को उतना सुरक्षित बनाया जा सकता है, जितना कोई कम्पनी चाहती है। इसके लिए जानकारी तथा सूचनाओं की सुरक्षा हेतु उचित व प्रभावी टूल्स और विधियों का प्रयोग करना पड़ता है, लेकिन यहाँ यह भी ध्यान रखना होगा कि बेकार के खर्च और जटिलताओं से बचा जाए। सामान्य व्यावसायिक कार्यों के लिए उपयोग में लाए जा रहे व्यक्तिगत इंटरनेट कनेक्शन के लिए सुरक्षा कोई मुद्दा नहीं है।

इतिहास तथा पृष्ठभूमि (History and Background)-इंटरनेट की शुरुआत अमेरिकी रक्षा विभाग से जुड़ी है। 1960 के दशक में कम्प्यूटरों का उपयोग सैन्य कार्यों व उद्देश्यों के लिए होता था। तब एक ऐसे नेटवर्क कनेक्शन की आवश्यकता महसूस हुई जो कम्प्यूटर के एकल नेटवर्क की खराबी से पार पा सके। 1970 के दशक में एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट एजेन्सी (ARPA) ने एक ऐसा नेटवर्क विकसित किया जिस पर आज का इंटरनेट आधारित है। इस नेटवर्क को ARPANET नाम दिया गया और इसके कई सिद्धान्त आज भी प्रासंगिक हैं।

ARPANET के उद्देश्य (OBJECTIVES of ARPANET)

  • 1 . नटेवर्क पर एक या कई कम्प्यूटरों के खराब हो जाने पर भी नेटवर्क पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था।
  • 2. नेटवर्क पर विभिन्न प्रकार के सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर के साथ काम करना सम्भव था।
  • 3. नेटवर्क में ट्रैफिक को स्वतः ही खाली रूटों पर भेजने की सुविधा थी।
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यह कम्प्यूटरों का नेटवर्क न होकर नेटवर्कों का नेटवर्क था। जल्द ही यह महसूस होने लगा कि लोग नेटवर्कों पर जानकारी का आदान-प्रदान करना चाहते हैं और इसी जरूरत को परा करने के लिए व्यावसायिक नेटवर्क अस्तित्व में आए। 1980 के दशक के अन्त तक इंटरनेट इस प्रकार के नेटवर्कों का आधार बन गया था। 1990 के दशक के मध्य से इंटरनेट से जुड़ने वालों की संख्या में आशातीत वद्धि हई। वर्तमान में अनुमान है कि 1,463,652,361 लोग इंटरनेट से जुड़े हैं और यह संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। यह वृद्धि इस बात का संकेत है कि घरों में PC का प्रयोग करने वाले बढ़ रहे हैं और व्यावसायिक कार्यों में भी PC का खुलकर उपयोग होने लगा है।

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इंटरनेट की व्याख्या करना आसान नहीं है, फिर भी कह सकते हैं कि यह कम्प्यूटरों का ऐसा नेटवर्क है जो लोगों तथा सूचनाओं तक प्रयोगकर्ता को पहुँचाता है। यह एक प्रकार की सूचना सेवा भी है, क्योंकि इसमें ई-मेल । बुलेटिन बोर्ड और सूचनाओं को पुनः प्राप्त करने की सुविधा है, इससे विश्व के किसी भी कोने से फाइलों व डेटाबेस को एक्सेस किया जा सकता है, लेकिन इंटरनेट किसी सूचना सेवा से इसलिए भिन्न है, क्योंकि इसमें कोर्ट। केन्द्रीकृत कम्प्यूटर सिस्टम नहीं होता। यह तो कनेक्शनों का ऐसा संजाल है जिसमें हजारों-लाखों स्वतन्त्र सिस्टम टेलीफोन लाइन के माध्यम से आपस में जुड़े रहते हैं। अनुमान है कि विश्व में ऐसे 5 करोड़ कम्प्यूटर हैं और यह संख्या प्रतिमाह 10 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ रही है। विश्व भर में फैली टेलीफोन लाइनों के माध्यम से ये कम्प्यूटर आपस में संचार करते हैं। इन कनेक्शनों में सामान्य डायल-अप टेलीफोन लाइनों या उच्च क्षमता वाली विशेष लाइनों का प्रयोग नजदीकी इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर (ISP) से जुड़ने के लिए होता है। ISP से स्थानीय कॉल पर ही इंटरनेट से सम्पर्क हो जाता है और विश्व के दूर-दराज के क्षेत्रों में कम्प्यूटरों से जुड़ने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय कॉल की आवश्यकता नहीं पड़ती।

चूँकि इंटरनेट का आकार अपना विशालतम रूप ले चुका है, इसलिए यह प्रयोगकर्ताओं के लिए कुछ पेचीदा हो गया है। इंटरनेट का उपयोग करने वाले ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है जो इसके विशेषज्ञ नहीं हैं। इनकी सुविधा के लिए कई उपाय किये गये। Computer Service तथा America Online जैसी ऑनलाइन सेवाओं की शुरुआत हुई। ये सेवाएँ एक शक्तिशाली कम्प्यूटर के माध्यम से इंटरनेट से जुड़ी रहती हैं। प्रयोगकर्ता विश्व के किसी भी कोने से इस कम्प्यूटर से जुड़कर वहाँ से मिलने वाली सेवाओं का उपयोग कर सकता है, जैसे-डेटाबेस से कोई जानकारी प्राप्त करना, सॉफ्टवेयर लाइब्रेरी, समाचार, विभिन्न रुचियों के समूहों के लिए बुलेटिन बोर्ड, ऑनलाइन चैटिंग और ई-मेल आदि।

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वर्ल्ड वाइड वेब (World Wide Web)-World Wide Web (WWW) अर्थात् वेब-यह इसी नाम से प्रचलित है। विश्व भर में कम्प्यूटरों के नेटवर्क का नाम है वेब। वेब से जुड़े सभी कम्प्यूटर आपस में संचार करते हैं। सभी कम्प्यूटर हाइपरटेक्स्ट ट्रांसफर प्रोटोकॉल (HTTP) मानकों का प्रयोग करते हैं। यह इंटरनेट का एक घटक है, जो विभिन्न सर्वरों पर उपलब्ध अथाह जानकारी तथा सूचनाओं तक पहुँचना सम्भव करता है। यह इंटरनेट पर मिलने वाली अन्य बहुत-सी सेवाओं तक पहुँचने का भी जरिया है। वेब का आधार है वेब पेज। यह वेब पेज ऐसा टेक्स्ट डॉक्यूमेंट होता है, जिसमें अन्य वेब पेजों, ग्राफिक्स, ऑडियो फाइलों तथा फाइल ट्रांसफर प्रोटोकॉल (FTP) तथा ई-मेल आदि के लिंक होते हैं। विशेष प्रकार के सॉफ्टवेयर पर चलने वाले सर्वरों पर ये वेब पेज होते हैं। हजारों की संख्या में सर्वर इंटरनेट से जुड़े हैं। प्रयोगकर्ता इन सर्वरों पर मौजूद वेब पेजों को सीधे एक्सेस करके अन्य पेजों के लिए दिए गये लिंक का उपयोग कर सकता है। यह प्रक्रिया विश्व भर में लिंक्स संजाल बना देती है, इसीलिए इसे वर्ल्ड वाइड वेब का नाम दिया गया। जो कम्प्यूटर वेब पेज को रीड (खोलता) करता है उसे वेब क्लाइंट कहते हैं। वेब क्लाइंट इन पेजों को वेब ब्राउजर की सहायता से देखते हैं। ग्राफिक्स के साथ वेब पेज को दिखाने वाला सर्वप्रथम ब्राउजर Mosaic था। इंटरनेट एक्सप्लोरर, नेटस्केप नेविगेटर, मॉजिला फायरफॉक्स, ऑपेरा कुछ प्रचलित ब्राउजरों के नाम हैं। अनुरोध करने पर ब्राउजर सर्वर से उस पेज को निकाल लाता है। यह मानक HTTP अनुरोध पेज एड्रेस के साथ होता है। पेज एड्रेस कुछ इस प्रकार दिखाई देता है-http: I/www.name.com हाइपरटेक्स्ट मार्कअप लैंग्वेज (HTML) का उपयोग वेब पेजों को बनाने में होता है। HTML ही यह निर्धारित करता है कि टेक्स्ट किस प्रकार दिखाई देगा और अन्य वेब पेजों, फाइलों तथा इंटरनेट सेवाओं से कैसे लिंक होगा। इन लिंक्स को हाइपरटेक्स्ट लिंक कहते हैं, क्योंकि यह वेब पेज में दिए गये विशेष सारया इमेज पर क्लिक करने पर ही सक्रिय होते हैं। सर्च इंजन के प्रयोग द्वारा अनुक्रमित (Indexed) होती है। सर्च इंजन वेब डॉक्यूमेंट्स में टेक्स्ट की पहचान करते हैं, जो की-वर्ड सचिंग का आधार है। प्रत्येक सर्च इंजन प्रणाली अलग होती है। कुछ सर्च इंजन डॉक्यूमेंट के शीर्षक के आधार पर सूचना ढंढते हैं, जबकि कुछ अन्य इसके लिए मोटे अक्षरों में शीर्षक को ढूंढते हैं।

चूंकि सर्च इंजन अलग-अलग विधियों का प्रयोग करके जानकारी दढते हैं, इसलिए परिणाम भी भिन्न होने की संभावना रहती है। इसलिए अच्छा तो यही होगा कि वेब सचिंग के लिए एक से अधिक सर्च इंजन का उपयोग किया जाए। कुछ लोकप्रिय सर्च इंजन निम्नानुसार हैं

चूँकि वेब पर सूचनाओं तथा जानकारी का अथाह भण्डार मौजूद है, इसलिए कुछ सर्च इंजन पर निम्न विषयों को दिखाया है ताकि विषयवार सर्च करने में सविधा रहे है ।

  • Arts and Humanities (कला और मानक स्वभाव)
  • Business and Economy (व्यापार और अर्थव्यवस्था)
  • Computers and Internet (कम्प्यूटर और इंटरनेट)
  • Education (शिक्षा) Entertainment (मनोरंजन)
  • Government (सरकार) Health (स्वास्थ्य)
  • News and Media (समाचार और मीडिया)
  • Recreation and Sports (मन बहलाव और खेल)
  • Reference (सन्दर्भ) Regional (क्षेत्रीय)
  • Science (विज्ञान)
  • Social Science (सामाजिक विज्ञान)
  • Society and Culture (समाज और संस्कृति)

वेब सचिंग करते समय जानकारियाँ सदैव अत्यधिक मात्रा में दिखाई देती हैं। ऐसे में वांछित परिणाम के लिए शब्दों का चयन करना कठिन हो जाता है। माँगी गई जानकारी दिखाने के लिए ब्राउजर HTML कमाण्डों का प्रयोग करके वेब पेज को रीड (पढ़ना) करता है, जो कि वेब पेज के बीच ही होते हैं। टेक्स्ट का स्थान फॉन्ट, रंग और आकार का निर्धारण HTML से ही होता है। ब्राउजर सॉफ्टवेयर HTML कमाण्डों को परिवर्तित कर जानकारी मॉनिटर स्क्रीन पर दिखाता है। यहाँ यह ध्यान रखना होगा कि प्रत्येक ब्राउजर अलग विधि से HTML की व्याख्या करता है, इसलिए परिणाम भी भिन्न होते हैं। उदाहरणार्थ, किसी वेब पेज में ऐसा HTML कोड हो सकता है, जिसमें टेक्स्ट पर जोर दिया गया हो। ऐसे में एक ब्राउजर टेक्स्ट को बोल्ड के रूप में देख सकता है तो अन्य उसके लिए इटेलिक्स का प्रयोग कर सकता है।

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यूनिफॉर्म रिसोर्स लोकेटर्स [URLs (Uniform Resource Locators)]-इंटरनेट पर मौजूद जानकारी और किसी विशेष पेज को एड्रेस व एक्सेस करने के लिए URLs का प्रयोग होता है। URL का फॉरमेट कुछ इस प्रकार होता है-Protocol/Internet address/Web page address. HTML कोड के लिए वेब जिस प्रोटोकॉल का उपयोग करता है उसे Hyper Text Transport Protocol (HTTP) कहते हैं। यहाँ http:// यह प्रदर्शित करता है कि वेब पेज से जानकारी लेने-देने की प्रक्रिया में HTTP का प्रयोग किया जाएगा। Pages prodigycom वेब सर्वर का इंटरनेट एड्रेस है और kdallas/indexhtm, उस सर्वर परमाजूद पेज का एड्रेस है। यहाँ Index htm को न देने पर भी काम चल जाएगा. क्योंकि यह डायरेक्टरी (यहाँ Kdall) के मुख्य पेज का डिफॉल्ट है। HTML के अन्दर जानकारी को तालिका का रूप देकर, उसके फॉर्म मनाए जा सकते हैं और उन्हें दसरों को भेजा जा सकता है। HTML में ग्राफिक्स फाइलें भी दिखाई जा सकती । उपर्युक्त तथा अन्य विशेषताओं का उपयोग करके पेचीदा वेब पेज बनाए जा सकते हैं।

इंटरनेट सर्फिग (Surfing on the Internet)-इंटरनेट पर बहत से ऐसे सर्वर हैं, जो किसी विषय प पर हो जानकारी देते हैं। जब आप कोई जानकारी खोज रहे हों तो यह जरूरी हो जाता है कि उसे एक से अधिक सर्वरों पर खोजा जाए। मकड़ी के जाल की भाँति इंटरनेट पर कम्प्यूटरों को आपस में जोड़ता है और प्रयोगकर्ता सीधे ही एक से दूसरे कम्प्यूटर पर जा सकते हैं। जब हम एक से दूसरे कम्प्यूटर पर जाने की प्रक्रिया। दोहराते रहते हैं, तो इसे ‘सर्फिग’ कहते हैं।

इंटरनेट के उपयोग (Applications of Internet)-इंटरनेट को अनेक प्रकार से उपयोग किया जा सकता है और यह प्रयोग करने वाले पर निर्भर है कि वह किस प्रकार इसका उपयोग करता है। सामान्य रूप से इंटरनेट के तीन मुख्य उपयोग हैं-संचार. डेटा पुनः प्राप्त करना और डेटा पब्लिशिंग।

संचार (Communication)-इंटरनेट पर ऑफ लाइन या ऑन लाइन रूप से संचार किया जा सकता है। जब कुछ यूजर एक ही सर्वर पर आपस में जुड़ते हैं या किसी ऑन लाइन सेवा से जुड़े हैं, तो आपस में ऑन लाइन चैट कर सकते हैं। यह कुछ वैसा ही है, जैसे लोगों से भरे किसी कमरे में वहाँ मौजूद लोग जोड़ा बनाकर आपस में बातें करते हैं। Usenet ग्रुप द्वारा एक ही रुचि के कई यूजर आपस में जुड़ सकते हैं। इस दौरान भेजे गये सन्देशों को सभी यूजर अपनी सुविधानुसार पढ़ते हैं और उनका उत्तर देते हैं। इसी प्रकार संचार की यह प्रक्रिया चलती रहती है।

डेटा प्राप्त करना (Data Retrieval)-अर्थपूर्ण डेटा प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि विभिन्न स्रोतों से एकत्र किया गया डेटा एक साथ उपयोग करने की दशा में हो। इंटरनेट पर असंख्य डेटाबेस मौजूद हैं। इन्हें व्यावसायिक रूप से डेटा उपलब्ध कराने वाले व्यक्तिगत लोगों या एक ही विषय में रुचि रखने वाले लोगों के समूह ने एक साथ रखा है। ऐसे डेटा को पुनः प्राप्त करने के लिए हमें उस सर्वर का एड्रेस मालूम होना चाहिए। इसके बाद माँगी गई जानकारी की गहनता के आधार पर विभिन्न डेटा बेसों को खंगाल कर अपने मतलब की जानकारी जुटाई जाती है। यह कुछ उसी प्रकार है जैसे लाइब्रेरी में किसी किताब को ढूंढा जाता है। अन्तर केवल इतना है कि इंटरनेट लाइब्रेरी अत्यन्त विशाल है, क्योंकि यह निरन्तर अपडेट होती रहती है और पूर्णतया इलेक्ट्रॉनिक है। अंसख्य सर्वरों में से अपने मतलब की जानकारी जुटाने के लिए थोड़ी दक्षता का होना जरूरी है। इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी अत्यधिक होती है, क्योंकि सारा डेटा इलेक्ट्रॉनिक रूप से विश्वभर में सम्प्रेक्षित होता है। बड़े उद्योगों के लिए यह बेहद उपयोगी है, क्योंकि उन्हें अपने उत्पादों, बाजारों और रणनीतियाँ बनाने के लिए निरन्तर अपडेट होते रहने वाली जानकारियों की आवश्यकता होती है।

