BCom 3rd year Management Audit Study material notes in Hindi

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BCom 3rd Year Auditing Alteration Share Capital Study material notes in Hindi

प्रबन्ध अंकेक्षण

(MANAGEMENT AUDIT]

प्रबन्ध अंकेक्षण : प्रस्तावना

(MANAGEMENT-AUDIT: INTRODUCTION).

अब तक अंकेक्षक के अधिकार तथा कर्तव्य प्रमुखतः उसके तथा नियोक्ता के मध्य किये गये लिखित समझौते तक सीमित थे। कम्पनी के सम्बन्ध में ये अधिकार तथा कर्तव्य कम्पनी अधिनियम तथा न्यायालयों के निर्णयों के अनुरूप निर्धारित किये जाते रहे हैं, परन्तु अब नवीन परिप्रेक्ष्य में जो स्थिति दृष्टिगोचर हो रही है, उसके आधार पर यह व्यवस्था बन रही है कि अंकेक्षक व्यवसाय के आन्तरिक संगठन के कार्यकलाप की जांच अधिक गहराई तथा चतुराई से करने की तैयारी के योग्य हो सके। यह सही है कि वह कम्पनी के खातों की जांच करने में यह स्पष्ट करता है कि कम्पनी का चिट्ठा तथा लाभ-हानि खाता कम्पनी अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप बनाया गया है तथा ये कम्पनी की सही तथा उचित स्थिति को प्रकट करते हैं। वह यह सब परम्परागत पद्धति के आधार पर करता आया है।

इस प्रकार वैधानिक अंकेक्षक से यह आशा नहीं की जाती है कि वह प्रबन्ध द्वारा निर्मित नीतियों के परिपालन की जांच करे कि वे सही दिशा की ओर निर्देशित करती हैं तथा उचित रूप से अपनाई जा रही हैं अथवा नहीं। वह न कम्पनी के प्रबन्ध को यह परामर्श देने की स्थिति में होता है कि किस प्रकार उसके लाभ अधिकतम हो सकते हैं और सामग्री, आदि का दुरुपयोग कैसे कम किया जा सकता है। यह बताना उसका वैधानिक अधिकार नहीं है कि व्यापार के संचालन में सुधार कैसे किये जा सकते हैं तथा अच्छे परिणाम किस प्रकार प्राप्त हो सकते हैं।

प्रायः यह कहा जाता है कि आन्तरिक अंकेक्षक (Internal Auditor) ये सभी कार्य कर सकता है, पर व्यवहार में वह केवल वित्तीय मामलों की जांच से सम्बन्ध रखता है और उसका कार्य धन व माल के गबन तथा त्रुटियों के रोकने व पता लगाने तक ही सीमित रहता है। वित्तीय अंकेक्षण में प्रबन्ध अंकेक्षण नहीं आ सकता, क्योंकि प्रबन्ध अंकेक्षण वित्तीय हानि को होने से पूर्व रोक सकता है, जबकि वित्तीय अंकेक्षण केवल यह व्यवस्था दे सकता है कि हानि वास्तव में हुई है।

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प्रबन्ध अंकेक्षण की आवश्यकता

(NEED OF MANAGEMENT AUDIT)

आज व्यवसाय की प्रक्रिया इतनी जटिल तथा बड़ी हो गयी है कि संगठन के अकुशल एवं निष्प्रभावी होने से संगठनीय ढांचे में आधारभूत कमियां व दोष उत्पन्न हो जाते हैं। व्यावसायिक लेखापालों (Professional Accountant) की फमें अब प्रबन्ध परामर्श सेवाएं (Management Consultancy Services) देने में अपना योगदान करने लगी हैं ताकि संगठन की प्रक्रिया में सुधार किया जा सके। प्रबन्धकीय परामर्श सेवाओं के माध्यम से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि कार्य सन्तोषजनक होगा। ये सिफारिशें करके अपना कार्य। पूरा करती हैं।

इस प्रकार प्रबन्ध अंकेक्षण एक नयी विचारधारा है और यह परम्परागत अंकेक्षण से पृथक् व्यवस्था है। एक प्रकार से यह प्रबन्ध के विभिन्न पहलुओं का वास्तव में आलोचनात्मक पुनर्मूल्यांकन है। इसका सम्बन्ध प्रबन्ध की कुशलता के मूल्यांकन से है। यह नवीन दृष्टिकोण है और इस प्रकार प्रबन्ध अंकेक्षण आन्तरिक अंकेक्षण (Internal audit) का विस्तार-मात्र कहा जा सकता है।

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प्रबन्ध अंकेक्षण की परिभाषा

(DEFINITION OF MANAGEMENT AUDIT)

(1) टी. जी. टोखे के अनसार “प्रबन्ध अंकेक्षण प्रबन्ध प्रक्रिया के सभी पहलओं का गहन आलोचनात्मक अध्ययन है।”

(2) विलियम पी. लैओनार्ड के अनुसार “प्रबन्ध अंकेक्षण कम्पनी, सरकार की संस्था या शाखा, अथवा उसके किसी अंग जैसे भाग या विभाग तथा उसकी योजनाएं व उद्देश्य, इसकी क्रियाओं के साधन एवं मानवीय व भौतिक सुविधाओं के उपयोग की एक गहन तथा रचनात्मक जांच है।”

इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि प्रबन्ध अंकेक्षण सम्पूर्ण प्रबन्ध-प्रक्रिया से सम्बन्ध रखता है। यह बाहरी क्षेत्र तथा व्यवसाय की आन्तरिक कार्यकुशलता में प्रभावशाली सम्बन्ध बनाये जाने में सहायक होता है।

कुछ अन्य परिभाषाएं निम्न हैं :

(3) लैस्ली आर. हॉवर्ड के अनुसार “प्रबन्ध अंकेक्षण यह सुनिश्चित करने की कि सम्पूर्ण प्रबन्ध सुदृढ़ है, एक व्यवसाय का ऊपर से नीचे तक किया गया अनुसन्धान है ताकि अत्यधिक कुशल व सरलीकृत संगठन का बाहरी जगत से अधिकतम प्रभावशाली सम्बन्ध स्थापित किया जा सके।

(4) टेलर व पैरी के अनुसार “प्रबन्ध अंकेक्षण संगठन के सभी स्तरों पर प्रबन्ध की कुशलता के मूल्यांकन की एक पद्धति है तथा प्रमुखतः यह उच्च स्तरीय कार्यकारी स्तर से नीचे तक स्वतन्त्र संस्था के द्वारा की गयी व्यवसाय की जांच है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि संस्था में पूर्णतया सुदृढ़ प्रबन्ध है तथा कार्यकुशलता के सम्बन्ध में वह अपना प्रतिवेदन दे सके अथवा विपरीत स्थिति में सिफारिश कर सके जिससे प्रभावशीलता स्थापित की जा सके।

उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट है कि प्रबन्ध अंकेक्षण भौतिक सुविधाओं के उपयोग, नीतियों, उद्देश्यों, क्रियाओं के माध्यम की जांच तथा मूल्यांकन है। इससे प्रबन्ध की नीतियों तथा कार्यों का पुनर्मूल्यांकन होता है। यह सामान्यतः क्रियाओं के प्रोत्साहन की प्रक्रिया है ताकि भविष्य में ये क्रियाएं उन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रभावी बन सकें जिनके लिए संस्था की स्थापना की गयी थी।

कुछ विद्वानों ने ‘निपुणता अंकेक्षण’ तथा प्रबन्ध अंकेक्षण’ को पर्यायवाची बतलाया है। फिर भी यह कहा जा सकता है कि ‘प्रबन्ध अंकेक्षण’ किसी व्यवसाय के प्रबन्ध के कार्यकलाप की जांच करने की विधि है। प्रबन्ध की सफलता के लिए कुशलता में सुधार तथा संस्था के संसाधनों का अधिकतम उपयोग आधारभूत मापदण्ड होते हैं। इस कार्यकलाप के विभिन्न क्षेत्र होते हैं जैसे उत्पादन, विपणन, वित्त, क्रय व विक्रय, कर्मचारी-सेवा. अनुसन्धान तथा विकास। इसके बावजूद प्रबन्ध अंकेक्षण की परिभाषा अन्य प्रगतिशील व आधुनिक परिभाषाओं के साथ ही विचार की जानी चाहिए। प्रबन्ध अंकेक्षण के विषय में दृष्टिकोणों में पर्याप्त भिन्नताएं हैं।

पहले प्रबन्ध अंकेक्षण की व्यवस्था का अर्थ आन्तरिक अंकेक्षण समझा जाता था जो इस अंकेक्षण में पयाप्त रूप से सहायक होता है। इस प्रकार प्रबन्ध अंकेक्षण व आन्तरिक अंकेक्षण एक-दूसरे के पर्यायवाची समझे जाते थे। स्पष्ट शब्दों में प्रबन्ध के कार्यकलाप का मूल्यांकन ही प्रबन्ध अंकेक्षण है, चाहे यह कार्यकलाप वित्त व्यवस्था से सम्बन्धित हो या अन्य कार्यों से। प्रबन्ध अंकेक्षक को प्रबन्ध की सर्वागीण भूमिका की जांच करनी होती है और यह रिपोर्ट देनी होती है कि पूर्व निर्धारित लक्ष्य तथा उद्देश्य प्राप्त कर लिये है अथवा नहीं। वह प्रबन्ध के कार्यकलाप को निष्पक्ष दृष्टि से देखता है। प्रबन्ध अंकेक्षण एक ऐच्छिक व्यवस्था होती है।

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प्रबन्ध अंकेक्षण प्रबन्ध की प्रक्रिया से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ है। इसमें सामान्यतः निम्न कार्य सन्निहित हैं

1 संगठन के उद्देश्यों की पहचान संगठन के उद्देश्य कभी-कभी स्पष्टतः वर्णित होते हैं, पर अधिकांशतः ये उद्देश्य अस्पष्ट रहते हैं जिनकी पूर्ण पहचान कठिनाई से हो पाती है। यह आवश्यक है।

2. उद्देश्यों, योजनाओं व लक्ष्यों में विभाजन विभिन्न क्षेत्रों के लिए लक्ष्यों तथा योजनाओं का सविस्तार संगठन के उद्देश्यों के परिप्रेक्ष्य में विभाजन किया जाना चाहिए।

3. संगठनीय ढांचे का पुनर्निरीक्षण प्रबन्ध अंकेक्षण के अन्तर्गत संगठनीय ढांचे का पुनर्निरीक्षण किया जाना चाहिए ताकि यह देखा जा सके कि क्या यह उद्देश्यों तथा विस्तृत लक्ष्यों की प्राप्ति में प्रभावशाली ढंग से योगदान कर सकेगा।

4. प्रत्येक कार्यात्मक क्षेत्र के क्रियाकलाप की जांच क्रियाकलाप को परिणामात्मक दृष्टि से प्रकट किया जा सकता है। इसकी लक्ष्यों तथा उद्देश्यों से भी तुलना कर लेनी चाहिए।

5. अधिक उत्तम व उपयोगी कार्यविधि का सुझाव–उपर्युक्त कार्यों के आधार पर एक से अधिक वास्तविक मार्ग की ओर सुझाव दिया जा सकता है। कर्मचारियों के लिए प्रेरणात्मक उपायों को स्वीकार करके उन्हें प्रोत्साहित किया जा सकता है।

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प्रबन्ध अंकेक्षण के उद्देश्य

(OBJECTIVES OF MANAGEMENT AUDIT)

(1) प्रबन्ध अंकेक्षक के द्वारा अंकेक्षित पहलूओं के दोषों व कमजोरियों को प्रकाश में लाना तथा संस्था के क्रियाकलाप में सर्वोत्तम सम्भव परिणामों के प्राप्त करने हेतु सुधारों के सम्बन्ध में सुझाव देना।

(2) व्यवसाय के सुलभ संचालन के लिए आवश्यक क्रियाओं के सर्वाधिक कुशल प्रशासन चलाने की क्षमता उत्पन्न करना।

(3) प्रबन्ध की कुशलता तथा प्रभावशीलता उपलब्ध कराना।

(4) प्रबन्ध द्वारा निर्धारित लक्ष्यों तथा उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु साधन व उपायों के लिए सुझाव देना।

(5) प्रबन्ध के सभी स्तरों पर उनके कार्यों व दायित्वों के निर्वाह के लिए सहायता करना।

(6) आन्तरिक संगठन के सफल व कुशल संचालन के लिए सर्वाधिक उत्तम व्यवस्था करना तथा उसका बाहरी संसार से प्रभावशाली सम्बन्ध बनाने में सहयोग उपलब्ध करवाना।

(7) इनपुट (inputs) तथा आउटपुट (outputs) के तालमेल के माध्यम से उपलब्धि का मूल्यांकन करना।

