BCom 1st Year Business Economics Isoquants ISO Product Curve Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Economics Isoquants ISO Product Curve Study Material Notes in Hindi

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BCom 1st Year Business Economics Isoquan ISO Product Curve Study Material Notes in Hindi: Meaning and Definition of iso Product or isoquant curve Assumptions of Isoquant Curve Difference Between Indifference Curves and Isoquants Map Marginal Rate of Technical Substitution Characteristics or Properties of Isoquant Curves Economic Region of Production Optimum Factor Combinations Factor Price Effect Expansion Path Theoretic Questions Long Answer Questions Short Answer Questions :

 Isoquants ISO Product Curve
Isoquants ISO Product Curve

BCom 1st Year Business Economics Production Function Study Material Notes in Hindi

समोत्पाद वक्र

(Isoquants or iso-Product Curve)

Isoquant शब्द ग्रीक भाषा के ‘iso’ और ‘quantus’ से व्युत्पादित है। Iso का आशय equal (सम) तथा quantus का आशय quantity (मात्रा) होता है। इसीलिये Isoquant curve को Equal Product Curve (समोत्पाद वक्र) भी कहते हैं।

समोत्पाद वक्र विश्लेषण एक उत्पादक को दो साधनों (श्रम और पूँजी) के एक ऐसे संयोग को प्राप्त करने में सहायक होता है जो उसे न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन देता है। दूसरे शब्दों में, यह विश्लेषण साधनों के अनुकूलतम संयोग की समस्या का हल निकालता है।।

समोत्पाद वक्र का आशय और परिभाषा

(Meaning and Definition of Iso-Product or Isoquant Curve)

एक समोत्पाद वक्र दो साधनों (श्रम और पूँजी) के उन विभिन्न संयोगों का बिन्दु पथ है जिनसे समान मात्रा में उत्पादन होता है। चूंकि ये सभी संयोग समान उत्पादन देते हैं, अतः एक उत्पादक इन संयोगों के प्रति तटस्थ हो जाता है, इसीलिये इस वक्र को उत्पादन तटस्थता वक्र (Production Indifference Curve) भी कहते हैं।

कीरस्टीड के शब्दों में, “समोत्पाद वक्र दो साधनों के उन सभी सम्भावित संयोगों को बताता है जो समान कुल उत्पादन प्रदान करते हैं।

कोहन के शब्दों में, “एक समोत्पाद वक्र वह वक्र होता है जिस पर उत्पादन की अधिकतम प्राप्ति दर स्थिर होती है।

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि समोत्पाद वक्र उत्पादन के दो साधनों के समान उत्पादन देने वाले अनेक संयोग बिन्दुओं को मिलाकर बनता है किन्तु ध्यान रहे कि एक समोत्पाद वक्र एक उत्पादन स्तर को ही प्रकट करता है।

उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण : समोत्पाद वक्र के विचार को स्पष्ट करने के लिये समान उत्पादन मात्रा (माना कि 100 कुन्तल अनाज का उत्पादन) देने वाले अ, ब, स, द और इ पाँच संयोगों को निम्न तालिका में दर्शाया गया है –

उपर्युक्त तालिका में श्रम और पूँजी साधनों के उन सभी संयोगों को दिखलाया गया है जिनसे 100 कुन्तल अनाज का उत्पादन प्राप्त होता है। इस तालिका में श्रम की लगातार एक इकाई बढ़ाने पर पूँजी की उत्तरोत्तर मात्रा को घटाकर दिखाया गया है ताकि कुल उत्पादन पूर्ववत् रहे। तालिका के अन्तिम खाने में श्रम की पूँजी से तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमान्त दर दिखलायी गयी है जो कि घटते हुए क्रम में है। दूसरे शब्दों में, श्रम की एक अतिरिक्त 12 इकाई बढ़ाने पर पूँजी की इकाइयों में कमी 10 क्रमशः घटती दर से होती है।

रेखाचित्र द्वारा स्पष्टीकरण : उपर्युक्त तालिका के आधार पर श्रम और पूँजी के अ, ब, स, द और इ संयोगों से एक समोत्पाद वक्र IQ की रचना की गई है। चित्र 2.1 में X-अक्ष पर श्रम और Y-अक्ष पर पूँजी की इकाइयाँ दर्शायी गयी हैं। चित्र में वक्र पर सभी संयोग समान उत्पादन श्रम (100 कुन्तल) प्रदान करते हैं।

समोत्पाद वक्र की मान्यताएँ (Assumptions of Isoquant Curve)

समोत्पाद वक्रों की रचना निम्नलिखित मान्यताओं पर की जाती है –

1 यह व्याख्या उत्पत्ति के केवल दो ही साधनों (श्रम और पूँजी) के संदर्भ में की जाती है। तीन साधनों की स्थिति में यह विश्लेषण अत्यन्त जटिल हो जाता है।

2. उत्पादन की तकनीक में कोई परिवर्तन नहीं होता है।

3. उत्पादन के साधनों की मात्राओं को छोटी-छोटी मात्रा में बाँटा जा सकता है। इस मान्यता के कारण ही हम समतल सम-उत्पाद रेखाएँ खींच पाते हैं।

4. उत्पादन के साधनों का एक दूसरे से प्रतिस्थापन किया जा सकता है तथा दी हुई ‘उत्पादन की तकनीकी दशाओं के अन्तर्गत इन्हें अधिकतम सम्भव कुशलता के साथ मिलाया जा सकता है।

Isoquants ISO Product Curve

तटस्थता वक्र रेखाओं और समोत्पाद वक्र रेखाओं में अन्तर

(Difference between Indifference Curves and Isoquants)

समोत्पाद वक्र तटस्थता वक्र के ही समान होता है क्योंकि दोनों में ही दो वस्तुओं/साधनों के समान सन्तुष्टि/उत्पादन देने वाले संयोगों को दर्शाया जाता है। दोनों ही वक्रों का स्वरूप। काफी मिलता जुलता है। फिर भी दोनों में निम्नलिखित दो प्रमुख अन्तर हैं –

1 तटस्थता वक्र दो उपभोक्ता वस्तुओं का बनाया जाता है, जबकि समोत्पाद वक्र दो उत्पादन के साधनों (श्रम और पूँजी) का बनाया जाता है।

2. तटस्थता वक्र सन्तुष्टि का माप करता है जबकि समोत्पाद वक्र ‘उत्पादन’ का माप करता है। इसीलिये एक तटस्थता वक्र को परिमाणात्मक मूल्य (numerical value) नहीं प्रदान किया जा सकता है क्योंकि सन्तुष्टि का कोई भौतिक माप सम्भव नहीं; किन्तु समोत्पाद वक्र को परिमाणात्मक मूल्य प्रदान किया जाता है क्योंकि उत्पादन का भौतिक माप सम्भव है।

समोत्पाद मानचित्र (Isoquant Map)

एक समोत्पाद वक्र पर स्थित सभी संयोगों के बिन्दु एक समान उत्पादन-मात्रा दर्शाते हैं। एक उत्पादक के अनेक समोत्पाद वक्र हो सकते हैं जो उत्पादन-मात्रा के विभिन्न स्तरों को दर्शाते हैं। उत्पादन के विभिन्न स्तरों को व्यक्त करने वाले वक्रों को समोत्पाद मानचित्र (Isoquant Map) कहते हैं। यह मानचित्र एक उत्पाद के उत्पादन की तकनीकी दशाओं को बतलाता है। इसे चित्र 2.2 में दिखलाया गया है। चित्र में IQ, उत्पादन के न्यूनतम स्तर 100

इकाइयों को दर्शाता है जबकि IQ, , IQ, तथा IQ, उत्पादन के क्रमशः उच्चतर स्तरों 200, 300 व 400 इकाइयों को व्यक्त करता है। अतः स्पष्ट है कि प्रत्येक अगला समोत्पाद वक्र अपने से पहले वाले समोत्पाद वक्र से ऊँचे उत्पादन के स्तर को व्यक्त करता है। एक ऊँचा समोत्याद वक्र नीचे वाले समोत्याद वक्र से अधिक श्रम या पूँजी या दोनों की अधिक मात्राओं के प्रयोग वाले संयोगों से बनता है।

तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमान्त दर

(Marginal Rate of Technical Substitution)

