BCom 2nd Year Corporate Company Legislation India An Introduction Study material Notes in hindi

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BCom 2nd Year Corporate Company Legislation India An Introduction Study material Notes in hindi

BCom 2nd Year Corporate Company Legislation India An Introduction Study material Notes in hindi : The Companies Act 1956 Company Act 2013 The Main Changes Introduced by the Companies Act 2013 ( Most Important Notes For BCom 2nd Year Examinations )

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BCom 2nd Year Corporate Laws Study Material Notes in Hindi

भारत में कम्पनी अधिनियम-एक परिचय

(Company Legislation in India-An Introduction)

भारत में कम्पनी विधान का मल स्रोत इंग्लैण्ड का कम्पनी अधिनियम ही है। भारत में व्यावसायिक संगठन के कम्पनी प्रारूप को प्रारम्भ करने का श्रेय भी अंग्रेजों को ही प्राप्त है जिन्होंने भारत से व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित करने के उद्देश्य से शाही अधिकार पत्र (Royal Charter) द्वारा ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना की। समय के साथ-साथ कम्पनी संगठनों की संख्या में वृद्धि होने तथा उसमें जटिलताएँ उत्पन्न होने के कारण इनके प्रभावी नियमन एवं नियन्त्रण की आवश्यकता महसूस होने लगी। परिणामस्वरूप इंग्लैण्ड में सन् 1844 में सर्वप्रथम कम्पनियों से सम्बन्धित अधिनियम पारित हुआ जिसमें कम्पनी सम्बन्धी कानून की व्यवस्था की गई। इस अधिनियम को कम्पनी संगठन का आधार स्तम्भ एवं विश्व का प्रथम कम्पनी अधिनियम माना जाता है। भारत में कम्पनी अधिनियम के विकास के प्रमुख चरण निम्नलिखित प्रकार हैं :

(1) संयुक्त पूँजी कम्पनी अधिनियम , 1850-भारत में सन् 1850 में प्रथम संयुक्त पूँजी कम्पनी अधिनियम (Joint Stock Companies Act) बनाया गया जो इंग्लैण्ड के सन् 1844 के कम्पनी अधिनियम से मिलता जुलता था। इसके आधार पर देश में ‘असीमित दायित्व’ वाली कम्पनियों का निर्माण किया जा सकता था। इस अधिनियम की सबसे बड़ी कमी यही थी कि इसमें कम्पनी के ‘सीमित दायित्व’ के तत्व को मान्यता प्रदान नहीं की गई थी।

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(2) संयुक्त पूँजी कम्पनी अधिनियम , 1857–यह अधिनियम बहुत ही महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसमें सर्वप्रथम सीमित दायित्व के सिद्धान्त को मान्यता दी गई। इस अधिनियम के अनुसार भारत में सीमित दायित्व वाली कम्पनियाँ स्थापित की जा सकती थी, परन्तु बैंकिंग और बीमा कम्पनियों को सीमित दायित्व का लाभ नहीं दिया गया था। इस प्रकार अब भारत में सीमित व असीमित दायित्व वाली दोनों प्रकार की कम्पनियाँ खोली जा सकती थीं।

(3) संयुक्त पूँजी कम्पनी अधिनियम, 1860–सन् 1860 में कम्पनी अधिनियम पुन: पास किया गया जिसके अनुसार बैंकिंग तथा बीमा कम्पनियाँ भी सीमित दायित्व वाली कम्पनियाँ हो सकती थीं। यह अधिनियम इंग्लैण्ड के कम्पनी अधिनियम, 1856 पर आधारित था।

समय के साथ-साथ परिस्थितियों में परिवर्तन होने से कम्पनी अधिनियम में भी निरन्तर कुछ नये प्रावधानों की आवश्यकता अनुभव की गई। फलतः सन् 1860 के बाद भी क्रमश: सन् 1866, 1882. 1913 तथा 1956 में एक के बाद एक नया कम्पनी अधिनियम पारित किया गया।

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कम्पनी अधिनियम , 1956

(The Companies Act, 1956)