(8) प्रबन्ध की उसके कर्मचारियों के अधिकार, कर्तव्यों व दायित्वों के निर्वाह में सहायता करना तथा उनसे अच्छे सम्बन्ध बनाने में सहायता करना।

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वित्तीय अंकेक्षण व प्रबन्ध अंकेक्षण में अन्तर

(DISTINCTION BETWEEN FINANCIAL AUDIT AND MANAGEMENT AUDIT)

वित्तीय अंकेशण प्रबन्ध अंकेशण
1 इसका प्रमुख सम्बन्ध पिछले लेखों विशेषतः वित्तीय प्रबन्ध अंकेक्षण का मुख्य सम्बन्ध प्रबन्ध की नीतियों लेखों की जांच से है। यह एक प्रकार से वित्तीय अकेंशण है । प्रबन्ध अंकेक्षण का मुख्य सम्बन्ध प्रबन्ध की नीतियों तथा कार्यों का मूल्यांकन करना है।
2 वित्तीय अंकेक्षक संगठन की वित्तीय स्थिति पर अपनी रिपोर्ट पेश करता है कि वित्तीय विवरण कम्पनी के कार्यकलाप का सही व उचित चित्र प्रस्तुत करते हैं। प्रबन्ध अंकेक्षक एक निश्चित अवधि के लिए प्रबन्ध के कार्यों पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करता है तथा उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यक उपयों के सम्बन्ध में सुझाव

देता है।

3 वित्तीय अंकेक्षण का प्रबन्ध के कार्यकलाप से कोई प्रबन्ध सम्बन्ध नहीं है । प्रबन्ध अंकेक्षण का सम्बन्ध प्रबन्ध के कार्यों को अधिक कुशल तथा प्रभावी बनाने से है।
4 इसका क्षेत्र वित्तीय लेखों की जांच करने तक सीमित हैं । प्रबन्ध अंकेक्षण का क्षेत्र प्रबन्ध का कार्यक्षेत्र होता है।

 

5 यह वित्तीय लेखों पर रिपोर्ट प्रस्तुत करके समाप्त हो जाता है । प्रबन्ध अंकेक्षक का कार्य वहां प्रारम्भ होता है, जहां जाता है।

वैधानिक अंकेक्षक का कार्य समाप्त होता है।

 

6 यह संगठन के वित्तीय पहलू से सम्बन्ध रखता है। इसके अन्तर्गत संगठन के उद्देश्य, योजनाएं, नीतियां, उत्पादन व वितरण का नियोजन और उसके लिए आवश्यक समग्र कुशलता के विश्लेषणात्मक अध्ययन का समावेश होता है।

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प्रबन्ध अंकेक्षण व लागत अंकेक्षण

(MANAGEMENT AUDIT AND COST AUDIT)

वित्तीय अंकेक्षण की भांति लागत अंकेक्षण एक नियमित प्रक्रिया है। वित्तीय अंकेक्षण तथा लागत अंकेक्षण दोनों ही किसी-न-किसी रूप में सरकारी अधिनियम से नियन्त्रित होते हैं। लागत अंकेक्षण का सम्बन्ध व्यवसाय के क्रिया-कलाप के लागत पहलू से है। इसके लागत लेखों के विश्लेषण से आगे बढ़ने की भूमिका तैयार की जाती है और मितव्ययिता में वृद्धि करने तथा दुरुपयोग रोकने के उपाय किये जाते हैं। प्रबन्ध अंकेक्षण का सम्बन्ध प्रबन्ध की नीतियों तथा उद्देश्यों के मूल्यांकन के माध्यम से प्रबन्ध के कार्यकलाप की जांच करने से होता है।

लागत अंकेक्षण व प्रबन्ध अंकेक्षण में अन्तर निम्न हैं :

प्रबन्ध अंकेक्षण का महत्व

(IMPORTANCE OF MANAGEMENT AUDIT)

प्रबन्ध अंकेक्षण का महत्व इसके लाभों पर आधारित होता है। यह सही है कि प्रबन्ध अंकेक्षण के दरगामी परिणाम होते हैं। उसका सम्बन्ध संस्था के क्रियाकलाप के मूल्यांकन से है और उसके परिणाम पूर्व निर्धारित लक्ष्यों से मिलान किये जाते हैं। प्रबन्ध अकक्षण की आवश्यकता के निम्न आधार हैं

1 अनुदान (Subsidy) की प्राप्ति के लिए यह स्थायी हल नहीं है कि बीमार उद्योगों को अनुदान देकर उनकी वित्तीय स्थिति में सुधार किया जाए। प्रबन्ध अंकेक्षण किये बिना अनदान देना समस्या का समाधान नहीं है। अतः अनुदान देने से पूर्व संस्था का प्रबन्ध अंकेक्षण करवाना आवश्यक होता है। आवश्यक हो तो उसके प्रबन्ध को बदलकर समस्या का हल हो सकता है।

2. ऋण देने के लिए व्यापारिक संगठन को ऋण देने से पर्व बैंक या अन्य वित्तीय संस्था प्रबन्ध अंकेक्षण करवा सकती है कि क्या इस ऋण की स्वीकति होने पर संस्था इसका सदुपयोग कर सकती है। इसके लिए कम्पनी की नीतियों, योजनाओं तथा उद्देश्यों का मल्यांकन आवश्यक होगा जो प्रबन्ध अंकेक्षण के माध्यम से सम्भव हो सकता है।

3. विदेशी सहयोग (Foreign Collaboration) के लिए कम्पनियों में धन लगाने से पूर्व प्रबन्ध अंकेक्षण आवश्यक हो जाता है ताकि इस धन के विनियोजन से उद्योग का सही दिशा में विस्तार व विकास किया। जा सके।

4. सामान्य अंश पंजी में साझेदारी के लिए किसी संस्था की साधारण अंश पूंजी (Equity Capital) में भागीदार बनने के लिए यह आवश्यक है कि प्रबन्ध अंकेक्षण करवा लिया जाए। यदि वर्तमान प्रबन्ध सक्षम नहीं है तो साधारण पंजी में भागीदार बनना हितकर नहीं होता है। अकुशल प्रबन्ध वाले उद्योगों में पूंजी की भागीदारी घातक होती है।