डेटा पब्लिशिंग (Data Publishing)-यह एक प्रकार का नया कार्य है, जिसे इंटरनेट ने सम्भव कर दिखाया है। ऐसी जानकारी जिसकी आवश्यकता अन्य लोगों को भी हो, उसे किसी विशेष एड्रेस पर अग्रसरित (फॉरवर्ड) किया जा सकता है, Usenet पर पोस्ट किया जा सकता है या किसी विशेष साइट पर डाला जा सकता है। सामाजिक दबावों के चलते इंटरनेट अनचाही ई-मेल को बढ़ावा नहीं देता।

इंटरनेट के व्यावसायिक उपयोग (Business use of Internet)-यूँ तो इंटरनेट काफी पहले से मौजूद है, लेकिन प्रारम्भिक अवस्था में इसका उपयोग शोध तथा शिक्षा के क्षेत्रों में ही होता था। इंटरनेट के माध्यम से व्यापार करना हाल-फिलहाल ही सम्भव हुआ है। इंटरनेट ने ऐसे सन्दर्भ विकसित कर लिए हैं कि क्या मान्य है और क्या अमान्य। उदाहरणार्थ, इंटरनेट एक खुला स्रोत है और कोई भी किसी से कहीं भी सम्पर्क कर सकता है। लेकिन जो नियम चलन में है वे अनचाही ई मेल को हतोत्साहित करते हैं। इसीलिए इंटरनेट का प्रयोग व्यवसाय में किया तो जा सकता है, परन्तु नियमों व सिद्धान्तों के अनुसार। इंटरनेट के कछ व्यावसायिक उपयोग निम्नानुसार है

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सम्पूर्ण विश्व में पहुंच (Access to Worldwide Audience)-चँकि इंटरनेट पूरे विश्व में फैला है, इसलिए विश्व के किसी भी कोने में लोगों तक पहुँचा जा सकता है. जो महँगे-से-महँगे विज्ञापनों द्वारा भी सम्भव नहीं है।

उत्पाद की जानकारी (Provide Product Information)-ग्राहक उत्पाद से सम्बन्धित जानकारी के सीधे सम्पर्क में आते हैं। कुछ लोग उत्पाद के विषय में स्वयं जानना चाहते हैं। ऐसे सम्भावित ग्राहकों तक कम्पनी के उत्पादों या सेवाओं की जानकारी पहुँचाने के लिए इंटरनेट सर्वोत्तम माध्यम है। यह तभी जानकारी प्रदान । करता है जब ग्राहक चाहता है (अभी)।

छपाई के खर्च में बचत (Save on Literature Costs)-जानकारी ऑनलाइन होने के कारण उत्पाद के विज्ञापन या जानकारी को छपवाकर डाक द्वारा भेजने का खर्च बच जाता है। इससे उत्पाद का मुख्य कम रखने में मदद मिलती है।

बैंक का संवर्धन (Augment/Replace Phone Banks)-प्रायः फोन बैंक के रूप में काम पर लगे व्यक्ति कम्प्यूटर डेटाबेस का इंटरफेस होते हैं। ग्राफिकल, नेटवर्किंग कम्प्यूटर के इस युग में इसकी कोई महत्ता नहीं है। साधारण ग्राफिकल इंटरफेस डिजाइन करके ग्राहकों तक जानकारी शीघ्र व बिना अधिक खर्च किये पहुँचाई जा सकती है।

ग्राहक सेवा प्रतिनिधि तक आसान पहुँच (Provide Easy Access to Customer Service Representatives)-कैसा भी इंटरफेस विकसित कर लिया जाए, लेकिन वह आमने-सामने बातचीत का स्थान नहीं ले सकता। जब ग्राहकों को कोई प्रश्न पूछना है या किसी व्यक्ति से बात करनी है तो सम्पर्कों की सूची उनके फोन नम्बरों सहित मिल जाती है या ग्राहक सेवा प्रतिनिधि से सीधे ई-मेल द्वारा सम्पर्क किया जा सकता है।

ग्राहक सेवा के भार को सन्तुलित करना (Level your Customer Service Load)-यह अनुमान लगाना कठिन है कि कितने ग्राहक उस समय असन्तुष्ट रहते होंगे जब कस्टूमर केयर की हैल्पलाइन व्यस्त रहती है। कितनी बार ग्राहक सेवा प्रतिनिधि कॉल सुनने में लापरवाही करते हैं। ई-मेल इस दिशा में ग्राहक सेवा भार को सन्तुलित करती है। ऐसे ग्राहक जिनकी शिकायतें अविलम्ब निपटाने वाली नहीं हैं, के आपकी वेब साइट पर ई-मेल कर सकते हैं। टेलीफोन-टैग आपके और आपके ग्राहकों के लिए हट जाएगा।

कॉरपोरेट इमेज का संवर्धन (Inexpensively Create/Augment your Corporate Image)-यह आपकी छवि को इंटरनेट पर देखने की सरल व कम खर्चीली विधि है, चाहे आप एक व्यक्ति हों या विशाल कॉरपोरेट समूह। यदि कम्पनी की जानकारी बाजार की शक्तियों से प्रभावित होकर जल्दी-जल्दी बदलती रहती है तो इंटरनेट से आसान उपाय दूसरा नहीं है।

नई कर्मचारियों की भर्ती (Recruit New Employees)-लगभग सभी कम्पनियाँ अपने यहाँ रिक्त पदों की सूचना अपनी वेब साइट पर देती हैं। ऐसे में उन्हें ऐसे स्थानों से भी योग्य कर्मचारी मिल जाते हैं, जहाँ सामान्यत: वे नहीं पहुँच सकते थे।

ग्राहकों को आकर्षित करने हेतु उपयोगी जानकारी (Provide useful Information to Attract | Customers)-Yahoo और Google जैसे सर्च इंजन वेब सर्च करने के लिए अच्छी सेवाएँ देते हैं। सम्भावित ग्राहकों तक उपयोगी जानकारी पहुँचाने का एक अच्छा जरिया है कि वे बार-बार आपकी साइट पर आयें। इसे ‘stickiness’ कहा जा सकता है।

ऑन लाइन सेवाएँ (Provide your Service on Line)-इंटरनेट के माध्यम से बहुत से उत्पाद और सेवाएँ लोगों तक पहुँचाई जा सकती हैं। बहुत से व्यवसायों के लिए तो ऑन-लाइन सेवाएँ वरदान के समान होंगी। चूँकि सभी ट्रांजेक्शन इलेक्ट्रॉनिक होती हैं और बिलिंग तथा स्टॉक अपडेट होने का काम भी स्वचालित होता है, इसलिए एकाउंटिंग और उत्पाद को स्टोर करके रखने का खर्च भी कम हो जाता है।

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ढूंढी जा सकने वाली जानकारी तक ग्राहकों की पहँच (Give Customers Access to searchable  Information)-इंटरनेट पर मौजूद कम्प्यूटरों पर कम्पनी द्वारा डाली जाने वाली जानकारी स्थिर वेब पेजों के रूप में होती है, लेकिन कुछ आधुनिक सॉफ्टवेयर यह सुविधा देते हैं कि इन कम्प्यूटरों पर ग्राहकों को वह जानकारी भी मिल जाए, जिस पर आप जल्दी उन तक पहुँचाना चाहते हैं। फेडरल एक्सप्रेस ने एक ऐसी पुरस्कार विजेता वेब साइट बनाई जिसमें ग्राहक अपने पैकेज देख सकते हैं। ऐसा करके फेडरल एक्सप्रेस ने उपयोगी ग्राहक सेवा तो दी ही, साथ ही अपने उत्पाद (सेवाओं) को भी आगे बढ़ाया।

ग्राहकों को यह समझाना कि उन्हें आपकी जरूरत क्यों है (Help Customers to Understand why they Need You)-कम्प्यूटर कृत्रिम बुद्धिमत्ता, विशेषज्ञता तथा विश्लेषण का काम भी करते हैं। इटरनेट पर कस्टम सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन पहुँचाकर अपनी विशेषज्ञता को वर्चुअल रूप से बढ़ाया जा सकता है। मान लीजिए, आप थर्मोपेन खिडकियाँ बनाते हैं। ऐसे स्प्रेडशीट एप्लीकेशन द्वारा सम्भावित ग्राहक यह अनुमान लगा सकते हैं कि आपके द्वारा बनाई गईं खिड़कियाँ लगाने से उनकी ऊर्जा खपत में कितनी बचत होगी। इसी अकार वित्तीय सेवाएँ देने वाली कम्पनी की सेवाओं का विश्लेषण सम्भावित ग्राहक कर सकते हैं।

बिचौलियों का सफाया (Eliminate the Middleman)-जहाँ ग्राहकों और उत्पादकों के बीच ” सम्पर्क नहीं होता, वहाँ बिचौलिए अपनी भूमिका निभाते हैं, लेकिन इंटरनेट से व्यवसाय में बिचौलियों का कोई काम नहीं है। इससे उनके द्वारा लिया जाने वाला कमीशन बच जाता है और ग्राहक को उत्पाद सस्ता मिलता। है तथा उत्पादक का मुनाफा बढ़ता है।

ऑन लाइन कॉमर्स (On Line Commerce)-आजकल इसकी बड़ी चर्चा है। कुछ उत्पाद तथा। सेवाएँ ऐसी हैं जिन्हें ऑन लाइन बेचने में समझदारी है। इसका तीव्र विकास तब होगा, जब क्रेडिट कार्ड से किया। जाने वाला भुगतान पूर्णतया सुरक्षित और मानवीकृत हो जाएगा। उत्पादनों का शीघ्र विपणन और वितरण भी इसके विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

इंट्रानेट पर विचार (Consider on Intranet)-कम्पनी के भीतर समान इंटरनेट तकनीक का प्रयोग करके कर्मचारियों के बीच संवाद बेहतर होता है और कार्य क्षमता में वृद्धि होती है। बहुत-सी कम्पनियों ने इंट्रानेट को अपने नेटवर्क की सूचनाओं के सम्प्रेषण के लिए सॉफ्टवेयर की तुलना में सस्ता व उपयोगी पाया है।

इंटरनेट के सहज लाभ (Internet Intrinsic Benefits)-एक ही प्लेटफॉर्म (स्थान) पर व्यवसाय तथा सेवाओं से सम्बद्ध सारी जानकारी एक सूत्र में पिरोई हुई मिलती है।

  • बहुत ही कम कीमत चुकाकर इस जानकारी को एक्सेस किया जा सकता है।
  • ग्राहकों या व्यावसायिक भागीदारों की प्रतिक्रिया तुरन्त मिल जाती है।
  • आन्तरिक व बाहरी स्रोतों तक सूचनाएँ पहँचाने के खर्च में कमी होती है।
  • अधिकांश जानकारी तक कर्मचारियों की पहुँच हो जाती है।
  • अपने कर्मचारियों और ग्राहकों तक पहुँचने वाली जानकारी को अपडेट करना होता है।
  • सारगर्भित (विषय विशेष) जानकारी ग्राहकों तक पहुँच बनाती है।
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विभिन्न प्रकार के इंटरनेट कनेक्शन (Types of Internet Connections)-जैसे-जैसे तकनीक का विकास हो रहा है, वैसे-वैसे हमारी जरूरतें बढ़ती जा रही हैं। पिछले कुछ वर्षों में वेब पेज पर सामग्री प्रदर्शित करने का तरीका पूरी तरह बदल गया है। जिस तेजी से तकनीक आगे बढ़ रही है, उसी तेजी से इंटरनेट कनेक्शन भी बढ़ रहे हैं। इन कनेक्शनों की स्पीड इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर (ISP) के बीच भिन्न होती है। विभिन्न ISP विभिन्न प्रकार के कनेक्शन उपलब्ध कराते हैं। यह आपके इंटरनेट के उपयोग और उससे लिए जाने वाले कार्य की प्रकृति पर निर्भर करता है कि आपको कैसा कनेक्शन चाहिए।

इंटरनेट कनेक्शन निम्न प्रकार के होते हैं

एनालॉग/डायल-अप कनेक्शन (Analog/Dial up Connection)-इसे डायल-अप एक्सेस भी कहते हैं, यह सस्ता किन्तु धीमा होता है। PC से मॉडेम को जोड़कर ISP द्वारा दिए गये फोन नम्बर पर डायल करके आप इंटरनेट से जुड़ जाते हैं। डायल-अप एनालॉग कनेक्शन है, क्योंकि इसमें डेटा सार्वजनिक टेलीफोन नेटवर्क पर एनालॉग रूप से भेजा जाता है। मॉडेम भेजे जाने वाले और आने वाले डेटा को डिजिटल रूप में बदल देता है। चूँकि डायल-अप एक्सेस में साधारण टेलीफोन लाइनों का उपयोग होता है, इसलिए यह कनेक्शन सदैव विश्वसनीय नहीं रहता और डेटा प्राप्त करने व भेजने की गति भी बहुत कम होती है। डायल-अप कनेक्शन की स्पीड 2400 bps से 56 Kbps तक होती है।

ISDN कनेक्शन (ISDN Connection)-इसका पूरा नाम Integrated Services Digital Network (ISDN) है। यह एक अन्तर्राष्ट्रीय संचार मानक है, जो ध्वनि, वीडियो और डेटा को डिजिटल टेलीफोन लाइनों या साधारण लाइनों के माध्यम से सम्प्रेषित करता है। ISDN की स्पीड 64 Kbps से 128 Kbps तक होती है।

DDDN कमवशन (B ISDN Connection)-यहाँ ISDN के साथ जडे का आशय ब्रॉडबैंड स है और यह ISDN की भाँति कार्य करता है, लेकिन डेटा सम्प्रेषण के लिए इसमें साधारण टेलीफोन लाइनों के बजाय फाइबर ऑप्टिक लाइनों का प्रयोग होता है। B ISDN का प्रसार अधिक नहीं हो पाया है।

DSL कनेक्शन (DSL Connection)-इसे Digital Subscriber Line (DSL) कहते हैं आर। यह सदैव सक्रिय (On) रहने वाला कनेक्शन है। इसमें टेलीफोन की दो तारें होती हैं जो डायल अप कनेक्शन की भाँति आपके टेलीफोन से नहीं जोड़ी जाती। इसमें ISP को डायल करने की जरूरत नहीं होती, क्योंकि DSL सदैव ऑन रहता है। Asymmetric Digital Subscriber Line (ADSL) और Symmetric Digital Subscriber Line (SDSL) के माध्यम से DSL काम करता है।

ADSL कनेक्शन (ADSLConnection)-उत्तरी अमेरिका में DSL की ADSL श्रेणी का कनेक्शन सर्वाधिक प्रयोग किया जाता है। डेटा प्राप्त करते समय ADSL की स्पीड 15 से 9 Mbps तक होती है और डेटा भेजते समय यह स्पीड 16 से 640 Kbps तक होती है। ADSL कनेक्शन को चलाने के लिए ADSL मॉडेम की आवश्यकता होती है।

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SDSL कनेक्शन (SDSL Connection)-यूरोप में SDSL अधिक लोकप्रिय है। SDSL तकनीक में मौजूदा तांबे के तार युक्त टेलीफोन लाइनों के माध्यम से डेटा अधिक मात्रा में भेजा जा सकता है। SDSL की स्पीड 3 Mbps तक होती है और इसमें डेटा की तरंगें उच्च फ्रीक्वेंसी क्षेत्र वाली टेलीफोन लाइनों द्वारा भेजी जाती हैं। ऐसा होने पर उन लाइनों पर बात करना सम्भव नहीं होता। SDSL कनेक्शन को चलाने के लिए SDSL मॉडेम की आवश्यकता होती है। SDSL में डेटा भेजने और प्राप्त करने की स्पीड समान होती है।