हमारे देश में कम्पनी अधिनियम, 1956 के निर्माण के प्रयासों का श्रीगणेश सन् 1950 में ही कर दिया गया था जब केन्द्रीय सरकार ने सी० एच० भाभा (C. H. Bhabha) की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था।

भाभा समिति ने अपनी रिपोर्ट मार्च, 1952 में दी। इस समिति की रिपोर्ट के आधार पर ही कम्पनी अधिनियम, 1956 बना है जो 1 अप्रैल, 1956 से लागू हुआ।

यह अधिनियम सम्पूर्ण भारत में लागू था। यद्यपि इस अधिनियम की व्यवस्थाएँ नागालैण्ट व जम्मू-कश्मीर राज्य तथा गोआ, दमन, दीव के केन्द्र शासित प्रदेश (Union Torrit होती अथवा ऐसे अपवादों व संशोधनों (Exceptions and Modifications) के साथ लाग होते हैं जो केन्द्रीय सरकार सरकारी गजट (Official Gazette) में सूचना द्वारा निर्दिष्ट करे।

कम्पनी अधिनियम, 1956 में समय-समय पर अनेक संशोधन किये गये। प्रमुख संशोध 1960 1962, 1965, 1969, 1974, 1977, 1979, 1985, 1988, 1996. 1990 1979, 1985, 1988, 1996, 1999, 2000, 2001.2002 एवं 2006 में किये गये।

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कम्पनी अधिनियम, 2013

(Companies Act, 2013)

लोकसभा द्वारा कम्पनीज बिल, 2012 को 18 दिसम्बर 2012 में पारित कर दिया गया एवं राज्य सभा ने लम्बे समय से प्रतीक्षारत उक्त कम्पनीज बिल (Companies Bill) को 8 अगस्त, 2013 को कम्पनी अधिनियम, 2013 के नाम से पारित कर दिया। इस प्रकार 57 वर्ष पुराने कम्पनी अधिनियम, 1956 के स्थान पर 8 अगस्त, 2013 को पारित कम्पनी अधिनियम, 2013 अस्तित्व में आ गया। कम्पनी अधिनियम, 2013 में कुल 470 धाराएँ (Sections) हैं एवं 7 अनुसूचियाँ (Schedules) तथा 29 अध्याय (chapters) हैं, जबकि कम्पनी अधिनियम, 1956 में 658 धाराएँ थीं। स्पष्ट है कि कम्पनी अधिनियम, 2013 में 188 धाराएँ कम कर दी गई हैं।

कम्पनी अधिनियम, 2013 के मुख्य प्रावधान

1 शीर्षक (Title) [धारा 1(1)] इसे कम्पनी अधिनियम, 2013 कहा जा सकता है।

2. सीमा क्षेत्र (Extent) [धारा 1(2)] यह अधिनियम सम्पूर्ण भारत में लागू होगा।

3. आरम्भ होने की तिथि (Date of Commencement) [धारा 1 (3)]यह धारा तुरन्त लागू हो जायेगी एवं अधिनियम के शेष प्रावधान केन्द्र सरकार द्वारा अधिसूचना जारी कर अधिसूचना की तिथि से लागू किये जा सकेंगे। केन्द्र सरकार विभिन्न प्रावधानों को अलग-अलग तिथि से लागू कर सकती है।

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कम्पनी अधिनियम, 2013 के प्रावधान निम्नलिखित पर लागू होंगे-[धारा 1 (4)]

(i) इस अधिनियम के अन्तर्गत या पिछले किसी कम्पनी कानून के अन्तर्गत निगमित कम्पनियों पर।

(ii) बीमा कम्पनियों पर सिवाय उन प्रावधानों के जो बीमा अधिनियम, 1938 या बीमा नियामक एवं विकास अधिकरण अधिनियम, 1999 के प्रावधानों के विरुद्ध नहीं हैं।

(iii) बैंकिंग कम्पनियों पर सिवाय उन प्रावधानों के जो बैंकिंग नियमन अधिनियम, 1949 के प्रावधानों के विरुद्ध नहीं हैं।

(iv) कम्पनियाँ जो विद्युत उत्पादन एवं वितरण का कार्य कर रही हैं, सिवाय उन प्रावधानों के जो विद्युत अधिनियम, 2003 के प्रावधानों के विरुद्ध नहीं हैं।