अतः प्रबन्ध अंकेक्षण यदि योग्य व्यक्ति के द्वारा किया जाए, एक महत्वपूर्ण यन्त्र प्रबन्ध की सक्षमता के नापने के लिए बन जाता है। प्रबन्धकीय क्रिया-कलाप का सही मूल्यांकन करना प्रबन्ध अंकेक्षण की प्रक्रिया से ही सम्भव हो सकता है। इस प्रकार सामान्यतः देश की सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के मूल्यांकन के दृष्टिकोण से तथा विशेष रूप से परिवर्तित व्यापारिक परिस्थितियों के अनुरूप प्रबन्ध अंकेक्षण सर्वोत्तम प्रबन्ध उपकरण (Tool) माना गया है जिससे कि संस्था की कार्य पद्धति का सही परिप्रेक्ष्य में मूल्यांकन हो सके।

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प्रबन्ध अंकेक्षक की नियुक्ति

(APPOINTMENT OF MANAGEMENT AUDITOR)

यह ध्यान देने योग्य है कि प्रबन्ध अंकेक्षण का प्रावधान विधान के द्वारा नहीं किया गया है, अतः कम्पनी प्रबन्ध अंकेक्षक के चयन तथा नियुक्ति के लिए अपना स्वयं का निर्णय ले सकती है। संचालक मण्डल अथवा अंशधारी चार्टर्ड एकाउण्टैण्ट्स की फर्म को कम्पनी का प्रबन्ध अंकेक्षक नियुक्त कर सकते हैं। ऐसा निर्णय कम्पनी की परिस्थितियों पर पूर्णतया निर्भर होगा।

प्रायः तर्क दिया जाता है कि आन्तरिक अंकेक्षक (Internal auditor) ही प्रबन्ध अंकेक्षण करने के लिए उपयुक्त व्यक्ति होता है, क्योंकि वह कम्पनी की गतिविधियों तथा कार्यकलाप से पूर्ण परिचित होता है। यह भी सुझाव दिया जाता है कि प्रबन्ध अंकेक्षण के कार्य को संगठन व विधि (Organisation and Methods Study-0. M.) विभाग के कर्मचारियों के सुपुर्द कर देना चाहिए जिनका मस्तिष्क विश्लेषणात्मक होता है और जो कम्पनी के संगठनीय ढांचे तथा क्रियाओं की विधियों का ज्ञान रखते हैं। यह सब प्रत्येक मामले की परिस्थितियों पर तो निर्भर होगा ही, पर यहां यह ध्यान देने योग्य है कि प्रबन्ध अंकेक्षण करने के लिए तकनीकी ज्ञान व कुशलता की अधिक आवश्यकता होती है।

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प्रबन्ध अंकेक्षक की योग्यताएं

(QUALITIES OF MANAGEMENT AUDITOR)

प्रबन्ध अंकेक्षक के लिए विशिष्ट योग्यताओं का वर्णन करना सम्भव नहीं है, परन्तु क्योंकि उसका कार्य व्यवसाय के उद्देश्यों का उसके कार्यों के परिप्रेक्ष्य में मूल्यांकन करना है, उसको इस योग्य अवश्य बनना चाहिए कि वह संगठनीय क्रियाओं के विभिन्न पहलुओं के लिए संचालक मण्डल को परामर्श देने में सक्षम हो सके।

प्रबन्ध अंकेक्षक की कुछ योग्यताओं का वर्णन नीचे दिया जाता है—

1 उसको संगठन के उद्देश्य तथा समस्याओं को समझने की योग्यता होनी चाहिए।

2. उसको संगठन के उद्देश्यों के स्वभाव तथा कार्य क्षेत्रों को समझने की क्षमता होनी चाहिए।

3. उसे संगठन की प्रगति के मूल्यांकन करने की योग्यता होनी चाहिए। ।

4. उसको अधिकार के हस्तान्तरण, उद्देश्यों से प्रबन्ध, अपवाद से प्रबन्ध, प्रबन्ध-नियोजन व नियन्त्रण, वित्तीय व अन्य विवरण बनाने के सिद्धान्तों से भली-भांति परिचित होना चाहिए।

5. उसको विभिन्न आन्तरिक नियन्त्रण प्रक्रियाओं तथा कार्य-विश्लेषण की आधुनिक तकनीकों से पूर्णरूपेण

6. उसको नवीनतम कार्यालय साज-सज्जा व यन्त्रों के प्रभावी व कुशल उपयोग करने की पद्धतियों तथा तकनीकी की जानकारी होनी चाहिए।

7. उसको यह देखना चाहिए कि प्रबन्ध के द्वारा बनायी गयी योजनाएं प्रबन्ध के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए उपयुक्त तथा व्यावहारिक हैं।

8. उसे संगठन की उत्पादन क्रियाओं का ज्ञान होना चाहिये ।

9. उसको संगठन में प्रयुक्त नियन्त्रणों के स्वभाव तथा पर्याप्तता के मूल्यांकन करने की क्षमता होनी चाहिए।

10. वह यह देख सके कि किस सीमा तक कर्मचारियों को उनकी योग्यता, अनुभव व रुचि के अनुरूप कार्यों का आबंटन किया गया है।

11. उसे स्वभाव से नम्र, प्रसन्नचित्त तथा सहयोगी होना चाहिए।

12. उसको व्यवसाय के क्रिया-कलाप से सम्बन्धित नियमों व अधिनियमों से भली-भांति परिचित होना चाहिए।

13. उसको प्रबन्ध के लिए प्रस्तुत होने वाली रिपोर्टों के तैयार करने की योग्यता होनी चाहिए।

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प्रबन्ध अंकेक्षक के कार्य

(FUNCTIONS OF MANAGEMENT AUDITOR)

संक्षेप में प्रबन्ध अंकेक्षक के निम्न कार्य हैं

1 प्रबन्ध अंकेक्षक नीतियों व योजनाओं के क्रियान्वयन में सहायता करता है। उसका कार्य दोष निकालना नहीं है, पर कमजोरियों व दोषों को बतलाकर प्रबन्ध को अधिक गतिशील तथा सुदृढ़ बनाने के लिए परामर्श देना है।

2. वह सर्वोत्तम निर्णय लेने में प्रबन्ध की सहायता करता है। गलत व दोषपूर्ण निर्णय व्यवसाय के लिए घातक सिद्ध होते हैं और कभी-कभी संस्था के आधार को समाप्त कर देते हैं। प्रबन्ध अंकेक्षक प्रबन्ध को इस हानि से बचाने में सहायक होता है।

3. अंकेक्षक उच्च सत्ता को अधिकार व दायित्व के विभिन्न प्रबन्धकीय स्तरों पर हस्तान्तरण में सहायक होता है। संवहन की प्रक्रिया के दोषों को दूर करने में भी वह सहायता करता है और पारस्परिक टकराव को दूर करने में उत्पन्न बाधाओं को दूर करता है।