उत्पादन सिद्धान्त के अन्तर्गत तकनीका प्रतिस्थापन की सीमान्त दर की धारणा एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। यह विचार उसे उत्पादन साधनों के सर्वाधिक मितव्ययितापर्ण पाप्त करने में सहायक सिद्ध होता है। यह विचार उपभोग सिद्धान्त के तटस्थता वक्र विश्लेषण में प्रतिस्थापन की सीमान्त दर की धारणा के समान है। जैसा कि हम जानते हैं कि एक उत्पादक उत्पादन-कार्य में कार्यकुशलता बढ़ाने और उत्पादन लागत में बचत करने हेतु एक उत्पादन साधन का दूसरे उत्पादन साधन से (जैसे श्रम के स्थान पर पूँजी अथवा पूँजी के स्थान पर श्रम का प्रयोग) प्रतिस्थापन करता है। दो साधनों (X और Y) के बीच तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमांत दर वह दर है जिसके अनुसार उत्पत्ति मात्रा को स्थिर रखते हुए एक साधन को दूसरे साधन से सीमान्त पर प्रतिस्थापित किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में, x साधन की Y साधन के लिये तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमांत दर का आशय है X साधन की एक इकाई Y साधन की कितनी इकाइयों के स्थान पर प्रयोग की जा सकती है बशर्ते कि उत्पादन की मात्रा पूर्ववत् रहे। तकनीकी भाषा में साधन X की साधन Y के लिये तकनीकी सीमान्त प्रतिस्थापन दर साधन X तथा साधन Y की सीमान्त उत्पादकताओं के अनुपात को बताती है।

A, B,C, D और E पाँचों संयोगों का उत्पादन स्तर समान है। जैसा कि तालिका से स्पष्ट है कि तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमान्त दर गिरती हुई होती है। दूसरे शब्दों में सभोत्पाद वक्र पर बायें से दायें जाने पर वक्र का ढाल घटता जाता है। चित्र 2.1 में देखिये। IQ वक्र से स्पष्ट है कि श्रम की प्रत्येक एक इकाई बढ़ाने पर पूँजी की इकाइयों में कभी क्रमशः घटती दर से की जा रही है। इसे तकनीकी प्रतिस्थापन की हासमान सीमान्त दर का सिद्धान्त कहते हैं। समोत्पाद वक्र का मूल बिन्दु की ओर उन्नतोदर होना तकनीकी प्रतिस्थापन की हासमान सीमान्त दर को ही व्यक्त करता है।

तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमान्त दर समोत्पाद वक्र के ढाल को मापती है।.

एक समोत्पाद वक़ के किसी बिन्दु पर तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमान्त दर को मापा जा सकता है। इसके लिये पूँजी की परिवर्तित मात्रा में श्रम की परिवर्तित मात्रा का भाग दिया जाता है। चित्र 2.3 में IQ समोत्पाद वक्र है जिस पर MATS ज्ञात करने के लिये E व E दो बिन्द लिये गये हैं। E बिन्दु को स्पर्श करती हुई AB रेखा तथा E बिन्दु को स्पर्श करती हुई CD रेखा खींची गई है। समोत्पाद वक्र के E बिन्दु पर तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमान्त दर (MRTS) = 40 तथा वक्र के E, बिन्दु पर MRTS — OC ОВ

सामान्यतया समोत्पाद वक्र में तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमान्त दर घटती हुई होती है।। इसके दो कारण हैं – (i) एक साधन दूसरे साधन का पूर्ण स्थानापन्न नहीं होता और (i) सभी साधनों का सीमान्त प्रतिफल घटता हुआ होता है। अतः जब हम श्रम की इकाइयाँ बढाते हैं तो श्रम की सीमान्त भौतिक उत्पादकता (अर्थात् श्रम की एक अतिरिक्त इकाई का अंशदान) गिरती है क्योंकि तुलनात्मक रूप से अकुशल श्रमिकों की भर्ती की जायेगी। दूसरी ओर पूँजी की पूँजी की अकुशल इकाइयाँ प्रयोग से बाहर हो जाती हैं। अतः उत्पादन के स्तर को पूर्ववत बनाये रखने के लिये श्रम की प्रत्येक अतिरिक्त इकाई के प्रतिस्थापन के लिये पूँजी की उत्तरोत्तर कम इकाइयों की कमी की आवश्यकता होती है। इसे तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमान्त दर का सिद्धान्त कहते हैं।

Isoquants ISO Product Curve

अपवाद (Exceptions) – तकनीकी प्रतिस्थापन की हासमान सीमान्त दर के निम्नलिखित दो प्रमुख अपवाद हैं :Perfect Substitutes of each other)-

 

इस स्थिति में तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमान्त दर घटती हुई न होकर स्थिर (Constant) रहती है। इस अवस्था में उत्पादन का कोई भी साधन एक दूसरे AA के स्थान पर प्रयोग किया जा सकता है। इस अवस्था में समोत्पाद वक्र एक ऋणात्मक ढाल वाली सीधी रेखा के होगा। दूसरे शब्दों में, यह रेखा बायें से दायें नीचे गिरती हुई चली जाती है। चित्र 2.4 में इसे प्रदर्शित किया गया है। चित्र में AB समोत्पाद वक्र से स्पष्ट है कि फर्म को श्रम की प्रत्येक एक इकाई के बढ़ाने पर पूँजी की भी एक ही इकाई की कमी करनी पड़ती है। इस अवस्था में तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमान्त होगी तथा समोत्पाद वक्र X-अक्ष पर 45° का कोण बनाने वाली सीधी रेखा होगा। इस प्रकार के वक्र को रेखीय समोत्पाद वक्र (Linear Isoquant) कहते हैं। चित्र के A व B बिन्दुओं से यह भी स्पष्ट है कि एक निश्चित मात्रा में उत्पादन की प्राप्ति केवल पूँजी या केवल श्रम या दोनों से की जा सकती है। लेकिन वास्तविक व्यवहार में साधनों की पूर्ण स्थानापन्नता की स्थिति देखने को नहीं मिलती।

(2) जब दो साधन एक दूसरे के पूर्ण पूरक हैं (When the two Factors are Perfect Complements)-ब उत्पत्ति के साधन एक स्थिर अनुपात में प्रयोग किये जाते हैं तो उन्हें एक दूसरे का पूर्ण पूरक कहेंगे। साधनों की पूर्ण पूरकता (Perfect Complementarity) का आशय यह है कि वस्तु की एक निश्चित मात्रा के उत्पादन के लिये दोनों साधन एक निश्चित अनपात में ही प्रयोग किये जाते हैं। यदि एक साधन की मात्रा को स्थिर रखकर दूसरे साधन की मात्रा में वृद्धि की जाती है तो उत्पादन में कोई वृद्धि नहीं होगी क्योंकि बढाये गये साधन की इकाइयाँ दूसरे साधन की इकाइयों के अभाव में खाली या व्यर्थ ही पडी रहेंगी। इस अवस्था में समोत्पाद वक्र L-आकृति वाला होता है। (चित्र सं 2.5 को देखिये) इसीलिये इस प्रकार के Proportion or L-Shaped Isoquant) कहते हैं।

चित्र में IQ, वक्र श्रम की 2 इकाइयाँ और पूँजी की 4 इकाइयों के संयोग को व्यक्त । करता है तथा इस संयोग पर 50 इकाइयों का उत्पादन होता है। इस वक्र का प्रासंगिक भाग A द्वारा प्रकट किया गया है। इसी प्रकार IQ2y वक्र 100 इकाइयों के उत्पादन को व्यक्त करता है और इसका प्रासंगिक भाग B द्वारा प्रकट ” किया गया है। दोनों वक्रों में उन्नतोदरता (Convexity) का अभाव है अर्थात इन वक्रों 5.8की तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमान्त दर घटती हुई नहीं है।

वास्तविक व्यवहार में स्थिर अनुपात उत्पादन फलन के अनेक उदाहरण देखे जा सकते हैं। उदाहरण के लिये एक टैक्सी को चलाने के लिये केवल एक ड्राइवर की आवश्यकता होगी। अतः

चित्र 2.5 इस व्यापार को बढ़ाने के लिये मोटर गाड़ी और ड्राइवरों की संख्या 1 : 1 के अनुपात में ही रखनी होंगी।

समोत्पाद वक्रों की विशेषताएँ या गुण

(Characteristics or Properties of Isoquant Curves)

(1) समोत्पाद वक्र बायें से दायें नीचे की ओर झुकता है (An isoquant curve slopes downward from left to right): समोत्पाद वक्र का ढाल ऋणात्मक होता है तथा यह एक साधन का दूसरे साधन के लिये तकनीकी स्थानापन्नता (Technical Substitutability) पर निर्भर करता है। इसका कारण यह है कि जब हम उत्पादन के एक साधन की इकाइयाँ बढ़ाते हैं तो समान उत्पादन बनाये रखने के लिये दूसरे साधन की इकाइयाँ घटानी पड़ती हैं।