(v) अन्य कोई कम्पनी जो विशेष अधिनियम द्वारा शासित होती है, सिवाय उन प्रावधानों के जो उन विशेष अधिनियमों के प्रावधानों के विरुद्ध नहीं हैं।

(vi) ऐसे निगमित निकाय जो तथासमय लागू अधिनियम से निगमित हों, सिवाय उन अपवादों, संशोधनों या रुपान्तरों (Adaptation) के जो अधिसूचना में निर्दिष्ट हों।

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कम्पनी अधिनियम, 2013 द्वारा किये गये महत्वपूर्ण परिवर्तन एक दृष्टि में

(The main changes introduced by the Companies Act, 2013)

1 इस अधिनियम द्वारा एक व्यक्ति कम्पनी (One Person Company, OPC) की धारणा को लागू किया गया है, जिसका अर्थ है ऐसी प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी जिसमें केवल एक ही व्यक्ति सदस्य के रुप में शामिल होगा।

2. इस अधिनियम की प्रमुख विशेषताओं में से एक विशेषता “समान वित्तीय वर्ष” (Uniform financial year) को मान्यता देना है। अन्य शब्दों में, कुछ अपवादों को छोड़कर अब सभी कम्पनियों का वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च होगा। इसके परिणामस्वरुप निश्चित रुप से कम्पनियों को वित्तीय लेखांकन में सुविधा होगी।

3. कम्पनी संशोधन अधिनियम, 2015 की अधिसूचना संख्या 1/6/2015 – CL (V) के अनुसार दिनांक 29.5.2015 से सार्वमुद्रा (Common Seal) की अनिवार्यता समाप्त कर दी गई है।

4. कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 464 के अनुसार 100 से अधिक साझेदारों की संस्था को कम्पनी विधान के अन्तर्गत पंजीकृत या समामेलित कराना अनिवार्य है अन्यथा यह एक अवैधानिक संस्था कहलायेगी जबकि कम्पनी अधिनियम, 1956 के अन्तर्गत किसी संघ या साझेदारी को अवैधानिक संघ की श्रेणी में तभी शामिल किया जाता था जब बैंकिंग व्यवसाय की दशा में 10 तथा अन्य व्यापार की दशा में। 20 से अधिक सदस्य हों।

5 अब निजी कम्पनियों में सदस्यों की अधिकतम संख्या 200 तक होगी जबकि कम्पनी । अधिनियम, 1956 में यह संख्या मात्र 50 तक थी। इस महत्वपूर्ण परिवर्तन के परिणामस्वरुप निजी । कम्पनियों के कार्य क्षेत्र का कहीं ज्यादा विकास तथा विस्तार सम्भव होगा।

6. कम्पनी संशोधन अधिनियम, 2015 की अधिसूचना संख्या 1/6/2015. CLV के अनुसार 29.5.2015 से निजी कम्पनी की प्रदत्त पँजी एक लाख ₹ या इससे अधिक राशि वाले प्रतिबन्ध का हटा दिया गया है।

7. कम्पनी (संशोधन) अधिनियम 2015 की अधिसूचना संख्या 1/6/2015 -CL (V) क अनुसार 29.5.2015 से सार्वजनिक कम्पनी की प्रदत्त पँजी5 लाख ₹ अथवा इससे अधिक राशि वाले प्रतिबन्ध को हटा दिया गया है।

8. पार्षद सीमा नियम के उद्देश्य वाक्य (Object Clause) के तीन भागों (प्रमुख, सहायक एवं अन्य उद्देश्यों) में विभाजन की आवश्यकता को नये कम्पनी अधिनियम 2013 द्वारा समाप्त कर दिया गया। है, तथा अब केवल उन्हीं उद्देश्यों को पार्षद सामानियम के उद्देश्य वाक्य में शामिल करना अनिवार्य है, जिन उद्देश्यों के लिए कम्पनी का समामेलन किया गया है।