4. व्यवसाय के अन्दर व बाहर प्रबन्ध अंकेक्षक व्यावसायिक संवहन को सुदृढ़ करने में प्रबन्ध की सहायता करता है। वह अच्छे प्रजातन्त्रीय एवं उपयुक्त पद्धति के विषय में परामर्श देकर संवहन को अधिक सुदृढ़ बनाने में योगदान करता है।

5. व्यवसाय के क्रियाकलाप के मूल्यांकन के लिए सर्वोत्तम उपायों के सम्बन्ध में प्रबन्ध को सिफारिश कर सकता है। परिणामस्वरूप कार्य-निष्पादन में सुधार हो सकता है और लाभों में वृद्धि हो सकती है।

6. कर योजनाओं के निर्माण तथा बजटरी नीतियों के परिपालन में प्रबन्ध को सहायता कर सकता है। भिन्न-भिन्न प्रकार के आंकड़ों व सूचनाओं की उपयुक्तता का मूल्यांकन करता है और इस प्रकार प्रबन्ध को क्रय-बजट, विक्रय-बजट, रोकड़ व पूंजी बजट, आदि बनाने में सहायक हो सकता है।

प्रबन्ध अंकेक्षण के व्यावहारिक पहलू

(PRACTICAL ASPECTS OF MANAGEMENT AUDIT)

1 संगठन के उद्देश्य प्रबन्ध अंकेक्षक को व्यवसाय के उद्देश्यों का अध्ययन करना चाहिए। व्यावसायिक संगठन लाभोपार्जन करने के अतिरिक्त कछ विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए स्थापित किये जाते हैं। दीर्घकालीन नियोजन की अपर्याप्तता के कारण अच्छे व्यवसाय अपने उद्देश्यों में असफल हो जाते हैं।

2. वित्तीय योजनाएं तथा नीतियां प्रबन्ध अंकेक्षक को यह आश्वस्त होना चाहिए कि वित्तीय नीतियों तथा योजनाओं के सम्बन्ध में लिये गये निर्णय उचित समय पर क्रियान्वित किये गये हैं अथवा नहीं। यह भी दखना चाहिए कि उनके परिणाम किस सीमा तक संस्था के लिए लाभदायक रहे हैं।

3. उत्पादन प्रबन्ध अंकेक्षक को उत्पादन तकनीकों तथा लागत पद्धतियों का उचित ज्ञान होना चाहिए। उसको यह देखना चाहिए कि उत्पादन सम्बन्धी नीतियां व्यवहार में भली प्रकार से क्रियान्वित की गयी हैं। इन नीतियों का कुशल व प्रभावी क्रियान्वयन ही प्रमुख लक्ष्य होना चाहिए।

4. बिक्री तथा वितरण-अंकेक्षक बिक्री विभाग की आधारभूत आवश्यकताओं से सम्बन्ध रखता है। एक व्यवसाय में बाजार में बिक्री तथा मूल्य के परिवर्तनों की जानकारी करना अंकेक्षक की प्रमुख आवश्यकता है। इसके लिए विपणन अनुसन्धान अपना विशिष्ट महत्व रखता है।

5. संगठनीय नियन्त्रणप्रबन्ध अंकेक्षक को यह ध्यान रखना चाहिए कि एक व्यवसाय के लिए पूर्ण नियोजन तथा संगठन अति आवश्यक होता है। उसको अपनी स्वतन्त्र तथा निष्पक्ष सिफारिश देने के लिए। सक्षम बनना चाहिए जिससे कि व्यवसाय के कार्यों के निष्पादन के लिए अधिक आर्थिक तथा प्रभावशाली पद्धतियों को लागू किया जा सके।

6. क्रियाएंअंकेक्षक को यह देखना चाहिए कि उत्पादन तथा निर्माणी प्रक्रियाओं में कुछ कमजोरियां या दोष तो नहीं हैं तथा ऐसी कौन-सी पद्धतियां हो सकती हैं जिनसे अधिकतम उत्पादन सम्भव हो सके। वह उत्पादन की कठिनाइयों को दूर करने के सम्बन्ध में उपाय बतला सकता है।

7. विन्यास व भौतिक साज-सज्जा (Layout and Physical Equipment)—प्रबन्ध अंकेक्षक विद्यमान विन्यास तथा भौतिक साज-सज्जा की स्थिति की जांच कर सकता है और इसको अधिक उपयोगी तथा प्रभावी बनाने के लिए उचित एवं अधिक उपयुक्त सिफारिश करने के लिए सक्षम हो सकता है।

8. सेविवर्गीय विकास (Personnel Development)—उत्पादकता में वृद्धि करने की दृष्टि से प्रबन्ध अंकेक्षक मानवीय साधनों के प्रभावशाली उपयोग के सम्बन्ध में उपाय बता सकता है तथा अच्छे सुझाव दे सकता है। प्रबन्ध व श्रम के मधुर सम्बन्ध बनाने के लिए भी वह उपयोगी सुझाव दे सकता है।

9. अधिनियमों का परिपालनअंकेक्षक को यह भी देखना चाहिए कि सम्बन्धित अधिनियम, जिसके अन्तर्गत संस्था की स्थापना की गयी है, की धाराओं का परिपालन पूर्णरूपेण किया जा रहा है, अथवा नहीं। इसके अतिरिक्त यह भी परमावश्यक है कि संस्था स्थानीय निकायों के नियमों व उपनियमों का भली प्रकार परिपालन करती रहे। यह सब देखना अंकेक्षक का परम कर्तव्य है।

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प्रबन्ध अंकेक्षण का क्षेत्र

(SCOPE OF MANAGEMENT AUDIT)

वित्तीय अंकेक्षक की तुलना में प्रबन्ध अंकेक्षक एक व्यापक दृष्टिकोण रखता है और उसका दायित्व एक विस्तृत क्षेत्र तक फैला हुआ होता है। प्रबन्ध अंकेक्षण प्रबन्ध-प्रक्रिया के समान व्यापक है। इसका सम्बन्ध एक व्यावसायिक संस्थान के विभिन्न कार्यों के क्षेत्र से होता है जिसके अन्तर्गत प्रबन्ध की क्रियाएं ऊपर से नीचे तक विभिन्न स्तरों पर चलती रहती हैं। प्रबन्ध अंकेक्षण में अंकेक्षक की सफलता इस बात पर निर्भर होती है कि वह किस प्रकार अंकेक्षण-कार्य को सम्पन्न करता है। यह उसकी चतुराई एवं बुद्धिमत्ता का विषय है कि वह किस सीमा तक सूचना व आंकड़े एकत्रित कर सकता है, स्वयं गहन छानबीन कर सकता है तथा। एकत्रित आंकड़ों का विश्लेषण कर सकता है।