(2) समोत्पाद वक्र अनेक हो सकते हैं तथा ऊँचा समोत्पाद वक्र ऊँचा उत्पादन स्तर बतलाता है। (There can be many isoquants and upper isoquant represents higher level of output): दो  आदान साधनों के अनेक समोत्पाद वक्र हो सकते हैं तथा प्रत्येक वक्र एक पृथक उत्पादन स्तर के संयोगों को दर्शाता है। प्रत्येक बायें से दायें वाला वक्र उत्पादन के उच्च स्तर को दर्शाता है। चित्र 2.6 में IQ1, IQ, तथा IQ. तीन समोत्पाद वक्र दर्शाये गये हैं। IQ. वक्र का उत्पादन स्तर IQ, वक्र से ऊँचा है तथा IQ, वक्र का उत्पादन स्तर IQ, वक्र से भी श्रम अधिक ऊँचा है।

(3) समोत्पाद वक्र मूल बिन्दु की ओर उन्नतोदर होते हैं  (Isoquants are convex to the origin) : समोत्पाद वक्र के मूल बिन्दु की ओर उन्नतोदर का आशय यह है कि जब उत्पादक एक समोत्पाद वक्र रेखा पर बायें से दायें नीचे की ओर चलता है तो वह श्रम साधन (X) का। प्रत्येक इकाई को पूँजी साधन (Y) की घटती हुई मात्रा से प्रतिस्थापित करता है। वस्तुतः इस। रेखा का उन्नतोदर स्वरूप ‘घटती हुई सीमान्त तकनीकी प्रतिस्थापन दर’ को व्यक्त करता है।।

समोत्पाद वक्र की उन्नतोदरता (Convexity) की मात्रा तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमान्त दर में परिवर्तन की दर पर निर्भर करती है; जितनी तेजी से इस दर में गिरावट आती. है समोत्पाद वक्र की उन्नतोदरता उतनी ही अधिक होगी।

(4) समोत्पाद वक्र एक दूसरे को स्पर्श या काटते नहीं (Isoquants never touch or intersect each other) : दो साधनों के अनेक समोत्पाद वक्र हो सकते हैं। प्रत्येक वक्र उत्पादन मात्रा के एक निश्चित स्तर को बतलाता है। अतः । विभिन्न समोत्पाद वक्रों पर उत्पादन के स्तर भी विभिन्न होंगे और वे एक दूसरे को स्पर्श या काट नहीं सकते। यदि एक वक्र किसी दूसरे वक्र को काटता है (जैसा कि चित्र 2.7 में दिखलाया गया है) या स्पर्श करता है, तो इसका आशय यह हुआ कि उत्पादक को दोनों वक्रों के K बिन्दु पर समान उत्पादन प्राप्त होता है किन्तु यह सम्भव नहीं क्योंकि श्रम दो समोत्पाद वक्र उत्पादन के दो विभिन्न स्तरों को बतलाते हैं।

Isoquants ISO Product Curve

(5) एक समोत्पाद वक्र क्षैतिजीय नहीं हो सकता (An isoquant curve can not be horizontal) : समोत्पाद वक्र क्षैतिजीय तभी हो सकता है जबकि पूँजी साधन (y) की मात्रा को स्थिर रखते हुए श्रम साधन (x) की मात्रा बढ़ाने पर भी उत्पादन की मात्रा पूर्ववत् ही रहे। चित्र 2.8 में A और B दो संयोग दर्शाये गये हैं। A संयोग पर पूँजी की OK मात्रा तथा श्रम की OL मात्रा के लगाने पर एक निश्चित मात्रा में उत्पादन प्राप्त हो रहा है जबकि B संयोग पर पूँजी की मात्रा वही OK है किन्तु श्रम की मात्रा OL से बढ़ाकर OL कर दी गई है। इस संयोग पर भी उत्पादन की वही मात्रा प्राप्त होने का आशय यह हुआ कि श्रम साधन की मात्रा के बढ़ाने का उत्पादन पर कोई प्रभाव नहीं। किन्तु यह सम्भव नहीं। यदि ऐसा होता है तो कोई भी विवेकशील उत्पादक श्रम की मात्रा नहीं बढ़ायेगा। अतः स्पष्ट है कि समोत्पाद वक्र क्षैतिजीय नहीं हो सकता।

(6) समोत्पाद वक्र लम्बवत् नहीं हो सकता (An isoquant can not be vertical) : एक समोत्पाद वक्र x-अक्ष पर लम्बवत् भी नहीं हो सकता, जैसा कि चित्र 2.9 में दिखाया गया है। समोत्णद वक्र के लम्बवत होने का अभिप्राय यह होगा कि श्रम की मात्रा को स्थिर रखते हुए पूँजी की मात्रा बढ़ाते जाने पर भी उत्पादन मात्रा पूर्ववत् ही रहे, किन्तु ऐसा सम्भव नहीं। वस्तुतः जब उत्पादक श्रम की मात्रा को स्थिर रखते हुए पूँजी की मात्रा OK से बढ़ाकर OK, करता है तो पहले से अधिक उत्पादन प्राप्त होगा जोकि एक भिन्न समोत्पाद वक्र को जन्म देगा। अतः B संयोग IQ वक्र पर नहीं हो सकता।

(7) समोत्पाद वक्र की आकृति धनात्मक नहीं हो सकती (An isoquant can not have an upward slope) : चित्र 2.10 में IQ वक्र को धनात्मक दर्शाया गया है किन्तु ऐसा सम्भव नहीं पूँजी की मात्रा तथा OL श्रम की मात्रा लगाकर A संयोग प्राप्त किया गया है। इसी वक्र पर B संयोग दर्शाया गया है जो कि श्रम और पूँजी की बढ़ी हुई मात्रायें क्रमशः OL, तथा OK, के लगाने पर प्राप्त हुआ है। वास्तव में श्रम और पूँजी की अधिक मात्रायें लगाने पर पहले से अधिक उत्पादन प्राप्त होगा और वह एक पृथक समोत्पाद वक पर दर्शाया जायेगा। अतः स्पष्ट है कि समोत्पाद वक्र की आकृति चित्र 2.10 की तरह नहीं हो सकती। किन्तु यदि एक साधन की सीमान्त उत्पादकता ऋणात्मक हो जाती है तो समोत्पाद वक्र पीछे की ओर झुक सकता है और इसका ढाल धनात्मक हो सकता है। चित्र 2.11 में IQ वक्र के AD और BC भागों को देखिये।

(8) समोत्पाद वक्र रिज रेखाओं को अंकित करने में सहायक होते हैं (Isoquants are helpful in delineating ridge lines) : समोत्पाद वक्र की एक विशेषता यह भी है कि ये वक्र व्यावसायिक फर्म के लिये उपयुक्त उत्पादन क्षेत्र का सीमांकन करते हैं अर्थात् ये वक्र एक फर्म को बताते हैं कि उसे किन सीमाओं के बीच उत्पादन करना लाभदायक होगा। समोत्पाद वक्रों के वे भाग जो रिज रेखाओं के अन्तर्गत आते हैं, लाभदायक उत्पादन के लिये उपयुक्त होते हैं।

उत्पादन का आर्थिक क्षेत्र (Economic Region of Production)

समोत्पाद वक्र विश्लेषण एक उत्पादक को उसके उत्पादन का आर्थिक क्षेत्र ज्ञात करने में सहायक है। समोत्पाद वक्र सामान्यतया ऋणात्मक ढाल वाले तथा मूल बिन्दु की ओर उन्नतोदर होते हैं- किन्तु यदि उत्पादक आवश्यकता से अधिक श्रम अथवा पूँजी अथवा दोनों साधनों का प्रयोग करता है तो ये वक्र अण्डाकार (पीछे की ओर मोड़ लेते हए) अर्थात धनात्मक ढाल वाले। भाग सहित हो जाते हैं, जैसा कि चित्र 2.12 में दर्शाया गया है। अण्डाकार आकृति वाले या। पीछे की ओर झुके हुए समोत्पाद वक्र का आशय यह है कि एक निश्चित बिन्दु (साधन का। शून्य सीमान्त उत्पादकता वाला बिन्दु) के बाद किसी एक साधन की अतिरिक्त इकाइया लगाये जाने पर पूर्व स्तर का उत्पादन प्राप्त करने के लिये दूसरे साधन की भी अतिरिक्त इकाइयों के लगाने की आवश्यकता होगी। ऐसी स्थिति में एक विवेकशील उत्पादक समोत्पाद वक्रों के उन्हीं क्षेत्रों में उत्पादन निश्चित करेगा जो कि मूल बिन्दु की और उन्नतोदर या रिज रेखाओं के बीच स्थित हों। इस कथन को नीचे चित्र सं02.12 की सहायता से स्पष्ट किया गया है।