9. कम्पनी संशोधन अधिनियम, 2015 की अधिसचना संख्या 1/6/2015-CL (V) के अन्तर्गत 29.5.2015 से ‘व्यापार प्रारम्भ करने का प्रमाण-पत्र’ प्राप्त करने का प्रावधान समाप्त कर दिया गया है। अर्थात् 29.5.2015 से एक कम्पनी समामेलन का प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के उपरान्त ही व्यापार प्रारम्भ कर सकती है।

10. जहाँ जनता से प्रविवरण के माध्यम से एकत्र की गई धनराशि का उपयोग उसी उद्देश्य के लिए सम्पूर्ण रुप से नहीं हो पाया है, वहाँ बची हुई धनराशि का प्रयोग किसी अन्य उद्देश्य की पूर्ति के लिये तभी किया जा सकता है, जब इसके लिए विशेष प्रस्ताव पारित किया जाये, तथा असहमत अंशधारियों को बाहर जाने का अवसर दिया जाए।

11. निजी कम्पनियों द्वारा जारी किये जाने वाले “स्थानापन्न प्रविवरण” (Statement in lieu of prospectus) की आवश्यकता को समाप्त कर दिया गया है। नये कम्पनी अधिनियम, 2013 के अनुसार, “विस्तृत प्रविवरण” (Detailed prospectus) जारी किया जायेगा, तथा कम्पनी अपनी साधारण सभा में अंशधारियों द्वारा विशेष प्रस्ताव पारित किये बिना प्रविवरण में वर्णित अनुबन्ध की शर्तों व उद्देश्यों में परिवर्तन नहीं कर सकेगी।

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12. पिछला कम्पनी अधिनियम, 1956 केवल वित्तीय संस्थाओं, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों तथा अनुसूचित बैंकों को “निधाय प्रविवरण” (Self Prospectus) जारी करने की अनुमति प्रदान करता था, किन्त कम्पनी अधिनियम 2013 ने यह अधिकार SEBI को प्रदान कर दिया है, अब SEBI को यह अधिकार है, कि वह उन कम्पनियों का निर्धारण करे जो रजिस्ट्रार के पास निधाय प्रविवरण जमा करवा सकती हैं।

13. नवीन कम्पनी अधिनियम, 2013 के अनुसार, अंशों के रुप में प्रतिभूतियों को छोडकर कम्पनियाँ सभी प्रकार की प्रतिभूतियों के सम्बन्ध में Return of Allotment जमा करवायेंगी तथा कम्पनी अपनी सामान्य सभा में निर्धारित शर्तों के अधीन विशेष प्रस्ताव पारित करके वैश्विक जमा रसीट (Global Depository Receipt) जारी कर सकती है।

14 कम्पनियों द्वारा अंशों की क्रय वापसी (buy back) के प्रावधानों का काफी मात्रा में सरलीकरण किया गया है तथा अब कम्पनी अधिनियम, 2013 के लागू होने के परिणामस्वरुप कम्पनियाँ तब भी अंशों की क्रय वापसी कर सकती हैं जब उन्होंने जमाओं या ब्याजों के भुगतान के सम्बन्ध में अथवा ऋण-पत्रों के शोधन/विमोचन (redemption of debentures) के सम्बन्ध में या फिर अंशधारियों को लाभांश आदि के भुगतान के सम्बन्ध में गलतियाँ कर रखी हो।

15. जमाओं को स्वीकार करने से सम्बन्धित विषयों के बारे में गैर-बैंकिंग वित्तीय का (Non Banking Financial Companies, NBFCs) अब भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित नियमों नियंत्रित होंगी, न कि कम्पनी अधिनियम, 2013 के प्रावधानों से।

16. कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 135 के अधीन निगमित सामाजिक उत्तरदायित्व (Corporate Social Responsibility) सम्बन्धी एक नया प्रावधान शामिल किया जा प्रावधान के अनुसार प्रत्येक कम्पनी जिसका किसी भी वित्तीय वर्ष में Snecified n…….. turnover अथवा Net profit है, उसे अपने निदेशक मण्डल में से है. उसे अपने निदेशक मण्डल में से निगमित सामाजिक उत्तरदेयता समिति अनिवार्य है। यह समिति अधिनियम की सातवीं अनुसूची (Schedule-VII) में वर्णित गतिविधियों से सम्बन्धित नीतियों का निर्धारण करेगी।