VDSL कनेक्शन (VDSL Connection)-इसे Very High Digital Subscriber Line (VDSL) कहते हैं। DSL तकनीक पर आधारित यह कनेक्शन छोटी दूरी होने पर डेटा को भेजने का काम तेजी से करता है। दूरी जितनी कम होगी, स्पीड उतनी ही अधिक होगी। XDSL तकनीकों के सभी प्रकारों को सामूहिक रूप से XDSL कहा जाता है। XDSL कनेक्शन की स्पीड 128 Kbps से 8 Mbps तक होती है।

केबल कनेक्शन (Cable Connection)-केबल (तार) वाले मॉडेम से केबल टीवी लाइनों के माध्यम से ब्रॉडबैंड कनेक्शन चलाया जा सकता है। केबल इंटरनेट डेटा भेजने के लिए टीवी चैनलों के स्थान का प्रयोग करता है। इसमें कुछ चैनल डेटा भेजते हैं तो कुछ डेटा प्राप्त करने का काम करते हैं। चूँकि केबल टीवी में Coaxial केबल का उपयोग होता है, इसलिए इसमें टेलीफोन लाइनों की तुलना में कहीं अच्छी बैंडविड्थ मिलती है। केबल कनेक्शन की स्पीड काफी तेज 512 Kbps से 20 Mbps तक होती है।

वायरलेस इंटरनेट कनेक्शन (Wireless Internet Connection)-वायरलेस इंटरनेट या वायरलेस ब्रॉडबैंड सबसे नए प्रकार का कनेक्शन है। इसमें टेलीफोन लाइनों या केबल नेटवर्क के बजाय कनेक्शन के लिए रेडियो फ्रीक्वेंसी बैंड्स का प्रयोग होता है। हमेशा ऑन रहने वाला यह कनेक्शन कहीं से भी चलाया जा सकता है, बशर्ते आप उसके नेटवर्क की भौगोलिक परिधि में हो। चूँकि यह तकनीक अभी अपने प्रारम्भिक चरण में है, इसलिए सभी जगह वायरलेस नेटवर्क नहीं मिल पाता। यह कनेक्शन अपेक्षाकृत महँगा होता है। प्राय: बड़े शहरों तक सीमित है।

सैटेलाइट कनेक्शन (Satellite Connection)-इसे इंटरनेट ओवर सैटेलाइट (IOS) कहते हैं और इसमें किसी सैटेलाइट के माध्यम से इंटरनेट कनेक्ट होता है। पृथ्वी की सतह से ऊपर किसी स्थान पर सैटेलाइट (उपग्रह) स्थिर होता है। दूरी अधिक होने के कारण सिग्नल जमीन से उपग्रह तक जाने चाहिए और वहाँ से वापस आने चाहिए। यह कनेक्शन फाइबर ऑप्टिक केबल वाले कनेक्शन की तुलना में कुछ धीमा होता है। इसकी स्पीड 492 से 512 Kbps तक होती है।

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इंटरनेट के घटक (अंग) (Internet Components)

 इलेक्ट्रॉनिक मेल (ई-मेल) [Electronic Mail (e-mail)]-आपस में संचार व सम्पर्क करने की वर्तमान में सबसे लोकप्रिय विधि है-ई-मेल। इंटरनेट द्वारा संचालित होने वाली ई-मेल विश्व के किसी भी कोने में सन्देश भेजने का शीघ्र व बिना लागत का माध्यम है। सम्भवतः यह संचार करने का सबसे सरल व त्वरित माध्यम है। ई-मेल ने खाकी वर्दी पहनने वाले डाकिये की उपयोगिता और कार्यभार को कम कर दिया है। आज हमारे देश म सभी इंटरनेट प्रयोग करने वाले मुफ्त ई-मेल की सुविधा का लाभ उठा रहे हैं और सभी का अपना एक अलग विशिष्ट ई-मेल एड्रेस है, जो किसी अन्य का नहीं हो सकता। इस ई-मेल एकाउंट को विश्व के किसी भी कोने से एक्सेस किया जा सकता है।

वर्तमान में VSNL (विदेश संचार निगम लि.) के अतिरिक्त कई अन्य ISP हैं जो बड़े शहरों में ई-मेल को सविधानले सुविधा दे रहे हैं, लेकिन इन कनेक्शनों से इंटरनेट को एक्सेस नहीं किया जा सकता। जब भी किसी ISP से। प्रयोगकर्ता को सर्वर पर एक निश्चित मात्रा में स्थान (डिस्क स्पेस) मिल जाता है। यह डिस्क स्पेस आपके निजी पास्ट बॉक्स जैसा है-जब कोई आपको ई-मेल भेजता है तो वह इस पोस्ट बॉक्स में आता है। जब आप ई-मेल । मसेज को पढ़ लेते हैं तब भी यह तब तक वहीं पड़ा रहता है जब तक आप इसे डिलीट नहीं कर देते। जब यह पोस्ट बॉक्स पूरा भर जाता है तो ISP की ओर से इसे खाली करने के लिए चेतावनी सन्देश मिलता है। ई-मेल की सुविधा ने आज हमारी जीवनशैली ही बदल दी है। कोई भी अपने पत्र व सर्कुलर आदि अपने उन क्लाइंट्स को भेज सकता है, जिसके पास ई-मेल की सुविधा है। इससे छपाई और डाक भेजने पर होने वाल खर्च बच जाता है। इसके अतिरिक्त जब एक ही प्रकार की जानकारी या सचना बहत से लोगों को भेजनी हो तो एक कॉमन लिस्ट बनाकर उन्हें एक साथ ई-मेल कर सकते हैं। इससे समय, श्रम, ऊर्जा व धन की बचत होती है। ई-मेल की एक। अन्य विशेषता यह है कि यदि भेजने वाले ने ई-मेल पाने वाले का एड्रेस गलत लिखा है तो यह वापस आ जाएगी, किसी गलत पते पर इसके जाने की संभावना लगभग शुन्य होती है। इसे भेजने और प्राप्त करने में क्षणभर का । समय लगता है। ई-मेल ने आज डाकिये और कोरियर वालों को मीलों पीछे छोड़ दिया है। ई-मेल के साथ समय और सीमाओं का कोई बन्धन नहीं है।

ई-मेल के माध्यम से वर्ड प्रोसेसर या स्प्रेडशीट में बनी फाइलें भी अटैचमेंट के रूप में भेजी जा सकती हैं। उदाहरणार्थ, हमने किसी क्लाइंट की आय का विवरण स्प्रेडशीट में तैयार किया है। क्लाइंट को हम ई-मेल मैसेज देते हैं कि उसका काम हो चुका है, साथ ही उस स्प्रेडशीट को अटैच करके उसके पास भेज देते हैं। ताकि वह उसकी जाँच कर ले। यहाँ इस बात का ध्यान रखें कि अटैचमेंट के रूप में भेजी जाने वाली फाइल बहुत बड़ी (हैवी) न हो अन्यथा पाने वाले का मेल बॉक्स जाम हो जाएगा। अटैच की गई फाइल को देखने के लिए पाने वाले के पास कम्प्यूटर में वह सॉफ्टवेयर होना जरूरी है, जिसमें फाइल बनाकर भेजी गई है। कुछ मामलों में तो सॉफ्टवेयर का वही वर्जन चाहिए होता है जिसमें फाइल बनी है।

ई-मेल ने हमारे कार्य और व्यवसाय करने का तरीका बदल दिया है। लोगों को भारी मात्रा में ई-मेल मिलने से परेशानी भी होती है, लेकिन इसमें कोई दो राह नहीं कि इसने व्यवसाय का स्वरूप बदल दिया है और यह सभी संचार माध्यमों में श्रेष्ठ है।

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इंट्रानेट (Intranet)

यह एक ऐसा सूचना (Information) सिस्टम है जो किसी संस्थान के अन्दर काम करता है। बड़े संस्थानों में विभाग दूर-दूर स्थित होते हैं, इसके अतिरिक्त कई खण्ड स्थानीय कार्यालय भी होते हैं-इन सब के बीच संचार । का माध्यम बनता है इंट्रानेट। यह लोगों को इंटरनेट तकनीक से आपस में जोड़ता है-वेब ब्राउजर, वेब सर्वर और डेटा वेयरहाउस इसके अंग हैं। इंट्रानेट से एक ही ब्राउजर से सारी सूचनाएँ, एप्लीकेशन और डेटा उपलब्ध हो जाता है। इसका उद्देश्य प्रत्येक डेस्कटॉप को न्यूनतम खर्च, समय और प्रयास द्वारा अधिक सक्षम, समयबद्ध और प्रतियोगी बनाना है। जेम्स किमिनो के अनुसार इंट्रानेट से निम्न चुनौतियों को हल किया जा सकता है

  • जानकारी तक आसान पहुँच।
  • जानकारी ढूँढने में लगने वाले समय की बचत।
  • टूल्स और जानकारी को शेयर करना व पुनः प्रयोग करना।
  • सेटअप और अपडेट के समय में कमी।
  • कॉरपोरेट लाइसेंसिंग का सरलीकरण।
  • सपोर्ट कॉस्ट लागत में कमी।
  • अतिरिक्त पेज बनाने और उन्हें रखने में कमी।
  • तेज व सस्ता ।
  • डेटाबेस (आर्काइब) बनाने पर एक ही बार खर्च।
  • असाधारण योग्यता को शेयर करना।

वितरित कम्प्यूटिंग (Distributed Computing)

कम्प्यटिंग वितरित कम्प्यूटर विज्ञान का एक क्षेत्र है जो वितरण प्रणाली का अध्ययन करता है। एक वितरित प्रणाली एक सॉफ्टवेयर प्रणाली है जो नटवक कम्प्यूटर पर स्थित घटकों को भेजे गये सन्देश द्वारा उनके कार्यों के  लिए संवाद और समन्वय करता है। ये घटक एक साझा लक्ष्य को हासिल करने के लिए एक-दूसरे के साथ संवाद करते हैं। आरपीसी की तरह कनेक्टर्स और सन्देश कतार सहित मेसेज भेजे जाने वाले तन्त्र के लिए कई विकल्प हैं।Internet Basic Concepts

वितरण प्रणाली की तीन महत्वपूर्ण विशेषताएँ हैं

  • घटकों के संगामिति,
  • एक वैश्विक घड़ी की कमी है,
  • और घटकों की स्वतन्त्र विफलता।

वितरण प्रणाली का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य और चुनौती का स्थान पारदर्शिता है। एक कम्प्यूटर प्रोग्राम जो एक वितरित प्रणाली को चलाता है, वितरित कार्यक्रम कहा जाता है और वितरित प्रोग्रामिंग इस तरह के कार्यक्रमों को लिखने की प्रक्रिया है। वितरित कम्प्यूटिंग कम्प्यूटेशनल समस्याओं को हल करने के लिए वितरण प्रणाली के उपयोग को दर्शाता है। वितरित कम्प्यूटिंग में, समस्या को कई कार्यों में विभाजित किया जाता है जिनमें से प्रत्येक को एक या एक से अधिक कम्प्यूटर द्वारा हल किया जाता है।

वितरित प्रणाली में एक समान लक्ष्य हो सकता है जो बड़ी कम्प्यूटेशनल समस्या को सुलझाने के रूप में प्रयोग किया जाता है। वैकल्पिक रूप से, प्रत्येक कम्प्यूटर पर व्यक्तिगत जरूरतों के साथ अपने स्वयं का उपयोगकर्ता हो सकता है और वितरित प्रणाली का उद्देश्य साझा संसाधनों के उपयोग का समन्वय या उपयोगकर्ताओं को संचार सेवाएं प्रदान करने के लिए किया जाता है।

वितरण प्रणाली के अन्य विशिष्ट गुण निम्न शामिल हैं

  • 1. प्रणाली को व्यक्तिगत कम्प्यूटर में विफलताओं को सहन करना पड़ता है।
  • 2. प्रणाली (नेटवर्क टोपोलॉजी, नेटवर्क विलम्बता, कम्प्यूटर की संख्या) की संरचना को अग्रिम में ज्ञात नहीं होता है, सिस्टम कम्प्यूटर और नेटवर्क लिंक के विभिन्न प्रकार से मिलकर बना होता है और इस प्रणाली को वितरित कार्यक्रम के निष्पादन के दौरान बदल सकते हैं।
  • 3. प्रत्येक कम्प्यूटर का केवल एक सीमित, सिस्टम का अधूरा दृश्य होता है। प्रत्येक कम्प्यूटर इनपुट का ही एक हिस्सा पता कर सकते हैं।

कम्प्यूटिंग का एक प्रकार जिसमें विभिन्न घटकों और एप्लीकेशन को नेटवर्क से जुड़े विभिन्न कम्प्यूटरों पर स्थित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, एक शब्द संसाधन एप्लीकेशन एक कम्प्यूटर पर एक सम्पादक घटक, एक दूसरे कम्प्यूटर पर स्पेलिंग चेक, और एक तीसरे कम्प्यूटर पर एक कोश से मिलकर बना हो सकता है। कुछ वितरित कम्प्यूटिंग प्रणालियों में, तीन कम्प्यूटर में प्रत्येक अलग ऑपरेटिंग सिस्टम पर चल सकता है। एक वितरित कम्प्यूटर सिस्टम कई सॉफ्टवेयर घटक से बना होता है लेकिन एक सिस्टम पर चलता है। कम्प्यूटर जो वितरित प्रणाली में हैं भौतिक रूप से एक दूसरे के करीब हो सकते हैं और स्थानीय नेटवर्क से जुड़े हो सकते है। उन्हें भौगोलिक दष्टि से दर और वाइड एरिया नेटवर्क से जोड़ा जा सकता है।

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वितरित कम्प्यूटिंग का लक्ष्य एक बनाना है जो एकल कम्प्यूटर के रूप में कार्य कर रहा है। वितरण प्रणाली निम्नलिखित केन्द्रीकृत प्रणाली पर कई लाभ प्रदान करते हैं।

मापनीयता (Scalibility)-सिस्टम को आसानी से आवश्यकतानुसार अधिक मशीनों से जोड़कर विस्तारित ऐसा नेटवर्क बनाना है जो एकल कम्प्यूटर के किया जा सकता है।

विशीत कटिग अनुप्रयोग (Distributed Computing Application)

वितरण प्रणाली और वितरित कम्पयूटिगं का उपयोग करने कग लिए दो प्रमुख कारण है। सबसे पहले आवेदन कोजपचार नेटवर्क के रोजगार की आवश्यकता हो सकती है जो कई कम्प्यूटरों को आपस में जोड़ता है

एक उदाहरण के रुप में , सूचना का एक भौतिक स्थान पर उत्पादन किया जाता है और यह किसी अन्य स्थान के लिए आवश्यक होता है।

दूसरा, कई मायले रहे हैं जिसमें एक पौसी का उपयोग किया जाता है जो सिद्धान्त में सम्भव होगा लेकिन वितरित प्रणाली का उपयोग वास्तविक कारणों के लिए अनुक्त होता है। उदाहरण के रूप में, यह अपेक्षित स्तर प्रात कामे के लिए अधिक लागत प्रभावी हो सकता है।

एक विपरित कम्पयूटिंग अनुप्रयोग प्रणाली, वितरित प्रणाली की तुलना में अधिक विश्वसनीय हो सकत है ।जिसमे विकलता का कोई भी मतलब नहीं है। इसके अलावा, एक वितरित प्रणाली विस्तार करने और प्रबन्धन करने के लिए अधिक आसान हो सकती है।

कम्प्यूटिंग वितरित अनुप्रयोग (Distributed Compating Application)

दूरसंचार नेटवर्क Telecommunication Networks)

  • फोन केटवर्क और सेलुलर नेटवर्क (Phone Networks and Cellular Networks)
  • वेब की तरह पीसी नेटवर्क (Pe Network Like theWeb)
  • वायरलेस प्रेसर रेटवर्क (Wireless Censor Network)
  • एल्गोरिदम रूटिंग (Routing Algorithm)

नेटवर्क अनुप्रयोग (Network. Application) .