उसका कार्यक्षेत्र व्यापक है जिसके अन्तर्गत उत्पादन, वितरण, विपणन-अनुसन्धान, लेखे, वित्त, कर्मचारियों से सम्बन्धित क्रियाएं, आदि सभी क्षेत्र सम्मिलित किये जा सकते हैं। उत्पादन के अन्तर्गत क्रय नियोजन, उत्पादन प्रक्रिया, आन्तरिक यातायात व निकासी तथा भण्डार-गह के रख-रखाव की क्रियाओं का गहन अध्ययन करना उसका कर्तव्य हो जाता है। उसी प्रकार वितरण के अन्तर्गत अंकेक्षक को विक्रय-नीति व नियोजन, बिक्री के लेखों की जांच, विज्ञापन व प्रचार की क्रियाएं, विक्रय नियन्त्रण, आदि कार्यों को समझना पड़ता है और इनकी खामियों व कठिनाइयों को प्रकाश में लाकर इन कार्यों को अधिक कुशल व प्रभावी बनाने के लिए उचित उपाय व सिफारिशें करनी होती हैं। इस प्रकार उसका कार्य पर्याप्त रूप से । विस्तृत बन जाता है।

प्रबन्ध अंकेक्षक के कार्यों की सीमा नहीं बन सकती क्योंकि उसको प्रबन्ध से सम्बन्धित क्रियाओं को सर्वांगीण विकास की दृष्टि से तौलना होता है। जहां कहीं भी उसमें दोष हैं, उनको दूर करने के लिए उपाय भी बतलाने होते हैं। वह उचित सिफारिशों के सहारे प्रबन्ध को अधिक गतिशील बनाने में सहायता करता है।

अतः अंकेक्षक का कार्यक्षेत्र असीमित तथा व्यापक होता है। क्योंकि प्रबन्ध अंकेक्षण में सम्पूर्ण संगठन व प्रबन्ध का मूल्यांकन करना होता है और संगठनीय ढांचे के क्रियाकलाप की गहन जांच करनी होती है। इस प्रकार प्रबन्ध अंकेक्षण का क्षेत्र तथा क्रियाकलाप का मूल्यांकन दोनों ही पर्यायवाची बन जाते है।

प्रबन्ध अंकेक्षण के आवश्यक अंग

(IMPORTANT TECHNIQUES OF MANAGEMENT AUDIT)

प्रबन्ध अंकेक्षण में प्रबन्ध के कार्यों के समस्त पहलुओं का मूल्यांकन सन्निहित होता है। प्रबन्ध अंकेक्षण विभिन्न योग्यता वाले व्यक्तियों के द्वारा किया जाता है ताकि कोई भी पहलू जांच से छूटने न पाये। प्रबन्ध अंकेक्षण करने वाले व्यक्तियों का विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण होना चाहिए और उनमें प्रबन्ध की दृष्टि से प्रत्येक पहलू को समझने की क्षमता होनी चाहिए। उनको प्रबन्ध-विज्ञान का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए और अंकेक्षण कार्य को सम्पन्न करने का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।

व्यावसायिक संस्था की विभिन्न क्रियाओं के पुनर्निरीक्षण की प्रक्रिया में प्रबन्ध अंकेक्षक प्रत्येक उपाय के अपनाने में सक्षम होना चाहिए। प्रबन्ध के विभिन्न क्षेत्र विशिष्टीकरण के आधार पर विभाजित किये जाते हैं और अंकेक्षक इन क्षेत्रों के क्रिया-कलाप का मूल्यांकन करता है। कुशलता व प्रभावशीलता के आधार पर सही जांच करना ही उसका प्रमुख कार्य बन जाता है।

उसकी कार्य-प्रक्रिया के निम्न आवश्यक अंग बन जाते हैं :

1 पूछताछ (Enquiry)—प्रश्नावली बनाकर तथा उसके उत्तर प्राप्त करके प्रबन्ध अंकेक्षक अधिकांश साक्ष्य (evidence) एकत्रित करता है। प्रश्नावली का उचित रूप से किया गया निर्माण उसकी सफलता का आधार बनता है। अच्छे प्रश्नों के माध्यम से गुप्त समस्याएं प्रकाश में लायी जा सकती हैं। यह बहुत कुछ उसके विवेक व निर्णय पर निर्भर करता है।

2. जांच (Examination)—प्रबन्ध अंकेक्षण को प्रलेखों तथा लेखों की जांच करनी चाहिए। यदि पूछताछ की अवस्था से गुजरने के पश्चात् कुछ शंकाएं बनी रहती हैं तो वे लेखों व प्रलेखों के निरीक्षण से दर हो सकती हैं।

3. संपष्टीकरण (Confirmation)-प्रबन्ध अंकेक्षक द्वारा प्राप्त सूचना की पुष्टि के लिए विभिन्न अधिकारियों व कर्मचारियों से लिखित अथवा मौखिक विवरण मांगे जा सकते हैं।

4. प्रमुख क्रियाओं व दशाओं का स्वयं निरीक्षण (Observation of Pertinent Activities and Conditions) बहुत-से मामलों में प्रबन्ध अंकेक्षण स्वयं निरीक्षण के सहारे अपनी सन्तुष्टि कर सकता है। स्वयं आंकटे व सचना प्राप्त करके अपने विवक से सगठनाय चाट तथा अन्य बहाव चार्ट (Flow Charts ) तैयार कर सकता है।

5. सूचना का सहसम्बन्ध स्थापित करना (To Establish Correlation of Information)

इस प्रकार सभी स्रोतों से सूचना एकत्रित करने के उपरान्त उनमें सहसम्बन्ध स्थापित करने की कार्यवाही की जा सकती है ताकि निश्चित परिणामों तक पहुंचा जा सके। इसके लिए विशेष चातर्य तथा दक्षता की आवश्यकता होती है। निर्धारित मानकों के परिप्रेक्ष्य में उपलब्धियों की समीक्षा करके प्रबन्ध-प्रक्रिया के कशल व प्रभावी होने का कार्य सम्पन्न हो सकता है।

प्रबन्ध अंकेक्षण रिपोर्ट

(MANAGEMENT AUDIT REPORT)