चित्र में धनात्मक ढाल वाले भाग सहित IQ. yA IO, तथा IQ तीन समोत्पाद वक्र प्रदर्शित किये गये हैं। चित्र में IQवक्र का A B भाग ऋणात्मक ढाल वाला है तथा A और B. बिन्दुओं के बाद वाले भाग धनात्मक ढाल वाले (या तो पीछे की ओर मुड़ा हुआ या ऊपर की ओर चढ़ा हुआ) हैं।

A, बिन्दु पर पूँजी की सीमान्त उत्पादकता शून्य हो जाती है। वस्तुतः यह श्रम के पूँजी से श्रम प्रतिस्थापन की अधिकतम सीमा है। इस बिन्द्र के बाद समोत्पाद वक्र लम्बवत् (Vertical) हो जाता है। अतः यदि श्रम की मात्रा को स्थिर रखकर केवल पूँजी की मात्रा बढ़ायी जाती है तो उत्पादन में कोई वृद्धि नहीं होती है अर्थात् यहाँ पर पूँजी की ये अतिरिक्त इकाइयाँ फालतू या व्यर्थ ही रहेंगी। इसी तरह चित्र में IQ, वक्र पर A2 बिन्दु तथा IQ3 वक्र पर A, बिन्दु भी ऐसे बिन्दु हैं जहाँ पर पूँजी की सीमान्त उत्पादकता शून्य है।

इसी तरह समोत्पाद मानचित्र में BI, B, तथा B बिन्दुओं पर श्रम की सीमान्त उत्पादकता शून्य है तथा इन बिन्दुओं के बाद समोत्पाद वक्र क्षैतिज (अर्थात x-अक्ष के समानान्तर) हो जाते हैं। दूसरे शब्दों में, इन बिन्दुओं के बाद पूँजी की मात्रा को स्थिर रखते हुए श्रम की इकाइयाँ बढ़ाने पर उत्पादन में कोई वृद्धि नहीं होती। दूसरे शब्दों में, ये बिन्दु पूँजी का श्रम से प्रतिस्थापन की अधिकतम सीमा होते हैं। इन बिन्दुओं के बाद बढ़ाई गयी श्रम की इकाइयाँ व्यर्थ जाती हैं और वे उत्पादन में कोई वृद्धि नहीं कर पाती हैं।

रिज रेखाएँ (Ridge Lines) : समोत्पाद वक्रों के बिन्दुओं के मार्ग, जहाँ पर साधनों की सीमान्त उत्पादकता शून्य है, रिज रेखाएँ बनाते हैं। समोत्पाद मानचित्र में दो रिज रेखाएँ होती हैं – पूँजी रिज रेखा और श्रम रिज रेखा। रिज रेखाएँ उत्पादन के आर्थिक क्षेत्र की सीमायें होती हैं। समोत्पाद मानचित्र पर A1, A, तथा A, बिन्दुओं को मिलाने से बनी OA रेखा पूँजी रिज रेखा (Capital Ridge Line) अथवा ऊपरी रिज रेखा (Upper Ridge Line) कहलाती है। इस रेखा पर पूँजी की सीमान्तं उत्पादकता शून्य होती है। इसी तरह BI, B, तथा B3 बिन्दुओं के मिलाने से बनी OB रेखा श्रम रिज रेखा (Labour Ridge Line) या निम्न रिज रेखा (Lower Ridge Line) कहलाती है। इस रेखा पर श्रम की सीमान्त उत्पादकता शून्य होती है।

दोनों रिज रेखाओं OA और OB के बीच के क्षेत्र में ही उत्पादन तकनीकें तकनीकी रूप से कशल होती हैं। इस क्षेत्र को उत्पादन का आर्थिक क्षेत्र (Viable or Economic Region of Production) अथवा उत्पादन का तकनीकी रूप से कुशल क्षेत्र (Technically efficient Main) कहते हैं। इस क्षेत्र में साधनों की सीमान्त उत्पादकता धनात्मक किन्त घटती हई होती। है। उत्पादन के इस कुशल क्षेत्र में समोत्पाद वक्त्र सामान्य आकार वाले अर्थात मूल बिन्दु की और उन्नतोदर होते हैं। एक विवेकशील उत्पादक अपने लाभों को अधिकतम करने के लिये सील में ही उत्पादन करेगा। इस प्रकार सभी न्यूनतम लागत वाले संयोग और विस्तार पथ निश्चित ही इन्हीं दोनों रिज रेखाओं के बीच में ही पड़ेंगे। इन रिज रेखाओं पर तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमान्त दर (MRTS) स्थिर होती है।

रिज रेखाओं के बाहर साधनों की सीमान्त उत्पादकता ऋणात्मक होती है तथा उत्पादन की प्रणालियाँ अकुशल होती हैं क्योंकि पूर्ववत् उत्पादन स्तर के लिये दोनों साधनों की अधिक मात्राओं की आवश्यकता होती है। एक साधन की सीमान्त उत्पादकता के शून्य होने के बाद दूसरे साधन की मात्रा को स्थिर रखते हुए उस साधन की मात्रा बढ़ाई जाती है तो उस साधन की सीमान्त उत्पादकता ऋणात्मक हो जाती है, अतः उत्पादन स्तर गिर जाता है। अतः कोई भी विवेकशील उत्पादक दोनों रिज रेखाओं के बाहर साधन संयोग का चयन नहीं करेगा। दूसरे शब्दों में, रिज रेखाओं के बीच का क्षेत्र ही एक विवेकशील उत्पादक का क्रियाशीलता का क्षेत्र होता है।

Isoquants ISO Product Curve

अनुकूलतम साधन संयोग (Optimum Factor Combination)

अपनी फर्म के लाभ अधिकतम करने वाले एक उत्पादक का उद्देश्य अनुकूलतम साधन संयोग ज्ञात करना होता है। अनुकूलतम साधन संयोग का आशय श्रम और पूँजी साधनों के उस अनुपात से है जिस पर एक दिये हुए स्तर के उत्पादन की कुल लागत न्यूनतम हो अथवा जो दिये हुए कुल व्यय से उत्पादन को अधिकतम करता है। यह दो बातों पर निर्भर करता है

1 उत्पादन फलन अर्थात् उत्पादन की तकनीकी कुशलता या सम्भावनाएँ – इसका आशय एक समान स्तर के उत्पादन के लिये विभिन्न साधन संयोग ज्ञात करना है। इसे समोत्पाद वक्र द्वारा व्यक्त किया जाता है।

2. लागत फलन अर्थात् उत्पादन के लिये प्रयुक्त साधनों की कीमत – उत्पादन में प्रयुक्त साधन संयोगों की आर्थिक कुशलता इनकी कीमत से प्रभावित होती है। इसे सम-लागत रेखा द्वारा व्यक्त किया जाता है।

इस प्रकार अनुकूलतम साधन संयोग ज्ञात करने के लिये निम्नलिखित दो उपकरणों की आवश्यकता होती है

1 समोत्पाद मानचित्र (Isoquant Map)

2. सम-लागत रेखा (Iso-Cost Line)

समोत्पाद मानचित्र वस्तु की विभिन्न मात्राओं का उत्पादन करने हेतु उत्पादक के समक्ष विभिन्न तकनीकी सम्भावनाओं का विस्तृत ब्यौरा प्रस्तुत करता है तथा प्रत्येक स्तर के उत्पादन के लिये विभिन्न साधन संयोगों को प्रदर्शित करता है। इसका विस्तृत विवेचन पूर्व अध्याय में। किया जा चुका है। अतः यहाँ अब हम केवल सम-लागत रेखा की रचना का विवेचन करेंगे।

समलागत रेखा (Iso-Cost Line)