  • वेब मे पी 2 नेटवर्क (Web and pop Network)
  • Stupendously बहु खिलाड़ों वेब आधारित गेम और आभासी समुदायों Stupendously multiplayer web hased games virtual communities
  • वितरित डेटाबेस प्रबन्धन प्रणारी और वितरित डेराबेस (Distributed database management system and distributed database)
  • नेटवर्क फाइल सिस्टम (Network filerystem)
  • बैटिंग प्रणाली और एयरलाइन आरक्षण प्रणाली की तरह वितरित सूचना प्रोसेसिंग सिस्टम Distributed info processing system like banking systems and airline reservation system)
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रीयल टाइम प्रक्रिया नियबण (Real Time Processing Control)

  • विमान नियत्वा प्रणालो Aircraft contralaystem)
  • व्यायापार नियन्त्रण प्रणाली (Businem controlystem)

समानान्तर गाना (Parallel Computation)

  • कलस्टर कम्प्यूटिग और ग्रिड कम्यूटिग और विभिन्न स्वयंसेवक कम्पटिंग परियोजनाओं सहित व्यवस्थिा । कम्प्यूटिग (Systematic computing including duster computing and grid | computing and varied colunteer computing projecta)
  • पीसी ग्राफिक्स के रूपमा वितरित प्रतिपादन (Distributed rendering in EC graphics)

क्लाइंट सर्वर तकनीक (Client/Server Technology) हाल ही में अनेक संस्थानों ने विभाजित मेसिंग की क्लाइंट/सर्वर तकनीक को अपनाया है। यह एक शेयर की जा सकने वाली विधि है जिसमें कार्य करने की क्षमता सर्वर और क्लाइंट्स (वर्कस्टेशन या PC) के बीच बंटी होती है। Client 1 सभी के उपयोग में आने वाले डेटा को स्टोर और ( Request पोसेस करने का काम सर्वर करता है और इस डेटा को क्लाइंट सिस्टम द्वारा एक्सेस किया जाता है ।

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क्लाइंट सर्वर मॉडल की आवश्यकता (Need for Client Server Model) – Client 2 क्लाइंट सर्वर तकनीक बड़ी बुद्धिमत्ता से प्रोसेसिंग Server (host) कार्य को सर्वर और वर्कस्टेशनों के बीच बाँट (Response) देती है। सभी वैश्विक काम सर्वर करता है और वर्कस्टेशन के जिम्मे स्थानीय कार्य आते हैं। सर्वर केवल उन्हीं रिकॉर्ड्स को वर्कस्टेशन के पास भेजता है जो माँगी गई जानकारी को पूरा करने लिए Client 3 जरूरी होते हैं। इससे नेटवर्क पर अनावश्यक Request भार नहीं पड़ता। इसी के परिणामस्वरूप यह सिस्टम तेज, विश्वसनीय, दक्ष, कम खर्चीला और उपयोग करने में सरल है।

क्लाइंट सर्वर [Client Server(C/S)]-यह एक ऐसी तकनीक है जिसमें हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर घटक (क्लाइंट और सर्वर) नेटवर्क पर छितरे हुए होते हैं। क्लाइंट सर्वर संरचना एक बहु-उपयोगी मैसेज आधारित और मॉड्यूलर संरचना है, जिसका काम लचीलापन, प्रयोग करने, आपस में काम करने आदि कि सुविधा प्रदान करना है, जो मेनफ्रेम की केन्द्रीकृत टाइम शेयरिंग प्रणाली में नहीं मिलती। इस तकनीक में पारम्परिक डेटाबेस आधारित क्लाइंट सर्वर तकनीक और आजकल बहु-प्रचलित विभाजित तकनीक दोनों का संगम है। क्लाइंट सर्वर तकनीक को LAN ने संस्थानों के लिए और भी उपयोगी बना दिया है।

क्लाइंट सर्वर कम्प्यूटिंग (Client Server Computing)-इस तकनीक को लागत कम रखने वाली तकनीक माना जाता है। यह तकनीक इस बात की सुविधा देती है कि जो कुछ आप वर्तमान में कम्प्यूटर पर कर रहे हैं, उसे कम खर्च में कर सकें। इस तकनीक में क्लाइंट सर्वर कम्प्यूटिंग, खुला सिस्टम, चौथी पीढ़ी की लैंग्वेज और सम्बद्ध डेटाबेस होते हैं। इस तकनीक को अपनाने के पीछे सबसे बड़ा जो कारण दिया जाता है, वह है इससे होने वाली आर्थिक बचत। इसके अलावा उन्नत नियन्त्रण, डेटा की सुरक्षा, बढ़ी हुई क्षमता और बेहतर कनेक्टिविटी आदि अन्य कारण हैं जो इसे और उपयोगी बनाते हैं। व्यवसाय में इसके निम्नलिखित लाभ हैं

  • मैनेजमेंट इनफॉर्मेशन के फ्लो में सुधार,
  • अन्तिम जुड़े विभाग तक बेहतर सेवाएँ,
  • सूचना तकनीक की लागत में कमी,
  • वांछित डेटा तक सीधी पहुँच,
  • सूचना की प्रोसेसिंग में पर्याप्त लचीलापन,
  • ऑपरेटिंग सिस्टम पर प्रत्यक्ष नियन्त्रण।
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क्लाइंट सर्वर को हम कह सकते हैं कि यह संस्थान में किसी भी लोकेशन पर पड़े डेटा तक प्रयोगकर्ता की पहुँच सुनिश्चित करता है।

क्लाइंट सर्वर तकनीक के उदाहरण (Examples of Client Server Technology)

  • ऑनलाइन बैंकिंग कार्य,
  • इन्टरनेट कॉल सेंटर एप्लीकेशन,
  • सर्वर पर स्टोर अन्तिम प्रयोगकर्ताओं के लिए एप्लीकेशन,
  • ई-कॉमर्स ऑनलाइन शॉपिंग पेज,
  • इन्ट्रानेट एप्लीकेशन्स
  • क्लाइंट सर्वर तकनीक पर आधारित वित्तीय और इन्वेंटरी एप्लीकेशन्स,
  • इंटरनेट तकनीक पर आधारित दूरसंचार।

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क्लाइंट सर्वर तकनीक के लाभ (Benefits of Client Server Technology)-नए प्रयोगकर्ता के लिए क्लाइंट सर्वर सिस्टम कई प्रकार के लाभ लेकर आया है, विशेषकर मेनफ्रेम सिस्टम के प्रयोगकर्ताओं के लिए। इसके बाद बहुत से व्यावसायिक संस्थान मेनफ्रेम या PC के बजाय क्लाइंट सर्वर को अपनाने की प्रक्रिया में हैं। क्लाइंट सर्वर देश के बड़े व्यावसायिक संस्थानों के लिए सूचना तकनीक का समाधान बन गया है। वस्तुतः बदलाव की इस पूरी प्रक्रिया से कम्पनी को लम्बे समय की रणनीति बनाने में लाभ है। इनफॉर्मेशन सिस्टम के क्षेत्र में लगे लोग क्लाइंट सर्वर कम्प्यूटिंग से अपने काम को आसान बना सकते हैं।

  • मालिकाना हक की कुल लागत में कमी आती है।
  • उत्पादन क्षमता में वृद्धि।
  • एड यूज़र उत्पादकता।
  • डेवले पर उत्पादकता।
  • मेनफ्रेम की तुलना में क्लाइंट सर्वर की देखरेख के लिए कम मानव श्रम की जरूरत पड़ती है।
  • मेनफ्रेम की तुलना में क्लाइंट सर्वर में हार्डवेयर और नेटवर्क पर आने वाला खर्च कम होता है।
  • इससे लोगों की कार्यक्षमता में वृद्धि हुई है, क्योंकि डेटा तक उनकी आसान पहुँच होती है और एप्लीकेशन के कई लोगों के पास बँटे होने के कारण भी कार्यक्षमता में वृद्धि होती है। इससे संस्थान और भी प्रभावी हो जाते हैं, क्योंकि एप्लीकेशनों को पोर्ट करना सरल होता है।
  • क्लाइंट के कम्प्यूटर की लागत कम आती है। चूँकि डेटा सर्वर पर लोड होता है इसलिए क्लाइंट को बहुत अधिक डिस्क स्पेस की आवश्यकता नहीं पड़ती। इसलिए कम लागत वाला नेटवर्क कम्प्यूटर भी काम चला देता है।
  • सॉफ्टवेयर प्रोग्राम्स और एप्लीकेशन्स को खरीदने, स्टॉल करने और अपग्रेड करने में कम खर्च आता है क्योंकि हर मशीन पर ऐसा करना जरूरी नहीं होता। देखरेख का काम केन्द्रीकृत रूप से सर्वर पर होता है।
  • संस्थान पर मैनेजमेंट की पकड़ मजबूत होती है।क्लाइंट सर्वर को लागू करना कहीं आसान है बजाय समहंबल एप्लीकेशन में बदलाव करने के।
  • नई तकनीक एप्लीकेशन विकास की ओर ले जाती है, जैसे-ऑब्जेक्ट उन्मुख तकनीक । दीर्घकालीन दृष्टि से विकास और सपोर्ट लागत में लाभ।
  • नए सिस्टमों के लिए हार्डवेयर जोडना बहत आसान है. जैसे-डॉक्यमेंट इमेजिंग और वीडियो टेलीकॉन्फ्रेंसिंग जो कि मैनफ्रेम के साथ मेल नहीं खाती या फिर इस पर अत्यधिक लागत आता है।
  • प्रत्येक एप्लीकेशन के लिए अलग-अलग सॉफ्टवेयर टूल्स का प्रयोग किया जा सकता है।

क्लाइंट सर्वर तकनीक की विशेषताएँ (Characteristics of Client Server Technology)ऐसी 10 विशेषताएँ हैं जो क्लाइंट सर्वर तकनीक का आकर्षण बिन्द हैं. ये हैं

  • इस संरचना में क्लाइंट प्रोसेस और सर्वर प्रोसेस होता है और दोनों अलग-अलग होते हैं।
  • क्लाइंट और सर्वर अलग-अलग कम्प्यूटर प्लेटफॉर्म पर चल सकते हैं।
  • इन दोनों में से किसी एक को भी अपग्रेड किया जा सकता है, दोनों को एक साथ अपग्रेड करना जरूरी नहीं।
  • सर्वर एक समय में कई क्लाइंट्स को सेवा दे सकता है और कुछ सिस्टमों में क्लाइंट्स कई सर्वरों को। एक्सेस कर सकते हैं।
  • क्लाइंट सर्वर सिस्टम में एक प्रकार की नेटवर्किंग क्षमता होती है।
  • एप्लीकेशनलॉजिक का एक बड़ा हिस्सा क्लाइंट के पास रहता है।
  • क्रिया प्रायः क्लाइंट की ओर से होती है, सर्वर की ओर से नहीं।
  • क्लाइंट के पास यूजर फ्रेंडली ग्राफिकल यूजर इंटरफेस (GUI) होते हैं।
  • अधिकांश क्लाइंट सर्वर सिस्टमों में Structured Query Language (SQL) की क्षमता होती है।
  • डेटाबेस सर्वर डेटा को सुरक्षा प्रदान करता है।

सम्प्रेषण नियन्त्रण प्रोटोकॉल/इंटरनेट प्रोटोकॉल (Transmission Control Protocol/ Internet Protocol TCP/IP)-इंटरनेट पर प्रयोग होने वाले प्रोटोकॉल्स को TCP/IP कहते हैं। TCP/ IP के दो भाग होते हैं

(i) TCP क्रमबद्ध डेटा के हस्तान्तरण को देखता है।

(ii) IP पैकेट्स को अग्रसारित कर उनका इंटरनेट पर प्रयोग करता है।

OSI मॉडल में निश्चित रूप से सात लेयरों का स्टैक नेटवर्किंग प्रोटोकॉल के लिए होता है। OSI और TCP/IP की तुलना करने पर IP सूट के घटकों की गहन जानकारी मिलती है, लेकिन यह कुछ संशय भी उत्पन्न करता है, क्योंकि TCP/IP में केवल 4 लेयर होती हैं।

TCP/IP में चार लेयर होती हैं

(i) एप्लीकेशन लेयर सीधे प्रयोगकर्ता को सेवा उपलब्ध कराती है जैसे, ई-मेल।

(ii) ट्रान्सपोर्ट लेयर एप्लीकेशन के दोनों सिरों के बीच संचार कराती है और यह देखती है आने वाला पैकेट सही हो।

(iii) इंटरनेट लेयर गलतियों की जाँच, एड्रेस देने और एकीकरण के लिए पैकेट्स को राउटिंग देती है।

(iv) नेटवर्क इंटरफेस लेयर नेटवर्क हार्डवेयर और उपकरणों के ड्राइवरों को इंटरफेस देती है। इसे डेटा लिंक लेयर भी कहते हैं।

TCP/IP एक पैकेट स्विचिंग नेटवर्क बनाते हैं कोई मैसेज (चाहे फाइल हो या मात्र ई-मेल) इंटरनेट पर Model भेजने के लिए तैयार होता है तो TCP प्रोटोकॉल इसे छोटे Application छोटे टुकड़ों में बाँट देता है। इसके बाद प्रत्येक पैकेट को शीर्षक दिया जाता है जिसमें गंतव्य का एड्रेस होता है। IP प्रोटोकॉल यह देखता है कि ये पैकेट अपने सही एड्रेस पर Session पहुँचे, पहुँचने के बाद TCP प्रोटोकॉल इन पैकेटों को पुनः एकत्र करके मूल मैसेज में बदल देता है। इंटरनेट प्रोटोकॉल Transport Transport सूट (Internet Protocol Suite) मैसेज संचार प्रोटोकॉल्स का ऐसा सेट है जो प्रोटोकॉल स्टैक (लेयरों का समूह) को लागू करता है, जिस पर इंटरनेट तथा अन्य व्यावसायिक Data Link Network नेटवर्क चलते हैं।

अन्य प्रोटोकॉल सूट्स की भाँति इंटरनेट प्रोटोकॉल सूट को भी लेयरों के सेट के रूप में देखा जा सकता है। इसमें प्रत्येक लेयर डेटा टांसमिशन को शामिल करते हुए। समस्याओं के एक सेट को सलझाती है और ऊपरी लेयरों के प्रोटोकॉल्स को स्पष्ट सेवाएँ कछ निचली लेयर के सहयोग से पहुँचाती हैं। तार्किक रूप से ऊपरी लेयर प्रयोगकर्ता के निकट होती है और यही अव्यावहारिक डेटा का सामना करती है और निचली लेयरों के सहयोग से डेटा का फॉर्स के रूप में अनुवाद करके उसे सम्प्रेषित कर देती है।

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डोमेन नाम प्रणाली (Domain Name System) डोमेन नाम प्रणाली (DNS) कम्प्यूटर, सेवाओं या किसी इंटरनेट या एक निजी नेटवर्क से जुड़े संसाधन के । लिए एक क्रमिक नामकरण प्रणाली है। यह प्रतिभागी को दिए गये डोमेन नाम के साथ विभिन्न जानकारी एकत्रित करती है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह मनुष्यों के लिए अर्थपूर्ण डोमेन नामों को पूरी दुनिया में इन उपकरणों। को पहचानने तथा सम्बोधित करने के प्रयोजन से नेटवर्किंग उपकरणों के साथ जुड़ी संख्यात्मक (बाईनरी) पहचान में बदल देती है। डोमेन नाम प्रणाली के बारे में अक्सर प्रयुक्त होने वाली कहावत यह है कि यह इंटरनेट के लिए फोन बुक के रूप में मनुष्यों के अनुकूल कम्प्यूटर होस्टनाम का आईपी एड्रेस के रूप में अनुवाद करती है। उदाहरण के लिए, www.example.com अनुवाद के बाद 208.77.188.166 हो जाता है। डोमेन नाम प्रणाली इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के समूह के लिए एक अर्थपूर्ण ढंग से डोमेन नाम निर्दिष्ट करना सम्भव बनाती है चाहे उपयोगकर्ता किसी भी स्थान पर हो। इस वजह से वल्ड वाइड वेब (www) के हाईपरलिंक्स की और इंटरनेट । सम्पर्क की जानकारी निरन्तर तथा तटस्थ बनी रहती है। चाहे वर्तमान इंटरनेट रूटिंग व्यवस्था में परिवर्तन हो जाए या उपयोगकर्ता मोबाइल उपकरण का प्रयोग करें। इंटरनेट डोमेन नामों को याद रखना IP एड्रेस याद रखने से ज्यादा आसान है जैसे 208.77.188.166 (IPv4)। डोमेन नाम प्रणाली डोमेन का नाम निर्धारित करने तथा उन नामों का IP पता आधिकारिक नाम सर्वर को निर्दिष्ट करके ढूँढने की जिम्मेदारी वितरित करती है। आधिकारिक नाम सर्वर अपने विशेष डोमेन के प्रति उत्तरदायी होते हैं और बदले में वे अपने उप-डोमेन के लिए अन्य आधिकारिक नाम सर्वर निर्धारित कर सकते हैं। इस तन्त्र ने DNS को बाँटने, त्रुटि रहित रहने और लगातार सलाह तथा अपडेट से बचने के लिए एक केन्द्रीय रजिस्टर की आवश्यकता को नकारने योग्य बना दिया है।