17. 2013 के नये कम्पनी अधिनियम की धारा 149 के अनुसार यह अनिवार्य कर दिया गया है. ‘गी या श्रेणियों की कम्पनियों में कम से कम एक महिला निदेशक अवश्य हो। इसी के अधीन यह भी अनिवार्य कर दिया गया है कि निदेशक मण्डल के कम से कम एक निदेशक का पिछले वित्तीय वर्ष में भारत में निवास कम से कम 182 दिन हो।

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18. कम्पनी अधिनियम में निदेशकों से सम्बन्धित एक महत्वपूर्ण परिवर्तन यह किया गया । प्रत्येक सूचीबद्ध कम्पनी (Listed Company) के लिए अब यह अनिवार्य होगा कि वह अपने सनिदेशकों की संख्या के कम से कम 1/3 निदेशकों का अपन मण्डल (Board) पर स्वतन्त्र निदेशकों रुप में रखे। स्वतन्त्र निदेशक एक गैर-कार्यकारी निदेशक होगा न कि प्रवर्तक। ।

19 एक कम्पनी द्वारा रखे जाने वाले निदेशकों का संख्या को भी 12 से बढ़ाकर 2013 के कम्पनी अधिनियम में 15 कर दिया गया है। ठीक इसी प्रकार अब एक व्यक्ति अधिकतम 20 कम्पनियों का। निदेशक बन सकता है, जबकि कम्पनी अधिनियम 1956 में यह संख्या 15 थी। इन 20 कम्पनियों में से एक ही समय में वह 10 से अधिक सार्वजनिक कम्पनियों का निदेशक नहीं बन सकता। ।

20. कम्पनी अधिनियम, 2013 के अधीन यह अनिवार्य कर दिया गया है कि निदेशक द्वारा अपने पद से त्याग पत्र देने पर उसे पद त्यागने की तिथि से 30 दिन के भीतर अपने त्याग पत्र की एक कॉपी कम्पनियों के रजिस्ट्रार के कार्यालय में जमा करानी होगी। ऐसा कोई भी प्रावधान कम्पनी अधिनियम, 1956 में नहीं था।

21. कम्पनी के समामेलन (Incorporation) से 18 महीने के भीतर वार्षिक साधारण सभा आयोजित करने के समय में कमी करके अब इसे 9 महीने कर दिया गया है। अब कम्पनी को अपने वित्तीय वर्ष की समाप्ति से 9 माह के भीतर अपनी सामान्य सभा का आयोजन करना होगा। अन्य दशाओं में वित्तीय वर्ष की समाप्ति से 6 माह के भीतर (Section 96 (1)

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22. कम्पनी अधिनियम, 2013 द्वारा कम्पनी अधिनियम , 1956 की धारा 165 के अधीन की जाने वाली वैधानिक सभा एवं वैधानिक रिपोर्ट की व्यवस्थाओं को तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दिया गया है।

23. नये कम्पनी अधिनियम, 2013 में कम्पनी द्वारा दिये जाने वाले राजनैतिक अंशदान की सीमा को 5 प्रतिशत से बढ़ाकर 5 प्रतिशत कर दिया गया है। इस 7.5 प्रतिशत की गणना कम्पनी द्वारा तत्काल पिछले तीन वित्तीय वर्षों के औसत शुद्ध लाभ के आधार पर की जाएगी।

24. पिछले कम्पनी अधिनियम, 1956 में अधिनियम की धारा 372-A के अधीन ऋण पत्रों (Debentures) को ऋण (loan) के अन्तर्गत शामिल किया जाता है। किन्तु 2013 के कम्पनी अधिनियम में धारा 186 के अनुसार “ऋण’ शब्द के अन्तर्गत ऋण-पत्रों को शामिल नहीं किया जायेगा।

कम्पनी अधिनियम, 2013 के अनुसार

(i) कम्पनियों द्वारा अपने निदेशकों को ऋण देने के लिये या

(ii) किसी सम्बन्धित पार्टी के साथ किसी सौदे में प्रवेश करने के लिये: या

(iii) कम्पनी अथवा उसकी सहायक कम्पनी में किसी लाभ के पद पर किसी निदेशक की अथवा किसी भी लाभ के पद पर किसी भी कार्यालय में किसी भी व्यक्ति की नियुक्ति के लिये