सम-लागत रेखा दो साधनों (श्रम और पूँजी) के उन विभिन्न संयोगों को व्यक्त करती है जिन्हें फर्म एक दी हुई कुल व्यय राशि से दी हुई कीमतों पर क्रय कर सकती है। इसे साधन कीमत रेखा (Factor Price Line), कुल व्यय रेखा (Outlay Line), व्यय परिधि रेखा (Outlay Contour), बजट संयमन रेखा (Budget Constraint Line) आदि नामों से भी जाना जाता है। एक काल्पनिक उदाहरण की सहायता से इस रेखा की रचना चित्र सं० 2.13 में दोयी गई है। माना कि एक उत्पादक के पास 200 रु० हैं जिन्हें. वह श्रम और पूंजी पर व्यय करके उत्पादन करना चाहता है। श्रम दर 10 रु० प्रति इकाई तथा पूँजी दर 5 रु० प्रति इकाई है। यदि वह अपनी पूरी धन-राशि केवल श्रम या केवल पूँजी पर व्यय करना 80-B2 चाहता है तो वह श्रम की 200 +10 = 20 इकाइयाँ अथवा पूँजी की 2005 = 40 इकाइयाँ क्रय कर सकता है। चित्र 2.13 में यह क्रमशः A और B बिन्दुओं पर होगा। ASAD-B बिन्दु श्रम की 20 तथा पूँजी की शून्य इकाइयाँ बताता है और B बिन्दु श्रम की शून्य और पूँजी की 40 इकाइयाँ बताता है। बिन्दु A और बिन्दु B को मिला देने पर हमें AB सम-लागत रेखा प्राप्त हो जाती है। यह AB रेखा श्रम और पूँजी की अधिकतम मात्रा के उन सभी संयोगों को प्रदर्शित करती है जिन्हें उत्पादक दी हुई कीमतों पर 200 रु० की धन राशि से क्रय सकता है। अतः यदि वह कुल व्यय की राशि श्रम तथा पूँजी दोनों पर व्यय करना चाहे तो इसके सभी सम्भव संयोग इसी सम-लागत रेखा पर ही पड़ेंगे।

समलागत रेखा का ढाल दोनों साधनों के मूल्य अनुपात (श्रम का प्रति इकाई मूल्य : पूँजी का प्रति इकाई मूल्य अथवा P./P) के बराबर होता है। इस उदाहरण में यह 10 +5 = 2 है। इस प्रकार सम-लागत रेखा दो बातें व्यक्त करती है – (i) दोनों साधनों की कीमतें तथा (ii) फर्म द्वारा किया जाने वाला कुल व्यय।

यदि साधनों पर व्यय की जाने वाली कुल व्यय की राशि में वृद्धि होती है अथवा दोनों साधनों के मूल्य समान अनुपात में घटते हैं तो नई समलागत रेखा मूल समलागत रेखा के समानान्तर दायीं ओर खिसक जायेगी तथा इसके विपरीत स्थिति में नई सम-लागत रेखा बायीं ओर खिसकेगी। उदाहरण के लिये वर्तमान उदाहरण में कुल व्यय राशि 200 रु० से बढ़ाकर 400 रु० कर दी जाती है, किन्तु दोनों साधनों की प्रति इकाई कीमत वही रहती है तो दोनों साधनों की दोगुनी इकाइयाँ अर्थात् श्रम की 40 तथा पूँजी की 80 इकाइयाँ खरीदी जायेंगी और चित्र में नई सम-लागत रेखा A, B, होगी।

यदि दोनों साधनों में से किसी एक साधन की A कीमत में परिवर्तन होता है तो सम-लागत रेखा के ढाल में समानुपातिक परिवर्तन होगा और वे एक दूसरे के समान्तर नहीं रह पायेंगी। उदाहरण के के लिये कुल व्यय की राशि 200 रु० है। श्रम की कीमत 10 रु० प्रति इकाई से गिरकर 8 रु० प्रति इकाई हो जाती है जबकि पूँजी की कीमत वही 5 रु० प्रति इकाई रहती है तो बिन्दु B स्थिर रहेगा तथा बिन्दु A आगे खिसकर बिन्दु C पर 25 इकाई पर होगा तथा नई सम-लागत रेखा BC होगी।

उत्पादक का साम्य (Producer’s Equilibrium)

उत्पादक का साम्य साधनों के न्यूनतम लागत संयोग को प्रदर्शित करता है। इसकी दो शर्ते हैं – (1) साम्य बिन्दु पर साधन लागत न्यूनतम हो और (2) साम्य बिन्दु पर तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमान्त दर (MRTS) और कीमत अनुपात एक दूसरे के बराबर हों।।

(1) साधन संयोग की लागत न्यूनतम हो (Least cost input combination) : एक उत्पादक का उद्देश्य साधनों के न्यूनतम लागत साधन-संयोग को प्राप्त करना होता है। साधन संयोग की लागत उस बिन्दु पर न्यूनतम होती है जहाँ सम-लागत रेखा समोत्पाद वक्र पर एक स्पर्श रेखा है। इसकी व्याख्या दो तरीके से की जाती है.

(i) लागत को न्यूनतम करना जबकि उत्पादन की मात्रा दी हुई है (Minimizing cost when output level is given) : उत्पादन की दी हुई मात्रा के लिये एक उत्पादक का साम्य उस बिन्दु पर होता है जहाँ सम-लागत रेखा समोत्पाद वक्र पर स्पर्श रेखा हो (Iso-cost line is tangent to the isoquant)। इसे चित्र 2.15 की सहायता से स्पष्ट किया गया है। माना कि फर्म को 100 इकाइयों का उत्पादन करना है तथा इस उत्पादन के लिये फर्म का समोत्पाद वक्र IQ है। जैसाकि चित्र से स्पष्ट है कि फर्म इस उत्पादन को जैसे किसी भी साधन संयोग से प्राप्त कर सकती है क्योंकि ये सभी बिन्दु IQ समोत्पाद वक्र 0 M BB पर स्थित हैं। किन्तु एक फर्म उस साधन संयोग काश्रम चयन करेगी जिस पर लागत न्यूनतम हो तथा यह उस बिन्दु पर होगा जिस पर सम-लागत रेखा समोत्पाद वक्र को स्पर्श करती है। ऐसा AB सम-लागत रेखा के E बिन्दु पर होता है। समोत्पाद वक्र पर स्थित अन्य बिन्दु, जैसे P और R ऊँची सम-लागत रेखा A,B, पर स्थित हैं। अतः इन साधन संयोगों से 100 इकाइयों की उत्पादन लागत ऊँची होंगी। अतः एक विवेकशील उत्पादक E साम्य बिन्दु के अतिरिक्त किसी अन्य संयोग का चयन नहीं करेगा। अतः E बिन्दु ही साम्य का बिन्दु होगा जिस पर फर्म की पूँजी ON तथा श्रम OM मात्राओं का प्रयोग करके 100 इकाइयों का न्यूनतम लागत पर उत्पादन प्राप्त किया जा सकेगा।

(ii) उत्पादन को अधिकतम करना जब लागतव्यय दिया हुआ हो (Maximizing output when cost outlay is given): यदि उत्पादक का उद्देश्य एक निश्चित धनराशि व्यय करके अधिकतम सम्भव उत्पादन करना है तो उसका साम्य उस बिन्दु पर होता है जहाँ सम-लागत रेखा उच्चतम समोत्पाद वक्र पर एक स्पर्श रेखा हो। इस शर्त को   सहायता से स्पष्ट किया गया है।

चित्र में IQI, IQ, तथा IQ: तीन MB समोत्पाद वक्र हैं जो क्रमशः उत्पादन की उच्चतर मात्राओं को व्यक्त कर रहे हैं। फर्म की दी हुई सम-लागत रेखा AB है। अतः फर्म का साम्य E बिन्दु पर होगा क्यांकि व्यावसायिक अर्थशास्त्र का उच्चतम स्पर्श बिन्द् IQ, समोत्पाद वक्र पर है। इस संयोग से प्राप्त होने वाला उत्पादन और R संयोगों से अधिक है क्योंकि ये दोनों संयोग एक नीचे समोत्पाद वक्र IO, पर स्थित हैं। अतः एक विवेकशील उत्पादक AB लागत व्यय से P तथा R बिन्दुओं पर 100 इकाइयाँ के उत्पादन के स्थान पर E बिन्दु पर 200 इकाइया का उत्पादन करना पसंद करेगा। उत्पादक 10. समोत्पाद वक्र के किसी साधन संयोग पर विचार नहीं कर सकता क्योंकि ऐसा करने के लिये उसके पास पर्याप्त साधन नहीं हैं। अतः E बिन्दु ही उसके साम्य का बिन्दु होगा। यहाँ पर वह ON पूँजी और OM श्रम की मात्राओं से 200 इकाइयों का उत्पादन कर सकेगा