सामान्यत: डोमेन नाम प्रणाली अन्य सूचनाओं का भी संग्रह करती है जैसे मेल सर्वरों की सूची जो दिए गये इंटरनेट डोमेन के लिए ई-मेल स्वीकार करती है। दुनिया भर में वितरित की जा सकने योग्य की-वर्ड आधारित पुनर्निर्धारण प्रणाली प्रदान करने की वजह से डोमेन नाम प्रणाली इंटरनेट की सुविधा का एक आवश्यक घटक है। डोमेन नाम प्रणाली इस डेटाबेस सेवा की कार्यक्षमता के तकनीकी आधार भी परिभाषित करती है। इस प्रयोजन के लिए यह DNS प्रोटोकॉल को इंटरनेट प्रोटोकॉल (TCP/IP) के हिस्सों के रूप में DNS में प्रयुक्त होने वाली डाटा संरचनाओं तथा संचार एक्सचेंज का विस्तृत विवरण परिभाषित करती है। DNS प्रोटोकॉल को 1980 के दशक के आरम्भ में विकसित और परिभाषित किया गया तथा इंटरनेट इंजीनियरिंग टास्क फोर्स द्वारा सार्वजनिक किया गया। इतिहास नेटवर्क पर एक मशीन के संख्यात्मक पते के स्थान पर मनुष्य के पठन योग्य नामों का प्रचलन TCP/IP से भी पहले का है। यह प्रचलन ARPAnet यग का है। इसके बाद एक अलग प्रणाली का प्रयोग किया गया। DNS का आविष्कार 1983 में TCP/IP के शीघ्र बाद ही किया गया। जॉन पोस्टेल के अनुरोध पर, पॉल मोकापेट्रिस ने 1983 में पहली डोमेन नाम प्रणाली का आविष्कार किया। 1984 में, चार। बर्कले में पढ़ने वाले छात्रों डगलस टेरी, मार्क पेंटर, डेविड रिगल और सोनिया झोउ ने पहला UNIX कार्यान्वन लिखा जिसे बाद में राल्फ कैंपबेल द्वारा पूरा किया गया। 1985 में, DEC के केविन डनलप ने पुन: DNS कार्यान्वयन लिखा और इसका नाम BIND रखा जिसका मतलब था बर्कले इंटरनेट नेम डोमेन। BIND का व्यापक रूप से, विशेषकर यूनिक्स सिस्टम पर वितरित किया गया और यह इंटरनेट पर प्रयोग होने वाला सबस। प्रभावी DNS सॉफ्टवेयर है। अत्यधिक उपयोग और इसके मक्त स्रोत कोड की जाँच के परिणामस्वरूप, साथ हा। साथ तेजी से और अधिक परिष्कृत हमले के तरीकों की वजह से BIND में कई सरक्षा खामियाँ पाई गई। इसस कई वैकल्पिक नेम सर्वर और रिसोल्वर प्रोग्रामों का विकास हुआ।

इंटरनेट एवं इसकी बुनियादी अवधारणा

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डोमेन नाम के हिस्से (Parts of Domain Name)

एक डोमेन नाम आमतौर पर दो या अधिक भागों (तकनीकी लेबल) से बना होता है, जिन्हें पारम्परिक तौर पर डॉट से अलग किया जाता है जैसे-example.com

  • सबसे दायीं ओर का लेबल शीर्ष स्तर के डोमेन का पता बताता है (उदाहरण के लिए पता example.com में शीर्ष स्तर डोमेन com) है।
  • बाईं ओर प्रत्येक लेबल एक सबडिविजन या इसके बाद के डोमेन का उपडोमेन दर्शाता है। उपडोमेन आभासी निर्भरता व्यक्त करता है न कि पूर्ण निर्भरता, उदाहरण के लिए com com डोमेन का उपडोमेन है, और www.example.com डोमेन example.com का एक उपडोमेन है। सैद्धान्तिक रूप में, यह सबडिविजन (उपखण्ड) 127 स्तरों तक जा सकता है प्रत्येक लेबल में 63 ओक्टेट्स हो सकते हैं। पूरा डोमेन नाम 253 ओक्टेट्स की कुल लम्बाई से अधिक नहीं हो सकता है। व्यवहार में, कुछ डोमेन रजिस्ट्रियों की सीमा और भी कम हो सकती है।
  • एक होस्ट नाम एक डोमेन नाम को दर्शाता है जिसके साथ एक या एक से अधिक आईपी पते (जैसे, ‘www.example.com’ और com डोमेन दोनों होस्ट नाम हैं, जबकि ‘com’ डोमेन नहीं है) जुड़े होते हैं।

डोमेन नाम प्रणाली या डीएनएस, इंटरनेट वेब सर्वर के लिए नामित पते बताने की बुनियादी प्रणाली है। कुछ हद तक अन्तर्राष्ट्रीय फोन नम्बर की तरह, डोमेन नाम प्रणाली इंटरनेट सर्वर को एक पता देकर यादगार और आसान मदद करता है।

डोमेन नाम सामान्यत: दाएँ से बाएँ आयोजन किया जाता है जिसमें सामान्य वर्णनकर्ता दाईं तरफ व विशिष्ट व्यक्ति बाईं तरफ होता है। जिस तरह परिवार के उपनाम दाईं तरफ व विशिष्ट व्यक्ति बाईं तरफ होता है। ये वर्णनकर्ता डोमेन कहे जाते हैं।

तकनीकी तौर पर डोमेन एक बड़ा इंटरनेट पते का हिस्सा है जिसे यूआरएल “URL” कहा जाता है। एक यूआरएल में विशेष पेज का पता, फोल्डर नाम, मशीन का नाम और प्रोटोकॉल भाषा सहित बहुत अधिक जानकारी, उपलब्ध होती है।

डोमेन नाम एक या एक से अधिक आईपी पतों की पहचान करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। उदाहरण के लिए, डोमेन नाम microsoft.com के बारे में एक दर्जन आईपी पते का प्रतिनिधित्व करता है। विशेष वेब पृष्ठों की पहचान करने के लिए यूआरएल में डोमेन नेम का उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए यूआरएल http://www.pcwebopedia.com/index.html में, डोमेन नाम pcwebopedia.com है।

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हर डोमेन नाम में एक प्रत्यय होता है जो इंगित करता है कि कौन-सा शीर्ष स्तर डोमेन (TLD) इसके अन्तर्गत आता है। इस तरह के डोमेन की एक सीमित संख्या ही है। उदाहरण के लिए

  • gov – सरकारी एजेन्सियाँ
  • edu – शैक्षिक संस्थानों
  • org – संगठनों (गैर लाभ)
  • mil – सेना
  • com – वाणिज्यिक व्यापार
  • net – नेटवर्क संगठनों

इंटरनेट आईपी पते के आधार पर होता है न कि डोमेन नाम पर क्योंकि हर वेब सर्वर आईपी पते को डोमेन नाम में अनवाद करने के लिए एक डोमेन नाम सिस्टम (डीएनएस) सर्वर की आवश्यकता होती है।

एक डोमेन नाम वेब साइट का पता है जो आसानी से पहचाना और आसानी से याद किया जा सकता है। डमिन नाम व्यापार पहचान बन गये हैं उदाहरण के लिए amazon.com व sony.com ट्रेडमार्क के रूप में दखे जा सकते हैं। डोमेन नाम के लिए मौजूदा ट्रेडमार्क का उपयोग करके कारोबार अपने वेबसाइटों के लिए आसानी से ग्राहकों को आकर्षित करता है। सामान्यत: डोमेन नाम प्रणाली अन्य सचनाओं का भी संग्रह करती है।

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जैसे मेल सर्वरों की सूची जो दिए गये इंटरनेट डोमेन के लिए ई-मेल स्वीकार करती है। दुनिया भर में वितरित की जा सकने योग्य की-वर्ड आधारित पुनर्निर्धारण प्रणाली प्रदान करने की वजह से डोमेन नाम प्रणाली इंटरनेट की सुविधा का एक आवश्यक घटक है।

डोमेन नाम पंजीकरण (Domain Name Registration)

एक डोमेन नाम का प्रयोग करने का अधिकार डोमेन नाम रजिस्ट्रार द्वारा प्रदान किया जाता है जिन्हें नाम और संख्याओं के लिए इन्टरनेट निगम (ICANN) द्वारा मान्यता दी जाती है, एक ऐसा संगठन जो इंटरनेट के नाम और संख्या प्रणाली की देखरेख हेतु प्रतिबद्ध है। ICANN के अतिरिक्त, प्रत्येक शीर्ष स्तर डोमेन (TLD), जो रजिस्ट्री को ऑपरेट करता है, की देखरेख की जाती है और तकनीकी सर्विस एक प्रशासनिक संगठन द्वारा की जाती है। एक रजिस्ट्री अपने अधीन TLD में पंजीकृत नाम के डाटाबेस के रखरखाव के लिए जिम्मेदार है। रजिस्ट्री एक डोमेन नाम रजिस्ट्रार, जो इसी TLD में नाम आबंटित करने के लिए अधिकृत है, से पंजीकरण के लिए जानकारी प्राप्त करती है और एक विशेष सेवा, whois प्रोटोकॉल का उपयोग करके जानकारी को प्रकाशित/सार्वजनिक करती है।

रजिस्ट्री और रजिस्ट्रार आम तौर पर एक उपयोगकर्ता के लिए एक डोमेन नाम प्रदान करने और एक नाम सर्वर के डिफॉल्ट सेट उपलब्ध कराने की सेवा के लिए एक वार्षिक शुल्क लेते हैं। अक्सर इस लेनदेन को डोमन नाम की बिक्री या लीज कहा जाता है और रजिस्ट्रेन्ट को मालिक भी कहा जा सकता है, परन्तु वास्तव में इस लेनदेन के साथ ऐसा कोई कानूनी सम्बन्ध जुड़ा हुआ नहीं है. केवल डोमेन नाम को प्रयोग करने का एकमात्र विशिष्ट अधिकार मिलता है। अधिक सही ढंग से, अधिकत उपयोगकर्ता पंजीकत या डोमेन धारकों के रूप में जाने जाते हैं।

ICANN TLD रजिस्ट्रियों और डोमेन नाम रजिस्टारों की एक परी सची दनिया में प्रकाशित करती है। कोई भी कई डोमेन रजिस्ट्रियों द्वारा रखे गये WHOIS डाटाबेस में देख कर डोमेन नाम के धारक के बार में जानकारी प्राप्त कर सकता है।

240 से अधिक देशों के कोड शीर्ष स्तर डोमेन (ccTLD) के लिए. डोमेन रजिस्ट्रियाँ आधिकारिक WHOIS जानकारी रखती हैं (धारक, नाम सर्वर, समाप्ति तिथियाँ. आदि) उदाहरण के लिए, DENIC, जर्मनी NIC आधिकारिक WHOIS को DE डोमेन नाम में रखती है। 2001 के बाद से ज्यादातर gTLD रजिस्ट्रियों (Org, BIZ, INFO) ने इस तथाकथित मोटी रजिस्ट्री दृष्टिकोण को अपनाया है, अर्थात् बजाय पंजीयकों के आधिकारिक WHOIS को केन्द्रीय रजिस्ट्रियों में रखा है।

COM और NET डोमेन नामों के लिए, एक पतली रजिस्ट्री प्रयुक्त होती है। डोमेन रजिस्ट्री (जैसे VeriSign) एक बुनियादी WHOIS (रजिस्ट्रार और नाम सर्वर, आदि) रखती है। कोई भी विस्तृत WHOIS (धारक, नाम सर्वर, समाप्ति तिथि आदि) पंजीयक से प्राप्त कर सकता है।

कुछ डोमेन नाम रजिस्ट्रियाँ, जिन्हें अक्सर नेटवर्क सूचना केन्द्र (NIC) कहा जाता है, भी उपयोगकर्ता के लिए पंजीयकों के रूप में कार्य करती हैं। प्रमुख सामान्य शीर्ष स्तर डोमेन रजिस्ट्रियाँ जैसे COM, NET, ORG, INFO डोमेन और अन्य के लिए, एक रजिस्ट्री-रजिस्ट्रार डोमेन नामक मॉडल का प्रयोग करता है जिसमें सैकड़ों डोमेन नाम रजिस्ट्रार शामिल हैं। प्रबन्धन की इस विधि में, रजिस्ट्री केवल डोमेन नाम डेटाबेस और रजिस्ट्रार के साथ सम्बन्ध स्थापित करती है। पंजीकृत या रजिस्ट्रेट (डोमेन नाम उपयोगकर्ता) रजिस्ट्रार के ग्राहक हैं, जो कुछ मामलों में पुनर्विक्रेताओं की अतिरिक्त परतों के माध्यम से भी हो सकते हैं।

एक डोमेन नाम दर्ज करने और नये नाम पर अधिकार बनाए रखने की प्रक्रिया में, रजिस्ट्रार एक डोमेन के साथ जुड़ी सूचना के कई प्रमुख हिस्सों का उपयोग करता है।

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प्रशासनिक सम्पर्क-एक रजिस्ट्रेट आम तौर पर डोमेन नाम के प्रबन्धन के लिए एक प्रशासनिक सम्पर्क निर्दिष्ट करता है। प्रशासनिक सम्पर्क का आमतौर पर एक डोमेन पर उच्चतम स्तर का नियन्त्रण होता है। प्रशासनिक सम्पर्कों को सौंपे गये कई प्रबन्धन कार्यों में व्यावसायिक जानकारी के प्रबन्धन से जुड़ी सभी सूचनाएँ हो सकती हैं जैसे कि नाम के रूप में रिकॉर्ड. डाक पता और अधिकृत पंजीकृत (रजिस्टेंट) की सम्पर्क सूचना तथा डोमेन रजिस्ट्री की आवश्यकताओं के अनुरूप एक डोमेन नाम का उपयोग करने के दायित्वों से सम्बन्धित इसके अलावा प्रशासनिक सम्पर्क तकनीकी और बिलिंग कार्यों के लिए अतिरिक्त सम्पर्क जानकारी स्थापित करता है।

तकनीकी सम्पर्क-तकनीकी सम्पर्क डोमेन नाम के नेम सर्वर का प्रबन्धन सम्भालता है। एक तकनीकी सम्पर्क का कार्य डोमेन नाम का डोमेन रजिस्ट्री की आवश्यकताओं के साथ सेटअप, डोमेन जोन रिकॉर्ड को बनाए रखना, और नाम सर्वर को निरन्तर कार्यशीलता प्रदान करना है (जिसके लिए डोमेन नाम तक पहुँच आवश्यक है)।

बिलिंग/भुगतान सम्बंधित सम्पर्क-डोमेन नाम रजिस्ट्रार से बिल प्राप्त करने और लागू फीस का भुगतान करने के लिए जिम्मेदार पार्टी यानि उपयोगकर्ता जो पंजीकृत’ या ‘डोमेन धारक’ है।

नाम सर्वर-ज्यादातर रजिस्ट्रार पंजीकरण सेवा के भाग के रूप में दो या अधिक सर्वर नाम प्रदान करते हैं हालांकि, एक रजिस्टेंट अपने आधिकारिक नाम सर्वर को एक डोमेन रिसोर्स रिकॉर्ड होस्ट करने के लिए निर्दिष्ट कर सकता है रजिस्ट्रार की नीतियाँ सर्वरों की संख्या और सर्वर की आवश्यक सूचना के प्रकार पर नजर रखती हैं। कुछ प्रदाताओं को एक होस्ट नाम और इसी से मिलते जुलते IP पते या केवल होस्टनाम की आवश्यकता होती है जो नए डोमेन में या तो ढूंढने लायक होनी चाहिए अथवा उसका अस्तित्व कहीं और होना चाहिए। पारम्परिक आवश्यकताओं के आधार पर (RFC 1034), आमतौर पर दो सर्वर की एक न्यूनतम आवश्यकता पड़ती है।