केन्द्रीय सरकार का अनुमोदन (approval) प्राप्त करना समाप्त कर दिया गया है, जबकि कम्पनी अधिनियम, 1956 के अन्तर्गत अनुमोदन प्राप्त करना अनिवार्य था।

26. प्रबन्धकीय निदेशक/पूर्ण कालिक निदेशक/प्रबन्धक की नियुक्ति हेतु कम्पनी अधिनियम, 2013 की अनुसूची V में उनकी नियुक्ति सम्बन्धी शर्तों को निर्धारित किया गया है। इस सम्बन्ध में इस अधिनियम के प्रावधान उस निजी कम्पनी पर भी लागू होंगे जिस कम्पनी ने विशेष प्रस्ताव पारित करके प्रबन्धकीय अधिकारियों की नियुक्ति उन शर्तों पर करना निर्धारित किया है जिनका वर्णन अनुसूची V में किया गया है।

27. कम्पनी अधिनियम 2013, की धारा 447 में ‘कपट’ को परिभाषित करने हेतु एक नया प्रावधान किया गया है। इस धारा में कम्पनी अथवा किसी निगमित निकाय के कामकाज से जुड़े कपट को परिभाषित किया गया है। इसमें इस अपराध हेतु कठोर सजा का प्रावधान किया गया है। कम्पनी अधिनियम 1956 में न तो कपट की परिभाषा दी गई थी तथा न ही इस अपराध से सम्बन्धित विशेष सजा का प्रावधान किया गया था।

28. कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 193 के अधीन एक व्यक्ति कम्पनी द्वारा अनुबन्ध। (Contract by one person company (OPC)) से सम्बन्धित एक नया प्रावधान किया गया है। इस प्रावधान में एक व्यक्ति कम्पनी तथा इसके एकल सदस्य के बीच होने वाले व्यवहारों तथा अनुबन्धों का निर्माण से सम्बन्धित प्रक्रियाओं का वर्णन किया गया है।

29. कम्पनी अधिनियम 2013 के अनुसार ट्रिब्यूनल द्वारा समझौते या प्रबन्ध की स्वीकृति देने से पूर्व अंकेक्षक द्वारा दिया गया अंकेक्षण प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना अनिवार्य कर दिया गया है। ऐसा करने के पीछे कारण यह है कि इस बात की सन्तष्टि की जा सके कि कम्पनी द्वारा किया जाने वाला समझोता। या प्रबन्ध (arrangement) केन्द्रीय सरकार द्वारा निर्धारित एकाउन्टिंग स्टैन्डर्ड के अनुसार ही है। ।

30. चूँकि कम्पनी लॉ बोर्ड को समाप्त कर दिया गया है इसलिये अब कम्पनी में फैले अत्याचार या कुप्रबन्ध से सम्बन्धित प्रार्थना-पत्र नेशनल कम्पनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) के समक्ष प्रस्तुत करना होगा। कम्पनी अधिनियम, 2013 में अत्याचार व कुप्रबन्ध से मुक्ति पाने हेतु ‘Class Action Suit’ की व्यवस्था की गई है। कम्पनी के सदस्यों की एक निर्धारित संख्या अथवा एक कम्पनी के जमाको (depositors) कम्पनी में फैले अत्याचार व कुप्रबन्ध के खिलाफ Class Action Suit’ दायर कर सकते। हैं। यह प्रावधान बैंकिंग कम्पनियों पर लागू नहीं होंगे। पिछले कम्पनी अधिनियम, 1956 में इस प्रकार का कोई प्रावधान नहीं था।

31. कम्पनी अधिनियम 2013 में शामिल किये गये नये प्रावधान के अनुसार कम्पनी की सम्पत्तियाँ का मूल्यांकन अब योग्य एवं पंजीकृत मूल्यांकक (Oualified and Registered Valuer) से कराना अनिवार्य है। मूल्याँककों की नियुक्ति अंकेक्षण समिति द्वारा की जायगी तथा समिति की अनुपस्थिति में यह नियुक्ति कम्पनी के निदेशक मण्डल द्वारा की जायेगी।