(2) तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमान्त दर = साधनों का कीमत अनुपात (MRTS = Price Ratio of Factors) : साम्य बिन्दु पर उत्पादन की तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमान्त दर और साधनों का कीमत अनुपात एक दूसरे के बराबर होते हैं। किसी बिन्दु पर समोत्पाद वक्र के ढाल से ही उस बिन्दु पर तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमान्त दर का पता लगता है। इसी प्रकार सम-लागत रेखा की ढाल से दोनों साधनों के कीमत अनुपात का पता लगता है। चित्र सं० 2.15 और 2.16 पर P और R बिन्दु साम्य बिन्दु नहीं हो सकते क्योंकि P बिन्दु पर पूँजी के स्थान पर श्रम के तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमान्त दर (अर्थात् समोत्पाद वक्र की ढाल) दोनों साधनों के कीमत अनुपात (अर्थात् सम-लागत वक्र की ढाल) से अधिक है। अतः अपने लाभों को अधिकतम करने के लिये एक फर्म E बिन्दु तक पूँजी का श्रम से प्रतिस्थापन करती जायेगी। चित्र में R बिन्दु पर पूँजी के स्थान पर श्रम की तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमान्त दर दोनों साधनों के कीमत अनुपात से कम है। अतः फर्म श्रम के स्थान पर पूँजी का प्रतिस्थापन करेगी और यह क्रम तब तक चलता रहेगा जब तक कि फर्म E बिन्दु पर नहीं पहुँच जाती है। अतः स्पष्ट है कि साम्य बिन्दु पर MRTS = Factore Price Ratio | चूँकि समोत्पाद वक्र की ढाल दोनों साधनों की सीमान्त भौतिक उत्पादकताओं के अनुपात (Ratio of the Marginal Physical Products of the two Factors) को प्रकट करती है, अतः हम यह भी कह सकते हैं कि साम्य बिन्दु पर साधनों की सीमान्त भौतिक उत्पादकता और साधनों का मूल्यानुपात एक दूसरे के बराबर होते हैं- सूत्र रूप में साम्य बिन्दु पर

Isoquants ISO Product Curve

दोनों साधनों की सीमान्त भौतिक उत्पादकता = दोनों साधनों का कीमत अनुपात

Marginal Physical Products of two factors = Price Ratio of two factors

विस्तार पथ (Expansion Path)

अभी तक हमने अनुकूलतम साधन संयोग का विवेचन उत्पादन के स्थैतिक दृष्टिकोण से किया है किन्तु यह भी सम्भव है कि एक फर्म उत्पादन के साधनों पर अपना व्यय बढ़ाकर उत्पादन के आकार को बढ़ाये। चूँकि फर्म ने अपना कुल व्यय बढ़ा दिया है, अतः बढ़े हुए कुल व्यय को प्रदर्शित करने के लिये एक नयी सम-लागत रेखा बनानी होगी। सम-लागत रेखा का स्वरूप साधन कारकों के सापेक्षिक मूल्य पर निर्भर करेगा। यदि समानान्तर होगी तथा नया अनुकूलतम संयोग उस बिन्दु पर होगा जिस पर नयी सम-लागत रेखा अगले ऊँचे समोत्पाद वक्र को स्पर्श करेगी। इसे रेखा चित्र 2.17 पर दर्शाया गया है।

रेखाचित्र 2.17 पर AB, CD, EF तथा GH चार सम-लागत रेखाएँ हैं जो कि क्रमशः उत्तरोत्तर बढ़ते हुए कुल व्यय के विभिन्न स्तरों को व्यक्त करती हैं। चूँकि हमने दोनों साधनों की कीमतों को स्थिर मान लिया है, इसलिये सभी सम-लागत रेखाएँ एक दूसरे के समानान्तर हैं। E, E, E, तथा E, दोनों साधनों के अनुकूलतम संयोग बिन्दु हैं जोकि इनके सम्बन्धित पमोत्पाद वक्रों की सम-लागत रेखाओं से स्पर्शिता के आधार पर निर्धारित किये गये हैं। E. E, E, और E, न्यूनतम लागत संयोगों को मिला देने से बनी रेखा विस्तार पथ (Expansion Path) कहलाती है। अतः साधनों की कीमतें स्थिर रहने की दशा में उत्पादक के विभिन्न उत्पादन स्तरों को उत्पादित करने वाले न्यूनतम लागत संयोगों का बिन्दु पथ विस्तार पथ कहलाता है। इसे साधनों के कुशल संयोगों का मार्ग (Locus of Efficient Combinations of the Factors) कहा जा सकता है। इसे पैमाने की रेखा (Scale Line) भी कहते हैं क्योंकि यह रेखा यह दर्शाती है कि एक उत्पादक द्वारा उत्पादन का पैमाना बढ़ाये जाने पर वह दोनों साधनों की मात्राओं को कैसे बदलेगा। यह रेखा उन सभी अनुकूलतम संयोगों को प्रदर्शित करती है जिन्हें एक उत्पादक द्वारा उत्पादन का विस्तार करते समय अपनाया जाना चाहिये। विस्तार पथ रेखा एक उत्पादक के लिये बड़े ही व्यावहारिक महत्व की होती है क्योंकि उत्पादन का विस्तार करते समय वह इस पथ का अनुसरण करके निश्चय ही वह उत्पादन लागत को न्यूनतम बना सकता है।

विस्तार पथ की आकृति और ढाल प्रयुक्त साधनों के सापेक्षिक मूल्यों और समोत्पाद वक्रों की आकृति पर निर्भर करते हैं। पैमाने के समान प्रतिफल की दशा में विस्तार पथ मूल बिन्दु से निकली एक सीधी रेखा होगा। विस्तार पथ रेखा पर स्थित प्रत्येक बिन्दु दोनों साधनों के कीमत अनुपात एवं उनकी सीमान्त प्रतिस्थापन दर की समानता को भी प्रकट करता है। दोनों साधनों के पूरक होने पर विस्तार पथ (साधन-कीमत वक्र) बायें से दायें ऊपर उठता हुआ होता है तथा परस्पर स्थानापन्न साधनों का साधन-कीमत वक्र बायें से दायें नीचे गिरता है।

साधन कीमत प्रभाव (Factor Price Effect)

साधन की कीमत में परिवर्तन का उसके उपयोग पर प्रभाव पड़ता है। इससे न्यूनतम लागत साधन संयोग और उत्पादन का स्तर दोनों ही बदल जाते हैं। यदि सभी साधनों की कीमतें एक ही दिशा व एक ही अनुपात में परिवर्तित होती हैं तो उनकी सापेक्षिक कीमतें अप्रभावित रहेंगी किन्तु यदि साधनों की कीमतें विभिन्न दरों से उसी दिशा में अथवा विपरीत दिशा में परिवर्तित होती हैं अथवा केवल एक ही साधन की कीमतों में परिवर्तन आता है तथा दूसरे साधन की कीमत स्थिर रहती है तो साधनों की सापेक्षिक कीमतें बदल जाती हैं जिसके फलस्वरूप साधन संयोग और उत्पादन का स्तर दोनों ही बदल जाते हैं। साधनों की सापेक्षिक कीमतों में परिवर्तन के फलस्वरूप एक साधन दूसरे साधन की तुलना में सस्ता हो जाता है। ऐसी स्थिति में अपनी उत्पादन लागत कम करने के लिये उत्पादक महँगे साधन का सस्ते साधन। से प्रतिस्थापन करता है। इसे चित्र.2.18 द्वारा समझाया गया है।