डोमेन नाम रजिस्ट्रार (Domain Name Ragistrar)

एक डोमेन नाम रजिस्ट्रार एक संगठन या वाणिज्यिक संस्था है, जो एक जेनेरिक शीर्ष स्तर डोमेन रजिस्ट्री (@TLD) और / या एक से देश कोड शीर्ष स्तर डोमेन (ccTLD) रजिस्ट्री द्वारा मान्यता प्राप्त है। डोमेन नाम रजिस्ट्रार इंटरनेट डोमेन नाम के आरक्षण का प्रबन्धन दिशा निर्देशों के अनुसार निर्दिष्ट डोमेन नाम की रजिस्ट्रियाँ करता है और जनता को यह सेवा प्रदान करता है।

उच्चतम डोमेन (Top level domain) या टी.एल.डी. (TLD) इंटरनेट की डोमेन नाम प्रणाली में सबसे ऊँचे स्तर की डोमेन को कहा जाता है, जो इंटरनेट पतों में आम तौर से अन्त में लगती

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है, जैसे कि ‘com’ या ‘edu’ । उदाहरण के लिए hi.wikipedia org में ‘org’ उच्चतम डोमेन है। आइकैन (ICANN), जो इंटरनेट संख्या पतों को निर्धारित करने वाला प्राधिकरण है, प्रत्येक उच्चतम डोमेन के प्रशासन को अलग-अलग

संस्थाओं को सौंपता है। मसलन ‘in’ डोमेन भारत से विशेष सम्बन्ध रखने वाली वेबसाइटों के लिए है और उसके प्रशासन का अधिकार आइकैन ने भारत सरकार द्वारा निर्धारित इनरेजिस्ट्री (Inregistry) नामक संस्थान को दिया है।

जेनेरिक टॉप लेवल डोमेन (Generic Top Level Domains) ज्यादातर लोगों ने इसके बारे में सुना है। ये शीर्ष स्तर के डोमेन की श्रेणियों में से एक है। जिसको IANA द्वारा बनाया गया है। जैसे-काम, ओआरजी, नेट, और इन्फो।

प्रतिबन्धितजेनेरिक शीर्ष स्तर डोमेन (Generic Restricted Top Level Domains)

जेनेरिक प्रतिबन्धित शीर्ष स्तर के डोमेन नाम जेनेरिक शीर्ष स्तर डोमेन के समान हैं, इनके अन्तर्गत बिज नेम, प्रो डोमेन को पंजीकरण करने के लिए निर्धारित दिशा निर्देश के साथ पात्रता के प्रमाण की आवश्यकता होती है।

प्रायोजित शीर्ष स्तर डोमेन (Sponserd Top Level Domains) ये डोमेन निजी एजेन्सियों या संगठन द्वारा प्रस्तावित की जाती है जो टीएलडी उपयोग करने के लिए पात्रता सीमित नियमों की स्थापना और निजी एजेन्सियों या संगठन द्वारा प्रायोजित कर रहे हैं। जेनेरिक शीर्ष स्तर डोमेन के साथ भी IANA समूहों STLDS उदाहरणों में शामिल हैं

AERO,. ASIA, EDU.GOV,.INT. JOBS, MIL, MOBI,.MUSEUM, TEL, TRAVEL

देश कोड शीर्ष स्तर डोमेन (Country Code Top Level Domains)

देश कोड शीर्ष स्तर डोमेन नेम आमतौर पर एक विशिष्ट देश या आश्रित क्षेत्र के लिए उपयोग किया जाता है। सभी ccTLD पहचानकर्ता दो अक्षर वाले होते हैं, और सभी दो अक्षर वाले स्तर डोमेन ccTLD हैं। इंटरनेट निरूपित नम्बर प्राधिकरण ने 2010 में अन्तर्राष्ट्रीय देश की जो देशी भाषा अक्षर से मिलकर बना है, उसे शुरू कर दिया है।

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CcTLDs के उदाहरण में शामिल हैं। आइएन (भारत के लिए), न्यूजीलैंड (न्यूजीलैंड के लिए) एयू (ऑस्ट्रेलिया के लिए) सीएन (चीन के लिए) यूके (यूनाइटेड किंगडम के लिए) यूएस (संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए)

आरक्षित शीर्ष स्तर डोमेन (Reserved Top Level Domains)

IANA ने कुछ शीर्ष स्तर के डोमेन को सीमा के उद्देश्य के लिए आरक्षित किया है जिसमें बुनियादी ढाँचे, परीक्षण और अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों का समर्थन शामिल है। उदाहरण के लिए, अन्तर्राष्ट्रीयकरण शीर्ष स्तर डोमेन को IANA द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय डोमेन नाम के परीक्षण के लिए आरक्षित किया गया है।

डोमेन नाम और आईपी पते का काम (आईसीएएनएन) द्वारा किया जाता है। आईसीएएनएन अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है जो नए शीर्ष स्तर डोमेन को शुरू करता है।

आईसीएएनएन के तकनीकी पहलू का काम इंटरनेट निरूपित नम्बर प्राधिकरण (IANA) द्वारा किया जाता है। IANA के पास डीएनएस जड़ क्षेत्र को बनाए रखने का प्रभार है।

जेनेरिक द्वितीय स्तर डोमेन (Generic Second Top Level Domain) _कई मामलों में, दूसरे स्तर डोमेन वह हिस्सा है जिसे रजिस्टर किया जाता है। उदाहरण के लिए, डोमेन में। Google.com में, Google दूसरे स्तर का डोमेन है।

देश कोड द्वितीय स्तर डोमेन (ccSLD) ____ कुछ देश दूसरे स्तर के डोमेन को प्रतिबंधित करती है। इन देशों को आवश्यकता होती है। दूसरे स्तर डोमेन नेम की। इन देशों के लिए, शीर्ष स्तर के डोमेन के तहत डोमेन नाम रजिस्टर करने की अनुमति नहीं है। इन्हें दूसरे स्तर डोमेन के तहत पंजीकृत होना जरूरी है।

उदाहरण के लिए, mydomain.in की अनुमति नहीं है, लेकिन mydomain.co.in की अनुमति है। ccSLD उपयोग

देश कोड दूसरे स्तर डोमेन का पूर्व निर्धारित उद्देश्य है। जब डोमेन नाम को रजिस्टर किया जाता है तब दूसरे स्तर डोमेन का चयन करने की जरूरत होती है। उदाहरण के लिए, यदि गैर लाभकारी संगठन हैं, तो केवल Org.in डोमेन का उपयोग कर सकते हैं।

यहाँ ब्रिटेन में इस्तेमाल ccSLDs की एक सूची है।

  • in – शैक्षणिक (तृतीयक शिक्षा और अनुसन्धान संस्थानों में) और समाज में सीखा है।
  • in – वाणिज्यिक जनरल
  • in – सरकार (केन्द्रीय और स्थानीय स्तर)
  • in – लिमिटेड कम्पनियाँ
  • in – आई एस पी एस और नेटवर्क कम्पनियाँ
  • in – नेटवर्क उपयोग केवल
  • in – गैर लाभ संगठनों
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DNS सर्वर (DNS Server)-डोमेन नेम सर्विस अर्थात् DNA एक इंटरनेट प्रसारित वितरित डेटाबेस सिस्टम है, जो नेटवर्क से जुड़ी जानकारी का डाक्यूमेंटेशन और वितरण करता है, जैसे होस्ट नाम के लिए IP एड्रेस देना। जिस होस्ट पर यह डेटाबेस स्टोर होता है उसे नेम सर्वर कहते हैं। लाइब्रेरी रूटीन नेम सर्वर से पूछती है, जो प्रतिक्रियाओं को पकड़कर जानकारी को वापस प्रोग्राम के पास भेजता है, जिसने इसके लिए आग्रह किया था। उदाहरण, इंटरनेट पर मौजूद किसी रिमोट कम्प्यूटर की लोकेशन का पता लगाने के लिए कम्यूनिकेशन सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन्स (tSIS NCSA Telnet) रिजोल्वर लाइब्रेरी रूटीन का प्रयोग कर DNS से रिमोट कम्प्यूटर का एड्रेस पूछते हैं।

इंटरनेट प्रोटोकॉल ऐड्रेस (Internet Protocol Address)

एक इंटरनेट प्रोटोकॉल (IP) ऐड्रेस एक संख्यात्मक लेबल है जो अपने नोडस के बीच संचार के लिए। इटरनेट प्रोटोकॉल का प्रयोग करने वाले कम्प्यूटर नेटवर्क में भाग ले रहे डिवाइसेस को आबंटित किया जाता है। मजबान या नेटवर्क इंटरफेस पहचान और स्थान परिचयन इसकी भमिका का चरित्र-चित्रण इस प्रकार है-जो नाम का इगित करता है कि हम क्या माँगते हैं। एक पता इंगित करता है कि वह कहाँ है। एक मार्ग इंगित करता है कि वहाँ तक कैसे पहुँचें।

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TCP/IP के डिजाइनर ने IP ऐड्रेस को एक 32-बिट नम्बर के रूप में परिभाषित किया और इंटरनेट प्रोटोकॉल वर्जन 4 या IPv4 के नाम से जानी जाने वाली यह प्रणाली, आज भी उपयोग में है। बहरहाल, इंटरनेट के व्यापक विकास और इसके परिणामस्वरूप उपलब्ध पतों की कमी के कारण, 1995 में एड्रेस के लिए 128 बिट उपयोग करके एक नया परिचयन सिस्टम (IPv6) विकसित किया गया और पिछली बार 1998 में RFC 2460 द्वारा मानकीकृत किया गया।

इंटरनेट प्रोटोकॉल नेटवर्क के बीच डाटा पैकेट भी भेजता है। ये IP ऐड्रेस, प्रणाली की टोपोलॉजी में स्रोत और गंतव्य नोड का स्थान उल्लिखित करता है। इस प्रयोजन के लिए, एक IP ऐड्रेस के कुछ बिट्स एक सब-नेटवर्क अभिनिहित करने के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं। इन बिट्स की संख्या IP ऐड्रेस से संलग्न, CIDR संकेतन में सांकेतिक की जाती है, जैसे 208.77.188.166/24। जैसे ही निजी नेटवर्क के विकास ने IPv4 एड्रेस के समापन के खतरे को उठाया, RFC 1918 ने निजी एड्रेस स्थान का एक समूह निर्धारित किया जो निजी नेटवर्क पर किसी के भी द्वारा इस्तेमाल किया जा सकता है। वह वैश्विक सार्वजनिक इंटरनेट से जुड़ने के लिए, अक्सर नेटवर्क एड्रेस अनुवादक के साथ उपयोग किये जाते हैं।

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द इंटरनेट असाइंड नंबर अथौरिटी (IANA), जो सार्वभौमिक IP ऐड्रेस स्थान नियतन प्रबन्ध करता है। स्थानीय इंटरनेट रजिस्ट्री (इंटरनेट सेवा प्रदाता) और अन्य संस्थाओं को IP खण्ड आबंटन करने के लिए पाँच क्षेत्रीय इंटरनेट रजिस्ट्री (RIRs) को सहयोग देता है।

इंटरनेट प्रोटोकॉल (आईपी) के दो संस्करण उपयोग में हैं। आईपी (IP) संस्करण 4 और आईपी (IP) संस्करण 6। प्रत्येक संस्करण एक आईपी (IP) एड्रेस को अलग ढंग से परिभाषित करता है। उसकी व्यापकता के कारण, सामान्य शब्द आईपी एड्रेस आम तौर पर अब भी IPv4 द्वारा परिभाषित एड्रेस को सन्दर्भित करता है।

आईपी एड्रेस के प्रकार (Types of IP Address)

स्टेटिक आईपी एड्रेस (Static IP Address)-स्टेटिक आईपी एड्रेस एक ऐसा आईपी एड्रेस है जो उपयोगकर्ता के लॉगऑन करने पर बदलती नहीं है इसे सर्वर फाइल अपलोड व डाउनलोड की तरह प्रयोग किया जाता है। स्टेटिक आईपी एड्रेस बहुत विश्वसनीय होती है।

डायनेमिक आईपी एड्रेस (Dynamic IP Address)-डायनेमिक आईपी एड्रेस उपयोगकर्ता के लॉगऑन करने पर बदलती रहती है। डायनेमिक आईपी एड्रेस को मुख्य रूप से छोटे व्यवसायी और घरों में प्रयोग किया जाता है।

इंटरनेट प्रोटोकॉल (Internet Protocol)

इंटरनेट प्रोटोकॉल आईपी या टीसीपी / आईपी का उपयोग कर एक नेटवर्क पर एक कम्प्यूटर या अन्य नेटवर्क डिवाइस का पता है। उदाहरण के लिए, संख्या 166.70.10.23 एक तरह का पता का एक उदाहरण है। ये पते घर पर इस्तेमाल किये गये पते के समान हैं जो डेटा को एक नेटवर्क पर उचित गंतव्य और इंटरनेट तक पहुँचने के लिए | अनुमति देता है। आईपी को पाँच वर्गों में बाँट सकते हैं। क्लास ए, क्लास बी, क्लास सी, क्लास डी और क्लास ई, जबकि केवल ए, बी, और सी आमतौर पर इस्तेमाल हो रहे हैं। प्रत्येक क्लास वैध आईपी पतों की अनुमति देता है।

कोई जो इंटरनेट से कनेक्ट होता है उसे इंटरनेट सेवा प्रदाता (आईएसपी) द्वारा एड्रेस आबंटित हो जाता है। उदाहरण के लिए, आईएसपी ने 109.145. 93. 150-250, 100 एड्रेस दिये हैं। इसका मतलब आईएसपी का अपना एड्रेस 109.145.93. 150 से 109.145.93. 250 है और ग्राहकों को इस शृंखला से कोई भी एड्रेस प्रदान कर सकता है। इसलिए सभी एड्रेस आईएसपी एड्रेस से तब तक सम्बन्धित होते हैं जब तक कि वे ग्राहक कम्प्यूटर तक आबंटित न हो जाए। डायल अप कनेक्शन के मामले में, प्रत्येक समय आईएसपी में डायल करते समय एक नया आईपी एड्रेस मिल जाता है। ब्रॉडबैंड इंटरनेट सेवा प्रदाताओं के साथ इंटरनेट से हमेशा जुड़े होने के कारण शायद ही कभी परिवर्तन होता है और सेवा प्रदाता इसे तभी परिवर्तित करता है जब आवश्यकता पड़ती है।

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इंटरनेट के अनुप्रयोग (Applications of Internet)

इंटरनेट उपयोग करने की विस्तृत विविधता है। यह दुनिया के सभी क्षेत्रों में अन्य लोगों के साथ संवाद स्थापित करने के लिए एक बहुत अच्छा साधन प्रदान करता है। इंटरनेट का सबसे बड़ा उपयोग जानकारी प्राप्त करने में साझा किया जाता है। इंटरनेट पर अन्य स्रोतों के साथ तेजी से विकास हो रहा है। मूल रूप से, इंटरनेट केवल सरकार और विश्वविद्यालयों द्वारा इस्तेमाल किया गया था। रिसर्च के वैज्ञानिकों ने विभिन्न प्रयोगशालाओं में अन्य वैज्ञानिकों के साथ बातचीत करने के लिए और दूर कम्प्यूटिंग सुविधाओं में शक्तिशाली कम्प्यूटर सिस्टम का उपयोग करने के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल किया। शोध वैज्ञानिकों ने एफटीपी साइटों में अपने कम्प्यूटर सिस्टम पर स्थानीय रूप से संग्रहीत तकनीकी पत्र में अपने काम के परिणाम को साझा किया।

इंटरनेट के व्यावसायिक अनुप्रयोग (Business Applications of Internet)

उत्पाद जानकारी (Product Information)-व्यापारी Business अपने उत्पाद की जानकारी को वेब पेज पर देते हैं। वेब कम्पनियाँ अपने मौजूदा और सम्भावित ग्राहकों के लिए उत्पाद जानकारी को वितरित करने के लिए एक आसान और कारगर तरीका प्रदान करती है।