32. कम्पनी अधिनियम 2013 बीमार कम्पनियों के पुनर्जीवन एवं पुनः स्थापन (Revival & Rehabilitation) से सम्बन्धित है जो कम्पनी 50 प्रतिशत या इससे अधिक सुरक्षित ऋणदाताओं के ऋण का भुगतान करने में असमर्थ है, वह कम्पनी स्वयं को बीमार कम्पनी घोषित करवाने के लिए ट्रिब्यूनल के समक्ष आवेदन कर सकती है।

33. कम्पनी के स्वैच्छिक समापन हेतु निर्धारित की गई व्यवस्था में कुछ नई व्यवस्थाएं कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 310 के अधीन जोड़ी गई है। इस सम्बन्ध में कम्पनी के स्वैच्छिक समापन हेतु, केन्द्रीय सरकार द्वारा गठित किए गए निस्तारक पैनल में से कम्पनी निस्तारक की नियुक्ति की जाएगी।

34. कम्पनी अधिनियम, 2013 के अन्तर्गत कम्पनी अधिनियम, 1956 की धारा 522 के अन्तर्गत न्यायालय के निरीक्षण में समापन के प्रावधान को समाप्त कर दिया गया है।

35. सुचना तकनीक के परिणामस्वरुप व्यावसायिक व्यवहारों के माध्यम के रूप में इन्टरनेट के सम्बन्ध में एक नया प्रावधान शामिल किया गया है जिसके अनुसार इन्टरनेट द्वारा आवेदन जमा कराना, दस्तावेज जमा कराना, निरीक्षण व परीक्षण, रजिस्ट्रार द्वारा दस्तावेजों को साक्ष्य के रूप में रखना जैसा कि कम्पनी अधिनियम, 2013 की धारा 398 एवं 399 में वर्णित है, को अधिनियम की धारा 400 में शामिल किया गया है। उपरोक्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिये यह धारा इलैक्ट्रॉनिक फार्म को एक विकल्प के रुप में/एक मात्र माध्यम के रुप में तथा वास्तविक या भौतिक (Physical) फार्म के अतिरिक्त रूप में मान्यता प्रदान करती है।

36. कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 455 में निष्क्रिय कम्पनी (Dorment Company) के सम्बन्ध में एक नया प्रावधान किया गया है। जिस कम्पनी की स्थापना तथा पंजीकरण किसी भावी उत्पाद के लिये अथवा एक सम्पत्ति के रूप में या फिर बौद्धिक सम्पदा के रूप में की गई है अथवा उसका कोई महत्त्वपूर्ण वित्तीय लेन-देन नहीं है, एक निष्क्रिय कम्पनी का दर्जा प्राप्त कर सकती है। इसके लिए सम्बन्धित कम्पनी को निर्धारित विधि से कम्पनियों के रजिस्ट्रार के पास आवेदन करना होगा। रजिस्ट्रार द्वारा निष्क्रिय कम्पनियों का एक रजिस्टर रखा जाएगा।

37. यद्यपि कम्पनी अधिनियम, 1956 को कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 465 द्वारा निरस्त तो किया गया है किन्तु जैसा कि इस धारा में वर्णित है कि कम्पनी अधिनियम 1956 के भाग IX-A के श्रावधान उत्पादक कम्पनियों पर जरुरी परिवर्तनों सहित उसी प्रकार से लागू होंगे, मानों कम्पनी आधनियम, 2013 ने कम्पनी अधिनियम 1956 को निरस्त ही न किया हो। ऐसा तब तक जारी रहेगा जब तक उत्पादक कम्पनियों के लिए कोई विशेष अधिनियम लागू नहीं कर दिया जाता। इस प्रकार से कम्पनी माधानयम, 1956 के भाग IX-A (जिसमें धारा 581-A से लेकर धारा 581-2T तक शामिल हैं) को छोड़ कर सम्पूर्ण कम्पनी अधिनियम, 1956 को नए कम्पनी अधिनियम 2013 द्वारा निरस्त कर दिया गया है।

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