उपर्युक्त चित्र में दिये हुए कुल व्यय और श्रम तथा पूँजी साधनों की दी गई कीमतों के आधार पर बनी रेखा AB सम-लागत रेखा है। यह रेखा IQ, समोत्पाद वक्र को E बिन्दु पर स्पर्श करती है। वस्तुतः E बिन्दु दोनों साधनों के अनुकूलतम संयोग (OK + OL) को व्यक्त करता है। अब मान लीजिए कि श्रमिकों की मजदूरी घट जाती है यद्यपि पूँजी की कीमत एवं कुल व्यय की राशि पूर्व स्तर पर ही रहती हैं। श्रमिकों की मजदूरी में कमी आने के कारण पूर्व व्यय राशि से अधिक श्रमिक नियुक्त किये जा सकते हैं। इससे सम-लागत रेखा दायीं ओर खिसककर AC हो जाती है। AC रेखा ऊँचे समोत्पाद वक्र IQ, को E, बिन्दु पर स्पर्श करती है। इस बिन्दु पर साधन संयोग OK) + OL, है। मजदूरी दर में गिरावट के कारण E, बिन्दु पर उत्पादक OL श्रमिकों की जगह OL, श्रमिकों का प्रयोग करता है तथा पूँजी की मात्रा OK से घटकर OK, हो जाती है। इस प्रकार साधन संयोग में यह परिवर्तन अर्थात् KK) पूँजी मात्रा का LL, श्रमिकों से प्रतिस्थापन कीमत साधन प्रभाव (Price Factor Effect) या केवल कीमत प्रभाव कहलाता है। मान लीजिये कि मजदूरी-दर में और गिरावट के कारण सम-लागत रेखा दायीं ओर खिसककर AD हो जाती है जो ऊँचे समोत्पाद वक्र IQ, को E. बिन्दु पर स्पर्श करती है। इस बिन्दु पर साधन संयोग OK, + OL, है। इस प्रकार मजदूरी दरों में गिरावट पर एक विवेकशील उत्पादक न्यूनतम लागत साधन संयोग के लिये पूँजी का श्रम से प्रतिस्थापन करता है। E, E, और E, बिन्दुओं को जोड़ देने बना वक्र कीमत-साधन वक कहलाता है। साधनों की कीमतों के सापेक्षिक परिवर्तन के आधार पर कीमत-साधन वक्र की आकति एवं ढाल अनेक प्रकार के हो सकते हैं। यदि केवल श्रमिकों की दर में कमी आती है तो यह वक्र बायें से दायें झुकता हुआ होगा और यदि पूँजी साधन की कीमत में गिरावट आती है तो श्रमिकों का पूंजी से प्रतिस्थापन किया जायेगा तथा यह वक्र बायें से दायें ऊपर की ओर उठता हुआ होगा।

कीमत साधन प्रभाव का विभाजन (Division of Price Factor Effect)

कीमत प्रभाव दो प्रभावों का सम्मिश्रण है – (1) विस्तार प्रभाव (Expansion Effect) अथवा बजट प्रभाव (Budget Effect) अथवा संसाधन प्रभाव (Resouces Effect) अथवा उत्पादन प्रभाव (Output Effect) (2) तकनीकी प्रतिस्थापन प्रभाव (Technical Substitution Effect) अथवा केवल प्रतिस्थापन प्रभाव।

किसी एक साधन या दोनों साधनों की कीमतों में कमी के कारण पूर्व कुल व्यय राशि से अधिक उत्पादन विस्तार प्रभाव कहलाता है जबकि साधनों की सापेक्षित कीमतों के परिवर्तन के कारण साधनों की माँग के परिवर्तन को तकनीकी प्रतिस्थापन प्रभाव कहा जाता है।

उपर्युक्त चित्र 2.19 में AB सम-लागत रेखा IQ, समोत्पाद वक्र पर एक स्पर्श रेखा है तथा अनुकूलतम साधन संयोग E बिन्दु पर है। मान लीजिए E बिन्दु पर साधन संयोग OK + EL है। श्रम की कीमत में गिरावट के कारण नयी सम-लागत रेखा AC है जो नये IQ2 समोत्पाद वक्र को E, बिन्दु पर स्पर्श करती है। इस बिन्दु पर फर्म का नया अनुकूलतम साधन-संयोग OK, + OL, है। अतः श्रम की कीमत में गिरावट के कारण फर्म अपनी पूँजी में KK, की कमी करती है तथा श्रम LL, से बढ़ाती है। साधन संयोग का यह परिवर्तन मूल्य प्रभाव है।

श्रम की कीमत में गिरावट के परिणामस्वरूप फर्म के कुल व्यय का वास्तविक मूल्य बढ़ जाता है, यद्यपि उसका मौद्रिक मूल्य वही रहता है। कुल व्यय के वास्तविक मूल्य के बढ़ जाने से फर्म पूर्व व्यय राशि से अधिक उत्पादन प्राप्त करती है। कुल व्यय के वास्तविक मूल्य में हुई। वृद्वि को चित्र में नयी सम-लागत रेखा A, B द्वारा प्रदर्शित किया गया है। नयी सम-लागत रेखा समोत्पाद वक्र IQ, को E, बिन्दु पर स्पर्श करती है। दूसरे शब्दों में, कुल व्यय के वास्तविक मूल्य में हुई वृद्धि के फलस्वरूप फर्म विस्तार-पथ वक्र के सहारे E से चलकर E पर पहुँच जाती है। E से E तक का हुआ स्थानान्तरण विस्तार प्रभाव को व्यक्त करता है। E, बिन्दु पर साधन-संयोग OK, + OL, है। दूसरे शब्दों में, इस बिन्द पर उत्पादन के लिये। फर्म श्रम की इकाइयों में LL, तथा पूँजी की इकाइयों में KK, की वृद्धि करती हा पु फर्म का अन्तिम सन्तुलन बिन्दु नहीं हो सकता क्योंकि श्रम के सस्ता हो जाने के कारणृ उत्पादक पूँजी का श्रम से अधिकाधिक प्रतिस्थापन करेगा और वह IQ, वक्र के सहारे E, बिन्द से हटकर E, बिन्दु पर पहुँच जायेगा। E से E का विवर्तन (shifting) तकनीकी प्रतिस्थापन प्रभाव को व्यक्त करता है। E, बिन्दु का साधन संयोग OK, + OL, है। अतः स्पष्ट है कि श्रम के सस्ता होने के कारण फर्म श्रम इकाइयों में LL, की वृद्धि करती है तथा पूँजी की इकाइयों में KK, की कमी लाती है।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि श्रम की कीमत में गिरावट के कारण पूँजी के प्रयोग में KK, मात्रा में कमी का प्रतिस्थापन श्रम की LL, मात्रा की वृद्धि से हुआ है। संतुलन बिन्दः । का विर्वतन E से E तक हुआ है। इस E से E तक के विवर्तन में दो प्रभाव सम्मिलित हैं(i) विस्तार प्रभाव अर्थात् E से E, तक का विवर्तन जो कि LL, के बराबर है तथा (2) तकनीकी प्रतिस्थापन प्रभाव अर्थात् E से E तक का विवर्तन जो कि LL के बराबर है।

Isoquants ISO Product Curve

साधन की प्रतिस्थापन लोच (Elasticity of Factor Substitution)

यह विचार प्रो० जे० आर० हिक्स की देन है। यह साधनों की सापेक्षिक कीमत में परिवर्तन पर एक साधन का दूसरे साधन से प्रतिस्थापन का माप है। यह साधनों का तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमान्त दर तथा उनकी सापेक्षिक कीमतों में परिवर्तन पर निर्भर करती है।

उत्पादन मात्रा को पूर्ववत् रखते हुए तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमान्त दर में आनुपातिक परिवर्तन पर साधन अनुपातों में आनुपातिक परिर्वतन साधन की प्रतिस्थापन लोच कहलाती है। इसके मापन के लिये निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है

Elasticity of Factor Substitution      Proportionate change factor inputs

Proportionate change in marginal rate of technical substitution of factors

चूँकि तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमान्त दर में परिवर्तन की गणना कठिन होती है, अतः व्यवहार में साधन की प्रतिस्थापन लोच की माप साधन मूल्यों में परिवर्तन के अनुपात से की जाती है। सूत्र रूप में

Elasticity of Factor Substitution Proportionate change in factor ratio

Proportionate change in the ratio of factor prices

साधन की प्रतिस्थापन लोच सदैव ही धनात्मक होती है। यदि साधनों की तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमान्त दर धीरे-धीरे कम होती है तो दो साधनों के बीच प्रतिस्थापन लोच । ऊँची होगी और यदि यह दर तेजी से गिरती है तो प्रतिस्थापन लोच नीची होगी।

उत्पत्ति के साधनों के पूर्ण स्थानापन्न होने पर साधन की प्रतिस्थापन लोच अनन्त होगी। और साधनों के पूर्ण पूरक होने पर यह शून्य होगी।

समोत्पाद वक्र की वक्रता देखकर भी साधन की प्रतिस्थापन लोच का अनुमान लगाया जा सकता है। समोत्पाद वक्र की उत्तलता (Convexity) जितना अधिक होगी, प्रतिस्थापन लोच उतनी ही कम होगी तथा समोत्पाद वक्र जितना अधिक चपटा (Flatter) होगा उसकी । प्रतिस्थापन लोच उतनी ही अधिक होगी।

Isoquants ISO Product Curve

सैद्धान्तिक प्रश्न

(Theoretical Questions)

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

(Long Answer Questions)

1 समोत्पाद वक्र की परिभाषा और व्याख्या दीजिये। समोत्पाद वक्रों की विशेषताएँ क्या हैं ?