प्रबन्ध अंकेक्षक की रिपोर्ट सही. गहन, स्पष्ट तथा सरल होनी चाहिए। इसका तात्पर्य यह है कि जो भी रिपोर्ट वह देता है, उसमें लिखे गये तथ्य सूचना तथा उसके विश्लेषण पर आधारित होने चाहिए। यदि यह रिपोर्ट आलोचनात्मक है, तब भी प्रबन्ध को सही परिप्रेक्ष्य में अधिक गतिशील बनाने में सहायक होनी चाहिए। इस रिपोर्ट में किसी आवश्यक पहल पर जोर नहीं दिया जाना चाहिए। रिपोर्ट की आलोचना को प्रबन्ध सही भावना से ग्रहण करे और तदनुरूप उचित कार्यवाही करने में सक्षम हो सके, इस भावना से रिपोर्ट लिखी जानी चाहिए।

यदि अंकेक्षक व्यवसाय के पुनर्गठन के सम्बन्ध में सुझाव देता है तो भी उसको ये सुझाव देने से पूर्व अपनी योग्यता तथा सक्षमता को समझ लेना चाहिए कि वह वास्तव में सही व अपेक्षित प्रस्ताव प्रस्तुत कर रहा है जिनके आधार पर कार्य करने से व्यवसाय में सुधार होगा तथा उत्पादकता व लाभदेयता (Profitability) में वृद्धि होगी।

सामान्य तौर पर उसको अपनी रिपोर्ट में निम्न मुद्दों पर विचार प्रस्तुत करने चाहिए :

1 अंशधारियों के विनियोगों पर होने वाले प्रतिफल (return) की चालू वर्ष से विगत वर्षों की तुलना।

2. क्या उनके विनियोगों पर प्रतिफल कम है, पर्याप्त है अथवा औसत से ऊपर है?

3. व्यवसाय की चालू लागत की इसी स्वभाव वाले अन्य उपक्रमों की लागत से तुलना।

4. क्या प्लाण्ट व मशीन अधिकतम उत्पादन देने में पूर्ण सक्षम हैं?

5. क्या प्रबन्ध व श्रम के सम्बन्ध मधुर चल रहे हैं?

6. क्या संस्था का भविष्य उज्ज्वल है तथा यह गतिशीलता की ओर अग्रसर है?

Management Audit Study material

कार्यशील अंकेक्षण

(OPERATIONAL AUDIT)

‘ऑपरेशनल’ अंकेक्षण या ‘कार्यशील’ अंकेक्षण उन व्यापारिक लेन-देनों की जांच से सम्बन्धित है जो किसी संस्था में बड़ी मात्रा में होते रहते हैं। यदि देखा जाए तो कार्यशील अंकेक्षण तथा आन्तरिक अंकेक्षण के उद्देश्य समान हैं, अतः कुछ विद्वान इन दोनों को पर्यायवाची कहते हैं। यह ही नहीं, कुछ विद्वान ऑपरेशनल अंकेक्षण तथा प्रबन्ध अंकेक्षण को समानार्थी मानते हैं तथा कुछ अन्य इन दोनों में अन्तर करते हैं। दोनों में अन्तर करने वाले प्रबन्ध अंकेक्षण में प्रबन्ध सम्बन्धी सम्पूर्ण क्षेत्र की जांच कर प्रबन्ध में सुधारात्मक कार्य करने की बात पर अधिक जोर देते हैं और ऑपरेशनल अंकेक्षण में उनके अनुसार वित्तीय क्षेत्र की प्रक्रियाओं का समावेश किया जाता है। अन्तर का एक अन्य बिन्दु यह है कि प्रबन्ध अंकेक्षण में एक ही विषय को दो दृष्टिकोण से अर्थात लोक लेखापाल (Public Accounting) तथा प्रबन्ध अंकेक्षण के दृष्टिकोण से नहीं समझा जाता है जो कार्यशील अंकेक्षण में विद्यमान रहता है। वित्तीय अंकेक्षण (Financial Audit) का सम्बन्ध लेखा। नियन्त्रणों अर्थात् व्यवसाय के वित्तीय व लेखाविधीय पहलू से है जबकि कार्यशील अंकेक्षण वित्तीय तथा परिचालित समंकों (Operating Data) का उपयोग करता है और उनकी व्याख्या करता है।

कार्यशील (Operational)

अंकेक्षण की परिभाषा

प्रारम्भ में कार्यशील अंकेक्षण का प्रयोग अत्यन्त ही संकुचित दृष्टिकोण से किया जाता था, पर अब इसके प्रयोग का क्षेत्र व्यापक होकर वित्तीय व लेखाविधीय क्षेत्र तक विस्तृत हो गया है। एक परिभाषा अग्र “प्रबन्ध की सेवा के लिए सम्पूर्ण विभागीय क्रियाकलापों के पुनर्निरीक्षण के लिए किसी संगठन के अन्दर एक क्रमबद्ध स्वतन्त्र मूल्यांकन की क्रिया है। कार्यशील अंकेक्षण का प्रमुख उद्देश्य प्रबन्ध के सभी स्तरों का निष्पक्ष विश्लेषण, मूल्यांकनों, सिफारिशों तथा पुनर्निरीक्षित क्रियाकलापों के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण प्रतिक्रियाओं के साथ अपने दायित्वों को प्रभावशाली स्वरूप में सम्पन्न करने में सहायता करना है।”

यह परिभाषा स्पष्ट रूप से व्यवसाय के वित्तीय तथा लेखाविधीय क्षेत्रों का विशेष समावेश नहीं करती। है, परन्तु सम्पूर्ण विभागीय क्रियाओं के पूनर्निरीक्षण में ये सभी क्रियाएं समाविष्ट हो जाती हैं।

कार्यशील अंकेक्षण का क्षेत्र (Scope of Operational Audit)

कार्यशील अंकेक्षण के अन्तर्गत निम्न दो क्षेत्र सम्मिलित किए जा सकते हैं :

1 संगठनीय क्षेत्र (Organisational Area),

2. कार्य सम्बन्धी क्षेत्र (Functional Area)

संगठनीय क्षेत्र के अन्तर्गत अंकेक्षक को निम्नलिखित कार्य करने होते हैं :

(i) विभाग के प्रशासन की जांच, (ii) संगठन के अन्दर विभिन्न कार्यों की जांच, (iii) कर्मचारियों के कार्यों का मूल्यांकन, (iv) बजट की तैयारी, (v) संगठन के उत्पादों (Products) में सुधार, (vi) संस्था के संगठनीय ढांचे में सुधार करना।