विज्ञापन (Advertisement)-कम्पनियाँ वास्तव में ऑनलाइन विज्ञापन करने लगी हैं। ऑनलाल विज्ञापन के लिए विभिन्न तरीकों को इस्तेमाल किया जाता है। उदाहरण के लिए, याह वेब पेज पर विज्ञापनों की लिए एक बैनर का उपयोग करती है। इन बैनरों पर विज्ञापन का उपयोग किया जाता है।

दुनिया भर के दर्शकों तक पहुँच (Reach a World Wide Audience)

इंटरनेट एक विश्वव्यापी नेटवर्क है जो दुनिया भर के दर्शकों तक पहुँचता है।

उत्पादों के बारे में जानकारी (Provide Product Information)-उत्पादों के बारे में जानकारी व ग्राहकों से सीधे पहुँच प्रदान करता है। इंटरनेट सम्भावित ग्राहकों के लिए उपलब्ध उत्पादों या सेवाओं के बारे में जानकारी प्राप्त करने का नायाब तरीका है। जब ग्राहक चाहता है तो जानकारी प्राप्त कर सकता है।

लागत में कटौती (Save on cost)-ऑनलाइन सूचनाएँ प्राप्त करने से उनके मुद्रा में होने वाले लागत में कटौती होती है।

ग्राहक सेवा प्रतिनिधि तक आसान पहुँच (Easy Access to Customer Service Representative)-मानव बातचीत को पूरी तरह से अच्छे ग्राफिकल इंटरफेस से बदला नहीं जा सकता। जब ग्राहक के पास कोई प्रश्न होता है तो ग्राहक सेवा प्रतिनिधि से सीधे ई-मेल या ऑनलाइन बात कर सकता है।

ऑनलाइन उत्पाद और सेवायें प्रदान करना (Provide Product or Service Online)ऑनलाइन कई उत्पादों और सेवाओं को इंटरनेट पर प्रदान किया जा रहा है। ऑनलाइन सेवायें कई व्यवसायों के लिए एक उज्ज्वल विकल्प बन गयी हैं। इलेक्ट्रॉनिक लेन-देन से, बिलिंग और स्टॉक नियन्त्रण स्वचालित होता है। लेखांकन और उत्पाद के भण्डारण की लागत को कम करती है और सटीकता बढ़ती है।

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उपभोक्ताओं को खरीदने से पहले नमूना पेश करना (Let Customer Try a Sample of Product or Service)-नए वेब उपकरण उपभोक्ताओं को खरीदने से पहले उत्पाद या सेवा का एक नमूना पेश करता है। इस तरह की, की गई कोशिश प्रतियोगी को लाभ प्रदान करती है।

बिचौलिया को खत्म करना (Eliminate Middleman)-उत्पादकों और उपभोक्ताओं के बीच सीधे सम्पर्क में बिचौलिया बाधा पैदा करते हैं। इंटरनेट इन बाधाओं को दूर करने के लिए एक वाहन है। यह उपभोक्ताओं के लिए कीमतों को कम करता है और उत्पादकों के लिए मुनाफे को बढ़ा देता है

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शिक्षा में इंटरनेट के अनुप्रयोग (Applications of Internet in Education)

क्रान्ति ला दी है। शिक्षा प्रणाली को शिक्षा के क्षेत्र changed में इंटरनेट के गोद लेने से काफी लाभ हुआ है। छात्रों और शिक्षकों की अन्तहीन पुस्तकालय में Education सूचना को प्राप्त करने में त्वरित पहुँच है। इंटरनेट ने शिक्षकों को उनके छात्रों के साथ अपने विषय में ताजा अपडेट साझा करने के लिए सम्भव बनाया है।

1 सूचना के लिए प्रवेश की आसानी (Easy to Access of Information)इंटरनेट ने छात्रों और शिक्षकों दोनों को पढ़ने-पढ़ाने के तरीकों को बदल दिया है। इंटरनेट पर किसी व्यक्ति को निश्चित विषय के बारे में जानकारी प्राप्त हो जाती है। शिक्षक छात्रों को आसानी से व्याख्यान के पारम्परिक तरीकों में होने वाले बदलाव और पाठ्यपुस्तकों पर वर्तमान जानकारी दे सकते हैं।

मल्टीमीडिया (Multimedia)

इंटरनेट घात्राओ और शिक्षकों को मल्टीमीडिया सामग्री का उपयोग करने की अनमति देता है जो कि अन्य माध्यमों से देखने के लिए सम्भव नहीं है। छात्र विषय से सम्बन्धित वीडियो, तस्वीरें और ऑडियो को देखकर उनके बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते है। इस तरह छात्र बहुत गहरी परिप्रेक्ष्य हासिल करने में सफल होते हैं।

संचार (Communication) इंटरनेट छात्रों को और अधिक आसानी से एक-दूसरे के साथ संवाद करने की अनुमति देता है। छात्र ई-मेल, त्वरित सन्देश और फाइल स्थानान्तरण के माध्यम से जानकारी साझा करने में सक्षम होते हैं। इस तरह समूह परियोजना के काम में काफी मदद मिलती है। इससे छात्रों के काम में क्षमता बढ़ जाती है।

ऑनलाइन सीखना पर्यावरण (Online Learning Environment) __कई शिक्षकों की पाठ, व्याख्यान. संसाधनों नोटस सम्बन्धी वेबसाइटें हैं। ऑनलाइन लर्निंग में छात्रों और शिक्षक दोनों सवाल और जवाब एक-दूसरे से कर सकते हैं।

घर से कार्य करना (Working from Home)-कई माध्यमिक संस्थानों और नर्सरी से इण्टर स्कूल इंटरनेट पर अपने व्याख्यान प्रसारण कर रहे हैं जो छात्र भाग लेने में सक्षम नहीं हो सकता है, वह कम से कम घर से देख सकता है। इससे छात्रों को परीक्षा के लिए अध्ययन करने में मदद मिलती है।

शासन  में इंटरनेट के अनुप्रयोग (Applications of Internet in Education) पिछले कुछ वर्षों के दौरान विभिन्न राज्य सरकारों और केन्द्रीय मंत्रालयों द्वारा ई-शासन के युग में प्रवेश के लिए बहुत से प्रयास किये जाते रहे हैं। जनता को सेवाएँ प्रदान करने में सुधार करने और उन तक पहुँचने की प्रक्रिया के सरलीकरण के लिए कई स्तरों पर लगातार प्रयास किये गये हैं।

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भारत में ई-शासन का विकास लगातार प्रशासन के सूक्ष्मतर पहलुओं को लघु रूप देने के लिए किये गये उपायों, जैसे- नागरिक केन्द्रित, सेवा उन्मुखीकरण और पारदर्शिता के लिए सरकारी विभागों के कम्प्यूटरीकरण से प्रारम्भ हुआ है। पूर्व में ई-शासन से प्राप्त जानकारी ने देश में प्रगामी ई-शासन को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। इस विचार को पर्याप्त संज्ञान में लिया गया है कि राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय स्तरों पर सरकार के विभिन्न अंगों में ई-शासन के कार्यान्वयन को गति देने के लिए, एक कार्यक्रम उपागम, जो एक सामान्य नजरिये और नीति से निर्देशित हो, को अपनाने की जरूरत है। इस उपागम में, मानकों के जरिये सूचना के परस्पर आदान-प्रदान व प्रयोग को सम्भव बनाकर केन्द्रीय और समर्थक मूल संरचना के समर्थन के जरिये लागत में भारी बचत और नागरिकों के समक्ष सरकार का बाधारहित नजरिया प्रस्तुत करने की सम्भावना बढ़ी है।

राष्ट्रीय ई-शासन योजना (एनईजीपी), एक सर्वांगीण दृश्य प्रस्तुत करती है जिसके अन्तर्गत देशभर में ई-शासन के लिए की जा रही कार्यवाही का एक सामूहिक विचार, एक साझा विषय के रूप में एकीकृत किया जाता है। इस विचार के इर्द-गिर्द, इंटरनेट पर सरल, विश्वसनीय पहुँच सम्भव बनाने के लिए दूर-दराज के गाँवों तक भारी-भरकम देशव्यापी मूल संरचना को तैयार किया जा रहा है और रिकार्डों का बड़े पैमाने पर डिजिटाइजेशन किया जा रहा है। इसका अन्तिम लक्ष्य नागरिक सद जैसा कि राष्ट्रीय ई-शासन योजना के संकल्पना विवरण (Vision Statement) में कहा गया है।

सभी सरकारी सेवाओं को आम आदमी तक,सामान्य सेवा वितरण केन्द्रों के जरिए. उनके निवास स्थान में उपलब्ध कराने और आम आदमी की मूलभूत आवश्यकताओं को किफायती दामों में पूरा करने के लिए ऐसी सेवाओं की कुशलता, पारदर्शिता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करता है। सरकार ने राष्ट्रीय ई-शासन योजना (एनईजीपी) का अनुमोदन किया है जिसमें 18 मई, 2006 की स्थिति के अनुसार 27 मिशन मोड परियोजना (एमएमपी) और 8 घटक शामिल हैं। सरकार ने एनईजीपी के लिए विचार, उपागम, कार्यनीति, मुख्य घटकों, कार्यान्वयन विधि और प्रबन्धन संरचना का अनुमोदन किया है। तथापि, एनईजीपी के अनुमोदन में सभी मिशन मोड परियोजनाओं (एमएमपी) और इसके अधीन घटकों के लिए वित्तीय अनमोदन निहित नहीं है। एमएमपी श्रेणी में वर्तमान अथवा जारी परियोजनाओं का कार्यान्वयन विभिन्न केन्द्रीय मंत्रालयों राज्यों द्वारा किया जा रहा है। आर एनईजीपी के उद्देश्यों के अनसार राज्य के विभागों में उचित संवर्धन और वद्धि की जाएगी  ।

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सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) के साथ-साथ इंटरनेट ने विशाल मात्रा में उपलब्ध जानकारी, जान तथा सूचना के आदान-प्रदान को सम्भव बनाया है और समग्र आर्थिक-सामाजिक विकास एवं वद्धि में यह अदा भूमिका निभा रहे हैं। राष्ट्रीय सूचना बनियादी ढाँचे की स्थापना और इंटरनेट को बढ़ावा देना आज के वर्तमान परिवेश में काफी महत्वपूर्ण है। इंटरनेट संचालन में महत्वपूर्ण इंटरनेट संसाधनों तथा इंटरनेट प्रोटोकॉल से सम्बन्धित अश प्रौद्योगिकी, अनुप्रयोग, संसाधनों तथा सेवाओं के प्रबन्धन हेतु समस्त सम्बन्धित कार्यकलाप शामिल हैं। इसमें परस्पा आदान-प्रदान वाले सिद्धान्तों, मापदण्डों, नियमों, निर्णय लेने की प्रक्रिया तथा निजी क्षेत्र और अपनी भूमिका से सम्बन्धित सामाजिक संस्थाओं के साथ सहयोग परामर्श से सरकार द्वारा इंटरनेट के उपयोग और आकलन को तैयार करने वाले कार्यक्रम बनाने में विनियमन तथा प्रशासनिक नीतियों को लागू करने के लिए इन्हें तैयार करना शामिल है।

इस क्षेत्र में सूचना एवं प्रौद्योगिकी विभाग की कुछ नई पहले निम्नानुसार हैं

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1 राष्ट्रव्यापी सेवा गुणवत्ता नेटवर्क परीक्षा बैड की स्थापना-नेटवर्क आधारित प्रयोग और सेवाओं को सुनिश्चित करने के लिए गुणवत्ता सेवा के प्रदर्शन हेतु 7 संस्थानों में एक मल्टी प्रोटोकॉल लेबल स्विचिंग (एमपीएलएस) नेटवर्क टेस्ट बैड स्थापित किया गया है। परियोजना के अन्तर्गत ट्रैफिक अभियांत्रिकी सिद्धान्तों तथा मानकों प्रोटोकॉल को तैयार किया गया तथा नेटवर्क आधारित सेवा और अनुप्रयोग अर्थात दूरवर्ती शिक्षा, आईपी टेलीफोनी तथा वीडियो कांफ्रेंसिंग की सुविधा सुनिश्चित करने के लिए गुणवत्ता सेवा हेतु ट्रैफिक निगरानी साधन तैयार किया गया।

2 स्वतः प्रबन्धित नेटवर्क समाधान का विकास दृष्टि परिमाप तथा सेवा गुणवत्ता के लिए नेटवर्क में अनुसन्धान एवं विकास-नेटवर्क परिमाप तथा निगरानी के कार्यों में सी-डैक द्वारा इस परियोजना के माध्यम से प्रबुद्ध विश्लेषण, निर्णय लेने तथा निर्णयों को स्वचालित रूप से कार्यान्वित करने का काम किया गया। नेटवर्क निगरानी तथा जाँच विधियों को विकसित किया गया। लैन तथा वैन दोनों नेटवर्क में ट्रैफिक निगरानी तथा विश्लेषण विधियों के इस्तेमाल की जाँच स्वतः संचालित नेटवर्क के माध्यम से प्रदर्शित की जा रही है।

वास्तविक समय नेटवर्क जैसे बीएसएनएल नेटवर्क पर स्वत: प्रबन्धित सेवा गुणवत्ता नेटवर्क की अवधारणा तैयार करने के लिए प्रदान किये गये तथा स्वचालित नेटवर्क ट्रैफिक इंजीनियरिंग तथा प्रबन्धन के लिए ऑन-लाइन प्रणाली पर विश्लेषण और आगामी अनुसन्धान एवं विकास के लिए प्रयास किये जायेंगे और परिणामों को एकत्र किया जाएगा।

3 अन्तर्राष्ट्रीय डोमेन नाम भारत की सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं को कार्यान्वित करना आईसीएएनएन की घोषणा 27 अक्टूबर, 2009 को की गई। इसमें तीव्र गति की प्रोसैस प्रणाली पर कुछ गैरलैटिन लिपियों में कंट्री कोड टॉप लेवल डोमेन नेम (सीसीटीएलडी) अनुमति प्रदान करने के लिए उपलब्ध कराये गये हैं। सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने हिन्दी और कुछ अन्य भाषाओं के लिए अनुरोध प्रस्तुत किया है। डोमेन नामों के पंजीकरण के लिए डोमेन नाम की नीति का मसौदा तैयार कर लिया गया है। राज्यों के साथ विचार विमर्श की प्रक्रिया चल रही है। इस सम्बन्ध में अन्तिम निर्णय के बाद इसे सूचना प्रौद्योगिकी विभाग तथा सी-डैक की वैबसाइट पर प्रस्तुत किया जाएगा।

आईडीएन नीति के पुनरीक्षक के बाद लगभग 5-6 भारतीय लिपियों में डोमेन नामों का पंजीकरण किया जाएगा और देशव्यापी सहमति हासिल की जाएगी। इसके बाद लगभग एक दर्जन आधिकारिक भारतीय भाषाओं में डोमेन नाम पंजीकरण के लिए उपलब्ध होंगे।

4 आईपीवी 4 से आईपीवी 6 में परिवर्तन-सूचना प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा आईपीवी 6 को जल्दी अपनाने के लिए जरूरी कार्यशालाओं और सम्मेलनों के आयोजन, आईपीवी 6 को लगाने में व्यावसायिक तथा । नेटवर्क परिचालकों के प्रशिक्षण तथा आईपीवी 6 नेटवर्क को तैयार करने के लिए मौजदा आईपीवी 4 नेटवर्क को परिवर्तित करने तथा आईपीवी 6 की माँग को बढ़ाने के लिए इसके प्रयोग और सेवाओं के विकास के क्षेत्र में ।