Define and explain isoquants. What are the properties of isoquants?

2. समोत्पाद वक्रों की व्याख्या दीजिये तथा बताइये कि ये वक्र उदासीनता वक्रों से किस प्रकार भिन्न हैं ?

Explain isoquants and mention how these are different from indifference curves?

3. तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमान्त दर क्या है ? इसका सामान्य स्वरूप क्या है ?

What is the marginal rate of technical substitution? What is its general form?

4. तकनीकी प्रतिस्थापन की हासमान सीमान्त दर के सिद्धान्त की व्याख्या करो। इसके प्रमुख अपवाद क्या हैं ?

Explain the principle of diminishing the marginal rate of technical substitution. What are its main exceptions?

5. रिज रेखाएँ क्या हैं ? उत्पादन का आर्थिक क्षेत्र कैसे निर्धारित किया जाता है ?

What are ridge lines? How economic region of production is determined?

6. समोत्पाद वक्र से आप क्या समझते हैं ? एक समोत्पाद वक्र का ढाल क्या कहलाता है?

What do you mean by an iso-product curve? What does the slope of an iso-product curve indicate?

7. समोत्पाद वक्र क्या हैं ? समोत्पाद वक्रों की सहायता से उत्पादक के सन्तुलन की धारणा को समझाइये।

What are isoquants? Explain the concept of producer’s equilibrium with the use of isoquants.

8. अनुकूलतम साधन संयोग की परिभाषा दीजिये। साधनों के न्यूनतम लागत संयोग के आधार क्या हैं ? रेखाचित्र से समझाइये।

Define optimum input combination. What are the criteria for the least cost combination of inputs ? Explain graphically.

9. साधनों के न्यूनतम लागत संयोग की क्या शर्ते हैं ? सम-लागत रेखाओं और समोत्पाद वक्रों की सहायता से उत्पादन के अधिकतमीकरण का उदाहरण दीजिये।

What are the conditions for the least cost combination of inputs ? Illustrate the maximization of output with the help of iso-cost lines and isoquants.

10. साधन की कीमतों में परिवर्तन का सम-लागत रेखा पर प्रभाव दिखलाइये। यदि केवल एक साधन की कीमत घटती है तो इससे साधनों का अनुकूलतमीकरण किस प्रकार प्रभावित होता है ?

Show the effect of change in input prices on the iso-cost line. How is the optimization of inputs affected if the price of only one input decreases?

11. एक साधन के मूल्य में परिवर्तन का प्रतिस्थापन प्रभाव क्या है ? एक साधन के मूल्य में परिवर्तन के स्थानापन्न और बजट प्रभावों का उदाहरण दीजिये।

What is the substitution effect of change in the price of an input? Illustrate the substitution and budget effects of a change in the price on an input.

12. साधनों के अनुकूलतम संयोगों’ शब्दावली से आप क्या समझते हैं ? समात्पाद विश्लेषण की सहायता से समझाइये।

What do you understand by the term ‘optimum combinations of ___ factors’? Explain with the help of isoquant analysis.

13. एक फर्म का विस्तार पथ क्या है ? रेखाचित्र से समझाइये।

What is expansion path of a firm ? Explain graphically.

14. समोत्पाद वक्रों और तटस्थता वक्रों में अन्तर बताइये।

Distinguish between isoquants and indifference curves.

15. तकनीकी प्रतिस्थापन की घटती सीमान्त दर का क्या कारण है ?

What is the reason of diminishing MRTS?

Isoquants ISO Product Curve

लघु उत्तरीय प्रश्न

(Short Answer Questions)

निम्नलिखित का उत्तर 100 से 120 शब्दों में दीजिये।

Answer the following in 100 to 120 words.

1 समोत्पाद वक्र क्या है ? यह तटस्थता वक्र से किस प्रकार भिन्न है ?

What is isoquant ? How is it different from indifference curve ?

2. तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमान्त दर को समझाइये।

Explain marginal rate of technical substitution.

3. तकनीकी प्रतिस्थापन के हासमान सीमान्त दर के नियम के अपवाद क्या हैं ?

What are the exceptions to the law of diminishing MRTS?

4. समोत्पाद वक्र विश्लेषण की क्या मान्यताएँ हैं?

What are the assumptions of isoquant analysis?

5. उत्पादन का आर्थिक क्षेत्र क्या है?

What is an economic region of production?

6. रिज रेखाएँ क्या हैं ? इनका क्या महत्व है ?

What are ridge lines? What is their importance?

7. अनुकूलतम साधन संयोग क्या है? यह कैसे निर्धारित किया जाता है ?

What is the optimum factor combination? How is it determined?

8. सम-लागत रेखा क्या है? यह कैसे खींची जाती है ?

What is the iso-cost line? How it is drawn?

9. सम-लागत रेखा क्या है? यह क्या व्यक्त करती है ?

What is the iso-cost line? What does it indicate?

10. उत्पादक का साम्य क्या है ? उत्पादक के साम्य की क्या शर्ते हैं ?

What is the producer’s equilibrium? What are the conditions of the producer’s equilibrium?

11. न्यूनतम लागत साधन संयोग क्या है ? रेखाचित्र द्वारा समझाइये।

What is least cost input combination ? Explain graphically.

12. विस्तार पथ क्या है ? एक उत्पादक के लिये इसका क्या महत्व है ?

What is the expansion path? What is its importance to a producer?

13. साधन कीमत प्रभाव क्या है ? एक कीमत साधन वक्र खींचिये।

What is factor price effect ? Draw a price factor curve.

14. साधन कीमत प्रभाव को कसे वीकृत किया जा सकता है?

How can the factor price effect be classified?

15. साधन की प्रतिस्थापन लोच क्या है? यह कैसे मापी जा सकती है?

Jasticity of factor substitution? How can it be measured?

16. साधनों की सापेक्षिक कीमतों में परिवर्तन के प्रतिस्थापन प्रभाव का रेखाचित्रीय उदाहरण दीजिये।

Illustrate graphically the substitution effect of a change in relative prices of inputs.

Isoquants ISO Product Curve

III. अति लघु उत्तरीय प्रश्न

(Very Short Answer Questions):

(अ) निम्नलिखित का एक शब्द या एक पंक्ति में उत्तर दीजिये।

Answer the following in one word or one line.

1 समोत्पाद चक्र दो साधनों के उन सभी सम्भावित संयोगों को बताता है जो कि समान कुल उत्पादन प्रदान करते हैं।” यह परिभाषा किसने दी है ?

“Iso-product curve represents all possible combinations of the two factors that will give the same total product”. Who has given this definition?

2. आर्थिक क्षेत्र की परिभाषा कीजिये।

Define economic region.

3. विस्तार पथ की परिभाषा दीजिये।

Define expansion path.

4. विस्तार पथ का दूसरा नाम क्या है ?

What is the other name of the expansion path?

5. साधन कीमत प्रभाव के दो सम्मिश्रण क्या हैं?

What are the two compounds of factor price effect?

6. दोनों रिज रेखाओं के नाम बताइये।

Name the two ridge lines.

7. समोत्पाद वक्र कब L-आकृति वाला हो सकता है ?

When can an isoquant be L-shaped?

Isoquants ISO Product Curve

8 जब साधन एक दूसरे के पूर्ण स्थानापन्न हों, तो समोत्पाद वक्र की आकति क्या होती है?

What is the shape of isoquant when factors are perfect substitutes of each other.

9. अनुकूलतम साधन संयोग निर्धारित करने के दो उपकरण कौन-कौन से हैं ?

Which are the two tools of determining optimum factor combination?

10. सम-लागत रेखा के दो अन्य नाम बताइये।

Write the other two names of iso-cost curve.

11. सम-लागत रेखा की परिभाषा दीजिये।

Define iso-cost line.

12. एक उत्पादक के साम्य की दो दशायें क्या हैं ?

What are the two conditions of a producer’s equilibrium?

13. साधन कीमत प्रभाव क्या है?

What is the factor price effect?

14. साधन की प्रतिस्थापन लोच के माप का सूत्र लिखिये।

Write formula for measuring the factor substitution.

(Answer : 1. कीरस्टीड, Keirstead, 4. पैमाने की रेखा, Scale line)

Isoquants ISO Product Curve

chetansati

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