कार्य सम्बन्धी क्षेत्र में अंकेक्षक का सम्बन्ध निम्न कार्यों से है :

(i) प्रारम्भ से अन्त तक संगठन की सारी क्रियाएं, (ii) कार्य-क्षेत्रों में कार्यरत कर्मचारियों की क्रियाएं, (iii) सभी यूनिटों में किये गये कार्य का मूल्यांकन, (iv) कार्य-प्रवाह (Work flow) की जांच, (v) पर्यवेक्षण (Overview) के द्वारा प्रबन्ध की सहायता।

कार्यशील अंकेक्षण के लाभ (Advantages of Operational Audit)

1 इस अंकेक्षण से व्यवसाय की उत्पादकता तथा लाभदायकता में वृद्धि होती है।

2. हानि होने से पूर्व यह प्रबन्ध को सर्तक करने में सक्षम है ।

3. अंकेक्षक के मस्तिष्क की स्थिति से वित्तीय तथा परिचालन (Operating) क्षेत्र दोनों प्रभावित हो जाते हैं।

4. यह व्यवसाय के हितों का संरक्षण करता है।

5. यह अकुशल कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने में सक्षम होता है।

6. विभिन्न परिचालन क्षेत्रों के सतत निरीक्षण व पुनर्निरीक्षण के द्वारा पूंजी-क्षय (Capital-Erosion) को रोकता है।

कार्यशील अंकेक्षण की हानियां (Disadvantages of Operational Audit)

1 इस प्रकार के अंकेक्षण के प्रयोग में व्यय अधिक होता है। अतः यह अंकेक्षण खर्चीला है।

2. उपयुक्त गण वाले अंकेक्षक जैसे व्यक्ति नहीं मिल पाते हैं जो इस अंकेक्षण के करने में स्वस्थ विचारधारा वाले व्यक्ति हों।

3. यदि अंकेक्षक की रिपोर्ट की उपेक्षा की जाए, तो अंकेक्षक उचित रूप से कार्य नहीं कर सकता।

कार्यशील अंकेक्षण कार्यक्रम (Operational Audit Programme) 

कार्यशीलं अंकेक्षण कार्यक्रम का तैयार करना कठिन कार्य होता है जबकि सामान्य वित्तीय अंकेक्षण का कार्यक्रम बनाना उतना कठिन नहीं है। इस अंकेक्षण में विविध कार्य एवं क्रियाएं सन्निहित होती हैं. अतः। कार्यशील अंकेक्षण के लिए कार्यक्रम (Programme) बनाना कठिन हो जाता है। इस कार्यक्रम के अग्र पहल महत्वपूर्ण हैं :

1 व्यवसाय के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रबन्ध-नियन्त्रण कितने प्रभावी व पर्याप्त हैं, इसका प्रारम्भिक सर्वे किया जाना चाहिए ताकि यह विश्वास किया जा सके कि ये नियन्त्रण पर्याप्त हैं।

2. प्रबन्ध से व्यवसाय के उद्देश्यों के विषय में विस्तत जानकारी प्राप्त की जाए।

3. व्यवसाय के परिचालन का मूल्यांकन किया जाये। ।

4. प्रलेखीय साक्ष्यों (Documentary Evidences) के परिप्रेक्ष्य में विभिन्न क्रियाओं का सत्यापन किया। जाना चाहिए।

5. उत्पादन पद्धति तथा कम्पनी की नीतियों के परिवर्तन की स्थिति में व्यवसाय के परिचालन की जांच की जानी चाहिए।

उपरोक्त बिन्दुओं का ज्ञान प्राप्त करने के उपरान्त सभी क्रियाओं के लिए एक व्यवस्थित अंकेक्षण कार्यक्रम तैयार किया जा सकता है।

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प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

1. ‘प्रबन्ध अंकेक्षण’ की परिभाषा दीजिए और ‘वित्तीय अंकेक्षण’ व ‘लागत अंकेक्षण’ से इसका अन्तर समझाइए।

Define Management audit’ and distinguish it from Financial audit’ and ‘Cost audit’.

2. व्यवसाय के उन क्रियात्मक क्षेत्रों का वर्णन कीजिए जिनसे प्रबन्ध अंकेक्षक प्रमुखतः सम्बन्ध रखता है।

Describe there operational areas which are mainly concerned with management auditor.

3. प्रबन्ध अंकेक्षण के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।

Explain objectives of management audit.

4. क्या आप ‘प्रबन्ध परामर्श सेवाएं’ व ‘प्रबन्ध अंकेक्षण’ में कोई अन्तर समझते हैं? प्रबन्ध अंकेक्षण के क्षेत्र को समझाइए तथा उसका वर्णन कीजिए।

Do you feel that there is any difference between Management Consultancy Services’ and Management Audit’. Explain scope of management audit.

5. प्रबन्ध अंकेक्षण का महत्व समझाइए।

Explain importance of management audit.

6. ‘कार्यशील अंकेक्षण की परिभाषा समझाइए तथा इसकी लाभ व हानियां बतलाइए।

Define operational audit and explain its advantages and disadvantages.

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लघु उत्तरीय प्रश्न

1. प्रबन्ध अंकेक्षण की परिभाषा समझाइए।

2. प्रबन्ध अंकेक्षण का महत्व व क्षेत्र बताइए।

3. प्रबन्ध अंकेक्षण व लागत अंकेक्षण का अन्तर समझाइए।

4. प्रबन्ध अंकेक्षण आज के युग में आवश्यक प्रक्रिया है ? क्यों?

5. प्रबन्ध अंकेक्षण के कार्य बताइए।

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न

1 प्रबन्ध अंकेक्षण क्या है?

2. प्रबन्ध-अंकेक्षण सामाजिक अंकेक्षण से कैसे भिन्न है ?

3. प्रबन्ध अंकेक्षक के गुण बताइए।

4. प्रबन्ध अंकेक्षण की परिभाषा दीजिए।

5. प्रबन्ध अंकेक्षक कैसे नियुक्त होता है ?

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. प्रबन्ध की कुशलता नापने के लिए आवश्यक है :

(अ) सामाजिक अंकेक्षण

(ब) लागत अंकेक्षण

(स) प्रबन्ध अंकेक्षणं

(द) कोई नहीं

2. प्रबन्ध अंकेक्षण होता है :

(अ) वैधानिक

(ब) ऐच्छिक

(स) आवश्यक

(द) वैकल्पिक

 

chetansati

Admin

https://gurujionlinestudy.com

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