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5 भारत यूरोपियन यूनियन (ईयू) प्रस्ताव ईआरएनईटी इण्डिया को यूरोपियन रिसर्च नेटवर्क माथ जोड़ना-दो प्रबुद्ध अनुसन्धान समुदायों के बीच विश्वसनीय तथा कशलतम सम्पर्क जीईएएनटी के साथ जोड़ना-दो प्रब इंटरनेट एवं इसकी बुनियादी अवधारणा स्थापित करने के लिए ईआरएनईटी तथा डिलीवरी ऑफ एडवांस नेटवर्क टैक्नोलॉजी टू यूरोप लिमिटेड (डीएएनटीई) के बीच सहयोग के लिए ईआरएनईटी इण्डिया को युरोपियन रिसर्च नेटवर्क यूरोप में जीईएएनटी नेटवर्क के साथ। जोड़ने के लिए सूचना सोसायटी प्रौद्योगिकी (आईएसटी) कार्यक्रम पर भारत-यूरोपियन यूनियन सहयोग के तहत समझौते पर हस्ताक्षर किये गये। विभिन्न शैक्षिक तथा अनुसन्धान एवं विकास संस्थानों के बीच अनुसन्धान सम्बन्धी सूचना के आँकड़ों के आदान-प्रदान तथा सूचना प्रौद्योगिकी, जीवन विज्ञान, जीनोमिक. जैवप्रौद्योगिकी. सामग्री विज्ञान, पर्यावरण विज्ञान आदि के क्षेत्र में साझेदारी बढ़ाने के लिए 175 एसबीपीएम बैंडविड्थ की कनेक्टिविटी उपलब्ध है। ____

6 Pragmatic आईआईटी बाम्बे-मुम्बई द्वारा कंज्यूमर सेंट्रीक ओमनीप्रैजेंट ईथरनेट का इस्तेमाल करते हुए व्यावहारिक कुशलतम विश्वसनीय इंटरनेट वर्किंग समाधान इस परियोजना को भावी पीढ़ी के इंटरनेट डिजाइन के विकास, आप्टीकल नेटवर्किंग की प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल, कैरियर इथरनेट तथा उच्च गति वाली संचार प्रणालियों के विकास के लिए तैयार किया गया है।

7 ईआरएनईटी तथा आईआईएससी बंगलुरू द्वारा मोबाइल आईपीवी 6-इस परियोजना को एक प्रकार के नेटवर्क से दूसरे प्रकार के नेटवर्क में अर्थात लैन से वैन में (निर्बाध) हस्तान्तरण के लिए आईपीवी6 प्रोटोकॉल द्वारा सहायतार्थ मोबिलिटी के प्रदर्शन के लिए तैयार किया गया।

8 थाईगरजार अभियांत्रिकी महाविद्यालय, मदुरै द्वारा सुरक्षित ई-वोटिंग प्रणाली के लिए इनफॉर्मेशन फोरेंसिक्स फ्रेमवर्क का विकास-इस परियोजना को इंटरनेट शासन प्रणाली के सृजन, परिचालन तथा आकलनों के विभिन्न पहलुओं की जाँच तथा ई-वोटिंग को आसान बनाने के लिए प्रमाणीकरण, अधिकरण तथा पहुँच नियन्त्रण के लिए नई प्रक्रिया विधि की संकल्पना के विकास हेतु तैयार किया गया है।

9 अवधारणा निष्कर्ष प्रासंगिक डाटा पुनाप्ति के लिए सुविज्ञ प्रबुद्ध सर्च इंजन का विकास-सी डैक, बंगलुरू तथा आईआईआईटी, बंगलुरू-इस परियोजना के अन्तर्गत एक ऐसे सुविज्ञ प्रबुद्ध ज्ञान के मूल आधार के रूप में ऐसी प्रणाली का विकास करने की परिकल्पना की गई है जो शिक्षाविदों सहित अनुसन्धानकर्ताओं, छात्रों, शिक्षकों, शैक्षिक समितियों, शैक्षिक संस्थानों आदि को सहायता प्रदान करेगी। इंटरनेट का बहु-भाषीकरण

10 सी-डैक, पुणे द्वारा रजिस्ट्रारों के लिए आईडीएन नीतियों (एबीएनएफ तथा भाषा तालिका) के कार्यान्वयन का विकास तथा आईडीएन 22 राजभाषाओं को अनुपालन योग्य बनाना-इस परियोजना में रजिस्ट्रारों रजिस्ट्री तथा रजिस्ट्रेट व रजिस्ट्रार के लिए अग्र-पश्च जीयूआई द्वारा भारतीय भाषाओं में डोमेन नामों के पंजीकरण के लिए समस्त मूल पंजीकरण प्रकिया विधियों को तैयार और इनकी जाँच की जाएगी। इस परियोजना के तहत आईडीएन फ्लोटिंग की-बोर्ड, भाषा देखने वाली तालिका, विश्वव्यापी स्तर पर पुनरावृत्ति के बगैर वैध डोमेन नामों के पंजीकरण के लिए सॉफ्टवेयर विकसित किया गया है।

11 जागरूकता कार्यक्रम-रजिस्ट्रारों का प्रशिक्षण, इंटरनेट सेवा प्रदानकर्ता, नेटवर्क सेवा प्रदानकर्ता, प्रौद्योगिकी डेवलपर, मानव-मशीन परस्पर सम्बन्ध विकासकर्ता, उपभोक्ता आदि विषयों पर निम्नलिखित कार्यशालाएँ,

  • आईपीवी 6 सम्बन्धित तैनाती और अनुप्रयोग अभिमुख परियोजना।
  • आईएन डोमेन नेम रजिस्ट्रेशन रजिस्ट्री प्रक्रिया नीतियाँ, विवाद निपटारा नीति आदि।
  • भारतीय भाषाओं में डोमेन नाम रजिस्ट्री प्रक्रिया और नीतियाँ, विवाद समाधान नीति आदि।
  • इंटरनेट शासन तथा पहुँच, सुरक्षा और निजीपन गोपनीयता, मुक्त-स्वतन्त्र, विविधता, महत्वपूर्ण
  • इंटरनेट संसाधन तथा इनके प्रबन्धन के सिद्धान्त, बच्चे की ऑनलाइन सरक्षा, क्षमता निर्माण, मुक्त मानदण्ड आदि से सम्बन्धित मुद्दे।
  • 12 सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, नई दिल्ली में सरकारी परामर्शदात्री समिति (जीएसी) सचिवालय का स्थापना-सचना प्रौद्योगिकी विभाग में सौंपे गये नाम और नम्बर निर्दिष्ट करने के लिए इंटरनेट निगम (आईसीएएनएन) के लिए एक सरकारी परामर्शदात्री समिति (जीएसी) सचिवालय की स्थापना की गइ हा एक परामर्शदात्री समिति होने के कारण जीएसी में सरकार, बहुराष्ट्रीय सरकारी संगठनों तथा सन्धि वाले संगठनों तशी विशिष्ट अर्थव्यवस्थाओं के प्रतिनिधि शामिल हैं। यह इंटरनेट से सम्बन्धित मानकीकरण, प्रोटोकॉल तथा प्रौद्योगिकी से सम्बन्धित सार्वजनिक नीतिगत विषयों और देश के सामाजिक और आर्थिक जीवन को प्रभावित करने वाले परे पर विचार-विमर्श के लिए महत्वपूर्ण एक फोरम है।
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अभ्यासार्थ प्रश्न (Exercise Questions)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

1 OSI एवं TCP/IP का विस्तार में वर्णन कीजिए और उनकी तुलना कीजिए।

Describe broadly OSI and TCP/IP and compare them.

2 क्लाइन्ट सर्वर टेक्नोलॉजी का वर्णन कीजिए।

Describe client server technology.

3. इंटरनेट के विकास तथा अनुप्रयोगों को बताइए।

Write development and applications of Internet.

4. इंटरनेट की डोमेन नाम प्रणाली में टी.एल.डी. से आप क्या समझते हैं?

What do you understand by TLD in the domain name system of internet?

5. वितरित कम्प्यूटर प्रणाली क्या है? इसके अनुप्रयोगों के बारे में बताइए।

What is distributed computer system ? About its applications.

6. क्लाइन्ट सर्वर तकनीक की विशेषताएँ क्या हैं?

What are the characteristics of client-server technology?

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लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

1 इंटरनेट प्रोटोकॉल क्या है?

What is Internet Protocol?

2. क्लाइन्ट सर्वर तकनीक के लाभ क्या हैं?

What is the benefits of client-server technology?

3. इंटरनेट के कुछ व्यावसायिक उपयोग के बारे में बताइए।

Write some business applications of internet.

4. डोमेन नेम प्रणाली से आप क्या समझते हैं?

What do you understand by domain name system?

5. देशीय कोड उच्चतम डोमेन क्या है?

What is county code top level domain?

6. यूनिफॉर्म लोकेटर्स क्या है?

What is uniform Locaters?

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बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

1 किसी बैंक शाखाओं में कम्प्यूटर को आपस में जड़ने के लिए नेटवर्क का प्रयोग किया जाता है

(a) लोकल एरिया नेटवर्क AAD

(b) वाइड एरिया नेटवर्क

(c) सहकर्मी नेटवर्क

(d) स्टार नेटवर्क

2. www का अर्थ

(a) दुनिया भर में धन

Lb) वर्ल्ड वाइड वेब

(c) वेब के साथ विश्व

(d) वेब बिना विश्व

3. नेटवर्क पर कम्प्यूटर की पहचान की जाती है

(b) उपयोगकर्ता के आईडी और पासवर्ड

(e) कम्प्यूटर कान्फीग्रेसन

(d) उपर्युक्त सभी

(b) आऊ पी एड्रेस

4. इंटरनेट एवं इसकी बुनियादी अवधारणा कम्प्यूटर के माध्यम से बैंकिंग लेन-देन करने के लिए ग्राहक के पास होना चाहिए

(a) इंटरनेट बैंकिंग आईडी और पासवर्ड

(b) विंडोज आधारित कम्प्यूटर

(c) इंटरनेट कनेक्शन

(d) सभी (a), (b) और (c)

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5. सीमित समय के लिए ब्याज मुक्त ऋण ग्राहकों के लिए उपयोग किया जाता है

(a) क्रेडिट कार्ड

(b) डेबिट कार्ड

(c) ई-कार्ड

(d) उपहार कार्ड

6. एक मजबूत पासवर्ड न्यूनतम अक्षरों का होना चाहिए

(a) 8

(b)6

(c) 10

(d)2

7. जंक ई-मेल को कहा जाता है

(a) स्पैम SPAM

(c) स्क्रिप्ट

(d) स्पूल

8. HTML के लिए खड़ा है

(a) हाइपर टेक्स्ट लिंक बनाना

(b) हाइपर टेक्स्ट मार्कअप लैंग्वेज

(c) लिंक का अंकन हायर मूलपाठ

(d) लिंक की हाइपर टेक्स्ट मिक्सर

9 .एचटीएमएल एक के समान है

(a) वर्ड प्रोसेसिंग भाषा

(b) स्क्रीन संपादक

(c) स्क्रिप्टिंग भाषा

(d) खोज इंजन

10. निम्न में से कौन-सा इंटरनेट प्रोटोकॉल में से एक नहीं है?

(a) एचटीटीपी

(b) एसएमटीपी SMTP

(c) पीपीपी

(d) NetBIOS

11, एसएसएल करने के लिए इंटरनेट पर एक प्रोटोकॉल है-85/ (a) कॉन्फ्रेंसिंग प्रणाली प्रदान करते हैं

(b) ऑनलाइन सुरक्षा प्रदान करें (c) ई सीखने प्रणाली प्रदान करते हैं

(d) वेब ब्राउजिंग का समर्थन करें

12. इंटरनेट पर एन्क्रिप्शन का उपयोग करने के लिए मुख्य कारण है

(a) संचार में तेजी लाने के लिए

(b) संदेश पढ़ने से प्राप्तकर्ताओं के अलावा अन्य लोगों को रोकने के लिए

(c) संदेश अपने इच्छित लक्ष्य तक पहुँचाने के लिए

(a) उपर्युक्त सभी

13. इंटरनेट की आवश्यकता है

(a) कम्प्यूटर से कनेक्ट करने के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय समझौता

(b) एक स्थानीय क्षेत्र नेटवर्क

(e) सामान्य रूप से सहमत हुए नियमों का एक सेट जो कम्प्यूटर के बीच संवाद करते हैं

(d) एक वर्ल्ड वाइड वेब

14. इंटरनेट से जुड़े प्रत्येक कम्प्यूटर को चाहिए

(a) एक आईबीएम पीसी होना

(b) एक अद्वितीय आईपी एड्रेस

(c) इंटरनेट संगत होना

(d) एक मॉडेम कनेक्शन है

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15. आईपी पते वर्तमान में हैं ।

(a) 4 बाइट्स लम्बे

(b) प्रचुर मात्रा में उपलब्ध

(c) 6 बाइट्स लम्बे

(d) इनमें से कोई नहीं

16, आईपी पतों के लिए परिवर्तित कर रहे हैं

(a) एक बाइनरी स्ट्रिंग

(b) अल्फान्यूमेरिक स्ट्रिंग

(c) डोमेन नाम के पदानुक्रम

(d) एक हेक्साडेसीमल स्ट्रिंग

17. इंटरनेट उपयोग करता है

(a) पैकेट स्विचन

(b) परिपथ स्विचन

(c) टेलीफोन स्विचिंग

(d) टेलेक्स स्विचिंग

18. एक वेब पेज स्थित होता है

(a) लिंकिंग यूनिवर्सल रिकॉर्ड

(b) यूनिफार्म रिसोर्स लोकेटर

(c) यूनिवर्सल रिकॉर्ड लोकेटर

(d) समान रूप से पहुँच योग्य लिंक

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19. खोज इंजन खोज करने के लिए एक कार्यक्रम है

(a) सूचना के लिए

(b) वेब पृष्ठों

(c) शब्दों को वेब पृष्ठों के लिए

(d) वेब पृष्ठों के लिए निर्दिष्ट खोज शब्दों का उपयोग

20. अपने शुरुआती दिनों में गेटवे कहा जाता था पर आजकल कहा जाता है

(a) होम पेज

(b) राउटर्स

(c) आईएमपी IMP

(d) सर्वर

21. आगंतुक को साइट पर वर्गीकृत सूचना प्रदान करता है

(a) ई-मेल

(b) टैग

(c) मेटाडाटा

(द) वेब निर्देशिका

22. ई-मेल के लिए इस्तेमाल किया जा सकने वाला प्रोग्राम है

(a) इंटरनेट एक्सप्लोरर

(b) आउटलुक एक्सप्रेस

(c) नेटमीटिंग

(d) Front Page

23. लैन (लोकल एरिया नेटवर्क) में ही प्रयोग किया जाता है निम्नलिखित उपकरण में से कौन?

(a) गेटवे

(b) मोडेम

(c) एनआईसी NTC

(d) रूटर

24.डायलअप इंटरनेट कनेक्शन के लिए, कम्प्यूटर में होना आवश्यक है

(a) साउण्ड कार्ड

(b) सीडी ड्राइव

(c) मोडेम

(d) इनमें से कोई नहीं

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25. ब्राउजिंग इंटरनेट के लिए की आवश्यकता है

(a) आईएसपी के साथ इंटरनेट खाता

(b) टेलीफोन लाइन

(c) मॉडेम के साथ कम्प्यूटर

(d) उपर्युक्त सभी

26. केबलों से उच्च गति से डाटा संचारित कर सकते हैं

(a) Coaxible केबल

(b) ऑप्टिक फाइबर केबल

(c) Twisted पेयर केबल

(d) UTP केबल

27. ओएसआई मॉडल में लेयर होते हैं

(a) 5 लेयर

(b) 7 लेयर

(c) 6 लेयर

(d) 9 लेयर

28. टीसापी/आईपी मॉडल में लेयर होते हैं

(a) 4 लेयर

(b) 3 लेयर

(c) 6 लेयर

(d)9 लेयर

29, सीसीटीएलडी है-CCTLD

(a) कन्टरी कोड टॉप लेवल डोमेन

(b) कम्प्यूटर कोड टॉप लेवल डोमेन

(c) कम्प्यूटर कन्ट्रोल टॉप लेवल डोमेन

(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं

30. एन एस है- DNA

(a) डोमेन नेम सर्विस

(b) डोमेन नेटवर्क सर्विस

(c) डिफॉल्ट नेटवर्क सर्विस

(d) डोमेन नेटवर्क सर्वर

[उत्तर-1. (a), 2. (b), 3. (a), 4. (d), 5. (a), 6. (a), 7. (a), 8. (b), 9. (c), 10. (d), 11. (b), 12. (d), 13. (c), 14. (b), 15. (a), 16. (c), 17. (a), 18. (b), 19. (d), 20. (c), 21. (d), 22. (b), 23. (c),

  1. (c), 25. (d), 26. (b), 27. (b), 28. (a), 29. (a), 30. (a)]

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